भाग 1
29जुलाई, 2019 को दोपहर बाद 60 वर्षीय वीरप्पा गंगैय्या सिद्धार्थ हेगड़े उर्फ वीजी सिद्धार्थ नहाधो कर तैयार हुए तो वे काफी खुश थे. जब वे बाथरूम से बाहर निकले थे तो उन की पत्नी मालविका सिद्धार्थ उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. पति को खुश देख कर उन्होंने मजाक में कहा, ‘‘क्या बात है, साहब. आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हो. कहीं घूमने जाना है क्या?’’
‘‘नहीं कंपनी के काम से हासन जाना है, वहां मीटिंग है.’’ वीजी सिद्धार्थ ने दीवार घड़ी पर नजर पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, मेरा नाश्ता टेबल पर लगा दो. वैसे भी बहुत देर हो गई है. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से मीटिंग लेट हो. मैं कपड़े पहन कर आता हूं.’’
‘‘आप कपड़े पहन कर आओ, नाश्ता टेबल पर तैयार मिलेगा.’’ मालविका ने कहा.
‘‘सुनो, मालविका… जरा देखना, बासवराज कहां है? उस से कहो गाड़ी तैयार रखे, मैं तुरंत आता हूं.’’
‘‘जी ठीक है. मैं देखती हूं. आप तैयार हो कर आओ.’’
कहती हुई मालविका किचन की ओर चली गई. उन्होंने अपने हाथों से पति का नाश्ता तैयार कर के डाइनिंग टेबल पर लगा दिया. साथ ही पति को आवाज दे कर बता भी दिया कि नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है, नाश्ता कर के ही बाहर जाएं. उन्होंने ड्राइवर बासवराज को आवाज दे कर साहब की गाड़ी तैयार करने को भी कह दिया. बासवराज साहब की गाड़ी तैयार कर उन के आने का इंतजार करने लगा.
वीजी सिद्धार्थ नाश्ता कर के डाइनिंग रूम से बाहर निकले तो पत्नी मालविका भी उन के पीछेपीछे आईं. और उन्हें बाहर आ कर सी औफ किया. जब कार आंखों के सामने से ओझल हो गई तो मालविका अपने कमरे में लौट आईं. उस समय दोपहर के 2 बजे थे. बंगलुरु से हासन 182 किलोमीटर था यानी करीब साढ़े 3 घंटे का सफर.
सिद्घार्थ के दोनों बेटे अमर्त्य सिद्धार्थ और ईशान सिद्धार्थ अपनी कंपनी कैफे कौफी डे इंटरप्राइजेज लिमिटेड की ड्यूटी पर चले गए थे. पिता के व्यवसाय को उन के दोनों बेटों ने ही संभाल रखा था. दरअसल, कौफी का व्यवसाय उन के पूर्वजों से चला आ रहा था.
वीजी सिद्धार्थ ने पूर्र्वजों के व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए पिता से 5 लाख रुपए ले कर सन 1996 में बेंगलुरु के ब्रिगेट रोड पर कारोबार शुरू किया था. उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से उस व्यवसाय को 25000 करोड़ के एंपायर में बदल दिया था. इसी बिजनैस के सिलसिले में वह बंगलुरु से हासन की मीटिंग करने जा रहे थे.
न जाने क्यों अचानक वीजी सिद्धार्थ का मूड बदल गया. उन्होंने रास्ते में ड्राइवर बासवराज पाटिल से हासन के बजाए मंगलुरु की ओर गाड़ी मोड़ने को कहा. मालिक के आदेश पर बासवराज ने गाड़ी हासन के बजाए मंगलुरु की ओर मोड़ दी. मंगलुरु से पहले रास्ते में जिला कन्नड़ पड़ता था.
कन्नड़ जिले से हो कर ही मंगलुरु जाया जाता था. बासवराज ने कार कन्नड़ मंगलुरु के रास्ते पर दौड़ानी शुरू कर दी. उस समय शाम के 5 बज कर 28 मिनट हो रहे थे. करीब एक घंटे बाद यानी शाम के 6 बज कर 30 मिनट पर उन की कार कन्नड़ जिले की ऊफनती हुई नेत्रवती नदी के पुल पर पहुंची.
पुल पर पहुंच कर सिद्धार्थ ने बासवराज से गाड़ी रोकने के लिए कहा. मालिक का आदेश मिलते ही बासवराज पाटिल ने गाड़ी पुल शुरू होते ही रोक दी. चमकदार शूट पहने सिद्धार्थ ने गाड़ी से उतर कर ड्राइवर से कहा कि वह टहलने जा रहे हैं. उन के वापस लौटने तक वहीं इंतजार करे. फिर वह टहलते हुए आगे चले गए.
सिद्धार्थ की यह बात बासवराज को कुछ अजीब लगी. उस की समझ में नहीं आया कि साहब को अचानक क्या सूझा जो उन का पुल पर टहलने का मन बन गया. लेकिन उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिक से इस बारे में कुछ पूछ सके. वह अपलक और चुपचाप मालिक को आगे जाते हुए देखता रहा.
वीजी सिद्धार्थ को टहलने को निकले करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था. बासवराज बारबार कलाई घड़ी पर नजर डालतेडालते थक चुका था. सिद्धार्थ टहल कर वापस नहीं लौटे थे. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर उन के फोन पर काल की तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.
उस ने जितनी बार सिद्धार्थ के फोन पर काल की उतनी ही बार उन का फोन स्वीच्ड औफ मिला. मालिक का फोन स्विच्ड औफ मिला तो ड्राइवर बासवराज पाटिल परेशान हो गया. उस के मन में कई तरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे?
बासवराज पाटिल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने मालकिन मालविका को फोन कर के पूरी बात बता दी और वहां से घर लौट आया.
पहले तो मालविका ड्राइवर की बात सुन कर हैरान रह गई. फिर वह पति के फोन पर काल कर के उन से संपर्क करने की कोशिश करने लगीं, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. पति का फोन बंद देख मालविका परेशान हो गईं. उन्होंने ये बातें अपने दोनों बेटों अमर्त्य और ईशान को बता कर पिता का पता लगाने को कहा.
बेटों ने भी पिता के फोन पर बारबार काल कीं, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. रात गहराती जा रही थी. बेटों ने पिता के दोस्तों और उन के करीबियों को फोन कर के उन के बारे में पूछा तो सब ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि सिद्धार्थ न तो उन के पास आए और न ही उन्होंने फोन किया.
बहरहाल, मालिक का पता न चलने पर घर लौटे ड्राइवर बासवराज पाटिल से मालविका और उन के दोनों बेटों ने सवालों की झड़ी लगा दी. उन के सवालों का उस ने वही जवाब दिया जो वह जानता था. बासवराज की बात सुन कर मालविका और उन के बेटों को पिता के अपहरण किए जाने की आशंका सताने लगी, लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. वीजी सिद्धार्थ के रहस्यमय तरीके से लापता होने घर में कोहराम मचा था.
सिद्धार्थ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह जानेमाने बिजनैस टायकून थे. 25000 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के दामाद. सिद्धार्थ के लापता होने की खबर मीडिया तक पहुंच गई थी. इस के बाद यह खबर न्यूज चैनलों की लीड खबर बन कर न्यूज पट्टी पर चलने लगी.
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अगले दिन 30 जुलाई को अमर्त्य छोटे भाई ईशान और चालक बासवराज पाटिल को ले कर कन्नड़ जिले के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर अमर्त्य पुलिस उपायुक्त से मिले ओर उन्हें पूरी बात बता कर पिता का पता लगाने को कहा. उन के आदेश पर कर्नाटक पुलिस ने सिद्धार्थ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के उन की खोजबीन शुरू कर दी.
दूसरी ओर मालविका पति को ले कर परेशान थीं. दरअसल सिद्धार्थ पिछले कई दिनों से बिजनैस को ले कर काफी तनाव में थे. पूछने पर उन्होंने अपनी परेशानी का कोई ठोस जवाब नहीं दिया था.
मालविका ने पति की अलमारी खोली तो अलमारी से उन की एक डायरी हाथ लग गई. उत्सुकतावश मालविका डायरी खोल कर उस के पन्नों को उलटनेपलटने लगीं. इस कवायद में उन के हाथ पति की हाथ से लिखी एक चिट्टी मिली.
वह चिट्ठी उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए लिखी थी. पत्र पढ़ कर मालविका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वीजी सिद्धार्थ ने पत्र में जो लिखा था, उस का आशय साफ था. पत्र के हिसाब से वीजी सिद्धार्थ का अपहरण नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.
वह पत्र सिद्धार्थ ने कैफे कौफी डे के कर्मचारियों और निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए लिखा था. पत्र में उन्होंने लिखा था कि हर वित्तीय लेनदेन मेरी जिम्मेदारी है. कानून को मुझे और केवल मुझे जवाबदेह मानना चाहिए.
सिद्धार्थ ने आगे लिखा कि जिन लोगों ने मुझ पर विश्वास किया उन्हें निराश करने के लिए मैं माफी मांगता हूं. मैं लंबे समय से लड़ रहा था, लेकिन आज मैं हार मान गया हूं, क्योंकि मैं एक प्राइवेट लेंडर पार्टनर का दबाव नहीं झेल पा रहा हूं, जो मुझे शेयर वापस खरीदने के लिए विवश कर रहा है.
इस का आधा लेनदेन मैं 6 महीने पहले एक दोस्त से बड़ी रकम उधार लेने के बाद पूरा कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि दूसरे लेंडर भी दबाव बना रहे थे, जिस की वजह से वह हालात के सामने झुक गए.
पत्र पढ़तेपढ़ते मालविका की आंखें नम हो गईं उन्होंने बेटों को फोन कर के बता दिया कि उन के पापा का अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली है. उस के बाद उन्होंने पति के हाथों लिखे गए सुसाइड नोट के बारे में सारी बातें बता दी.
अमर्त्य ने यह बात जब पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल को बताई तो वे भी चौंके. यह बात उन की समझ में आ गई कि सिद्धार्थ ड्राइवर वासवराज को पुल पर खड़ा कर अकेले टहलने क्यों गए थे.
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पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल ने सिद्धार्थ के शव की खोज में नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ), तटरक्षक, अग्निशमन दल और तटवर्ती पुलिस की टीमों को लगा दिया. पुलिस और गोताखोरों की टीमें भी उन की तलाश में लग गईं.
क्रमश: