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बेस्ट फ्रेंड की शादी में ब्राइड्समेट बनीं टीवी अभिनेत्री जेनिफर विंगेट

हाल ही में टीवी अभिनेत्री जेनिफर विंगेट अपनी बेस्ट फ्रेंड की शादी में परफेक्ट ब्राइड्समेट बनकर पहुंची. जेनिफर विंगेट ने जमकर मस्ती की और खुब धमाल मचाया. जी हां, इस शादी के फोटोज और विडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहे हैं.

दोस्तों के साथ मिलकर की मस्ती

जिसमें जेनिफर विंगेट की फोटोज जमकर सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. ब्राइड्समेट बनी जेनिफर अपनी दोस्त की शादी में बेहद खुश और मस्ती करती नजर आईं.

बेस्ट फ्रेंड के लिए लिखा प्यारा सा मैसेज

जेनिफर विंगेट ने इस शादी की फोटोज और वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया है. ये फोटोज और वीडियो शेयर करते हुए अपने फ्रेंड को शादी की ढेर सारी शुभकामनाएं दी है.

 

जेनिफर की खूबसूरती के फैंस हुए कायल

जेनिफर के फैंस उनके खूबसूरती कायल हुए. कमेंट बौक्स में कई फैंस ने उनकी खूबसूरती की तारीफ की.. जेनिफर का ये लुक उनके फैंस के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है. जेनिफर विंगेट ब्राइड्समेड लुक में कहर ढा रही है.

जेनिफर विंगेट सी ग्रीन कलर का गाउन पहनी नजर आईं. इसमें वो बेहद प्यारी लग रही थी. दोस्तों के साथ खुब मस्ती की.

डा. फिरोज को क्यों है संस्कृत से इतना प्यार

वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्व विद्यालय यानी बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म संकाय में डा. फिरोज खान की नियुक्ति को ले कर धर्मांध लोगों ने जितना उपद्रव मचाया, उस से पूरा देश शर्मसार है.

विरोधी उपद्रव और उन्माद फैलाने में लगे हैं और इन का एक ही विरोध है कि कोई मुसलमान संस्कृत कैसे और क्यों पढा सकता है?

अनुचित मांग

यह मांग अनुचित इसलिए भी है कि शिक्षा और भाषा पर किसी जाति व किसी धर्म का एकाधिकार नहीं है और स्वयं पंडित मदन मोहन मालवीय, जिन्होंने इस विश्वविद्यालय की नींव रखी थी, को बनवाने में एक मुसलमान शासक ने चंदा दिया था.

विश्वविद्यालय के सिंहद्वार पर अभी भी मूर्त रूप से खङे पंडित मदन मोहन मालवीय बेहद शर्मसार होंगे कि उन्होंने इस विश्वविद्यालय की नींव क्या इसीलिए रखी कि यहां धर्म, जाति को ले कर फसाद किए जाएंगे?

वैसे, भारत के टौप यूनिवर्सिटी में शुमार बीएचयू में आजकल कुछ अच्छा नहीं चल रहा और हर दूसरेतीसरे दिन यहां कोई न कोई फसाद विश्वविद्यालय के गौरव पर बट्टा लगाने के लिए काफी है.

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काशी की तहजीब और बिस्मिल्ला खां

गंगाजमुना तहजीब के लिए मशहूर काशी को आज भले ही वाराणसी कहते हैं पर यह वही जगह है जहां एक मंदिर में बैठ कर शहनाई बजाने वाला बालक बाद में बिस्मिल्ला खां बना और जिन्हें भारत रत्न दे कर सम्मानित किया गया.

कहते हैं, बिस्मिल्ला खां को काशी से गहरा लगाव था और जीतेजी वे यहां से कहीं और गए नहीं. बिस्मिल्ला खां ने एक बार कहा था,”यों तो पूरा संसार ही मेरा घर है पर काशी से अच्छी जगह दुनिया में कहीं नहीं और मेरी दिली ख्वाहिश है कि काशी में ही मैं अंतिम समय बिताऊं.”

मिसाइलमैन अब्दुल कलाम आजाद जब देश के राष्ट्रपति बने थे तो पूरे  देशदुनिया के साथ उस के गवाह बिस्मिल्ला खां भी बने थे, तब इन की शहनाई की धुन सुन कर लोग वाहवाह कर उठे थे.

डा. फिरोज के परिवार को है काशी से गहरा लगाव

काशी की गलियों में पलेबङे डा. फिरोज खान का पूरा परिवार ही यहां की संस्कृति में रचेबसे हैं. डा. फिरोज के पिता रमजान खान खुद एक गौशाला चलाते हैं और जिस गाय को ले कर धर्मांध लोग राजनीति करते हैं, वे नियमित गायों की सेवा करते हैं.

मीडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया,”हमारा पूरा परिवार काशी में हंसीखुशी रहता आया है. लोग मुझे प्यार से मुन्ना मास्टर कहते हैं. पर जो कुछ मेरे बेटे फिरोज के साथ बीएचयू में हुआ उस से पहली बार हमें एहसास हुआ कि हम मुसलमान हैं.”

कक्षा 2 से ही संस्कृत पढना जारी रखने वाले डा. फिरोज ने संस्कृत में शास्त्री और आचार्य के साथसाथ संस्कृत से एम.ए. और पीएचडी की है.

आधुनिक भारत और राही मासूम रज़ा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के जिन छात्रों को डा. फिरोज खान का संस्कृत पढाना रास नहीं आ रहा क्या उन्हें यह जानकारी नहीं कि काशी के बगल में ही गाजीपुर के रहने वाले राही मासूम रज़ा ने वेदव्यास के बाद वह महाभारत लिखी, जो टैलीविजन के परदे से होते हुए हमारे दिलों में उतर गई थी?

राही मासूम रज़ा ने एक बार कहा था,”मेरा नाम मुसलमानों जैसा है, लेकिन मेरी नसों में गंगा का पानी बहता है.”

उन्होंने आताताइयों को भी ललकारा था जो धर्म और जिहाद के नाम पर समाज में नफरत का माहौल बोते हैं.

नजीर अकबराबादी, बुल्लेशाह, आलम शेख, मुसाहिब लखनवी जैसे भी सैकङों नाम हैं जिन्होंने अपनी भाषा और तहजीब से समाज को नया पैगाम दिया था.

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संविधान से बड़ा कोई नहीं

पर मजहब के मारों को यह जरूर जानना चाहिए कि भारत की आत्मा भारत के संविधान में बसती है और किसी को मजहब के नाम पर भाषायी  दुर्भावना का शिकार बनाना कतई उचित नहीं.

सोचने वाली बात यह भी है कि अगर यह नया भारत है तो इसे सिरे से नकारने की जरूरत है. भारत का संविधान सब को समान अधिकार देता है और संविधान से बङा कोई नहीं.

राष्ट्रवाद पर भारी बेरोजगारी

महाराष्ट्र व हरियाणा सहित 51 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे बताते हैं कि आम लोग राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, कश्मीर और मंदिर की राजनीति की हकीकत अब समझने लगे हैं. गर्त में जाती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी से त्रस्त वोटरों ने स्पष्टतौर पर भाजपा से असहमत होते दम तोड़ते विपक्ष को ताकत देना शुरू कर दिया है.

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके के बीड़ जिले की परली विधानसभा से अपने चुनावप्रचार अभियान को शुरू करने वाले भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही भाषण में अपनी मंशा जाहिर कर दी थी कि वे महाराष्ट्र और हरियाणा की सत्ता राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कायम रखना चाहते थे. अपने भाषण को यथासंभव जोशीला और जज्बाती बनाने में कोई कसर उन्होंने नहीं छोड़ी थी.

अमित शाह ने पहले भाषण में कई बार परली के मतदाताओं से कहा था कि भाजपा सरकार देशभक्त और राष्ट्रवादी है जिस ने जम्मूकश्मीर से धारा 370 को बेअसर करने की हिम्मत दिखाई. लेकिन जब नतीजे आए तो इस सीट से देवेंद्र फडणवीस सरकार की दिग्गज मंत्री और कभी के दिग्गज भाजपाई व केंद्रीय मंत्री रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे अपने चचेरे भाई एनसीपी के धनंजय मुंडे के हाथों हार गईं.

परली का मुकाबला बड़ा प्रतिष्ठापूर्ण था, जिस में पंकजा मुंडे की जीत में किसी को शक नहीं था. अमित शाह के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी परली गए और कमोबेश वही बातें दोहराईं जो अमित शाह कह चुके थे. फर्क इतना भर रहा कि नरेंद्र मोदी ने अपनी आदत के मुताबिक और भी लुभावने वादे वोटर से किए.

परली भयंकर सूखे की चपेट में है और वहां के लोग भूखेप्यासे रहते जैसेतैसे जिंदगी बसर कर रहे हैं. इन लोगों ने मोदीशाह के राष्ट्रवाद को नकारते जो चौंकाने वाला नतीजा दिया उस से यह बात साबित होती है कि अब आप भूखे, प्यासे, बेरोजगार और रोजरोज अभाव के गर्त में जा रहे लोगों से देशभक्ति के नाम पर वोट नहीं  झटक सकते.

न केवल परली या महाराष्ट्र में, बल्कि हरियाणा सहित देशभर के 51 विधानसभा उपचुनावों में वोटरों ने बहुत सख्ती से कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के मुद्दे की हवा निकाल कर रख दी है. यह ठीक है कि भाजपा इन दोनों ही राज्यों में सब से बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन उस की जमीन लोकसभा और पिछले विधानसभा चुनावों के मुकाबले बड़े पैमाने पर दरकी है. जिस सेभगवा खेमे में चिंता का माहौल  झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनावों को ले कर पसर गया है कि अगर वहां भी ऐसा ही हुआ तो हो ऐसा भी सकता है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में जैसेतैसे लाज बच गई लेकिन इन दोनों राज्यों में भी बचेगी, इस की कोई गारंटी नहीं. अपने हर भाषण और रैली में मोदीशाह ने जगहजगह उत्साहपूर्वक परली की तरह ‘राग कश्मीर’ एक दुर्लभ उपलब्धि की तरह अलापा था.

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर हर कोई आश्वस्त था कि दोनों राज्यों में भाजपा पहले से ज्यादा सीटें और वोट ले जा कर कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के मुद्दे को शानदार तरीके से भुना लेगी, लेकिन हुआ उलटा. दोनों ही राज्यों में उस के वोट और सीटें दोनों घटे. किसी भी राज्य में वह अकेले दम पर सरकार बनाने की हालत में नहीं रही. महाराष्ट्र में सहयोगी दल शिवसेना आंखें दिखा रही थी.

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हकीकत बयां करते आंकड़े

धारा 370 का पासा कैसे गिरती जीडीपी और अर्थव्यवस्था के चलते फुस्स हो कर रह गया, इसे आंकड़ों की जबानी समझें तो भाजपा हर जगह हर तरह से नुकसान में रही है. मुद्दत बाद लोगों ने अपनी बुद्धि, विवेक का इस्तेमाल करते वोट किया.

महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले भाजपा की 17 सीटें घटीं और वोट प्रतिशत साढ़े 5 फीसदी कम हुआ. लोकसभा चुनाव में वह 140 विधानसभा सीटों पर बढ़त पर थी लेकिन इस बार 105 सीटों पर सिमट कर रह गई. 2014 के विधानसभा चुनाव में उसे 31.2 फीसदी और लोकसभा चुनाव में 27.8 फीसदी वोट मिले थे जो इस बार 25.7 फीसदी रह गए.

कुछ ऐसी ही दुर्गति उस के सहयोगी दल शिवेसना की भी हुई जिसे 2014 में 19.8 और लोकसभा चुनाव में 23.7 फीसदी वोट मिले थे. इस बार उसे महज 16.5 फीसदी ही वोट मिले. 56 सीटें ले गई शिवसेना को 2014 में 63 सीटें मिली थीं जबकि लोकसभा चुनाव में वह 110 विधानसभा सीटों पर बढ़त पर थी.

यानी, लोकसभा चुनाव में भाजपा व शिवसेना जहां 250 विधानसभा सीटों पर आगे थीं, इस चुनाव में वे 161 सीटों पर रह गईं जो 288 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में स्पष्ट बहुमत से केवल

16 ही ज्यादा है.महाराष्ट्र में भाजपा ने जम कर विपक्ष का मजाक उड़ाया था कि वह है ही कहां. लेकिन जब नतीजे आए तो कांग्रेस 2 सीटों के फायदे के साथ 44 पर और उस की सहयोगी एनसीपी 13 सीटें ज्यादा ले कर 54 सीटों पर काबिज हो गई. कांग्रेस को 2014 में 13.5 फीसदी और एनसीपी को 15.6 फीसदी वोट मिले थे जो बढ़ कर क्रमश: 15.8 और 16.7 फीसदी हो गए. यह स्थिति तब है जब कांग्रेस की तरफ से सोनिया और राहुल गांधी ने न के बराबर चुनावप्रचार किया.

तमाम अनुमान और सरकारपरस्त टीवी चैनलों के एक्जिट पोल औंधेमुंह लुढ़के तो इस की वजह राष्ट्रवाद और कश्मीर का हौवा था, जिस के नीचे यह हकीकत दब कर रह गई कि महाराष्ट्र में किसान बदहाल हैं और हरियाणा की तरह वहां के नौजवान भी रोजगार को तरस रहे हैं, जिन्हें इस बात से खासा सरोकार इस सवाल के साथ रहा कि धारा 370 हटने से उन्हें क्या मिला.

हरियाणा के आंकड़े तो एकदम उलट गए. 2014 में 47 सीटें ले जाने वाली भाजपा 40 पर आ कर अटक गई जिस से लोग हैरान रह गए कि लोकसभा की सभी 10 सीटें उस ने 59.7 प्रतिशत रिकौर्ड वोटों के साथ जीती थीं. 2014 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले जरूर भाजपा को 3.3 फीसदी वोटों का फायदा हुआ लेकिन वह, दरअसल, इस चुनाव में इंडियन नैशनल लोकदल के खाते का मामूली हिस्सा था जिसे 24 फीसदी के लगभग वोट मिले थे. तब इस पार्टी को 19 सीटें मिली थीं.

लोकसभा चुनाव की बढ़त के लिहाज से देखें तो 31 सीटें जीतने वाली कांग्रेस केवल 8 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी और भाजपा 80 सीटों पर आगे थी जो इस बार आधी रह गईं. हरियाणा से अगर इनेलो का सफाया हुआ तो इस का फायदा नवगठित जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी को मिला. युवा दुष्यंत चौटाला की अगुआई वाली जेजेपी को 10 सीटें 15 फीसदी वोटों के साथ मिलीं और वे किंगमेकर के खिताब से नवाज दिए गए. राजनीति दुष्यंत को विरासत में मिली है. उन के दादा ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं और परदादा देवीलाल देश के उपप्रधानमंत्री तक रहे हैं.

आंकड़ों को अगर शब्द दें तो सम झ आता है कि स्थानीय मुद्दों ने उतना फर्क नहीं डाला जितना कि भाजपा के बड़बोलेपन और इस गलतफहमी ने डाला कि 370 का ट्रंपकार्ड हरियाणा में भी चलेगा और इतना चलेगा कि वह बबीता फोगट और योगेश्वर दत्त जैसे खिलाडि़यों को भी सिर्फ इस आधार पर जिता ले जाएगी कि कमल के फूल पर मुहर लगाना वोटर की मजबूरी है.

कश्मीर पर भारी बेरोजगारी

5 साल बाद ही सही, लोगों को भाजपा का असली चेहरा सम झ आ रहा है कि वह सिर्फ बड़ीबड़ी बातें करती है और कुछ इस तरह करती है कि लोग अपनी समस्याएं भूल कर उस की समस्याओं को अपना सम झ उसे वोट दे आते हैं. 21 अक्तूबर के पहले तक देश की अर्थव्यवस्था में कितनी गिरावट दर्ज हो चुकी थी, यह आप लोगों से छिपा नहीं रह गया था.

इन चुनावों में भाजपा ने धारा 370 के मुद्दे और राष्ट्रवाद पर लोगों को बरगलाने की कोशिश की लेकिन यह चाल कामयाब नहीं हुई क्योंकि महाराष्ट्र और हरियाणा के वोटरों ने अपनी परेशानियों पर वोट किया. यह बात ठीक है कि जोड़तोड़ कर भाजपा ने हरियाणा में सरकार बना ली किंतु महाराष्ट्र में अपने ही सहयोगी दल शिवसेना से निबटने में उसे पसीने आ गए. लोगों का मूड भी उसे सम झ आ गया कि अब हिंदुत्व, कश्मीर व राममंदिर निर्माण का तिलिस्म टूट रहा है और किसान व आम लोग अपनी बदहाली व युवा बेरोजगारी को प्राथमिकता में रख रहे हैं.

दोनों राज्यों में भाजपा सब से बड़े दल के रूप में सामने आई तो इस की वजह विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस, का दौड़ में होना नहीं था. इस के बाद भी उसे बढ़त मिली तो बात आईने की तरह साफ है कि वह जनता ही है जो किसी भी पार्टी को मजबूत या कमजोर बनाती है. चुनावी रस्म निभा रही कांग्रेस को उस ने फिर से ताकत देना शुरू कर दिया है.

महाराष्ट्र में बुजुर्ग शरद पवार ने जो कमाल कर दिखाया उस की मिसाल हर कोई दे रहा है और लोग यह भी कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस पूरे दमखम से लड़ी होती तो इन राज्यों का हाल भी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरीखा होता जहां लोगों ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था. हरियाणा में अगर वह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को थोड़ा और पहले कमान सौंप देती तो उस की कुछ और सीटें बढ़ सकती थीं.

साबित यह भी हुआ है कि अब भाजपा बातों के बताशे फोड़ कर कहीं सत्ता हासिल नहीं कर सकती. इन नतीजों ने उस का प्रभाव दरकाया है तो इस की मुकम्मल वजहें भी हैं कि हर बार वह एक ही मुद्दे का लोगों पर भावनात्मक दबाव बना कर वोट नहीं हथिया सकती.

लोकतंत्र की खूबी होती है कि जनता, देर से ही सही, खुद से जुड़े मुद्दों पर वापस आती है और जो उस के पैमानों पर खरा नहीं उतरता उसे खारिज करने में देर नहीं लगाती. अब दिल्ली और  झारखंड के चुनाव में वह क्या करेगी, यह बेहद दिलचस्प बात हो चली है, खासतौर से दिल्ली में, जहां उस का मुकाबला आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल से है जो अपने जनहित के कामों और बेदाग छवि के चलते लोकप्रिय बने हुए हैं.

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झाबुआ का  झटका

भाजपा को करारा  झटका मध्य प्रदेश की  झाबुआ के प्रतिष्ठापूर्ण मुकाबले से लगा क्योंकि कांग्रेस यहां 230 में से 115 सीटों पर ही टिकी थी. आदिवासी बाहुल्य यह सीट उस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया ने रिकौर्ड 27 हजार वोटों से जीत कर सीटों की संख्या 116 कर दी तो मुख्यमंत्री कमलनाथ को यह कहने का मौका मिल गया कि जनता ने उन के कामकाज पर भरोसा जताया है.  झाबुआ में भाजपा की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डेरा डाले रहे थे, लेकिन उन की मेहनत बेकार गई क्योंकि वे जैसे भी हो सिर्फ जीत के लिए लड़ रहे थे, इसलिए वोटर ने उन्हें भाव नहीं दिया.

अगर कांग्रेस यह सीट हारती तो उस की दुश्वारियां बढ़तीं क्योंकि चुनावप्रचार के दौरान भाजपा यह तक कहने लगी थी कि अगर  झाबुआ जीते तो कांग्रेस को चलता कर देंगे और शिवराज सिंह चौहान दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे.

उपचुनाव में रहे ये हावी

न केवल महाराष्ट्र और हरियाणा में, बल्कि 17 राज्यों की 50 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में भी भाजपा ने खुद को पूरी तरह  झोंक दिया था. माना जा रहा था कि भाजपा सब से बड़ी पार्टी है, केंद्र और अधिकतर राज्यों में वह सत्ता में है. उस के पास साधन हैं, पैसा है. इसलिए वह अधिकांश सीटों पर जीतेगी. भाजपा 17 सीटें ही जीत पाई जबकि कांग्रेस ने 12 सीटें हथिया कर जानकारों को चौंका दिया. 21 सीटों को क्षेत्रीय दलों ने ले जा कर जता दिया कि गैरभाजपाई प्रभाव वाले क्षेत्रों में न धर्म की राजनीति चलेगी और न ही जाति के नाम पर फूट बरदाश्त की जाएगी.

भाजपा को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी सिर्फ उत्तर प्रदेश में मिली, जहां 11 में से 7 सीटें उस ने जीतीं. यहां उसे सत्ता में होने का फायदा भी मिला और सपा, बसपा, कांग्रेस में वोट बंटने का भी. लेकिन गुजरात में वह 6 में से 3 सीटें जीत पाई जो अमित शाह और नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है. यहां से कांग्रेस का 3 सीटें ले जाना चौंका देने वाली बात रही, क्योंकि जीडीपी और अर्थव्यवस्था यहां भी कश्मीर कार्ड पर भारी पड़े.

पंजाब की 4 में से 3 सीटें कांग्रेस ले गई जिस से साफ हुआ कि वहां कांग्रेस और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पकड़ बरकरार है. लेकिन असम में 4 में से 3 सीटें जीत कर भाजपा ने अपने इस नए किले में कांग्रेस को सेंधमारी नहीं करने दी. सब से दिलचस्प नतीजे बिहार से आए जहां 5 में से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली. उस के सहयोगी सत्तारूढ़ दल जेडीयू को भी महज एक सीट से तसल्ली करनी पड़ी. जेल की सजा काट रहे लालू यादव की राजद 2 सीटें ले गई तो असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को खाता खोलने का मौका मिल गया. यकीन नहीं होता कि यह वही राज्य है जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा और जदयू ने मिल कर कांग्रेस और राजद को वोटों और सीटों के लिए तरसा दिया था.

तमिलनाडु में दोनों सीटें एआईएडीएमके जीत ले गई और केरल में भी 5 में से 2-2 सीटें कांग्रेस व सीपीआई ने बांट लीं और एक सीट इंडियन मुसलिम लीग के खाते में गई. पुदुचेरी की एक सीट पर चुनाव हुआ था जहां कांग्रेस बाजी मार ले गई. ओडिशा और तेलंगाना की एकएक सीट क्रमश: बीजद और टीडीएस के खाते में गईं, लेकिन सिक्किम में असम की तरह भाजपा बढ़त पर रही जहां 3 में से 2 पर वह जीती. अरुणाचल प्रदेश की एक सीट निर्दलीय के खाते में गई.

भाजपा को सब से ज्यादा निराशा कांग्रेस शासित राज्यों मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुई जहां एकएक सीट पर चुनाव था. ये दोनों सीटें कांग्रेस ने जीतीं. राजस्थान की 2 में से एक सीट कांग्रेस के और एक सीट आरएलपी के खाते में गई.

 दो युवाओं का उदय, एक अस्त

हरियाणा में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला ने 10 सीटें ले जा कर भाजपा का खेल ज्यादा बिगाड़ा या फिर कांग्रेस का, यह कह पानमुश्किल है. लेकिन एक दिलचस्प बात यह वहां से उजागर हुई कि अब दलित और जाट वोटर साथ आने से परहेज नहीं कर रहे. हरियाणा में भी अगर कश्मीर, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद वगैरह नहीं चले तो यह वहां आर्य समाज के प्रभाव का नवीनीकरण ही कहा जाएगा जिस के हिंदुत्व के अपने अलग माने हैं जो भाजपा के हिंदुत्व सरीखे ब्राह्मण, पंडित, पूजापाठ और कर्मकांड आधारित नहीं है. हरियाणा में भी महाराष्ट्र की तरह मुसलमानों ने भाजपा की तरफ  झांका भी नहीं क्योंकि गौरक्षा की आड़ में मौबलिंचिंग की सब से ज्यादा वारदातें उसी राज्य में हुईं.

सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला ने भाजपा का पल्लू थामा. लेकिन यह गठबंधन ज्यादा चल पाएगा, यह कहना मुश्किल है क्योंकि जाट कभी भाजपा से खुश नहीं रहे और दोबारा मुख्यमंत्री बनाए गए मनोहर लाल खट्टर का जाट न होना, दुष्यंत चौटाला को भारी भी पड़ सकता है. वे युवा होने के नाते हरियाणा की राजनीति में चमके हैं. इस चमक को बरकरार रखने के लिए उन्होंने अगर भाजपा के हिंदुत्व से इत्तफाक रखा, तो बात कभी भी बिगड़ सकती है.

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने भी राजनीति में धमकाकेदार एंट्री की है जिन्होंने मुंबई की वर्ली सीट रिकौर्ड 67,427 वोटों से जीत कर शिवसेना को मुंबई में जश्न मनाने का मौका दे दिया, वरना मुंबई में शिवसेना की हालत खस्ता ही रही. उद्धव ठाकरे और भाजपा के संबंधों की असहजता किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही. नतीजे आते ही शिवसेना इस बात पर अड़ गई थी कि 50-50 के फार्मूले के तहत आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया जाए तो यह कमजोरी से उपजी आक्रामकता की कलह ही सम झ आती है.

लोकसभा चुनाव में जहां कई गुमनाम नेता मोदी लहर पर सवार हो कर लोकसभा पहुंच गए थे वहीं गुजरात के युवा, पिछड़े वर्ग के लोकप्रिय नेता अल्पेश ठाकोर, जो खुद को गुजरात का उपमुख्यमंत्री तक कहने लगे थे, की हार बताती है कि वहां के लोगों को भी बातों के बताशे रास नहीं आए. ये वही अल्पेश ठाकोर हैं जो हार्दिक पटेल के साथसाथ पिछड़े वर्ग के हाहाकारी नेता के रूप में उभरे थे और कांग्रेस में शामिल हो कर विधानसभा चुनाव जीते भी थे. इस बार वे अपनी राधनपुर सीट से ही कांग्रेसी उम्मीदवार रघु देसाई से हार गए.

भाजपा में जा कर अल्पेश दुर्गति का शिकार क्यों हुए, इस पर गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष अमित चावड़ा की यह प्रतिक्रिया उल्लेखनीय है कि लोग मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से परेशान हैं और ये नतीजे उसी गुस्से की देन हैं. अल्पेश ठाकोर के सहयोगी धवल सिंह  झाला भी अल्पेश के साथ भाजपा में गए थे और भाजपा ने उन्हें बायड सीट से टिकट दिया भी था लेकिन दलबदल के साथसाथ पिछड़ा वर्ग आरक्षण आंदोलनकारी इन युवा नेताओं का भगवा खेमे में जाना उन्हीं के क्षेत्रोंं और जाति के लोगों को पसंद नहीं आया.

महाराष्ट्र की सतारा लोकसभा सीट के उपचुनाव से और ज्यादा स्पष्ट तरीके से साबित हुआ जहां भाजपा उम्मीदवार और शिवाजी के वंशज उदयनराजे भोंसले एनसीपी के उम्मीदवार श्रीनिवास पाटिल के हाथों 87 हजारों वोटों से हारे.

उदयनराजे के पक्ष में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बड़ी चुनावी रैलियां भी की थीं और वहां  जम कर राष्ट्रवाद की गजल गाई थी जो वोटरों ने नहीं सुनी, तो इशारा साफ है कि अब न तो चाटुकार चलेंगे और न ही पद के लालच में भाजपा में शामिल हो रहे नेताओं को वोटर सिरआंखों पर बैठाएगा.

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 दलित वोट और मायावती की झल्लाहट

महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजों के अलावा उपचुनावों से यह बात और स्पष्ट हुई है कि दलित वोटर फिर से कांग्रेस की तरफ लौट रहा है जिसे ले कर बसपा प्रमुख मायावती अपनी  झल्लाहट छिपा नहीं पाईं. इन दोनों ही राज्यों में बसपा का खाता नहीं खुला. हरियाणा में 2014 तक बसपा खासे वोट और सीटें ले जा कर समीकरण गड़बड़ा देती थी और महाराष्ट्र के विदर्भ में भी वह दलित वोट ले जा कर भाजपा को फायदा जबकि कांग्रेस व एनसीपी को नुकसान पहुंचाती थी.

बौद्ध बाहुल्य इलाके विदर्भ के नागपुर में इस बार मायावती खूब गरजी और बरसी थीं. उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लेने तक की बात कही थी, लेकिन यहां का दलित वोटर इस बार कांग्रेस और एनसीपी के साथ गया जिस से बसपा के साथसाथ नुकसान भाजपा का भी हुआ. विदर्भ इलाके, जहां बौद्ध, दलित वोटों की खासी तादाद है, में कांग्रेसएनसीपी को रिकौर्ड 10 सीटों का फायदा हुआ. भाजपा की सब से बुरी गत इसी इलाके में हुई जहां उसे 2014 के मुकाबले 15 सीटें कम मिलीं.

मायावती दलित वोटों को यूपीए के नजदीक जाते देख हैरानपरेशान हैं. दलित मतदाता अब उन पर भरोसा नहीं कर रहा है. हरियाणा में दलित बाहुल्य सीटों पर कांग्रेस को 5 सीटों का फायदा हुआ है जबकि भाजपा ने 3 पर नुकसान उठाया है. हरियाणा की 90 में से 32 सीटों पर दलित आदिवासी वोटरों की तादाद 15 फीसदी से ज्यादा है. इन में से भाजपा महज 11 सीटें ही जीत पाई. इसी तरह महाराष्ट्र में 100 सीटों पर दलित आदिवासी वोटरों की तादाद 15 फीसदी से ज्यादा है जिन में से भाजपा को केवल 36 मिलीं, बाकी 64 कांग्रेसएनसीपी और दूसरे दल ले गए.

साफ दिख रहा है कि दलित आदिवासी वोटों के लिहाज से ये नतीजे भाजपा के लिए चिंताजनक हैं और मायावती के लिए भी क्योंकि इस वर्ग ने भाजपा के धारा 370, मंदिरनिर्माण और राष्ट्रवाद के साथ मायावती के दलितप्रेम को भी बेरहमी से ठुकरा दिया.

आईलाइनर लगाते समय रखें इन 5 बातों का ध्यान

आईलाइनर आंखों की खूबसूरती पर चारचांद लगा देता है. लेकिन इसे लगाने का भी एक सही तरीका होता है. जिन्हें वो तरीका पता है वे काफी अच्छे से आईलाइनर लगा लेती हैं, और जिन्हें नहीं पता होता वे अपनी ही आंखों की खूबसूरती को बिगाड़ लेती हैं. तो आइये जाने कुछ ऐसी ही 5 गलतियां जो हम आईलाइनर लगाते वक्त करते हैं.

  1. हम अक्सर आखों के निचले हिस्से में ज्यादा आईलाइनर लगा लेते हैं, इससे हमारी आंखें छोटी लगने लगती हैं. साथ ही वह आईलाइनर भी फैल जाता है जिससे आंखें खराब लगने लगती हैं. इससे बचने के लिए पेंसिल काजल का इस्तेमाल करें.

2. कई बार आईलाइन लगाते वक्त आईलाइनर खराब हो जाता है. इससे बचने के लिए अपनी चिन को ऊपर की तरफ करें और नीचे देखें इससे आप थोड़ा थोड़ा देख सकती हैं. अब आईलाइनर लगाएं इससे आपका लाइनर खराब भी नहीं होगा और आपकी आंखें भी खूबसूरत दिखेंगी.

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3. आज कल बाजार में कई रंग के लाइनर आने लगें हैं. जिसे अक्सर लड़कियां लगाती हैं, कभी कभी वे काफी खूबसूरत लगते हैं लेकिन हमेशा उन्हें ही लगाते रहना, अच्छा नहीं लगता है. इसलिए जितना हो सके ब्लैक या ब्राउन रंग के आईलाइनर का ही प्रयोग करें.

4. कई बार लड़कियों को पेंसिल, जेल और लिक्विड में फर्क नहीं पता होता. पेंसिल आईलाइनर तब लगाया जाता है जब आप जल्दी में हों और जेल लाइनर तब जब आपको थोड़ा ग्लैम लुक चाहिए क्योंकि यह वाटरप्रूफ होता है. और लिक्विड लाइनर लगाने के लिए आपके हाथ बिलकुल भी हिलने नहीं चाहियें इससे यह बिगड़ सकता है.

5.  लाइनर को खराब होने से बचने के लिए सबसे पहले पेंसिल लाइनर या लाइनर को छोटे ब्रश से लगाएं इसके बाद उसके आस पास उसी से मैचिंग शैडो पाउडर लगाएं. इससे आपका लाइनर काफी लम्बे वक्त तक चलेगा.

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प्यार को परखने के लिए आजमाएं ये 3 तरीके

जिंदगी में कई दफा हम ऐसे किसी शख्स से प्रेम कर बैठते हैं जो हमारे लिए बना ही नहीं है. दो विपरीत स्वभाव के व्यक्ति कुछ समय तक तो साथ निभा सकते हैं मगर वह रिश्ता हमेशा कायम नहीं रह पाता. सिर्फ सामने वाले के आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित हो कर दिल दे बैठना आप के अपने भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है क्यों कि इस दुनिया में ज्यादातर लोग एक मुखौटा लगाकर रहते हैं और समय आने पर जब मुखौटा उठता है तो व्यक्ति खुद को ठगा हुआ सा महसूस करता है. किसी के साथ रिश्ता जोड़ने से पहले उस शख्स के असली चेहरे को जरूर परखें. कुछ तरीके जिन्हें आप भी आसानी से आजमा सकती हैं.

  1. कितना ईमानदार है वह

सामान्यतः  दो तरह की ईमानदारी परखनी जरुरी होती है. एक तो यह कि वह अपने रिश्तों के प्रति कितना ईमानदार है और दूसरा रुपए पैसों के मामले में कैसा है. जब बात रिश्तों की आती है तो व्यक्ति के स्वभाव को समझना जरूरी हो जाता है.

वह अपने रिश्ते को ले कर कितना ईमानदार है यह जानने के लिए ध्यान दें कि वह दूसरी खूबसूरत लड़कियों के सामने कैसे पेश आता है? उन के सामने आप को कितनी अहमियत देता है? क्या उस की निगाहें हर खूबसूरत लड़की की तरफ घूम जाती हैं? क्या वह हमेशा दूसरी लड़कियों को  इंप्रेस करने के चक्कर में लगा रहता है? उन के आगे ज्यादा ही शालीनता और बुद्धिमानी के प्रदर्शन का प्रयास करता है और क्या वह छोटीछोटी बातों पर झूठ बोल जाता है? क्या फोन पर धीरेधीरे बातें करता है और बात करते वक्त अक्सर आप से दूर चला जाता है?  क्या आप को उस की आंखों में स्थिरता और गंभीरता नजर आती है? क्या खुल कर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या घरवालों से आप को मिलाना पसंद करता है या किसी उलझन में  फंसा नजर आता है? क्या उस ने अपने अतीत के बारे में आप से सब कुछ बताया है या वह बातें छुपाता है? इन बातों से आप अंदाजा लगा सकती हैं कि भविष्य में उस के साथ आप का रिश्ता कैसा रहेगा.

रिश्तों के साथसाथ रुपए पैसों से जुड़ी ईमानदारी भी अहम है. आप किसी बहाने उसे कुछ रुपए इन्वेस्ट करने के लिए या उधार के रूप में दे कर देखें. क्या वह याद कर के आप के रुपए आप को वापस करता है? यहां बात 5 सौ , 5 हजार या 5 लाख की नहीं वरन उस की ईमानदारी की है. यदि वह अक्सर रुपए लौटाना भूल जाता है तो समझिये मामला गड़बड़ है. उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता. जो इंसान रुपयों के मामले में ईमानदार नहीं उस से भला रिश्तों  के मामले में ईमानदारी बरतने की उम्मीद भी कैसे की जा सकती है?

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  1. क्या वह आप का सम्मान करता है

ध्यान दीजिए कि क्या वह दूसरों के आगे आप की इज्जत की परवाह करता है या फिर कहीं भी, कभी भी आप से ऊंची आवाज में बातें करने लगता है? आप को गलत साबित करने की कोशिश करता है?  क्या वह दूसरों के आगे छोटी सी बात पर भी आप का मजाक उड़ा देता है या अपनी बात को ऊंचा रखने की कोशिश में लगा रहता है?

ऐसा व्यक्ति कतई आप के लायक नहीं हो सकता. जो शख्स दूसरों के आगे आप का सम्मान बरकरार रखे, आप के साथसाथ आप के परिवार वालों की इज्जत करे, आप की आंखों में आंसू न देख सके और हमेशा आप को आगे बढ़ने को प्रेरित करे, आप की सफलता पर खुश हो और आप के परेशान होने पर हर संभव मदद करने को तैयार रहे , वही आगे चल कर  आप के लिए बेहतर साथी बन सकता है.

  1. कितनी कंपैटिबिलिटी है आप दोनों में

आप एकदूसरे के साथ कितने सहज हैं?  एकदूसरे को कितना समझते हैं, इस बात पर ध्यान जरूर दें. जब प्यार नया नया होता है तब तो सामने वाला शख्स आप की हर बात मानता ही है. पर थोड़ा समय गुजरने के बाद धीरेधीरे हकीकत सामने आती है.

वह आप का कितना ख्याल रखता है यह जानने के लिए एक साथ कहीं सफर पर जा कर देखें. आप उस के व्यवहार को निकट से पढ़ सकेंगे. सफर के दौरान आप को काफी वक्त साथ गुजारना होता है. अनजान जगह पर एक साथ चलते हुए आप उस के  व्यवहार को निकट से परख सकेंगी.

आप के और दूसरों के साथ उस का  व्यवहार  नोटिस कर सकेंगी. प्लेन / ट्रेन में  बर्थ सिलेक्शन से ले कर होटल और डेस्टिनेशंस चुनते वक्त आप नोटिस कर सकती हैं कि आप का साथी आप की पसंद को कितना तवज्जो देता है. आप दोनों एक तरह की सोच रखते हैं या फिर मतभेद हो रहे हैं? मतभेद होने पर क्या वह समझौता करने को तैयार होता है या अपनी मर्जी चलाना चाहता है? ऐसी बातें आगे जा कर रिश्ते टूटने की मुख्य वजह बनती है.

सफर के दौरान उस की मनी हैंडलिंग करने की आदत भी आप परख सकेंगी. आप का पार्टनर कितना रोमांटिक है ,वह भीड़भाड़ वाली जगह पसंद करता है या एकांत जगह पर आप के और प्रकृति के निकट रह कर खुश है? क्या वह बाहर जा कर भी कामकाज की बातों में लगा हुआ है? आप की बजाय फोन कौल्स या बिजनेस चैटिंग में ज्यादा वक्त लगा रहा है? यदि ऐसा है तो समझ जाइए कि अभी यह हाल है तो भविष्य में वह आप को कितना इग्नोर करेगा.

ऐसी कितनी ही छोटीछोटी बातें हैं जो इंसान को परखने के काम आती हैं .

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जानिए, आखिर क्या है सर्वाइकल कैंसर

महिलाएं परिवार में सभी की देखभाल करती हैं. कब किसको क्या खाना है, कहां जाना है. घर में सभी की तबियत का ध्यान रखती है लेकिन सिर्फ खुद को भूल जाती हैं कि उन्हें अपना भी ध्यान रखना है. अपनी सेहत को लेकर वो थोड़ी लापरवाही बरतती हैं. इसी वजह से महिलाओं का मृत्युदर का स्तर बढ़ता जा रहा है. महिलाएं अपनी बीमारी को लेकर असहज महसूस करती है और न ही किसी से बताती है. इसलिए कई ऐसी बीमारियां है जो उनकी लापरवाही की वजह से बढ़ जाती है और उनकी जान ले लेती है ऐसी ही कुछ बिमारीयों मे से एक है सर्वाइकल कैंसर.

2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल भारत में ही हर साल 74  हजार महिलाएं सर्वाइकल कैंसर की शिकार हो रही है और जांच के मामलो में लगातार स्तर गिरता जा रहा है मतलब महिलां सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग नहीं करवा रही है. ज्यादातर महिलाएं सर्वाइकल टेस्ट को नहीं करवाती है जिसकी वजह से यह खतरनाक रूप ले लेता है.

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क्या होता है सर्वाइकल कैंसर

सर्वाइकल कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो गर्भाशय में सेल्स (कोशिकाओं) की अनियमित वृद्धि की वजह से होता है. यह एचपीवी वायरस यानी ह्यूमन पेपीलोमा वायरस की वजह से होता है. यह सर्विक्स की लाइनिंग, यानी यूटरस के निचले हिस्से को प्रभावित करता है. सर्विक्स की लाइनिंग में दो तरह की कोशिकाएं होती हैं- स्क्वैमस या फ्लैट कोशिकाएं और स्तंभ कोशिकाएं. गर्भाशय ग्रीवा के क्षेत्र में जहां एक सेल दूसरे प्रकार की सेल में परिवर्तित होती है, उसे स्क्वेमो-कौलमर जंक्शन कहा जाता है. यह ऐसा क्षेत्र है, जहां कैंसर के विकास की सबसे अधिक संभावना रहती है. गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर धीरे-धीरे विकसित होता है और समय के साथ पूर्ण विकसित हो जाता है. 15 से 44 वर्ष की आयु की महिलाओं में ये कैंसर उनकी मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन रहा है.

लक्षण

  • इसमें योनी से असामान्य रक्तस्राव, सेक्स या फिर टेंपोन इंसर्ट करने के दौरान रक्तस्राव होता है.
  • यौन संबंध बनाने के दौरान दर्द महसूस होता है.
  • योनी से रक्तमिश्रित अनियिमित डिस्चार्ज होना.
  • कमर, पैर में दर्द महसूस होना.
  • लगातार थकान मेहसूस करना.
  • वजन में कमी आना.
  • भूख न लगना.

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कैसे करें बचाव

हर तीन साल पर पैप स्मीयर टेस्ट कराए, एचपीवी वायरस से बचाव के लिए लगाए जाने वाले टीके अवश्य लगवाएं.

धू्म्रपान बिलकुल न करें क्योंकि सिगरेट में निकोटीन और अन्य घटकों को रक्त की धारा से गुजरना पड़ता है और यह सब गर्भाशय-ग्रीवा में जमा होता है, जहां वे ग्रीवा कोशिकाओं के विकास में बाधक बनते हैं. धूम्रपान प्रतिरक्षा तंत्र को भी दबा सकता है, हेल्दी खाना खाएं लेकीन मोटापे से बचें ,कंडोम के बिना कई व्यक्तियों के साथ यौन संपर्क से बचें.

घर पर बनाएं चीज एग रोल

अगर आप स्नैक में कुछ स्पेशल बनाना चाहते हैं तो  चीज एग रोल जरूर ट्राई करें. यह एक  क्रिस्पी, क्रंची और स्वादिष्ट रेसिपी है और बनाने में भी बेहद आसान है. तो चलिए जानते हैं चीज एग रोल की रेसिपी.

सामग्री

2 प्याज

आधा कप वेडिटेबल ऑइल

4 हरी मिर्च

1 चम्मच चाट मसाला पाउडर

4 अंडा

2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर

2 चम्मच मकई का आटा

2 इंच अदरक

1 मुट्ठी धनिया पत्ती

10 वाइट ब्रेड

10 चीज स्लाइस

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बनाने की वि​धि

एक कटोरे में अंडे फोड़ लें और उसे अच्छे से फेटें. इसमें धनिया की पत्ती, कटा हुआ प्याज, अदरक, कटी हुई मिर्च, लाल मिर्च पाउडर, नमक और चाट मसाला मिला लें, इन्हें अच्छे से मिलाएं.

ब्रेड स्लाइस को किनारे से किनारे काट लें. अब ब्रेड स्लाइस पर चीज स्लाइस डाल लें और उसके ऊपर बैटर डालें. अब ब्रेड को रोल करें और मकई के आटे के साथ रोल करें.

मीडियम फ्लेम पर पैन गर्म करें और इसमें तेल डाल लें. तेल गर्म होने पर इसमें रोल डालकर फ्राई कर लें.

इस अपने पसंद की चटनी के साथ सर्व करें.

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वो लौट कर आएगा : भाग 5

विजय सिंह ने पुलिस अधिकारी के पैर पकड़ लिये कि उस खत में क्या लिखा है कृपया उन्हें बताया जाए. उनकी इकलौती बेटी की जिन्दगी का सवाल है. तब तक नीलू और उसकी मां भी कमरे में पहुंच गयी थीं. नीलू रोती हुई अपने पिता के सीने से चिपक गयी. डर के मारे उसका पूरा बदन कांप रहा था. विजय सिंह ने पुलिस अधिकारी से विनती की, ‘साहब, हमें शरद के बारे में कुछ भी नहीं मालूम. वह ढाई साल पहले यहां किराये पर रहने आया था. उसने बताया था कि उसके आगे-पीछे कोई नहीं है. मां-बाप मर चुके हैं. यहां इन्श्योरेंस कम्पनी में काम करता है. भला लड़का है साहब, मेरी बेटी उससे प्यार करती है, आज दोनों की शादी है. हम पर रहम करिये. बताइये कि इस खत में उसने क्या लिखा है…’

विजय सिंह का रोना-गिड़गिड़ाना देखकर अधिकारी ने अपने हाथ में पकड़ा पत्र उनके आगे बढ़ा दिया. नीलू और विजय सिंह ने पत्र पढ़ा. उनके पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गयी. पत्र में लिखा था….

‘मेरी प्यारी नीलू,

आज तुमसे हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं, हो सके तो मुझे माफ कर देना. मैं तुम्हारे साथ प्यार की दुनिया बसा सकूं यह भगवान को मंजूर नहीं है. तुम लोगों के बीच पनाह पाकर मैं भी सपने देखने लगा था और भूल गया था कि मेरी असलियत क्या है. मेरा काला अतीत रहा है. जिससे मैं लगातार भाग रहा हूं. शहर-दर-शहर भागता फिर रहा हूं. अतीत के काले साये ने मेरा पीछा यहां भी नहीं छोड़ा है. वह तेजी से मेरी ओर बढ़ रहा है और अपने इस भयानक अतीत से मुझे जिन्दगी भर भागते रहना है. लेकिन नीलू, मैं सच्चे दिल से तुम्हें प्यार करता हूं. मेरे प्यार को कभी झूठ मत समझना. रत्ती भर भी संदेह मत करना. मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता, मगर आज मैं बहुत मजबूर हूं. मुझे आज जाना ही होगा. तुम्हारा प्यार, तुम्हारी यादें अपने साथ लिए जा रहा हूं. मां और बाबूजी से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं. उनकी माफी के लायक तो नहीं हूं, मगर उम्मीद करता हूं कि वे मुझे माफ कर देंगे.

सदा तुम्हारा शरद’

पत्र विजय सिंह के हाथों से छूट कर जमीन पर जा गिरा. एक पुलिसकर्मी ने तेजी से झुककर वह पत्र उठाया. विजय सिंह के कंधे पर अधिकारी का हाथ पहुंचा और वह उनको करीब-करीब धक्का मारते हुए सीढ़ियों से नीचे लाया. पीछे-पीछे रोते-गिड़गिड़ाते नीलू और उसकी मां भी उतरीं. विजय सिंह और नीलू को पुलिस पूछताछ के लिए अपने साथ थाने ले गयी. पीछे से तमाम रिश्तेदार भी थाने पहुंचे. पड़ोस के वकील महेश बाबू भी अपने स्कूटर पर भागे. आखिर विजय सिंह उनके दोस्त थे. वे उनके परिवार को बहुत अच्छी तरह जानते थे. नीलू को उन्होंने अपनी गोद में खिलाया था.

नीलू को तो शाम तक पुलिस ने छोड़ दिया मगर विजय सिंह को उन्होंने हवालात में डाल दिया. रात भर उनसे पूछताछ होती रही और रात भर उनका पूरा परिवार थाने के बाहर जमा रहा. लम्बी पूछताछ के बाद आखिरकार दूसरे दिन शाम को विजय सिंह को छोड़ा गया. इस अकस्मात घटना ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था. वे शरद के बारे में जो कुछ भी जानते थे, पुलिस को बता चुके थे, मगर पुलिस को तसल्ली ही नहीं होती थी. एक-एक सवाल को दस-दस तरीके से घुमा-घुमा कर उनसे पूछा गया था. एक अधिकारी ने तो उन पर हाथ तक उठा दिया था. उनके साथ जिन्दगी में पहली बार इस तरह गाली-गलौच हुई थी. उनकी सारी इज्ज़त जैसे मिट्टी में मिल गयी थी. लग रहा था कि अब वह किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहे हैं.

शाम को लोग उन्हें सहारा देकर घर के भीतर लाये तो आंगन में नीलू आधी दुल्हन बनी, हाथों में मेंहदी सजाए जमीन पर बुत बनी बैठी थी. रो-रो कर उसकी आंखें ही नहीं, बल्कि पूरा चेहरा सूज आया था. मां अलग पछाड़ें खा रही थी. बेटी के सामने पहुंच कर विजय सिंह खुद को संभाल न सके, लड़खड़ा कर वहीं गिर पड़े. इस दुख को झेल जाने की शक्ति अब उनके अन्दर नहीं बची थी. लोगों ने आगे बढ़ कर उन्हें उठाना चाहा, लेकिन अब वे अपने पैरों पर खड़े ही नहीं हो पाये. उन्हें फालिज मार गया. नीलू चीख-चीख कर पागलों की तरह रो रही थी. बार-बार अपने पिता के सीने से लिपटी जा रही थी. मां बेहोश हो चुकी थी. चारों तरफ मातमी आवाजें और रुदन सुनायी दे रहा था. शादी का घर मरघट सदृश्य हो गया था.

आने वाले दिन नीलू के परिवार पर कयामत की तरह गुजरे. घर पर अभी भी पुलिस पहरा जमाए बैठी थी. विजय सिंह को अस्पताल में भर्ती तो करा दिया गया था, मगर वहां भी पुलिस उन पर नजर रख रही थी. गांव-देहात से आये रिश्तेदार धीरे-धीरे विदा हो रहे थे. सबको डर था कि कहीं वे किसी लपेटे में न आ जाएं. घर खाली हो गया. नीलू और उसकी मां घर और अस्पताल के बीच चकरघिन्नी बनी हुई थीं. विजय सिंह कई महीने अस्पताल में रहे. फालिज ने शरीर का बायां हिस्सा मुर्दा कर दिया था और आवाज भी छीन ली थी. नीलू को पास देखकर वह बोलने की कोशिश करते मगर जुबान जैसे तालू से चिपक जाती थी. मुंह से बस घूं-घूं की आवाज निकलती थी. आंखों के कोरों से हर वक्त आंसू बहते थे. शरीर सूख कर कांटा हुआ जा रहा था. दवाई का कुछ असर होता नजर नहीं आता था. दरअसल यह घाव उनके दिल पर बहुत गहरा लगा था. विजय सिंह जीने की इच्छा ही छोड़ चुके थे. ऐसे में इंजेक्शन और ग्लूकोज की बोतलों के सहारे जिन्दगी कब तक खिंचती? आखिर एक रात नीलू और अपनी पत्नी को अकेला छोड़कर वे चल बसे.

कई साल तक लोग विजय सिंह और उनके परिवार पर आये संकट की बातें करते रहे. गली-नुक्कड़ पर खूब कहानियां चलतीं, चर्चे होते, कुछ सहानुभूति प्रकट करते तो कुछ मजा लेते थे. अखबारों में भी कई दिनों तक यह खबर सुर्खियों में रही…

‘‘शरद सिंह चौहान उर्फ अभय श्रीवास्तव उर्फ ज्वाला दादा उर्फ टाइगर, अंडरवर्ल्ड सदस्य, नागपुर के मशहूर उद्योगपति संजीवन शाह हत्याकांड का वांछित, जिसके सिर पर दो लाख रुपये का ईनाम घोषित था, पिछले आठ वर्षों से पुलिस को जिसकी तलाश थी, वह शातिर अपराधी जिसके सूत्र देश की सीमा के बाहर भी फैले हुए थे, हवाला कारोबारियों से जिसके नजदीकी सम्बन्ध थे, पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर दो सालों से शरद सिंह चौहान के नाम से इलाहाबाद में छिपा बैठा था और यहां से भी वह पुलिस को गच्चा देकर निकल भागने में कामयाब रहा….’’

कई साल बीत गये इस घटना को….  नीलू पुराने अखबार उठाती… उसमें छपी हुई शरद की फोटो देखती… उन खबरों को कई-कई बार पढ़ती… और फिर सहेज कर अलमारी में रख देती. उसका मासूम दिल किसी कीमत पर इस सच्चाई को मानने को तैयार नहीं हुआ. उसने तो अपने मन-मंदिर में शरद को अपना देवता मानकर स्थापित किया था, वह कैसे इन खबरों पर विश्वास करती? उसकी आंखों में तो शरद का वही रूप बसा रहा जो कभी उसको अपने करीब बिठा कर अंग्रेजी पढ़ाया करता था… जो उससे बेपनाह मोहब्बत करता था… जो उसकी नीली-नीली आंखों में डूब जाया करता था… एकान्त के क्षणों और प्यार के पूरे आवेग में भी हमेशा अपनी हद में रहता था… जिसके सीने से लगकर नीलू खुद को सुरक्षित महसूस करती थी. शरद जैसा प्रेम से भरा, अनुशासित और ठंडे दिमाग का व्यक्ति किसी की हत्या कर सकता है क्या…? अंडरवर्ल्ड का सदस्य हो सकता है क्या…? हवाला का काम कर सकता है क्या….? अपराधी हो सकता है क्या…? नीलू खुद से सवाल करती और खुद ही जवाब दे देती, ‘नहीं, कभी नहीं. वह ऐसा हो ही नहीं सकता है.’

कितने बरस बीत गये, नीलू कभी मान ही नहीं पायी कि उसका शरद ऐसा हो सकता है. उसे हमेशा यही लगता कि पुलिस को गलतफहमी हुई है उसके शरद के बारे में. वह कोई और आदमी था जिसे पुलिस तलाश रही थी. उसकी मां पूछती है कि अगर वह सही था तो फिर भागा क्यों? इस सवाल का कोई जवाब नीलू न मां को दे पाती है, न खुद को. बस इसी सवाल पर आकर चुप हो जाती है. खुद को सबसे समेट कर शरद के कमरे में बंद कर लेती है. घंटों उसके कमरे में बैठी रहती है. वह आज भी अपने शरद का कमरा साफ करती है. वहां रखी हर चीज को करीने से झांड़-पोंछ कर सजाती है. शादी के लिए सिलाए गये उसके कपड़ों को खोलती है… अपने चारों ओर फैलाकर बैठी रहती है…. बेचैन होकर उन्हें पागलों की तरह चूमती है… फिर तह लगा कर वापस अलमारी में रख देती है… सिर्फ इस आशा में कि एक दिन शरद आएगा… अपनी आधी दुल्हन को पूरी दुल्हन बनाने के लिए… वह अपनी नीलू को कभी नहीं भूल सकता… वो आएगा…. एक दिन जरूर आएगा…. एक दिन जरूर आएगा…

अनार : मैदानी इलाकों में भी लें अच्छी पैदावार

डा. अरविंद कुमार, डा. ऋषिपाल

भारत में अनार का कुल रकबा 2018-19 में 2,46,000 हेक्टेयर है और उत्पादन 28,65,000 मीट्रिक टन है, वहीं अगर एक हेक्टेयर की बात करें तो अनार का कुल उत्पादन तकरीबन 11.69 टन प्रति हेक्टेयर है. अनार गरम और गरम व ठंडी जलवायु वाले देशों का काफी लोकप्रिय फल है.

भारत में इस की खेती खासतौर से महाराष्ट्र में की जाती है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में छोटे लैवल पर इस के बगीचे देखे जा सकते?हैं. इस का रस जायकेदार और औषधीय गुणों की वजह से फायदेमंद होता है.

अनार की खेती के लिए कम लागत, लगातार उच्च तापमान, लंबी भंडारण अवधि जैसी खूबियों के चलते इस का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है.

आबोहवा : यह हलकी सूखी जलवायु में  बढि़या तरह से उगाया जा सकता है. फलों के बढ़ने व पकने के समय गरम और शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. लंबे समय तक ज्यादा तापमान बने रहने से फलों में मिठास बढ़ती है, वहीं नम जलवायु रहने से फलों की क्वालिटी पर बुरा असर होता?है.

जमीन??: अनार अनेक तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, पर बढि़या जल निकास के इंतजाम वाली रेतीली दोमट मिट्टी सब से

बढि़या होती है. फलों की गुणवत्ता व रंग भारी मिट्टी के मुकाबले हलकी मिट्टियों में अच्छा होता है. अनार के लिए मिट्टी लवणीयता 9.00 ईसी प्रति मिलीलिटर और क्षारीयता 6.78 ईएसपी तक सहन कर सकता है.

खास प्रजातिभारतीय प्रजाति : अर्कता, भगवा, ढोकला, जी 137, गणेश, जलोर सीडलैस, ज्योति, कंधारी, मृदुला, फूले फगवा, रूबी के 1 वगैरह.

प्रजाति इगजोटिक : अगेती वंडरफुल, ग्रांड वंडरफुल वगैरह.

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खास किस्म और खूबियां?

गणेश : इस किस्म के फल मध्यम आकार के, बीज मुलायम और गुलाबी रंग के होते?हैं. यह महाराष्ट्र की खास किस्म है.

ज्योति: फल मध्यम से बड़े आकार के, चिकनी सतह व पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते?हैं. एरिल गुलाबी रंग के बीज काफी मुलायम, बहुत मीठे होते?हैं. प्रति पौधा 8-10 किलोग्राम उपज ली जा सकती?है.

मृदुला : फल मध्यम आकार के, चिकनी सतह वाले लाल रंग के होते हैं. एरिल गहरे लाल रंग का बीज मुलायम, रसदार और मीठे होते हैं. प्रति पौधा 8-10 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

भगवा : इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के, चिकने चमकदार होते हैं. एरिल मनमोहक लाल रंग की और बीज मुलायम होते हैं. बढि़या देखरेख करने पर प्रति पौधा 30-38 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

अर्कता : यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म?है. फल बड़े आकार के, मीठे और मुलायम बीजों वाले होते?हैं. एरिल लाल रंग की व छिलका मनमोहक लाल रंग का होता है. बढि़या देखरेख करने पर प्रति पौधा 25-30 किलोग्राम उपज ली जा सकती है.

प्रवर्धन

कलम द्वारा : एक साल पुरानी शाखाओं से 20-30 सैंटीमीटर लंबी कलमें काट कर पौधशाला में लगा दी जाती हैं और इंडोल ब्यूटारिक अम्ल (आईबीए) 3,000 पीपीएम से कलमों को उपचारित करने से जड़ें जल्दी व ज्यादा तादाद में निकलती?हैं.

गूटी द्वारा : अनार का व्यावसायिक प्रवर्धन गूटी द्वारा किया जाता है. इस विधि में जुलाईअगस्त माह में एक साल पुरानी पैंसिल समान मोटाई वाली स्वस्थ पकी 45-60 सैंटीमीटर लंबाई की शाखाओं को छांटें.

छांटी गई शाखाओं से कलिका के नीचे 3 सैंटीमीटर चौड़ी गोलाई में छाल पूरी तरह से निकाल दें. छाल निकाली गई शाखा के ऊपरी भाग में आईबीए 10,000 पीपीएम का लेप लगा कर नमी वाला स्फेगनम मास चारों ओर लगा कर पौलीथिन की शीट से ढक कर सुतली से बांध दें. जब पौलीथिन से जड़ें दिखाई देने लगें, उस समय शाखा को स्केटियर काट कर क्यारी या गमलों में लगा दें.

पौध की रोपाई: आमतौर पर पौध रोपण की आपसी दूरी मिट्टी की क्वालिटी व जलवायु पर निर्भर करती है. आमतौर पर 4-5 मीटर की दूरी पर अनार को रोप दिया जाता है.

सघन रोपण विधि में 5×2 मीटर (1,000 पौधे प्रति हेक्टेयर), 5×3 मीटर (666 पौधे प्रति हेक्टेयर) 4.5×3 (740 पौधे प्रति हेक्टेयर) की आपसी दूरी पर रोपण किया जा सकता है.

पौध रोपने के तकरीबन एक महीने पहले 60×60×60 सैंटीमीटर (लंबाई × चौड़ाई × गहराई) आकार के गड्ढे खोद कर 15 दिनों के लिए खुला छोड़ दें. इस के बाद गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम क्लोरोपाइरीफास चूर्ण मिट्टी में मिला कर गड्ढों को सतह से 15 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक भर दें.

खाद व उर्वरक : पौधों की उम्र के मुताबिक कार्बनिक खाद व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का इस्तेमाल करें. नाइट्रोजन व पोटाशयुक्त उर्वरकों को 3 हिस्सों में बांट कर पहली खुराक सिंचाई के समय बहार प्रबंधन के बाद और दूसरी खुराक 3-4 हफ्ते बाद दें, फास्फोरस की पूरी खाद को पहली सिंचाई के समय दें. जिंक, आयरन, मैगनीज और बोरोन की 25 ग्राम की मात्रा प्रति पौधे डालें.

जब पौधों पर फूल आना शुरू हो जाएं, तो उस में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 12:61:00 को 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक दिन के फासले पर एक महीने तक दें.

जब पौधों में फल लगने शुरू हो जाएं तो नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश 19:19:19 को ड्रिप की मदद से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक दिन के अंतराल पर एक महीने तक दें.

जब पौधों पर पूरी तरह से फल आ जाएं तो नाइट्रोजन और फास्फोरस 00:52:34 या मोनोपोटैशियम फास्फेट 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को एक दिन के अंतराल पर एक महीने तक दें.

फल की तुड़ाई के एक महीने पहले कैल्शियम नाइट्रेट की 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को ड्रिप की सहायता से 15 दिनों पर 2 बार दें.

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ऐसे करें सिंचाई

अनार के पौधे सूखा सह लेते हैं, पर अच्छे उत्पादन के लिए सिंचाई का खास फायदा है. मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई माह के मध्य से शुरू कर के मानसून आने तक नियमित रूप से करनी चाहिए.

बारिश आने के बाद फलों के अच्छे विकास के लिए लगातार सिंचाई 10-12 दिन के फासले पर करनी चाहिए. ड्रिप सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है. इस में 43 फीसदी पानी की बचत और 30-35 फीसदी उपज में इजाफा हुआ है.

संधाई व काटछांट : अनार की 2 तरह से संधाई की जा सकती है. एक, तना विधि द्वारा. इस विधि में एक तने को छोड़ कर बाकी सभी बाहरी टहनियों को काट दिया जाता है. दूसरी, बहु तना विधि द्वारा. इस विधि में 3 से 4 तने छूटे हों, बाकी टहनियों को काट दिया जाता है.

इस तरह साधे हुए तने में रोशनी बढि़या मिलती है. रोगग्रस्त हिस्से के 2 इंच नीचे तक छंटाई करें और तनों पर बने सभी कैंकर को गहराई से छील कर निकाल देना चाहिए. छंटाई के बाद 10 फीसदी बोर्डो पेस्ट को कटे हुए हिस्से पर लगाएं. बारिश के समय में छंटाई के बाद तेल वाला कौपर औक्सीक्लोराइड और 1 लिटर अलसी का तेल का इस्तेमाल करें.

बहार नियंत्रण : अनार में साल में 3 बार जूनजुलाई (मृग बहार), सितंबरअक्तूबर (हस्त बहार) व जनवरीफरवरी (अंबे बहार) में फूल आते हैं. व्यावसायिक तौर पर केवल एक बार ही फसल ली जाती?है और इस का निर्धारण पानी की मौजूदगी व बाजार की मांग के मुताबिक किया जाता है.

जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा नहीं होती?है, वहां मृग बहार से फल लिए जाते हैं. जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा है, वहां अंबे बहार से फल लिए जाते हैं. बहार नियंत्रण के लिए जिस बहार से फल लेने हों, उस के फूल आने से 2 माह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. रासायनिक बहार नियमन के लिए इथ्रेल की उच्च सांध्रता (1 से 2 मिलीलिटर प्रति लिटर) का इस्तेमाल किया जाता है.

तुड़ाई: अनार बेमौसम वाला फल?है. जब फल पूरी तरह से पक जाएं, तभी पौधों से तोड़ना चाहिए. पौधों में फल सेट होने के बाद 120-130 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. पके फल पीलापन लिए लाल हो जाते?हैं.

उपज : पौध रोपण के 2-3 साल बाद फलना शुरू कर देते हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के तकरीबन 4-5 साल बाद ही लेना चाहिए. अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल हर साल 25-30 साल तक देता है.                                         ठ्ठ

खाद और उर्वरक की मात्रा : पौधों की उम्र के मुताबिक

पौधे की उम्र   सड़ी हुई गोबर की    नाइट्रोजन     फास्फोरस     पोटाश

साल में खाद (किलोग्राम)     (ग्राम)  (ग्राम)  (ग्राम)

1              10           250         125         125

2              20           250         125         125

3              30           500         125         125

4              40           500         125         250

5 या  50           625         250         250

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  अनार के खास रोग और उन का प्रबंधन

रोग का नाम सरकोस्पोरा फल धब्बा फल सड़न जीवाणु पत्ती झुलसा उकटा कार्यिकी विकृति फल फटना

रोग के नुकसान की पहचान इस रोग में फलों पर बिना किसी आकार के छोटे काले रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में बड़े धब्बों में बदल जाते?हैं.

यह रोग एस्परजिलस फोइटिड्स नामक फफूंद से होता है. इस रोग में गोलाकार काले धब्बे केलिक्स से शुरू हो कर पूरे फल में फैल जाते हैं.

इस रोग में छोटे अनियमित आकार के जलसोक्ति धब्बे पत्तियों पर बन जाते हैं. यह धब्बे हलके भूरे से गहरे भूरे रंग के होते?हैं.

इस रोग में पत्तियों का पीला पड़ना, जड़ों व तनों के निचले भाग को बीच से चीरने पर अंदर की लकड़ी हलके भूरे या काले धब्बे दिखाता है.

मिट्टी में बोरोन की कमी व जमीन में नमी का असंतुलन होने की वजह से अनार में फलों का फटना एक गंभीर समस्या है.

रोग नियंत्रण की सिफारिश मैंकोजेब (75 डब्ल्यूपी) 2.5 ग्राम प्रति लिटर या क्लोरोपायलोनिल (75 डब्ल्यूपी) 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर 2-3 छिड़काव 15 दिन के फासले पर करें. अधिक प्रकोप होने पर हैक्साकोनाजोल (5 ईसी) 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या डाईफनकोनाजोल ()25 ईसी 0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर 30-40 दिन के फासले पर छिड़काव करें.  कार्बंडाजिम (50 डब्ल्यूपी) 1 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर 10-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.  रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बंडाजिम (50 डब्ल्यूपी) 2 ग्राम प्रति लिटर या?ट्राईडिमोर्फ (80 ईसी) 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर पौधों के नीचे की मिट्टी को तर कर दें.  जिब्रलिक एसिड (जीए 3) 15 पीपीएम का छिड़काव करें. बोरोन 0.2 फीसदी का छिड़काव करें.

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अनार के खास कीट और उन का प्रबंधन  कीट का नाम कीट के नुकसान की पहचान कीटों के नियंत्रण की सिफारिश

जड़ गांठ सूत्रकृमि सूत्रकृमि पौधों की जड़ों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. इस वजह से पौधों की जड़ों में फफूंद से होने वाले रोगों का हमला बहुत जल्दी होता है. रोगग्रस्त जड़ें उकटा विल्ट रोग फैलाने वाली फफूंद के लिए बहुत ही संवेदनशील हो जाती हैं.  वानस्पतिक रसायन जैसे अजादिरैक्टिन 0.15 फीसदी घोल से या रासायनिक सूत्रकृमिनाशक जैसे कार्बोफ्यूरान 3 जी या फेनामिफोस 5 जी से मिट्टी का उपचार करें.  दीमक ये कीट पेड़ों की जड़ों व जमीन के पास तने के हिस्से को काट कर नुकसान पहुंचाते हैं. रोगग्रस्त पेड़ धीरेधीरे कम फल देने लगते हैं और अंत में सूख जाते?हैं. 1 किलोग्राम बाइवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजियम को तकरीबन 25 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिला कर डाल कर जुताई करें. अधिक होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लिटर मात्रा को बालू रेत में मिला कर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.  अनार की तितली अंडों से इल्ली निकल कर फलों के अंदर घुस जाती हैं और बीजों को खाती हैं. इन फलों पर बाद में जीवाणु और फफूंदी का भी प्रकोप हो जाता है. इस वजह से फलों में सड़न पैदा हो जाती है.  साइपरमैथ्रिन (25 ईसी) 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या इंडोक्जाकार्ब (45 एससी) 0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव 30-40 दिन के फासले पर करें.  तना छेदक तनों व शाखाओं में सुरंग बना कर ये कीट नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि वयस्क कीट नई  टहनियों और शाखाओं को खाते हैं. कीट की इल्लियां शाखाओं में छेद बना लेती?हैं. इस वजह से शाखाएं पीली पड़ कर सूख जाती हैं. मुख्य तने के आसपास क्लोरोपाइरीफास 2.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर (ड्रैचिंग) दें. अधिक प्रकोप की अवस्था में तने के?छेद में डीडीपी का 2-3 मिलीलिटर डाल कर छेद को गीली मिट्टी से बंद कर दें.  मकड़ी इस कीट के प्रौढ़ व शिशु पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते?हैं. इस की वजह से पत्तियां सिकुड़ कर सूख जाती हैं.  डाईकोफाल 25 मिलीलिटर प्रति लिटर स्टीकर 1 मिलीलिटर प्रति लिटर या फेंजावक्वीन (10 ईसी) 2 मिलीलिटर प्रति लिटर या अबामेक्टीन (1.9 ईसी) 0.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.  मिली बग कोमल पत्तों व फलों पर सफेद मोमी कपास जैसा कीट दिखाई देता है. यह कीट कोमल पत्तों और शाखाओं से रस चूसता है.  डाईमिथोएट (30 ईसी) 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर या इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल) 0.3 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.  फल बेधक मक्खियां अनार के फलों को मक्खियां काफी नुकसान पहुंचाती?हैं. इस की इल्लियां फलों के गूदे में अंदर ही अंदर खा कर खोखला कर देती?हैं.  मिथाइल यूजीनोल बोतल ट्रैप्स 0.1 फीसदी मिथाइल यूजीनोल और 0.1 फीसदी मैलाथिन के 100 मिलीलिटर घोल को लटकाना इस नाशीजीव के नियंत्रण में बहुत प्रभावी है.

सेक्स को मना करने पर हिंसा करता था पति, पत्नी ने की हत्या

पतिपत्नी के संबंध में जहां सेक्स का हौआ हावी हो गया, वह घर तो टूटन की कगार पर खड़ा ही मानो. वैसे, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए, आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाया जाए तो कारगर रहता है नहीं तो लड़ाई झगड़ा होना लाजिम है. पर सेक्स के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना और बदतमीजी से बोलना व बच्चों के सामने उसे बेइज्जत करना आम घरों की समस्या से रूबरू कराता है. वाकई यह हमारी घिनौनी सोच का ही नतीजा है.

कोलकाता में भी एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस में पत्नी ने पति द्वारा तंग करने पर उस की हत्या करने में जरा भी गुरेज नहीं किया.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अपने पति की हत्या करने वाली अनिंदिता पौल डे ने पुलिस को इस के पीछे की अहम वजह बताई. हालांकि वह बारबार अपना बयान बदलती नजर आई. कहीं न कहीं वह अपने पति से आजिज आ चुकी थी, तभी उस ने अपने पति की हत्या करने जैसा कठोर कदम उठाया.

यह दंपती न्यू टाउन इलाके में रहता था. अनिंदिता पौल डे ने बताया कि उस का पति पेशे से वकील था. वह आए दिन उस का यौन उत्पीडन करता था.

अनिंदिता ने आगे बताया कि पिछले हफ्ते मैडिकल सलाह के खिलाफ जा कर उस के पति ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की जिस से गुस्से में आ कर अनिंदिता ने पति रजत डे की हत्या कर दी.

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हालांकि मामला संगीन है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि महिला ने दावा किया है कि उस का पति जिस्मानी और दिमागी तौर पर उसे परेशान किया करता था. इस वजह से दोनों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. इसी तरह की एक अजीबोगरीब हरकत पर अनिंदिता ने अपने पति की हत्या कर दी.

पुलिस जांच कर रही है कि यह हत्या अनिंदिता ने अकेले ही की थी या फिर किसी ने उस की मदद की थी.

अनिंदिता के वकील चंद्रशेखर बाग ने बताया कि अनिंदिता के पति ने उस का यौन शोषण किया था. 2 महीने पहले उन की फैलोपियन ट्यूब की सर्जरी हुई थी. इस के बाद डाक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन रजत ने अनिंदिता के साथ जबरदस्ती की थी.

यह तो पति को भी सोचना चाहिए कि पत्नी की परेशानी क्या है पर इस ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और जबरदस्ती पर उतर आया. उस ने अपनी पत्नी की जरा भी नहीं सुनी और अपनी मनमानी करने लगा. जब बात हद से गुजर गई तो उस ने अपने पति की हत्या कर दी.

मामला चाहे जो हो पत्नी ने अपने हाथों को खून से सन ही लिया है. इस हत्या का अनिंदिता की जिंदगी पर कैसा असर पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोचने वाली बात यह भी है मर्दऔरत को एकसाथ रखने वाला प्यार जानलेवा कैसे बन गया? क्या इस के पीछे मर्दवादी सोच है, जो पति के लिए पत्नी रात में दिल बहलाने का खिलौना भर है, चाहे वह किसी बीमारी के चलते सेक्स करने से परहेज करना चाहती हो?

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