रेलवे भरती बोर्ड के अब तक के सब से बड़े भरती अभियान के तहत सी और डी ग्रेड की तकरीबन एक लाख नौकरियों के लिए आए 2 करोड़ नौजवानों के एप्लीकेशन फौर्म देश में बढ़ रही बेरोजगारी की तसवीर पेश करने के लिए काफी हैं.
इन आंकड़ों की भयावह सचाई यह है कि हाईस्कूल हायर सैकंडरी योग्यता के आधार पर मिलने वाली इन नौकरियों के लिए मास्टर डिगरी के साथसाथ पीएचडी डिगरीधारी बेरोजगारों ने भी आवेदन किया था.
राजग सरकार ने नौजवानों को हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का चुनावी वादा जरूर किया था, पर इस वादे को निभाने में वह बुरी तरह नाकाम रही है.
सरकार के तकरीबन 5 साल के कार्यकाल में रोजगार के मोरचे पर लड़खड़ाहट साफ दिख रही है.
सरकार बेरोजगारी की समस्या का समाधान केवल जुमलेबाजी से कर के ओस की बूंदों से प्यास बुझाने की नामुमकिन कोशिश कर रही है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो आज केंद्र और राज्य सरकारों के तकरीबन 29 लाख पद खाली हैं.
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लाखों बेरोजगारों को रोजगार देने का सपना दिखाने वाली केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पैसा बचाने के लिए इन पदों पर भरती नहीं कर रही है. ऐसे में हाल के दिनों में संसद में पास हुआ 10 फीसदी सवर्ण आरक्षण का कानून बेरोजगारों के साथ कैसे इंसाफ कर पाएगा?
सरकार के खजाने में नौकरियों के लिए पैसा नहीं है कि सरकार में बिठा कर उन्हें फालतू की नौकरी दे दे और उद्योगधंधे उस तरह पनप नहीं रहे हैं कि सारे बेरोजगारों को खपा लें.
आज बेरोजगारों की समस्या केवल सरकारी नौकरियों के कम होने की वजह से नहीं है, बल्कि प्राइवेट सैक्टर में कम होती नौकरियों की वजह से भी विकराल होती जा रही है.
प्राइवेट सैक्टर में रोजगार के मौके कम होने की सब से बड़ी वजह प्रोसैस आटोमेशन है. आज प्राइवेट कंपनियां भी अपने खर्चों को कम करने पर ज्यादा जोर दे रही हैं. नतीजतन, रोबोटिक प्रोसैस आटोमेशन के जरीए मानव श्रम का योगदान कम होता जा रहा है.
रोबोटिक प्रोसैस आटोमेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जो नित्य क्रियाओं को भी बिना इनसानी दखलअंदाजी के करने में सक्षम है, तो कम लोग ज्यादा काम कर पा रहे हैं इसलिए प्राइवेट सैक्टर में खासकर इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी में बड़े लैवल पर नौकरियों में छंटनी हो रही है.
नोटबंदीजीएसटी की मार
दरअसल, पिछले कुछ सालों के दौरान राजग सरकार की 2 चीजों ने व्यापारियों द्वारा धंधों और उद्योगों में पैसा लगाने पर रुकावट पैदा की है.
सरकार का हमारी जिंदगी में बढ़ता दखल इस का आम लोगों के साथ व्यापारी की जोखिम लेने की ताकत पर असर डालता है. आधार लिंकिंग की जरूरत, नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से खरीदार और बाजार के सैंटीमैंट खराब हुए हैं. इस दौरान सरकार का खजाना खाली होने की वजह से खर्च पर आमदनी काफी कम हो गई है.
सरकार का जनहित के कामों में खर्च बाजार को एक सीमा तक रफ्तार देता है. इकोनौमी को निजी निवेश से रफ्तार मिलती है. पिछले कुछ सालों के दौरान निजी निवेश में इजाफा देखने को नहीं मिल रहा है.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद देश में नौकरियों में तो गिरावट आई ही है, साथ ही लघु और मझोले उद्योगों के मुनाफे में भी गिरावट आई है. यह बात अखिल भारतीय उत्पादक संघ के एक सर्वे में सामने आई है.
इस संघ ने देशभर में व्यापारियों और लघु व मझोले उद्यमों की 34,700 इकाइयों के सैंपलों की जांच की है. पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, हैदराबाद, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में किए गए इस सर्वे में इस बात का खुलासा किया गया है कि ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’, ‘नोटबंदी’ और ‘जीएसटी’ जैसे कदमों, लघु और मझोले उद्योगों के नए वर्गीकरण और ओला, उबर, फ्लिपकार्ट व अमेजन जैसी विदेशी कंपनियों के व्यवसाय के बावजूद बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ रही है.
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एसोचैम यानी इंडस्ट्री ऐंड कौमर्स एसोसिएशन भी मानता है कि बी श्रेणी के बिजनैस स्कूलों को अपने छात्रों को रोजगार दिलाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
संगठन के मुताबिक, महंगी पढ़ाई करने के बावजूद भी महज 20 फीसदी छात्रों को ही रोजगार मिल पा रहा है.
बेरोजगारी के ताजा आंकड़ों को देखते हुए एसोचैम ने कहा कि नवंबर, 2016 में नोटबंदी के ऐलान, जीएसटी लागू होने के बाद कमजोर कारोबारी सोच और नई परियोजनाओं में गिरावट के चलते इन बिजनैस स्कूलों के छात्रों के लिए रोजगार के मौके कम हो रहे हैं.
एसोचैम के मुताबिक, बिजनैस स्कूलों और इंजीनियरिंग कालेजों के छात्रों को मिलने वाली तनख्वाह पेशकश में भी पिछले साल की तुलना में 40-45 फीसदी की कमी आई है.
आल इंडिया काउंसिल फौर टैक्निकल ऐजूकेशन के आंकड़ों के मुताबिक, 2016-17 के दौरान देश में 50 फीसदी से ज्यादा एमबीए ग्रेजुएटों को बाजार में नौकरी नहीं मिल सकी.
गौरतलब है कि देश में तकरीबन 5,000 एमबीए इंस्टीट्यूटों से 2016-17 के दौरान तकरीबन 2 लाख ग्रेजुएट निकले लेकिन इन में से ज्यादा के लिए जौब मार्केट में नौकरी मौजूद नहीं थी.
यही हाल बीते साल देश के इंजीनियरिंग कालेजों का रहा जिस के असर से इस साल इंजीनियरिंग कालेजों में दाखिले का दौर खत्म होने के बाद भी आधी से ज्यादा सीटें खाली रह गई हैं.
भाजपा के दिग्गज नेता और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा के मुताबिक, नोटबंदी फेल होने व गलत तरीके से जीएसटी लागू करने से आज कारोबारियों के बीच खौफ का माहौल बन गया है.
लाखों लोग इस वक्त बेरोजगार हो गए हैं. औद्योगिक उत्पादन का बुरा हाल है, कृषि क्षेत्र परेशानी में है, बड़ी तादाद में रोजगार देने वाला मैन्यूफैक्चरिंग सैक्टर भी संकट में है.
सरकार ने यह काम लगता है पुरोहितों से पूछ कर यज्ञों की तरह करे हैं कि इन से कल्याण होगा, पर धनधान्य केवल साधुओं यानी सरकारी बाबुओं को मिला.
विदेशों में कम नौकरियां
विदेशों में भी नौकरियों के हाल अच्छे नहीं हैं क्योंकि हर देश आजकल वीजा संबंधी नियमों को मुश्किल बना कर नौजवानों की कामयाबी की राह में रोड़ा अटका रहे हैं.
दक्षिण अफ्रीका की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम कर रहे मध्य प्रदेश के जितेंद्र दीक्षित बताते हैं कि टीसीएस, इंफोसिस, टैक महिंद्रा, विप्रो जैसी नामचीन भारतीय आईटी कंपनियों का तकरीबन 60 फीसदी राजस्व अमेरिका से आता है.
अमेरिकी सरकार द्वारा गैरप्रवासियों को 6 साल तक काम करने के लिए एच 1 बी वीजा जारी किया जाता है. अमेरिका में काम कर रहे कुल एच 1 बी वीजा धारकों में से 70 फीसदी भारतीय हैं.
अप्रैल, 2019 से अमेरिका की ट्रंप सरकार वीजा नियमों में बदलाव कर केवल अमेरिका और चीन जैसे देशों से उच्च शिक्षा वाले नौजवानों को ही यह वीजा जारी करने का नियम लागू करना चाहती है.
इस बदलाव से भारतीय इंजीनियर और कंपनियां तो प्रभावित होंगी ही, इस के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी. ऐसे में भारतीय नौजवानों को विदेशों में मिलने वाली नौकरियों में छंटनी होना तय है.
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वर्तमान हालत को देख कर यह नहीं लगता है कि केवल आरक्षण की बैसाखी का सहारे दे कर बेरोजगारी पर कंट्रोल पाया जा सकता है. केंद्र और राज्य सरकारों को वोट बैंक की राजनीति के बजाय अच्छी रोजगार नीतियां पैदा करने के मौके मुहैया कराने होंगे.