वर्ष 1980 तक भारत के बराबर गरीब और दानेदाने को मुहताज चीन आज दुनिया की सब से ज्यादा ताकतवर हस्ती अमेरिका को चुनौती दे रहा है और वह भी बराबरी की हैसियत से. चीन 1960-70 का वियतनाम या 1990-2010 का उत्तरी कोरिया नहीं है कि जो अपने लोगों के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को तैयार हो कर अमेरिका से मुकाबला करने को तैयार हुए. चीन तो रूस की तरह, या यों कहिए कि उस से भी कई कदम आगे चल कर, अमेरिका से मुकाबला कर रहा है. इस के मुकाबले भारत, चाहे गिड़गिड़ा न रहा हो, को मालूम है कि उस का एक पांव चाहे चांद पर पहुंचने को उतावला हो, दूसरा तो गोबर के गड्ढे में धंस ही रहा है.

भारत और चीन की तुलना करना अब बंद कर दी गई है. विश्व के देश चीन की उन्नति से परेशान हैं. भारत के बारे में उन्हें मालूम है कि यह सिर्फ हल्ला मचा सकता है. भारत की विशेषता केवल यह है कि लाखों भारतीय दुनियाभर की कंपनियों में कंप्यूटरों के कर्ताधर्ता बने हैं. पर, चीनी तो मालिक हैं सैकड़ों कंपनियों के.

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चीन की अब यह हैसियत है कि वह अपने नागरिकों को अमेरिका का वीजा न लेने की सलाह दे रहा है. चीन अमेरिका व्यापार युद्ध के मौजूदा दौर में अमेरिका खीझ कर चीनियों पर बंदिश लगा सकता है जो मैक्सिकनों या अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों के नागरिकों पर लगा रहा है. फर्क यह है कि उन देशों से केवल मजदूर अमेरिका आ रहे हैं. चीन से मजदूर तो वहां न के बराबर आ रहे हैं. वहां से तो समझदार, होशियार और बहुत पैसे वाले अमेरिका आ रहे हैं.

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