कुदरत के साथ खेलना हंसीखेल नहीं है, यह बात किसी नेता को समझ में आई हो या न, बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के जेहन में जरूर घर कर गई होगी. जाते मानसून ने इस बार देश के कई राज्यों का खेल बिगाड़ दिया था. बिहार उन में से एक था. लगातार बरसते पानी ने राजधानी पटना को भी लील लिया था.

दरअसल, ऊंचे पहाड़ों पर बसे खूबसूरत नेपाल में बारिश के मौसम में वहां की नदियां जब उफनती हुई तराई में भारत की तरफ बढ़ती हैं तो अपने साथ विनाश भी लाती हैं. लेकिन यह इस मुसीबत का एक ही पहलू है. जानमाल को उजाड़ती, घरों को लीलती, संचार के साधनों को ठप करती ये नदियां उतनी भयावह नहीं होतीं जितनी इंसान की लापरवाही उन्हें बना देती है.

नेपाल के सरकारी महकमे की मानें तो भारत की तरफ से बनाए गए तटबंधों के चलते बारिश से नेपाल में ज्यादा नुकसान होता है. नेपाल की नदियां पूरे वेग से भारत की तरफ बहती हैं और तटबंधों से पानी रुकने से नेपाल के गांवों में पानी भर जाता है.

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इतना ही नहीं, नेपाल के एक सरकारी महकमे के मुताबिक, इस साल जुलाई महीने की बाढ़ में नेपाल की गुजारिश के बावजूद भारत ने अपने तटबंधों को काफी समय तक बंद रखा था. इस से नेपाल के गौर इलाके के साथसाथ दूसरी सरहदी बस्तियों में तालाब जैसे हालात हो गए थे. इस से वहां भारी तबाही हुई थी. तब तकरीबन 20 लोग मारे गए थे.

इस मुद्दे पर नेपाल के विदेश मंत्री ने अपने लोगों के इस तरह मारे जाने पर दुख और चिंता जाहिर की थी. इस के उलट भारत के सरकारी अफसरों ने कहा कि दोनों देशों की आपसी रजामंदी के बाद ही तटबंधों को कवर कर के रखा गया था. इस का नेपाल को भी फायदा होता है. बारिश से दोनों देशों के किसानों को कुदरती तौर पर उपजाऊ मिट्टी मिलती है. यहां तक कि दोनों देशों ने गौर इलाके के पास बने तटबंध के बारे में लिखित तौर पर अपनी मंजूरी दी हुई है.

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