अगर मोटर वाहनों को रामरथ बनाने से देश का कल्याण होता तो 1988 से 2004 के दौरान और 2014 के बाद औटो उद्योग को दोगुनाचारगुना फलनाफूलना चाहिए था. जिस तरह से भरभर कर तीर्थयात्राएं की जा रही हैं, कांवडि़ए ट्रकों, टैंपुओं में भरभर कर गातेबजाते रातभर सड़कों पर चलते हैं, मंदिरों के सामने पार्किंग की समस्या पैदा हो रही है, ऐसे में औटो उद्योग को तो सोना बरसने की उम्मीद होनी चाहिए, लेकिन चिंतनीय यह है कि लगभग सब से पुरानी कंपनी टाटा मोटर्स को 2019-20 की पहली तिमाही में 3,680 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है.
टाटा मोटर्स की पिछले साल अप्रैलजून में 66,619 करोड़ रुपए की बिक्री हुई थी पर इस ‘सुनहरे’ साल में उस की 61,467 करोड़ रुपए की ही बिक्र्री हुई जिस से उस का घाटा 1,863 करोड़ से बढ़ कर 3,680 करोड़ रुपए हो गया.
ऐसा सिर्फ औटो उद्योग के साथ ही नहीं हो रहा, सभी उद्योग भयंकर मंदी की चपेट में हैं. कृषि उत्पादन कम हो रहा है, इसलिए गांवोंकसबों में बिक्री कम हो रही है.
देश की प्रगति के लिए जिस माहौल की जरूरत है वह इस तरह के समाचारों से फीका पड़ता नजर आ रहा है. लोग अपनी जमापूंजी को संभाल कर रख रहे हैं. सरकार के दोषपूर्ण प्रयासों के चलते लोगों ने भारी रकम नकद के रूप में घर में रखनी शुरू कर दी है. क्योंकि अगर मकान खरीदें तो पहले उस का मिलना तय नहीं, और अगर मिल जाए तो उस से पर्याप्त आय नहीं हो रही. लोगों के पास जितना पैसा है उसे वे संभाल रहे हैं, सामान नहीं खरीद रहे क्योंकि भविष्य शंकित है. ब्याज तक अब सुरक्षित नहीं है. बैंकों ने केवाईसी के चक्कर में लोगों के चालू खाते तक फ्रीज करने का रिवाज बना डाला है.