यूरोप जाने का प्रोग्राम बना तो लगा जैसे एक सपना सच होने जा रहा है. मुंबई से मिलान साढ़े 12 घंटे की फ्लाइट में पहुंचे. 3 घंटे दुबई में रुकना था. यूरोप देखने का उत्साह इतना अधिक था कि लंबी फ्लाइट के बाद भी थकान बहुत ज्यादा महसूस नहीं हुई. यह हमारी 25 दिन की ट्रिप थी. हम ने कोई टूर का पैकेज नहीं लिया था. इंटरनैट की सुविधा का लाभ उठाते हुए सबकुछ खुद ही प्लान किया था. कहीं एयरबीएनबी बुक कर लिए थे, कहीं होटल.

मिलान में हम पहली बार किसी एयरबीएनबी में रुके. यह पर्यटकों के लिए एक अलग ही सुविधाजनक कौन्सैप्ट है. इस में आप को एक पूरा फर्निश्ड घर ही मिल जाता है. उस में आधुनिक सुविधाओं से युक्त किचन होता है जहां आप कुछ बनाना चाहें तो बना सकते हैं. मैं ने इस किचन में सिर्फ टोस्टर का ही प्रयोग किया क्योंकि शाकाहारी होने के कारण मेरे लिए वहां मिलने वाले ब्रेकफास्ट्स में औप्शंस कम ही रास आ रहे थे. एयरबीएनबी में वाशिंग मशीन, प्रैस करने जैसी सब सुविधाएं मिल जाती हैं.

मिलान में हम ने पहली चीज लेक कोमो देखी. बहुत ही खूबसूरत, दूरदूर तक फैली लेक के किनारे लाइन से कई रैस्तरां, खूबसूरत हरियाली से घिरे दृश्य मन को मोहित कर रहे थे. बोटिंग की सुविधा अच्छी थी. किनारेकिनारे बैठने के लिए बैंचें थीं. बेहद आधुनिक कपड़ों में बहुत खूबसूरत स्मार्ट लड़कियों से अलग ही चहलपहल थी. दुनिया से बेखबर, अपने में खोए, पब्लिक प्लेस में एकदूसरे को किस करते हुए कई जोड़े देख कर वहां के कल्चर का रोमांटिक ट्रेलर देखा.

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लेक पर हम ने पता कर लिया था कि हमारे गंतव्य तक जाने वाली आखिरी बस 10 बजे है. लेक घूमतेघूमते थक गए तो डिनर कर के बसस्टौप पर आ गए. भाषा की समस्या महसूस हो रही थी. उन्हें इंग्लिश नहीं आती थी, हमें इटैलियन. बस में बैठ तो गए, अपने स्टौप के बारे में पूछा तो पता नहीं चला. फिर तो परदेस में आज का सब से बड़ा सहारा गूगल मैप औन किया तो देखा अपना स्टौप तो कब का पीछे छूट गया. फौरन बस से उतरे. उस समय ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं थी. अपने एयरबीएनबी की तरफ पैदल चलना शुरू किया. वहां से 2 किलोमीटर दूर था. थकान से बेहाल रात को चलतेचलते एयरबीएनबी पहुंचे. युवा बच्चों और हम पतिपत्नी ने एकमत से फैसला किया कि अब बसट्रेन में चढ़ते ही गूगल मैप औन कर लिया जाएगा.

फ्लोरैंस की खूबसूरती

अगली सुबह हम फ्लोरैंस चले गए. वहां उक्कीजी गैलरी माइकेल एंजिलो का काम देखा. दोमो कैथेड्रल गए, जिस में 465 सीढि़यां चढ़ कर ऊपर जाओ तो पूरा फ्लोरैंस दिखाई देता है. फ्लोरैंस सुंदर पुराना शहर है जो बहुत ही अच्छी तरह डिजाइन किया गया है. वहां छोटीछोटी गलियों के दोनों तरफ लगभग एकसी बड़ीबड़ी बिल्डिंग्स हैं जो हर कोने से देखने लायक हैं. यह इस शहर की अलग ही सुंदरता है. यहां हम ने अरनो नदी में कुछ देर बोटिंग भी की, पर पानी साफ नहीं था.

फ्लोरैंस में कई जगहें देखने लायक हैं. रात में सड़क के किनारे एक युवा हैंडसम, सूटेडबूटेड लड़का वायलिन बजा रहा था. उस के आगे रखे हैट में लोग कुछ पैसे रख कर चले जा रहे थे. वह बहुत ही अच्छा वायलिन बजा रहा था. हमारे कदम उस के पास आ कर खुद ही रुक गए थे.

फ्लोरैंस में एक रात को मजेदार किस्सा हुआ. मैं अपनी बेटी के साथ शौपिंग कर के लौट रही थी तो एक रैस्तरां का वेटर बाहर रखी टेबल ठीक करता हुआ हिंदी गाना गा रहा था. मेरे मुंह से निकल गया,

‘‘अरे, वाह, हिंदी…’’

वेटर हंस पड़ा, बोला, ‘‘हां, हम भी हिंदियंस.’’ हम हंसते हुए आगे बढ़ गए.

मुझे लग रहा था यहां भिखारी नहीं होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. उन के अंदाज अलग हैं. हम एक लाइन में लगे हुए थे. एक औरत आई जिस ने अपने पूरे शरीर पर सफेद पेंट लगाया हुआ था. वह एक युवा चाइनीज जोड़े के पास जा कर अपने साथ उन की फोटो खिंचवाने लगी.

वह जोड़ा उस के साथ कभी किस करता हुआ फोटो खिंचवाने लगा. उस के बाद वह महिला उन से पैसे मांगने लगी. युवा जोड़े ने मना किया तो वह गुस्सा होने लगी. आखिरकार वह कुछ पैसे ले कर ही वहां से हटी.

फ्लोरैंस से हमें नेपल्स जाना था. वहां हम ने एक दिन बे औफ नेपल्स का बोट ट्रिप लिया जो 6 घंटे का था. इसे पर्सनली हायर कर लिया जाता है जिस में नाश्ता, जूस, कोल्ड डिं्रक्स, लंच सर्व किया जाता है. हमारी यह बोट ट्रिप बहुत अच्छी रही. बोट के मालिक युवा दंपती लूका और ग्रेबिएला बहुत फ्रैंडली थे. दोनों बारीबारी से बोट का इंजन संभाल रहे थे. वे हमारे साथ बैठ कर बातें करते रहे. ये दोनों यूएस से आए हुए थे. उन्हें इंग्लिश आती थी तो सफर रोचक रहा.

लूका अपनी मां के हाथ का बना पास्ता और मसाला पोटैटो बनवा कर लाया था. वह अपनी मां के हाथ के खाने का बहुत प्रशंसक था. हम ने भी होमकुक्ड खाने की तारीफ की तो उस ने फौरन खुश हो कर अपनी मां को फोन पर बताया कि क्लायंट्स को आप का खाना अच्छा लगा. तो उस की मां ने हमें थैंक्स कहा.

इस बोट टूर पर बहुत कुछ देखने को मिला. बहुत सारे सीगल बोट के आसपास तैर रहे थे. लूका ने बताया, ‘‘अगर आप के हाथ में सैंडविच होता तो ये झपट्टा मार कर ले जाते. ये सैंडविच नहीं छोड़ते.’’ यहां बच्चों को बहुत मजा आया, लूका ने समुद्र में जो जगह सेफ बताई, हमारे बच्चे अपने स्विमिंग कौस्ट्यूम्स पहन कर समुद्र में कूद गए. उन्होंने खूब स्विमिंग की, हम ने उन की वीडियो बनाई.

बेहद खूबसूरत व साफ पानी था. वे तैरते हुए थक गए तो फिर बोट पर आए. सुरक्षित जगह, खूबसूरत नजारों के साथ 6 घंटे कब बीत गए, पता ही नहीं चला.

बेमिसाल आइलैंड

अगले दिन हम कैप्री गए. यह एक आइलैंड है. यहां भी बोट से जाना था. यहां की खूबसूरती शब्दों में बयां करना मुश्किल ही है. यहां बोट में हमारे साथ और लोग भी थे.

समुद्र में जगहजगह प्राकृतिक रूप से बनी गुफाएं हैं जिन की बनावट बेहद दिलचस्प है. 3 गुफाओं को फैरागिलियोनी कहा जाता है. इन गुफाओं के निचले हिस्से पर पानी रंगबिरंगा सा दिखता है. क्योंकि यहां लाइमस्टोन फौर्मेशन होता है. कभी यहां चीते, हाइना और जंगली जानवर भी हुआ करते थे. यहां नारंगी, ब्लू कलर का क्रिस्टल फौर्मेशन होता है. ये गुफाएं 200 मिलियन साल पुरानी हैं. यह सब जानकारी बोट का इंजन संभालने वाला देता रहता है.

नेपल्स से हम रोम गए. वैटिकन म्यूजियम का बहुत नाम सुना था. इंटरनैट से पता चल ही गया था कि टिकट के लिए हजारों की लाइन रहती है. ऐसे में हम ने हर जगह ‘स्किप द लाइन’ का औप्शन ही प्रयोग किया था. यह सुविधाजनक रहा.

अद्भुत कला का भंडार

वैटिकन सिटी यूरोप महाद्वीप में स्थित दुनिया का सब से छोटा देश है. यहां वैटिकन म्यूजियम, सिसटीन चैपल, सेंट पीटर्स बेसिलिका सब से लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं. साल में लगभग 40 लाख पर्यटक यहां आते हैं. म्यूजियम में बहुत ही अद्भुत मूर्तियां हैं. सुंदर पेंटिंग्स से सजी दीवारें अद्भुत कला का भंडार हैं. पर्यटक सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि छतों पर इतना सुंदर, महीन, आकर्षक  रंगों से सजा काम कैसे किया गया होगा.

हर तरफ अद्वितीय मूर्तियां हैं. जिन के चेहरों के भाव, शरीर की भावभंगिमा देखते ही बनती है. पुनर्जागरण काल के कलाकारों ने न्यूड फिगर्स बहुत बनाई हैं. चूंकि ड्राइंग ऐंड पेंटिंग मेरा विषय रहा है, इन पेंटिंग्स को अपनी आंखों से देखना मेरे लिए किसी सपने का सच होने जैसा ही था. इन पेंटिंग्स में जानवरों को कई मुद्राओं में चित्रित किया गया है. यहां पूरा दिन ही बीत जाता है, पता ही नहीं चलता.

अगले दिन कोलोसियम का गाइड टूर लिया. इस स्टेडियम को स्पोर्ट्स के लिए डिजाइन किया गया था. यहां लगभग 5,000 दर्शक साथ बैठ कर तलवारबाजों और जंगली जानवरों की लड़ाई देख सकते हैं. यह दुनिया के बेहतरीन अखाड़ों में से एक है. हालांकि भूकंप से इस के काफी भाग को हानि पहुंची है पर अब भी इसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ रहती है.

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हमारे गाइड फाबियो ने बताया कि वह बैंक में काम करता है. उसे अपनी सभ्यता और अपने शहर के इतिहास पर इतना गर्व है कि वह शौक में गाइड का काम करता है. उसे पर्यटकों को इस स्टेडियम का इतिहास बताना अच्छा लगता है. उस ने बताया कि रोम लजानिया की तरह है क्योंकि जब खुदाई हुई तो एक तह के अंदर शहर की दूसरी तह निकलती चली गई. यहां रोमन फोरम और पैलेटाइन हिल्स हैं, रोमन साम्राज्य के खंडहर हैं. वर्जिन्स सिस्टर्स का एक अलग महल होता था जहां उन की हर सुविधा का ध्यान रखा जाता था. वहां कुछ कुंआरी लड़कियों को रखा जाता था.

अपने में मस्त लोग

अगले दिन हम फ्लाइट से पेरिस चले गए. दिन में कुछ आराम कर के रात को सेन नदी के किनारे घूमने गए. वहां लोग घास पर बैठ कर रिलैक्स कर रहे थे. कोई वायलिन बजा रहा था, कहीं कोई गा रहा था. लोग घेरा बना कर गानेबजाने वालों को प्रोत्साहित कर रहे थे. कुछ खड़ेखड़े डांस कर रहे थे. करीब 70 वर्षीया एक महिला पहले तो एक पत्थर पर बैठेबैठे डांस कर रही थी, फिर वह खड़े हो कर संगीत में डूबी हुई सी डांस करने लगी. हमें गाने के बोल तो समझ नहीं आ रहे थे, पर संगीत बहुत कर्णप्रिय था. वहां से हटने का मन ही नहीं हो रहा था. गातेबजातेनाचते अपने में मस्त लोग, सबकुछ बहुत जादुई था.

हम ने डिनर किया. हर शहर की तरह यहां भी आइसक्रीम खाई. हर जगह लगभग आइसक्रीम 10-12 यूरो की ही थी. थक गए तो टैक्सी से होटल आए.

टैक्सी से आनाजाना वहां काफी महंगा पड़ता है. एयरपोर्ट से पेरिस शहर के लिए लगभग 50 यूरो लग जाते हैं. जहां भी हम घूमते हुए थक जाते थे, टैक्सी ही लेना आरामदायक लग रहा था क्योंकि फिर स्टेशन तक जाने में पैदल चलतेचलते काफी थकान होती थी. वैसे, वहां ट्रेन, बस में सफर करना बहुत अच्छा रहा. इस ट्रिप में पैदल चलना बहुत हुआ. किसीकिसी दिन तो हम लगभग 11 किलोमीटर भी चले.

अगले दिन एफिल टावर देखा. यह 324 मीटर ऊंचा है. इसे गुस्ताव एफिल ने बनवाया था. उस की कंपनी ने ही यह टावर डिजाइन किया था. रात में लाइट में यह बहुत सुंदर दिखता है. पेरिस में लूव्रे म्यूजियम भी देखा. यह विश्व के सब से प्रसिद्ध संग्रहालयों में से एक है. लूवे्र का पिरामिड पेरिस का मशहूर दर्शनीय स्थल है. यहां 35 हजार से ज्यादा पेंटिंग्स, मूर्तियां हैं. यहां लियोनार्दो द विंची की मोनालिसा शायद विश्व की सब से प्रसिद्ध पेंटिंग है. माइकेल एंजिलो का बनाया 2.15 मीटर ऊंचा स्टैच्यू उन की महान कृतियों में से एक है.

दुनिया का सब से बड़ा आर्ट संग्रहालय लूव्रे पेरिस का सैंट्रल लैंडमार्क है. संत मिशेल नौत्रेदाम चर्च देखा, वहां बाहर ही कई संगीतकार फ्रीलांस परफौर्मैंस देते रहते हैं. सर्कल के आसपास बहुत पुराने बने कई बुकस्टोर्स हैं, कैफे हैं जहां लोग बुक खरीद कर आराम से बैठ कर देर तक पढ़ते रहते हैं.

पेरिस से हम बर्न जा कर एक रात रुके. यह स्विट्जरलैंड की राजधानी है. यहां पार्लियामैंट हाउस देखा. बर्न में हमें बेहद स्वादिष्ठ इंडियन खाना मिला. एक इंडियन का ही रैस्तरां था.

यहां करीब 200 साल पुरानी बिल्ंिडग्स अब भी बहुत मजबूत और अच्छी स्थिति में हैं. यहां आरे नदी स्विस एल्प्स से आती है. उस के बाद हम ल्यूसर्न चले गए, बर्न से ल्यूसर्न ट्रेन से एक घंटा लगा. फिर वहां माउंट टिटलिस देखा, जहां ट्रौली से गए.

इस साल काफी सालों बाद यूरोप में गरमी थी. कारण, वही चिंताजनक, ग्लोबल वार्मिंग. वहां काफी प्रयत्नों के साथ बर्फ का इंसुलेशन किया गया है जिस से बर्फ कम पिघले. बर्फ से ढके रहने वाले पहाड़ों पर बर्फ कहींकहीं ही थी. पर जहां भी थी, खूबसूरत नजारे थे. वहां मैं ने देखा कई पतिपत्नी के साथ व्हीलचेयर पर उन के मातापिता भी थे. उन्हें उत्सुकता से आनंद लेते देखना बहुत अच्छा लगा. वहां टौप पर शाहरुख और काजोल का ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ मूवी वाला कटआउट भी रखा है. उस के साथ लोग फोटा खिंचवा रहे थे.

हम ने स्विस पास बनवा लिया था. इस से हमें हर जगह आनेजाने में सुविधा रही. इंटरलेकन हम 2 रात रुके. यह जगह मुझे पूरे ट्रिप की सब से खूबसूरत जगह लगी. हर जगह हरियाली और सामने ही पहाड़, सुबह उन पर चमकती चांदी सी धूप, शाम को मनमोहक बादल, बेहद हसीन मौसम, सुंदर गार्डन्स, बैठने की हर जगह पर समुचित व्यवस्था. यहां एक गार्डन में यश चोपड़ा का स्टैच्यू भी है.

यहीं से एक दिन हम हार्डरक्लूम गए. उस के लिए फ्यूनिकुलर ली. यह हम सभी का पहला अनुभव था. वहां ऊपर जा कर बें्रज और थुन नदी का संगम दिखता है. इंटरलेकन में रैस्तरां बहुत अच्छे थे. वहां का खाना बहुत स्वादिष्ठ था.

फिर हम ज्यूरिक चले गए. यह महंगा शहर है. कहीं कोई परेशानी नहीं, अशिष्टता नहीं. यहां भी हम ने डेढ़ घंटे बोटिंग की.

सोच अच्छी

यूरोप में हर जगह एक सिविक सैंस देखने को मिला. बस ट्रेन में चढ़तेउतरते लोगों का शिष्टाचार, चेहरों पर सौम्य मुसकराहट, कोई कुछ भी पहने किसी को मतलब नहीं. और कुछ बातें जिन पर मेरा खास ध्यान गया, वे हैं हर उम्र की महिला के हाथपैरों के नाखून बहुत ही सुंदर, अच्छी तरह मैनीक्योर, पैडिक्योर किए हुए, नेलपेंट्स बहुत आकर्षक. करीब 80 साल की स्त्री को भी साइकिल पर घर का सामान ले जाते देखा. उन की फिटनैस देख कर मन बहुत खुश हुआ.

मैं ने वहां के लोगों को अपने देश से ज्यादा बुक्स पढ़ते हुए देखा. वहां के लोग ट्रेन में, कैफे में, बसों में बुक्स पढ़ते दिखे. गार्डन्स में रखी चेयर्स पर लोग बुक्स पढ़ कर ही रिलैक्स कर रहे थे. हर जगह बुक्स पढ़ते हुए लोगों को देखना मेरे लिए सुखद अनुभव था. वहां साफसुथरे, पैम्पर्ड कुत्ते बहुत देखे, हर जगह लोग उन्हें साथ रखते हैं, ट्रेन, टैक्सी सब जगह. और वे इतने वैलमैनर्ड थे कि न किसी पर झपटना, न भूंकना. इतनी नस्लों के कुत्ते कभी नहीं देखे थे.

यूरोप में नजरें मिलते ही सब स्माइल कर देते हैं. अजनबी भी अपनी भाषा में अभिवादन करते हुए आगे बढ़ जाते हैं. वहां अचानक दिल में खयाल आया कि हमारे देश में अकारण ही किसी को देख कर कोई मुसकरा दे या यों ही ‘हैलो’ बोल दे तो क्याक्या समझ लिया जाएगा, आप अंदाजा लगा ही सकते हैं. सोच का बहुत फर्क  है जो साफसाफ महसूस हुआ.

पूरी ट्रिप में सब से ज्यादा सुविधा गूगल मैप से मिली. टैक्नोलौजी का सब से ज्यादा लाभ इस सुविधा से ही रहा. यूरोप की संस्कृतिसभ्यता के यादगार पलों की, वहां बिताए अविस्मरणीय समय की स्मृतियां लिए हम भारत लौट आए.

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