ताबड़तोड़ कर लगाने से जो मायूसी आर्थिक बाजार में छाई थी, उस का मुकाबला यह मजबूत सरकार नहीं कर पाई. झक मार कर सरकार को विदेशी व देशी निवेशकों के पूंजीनिवेश पर हुए लाभ पर लगाए कर में कटौती करनी पड़ी, गाडि़यों की रजिस्ट्रेशन फीस को टालना पड़ा और पैंडिंग जीएसटी क्रैडिट लौटाने का वादा करना पड़ा है. ये कदम लड़खड़ाते बाजार को संभालने के लिए उठाए गए हैं, पर आज जो माहौल है उस में ये सरकंडे की बैसाखी का ही काम करेंगे.

देश के साथ मुश्किल यह है कि यहां अब अकेला व्यवसाय धर्म का बन गया है. हर कोई इस धंधे की गंगा में डुबकी लगा कर तर जाना चाहता है. देश का एक बहुत बड़ा निठल्ला वर्ग देखतेदेखते आज मंदिरों, आरतियों, जुलूसों, सोशल मीडिया रणबहादुरों के नाम पर या तो करोड़ों में खेलने लगा है या चौधरी बन गया है. आज व्यापारी, वैज्ञानिक, डाक्टर, उद्योगपति, मजदूर, किसान की कीमत कुछ नहीं है जितनी भगवा गमछा पहने व्यक्ति की है.

ये भी पढ़ें- राहुल गांधी का त्याग

देश नारों से नहीं चलते, विकास भाषणों से नहीं आता, देश में शांति जेलों को भरने से नहीं होती. देश के विकास के लिए हरेक को अपनी जगह दोगुनाचौगुना काम करना होता है, उत्पादन बढ़ाना होता है. और सरकार का काम इन क्षेत्रों में आने वाली अड़चनों को दूर करना होता है. जिस सरकार को यह कला आती है, वह सफल होती है. दुनिया के कई देशों में यह कला कूटकूट कर जनमानस की सोच में भर गई है तो कुछ देशों में इसे धर्म का अपमान माना जाता है. पहले खाड़ी और उस के आसपास के मुसलिम देश, अफ्रीकी देश, दक्षिणी अमेरिका के देश इस प्रकार की सरकारों को दिल से लगाते थे, अब हम भी उन की श्रेणी में आ रहे हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...