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गूगल ने डूडल बनाकर किया World Cup-2019 को सलाम…

आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप-2019 के चलते आज गूगल ने अपने डूडल को क्रिकेट वर्ल्ड कप के नाम किया. क्रिकेट के इस महाकुंभ का जश्न मनाने के लिए गूगल ने खास एनिमेटेड डूडल बनाया है. इस डूडल में गूगल के O को क्रिकेट बाल के रुप में दिखाया गया हैं वहीं L को विकेट बनाया है. बता दे की ये एक एनिमेटेड डूडल हैं जिसमें दिखाया है कि तेज गेंदबाज बल्लेबाज को मात देते हुए उसे फील्डर के हाथों कैच आउट करा देता है.

डूडल बना पहचान

ब्लैक बैकग्राउंट में लिखे गए गूगल को देखने पर एक गेंदबाज गेंद फेकता नजर आता है, जिसपर बल्लेबाज शौट खेलता है और फील्डर कैच कर पकड़ लेता है. इस डूडल को क्लिक करने पर मौजूदा वर्ल्ड कप मैचों की जानकारी मिलती है. साथ ही मैच के स्कोर और टीम से जुड़े जरूरी फैक्ट भी मिलेंगे. विश्व कप में भारत को अपना पहला मैच पांच जून को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलना है.

पांच गेंदबाज पर निगाहें

आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप-2019  की खास बात ये हैं की इस बार वर्ल्ड कप में पांच ऐसे तेज गेंदबाज हैं जिन पर सबकी निगाहें होंगी. भारत के लिए भी गौरव की बात ये है की इन पांच  तेज गेंदबाज में एक भारतीय क्रिकेटर भी हैं. ये पांच गेंदबाज वर्ल्ड कप में बल्लेबाजों को मुसीबत में डाल सकते हैं.

  • कैगिसो रबाडा (दक्षिण अफ्रीका)
  • जसप्रीत बुमराह (भारत)
  • मिशेल स्टार्क (औस्ट्रेलिया)
  • हसन अली (पाकिस्तान)
  • ट्रेंट बोल्ट (न्यूजीलैंड)

इंडिया ही नहीं पुरे दुनिया इस क्रिकेट के महाकुंभ का बेसब्री से इंतजार करती हैं. इसी के चलते पूरी दूनिया क्रिकेट के खुमार में डूब जाएगी.

6 टिप्स: ऐसे पाएं नेचुरल ब्यूटी

बिना मेकअप के खूबसूरत दिखना भला कौन नहीं चाहेगा. पर यह काम इतना भी मुश्‍किल नहीं है क्‍योंकि आज आपको बताएंगे की बिना मेकअप के खूबसूरत कैसे लगा जा सकता है. तो चलिए जानते हैं आप नेचुरल ब्यूटी कैसे पा सकती हैं.

  1. त्‍वचा में नमी– जब आप मेकअप का इस्‍तमाल नहीं कर रहीं है तो आपको यह डर छोड देना चाहिए कि दिन के बीच में मौस्‍चोराइजर लगाने से आपका मसकारा या आई लाइनर मुंह पर फैल जाएगा. अपने चेहरे पर क्रीम या लोशन जरुर लगाएं वरना चेहरा फटा-फटा सा और रुखा लगेगा जो की आंखों से साफ पता चलेगा.

2. पूरी नींद लें– अगर आप दिनभर की थकान के बाद रात को अच्‍छी नींद नहीं लेगीं तो भला मेकअप बौक्‍स को अपने से कैसे दूर कर पाएगीं. ब्‍यूटी स्‍लीप यानी की सुदंरता को बरकरार रखने के लिए आपको अपनी नींद लेनी ही पडेगी. वरना आंखों के नीचे काले घेरे और बुझे हुए चेहरे को छुपाने के लिए मेकअप का इस्‍तमाल करना ही पड़ेगा.

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3. नियमित मुंह धोएं– अब जब आपको अपने मेकअप के धुलने का कोई डर ही नहीं है तो दिन भर में 3 से 4 बार मुंह जरुर धोएं. इससे चेहरे पर जितनी गंदगी और धूल है, जिससे आपकी त्‍वचा के पोर्स ब्‍लौक हो चुके होगें. वह खुल जाएगी और त्‍वचा चमकदार लगने लगेगी.

4. ग्रूम करें– अगर आपको बिना मेकअप के खूबसूरत लगना है तो खुद को ठीक तरह से ग्रूम करना बहुत जरुरी है. उदाहरण के तौर पर आइब्रो के ही ले लें, जब मेकअप न करें तो अपनी आइब्रो को अच्‍छे से बनवा लें. वैक्‍सिंग, पैडीक्‍योर और मैनीक्‍योर अगर रेगुलर बेसिस पर करवाएं तो आप बिना मेकअप के भी अच्‍छी लगेगीं.

5. बेस्‍ट हेयरस्‍टाइल रखें– आप जो भी पैसे अपने मेकअप पर खर्च कर रहीं थी अब उन्‍हें अपने बालों के लिए एक अच्‍छे से हेयरस्‍टाइल पर खर्च करें. अगर आप एक बढियां सा हेयर कट लेगीं तो यकीन मानिये की आपका पूरा लुक ही चेंज हो जाएगा.

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6. अच्‍छा खाएं और खूब पानी पिएं- आपको अपने शरीर से गंदगी को निकालने के लिए खूब सारा पानी पीना चाहिए. इससे आपका चेहरा ताजा और बिना ध्‍ब्‍बे का दिखेगा. ठीक प्रकार का पौष्टिक भोजन करने से आपकी त्‍वचा अंदर से स्‍वस्‍थ्‍य रहेगी और खिली-खिली लगेगी. इसलिए अच्‍छा खाना खाएं.

जानें, खुश और जवान रहने के लिए कुत्ता पालना क्यों है जरूरी

कुत्ता पालना स्टेटस सिम्बल ही नहीं है, बल्कि यह आपके जवां, हंसमुख और ऊर्जावान व्यक्तित्व एवं सकारात्मक सोच का जिम्मेदार भी है. कुत्ता पालने वाले 65 वर्ष की उम्र वाले लोग अपनी वास्तविक उम्र से दस साल कम ही नजर आते हैं. वे हर वक्त ऊर्जा और एक्टिविटी से भरपूर दिखते हैं. कुत्ता पालने वाले लोग आपको हमेशा तनावमुक्त और हंसमुख स्वभाव के मिलेंगे, जबकि उसी उम्र के अन्य लोगों के स्वाभाव में नीरसता, तनाव, झुंझलाहट, रोष और गुस्सा दिखेगा. हाल ही में हुए एक शोध से यह बात सामने आयी है कि घर में कुत्ता रखना एक बुजुर्ग के मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बेहद सकारात्मक प्रभाव डालता है.

बर्लिन स्थित यूनिवर्सिटी औफ सेंट एंड्रयूज के शोधकर्ता फेंग झिक्यांग का मानना है कि 65 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों में कुत्ते का मालिक होने और बढ़ी हुई शारीरिक सक्रियता के बीच सीधा सम्बन्ध होता है. फेंग के अनुसार बुजुर्ग कुत्ता मालिक कुत्ते ना रखने वाले अपने समकक्षों की अपेक्षा 12 प्रतिशत अधिक सक्रिय पाये गये हैं. शोध के निष्कर्ष संकेत देते हैं कि कुत्तों का स्वामी होने का बोध व्यक्तिगत सक्रियता की प्रेरणा देता है और बुजुर्गों को सामाजिक सहयोग का अभाव नहीं खलता. यह खराब मौसम,बीमारी और निजी सुरक्षा सरीखी कई समस्याओं से उबरने में भी सक्षम बनाता है.

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‘प्रिवेंटिव मेडिसिन’ पत्रिका में प्रकाशित यह शोध 547 बुजुर्गों पर किया गया. शोध में सामने आया कि कुत्तों के मालिक न केवल शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय थे, बल्कि उनकी गतिशीलता का स्तर भी अपने से 10 साल छोटे लोगों के बराबर था. दरअसल इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है. चालीस-पैंतालीस साल की उम्र तक हम सभी अपने करियर, शादी, परिवार और बच्चों की देखभाल आदि में बिजी रहते हैं.  पैंतालीस की उम्र के बाद हमारा शरीर धीरे-धीरे बुढ़ापे की ओर बढ़ना शुरू होता है. इस वक्त तक हमारी दौड़भाग, शारीरिक व्यायाम जैसी चीजें काफी कम हो जाती हैं और हम अपने बच्चों का करियर बनाने, उनको सेटेल करने के तनाव में घिरते चले जाते हैं. पचास-पचपन की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते हमें रिटायरमेंट और उसके बाद के खालीपन के ख्याल भी तंग करने लगते हैं. यह तमाम तरह के तनाव हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं और इसके कारण बुढ़ापे की निशानियां शरीर पर और ज्यादा तेजी से उभरने लगती हैं. तनाव के कारण बाल तेजी से सफेद होते हैं, झड़ने लगते हैं, शरीर पर झुर्रियां नजर आने लगती हैं, आंखों की रोशनी कम होने के साथ अन्य अनेक व्याधियां पैदा हो जाती हैं.

‘चिंता चिता समान’ इस कहावत के निहितार्थ बहुत गहरे हैं. चिंता शुरू हुई नहीं कि ब्लड-प्रेशर, डायबिटीज, एसिडिटी, अपच, सिरदर्द, बदनदर्द जैसे तमाम रोग हमारे शरीर में अपना घर बनाना शुरू कर देते हैं. बढ़ती उम्र में व्यायाम और चलना-फिरना भी कम हो जाता है. रिटायरमेंट के बाद खालीपन बढ़ जाता है. यह खालीपन खिन्नता और तनाव पैदा करता है. हमें पता ही नहीं चलता और यह तनाव एक साइलेंट किलर की तरह अपना काम कर जाता है. आजकल तनाव की समस्या बहुत आम हो गयी है और लगभग हर इंसान इससे ग्रसित है. जानकार कहते हैं कि अगर आपको तनाव न हो तो आपका एनर्जी लेवल बढ़ जाता है. मतलब आप जो काम करेंगे उसका रिजल्ट भी अच्छा आएगा. जानकारों की मानें तो कुत्ता पालने वाले लोगों को तनाव कम होता है. वह हर प्रॉब्लम को बड़े शान्त मन से सुलझा लेते हैं. उनकी सोचने-समझने की क्षमता में इजाफा होता है. वे एक्टिव बने रहते हैं. ऐसा पाया गया है कि जिन लोगों ने कुत्ते पाले, उनमें उन लोगों के मुकाबले अवसाद के लक्षण कम देखे गये जिन्होंने कुत्ते नहीं पाले थे. यहां तक कहा जाता है जो लोग डिप्रेशन की दवाईयां लेते हैं, अगर वे घर में कुत्ता पाल लें तो उन्हें इस बीमारी से राहत मिलने लगेगी. तो तनाव से बचने का बेहद कारगर तरीका है कि कुत्ता पाल लीजिए.

कुत्ता बड़ा स्नेहिल जानवर है. आप उसको जरा सा पुचकार दीजिए, वह आपके आगे-पीछे दुम हिलाने लगेगा. आपके साथ खेलेगा, आपके साथ खाएगा और आपके साथ ही सोएगा. अब घर में कुत्ता होगा तो आप रोज सुबह जल्दी उठ कर उसको घुमाने भी ले जाएंगे. शाम को भी उसके साथ वाक पर जाएंगे. इस तरह आपकी प्रतिदिन तीन-चार किलोमीटर की वॉक हो जाएगी, आपके फेफड़ों को सुबह की ताजी और साफ हवा भी मिल जाएगी, ब्लड सर्कुलेशन ठीक होगा और पूरे बदन की एक्सरसाइज के साथ सारा तनाव छूमंतर हो जाएगा.

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घर में आप अपने पप्पी की देखभाल करेंगे. उसको समय पर खाना खिलाएंगे, नहलाएंगे, उसकी साफ-सफाई का ध्यान रखेंगे और समय पर उसको दवा-इंजेक्शन भी दिलवाने ले जाएंगे. इस तरह आप न सिर्फ उसका ख्याल रख रहे होते हैं, बल्कि अपना भी ध्यान रख रहे हैं. वह हरदम आपके साथ रहेगा. आपके दिल में उसके प्रति प्यार की भावना हर वक्त हिलोरे लेती रहेगी. आप प्यार से उसे सहलाएंगे, दुलारेंगे, पुचकारेंगे, उससे बातें करेंगे, उसके साथ खेलेंगे, यह सारी क्रियाएं आपके भीतर ऊर्जा और सकारात्मकता पैदा करती हैं. आपके पप्पी के साथ आपका स्वार्थरहित सम्बन्ध है. सिर्फ प्यार का सम्बन्ध, जो आपके शरीर में प्यार के हारमोन्स को बढ़ाता है और इससे तनाव और अन्य तकलीफें दूर होती हैं. कुत्ते को जब आप घर में पालते हैं तो उससे फैलने वाले बैक्टीरिया को लेकर भी आप काफी सतर्क रहते हैं. उसके शरीर से गिरने वाले बालों को हटाने के लिए आप रोजाना घर की झाड़-बुहार करते या करवाते हैं यानी आपका कुत्ता आपको भी बीमारियों के प्रति सचेत करके रखता है. और अगर आप पहले से ही सावधान हैं तो बीमार भी कम ही पड़ेंगे.

अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों ने घर में कुत्ता पाला है, उनका ब्लड प्रेशन हमेशा नॉरमल रहता है और रात में उन्हें बहुत अच्छी नींद आती है. इससे आपका दिल भी दुरुस्त रहता है. कुत्ता पालने से आपकी सोशल लाइफ भी बढ़ जाती है. सर्वेक्षणों में पाया गया है कि उन लोगों की अजनबियों से जल्दी दोस्ती हो जाती है जो कुत्ते के साथ वॉक पर निकलते हैं. बाहर आपके बहुत सारे मित्र बन जाते हैं यानी आपकी सोशल लाइफ में इजाफा हो जाता है. अपने पप्पी के साथ आप दिन भर खुश रहते हैं, यह खुशदिली आपके परिवार के अन्य लोगों के साथ आपके सम्बन्ध को बेहतर बनाती है. आखिर खुशमिजाज आदमी को कौन नहीं पसन्द करता है.

हैरत की बात यह है कि अध्ययनों से पता चलता है कि कुत्ता कैंसर का पता लगा सकता है. यह सुनने में थोड़ा फनी लगता है. लेकिन ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं जब कुत्ते ने अपने मालिक के बदन में पनप रहे कैंसर का पता लगा लिया. न्यूजर्सी की निवासी एलिना को पता भी नहीं था कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. वे कहती हैं कि उनकी प्यारी पप्पी रोजमैरी जब भी उनके पास आती थी, उनके सीने पर सिर रख कर उदास लेट जाती थी. वह काफी देर तक उस हिस्से को सूंघती भी रहती थी और कभी-कभी उदास होकर खाना भी छोड़ देती थी. तब उन्हें समझ में नहीं आता था कि वह ऐसा क्यों कर रही है, मगर चार महीने के बाद एलिना को पता चला कि उनके ब्रेस्ट में एक ग्रन्थी है. जांच के बाद उनको कैंसर बताया गया. उनका औपरेशन हुआ और अब वह बिल्कुल ठीक हो गयीं हैं. अब उनकी रोजमैरी खुश रहती है. अब वह उनके बदन में उस स्थान को सूंघती भी नहीं है, जैसा वह पहले करती थी. ऐसा कई बार पाया गया है कि मालिक के शरीर में कुत्तों ने किसी विशेष हिस्से में चाटना शुरू कर दिया और जांच कराने पर उन्हें कैंसर निकला. कुत्तों में सूंघने की क्षमता बहुत तीव्र होती है. वह कई किलोमीटर तक सूंघने की क्षमता रखते हैं. ऐसे में अब कुत्तों को कैंसर का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित भी किया जाने लगा है. इसके अलावा कुत्तों में विशेष प्रकार की संवेदनशीलता होती है जो सेंधमारों, चोरों, बदमाशों की हरकतों को अपने आप भांप जाते हैं और भौंकने लगते हैं. अगर घर में कुत्ता पला है तो आप निश्चिंत होकर बाहर भी जा सकते हैं.

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गुरु दक्षिणा

आश्रम का यह सब से बड़ा कार्यक्रम होता था. जब तक बड़े बाबा थे तब तक ज्यादा भीड़ नहीं होती थी. उन्हें यह तामझाम करना नहीं आता था. छोटेमोटे चढ़ावे और एक प्रौढ़ सी नौकरानी से उन की जिंदगी कट गई थी. पर उन के बाद आश्रम से जो लोग जुड़े थे, उन का स्वार्थ भी इस से जुड़ना शुरू हो गया था.

‘‘गुरु पूर्णिमा का पर्व तो मनाना ही चाहिए,’’ रामगोविंद ने सलाह दी, ‘‘दशपुर के आश्रम में अयोध्या के एक युवा संत आए हैं, उन से निवेदन किया जाए तो अच्छा रहेगा.’’

रामगोविंद की सलाह पर आश्रम वाले प्रज्ञानंद को बुला लाए थे. आश्रम के भक्तजनों का निमंत्रण वे अस्वीकार नहीं कर पा रहे थे. यही तय हुआ कि माह में कुछ दिन के लिए प्रज्ञानंद इधर आते रहेंगे.

इस बार विशेष तैयारियां होनी शुरू हो गई थीं. गांव के प्रधान ने पंचायत समिति के प्रधान को जा कर समझाया था कि यह चुनाव का वर्ष है, अभी से सक्रिय होना होगा. कार्ड आदि सामान 15 दिन पहले पहुंचाना है. इस से भीड़ बढ़ जाएगी.

‘‘भंडारे का खर्चा?’’ पंचायत समिति के प्रधान ने पूछा तो गांव के प्रधान ने कहा था, ‘‘देखो, इस प्रकार के कार्यक्रम में जो भी आता है वह अपनी श्रद्धा से खर्च करता है. भंडारे में सेब, पूरी, सब्जी, बस ज्यादा खर्चा नहीं होगा. हिसाब बाद में होता रहेगा.’’

‘‘स्वामीजी का खर्चा?’’

‘‘वे तो हम को ही देंगे. चढ़ावे में जो भी आएगा उस का आधा उन का होगा आधा हमारा,’’ गांव के प्रधान ने कहा, ‘‘पिछली बार हम ने 60 प्रतिशत लिया था, जो भेंट होगी, बड़े महाराजजी की तसवीर की होगी, लोग उन्हें भेंट चढ़ाएंगे, वह थाली में रखी रहेगी. वहीं रामगोविंद रहेंगे, वे सारा हिसाब रख लेंगे, बाद में हम बैठ कर जोड़ लगा लेंगे. आप तो बस, मंत्रीजी को आने को कहें.’’

2 दिन पहले से आश्रम में अखंड रामायण का पाठ शुरू हो चुका था. दूरदूर से भक्त आने लगे थे. इस बार स्वामी प्रज्ञानंद ने बड़े चित्र, जिस में शिव शंकर और स्वामी शंकराचार्य के साथ उन की भी तसवीर थी, गांवगांव बंटवा दिए थे. बहुत बड़ा सा एक पोस्टर आश्रम के दरवाजे पर भी लगा हुआ था.

मास्टर रामचंद्र ने पोस्टर देख कर चौंकते हुए कहा, ‘‘यह क्या, शिव और आदि शंकराचार्य के साथ स्वामी प्रज्ञानंद, क्या यह शिव का पोता है?’’

‘‘चुप करो,’’ उन की पत्नी ने टोकते हुए कहा, ‘‘तुम हर जगह कुतर्क ले आते हो. यह भी नहीं देखते कि ये लोग कितना काम कर रहे हैं, इन्होंने तो कोई चेला, शिष्य नहीं बनाया, ये तो समिति के लोग हैं जो स्वामीजी को ले आते हैं और उत्सव हो जाता है.’’

तब तक नील कोठी से आने वाली बस आ गई थी. औरतें अपनेअपने थैले, अटैचियां ले कर उतरीं. उतरते ही भजन शुरू हो गया. तेज स्वर के साथ सुरबेसुर सभी एकसाथ थे.

‘‘देखदेख, ये बाबा से कहने गए हैं कि हम आ गए हैं,’’ जानकी बहन ने कहा.

‘‘नहींनहीं, ये तो रसोई में बताने गए हैं कि गरम चाय बना दो, हम आ गए हैं,’’ नंदा ने धीरे से कहा.

‘‘चुप कर, लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे,’’ नंदा की मां ने बेटी को टोका.

शहर के जानेमाने सेठ भी 2-3 बार वहां आ चुके थे. हर बार की तरह इस बार भी भंडारे की सामग्री उन की दुकान से ही आ रही थी. वे भी जानते थे कि न तो यहां सामान तुलता है न कहीं कोई क्वालिटी देखी जाती है. दानेदार चीनी के भाव में यहां सल्फर की बोरियां आराम से खप जाती हैं. वनस्पति घी की भी 50 किस्में हैं, नुकसान का अंदेशा दूरदूर तक नहीं था.

तभी जीप आ कर रुकी. उस में से स्वामीजी का शिष्य भास्कर नीचे उतरा. उस ने अपनी जेब से एक परचा निकाल कर पंचायत समिति के मानमलजी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘स्वामीजी ने दिया है. कृपया पढ़ लें.’’

मानमलजी ने परचा पढ़ा और बोले, ‘‘यार, तुम्हीं ले आते, रुपए हम दे देते. महाराज ने फलों के साथ बिसलरी का पानी भी लिखा है, जो यहां मिलता नहीं. खैर, यहां से गाड़ी जाएगी, जो भी होगा, देखेंगे.’’

भास्कर ने फिर गंभीर मुद्रा में कहा, ‘‘महाराज के साथ मथुरा के ठाकुरजी भी आ रहे हैं. महाराज चाहते हैं, यहां कभी रासलीला भी हो, भागवत का पाठ भी, ये उन्हीं के लिए है.’’

‘‘हां, वे भंडारे का प्रसाद भी तो खाते होंगे,’’ बूढ़े मास्टर रामचंद्रजी चीखे.

‘‘चुप करो,’’ मानमलजी को गुस्सा आ गया था, ‘‘बूढ़ों के साथ यही दिक्कत है.’’

बात आईगई हो गई. सामने सड़क पर दूसरी बस, जो मालता से आई थी, आ कर रुकी. तभी 4-5 कारें, दशपुर से भी आ गईं.

‘‘मैं चलता हूं,’’ मानमलजी बोले, ‘‘महाराज तो कल 11 बजे आएंगे… सुबह हमारे यहां भी कार्यक्रम है.’’

सुबह से ही अतिथियों का आना शुरू हो गया था. लगभग 7 से 10 हजार स्त्रीपुरुष जमा होंगे, इस बार तो गांवगांव जीप घुमाई गई थी. सत्संग और फिर भंडारा, भंडारे के नाम पर भीड़ अच्छी- खासी आ जाती है. संयोजकजी मोबाइल से बारबार स्वामीजी से संपर्क साध रहे थे और माइक पर कहते जा रहे थे, ‘‘थोड़ी देर में स्वामीजी हमारे बीच में होंगे, तब तक हम कार्यक्रम प्रारंभ करते हैं.’’

संयोजकजी ने माइक से घोषणा की कि बड़े बाबा के जमाने से रामचंद्रजी इस आश्रम से जुड़े हैं. वे संक्षेप में अपनी बात कहें, क्योंकि थोड़ी ही देर में स्वामी प्रज्ञानंदजी हमारे बीच में होंगे…अभी और भी श्रोताओं को बोलना है.

अचानक दौड़ती कारें आश्रम के प्रांगण में आ कर रुकीं तो आयोजक लोग हाथ में मालाएं ले कर तेजी से उस ओर दौड़े.

‘‘विलंब के लिए क्षमा चाहता हूं,’’ स्वामीजी ने अपने दंड के साथ कार से नीचे उतरते हुए कहा.

उन के साथ आए लोग भी उन के पीछेपीछे चल दिए.

‘‘आइए, ठाकुरजी, यह भी अब अपना ही आश्रम है,’’ स्वामी प्रज्ञानंद बोले, ‘‘आप की भागवत की यहां बहुत चर्चा है. आप समय निकालें तो यहां भी भागवत कथा हो जाए.’’

आयोजक समिति के सदस्य स्वामीजी का संकेत पा चुके थे और उद्घोषक ने माइक पर भागवत कथा का महत्त्वपूर्ण समाचार दे दिया. जनजन तक पहुंचाने के लिए आह्वान भी कर दिया. श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से इस का स्वागत किया. कहा जाता है कि कलियुग में भागवत कथा के श्रवण मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं.

स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘आज गुरु- पूर्णिमा है. गुरु साक्षात शिव के अवतार होते हैं. गुरु का पूरा शरीर ब्रह्म का शरीर है.’’

भाषण के बाद भीड़ खड़ी हो गई. उद्घोषक गुरुपूजा के लिए पंक्ति बना कर आने को कह रहा था.

स्वामीजी ने परात में अपने पांव रखे तो बिसलरी के जल को लोटों में लिया गया, क्योंकि कुएं के पानी से स्वामीजी के पांव में इन्फैक्शन होने का डर जो था. पांव धोए गए, चरणामृत अलग से जमा किया गया…फिर उस में पांव के जल को मिला दिया गया. अब चरणामृत को कार्यकर्ता चम्मच से सभी के दाएं हाथ में दे रहे थे और उस के लिए भी धक्का- मुक्की शुरू हो चुकी थी.

फिर स्वामीजी के पैर के नाखून पर रोली लगा कर पूजा करते हुए दक्षिणा देने का कार्यक्रम शुरू हुआ. उद्घोषक कह रहा था, ‘‘स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, पर सपने में गुरु महाराज ने कहा है कि दक्षिणा जो दी जाती है, उस का दसगुना भक्तों को वापस हो जाता है, यह परंपरा है. आप स्वेच्छा से जो भी देना चाहें, दें, गुरुकृपा से आप को इस का कई गुना मिलता रहेगा, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु… गुरु साक्षात परब्रह्म…’’ माइक पर मंत्रों का पाठ भी हो रहा था.

बड़ी मुश्किल से कामता प्रसाद को स्वामीजी से मिलने का मौका मिला.

‘‘अरे, आप भी यहां आए हैं?’’ स्वामीजी बोले, ‘‘हां, राधाजी तो दिखी थीं, वे तो पूजा के लिए आ गई थीं पर आप कहां रह गए?’’

‘‘जी, मैं भी यहीं था.’’

‘‘अच्छाअच्छा, ध्यान नहीं गया. रात को आप लोग कमरे में आ जाना, वहां रामगोविंद हैं, वे सब व्यवस्था कर देंगे.’’

संध्या को ही दोनों तैयार हो गए थे. निर्देशानुसार राधा ने गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी और हरे रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं. राधा की शादी हुए 7 साल हो गए थे, पर पुत्र सुख नहीं मिला था. पड़ोसिन नंदा ने कहा था कि पूजा होती है, करवा ले. सुना है प्रज्ञानंद से पूजा करवाने पर बहुतों को पुत्र लाभ मिला है. कोई बाधा हो तो हट जाती है. तभी कामता प्रसाद ने स्वामीजी से संपर्क किया था और उन्होंने आज का दिन बताया था.

कामता प्रसाद जब वहां पहुंचे तो उन्हें कमरे के भीतर ले जाया गया. रामगोविंद ने सारी पूजा की सामग्री रख दी. सामने तसवीर के पास एक कद्दू रखा था. सामने की चौकी पर हलदी, रोली, चावल की अनेक आकृतियां बनी हुई थीं.

‘‘आप पहले आएंगे, पूजा होगी, ध्यान होगा, फिर भाभीजी आएंगी, बाद में उन की अलग से भी पूजा होगी,’’ रामगोविंद ने बताया.

कामता प्रसाद तो अपनी पूजा कर के बाहर के कमरे में आ गए. तब भीतर से आवाज आई और राधा को बुलाया गया. राधा भीतर गई. उस ने स्वामी प्रज्ञानंद को प्रणाम किया. कमरे में बाबा ही अकेले थे, वे आंखें बंद किए संस्कृत में श्लोक पढ़ते जा रहे थे, राधा सामने बैठी थी. अचानक प्रज्ञानंद की आंखें खुलीं, दृष्टि सीधी राधा के वक्षस्थल से होती हुई उस की पूरी देह पर फैल गई.

राधा सिहर उठी. उसे लगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा है. स्वामीजी ने फिर आंखें बंद कर लीं, फिर पंचपात्र में से छोटी तांबे की चम्मच से जल निकाल कर स्वामीजी ने राधा की दाईं हथेली पर रखा और बोले, ‘‘आचमन कर लो.’’

‘नहीं, नहीं, राधा, नहीं,’ जैसे उस के भीतर से कोई बोला हो.

राधा ने उंगलियों को थोड़ा सा खोल दिया और जल बह गया. उस ने आचमन के लिए अंजलि को होंठों से लगाया फिर हाथ नीचे रख लिया.

‘‘एक बार और,’’ मंत्र पढ़ते हुए स्वामीजी ने जल उस की हथेली पर रखा. इस बार आंखें उस के शरीर पर एक्सरे की किरण की तरह बढ़ रही थीं.

उस ने पहले की तरह वहीं जल गिराया और उठना चाहा.

‘‘आप कहां चलीं. पूजा को बीच में छोड़ते नहीं,’’ स्वामी प्रज्ञानंद ने उठ कर उसे पकड़ना चाहा. उन का हाथ राधा की कमर से होते हुए उस की छातियों पर आ चुका था.

‘‘हट, पापी,’’ कहते हुए राधा का हाथ तेजी से प्रज्ञानंद के गाल पर पड़ा और वह चीखी.

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ,’’ बोलता रामगोविंद भीतर की ओर दौड़ा. वह किवाड़ बंद करना चाह रहा था लेकिन तब तक राधा किवाड़ को धक्का देती हुई पास के कमरे में पहुंच गई थी. उस की साड़ी खुल गई थी. उस ने उसे तेजी से ठीक किया और बाहर की ओर दौड़ पड़ी.

‘‘कहां हैं ये, कहां हैं ये…’’ राधा चीख रही थी.

‘‘साहब तो अपने कमरे की तरफ गए हैं,’’ किसी ने बताया.

राधा तेजी से कामता के कमरे की तरफ दौड़ी. उस के पीछे और भी लोग जो आश्रम में थे, आ गए थे.

कमरे में कामता प्रसाद गहरी नींद में सो रहे थे. अचेत थे.

‘‘रात को जागरण हुआ था, दिनभर कार्यक्रम में थे, थक गए हैं, ऐसी गहरी नींद तो भाग्यवानों को ही आती है,’’ पीछे से आवाज आई.

‘‘जब जग जाएं तब पूजा कर आना, आश्रम का दरवाजा तो हमेशा खुला रहता है,’’ एक सलाह आई.

राधा ने जलती आंखों से उसे देखा और बोली, ‘‘अपनी सलाह अपने पास रख, यह स्वर्ग तुझे ही मुबारक हो,’’ फिर उस ने सामने पानी से भरी बालटी उठाई और कामता के माथे पर उड़ेल दी. पानी की तेज धार से कामता की नींद खुल गई.

‘‘क्या हुआ?’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं, तुम इतनी गहरी नींद में सो कैसे गए?’’ राधा बोली.

‘‘स्वामीजी ने जो जल दिया था उस का आचमन करते ही मुझे झपकी आनी शुरू हो गई थी, मुझ से वहां बैठा ही नहीं गया, इसलिए उठ कर चला आया. तुम पूजा कर आईं?’’ कामता ने पूछा.

‘‘हां, अच्छी तरह पूजा हो गई है, तुम इस नरक से जल्दी बाहर चलो.’’

कामता प्रसाद कुछ समझ नहीं पा रहे थे. राधा ने तेजी से अपनी अटैची उठाई और गीले कपड़ों में ही पति का हाथ पकड़े आश्रम के अहाते से बाहर निकल गई.

उधर स्वामी प्रज्ञानंद अब बाहर तख्त पर आ कर बैठ गए थे. महिलाएं उन के पांव दबाने के लिए प्रतीक्षारत थीं.

‘‘गुरुपूजा पर गुरु का पाद सेवन का पुण्य वर्षों की साधना से मिलता है,’’ रामगोविंद सब को समझा रहा था.

बाबा की निगाहें अपनी गाड़ी की ओर बढ़ती राधा पर टंगी हुई थीं. उन का दायां हाथ बारबार अपने गाल पर चला जाता जहां अब हलकी सूजन आ गई थी.

राजकुमार लाओगी न

‘‘चेष्टा, पापा के लिए चाय बना देना. हो सके तो सैंडविच भी बना देना? मैं जा रही हूं, मुझे योगा के लिए देर हो रही है,’’ कहती हुई योगिताजी स्कूटी स्टार्ट कर चली गईं. उन्होंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, न उन्होंने चेष्टा के उत्तर की प्रतीक्षा की.

योगिताजी मध्यम- वर्गीय सांवले रंग की महिला हैं. पति योगेश बैंक में क्लर्क हैं, अच्छीखासी तनख्वाह है. उन का एक बेटा है. उस का नाम युग है. घर में किसी चीज की कमी नहीं है.

जैसा कि  सामान्य परिवारों में होता है घर पर योगिताजी का राज था. योगेशजी उन्हीं के इशारों पर नाचने वाले थे. बेटा युग भी बैंक में अधिकारी हो गया था. बेटी चेष्टा एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका बन गई थी.

कालेज के दिनों में ही युग की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाली उत्तरा से हो गई. उत्तरा साधारण परिवार से थी. उस के पिता बैंक में चपरासी थे, इसलिए जीवन स्तर सामान्य था. उत्तरा की मां छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही कुछ सिलाई का काम कर के पैसे कमा लेती थीं.

उत्तरा के मातापिता ईमानदार और चरित्रवान थे इसलिए वह भी गुणवती थी. पढ़ने में काफी तेज थी. उत्तरा का व्यक्तित्व आकर्षक था. दुबलीपतली, सांवली उत्तरा सदा हंसती रहती थी. वह गाती भी अच्छा थी. कालेज के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उद्घोषणा का कार्य वही करती थी. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों में गजब का आकर्षण था. उस की हंसी में युग ऐसा बंधा कि उस की मां के तमाम विरोध के आगे उस के पैर नहीं डगमगाए और वह उत्तरा के प्यार में मांबाप को भी छोड़ने को तैयार हो गया.

योगिताजी को मजबूरी में युग को शादी की इजाजत देनी पड़ी. कोर्टमैरिज कर चुके युग और उत्तरा के विवाह को समाज की स्वीकृति दिलाने के लिए योगिताजी ने एक भव्य पार्टी का आयोजन किया. समाज को दिखाने के लिए बेटे की जिद के आगे योगिताजी झुक तो गईं लेकिन दिल में बड़ी गांठ थी कि उत्तरा एक चपरासी की बेटी है.

दहेज में मिलने वाली नोटों की भारी गड्डियां और ट्रक भरे सामान के अरमान मन में ही रह गए. अपनी कुंठा के कारण वे उत्तरा को तरहतरह से सतातीं. उस के मातापिता के बारे में उलटासीधा बोलती रहतीं. उत्तरा के हर काम में मीनमेख निकालना उन का नित्य का काम था.

उत्तरा भी बैंक में नौकरी करती थी. सुबह पापा की चायब्रेड, फिर दोबारा मम्मी की चाय, फिर युग और चेष्टा को नाश्ता देने के बाद वह सब का लंच बना कर अलगअलग पैक करती. मम्मी का खाना डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद ही वह घर से बाहर निकलती थी. इस भागदौड़ में उसे अपने मुंह में अन्न का दाना भी डालने को समय न मिलता था.

यद्यपि युग उस से अकसर कहता कि क्यों तुम इतना काम करती हो, लेकिन वह हमेशा हंस कर कहती, ‘‘काम ही कितना है, काम करने से मैं फिट रहती हूं.’’

योगिताजी के अलावा सभी लोग उत्तरा से बहुत खुश थे. योगेशजी तो उत्तरा की तारीफ करते नहीं अघाते. सभी से कहते, ‘‘बहू हो तो उत्तरा जैसी. मेरे बेटे युग ने बहुत अच्छी लड़की चुनी है. हमारे तो भाग्य ही जग गए जो उत्तरा जैसी लड़की हमारे घर आई है.’’

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चेष्टा भी अपनी भाभी से घुलमिल गई थी. वह और उत्तरा अकसर खुसरफुसर करती रहती थीं. दोनों एकदूसरे से घंटों बातें करती रहतीं. सुबह उत्तरा को अकेले काम करते देख चेष्टा उस की मदद करने पहुंच जाती. उत्तरा को बहुत अच्छा लगता, ननदभावज दोनों मिल कर सब काम जल्दी निबटा लेतीं. उत्तरा बैंक चली जाती और चेष्टा स्कूल.

योगिताजी बेटी को बहू के साथ हंसहंस कर काम करते देखतीं तो कुढ़ कर रह जातीं…फौरन चेष्टा को आवाज दे कर बुला लेतीं. यही नहीं, बेटी को तरहतरह से भाभी के प्रति भड़कातीं और उलटीसीधी पट्टी पढ़ातीं.

उत्तरा की दृष्टि से कुछ छिपा नहीं था लेकिन वह सोचती थी कि कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जाएगा. कभी तो मम्मीजी के मन में मेरे प्रति प्यार का पौधा पनपेगा. वह यथासंभव अच्छी तरह कार्य करने का प्रयास करती, लेकिन योगिताजी को खुश करना बहुत कठिन था. रोज किसी न किसी बात पर उन का नाराज होना आवश्यक था. कभी सब्जी में मसाला तेज तो कभी रोटी कड़ी, कभी दाल में घी ज्यादा तो कभी चाय ठंडी है, दूसरी ला आदि.

युग इन बातों से अनजान नहीं था. वह मां के हर अत्याचार को नित्य देखता रहता था. पर उत्तरा की जिद थी कि मैं मम्मीजी का प्यार पाने में एक न एक दिन अवश्य सफल हो जाऊंगी. और वे उसे अपना लेंगी.

योगिताजी को घर के कामों से कोई मतलब नहीं रह गया था, क्योंकि उत्तरा ने पूरे काम को संभाल लिया था, इसलिए वह कई सभासंगठनों से जुड़ कर समाजसेवा के नाम पर यहांवहां घूमती रहती थीं.

योगिताजी चेष्टा की शादी को ले कर परेशान रहती थीं, लेकिन उन के ख्वाब बहुत ऊंचे थे. कोई भी लड़का उन्हें अपने स्तर का नहीं लगता था. उन्होंने कई जगह शादी के लिए प्रयास किए लेकिन कहीं चेष्टा का सांवला रंग, कहीं दहेज का मामला…बात नहीं बन पाई.

योगिताजी के ऊंचेऊंचे सपने चेष्टा की शादी में आड़े आ रहे थे. धीरेधीरे चेष्टा के मन में कुंठा जन्म लेने लगी. उत्तरा और युग को हंसते देख कर उसे ईर्ष्या होने लगी थी. चेष्टा अकसर झुंझला उठती. उस के मन में भी अपनी शादी की इच्छा उठती थी. उस को भी सजनेसंवरने की इच्छा होती थी. चेष्टा के तैयार होते ही योगिताजी की आंखें टेढ़ी होने लगतीं. कहतीं, ‘‘शादी के बाद सजना. कुंआरी लड़कियों का सजना- धजना ठीक नहीं.’’

चेष्टा यह सुन कर क्रोध से उबल पड़ती लेकिन कुछ बोल न पाती. योगिताजी के कड़े अनुशासन की जंजीरों में जकड़ी रहती. योगिताजी उस के पलपल का हिसाब रखतीं. पूछतीं, ‘‘स्कूल से आने में देर क्यों हुई? कहां गई थी और किस से मिली थी?’’

योगिताजी के  मन में हर क्षण संशय का कांटा चुभता रहता था. उस कुंठा को जाहिर करते हुए वे उत्तरा को अनापशनाप बकने लग जाती थीं. उन की चीख- चिल्लाहट से घर गुलजार रहता. वे हर क्षण उत्तरा पर यही लांछन लगातीं कि यदि तू अपने साथ दहेज लाती तो में वही दहेज दे कर बेटी के लिए अच्छा सा घरवर ढूंढ़ सकती थी.

योगिताजी के 2 चेहरे थे. घर में उन का व्यक्तित्व अलग था लेकिन समाज में वह अत्यंत मृदुभाषी थीं. सब के सुखदुख में खड़ी होती थीं. यदि कोई बेटीबहू के बारे में पूछता था तो बिलकुल चुप हो जाती थीं. इसलिए उन की पारिवारिक स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता था. योगिताजी के बारे में समाज में लोगों की अलगअलग धारणा थी. कोई उन्हें सहृदय तो कोई घाघ कहता.

एक दिन योगिताजी शाम को अपने चिरपरिचित अंदाज में उत्तरा पर नाराज हो रही थीं, उसे चपरासी की बेटी कह कर अपमानित कर रही थीं तभी युग क्रोधित हो उठा, ‘‘चलो उत्तरा, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता.’’

घर में कोहराम मच गया. चेष्टा रोए जा रही थी. योगेशजी बेटे को समझाने का प्रयास कर रहे थे. परंतु युग रोजरोज की चिकचिक से तंग हो चुका था. उस ने किसी की न सुनी. दोचार कपड़े अटैची में डाले और उत्तरा का हाथ पकड़ कर घर से निकल गया.

योगिताजी के तो हाथों के तोते उड़ गए. वे स्तब्ध रह गईं…कुछ कहनेसुनने को बचा ही नहीं था. युग उत्तरा को ले कर जा चुका था. योगेशजी पत्नी की ओर देख कर बोले, ‘‘अच्छा हुआ, उन्हें इस नरक से छुटकारा तो मिला.’’

योगिताजी अनर्गल प्रलाप करती रहीं. सब रोतेधोते सो गए.

सुबह हुई. योगेशजी ने खुद चाय बनाई, बेटी और पत्नी को देने के बाद घर से निकल गए. चेष्टा ने जैसेतैसे अपना लंच बाक्स बंद किया और दौड़तीभागती स्कूल पहुंची.

घर में सन्नाटा पसर गया था. आपस में सभी एकदूसरे से मुंह चुराते. चेष्टा सुबहशाम रसोई में लगी रहती. घर के कामों का मोर्चा उस ने संभाल लिया था, इसलिए योगिताजी की दिनचर्या में कोई खास असर नहीं पड़ा था. वे वैसे भी सामाजिक कार्यों में ज्यादा व्यस्त रहती थीं. घर की परवा ही उन्हें कहां थी.

योगेशजी से जब भी योगिताजी की बातचीत होती चेष्टा की शादी के बारे में बहस हो जाती. उन का मापदंड था कि मेरी एक ही बेटी है, इसलिए दामाद इंजीनियर, डाक्टर या सी.ए. हो. उस का बड़ा सा घर हो. लड़का राजकुमार सा सुंदर हो, परिवार छोटा हो आदि, पर तमाम शर्तें पूरी होती नहीं दिखती थीं.

चेष्टा की उम्र 30 से ऊपर हो चुकी थी. उस का सांवला रंग अब काला पड़ता जा रहा था. तनाव के कारण चेहरे पर अजीब सा रूखापन झलकने लगा था. चिड़चिड़ेपन के कारण उम्र भी ज्यादा दिखने लगी थी.

उत्तरा के जाने के बाद चेष्टा गुमसुम हो गई थी. घर में उस से कोई बात करने वाला नहीं था. कभीकभी टेलीविजन देखती थी लेकिन मन ही मन मां के प्रति क्रोध की आग में झुलसती रहती थी. तभी उस को चैतन्य मिला जिस की स्कूल के पास ही एक किताबकापी की दुकान थी. आतेजाते चेष्टा और उस की आंखें चार होती थीं. चेष्टा के कदम अनायास ही वहां थम से जाते. कभी वहां वह मोबाइल रिचार्ज करवाती तो कभी पेन खरीदती. उस की और चैतन्य की दोस्ती बढ़ने लगी. आंखोंआंखों में प्यार पनपने लगा. वह मन ही मन चैतन्य के लिए सपने बुनने लगी थी. दोनों चुपकेचुपके मिलने लगे. कभीकभी शाम भी साथ ही गुजारते. चेष्टा चैतन्य के प्यार में खो गई. यद्यपि चैतन्य भी चेष्टा को प्यार करता था परंतु उस में इतनी हिम्मत न थी कि वह अपने प्यार का इजहार कर सके.

चेष्टा मां से कुछ बताती इस के पहले ही योगिताजी को चेष्टा और चैतन्य के बीच प्यार होने का समाचार नमकमिर्च के साथ मिल गया. योगिताजी तिलमिला उठीं. अपनी बहू उत्तरा के कारण पहले ही उन की बहुत हेठी हो चुकी थी, अब बेटी भी एक छोटे दुकानदार के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. यह सुनते ही वे अपना आपा खो बैठीं और चेष्टा पर लातघूंसों की बौछार कर दी.

क्रोध से तड़प कर चेष्टा बोली, ‘‘आप कुछ भी करो, मैं तो चैतन्य से मिलूंगी और जो मेरा मन होगा वही करूंगी.’’

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योगिताजी ने मामला बिगड़ता देख कूटनीति से काम लिया. वे बेटी से प्यार से बोलीं, ‘‘मैं तो तेरे लिए राजकुमार ढूंढ़ रही थी. ठीक है, तुझे वह पसंद है तो मैं उस से मिलूंगी.’’

चेष्टा मां के बदले रुख से पहले तो हैरान हुई फिर मन ही मन अपनी जीत पर खुश हो गई. चेष्टा योगिताजी के छल को नहीं समझ पाई.

अगले दिन योगिताजी चैतन्य के पास गईं और उस को धमकी दी, ‘‘यदि तुम ने मेरी बेटी चेष्टा की ओर दोबारा देखा तो तुम्हारी व तुम्हारे परिवार की जो दशा होगी, उस के बारे में तुम कभी सोच भी नहीं सकते.’’

इस धमकी से सीधासादा चैतन्य डर गया. वह चेष्टा से नजरें चुराने लगा. चेष्टा के बारबार पूछने पर भी उस ने कुछ नहीं बताया बल्कि यह बोला कि तुम्हारी जैसी लड़कियों का क्या ठिकाना, आज मुझ में रुचि है कल किसी और में होगी.

चेष्टा समझ नहीं पाई कि आखिर चैतन्य को क्या हो गया. वह क्यों बदल गया है. चैतन्य ने तो सीधा उस के चरित्र पर ही लांछन लगाया है. वह टूट गई. घंटों रोती रही. अकेलेपन के कारण विक्षिप्त सी रहने लगी. इस मानसिक आघात से वह उबर नहीं पा रही थी. मन ही मन अकेले प्रलाप करती रहती थी. चैतन्य से सामना न हो, इस कारण स्कूल जाना भी बंद कर दिया.

योगिताजी बेटी की दशा देख कर चिंतित हुईं. उस को समझाती हुई बोलीं कि मैं अपनी बेटी के लिए राजकुमार लाऊंगी. फिर उसे डाक्टर के पास ले गईं. डाक्टर बोला, ‘‘आप की लड़की डिप्रेशन की मरीज है,’’ डाक्टर ने कुछ दवाएं दीं और कहा, ‘‘मैडमजी, इस का खास ध्यान रखें. अकेला न छोड़ें. हो सके तो विवाह कर दें.’’

थोड़े दिनों तक तो योगिताजी बेटी के खानेपीने का ध्यान रखती रहीं. चेष्टा जैसे ही थोड़ी ठीक हुई योगिताजी अपनी दुनिया में मस्त हो गईं. जीवन से निराश चेष्टा मन ही मन घुटती रही. एक दिन उस पर डिप्रेशन का दौरा पड़ा, उस ने अपने कमरे का सब सामान तोड़ डाला. योगिताजी ने कमरे की दशा देखी तो आव देखा न ताव, चेष्टा को पकड़ कर थप्पड़ जड़ती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ…चैतन्य ने मना किया है तो क्या हुआ, मैं तुम्हारे लिए राजकुमार जैसा वर लाऊंगी.’’

यह सुनते ही चेष्टा समझ गई कि यह सब इन्हीं का कियाधरा है. कुंठा, तनाव, क्रोध और प्रतिशोध में जलती हुई चेष्टा में जाने कहां की ताकत आ गई. योगिताजी को तो अनुमान ही न था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है. चेष्टा ने योगिताजी की गरदन पकड़ ली और उसे दबाती हुई बोली, ‘‘अच्छा…आप ने ही चैतन्य को भड़काया है…’’

उसे खुद नहीं पता था कि वह क्या कर रही है. उस के क्रोध ने अनहोनी कर दी. योगिताजी की आंखें आकाश में टंग गईं. चेष्टा विक्षिप्त हो कर चिल्लाती जा रही थी, ‘‘मेरे लिए राजकुमार लाओगी न…’’

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घरौंदा

विमी के यहां से लौटते ही अचला ने अपने 2 कमरों के फ्लैट का हर कोने से निरीक्षण कर डाला था. विमी का फ्लैट भी तो इतना ही बड़ा है पर कितना खूबसूरत और करीने का लगता है. छोटी सी डाइनिंग टेबल, बेडरूम में सजा हुआ सनमाइका का डबलबेड, खिड़कियों पर झूलते भारी परदे कितने अच्छे लगते हैं. उसे भी अपने घर में कुछ तबदीली तो करनी ही होगी.

फर्नीचर के नाम पर घर में पड़ी मामूली कुरसियां और खाने के लिए बरामदे में रखी तिपाई को देखते हुए उस ने निश्चय कर ही डाला था. चाहे अशोक कुछ भी कहे पर घर की आवश्यक वस्तुएं वह खुद खरीदेगी. लेकिन कैसे? यहीं पर उस के सारे मनसूबे टूट जाते थे.

तनख्वाह कटपिट कर मिली 1 हजार रुपए. उस में से 400 रुपए फ्लैट का किराया, दूध, राशन. सबकुछ इतना नपातुला कि 10-20 रुपए बचाना भी मुश्किल. क्या छोड़े, क्या जोड़े? अचला का सिर भारी हो चला था.

कालेज में गृह विज्ञान उस का प्रिय विषय था. गृहसज्जा में तो उस की विशेष रुचि थी. तब कितनी कल्पनाएं थीं उस के मन में. जब अपना एक घर होगा, तब वह उसे हर कोने से निखारेगी. पर अब…

उस दिन उस ने सजावट के लिए 2 मूर्तियां लेनी चाही थीं, पर कीमत सुनते ही हैरान रह गई, 500 रुपए.

अशोक धीमे से मुसकरा कर बोला था, ‘‘चलो, आगे बढ़ते हैं, यह तो महानगर है. यहां पानी के गिलास पर भी पैसे खर्च होते हैं, समझीं?’’

तब वह कुछ लजा गई थी. हंसी खुद पर भी आई थी.

उसे याद है, शादी से पहले यह सुन कर कि पति एक बड़ी फर्म में है, हजार रुपए तनख्वाह है, बढि़या फ्लैट है. सबकुछ मन को कितना गुदगुदा गया था. महानगर की वैभवशाली जिंदगी के स्वप्न आंखों में झिलमिला गए थे.

‘तू बड़ी भाग्यवान है, अची,’ सखियों ने छेड़ा था और वह मधुर कल्पनाओं में डूबती चली गई थी.

शादी में जो कुछ भारी सामान मिला था, उसे अशोक ने जिद कर के घर पर ही रखवा दिया था. उस ने बड़े शालीन भाव से कहा था, ‘‘इतना सब कहां ढोते रहेंगे, यहीं रहने दो. अंजु के विवाह में काम आ जाएगा. मां कहां तक खरीदेंगी. यही मदद सही.’’

सास की कृतज्ञ दृष्टि तब कुछ सजल हो आई थी. अचला को भी यही ठीक लगा था. वहां उसे कमी ही क्या है? सब नए सिरे से खरीद लेगी.

पर पति के घर आने के बाद उस के कोमल स्वप्न यथार्थ के कठोर धरातल से टकरा कर बिखरने लगे थे.

अशोक की व्यस्त दिनचर्या थी. सुबह 8 बजे निकलता तो शाम को 7 बजे ही घर लौटता. 2 कमरों में इधरउधर चहलकदमी करते हुए अचला को पूरा दिन बिताना पड़ता था. उस पूरे दिन में वह अनेक नईनई कल्पनाओं में डूबी रहती. इच्छाएं उमड़ पड़तीं. इस मामूली चारपाई के बदले यहां आधुनिक डिजाइन का डबलबेड हो, डनलप का गद्दा, ड्राइंगरूम में एक छोटा सा दीवान, जिस पर मखमली कुशन हो. रसोईघर के लिए गैस का चूल्हा तो अति आवश्यक है, स्टोव कितना असुविधा- जनक है. फिर वह बजट भी जोड़ने लगती थी, ‘कम से कम 5 हजार तो चाहिए ही इन सब के लिए, कहां से आएंगे?’

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अपनी इन इच्छाओं की पूर्ति के लिए उस ने मन ही मन बहुत कुछ सोचा. फिर एक दिन अशोक से बोली, ‘‘सुनो, दिन भर घर पर बैठीबैठी बोर होती रहती हूं. कहीं नौकरी कर लूं तो कैसा रहे? दोचार महीने में ही हम अपना फ्लैट सारी सुखसुविधाओं से सज्जित कर लेंगे.’’

पर अशोक उसी प्रकार अविचलित भाव से अखबार पर नजर गड़ाए रहा. बोला कुछ नहीं.

‘‘तुम ने सुना नहीं क्या? मैं क्या दीवार से बोल रही हूं?’’ अचला का स्वर तिक्त हो गया था.

‘‘सब सुन लिया. पर क्या नौकरी मिलनी इतनी आसान है? 300-400 रुपए की मिल भी गई तो 100-50 तो आनेजाने में ही खर्च हो जाएंगे. फिर जब पस्त हो कर शाम को घर लौटोगी तो यह ताजे फूल सा खिला चेहरा चार दिन में ही कुम्हलाया नजर आने लगेगा.’’

अशोक ने अखबार हटा कर एक भाषण झाड़ डाला.

सुन कर अचला का चेहरा बुझ गया. वह चुपचाप सब्जी काटती रही. अशोक ने ही उसे मनाने के खयाल से फिर कहा, ‘‘फिर ऐसी जरूरत भी क्या है तुम्हें नौकरी की? छोटी सी हमारी गृहस्थी, उस के लिए जीतोड़ मेहनत करने को मैं तो हूं ही. फिर कम से कम कुछ दिन तो सुखचैन से रहो. अभी इतना तो सुकून है मुझे कि 8-10 घंटे की मशक्कत के बाद घर लौटता हूं तो तुम सजीसंवरी इंतजार करती मिलती हो. तुम्हें देख कर सारी थकान मिट जाती है. क्या इतनी खुशी भी तुम अब छीन लेना चाहती हो?’’

?अशोक ने धीरे से अचला का हाथ थाम कर आगे फिर कहा, ‘‘बोलो, क्या झूठ कहा है मैं ने?’’

तब अचला को लगा कि उस के मन में कुछ पिघलने लगा है. वह अपना सिर अशोक के कंधों पर रख कर मधुर स्वर में बोली, ‘‘पर तुम यह क्यों नहीं सोचते कि मैं दिन भर कितनी बोर हो जाती हूं? 6 दिन तुम अपने काम में व्यस्त रहते हो, रविवार को कह देते हो कि आज तो आराम का दिन है. मेरा क्या जी नहीं होता कहीं घूमनेफिरने का?’’

‘‘अच्छा, तो वादा रहा, इस बार तुम्हें इतना घुमाऊंगा कि तुम घूमघूम कर थक जाओ. बस, अब तो खुश?’’

अचला हंस पड़ी. उस के कदम तेजी से रसोईघर की तरफ मुड़ गए. बातचीत में वह भूल गई थी कि स्टोव पर दूध रखा है.

‘ठीक है, न सही नौकरी. जब अशोक को बोनस के रुपए मिलेंगे तब वह एक ही झोंक में सब खरीद लेगी,’ यह सोच कर उस ने अपने मन को समझा लिया था.

तभी अशोक ने उसे आश्चर्य में डालते हुए कहा, ‘‘जानती हो, इस बार हम शादी की पहली वर्षगांठ कहां मनाएंगे?’’

‘‘कहां?’’ उस ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘मसूरी में,’’ जवाब देते हुए अशोक ने कहा.

‘‘क्या सच कह रहे हो?’’ अचला ने कौतूहल भरे स्वर में पूछा.

‘‘और क्या झूठ कह रहा हूं? मुझे अब तक याद है कि हनीमून के लिए जब हम मसूरी नहीं जा पाए थे तो तुम्हारा मन उखड़ गया था. यद्यपि तुम ने मुंह से कुछ कहा नहीं था, तो भी मैं ने समझ लिया था. पर अब हम शादी के उन दिनों की याद फिर से ताजा करेंगे.’’

कह कर अशोक शरारत से मुसकरा दिया. अचला नईनवेली वधू की तरह लाज की लालिमा में डूब गई.

‘‘पर खर्चा?’’ वह कुछ क्षणों बाद बोली.

‘‘बस, शर्त यही है कि तुम खर्चे की बात नहीं करोगी. यह खर्चा, वह खर्चा… साल भर यही सब सुनतेसुनते मैं तंग आ गया हूं. अब कुछ क्षण तो ऐसे आएं जब हम रुपएपैसों की चिंता न कर बस एकदूसरे को देखें, जिंदगी के अन्य पहलुओं पर विचार करें.’’

‘‘ठीक है, पर तुम तनख्वाह के रुपए मत…’’

‘‘हां, बाबा, सारी तनख्वाह तुम्हें मिल जाएगी,’’ अशोक ने दोटूक निर्णय दिया.

अचला का मन एकदम हलका हो गया. अब इस बंधीबंधाई जिंदगी में बदलाव आएगा. बर्फ…पहाड़…एकदूसरे की बांहों में बांहें डाले वे जिंदगी की सारी परेशानियों से दूर कहीं अनोखी दुनिया में खो जाएंगे. स्वप्न फिर सजने लगे थे.

रेलगाड़ी का आरक्षण अशोक ने पहले से ही करा लिया था. सफर सुखद रहा. अचला को लगा, जैसे शादी अभी हुई है. पहली बार वे लोग हनीमून के लिए जा रहे हैं. रास्ते के मनोरम दृश्य, ऊंचे पहाड़, झरने…सबकुछ कितना रोमांचक था.

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उन्होंने देहरादून से टैक्सी ले ली थी. होटल में कमरा पहले से ही बुक था. इसलिए उन्हें मालूम ही नहीं हुआ कि वे इतना लंबा सफर कर के आए हैं. कमरे में पहुंचते ही अचला ने खिड़की के शीशों से झांका. घाटी में सिमटा शहर, नीलीश्वेत पहाडि़यां, घने वृक्ष बड़े सुहावने दिख रहे थे. तब तक बैरा चाय की ट्रे रख गया.

‘‘खाना खा लो, फिर घूमने चलेंगे,’’ अशोक ने कहा और चाय खत्म कर के वह भी उस पहाड़ी सौंदर्य को मुग्ध दृष्टि से देखने लगा.

खाना भी कितना स्वादिष्ठ था. अचला हर व्यंजन की जी खोल कर तारीफ करती रही. फिर वे दोनों ऊंचीनीची पहाडि़यां चढ़ते, हंसी और ठिठोली के बीच एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते, कलकल करते झरने और सुखद रमणीय दृश्य देखते हुए काफी दूर चले गए. फिर थोड़ी देर दम लेने के लिए एक ऊंची चट्टान पर कुछ क्षणों के लिए बैठ गए.

‘‘सच, मैं बहुत खुश हूं, बहुत…’’

‘‘हूं,’’ अशोक उस की बिखरी लटों को संवारता रहा.

‘‘पर, एक बात तो तुम ने बताई ही नहीं,’’ अचला को कुछ याद आया.

‘‘क्या?’’ अशोक ने पूछा.

‘‘खर्चने को इतना पैसा कहां से आया? होटल भी काफी महंगा लगता है. किराया, खानापीना और घूमना, यह सब…’’

‘‘तुम्हें पसंद तो आया. खर्च की चिंता क्यों है?’’

‘‘बताओ न. क्यों छिपा रहे हो?’’

‘‘तुम्हें मैं ने बताया नहीं था. असल में बोनस के रुपए मिले थे.’’

‘‘क्या? बोनस के रुपए?’’ अचला बुरी तरह चौंक गई, ‘‘पर तुम तो कह रहे थे…’’ कहतेकहते उस का स्वर लड़खड़ा गया.

‘‘हां, 2 महीने पहले ही मिल गए थे. पर तुम इतना क्यों सोच रही हो? आराम से घूमोफिरो. बोनस के रुपए तो होते ही इसलिए हैं.’’

अचला चुप थी. उस के कदम तो अशोक के साथ चल रहे थे, पर मन कहीं दूर, बहुत दूर उड़ गया था. उस की आंखों में घूम रहा था वही 2 कमरों का फ्लैट. उस में पड़ी साधारण सी कुरसियां, मामूली फर्नीचर. ओफ, कितना सोचा था उस ने…बोनस के रुपए आएंगे तो वह घर की साजसज्जा का सब सामान खरीदेगी. दोढाई हजार में तो आसानी से पूरा घर सज्जित हो सकता था. पर अशोक ने सब यों ही उड़ा डाला. उसे खीज आने लगी अशोक पर.

अशोक ने कई बार टोका, ‘‘क्या सोच रही हो? यह देखो, बर्फ से ढकी पहाडि़यां. यही तो यहां की खासीयत है. जानती हो, इसीलिए मसूरी को पहाड़ों की रानी कहा जाता है.’’

पर अचला कुछ भी नहीं सुन पा रही थी. वह विचारों में डूबी थी, ‘अशोक ने उस के साथ यह धोखा क्यों किया? यदि वहीं कह देता कि बोनस के रुपयों से घूमने जा रहे हैं तो वह वहीं मना कर देती.’ उस का मन उखड़ता जा रहा था.

रात को भी वही खाना था, दिन में जिस की उस ने जी खोल कर तारीफ की थी. पर अब सब एकदम बेस्वाद लग रहा था. वह सोचने लगी, ‘बेमतलब कितना खर्च कर दिया. 100 रुपए रोज का कमरा, 40 रुपए में एक समय का खाना. इस से अच्छा तो वह घर पर ही बना लेती है. इस में है क्या. ढंग के मसाले तक तो सब्जी में पड़े नहीं हैं.’ उसे अब हर चीज में नुक्स नजर आने लगा था.

‘‘देखो, अब खर्च तो हो ही गया, क्यों इतना सोचती हो? रुपए और कमा लेंगे. अब जब घूमने निकले हैं तो पूरा आनंद लो.’’

रात देर तक अशोक उसे मनाता रहा था. पर वह मुंह फेरे लेटी रही. मन उखड़ गया था. उस का बस चलता तो उसी क्षण उड़ कर वापस चली जाती.

गुदगुदे बिस्तर पर पासपास लेटे हुए भी वे एकदूसरे से कितनी दूर थे. क्षण भर में ही सारा माहौल बदल गया. सुबह भी अशोक ने उसे मनाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘चलो, घूम आएं. तुम्हारी तबीयत बहल जाएगी.’’

‘‘कह दिया न, मुझे अब यहां नहीं रहना है. तुम जो भी रुपए वापस मिल सकें ले लो और चलो.’’

‘‘क्या बेवकूफों की तरह बातें कर रही हो. कमरा पहले से ही बुक हो गया है. किराया अग्रिम दिया जा चुका है. अब बहुत किफायत होगी भी तो खानेपीने की होगी. क्यों सारा मूड चौपट करने पर तुली हो?’’ अशोक के सब्र का बांध टूटने लगा था.

पर अचला चाह कर भी अब सहज नहीं हो पा रही थी. वे पहाडि़यां, बर्फ, झरने, जिन्हें देखते ही वह उमंगों से भर उठी थी, अब सब निरर्थक लग रहे थे. क्यों हो गया ऐसा? शायद उस के सोचने- समझने की दृष्टि ही बदल गई थी.

‘‘ठीक है, तुम यही चाहती हो तो रात की बस से लौट चलेंगे. अब आइंदा कभी तुम्हें यह कहने की जरूरत नहीं है कि घूमने चलो. सारा मूड बिगाड़ कर रख दिया.’’

दिन भर में अशोक भी चिड़चिड़ा गया. अचला उसी तरह अनमनी सी सामान समेटती रही.

‘‘अरे, इतनी जल्दी चल दिए आप लोग?’’ पास वाले कमरे के दंपती विस्मित हो कर बोले.

पर बिना कोई जवाब दिए, अपना हैंडबैग कंधे पर लटकाए अचला आगे बढ़ती चली गई. अटैची थामे अशोक उस के पीछे था. बस तैयार खड़ी मिली. अटैची सीट पर रख अशोक धम से बैठ गया.

देहरादून पहुंच कर वे दूसरी बस में बैठ गए. अशोक को काफी देर से खयाल आया कि गुस्से में उस ने शाम का खाना भी नहीं खाया था. उस ने घड़ी देखी, 1 बज रहा था. नींद में आंखें जल रही थीं. पर सोने की इच्छा नहीं थी, वह खिड़की पर बांह रख सिर हथेलियों पर टिकाए या तो सो गया था या सोने का बहाना कर रहा था.

आते समय कितना चाव था. पर अब पूरी रात क्षण भर के लिए भी वे सो नहीं पाए थे. दोनों ही सबकुछ भूल कर अपनेअपने खयालों में गमगीन थे. इस तरह वे परस्पर कटेकटे से घर पहुंचे.

सुबह अशोक का उतरा हुआ पीला चेहरा देख कर अचला सहम गई थी. शायद वह बहुत गुस्से में था. उसे अब अपने किए पर कुछ ग्लानि अनुभव हुई. उस समय तो गुस्से में उस की सोचनेसमझने की शक्ति ही लुप्त हो गई थी. पर अब लग रहा था कि जो कुछ हुआ, ठीक नहीं हुआ. कम से कम अशोक का ही खयाल रख कर उसे सहज हो जाना चाहिए था. कितने उत्साह से उस ने घूमने का प्रोग्राम बनाया था.

कमरे में घुसते ही थकान ने शरीर को तोड़ डाला था, कुरसी पर धम से गिर कर वह कुछ भूल गई थी. कुछ देर बाद ही खयाल आया कि अशोक ने रात भर से बात नहीं की है. कहीं बिना कुछ खाए आफिस न चला गया हो, फिर उठी ही थी कि देखा अशोक चाय बना लाया है.

‘‘उठो, चाय पियोगी तो थकान दूर हो जाएगी,’’ कहते हुए अशोक ने धीरे से उस की ठुड्डी उठाई.

अपने प्रति अशोक के इस विनम्र प्यार को देख वह सबकुछ भूल कर उस के कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी, ‘‘मुझे माफ कर दो. पता नहीं क्या हो जाता है.’’

‘‘अरे, यह क्या, गलती तो मेरी ही थी. यदि मुझे पता होता कि तुम्हें घर की चीजों का इतना अधिक शौक है तो घूमने का प्रोग्राम ही नहीं बनाते. अब ध्यान रखूंगा.’’

अशोक का स्नेह भरा स्वर उसे नहलाता चला गया. अपने 2 कमरों का घर आज उसे सारे सुखसाधनों से भरापूरा प्रतीत हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘सबकुछ तो है उस के पास. इतना अधिक प्यार करने वाला, उस के सारे गुनाहों को भुला कर इतने स्नेह से मनाने वाला विशाल हृदय का पति पा कर भी वह अब तक बेकार दुखी होती रही है.’

‘‘नहीं, अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. कुछ भी नहीं…’’ उस के होंठ बुदबुदा उठे. फिर अशोक के कंधे पर सिर रखे वह सुखद अनुभूति में खो गई.

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जूते की नोक

अपने स्वार्थ में अंधे हुए उदयनराजेश कदम थाने में चहलकदमी कर रहे थे. उनके चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं थे. इस की वजह यह थी कि पिछले 4-6 दिनों से मेट्रो सिटी के इस थाने में कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी. अलबत्ता छोटीमोटी चोरी, मारपीट, जेबतराशी वगैरह की घटनाएं जरूर हुई थीं. इंसपेक्टर राजेश कदम अपनी कुरसी पर बैठने ही वाले थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, राजनगर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं?’’ फोन करने वाले ने प्रश्न किया.

‘‘जी, मैं बोल रहा हूं.’’ राजेश कदम ने जवाब दिया.

‘‘सर, मैं सुनयन हाउसिंग सोसाइटी से सिक्योरिटी गार्ड बोल रहा हूं. यहां 8वें माले के फ्लैट नंबर 3 में रहने वाले सुरेशजी ने खुद को आग लगा ली है. आत्महत्या का मामला लगता है. आप तुरंत आ जाइए.’’ सूचना देने वाले ने कहा.

‘‘सुरेशजी की मौत हो गई है या अभी जिंदा हैं?’’ राजेश कदम ने पूछा.

‘‘सर, लगता तो ऐसा ही है.’’ फोन करने वाले ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, हम वहां पहुंच रहे हैं. ध्यान रखना कोई भी व्यक्ति अंदर ना जाए और न ही कोई किसी चीज को हाथ लगाए.’’ राजेश कदम ने निर्देश दिया.

दोपहर के करीब पौने 3 बज रहे थे. सुनयन हाउसिंग सोसायटी पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूरी पर नहीं थी. सूचना मिलने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही राजेश कदम अपनी पुलिस टीम के साथ सुनयन हाउसिंग सोसायटी पहुंच गए. फ्लैट के बाहर 15-20 लोग खड़े थे. लोगों में ज्यादातर महिलाएं थीं, क्योंकि पुरुष अपनेअपने काम पर गए हुए थे. गार्ड समेत 4 पुरुष और थे.

‘‘जी, नमस्कार. मेरा नाम सुरजीत है और मैं इस सोसायटी का सेक्रेटरी हूं.’’ एक 55-60 साल के आदमी ने आगे आ कर अपना परिचय दिया.

‘‘आप को इस घटना की सूचना कब और कैसे मिली?’’ इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘जी, करीब आधे घंटे पहले गार्ड राम सिंह ने राउंड लेते समय नीचे से देखा कि इस फ्लैट से काफी धुआं निकल रहा है तो उस ने इस की सूचना मुझे दी. हम लोग तुरंत यहां आए, लेकिन फ्लैट में औटो लौक होने की वजह से दरवाजा बंद था. सोसायटी औफिस में रखी मास्टर की से जब फ्लैट खोला गया तो यह नजारा था. सुरेश के बदन में आग लगी हुई थी, वह जमीन पर पड़ा हुआ था.

‘‘हम ने उसे काफी आवाजें दीं लेकिन कोई हलचल न होते देख हम ने समझ लिया कि यह मर चुका है. इस के बाद मैं ने आप को सूचना दी. साथ ही किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया ताकि किसी चीज से किसी तरह की छेड़छाड़ न हो.’’ सुरजीत ने सारा विवरण एक ही बार में सुना दिया.

‘‘गुड,’’ इंसपेक्टर राजेश ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा, ‘‘वैसे यह फ्लैट क्या सुरेश का खुद का है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘नहीं, इस फ्लैट के मालिक तो मिस्टर परेरा हैं, जो पुणे में रहते हैं. सुरेश किसी इंपोर्ट एक्सपोर्ट बिजनैस में डील करता था. जब कभी कोई शिपमेंट होता, तब वह 15-20 दिन यहां रहता था.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मिस्टर परेरा से तो हम बाद में बात करेंगे. वैसे आप का व्यक्तिगत मत क्या है, आप को क्या लगता है?’’ राजेश ने सुरजीत से पूछा.

‘‘ऐसा लगता है जैसे सिगरेट सुलगाते समय गलती से पहने हुए कपड़ों में आग लग गई. अचानक लगी आग से धुआं उठा और दम घुटने की वजह से सुरेश सिर के बल फ्लोर पर गिरा. सिर पर गहरी चोट लगने के कारण बेहोश हो गया और आग से उस की मौत हो गई. देखिए, उस के पास जली हुई सिगरेट भी पड़ी हुई है.’’ सुरजीत ने आशंका जाहिर की.

‘‘अच्छा औब्जर्वेशन है आप का मिस्टर सुरजीत. वैसे आप करते क्या हैं?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘जी, मैं एक प्राइवेट कंपनी में सिस्टम एनालिस्ट था, अब रिटायर हो चुका हूं.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘गुड एनालिसिस.’’ राजेश ने फिर तारीफ की और अपने साथ आए फोटोग्राफर को अलगअलग एंगल से फोटो लेने को कहा. अपनी टीम से लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने और जांच पूरी होने तक किसी भी चीज के साथ छेड़छाड़ न करने की हिदायत दे कर इंसपेक्टर राजेश कदम थाने लौट आए.

अगले दिन इंसपेक्टर कदम अपने सहयोगी एसआई आदित्य वर्मा के साथ बैठे थे. दोनों के बीच मेज पर घटनास्थल और सुरेश की लाश के फोटो फैले थे, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देख रहे थे. बीते दिन घटनास्थल और लाश की सारी औपचारिकताएं वर्मा ने ही पूरी की थीं.

इंसपेक्टर कदम ने वर्मा से पूछा, ‘‘आप का क्या विचार है, इस केस के संदर्भ में मिस्टर वर्मा?’’ फोटोग्राफ्स को देखते हुए इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘मैं भी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत की राय से सहमत हूं. यह एक एक्सीडेंट है, जो लापरवाही से सिगरेट जलाने के कारण हुआ.’’ एसआई वर्मा ने अपनी राय दी.

‘‘अब सिगरेट कंपनियों को अपनी चेतावनी के साथ यह भी लिखना चाहिए कि सिगरेट सावधानीपूर्वक सुलगाएं वरना आप की जान भी जा सकती है.’’ पास खड़े फोटोग्राफर ने मजाक में कहा.

‘‘वैसे आप का औब्जर्वेशन क्या है, सर?’’ वर्मा ने राजेश कदम से पूछा.

‘‘मेरा औब्जर्वेशन कहता है कि सुरेश सिगरेट पीता ही नहीं था.’’ राजेश ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’ वर्मा व फोटोग्राफर दोनों चौंक कर आश्चर्य से राजेश का मुंह देखने लगे.

‘‘आप यह बात कैसे कह सकते हैं?’’ वर्मा ने प्रश्न किया.

‘‘इन फोटोग्राफ्स को ध्यान से देखिए. अगर सिगरेट सुलगाने से कपड़ों ने आग पकड़ी होती तो आसपास कहीं माचिस या लाइटर जरूर होता. पर यहां पर दोनों ही चीजें दिखाई नहीं पड़ रहीं, जली हुई भी नहीं. दूसरे सुलगाते समय सिगरेट या तो होठों के बीच होती या हाथों की अंगुलियों के बीच, जो जल चुकी होती और हम उस की राख भी नहीं देख पाते. पर यहां पर सिगरेट लाश से 2 फीट की दूरी पर पड़ी है. अगर आग लगाने की वजह से सिगरेट फेंकी गई होती तो उसे पूरी ताकत लगा कर फेंका गया होता. उस कंडीशन में सिगरेट को कम से कम 4-5 फीट की दूरी पर गिरना चाहिए था.

‘‘तीसरी बात जिस तेजी से आग फैली और काला धुआं निकला, वह सिर्फ तन के कपड़ों के जलने से नहीं निकल सकता. सब से महत्त्वपूर्ण बात धुएं से जो काले निशान जमीन पर पड़े, उस में एक हलका सा निशान जूतों का दिखाई पड़ रहा है. जोकि नुकीली नोक वाले जूते का है. सुरेश ने मरते समय घर में पहनी जाने वाली स्लीपर पहनी हुई थी, जूते नहीं.’’ राजेश कदम ने दोनों को अपनी विवेचना के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘मतलब यह एक मर्डर केस है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘बिलकुल. सिगरेट तो हमें बहकाने के लिए डाली गई है.’’ राजेश ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

‘‘पर वहां जलाने के लिए पैट्रोल, डीजल, केरोसिन आदि किसी भी ज्वलनशील पदार्थ की कोई गंध नहीं है. यहां तक कि स्निफर डौग भी इस तरह की किसी गंध को आइडेंटीफाई नहीं कर पाया.’’ फोटोग्राफर ने प्रश्न किया.

‘‘यही इनवैस्टीगेट तो करनी है.’’ राजेश ने कहा.

‘‘कहां से शुरू करें सर.’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘देखो, मर्डर दोपहर के 2 बजे के करीब हुआ है. कामकाज और औफिस वर्कर्स तो सुबह जल्दी ही निकल जाते हैं. बाहर का कोई आया भी होगा तो अपने पर्सनल व्हीकल से ही आया होगा. हमें ध्यान यह रखना होगा कि सिर्फ संकरी टो के जूते वाले को ही ट्रेस करना है. एक बजे से शाम तक सोसायटी में आने वाले सभी व्हीकल की बारीकी से जांच होनी चाहिए.’’ राजेश ने कहा.

‘‘सर, अभी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत से बात करता हूं. 2 घंटे में सीसीटीवी फुटेज मिल जाएंगे.’’ वर्मा ने कहा और सोसायटी के लिए रवाना हो गए.

‘‘वेरी गुड वर्मा. बेस्ट औफ लक.’’ राजेश ने उन का उत्साहवर्धन किया.

 

आदित्य वर्मा 2 घंटे से पहले ही लौट आए. आते ही इंसपेक्टर राजेश से बोले, ‘‘लीजिए सर, ये रही सीसीटीवी फुटेज. घटना चूंकि मिड औफिस आवर्स की है, इसीलिए मोमेंटम बहुत ही कम है. टोटल 22 व्हीकल आए या गए. इन में से भी ज्यादातर उन महिलाओं की कारें हैं, जो दोपहर को फ्री आवर्स में शौपिंग के लिए जाती हैं.

‘‘कुल 6 गाडि़यों से पुरुष आए या गए. इन में से भी एक गाड़ी इलेक्ट्रिकल इंसपेक्टर की है, जो उस वक्त मीटर रीडिंग के लिए आया हुआ था.

‘‘बची हुई 5 गाडि़यों में एक मिस्टर खन्ना की गाड़ी ही ऐसी है, जो लगभग एक बजे आई और 3 बजे के आसपास वापस गई. ध्यान देने वाली बात यह है सर, कि मिस्टर खन्ना 10 बजे औफिस जाने के बाद फिर आए थे. परंतु उन के जूते फुटेज में साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘जहां शक है, वहां पुलिस है. खन्ना के बारे में डिटेल्स में कुछ पता चला है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सर, खन्ना उसी सोसायटी में छठे फ्लोर पर रहते हैं. वह बिजनैसमैन हैं.’’ वर्मा ने बताया.

‘‘ठीक है, उन्हीं से पूछताछ करते हैं. किस समय मिलते हैं खन्ना साहब?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘शाम को 8-साढ़े 8 तक मिल जाते हैं सर.’’

‘‘ठीक है या तो शाम का चाय नाश्ता उन के घर पर करते हैं या रात का खाना उन्हें थाने में खिलाते हैं.’’ राजेश ने कहा.

शाम को इंसपेक्टर राजेश कदम और आदित्य वर्मा सुनयन हाउसिंग सोसायटी में जा पहुंचे. उन्होंने फ्लैट की घंटी बजाई तो एक महिला दरवाजे पर आई. राजेश ने कहा, ‘‘हमें खन्ना साहब से मिलना है.’’

‘‘जी, अंदर आइए.’’ पुलिस की यूनिफार्म देख कर महिला ने कुछ नहीं पूछा.

‘‘गुड इवनिंग सर, मेरा नाम खन्ना है.’’ 5 मिनट में ही सिल्क का कुरता पायजामा पहने, हल्की सी फ्रेंच कट दाढ़ी वाला एक सुदर्शन आदमी अंदर से आ कर बोला. उस के चेहरे से ही रईसी झलक रही थी.

‘‘गुड इवनिंग मिस्टर खन्ना, मेरा नाम राजेश कदम है. मैं आप के एरिए के थाने का इंचार्ज हूं. यहां एक केस की तहकीकात के लिए आप के पास आया हूं. मुझे विश्वास है आप हमें कोऔपरेट करेंगे.’’ राजेश ने अपना परिचय देते हुए आने का मकसद बताया.

‘‘यस…यस श्योर.’’ खन्ना बोला.

बैठ कर औपचारिक बातों के बाद राजेश कदम ने यूं ही पूछ लिया, ‘‘एक सिगरेट मिल सकती है?’’

‘‘जी हां लीजिए,’’ कहते हुए खन्ना ने अपने कुरते की जेब से सिगरेट का केस निकाल कर आगे बढ़ाया. सिगरेट केस पर गोल्डन पौलिश थी और चमक बिखेर रहा था.

‘‘काफी लंबी सिगरेट है.’’ राजेश ने सिगरेट निकालते हुए कहा.

‘‘जी हां, 120 एमएम की है. मेरे पापा भी इसी ब्रांड की सिगरेट पीते थे, इसीलिए मुझे भी यही पसंद है. वैसे आप किस केस के सिलसिले में आए हैं.’’

‘‘आप सुरेश को कब से जानते थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सुरेश…कौन सुरेश?’’ खन्ना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वही सुरेश जो आठवें माले पर रहते थे, जिन का मर्डर हुआ है.’’ राजेश ने स्पष्ट किया.

‘‘अच्छा, सुरेश नाम था उस बंदे का. मुझे तो अभी पता चला. मैं ने तो आज तक कभी उस की शक्ल तक नहीं देखी. नाम भी आप के मुंह से सुन रहा हूं. उस के मर्डर केस में मुझ से पूछताछ, आश्चर्य है. मुझ से पूछताछ का कोई आधार है आप के पास.’’ खन्ना अपनी भाषा पर पूरा संयम रखते हुए बोला.

‘‘शक का कारण यह है कि आप अकेले ऐसे शख्स थे, जो दोपहर को एक बजे अपने औफिस से वापस घर आए और 3 बजे वापस चले गए. मर्डर इन्हीं 2 घंटों के दौरान हुआ, इसलिए आप से पूछताछ तो बनती है.’’ राजेश ने स्थिति को और स्पष्ट किया.

‘‘अच्छाअच्छा, तो इसलिए शक कर रहे हैं आप. दरअसल, मुझे एक गवर्नमेंट औफिस में कुछ डाक्यूमेंट्स सबमिट करने जाना था. सारे डाक्यूमेंट मेरे लैपटौप में सेव थे, लेकिन उन्हें हार्ड कौपी भी चाहिए थी, जो घर पर रखी हुई थी. वही लेने घर आया था. घर में श्रीमतीजी ने रिक्वेस्ट की, इसीलिए उन के साथ लंच के लिए रुक गया. आप चाहें तो ये डाक्यूमेंट्स चैक कर सकते हैं, जिन पर मैं ने रिसिप्ट ली है.’’ खन्ना ने जल्दी आने के संदर्भ में अपनी सफाई पेश की.

‘‘वह तो मैं आप की सिगरेट देख कर ही समझ गया था क्योंकि जो सिगरेट लाश के पास मिली है, वह सिक्स्टी नाइन एमएम की ही है.’’ राजेश अपने शक को गलत साबित होते देख निराश भाव से बोले, ‘‘वैसे घटना उसी समय की है. हो सकता है, आप की नजर से ऐसी कोई घटना या शख्स गुजरा हो, जिस से पूछताछ की जा सके.’’

‘‘ऐंऽऽऽ कुछकुछ याद आ रहा है. उस समय मुझे लिफ्ट में उदयन मिला था. वह भी ऊपर कहीं से आ रहा था और उस के पीले जूतों पर कुछ कालिख लगी हुई थी. वह उस पैर को उठा कर दूसरे पैर की पैंट के पायचे से साफ करने की कोशिश कर रहा था.’’ खन्ना ने बताया.

‘‘उदयन…कौन उदयन? कौन से फ्लैट में रहता है?’’ एक महत्त्वपूर्ण सुराग मिलते ही राजेश उछल पड़े. उन्होंने खन्ना पर सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘उदयन एक इंश्योरेंस एजेंट है जो यहां से एक्सपोर्ट किए जाने वाले मटीरियल का इंश्योरेंस करता है. इस सोसायटी में ज्यादातर लोग इंपोर्टएक्सपोर्ट से जुड़े हैं, इसलिए वह घर पर ही आ कर डील कर लेता है.’’ खन्ना ने उदयन के बारे में जानकारी दी.

‘‘उदयन के औफिस का एड्रैस या फोन नंबर है क्या आप के पास?’’ राजेश ने कुछ आशा के साथ खन्ना से पूछा.

‘‘अगर मैं उदयन जैसे लोगों के नंबर सेव करने लगा तो मेरी फोन बुक एजेंटों के नाम से ही भर जाएगी. वैसे उस का विजिटिंग कार्ड मेरे औफिस में रखा है.’’ खन्ना ने बताया.

महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद राजेश सीधे सिक्युरिटी औफिस गए. वहां पर वह उदयन के नाम की एंट्री खोजने लगे. मगर उसे इस नाम की कोई एंट्री नहीं मिली.

‘‘उदयन नाम का आदमी कल सोसायटी में आया था लेकिन उस के नाम की कोई एंट्री दिखाई क्यों नहीं पड़ रही है?’’ राजेश ने रजिस्टर चैक करते हुए गार्ड से सख्ती दिखाते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि रजिस्टर में सिर्फ व्हीकल से आए हुए लोगों की ही एंट्री की जाती है. अगर पैदल आए लोगों की भी एंट्री करेंगे तो काम बहुत बढ़ जाएगा. वैसे भी हमारे पास इतने आदमी नहीं हैं. घरों में कितने ही नौकर काम करने के लिए आते हैं, सभी की एंट्री संभव नहीं है.

‘‘हम चेहरे से सभी को पहचानते हैं. उदयन भी पैदल ही आता है, हर 2-3 दिन में. शायद इसीलिए उस की एंट्री नहीं की गई होगी.’’ गार्ड ने जवाब दिया, ‘‘वैसे उदयन का औफिस यहां से कुछ ही दूरी पर है. पहले मैं उसी बिल्डिंग में ड्यूटी करता था.’’ गार्ड ने आगे बताया.

गार्ड से उदयन के औफिस का पता ले कर राजेश व उन की टीम वहां पहुंच गई. उस औफिस के चौकीदार से उन्हें उदयन के घर का पता मिल गया. राजेश ने चौकीदार को भी अपने साथ ले लिया ताकि वह उदयन को फोन कर के सूचना न दे सके. दूसरे उदयन की शिनाख्त भी उसी को करनी थी.

घर की घंटी बजने पर उदयन ने ही दरवाजा खोला. चौकीदार के साथ पुलिस को आया देख वह समझ गया कि उस का राज खुल चुका है. उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में सामने बैठा कर इंसपेक्टर राजेश कदम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने सुरेश का मर्डर क्यों किया?’’

‘‘उस की वादाखिलाफी मेरी तरक्की में बाधा बन रही थी. सुरेश का एकएक शिपमेंट 15 से 20 करोड़ की कीमत का होता था. ऐसे में उस से बिजनैस मिलने से मुझे अच्छे प्रमोशंस मिल सकते थे. पिछले 6 महीनों में उस ने मुझ से 2 बार कोटेशंस ले कर कौन्ट्रैक्ट दिलवाने का वादा किया था. लेकिन उस ने काम किसी दूसरे को दिलवा दिया था.

‘‘तीसरी बार भी उस ने फिर वादाखिलाफी की. यह कौन्ट्रैक्ट न मिलने की वजह से मुझे मिलने वाले सारे प्रमोशंस रुक गए और औफिस में मेरा मजाक बना अलग से. अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उसे जला कर मार डाला. पुलिस को गुमराह करने के लिए वहां सिगरेट भी मैं ने ही डाली थी.’’ बोलतेबोलते उदयन गुस्से से भर उठा था.

‘‘पर तुम ने उसे जलाया कैसे, वहां पर तो पैट्रोल, डीजल, केरोसिन जैसी किसी भी चीज की गंध नहीं थी?’’ एसआई वर्मा ने पूछा.

‘‘मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं. मैं ने पढ़ा था कि एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे आर्गेनिक कैमिकल्स होते हैं, जो अत्यंत ज्वलनशील होते हैं. उन की गुप्त ऊष्मा भी बहुत अधिक होती है. इस से भी बड़ी विशेषता यह कि जलने के बाद इन की गंध नहीं आती.

‘‘2 दिनों पहले ही मुझे एक बौडी स्प्रे बनाने वाली कंपनी ने अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट क्वालिटी चैक करने और सैंपल देने की दृष्टि से 1 लीटर मटीरियल दिया था. मैं ने उसी मटीरियल का इस्तेमाल सुरेश को जलाने के लिए किया.’’

‘‘सुरेश को परफ्यूम लगाने का बहुत शौक था, इसीलिए उसे बातों में उलझा कर और भीनी खुशबू का हवाला दे कर उस पर एक लीटर परफ्यूम डाल दिया और अपने लाइटर से आग लगा दी.’’

उदयन ने आगे बताया, ‘‘अत्यधिक फ्लेम होने के कारण उसे तुरंत ही चक्कर आ गया और वह सिर के बल गिर कर बेहोश हो गया.’’

‘‘उदयन, तुम ने योजना तो खूब अच्छी बनाई थी. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का इग्नीशन तो तुम्हें याद रहा लेकिन जलने के बाद ओमिशन औफ कार्बन को भूल गए. एक्यूमुलेटेड कार्बन में वहां तुम्हारे जूतों के निशान बन गए और तुम हमारे मेहमान.’’ राजेश कदम ने मुसकराते हुए कहा.

वर्ल्ड कप से पहले धोनी का धमाल, विरोधी बेहाल…

कल 30 मई से इंगलैंड में वनडे क्रिकेट का वर्ल्ड कप शुरू होने जा रहा है. इस महामुकाबले में 10 टीमें आपस में भिड़ेंगी. इसका मतलब है कि हर टीम बाकी टीमों के साथ मैच खेलेगी. इस तरह सेमीफाइनल से पहले कोई भी टीम 9 मैच खेलेगी और जिन 4 टीमों का सब से अच्छा प्रदर्शन होगा वे फाइनल में जाने की दावेदारी पेश करेंगी.

भारत की टीम अपने हालिया प्रदर्शन और इंगलैंड की सपाट पिचों के हिसाब से मजबूत दिख रही है और जिस तरह से 28 मई को बंगलादेश के खिलाफ खेले गए एक प्रैक्टिस मैच में भारत ने 359 बना कर विरोधी टीम पर आसान जीत हासिल की थी उस से यह साफ हो गया है कि हमारी टीम सही ट्रैक पर है.

कल के मैच में केएल राहुल और महेंद्र सिंह धोनी के शानदार शतकों की बदौलत भारत ने दूसरे अभ्यास मैच में बंगलादेश को 95 रन से हरा दिया था. केएल राहुल ने 99 गेंदों पर 12 चौकों और 4 छक्कों की मदद से 108 रन बनाए थे जबकि महेंद्र सिंह धौनी ने 78 गेंदों पर 113 रन की बेहतरीन पारी खेली थी जिस में 8 चौके और 7 छक्के शामिल थे.  इन दोनों बल्लेबाजों ने 5वें विकेट के लिए 164 रन की साझेदारी की थी.

जब महेंद्र सिंह धौनी बल्लेबाजी करने के लिए मैदान पर उतरे थे तब भारत 22 ओवर में अपने 4 विकेट खो चुका था और सिर्फ 102 रन ही बने थे. हमेशा की तरह धौनी ने क्रीज पर जमने में समय लगाया और धीरेधीरे अपने पुराने रंग में दिखे. उन्होंने स्पिन गेंदबाजों पर आगे बढ़ कर कई बेहतरीन शॉट लगाए और अपनी जानीपहचानी पावर हिटिंग से दर्शकों को खुश कर दिया. उन्होंने अबू जायद की गेंद पर अपनी पारी का छठा छक्का लगा कर केवल 73 गेंदों पर शतक पूरा किया था.

भारत का 5 जून को दक्षिण अफ्रीका के साथ पहला मैच होगा. दक्षिण अफ्रीका ने कभी वर्ल्ड कप नहीं जीता है. वह इस बार कागजों पर मजबूत भी दिखाई दे रही है. लेकिन जिस तरह से महेंद्र सिंह धौनी ने प्रैक्टिस मैच में अपनी शानदार बल्लेबाजी दिखाई है उस से दक्षिण अफ्रीका की टीम चौकस हो गई होगी क्योंकि अगर धौनी की वजह से भारत का मिडिल आर्डर मजबूत होता है तो यह विपक्षी टीमों के लिए खतरे की बात है.

यहां एक बात और खास है कि चाहे भारत के कप्तान विराट कोहली हैं पर मैदान पर विपरीत हालात में महेंद्र सिंह धौनी ही टीम का हौसला बढ़ाते नजर आते हैं. वे फील्डिंग सजाने से ले कर किस गेंदबाज को कब गेंद थमानी है, ऐसे फैसले लेते हुए भी दिखाई देते हैं. उन की विकेटकीपिंग तो है ही लाजवाब.

कुलमिला कर अगर इस वर्ल्ड कप में महेंद्र सिंह धौनी अपनी फोर्म को बरकरार रखेंगे तो भारत इस टूर्नामेंट को तीसरी बार जीतने में कामयाब हो जाएगा.

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वायरल होने का मकसद है वेडिंग फोटोग्राफी

वाकई वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है. अब शादी और शादियों के फोटोग्राफ्स को ही ले लीजिये, वक़्त के साथ इसमे भी बहुत सारे बदलाव आए हैं. अगर आपने कभी अपने माता-पिता के शादी की फोटोज देखी हैं, तो उसमें आपको शायद ही कोई ऐसी फोटो देखने को मिलेगी, जिसमें वो कैमरे में सीधा देख रहे हो. अधिकतर फोटोज मे उनकी आंखें या तो नीचे या कैमरे से कहीं अलग देखती हुई मिलेंगी. वो जमाना अलग था, वो वक़्त अलग था. जैसे वक़्त बदला है, वैसे ही अब वेडिंग फोटोग्राफी का तरीका और चलन भी बदल गया है. अब शादी के बंधन से एक वाला जोड़ा कैमरे से नजरें नहीं चुराता, बल्कि एक से बढ़कर एक पोसेस में फोटोस क्लिक करवाता है. आज के वक़्त में उन्हे कुछ अलग चाहिए, कुछ ऐसा जो बाकियों से बेहतर हो. कुछ ऐसा जो विशेष हो, जो उन्हें सोश्ल मीडिया पर खूब सारे लाइक्स बटोर कर दे. आज के जोड़े यह बखूबी समझते हैं कि ये वेडिंग फोटोज ना सिर्फ यादों के रूप में उनके साथ रहेंगे, बल्कि सोशल मीडिया पर उन्हें खूब सारे लाइक्स और वाह-वाही भी बटोर कर देंगे.

ऐसे में अब ये कहना भी गलत होगा की दूल्हा-दुल्हन के आलावा बाकी सबको नजरअंदाज कर दिया जाता है. दूल्हा-दुल्हन सहित उनके परिवार वाले भी चाहते हैं कि सबकी फोटोज ली जाये, ताकि बाद में यादों के तौर पर उनको सहेज कर रखा जा सके. फिर भी इन सबके बीच सबसे ज्यादा फोकस तो दूल्हा और दुल्हन पर ही होता है. इसका कारण भी समझना बहुत आसान है. शादी किसी के भी जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक दिन होता है. ये एक ऐसा दिन होता है, जिसके लिए आप ना जाने कब से और कैसे-कैसे सपने संजों कर रखते हैं. ऐसे में शादी वाले दिन इतने सारे रस्मो-रिवाज़ और गतिविधियों के ज़बीच ये मनोरम दिन कैसे निकल जाता है, पता भी नहीं चलता.

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इससे परे आज के वर्तमान समय वाले सोशल मीडिया सैवी कपल्स अपने शादी वाले दिन के लिए ऐसे फोटोग्राफर्स को हायर करते हैं, जो उनके इतने बड़े दिन को ज्यादा रोचक, रचनात्मक, और फनी, यानी कैंडिड तरीके से वीडियो/फोटोज़ में कैद करें. आज के मौडर्न कपल्स ना सिर्फ चलते हुए ट्रेंड्स से खुद को वाकिफ रखते हैं, बल्कि अपनी शादी के लिए सोशल मीडिया पर अपने इजात किये हुए हैशटैग्स भी इस्तेमाल करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को उनकी शादी के बारे में पता चले. ये तो हुई सोशल मीडिया की बात, अब बात करते हैं तकनीक की. तकनीक और उसके इजात किये तरीके भी अच्छी फोटोज की इच्छा रखने वाले लोगों का खूब साथ निभा रहे हैं. ये तकनीक की ही देन है कि आज हमें शादियों और आउटडोर सेलेब्रेशन में ड्रोन्स भी देखने को मिल जाते हैं, जो एक से बढ़कर एक तसवीरें और वीडियोस कैद कर रहे होते हैं. इतनी सारी तकनीकों और सोशल मीडिया की मौजूदगी से वाकई बहुत बदलाव आया है.

मामला सिर्फ यहीं नहीं ठहरता, कपल्स अपने शादी वाले दिन को कैसे याद करना चाहते हैं, वो उसके लिए भी बहुत ही अनोखे विकल्प चुनते हैं. कुछ कपल्स कैंडिड फोटोग्राफी चुनते हैं, तो वहीँ कुछ पोज़्ड फोटोग्राफ्स चुनते हैं. वैसे तो पोज्ड़ फोटोग्राफ्स देखने में बहुत ही सुन्दर और प्यारे लगते हैं, मगर कोई भी जोड़ा अपनी पूरी शादी के लिए पोज़्ड फोटोज नहीं चाहता. ऐसा इसलिए हैं, क्यूंकि पोज़्ड फोटोज में एक से ही हावभाव, मुस्कान और तरीके नज़र आते हैं. इसी वजह से नये फोटोग्राफी के तरीके ज़्यादा से ज़्यादा नेचुरल दिखाने के तरीके लेकर आ रहे हैं. इसकी तैयारी के तौर पर ज़्यादा से ज़्यादा फोटोग्राफर्स अब डिजिटल फोटोग्राफी को अपना चुके हैं. वो अब फोटोग्राफी के लिये एचडी यानी हाई डेफिनिशनडीएसएलआरकैमरा और एसडी मार्क जैसे कैमरा का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे हाई क्वालिटी कैमरों से फोटोग्राफी करने का फायदा ये होता है कि आपकी फोटोज और वीडियोस बहुत ही उच्च और बेहतर क्वालिटी कि होती हैं.

आज के समय में वेडिंग फोटोग्राफी के भी तीन चरण होते हैं. एक है शादी से पहले कि फोटोग्राफी, जिसे प्री-वेडिंग फोटोग्राफी कहते हैं. दूसरी है शादी के दिन कि फोटोग्राफी, और तीसरी शादी के बाद कि फोटोग्राफी, यानी पोस्ट वेडिंग फोटोग्राफी. अब इतनी सारी फोटोज देख कर एक बात तो वाकई सच लगती है, यहां हर तस्वीर कुछ कहती है.

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शादी की खूबसूरत यादों को संजोकर रखना कौन नहीं चाहता लेकिन अब सिर्फ शादी ही नहीं, प्री-वेडिंग और पोस्ट-वेडिंग पलों को भी सहेजा जा रहा है. अब वो दौर गया जब शादी के दिन और उससे पहले इंगेजमेंट, हल्दी और मेहंदी तक की रस्में सहेजी जाती थीं. बौलीवुड से शुरू हुआ प्री- पोस्ट वेडिंग फोटो शूट, पहले मेट्रो शहरों तक पहुंचा और अब छोटे-बड़े लगभग हर शहर में इसका क्रेज तेजी से बढ़ रहा है.

प्री-वेडिंग फोटोग्राफी

आज के समय में प्री-वेडिंग शूट का क्रेज बढ़ता ही जा रहा है. प्री-वेडिंग शूट का क्रेज आज से दो-तीन साल पहले बहुत कम था. लेकिन आजकल हर कोई प्री-वेडिंग शूट का दीवाना हो गया है. प्री-वेडिंग की खास बात ये है की दूल्हा-दुल्हन आसानी से एक-दूसरे को समझ पाते है.

बात अगर हम पर्फेक्शन की करे तो एक बेहतर वेडिंग शूट तभी अच्छा हो पाता है जब पूरा वेडिंग शूट एक ही फोटोग्राफर द्वारा किया गया हो इससे फोटोग्राफर के साथ ट्यूनिंग सही रहती है.

आजकल हर किसी को प्री-वेडिंग शूट कराना होता है. प्री-वेडिंग शूट की लोकेशन कस्टमर की चॉइस पर डिपेंड है. किसी को पहाड़ पसंद है, किसी को बीच पसंद है, तो किसी को किले या महल पसंद हैं. उनकी पसंद के मुताबिक जिम कौर्बेट, नीमराणा, उदयपुर, जयपुर, गोवा, केरल, दुबई, मलेशिया, थाईलैंड जाकर आपके बजट के मुताबिक प्री-वेडिंग शूट करने का खर्च 1 लाख से लेकर 5 लाख तक का आता है.

कई लोग ऐसे होते है जो इतना बजट उठा नहीं पाते. ऐसे में कम बजट वालों के लिए फोटोग्राफर्स आउटडोर लोकेशंस के नाम दिल्ली के लोदी गार्डन, हुमायूं का मकबरा, नेचर पार्क और मान्यूमेंट्स में शूट करते थे. लेकिनअब पुलिस की सख्ती बढ़ती जा रही है और इन जगहों पर कमर्शल शूटिंग की इजाजत नहीं है. ऐसे में, इस प्रॉब्लम के सॉल्यूशन के तौर पर एनसीआर में कुछ ऐसे स्टूडियो खुल गए हैं, जहां पर बाकायदा फिल्मों की तरह सेट लगाकर कपल्स का प्री-वेडिंग शूट किया जाता है. आजकल कपल्स का रुझान भी सेट्स की ओर ज्यादा है, क्योंकि वहां पर शूट करना काफी आसान होता है. वहां आपको कोई टेंशन नहीं है, तो शूटिंग से लेकर कौस्ट्यूम तक अवेलेबल हैं.

कई लोग अपना प्री-वेडिंग शूट एक कहानी के रूप में शूट करवाना पसंद करते है.

पोस्ट-वेडिंग फोटोग्राफी

वेडिंग शूट जहां रिश्ता तय होने के बाद से शादी होने के पहले तक किया जा रहा है. वहीं पोस्ट वेडिंग के फोटो शूट शादी के तुरंत बाद हो रहे हैं. इस बार प्री की तरह पोस्ट वेडिंग शूट में भी ज्यादा रुचि ली जा रही है. ये फोटोशूट कपल हनीमून के दौरान करा रहे हैं. जो कपल शादी के तुरंत बाद हनीमून पर नहीं जा पाते वे शहर के आसपास की लोकेशन पर ही फोटोशूट कराते हैं. ये फोटोशूट खासतौर पर तब तक किया जाता है जब हाथों से मेंहदी की रंगत न उतरे.

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अब नौर्मल फोटोशूट की बजाए हाईटेक्नोलौजी की मदद से होने वाले फोटोशूट पसंद किए जा रहे हैं. इसमें ड्रोन कैमरा का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है. पोस्ट-वेडिंग शूट वेडिंग शूट का आखिरी शूट होता है जिसमे कपल काफी रोमांटिक पोज में शूट करवाते नजर आते है.

कई कपल्स थीम के अनुसार शूट करवाना भी पसंद करते है.

‘इंडियन आइडल 11’ के मेकर्स ने अनु मलिक को लेकर लिया बड़ा फैसला

‘मीटू’  में बौलीवुड के कई सेलीब्रिटी का नाम सामने आया था. इसमे सिंगर अनु मलिक का भी नाम आया था. जब इन पर आरोप लगे तो वें ‘इंडियन आइडल सीजन 10’  में जज के तौर पर नजर आ रहे थे. लेकिन इनका नाम आने पर इन्हें इस शो से बाहर कर दिया गया.

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आपको बता दें, इंडियन आइडल के अगले सीजन की तैयारियां शुरू हो गई है. ऐसे में एक बार फिर से जज पैनल की लिस्ट में अनु मलिक का नाम सामने आ रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मेकर्स अनु मलिक को इस शो का हिस्सा बनाना चाहते हैं.

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लेकिन इस शो के मेकर्स ने इस बात को अधिकारिक तौर पर ऐलान नहीं किया है. खबरों के अनुसार बाकी जज नेहा कक्कड़ और विशाल ददलानी इस शो हिस्सा बने रहेंगे.

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