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महिलाएं भी दिखा सकती हैं बिजनेस में दम

आज नौकरी के अवसरों की कमी है और निजी क्षेत्रों में नौकरी को लेकर हमेशा एक अनिश्चितता बनी रहती है. इसलिए पिछले कुछ वर्षों में स्टार्टअप का चलन तेजी से बढ़ा है. स्वरोजगार के लिए नएनए आइडियाज उभर कर आएं हैं. एक तो इन में पूंजी कम लगती है और दूसरा कम जोखिम में सफल होने की संभावना अधिक होती है.महिलाएं भी बिज़नेस में बढ़चढ़ कर अपना हाथ आजमा रही है.

महिलाओं की योग्यता और बिज़नेस स्किल्स का लोहा पूरी दुनिया मानती है. अब महिलाएं केवल डिजाइनिंग, फैशन और हैंडीक्रौफ्ट इंड्स्ट्री में ही नहीं हैं बल्कि उन क्षेत्रों में भी कदम रख रही हैं जहां पहले काम करने में वे झिझकती थीं. मिनिस्ट्री औफ स्टेटिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन के अनुसार आज हमारे देश में कुल व्यवसाइयों में से 14 प्रतिशत महिलाएं हैं. शहरी ही नहीं गांव की महिलाएं भी अपने हैंडी ग्राफ्ट्स और एथनिक जूलरी के व्यवसाय बखूबी चला रही हैं. महिलाएं और भी कई तरह के बिज़नेस में हाथ आजमा सकती हैं.

रूचि का खयाल रखें

अगर आप कोई व्यवसाय शुरू करने का सोच रही हैं तो सब से पहले आप को अपनी रूचि का ख़याल रखना चाहिए वही काम करें जो करने में आप को मजा आता है. अब यह तय कीजिये कि उस काम की शुरूआत किस स्तर पर करना चाहती हैं. आप इस व्यवसाय को फुलटाइम रखना चाहती हैं या पार्ट टाइम. इस स्टार्टअप को शुरू करने में कितनी पूंजी की जरूरत पड़ेगी.

फंड का इंतजाम

सामान्यता छोटेमोटे स्टार्टअप की शुरुआत के लिए बहुत ज्यादा पूंजी की आवश्यकता नहीं होती है.  आप इसे अपनी निजी बचत या परिवार के सहयोग से शुरू कर सकती हैं. बैंक और दूसरी वित्तीय संस्थाएं भी महिलाओं को लोन दे रही हैं. माइक्रो फायनेंस सेक्टर स्टार्टअप के लिए बहुत अच्छा काम कर रहा है. नैसकॉम के अनुसार 2018 में स्टार्टअप की फंडिंग में 108 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.,

इस बारे में स्टार्टअप कंसलटेंट यागवेन्द्र सिंह कुम्पावत कहते हैं की महिलाओं के लिए ऐसे कई स्टार्टअप बिजनेस आइडियाज़ हैं जिन्हे वे अपनी सुविधा और रूचि अनुसार अपना सकती हैं;

  1. ब्लौगिंग

ब्लॉगिंग का काम आप बहुत ही कम निवेश पर शुरू कर सकती हैं. इसे 10 हजार से भी कम की पूंजी पर शुरू किया जा सकता है. अगर आप की लेखन क्षमता अच्छी है तो आप ब्लौगिंग के द्वारा अच्छी कमाई कर सकती हैं. ब्लौगर के तौर पर काम करने के लिए आप को एक डोमेन नेम और होस्टिंग स्पेस लेना होता है. इंडीब्लौगर 2007 में स्टार्टअप के रूप में प्रारंभ हुआ था और आज ब्लौगिंग की दुनियां में यह एक बड़ा नाम है.

  1. इवेंट और्गेनाइजर

अगर आप के भीतर नेटवर्किंग बिल्ड करने और टीम को मैनेज करने की क्षमता है तो यह बिजनेस भी काफी मुनाफा देने वाला है. आज इवेंट और्गेनाइज़र्स के लिए मार्केट में अच्छा स्पेस है. इवेंट और्गेनाइज़र को इवेंट मैनेजर भी कहा जाता है. एक इवेंट मैनेज़र का काम किसी भी कार्यक्रम या समारोह को सफलतापूर्वक आयोजित करना है. इस में समारोह स्थान का चयन, विभिन्न कार्यक्रमों का शेड्यूल तैयार करना, औडियो-विडियो की व्यवस्था देखना, खानेपीने का प्रबंध और अगर कार्यक्रम बड़े स्तर पर है तो स्पांसर्स ढूंढना सम्मिलित हैं. इस काम में सफलता प्राप्त करने के लिए आप को थोड़ा धैर्य रखना पड़ता है क्यों कि मार्केट में अपना स्थान बनाने में समय लग सकता है.

  1. कंसल्टेंसी सर्विसेस

शिक्षा के प्रसार और आर्थिक प्रगति के कारण पिछले कुछ वर्षों में कंसल्टेंसी सर्विसेस के क्षेत्र में अवसर काफी बढ़े हैं. आप इसे निजी स्तर पर भी चला सकते हैं या विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को अपने साथ ले कर थोड़े बड़े स्तर पर भी कर काम सकते हैं. इस में निवेश और जोखिम दोनों कम होते हैं.

  1. ब्रेकफास्ट प्वाइंट

हमारे देश में खानेपीने का बड़ा क्रेज है. आप अक्सर देखेंगे कि खानेपीने की छोटीछोटी दुकानों पर भी भीड़ लगी रहती है. वैसे भी भोजन मनुष्य की अधारभूत आवश्यकता है. हर इंसान कम कीमत में लाजवाब और तरहतरह की चीज़ें खाने की इच्छा रखता है. इसीलिए खानपान से जुड़े व्यवसाय मार्किट का बहुत बड़ा हिस्सा शेयर करते हैं. आप एक दुकान किराए पर ले कर उस में सेकंडहैंड टेबलकुर्सी लगा कर भी अपना काम शुरू कर सकती हैं. बर्तन और किराने का सामान भी कम कीमत पर आसानी से मिल जाता है.

  1. यूट्यूब चैनल

यूट्यूब रचनात्मक और प्रतिभाशाली लोगों को एक अच्छा प्लेटफार्म देता है. इस में निवेश बहुत कम है लेकिन रिटर्न काफी अच्छे मिलते हैं. यूट्यूब इनडिपेंडेंट चैनल (निजी चैनल) खोलने की सुविधा भी देता है और इस पर विडियो अपलोड करने का कोई शुल्क भी नहीं वसूला जाता है. बल्कि यह कुछ युट्युबर्स को जिन के चैनल काफी लोकप्रिय हैं भुगतान भी करता है.

  1. बुटिक

आज सेल्फमेड डिजाइन का बड़ा चलन है. आप एक छोटी सी दुकान किराए पर ले कर या अपने घर से ही यह काम शुरू कर सकती हैं. आप इसे एक सिलाई मशीन के साथ अकेले शुरू कर सकती हैं. आप का बजट अधिक हो तो एकदो कारीगर भी रख सकती हैं. आप अपना एक ब्रांड भी शुरू कर सकती हैं. ऑनलाइन बिक्री के लिए आजकल बहुत सारे प्लेटफार्म उपलब्ध हैं. एक बार आप का ब्रांड मार्केट में स्थापित हो जाए तो आप के लिए संभावनाएं बहुत होती हैं.

  1. स्क्रिप्ट राइटिंग

आजकल कई सारे चैनल्स आने से स्क्रिप्ट राइटिंग (पटकथा लेखन) का काम बहुत फलफूल रहा है. इस काम को शुरू करने के लिए कुछ भी निवेश नहीं करना पड़ता है. मुबंई में स्वतंत्र पटकथा लेखकों के लिए बहुत काम है. उन्हें विभिन्न प्रोजेक्ट्स पर काम मिल जाता है जिसे वे कहीं से भी और कभी भी कर सकते हैं. अगर आप एक कुशल पटकथा लेखक हैं तो आप के लिए अवसरों की कोई कमी नहीं है.

  1. वेबसाइट डिवेलपर

आज हम डिजिटल वर्ल्ड में रह रहे हैं, ऐसे में हर कोई चाहता है कि उसकी अपनी निजी वेबसाइट हो जिस पर वह अपने काम को प्रदर्शित कर सके. वेबसाइट के द्वारा न केवल आप अपने काम को डिसप्ले कर सकती हैं बल्कि यूजर्स तक अपने काम को आसानी से पहुंचा भी सकती हैं. आप किसी संस्था से जुड़ कर भी वेबसाइट डिवेलपर का काम कर सकती हैं. अगर आप निजी तौर पर करना चाहती हैं तो आप को वेबसाइट डिवेलपर का कोर्स करना पड़ेगा. इस में आप को वेबसाइट डिवेलप करने की बारीकियां सिखाई जाती हैं.

  1. फिटनेस ट्रेनर

यदि आप को स्वस्थ रहने की आदत है और इसलिए आप हर दिन योग एवं व्यायाम करती हैं तो आप इस कला को दूसरों को भी सिखा सकती हैं और इसे एक व्यवसाय के रूप में अपना सकती हैं. फिटनेस ट्रेनर का व्यवसाय आज कल काफी फलफूल रहा है. वैसे भी ऐसी बहुत सारी महिलाएँ हैं जो अपने जीवन में इतनी व्यस्त हैं कि अपनी शारीरिक फिटनेस पर ध्यान नहीं दे पाती हैं. आप उन्हें व्यायाम सिखा सकती है फिटनेस टिप्स दे सकती हैं. यह एक अच्छा बिज़नेस साबित हो सकता है .

  1. फ्रीलांस राइटिंग

महिलाओं के लिए एक व्यवसाय जो बहुत तेजी से उभर रहा है वह है फ्रीलांस लेखन जिस की डिमांड मार्किट मैं लगातार बढ़ती जा रही है. इसे शुरू करना बहुत आसान है. अगर आप में अपने विचारों को सशक्त तरीके से पेश करने की क्षमता है, भाषा पर अच्छी पकड़ है और लेखन कला जानती हैं  तो आप अच्छी लेखिका साबित हो सकती हैं.

इसे शुरू करने के लिए निवेश भी अधिक नहीं करना पड़ता है. आपको एक कम्प्युटर, इंटरनेट और प्रिंटर की आवश्यकता पड़ती है. अगर आप अच्छा लिखती हैं और आपका नेटवर्क अच्छा है तो आप के लिए काम की कमी महीं है. इस में कमाई के साथसाथ आप को प्रसिद्धि भी मिलती है. अगर आप ने एक कुशल लेखक के रूप में अपनी जगह बना ली है तो आप कुछ अच्छे विषय चुन कर उन पर किताबें भी लिख सकती हैं.

  1. टिफिन सेवा

यदि आप एक ऐसी महिला हैं जिसे खाना बनाना पसंद है तो आप को व्यवसायी बनने से कोई नहीं रोक सकता. आज कल की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में लोगो के पास अच्छा खाना बनाने और खाने का समय नहीं रहता है. मगर हर कोई घर का बना ताजा और हाईजेनिक खाना पसंद करते हैं. ऐसे में टिफिन सेवा व्यवसाय आप के लिए एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है. आप को घर बैठे कमाने और अपनी हॉबी को सही जगह इस्तेमाल करना का मौका मिलता है.

  1. सौंदर्य उत्पाद निर्माण

और्गेनिक और हर्बल उत्पादों के प्रति लोगों की दीवानगी और रुझान देखते हुए आप घर पर सौंदर्य उत्पाद बनाने का व्यवसाय शुरू कर सकती हैं. साबुन, बाथ औइल, फेस वाश कैंडल्स जैसी कितनी ही चीज़ें हैं जिन्हे बना कर आप अपना हुनर दिखने के साथसाथ अच्छीखासी कमाई भी कर सकती हैं.

  1. ग्राफिक्स डिजाइनिंग बिजनेस आइडियाज

यदि आप के पास रचनात्मक दिमाग और व्यवसाय के नएनए आइडियाज हैं तो आप ग्राफिक डिजाइनिंग की दुनिया में उतर सकती हैं और इसे अपने स्वयं के व्यवसाय में बदल सकती हैं. एक बार जब आप अपना पोर्टफोलियो बना लेती हैं और खुद को रिपीट करने वाले व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लेती हैं तो आप के पास ऑफर आने शुरू हो जाएंगे. अपने रचनात्मक दिमाग और कौशल के जरिये आप घर पर एक अच्छा व्यवसाय शुरू कर सकती हैं.

  1. इमेज कंसल्टेंट्स

इस तेजतर्रार और प्रतिस्पर्धी दुनिया में आप खुद को कैसे पेश करती हैं यह बहुत मायने रखता है. आप एक पुरुष हैं या महिला हैं इस से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. क्यों कि इमेज कंसल्टेंसी का व्यवसाय तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. हम में से हर एक में सुधार की गुंजाइश  हमेशा रहती है और अगर आप को लगता है कि आप के पास किसी के व्यक्तित्व को विकसित करने और उन में कुछ आत्मविश्वास पैदा करने में मदद करने की क्षमता है तो आप खुद को एक सफल इमेज कंसलटेंट के रूप में स्थापित कर सकती हैं.

  1. वित्तीय सलाहकार

यदि आप ने अपने परिवार के लिए अच्छे वित्तीय निर्णय लिए हैं और आप की सलाह ने आप के दोस्तों और परिचितों की मदद की है तो आप वित्तीय सलाहकार बनने पर विचार कर सकती हैं. अपने ग्राहकों के लिए घर पर बैठकें आयोजित करें. कुछ व्यवसायी कार्ड बनाएं और काम शुरू करें.

  1. भाषा शिक्षण

यदि आप विभिन्न भाषाओं या यहां तक कि एक विदेशी भाषा जानती हैं तो आप युवा पेशेवरों के लिए भाषा कक्षाएं शुरू कर सकती हैं. घर पर अपना करिकुलम बनाएँ और काम शुरू करें. आप के पास अपना खुद का शेड्यूल सेट करने का लचीलापन भी होगा.
यदि आप पहले से ही आर्थिक रूप से मजबूत हैं तो आप एक छोटी सी जगह किराए पर ले सकती हैं और कक्षाएं संचालित कर सकती हैं. आप आनलाइन भी अपना व्यवसाय बढ़ा सकती हैं. इस से आप को अपना घर भी नहीं छोड़ना पड़ेगा .

17.फिजियोथेरेपी व्यवसाय

यदि आप के पास प्रशिक्षण और प्रमाणपत्र हैं तो फिजियोथेरेपी एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. आप घर पर फिजियोथेरेपी सत्र आयोजित कर सकती हैं या वरिष्ठ नागरिकों जो बाहर जाने में असक्षम है के लिए घर पर ही यह सुविधा प्रदान कर सकती हैं.
कई महिलाएं एक महिला फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा अपनी फिजियोथेरेपी करवाना पसंद करती हैं. यहाँ आप मोनोपोली का मजा ले सकती है.

  1. संगीत हो सकता है एक बेस्ट व्यवसाय

आप लोगों को गिटार, वायलिन , कीबोर्ड, सेलो या कोई और म्यूजिकल इंस्टूमेंट्स सिखा सकती हैं. आप अपने घर पर, अपने बच्चे के स्कूल में या कॉलेजों में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर काम पा सकती हैं. संगीत का शौक सब को होता है. इसे आप अपनी जीविका का साधन भी बना सकती हैं.

19.यात्रा ब्लौगिंग

यदि आप यात्रा करना पसंद करती हैं और अपने अनुभव लोगों के साथ साझा करना चाहती हैं तो आप ब्लॉगिंग का व्यवसाय शुरू कर सकती हैं. आप लोगों से रहने के लिए बेहतर स्थानों पर सुझाव साझा कर सकती हैं और खानेपीने के लिए अच्छे स्थानीय मार्केट्स की जानकारी दे सकती हैं. आप अपनी सेवाओं की पेशकश करने वाली यात्रा वेबसाइटों पर लिख सकती हैं और अपनी मेहनत की अच्छी कीमत भी पा सकती हैं.

  1. लाइफ कोच

अगर आपको जिंदगी और मानव स्वभाव की अच्छी समझ है तो आप लाइफ कोच भी बन सकती हैं. आज भागदौड़ भरी जिंदगी में कईं लोगों का जीवन दिशाहीन हो जाता है. उन्हें समझ में नहीं आता कि अपने जीवन को दोबारा पटरी पर कैसे लाया जाए. वे बहुत तनावग्रस्त रहने लगते हैं और कईं तो अवसाद में चले जाते हैं. ऐसे में लाइफ कोच उन के जीवन को एक दिशा देने का काम करता है. इस प्रोफेशन की सब से अच्छी बात यह है कि कमाई के साथसाथ यह आप को मानसिक संतुष्टि भी देता है. इसे शुरू करने के लिए निवेश भी अधिक नहीं करना पड़ता है. आप एक आफिस किराए पर ले सकती हैं, थोड़ा इंटीरियर पर खर्च करने के अलावा आप को अपने क्लाइंट्स का रिकार्ड रखने के लिए एक कम्प्युटर की जरूरत होगी.

नक्काश: इंसान में फर्क न करने का संदेश देने वाली बेहतरीन फिल्म…

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माताः पवन तिवारी,जैगम इमाम व गोविंद गोयल

एसोसिएट निर्माता व प्रस्तुतकर्ता: पियूश सिंह

लेखक व निर्देशक: जैगम इमाम

संगीतकार: अमन पंत

कैमरामैन: असित विश्वास

कलाकार: इनामुलहक, शारीब हाशमी, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा, पवन तिवारी, गुलकी जोशी,  हरमिंदर सिंह अन्य.

वाराणसी में ही पले बढ़े और पत्रकार से फिल्मकार बने जैगम इमाम धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लड़ने  की  बात करने वाली ‘दोजख:इन सर्च औफ हैवन’ और ‘अलिफ’ जैसी दो फिल्में दे चुके हैं. अब वह तीसरी फिल्म ‘‘नक्काश’’लेकर आए हैं. उनकी इन तीनों ही फिल्मों में बनारस, गंगा, मंदिर व मस्जिद, हिंदू व मुस्लिम के साथ ही धार्मिक कट्टरता के खिलाफ लड़ाई व छटपटाहट मौजूद है. मगर जैगम इमाम ने इस बार फिल्म ‘‘नक्काश’’ में धर्म के नाम पर समाज में विभाजन करने वाली राजनीति को जोड़ा है. और यहीं पर वह थोड़ा सा मात खा गए. परिणामतः उनकी यह अति जरुरी फिल्म उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले कथानक व पटकथा के स्तर कुछ कमजोर नजर आती है.

फिल्मकार के तौर पर जैगम इमाम की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि वह समाज के दर्पण की तरह ‘नक्काश’ लेकर आए हैं. भारत में कभी भी धार्मिक कट्टरता हावी नही रही है. हमेशा धार्मिक सद्भाव व भाईचारा रहा है. पर कुछ समय से यह लुप्त हो रहा है, उसे ही लोगों के सामने रखने के साथ इंसान को सोचने पर मजबूर करने का काम फिल्म ‘‘नक्काश’’ करती है.

कहानीः

‘नक्काश’की कहानी अल्ला रक्खा सिद्दिकी (इनामुल हक) नामक एक मुस्लिम कलाकार की है, वाराणसी में मंदिर में नक्काश और भगवान के गर्भ ग्रृह में नक्काशी का काम करते हैं. अल्ला रक्खा की पत्नी का देहांत हो चुका है और उनका एक छोटा बेटा मोहम्मद (हरमिंदर सिंह) है. अल्ला रक्खा हर दिन गंगा नदी में ही वुजू करते हैं और गंगा घाट पर ही नमाज अदा करते हैं. अल्ला रक्खा के पुरखे भी मंदिर में नक्काशी का काम करते रहे हैं. बनारस के बहुत बड़े व भव्य मंदिर के मुख्य पुजारी वेदांती (कुमुद मिश्रा) की नजरों में अल्ला रक्खा से बेहतरीन कोई कारीगर नही. वेदांती सदैव अल्ला रक्खा का समर्थन करते हैं. क्योंकि वह उनकी कला और रचनात्मकता का सम्मान करते हैं, जो उन्हें भगवान द्वारा दिया गया है. वेदांती सभी धर्मो का सम्मान करते हैं. मगर माहौल बिगड़ा हुआ है, इसलिए वेदांती की सलाह पर अल्ला रक्खा हर दिन शर्ट पैंट पहने और माथे पर टीका लगाकर ही मंदिर आता है. वेदांती का बेटा मुन्ना भाई (पवन तिवारी) तो धर्म की राजनीति करते हुए इस बार चुनाव में टिकट पाने की जुगाड़ में है. उसे एक विधर्मी अल्ला रक्खा का मंदिर में नक्काशी का काम करना पसंद नही, पर पिता वेदांती के सामने वह चुप रहता है. उधर कोतवाली के पुलिस इंस्पेक्टर (राजेश शर्मा) को भी मंदिर में मुस्लिम का काम करना पसंद नहीं.

इतना ही नहीं मंदिर मे काम करने की वजह से अल्ला रक्खा सिद्दिकी को उसके अपने समुदाय के लोग उपेक्षित नजरों से देखते हैं. अल्ला रक्खा का इकलौटा बेटा मोहम्मद पढ़ना चाहता है. लेकिन कोई भी मौलवी साहब मदरसे में उसे प्रवेश नहीं देते. क्योंकि उसके पिता हिंदुओं और उनके भगवान की सेवा करते हैं. एक दिन अल्ल रक्खा अपने बेटे मोहम्मद को मंदिर में उस जगह ले जाते हैं, जहां वह भगवान को सजाने का काम करते हैं, तो भगवान की मूर्ति देखकर जब बेटा मोहम्मद सवाल करता है कि यह कौन है? तब अल्ला रक्खा कहते हैं-‘‘अल्लाह के भाई भगवान हैं. अल्लाह और भगवान इंसान के बीच फर्क नहीं करते. इंसान के बीच फर्क करता है इंसान. तुम कभी मत करना.’’

Inaamulhaq.

अल्ला रक्खा का दोस्त व औटो रिक्षा चलाने वाला समद (शारिब हाशमी) हमेशा अल्ला रक्खा का साथ देता है. समद का जीवन में मूल उद्देश्य अपने पिता को हज पर भेजना है.

इसी बीच अल्ला रक्खा सबीहा (गुलकी जोशी) से दूसरी शादी करने के लिए जाता है. तभी समद, अल्ला रक्खा के घर मंदिर के सोने के जेवर चुराकर पिता को हज पर भेजने के लिए पैसे का इंतजाम करने जाता है, पर पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है. शादी करके घर वापस लौटने पर समद के रोने पर अल्ला रक्खा मंदिर से जेवर चुराने का आरोप अपने उपर ले लेता है, जिससे समद अपने पिता को हज पर भेज सके. पर वेदांती का मानना है कि अल्ला रक्खा मंदिर के जेवर नही चुरा सकता. वेदांती के कहने पर पुलिस अल्ला रक्खा व उसके बेटे को लेकर मंदिर के गभरा गृह में पहुंचती है. जहां अल्ला रक्खा सच बयां कर देते हैं. पुलिस फिर से समद को गिरफ्तार कर लेती है. समद के पिता की मौत हो जाती है. जेल से निकलने के बाद समद मुस्लिम धर्म की सेवा में लग जाता है और वह अल्ला रक्खा से दूरी बना लेते हैं.

अल्ला रक्खा अपनी कला के लिए एक अखबार के साक्षात्कार से लोकप्रियता हासिल करता है. पर इसी के चलते वेदांती के बेटे मुन्ना भाई को चुनाव का टिकट नही मिल पाता. तब मुन्ना भाई, समद की मदद से अपनी राजनीतिक रोटी को सेंकने में कामयाब होते हुए अल्ला रक्खा को मौत की नींद सुला देते हैं. अंत में मोहम्मद अपने घर में भगवान की मूर्ति बनाते व नक्काशी करता नजर आता है.

पटकथाः

जैगम इमाम ने अपनी लेखनी के माध्यम से हर धार्मिक कट्टरता को बेबाकी के साथ चित्रित किया है. उन्होंने वर्तमान समय में धार्मिक घृणा के चलते विभाजित हो रहे समाज को लेकर अच्छी नीयत के साथ फिल्म बनायी है. फिर भी कमजोर पटकथा के चलते कुछ हिस्सों में फिल्म की गति धीमी है. जैगम इमाम ने इस फिल्म में दोस्ती पर धर्म व राजनीति को हावी होते दिखाया है. यानी कि रिश्तों पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है. इस बात से निजी स्तर पर में सहमत नही हो सकता. क्योंकि मेरे अनुभव कहते है कि भारत में आज भी दोस्ती की राह में धर्म नहीं आता. पर फिल्मकार का दावा है कि उनकी यह फिल्म गहन शोध पर आधारित है. फिल्म का क्लायमेक्स भी कमजोर है.

फिल्म के कुछ संवाद बहुत बेहतर बन पड़े हैं. अपनी पिछली दोनों फिल्मों की ही तरह इस फिल्म में भी जैगम ने मासूम बालक के माध्यम से कुछ सवाल उठाए हैं, जो कि हर दर्शक को सोचने पर मजबूर करते हैं.

निर्देशनः

इस फिल्म से भी जैगम इमाम कुशल निर्देशक के रूप में उभरते हैं. फिल्म में उन्होंने गंगा जमुना तहजीब और बनारस को बड़ी खूबसूरती के साथ चित्रित किया है. यदि उन्होंने फिल्म के अंत को बेहतर बनाने के साथ ही कहानी में राजनीति को थोड़ा बेहतर ढंग से पिरोया होता, तो यह फिल्म और बेहतर हो सकती थी.

FILM-Nakkash

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अल्ला रक्खा सिद्दिकी के किरदार में इनामुलहक ने शानदार अभिनय किया है. अल्ला रक्खा की समझदारी, उसका गम, गुस्सा, हताषा, दोस्त के लिए चोरी का झूठा इल्जाम भी अपने सिर पर लेने के सारे भाव इनामुलहक के चेहरे पर महसूस किए जा सकते हैं. भोल भाले मासूम रिक्षाचालक से कट्टर वादी मुस्लिम बन जाने वाले समद के किरदार में शारीब हाशमी का अभिनय काफी सहज है. हर धर्म को एक समान मानने वाले वेदांती के किरदार में कुमुद मिश्रा प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहते हैं. राजेश शर्मा और गुलकी जोशी के हिस्से करने को कुछ खास है ही नही. बाल कलाकार हरमिंदर सिंह हर दर्शक के दिलों तक पहुंच जाता है.

जानें क्यों वायरल हो रही हैं, शाहरुख खान की बेटी सुहाना की तस्वीरें

बौलिवुड बादशाह शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान ट्रेडिशनल अंदाज में नजर आईं. इस दौरान सुहाना बेहद खूबसूरत लग रहीं थीं. दरअसल सुहाना की ये तस्वीरें फैमिली वेडिंग की हैं.

 

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हल्के हरे रंग की सलवार कमीज पहने और हाथों में मेंहदी लगाए सुहाना का यह शानदार लुक देखते ही बनता है. सुहाना की यह तस्वीर इंटरनेट पर आते ही छा गई.

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इस तस्वीर में सुहाना मुस्कुराकराते हुए पोज दे रही हैं. वें दुपट्टे को कंधे पर लटकाए हुए थीं और खुले बालों में काफी खूबसूरत लग रही थी.

 

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आपको बता दें कि पिछले साल सुहाना ने वोग मौग्जीन के लिए कवर फोटोशूट कराया.मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक सुहाना बौलीवुड में डेब्यु करने वाली हैं.

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हालांकि सुहाना, शाहरुख खान या गौरी खान की साइड से डेब्यु के लिए कोई भी औफिशियल अनाउंसमेंट नहीं किया गया है. आए दिन सुहाना की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होते रहती हैं.

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क्या बेन स्टोक्स बन पाएंगे 2011 के युवराज सिंह?

इस टूर्नामेंट को जीतने की प्रबल दावेदार टीम इंगलैंड ने दक्षिण अफ्रीका को चारों खाने चित करते हुए उस पर एक बड़ी जीत दर्ज की. ओवल के खूबसूरत मैदान पर पहले बल्लेबाजी करते हुए इंगलैंड ने तय 50 ओवर में अपने 8 विकेट खो कर 311 रन बनाए थे. देखने में यह विशाल स्कोर लग रहा था लेकिन जब से ट्वेंटी20 ने जोर पकड़ा है और उस में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए टीमें बड़ेबड़े स्कोर बना देती हैं, तो यह कहा जा सकता था कि अगर दक्षिण अफ्रीका की टीम सब्र से काम लेगी और अपनी विकेटों को बचाए रखेगी, तो मैच निकाल ले जाएगी.

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पर ऐसा हो न सका. इंगलैंड ने अपनी सधी गेंदबाजी और शानदार फील्डिंग से आसानी से यह मैच जीत लिया. दक्षिण अफ्रीका की टीम महज 207 रन ही बना पाई जबकि अभी 9 ओवर फेंके जाने बाकी थे.
इंगलैंड की इस जीत के हीरो बेन स्टोक्स रहे जिन्होंने आलराउंड खेल दिखा कर सब का दिल जीत लिया. उन्होंने पहले तो उम्दा बल्लेबाजी करते हुए 79 गेंदों पर 89 रन बनाए और बाद में अपनी गेंदबाजी से भी मेहमान टीम को परेशान किया. उन्होंने 2.5 ओवर में 12 रन दे कर 2 विकेट हासिल किए. इतना ही नहीं, उन्होंने 2 कैच भी लपके थे और एक खिलाड़ी को रन आउट करने में अपना योगदान भी दिया था.

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उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के एनडिल फेहलुकवायो के शॉट को हवा में उछल कर एक हाथ से लपक लिया था जो इस मैच का यादगार कैच बन गया था.
बेन स्टोक्स का यह हरफनमौला खेल उस युवराज सिंह की याद दिला गया जिन्होंने साल 2011 में भारत में हुए वर्ल्ड कप में अपने आल राउंड खेल से विरोधियों के छक्के छुड़ा दिए थे. तो क्या यह समझ लिया जाए इस बार यह कारनामा बेन स्टोक्स कर पाएंगे?

Edited by – Neelesh Singh Sisodia 

सजा

असगर ने अपने दोस्त शकील से शर्त जीत कर तरन्नुम से निकाह तो कर लिया था लेकिन तरन्नुम को जब उस के विवाहित होने का पता चला तो उस ने आम औरतों की तरह सामंजस्य करने से इनकार कर दिया और असगर को वह सजा दी जिस की कल्पना भी वह नहीं कर सकता था.

असगर अपने दोस्त शकील की शादी में शरीक होने रामपुर गया. स्कूल के दिनों से ही शकील उस के करीबी दोस्तों में शुमार होता था. सो दोस्ती निभाने के लिए उसे जाना मजबूरी लगा था. शादी की मौजमस्ती उस के लिए कोई नई बात नहीं थी और यों भी लड़कपन की उम्र को वह बहुत पीछे छोड़ आया था.

शकील कालेज की पढ़ाई पूरी कर के विदेश चला गया था. पिछले कितने ही सालों से दोनों के बीच चिट्ठियों द्वारा एकदूसरे का हालचाल पता लगते रहने से वे आज भी एकदूसरे के उतने ही नजदीक थे जितना 10 बरस पहले.

असगर को दिल्ली से आया देख शकील खुशी से भर उठा, ‘‘वाह, अब लगा शादी है, वरना तेरे बिना पूरी रौनक में भी लग रहा था कि कुछ कसर बाकी है. तुझ से मिल कर पता लगा क्या कमी थी.’’

‘‘वाह, क्या विदेश में बातचीत करने का सलीका भी सिखाया जाता है या ये संवाद भाभी को सुनाने से पहले हम पर आजमाए जा रहे हैं.’’

‘‘अरे असगर, जब तुझे ही मेरे जजबात का यकीन न आ रहा हो तो वह क्यों करेगी मेरा यकीन, जिसे मैं ने अभी देखा भी नहीं,’’ शकील, असगर के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

बातें करतेकरते जैसे ही दोनों कमरे के अंदर आए असगर की निगाहें पल भर के लिए दीवान पर किताब पढ़ती एक लड़की पर अटक कर रह गईं. शकील ने भांपा, फिर मुसकरा दिया. बोला, ‘‘आप से मिलिए, ये हैं तरन्नुम, हमारी खालाजाद बहन और आप हैं असगर कुरैशी, हमारे बचपन के दोस्त. दिल्ली से तशरीफ ला रहे हैं.’’

दुआसलाम के बाद वह नाश्ते का इंतजाम देखने अंदर चली गई. असगर के खयाल जैसे कहीं अटक गए. शकील ने उसे भांप लिया, ‘‘क्यों साहब, क्या हुआ? कुछ खो गया है या याद आ रहा है?’’

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असगर कुछ नहीं बोला, बस एक नजर शकील की तरफ देख कर मुसकरा भर दिया.

शादी के सारे माहौल में जैसे तरन्नुम ही तरन्नुम असगर को दिखाई दे रही थी. उसे बिना बात ही मौसम, माहौल सभी कुछ गुनगुनाता सा लगने लगा. उस के रंगढंग देख कर शकील को मजा आ रहा था. वह छेड़खानी पर उतर आया. बोला, ‘‘असगर यार, अपनी दुनिया में वापस आ जाओ. कुछ बहारें देखने के लिए होती हैं, महसूस करने के लिए नहीं, क्या समझे? भई, यह औरतों की आजादी के लिए नारा बुलंद करने वालियों की अपने कालेज की जानीमानी सरगना है, तुम्हारे जैसे बहुत आए और बहुत गए. इसे कुछ असर होने वाला नहीं है.’’

‘‘लगानी है शर्त?’’ असगर ने चुनौती दी, ‘‘अगर शादी तक कर के न दिखा दूं तो मेरा नाम असगर कुरैशी नहीं.’’

शकील ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘मियां, लोग तो नींद में ख्वाब देखते हैं, आप जागते में भी.’’

‘‘बकवास नहीं कर रहा मैं,’’ असगर ने कहा, ‘‘बोल, अगर शादी के लिए राजी कर लूं तो?’’

‘‘ऐसा,’’ शकील ने उकसाया, ‘‘जो नई गाड़ी लाया हूं न, उसी में इस की डोली विदा करूंगा, क्या समझा. यह वह तिल है जिस में तेल नहीं निकलता.’’

और इस चुनौती के बाद तो असगर तरन्नुम के आसपास ही नजर आने लगा. अचानक ही एक से एक शेर उस के होंठों पर और हर महफिल में गजलें उस की फनाओं में बिखर रही थीं.

शकील हैरान था. यह तरन्नुम, जो हर आदमी को, आदमी की जात पर लानत देती थी, कैसे अचानक ही बहुत लजीलीशर्मीली ओस से भीगे गुलाब सी धुलीधुली नजर आने लगी.

घर में उस के इस बदलाव पर हलकी सी चर्चा जरूर हुई. शकील के साथ तरन्नुम के अब्बाअम्मी उस से मिलने आए. शकील ने कहा, ‘‘ये तुम से कुछ बातचीत करना चाहते थे, सो मैं ने सोचा अभी ही मौका है फिर शाम को तो तुम वापस दिल्ली जा ही रहे हो.’’

असगर हैरान हो कर बोला, ‘‘किस बारे में बातचीत करना चाहते हैं?’’

‘‘तुम खुद ही पूछ लो, मैं चला,’’ फिर अपनी खाला शहनाज की तरफ मुड़ कर बोला, ‘‘खालू, देखो जो भी बात आप तफसील से जानना चाहें उस से पूछ लें, कल को मेरे पीछे नहीं पडि़एगा कि फलां बात रह गई और यह बात दिमाग में ही नहीं आई,’’ इस के बाद शकील कमरे से बाहर हो गया.

असगर ने कहा, ‘‘आप मुझ से कुछ पूछना चाहते थे, पूछिए?’’

शहनाज बड़ा अटपटा महसूस कर रही थीं. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या सवाल करें. उन के शौहर रज्जाक अली ने चंद सवाल पूछे, ‘‘आप कहां के रहने वाले हैं. कितने बहनभाई हैं, कहां तक पढ़े हैं? सरकारी नौकरी न कर के आप प्राइवेट नौकरी क्यों कर रहे हैं? अपना मकान दिल्ली में कैसे बनवाया? वगैरहवगैरह.’’

असगर जवाब देता रहा लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी तहकीकात किसलिए की जा रही है. शहनाज खाला थीं कि उस की तरफ यों देख रही थीं जैसे वह सरकस का जानवर है और दिल बहलाने के लिए अच्छा तमाशा दिखा रहा है. खालू के चंदएक सवाल थे जो जल्दी ही खत्म हो गए.

शहनाज खाला बोलीं, ‘‘तो बेटा, जब तुम्हारे सिर पर बुजुर्गों का साया नहीं है तो तुम्हें अपने फैसले खुद ही करने होते होंगे, है न…’’

‘‘जी,’’ असगर ने कहा.

‘‘तो बताओ, निकाह कब करना चाहोगे?’’

‘‘निकाह?’’ असगर ने पूछा.

‘‘और क्या,’’ खाला बोलीं, ‘‘भई, हमारे एक ही बेटी है. उस की शादी ही तो हमारी जिंदगी का सब से बड़ा अरमान है. फिर हमारे पास कमी भी किस चीज की है. जो कुछ है सब उसे ही तो देना है,’’ खाला ने खुलासा करते हुए कहा.

‘‘पर आप यह सब मुझ से क्यों कह रही हैं?’’

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इस पर खालू ने कहा, ‘‘बात ऐसी है बेटा कि आज तक हमारी तरन्नुम ने किसी को भी शादी के लायक नहीं समझा. हम लोगों की अब उम्र हो रही है. अब उस ने तुम्हें पसंद किया है तो हमें भी अपना फर्ज पूरा कर के सुर्खरू हो लेने दो.’’

‘‘क्या?’’ असगर हैरान रह गया, ‘‘तरन्नुम मुझे पसंद करती है? मुझ से शादी करेगी?’’ असगर को यकीन नहीं आ रहा था.

‘‘हां बेटा, उस ने अपनी अम्मी से कहा है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम्हीं से शादी करेगी. देखो बेटा, अगर लेनेदेने की कोई फरमाइश हो तो अभी बता दो. हमारी तरफ से कोई कसर नहीं रहेगी.’’

‘‘पर खालू मैं तो शादी,’’ असगर कुछ कहने के लिए सही शब्द सोच ही रहा था कि खालू बीच में ही बोले, ‘‘देखो बेटा, मैं अपनी बच्ची की खुशियां तुम से झोली फैला कर मांग रहा हूं, न मत कहना. मेरी बच्ची का दिल टूट जाएगा. वह हमेशा से ही शादी के नाम से किनारा करती रही है. अब अगर तुम ने न कर दी तो वह सहन नहीं कर सकेगी.’’

एक पल को असगर चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप ने शकील से बात कर ली है.’’

‘‘हां,’’ खालू बोले, ‘‘उस की रजामंदी के बाद ही हम तुम से बात करने आए हैं.’’

शहनाज खाला उतावली सी होती हुई बोलीं, ‘‘तुम हां कह दो और शादी कर के ही दिल्ली जाओ. सभी इंतजाम भी हुए हुए हैं. इस लड़की का कोई भरोसा नहीं कि अपनी हां को कब ना में बदल दे.’’

‘‘ठीक है, जैसा आप सही समझें करें,’’ असगर ने कहा.

शहनाज खाला ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी आंखों से लगाया, ‘‘बेटा, तुम तो मेरे लिए फरिश्ते की तरह आए हो, जिस ने मेरी बच्ची की जिंदगी बहारों से भर दी,’’ खुशी से गमकते वह और खालू घर के अंदर खबर देने चले गए.

उन के जाने के बाद शकील कमरे में आते हुए बोला, ‘‘तो हुजूर ने मुझे शह देने के लिए सब हथकंडे आजमाए.’’

असगर ने कहा, ‘‘तू डर मत, मैं जीत का दावा कार मांग कर नहीं कर रहा हूं.’’

‘‘तू न भी मांगे,’’ शकील ने कहा, ‘‘तो भी मैं कार दूंगा. हम मुगल अपनी जबान पर जान भी दे सकने का दावा करते हैं, कार की तो बात ही क्या.’’

‘‘मजाक छोड़ शकील,’’ असगर ने कहा, ‘‘कल उसे पता लगेगा तब…’’

‘‘अब कुछ असर होने वाला नहीं है,’’ शकील ने कहा, ‘‘अपनेआप शादी के बाद हालात से सुलह करना सीख जाएगी. अपने यहां हर लड़की को ऐसा ही करने की नसीहत दी जाती है.’’

‘‘पर तू कह रहा था शकील कि वह आम लड़कियों जैसी नहीं है, बड़ी तेजतर्रार है.’’

‘‘वह तो शादी से पहले 50 फीसदी लड़कियां खास होने का दावा करती हैं पर असलीयत में वे भी आम ही होती हैं. है न, जब तक तरन्नुम को शादी में दिलचस्पी नहीं थी, मुहब्बत में यकीन नहीं था, वह खास लगती थी. पर तुम्हें चाह कर उस ने जता दिया है कि उस के खयाल भी आम औरतों की तरह घर, खाविंद, बच्चों पर ही खत्म होते हैं. मैं तो उस के ख्वाबों को पूरा करने में उस की मदद कर रहा हूं,’’ शकील ने तफसील से बताते हुए कहा.

और यों दोस्त की शादी में शरीक होने वाला असगर अपनी शादी कर बैठा. तरन्नुम को दिल्ली ले जाने की बात से शकील कन्नी काट रहा था. अपना मकान किराए पर दिया है, किसी के घर में पेइंगगेस्ट की तरह रहता हूं. वे शादीशुदा को नहीं रखेंगे. इंतजाम कर के जल्दी ही बुला लेने का वादा कर के असगर दिल्ली वापस चला आया.

तरन्नुम ने जब घर का पता मांगा तो असगर बोला, ‘‘घर तो अब बदलना ही है. दफ्तर के पते पर चिट्ठी लिखना,’’ और वादे और तसल्लियों की डोर थमा कर असगर दिल्ली चला आया.

7-8 महीने खतों के सहारे ही बीत गए. घर मिलने की बात अब खटाई में पड़ गई. किराएदार घर खाली नहीं कर रहा था इसलिए मुकदमा दायर किया है. असगर की इस बात से तरन्नुम बुझ गई, मुकदमों का क्या है, अब्बा भी कहते हैं वे तो सालोंसाल ही खिंच जाते हैं, फिर क्या जिन के अपने घर नहीं होते वह भी तो कहीं रहते ही हैं. शादी के बाद भी तो अब्बू, अम्मी के ही घर रह रहे हैं, ससुराल नहीं गई, इसी को ले कर लोग सौ तरह की बातें ही तो बनाते हैं.

असगर यों अचानक तरन्नुम को अपने दफ्तर में खड़ा देख कर हैरान हो गया, ‘‘आप यहां? यों अचानक,’’ असगर हकलाता हुआ बोला.

तरन्नुम शरारत से हंस दी, ‘‘जी हां, मैं यों अचानक किसी ख्वाब की तरह,’’ तरन्नुम ने चहकते से अंदाज में कहा, ‘‘है न, यकीन नहीं हो रहा,’’ फिर हाथ आगे बढ़ा कर बोली, ‘‘हैलो, कैसे हो?’’ असगर ने गरमजोशी से फैलाए हाथ को अनदेखा कर के सिगरेट सुलगाई और एक गहरा कश लिया.

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तरन्नुम को लगा जैसे किसी ने उसे जोर से तमाचा मारा हो. वह लड़खड़ाती सी कुरसी पकड़ कर बैठ गई. मरियल सी आवाज में बोली, ‘‘हमें आया देख कर आप खुश नहीं हुए, क्यों, क्या बात है?’’

असगर ने अपने को संभालने की कोशिश की, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. तुम्हें यों अचानक आया देख कर मैं घबरा गया था,’’ असगर ने घंटी बजा कर चपरासी से चाय लाने को कहा.

‘‘हमारा आना आप के लिए खुशी की बात न हो कर घबराने की बात होगी, ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ तरन्नुम की आंखें नम हो रही थीं.

तब तक चपरासी चाय रख कर चला गया था. असगर ने चाय में चीनी डाल कर प्याला तरन्नुम की तरफ बढ़ाया. तरन्नुम जैसे एकएक घूंट के साथ आंसू पी रही थी.

असगर ने एकदो फाइलें खोलीं. कुछ पढ़ा, कुछ देखा और बंद कीं. अब उस ने तरन्नुम की तरफ देखा, ‘‘क्या कार्यक्रम है?’’

‘‘मेरा कार्यक्रम तो फेल हो गया,’’ तरन्नुम लजाती सी बोली, ‘‘मैं ने सोचा था पहुंच कर आप को हैरान कर दूंगी. फिर अपना घर देखूंगी. हमेशा ही मेरे दिमाग में एक धुंधला सा नक्शा था अपने घर का, जहां आप एक खास तरीके से रहते होंगे. उस कमरे की किताबें, तसवीरें सभी कुछ मुझे लगता है मेरी पहचानी सी होंगी लेकिन यहां तो अब आप ही जब अजनबी लग रहे हैं तब वे सब…’’

असगर के चेहरे पर एक रंग आया और गया. फिर वह बोला, ‘‘यही परेशानी है तुम औरतों के साथ. हमेशा शायरी में जीना चाहती हो. शायरी और जिंदगी 2 चीजें हैं. शायरी ठीक वैसी ही है जैसे मुहब्बत की इब्तदा.’’

‘‘और मुहब्बत की मौत शादी,’’ असगर की तरफ गहरी आंखों से देखते हुए तरन्नुम बोली.

‘‘मुझे पता है तुम ने बहुत से इनाम जीते हैं वादविवाद में, लेकिन मैं अपनी हार कबूल करता हूं. मैं बहस नहीं करना चाहता,’’ असगर ने उठते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा सामान कहां है?’’

‘‘बाहर टैक्सी में,’’ तरन्नुम ने बताया.

‘‘टैक्सी खड़ी कर के यहां इतनी देर से बैठी हो?’’

‘‘और क्या करती? पता नहीं था कि आप यहां मिलोगे भी या नहीं. फिर सामान भी भारी था,’’?तरन्नुम ने खुलासा किया.

जाहिर था असगर उस की किसी भी बात से खुश नहीं था.

जब टैक्सी में बैठे तो असगर ने टैक्सी चालक को किसी होटल में चलने को कहा, ‘‘पर मैं तो आप का घर देखना…’’

असगर ने तरन्नुम का हाथ दबाया, ‘‘मेरे दोस्त अपने घर में मुझे मेहमान रखने की इजाजत नहीं देंगे.’’

‘‘पर मैं तो मेहमान नहीं, आप की बीवी हूं,’’ तरन्नुम ने मरियल आवाज में दोहराया.

‘‘उन की पहली शर्त ही कुंआरे को रखने की थी और ऐसी जल्दी भी क्या थी. मैं ने लिखा था कि घर मिलते ही बुला लूंगा,’’ असगर का दबा गुस्सा बाहर आया.

‘‘हमारी शादी को 8 महीने हो गए. तब से अभी तक अगर अपना घर नहीं मिला तो क्या किराए का भी नहीं मिल सकता था,’’ तरन्नुम ने खीज कर पूछा. उसे दिल ही दिल में बहुत बुरा लग रहा था कि शादी के चंद महीने बाद ही वह खास औरताना अंदाज में मियांबीवी वाला झगड़ा कर रही थी.

‘‘ठीक है,’’ असगर ने कहा, ‘‘अब तुम दिल्ली आ ही गई हो तो घरों की खोज भी कर लो. तुम्हें खुद ही पता लग जाएगा कि घर ढूंढ़ना कितना आसान है,’’ होटल में आ कर भी तरन्नुम महसूस कर रही थी कहीं कुछ है जो असगर को सामान्य नहीं होने दे रहा.

अगले दिन असगर जब दफ्तर चला गया तब तरन्नुम ने अपनी सहेली रीता अरोड़ा को फोन किया और अपनी घर न मिलने की मुश्किल बताई. रीता ने कहा कि वह शाम को अपने परिचितों, मित्रों से बातचीत कर के कुछ इंतजाम करेगी.

दूसरे दिन रीता अपनी कार ले कर तरन्नुम को लेने आई. रास्ते से उन्होंने एक दलाल को साथ लिया जो विभिन्न स्थानों में उन्हें मकान दिखाता रहा. शाम होने को आई लेकिन अभी तक जैसा घर तरन्नुम चाहती थी वैसा एक भी नहीं मिला. कहीं घर ठीक नहीं लगा तो कहीं पड़ोस तरीके का नहीं. अगर दोनों ठीक मिल गए तो आसपास का माहौल बेतुका. दलाल को छोड़ते हुए रीता ने घर के बारे में पूरी तरह अपनी इच्छा समझाई.

दलाल ने कहा 2-3 दिन के अंदर ही ऐसे कुछ घर खाली होने वाले हैं तब वह खुद ही उन्हें फोन कर के सही घर दिखाएगा.

असगर तरन्नुम से पहले ही होटल आ गया था. थकी, बदहवास तरन्नुम को देख कर उसे बहुत अफसोस हुआ. फोन पर चाय का आदेश दे कर बोला, ‘‘कहां मारीमारी फिर रही हो? यह काम तुम्हारे बस का नहीं है.’’

‘‘वाह, जब शादी की है तो घर भी बसा कर दिखा देंगे. आप हमारे लिए घर नहीं खोज सके तो क्या. हम ही आप को घर ढूंढ़ कर रहने को बुला लेंगे,’’ तरन्नुम खुशी से छलकती हुई बोली.

‘‘चलो, यही सही,’’ असगर ने कहा, ‘‘चायवाय पी कर नहा कर ताजा हो लो फिर घर पर फोन कर देना. अभी अब्बू परेशान हो रहे होंगे. उस के बाद नाटक देखने चलेंगे. और हां, साड़ी की जगह सूट पहनना. तुम पर बहुत फबता है.’’

असगर की इस बात पर तरन्नुम इठलाई, ‘‘अच्छा मियांजी.’’

रात देर से लौटे, दिन भर की थकान थी, इतना तो तरन्नुम कभी नहीं घूमी थी. पर अब रात को भी उसे नींद नहीं आ रही थी. कल देखे जाने वाले घरों के बारे में वह तरहतरह के सपने संजो रही थी. उस का अपना घर, उस का अपना खोजा घर.

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नाश्ते के बाद असगर दफ्तर चला गया. तरन्नुम रीता के इंतजार में तैयार हो कर बैठी उपन्यास पढ़ रही थी. उस का मन सुबह से ही किसी भी चीज में नहीं लग रहा था. होटल भला घर हो सकता है कभी? उसे लग रहा था जैसे वह मुसाफिरखाने में अपने सामान के साथ बैठी अपनी मंजिल का इंतजार कर रही है और गाड़ी घंटों नहीं, हफ्तों की देर से आने का सिर्फ ऐलान ही कर रही है और हर पल उस की बेचैनी बढ़ती ही जा रही है.

अचानक फोन की घंटी से जैसे वह गहरी सोच से जाग उठी. रीता ने होटल की लौबी से फोन किया था. रीता की आवाज खुशी से खनक रही थी. तरन्नुम ने झटपट पर्स उठाया और लौबी में आ गई. रीता ने बाहर आतेआते कहा, ‘‘आज ही सुबह बिन्नी दी का फोन आया था. उन के पड़ोस में कोई मुसलिम परिवार है, उन्हीं की कोठी का ऊपरी हिस्सा खाली हुआ था. उस घर की मालकिन बिन्नी दी की खास सहेली हैं. उन्हीं की गारंटी पर तुम्हें घर देने के लिए तैयार हैं. जितना किराया तुम दे सकोगी उन्हें मंजूर होगा.’’

रीता और तरन्नुम पंचशील पार्क की उस कोठी में गए. तरन्नुम को गेट खोलते ही बहुत अच्छा लगा. घर के बाहर छोटा सा लेकिन बहुत खूबसूरत लौन, इस भरी गरमी में भी हराभरा नजर आ रहा था.

घंटी की आवाज सुनते ही हमउम्र जुड़वां 3 साल के नन्हे बच्चे, एक पमेरियन कुत्ता और नौकर चारों ही दरवाजे पर लपके. जाली के दरवाजे के अंदर से ही नौकर बोला, ‘‘आप कौन, कहां से तशरीफ ला रही हैं?’’

रीता ने कहा, ‘‘जा कर मालकिन से बोलो, बिन्नी दी ने भेजा है.’’

नौकर ने दरवाजा पूरा खोलते हुए कहा, ‘‘आइए, वे तो सुबह से आप का ही इंतजार कर रही हैं.’’

बैठक कक्ष सजाने वाले की नफासत की दाद दे रहा था जैसे हर चीज अपनी सही जगह पर थी. यहां तक कि खरगोश की तरह सफेद कुरतेपाजामे में उछलकूद मचाते बच्चे भी जैसे इस कमरे की सजावट का हिस्सा हों. उन्हें बैठे 5 मिनट ही बीते होंगे कि कमरे का परदा सरका, आने वाली को देख कर रीता झट से उठी, ‘‘हाय निकहत आपा, कितनी प्यारी दिख रही हैं आप इस फालसाई रंग में.’’

निकहत हंस दी, ‘‘आज ज्यादा ही सुंदर दिख रही हूं. गरज की मारी आ गई वरना तो बिन्नी के पास आ कर गुपचुप से चली जाती है, कभी भूले से भी यहां तशरीफ नहीं लाई.’’

‘‘क्यों बिन्नी के साथ ईद पर नहीं आई थी,’’ रीता ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘पर अभी तो ईद भी नहीं और नया साल भी नहीं. खैर इनायत है, गरज से ही सही, आई तो,’’ निकहत ने कहा, ‘‘और सुनाओ, कैसा चल रहा है तुम्हारा कामकाज.’’

‘‘वहां से आजकल छुट्टी ले रखी है. इन से मिलिए, ये हैं मेरी सहेली तरन्नुम, रामपुर से आई हैं. इन के शौहर यहां पर हैं. अपना मकान है लेकिन किराएदार खाली नहीं कर रहे हैं. शादी को 8-10 महीने होने को आए लेकिन अब तक मियां का साथ नहीं हो पाया. किराए पर ढंग का घर मिल नहीं रहा और होटल में रहते 5-7 दिन हो गए. बिन्नी दी से बात की तो उन्होंने आप के घर का ऊपरी हिस्सा खाली होने की बात कही. सुनते ही मैं तुरंत इन्हें खींचती आप के पास ले आई.’’

‘‘रामपुर में किस के घर से हैं आप?’’ निकहत ने पूछा.

‘‘वहां बहुत बड़ी जमींदारी है मेरे अब्बू की. क्या आप भी वहीं से हैं?’’ तरन्नुम ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं तो कभी वहां गई नहीं. पिछले साल मेरे शौहर गए थे अपने दोस्त की शादी में. मैं ने सोचा शायद आप उन्हें जानती होंगी.’’

‘‘किस के यहां गए थे? रामपुर में हमारे खानदानी घर ही ज्यादातर हैं.’’

‘‘अब नाम तो मुझे याद नहीं होगा, क्या लेंगी आप…चाय या ठंडा? वैसे अब थोड़ी देर में ही खाना लग रहा है. आप को हमारे साथ आज खाना जरूर खाना होगा. हमारे साहब तो दौरे पर गए हैं. बच्चों के साथ 5-6 दिन से खिचड़ी, दलिया खातेखाते मुंह का स्वाद ही खराब हो गया.

‘‘रीता को तो हैदराबादी बिरयानी पसंद है, साथ में मुर्गमुसल्लम भी. मैं जरा रसोई में खानेपीने का इंतजाम देख लूं. नौकर नया है वरना मुर्गे का भरता ही बना देगा. तब तक आप यह अलबम देखिए. रीता, अपनी पसंद का रेकार्ड लगा लो,’’ कहती हुई निकहत अंदर चली गई.

तरन्नुम ने अलबम खोला और उस की आंखें असगर से मिलतेजुलते एक आदमी पर अटक गईं. अगला पन्ना पलटा. निकहत के साथ असगर जैसा चेहरा. अलगअलग जगह, अलगअलग कपड़े. पर असगर से इतना कोई मिल सकता है वह सोच भी नहीं सकती थी. उस ने रीता को फोटो दिखा कर पूछा, ‘‘ये हजरत कौन हैं?’’

‘‘क्यों, आंखों में चुभ गया है क्या?’’ रीता हंस दी, ‘‘संभल के, यह तो निकहत दीदी के पति हैं. है न व्यक्तित्व जोरदार, मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं. असल में इन के मांबाप जल्दी ही गुजर गए. निकहत अपने मांबाप की इकलौती बेटी थी तिस पर लंबीचौड़ी जमीनजायदाद, बस, समझो लाटरी ही लग गई इन साहब की. नौकरी भी निकहत के अब्बू ने दिलवाई थी.’’

तरन्नुम को अब न गजल सुनाई दे रही थी और न ही कमरे में बच्चों की खिलखिलाती हंसी का शोर, वह एकदम जमी बर्फ सी सर्द हो गई. दिल की धड़कन का एहसास ही बताता था कि सांस चल रही है.

निकहत ने जब खाने के लिए बुलाया तब वह जैसे किसी दूसरी दुनिया से लौट कर आई, ‘‘आप बेकार ही तकल्लुफ में पड़ गईं, हमें भूख नहीं थी,’’ उस ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ, आज का खाना हमारी भूख के नाम पर ही खा लीजिए. हमें तो आप की सोहबत में ही भूख लग आई है.’’

रोशनी सा दमकता चेहरा, उजली धूप सी मुसकान, तरन्नुम ठगी सी देखती रही. फिर बोली, ‘‘आप के पति कितने खुशकिस्मत हैं, इतनी सुंदर बीवी, तिस पर इतना बढि़या खाना.’’

‘‘अरे आप तो बेकार ही कसीदे पढ़ रही हैं. अब इतने बरसों के बाद तो बीवी एक आदत बन जाती है, जिस में कुछ समझनेबूझने को बाकी ही नहीं रहता. पढ़ी किताब सी उबाऊ वरना क्या इतनेइतने दिन मर्द दौरे पर रहते हैं? बस, उन की तरफ से घर और बच्चे संभाल रहे हैं यही बहुत है,’’ निकहत ने तश्तरी में खाना परोसते हुए कहा.

‘‘कहां काम करते हैं कुरैशी साहब?’’ तरन्नुम ने पूछा.

‘‘कटलर हैमर में, उन का दफ्तर कनाट प्लेस में है. असगर पहले इतना दौरे पर नहीं रहते थे जितना कि पिछले एक बरस से रह रहे हैं.’’

‘‘असगर,’’ तरन्नुम ने दोहराया.

‘‘हां, मेरे शौहर, आप ने बाहर तख्ती पर अ. कुरैशी देखा था. अ. से असगर ही है. हमारे बच्चे हंसते हैं, अब्बू, ‘अ’ से अनार नहीं हम अपनी अध्यापिका को बताएंगे ‘अ’ से असगर,’’ फिर प्यार से बच्चे के सिर पर धौल लगाती बोली, ‘‘मुसकराओ मत, झटपट खाना खत्म करो फिर टीवी देखेंगे.’’

‘‘अरे, तरन्नुम तुम कुछ उठा नहीं रहीं,’’ रीता ने तरन्नुम को हिलाया.

‘‘हूं, खा तो रही हूं.’’

‘‘क्यों, खाना पसंद नहीं आया?’’ निकहत ने कहा, ‘‘सच तरन्नुम, मैं भी बहुत भुलक्कड़ हूं. बस, अपनी कहने की रौ में मुझे दूसरे का ध्यान ही नहीं रहता. खाना सुहा नहीं रहा तो कुछ फल और दही ले लो.’’

‘‘न दीदी, मुझे असल में भूख थी ही नहीं, वह तो खाना बढि़या बना है सो इतना खा गई.’’

‘‘अच्छा अब खाना खत्म कर लो फिर तुम्हें ऊपर वाला हिस्सा दिखाते हैं, जिस में तुम्हें रहना है. तुम्हारे यहां आ कर रहने से मेरा भी अकेलापन खत्म हो जाएगा.’’

‘‘पर किराए पर देने से पहले आप को अपने शौहर से नहीं पूछना होगा,’’ तरन्नुम ने कहा.

‘‘वैसे कानूनन यह कोठी मेरी मिल्कियत है. पहले हमेशा ही उन से पूछ कर किराएदार रखे हैं. इस बार तुम आ रही हो तो बजाय 2 आदमियों के बीच बातचीत हो इस बार तरीका बदला जाए,’’ निकहत शरारत से हंस दी, ‘‘यानी मकान मालकिन और किराएदारनी तथा मध्यस्थ भी इस बार मैं औरत ही रख रही हूं. राजन कपूर की जगह बिन्नी कपूर वकील की हैसियत से हमारे बीच का अनुबंध बनाएंगी, क्यों?’’

रीता जोर से हंस दी, ‘‘रहने दो निकहत दीदी, बिन्नी दी ने शादी के बाद वकालत की छुट्टी कर दी.’’

‘‘इस से क्या हुआ,’’ निकहत हंसी, ‘‘उन्होंने विश्वविद्यालय की डिगरी तो वापस नहीं कर दी है. जो काम कभी न हुआ तो वह आज हो सकता है. क्यों तरन्नुम, तुम्हारी क्या राय है? मैं आज शाम तक कागजात तैयार करवा कर होटल भेज देती हूं. तुम अपनी प्रति रख लेना, मेरी दस्तखत कर के वापस भेज देना. रही किराए के अग्रिम की बात, उस की कोई जल्दी नहीं है, जब रहोगी तब दे देना. आदमी की जबान की भी कोई कीमत होती है.’’

रीता तरन्नुम को तीसरे पहर होटल छोड़ती हुई निकल गई.

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शाम को असगर के आने से पहले तरन्नुम ने खूब शोख रंग के कपड़े, चमकदार गहने पहने, गहरा शृंगार किया, असगर उसे तैयार देख कर हैरान रह गया. यह पहरावा, यह हावभाव उस तरन्नुम के नहीं थे जिसे वह सुबह छोड़ कर गया था.

‘‘आप को यों देख कर मुझे लगा जैसे मैं गलत कमरे में आ गया हूं,’’ असगर ने चौंक कर कहा.

‘‘अब गलत कमरे में आ ही गए हो तो बैठने की गलती भी कर लो,’’ तरन्नुम ने कहा, ‘‘क्या मंगवाऊं आप के लिए, चाय, ठंडा या कुछ और,’’ तरन्नुम ने लहरा कर पूछा.

‘‘होश में तो हो,’’ असगर ने कहा.

‘‘हां, आंखें खुल गईं तो होश में ही हूं,’’ तरन्नुम ने जवाब दिया, ‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का बहुत कीमती दिन है. आज मैं ने अपनी हिम्मत से तुम्हारे शहर में बहुत अच्छा घर ढूंढ़ लिया है. उस की खुशी मनाने को मेरा जी चाह रहा है. अब तो अनुबंध की प्रति भी है मेरे पास. देखो, तुम इतने महीने में जो न कर सके वह मैं ने 6 दिन में कर दिया,’’ अपना पर्स खोल कर तरन्नुम ने कागज असगर की तरफ बढ़ाए.

असगर ने कागज लिए. तरन्नुम ने थरमस से ठंडा पानी निकाल कर असगर की तरफ बढ़ाया. असगर के हाथ कांप रहे थे. उस की आंखें कागज को बहुत तेजी से पढ़ रही थीं. उस ने कागज पढ़े और मेज पर रख दिए. तरन्नुम उस के चेहरे के उतारचढ़ाव देख रही थी लेकिन असगर का चेहरा सपाट था कोरे कागज सा.

‘‘असगर, तुम ने पूछा नहीं कि मैं ने कागजात में खाविंद का नाम न लिख कर वालिद का नाम क्यों लिखा?’’ बहुत बहकी हुई आवाज में तरन्नुम ने कहा.

असगर ने सिर्फ सवालिया नजरों से उस की तरफ देखा.

‘‘इसलिए कि मेरे और निकहत कुरैशी के खाविंद का एक ही नाम है और अलबम की तसवीरें कह रही हैं कि हम दोनों बिना जाने ही एकदूसरे की सौतन बना दी गईं. निकहत बहुत प्यारी शख्सियत है मेरे लिए, बहुत सुलझी हुई, बेहद मासूम.’’

‘‘तरन्नुम,’’ असगर ने कहा.

‘‘हां, मैं कह रही थी वह बहुत अच्छी, बहुत प्यारी है. मैं उन का मन दुखाना नहीं चाहती, वैसा कुछ भी मैं नहीं करूंगी जिस से उन का दिल दुखी हो. इसलिए मैं वह घर किराए पर ले चुकी हूं और वहां रहने का मेरा पूरा इरादा है लेकिन उस घर में मैं अकेली रहूंगी. पर एक सवाल का जवाब तुम्हारी तरफ बाकी है, तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया?’’

‘‘मुझे तुम बेहद पसंद थीं,’’ असगर ने हकलाते हुए कहा.

‘‘तो?’’

‘‘जब तुम्हें भी अपनी तरफ चाहत की नजर से देखते पाया तो सोचा…’’

‘‘क्या सोचा?’’ तरन्नुम ने जिरह की.

‘‘यही कि अगर तुम्हारे घर वालों को एतराज नहीं है तो यह निकाह हो सकता है,’’ असगर ने मुंह जोर होने की कोशिश की.

‘‘मेरे घर वालों को तुम ने बताया ही कहां?’’ तरन्नुम गुस्से से तमतमा उठी.

‘‘देखो, तरन्नुम, अब बाल की खाल निकालना बेकार है. शकील को सब पता था. उसी ने कहा था कि एक बार निकाह हो गया तो तुम भी मंजूर कर लोगी. तुम्हारी अम्मी ने झोली फैला कर यह रिश्ता अपनी बेटी की खुशियों की दुहाई दे कर मांगा था. वैसे इसलाम में 4 शादियों तक भी मुमानियत नहीं है.’’

‘‘देखिए, मुझे अपने ईमान के सबक आप जैसे आदमी से नहीं लेने हैं. आप की हिम्मत कैसे हुई निकहत जैसी नेक बीवी के साथ बेईमानी करने की और मुझे धोखा देने की,’’ तरन्नुम ने तमतमा कर कहा.

‘‘धोखाधोखा कहे जा रही हो. शकील को सब पता था, उसी ने चुनौती दे रखी थी तुम से शादी करने की.’’

‘‘वाह, क्या शर्त लगा रहे हैं एक औरत पर 2 दोस्त? आप को जीत मुबारक हो, लेकिन यह आप की जीत आप की जिंदगी की सब से बड़ी हार साबित होगी, असगर साहब. मैं आप के घर में किराएदार बन कर जिंदगी भर रहूंगी और दिल्ली आने के बाद अदालत में तलाक का दावा भी दायर करूंगी. वैसे मेरी जिंदगी में शादी के लिए कोई जगह नहीं थी. शकील ने शादी के बहुत बार पैगाम भेजे, मैं ने हर बार मना कर दिया. उसी का बदला इस तरह वह मुझ से लेगा, मैं ने सोचा भी नहीं था. आज पंचशील पार्क जा कर मुझे एहसास हुआ कि क्यों दिल्ली में घर नहीं मिल रहे? क्यों तुम उखड़ाउखड़ा बरताव कर रहे थे? देर आए दुरुस्त आए.’’

‘‘पर मैं तुम्हें तलाक देना ही नहीं चाहता,’’ असगर ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें अपनी बीवी बनाया है. मैं तुम्हारे लिए दूसरी जगह घर बसाने के लिए तैयार हूं.’’

बहुत खुले दिमाग हैं आप के, लेकिन माफ कीजिए. अब औरत उस कबीली जिंदगी से निकल चुकी है जब मवेशियों की गिनती की तरह हरम में औरत की गिनती से आदमी की हैसियत परखी जाती थी. बच्चों से उन का बाप और निकहत से उस का शौहर छीनने का मेरा बिलकुल इरादा नहीं है और वैसे भी एक धोखेबाज आदमी के साथ मैं जी नहीं सकती. हर घड़ी मेरा दम घुटता रहेगा लेकिन तुम्हें बिना सजा दिए भी मुझे चैन नहीं मिलेगा. इसीलिए तुम्हारे घर के ऊपर मैं किराएदार की हैसियत से आ रही हूं.’’

फिर तेज सांसों पर नियंत्रण करती हुई बोली थी तरन्नुम, ‘‘मैं सामान लेने जा रही हूं. तुम निकहत को कुछ बताने का दम नहीं रखते. तुम बेहद कमजोर और बुजदिल आदमी हो. हम दोनों औरतों के रहमोकरम पर जीने वाले.’’

असगर के चेहरे पर गंभीरता व्याप्त थी. तरन्नुम अपनी अटैची बंद कर रही थी. वह मन ही मन सोच रही थी…अम्मीअब्बू की खुशी के लिए उसे वहां कोई भी बात बतानी नहीं है. यह स्वांग यों ही चलने दो जब तक वे हैं.’’

रूढ़ियों को तोड़तीं स्मौल टाउन गर्ल्स

कुछ दिनों पहले सुनीता मुंबई में अपनी एक सहेली सारिका के यहां उस की 16 वर्षीया बेटी की बर्थडे पार्टी में गई. उस की बेटी बेहद स्मार्ट और आत्मविश्वास से भरपूर किशोरी थी. आधुनिक लिबास और टै्रंडी हेयर स्टाइल में वह किसी मौडल से कम नहीं लग रही थी. सुनीता ने उसे बर्थडे विश किया और उस से थोड़ी कैजुअल बातें की. वह उस के कम्युनिकेशन स्किल और इंग्लिश ऐक्सैंट की कायल हो गई. वैसे वहां पार्टी में आईर् हुई सभी लड़कियों की ऐसी ही पर्सनैलिटी थी.

तभी उस की नजर पार्टी हौल के कोने में बैठी एक लड़की पर पड़ी. वह दिखने में बिलकुल साधारण सी थी. सिंपल कपड़े, लंबी चोटी, छोटे शहर की आम लड़की जैसा दबाढका सा व्यक्तित्व. सारिका से पूछने पर पता चला कि वह उस की भतीजी शालिनी है जो कल ही उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कसबे खतौली से आई है.

यह सुन कर सुनीता मन ही मन सहेली की बेटी और भतीजी में तुलना करने लगी. कहां यह मुंबई की स्मार्ट हाईफाई लड़की और कहां ये बेचारी कोने में दुबकी बैठी छोटे शहर की लड़की. सच ही है, व्यक्तित्व और सोच पर जगह का कितना असर पड़ता है. मैट्रो शहरों में रहने वाली लड़कियों की पर्सनैलिटी हाय ऐक्स्पोजर और आजादी की वजह से कितनी निखरी हुई होती है. ऐसी लड़कियों के सामने छोटे शहरों की लड़कियां कितनी दब्बू, कितनी साधारण लगती हैं.

सुनीता यों ही शालिनी से बातचीत करने लगी, ‘बेटा, सभी लड़कियां डांस कर रही हैं, आप नहीं कर रही हो?’ उस ने जवाब दिया, ‘‘नहीं आंटीजी, मुझे डांस करना पसंद नहीं.’’ उस की बोलचाल भी आम उत्तर भारतीय कसबाई लड़कियों जैसी थी. सुनीता ने आगे पूछा, ‘‘तुम मुंबई घूमने आई हो या बूआ से मिलने?’’

वह बोली, ‘‘आंटीजी, दरअसल मैं यहां एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का एंटै्रंस एग्जाम देने आई हूं.’’ यह सुन कर सुनीता को झटका लगा, ‘‘ये एयरोस्पेस कौन सा फील्ड है, इसे कर के तुम क्या बनोगी?’’ इस पर शालिनी बोली, ‘‘मुझे ऐस्ट्रोनौट बनना है और उस की शुरुआत इसी इंजीनियरिंग कोर्स से होती है.’’

यह सुन कर सुनीता तो जैसे धम्म से जमीन पर आ गिरी. अब उस की जिज्ञासा बढ़ चली थी, उस ने आगे पूछा, ‘तो क्या तुम ने इस के लिए कोई विशेष कोचिंग ली है, क्या तुम्हारे कसबे में ऐसी कोचिंग होती है? शालिनी ने जवाब दिया, ‘‘नहीं आंटीजी, मेरे कसबे में तो नहीं, लेकिन वहां से 20-25 किलोमीटर दूर दूसरी जगह पर होती है.’’

सुनीता को हैरानी हुई क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के माहौल के बारे में जैसा उस ने सुना था, वहां क्राइम रेट बहुत ज्यादा है, लड़कियों का अकेले आनाजाना सुरक्षित नहीं है, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतनी दूर कैसे जाती हो, पापा या भाई छोड़ते होंगे?’’ यह सुन कर शालिनी पूरे आत्मविश्वास से बोली, ‘‘नहीं, मैं अकेली ही जाती हूं, स्कूटी से,’’ उस की बात सुन कर सुनीता सोच में पड़ गई, ‘‘तुम्हें इतनी दूर अकेले जाते हुए डर नहीं लगता?’’ इस पर वह हंसते हुए बोली, ‘‘नहीं आंटी, मैं कराटे में ब्लैक बैल्ट हूं, मैं अपनी रक्षा करना जानती हूं.’’

अब तो सुनीता के ऊपर जैसे घड़ों पानी पड़ गया. जिसे वह छोटे शहर की साधारण लड़की समझ रही थी, वह कल्पना चावला की तरह अंतरिक्ष में उड़ान भरने की चाहत और हिम्मत रखती थी. वह अपने सपनों को दिशा देना भी जानती थी. वह होनहार थी, निडर थी और अपनी सुरक्षा करना भी जानती थी. सुनीता को अब वह स्मौल टाउन गर्ल पार्टी में नाच रही बाकी मुंबईया लड़कियों से कहीं भी कमतर नहीं लग रही थी.

समय बदल गया है

उस पार्टी से सुनीता एक बहुत बड़ा सबक ले कर लौटी थी, वह यह कि छोटी जगह से आने का अर्थ यह नहीं कि लड़की साधारण हो, उस की सोच छोटी और दबी हुई हो, वह बहुत स्ट्रौंग और क्लीयर माइंड भी हो सकती है. वे जमाने गए जब छोटे शहर की लड़कियां पढ़ाई पूरी कर घर में बैठ, कढ़ाईबुनाई में लग कर दहेज इकट्ठा किया करती थीं. उन की क्लासेज भी कुकिंग, बेकरी, स्टीचिंग, पेंटिंग तक ही सीमित हुआ करती थी.

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घरवाले उन्हें ऐसे संभाल कर रखते थे जैसे वे कोई भेड़बकरी हैं और खुला छोड़ने पर कहीं भाग जाएंगी. पिता जल्द से जल्द उस के हाथ पीले करने की कोशिश में लग जाते ताकि वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें. जब कोई लड़की घर से बाहर निकलती थी तो उस के साथ उस के भाई या पापा हुआ करते थे क्योंकि अकेली लड़की का घर से निकलना ठीक नहीं माना जाता था. लड़कियों का घर से दूर रह कर पढ़ना या नौकरी करना तो समाज में बिलकुल अस्वीकार्य था.

आजकल छोटे शहर की लड़कियां इन सब दकियानूसी बातों से बाहर आ चुकी हैं. वे दकियानूसी माहौल के बीच भी ऐसी खिल रही हैं जैसे कीचड़ में कमल खिलता है. सारी सामाजिक बंदिशों और रूढि़यों के पिंजरो को अपने परों की ताकत से तोड़ कर खुले आकाश में ऊंची उड़ान भर रही हैं.

अच्छी बात यह है कि अब उन के मातापिता भी उन की उड़ान को परवान देने के लिए समाज से लड़ने को तैयार हैं. लेकिन जहां मातापिता तैयार नहीं हैं वहां भी लड़कियों के हौसलों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा है. वे अपना संघर्ष कर रही हैं और उस में सफल भी हो रही हैं.

जब हौसले हों बुलंद

हरियाणा के एक छोटे दकियानूसी गांव से निकली ‘दंगल’ फिल्म की रीयल लाइफ हिराइन फोगाट बहनों को कौन नहीं जानता. छोटे शहर से आई तीन मोहन बहनों शक्ति, नीति, और मुक्ति ने नृत्य, गायन, और अभिनय के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई हैं.

आजकल डांस प्लस रियलिटी शो में आ रहीं वर्तिका उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सोनभद्र से आई है. उस का पावरफुल पौपिंग डांस बड़ेबड़े डांसर को हैरत में डाल रहा है. अब तो उस का चयन एक फिल्म के लिए भी हो चुका है. सब से बड़ी बात उस ने इस डांस को किसी क्लास में नहीं सीखा है बल्कि खुद ही वीडियोज देखदेख कर उस ने डांस में महारत हासिल की है. इसी तरह एयर इंडिया में बतौर पायलट चयनित हो कर एक छोटे से शहर शिवपुरी की रहने वाली श्रुति छोटे शहरों की लाखों लड़कियों की आइडियल बन गई.

इन सभी केस में लड़कियों को उन के मातापिता का पूरा सहयोग मिला. दकियानूसी समाज का सामना करने की जिम्मेदारी उन्होंने ले ली थी. मगर एक छोटी पहाड़ी जगह धर्मशाला से आई राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कंगना रनौत और वर्ल्ड चैंपियन बौक्सर मैरी कौम इतनी भाग्यशाली नहीं रही. उन्हें अपने परिवार का सपोर्ट नहीं मिला फिर भी उन की अभूतपूर्व सफलता आप के सामने है. इन

दोनों ने ही पुरुष प्रधान समाज की रूढि़यों को तोड़ा है.सोशल मीडिया से एक्सपोजर यह सच है कि छोटे शहरों की लड़कियों को सामाजिक दबाव और रूढि़वादिता झेलनी पड़ती है लेकिन आजकल उन्हें इंटरनैट, सोशल मीडिया और टीवी के माध्यम से हर तरह का एक्सपोजर मिल रहा है जिस से उन का दृष्टिकोण बदल रहा है. उन का विजन यानी दूरदर्शिता बढ़ रही है. याद है न, कुछ साल पहले जब टीवी पर एक महिला पुलिस औफिसर के संघर्ष पर आधारित सीरियल ‘उड़ान’ आया करता था, उसे देख कितनी लड़कियों की आंखों में पुलिस औफिसर बनने के सपने पले थे जो हकीकत में भी बदले.

आजकल लगभग हर गांवशहर में नैटवर्क कनैक्शन आ चुका है. भारत में सभी तरह की कैरियर कोचिंग क्लासेस और कोर्स मैटीरियल औनलाइन उपलब्ध हो चुके हैं. यानी यदि कोई दिल से चाहे तो कुछ भी और कहीं भी सीख सकता है. छोटे शहरों में बड़े शहरों जितना ऐक्सपोजर भले न मिले मगर वह कमी अपनी मेहनत से पूरी की जा सकती है.

वैसे भी ज्यादातर कैरियर में पर्सनेलिटी नहीं बल्कि क्लासिफिकेशन और नौलेज देखी जाती है.

शालिनी ने भी कल्पना चावला के बारे में सोशल मीडिया पर पढ़ा था. उस ने इंटरनैट पर सर्च कर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के बारे में सारी जानकारी घर बैठे ही इकट्ठी कर ली है. उस के लिए फौर्म भरना, डिमांड ड्राफ्ट बनवाना जैसे काम उस ने बिना पिता या भाई की सहायता के स्वयं से ही किए थे.

हम में है हीरो

तो ये है आज की हकीकत. स्मौल टाउन गर्ल अपनी रूढि़यां और गंवार होने की छवि तोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. वे हर वो काम कर रही हैं जिसे करने की उन्हें सदियों से इजाजत नहीं थी. बूंदी, राजस्थान की रहने वाली मीना रेगर ने जब अपने पिता के अंतिम संस्कार करने की ठानी तो इस के लिए उन्हें समाज से बेदखल होना पड़ा. उस मुश्किल घड़ी में उन के रिश्तेदार भी उन्हें अकेला छोड़ कर चले गए मगर वे अपने निश्चय से नहीं हटी और पिता को मुखाग्नि दी.

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बिहार के एक छोटे से कसबे मधवापुर में रहने वाली संध्या अकेली अपनी होने वाली ससुराल गई और बड़े दबंग तरीके से अपना रिश्ता तोड़ कर आ गईर् क्योंकि लड़के वाले आएदिन कोई न कोई नई मांग खड़ी कर रहे थे.

छोटे शहरों की लड़कियां पुरुष प्रधान क्षेत्रों में पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. आज वे इंजीनियर हैं, मैकेनिक हैं, पायलट हैं, ट्रैफिक हवलदार हैं, फायर फाइटर हैं, औटो और बस ड्राइवर भी हैं, आज वे बौक्सर हैं, पहलवान हैं और बांउसर भी हैं. भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में मैडल लाने वाली ज्यादातर महिला खिलाड़ी छोटे शहरों से ही ताल्लुक रखती हैं.

न सुविधाएं, न सपोर्ट ऊपर से टांग खींचने वाला, डरानेधमकाने वाला समाज अलग, तो सवाल यह है कि उन में इतना हौंसला आया कहा से? दरअसल, शुरू से ही छोटे शहरों में लड़कियों पर रूढियों को निभाने का बहुत ज्यादा सामाजिक और पारिवारिक दबाव रहता आया है, और जब भी कोई दबाव हद से ज्यादा बढ़ जाए तो फिर विस्फोट होता है. छोटे शहरों में यह विस्फोट हो चुका है.

जब वे टीवी इंटरनैट के माध्यम से दुनिया की बाकी लड़कियों को आगे बढ़ता देखती हैं, उन के संघर्षों से परिचित होती हैं तो उन के भीतर भी संकल्पों की ज्वाला धधकती है, जब लड़की हो कर यह ऐसा कर सकती है, तो मैं क्यों नहीं. बस इसी संकल्प और हौंसले की ज्वाला से वे सारे दबावों और अभावों को विस्फोट कर उड़ा चुकी हैं और किसी भी शहरी लड़की से किसी बात में पीछे नहीं हैं.

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घर पर बनाएं प्रौन पोटैटो रेसिपी

सीफूड के शौकीन लोगों को यह रेसिपी काफी पसंद आएगा. प्रौन्स, आलू, प्याज, दूध और अंडे डालकर इस स्वादिष्ट सूप को तैयार किया जाता है. तो आइए जानते है इस सूप की रेसिपी.

सामग्री

टुकड़ों में कटा हुआ (2 प्याज)

आलू (1)

प्रौन्स (6-7)

अंडे (2)

दूध (1 कप)

मक्खन (40 ग्राम)

हरा धनिया (बारीक कटा हुआ)

नमक (स्वादानुसार)

पानी (आवश्यकतानुसार)

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बनाने की वि​धि

आलूओं को छीलकर बड़े टुकड़ों में काट लें.

आलू और प्याज को उबाल कर प्यूरी बना लें.

प्रौन्स को छीलकर साफ कर लें और धोकर छोटे टुकड़ों में काट लें.

अंडे के सफेद भाग और पीले भाग को अलग कर लें.

पीले भाग को दूध के साथ फेंट लें.

एक पैन में मक्खन को गर्म कर लें,  इसमें प्रौन्स डालकर पकाएं.

जब यह थोड़े चमकदार हो जाए तो इसमें प्याज और आलू की प्यूरी डालें.

इसके बाद अंडे और दूध का मिश्रण डालें और इसे थोड़ी देर पकाएं.

जैसे ही सूप गाढ़ा होने लगे तो इसमें पानी, नमक और हरा धनिया डालें.

इसे थोड़ी देर के लिए और पकाएं.

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घर पर ऐसे बनाएं स्ट्रौबेरी बौडी वाश

आपके किचन में वो सब है, जिससे अच्छे से अच्छा स्किन केयर प्रौडक्टस् तैयार कर सकते हैं. इसमें फेस वाश, फेस पैक, स्क्रब, लोशन, मौइशचराइजर और बौडी वाश भी शामिल है. जब स्किन केयर के लिए किसी फल के इस्तेमाल की बात आती है तो स्ट्रौबेरी का इस्तेमाल जरूर करें.  आप इसका इस्तेमाल होममेड बौडी वाश, स्क्रब और फेस मास्क में कर सकते हैं. तो चलिए जानते हैं, स्ट्रौबेरी का बौडी वाश घर पर  कैसे बनाएं.

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सामग्री

स्ट्रौबेरी (4-5)

विटामिन ई ऑयल (1 चम्मच)

लैवेंडर एसेंशियल ऑयल (1 चम्मच)

कोकोनट औयल (2 चम्मच)

कैसाइल साबुन (½ कप)

बनाने की विधि

स्ट्रौबेरी लेकर क्रश करें और उसका पल्प बनाकर एक बाउल में इकट्ठा कर लें. फिर इसे अच्छी तरह से मिलाएं जिससे कि पानी जैसा पेस्ट बन जाए.

पल्प बन जाने के बाद एक पैन में नारियल तेल को हल्की आंच पर गर्म कर लें, इसके बाद इसमें पल्प डाल कर चलाएं.

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तेल जब हल्का गुलाबी होने लगे, तब इसमें कैसाइल साबुन मिलाकर गैस बंद कर दें, जब यह मिश्रण ठंडा हो जाए. तब इसमें एक विटामिन ई कैप्सूल काट कर डालकर मिला दें.

इसके बाद इसमें लैवेंडर एसेंशियल औयल मिला लें. लीजिए तैयार हो गया आपका बॉडी वाश. इसे आप ठंडी और सूखी जगह पर ही रखें. इसके अलावा बौडी वाश का इस्तेमाल करने से अच्छे से शेक कर लें.

फायदे

ये त्वचा की सेहत का ख्याल रखता है.

ये डेड स्किन को हटाता है.

ये स्किन को पोषण देता है.

ये आंखों को राहत देता है.

ये उन बैक्टीरिया से लड़ता है जिनकी वजह से पिंपल्स होते हैं.

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यही सच है

उस ने एक बार फिर सत्या के चेहरे को देखा. कल से न जाने कितनी बार वह इस चेहरे को देख चुकी है. दोपहर से अब तक तो वह एक मिनट के लिए भी उस से अलग हुई ही न थी. बस, चुपचाप पास में बैठी रही थी. दोनों एकदूसरे से नजरें चुरा रही थीं. एकदूसरे की ओर देखने से कतरा रही थीं.

सत्या का चेहरा व्यथा और दहशत से त्रस्त था. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी बेटी को किस तरह दिलासा दे. उस के साथ जो कुछ घट गया था, अचानक ही जैसे उस का सबकुछ लुट गया था. वह तकिए में मुंह छिपाए बस सुबकती रही थी. सबकुछ जाननेसमझने के बावजूद उस ने सत्या से न तो कुछ कहा था न पूछा था. ऐसा कोई शब्द उस के पास नहीं था जिसे बोल कर वह सत्या की पीड़ा को कुछ कम कर पाती और इस विवशता में वह और अधिक चुप हो गई थी.

जब रात घिर आई, कमरे में पूरी तरह अंधेरा फैल गया तो वह उठी और बत्ती जला कर फिर सत्या के पास आ खड़ी हुई, ‘‘कुछ खा ले बेटी, दिनभर कुछ नहीं लिया है.’’

‘‘नहीं, मम्मी, मुझे भूख नहीं है. प्लीज आप जाइए, सो जाइए,’’ सत्या ने कहा और चादर फैला कर सो गई.

कुछ देर तक उसी तरह खड़ी रहने के बाद वह कमरे से निकल कर बालकनी में आ खड़ी हुई. उस के कमरे का रास्ता बालकनी से ही था अपने कमरे में जाने से वह डर रही थी. न जाने कैसी एक आशंका उस के मन में भर गई थी.

आज दोपहर को जिस तरह से लिथड़ीचिथड़ी सी सत्या आटो से उतरी थी और आटो का भाड़ा दिए बिना ही भाग कर अपने कमरे में आ गई थी, वह सब देख कर उस का मन कांप उठा था. सत्या ने उस से कुछ कहा नहीं था, उस ने भी कुछ पूछा नहीं था. बाहर निकल कर आटो वाले को उस ने पैसे दिए थे.

आटो वाला ही कुछ उदासउदास स्वर में बोला था, ‘‘बहुत खराब समय है बीबीजी, लगता है बच्ची गुंडों की चपेट में आ गई थी या फिर…रिज के पास सड़क पर बेहाल सी बैठी थी. किसी तरह घर तक आई है…इस तरह के केस को गाड़ी में बैठाते हुए भी डर लगता है. पुलिस के सौ लफड़े जो हैं.’’

पैसे दे कर जल्दी से वह घर के भीतर घुसी. उसे डर था, आटो वाले की बातें आसपास के लोगों तक न पहुंच जाएं. ऐसी बातें फैलने में समय ही कितना लगता है. वह धड़धड़ाती सी सत्या के कमरे में घुसी. सत्या बिस्तर पर औंधी पड़ी, तकिए में मुंह छिपाए हिचकियां भर रही थी. कुछ देर तक तो वह समझ ही न पाई कि क्या करे, क्या कहे. बस, चुपचाप सत्या के पास बैठ कर उस का सिर सहलाती रही. अचानक सत्या ही उस से एकदम चिपक गई थी. उसे अपनी बांहों से जकड़ लिया था. उस की रुलाई ने वेग पकड़ लिया था.

‘‘ममा, वे 3 थे…जबरदस्ती कार में…’’

सत्या आगे कुछ बोल नहीं पाई, न बोलने की जरूरत ही थी. जो आशंकाएं अब तक सिर्फ सिर उठा रही थीं, अब समुद्र का तेज ज्वार बन चुकी थीं. उस का कंठ अवरुद्ध हो आया, आंखें पनीली… परंतु अपने को संभालते हुए बोली, ‘‘डोंट वरी बेटी, डोंट वरी…संभालो अपने को… हिम्मत से काम लो.’’

कहने को तो कह दिया, सांत्वना भरे शब्द, किंतु खुद भीतर से वह जिस तरह टूटी, बिखरी, यह सिर्फ वह ही समझ पाई. जिस सत्या को अपने ऊपर अभिमान था कि ऐसी स्थिति में आत्मरक्षा कर पाने में वह समर्थ है, वही आज अपनी असमर्थता पर आंसू बहा रही थी. बेटी की पीड़ा ने किस तरह उसे तारतार कर दिया था, दर्द की कितनी परतें उभर आई थीं, यह सिर्फ वह समझ पा रही थी, बेटी के सामने व्यक्त करने का साहस नहीं था उस में.

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सत्या इस तरह की घटनाओं की खबरें जब भी अखबार में पढ़ती, गुस्से से भर उठती, ‘ये लड़कियां इतनी कमजोर क्यों हैं? कहीं भी, कोई भी उन्हें उठा लेता है और वे रोतीकलपती अपना सबकुछ लुटा देती हैं? और यह पुलिस क्या करती है? इस तरह सरेआम सबकुछ हो जाता है और…’

वह सत्या को समझाने की कोशिश करती हुई कहती, ‘स्त्री की कमजोरी तो जगजाहिर है बेटी. इन शैतानों के पंजे में कभी भी कोई भी फंस सकता है.’

‘माई फुट…मैं तो इन को ऐसा मजा चखा देती…’

उस ने घबराए मन से फिर सत्या के कमरे में एक बार झांका और चुपचाप अपने कमरे में आ कर लेट गई. खाना उस से भी खाया नहीं गया. यों ही पड़ेपड़े रात ढलती रही. बिस्तर पर पड़ जाने से ही या रात के बहुत गहरा जाने से ही नींद तो नहीं आ जाती. उस ने कमरे की बत्ती भी नहीं जलाई थी और उस अंधेरे में अचानक ही उसे बहुत डर लगने लगा. वह फिर उठ कर बैठ गई. कमरे से बाहर निकली और फिर सत्या के कमरे की ओर झांका. सत्या ने बत्ती बुझा दी थी और शायद सो रही थी.

वह मंथर गति से फिर अपने कमरे में आई. बिस्तर पर लेट गई. किंतु आंखों के सामने जैसे बहुत कुछ नाच रहा था. अंधेरे में भी दीवारों पर कईकई परछाइयां थीं. वह सत्या को कैसे बताती कि जो वेदना, जो अपमान आज वह झेल रही है, ठीक उसी वेदना और अपमान से एक दिन उसे भी दोचार होना पड़ा था.

सत्या तो इसे अपने लिए असंभव माने बैठी थी. शायद वह भूल गई थी कि वह भी इस देश में रहने वाली एक लड़की है. इस शहर की सड़कों पर चलनेघूमने वाली हजारों लड़कियों के बीच की एक लड़की, जिस के साथ कहीं कुछ भी घट सकता है.

सत्या के बारे में सोचतेसोचते वह अपने अतीत में खो गई. कितनी भयानक रात थी वह, कितनी पीड़ाजनक.

वह दीवारों पर देख रही थी, कईकई चेहरे नाच रहे थे. वह अपने मन को देख रही थी जहां सैकड़ों पन्ने फड़फड़ा रहे थे.

एक सुखीसंपन्न परिवार की बहू, एक बड़े अफसर की पत्नी, सुखसाधनों से लदीफंदी. एक 9 साल की बेटी. परंतु पति सुख बहुत दिनों तक वह नहीं भोग पाई थी. वैवाहिक जीवन के सिर्फ 16 साल बीते थे कि पति का साथ छूट गया था. एक कार दुर्घटना घटी और उस का जीवन सुनसान हो गया. पति की मौत ने उसे एकदम रिक्त कर दिया था.

यद्यपि वह हमेशा मजबूत दिखने की कोशिश में लगी रहती थी. कुछ महीने बाद ही उस ने बेटी को अपने से दूर दून स्कूल में भेज दिया था. शायद इस का एक कारण यह भी था कि वह नहीं चाहती थी कि उस की कमजोरियां, उस की उदासी, उस का खालीपन किसी तरह बेटी की पढ़ाई में बाधक बने. अब वह नितांत अकेली थी. सासससुर का वर्षों पहले इंतकाल हो गया था. एक ननद थी, वह अपने परिवार में व्यस्त थी. अब बड़ा सा घर उसे काटने को दौड़ता था. एकाकीपन डंक मारता था. तभी उस ने फैसला किया था कि वह भारतदर्शन करेगी. इसी बहाने कुछ समय तक घर और शहर से बाहर रहेगी. यों भी देशदुनिया घूमने का उसे बहुत शौक था. खासकर भारत के कोनेकोने को वह देखना चाहती थी.

उस ने फोन पर बेटी को बता दिया था. कुछ सहेलियों को भी बताया. 1-2 ने इतनी लंबी यात्रा से उसे रोका भी कि अकेली तुम कहां भटकती फिरोगी? पर वह कहां रुकने वाली थी. निकल पड़ी थी भारत दर्शन पर और सब से पहले दक्षिण गई थी. कन्याकुमारी, तिरुअनंतपुरम, तिरुपति, मदुरै, रामेश्वरम…फिर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनेक शहर. राजस्थान को उस ने पूरी तरह छान मारा था. फिर पहुंची थी हिमाचल प्रदेश. धर्मशाला के एक होटल में ठहरी थी. वहीं वह अंधेरी रात आई थी. जिन पहाड़ों के सौंदर्य ने उसे खींचा था उन पहाड़ों ने ही उसे धोखा दिया.

दिन भर वह इधरउधर घूमती रही थी. रात का अंधियारा जब पहाड़ों पर उगे पेड़ों को अपनी परछाईं से ढकने लगा, वह अपने होटल लौटी थी. वे दोनों शायद उस के पीछेपीछे ही थे. उस का ध्यान उधर था ही नहीं. वह तो प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्यसुख में ऐसी डूबी थी कि मानवीय छाया पर उस की नजर ही नहीं गई. जैसे रात चुपकेचुपके धीरेधीरे आती है, उन के पैरों की गति भी वैसी ही थी. सन्नाटे में डूबा रास्ता. भूलेभटके ही कोई नजर आता था.

उसी मुग्धावस्था में उस ने अपने कमरे का ताला खोला था, फिर भीतर घुसने के लिए एक कदम उस ने उठाया ही था कि पीछे से किसी ने धक्का मारा था उसे. वह लड़खड़ाती हुई फर्श पर गिर पड़ी थी. गिरना ही था क्योंकि अचानक भूकंप सा वह झटका कैसे संभाल पाती. वह कुछ समझती तब तक दरवाजा बंद हो चुका था.

उन दोनों ने ही बत्ती जलाई थी. उम्र ज्यादा नहीं थी उन की. झटके में उस के हाथपैर बांध दिए गए थे. वह चाहती थी चिल्लाए पर चिल्ला न सकी. उस की चीख उस के अंदर ही दबी रह गई थी. होटल तो खाली सा ही पड़ा था क्योंकि पहाड़ों का सीजन अभी चालू नहीं हुआ था.

वह अकेली औरत. होटल का उस का अपना कमरा. एक अनजान जगह में बदनाम हो जाने का भय. मन का भय बहुत बड़ा भय होता है. उस भय से ही वह बंध गई थी. इस उम्र में यह सब भी भोगना होगा, वह सोच भी नहीं सकती थी.

वे लूटते रहे. पहले उसे, फिर उस का सामान.

वह चुपचाप झेलती रही सबकुछ. कोई कुंआरी लड़की तो थी नहीं वह. भोगा था उस ने सबकुछ पति के साथ. परंतु अभी तो वह रौंदी जा रही थी. एक असह्य अपमान और पीड़ा से छटपटा रही थी वह. उन पीड़ादायी क्षणों को याद कर आज भी वह कांप जाती है. बस, यही एक स्थिति ऐसी होती है जहां नारी अकसर शक्तिहीन हो जाती है. अपनी सारी आकांक्षाओं, आशाओं की तिलांजलि देनी पड़ती है उसे. बातों में, किताबों में, नारों में स्त्री अपने को चाहे जितना भी शक्तिशाली मान ले, इस पशुवृत्ति के सामने उसे हार माननी ही पड़ती है.

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उस रात उसे अपने पति की बहुत याद आई थी. कहीं यह भी मन में आ रहा था कि उन के न होने के बाद उन के प्रति उसे किसी ने विश्वासघाती बना दिया है. न जाने कब तक वे लोग उस के ऊपर उछलतेकूदते रहे. एक बार गुस्से में उस ने एक की बांह में अपने दांत भी गड़ा दिए थे. प्रत्युत्तर में उस शख्स ने उस की दोनों छातियों को दांत से काटकाट कर लहूलुहान कर दिया था. उस के होंठों और गालों को तो पहले ही उन लोगों ने काटकाट कर बदरंग कर दिया था. वह अपनी सारी पीड़ा को, गुस्से को, चीख को किस तरह दबाए पड़ी रही, आज सोच कर चकित होती है.

यह स्पष्ट था कि वे दोनों इस काम के अभ्यस्त थे. जाने से पहले दोनों के चेहरों पर अजीब सी तृप्ति थी. खुशी थी. एक ने उस के बंधन खोलने के बाद रस्सी को अपनी जैकेट के अंदर छिपाते हुए कहा, ‘गुड नाइट मैडम…तुम बहुत मजेदार हो.’ घृणा से उस ने मुंह फेर लिया था. कमरे के दूसरी तरफ एक खिड़की थी, उसे खोल कर वे दोनों बाहर कूद गए थे. बाहर का अंधेरा और घना हो उठा था.

कमरे में जैसे चारों तरफ बदबू फैल गई थी. बाहर का घना अंधेरा उछलते हुए उस कमरे में भरने लगा था. वह उठी. कांपते शरीर के साथ खिड़की तक पहुंची. खिड़की को बंद किया. बदबू और तेज हो गई थी. उस ने नाक पर हाथ रख लिया और दौड़ती हुई बाथरूम में घुसी.

उस ठंडी रात में भी न जाने वह कब तक नहाती रही. बारबार पूरे शरीर पर साबुन रगड़ती रही. चेहरे को मलती रही. छातियों को रगड़रगड़ कर धोती रही, परंतु वह बदबू खत्म होने को नहीं आ रही थी. वह नंगे बदन ही फिर कमरे में आई. पूरे शरीर पर ढेर सारा पाउडर थोपा, परफ्यूम लगाया, कमरे में भी चारों तरफ छिड़का, किंतु उस बदबू का अंत नहीं था. कैसी बदबू थी यह. कहां से आ रही थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी.

बिस्तर पर लेटने के बाद भी देर तक नींद नहीं आई थी. जीवन व्यर्थ लगने लगा था. उसे लग रहा था, उस का जीवन दूषित हो गया है, उस का शरीर अपवित्र हो गया है. अब जिंदगी भर इस बदबू से उसे छुटकारा नहीं मिलेगा. वह कभी किसी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाएगी. अपनी ही बेटी से जिंदगी भर उसे मुंह छिपाना पड़ेगा. हालांकि एक मिनट के लिए वह यह भी सोच गई थी कि अगर वह किसी को कुछ नहीं बताएगी तो भला किसी को कुछ भी पता कैसे चलेगा.

फिर भी एक पापबोध, हीनभाव उस के अंदर पैदा हो गया था.

और ढलती रात के साथ उस ने तय कर लिया था कि उस के जीवन का अंत इन्हीं पहाड़ों पर होना है. यही एक विकल्प है उस के सामने.

वह बेचैनी से कमरे में टहलने लगी. उस होटल से कुछ दूरी पर ही एक ऊंची पहाड़ी थी, नीचे गहरी खाई. वह कहीं भी कूद सकती थी. प्राण निकलने में समय ही कितना लगता है. कुछ देर छटपटाएगी. फिर सबकुछ शांत. पर रात में होटल का बाहरी गेट बंद हो जाता था. कोई आवश्यक काम हो तभी दरबान गेट खोलता था. वह भला उस से क्या आवश्यक काम बताएगी इतनी रात को? संभव ही नहीं था उस वक्त बाहर निकल पाना. चक्कर लगाती रही कमरे में सुबह के इंतजार में. भोर में ही गेट खुल जाता था.

अपने शरीर पर एक शाल डाल कर वह बाहर निकली. कमरे का दरवाजा भी उस ने बंद नहीं किया. अभी भी अंधकार घना ही था. पर ऐसा नहीं कि रास्ते पर चला न जा सके. टहलखोरी के लिए निकलने वाले भी दोचार लोग रास्ते पर थे. वह मंथर गति से चलती रही. सामने ही वह पहाड़ी थी…एकदम वीरान, सुनसान. वह जा खड़ी हुई पहाड़ी पर. नीचे का कुछ भी दिख नहीं रहा था. भयानक सन्नाटा. वह कुछ देर तक खड़ी रही. शायद पति और बेटी की याद में खोई थी. हवा की सरसराहट उस के शरीर में कंपन पैदा कर रही थी. पर वह बेखबर सी थी. शाल भी उड़ कर शायद कहीं नीचे गिर गई थी. नीचे, सामने कहीं कुछ भी दिख नहीं रहा…सिवा मृत्यु के एक काले साए के. एक संकरी गुफा. वह समा जाएगी इस में. बस, अंतिम बार पति को प्रणाम कर ले.

उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और ऊपर आसमान की ओर देखा. अचानक उस की नजरें सामने गईं. देखा, दूर पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे लाली फैलने लगी है. सुनहरी किरणें आसमान के साथसाथ पहाड़ों को भी सुनहरे रंग में रंग रही हैं. सूर्योदय, सुना था, लोग यहां से सूर्योदय देखते हैं. आसमान की लाली, शिखरों पर फैली लाली अद्भुत थी.

वह उसी तरह हाथ जोड़े विस्मित सी वह सब देखती रही. उस के देखतेदेखते लाल गोला ऊपर आ गया. तेजोमय सूर्य. रात के अंधकार को भेदता अपनी निर्धारित दिशा की ओर अग्रसर सूर्य. सच, उस दृश्य ने पल भर में ही उस के भीतर का सबकुछ जैसे बदल डाला. अंधकार को तो नष्ट होना ही है, फिर उस के भय से अपने को क्यों नष्ट किया जाए? कोशिश तो अंधकार से लड़ने की होनी चाहिए, उस से भागने की थोड़े ही. वही जीत तो असली जीत होगी.

और वह लौट आई थी. एक नए साहस और उमंग के साथ. एक नए विश्वास और दृढ़ता के साथ.

अचानक छन्न की आवाज हुई. उस की तंद्रा टूट गई. अतीत से वर्तमान में लौटना पड़ा उसे. यह आवाज सत्या के कमरे से ही आई थी. वह समझ गई, सत्या अभी तक सोई नहीं है. शायद वह भी किसी बदबू से परेशान होगी. एक दहशत के साथ शायद अंधेरे कमरे में टहल रही होगी. उस से टकरा कर कुछ गिरा है, टूटा है…छन्न. यह अस्वाभाविक नहीं था. सत्या जिन स्थितियों से गुजरी है, जिस मानसिकता में अभी जी रही है, किसी के लिए भी घोर यातना का समय हो सकता है.

संभव है, उस के मन में भी आत्महत्या की बात आई हो. सारी वेदना, अपमान, तिरस्कार का एक ही विकल्प होता है जैसे, अपना अंत. परंतु वह नहीं चाहती कि सत्या ऐसा कुछ करे…ऐसा कोई कदम उठाए. अभी बहुत नादान है वह. पूरी जिंदगी पड़ी है उस के सामने. उसे सबकुछ झेल कर जीना होगा. जीना ही जीत है. मर जाने से किसी का क्या बिगड़ेगा? उन लोगों का ही क्या बिगड़ेगा जिन्होंने यह सब किया? वह सत्या को बताएगी, एक ठोकर की तरह ही है यह सबकुछ. ठोकर खा कर आदमी गिरता है परंतु संभल कर फिर उठता है, फिर चलता है.

वह स्थिर कदमों से सत्या के कमरे की ओर बढ़ी. उस के पैरों में न कंपन थी न मन में अशांति. कमरे में घुसने से पहले बालकनी की बत्ती को उस ने जला दिया था.

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