आर्थिक समीक्षा करने वाली विश्व संस्थाओं ने भारत की प्रगति को कम कर के 4.8 फीसदी के आसपास हो जाने का अनुमान लगाया है. कुछ तो अब 4.2 प्रतिशत वृद्धि का ही अनुमान लगा रहे हैं. पाकिस्तान की प्रगति दर भी कम हो रही है और अब वह 2.8 फीसदी रह गई है. बंगलादेश की दर बढ़ कर 8.1 प्रतिशत हो सकती है. दक्षिण एशिया के इन 3 देशों का जो हाल आज हो रहा है वह उन की सरकारों के कारण है, जनता के नहीं.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था लगातार बिगड़ रही है क्योंकि कई दशकों से वहां मुख्य ध्येय इसलाम की रक्षा करना है. जियाउल हक ने पाकिस्तान को फिर से पुराने इसलामिक गड्ढे में धकेल दिया था. बंगलादेश ने 1971 के बाद कुछ साल राजनीतिक अस्थिरता में गुजारे. पर अब वहां धर्म की जगह उद्योगों ने ले ली है. वहां तेजी से छोटे उद्योग लग रहे हैं और चीन से हट रहे हलकी तकनीक वाले उद्योग वहां खूब पनप रहे हैं.

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भारत में चमक 1991 के बाद आनी शुरू हुई थी. वैसे तो वह 1992 के रामरथयात्रा से ढीली पड़ी और फिर 1992 के बाबरी मसजिद के विध्वंस के बाद, फिर भी नरसिंहराव और मनमोहन सिंह के सुधारों का असर बहुत बड़ा हुआ और 10-15 साल अच्छे गुजर गए. पर उस के बाद देश में धार्मिक जोश एक बार फिर उबाल मारने लगा और 2014 का चुनाव बिना किसी कारण धार्मिक कुरुक्षेत्र युद्ध की तरह लड़ा गया जिस में एक तरफ कट्टरवादी थे तो दूसरी ओर उदासीन, अपनेअपने काम में मस्त, ढीलेढाले नेता और उन के खामोश समर्थक. वे देश की प्राथमिकताएं सम झ ही नहीं पाए.

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