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भारती सिंह का मोटापा बना पहचान

भारती सिंह ने बतौर एक प्रतियोगी अपने करियर की शुरुआत की थी और आज वो एक होस्ट और जज के रूप में कार्य कर रही हैं. किसी भी मध्यम परिवार की लड़की के लिए इस ऊंचाई तक पहुंचना बहुत ही संघर्ष भरा रहा. लेकिन भारती सिंह ने अपनी मेहनत के बल पर आज टी.वी की दुनिया में एक ऐसा  मुकाम हासिल किया. जहां पर पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं. आज उनका नाम भारत के मशहूर कौमेडियन में गिना जाता है.

मोटापा बना पहचान

क्या आपको पता है. आज सबको हंसाने वाली भारती कभी मोटापे की वजह से रात भर रोया करती थी. आज वो अपनी कामयाबी का श्रेय अपनी मां के साथ मोटापे को भी देती है. आज उनकी कौमेडी के साथ मोटापा भी उनकी खास पहचान बन गया है.

एकमात्र सफल महिला कौमेडियन

अगर आज बात की जाए महिला स्टैंड अप कौमेडियन की तो सभी की जुबां पर सिर्फ भारती सिंह का ही नाम आता है. 2016 में फ़ोर्ब्स मैगजीन ने टौप 100 कौमेडियंस की लिस्ट जारी की थी, जिसमें भारती सिंह को 98वीं रेंक मिली थी. भारती सिंह हमारे देश की प्रतिभाशाली स्टैंड-अप कौमेडियन में से एक हैं. भारती ने अपने करियर में एक लंबा सफर तय किया है. इन्होने बहुत से सफल टीवी शो और बौलीवुड/पंजाबी फिल्मों में कौमेडी के साथ अभिनय किया है.

कम उम्र में उठा पिता का साया

भारती सिंह का जन्म मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था, तीन भाई-बहन हैं. भारती सिंह जब 2 साल की थी तब उनके पिता की मौत हो गई थी. पिताजी से जुडी यादें उनके जहन में नहीं है. मां ने दोबारा शादी करने की बजाय बच्चों के लिए स्ट्रगल का रास्ता चुना. भारती सिंह का बचपन गरीबी में बीता.

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प्रतिभाशाली रहीं

भारती सिंह कौमेडियन होने से पहले कालेज टाइम में राइफल शूटिंग गोल्ड मेडलिस्ट भी थी. स्कूल और कौलेज में भारती सिंह शूटिंग और तीरंदाजी किया करती थी. उनका सपना था कि वो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करें, लेकिन उनका परिवार कोचिंग सहित अन्य खर्चे उठा पाने में असमर्थ था. हालांकि, पंजाब के लिए भारती ने कई मैडल जीते, जिनकी वजह से एजुकेशन फ्री हो गई. भारती सिंह ने पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में एमए किया.

ऐसे हासिल किया मुकाम

बचपन में ही पिता का साया सिर से उठने से परिवार में आर्थिक तंगी की कमी थी, इसलिए भारती सिंह ने एक्टिंग कैरियर को चुना. जब करियर बनाने के लिए अमृतसर से मुंबई आई तो उनके रिश्तेदार शक करते थे. जब वो स्टेज पर कौमेडी करती तो वे मजाक बनाते थे. लेकिन अब वही लोग अपने बच्चों का मुंबई में करियर बनाने के लिए उनसे सलाह लेते हैं. भारती सिंह के करियर ने टीवी शो ‘ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ सीजन-4 से पकड़ी, इस शो में भर्ती रनर अप रही. इसके बाद भारती सिंह ने स्टेज शो के अलावा बहुत से कौमेडी शो किए. वर्तमान में खतरा-खतरा-खतरा शो कर रही हैं जिसमें उनके पति हर्ष भी उनके साथ है. खतरों के खिलाडी सीजन-9 में भी दोनों ने भाग लिया था.

भारती सिंह के करियर की शुरुआत

साल 2008 में भारती सिंह ने अपने करियर की शुरुआत बतौर एक कौमेडियन ही की थी. बतौर एक प्रतियोगी इन्होंने कौमेडी शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ में भाग लिया था. इस रियलिटी शो में भारती ने अपनी कौमेडी के जरिए सबको हंसाया था. हालांकि की वो इस शो की विजता नहीं रही थी. लेकिन इस शो ने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी थी. ये शो उनके आगे के करियर के लिए काफी मददगार साबित हुआ था. ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ शो को करने के बाद भारती ने कौमेडी सर्कस में भाग लिया था और इस शो में भी उनकी कौमेडी की खूब तारीफ की गई थी. इस शो के हर सीजन में भारती को देखा गया था और भारती काफी लंबे समय तक इस शो का भाग बनी रही थी.

डांस शो का भी हिस्सा रहीं

कौमेडी सर्कस में काम करने के बाद भारती ने साल 2012 में झलक दिखला जा के पांचवे सीजन में बतौर एक प्रतियोगी भाग लिया था. इस शो में भारती को डांस करते हुए देखा गया था. हालांकि इस शो में भारती विजेता नहीं रही थी. लेकिन उनके डांस को लोगों द्वारा काफी पसंद किया गया था. इस शो के बाद भारती सिंह ने एक और डांस शो में हिस्सा लिया था और उस शो का नाम नच बलिए था.

भारती सिंह का प्यार और शादी का सफर

भारती सिंह ने साल 2017 में अपने बौयफ्रेंड हर्ष लिंबियाशिया के साथ विवाह किया. भारती सिंह के पति हर्ष लिंबियाशिया गुजराती परिवार से होने के साथ टी.वी की दुनिया से है और वो एक लेखक के रूप में काम कर रहे है वो उम्र में भारती से छोटे हैं. इन दोनों की मुलाकात एक प्रसिद्ध कॉमेडी शो के दौरान हुई थी और हर्ष इस शो में बतौर एक लेखक के रूप में कार्य करते थे. इस कॉमेडी शो के दौरान शुरू हुई इनकी दोस्ती  कब प्यार में बदल गई और इन दोनों ने सगाई कर ली. सगाई करने के कुछ महीनों के बाद  दोनों ने गोवा में इन्होंने शादी भी कर ली थी.

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इंटरव्यू: कहीं आपके रिजेक्शन का कारण सौफ्ट स्किल्स तो नहीं ?

हर विधार्थी यही सोचता है की पढ़ाई खत्म होते  ही हमारी जौब लग जाये लेकिन कभी कभी अच्छी क्वालिफिक्शन होने के बावजूद हमें इंटरव्यू के दौरान रिजेक्शन का सामना करना पड़ता है जिसका कारण हमारी डिग्री ,कौलेज या इंस्टिट्यूट मे कमी नहीं, बल्कि कमी होती है हमारे अंदर सौफ्ट स्किल्स की . दरअसल जौब के लिये आपके सौफ्ट स्किल्स को भी परखा जाता है. जब आप इंटरव्यू के लिये जाते है तो सामने बैठे इंटरव्यू लेने वालो में से एक आपके  हाव भाव, बैठने का तरीका, कमरे  में प्रवेश  और  निकास का तरीका, बोलने के तरीके पर भी गौर करता है .  आपकी प्रोफेशनल  व पर्सनल लाइफ दोनों के लिए जरूरी है की आपके अंदर ये सौफ्ट स्किल्स हों .

बौडी लैंग्वेज

आपकी बौडी लैंग्वेज से आपके व्यक्तित्व का पता चलता है अधिकतर सभी लोग बौडी लैंग्वेज के सही तरीके के बारे मे जानते हैं लेकिन अपनाते कुछ लोग ही है. आपकी अच्छी बौडी लैंग्वेज  दूसरे व्यक्ति को अपनी और सकारात्मक रूप से आकर्षित करती है .

आई कांटेक्ट

हमारी आंखें बोलती है ये तो सभी ने सुना होगा, बहुतों ने आजमाया भी होगा. जब भी आप किसी से बात  करते हैं तो जरूरी है की सामने वाले से आंख मिला कर बात करे. ये आपके अंदर के  आत्म विश्वास को  झलकाता  है और सामने वाले  को प्रभावित भी  करता है .

कम्युनिकेशन स्किल

हमारे संवाद का  तरीका हमारे करियर व हमारी निजी ज़िंदगी मे बहुत अहमियत रखता है .फिर वो चाहे आपके सहकर्मी हो या वरिष्ठ अधिकारी आपके संवाद से ही आपके व्यक्तित्व का पता चलता  है किस जगह किस टोन मे बात करनी है, किस तरह की बात करनी है, व आपके शब्दों  का उच्चारण सही है या नहीं इस बात का  खास ध्यान रखें . और अगर आप सही है तो अपने पक्ष को पूरे आत्म विश्वास से दुसरों के सामने रखे. यह आपकी सकारात्मक छवि को दर्शाता है .

ध्यान से सुने

जब आप किसी से बात करते हैं तो उसकी बातों को ध्यान से सुने, जिससे की  आप उनकी बात का जवाब दें  व अपने विचार उनके सामने रख सकें और  आप उनसे दोबारा बात कर सके.

मोटिवेटर

अगर आप  घर मे हो या औफिस मे अपने सहकर्मियों को हमेशा प्रोत्साहित करें और उनके सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिये उन्हें प्रेरित करें.

अगर आप दूसरों के साथ सकरात्मक रवैया रखते  हैं तो हर कोई आप से बात करने के लिये उत्साहित होगा व आपसे बात कर के उनका मन हल्का होगा. और हो सकता है कि आप उनकी परेशानी को सुलझाने मे मददगार बन सकें .

डेलिगेशन (काम बाटें )

अगर आप एक फार्म मे  उच्च पद पर है या आपके काम के साथ कई और लोग जुड़े हुए है तो जरूरी है कि आप काम को अकेले न निबटाने की सोचे बल्कि अपने सहकर्मियों मे बाटें, जिससे की सभी मिल कर काम भी कर सकें और वो भी कुछ नया सिख पाएं . इससे  एकता भी बनी रहती है व आप भी दूसरे काम पर  ध्यान दे सकते हैं.

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महापुरुष : भाग 2

राजकुमार ने तब गौतम से अपने मन की इच्छा जाहिर की. वे उमा का हाथ गौतम के हाथ में थमाने की सोच रहे थे. उन्होंने कहा था कि अगर गौतम चाहे तो वे उस के मातापिता से बात करने के लिए दिल्ली जाने को तैयार थे.

सुन कर गौतम ने बस यही कहा, ‘आप के घर नाता जोड़ कर मैं अपने जीवन को धन्य समझूंगा. पिताजी और माताजी की यही जिद है कि जब तक मेरी छोटी बहन के हाथ पीले नहीं कर देंगे, तब तक मेरी शादी की सोचेंगे भी नहीं,’ उस ने बात को टालने के लिए कहा, ‘वैसे मेरी हार्दिक इच्छा है कि विदेश जा कर ऊंची शिक्षा प्राप्त करूं, पर आप तो जानते ही हैं कि मेरे एम.एससी. में इतने अच्छे अंक तो आए नहीं कि आर्थिक सहायता मिल जाए.’

‘तुम ने कहा क्यों नहीं. मेरा एक जिगरी दोस्त न्यूयार्क में प्रोफेसर है. अगर मैं उस को लिख दूं तो वह मेरी बात टालेगा नहीं,’ रामकुमार ने कहा.

‘आप मुझे उमाजी का फोटो दे दीजिए, मातापिता को भेज दूंगा. उन से मुझे अनुमति तो लेनी ही होगी. पर वे कभी भी न नहीं करेंगे,’ गौतम ने कहा.

रामकुमार खुशीखुशी घर के अंदर गए. लगता था, जैसे वहां खुशी की लहर दौड़ गई थी. कुछ ही देर में वे अपनी पत्नी के साथ उमा का फोटो ले कर आ गए. उमा तो लाजवश कमरे में नहीं आई. उस की मां ने एक डब्बे में कुछ मिठाई गौतम के लिए रख दी. पतिपत्नी अत्यंत स्नेह भरी नजरों से गौतम को देख रहे थे.

अपने कमरे में पहुंचते ही गौतम ने न्यूयार्क के उस विश्वविद्यालय को प्रवेशपत्र और आर्थिक सहायता के लिए फार्म भेजने के लिए लिखा. दिल्ली जाने से पहले वह एक बार और उमा के घर गया. कुछ समय के लिए उन लोगों ने गौतम और उमा को कमरे में अकेला छोड़ दिया था, परंतु दोनों ही शरमाते रहे.

गौतम जब दिल्ली से वापस आया तो रामकुमार ने उसे विभाग में पहुंचते ही अपने कमरे में बुलाया. गौतम ने उन्हें बताया कि मातापिता दोनों ही राजी थे, इस रिश्ते के लिए. परंतु छोटी बहन की शादी से पहले इस बारे में कुछ भी जिक्र नहीं करना चाहते थे.

गौतम के मातापिता की रजामंदी के बाद तो गौतम का उमा के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. उस ने जब एक दिन उमा से सिनेमा चलने के लिए कहा तो वह टाल गई. इन्हीं दिनों न्यूयार्क से फार्म आ गया, जो उस ने तुरंत भर कर भेज दिया. रामकुमार ने अपने दोस्त को न्यूयार्क पत्र लिखा और गौतम की अत्यधिक तारीफ और सिफारिश की.

3 महीने प्रतीक्षा करने के पश्चात वह पत्र न्यूयार्क से आया, जिस की गौतम कल्पना किया करता था. उस को पीएच.डी. में प्रवेश और समुचित आर्थिक सहायता मिल गई थी. वह रामकुमार का आभारी था. उन की सिफारिश के बिना उस को यह आर्थिक सहायता कभी न मिल पाती.

गौतम की छोटी बहन का रिश्ता बनारस में हो गया था. शादी 5 महीने बाद तय हुई. गौतम ने उमा को समझाया कि बस 1 साल की ही तो बात है. अगले साल वह शादी करने भारत आएगा और उस को दुलहन बना कर ले जाएगा.

कुछ ही महीने में गौतम न्यूयार्क आ गया. यहां उसे वह विश्वविद्यालय ज्यादा अच्छा न लगा. इधरउधर दौड़धूप कर के उसे न्यूयार्क में ही दूसरे विश्वविद्यालय में प्रवेश व आर्थिक सहायता मिल गई.

उमा के 2-3 पत्र आए थे, पर गौतम व्यस्तता के कारण उत्तर भी न दे पाया. जब पिताजी का पत्र आया तो उमा का चेहरा उस की आंखों के सामने नाचने लगा. पिताजी ने लिखा था कि रामकुमार दिल्ली किसी काम से आए थे तो उन से भी मिलने आ गए. पिताजी को समझ में नहीं आया कि उन की कौन सी बेटी की शादी बनारस में तय हुई थी.

उन्होंने लिखा था कि अपनी शादी का जिक्र करने के लिए उसे इतना शरमाने की क्या आवश्यकता थी.

गौतम ने पिताजी को लिख भेजा कि मैं उमा से शादी करने का कभी इच्छुक नहीं था. आप रामकुमार को साफसाफ लिख दें कि यह रिश्ता आप को बिलकुल भी मंजूर नहीं है. उन के यहां के किसी को भी अमेरिका में मुझ से पत्रव्यवहार करने की कोई आवश्यकता नहीं.

गौतम के पिताजी ने वही किया जो उन के पुत्र ने लिखा था. वे अपने बेटे की चाल समझ गए थे. वे बेचारे करते भी क्या.

उन का बेटा उन के हाथ से निकल चुका था. गौतम के पास उमा की तरफ से 2-3 पत्र और आए. एक पत्र रामकुमार का भी आया. उन पत्रों को बिना पढ़े ही उस ने फाड़ कर फेंक दिया था.

पीएच.डी. करने के बाद गौतम शादी करवाने भारत गया और एक बहुत ही सुंदर लड़की को पत्नी के रूप में पा कर अपना जीवन सफल समझने लगा. उस के बाद उस ने शायद ही कभी रामकुमार और उमा के बारे में सोचा हो. उमा का तो शायद खयाल कभी आया भी हो, पर उस की याद को अतीत के गहरे गर्त में ही दफना देना उस ने उचित समझा था.

उस दिन रवि ने गौतम की पुरानी स्मृतियों को झकझोर दिया था. प्रोफेसर गौतम सारी रात उमा के बारे में सोचते रहे कि उस बेचारी ने उन का क्या बिगाड़ा था. रामकुमार के एहसान का उस ने कैसे बदला चुकाया था. इन्हीं सब बातों में उलझे, प्रोफेसर को नींद ने आ घेरा.

ठक…ठक की आवाज के साथ विभाग की सचिव सिसिल 9 बजे प्रोफेसर के कमरे में ही आई तो उन की निंद्रा टूटी और वे अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गए. प्रोफेसर ने उस को रवि के फ्लैट का फोन नंबर पता करने को कहा.

कुछ ही मिनटों बाद सिसिल ने उन्हें रवि का फोन नंबर ला कर दिया. प्रोफेसर ने रवि को फोन मिलाया. सवेरेसवेरे प्रोफेसर का फोन पा कर रवि चौंक गया, ‘‘मैं तुम्हें इसलिए फोन कर रहा हूं कि तुम यहां पर पीएच.डी. के लिए आर्थिक सहायता की चिंता मत करो. मैं इस विश्वविद्यालय में ही भरसक कोशिश कर के तुम्हें सहायता दिलवा दूंगा.’’

रवि को अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. वह धीरे से बोला, ‘‘धन्यवाद… बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘बरसों पहले तुम्हारे नानाजी ने मुझ पर बहुत उपकार किया था. उस का बदला तो मैं इस जीवन में कभी नहीं चुका पाऊंगा पर उस उपकार का बोझ भी इस संसार से नहीं ले जा पाऊंगा. तुम्हारी कुछ मदद कर के मेरा कुछ बोझ हलका हो जाएगा,’’ कहने के बाद प्रोफेसर गौतम ने फोन बंद कर दिया.

रवि कुछ देर तक रिसीवर थामे रहा. फिर पेन और कागज निकाल कर अपनी मां को पत्र लिखने लगा.

आदरणीय माताजी,

आप से कभी सुना था कि इस संसार में महापुरुष भी होते हैं परंतु मुझे विश्वास नहीं होता था.

लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि दूसरों की निस्वार्थ सहायता करने वाले महापुरुष अब भी इस दुनिया में मौजूद हैं. मेरे लिए प्रोफेसर गौतम एक ऐसे ही महापुरुष की तरह हैं. उन्होंने मुझे आर्थिक सहायता दिलवाने का पूरापूरा विश्वास दिलाया है.

प्रोफेसर गौतम बरसों पहले कानपुर में नानाजी के विभाग में ही काम करते थे. उन दिनों कभी शायद आप की भी उन से मुलाकात हुई होगी…

आप का रवि

खून से खेलता धर्म

भारतीय संस्कृति में धर्म और अंधविश्वास इस कदर लोगों के दिलोदिमाग में बसे हुए हैं कि वे आंखें बंद कर के आस्था के नाम पर कुछ भी कर गुजरते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार कुछ देवीदेवताओं को खुश करने का तरीका केवल रक्त यानी खून बहाना बताया गया है. पशु बलि से ले कर इनसानी खून तक का इस्तेमाल पत्थर की मूर्तियों को खुश करने में किया जाता है.

वैसे इन मान्यताओं का कोई ठोस आधार भले ही न हो मगर लोग इसे जीवन का एक हिस्सा मानते हैं. इस के अलावा शरीर को कष्ट पहुंचा कर अपने अपराध में आस्था दिखाना भी हिंदू मान्यता का ही एक अंग है. लोग बीमारी के इलाज से ले कर सुखशांति पाने तक के लिए किसी भी हद तक जा कर अपनेअपने भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं और यह सब होता है अंधविश्वास के चलते. पंडेपुजारी आम जनता को भगवान के नाम पर जम कर फुसलाते हैं. देवी- देवताओं का प्रकोप बता कर लोगों को भयभीत कर उन की अंधी आस्था से खिलवाड़ करते हैं.

उत्तराखंड के चंपावत जिले के देवीधुरा गांव में भी कुछ ऐसी ही परंपरा है. यहां बगवाल मेले का आयोजन किया जाता है. बगवाल पत्थर फेंकने को कहा जाता है. इसलिए इस मेले कोे बगवाल मेला कहते हैं. मान्यता के अनुसार हर साल रक्षाबंधन के दिन यहां के वाराहीदेवी मंदिर के पास अलगअलग जाति और समुदाय के लोग जमा होते हैं और 2 गुटों में बंट कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. यह मेला 13 दिन तक चलता है, लेकिन रक्षाबंधन के दिन यहां खासा उत्साह देखा जाता है. इस बगवाल कार्यक्रम में दोपहर के समय 10-15 मिनट के लिए यह खूनी खेल खेला जाता है.

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परंपरा के अनुसार लोग एकदूसरे पर पत्थर फेंक कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहाते हैं. कहा जाता है कि देवी ने जब देवीधुरा के जंगलों को 52 हजार वीर और 64 योगिनियों के आतंक से मुक्त कराया था तब नर बलि की मांग की. तब यह निश्चित हुआ था कि पत्थर मार कर एक इनसान के खून के बराबर खून बहा कर देवी को तृप्त किया जाएगा. उस समय से ही लोग हर साल यहां मैदान में जुट कर कुछ समय के लिए एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. इस खेल में जब मंदिर के पुजारी को विश्वास हो जाता है कि एक इनसान के बराबर खून बह गया है तब वह इसे रोकने की घोषणा करता है. अब कौन सा ऐसा धर्म है जो आस्था के नाम पर एक आदमी को दूसरे का खून बहाने को कहता है?

हर साल सैकड़ों की तादाद में लोग इस खूनी खेल में घायल हो जाते हैं मगर पंडेपुजारियों के बहकावे में आ कर सब भूल जाते हैं. इसी तरह का एक और मेला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में लगता है. इस मेले को गोटमार मेला कहा जाता है. यहां भी हर साल 2 गांव, पनधुरा और स्वरगांव के लोग एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. इस मेले को लगभग 300 साल पुराना बताया जाता है.

यहां मान्यता है कि पनधुरा के राजा ने जब स्वरगांव की राजकुमारी को अपने साथ ले जाना चाहा था तब स्वरगांव के लोगों ने राजा पर पत्थर से हमला किया था पर चंडी देवी की कृपा से राजा बच गया. इसी के बाद यहां देवी का एक मंदिर बना, और तब से हर साल पत्थर मारने की यह प्रथा चली आ रही है. अब इस प्रथा के जरिए दोनों गांवों के युवा, अपने लिए दुलहन जीत में हासिल करते हैं. हर साल यहां लोग नदी के पास के मैदान पर एकत्र हो कर एकदूसरे पर पत्थरों से हमला करते हैं. बताया जाता है कि पिछले साल इस खेल में लगभग 800 लोग घायल हुए थे और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी. इस को देखते हुए प्रशासन ने इस पर रोक लगा दी थी, लेकिन लोगों की मांग पर अब रोक हटा ली गई है.

हिंदू धर्म शास्त्रों में कहीं भी हिंसा को सही नहीं माना गया है. अहिंसा को ही यहां परम धर्म माना गया है. छान्दोग्य उपनिषद में भी कलियुग में हिंदू वैदिक रीति के नाम पर होने वाली हिंसा को सही नहीं ठहराया गया है. साथ ही पशु बलि का भी निषेध बताया गया है. इस के बाद भी समाज में अभी तक ऐसी मान्यताओं और इन के नाम पर होने वाली हिंसा लगातार जारी है.

इस से साफ हो जाता है कि ऐसे मेलों का आयोजन केवल रूढि़वादी मान्यताओं और झूठी कहानियों के बल पर लोगों को धर्म के नाम पर गुमराह कर केवल पैसा बटोरने की कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं है. ऐसे आयोजन के चलते इन जगहों पर पर्यटक पहुंचते हैं, जिस से लाखों का चढ़ावा आता है. इस के अलावा आसपास के गांवों के लोग आते हैं जिस से व्यापार बढ़ता है. इन्हीं कारणों के चलते धर्म के ठेकेदार ऐसे आयोजनों को बंद नहीं होने देना चाहते ताकि उन की धर्म की दुकान चलती रहे.

इनसान के जन्म के साथ ही धार्मिक कर्मकांडों की जो घुट्टी उसे पिलाई जाती है उस का सदियों पुराना इतिहास है. हजारों सालों से अंधविश्वास समाज और उस की मानसिकता में भरा हुआ है. अगर इस में थोड़ा सा भी परिवर्तन आने लगता है तो यही धर्म के सौदागर आगे आ कर लोगों को देवीदेवताओं के प्रकोप से डराने लगते हैं, ताकि समाज में कहीं से उन का बुना हुआ धार्मिक जाल टूटने न लगे. यह भारतीय समाज की विडंबना है कि यहां पढ़ेलिखे लोग भी इस तरह के प्रपंचों में पड़ कर अपनी और दूसरों की जान जोखिम में डालते हैं.

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केवल ये उदाहरण नहीं हैं, जो भारतीय समाज और हिंदू धर्म में अंधविश्वास को दर्शाते हैं बल्कि भारत के कोनेकोने में धर्म की आड़ में दुकानदारी चल रही है. इस तरह के पाखंड समाज को दीमक की तरह चाट रहे हैं, जिन से समाज की सोचनेसमझने की ताकत खोखली होती जा रही है.

पति पत्नी का परायापन: भाग 1

पंकज कज मिश्रा उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के गांव भंगेल में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शैली मिश्रा उर्फ निधि और एक 7 साल का बेटा था. पेशे से इलैक्ट्रिशियन पंकज नोएडा के ही सेक्टर-135 में स्थित जे.पी. कौसमोस सोसायटी में नौकरी करता था.

20 जून, 2019 की सुबह 8 बजे पंकज घर से काम पर जाने के लिए साइकिल पर निकला. कुछ देर बाद जब वह सेक्टर-132 स्थित एक आईटी कंपनी के नजदीक सुनसान जगह से गुजर रहा था, तभी मोटरसाइकिल से 2 लोग उस के पास पहुंचे और उन्होंने पंकज को रुकने का इशारा किया.

पंकज ने साइकिल रोक दी. इस से पहले कि पंकज बाइक सवारों को समझ पाता, उन में से एक ने पंकज पर गोली चला दी. गोली लगते ही पंकज साइकिल सहित वहीं गिर पड़ा. वहां से गुजर रहे किसी राहगीर ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी.

चूंकि यह इलाका नोएडा के एक्सप्रैसवे थाने के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना एक्सप्रैसवे थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही थोड़े ही देर में एसआई अनूप कुमार यादव, दिनेश कुमार सोलंकी, गुरविंदर सिंह के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस पंकज को नजदीक के एक प्राइवेट अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो जेब में पहचान का कोई कागज नहीं मिला. जेब में सिर्फ एक मोबाइल फोन ही मिला. उस की शिनाख्त के लिए पुलिस ने मोबाइल फोन में मौजूद नंबरों पर काल करनी शुरू की.

इसी प्रयास में शारदा प्रसाद मिश्रा नाम के व्यक्ति से बात हुई. उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई पंकज मिश्रा का है जो नोएडा के भंगेल गांव में रहता है. पुलिस ने उसे अस्पताल बुला लिया ताकि लाश की शिनाख्त हो सके. शारदा प्रसाद अस्पताल पहुंच गया. पुलिस ने जब उसे उस युवक की लाश दिखाई तो उस ने उस की शिनाख्त अपने छोटे भाई पंकज मिश्रा के तौर पर कर दी.

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उस ने पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी भुवनेश कुमार को बताया कि पंकज जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था और घटना के समय अपने काम पर जा रहा था. शिनाख्त हो जाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दी गई.

इस के बाद थानाप्रभारी भुवनेश कुमार फिर से वारदात वाली जगह पहुंचे. उन्होंने आसपास के लोगों से पूछताछ की तो कुछ लोगों ने बताया कि बाइक सवार 2 लोगों ने साइकिल सवार एक युवक को गोली मारी थी.

थानाप्रभारी भुवनेश कुमार ने शारदा प्रसाद मिश्रा की शिकायत पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ पंकज मिश्रा की हत्या का मामला दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभवकृष्ण के निर्देश पर थानाप्रभारी भुवनेश कुमार टीम के साथ केस की जांच करने में जुट गए.

केस की गुत्थी सुलझाने के लिए उन्होंने जांचपड़ताल शुरू की. क्योंकि बदमाशों ने उस से किसी प्रकार की लूटपाट नहीं की थी, इसलिए इस संभावना को बल मिल रहा था कि शायद पंकज से किसी की कोई पुरानी रंजिश रही होगी, जिस के कारण मौका ताड़ कर उसे मौत के घाट उतार दिया गया.

पंकज भंगेल में एक किराए के मकान में रहता था. थानाप्रभारी पूछताछ के लिए उस के घर पर पहुंच गए. घर पर मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा मिली. थानाप्रभारी ने शैली मिश्रा से पंकज की दुश्मनी के बारे में पूछा तो उस ने किसी भी व्यक्ति के साथ रंजिश से साफ इनकार कर दिया.

मृतक के भाई शारदा प्रसाद मिश्रा से भी किसी से रंजिश आदि के बारे में पूछा गया. उस ने भी ऐसी किसी दुश्मनी से अनभिज्ञता जाहिर की. यह सब देख कर पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए अन्य संभावित कारणों के बारे में जांचपड़ताल की.

मृतक पंकज की पत्नी शैली मिश्रा से थानाप्रभारी ने और भी कई तरह के सवाल किए तो उस के बयानों में कुछ विरोधाभास मिला. इस पर पुलिस ने पंकज और शैली मिश्रा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहन जांचपड़ताल की. पता चला कि शैली मिश्रा की एक मोबाइल नंबर पर अकसर बातें होती थीं.

जब उस मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो वह सुरेश सिधवानी नाम के एक युवक का निकला जो नोएडा के सेक्टर-82 में रहता था. पुलिस ने शैली से कुछ नहीं कहा, बल्कि सुरेश सिधवानी को पूछताछ के लिए उस के घर से उठा लिया. थाने में उससे सख्ती से उस के और शैली मिश्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने सारा सच उगल दिया.

उस ने बताया कि पिछले 2 सालों से उस के और शैली मिश्रा के बीच गहरी दोस्ती है, जो अवैध संबंधों में बदल गई थी. उस ने और शैली ने योजना बना कर पंकज को रास्ते से हटाया है.

इस के बाद पुलिस ने शैली मिश्रा को भी भंगेल स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. वहां उस ने पहले से हिरासत में लिए गए सुरेश सिधवानी को देखा तो उस के चेहरे का रंग उतर गया. अब उस के सामने सच बोलने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. लिहाजा पूछताछ में शैली ने भी स्वीकार कर लिया कि पंकज की हत्या उसी के इशारे पर की गई थी.

दोनों से विस्तार से पूछताछ करने पर पंकज की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली-

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला अयोध्या का रहने वाला पंकज मिश्रा पिछले कई सालों से अपनी पत्नी शैली और 7 साल के बेटे के साथ नोएडा के भंगेल गांव में रह रहा था. वह जे.पी. कौसमोस सोसायटी में इलैक्ट्रिशियन का काम करता था. वहां से उसे जो तनख्वाह मिलती थी, उस से परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पाता था.

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घरगृहस्थी चलाने में आ रही दुश्वारियों से दोनों हमेशा परेशान रहते थे. शैली सुंदर होने के साथसाथ कुछ पढ़ीलिखी भी थी. उस ने सोचा कि बेटे को स्कूल छोड़ने के बाद वह दिन भर घर में अकेली पड़ीपड़ी बोर होती रहती है, इसलिए उसे कहीं पर दिन की नौकरी मिल जाए तो काफी कुछ दुश्वारियां कम हो जाएंगी.

उस दिन जब पंकज अपनी ड्यूटी करने के बाद घर लौटा तो शैली ने उस से अपने मन की बात कही. शैली की बात सुन कर पंकज सोच में डूब गया. उस का दिल इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शैली घर की दहलीज लांघ कर कहीं नौकरी करने जाए.

लेकिन घर की परिस्थितियां इस बात की ओर इशारा कर रही थीं कि उस की तनख्वाह में घर बड़ी मुश्किलों से चलता है. कई बार मुश्किलें आने पर उसे अपनी जानपहचान वालों से रुपए उधार मांगने पड़ते हैं, जिन्हें बाद में चुकाना भी काफी कठिन हो जाता है.

अगले भाग में पढ़ें: शैली की नौकरी करने से पंकज को क्यों ऐतराज था ?

दमा का क्या है इलाज ?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 4 नवम्बर से ओड-ईवन नम्बर की गाड़ियों के अलग-अलग दिनों में सड़कों पर चलने का रूल फिर से लागू कर दिया है. पन्द्रह दिन तक यह नियम लागू रहेगा. वजह है वायु प्रदूषण. हर साल अक्टूबर-नवम्बर माह में एक ओर वायुमंडल में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है और दूसरी ओर अस्पतालों में सांस और दमे की बीमारियों से हांफते रोगियों की संख्या. दरअसल अक्टूबर-नवम्बर माह में दशहरा, दीवाली जैसे त्योहारों में पटाखों के इस्तेमाल से आकाश जहां धुएं से भर जाता है, वहीं इन्हीं दिनों में किसान अपने खेतों में परली यानी फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे हुए अंश और कचरे को जलाते हैं, जिससे उत्पन्न धुआं वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ा देता है. गाड़ियों और अन्य वाहनों का धुआं पहले ही वातावरण में होता है. ठंड और कोहरे की वजह से यह धुआं जल्दी साफ  नहीं हो पाता है और कई दिनों तक जमा रहता है. इसके कारण अस्थमा या दमे के रोगियों की हालत खराब हो जाती है. वहीं सांस की अन्य अनेक बीमारियां फैलने लगती हैं.

ठंड के मौसम में वायु प्रदूषण के कारण दमा यानी अस्थमा का अटैक और खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो बीते पांच सालों में अस्थमा की दवाइयों की बिक्री 43 फीसदी तक बढ़ गयी है. पिछले साल भी मरीजों की संख्या 15 प्रतिशत तक बढ़ गयी थी. विशेषज्ञों के अनुसार ठंड में प्रदूषणयुक्त सूखी हवा व वातावरण में वायरस की बढ़ोत्तरी से अस्थमा की समस्या ज्यादा गंभीर हो जाती है. ठंड के कारण सांस की नलियों में सूजन आ जाती है जिससे नलियां सिकुड़ जाती हैं, इसमें बलगम जमा होने से सांस लेने में दिक्कत पैदा होने लगती है.

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क्या है इलाज

दमा या अस्थमा के रोगियों को इन दिनों में घर में ही रहने की सलाह दी जाती है ताकि वे बाहर की प्रदूषित हवा से बचे रहें. इसके साथ ही गीले रूमाल से नाक और मुंह ढंकने की सलाह भी दी जाती है. बाजार में कई तरह के मास्क भी उपलब्ध होते हैं, जिनका इस्तेमाल लोग करते हैं. अस्थमा के रोग में डौक्टर ओरल दवाओं की जगह इन्हेलर को ज्यादा इफेक्टिव मानते हैं. इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा असरकारी है. इस थेरेपी में इन्हेलर पम्प में मौजूद कोरटिकोस्टेरौयड सांस की नलियों में जाता है और पैसेज को साफ करके सूजन को कम करता है. पैसेज खुलने से सांस ठीक तरीके से आने लगती है. सांस की नली की सूजन कम करने के लिए 25 से 100 माइक्रोग्राम कोरटिकोस्टेरौयड की ही जरूरत होती है, लेकिन ओरल दवाओं के जरिए 10 हजार माइक्रोग्राम दवा शरीर में चली जाती है. यानी टैबलेट के माध्यम से अस्थमा रोगी 200 गुना ज्यादा दवा की मात्रा ले लेता है. ये दवाएं पहले रक्त में घुलती हैं और फिर रक्त के माध्यम से फेफड़े तक पहुंचती हैं और तब इनका असर दिखायी देता है. लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरौयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है, और जल्दी काम करता है. लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए स्टेरौयड की आवश्यक मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है. इसके अलावा खानपान में थोड़ा बदलाव करके भी अस्थमा के लक्षणों को कम किया जा सकता है.

ओमेगा-3 फैटी एसिड

ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा खाने में बढ़ाने से दमे की शिकायत को कंट्रोल किया जा सकता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड साल्मन, ट्यूना, ट्राउट जैसी मछलियों, सूखे मेवों व अलसी में पाया जाता है. जाड़ों में अगर आप अपने खाने में इन चीजों की मात्रा बढ़ा दें तो दमा या श्वास सम्बन्धी रोगों के प्रकोप से बच सकते हैं. ओमेगा-3 फैटी एसिड हमारे फेफड़ों के लिए भी लाभदायक है. यह सांस की तकलीफ एवं घरघराहट के लक्षणों से भी निजात दिलाता है.

फोलिक एसिड

पालक, ब्रोकली, चुकंदर, शतावरी, मसूर की दाल में फोलेट होता है. हमारा शरीर फोलेट को फोलिक एसिड में तब्दील करता है. फोलेट फेफड़ों से कैंसर पैदा करने वाले तत्वों को हटाता है और फेफड़ों व श्वास नली को साफ रखता है.

विटामिन सी

संतरे, नींबू, टमाटर, कीवी, स्ट्राबेरी, अंगूर, अनानास व आम में भरपूर विटामिन सी होता है, सांस लेते वक्त शरीर को औक्सीजन देने और फेफड़ों से विषाक्त पदार्थों को निकालने में यह चीजें मदद करती हैं.

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लहसुन

लहसुन में एल्लिसिन तत्व मौजूद होता है जो फेफड़ों से मुक्त कणों को दूर करने में मदद करता है. लहसुन संक्रमण से लड़ता है और फेफड़ों की सूजन को कम करता है.

बेरी

ब्लूबेरी, रसबेरी, ब्लैकबेरी में एंटीऔक्सिडेंट होते हैं. ये कैंसर से बचाने के लिए फेफड़ों से कार्सिनोजन को हटाते हैं. कैरोटिनायड एंटीऔक्सीडेंट अस्थमा के दौरों से राहत दिलाता है. फेफड़ों की कैरोटीनायड की जरूरत को पूरा करने के लिए गाजर, शकरकंद, टमाटर, पत्तेदार सब्जियों का सेवन करें. सर्दियों में सही इलाज, दवाओं व उचित खानपान से अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

एशिया फ्रूट लौजिस्टिका का सितंबर में हौंगकौंग में आयोजन

ताजा फलों और सब्जियों की उपज के क्षेत्र और उस से जुड़ी हुई वैल्यू चेन में एशिया फ्रूट लौजिस्टिका एक ऐसा अवसर मुहैया करा रहा है, जो अब तक कभी प्रदान नहीं किया गया है.  एशिया फ्रूट लौजिस्टिका का मकसद इस इंडस्ट्री से जुड़े कारोबारियों को नए कारोबारी बनाने और अंतर्राष्ट्रीय लैवल पर अपने नएनए प्रौडक्ट्स और आविष्कारों का प्रदर्शन करने का मौका मुहैया कराना है.

वार्षिक व्यापार प्रदर्शनी को एशिया के प्रमुख बाजारों में बड़ी तादाद में हाई क्वालिटी के प्रौडक्ट्स के खरीदारों को लुभाने के लिए जाना जाता है. इस प्रदर्शनी में बड़ी तादाद में लौजिस्टिक्स, टैक्नोलौजी और मशीनरी के क्षेत्र में काम करने वाले, कारोबारी भी हिस्सा लेते हैं.

पिछले साल इस व्यापार प्रदर्शनी में भारत की ओर से तीसरे नंबर पर सब से ज्यादा तादाद में लोगों ने?भाग लिया था. इस मेले में 6 फीसदी भारतीयों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई थी. अपने कारोबार को आगे बढ़ाने में चेन पार्टनर और सर्विस प्रोवाइडर्स की अहम भूमिका पर जोर देते हुए एशिया फ्रूट लौजिस्टिका ने इस साल भारत में ताजा फल और सब्जियां बेचने वाले कारोबारियों और सप्लाई चेन के रिटेलरों से बड़ी तादाद में पंजीकरण आमंत्रित किए हैं.

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एशिया के प्रीमियम फ्रैश प्रोड्यूस शो पर टिप्पणी करते हुए एशिया फ्रूट लौजिस्टिका के भारतीय प्रतिनिधि कीथ सुंदरलाल ने कहा, ‘‘एशिया फ्रूट लौजिस्टिका दुनियाभर के खरीदारों और प्रदर्शनी लगाने में दिलचस्पी रखने वाली कंपनियों को आकर्षित करती है. यह विभिन्न कंपनियों के महत्त्वपूर्ण लोगों और प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों को विश्व स्तर पर एकदूसरे से जुड़ने और साझीदारी का मौका मुहैया कराती है. 3 दिन तक चलने वाली यह व्यापार प्रदर्शनी सभी आकार की कंपनियों को उन के लिए नए सप्लायर्स की खोज और संबंधों के विकास के माध्यम से व्यापार के काफी और शानदार अवसर मुहैया कराती?है. ताजा फलों और सब्जियों की बिक्री के?क्षेत्र में तेजी से बदलते ट्रैंड्स और टैक्नोलौजी का पता लगाने के लिए इस व्यापार प्रदर्शनी में विभिन्न हितधारकों को?भागीदारी जरूर करनी चाहिए.

हाल ही में ट्रेड फेयर फ्रूट लौजिस्टिका का आयोजन 6 फरवरी से 8 फरवरी, 2019 तक जर्मनी के बर्लिन में किया गया?था. इस व्यापार प्रदर्शनी में 135 देशों के 78,000 ट्रेड विजिटर्स ने भाग लिया था. ताजा फलों और सब्जियों की मार्केटिंग के लिए फ्रूट लौजिस्टिका दुनिया की सब से प्रमुख प्रदर्शनी मानी जाती है. इस प्रदर्शनी में शिकरत करने वाले हर दूसरे आयोजक को इस साल शानदार बिजनैस डील करने का मौका मुहैया करा कर शानदार नतीजे हासिल किए हैं.

एशिया फ्रूट लौजिस्टिका के साथ कंपनी अपनी विशेषज्ञता से तेजी से बढ़ते और सब से ज्यादा संभावनाओं वाले एशियाई देशों में मार्केट में कारोबारियों को परिचित करा रही है. एशिया फ्रूट लौजिस्टिका में अपनी प्रौडक्ट और सर्विसेज की प्रदर्शनी लगाने में दिलचस्पी रखने वाले आयोजक एशिया फ्रूट लौजिस्टिका की आधिकारिक वैबसाइट पर जानकारी ले सकते हैं.

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जानें, कैसे बनाएं ग्रिल्ड एगप्लांट

अगर आप कुछ नया डिश बनाना चाहते हैं तो ग्रिल्ड एगप्लांट डिश जरूर बनाएं. क्योंकि ये डिश बनाने में भी आसान है. इसे बनाने के लिए आपको बहुत कम चीजों की जरूरत है और टाइम भी कम लगेगा. तो चलिए जानते है ग्रिल्ड एगप्लांट इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री

4 स्लास एगप्लांट/ बैंगन

2 टी स्पून वर्जिन औलिव औइल

सी सौल्ट, जरूरत के हिसाब से

ग्रिल्ड एगप्लांट

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बनाने की वि​धि

बैंगन को अच्छी तरह धोकर इन्हें गोल-गोल स्लाइस में काटकर एक बड़े बोल में रख लें.

अब एक ग्रिल्ड पैन को गैस पर मध्यम आंच पर रखें और एक टी-स्पून वर्जिन औलिव औइल डालकर गर्म करें और तुरंत ही इसमें बैंगन के कटे हुए स्लाइस डाल दें.

इन सभी स्लाइस को दोनों तरफ से टोस्ट की तरह अच्छी तरह सेक लीजिए, जब तक ये गोल्डन ब्राउन ना हो जाएं. इसमें आपको 10 से 15 मिनट तक इन्हें उलट-पलटकर सेकना होगा.

जब सभी स्लाइस अच्छी तरह सिक जाएं तो इन्हें एक सर्विंग प्लेट में निकाल लें. अब इन पर थोड़ा-थोड़ा औलिव औइल और सौल्ट लगाएं और सर्व करें.

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रोमिला थापर को परेशान किए जाने के ये हैं मायने

रोमिला थापर का गुनाह इतना भर नहीं है कि वे एक परम्परागत भारतीय महिला सरीखी नहीं दिखती हैं. एक ऐसी महिला जो पहली नजर में ही किसी न किसी एंगल से निरुपा राय कामिनी कौशल या सुलोचना जैसी दयनीय भारतीय (दरअसल में हिन्दू) न दिखे बल्कि प्रिया राजवंश, सोनी राजदान या सिम्मी ग्रेवाल सी राजसी आत्मविश्वास, ठसक और चमक दमक वाली दिखे. वह किसी भी लिहाज से जेएनयू में बने रहने लायक आज के दौर में हो ही नहीं सकती. गुनाहों की देवी रोमिला थापर का एक बड़ा गुनाह यह भी है कि उन्होंने अगस्त 2018 की किसी तारीख में आज के दौर और राजकाज की तुलना आपातकाल से करते यह तक कह डाला था कि वह आपातकाल कम खतरनाक था.

इसी 30 नवंबर को रोमिला 88 की हो जाएंगी लेकिन मुमकिन है वे जन्मदिन जेएनयू में न मना पाएं क्योंकि उनकी विदाई की तैयारियां कम से कम कागजों में तो पूरी हो गई हैं क्रिकेट की भाषा में कहें तो मैच का फैसला तो हो चुका है बस औपचरिकताए शेष हैं.

मुमकिन है आप भी कई लोगों की तरह रोमिला थापर के बारे में वो सब न जानते हों जो कि अब जानना जरूरी हो गया है जिससे यह पता चले कि क्यों वे सत्ता पक्ष और भगवा खेमे के निशाने पर आ गई हैं. अब तो हालांकि 2014 से ही गईं थीं लेकिन उनका नंबर अब आया है जो उन्हें बेहद षड्यंत्रपूर्वक तरीके से जेएनयू के बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं. और यह सब बेमकसद नहीं है मकसद उन्हीं की जुबानी हम आगे समझेंगे.

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असाधारण प्रतिभा की धनी

लखनऊ में जन्मी रोमिला ने पहले पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली और फिर लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल औफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज से साल 1958 में डाक्ट्रेट की उपाधि हासिल की. इतिहास में गहरी दिलचस्पी रखने वाली प्रतिभाशाली रोमिला ने कुरुक्षेत्र और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास का गहन अध्ययन 1963 से लेकर 1970 तक किया. साल 1983 में रोमिला भारतीय इतिहास कांग्रेस की जनरल प्रेसिडेंट और फिर 1999 में ब्रिटिश अकादमी की कोरेस्पांडिंग फेलो चुनी गईं .

साल 2009 में उन्हें अमेरिकन एकेडमी औफ आर्ट्स एंड साइंसेज का फारेन फेलो सदस्य चुना गया था और 2017 में उन्हें सेंट एंटेनी कालेज औक्सफोर्ड का माननीय फेलो चयनित किया गया था.

लेकिन इस सब का यह मतलब नहीं कि उनका देश से नाता टूट गया था बल्कि ये उपाधियां और सम्मान तो उन्हें प्रदान किया गए थे नहीं तो दुनियाभर में प्राचीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ मानी जाने वाली रोमिला थापर 1970 से लेकर 1993 तक जेएनयू में इतिहास की प्रोफेसर रहीं थीं और रिटायरमेंट के बाद उन्हें 1993 में ही प्रोफेसर इमेरेटिस का दर्जा दिया गया था. प्रोफेसर इमेरेटिस वह रिटायर्ड प्रोफेसर होता है जिसे कोई भी विश्वविद्यालय बतौर मेंटर नियुक्त कर सकता है .

यह एक अवैतनिक लेकिन गरिमामय पद होता है जिसमें प्रोफेसर इमेरेटिस को केबिन , स्टेशनरी और दूसरी जरूरी सुविधाएं ही मुहैया कराई जाती हैं. जाहिर है यह किसी भी प्रोफेसर की शैक्षणिक योग्यताओं उपलब्धियों और अनुभवों का सबसे बड़ा सम्मान होता है जो हर किसी को नहीं मिलता और न ही दिया जा सकता. गौरतलब और दिलचस्प बात यह भी है कि प्रोफेसर इमेरेटिस जिंदगी भर के लिए नियुक्त किया जाता है या होता है एक ही बात है .

विवाद और उसकी जड़

आमतौर पर रोमिला एक शांत स्वभाव वाली महिला हैं और बेवजह के विवादों में नहीं पड़ती लेकिन कुछ वजहों के चलते भगवा खेमे के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह कोई वजह पैदाकर उन्हें पहले विवादों में घसीटे और फिर हल्ला मचाकर बाहर चलता करे. सितंबर के पहले सप्ताह में जेएनयू प्रशासन ने उनसे उनका सीवी यानि बायोडाटा मांगा तो उम्मीद के मुताबिक बहुत ज्यादा सार्वजनिक हलचल नहीं हुई थी. कैम्पस के कुछ छात्रों और प्रोफेसरों ने इसका विरोध जरूर किया था कि यह गैरजरूरी और राजनीति से प्रेरित है क्योंकि प्रोफेसर इमेरिटस से सीवी मांगा जाना उनका अपमान है वह भी रोमिला थापर से जो 45 सालों से भी ज्यादा वक्त से जेएनयू से जुड़ी हुई हैं.

रोमिला थापर ने भी इसका मुकम्मल और मुंहतोड़ लिखित जबाब दिया था .

लेकिन तयशुदा प्लान के मुताबिक जल्द ही वे लोग भी मैदान में कूद पड़े जो यह कह रहे थे कि इसमें हर्ज क्या है. इन लोगों जिनमें भाजपा के आईटी सेल के मुखिया भी शामिल हैं ने तरह तरह के तर्क अध्यादेश और नियम कायदे कानूनों का हवाला देते हवा बनाई कि रोमिला थापर को सीवी देना चाहिए. इन दलीलों में जगह जगह जेएनयू प्रशासन और संविधान का हवाला आया लेकिन जितना ये अपनी जिद पर अड़े रहे स्वभाविक तौर पर उसका विरोध भी हुआ. इस निरर्थक से प्रायोजित महाभारत में सबसे तीखी और दिलचस्प प्रतिक्रिया गीतकार जावेद अख्तर ने यह तंज कसते हुये दी कि वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सम्मानित इतिहासकार हैं जिनका सीवी दिल्ली की टेलीफोन डायरेक्ट्री से थोड़ा सा ही छोटा होगा. वे सिर्फ इस बात को पुख्ता करना चाहते हैं कि उनकी बीए की डिग्री है या नहीं क्योंकि यह अक्सर खो जाती है .

जावेद अख्तर के इस ट्वीट ने भक्तों के मुंह पर पट्टी बांध दी जो नहीं चाहते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री का मामला तूल पकड़े.

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हकीकत यह है 

रोमिला थापर की लिखी गई कई किताबों में से एक है भारत का इतिहास जिसमें उन्होंने तथाकथित हिन्दुत्व और उसके पाखंडों की जमकर बखिया कुछ इस तरह उधेड़ी है कि कोई इसे तर्कों से खारिज करना तो दूर की बात है तर्कों और तथ्यों से सटीक जवाब भी नहीं दे सकता. अगर आप रोमिला का लिखा कुछ भी पढ़ेंगे तो आपकी आस्था डगमगा भी सकती है. उनकी भाषा हालांकि दार्शनिकों जैसी भारी भरकम है लेकिन इतनी असहज भी नहीं है कि समझ न आए .

पहली बार रोमिला थापर को लेकर एक बड़ा हल्ला साल 2004 में मचा था जब उन्होंने एनसीआरटी की किताबों में फेरबदल को लेकर एतराज जताया था. यह एतराज बीफ को लेकर था रोमिला ने हिन्दू परम्परा में बीफ खाने के कुछ उदाहरण पेश किए थे. उन्होंने तब शतपथ ब्राह्मण और वशिष्ठ धर्मसूत्र के उद्धरण देकर साबित किया था कि प्राचीन काल में बीफ परोसने का चलन था. बृहदारण्यक उपनिषद उपनिषद का हवाला देते उन्होंने बताया था कि इसमें उल्लेख है कि दीर्घायु होने और तेजतर्रार संतान प्राप्ति के लिए चावल के साथ बछड़े का मांस या गौ मांस खाना चाहिए. तभी से उनके और दक्षिणपंथ के बीच एक स्थायी कटुता पसर गई थी जिसकी कसर अब निकाली जा रही है. जिसका तरीका हालांकि घटिया है लेकिन इसे यह कहते नहीं टाला जा सकता कि जंग, मोहब्बत और सियासत में सब जायज होता है. क्योंकि दक्षिण पंथ आजतक उनके उद्धरणों को नकार नहीं सका है.

यही वह बात और बातें हैं, जिनके चलते भगवा खेमा तिलमिलाया हुआ है. पांच बुद्धिजीवियों जिन्हें शहरी नक्सली कहते नजरबंद कर दिया गया था कि गिरफ्तारी पर उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया था कि तब यानि 1975 के मुक़ाबले आज डर ज्यादा है. बक़ौल रोमिला उनका सीवी मांगे जाने की वजह आंशिक तौर पर व्यक्तिगत है, आज हमें ऐसा समाज बनाया जा रहा है जो स्वतंत्र विचारों के खिलाफ हो, जिस दुनिया में हम रह रहे हैं उस पर सवाल उठाने का विरोध करता हो. हमें बौद्धिक और शैक्षणिक जीवन को नीचा देखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है.

रोमिला के शाब्दिक और वैचारिक हमले के बाद जब दुनियाभर के शिक्षाविद उनके पक्ष में एकजुट होने लगे तो सरकार की तरफ से बचकानी दलीलें दी जाने लगीं. जरूरी यह लगने लगा कि मामला केवल बुद्धिजीवी वर्ग तक में सिमटा है इसलिए आम लोगों को इससे जोड़ने कोई धार्मिक प्रसंग लाया जाये जिससे रोमिला थापर जैसे इतिहासकारों को जलील किया जाकर हमेशा की तरह उन्हें भी बहिष्कृत करने में सहूलियत हो .

फिर आए युधिष्ठिर महाराज

यह मौका जल्द मिल भी गया जब 21 सितंबर से एक विडियो तेजी से वायरल और ट्रेंड होना शुरू हुआ. इस एक मिनिट के वीडियो में रोमिला थापर यह कहती नजर आ रहीं हैं कि महाभारत में युधिष्ठिर का चरित्र सम्राट अशोक से प्रेरित था. बस बहस छेड़ने यह काफी था . आस्थावान चूहों के हाथ चिंदी आ गई कि यह कैसे मुमकिन है क्योंकि महाभारत काल प्राचीन है और अशोक उसके बहुत बाद का है. सोशल मीडिया पर रोमिला थापर को धूर्त इतिहासकार कहते उनके ज्ञान पर सवाल उठने लगे. यह वीडियो कब किन हालातों में बना इस जानकारी से परे भक्तों ने तरह तरह के तंज रोमिला पर कसे लेकिन कुछ जानकारों ने माना भी कि कालखंड के हिसाब से यह मुमकिन भी है कि अशोक पहले हुआ और महाभारत काल बाद में हुआ या फिर काल्पनिक है.

सच कुछ भी हो लेकिन तर्क की जगह आस्था ने ले ली तो बीए पास और फेल हिंदुओं को भी यह कहने का मौका मिल गया कि इतिहास से छेड़छाड़ वामपंथी इतिहासकारों का पुराना शगल सनातन धर्म को बदनाम करने का है जबकि यह दुनिया का प्राचीनतम और वैज्ञानिक धर्म है . अपनी बात में दम लाने भक्तों ने कई ऊटपटांग दलीलें हमेशा की तरह दीं कि इन्टरनेट का आविष्कार तो महाभारत काल में ही हो गया था और श्राद्ध का महत्व यह है कि इसमें पितरों के बहाने कौवों को खीर एक खास मकसद से खिलाई जाती है. यहां इन बेसरपैर के किस्सें  कहानियों के उल्लेख के कोई माने नहीं लेकिन इनकी आड़ में रोमिला थापर को घेरने में जरूर हिंदूवादी खेमा कामयाब हो गया.

आस्था की अंधी आंधी में प्रसिद्ध इतिहासकार और माइथीलोजी के विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक जैसी दर्जनों हस्तियों का यह स्पष्टीकरण सोशल मीडिया की भक्त गेंग का शिकार होकर रह गया कि रोमिला थापर जिस युधिष्ठिर नाम चरित्र का जिक्र कर रहीं हैं, वह महाभारत का है. जो 2000 साल पहले लिखा गया जबकि अशोक ने अपने शासनादेश 2300 साल पहले लिखे थे. यानी रोमिला गलत कुछ नहीं कह रहीं थीं.

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हकीकत तो यह है कि केंद्र सरकार की मुखर आलोचक रहीं रोमिला शिक्षा के निजीकरन और  संस्थानों की स्वायत्ता खत्म करने पर भी सरकार को घेरती रहीं हैं. वे दो टूक साबित कर चुकी हैं कि आर्य बाहरी आक्रांता थे, ये और ऐसी कई वजहों के चलते वे भगवा खेमे की आखो में खटक रहीं थीं लिहाजा उन्हें भी तरह तरह से परेशान किया जा रहा है. परेशान तो किसी न किसी तरीके से हर उस शख्स को किया जा रहा है जो सरकार की नीतियों रीतियों की आलोचना करता है और भगवा एजेंडे के नुकसान गिनाता है फिर रोमिला थापर तो हिन्दू राष्ट्र की मुहिम में घोषित रोड़ा हैं .

‘कसौटी जिंदगी के 2’: नई कोमोलिका का किरदार निभाएगी ये एक्ट्रेस

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ में आपको लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. इधर प्रेरणा को अनुराग और मिस्टर बजाज दोनों की फिक्र लगी रहती है. एक ओर उसे अनुराग की फिक्र है तो दूसरी ओर वह मिस्टर बजाज के प्रति भी लौयल रहना चाहती है. आपको बता दें,  इस शो में जल्द ही ही कोमोलिका की रीएंट्री भी हो सकती है.

रिपोर्टस के मुताबिक अब कोमोलिका के किरदार में हिना खान नजर नहीं आएंगी. ऐसे में नई कोमोलिका के किरदार के लिए कई टीवी एक्ट्रेस के नाम सामने आए हैं. खबरों की माने तो इस सीरियल के मेकर्स ने कोमोलिका के किरदार के लिए एक्ट्रेस का चुनाव कर लिया है. जी हां, नई कोमोलिका का किरदार गौहर खान निभा सकती हैं.

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जानकारी के मुताबिक इस सीरियल के लिए गौहर खान ने अपना लुक टेस्ट भी दे दिया है. जी हां लेकिन वह अभी इस प्रोजेक्ट को लेकर श्योर नहीं है क्योंकि उनके पास अभी ढेर सारे प्रोजेक्ट्स है. खबरों के मुताबिक मेकर्स गौहर को कोमोलिका के रुप में देखने के लिए काफी इच्छुक है.

गौहर खान ने  प्रोडक्शन हाउस को अपना लुक टेस्ट भी दे दिया है और वह लगातार इस सिलसिले में उनसे जुड़ी हुई है. लेकिन गौहर काफी कन्फ्यूज है क्योंकि उनके पास एक वेब सीरीज भी है. गौहर खान ‘बिग बौस 7’ में भी नजर आई थी.

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