Download App

‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’:  दया बेन के बिना अधूरी रही ये दीवाली

छोटे पर्दे का पौपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में काफी लंबे समय से दया बेन यानी दिशा वकानी का इंतजार हो रहा है. खबरों के अनुसार दया बेन की वापसी गरबे के दौरान होने वाली थी पर दया बेन नहीं दिखाई दी.

इस शो के दर्शक सोशल मीडिया पर दया बेन के वापसी को लेकर सवाल कर रहे हैं. ऐसे में फैंस का पूछना लाजमी है कि दया बेन कब वापस लौटेंगी.

ये भी पढ़ें- भोपाल में शुरू हुई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग, चांदनी सिंह के साथ पहुंचे अरविंद अकेला

आपको बता दें, दिशा वकानी की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसमें जेठा, टप्पू, बापूजी से वीडियो चैट करती नजर आ रही हैं. इन तस्वीरों के देखने के बाद फैंस की उम्मीदें बढ़ गई थी कि दिशा जल्द ही शो पर वापसी करेंगी. पर ऐसा हुआ नहीं दया बेन इस शो में वापस नहीं आई है.

इस शो में दया बेन के बिना दीवाली भी अधूरी रही. सबने दया बेन को बहुत याद किया. फिलहाल इस शो में दया बेन का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है.  अब देखना ये दिलचस्प होगा कि दया बेन की वापसी कब होगी.

ये भी पढ़ें- ‘‘कश्मीर में बहुत सी मानवीय कहानियां हैं’: प्रवीण मोरछले

‘छोटी सरदारनी’: सरबजीत की पहली पत्नी की हो सकती है धमाकेदार एंट्री

दर्शकों का फेवरेट सीरियल ‘छोटी सरदारनी’ में धमाकेदार ट्विस्ट एंड टर्न चल रहा है. कहानी का एंगल परम के कस्टडी के इर्द गिर्द घुम रही है. हाल ही में आपने देखा कि परम की कस्टडी के लिए नीरजा सरबजीत से बात करती है, जिससे सभी चौंक जाते हैं.

नीरजा चाहती है कि परम उससे फ्रेंडली हो जाए. पर परम उससे दूर ही रहने की कोशिश करता है. वो अपनी मम्मा मेहर के साथ ज्यादा समय बिताना चाहता है. परम के स्कुल में पेंटिंग कम्पटीशन होने वाला है, इसकी तैयारी में मेहर और सरबजीत उसकी मदद कर रहे हैं. खेल खेल में ही मेहर परम को पेंटिग करना सिखा रही है. तो इधर नीरजा परम की कस्टडी को लेकर काफी सीरियस है.

ये भी पढ़ें- फिल्म रिव्यू: ‘सैटेलाइट शंकर’

बता दें, खबरों के अनुसार इस सीरियल के मेकर्स जल्द ही धमाकेदार ट्विस्ट करने वाले हैं. जी हां, सरबजीत की पहली पत्नी की धमकेदार एंट्री हो सकती है. खबरों की माने तो सरबजीत की पहली पत्नी लौट आएगी. जिससे सरबजीत, मेहर और परम की जिंदगी में एक नई मोड़ आएगी.

ये भी पढ़ें- ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ : क्या नायरा लाएगी औनलाइन पापा?

अब तो ये अपकमिंग एपिसोड में देखना दिलचस्प होगा. अगर सरबजीत की पहली पत्नी की एंट्री होती है तो उसका किरदार कैसा होगा और सरबजीत मेहर की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आएंगे.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: कार्तिक के बर्थडे पर वेदिका ने दिया ये तोहफा

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे है. जी हां इस शो से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो रहा है. इस शो का ट्रैक कार्तिक, नायरा, वेदिका और कैरव के इर्द गिर्द घुम रहा है. वैसे कार्तिक और नायरा एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. लेकिन नायरा को हर वक्त वेदिका का ख्याल आ रहा है. क्योंकि नायरा ने वेदिका को  वादा जो दिया है.

तो उधर कार्तिक और कैरव का दोनो का बर्थडे भी है. वैसे कार्तिक ने कैरव का बर्थडे काफी उत्साह से मनाया था. अब बारी है कार्तिक के बर्थडे पार्टी की. गोयंका फैमिली काफी खुश नजर आ रही है क्योंकि जश्न का माहौल जो है. इसी सब के बीच नायरा को अचानक से ध्यान आता है कि वह कार्तिक के लिए ये सारी तैयारियां क्यों कर रही है.

ये भी पढ़ें- भोपाल में शुरू हुई भोजपुरी फिल्म की शूटिंग, चांदनी सिंह के साथ पहुंचे अरविंद अकेला

ऐसे में नायरा कैरव को लेकर गोयंका हाउस पहुंचती है. कार्तिक भी उन दोनों का बेसब्री से इंतजार कर रहा होता है. जैसे ही नायरा वहां पहुंचती है, कार्तिक उससे पूछता है कि वह गिफ्ट लेकर नहीं आई. नायरा गिफ्ट लाई होती है पर छिपा लेती है.  तभी दरवाजे पर एक गुलदस्ता दिखाई देता है और वो नायरा के हाथ आता है. कार्तिक को लगता है कि ये गिफ्ट नायरा ने उसे दिया है लेकिन उस गुलदस्ते में एक लेटर होता है, उस पर वेदिका का नाम लिखा होता है. ये पढ़कर कार्तिक उदास हो जाता है क्योंकि उसे तो नायरा से उम्मीद है.

ये भी पढ़ें- ‘‘कश्मीर में बहुत सी मानवीय कहानियां हैं’: प्रवीण मोरछले

तो उधर कैरव अपने पापा से काफी नाराज है. कैरव के बर्ताव से पूरी फैमिली हैरान है. अपकमिंग एपिसोड में देखना ये दिलचस्प होगा कि कार्तिक अपने पापा के साथ ऐसा बिहेव क्यों कर रहा है. उसकी सारी गलतफहमी कैसे दूर होगी.

जेल जाने की बेचैनी

मुद्दत तक सत्ता में बने रहने की लत और फिर मुद्दत तक ही सत्ता से दूर रहने की गत एनसीपी मुखिया शरद पवार को कुछ इस तरह सता रही है कि वे राजीखुशी जेल जाने को तैयार हो गए. प्रवर्तन निदेशालय ने मराठा क्षत्रप और महाराष्ट्र के भीष्म पितामह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की तो वे बोले, ‘‘जेल जाना उन के लिए खुशी की बात होगी क्योंकि वे कभी जेल नहीं गए हैं.’’ यह सब ऐसे वक्त में किया गया जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका था.

भाजपा के लिए महाराष्ट्र में इकलौती चुनौती शरद पवार ही बचे हैं. लिहाजा, उन की चौतरफा घेराबंदी में उस ने आलस नहीं किया. पहले तो एनसीपी के कई नेताओं को अपने पाले में लाया गया, फिर ईडी को हरी  झंडी दे दी गई. लेकिन पके हुए शरद पवार इस धौंस में नहीं आए, तो पुनर्विचार किया गया कि अगर उन्हें जेल भेजा गया तो कितना नफानुकसान होगा. 80 साल के ये बुजुर्ग पूरे दमखम से राज्य के चुनावी दौरों पर हैं और  झुकने के बजाय टूटने को तैयार हैं, जिस से भाजपा का दांव उलटा पड़ता नजर आ रहा है.

ये भी पढ़ें- तो प्रणव मुखर्जी भारत रत्न का खिताब वापस क्यों नहीं कर देते ?

मीडिया सीक्रेट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राजनीतिक पर्यटक के रूप मे हफ्तेभर अमेरिका में भरपूर लुत्फ उठाया और खुद को डोनाल्ड ट्रंप से फादर औफ इंडिया कहलवा कर ही वापसी के लिए उड़ान भरी. ‘शोले’ फिल्म के जय और वीरू की तरह साथ रहे मोदी और ट्रंप का शो फ्लौप ही रहा क्योंकि ये दोनों ही जिद्दी और कट्टरवादी नेता अब चमक खोने लगे हैं.

मुद्दे की बात फेयरवैल के वक्त हुई जब डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी से यह जानना चाहा कि वे इतने अच्छे रिपोर्टर लाते कहां से हैं और काश, उन के पास भी ऐसे रिपोर्टर होते. भक्त और गोदी मीडिया का मजाक अभिजात्य तरीके से उड़ाते ट्रंप ने अपनी व्यथा व्यक्त कर ही दी कि अमेरिकन मीडिया में भक्तिभाव की कमी है जो आएदिन वह उन की छिलाई करता रहता है. अच्छा तो यह रहा कि मोदी ने भारत से रिपोर्टर भेजने की पेशकश नहीं की. हां, यह टिप शायद दी हो कि भक्ति भी बिकाऊ होती है, आप को खरीदना नहीं आता.

आत्महत्या या संन्यास

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह फिर से दुखी हैं और इतने हैं कि अब आत्महत्या करने और संन्यास लेने तक की बात करने लगे हैं. उन के ताजे दुख की पुरानी वजह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बाढ़ और सूखे को ले कर कथित बेरुखी, खासतौर से उन के लोकसभा क्षेत्र बेगूसराय को ले कर है. हर कोई जानता है कि गिरिराज और नीतीश में दांतकाटी दुश्मनी है जिस की वजहों पर कई विश्लेषक शोध कर रहे हैं.

साल 2013 में नीतीश जब नरेंद्र मोदी को ले कर लगातार जहर उगल रहे थे तब मोदीभक्त गिरिराज ने कहा था कि नीतीश एक देहाती औरत की तरह व्यवहार कर रहे हैं और जलन के चलते नरेंद्र मोदी पर हमले कर रहे हैं.

यह जलन यानी फंगल इन्फैक्शन अब अमित छाप मलहम से दूर हो चुका है लेकिन गिरिराज को रहरह कर नीतीश को ले कर दौरा सा पड़ता रहता है. लिहाजा, उन की नई धौंस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. सब को मालूम है कि वे कुछ नहीं करेंगे.

बेवफा बसपा विधायक

कभी विरोधियों को  झटके देने वाली बसपा प्रमुख मायावती खुद इन दिनों  झटके पे  झटके खा रही हैं. उन्हें ताजा तगड़ा  झटका राजस्थान से लगा है जहां उन के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. अब कांग्रेस के 106 विधायक हो जाने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत निश्ंिचत हो गए हैं जिन की सरकार पर गिरने का दैनिक खतरा मंडराता रहता था. एक जमाने में बसपा के विधायकों, सांसदों की वफा की मिसाल दी जाती थी, लेकिन अब उन की बेवफाई चर्चा में रहती है.

ये भी पढ़ें- कितनी बार बौद्ध धर्म अपनाएंगी मायावती ?

बसपा विधायकों ने सम झदारी का परिचय ही दिया है क्योंकि बिना राजकीय सुखसुविधाओं के 5 साल गुजारना उन के लिए भी विधवा जीवन जीने जैसी बात थी, जिस में न घूमनेफिरने की इजाजत होती और न ही सजनेसंवरने की. हालांकि, सियासी हल्कों में चर्चा है कि यह सब बहनजी की मरजी से ही हुआ है जिन्होंने अशोक का शोक दूर करने जैसी कीमत वसूली है. सच जो भी हो, यह डील भाजपा को छोड़ सभी को सुकून देने वाली है.

मोक्ष : भाग 1

‘‘मां,कुंभ नहाने चलोगी? काफी दिन से कह रही थीं कि मुझे गंगा नहला ला. इस बार तुम्हें नहला लाता हूं. आज ट्रेन का टिकट करा लिया है.’’

यह सुन कर गोमती चहक उठीं, ‘‘तू सच कह रहा है श्रवण, मुझे यकीन नहीं हो रहा.’’

‘‘यकीन करो मां, ये देखो टिकटें,’’ श्रवण ने जेब से टिकटें निकाल कर गोमती को दिखाईं और बोला, ‘‘अब जाने की तैयारी कर लेना, जोजो सामान चाहिए बता देना. अगले हफ्ते आज के ही दिन चलेंगे.’’

‘‘कौनकौन चलेगा बेटा? सभी चल रहे हैं न?’’

‘‘नहीं मां, सब जा कर क्या करेंगे? कुंभ पर बहुत भीड़ रहती है. सब को संभालना मुश्किल होगा. बस, हम दोनों ही चलेंगे.’’

गोमती ने श्वेता की ओर देखा. उन के अकेले जाने से कहीं बहू नाराज न हो. उन्हें लगा कि इतनी उम्र में अकेली बेटे के साथ कैसे जाएंगी? श्रवण कैसे संभालेगा उन्हें. घर में तो जैसेतैसे अपना काम कर लेती हैं, बाहर कै से उठेंगीबैठेंगी. घड़ीघड़ी श्रवण का सहारा मांगेंगी. फिर कहीं सब के सामने ही श्रवण झल्लाने लगा तो? दुविधा हुई उन्हें.

‘‘अब क्या सोचने लगीं, मांजी? आप के बेटे कह रहे हैं तो घूम आइए. हम सब तो फिर कभी चले जाएंगे. इस के बाद पूरे 12 साल बाद ही कुंभ पडे़गा.’’

‘‘बहू, क्या श्रवण मुझे संभाल पाएगा?’’ गोमती ने अपना संशय सामने रखा तो श्रवण हंस पड़ा.

‘‘मां को अब अपने बेटे पर विश्वास नहीं है. जैसे आप बचपन में मेरा ध्यान रखती थीं वैसे ही रखूंगा. कहीं भी आप का हाथ नहीं छोडूंगा. खूब मेला घुमाऊंगा.’’

श्रवण की बात पर गोमती प्रसन्न हो गईं. उन की चिरप्रतीक्षित अभिलाषा पूरी होने जा रही थी. कुंभ स्नान कर मोक्ष पाने की कामना वह कब से कर रही थीं. कई बार श्रवण से कह चुकी थीं कि मरने से पहले एक बार कुंभ स्नान करना चाहती हैं. कुंभ पर नहीं ले जा सकता तो ऐसे ही हरिद्वार ले चल. वक्त खिसकता रहा, बात टलती रही. अब जब श्रवण अपनेआप कह रहा है तो उन का मन प्रसन्नता से नाचने लगा. उन्होंने बहूबेटे को आशीर्वाद से लाद दिया.

1 रात 1 दिन का सफर तय कर मांबेटा दोनों इलाहाबाद पहुंचे. गोमती का तो सफर में ही बुरा हाल हो गया. ट्रेन के धड़धड़ के शोर और सीटी ने रात भर गोमती को सोने नहीं दिया. श्रवण का हाथ थामे वह बारबार टायलेट जाती रहीं. ट्रेन खिसकने लगती तो पांव डगमगाने लगते. गिरतीपड़ती सीट तक पहुंचतीं.

‘‘अभी सफर शुरू हुआ है मां, आगे कैसे करोगी? संभालो स्वयं को.’’

‘‘संभाल रही हूं बेटा, पर इस बुढ़ापे में हाथपांव झूलर बने रहते हैं. पकड़ ढीली पड़ जाती है. इस का इलाज मुझ पर नहीं है,’’ वह बेबस सी हो जातीं.

‘‘कोई बात नहीं. मैं हूं न, सब संभाल लूंगा,’’ श्रवण उन की बेबसी को समझता.

खैर, सोतेजागते गोमती का सफर पूरा हुआ. गाड़ी इलाहाबाद स्टेशन पर रुकी तो प्लेटफार्म की चहलपहल और भीड़ देख कर वह हैरान रह गईं. श्रवण ने अपने कंधे पर बैग टांग लिया और एक हाथ से मां का हाथ पकड़ कर स्टेशन से बाहर आ गया.

शहर आ कर श्रवण ने देखा कि आकाश में घटाएं घुमड़ रही थीं. यह सोच कर कि क्या पता कब बादल बरसने लगें, उस ने थोड़ी देर स्टेशन पर ही रुकने का फैसला किया. मां के साथ वह वेटिंग रूम में जा कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद मां से बोला, ‘‘मां, नित्यकर्म से यहीं निबट लो. जब तक बारिश रुकती है हम आराम से यहीं रुकेंगे. पहले आप चली जाओ,’’  और उस ने इशारे से मां को बता दिया कि कहां जाना है. थोड़ी देर में गोमती लौट आईं. फिर श्रवण चला गया. श्रवण जब लौटा तो उस के हाथ में गरमागरम चाय के 2 कुल्हड़ और एक थैली में समोसे थे. मांबेटे ने चाय पी और समोसे खाए. थोड़ा आराम मिला तो गोमती की आंखें झपकने लगीं. पूरी रात आंखों में कटी थी. वहीं सोफे की टेक ले कर आंखें मूंद लीं.

करीब घंटे भर बाद सूरज फिर से झांकने लगा. वर्षा के कारण स्टेशन पर भीड़ बढ़ गई थी. अब धीरेधीरे छंटने लगी. गोमती और श्रवण ने भी आटोरिकशा पकड़ कर गंगाघाट तक पहुंचने का मन बनाया.

आटोरिकशा ने मेलाक्षेत्र शुरू होते ही उन्हें उतार दिया. करीब 1 किलोमीटर पैदल चल कर वे गंगाघाट तक पहुंचे. गिरतेपड़ते बड़ी मुश्किल से एक डेरे में थोड़ा सा स्थान मिला. दोनों ने चादर बिछा कर अपना सामान जमाया और नहाने चल दिए.

गोमती ने अपने अब तक के जीवन में इतनी भीड़ नहीं देखी थी. कहीं लाउडस्पीकरों का शोर, कहीं भजन गाती टोलियां, कहीं साधुसंतों के प्रवचन, कहीं रामायण पाठ, खिलौने वाले, झूले वाले, पूरीकचौरी, चाट व मिठाई की दुकानें, धार्मिक किताबों, तसवीरों, मालाओं व सिंदूर की दुकानें, हर जातिधर्म के लोगों को देखदेख कर गोमती चकित थीं. लगता था किसी दूसरे लोक में आ गई हैं. वह श्रवण का हाथ कस कर थामे थीं.

भीड़ में रास्ता बनाता श्रवण उन्हें गंगा किनारे तक ले आया. यहां भी खूब भीड़ और धक्कमधक्का था. श्रवण ने हाथ पकड़ कर मां को स्नान कराया, फिर स्वयं किया. गोमती ने फूलबताशे गंगा में चढ़ाए. जाने कब से मन में पली साध पूरी हुई थी. हर्षातिरेक में आंसू निकल पडे़, हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, श्रवण सा बेटा हर मां को देना. आज उसी के कारण तुम्हारे दर्शन कर सकी हूं.

श्रवण ने मां को मेला घुमाया. खूब खिलायापिलाया.

‘‘थक गई हूं. अब नहीं चला जाता, श्रवण,’’ गोमती के कहने पर श्रवण उन्हें डेरे पर ले आया.

‘‘मां, तुम आराम करो. मैं घूम कर अभी आया. थोड़े रुपए अपने पास रख लो,’’ उस ने मां को रुपए थमाए.

‘‘मैं इन रुपयों का क्या करूंगी? तू है तो मेरे पास. फिर 5-10 रुपए हैं मेरे पास,’’ गोमती ने मना किया.

‘‘वक्तबेवक्त काम आएंगे. तुम्हारा ही कुछ लेने का मन हो या कहीं मेले में मेरी जेब ही कट जाए तो…’’ श्रवण के समझाने पर गोमती ने रुपए ले लिए. गोमती ने रुपए संभाल कर रख लिए. उन्हें ध्यान आया कि ऐसे मेलों में चोर- उचक्के खूब घूमते हैं. लोगों को बेवकूफ बना कर हाथ की सफाई दिखा कर खूब ठगते हैं.

श्रवण चला गया और गोमती थैला सिर के नीचे लगा बिछी चादर पर लेट गईं. उन का मन आह्लादित था. श्रवण ने खूब ध्यान रखा है. लेटेलेटे आंखें झपक गईं. जब खुलीं तो देखा कि सूरज ढलने जा रहा है और श्रवण अभी लौटा नहीं है.

उन्हें चिंता हो आई. अनजान जगह, अजनबी लोग, श्रवण के बारे में किस से पूछें? अपना थैला टटोल कर देखा. सब- कुछ यथास्थान सुरक्षित था. कुछ रुपए एक रूमाल में बांध कर चुपचाप कपड़ों के साथ थैले में डाल लाई थीं. सोचा था पता नहीं परदेश में कहां जरूरत पड़ जाए. उसी रूमाल में श्रवण के दिए रुपए भी रख लिए.

वह डेरे से बाहर आ कर इधरउधर देखने लगीं. आदमियों का रेला एक तरफ तेजी से भागने लगा. वह कुछ समझ पातीं कि चीखपुकार मच गई. पता लगा कि मेले में हाथी बिगड़ जाने से भगदड़ मच गई है. काफी लोग भगदड़ में गिरने के कारण कुचल कर मर गए हैं.

सुन कर गोमती का कलेजा मुंह को आने लगा. कहीं उन का श्रवण भी…क्या इसी कारण अभी तक नहीं आया है? उन्होंने एक यात्री के पास जा कर पूछा, ‘‘भैया, यह किस समय की बात है?’’

‘‘मांजी, शाम 4 बजे नागा साधु हाथियों पर बैठ कर स्नान करने जा रहे थे और पैसे फेंकते जा रहे थे. उन के फेंके पैसों को लूटने के कारण यह कांड हुआ. जो जख्मी हैं उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है और जो मर गए हैं उन्हें सरकारी गाड़ी से वहां से हटाया जा रहा है. आप का भी कोई है?’’

‘‘भैया, मेरा बेटा 2 बजे घूमने निकला था और अभी तक नहीं लौटा है.’’

‘‘उस का कोई फोटो है, मांजी?’’ यात्री ने पूछा.

‘‘फोटो तो नहीं है. अब क्या करूं?’’ गोमती रोने लगीं.

‘‘मांजी, आप रोओ मत. देखो, सामने पुलिस चौकी है. आप वहां जा कर पता करो.’’

गोमती ने चादर समेट कर थैले में रखी और पुलिस चौकी पहुंच कर रोने लगीं. लाउडस्पीकर से कई बार एनाउंस कराया गया. फिर एक सहृदय सिपाही अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोमती को वहां ले गया जहां मृतकों को एकसाथ रखा गया था. 1-2 अस्थायी बने अस्पतालों में भी ले गया, जहां जख्मी पड़े लोग कराह रहे थे और डाक्टर उन  की मरहमपट्टी करने में जुटे थे. श्रवण का वहां कहीं भी पता न था. तभी गोमती को ध्यान आया कि कहीं श्रवण डेरे पर लौट न आया हो और उन का इंतजार कर रहा हो या उन्हें डेरे पर न पा कर वह भी उन्हीं की तरह तलाश कर रहा हो. हालांकि पुलिस चौकी पर वह अपने बेटे का हुलिया बता आई थीं और लौटने तक रोके रखने को भी कह आई थीं.

गोमती ने आ कर मालूम किया तो पता चला कि उन्हें पूछने कोई नहीं आया था. वह डेरे पर गईं. वहां भी नहीं. आधी रात कभी डेरे में, कभी पुलिस चौकी पर कटी. जब रात के 12 बज गए तो पुलिस वालों ने कहा, ‘‘मांजी, आप डेरे पर जा कर आराम करो. आप का बेटा यहां पूछने आया तो आप के पास भेज देंगे.’’

शायद यही सच है : भाग 2

‘डैडी का अपना कारोबार है, जो दूसरे शहरों तक फैला हुआ है. मुझे तो वही संभालना है. बस, इस वर्ष की अंतिम परीक्षा के बाद मेरा सारा ध्यान अपने व्यवसाय में ही होगा.’

‘यह भी ठीक है. तुम अपने व्यवसाय में व्यस्त रहोगे और मैं अपनी बैंक की नौकरी में व्यस्त रहूंगी. वरना दिन भर घर में अकेली कितना बोर हो जाऊंगी,’ भारती ने कहा तो हिमेश हैरानी से बोला, ‘तुम अकेली कहां होेगी, मेरी बहनें और मां भी तो रहेंगी तुम्हारे साथ.’

हिमेश, एक बात अभी से स्पष्ट कर देना चाहती हूं, मैं संयुक्त परिवार में तालमेल नहीं बैठा पाऊंगी. छोटीछोटी बातों पर रोकटोक वहां आम बात होती है, जो मुझ से सहन नहीं होगी. फिर मैं शादी के बाद भी नौकरी पर जाती रहूंगी. तुम्हारी बहनों की पटरी भी मेरे साथ जम पाएगी, इस में मुझे शक है, इसलिए तुम्हें अपने परिवार से अलग रहने की मानसिकता अभी से बना लेनी चाहिए.’

भारती की बातें सुन कर हिमेश स्तब्ध रह गया. फिर भी अपनी ओर से उसे समझाते हुए बोला, ‘भारती, हर मांबाप की चाह होती है कि उन की बहू संस्कारी हो और घर के सदस्यों के साथ हिलमिल कर रहे, बड़ों को मानसम्मान दे. मेरे मातापिता की भी तो यही ख्वाहिश होगी, आखिर मैं उन का इकलौता बेटा हूं. उन की मुझ से कुछ उम्मीदें भी होंगी. मैं उन्हें छोड़ अलग कैसे रह सकता हूं?’

‘तो फिर मेरे और तुम्हारे रास्ते आज से अलगअलग हैं. मैं तो अपनी इच्छा से जीवन जीने वाली लड़की हूं. कल को मेरे उठनेबैठने और नौकरी करने पर तुम्हारे मम्मीडैडी किसी तरह का एतराज करें, यह मैं सहन नहीं कर सकती. इस से अच्छा है हम इस रिश्ते को यहीं समाप्त कर दें.’

‘भारती, तुम्हारी बातों से स्वार्थ की बू आ रही है,’ हिमेश बोला, ‘जिंदगी में केवल अपनी ही सुखसुविधाओं का ध्यान नहीं रखा जाता बल्कि दूसरों के लिए भी सोचना पड़ता है. केवल अपने लिए सोचने वाले स्वार्थी लोग अंदर से कभी खुश नहीं रह पाते…’

हिमेश की बात को बीच में काटते हुए भारती बोली, ‘अपनी दार्शनिकता अपने पास ही रहने दो. मुझे इन में कोई दिलचस्पी नहीं है और अब इस रिश्ते का कोई अर्थ नहीं रह जाता,’ वह उठ कर चल दी. हिमेश उसे पुकारता रहा लेकिन वह नहीं रुकी.

बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो कर भारती अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गई. अब उस में बड़प्पन व अहम की भावना और बढ़ने लगी. इस बीच मांबाप द्वारा पसंद किए 2-3 और रिश्तों को उस ने ठुकरा दिया. कहीं लड़का स्मार्ट नहीं, कहीं उस की आय कम लगी तो कहीं परिवार बड़ा. उस के भाई की उम्र भी शादी के लायक हो गई थी. बेटी की कहीं बात बनती न देख कर मांबाप ने भारती के भाई की शादी कर दी. 2-3 साल और सरक गए. दोचार रिश्ते भारती के लिए आए तो कहीं लड़का अच्छी नौकरी न करता, कहीं लड़के की उम्र उस से कम होती. एक परिवार ने तो दबे स्वर में कह भी दिया कि लड़की इतनी नकचढ़ी है, खुद को आधुनिक मानती है, कैसे विवाह के बंधन को निभा पाएगी.

अब भारती की छवि नातेरिश्तेदारों में एक बिगडै़ल, क्रोधी, नकचढ़ी, बदमिजाज लड़की के रूप में स्थापित हो गई थी. इस बीच दूसरे बेटे के लिए रिश्ते आने लगे तो मांबाप ने अपनी जिम्मेदारी मान कर उस की भी शादी कर दी. भारती अब 30 वर्ष की उम्र पार कर चुकी थी. अब चेहरे का वह लावण्य कम होने लगा था, जिस पर उसे नाज था.

एक दिन पिता सोए तो सवेरे उठे ही नहीं. उन्हें जबरदस्त दिल का दौरा पड़ा था. घर भर में कोहराम मच गया. मां तो बारबार बेहोश हो जाती थीं. जब होश आता तो विलाप करतीं, ‘हमें किस के भरोसे छोड़े जा रहे हो…भारती के हाथ तो पीले करवा जाते. अब कौन करेगा.’

पिता की मृत्यु के बाद घर में उदासी पसर गई. दोनों बेटेबहुओं का व्यवहार भी बदलने लगा. छोटीछोटी बातों पर उलझाव, तनाव, कहासुनी होने लगी. इन सब के केंद्र में अधिकतर भारती ही होती. सालभर में ही दोनों बेटे अपनेअपने परिवारों को ले कर अलग हो गए. इस से मां को गहरा सदमा पहुंचा. एक दिन अपने गिरते स्वास्थ्य की दुहाई देते हुए वह बोलीं, ‘भारती बेटा, अगर मेरे जीतेजी तेरी शादी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगी. मुझे दिनरात तेरी ही चिंता रहती है. मेरे बाद तू एकदम अकेली हो जाएगी. मेरी मान, मेरे दूर के रिश्ते में एक पढ़ालिखा इंजीनियर लड़का है, घर खानदान सब अच्छा है, एक बार तू देख लेगी तो जरूर पसंद आ जाएगा.’

‘मम्मी, तुम मेरी शादी को ले कर इतनी परेशान क्यों होती हो? अगर शादी नहीं हुई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? क्या जीवन की सार्थकता केवल शादी में है? आज मैं प्रथम श्रेणी की अफसर हूं. अच्छा कमाती हूं, क्या यह उपलब्धियां कम हैं?’

‘बेटा, औरत आखिर औरत होती है. अभी इस उम्र में ऊर्जा, सामर्थ्य होने के कारण तू ऐसी बातें कर रही है लेकिन उम्र ठहरती तो नहीं. एक दिन ऐसी स्थिति भी आती है जब व्यक्ति थक जाता है. तब वह अपनों का प्यार, संबल और आराम चाहता है. उम्र के उस पड़ाव पर जीवनसाथी का संग ही सब से बड़ा संबल बन जाता है. तुम खुद इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी इन बातों को क्यों नहीं समझतीं? एक औरत की पूर्णता उस के पत्नी, मां बनने पर ही होती है. बेटी, अभी भी वक्त है, मेरी बातों पर गौर कर के इस रिश्ते को स्वीकार कर लो.’

मां की इन बातों का इतना असर हुआ कि भारती राजी हो गई. मोहित को देखने के बाद उस ने अपनी स्वीकृति दे दी. मोहित उम्र में परिपक्व था. 35 पार कर चुका था. उस ने भी भारती को पसंद कर लिया. मां उन की शादी जल्द से जल्द करना चाहती थीं ताकि कहीं कोई अड़चन न आ जाए. उन्हें आशंका थी, अत: शादी की तारीख भी एक महीने बाद की तय कर दी गई.

हैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 2

हैैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 1

आखिरी भाग

अब आगे पढ़ें

पिता की घिनौनी हरकतों से प्रिया बहुत दुखी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी पीड़ा किस से कहे. जयप्रकाश ने उस पर इतना कड़ा पहरा बैठा दिया था कि वह किसी से बात तक नहीं कर सकती थी. पिता के अत्याचार से बचने के लिए उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.

इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रिया गोरखपुर में अपने एक रिश्तेदार के पास रहने लगी. वहां रहते हुए वह एक मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी ताकि  किसी पर बोझ न बन सके और उस की जरूरतें भी पूरी होती रहें.

बेटी तो बेटी होती है. भले ही वह कुकर्मी पिता से दूर रह रही थी लेकिन उसे पिता की यादें बराबर सताती रहती थीं इसलिए वह बीचबीच में घर आ जाती थी. वह जब भी घर आती थी, पिता उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था.

26 जुलाई, 2019 को प्रिया घर गई थी. इस से अगली रात 27 जुलाई को जयप्रकाश ने उस से संबंध बनाने की कोशिश की. प्रिया ने इस बार पिता की मनमानी नहीं चलने दी और विरोध करने लगी. कामाग्नि में जलते पिता जयप्रकाश ने आव देखा न ताव, उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

पिता से हैवान और हैवान से दरिंदा बना जयप्रकाश पूरी नीचता पर उतर आया था. उस ने बेटी की मौत के बाद उस की लाश के साथ अपना मुंह काला किया. जब उस की कामाग्नि शांत हुई तो उसे होश आया. उस की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूल रहा था. वह सोचने लगा कि प्रिया की लाश से कैसे छुटकारा पाए.

काफी देर सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया. वह कमरे में गया और वहां से तेजधार वाला चाकू ले आया. चाकू से प्रिया का उस ने सिर और धड़ अलग कर दिया. सिर उस की इस करतूत से फर्श पर खून ही खून फैल गया.

फिर उस ने बेटी के शरीर से उस के सारे कपड़े उतार दिए और उन्हीं कपड़ों से फर्श पर फैले खून को साफ किया ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. इस के बाद वह कमरे के अंदर से प्लास्टिक के सफेद रंग के 3 बोरे ले आया. उस ने एक बोरे में सिर, दूसरे में धड़ और तीसरे में प्रिया के खून से सने कपड़े रखे.

रात 2 बजे के करीब जयप्रकाश ने अपनी मोपेड पर तीनों बोरे लाद दिए और उन्हें ठिकाने लगाने के लिए निकल गया. सिर को उस ने उरुवा थाने के अंतर्गत आने वाली एक जगह की झाड़ी में फेंक दिया.

ये भी पढ़ें- ‘सोशल मीडिया’ हो गया ‘एंटी सोशल’

फिर धड़ और कपड़े वाले बोरों को ले कर वह वहां से गोला के चेनवा नाला पहुंचा. नाले में उस ने दोनों बोरे ठिकाने लगा दिए. इस के बाद वह घर लौट आया और हाथमुंह धो कर इत्मीनान से सो गया.

पते की बात यह रही कि प्रिया के अकसर गोरखपुर में रहने की वजह से उस के अचानक गायब होने पर किसी को शक नहीं हुआ.

अब जयप्रकाश को एक बात की चिंता खाए जा रही थी कि भले ही लोग यह समझते हों कि प्रिया गोरखपुर में नौकरी कर रही है, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक राज नहीं रह सकेगी. एक न एक दिन पुलिस इस हत्या से परदा हटा ही देगी तो वह उम्र भर जेल की चक्की पीसेगा. उस ने सोचा कि क्यों न ऐसी चाल चली जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचविचार करने के बाद उस ने अपने दामाद पर ही साली यानी प्रिया के अपहरण का आरोप लगाने की योजना बनाई. इस से जयप्रकाश का फायदा ही फायदा था. भविष्य में वह न तो कभी प्रिया की तलाश कर सकता था और न ही उस की हत्या का राज खुल सकता था. वक्त जयप्रकाश का बराबर साथ दे रहा था.

कुछ दिन बाद जयप्रकाश ने दामाद सुनील के पिता को फोन कर प्रिया के गायब होने की सूचना दी. बातचीत में उस ने बेटी के गायब होने के पीछे सुनील का हाथ होने का आरोप लगाया. सुनील के पिता समधी का आरोप सुन कर चौंके.

उन्होंने इस बारे में बेटे सुनील से बात की तो साली के अपहरण का आरोप खुद पर लगने से सुनील सन्न रह गया. उस ने यह बात पत्नी राधा को बताई. राधा भी पति की बात सुन कर हैरान थी.

राधा ने उसी समय पिता को फोन किया तो जयप्रकाश ने सुनील पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराने की धमकी देनी शुरू कर दी. पिता की बात सुन कर राधा और सुनील एकदम परेशान हो गए. जबकि वे खुद भी कई दिनों से प्रिया के मोबाइल पर संपर्क करना चाहते थे. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

फिर 17 अगस्त, 2019 को जयप्रकाश ने खुद ही बेटी राधा को फोन कर के प्रिया की हत्या करने की जानकारी दे दी.

बहरहाल, घटना की जानकारी होने पर राधा पति सुनील के साथ 17 अगस्त को ही गांव पहुंच गई. पूछताछ में उन्होेंने पुलिस को बताया कि पहले प्रिया उन से फोन पर बातें करती रहती थी, लेकिन बाद में पिता के दबाव में उस ने उन से बात करनी बंद कर दी थी.

बीते 29 मई को एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में राधा और सुनील भी गए थे. उस समारोह में प्रिया भी आई थी. राधा ने वहीं पर प्रिया से मुलाकात के दौरान उस से पूछा कि वह उसे फोन क्यों नहीं करती, तो प्रिया ने पिता के दबाव की वजह से फोन न करने की बात कही थी.

ये भी पढ़ें- फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 2

जब उस ने वह वजह पूछी तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस के बाद से वह कभीकभार बहन और जीजा को फोन कर लेती थी लेकिन पिता की हरकत के बारे में उस ने उन से कभी कोई चर्चा नहीं की थी.

अगर प्रिया ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती तो उसे असमय मौत के आगोश में यूं ही नहीं समाना पड़ता. वह भी जिंदा होती और खुशहाल जीवन जीती.

यही नहीं, मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ चुके कलयुगी पिता को भी सलाखों के पीछे पहुंचवा सकती थी, लेकिन सामाजिक लोकलाज और डर के चलते उस ने ऐसा नहीं किया, जिस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

पुलिस ने जयप्रकाश गुप्ता से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जयप्रकाश जेल की सलाखों के पीछे कैद था. उस की निशानदेही पर पुलिस हत्या में इस्तेमाल मोपेड, चाकू आदि बरामद कर चुकी थी.

ये भी पढ़ें- अंजाम ए मोहब्बत: भाग 2

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य: मनोहर कहानियां     

लेन-देन

लेखक- नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

मनोहर की चाय की गुमटी रेंगरेंग कर चल रही थी. घर का खर्च भी चलाना मुश्किल था. उसी में 5 लोगों का पेट पालना था.

अपने एक खास ग्राहक के कहने पर मनोहर ने गुमटी पर शराब के पाउच भी रखने शुरू कर दिए. 2-4 ग्राहकों को बता भी दिया. फिर क्या था. चाय के बहाने पाउचों की बिक्री बढ़ती चली गई.

थानेदार को यह बात पता चली, तो वह 2 हवलदारों को ले कर गुमटी

पर आ धमका और रोज के 4 सौ रुपए कमीशन मांगने लगा.

मनोहर हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, मैं रोज 4 सौ रुपए नहीं दे पाऊंगा. हां, हर महीने इतने रुपए थाने में पहुंचा दिया करूंगा.’’

‘‘तू मुझे 4 सौ रुपए की भीख देगा…’’ कह कर थानेदार ने उसे एक लात मारी और चिल्लाया, ‘‘खुलेआम दारू बेचता है और मुझे 4 सौ रुपए का थूक चाटने को कहता है.’’

मनोहर की पत्नी श्यामा ने दौड़ कर उसे उठाया और थानेदार से बोली, ‘‘हमें माफ कर दीजिए सरकार. हम दारू का धंधा ही छोड़ देंगे.’’

‘‘तू दारू का धंधा छोड़ देगी, तो हमारी आमदनी कैसे होगी? तू दारू बेचेगी और रुपए के साथ सजसंवर कर मेरे पास आएगी,’’ कहते हुए थानेदार ने एक आंख दबाई.

तभी मनोहर की 15, 13 और

9 साल की 3 बेटियां स्कूल से छुट्टी होने के बाद बस्ता टांगे वहां आ गईं.

मनोहर की बड़ी बेटी पायल, जो 9वीं जमात में पढ़ रही थी, को समझते देर न लगी. वह बोली, ‘‘पापा, मैं ने मना किया था न कि दारू मत बेचो. देखो, आज पुलिस आ ही गई. हमारी

इज्जत गई न…’’ कहतेकहते उस का गला भर आया.

‘‘ताजा गुलाब की तरह खिलीखिली है तेरी बेटी. आज रात इसे

मेरे क्वार्टर पर 10 पाउच के साथ भेज देना,’’ कहते हुए थानेदार की आंखों में गुलाबी रंगत छा गई.

‘‘नहीं साहब, मैं इसे नहीं भेजूंगा,’’ मनोहर बोला.

इतना सुनते ही थानेदार ने एक तमाचा मनोहर को रसीद कर दिया.

‘‘रात को 8 बजे तेरी बेटी थाने में पहुंच जानी चाहिए, नहीं तो समझ लेना कि कल मैं तेरा क्या हाल करूंगा,’’ कहते हुए उस ने दूसरा तमाचा उठाया, तभी एकाएक पायल बोली, ‘‘सर, मैं आने के लिए तैयार…’’

‘‘बेटी, यह तू क्या कह रही है?’’ यह सुन कर मनोहर के होश उड़ गए.

‘‘पापा, आप डरिए मत. सर, कल से मेरे इम्तिहान शुरू हैं. मैं अगले हफ्ते आऊंगी. आप कहेंगे, तो मैं अपनी 2-4 सहेलियों को भी साथ लाऊंगी. वे सब तो मुझ से भी ज्यादा खूबसूरत हैं.’’

थानेदार ने खुशी से झूमते हुए एक आंख दबाई, फिर वह मनोहर से बोला, ‘‘तेरी बेटी कितनी समझदार है.’’

इस के बाद थानेदार वहां से चला गया.

‘‘बेटी, तू ने उस नीच के साथ यह कैसा सौदा कर लिया? अपने साथ सहेलियों की भी जिंदगी बरबाद करेगी,’’ कहते हुए मां श्यामा बहुत डर गई थी.

‘‘आप लोग शांत रहिए. मुझे जैसा करना होगा, मैं करूंगी,’’ कह कर पायल बस्ता लिए घर चली गई.

पायल ने इस बारे में अपनी सहेलियों से बात की, तो वे सभी राजी हो गईं.

वादे के मुताबिक अगले हफ्ते ही पायल दारू और 4 सौ रुपए ले कर थाने पहुंच गई.

थानेदार ने पूछा, ‘‘तुम्हारी सहेलियां किधर हैं?’’

‘‘2-4 नहीं, बल्कि वे तो 8-10 हैं. वे सब टेकरी के पास हैं. किसी ने आप को इस थाने में इतनी सारी लड़कियों के साथ कुछ उलटासीधा करते देख लिया, तो आप की लुटिया ही डूब जाएगी, इसलिए मैं ने उन को यहां से कुछ दूर रखा है सर…’’ पायल थानेदार के कान में धीरे से फुसफुसाई, ‘‘हम कड़ैया गांव चलें. वहां पुराने बरगद के पास एक खंडहरनुमा मकान है. वहां ज्यादा ठीक रहेगा.’’

‘‘हाय पायल, मैं तो खुशी के मारे मर जाऊं,’’ कह कर थानेदार ने उस के गुलाबी गाल मसल दिए और बोला, ‘‘तू तो बड़ी होशियार है. चल, वहीं चलते हैं.’’

थानेदार एक हवलदार के भरोसे थाना छोड़ कर पायल के साथ अपनी जीप से कुछ दूरी पर टेकरी के पास गया.

वहां पायल की ही उम्र की 8-10 लड़कियों को जींसटौप में खड़ी देख थानेदार की लार टपकने लगी.

‘‘ऐसे गुलाब के फूलों के सामने ये रुपए क्या चीज हैं,’’ उस ने जेब से रुपए निकाल कर पायल को लौटा दिए, ‘‘हां, दारू तो मैं जरूर पीऊंगा.’’

पायल ने कहा, तो सारी लड़कियां जीप में बैठने लगीं, तभी 14-15 लड़के वहां आ धमके.

यह नजारा देख एक लड़के ने पायल को घूरते हुए पूछा, ‘‘पायल, तुम

सब थानेदार साहब के साथ कहां जा रही हो?’’

‘‘विशाल, हम कड़ैया गांव में ट्रेनिंग के लिए जा रहे हैं. आएदिन लड़कियों के साथ उलटीसीधी घटनाएं हो रही हैं, इसलिए थानेदार साहब ने कहा है कि वे हम सब को कराटे सिखाएंगे?’’

‘‘हांहां,’’ थानेदार झट से बोला, ताकि उस की चोरी पकड़ी न जाए.

‘‘पायल, आज तुम इस पीली ड्रैस में बहुत खूबसूरत दिख रही हो. मैं तुम्हारा फोटो खींच लूं?’’

‘‘हांहां, खींचो न.’’

विशाल ने पायल के साथ थानेदार और सारी लड़कियों के भी फोटो खींचे.

ये भी पढ़ें- कर्मफल

थानेदार गाड़ी स्टार्ट कर पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘मैं तो डर ही गया था. अच्छा हुआ कि तुम ने ऐन मौके पर ट्रेनिंग की बात कह दी, नहीं तो मैं काम से गया था.’’

थानेदार के बगल में बैठी पायल और बाकी लड़कियां मुसकरा दीं.

कड़ैया गांव 10 किलोमीटर दूर था. थानेदार घूंटघूंट दारू पीते हुए आगे टंगे आईने में लड़कियों को देख मदहोश हुआ जा रहा था. वह बहुत तेज गाड़ी चला रहा था, ताकि जल्दी कड़ैया गांव पहुंचे.

‘‘सर… सर, गाड़ी रोकिए,’’ पायल इतराते हुए बोली.

थानेदार ने झट से ब्रेक मारा और पूछा, ‘‘यहां गाड़ी क्यों रुकवाई?’’

फिर उस ने चारों तरफ नजर दौड़ाई. वह एकदम सुनसान जंगल था. दूरदूर तक बड़ेबड़े पेड़ दिखाई दे रहे थे. कड़ैया गांव अभी 4-5 किलोमीटर दूर था.

‘‘सर, आगे जाने से क्या फायदा? जो काम वहां हो सकता है, क्या वह यहां नहीं हो सकता?’’ पायल ने थानेदार की लाललाल आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘कितना मस्त मौसम है. हलकीहलकी धूप, ठंडीठंडी बहती हवा, घने पेड़, आप और हम सब तितलियां.’’

‘‘मुझ से ज्यादा तुम बेकरार हो,’’ थानेदार ने सीना फुला कर कहा, ‘‘चलो, यहीं उतरते हैं.’’

सभी जीप से उतर गए. थानेदार के साथ चिकनीचुपड़ी बातें करते हुए सारी लड़कियां आगे बढ़ रही थीं.

पायल थानेदार को एकएक पाउच दारू थमाते जा रही थी. वह पाउच के कोने को दांत से काट कर गटागट शराब पीता जा रहा था.

‘‘सर, अपने कपड़े उतार लीजिए,’’ जींस वाली एक लड़की ने इतना कह कर थानेदार के गाल सहला दिए.

लड़कियों के नशे में अंधे थानेदार ने रिवाल्वर उसे थमा कर अपनी खाकी वरदी खोल कर हवा में उछाल दी.

पायल ने उसे एक पेड़ के सहारे खड़ा कर दिया, ‘‘सर, आप कितने खूबसूरत हैं. काश, आप जैसे से मेरी शादी होती…’’ वह खूब मीठीमीठी बातें बोलती गई.

थानेदार के पूरे शरीर में रोमांच हो आया. लेकिन जब वह उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा, तो उस के होश फाख्ता हो गए.

बाकी लड़कियों ने थानेदार को रस्सी से पेड़ के सहारे कस कर बांध दिया था.

खुद को पेड़ से बंधा पा कर थानेदार का दारू और लड़की का नशा काफूर हो गया, ‘‘अरे लड़कियो, यह क्या मजाक है. मुझे छोड़ो. प्यार का वक्त निकला जा रहा है,’’ सिर्फ अंडरवियर पहने थानेदार बोला.

सारी लड़कियां खिलखिला पड़ीं. एक लड़की ने कहा, ‘‘थानेदारजी, आप अकेले इतनी लड़कियों से कैसे प्यार करेंगे? आप तो बस इस पेड़ से बंधे इसे ही प्यार कीजिए. हम तो चले.’’

‘‘मुझे इस जंगल में छोड़ कर तुम सब जाओगी, तो पुलिस तुम लोगों को जिंदा नहीं छोड़ेगी.’’

‘‘हमें कुछ नहीं होगा…’’ पायल बोली, ‘‘बल्कि तुम्हारा पूरा पुलिस महकमा बदनाम हो जाएगा कि तुम ने 8-10 लड़कियों को ट्रेनिंग देने के नाम पर उन के साथ गलत हरकत की. इस बात को साबित करने के लिए विशाल के कैमरे में तुम्हारे और हम सभी लड़कियों के फोटो मौजूद हैं.’’

थानेदार ने हड़बड़ा कर नजरें घुमाईं.

एक लड़की मुसकराते हुए थानेदार के हर एंगल से खटाखट फोटो खींचे जा रही थी.

थानेदार अपना ही सिर खुद पेड़ पर मारने लगा, ‘‘अरे बाप रे, अब तो मेरी नौकरी गई…’’ फिर वह गरजा, ‘‘ऐ छोकरी, मेरे फोटो खींचना बंद कर.’’

पायल बोली, ‘‘थानेदार, तुम ने मुझ पर बुरी नजर डाली थी न, अब सब लेनदेन बराबर हो गया. मैं ने पापा को दारू बेचने से मना कर दिया और उन्होंने बेचनी भी बंद कर दी.

ये भी पढ़ें- कुदरत का कहर

‘‘मगर फिर भी तुम ने उन को या दूसरे ठेले, गुमटी और रेहड़ी वालों को परेशान किया या उन की बीवीबेटी या मांबहन पर बुरी नजर डाली, तो तुम्हारी हवा में लहराती वरदी वाली और ये सब तसवीरें हर अखबार में छप जाएंगी.’’

थानेदार की तो हालत खराब हो गई कि जिस पायल के चक्कर में वह पड़ा था, उस ने तो उसे घनचक्कर बना दिया.

थानेदार बोला, ‘‘मेरी मां, ऐसा गजब मत करना. मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा. मेरी इज्जत बख्श दे. उलटे, मैं तुम्हें हर हफ्ते कमीशन दिया करूंगा, पर मेरा फोटो अखबार में मत छपवाना…’’

थानेदार को यों गिड़गिड़ाते हुए देख पायल के साथ आई सारी लड़कियां हंस पड़ीं और वहां से चली गईं.

सुल्तानपुर में पुलिस कस्टडी में मौत: क्लीन चिट देने के बाद जांच की बात

पुलिस कस्टडी में डेथ के मामले में कारोबारी सत्य प्रकाश शुक्ला की मौत के मामले में सुल्तानपुर की एसपी डौक्टर ख्याति गर्ग ने कहा कि सत्य प्रकाश शुक्ला के परिजनों की मांग पर मुकदमा कायम किया गया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सत्य प्रकाश शुक्ला के बाहरी शरीर पर बाहरी चोट के निशान नहीं मिले. शरीर में जहर की संभावना को देखते हुए जांच के लिये विसरा सुरक्षित कर जांच के लिये भेज दिया गया है. घटना से उत्तर प्रदेश सरकार की किरकिरी होने लगी है. ऐसे में पुलिस अलग-अलग तरह के काम कर रही है.

सत्य प्रकाश शुक्ला को पुलिस 26 लाख की लूट के मामले में पूछताछ के लिये पीपरपुर थाने लाई थी. उसके साथ उसके दो बेटे भी थे. थाने में ही पूछताछ के बाद सत्य प्रकाश की तबियत खराब हो गई. जहां से उनको अस्पताल ले जाया गया. पीएससी डाक्टर की रिपोर्ट के अनुसार सत्यप्रकाश ने कोई जहरीली चीज खाई थी. सत्य प्रकाश शुक्ला के दोनो बेटों ने पुलिस द्वारा थर्ड डिग्री दिये जाने का आरोप लगाया.

ये भी पढ़ें- हैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 1

पुलिस हिरासत मौत की घटना से पूरे प्रदेश में हलचल मच गई. समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा ‘इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिये’. पुलिस कस्टडी में हत्या की घटना में बचाव में उतरी सुल्तानपुर की एसपी डाक्टर ख्याति गर्ग ने अपने वीडियो बयान में कहा कि ‘सत्य प्रकाश के शरीर पर कोई बाहरी चोट नही है.‘ इस बयान का मतलब यह था कि पुलिस ने थर्ड डिग्री नहीं दी है. ऐसे में पुलिस कस्टडी की बात गलत है.

इसके बाद भी लोगों को बात पर भरोसा नहीं हुआ तो एसपी सुल्तानपुर के ही आदेश पर ही अमेठी की एसओजी टीम और पीपरपुर पुलिस के खिलाफ हत्या व लूट की धाराओं में मुकदमा कायम किया गया. सवाल उठता है कि जब सत्य प्रकाश शुक्ला के शरीर पर बाहरी चोट के निशान ही नहीं मिले तो पुलिस दोषी कैसे होगी? जिस पुलिस को एसपी ने पहले ही क्लीन चिट दे दी उसके खिलाफ जांच का क्या मकसद है? एसपी के बयान से साफ है कि पुलिस ने यह मुकदमा केवल जनता के गुस्से और राजनीति नुकसान को रोकने के लिये कायम किया है

ये भी पढ़ें- ‘सोशल मीडिया’ हो गया ‘एंटी सोशल’

1.33 करोड़ खर्च कर जले 6 लाख दीये

एक पुरानी कहावत है ‘9 की लकड़ी 90 खर्च‘ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर यह कहावत पूरी तरह से फिट बैठती है. अयोध्या में ‘राम की पैडी’ पर दीपोत्सव मनाने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने 5 लाख 50 हजार से अधिक के मिट्टी के दीये जलाने का लक्ष्य रखा था. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये सरकार ने ‘दीपोत्सव’ के बजट को बढाकर 1.33 करोड़ का कर दिया था. ऐसे में सरकार ही नहीं दूसरे तमाम संस्थान भी दीपोत्सव को सफल बनाने में कमर कस कर खड़े हो गये. जिसके फलस्वरूप 6 लाख से अधिक के दीये रोशन हो गये.

पिछले साल दीपोत्सव के बाद अगली सुबह दीयें पूरी अयोध्या में बिखरे पड़े थे. इस बार सरकार और अयोध्या नगर निगम ने कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही कार्यक्रम स्थल से दीयों को समेटना शुरू कर दिया. इन दीयों को आधी रात सरयू नदी मे प्रवाहित कर दिया गया.

ये भी पढ़ें- हिन्दूराज में हिन्दूवादी नेता का कत्ल:  कमलेश तिवारी हत्याकांड

‘दीपोत्सव’ को सफल बनाने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार के बड़े अफसर कई दिनों से तैयारी कर रहे थे. 3 दिन के दीपोत्सव के समापन वाले दिन दीये जगमगाये गये थे. दीवाली के दिन शाम को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्य अतिथि के रूप मे फिजी गणराज्य की डिप्टी स्पीकर वीना भटनागर के साथ उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा और केशव मौर्य भी मौजूद थे.

दीपोत्सव को ऐतिहासिक बनाने के लिये गिनीज बुक और वर्ल्ड रिकार्ड के लोगों ने उसे सबसे अधिक दीये जलाने का रिकार्ड दर्ज किया. राम और सीता को हेलीकाप्टर से सरयू के तट पर उतारा गया और तब मुख्यमंत्री ने उनकी आरती उतारी. पिछली बार सीता बनी मौडल के फोटो वायरल हो गये थे इस बार सीता बनी मौडल को लोगों से दूर रखा गया.

उत्तर प्रदेश के लिये राम मंदिर की राजनीति महत्वपूर्ण है. इसके लिये राम के नाम पर भव्य आयोजन जनता को लुभाने का काम करते है. भव्य आयोजन में कोई कमी ना रह जाये इस लिये बजट को बढ़ा कर 1.33 करोड़ कर दिया गया. बजट के बढ़ने से सरकारी विभागों और गैर सरकारी संस्थाओं की रूचि इसमें बढ़ गई. जिस प्रदेश में जनता रोजगार, नौकरी के लिये दरदर भटक रही हो वहां एक दीये जलाने के लिये 22 सौ रूपये खर्च कर रही है.

ये भी पढ़ें- ‘सोशल मीडिया’ हो गया ‘एंटी सोशल’

सिंगल यूज प्लास्टिक को बंद करने के बाद सरकार ने कुल्हड़ और दीयें के प्रचार पर इस बहाने जोर भी दिया है. कुल्हड़ और मिट्टी के दीयें का प्रचार करते समय अपने देश की मिट्टी की बिगड़ती सेहत को ध्यान देने की जरूरत है. अगर पूरा देश मिट्टी के कुल्हड़ और दीयें का प्रयोग करने लगेगा तो इनको तैयार करने के लिये जितनी मिट्टी की जरूरत पड़ेगी वह नहीं है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें