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बाउंसर : भाग 1

रेलवे स्टेशन के गर्भ से नाल की तरह निकल कर पतली सी कमर सा नेताजी सुभाष मार्ग दुलकी चाल से चलता शहर के बीचोंबीच से गुजरने वाले जीटी रोड को जिस स्थान पर लंबवत क्रौस करता आगे बढ़ जाता है, वह शहर के व्यस्ततम चौराहे में तबदील हो गया है-प्रेमचंद चौक. चौक के ऐन केंद्र में कलात्मकता से तराशा, फूलपौधों की क्यारियों से सजा छोटा सा वृत्ताकार उपवन है. उपवन के मध्य में छहफुटिया वेदी के ऊपर ब्लैकस्टोन पर उकेरी मुंशी प्रेमचंद की स्कंध प्रतिमा.

स्टेशन से जीटी रोड तक के पतले, ऊबड़खाबड़ नेताजी सुभाष मार्ग के सहारेसहारे दोनों ओर ग्रामीण कसबाई परिवेश से कदमताल मिलाते सब्जियों, फल, जूस, सस्ते रैडिमेड वस्त्र, पुरानी पत्रिकाओं, सैक्स साहित्य और मर्दानगी की जड़ीबूड़ी बेचते फुटकर विक्रेताओं की छोटीछोटी गुमटियां व ठेलों की कतारें सजी हुई थीं. स्टेशन वाले इसी मार्ग के कसबाई कुरुक्षेत्र में झुमकी भी किसी दुर्दांत योद्धा की तरह भीख की तलवार भांजती सारे दिन एक छोर से दूसरे छोर तक मंडराती रहती. 9 साल की कच्ची उम्र. दुबलीपतली, मरगिल्ली काया. मटमैला रंग. दयनीयता औैर निरीहता का रोगन पुता मासूम चेहरा.

झुमकी ने स्टेशन के कंगूरे पर टंगी घड़ी की ओर तिरछी निगाहों से देखा, ढाई बज रहे थे. अयं, ढाई बज गए? इतनी जल्दी? वाह, झुमकी मन ही मन मुसकराई. ढाई बज गए और अभी तक भूख का एहसास ही नहीं हुआ. कभीकभी ऐसा हो जाता है, ड्यूटी में वह इस कदर मगन हो जाती है कि उसे भूख की सुध ही नहीं रहती.

खैर, अब घर लौटने का समय हो गया है. वहां जो भी रूखासूखा मां ने बना कर रखा होगा, जल्दीजल्दी उसे पेट के अंदर पहुंचाएगी. उस ने लौटने के लिए कदम आगे बढ़ा दिए. 4 बजे वापस फिर ड्यूटी पर लौटना भी तो है.

दोपहर के वक्त बाजार में आवाजाही कम हो जाती है. अधिकांश ठेले और गुमटियां खालीखाली थीं. चलते हुए उस ने फ्रौक की जेब में हाथ डाल कर सिक्कों को टटोला. चेहरे पर आश्वस्ति की चमक बिखर गई. उड़ती नजरों से बाबा प्रेमचंद का धन्यवाद अदा किया- सब आप ही का प्रताप है, महाराज.

तभी, पांडेजी के ठेले पर एक ग्राहक दिख गया. उस की आंखों में फुरती ठुंस गई. आम का खरीदार, संभ्रांत वेशभूषा. झुमकी तेजतेज चल कर ठेले के पास तक आ गई और एक दूरी बना कर उस पल का इंतजार करने लगी जब ग्राहक आम ले चुकने के बाद भुगतान करने के लिए जेब से पर्स निकालेगा. इंतजार के उन्हीं कुछ बेचैन क्षणों के दौरान नजरें ठेले के एक कोने में रखे कुछेक आमों पर जा पड़ीं जो लगभग खराब हो चुके थे. इन का रंग काला पड़ गया था. त्वचा पिलपिली हो चुकी थी. ये भद्र लोगों के खाने लायक नहीं रह गए थे. पांडेजी इन आमों को संभवतया इस उम्मीद में रखे हुए थे कि कोई निम्नवर्ग का कोलियरी मजदूर या श्रमिक ग्राहक ऐसा मिल ही जाएगा जो इन्हें खरीद ले. इस तरह तो भरपाई हो सकेगी क्षति की.

झुमकी की नजरें इन पिलपिले आमों पर चिपक गईं. पहले ऐसा हो चुका है कि काफी इंतजार के बाद भी जब ऐसे बेकार से आमों के ग्राहक नहीं मिल पाते तो पांडेजी खुद ही इन्हें झुमकी को दे देते. देते हुए उन के अंदाज में शाही ठुनक घुली होती, ‘तू भी क्या याद करेगी कि कोई दिलदार पांडे मिले थे.’

झुमकी ने इन आमों का खूब करीबी से मुआयना किया. अब कोई नहीं खरीदने वाला इन्हें. न हो तो ग्राहक के विदा हो जाने के बाद वह खुद ही पांडेजी से इन आमों को मांग लेगी. आम पा जाने की क्षणिक सी उम्मीद जगते ही आंखों में एकमुश्त जुगनुओं की चमक भर गई. इन की पिलपिली, काली त्वचा को और भीतर से रिस कर आती कसैली बू को अनदेखा कर दिया जाए तो ये आम ‘पके और गोरे’ लंगड़ा आमों जैसी ही तृप्ति देते हैं. उस के कंठ से तृप्ति की किलकारी निकलतेनिकलते बची.

ग्राहक को आम तोले जा चुके थे. उस ने जेब से पर्स निकाला और पांडेजी को पैसे देने लगा. उसी क्षण झुमकी लपक कर ग्राहक के पास जा पहुंची और छोटी सी हथेली को उस के आगे फैला दिया.

‘‘क्या है रे?’’ ग्राहक ने उस को ऊपर से नीचे तक निहारा. निहारने में दुत्कार नहीं, सहानुभूति का पुट घुला था, ‘‘भीख चाहिए?’’

झुमकी ने हां में सिर हिला दिया. हथेली फैला देने का मतलब नहीं समझ में आ रहा है हुजूर को.

‘‘ठीक है,’’ ग्राहक भी संभवतया फुरसत में था. उस से चुहल करने में मजा लेने लगा, ‘‘बोल, भीख में पैसे चाहिए या आम?’’

आम की बात सुन कर झुमकी के मन में लालसा फुफकार उठी. दिल जोरजोर से धड़कने लगा. कल्पना में आम का रसीला स्वाद उतर आया. उस ने डरते हुए तर्जनी उठा कर ठेले के कोने में पड़े परित्यक्त आमों की ओर संकेत कर दिया.

‘मुंह से बोल न रे, छोरी.’ ग्राहक हंसा, ‘क्या गूंगी की तरह इशारे में बतिया रही है.’’

झुमकी चुप रही.

‘‘अरे बोल न, क्या लेगी-आम या पैसे?’’

झुमकी ने फिर भी मौन साधे रखा और डरती हुई पहले की तरह ही उन आमों की ओर संकेत कर दिया.

‘‘जब तक मुंह से नहीं बोलेगी, कुछ नहीं देंगे,’’ ग्राहक झुंझला उठा. झुमकी सहम गई. ऐसे क्षणों में जबान तालू से चिपक जाती है तो वह क्या करे भला? चाह कर भी बोल नहीं फूट रहे थे. सो, फिर से मौनी बाबा की तरह वही संकेत.

‘‘धत तेरे की,’’ ग्राहक फनफनाते हुए दमक पड़ा, ‘‘सरकार ससुर दलितों, गरीबों और अन्त्यजों की पूजाआरती उतारने में बावली हुई जा रही है. उन्हें हक और जमीर के लिए लड़ने को उकसा रही है. पकड़पकड़ कर जबरदस्ती सरकारी कुरसियों पर बैठा रही है. इ छोरी है कि सरकार बहादुर की नाक कटवाने पर तुली हुई है, हुंह. अरे, अब तो अपना रवैया बदल तू लोग. रिरियाना छोड़ कर हक से मांगना सीख.’’

‘‘हां रे झुमकी, साहब ठीक ही तो कह रहे हैं. मुंह से बोल दे न, आम चाहिए या पैसा,’’ पांडेजी उसे प्रोत्साहित करते हुए हिनहिना दिए. ग्राहक की बेतरतीब टिप्पणियों से झुमकी का दिमाग झनझना उठा. क्षणभर में संन्यासी मोड़ वाले स्कूल के पास का ‘सर्व शिक्षा अभियान’ का बोर्ड और बोर्ड में चित्रित खिलखिलाते बच्चे आंखों के आगे आ गए. ग्राहक या तो सनकी है या अत्यधिक वाचाल. क्या इस को पता नहीं कि सरकार बहादुर की गरीबोंदलितों के पक्ष में की जा रही सारी पूजाआरती सिर्फ कागजकलम पर हवाहवाई हो कर रह जाती है.

‘‘हम तो चले पांडेजी,’’ ग्राहक खीझता हुआ आम वाले लिफाफे को उठा कर चलने को मुड़ गया. झुमकी धक से रह गई. सिर पर चिरकाल से पड़ी कुंठा औ लाचारगी की भारीभरकम शिला को पूरा जोर लगा कर थोड़ा सा खिसकाया तो कंठ की फांक से एक महीन किंकियाहट गुगली की तरह उछल कर बाहर आई, ‘आम…’ अधमरी बेजान सी आवाज. ग्राहक वापस दुकान पर आ गया. उस के होंठों पर विजयी मुसकान चस्पा हो गई, ‘‘यह हुई न बात.’’

‘‘दोष इन लोगों का भी नहीं न है साहेब,’’ पांडेजी मुसकराए, ‘‘सदियों से चली आ रही स्थिति को बदलने में वक्त तो लगेगा ही.’’

ग्राहक ने अपने लिफाफे से एक आम निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया, ‘‘ले, खा ले.’’

ग्राहक के बढ़े हाथ को देख कर झुमकी स्तब्ध रह गई. ताजा और साबुत लंगड़ा आम दे रहा है ग्राहक बाबू. मजाक तो नहीं कर रहा? एक पल के लिए मौन रखने के बाद इनकार में सिर हिलाते हुए उस ने तर्जनी से उन परित्यक्त आमों की ओर संकेतकर दिया.

‘‘छी…’’ ग्राहक खिलखिला कर हंस पड़ा, अरे, ‘‘पूरे समकालीन साहित्य के दलित स्त्री विमर्श की नायिका है तू. बदबूदार आम तुझे शोभा देंगे? न, न, ये ले ले.’’

ग्राहक की व्यंग्योक्ति में चुटकीभर हंसी पांडेजी भी मिलाए बिना नहीं रह सके. झुमकी ने फिर भी इनकार में सिर हिला दिया. तर्जनी उन्हीं आमों की तरफ उठी रही, मुंह से बोल न फूटे.

‘‘अजीब खब्ती लड़की है रे तू,’’ ग्राहक झुंझला उठा. झुमकी का रिरियाना और ऐसी शैली में बतियाना ग्राहक की खीझ को बढ़ा रहा था. उसे उम्मीद थी कि अच्छा आम पा कर लड़की एकदम से खिल उठेगी. पर यहां तो वही मुरगे की डेढ़ टांग. झिड़की में पुचकार का छौंक डालते हुए फनफनाया, ‘‘अरे हम अपनी मरजी से न दे रहे हैं यह आम. इतनीइतनी सरकारी योजनाएं, इतनेइतने फंड, इतनेइतने अनुदान…सारी कवायदें तुम लोगों को ऊपर उठाने के लिए ही न हो रही हैं? इन सरकारी कवायदों में एक छोटा सा सहयोग हमारा भी, बस.’’

झुमकी कभी आम को और कभी ग्राहक के चेहरे को टुकुरटुकुर  ताकती रही. आंखों में भय सिमटा हुआ था. भीतर के बिखरेदरके साहस को केंद्रीभूत करती आखिरकार मिमियायी, ‘‘नहीं सर, इ आम नहीं, ऊ वाला आम दे दो.’’

‘‘क्यों? जब हम खुद दे रहे हैं तो लेने में क्या हर्ज है रे, अयं?’’

‘‘हम भिखारी हैं, सर. अच्छा आम हमारे तकदीर में नहीं लिखा. ऊहे आम ठीक लगता है.’’ पूरे एपिसोड में पहली बार लड़की के मुंह से इतना लंबा वाक्य फूटा था.

‘‘देखा पांडेजी?’’

‘‘एक बात है, सर,’’ हथेली पर खैनी मसलते हुए पांडेजी ने कहा, ‘दलितों के लिए सरकारी सारे अनुदान, योजना वगैरावगैरा राजधानी से ऐसे कार्टून में भर कर लादान किया जाता है जिस के तल में बड़ा सा छेद बना होता. सारा कुछ ससुर रस्ते में ही रिस जाता है और कार्टून जब इन लोगन के दरवाजे आ कर लगता है तो पूरा का पूरा छूछा. हा, हा, हा.’’

 

दिल्ली में 3 दिवसीय 26वें परफेक्ट हैल्थ मेला की शुरुआत

हार्ट केयर फाउंडेशन का यह अनूठा मेला स्वास्थ्य विभाग दिल्ली सरकार, भारतीय खेल प्राधिकरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया हैं, जिसमें चिकित्सा की विभिन्न पद्धतियां एक साथ उपलब्ध हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार के सहयोग से मेले में 30 से अधिक वैज्ञानिक भाग लेंगे जो अध्यापकों, स्कूली बच्चों और आम जनता को चमत्कारों के पीछे छिपे विज्ञान और कम क़ीमत में बच्चों को शिक्षित करने के सरल तरीक़े बताए गए. इसके अतिरिक्त खगोल विज्ञान के कुछ पहलुओं का भी सजीव चित्रण किया गया .

अंसल यूनिवर्सिटी स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपलब्ध अनेक संभावनाओं के विषय में जानकारी दी गई.  हार्ट केयर फाउंडेशन दिल्ली रेड क्रौस सोसायटी के साथ मिलकर बेसिक कार्डियेक लाइफ़ स्पोर्ट सर्टिफिकेट प्रोग्राम की शुरूआत की गई. मेले में शहर के अनेक गणमान्य अतिथि और नामी डौक्टर्स ने शिरकत की.

मेले में आने वाले मरीज़ों में से कुछ मरीज मुफ्त एंजियोग्राफी, दिल के आपरेशन और आंखों के आपरेशन के लिए चयनित किया गया.

देश की दो महत्वपूर्ण योजनाओं – आयुष्मान भारत और मोहल्ला क्लीनिक के विषय में जानकारी दी गई.

मेले में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पेट के कीड़े मारने की दवा – एलबेन्डाजोल व विटामिन डी 60000 I.u. का सैशे मुफ़्त दिया गया. साथ ही साल में एक बार कीड़े की दवा और महीने में एक बार विटामिन डी लेने की सलाह दी गई. मेला प्लास्टिक मुक्त किया गया और इसमें सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था की गई . प्रतिभागी स्कूली बच्चों को पौष्टिक अल्पाहार उपलब्ध कराया गया . स्कूली छात्राओं को मुफ़्त सेनेटरी नैपकिन वितरित किए गए. सेनेटरी नैपकिन वेंडिग मशीन और उनके निस्तारण के लिए भट्टी जानकारी के लिए मेले में उपलब्ध की गई.

कपड़ा मंत्रालय, भारत सरकार से समर्थित लगभग 180 कारीगर अपनी हस्तकला और हथकरघा के कौशल को प्रदर्शित किया गया .

मेले में वायु प्रदूषण और इनडोर प्रदूषण को विशेष महत्व दिया गया. मेले में अनेक कार्यशालाओं का आयोजन किया गया. जिसमें मच्छरों को पहचानना, उन्हें पकड़ना या मारने के तरीक़े, माहवारी के दौरान साफ सफाई, नकली दवाओं व खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट की पहचान, नृत्य और अभिनय की कार्यशालाओं का भी आयोजन किया गया.

मेले में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए क़ानूनी सलाह का प्रावधान भी किया गया. जिसमें मरीज अपने अधिकारों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही समेरिटन ला पर 100 प्रश्नों की एक विशिष्ट पत्रिका का विमोचन भी किया गया.

फैसला इक नई सुबह का : भाग 4

रात में सोते समय वह फिर समीर के बारे में सोचने लगी. कितना प्यारा परिवार है समीर का. उस के बेटेबहू कितना मान देते हैं उसे? कितना प्यारा पोता है उस का? मेरा पोता भी तो लगभग इतना ही बड़ा हो गया होगा. पर उस ने तो सिर्फ तसवीरों में ही अपनी बहू और पोते को देखा है. कितनी बार कहा सार्थक से कि इंडिया आ जाओ, पर वह तो सब भुला बैठा है. काश, अपनी मां की तसल्ली के लिए ही एक बार आ जाता तो वह अपने पोते और बहू को जी भर कर देख लेती और उन पर अपनी ममता लुटाती. लेकिन उस का बेटा तो बहुत निष्ठुर हो चुका है. एक गहरी आह निकली उस के दिल से.

समीर की खुशहाली देख कर शायद उसे अपनी बदहाली और साफ दिखाई देने लगी थी. परंतु अब वह समीर से ज्यादा मिलना नहीं चाहती थी क्योंकि रोजरोज बेटी से झूठ बोल कर इस तरह किसी व्यक्ति से मिलना उसे सही नहीं लग रहा था, भले ही वह उस का दोस्त ही क्यों न हो. बेटी से मिलवाए भी तो क्या कह कर, आखिर बेटीदामाद उस के बारे में क्या सोचेंगे. वैसे भी उसे पता था कि स्वार्थ व लालच में अंधे हो चुके उस के बच्चों को उस से जुड़े किसी भी संबंध में खोट ही नजर आएगी. पर समीर को मना कैसे करे, समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि उस का दिल तो बच्चों जैसा साफ था. मानसी अजीब सी उधेड़बुन में फंस चुकी थी.

सुबह उठ कर वह फिर रोजमर्रा के काम में लग गई. 10-11 बजे मोबाइल बजा, देखा तो समीर का कौल था. अच्छा हुआ साइलैंट पर था, नहीं तो बेटी के सवाल शुरू हो जाते. उस ने समीर का फोन नहीं उठाया. इस कशमकश में पूरा दिन व्यतीत हो गया. शाम को बेटीदामाद को चायनाश्ता दे कर खुद भी चाय पीने बैठी ही थी कि दरवाजे पर हुई दस्तक से उस का मन घबरा उठा, आखिर वही हुआ जिस का डर था. समीर को दरवाजे पर खड़े देख उस का हलक सूख गया, ‘‘अरे, आओ, समीर,’’ उस ने बड़ी कठिनता से मुंह से शब्द निकाले. समीर ने खुद ही अपना परिचय दे दिया. उस के बाद मुसकराते हुए उसे अपने पास बैठाया. और बड़ी ही सहजता से उस ने मानसी के संग अपने विवाह की इच्छा व्यक्त कर दी. यह बात सुनते ही मानसी चौंक पड़ी. कुछ बोल पाती, उस से पहले ही समीर ने कहा, ‘‘वह जो भी फैसला ले, सोचसमझ कर ले. मानसी का कोई भी फैसला उसे मान्य होगा.’’ कुछ देर चली बातचीत के दौरान उस की बेटी और दामाद का व्यवहार समीर के प्रति बेहद रूखा रहा.

समीर के जाते ही बेटी ने उसे आड़े हाथों लिया और यहां तक कह दिया, ‘‘मां क्या यही गुल खिलाने के लिए आप दिल्ली से लखनऊ आई थीं. अब तो आप को मां कहने में भी मुझे शर्म आ रही है.’’ दामाद ने कहा कुछ नहीं, लेकिन उस के हावभाव ही उसे आहत करने के लिए काफी थे. अपने कमरे में आ कर मानसी फूटफूट कर रोने लगी. बिना कुछ भी किए उसे उन अपनों द्वारा जलील किया जा रहा था, जिन के लिए अपनी पूरी जिंदगी उस ने दांव पर लगा दी थी. उस का मन आज चीत्कार उठा. उसे समीर पर भी क्रोध आ रहा था कि उस ने ऐसा सोचा भी कैसे? इतनी जल्दी ये सब. अभी कलपरसों ही मिले हैं, उस से बिना पूछे, बिना बताए समीर ने खुद ही ऐसा निर्णय कैसे ले लिया? लेकिन वह यह भी जानती थी कि उस की परेशानियां और परिस्थिति देख कर ही समीर ने ऐसा निर्णय लिया होगा.

वह उसे अच्छे से जानती थी. बिना किसी लागलपेट के वह अपनी बात सामने वाले के पास ऐसे ही रखता था. स्थिति बद से बदतर होती जा रही थी. उस की जिंदगी ने कई झंझावत देखे थे, परंतु आज उस के चरित्र की मानप्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी. उस ने अपने मन को संयत करने की भरपूर कोशिश की, लेकिन आज हुए इस अपमान पर पहली बार उस का मन उसी से विद्रोह कर बैठा. ‘क्या उस का जन्म केवल त्याग और बलिदान के लिए ही हुआ है, क्या उस का अपना कोई वजूद नहीं है, सिवा एक पत्नी, बहू और मां बनने के? जीवन की एकरसता को वह आज तक ढोती चली आई, महज अपना समय मान कर. क्या सिर्फ इसलिए कि ये बच्चे आगे चल कर उसे इस तरह धिक्कारें. आखिर उस की गलती ही क्या है? क्या कुछ भी कहने से पहले बेटी और दामाद को उस से इस बात की पूरी जानकारी नहीं लेनी चाहिए थी? क्या उस की बेटी ने उसे इतना ही जाना है? लेकिन वह भी किस के व्यवहार पर आंसू बहा रही है.

‘अरे, यह तो वही बेटी है, जिस ने अपनी मां को अपने घर की नौकरानी समझा है. उस से किसी भी तरह की इज्जत की उम्मीद करना मूर्खता ही तो है. जो मां को दो रोटी भी जायदाद हासिल करने के लालच से खिला रही हो, वह उस की बेटी तो नहीं हो सकती. अब वह समझ गई कि दूसरों से इज्जत चाहिए तो पहले उसे स्वयं अपनी इज्जत करना सीखना होगा अन्यथा ये सब इसी तरह चलता रहेगा.’ कुछ सोच कर वह उठी. घड़ी ने रात के 9 बजाए. बाहर हौल में आई तो बेटीदामाद नहीं थे. हालात के मुताबिक, खाना बनने का तो कोई सवाल नहीं था, शायद इसीलिए खाना खाने बाहर गए हों. शांतमन से उस ने बहुत सोचा, हां, समीर ने यह जानबूझ कर किया है. अगर वह उस से इस बात का जिक्र भी करता तो वह कभी राजी नहीं होती. खुद ही साफ शब्दों में इनकार कर देती और अपने बच्चों की इस घिनौनी प्रतिक्रिया से भी अनजान ही रहती. फिर शायद अपने लिए जीने की उस की इच्छा भी कभी बलवती न होती. उस के मन का आईना साफ हो सके, इसीलिए समीर ने उस के ऊपर जमी धूल को झटकने की कोशिश की है.

अभी उस की जिंदगी खत्म नहीं हुई है. अब से वह सिर्फ अपनी खुशी के लिए जिएगी.

मानसी ने मुसकरा कर जिंदगी को गले लगाने का निश्चय कर समीर को फोन किया. उठ कर किचन में आई. भूख से आंतें कुलबुला रही थी. हलकाफुलका कुछ बना कर खाया, और चैन से सो गई. सुबह उठी तो मन बहुत हलका था. उस का प्रिय गीत उस के होंठों पर अनायास ही आ गया, ‘हम ने देखी है इन आंखों की महकती खूशबू, हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम न दो…’ गुनगुनाते हुए तैयार होने लगी इस बात से बेफिक्र की बाहर उस की बेटी व दामाद उस के हाथ की चाय का इंतजार कर रहे हैं. दरवाजे की घंटी बजी, मानसी ने दरवाजा खोला. बाहर समीर खड़े थे. मानसी ने मुसकराकर उन का अभिवादन किया और भीतर बुला कर एक बार फिर से ?उन का परिचय अपनी बेटी व दामाद से करवाया, ‘‘ये हैं तुम्हारे होने वाले पापा, हम ने आज ही शादी करने का फैसला लिया है. आना चाहो तो तुम भी आमंत्रित हो.’’ बिना यह देखे कि उस में अचानक आए इस परिवर्तन से बेटी और दामाद के चेहरे पर क्या भाव उपजे हैं, मानसी समीर का हाथ थाम उस के साथ चल पड़ी अपनी जिंदगी की नई सुबह की ओर…

बैकुंठ : भाग 3

‘‘अरे भैया, बताया नहीं कि सैम भी साथ है,’’ वह पैर छूने को झुकी.

‘‘नीचे झुक सैम, तेरे सिर तक तो चाची का हाथ भी नहीं जा रहा, कितना लंबा हो गया तू, दाढ़ीमूंछ वाला, चाची के बगैर शादी भी कर डाली. हिंदी समझ आ रही है कि भूल गया. फोर्थ स्टैंडर्ड में था जब तू विदेश गया था.’’ रैमचो की मुसकराते हुए बात सुनती हुई मालती प्यार से उन्हें अंदर ले आई.

‘‘कहां है श्याम, अभी सो ही रहा है?’’ तभी पूजा की घंटी सुनाई दी, ‘‘ओह, तो यह अभी तक बिलकुल वैसा ही है. सुबहशाम डेढ़ घंटे पूजापाठ, जरा भी नहीं बदला,’’ वे सोफे पर आराम से बैठ गए. सैम भी उन के पास ही बैठ कर अचरज से घर में जगहजगह सजे देवीदेवताओं के पोस्टर, कलैंडर देख रहा था.

‘‘स्टें्रज पा, आई रिमैंबर अ लिटिल सैम एज बिफोर,’’ संकल्प बोला.

‘‘वाह भैया, इतने सालों बाद दर्शन दिए,’’ श्यामाचरण पैर छूने को झुके तो रैमचो ने उन्हें बीच में ही रोक लिया, ‘‘इतनी पूजापाठ के बाद आया है, कहांकहां से घूम कर आ रहे इन जूतों को हाथ लगा कर तू अपवित्र नहीं हो जाएगा,’’ कह कर वे मुसकराए.

‘‘बदल जा श्याम, अपना जीवन तो यों ही पूजापाठ में निकाल दिया, अब बच्चों की तो सोच, उन्हें जमाने के साथ बढ़ने दे. इतने सालों बाद भी न घर में कोई चेंज देख रहा हूं न तुझ में,’’ उन्होंने उस के पीले कुरते व पीले टीके की ओर इशारा किया, ‘‘इन सब में दिमाग व समय खपाने से अच्छा है अपने काम में दिमाग लगा और किताबें पढ़, नौलेज बढ़ा. आज की टैक्नोलौजी समझ, सिविल कोर्ट का लौयर है तो हाईकोर्ट का लौयर बनने की सोच. कैसे रहता है तू, मेरा तो दम घुटता है यहां.’’

भतीजे संकल्प के गले लग कर श्यामाचरण नीची निगाहें किए हुए बैठ गए. चुपचाप बड़े भाई की बातें सुनने के अलावा उन के पास चारा न था. संकल्प अंदर सब देखता, याद करता. सब को सोता देख, उठ कर चाची के पास किचन में पहुंच गया और उन के साथ नाश्ता उठा कर बाहर ले आया.

‘‘अरे, बच्चों को उठा दिया होता. क्षितिज और पल्लवी तो उठ गए होंगे. बहू को इतना तो होश रहना चाहिए कि घर में कोई आया हुआ है, यह क्या तरीका है,’’ पांचों उंगलियों में अंगूठी पहने हाथ को सोफे पर मारा था श्यामाचरण ने.

‘‘और तुम्हारा क्या तरीका है, बेटी या बहू के लिए कोई सभ्य व्यक्ति ऐसे बात करता है?’’ उन्होंने चाय का कप उठाते, श्याम को देखते हुए पूछा. आज बड़े दिनों बाद बडे़ भैया श्याम की क्लास ले रहे थे, मालती मन ही मन मुसकराईर्.

‘‘कोई नहीं, अभी संकल्प ने ही सब को उठा दिया और सब से मिल भी लिया, सभी आ ही रहे हैं, रात को देर में सोए थे. उन को मालूम कहां भैया लोगों के आने का. उठ गए हैं, आते ही होंगे, सब को जाना भी है,’’ मालती ने बताया.

रैमचो को 2 बजे कौन्फ्रैंस में पहुंचना था. सो, सब के साथ मनपसंद नाश्ता करने लगे, ‘‘अब तुम भी आ जाओ, मालती बेटा.’’

‘‘आप लोग नाश्ता कीजिए, भैया, मेरा तो आज करवाचौथ का व्रत है,’’ वह भैया की लाई पेस्ट्री प्लेट में लगा कर ले आई थी.

‘‘लो बीपी रहता है न तुम्हारा, व्रत का क्या मतलब? पहले भी मना कर चुका हूं, जो हालत इस ने तुम्हारी कर रखी है, इस से पहले चली जाओगी.’’ दक्ष, मम्मी के लिए प्लेट ला…श्याम, घबरा मत, तेरी हैल्थ की केयर रखना इस का काम है और वह बखूबी करती है. तू खुद अपना भी खयाल रख और इस का भी. शशि ने तो व्रत कभी नहीं रखा, फिर भी सुहागन मरी न, मैं जिंदा हूं अभी भी. दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है, तू वहीं अटका हुआ है और सब को अटका रखा है. भगवान को मानता है तो कुछ उस पर भी छोड़ दे. अपनी कारगुजारी क्यों करने लगता है.’’

दक्ष प्लेट ले आया तो रैमचो ने खुद  लगा कर प्लेट मालती को थमा दी. ‘‘जी भैया,’’ उस ने श्याम को देखा जो सिर झुकाए अच्छे बच्चे की तरह चुपचाप खाए जा रहे थे. भैया को टालने का साहस उस में भी न था, वह खाने लगी.

‘‘पेस्ट्री कैसी लगी बच्चो? श्याम तू तो लेगा नहीं, धर्म भ्रष्ट हो जाएगा तेरा, पर सोनाक्षीपल्लवी तुम लोग तो लो या फिर तुम्हारा भी धर्म…कौन सी पढ़ाई की है. आज के जमाने में. चलो, उठाओ जल्दीजल्दी. इन सब बातों से कुछ नहीं होता. गूगल कैसे यूज करते हो तुम सब, मैडिसन कैसेकैसे बनती हैं, कभी पढ़ा है? कुछ करना है अपने भगवान के लिए तो अच्छे आदमी बनो जो अपने साथ दूसरों का भी भला करें, बिना लौजिक के ढकोसले वाले हिपोक्रेट पाखंडी नहीं. अब जल्दी सब अपनी प्लेट खत्म करो, फिर तुम्हारे गिफ्ट दिखाता हूं,’’ वे मुसकराए.

‘‘मेरे लिए क्या लाए, बड़े पापा,’’ दक्ष ने अपनी प्लेट सब से पहले साफ कर संकल्प से धीरे से पूछा था, तो उस ने भी मुसकरा कर धीरे से कहा, ‘‘सरप्राइज.’’

नाश्ते के बाद रैमचो ने अपना बैग खोला, सब के लिए कोई न कोई गिफ्ट था. ‘‘श्याम इस बार अपना यह पुराना टाइपराइटर मेरे सामने फेंकेगा, लैपटौप तेरे लिए है. अब की बार किसी और को नहीं देगा. दक्ष बेटे के लिए टैबलेट. सोनाक्षी बेटा, इधर आओ, तुम्हारे लिए यह नोटबुक. पल्लवी और मालती के लिए स्मार्टफोन हैं. अब बच गया क्षितिज, तो यह लेटैस्ट म्यूजिकप्लेयर विद वायरलैस हैडफोन फौर यू, माय बौय.’’

‘‘अरे, ग्रेट बड़े पापा, मैं सोच ही रहा था नया लेने की, थैंक्यू.’’

‘‘थैंक्यूवैंक्यू छोड़ो, अब लैपटौप को कैसे इस्तेमाल करना है, यह पापा को सिखाना तुम्हारी जिम्मेदारी है. श्याम, अभी संकल्प तुम्हें सब बता देगा, बैठो उस के साथ, देखो, कितना ईजी है. और हां, अब तुम लोग अपनेअपने काम पर जाने की तैयारी करो, शाम को  फिर मिलेंगे.’’

सुबह की पूजा जल्दी के मारे अधूरी रह गई तो श्यामाचरण ने राधे महाराज को शुद्धि का उपाय करने के लिए बुलाया. रैमचो ने यह सब सुन लिया था. महाराज का चक्कर अभी भी चल रहा है, अगली जेनरेशन में भी सुपर्स्टिशन का वायरस डालेगा, कुछ करता हूं. उस ने ठान लिया.

10 बजे राधे महाराज आ गए.

‘‘नमस्ते महाराज, पहचाना,’’ रैमचो ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘काहे नहीं, बड़े यजमान, कई वर्षों बाद देख रहा हूं.’’

‘‘यह बताइए कि लोगों को बेवकूफ बना कर कब तक अपना परिवार पालोगे. अपने बच्चों को यही सब सिखाएंगे तो वे औरों की तरह कैसे आगे बढ़ेंगे, पढ़ेंगे? क्या आप नहीं चाहते कि वे बढ़ें?’’  रैमचो ने स्पष्टतौर पर कह दिया.

पंडितजी सकपका गए, ‘‘मतबल?’’

‘‘महाराजजी, मतलब तो सही बोल नहीं रहे. मंत्र कितना सही बोलते होंगे. कुछ मंत्रों के अर्थ मैं मालती बहू से पहले ही जान चुका हूं. आप जानते हैं, जो हम ऐसे कह सकते हैं उस से क्या अलग है मंत्रों में? पुण्य मिलते बैकुंठ जाते आप में से या आप के पूर्वजों में से किसी ने किसी को देखा है या बस, सुना ही सुना है?’’

‘‘नहीं, यजमान, पुरखों से सुनते आ रहे हैं. पूजा, हवन, दोष निवारण की हम तो बस परिपाटी चलाए जा रहे हैं. सच कहूं तो यजमानों के डर और खुशी का लाभ उठाते हैं हम पंडित लोग. बुरा लगता है, भगवान से क्षमा भी मांगते हैं इस के लिए. परिवार का पेट भी तो पालना है, यजमान. हम और कुछ तो जानते नहीं, और ज्यादा पढ़ेलिखे भी नहीं.’’ राधे महाराज यह सब बोलने के बाद पछताने लगे कि गलती से मुंह से सच निकल गया.

इन 6 खूबसूरत बौलीवुड एक्ट्रेसेस के डिंपल वाली स्माईल के दीवाने है हजारों

फिल्मी सितारों के व्यक्तित्व में कुछ खास बात होती है. वे अपने व्यक्तित्व और आकर्षण से सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं. स्क्रीन पर महज अपनी मौजूदगी से ही वे आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं. उनकी ब्यूटी और बाहरी लुक्स के विपरीत एक और ऐसी चीज़ होती है जो आपके ध्यान को उनकी ओर ले जाती है. जी हां हम बात कर रहे है बौलीवुड की उन एक्ट्रेसेस की जिनके हंसने से गालों पर पड़ने वाले डिंपल मामूली से गढ्ढे होते है पर चेहरे की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते है.

हम आपको 6 ऐसी एक्ट्रेस के बारे में बताएंगे. जो अपने डिम्पलज से सभी का दिल जीत रहीं हैं. जब एक्ट्रेसेस के डिंपल की बातों हो तो सबसे पहले प्रीति जिंटा का नाम ही सामने आता है. उनकी डिंपल वाली स्माईल को कोई कैसे भूल सकता है.

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प्रीति जिंटा

आपको एक साबुन का मशहूर एड तो जरूर याद होगा जिसमें एक खूबसूरत लड़की मस्ती में झरने में नहा रही होती है. जिसके हसने से गालों पर पड़ते डिंपल उसको और भी खूबसूरत दिखा रहे होते है जी हां हम बात कर रहे है डिंपल गर्ल प्रीति जिंटा की. जिनके इस एड ने उनको डिंपल गर्ल के रूप में फेमस कर दिया था. इस एड के बाद प्रीति जिंटा ने अपनी एक्टिंग के बल पर बौलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई है. लेकिन उनको अब भी डिंपल गर्ल के रूप में ही जाना जाता है उनके डिंपल ने उनकी खूबसूरती में चार-चांद लगा कर उनकी और बेहतर लुक दिया है.

पिछले साल इंडिया टुडे कौनक्लेव ईस्ट में जब रेपिड फायर राउंड में प्रीति जी जिंटा से पूछा गया कि यदि उन पर बायोपिक बनी वे किस एक्‍ट्रेस को अपने रोल में देखना पसंद करेंगी ? तो प्र‍ीति ने आलिया भट्ट का नाम लिया और कहा कि वे उनके रोल को सही तरीके से करेंगी क्योंकि उनके गाल पर भी डिम्पल पड़ते हैं.

प्रीति ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 1998 की फिल्म दिल से की फिर फिल्म सोल्जर में फिर दिखीं. फिल्म क्या कहना में कुवारी मां की भूमिका के किरदार के लिए प्रीति को खूब सराहा गया. उन्हें इस रोल के लिए फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ नई अदाकारा का अवार्ड दिया गया. प्रीति जिंटा इन दोनों फिल्मों से दूर हैं. साल 2016 में जेन गुडएनफ संग शादी रचाने के बाद प्रीती का समय विदेश में अपने परिवार संग बीतता है. लेकिन सोशल मीडिया पर एक्ट‍िव रहने वाली प्रीति जिंटा अपने फिटनेस वीडियो शेयर करती रहती हैं.

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दीपिका पादुकोण

डिंपल गर्ल के रूप मे भला हम दीपिका को कैसे भूल सकते है अपनी हर एक अदा से दीवाना बनाने वाली दीपिका का डिंपल उनको खास पहचान देता है उनकी कोई भी फ़ोटो है हर फोटो में डिंपल उनको बेस्ट लुक देता है तभी तो सभी उनके लुक्स के दीवाने हैं. आपको बात दे , दीपिका ने हाल ही में अपने रीसेंट ऐड-फोटोशूट की तस्वीर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की थी. बिहाइंड द सीन पिक्चर में दीपिका कैजुअल कपड़ों में मुस्कुराती दिखाई दे रही हैं. तस्वीर में उनका डिंपल साफ दिखाई दे रहा है. दीपिका ने इसे #BTS (बिहाइंड द सीन) कैप्शन दिया है. दीपिका की इस फोटो पर उनके पति रणवीर ने कौमेंट किया है हेलो डिंपल, हम फिर मिल गए इसके साथ उन्होंने किस का सिंबल भी बनाया है.

इस समय दीपिका पादुकोण अपनी अपकमिंग फिल्म छपाक में एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल के रोल में नजर आएंगी. इस फिल्म को मेघना गुलजार बना रही हैं.

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सुरभि ज्योति

सीरियल नागिन 3 में बेला का रोल प्ले करने वाली सुरभि ज्योति अपनी डिंपल वाली स्माइल के लिए भी जानी जाती है.

इनकी एक्टिंग के तो सब दीवाने है ही लेकिन इनके डिंपल वाले चीक्स के भी दीवाने कम नही हैं. डिंपल गर्ल सुरभि ज्योति ने अपने टीवी करियर की शुरुआत सीरियल कुबूल है से की थी. सुरभि का नाम टीवी इंडस्ट्री की स्टाइलिश एक्ट्रेसेज़ की लिस्ट में भी शामिल है. औनस्क्रीन ही नहीं औफस्क्रीन भी सुरभि अपने आपको काफी मेंटेन करके रखती हैं. आए दिन वह सोशल अकाउंड पर ग्लैमर्स तस्वीरें शेयर करती है जिसमें न केवल उनका बेस्ट वेस्टर्न व ट्रेडीशनल लुक उनके फैंस को देखने को मिलता है.

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बिपाशा बासू

फेमस बंगाली एक्ट्रेस विपाशा बसु अपनी मस्त अदाओं और अपनी बोल्ड एक्टिंग से सभी को अपना दीवाना बनाये हुए है ही साथ ही उनकी डिंपल वाली स्माईल भी बहुत कातिलाना है उनके गालो पर पड़ने वाला डिंपल उनकी हौटनेस को और भी बढ़ा देता है.

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आलिया भट्ट

बौलीवुड की क्यूटेस्ट एक्ट्रेस की बात की जाए तो हम सभी के जेहन में आलिया भट्ट का नाम आता है कम उम्र में सफलता की सीढ़ियां चढ़ने वाली आलिया की स्माईल को सभी ने नोटिस किया उनके गालों पर भी एक छोटा सा डिंपल पड़ता है जो उनकी मासूमियत को और स्वीट बना देता हैं.

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हिना खान

खूबसूरती की एक और मिसाल है हिना खान. आपने देखा होगा जब हिना हसती है तो उनके गालों पर भी गड्ढे पड़ते है और उनके गालों पर पड़ने वाले डिम्पल ही उनकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं. हिना जितनी ग्लैमरस अपने शो में दिखती हैं, उतनी ही हौट रीयल लाइफ में भी है. सोशल मीडिया पर हिना खूब एक्टिव हैं. इसलिए उनकी फैन फौलोइंग भी काफी अच्छी है. सोशल मीडिया पर वह अपनी हौट तस्वीरें, विडियो शेयर करना नहीं भूलती हैं. अपने शो कसौटी जिंदगी की- 2 को छोड़ने के बाद हिना अपने फिल्मी कमिटमेंट्स को लेकर काफी बिजी चल रही हैं. उन्होंने फिल्म लाइन्स, विश लिस्ट और कंट्री औफ ब्लाइट की शूटिंग पूरी कर ली है. इसके अलावा उन्होंने डायरेक्टर महेश भट्ट की फिल्म हैक्ड के फर्स्ट शेड्यूल को खत्म कर लिया है. टीवी और फिल्मी दुनिया के बाद अब हिना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर डेब्यू करने जा रही हैं. खबर के मुताबिक वह हंगामा प्ले की अपकमिंग वेब सीरीज डैमेज्ड 2 में मुख्य भूमिका निभाती नजर आएंगी. इसमें वह एक्टर अध्यन सुमन के साथ काम करती दिखेंगी. इस वेब सीरीज के लिए दोनों ने शूटिंग शुरू कर दी है. कुछ दिन पहले हिना ने अपने इंस्टाग्राम पर सेट से कुछ फोटो शेयर की थी जिसमें वह, अध्ययन सुमन और क्रू मेंबर्स के साथ नजर आ रही हैं डैमेज्ड हंगामा प्ले की पहली वेबसीरीज थी और इसमें अमृता खानविलकर ने सीरियल किलर का रोल प्ले किया था. यह देश का पहला साइकोलौजिकल ड्रामा वेब शो था और इसमें अमृता के परफॉर्मेंस को खूब तारीफ मिली थी. अब देखना है कि डैमेज्ड 2 में हिना खान क्या कमाल दिखा पाती हैं.

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सिर्फ पराली जलाने से ही नहीं बढ़ रहा वायु प्रदूषण, ये कारण भी हैं!

देश में हर साल अक्टूबर-नवंबर महीने में पर्यावरण प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण का जिक्र होने लगता है. सरकार में बैठे सियासतदान प्रेस कौन्फ्रेंस कर लोगों से कई तरह की अपीलें करने लगते हैं. इस बार तो संयोग तो देखिए कि सितंबर आखिरी में प्रदूषण का आंकड़ा कुछ कम आया. नेताओं ने इस मुद्दे को भुनाने की पूरी कोशिश की. दिल्ली के सीएम से लगाकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर तक सभी ने क्रेडिट लेने के लिए मीडिया का सहारा लिया और ढिंढोरा पी पीटा गया. इसके कुछ ही दिनों बाद सबकी पोल खुलकर सामने आ गई. वायु प्रदूषण की गुणवत्ता ने एकदम से गोता लगा दिया. सबके चेहरे सन्न पड़ गए और फिर एक रटा रटाया बयान सामने आया कि हरियाणा पंजाब में पराली जलाने के कारण प्रदूषण बढ़ गया. सारा का सारा ठीकरा जाकर किसान के माथे पर जड़ दिया जाता है जबकि आजतक उन किसानों को ये नहीं बताया गया अगर वो इस पराली को जलाएं नहीं तो क्या करें. मशीनों का सहारा भी अगर लें तो ईंधन इतना मंहगा है कि किसान क्या खाएगा और क्या बचाएगा. लेकिन हुकूमत को इससे कोई वास्ता ही नहीं है. हम आपको बताते हैं प्रदूषण की असल कहानी…

धान की फसल की कटाई के साथ ही उत्तर भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा में धान की फसल के अवशेष (पराली) जलाने से इस पूरे इलाके में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. इससे अक्टूबर-नवंबर में दिल्ली एनसीआर की हवा भी बहुत खराब हो जाती है लेकिन इस समय बढ़ने वाले वायु प्रदूषण के स्तर के लिए केवल आसपास के राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाना ही जिम्मेदार नहीं है. आइआइटी कानपुर के एक अध्ययन के अनुसार इन महीनों में दिल्ली के प्रदूषण में केवल 25 प्रतिशत हिस्सा ही पराली जलाने के कारण होता है. बाकी का 75 फीसदी प्रदूषण कहां से आता है और इसका जिम्मेदार कौन हैं इस बारे में बात नहीं की जाती. किसानों पर आरोप मढ दिए जाते हैं लेकिन उनको इस दुविधा से कैसे निकाला जाए इस बारे में बात नहीं की जाती.

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अक्सर सितंबर बाद से ही वायु गुणवत्ता सूचकांक गिर जाता है. ऐसा होने की कई वजह हैं. सबसे पहला कारण है मौसम. ये वक्त ऐसा होता है जबकि बरसात खत्म हो जाती है और सुबह शाम थोड़ी-थोड़ी ठंडक महसूस होती है. हवाओं की रफ्तार भी कम हो जाती है और हवा का दिशाओं में भी फेरबदल होता है. अक्टूबर और नवंबर महीने में हवाओं का जैसे ही रूख बदलता है वैसे ही मौसम करवट ले लेता है. एक मौसम वैज्ञानिक ने बताया कि हिमालय से उठने वाली हवाओं को नीचे की ओर बहना चाहिए यानी कि अगर भारत के नक्शे के आधार पर शीर्ष से नीचे की ओर लेकिन कभी-कभी हवा उल्टी बहने लगती हैं. आमतौर पर हवा के चलने की रफ्तार 15 से 20 किमी. प्रति घंटे होती है लेकिन जब से घटकर 5-10 किमी. प्रति घंटे आ जाती है तो वायुमंडल में जितने भी कण होते हैं वो वहीं मंडराते रहते हैं. जिसके कारण वायु प्रदूषण में इजाफा होता है.

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) के अध्यक्ष भूरे लाल ने निजी वाहनों के उपयोग पर रोक लगाने जैसे कदम उठाने की बात कही थी. जब यह बात कही तो दिल्ली-एनसीआर की जनता के माथे पर शिकन आ गई. इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग को आदेश दिए थे कि वह 10 साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों की पहचान करके उनके परिचालन पर रोक लगाए. इसके साथ ही जस्टिस एम.बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने विभाग को निर्देश दिए कि वह ऐसे वाहनों की सूची बनाकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और परिवहन विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित करे.

दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 1994 में दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 22 लाख थी जो अब तकरीबन 76 लाख के करीब पहुंच चुकी है. इसमें हर साल 14 फ़ीसदी की वृद्धि हो रही है. इसके अलावा इन कुल वाहनों में दो-तिहाई दोपहिया वाहन हैं. ईपीसीए की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में निजी वाहनों के मुक़ाबले ट्रक और टैक्सी प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं. ओला और उबर जैसी ऐप आधारित टैक्सी सेवा एक दिन में 400 किलोमीटर तक चलती हैं जबकि कोई निजी वाहन एक दिन में 55 किलोमीटर चलता है. इस वजह से इन टैक्सियों से अधिक प्रदूषण होता है.

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डेनमार्क में 170 से 200 फ़ीसदी तक टैक्स गाड़ियों पर लगा हुआ है. इसका मक़सद लोगों को गाड़ी ख़रीदने से हतोत्साहित करना है ताकि वह सार्वजनिक वाहनों का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें. वहां सरकार ने सार्वजनिक वाहनों पर भी अधिक ध्यान दिया है जो हमारे देश में बहुत धीरे-धीरे हुआ है.” हमारे देश में आटो मोबाइल सेक्टर की हालत वैसे ही खस्ता है ऐसे में सरकार ने बीएस-4 इंजन वाली गाड़ियों को भी परमिट दे दिया है. कारपोरेट टैक्स भी घटा दिया गया है.

वाहनों और पराली के अलावा दिल्ली एनसीआर और देश भर में हो रहे कंस्ट्रक्शन भी इसका बड़ा कारण है. एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने कंस्ट्रक्शन के लिए कई तरह की गाइडलाइंस जारी की है लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता. नियम के मुताबिक आप घऱ के बाहर बालू,रेत या फिर किसी भी तरह के निर्माण सामग्री को नहीं डाल सकते लेकिन ऐसा नहीं होता. निर्माणाधीन इमारतों को ढकने का निर्देश दिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं किया जाता. जिसके कारण भी हमारा वायुमंडल प्रदूषित होता है.

पराली जलाने वाला किसान क्या करे?

एक किसान ने जब इस बारे में जानकारी ली कि आखिरकार क्यों उनको पराली जलानी पड़ती है तो उनका जवाब था, एक एकड़ से धान की पराली हटाने का खर्चा कम से कम ₹2000 आता है. अबकी बार उन्होंने जिस खेत को तीन लाख रुपये की लीज पर लिया था, उसमें सिर्फ डेढ़ लाख रुपये की धान की फसल काटी गई है. ऐसे में प्रति एकड़ 2000 रुपये और खर्चा करना उसके बस से बाहर है.

पंजाब के किसान और किसान संघ सरकार से पराली के वैज्ञानिक नियंत्रण के लिए ₹2000 से ₹5000 प्रति एकड़ मुआवजे की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार ने कोई मुआवजा तय करने के बजाए उल्टा उनसे जुर्माना वसूलने का फैसला किया है.

किसानों के सामने ये बड़ी समस्या राज्य सरकार हैप्पी सीडर और स्ट्रॉ रीपर जैसी मशीनों की खरीद पर 50 फ़ीसदी सब्सिडी देने का दावा कर रही है, लेकिन ये महंगी मशीनें आम किसान के बूते से बाहर हैं. किसानों का मानना है कि वह पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं और सरकार उनको महंगी मशीनें खरीदने के लिए और कर्जा लेने पर मजबूर कर ही है.

सरकार को और आम जनता को भी इस बारे में सोचना होगा. दिनों-दिन हमारा पर्यावरण जहरीले धुंए की माफिक होता जा रहा है. इसकी वजह से हम अपने बच्चों को गंभीर बीमारी की जद में ढकेल रहे हैं. भारत में सांस की बीमारी गंभीर से फैलती जा रही है. टीबी, स्टोन जैसी घातक बीमारियों का ग्राफ भी बढञता जा रहा है इन सब की जड़ प्रदूषण है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: जानिए, दोबारा वापसी करने की खबर पर करन मेहरा ने क्या कहा ?

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के ‘नैतिक’ यानी करन मेहरा वापसी करने वाले हैं. जी हां, हाल ही में ये खबर आई थी कि करण मेहरा की इस शो में दोबारा एंट्री हो सकती है. खबरों के अनुसार करण मेहरा ने इस शो में वापसी को लेकर खुद बयान दिया है. आइए जानते हैं करण मेहरा इस शो में वापसी कर रहे हैं या नहीं.

फिलहाल इस शो के स्टारर चेहरा नायरा (शिवांगी जोशी) और  कार्तिक (मोहसिन खान) हैं. लेकिन इस शो में निभा चुके किरदार अक्षरा (हिना खान) और नैतिक (करन मेहरा) को दर्शक नहीं भूले हैं. इस सीरियल के फैंस आज भी इस जोड़ी को काफी मिस करते हैं. यह फैंस के प्यार का ही तो नतीजा है कि, हिना खान तो अब फिल्मों की तरफ रुख कर चुकी हैं. वहीं दूसरी तरफ करण मेहरा अब भी एक बड़े सीरियल की तलाश में हैं.

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तभी तो जब खबरें आई थीं कि, करण मेहरा दोबारा  ‘ये रिश्ता में’ एंट्री कर सकते हैं. इस खबर के आने के बाद से ही उनके फैंस काफी खुश हो गए थे. दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर राजन शाही और करन मेहरा को एक अवार्ड फंक्सन के दौरान एक दूसरे के साथ देखा गया था. करन और राजन ने काफी गर्मजोशी से एक दूसरे के साथ मिलते नजर आए. इस खबर के सामने आने के बाद से ये दावा किया जा रहा है कि करन जल्द ही  इस शो में वापसी कर सकते हैं.

तो करण के वापसी  की खबर आने पर कई सवाल यह उठ रहे थे, क्या करण मेहरा वापस से नैतिक के रोल में ही दिखने वाले हैं या कोई दूसरा किरदार करण का इंतजार कर रहा है?  इस सवाल का जवाब तो खुद करण मेहरा ने ही दे दिया है.  हाल ही में एक रिपोर्ट के अनुसार करण मेहरा ने इस बात का खुलासा किया है कि, वह इस शो में वापसी कर भी रहे हैं या फिर नहीं.

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करण ने बताया कि, ‘मैं आज भी राजन शाही के कौन्टेक्ट में हूं. मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि, यह खबर आई कहां से है. उस इवेंट में राजन शाही मौजूद जरूर थे लेकिन हम दोनों की किसी तरह की कोई मुलाकात नहीं हुई थी.

करण मेहरा के इस बयान से तो यहीं लगता है कि  ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में वापसी करने के बिल्कुल मूड में नहीं है और न ही उनको बुलाया जा रहा है. आपको बता दें, हाल ही में करण मेहरा स्टार प्लस से शो ‘एक भ्रम सर्वगुण सम्पन्न’ में देखा गया था. इसमें करण के किरदार को काफी पसंद किया गया था.

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दीवाली स्पेशल 2019 : कानून के दायरे में पटाखे 

जिस तरह गुलाल और रंगों के बगैर होली का त्योहार मनाने की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक वैसे ही बिना आतिशबाजी के दीवाली का त्योहार मनाने की सोचना अटपटी सी बात लगती है. लेकिन पिछले कुछ सालों से दीवाली की आतिशबाजी पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित होने लगी है. इस की वजहें हैं अनापशनाप पटाखे चलाना, पटाखों में नुकसानदेह रसायनों का इस्तेमाल और देररात तक पटाखे फोड़ना. इस सब से आम लोगों का चैन से सोना भी दूभर हो जाता है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पिछले 2 सालों में आए अलगअलग एक दर्जन से भी ज्यादा फैसलों ने उद्दंडतापूर्वक पटाखे फोड़ने वालों पर लगाम कसने की जो कोशिश की है वह पूरी तरह नाकाम नहीं कही जा सकती. अब वाकई ज्यादातर लोग सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुताबिक पटाखे फोड़ने लगे हैं. हालांकि कुछ शरारती लोग आदतन कानून तोड़ने से बाज नहीं आते लेकिन राहत देने वाली बात यह है कि दीवाली की आतिशबाजी को ले कर लोगों में जागरूकता आ रही है.

दीवाली पर आतिशबाजी के चलन का कोई ज्ञात प्रामाणिक इतिहास उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह भी सच है कि पटाखे और दीवाली एकदूसरे का पर्याय हैं. पटाखे और आतिशबाजी खुशी और उल्लास का प्रतीक हैं खासतौर से बच्चों की दीवाली तो बिना पटाखों के दीवाली जैसी लगती ही नहीं. ऐसे में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध की बात सहज गले नहीं उतरती, जिस की मांग राजधानी दिल्ली से साल 2017 में उठी थी.

इस में कोई शक नहीं कि दिल्ली न केवल देश बल्कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है जहां प्रदूषण तमाम हदें पार कर चुका है. दिल्ली की जहरीली होती हवा की पूरी वजह हालांकि पटाखे नहीं हैं लेकिन यह भी सच है कि दीवाली के पटाखों का धुआं पर्यावरण के मानक स्तरों को बेहद खतरनाक और नुकसानदेह तरीके से पार कर जाता है. सो, पटाखों पर प्रतिबंध की मांग सब से पहले दिल्ली से ही उठी थी और इस बाबत कई लोगों ने सब से बड़ी अदालत से गुहार लगाई थी.

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दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और पटाखों को ले कर नएनए नियमकायदेकानून बनाना शुरू कर दिए, जिन्हें ले कर कट्टरवादी हिंदू अकसर यह कहते एतराज जताते रहते हैं कि सारी बंदिशें हमारे तीजत्योहारों पर ही क्यों, जबकि यह देश हमारा है.

अब संस्कृति के इन पैराकारों, ठेकेदारों को यह समझाने वाला कोई नहीं है कि वे भारत को अगर अपना देश मानते हैं तो दीवाली जैसे त्योहार पर बेतहाशा और बेलगाम पटाखे फोड़ कर आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ करना खुद का ही नुकसान नहीं तो और क्या है. दूसरे, हिंदू चूंकि बहुसंख्यक हैं, इसलिए भी पटाखों का चलन अकसर जरूरत से ज्यादा है जिस पर अभी और लगाम कसी जानी जरूरी है.

22 अक्तूबर, 2018 को अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि अब पटाखे रात 8 बजे से 10 बजे के बीच ही फोड़े जा सकेंगे और वे पटाखे भी ऐसे होने चाहिए जो पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाले हों. लेकिन अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने पटाखा उत्पादकों की आजीविका के मौलिक अधिकार और देश के लोगों के स्वास्थ्य का खयाल रखने सहित दूसरे अहम पहलुओं पर भी पर्याप्त ध्यान दिया था.

इस के बाद लगातार याचिकाएं दायर होती गईं और सुप्रीम कोर्ट हर फैसले में कुछ न कुछ बदलाव करता रहा. यह प्रक्रिया अभी तक जारी है. अच्छी बात यह है कि अब पटाखे अदालत के आदेश के मुताबिक ही चलाए जा सकते हैं.

पालन लोग खुद करें 

इस के बाद भी कई जगह इस फैसले की धज्जियां उड़ती दिखाई देती हैं तो इस के जिम्मेदार वे लोग हैं जो पटाखों की आड़ में हिंदुत्व फैलाना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी हिंदूवादियों ने अदालत के बाहर ही पटाखे फोड़ कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. लेकिन उन्हें उतना समर्थन नहीं मिला जितना कि ये लोग उम्मीद कर रहे थे. इस की अहम वजह यह है कि अब लोग खुद पटाखों से परेशान हो चले हैं. इस परेशानी से बचना जरूरी है. सो, सभी लोग धार्मिक पूर्वाग्रह और कुछ लोगों की भड़काऊ बातों में न आ कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार पटाखे फोड़़ें क्योंकि इन से न केवल वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलता है बल्कि इन्हेंचलाने से पालतू जानवर भी डरेसहमे रहते हैं.

यह बात भी समझी जानी चाहिए कि पटाखे बहुत महंगे हो चले हैं, जो दीवाली का बजट बिगाड़ते ही हैं और इन से हासिल कुछ नहीं होता. जरूरत इस बात की है कि रोशनी करने वाले आइटम ज्यादा चलाए जाएं और तेज आवाज वाले कम फोड़े जाएं और लडि़यां वगैरह तो बिलकुल ही न जलाई जाएं.

दीवाली प्रकाश का पर्व है, शोर या धूमधड़ाके का नहीं. इस से जुड़े पर्यावरण संबंधी नुकसान सीधे नहीं दिखते, लेकिन दीर्घकालिक असर डालते हैं. उन से बचना जरूरी है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन कर सभी अपराधी कहलाने से बचें भी.

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फिल्म समीक्षाः  “यारम”

रेटिंग:  ढाई स्टार

निर्देशक:  ओवैस खान

कलाकार: प्रतीक बब्बर, सिद्धांत कपूर, इशिता राज शर्मा, अनिता राज दलिप ताहिल, शुभा राजपूत व अन्य.

अवधिः एक घंटा 49 मिनट

मुस्लिम समाज के प्रचलित तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद फिल्मकार ओवैस खान इसी मुद्दे पर हास्य और दोस्ती के रिश्ते की चाशनी के साथ फिल्म ‘‘यारम’’ लेकर आए हैं, जिसके अंत में तीन तलाक खत्म हो जाने को लेकर वर्तमान सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में अभिनेता शक्ति कपूर का एक लंबा चैड़ा भाषण भी है.

कहानीः

फिल्म की कहानी बचपन के तीन दोस्तों रोहित बजाज (प्रतीक बब्बर), साहिल (सिद्धांत कपूर) और जोया (इशिता राज शर्मा) की है. फिल्म शुरू होती है रोहित के मीरा (शुभ राजपूत) से मिलने से. रोहित व मीरा अपने अपने माता-पिता की रजामंदी से इस मुलाकात के बाद तय करते हैं कि शादी तीन महीने बाद होगी. इन तीन माह में मीरा, रोहित को समझ लेंगी और फिर अंतिम निर्णय ले सकती हैं. उसके बाद रोहित अपने व्यापार के सिलसिले में मारीशस पहुंचता है, जहां उसे पता चलता है कि उसके बचपन के दोस्तों साहिल और जोया की जिंदगी में तूफान आ गया है. साहिल और जोया ने शादी कर ली थी. लेकिन तीन साल बाद रोहित के मारीशस पहुंचते ही साहिल ने तीन बार तलाक शब्द बोलकर जोया को तलाक दे देता है. उसके बाद साहिल को अपनी गलती का एहसास होता है. साहिल को लगता है कि वह जोया के बिना रह नहीं सकता. इसलिए अब मुस्लिम परंपरा के अनुसार हलाला करा कर दोबारा जोया से शादी करना चाहता है. इसके लिए वह रोहित से मदद मांगते है. साहिल चाहता है कि रोहित, जोया से शादी कर ले. उसके बाद रोहित, जोया को तलाक दे दे.जिससे साहिल फिर से जोया से शादी कर सके. रोहित को पता है कि अब कानून बन गया है, जिसके चलते  तीन बार तलाक कह देने से तलाक नहीं होता. इसलिए वह जोया से मिलकर एक नई योजना बनाता है, जिससे साहिल को सबक सिखाया जा सके. रोहित, साहिल से कहता है कि वह धर्म परिवर्तन करके जोया से शादी करेगा और फिर विलेन बनकर तलाक दे देगा. साहिल खुश हो जाता है. लोगों की नजर में रोहित व जोया की मुस्लिम परंपरा के अनुसार शादी होती है. इस शादी में साहिल या रोहित के माता-पिता मौजूद नहीं रहते. शादी के बाद रोहित साहिल से कह देता है कि वह जोया को तलाक नहीं देगा, क्योंकि वह तो बचपन से ही जोया से शादी करना चाहता था. अब साहिल को लगता है कि उसके जिगरी दोस्त ने उसे धोखा दिया है. उधर जोया और रोहित पति और पत्नी की तरह रहते हुए ऐसी हरकतें साहिल के सामने करते रहते हैं, जिससे साहिल को गुस्सा आता है. तो दूसरी तरफ रोहित के पिता साहिल को समझाते हैं कि प्यार के मायने यह हैं कि आप अपने प्यार को हमेशा खुश रखें. उसके बाद साहिल अपनी तरफ से जोया को खुशी पहुंचाने के लिए कुछ काम करता है.

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इसी बीच रोहित, साहिल और अपने माता-पिता को बता देता है कि जोया मां बनने वाली है. और वह उसके बच्चे का पिता. इस खुशी में रोहित एक पार्टी रखते हैं. इस पार्टी में कई मेहमानों के साथ साथ रोहित के माता पिता और साहिल भी आते हैं. इस पार्टी में साहिल कह देता है कि उसे रोहित से यह उम्मीद नहीं थी. कुछ बातें होती हैं और फिर रोहित बताता है कि साहिल और जोया की शादी टूटी ही नहीं. क्योंकि अब तीन तलाक कह देने से शादी नहीं टूटती. इसके अलावा जोया और रोहित ने शादी का सिर्फ नाटक किया था. रोहित का मकसद प्यार और शादी को लेकर साहिल को सही राह दिखानी थी.

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निर्देशनः

फिल्मकार ने एक गंभीर मुद्दे को हास्य के साथ पेश करते हुए पूरी तरह से हास्यास्पद बना दिया है. फिल्म में शक्ति कपूर का जो भाषण है, उससे यह जाहिर होता है कि यह फिल्म वर्तमान सरकार के निर्णय का प्रचार करने के मकसद से बनाई गई है, जो कि गलत है. इसी विषय पर बेहतरीन पटकथा के साथ बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. मगर फिल्मकार ऐसा करने से वंचित रह गए. अपनी कहानी व पटकथा पर थोड़ी सी मेहनत करते तो यह एक क्लासिक फिल्म बन सकती थी. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ हैं.

अभिनयः

प्रतीक बब्बर और सिद्धांत कपूर का साधारण अभिनय भी इस फिल्म की एक कमजोर कड़ी है. इशिता राज शर्मा ने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. अनीता राज ने साबित किया कि अभी भी वह अच्छी अभिनेत्री हैं. दलीप ताहिल इस फिल्म एकदम नए अवतार में नजर आए और अपने किरदार में शानदार अभिनय किया है. अभिनेत्री शुभा राजपूत के हिस्से करने को कुछ खास रहा नहीं.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019: घर पर बनाएं इडली मंचूरियन

फेस्टिव सीजन का  चल रहा है. इस सीजन में आप कोई ऐसा डिश बनना चाहती होगी. जो आसानी से बन भी जाए और खाने में टेस्टी भी हो. तो आइए झट से बताते हैं आपको इडली मंचूरियन की रेसिपी.

सामग्री

इडली- 10 पीस

कार्नफ्लोर- आधा कप

मैदा- आधा कप

सोया सौस- 1 चम्मच

अदरक लहसून पेस्ट- आधा चम्मच

तेल

ग्रेवी के लिएः प्याज, हरी मिर्च, छोटा पीस अदरक, शिमला मिर्च, सोया सौस, तेल, कौर्नफ्लोर, एक कप स्प्रिंग औनियन.

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बनाने की विधि

सबसे पहले इडली को छोटे पीस में काट लें.

दूसरी ओर सभी सामग्रियों को मिक्स कर के पेस्ट तैयार करें. जैसे- मैदा, कार्नफ्लोर, अदरक लहसुन पेस्ट, हल्का सा नमक और पानी. अब इडली के पीस को इस घोल में डुबो कर डीप फ्राई करें.

इडली फ्राई कर के किनारे रखें.

अब प्याज, हरी मिर्च, अदरक और शिमला मिर्च को बारीक काट लें. एक कढ़ाही में 1 चम्मच तेल डालें और उसमें इन सामग्रियों को हल्का भून लें.

उसके बाद इसमें आधा चम्मच सोया सौस मिला कर ऊपर से फ्राइड इडली डाल दें. अब इसमें कार्नफ्लोर को 2 कप पानी के साथ मिक्स करें.

इसे उबाल कर आंच से हटा दें. ऊपर से हरी पत्तेदार प्याज को छिड़के और इडली मंयूरियन गरमागरम सर्व करें.

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