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फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण है वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण से बचना लगभग असंभव है. आप यह समझ सकते हैं मास्क लगाकर या घर में एयर प्यूरीफायर लगाकर आप सुरक्षित हैं. पर हवा में मौजूदा बेहद बारीक प्रदूषण मास्क और प्यूरीफायर के बावजूद आपके शरीर में पहुंचकर स्वास्थ्य संबंधी समस्या खड़ी कर सकते हैं. भले ही अल्प अवधि तक संपर्क में रहने के कारण इसका गंभीर प्रभाव न हो पर दीर्घअवधि तक संपर्क में रहने से स्वास्थ्य संबंधी चिन्ता हो सकती है. क्या आप जानते हैं कि फेफड़े के कैंसर के प्रमुख कारणों में एक वायु प्रदूषण है?

ऐसा नहीं है कि दमा के मरीज या बुजुर्ग लोग ही प्रदूषण के शिकार होते हैं क्योंकि उनकी प्रतिरोध क्षमता कम होती है. स्वस्थ लोग भी वायु प्रदूषण से प्रभावित हो सकते हैं. हवा की गुणवत्ता खराब हो तो व्यायाम के कारण सांस संबंधी समस्या हो सकती है. इसीलिए लोगों से कहा जाता है कि सुबह या शाम के समय हवा अच्छी न हो तो टहलने न जाएं.

क्लिनिक ऐप्प  के सीईओ, सत्काम दिव्य के अनुसार, हवा को प्रदूषित करने वाली कुछ चीजों को करीब से देखें और आपके स्वास्थ्य पर इनके दीर्घ अवधि के प्रभाव को जानें.

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कार्बन मोनोऔक्साइड

कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ2/Co2) की कोई खास महक नहीं होती है और ना ही इसका कोई रंग है. इसका उत्पादन फोस्सिल फुएल (जीवाश्म ईंधन) से होता है खासकर तब जब दहन ठीक से नहीं होता है. इसे जलती लकड़ी के मामले में देखा जा सकता है. सांद्रता के स्तर और प्रभाव की अवधि के आधार पर जहर के असर का हल्का से लेकर गंभीर असर हो सकता है. इसके लक्षण सामान्य फूड प्वायजनिंग जैसे होते हैं. इसमें कमजोरी, चक्कर आना, मितली आना, उल्टी आना आदि शामिल है.

सल्फर डायऔक्साइड

यह बेहद रीऐक्टिव गैस है. इसे हवा को प्रदूषित करने वाली गैसों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. अक्सर यह औद्योगिक प्रक्रिया, प्राकृतिक ज्वालामुखी वाली गतिविधियों या जीवाश्म ईंधन की खपत से निकलता है. एसओटू (So2) ना सिर्फ मनुष्यों के लिए नुकसानदेह है बल्कि यह पौधों और जानवरों के लिए भी बुरा है. प्रदूषित हवा में व्यायाम करने वाले सांस लेने में समस्या महसूस कर सकते हैं और जिनमें पहले से है उनमें यह समस्या बढ़ सकती है क्योंकि मुंह से होते हुए यह फेफड़े में पहुंच सकता है. एसओटू के संपर्क में रहने से त्वचा, आंखों में परेशानी हो सकती है और सांस संबंधी दिक्कत भी हो सकती है.

नाइट्रोजन औक्साइड

नाइट्रोजन ऑक्साइड के संपर्क में रहने से सांस संबंधी संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है. यह मुख्य रूप से कोयला, सिगरेट, पावर प्लांट आदि से निकलता है. उच्च स्तर पर ज्यादा समय तक संपर्क में रहने से पलमोनरी इडेमा की शुरुआत हो सकती है. नाइट्रोजन ऑक्साइड के जहरीलेपन का स्तर 03 से कम है लेकिन यह नुकसानदेह है. नाइट्रोजन ऑक्साइड के जहरीलेपन के कुछ सामान्य लक्षण झींकना, खांसी, सिरदर्द, गले में खिचखिच, ब्रोनकोस्पाज्म और सीने में दर्द आदि है.

लेड

प्लंब या पीबी (pb) प्रदूषण भिन्न उद्योगों में पाया जा सकता है. यह मोटर इंजन खासकर उनसे जो पेट्रोल से चलते हैं, से निकलता है. सिंचाई के कुंए, स्मेलटर्स और बैट्री प्लांट और अपशिष्ट जल लेड उत्सर्जन के कुछ और स्रोत हैं. मिट्टी में फंसने से पहले ये लंबी दूरी तय कर सकते हैं और यह घर के अंदर तथा बाहर दोनों हो सकता है. पीबी (Pb) एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सीकैंट है, खासकर बच्चों के लिए. इससे समस्याएं हो सकती हैं जैसे हाइपर ऐक्टिविटी, सीखने की कमजोरी और मानसिक कमजोरी भी. उच्च रक्तचाप, जोड़ों में दर्द, एकाग्रता में कमी कुछ अन्य समस्याएं हैं जो लेड के संपर्क में रहने वाले लोगों में देखी गईं.

अन्य प्रदूषक

हवा में मौजूद अन्य प्रदूषण को दो समूहों में बांटा जा सकता है और ये कार्सिनोजेन (कैंसरकारी तत्व) तथा मुटाजेन (उत्परिवर्तजन) यौगिक कहे जा सकते हैं. इन्हें मनुष्य में कैंसर के मामलों की प्रगति की घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना जाता है. एक चीज जो बिल्कुल साफ है वह है जीवाश्म ईंधन की खपत हवा के संक्रमण तथा प्रदूषण का अकेला सबसे बड़ा कारण है. वायु प्रदूषण औद्योगिक गतिविधियों, ऊर्जा अधिग्रहण, कृषि गतिविधियों और परिवहन आदि से भी हो सकता है.

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दीर्घ अवधि की अन्य जटिलताएं

पीएएच, वीओसी औक्साइड आदि जैसे प्रदूषणकारी तत्व जो हवा में मौजूद होते हैं, शरीर के भिन्न हिस्सों को प्रभावित कर सकते हैं. पर सबसे पहले ये त्वचा के संपर्क में आते हैं. सिद्धांत रूप से वायु प्रदूषण को त्वचा दवारा जज्ब कर लिया जाए तो यह हमारे अंगों तक पहुंच और उन्हें क्षतिग्रस्त कर सकता है. कुछ आंकड़े हैं जो साबित करते हैं कि वायु प्रदूषण के प्रभाव से गर्भस्थ शिशु और बच्चों में ऑटिज्म तथा संबंधित गड़बड़ियां हो सकती हैं.

प्रदूषण का असर हमारी आंखों पर सबसे पहले होता है. इस लिहाज से शायद यह शरीर का सबसे नाजुक और उपेक्षित अंग है. थोड़ी देर तक प्रभाव क्षेत्र में रहने से आंखें सूखने जैसा अहसास हो सकता है. लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहने से परेशानी बढ़ सकती है जैसे एडवर्स (प्रतिकूल) ओकुलर आउटकम और रेटिनोपैथी. हमारे आस-पास के ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं कि हवा में मौजूद जहरीले पदार्थ कितने नुकसानदेह हो सकते हैं, खासकर बच्चों को. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस संबंध में जागरूकता फैलाई जाए ताकि लोग आवश्यक सावधानी बरत सकें और एक दूसरे की रक्षा करने के उपाय करें और स्वस्त व सुरक्षित रहें.

आर्थिक कदम

देश की किसी सड़क को देख लीजिए. आज सड़क बनेगी. कल से तरहतरह के सरकारी लोग आ कर उस में गड्ढे करने लगेंगे. लोगों के वाहन टेढ़ेमेढ़े चलेंगे. गड्ढों में पानी भरेगा, मिट्टीधूल उड़ेगी. एकदो उत्साही इलाके के पार्षद से मिलेंगे तो जेई साहब आ कर मुआयना करेंगे और मजदूर आ कर उन गड्ढों में ईंटरोड़े भर जाएंगे. कुछ दिन राहत होगी.

यही काम भाजपा सरकार अर्थव्यवस्था के साथ कर रही है. उस ने चुनाव तो जीत लिया लेकिन देश से आजादी का माहौल छीन लिया. नोटबंदी, जीएसटी, आधार, ट्रैफिक नियमों में भारी जुर्मानों, अतिरिक्त करों से देश की सड़कों पर गड्ढे ही नहीं खोद दिए गए, पुलिस बैरियर भी लगा दिए गए. सो, आर्थिक विकास ट्रैफिक जाम में फंस गया है.

अब आननफानन 2-4 कदम उठाए गए हैं और उम्मीद की जा रही है कि देश का विकास तेजी से दौड़ेगा. यदि ऐसा संभव था तो यह ज्ञान हमारे दिव्यज्ञानियों को पहले क्यों नहीं आया. विश्वगुरु भारत तो दुनिया का सब से बुद्धिमान देश है. कर कम कर के क्यों नहीं पहले से ही, विकास तो छोडि़ए, देश जैसा चल रहा था, वैसा ही चलने दिया गया?

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कंपनियों को आयकरों में छूट, कुछ चीजों पर जीएसटी में राहत, कुछ नियमों में छूट से उम्मीद कम ही है कि देश में विकास का माहौल पैदा होगा क्योंकि देश में धौंस और जबरदस्ती का जो वातावरण पैदा हो गया है, वह जल्दी जाने वाला नहीं है.

मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री रहने के समय एकएक कर के छूटें दी गई थीं, देश में खुला माहौल था. 2014 से पहले भगवा ब्रिगेड राहुल, सोनिया, मनमोहन पर भद्दे मजाक करने की आजादी तक रखती थी. कंप्ट्रोलर जनरल औफ इंडिया विनोद राय ने काल्पनिक हानि के आंकड़े पेश कर दिए और उन के पद पर कोई आंच नहीं आई. आज जो कर छूटें दी गई हैं उन के पीछे यह मानना कहीं नहीं है कि ये कदम देश के लिए हितकारी हैं. ये कदम तो डर कर उठाए गए हैं कि भाजपाप्रेम की कलई खुल गई है.

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बिकिनी तसवीरों पर ज्यादा लाइक्स : शमा सिकंदर

मशहूर टीवी व फिल्म अभिनेत्री शमा सिकंदर अब एक तरफ अभिनय में व्यस्त हैं तो दूसरी तरफ अपना प्रोडक्शन हाउस खोल कर लघु फिल्में और वैब सीरीज भी बना रही हैं. पर वे हमेशा सोशल मीडिया पर अपनी हौट पिक्चर्स या बिकिनी पिक्चर्स के कारण चर्चा में रहती हैं.

इस पर शमा सिकंदर कहती हैं, ‘‘जैसे ही इंटरनैट पर बिकिनी पिक्चर लगाओ, 10 सैकंड में लाखों लाइक्स आते हैं. लोग अच्छे कमैंट्स लिखते हैं. पर जब मैं अच्छी, सुंदर फोटो लगाती हूं, तो ज्यादा लाइक्स नहीं मिलते. यह बात मेरी समझ में आ रही है. आखिर हो क्या रहा है, इस से लोगों का पाखंड सामने आता है. लोग जो देखना चाहते हैं उसी को ले कर बाद में कलाकार की आलोचना भी करते हैं.

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‘‘जब किसी को बोलना हो तो वह यही कहेगा कि ऐसी तसवीर नहीं लगानी चाहिए, जबकि देखने वालों में वही सब से आगे होता है.

‘‘जबकि मैं बंद कमरे में बैठ कर बिकिनी की तसवीरें तो खींचती नहीं हूं. बिकिनी की तसवीरें तो स्विमिंग पूल और समुद्री बीच की होती हैं जहां पर लोग बिकिनी ही पहन कर जाते हैं. वहां पर बुरका पहन कर कोई नहीं जाता. यदि लोग मेरी दूसरी फोटो लाइक करें तो उस तरह की फोटो डालूंगी. हम सभी सोशल मीडिया पर अपनेअपने फौलोअर्स बढ़ाना चाहते हैं. जो इस बात से इनकार करता है, वह झूठ बोलता है.’’

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मुझे नहीं लगता है कि सोशल मीडिया की वजह से कुछ बदलाव होता है : इमरान हाशमी

सीरियल किसर के रूप में मशहूर रहे अभिनेता इमरान हाशमी ने धीरे धीरे खुद को एक बेहतरीन अदाकार के रूप में स्थापित करने में सफल रहे हैं. मगर उन्हें सफलता के साथ असफलता का भी दंश झेलना पड़ा. कुछ समय पहले इमरान हाशमी ने फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ का निर्माण करने के साथ साथ इसमें अभिनय भी किया था. इस फिल्म से उन्हें काफी उम्मीदें थीं.  मगर इसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था. इसके बाद इमरान हाशमी ने ‘टाइगर’ और ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ वेब सीरीज में अभिनय कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक नई पहचान बनायी. इन दिनों वह फिल्म ‘‘द बौडी’ को लेकर चर्चा में हैं.

प्रस्तुत है इमरान हाशमी से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के खास अंश…

आप अपने 16 साल के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट क्या मानते हैं ?

करियर की पहली फिल्म ‘‘फुटपाथ’’ जाहिर सी बात है कि करियर की शुरूआत पहली फिल्म की वजह से ही होती है. उसके बाद फिल्म ‘‘मर्डर’ एक बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म से मेरी एक ऐसी छवि बन गई थी, जिसे मैंने तोड़ने की बहुत कोशिश की. मुझे लगता है बौलीवुड का यह ढर्रा है कि आप अपनी ईमेज बदलने की जितनी कोशिश करेंगे, इंडस्ट्री आपको उसी तरह के बौक्स में बांधना चाहेगी. अब तक तो दर्शक भी कलाकर को उसी ईमेज में देखना चाहते थे. पर मुझे दर्शकों ने दूसरे किरदारों में भी पसंद किया.  इसके बाद फिल्म ‘‘शंघाई’’ एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. इस फिल्म को लोगों ने बहुत पसंद किया था. पर दूसरा बहुत बड़ा टर्निंग प्वौइंट ‘जन्नत’ था. फिल्म ‘जन्नत’,‘मर्डर’ से अलग तरह की फिल्म थी, लेकिन लोगों ने बहुत पसंद किया. इसकी प्रेम कहानी लोगों को पसंद आयी. फिर ‘वंस अपौन ए टाइम इन मुंबई’ और ‘गैंगस्टर’ भी टर्निंग प्वाइंट रहे.मुझे लगता है कि वेब सीरीज ‘बार्ड आफ ब्लड’ भी एक टर्निंग प्वौइंट हो सकता है. क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर की है. सोशल मीडिया से भी मुझे इसके चलते बहुत ज्यादा प्यार मिल रहा है.

वैसे ‘डर्टी पिक्चर’ भी टर्निंग प्वौइंट थी. इसमें अलग किस्म का किरदार किया, जिसे लोगों ने पसंद किया. मेरी एक बेहतरीन फिल्म ‘आवारापन’ रही. हालांकि यह फिल्म बाक्स औफिस पर लुढ़क गयी थी. पर यह अलग किस्म की फिल्म थी. मुझे लगता है कि यह गलत समय पर आई थी. इसकी मार्केटिंग भी नहीं की गई थी.यही वजह है कि उस वक्त जिन लोगों ने फिल्म ‘आवारापन’ को थिएटर में नहीं देखा उन्होंने बाद में इस फिल्म को खोजा. उनकी समझ में आया कि यह अच्छी फिल्म थी, इसे थिएटर में देखना चाहिए था. आज तेरह साल बाद भी लोग ट्वीटर और सोशल मीडिया पर इसकी एनिवर्सरी मनाते हैं.

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आपकी एक वेब सीरीज ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ का क्या रिस्पौन्स मिला?

बहुत ही सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली.हमारी कोशिश थी कि हम एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रोजेक्ट बनाएं, जिसमें हमें सफलता मिली. इसे भारतीय दर्शकों के साथ साथ 190 देशों के दर्शकों ने काफी पसंद किया. हमारी इच्छा भी यही थी. जिस तरह का रिस्पांस मुझे मिला है, उससे मुझे खुशी है. मैं बहुत खुश हूं कि हम सभी ने बहुत अच्छा काम किया. एक किताब के सिनेमाईकरण@एडौप्शन से लेकर एपीसोड लिखना, 100 दिन की शूटिंग करना, पोस्ट प्रोडक्शन में रीयल फैक्ट्स और अंत में जिस तरह से इसे माउंटेन किया गया,वह सब लोगों को पसंद आया.

फिल्म की रिलीज के साथ ही दर्शकों के रिस्पौन्स मिलने लगते हैं. पर वेब सीरीज में रिस्पांस धीरे धीरे मिलता है. इस अंतर को बतौर कलाकार आप कैसा महसूस करते हैं. कलाकार के तौर पर आपको ज्यादा मजा कहां आता है ?

जब हम घर से बाहर निकलते हैं, तो हमें तुरंत रिस्पांस मिलता है. अगर हम एक रेस्टारेंट में बैठे हैं और वहां मौजूद ज्यादातर लोग हमारे पास आकर फोटो खींचना शुरू कर देते हैं, तो हमें समझ में आ जाता है कि हमारे वेब सीरीज को देखा गया. वहां मौजूद लोगों में से सत्तर प्रतिशत लोगों ने आकर मुझे गले लगा कर या हाथ मिलाकर कहा कि बड़ा अच्छा शो है. इसके मायने कि हमारा प्रयास सफल रहा. सोशल मीडिया से भी एक बहुत बड़ा पैरामीटर मिल जाता है कि आप कितना सफल हैं. ओटीटी प्लेटफौर्म हमें कोई आंकड़े नहीं देता है. पर फिल्मों के रिलीज के साथ हमें तुरंत आंकड़े व दर्शकों का रिस्पांस मिलना शुरू हो जाता है. हमें फिल्म का वीकेंड पर या अंतिम बाक्स आफिस कलेक्शन भी पता चलता है. इससे समझ में आ जाता है कि लोग हमसे कितना खुश हैं. मैं ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स से बहुत खुश हूं. दर्शकों ने इस पर हमारी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘टाइगर’’ को दर्शकों नेटफ्लिक्स पर काफी पसंद किया था. अब ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ भी काफी पसंद किया.

बौलीवुड में जब भी किसी किताब पर फिल्म बनती है, वह असफल हो ती रही हैं. जबकि ‘‘द बार्ड आफ ब्लड’’ के साथ ऐसा नहीं हुआ? इसके लिए आप लोगों ने किस तरह की सावधानी बरती थी ?

बौलीवुड में जब हम किताब का सिनेमाईकरण @अडौप्ट करते हैं, तो दो घंटे की फिल्म के लिए बहुत सारी चीजें कट जाती हैं. यह सब एडौप्ट करने वाले लेखक व निर्देशक के थौट प्रोसेस पर बहुत सारी चीजें निर्भर करती हैं. वह अपनी सोच के अनुरूप तय करता है कि किताब से क्या नहीं रखना चाहिए. ऐसे में लेखक के अंदर कला होनी चाहिए कि वह सही ढंग से कर पाए. इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या बीच में गाने पिरोने में हो जाती है, जो कि किताब में नहीं होते हैं. इससे भी पटकथा खराब हो जाती है.पर बौलीवुड में गानों की जरूरत है. जबकि वेब सीरीज में गाने रखने की जरुत नहीं पड़ती.

इसके अलावा ‘वेब सीरीज’ में 7 से 15 एपीसोड होते हैं, हर एपीसोड तीस से पचास मिनट का होता है.तो यहां किताब की हर बात को सही ढंग से पिरोया जा सकता है. यानी कि किताब में दर्ज किसी भी हिस्से को हटाने की जरुरत नहीं.

बल्कि चाहें तो चीजों को जोड़ भी सकते हैं. मसलन-वेब सीरीज ‘द बार्ड आफ ब्लड’ में हमने दो किरदार जोड़ने के अलावा क्लायमेक्स को भी बदला था. इसमें एक लड़की का करेक्टर जोड़ा, जो  रोमांटिक रिलेशनशिप में है. इस वजह से किसी किताब पर वेब सीरीज ज्यादा अच्छी बन सकती है.

इसके अलावा मेरी राय में यह कहना गलत होगा कि किताबों का सही ढंग से अडौप्टेशन@ सिनेमाईकरण नहीं हो पाता. हो सकता है कि बौलीवुड में नहीं हो पा रहा है. लेकिन विदेशों में किताबों पर आधारित कई बेहतरीन फिल्में बनी हैं. वहां पर किताबें अडौप्ट अच्छे से अडौप्ट हो गई हैं.

ओटीटी प्लेटफौर्म के तहत अमैजान व नेटफ्लिक्स के अलावा कई छोटे-छोटे दूसरे प्लेटफौर्म भी आ गए हैं. जहां पर काफी वाहियात चीजें भी दिखाई जा रही हैं. क्या आपने कुछ देखा है ?

मैंने नहीं देखा.शायद मैं देखना भी नहीं चाहूंगा.मैं नेटफ्लिक्स पर ज्यादा ध्यान देता हूं. नेटफ्लिक्स पर क्वालिटी काफी अच्छी आती है. अच्छे कौंसेप्ट पर ही फिल्में व वेब सीरीज आ रही हैं. नेटफ्लिक्स पर काफी रीयल चीजें ही आती हैं. तो नेटफ्लिक्स अच्छा है.

आपको अपनी ईमेज को बदलने में सोशल मीडिया की मदद मिली या यह सिनेमा में आए बदलाव से संभव हो पाया ?

मुझे नहीं लगता है कि सोशल मीडिया की वजह से कुछ बदलाव होता है. पर हां, सोशल मीडिया व इंटरनेट की वजह और अलग अलग प्लेटफार्म की वजह से अच्छी फिल्में बनने लगी हैं, जिसका फायदा हर कलाकार की तरह मैं भी ले रहा हूं. अब ऐसी फिल्में भी बन रही हैं, जिन्हें आप थिएटर में रिलीज नहीं कर सकते हैं. मसलन- बार्ड औफ ब्लड, को थिएटर@सिनेमाघरों में रिलीज नहीं कर सकते. सिनेमाघर वाली फिल्म में 5 गाने आपको डालने पड़ेंगे. जबकि ‘बार्ड आफ ब्लड’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म है. इसमें अलग तरह का अभिनय है.‘बार्ड आफ ब्लड’ में बहुत कुछ ऐसा है, जो कि सिर्फ सिनेमाघर जाने वाले दर्शकों के पल्ले ही नहीं पड़ेगा.  पर ओटीटी प्लेटफौर्म पर वह उस चीज को पसंद कर रही है. तो इंटरनेट, ओटीटी प्लेटफौर्म और सोशल मीडिया की वजह से यह बहुत बड़ा बदलाव आया है. आज लोग अपने सोच, अपनी पसंद व नापसंद को जाहिर कर रहे हैं.

पहले हमें पता ही नहीं था कि लोगों को क्या पसंद आता है. निर्माता ने कहा कि दर्शक आपको इसी ईमेज में देखना चाहता है, तो हम उसकी बात को आंख मूंदकर मान लेते थे. अब आम जनता बौक्स औफिस कलेक्शन को भी जानती है. आप अपनी इमारत से नीचे उतरें, तो वाचमैन को भी पता होगा कि आपकी फिल्म की ओपनिंग क्या है. अब इंटरनेट बहुत बड़ी चीज हो गई है.

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लेकिन आपको ऐसा नहीं लगता है कि सोशल मीडिया लोगों तक पहुंचने में जहां आपकी मदद कर रहा है, वहीं कहीं ना कहीं आपके स्टारडम को नुकसान भी पहुंचा रहा है ?

मुझे नहीं लगता कि सोशल मीडिया नुकसान पहुंचा रहा है. हां! अब कलाकार के लिए एक अलग तरह का ट्रेंड बन गया है. कलाकार किस तरह से सोशल मीडिया का उपयोग करते है, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. कुछ कलाकार हर दिन कुछ ना कुछ अपडेट डालते रहते हैं. पर इसका मतलब यह नहीं है कि अगर आप अगर रोज कुछ ना कुछ ट्वीट करोगे, तो बहुत ज्यादा सफलता पाओगे. यह कोई कभी भी नहीं बता सकता कि एक कलाकार स्टार  स्टार कब और कैसे बनता है. कुछ ऐसे स्टार भी हैं, जो आज भी सोशल मीडिया पर नहीं हैं.

जब सोशल मीडिया नहीं था, तब स्टार सुपरस्टार जैसी पदवी मिला करती थी. अब वह सब कुछ खत्म हो चुका है.दूसरी बात सोशल मीडिया के चलते इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि वह बौक्स औफिस पर आपके सोशल मीडिया के फालोअवर्स आपकी फिल्म देखने सिनेमाघर मे आएंगे ?

आपने कदम सही कहा. अब सुपर स्टार कोई नही रहा. सोशल मीडिया उसी तरह से हो गया जैसे कि  आज से छह सात वर्ष पहले हम किसी शौपिंग मौल में जाकर नाच गा कर अपनी फिल्म का प्रमोशन करते थे, जहां दो से पांच हजार लोग तो कम से कम इकट्ठा हो ही जाते थे. फिर भी फिल्म की ओपनिंग नहीं हो पाती थी. लोग स्टार को देखने के लिए आए, लेकिन उनको फिल्म व उसकी कहानी पसंद नहीं, तो वह टिकट नहीं खरीदेंगे. वैसा ही सोशल मीडिया पर आपके बहुत सारे चाहने वाले होंगे, करोड़ों फालोअर्स होंगे, लेकिन वह अपनी खुद की पसंद की फिल्म के ही टिकट खरीदेंगे. अब लोगों के पास दिमाग है कि इस स्टार को तो हम पसंद करते हैं,  लेकिन फिल्म पसंद नहीं आने वाली, इसलिए टिकट नहीं खरीदेंगे.

क्या दूसरी वेब सीरीज करने का इरादा है ?

अभी फिलहाल नहीं.. इन दिनों अपनी पांच फिल्मों में व्यस्त हूं. मगर इसका दूसरा सीजन जब बनेगा, तब जरुर करुंगा.

आपकी नई फिल्म ‘‘द बौडी’’ क्या है?

यह फिल्म एक सफलतम स्पेनिश फिल्म का भारतीयकरण है. यह फिल्म एक रात की कहानी है. अस्पताल के मुर्दाघर से एक बौडी@ शव गायब हो जाता है. यह बौडी एक सफल औरत की लाश@शव था. इस अनोखे केस की जांच करने के लिए जांच अधिकारी जयराज आते हैं. बौडी कहां गई, कोई सुराग नही. सवाल है कि इस बौडी को कोई क्यों चुराना चाहेगा ? क्या वह बौडी, बौडी थी. क्योंकि मेडिकल टर्म्स में कैटल अप्सी एक ऐसी चीज है, जहां पर कभी-कभी बौडी उठकर भी निकलती है. जैसे भूत का कांसेप्ट होता है. जांच अधिकारी को सबसे पहले इस महिला के पति यानी कि मेरे किरदार पर शक होता है. क्योंकि अगर इस चीज का फायदा किसी को होना है, तो उसके पति को होना था. यहां से कहानी शुरु होती है. किसने क्या किया? वजह क्या थी? कई सवाल हैं. जांच अधिकार ने पूरे मौल को चारों तरफ से बंद करा दिया है.

फिल्म में एक दूसरी लड़की है, जिसके साथ मेरे किरदार का अफेयर चल रहा है.फिल्म खत्म होने से पहले दर्शक अंदाजा नही लगा सकता कि सच क्या है?

आप अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगे?

यह एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म है. इसलिए अपने किरदार के बारे में ज्यादा विस्तार से बता नही पाउंगा. मैंने अजय का किरदार निभया है, जो कि प्रोफेसर है और इस अमीर औरत से शादी की है. तथा इसके साथ इसी के घर में घर जमाई बनकर रहता है. बीवी मर जाती है, तो जांच अधिकारी अजय को बुलाते हैं. फिर सारे पन्ने खुलने शुरू होते हैं. एक दूसरी औरत @लड़की से अफेयर की बात भी सामने आती है. कुछ अतीत भी है.

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आपको इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात नजर आयी कि आपने फिल्म करने के लिए हामी भरी ?

मैंने स्पेनिश फिल्म देखी और मुझे यह फिल्म बहुत पसंद आयी. पूरी फिल्म अनप्रिडिक्टेबल थी. थ्रिलर है.इसलिए मुझे लगा कि यह बहुत अलग फिल्म है, जिसे करना चाहिए.

सोशल मीडिया पर आप किस बारे में ज्यादा लिखना पसंद करते हैं या किस चीज पर अपनी राय देते हैं?

मैं पौलीटिकल मामले में ज्यादा कमेंट नहीं करता हूं. फिल्मों को लेकर ही बात करता हूं. संजीदा विषय पर बात करना मैंने बंद कर दिया है.

इंटरव्यू की कैसे करें तैयारी  

जब हम इंटरव्यू के लिये जाते हैं तो हमें कुछ सवाल परेशान करते रहते हैं कि मेरा इंटरव्यू कैसा रहेगा, मैं सेलेक्ट हो भी पाऊंगा की नहीं. पता नहीं मैं इंटरव्यूवर के सामने अच्छी छवि बना पाऊंगा की नहीं. इन सब सवालों से बचना चाहते हैं तो इंटरव्यू से पहले करें ये तैयारी.

क्या  होता है इंटरव्यू

इंटरव्यू में आपकी योग्यता का आकलन किया जाता है जो कि परीक्षा के अंत में आयोजित होता है. इंटरव्यू के जरिये किसी व्यक्ति की सोचने समझने की सकती, उसका बोलने का तरीका, उसकी वेशभूषा  और बौडी लैंग्वेज के बारे में पता चलता है व्यक्ति का आत्मविश्वास और कंपनी के प्रति उसका झुकाव और काम के प्रति उसकी रूचि इन सभी के बारे में जानने के लिये ही इंटरव्यू का आयोजन कराया जाता है.  हर कोई अपने लिए अच्छी जौब पाना चाहता है और अच्छी सैलरी की उम्मीद करता है इसके लिए इंटरव्यू में भी अच्छा परफौर्म दिखाना बहुत जरूरी है. जौब या नौकरी के लिए अप्लाई करने के बाद एक सवाल जो बहुत लोगों को तंग करता है. वो यही है कि आखिर इंटरव्यू अथवा साक्षात्कार की तैयारी करें कैसे. कैसे तैयारी करेंगे तो इंटरव्यू लेने वाले को हम इम्प्रेस कर पाएंगे.

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रिसर्च करें

अगर आप किसी कंपनी में इंटरव्यू  देने जा रहे हैं तो सबसे पहले उस कंपनी के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर लें जैसे कि कंपनी क्या करती है, टीम मेंबर, करेक्ट प्रोजेक्ट नई घोषणा के बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए. जिससे की इंटरव्यूवर को लगेगा कि आपकी कम्पनी की तरफ वाकई दिलचस्पी है और आप कम्पनी की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे.

रिज्यूमे में लिखे सही जानकारी

अपने रिज्यूमे में एक दम सही जानकारी दें. कोई भी झूठी बात न लिखें अगर इंटरव्यू में उससे संबंधित कुछ पूछते हैं और आप जवाब नहीं दे पाते है तो आपका गलत प्रभाव पड़ेगा और आती हुई नौकरी आपके हाथों से जा भी सकती है.

पहनावे की भी है वैल्यू

इंटरव्यू में पहने जाने वालें कपड़ों को पहले से ही तैयार कर लें. अगर स्टार्टअप में इंटरव्यू देने जा रहे हैं तो सेमीफौर्मल (कैज्यूअल/फौर्मल शर्ट और जींस/पैंट) कपड़े और अगर कौर्पोरेट में जौब कर रहे है तो फौर्मल (फौर्मल शर्ट और पेंट) पहनकर जाएं. आपके कपड़ों से भी आपके व्यक्तित्व की पहचान होती है .

बौडी लैंग्वेज हो सही

आपकी बौडी लैंग्वेज आपके बारे में सब बता देती है इसलिए इस बात का ध्यान रखें की इंटरव्यू सिर्फ आपके शब्दों या ज्ञान का ही नहीं है आपकी शारारिक क्रियाओं का भी. ऐसा नहीं हो की इंटरव्यूवर आपका इंटरव्यू ले रहा है और आप कहीं और देख कर बात कर रहे हैं इससे आपका इंप्रेशन खराब होता है जब आप इंटरव्यू के लिये रूम में जाते है और जब तक बाहर आते है आपका इंटरव्यू जारी रहता है.

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समय का रखें ख्याल

इंटरव्यू से कम से कम 15  मिनट पहले पहुंचे. जिससे की आप अच्छे से रिलैक्स हो सकें और वहां के वातावरण के बारे में भी अच्छे से जान सकें. जिस भी कम्पनी में आपका इंटरव्यू है उसकी लोकेशन पहले से ही पता कर लें जिससे की आप गलत एड्रेस पर न जाएं और सही समय पर कम्पनी पहुंच जाएं.

जानें, कैसे बनाएं काजू और मटर की करी

आज आपको काजू और हरे मटर से तैयार की गई करी के बारे में बताएंगे. जिसे काफी सारे मसाले डालकर बनाया जाता है. इसे आप चावल या रोटी के साथ सर्व कर सकते हैं. तो चलिए जानते हैं, काजू और मटर की करी के बारे में.

सामग्री

ड्राई काजू (250 ग्राम)

मेथीदाना (1 टी स्पून)

लाल मिर्च (3-4 टी स्पून)

प्याज,  टुकड़ों में कटा हुआ (आवश्यकतानुसार)

कोकोनट मिल्क एक्सट्रैक्ट (200 मिली)

इलाइची (1)

दालचीनी (1)

जीरा पाउडर (2 टी स्पून)

धनिया पाउडर (1 टी स्पून)

हल्दी पाउडर (1/4 टी स्पून)

कढ़ीपत्ता (1)

लौंग (1)

नमक (स्वादानुसार)

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बनाने की वि​धि

उबले हुए पानी में काजू को भिगो दें, इसमें एक छोटा चम्मच सोडा डालकर पूरी रात भिगा रहने दें.

इन्हें कई बार पानी से धो लें और तब तक उबालें जब यह नरम न हो जाए, उबालने के बाद इन्हें ठंडे पानी में धोएं.

एक पैन में तेल गर्म करें और इसमें कढ़ीपत्ता डालें, प्याज डालें और इसे हल्का ब्राउन होने तक फ्राई करें.

इसमें काजू डालें और इसे अच्छी तरह मिलाएं और इसमें नमक डालकर 5 से 10 मिनट तक पकाएं.

इसमें नारियल का दूध डालें और इसमें उबाल आने दें और इसे चावल या रोटी के साथ सर्व करें.

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शरदकालीन गन्ने की वैज्ञानिक खेती ऐसे करें

डा. आरएस सेंगर, डा. मनोज

कुमार शर्मा और आलोक कुमार सिंह

शरदकालीन गन्ने की खेती जो किसान भाई करना चाहते हैं तो इस के लिए सही समय अक्तूबर नवंबर माह का होता है. गन्ना घास समूह का पौधा है. इस का इस्तेमाल बहुद्देश्यीय फसल के रूप में चीनी उत्पादन के साथसाथ अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों जैसे कि पेपर, इथेनाल और दूसरे एल्कोहल से बनने वाले कैमिकल, पशु खाद्यों, एंटीबायोटिक्स, पार्टीकल बोर्ड, जैव उर्वरक व बिजली पैदा करने के लिए कच्चे पदार्थ के?रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

गन्ने को खासतौर पर व्यापारिक चीनी उत्पादन करने वाली फसल के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है, जो कि दुनिया में उत्पादित होने वाली चीनी के उत्पादन में तकरीबन 80 फीसदी योगदान देता है. गन्ने की खेती दुनियाभर में पुराने समय से ही होती आ रही है, पर 20वीं सदी में इस फसल को एक नकदी फसल में रूप में पहचान मिली है.

भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित होने के चलते गन्ने का इस में खासा योगदान है. गन्ने के क्षेत्र, उत्पादन व उत्पादकता में भारत दुनियाभर में दूसरे नंबर पर है. वर्तमान में गन्ना उत्पादन में भारत की विश्व में शीर्ष देशों में गिनती होती है. वैसे, ब्राजील व क्यूबा भी भारत के तकरीबन बराबर ही गन्ना पैदा करते हैं. भारत में 4 करोड़ किसान रोजीरोटी के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर निर्भर हैं.

गन्ने के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि देश में निर्मित सभी प्रमुख मीठे उत्पादों के लिए गन्ना एक प्रमुख कच्चा माल है. इतना ही नहीं, इस का इस्तेमाल खांड़सारी उद्योग में भी किया जाता?है.

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पंजाब, हरियाणा मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं. मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और असम के कुछ इलाकों में भी गन्ना पैदा किया जाता है, लेकिन इन राज्यों में उत्पादकता बहुत कम है. इस के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता?है.

कुल उत्पादित गन्ने का 40 फीसदी हिस्सा चीनी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश देश की कुल गन्ना उपज का 35.8 फीसदी, महाराष्ट्र, 25.4 फीसदी और तमिलनाडु 10.3 फीसदी पैदा करते हैं यानी ये तीनों राज्य देश के कुल गन्ना उत्पादन का  72 फीसदी उत्पादन करते?हैं.

गन्ने के बीज का चयन करते समय यह ध्यान रखें कि गन्ना बीज उन्नत प्रजाति का हो, शुद्ध हो व रोगरहित होना चाहिए. गन्ने की आंख पूरी तरह विकसित और फूली हुई हो. जिस गन्ने का छोटा कोर हो, फूल आ गए हों, आंखें अंकुरित हों या जड़ें निकली हों, ऐसा गन्ना बीज उपयोग न करें.

शरदकालीन गन्ने की बोआई के लिए अक्तूबर माह का पहला पखवाड़ा सही है. बोआई के लिए पिछले साल सर्दी में बोए गए गन्ने के बीज लेना अच्छा रहेगा. बोने से पहले खेत की तैयारी के समय ट्राईकोडर्मा मिला हुआ प्रेसमड गोबर की खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग जरूर करें.

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कैसे बचाएं कीटों से

जिन खेतों में दीमक की समस्या है या फिर पेड़ी अंकुर बेधक कीटों की समस्या ज्यादा होती?है, वहां पर इस की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 6.2 ईसी 5 लिटर प्रति हेक्टेयर या फ्लोरैंटो नीपोल 8.5 ईसी 500 से 600 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर का 1,500 से 1,600 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

गन्ने की खेती के लिए जैव उर्वरक : शोध के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि गन्ने की खेती के लिए जैव उर्वरक काफी फायदेमंद साबित होते?हैं. सही माने में देखा जाए तो जैविक खाद लाभकारी जीवाणुओं का ऐसा जीवंत समूह है जिन को बीज जड़ों या मिट्टी में प्रयोग करने पर पौधे को अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व मिलने लगते?हैं. साथ ही, मिट्टी की जीवाणु क्रियाशीलता व सामान्य स्वास्थ्य में भी बढ़वार देखी गई है.

गन्ने की खेती के लिए जीवाणु वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन स्तर का प्रवर्तन कर उसे पौधों के लायक बना देते?हैं. साथ ही, यह पौधे के लिए वृद्धि हार्मोन बनाते?हैं. अकसर देखा गया?है कि एसीटोबैक्टर, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम वगैरह ऐसे जीवाणु?हैं, जो गन्ने की खेती को फायदा पहुंचाते हैं.

जैविक खाद के बेअसर होने की वजह?: प्रभावहीन जीवाणुओं का उपयोग, जीवाणु तादाद में कम होना, अनचाहे जीवाणुओं का ज्यादा होना, जीवाणु खाद को उच्च तापमान या सूरज की रोशनी में रखना, अनुशंसित विधि का ठीक से प्रयोग न करना, जीवाणु खाद को कैमिकल खाद के साथ प्रयोग करना, इस्तेमाल के समय मिट्टी में तेज तापमान या कम पानी का होना, मिट्टी का ज्यादा क्षारीय और अम्लीय होना, फास्फोरस और पोटैशियम की अनुपलब्धता और मिट्टी में जीवाणुओं व वायरस का अधिक होना भी उत्पादन को प्रभावित करता है.

कितनी करें सिंचाई?: यह बात सही है कि जैविक खाद कैमिकल खाद की जगह नहीं ले सकती, लेकिन किसान अगर दोनों का सही मात्रा में अपनी खेती में इस्तेमाल करते?हैं, तो माली फायदे के साथ में पानी भी दूषित नहीं हो सकेगा.

जैविक खाद का इस्तेमाल करना किसानों के लिए हितकारी ही नहीं, लाभकारी भी होगा. उष्णकटिबंधीय इलाकों में पहले 35 दिनों तक हर 7वें दिन, 36 से 110 दिनों के दौरान हर 10वें दिन, बेहद बढ़वार की अवस्था के दौरान 7वें दिन और पूरी तरह पकने की अवस्था के दौरान हर 15 दिन बाद सिंचाई की जानी चाहिए. इन दोनों को बारिश होने के मुताबिक अनुकूलित करना पड़ता है. गन्ने की खेती में तकरीबन 30 से 40 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है.

कम पानी में कैसे हो खेती

गन्ना एक से अधिक पानी की जरूरत वाली फसल है. एक टन गन्ने के उत्पादन के लिए तकरीबन 250 टन पानी की जरूरत होती है. वैसे तो बिना उत्पादन में कमी लाए पानी की जरूरत को अपनेआप में कम नहीं किया जा सकता?है, मगर सिंचाई के लिए पानी की जरूरत में कमी पानी को उस के स्रोत से पाइपलाइन के द्वारा खेत जड़ क्षेत्र तक ला कर रास्ते में होने वाले रिसाव के कारण नुकसान को रोक कर या फिर सूक्ष्म सिंचाई विधियों को अपना कर लाई जा सकती है.

जब पानी की कमी के हालात हों, तब हर दूसरे हफ्ते में पानी से सिंचाई की जा सकती है या फिर मल्च का प्रयोग कर के पानी की जरूरत में कमी लाई जा सकती?है. सूखे के हालात में 2.5 फीसदी यूरिया, 2.5 फीसदी म्यूरेट औफ पोटाश के?घोल को पाक्षिक अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव कर उस के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

पानी के सही प्रयोग के लिए टपक सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त रखना बेहद जरूरी है. इस के लिए समयसमय पर पानी की नालियों के अंत के ढक्कन खोल कर इन में से पानी को तेजी से बह कर साफ करें. टपक प्रणाली के अंदर की सतह पर जमे पदार्थ को हटाने के लिए 30 फीसदी हाइड्रोक्लोरिक एसिड को इंजैक्ट करें. जब सिंचाई के पानी का स्रोत नदी, नहर और खुला कुआं वगैरह हों, तो व्यक्ति कवच वगैरह के लिए 1 पीपीएम ब्लीचिंग पाउडर से?साफ करना चाहिए. एसिड उपचार और साफ करते समय यह पानी की क्वालिटी पर निर्भर करती है.

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गन्ने के साथ लें दूसरी फसल भी

गन्ने की शुद्ध फसल में गन्ने की बोआई 75 सैंटीमीटर और आलू, राई, चना, सरसों के साथ मिलवां फसल में 90 सैंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए. एक आंख का टुकड़ा लगाने पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज लगेगा. 2 आंख के टुकड़े लगाने पर 20 क्विंटल बीज लगेगा.

पौलीबैग यानी पौलीथिन के उपयोग से बीज की बचत होगी और ज्यादा उत्पादन मिलेगा. बीजोपचार के बाद ही बीज बोएं. 205 ग्राम अर्टन या 500 ग्राम इक्वल को 100 लिटर पानी में घोल कर उस में तकरीबन 25 क्विंटल गन्ने के टुकड़े उपचारित किए जा सकते?हैं.

जैविक उपचार प्रति एकड़ 1 लिटर एसीटोबैक्टर प्लस 1 लिटर पीएसबी का 100 लिटर पानी में घोल बना कर रासायनिक बीजोपचार के बाद गन्ने के टुकड़ों को सूखने के बाद सही घोल में 30 मिनट तक डुबो कर उपचार करने के बाद ही बोआई करें.

गन्ने को भी दें खादउर्वरक : गन्ने में खादउर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी जांच के आधार पर जरूरत के मुताबिक पोषक तत्त्वों का उपयोग कर के उर्वरक खर्च में बचत कर सकते हैं. अगर मिट्टी जांच न हुई हो तो बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 60 से 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 70 से 80 किलोग्राम फास्फोरस, 20 से 40 किलोग्राम पोटाश व 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए.

गन्ने की लगाई तकरीबन 10 फीसदी फसल खराब होने की मुख्य वजह फसल को दी गई खाद के साथ पोटाश की सही मात्रा का उपलब्ध न होना है.

शोधों से पता चला है कि गन्ने की खेती में अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए प्रति एकड़ तकरीबन 33 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है, इसलिए गन्ने की खेती में पोटाश का प्रयोग जरूर करें.

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खुद का पाला सांप

तारीख: 5 जनवरी, 2019समय: रात के 10 बजेस्थान: ग्वालियर का थाना गोला का मंदिर.

थाना गोला का मंदिर के थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा क्षेत्र में गश्त कर के अभीअभी लौटे थे. तभी उन के थाना क्षेत्र की गोवर्धन कालोनी में रहने वाली 29-30 वर्षीय रश्मि नाम की महिला कन्हैया, तेजकरण व कुछ अन्य लोगों के साथ थाने पहुंची.

प्रवीण शर्मा ने रश्मि से आने का कारण पूछा. इस पर उस ने बताया कि वह अपने 14-15 साल के 2 बेटों के साथ गोवर्धन कालोनी में रहती है. सुबह उस का बेटा सत्यम रोज की तरह आदर्श नगर में कोचिंग के लिए गया था, पर वह वापस नहीं लौटा. रश्मि के साथ 25-26 साल का एक युवक विवेक उर्फ राहुल राजावत भी था. रश्मि ने उसे अपनी बहन का बेटा बताया.

थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा पूछताछ कर ही रहे थे कि राहुल ने उन्हें बताया कि करीब 2-ढाई महीने पहले सत्यम का इलाके के कुछ लड़कों से झगड़ा हुआ था. उन लड़कों ने सत्यम को बंधक बना कर मारपीट भी की थी. उसे शक है कि सत्यम के गायब होने के पीछे उन्हीं लड़कों का हाथ है.

मामला गंभीर था, इसलिए प्रवीण शर्मा ने सत्यम की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कर के इस घटना की जानकारी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर नवनीत भसीन व सीएसपी मुनीष राजौरिया को दे दी. इस के साथ ही उन्होंने अपनी टीम को सत्यम की खोज में लगा दिया.

पूरी रात गुजर गई, लेकिन न तो पुलिस को सत्यम के बारे में कुछ खबर मिली और न ही सत्यम घर लौटा. अगले दिन सुबहसुबह राहुल रश्मि को ले कर थाने पहुंच गया. उस ने थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा से उन 3 लड़कों के खिलाफ काररवाई करने को कहा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

बच्चों के झगड़े होते रहते हैं, जो खुद ही सुलझ भी जाते हैं. टीआई शर्मा को बच्चों के झगड़े को इतना तूल देने की बात गले नहीं उतर रही थी. सत्यम को लापता हुए 24 घंटे हो चुके थे लेकिन उस का कुछ पता नहीं चल पा रहा था.

इस घटना की जानकारी ग्वालियर रेंज के डीआईजी मनोहर वर्मा को मिली तो उन्होंने अपराधियों के खिलाफ तत्काल सख्त काररवाई का निर्देश दिया. थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा ने विवेक उर्फ राहुल के शक के आधार पर उन तीनों लड़कों को थाने बुला लिया, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

प्रवीण शर्मा ने तीनों लड़कों से पूछताछ की. उन से पूछताछ कर के टीआई शर्मा समझ गए कि सत्यम के गायब होने में उन तीनों की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए पूछताछ के बाद उन तीनों को छोड़ दिया गया.

इस बात पर राहुल उखड़ गया और पुलिस पर मिलीभगत का आरोप लगाने लगा. इतना ही नहीं, उस ने शहर के एकदो राजनीति से जुड़े रसूखदार लोगों से भी टीआई प्रवीण शर्मा को फोन करवा कर दबाव बनाने की कोशिश की. उस का कहना था कि पुलिस उन 3 लड़कों के खिलाफ सत्यम के अपहरण का केस दर्ज नहीं कर रही है.

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लापता हो जाने के बाद से ही राहुल राजावत अपनी रिश्ते की मौसी के साथ सत्यम की खोज में लगा था. लेकिन इस दौरान थानाप्रभारी ने यह बात नोट कर ली थी कि राहुल की रुचि सत्यम से अधिक उन 3 लड़कों को आरोपी बनवाने में है, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

यह बात खुद राहुल को संदेह के दायरे में ला रही थी. इसी के मद्देनजर टीआई प्रवीण शर्मा ने अपने कुछ लोगों को राहुल की हरकतों पर नजर रखने के लिए तैनात कर दिया.

इतना ही नहीं, वह इस बात की जानकारी जुटा चुके थे कि जिस रोज सत्यम गायब हुआ था, उस रोज राहुल खुद ही उसे अपनी कार से कोचिंग सेंटर छोड़ने आदित्यपुरम गया था. इस बारे में उस का कहना था कि उस ने सत्यम को कोचिंग सैंटर के पास पैट्रोल पंप पर छोड़ दिया था.

इस पर पुलिस ने राहुल को बिना कुछ बताए कोचिंग सेंटर के आसपास लगे सीसीटीवी के फुटेज खंगाले, जिन में न तो राहुल वहां दिखाई दिया और न ही उस की कार दिखी.

सब से बड़ी बात यह थी कि उस रोज सत्यम कोचिंग सेंटर पहुंचा ही नहीं था. इस से राहुल पुलिस के राडार पर आ गया. टीआई शर्मा ने इस बात पर भी गौर किया कि राहुल सत्यम के बारे में पूछताछ करने उस की मां के साथ तो थाने आता था, लेकिन सत्यम के पिता के साथ वह कभी नहीं आया.

इसलिए पुलिस ने राहुल की घटना वाले दिन की गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाई, जिस से यह बात सामने आई कि उस रोज राहुल के साथ जौरा में रहने वाली उस की बुआ का बेटा सुमित सिंह भी देखा गया था. लेकिन राहुल को घेरने के लिए पुलिस को अभी और मजबूत आधार की जरूरत थी.

यह आधार पुलिस को घटना से 4 दिन बाद 10 जनवरी को मिला. हुआ यह कि उस दिन सुबहसुबह जौरा थाने के बुरावली गांव के पास से हो कर गुजरने वाली नहर में एक किशोर का शव तैरता मिला. चूंकि सत्यम की गुमशुदगी की सूचना आसपास के सभी थानों को दे दी गई थी, इसलिए पुलिस ने शव के मिलने की खबर गोला का मंदिर थानाप्रभारी प्रवीण शर्मा को दे दी.

नहर में मिलने वाले किशोर के शव का हुलिया सत्यम से मिलताजुलता था, इसलिए पुलिस सत्यम के परिजनों को ले कर मौके पर जा पहुंची. घर वालों ने शव की पहचान सत्यम के रूप में कर दी.

शव जौरा के पास के गांव बुरावली के निकट नहर में तैरता मिला था. जिस दिन सत्यम गायब हुआ था, उस दिन इस मामले का संदिग्ध राहुल जौरा में रहने वाली अपनी बुआ के बेटे के साथ देखा गया था. राहुल द्वारा सत्यम को कोचिंग सेंटर के पास छोड़े जाने की बात पहले ही गलत साबित हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने बिना देर किए राहुल उर्फ विवेक राजावत और उस की बुआ के बेटे सुमित को हिरासत में ले लिया.

नतीजतन अब तक पुलिस के सामने शेर बन रहा राहुल हिरासत में लिए जाते ही भीगी बिल्ली बन गया. इस के बावजूद उस ने अपना अपराध छिपाने की काफी कोशिश की, लेकिन पुलिस की थोड़ी सी सख्ती से वह टूट गया.

उस ने सुमित के साथ मिल कर राहुल को नहर में डुबा कर मारने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने राहुल की वह कार भी जब्त कर ली, जिस में सत्यम को बैठा कर वह सबलगढ़ ले गया था. इस के बाद रिश्तों में आग लगा देने वाली यह कहानी इस प्रकार सामने आई—

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सत्यम के पिता मूलरूप से विजयपुर मेवारा के रहने वाले हैं. वह इंदौर के एक होटल में नौकरी करते हैं, जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए मां रश्मि दोनों बेटों के साथ ग्वालियर में रहती थी. रश्मि का परिवार पहले आदित्यपुरम में रहता था.

लेकिन कुछ महीने पहले रश्मि ने आदित्यपुरम का मकान छोड़ कर गोला का मंदिर थाना इलाके की गोवर्धन कालोनी में किराए का दूसरा मकान ले लिया था. ग्वालियर के पास ही रश्मि के एक दूर के रिश्ते की बहन भी रहती थी.

विवेक उर्फ राहुल राजावत उसी का बेटा था. चूंकि रश्मि रिश्ते में राहुल की मौसी लगती थी, इसलिए उस का रश्मि के घर काफी आनाजाना हो गया था. वह जब भी ग्वालियर आता, रश्मि से मिलने उस के घर जरूर जाता था.

35 साल की रश्मि 2 बच्चों की मां होने के बाद भी जवान युवती की तरह दिखती थी. अनजान आदमी उसे देख कर उस की उम्र 25-27 साल समझने का धोखा खा जाता था. धीरेधीरे राहुल की रश्मि से काफी पटने लगी थी. पहले दोनों के बीच रिश्ते का लिहाज था, लेकिन वक्त के साथ उन के बीच दुनिया जहान की बातें होने लगीं. इस से दोनों के रिश्ते में दोस्ती की झलक दिखाई देने लगी.

इसी बीच राहुल पढ़ाई करने गांव से ग्वालियर आया तो रश्मि ने अपने पति से कह कर राहुल को अपने ही घर में रख लिया. चूंकि रश्मि के पति इंदौर में नौकरी करते थे सो उन्हें भी लगा कि राहुल के साथ रहने से रश्मि और बच्चों को सुविधा हो जाएगी. इसलिए उन्होंने भी राहुल को साथ रखने की अनुमति दे दी, जिस से राहुल ग्वालियर में रश्मि के साथ रहने लगा.

इस से दोनों के बीच पहले ही कायम हो चुके दोस्ताना रिश्ते में और भी खुलापन आने लगा. दूसरी तरफ काम की मजबूरी के चलते रश्मि के पति 4-6 महीने में हफ्ते 10 दिन के लिए ही घर आ पाते थे. इस में भी पिता के आने पर बच्चे उन से चिपके रहते, इसलिए वह चाह कर भी रश्मि को अकेले में अधिक समय नहीं दे पाते थे.

फलस्वरूप पति के आने पर भी रश्मि की शारीरिक जरूरतें अधूरी रह जाती थीं. ऐसे में एक बार रश्मि के पति ग्वालियर आए तो लेकिन मामला कुछ ऐसा उलझा कि वह एक बार भी उसे एकांत में समय नहीं दे सके. इस से रश्मि का गुस्सा सातवें आसमान को छूने लगा.

राहुल यह बात समझ रहा था, इसलिए उस ने रश्मि को गुस्से में देखा तो मजाक में कह दिया, ‘‘क्या बात है मौसी, मौसाजी चले गए इसलिए गुस्से में हो?’’

‘‘राहुल, तुम कभी अपनी पत्नी से दूर मत जाना.’’

राहुल की बात का जवाब देने के बजाए रश्मि ने अलग ही बात कही. सुन कर राहुल चौंक गया. उस ने सहज भाव से पूछ लिया, ‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया जो आज आप इतने गुस्से में हो?’’

राहुल की बात सुन कर रश्मि को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उस ने बात बदल दी. लेकिन राहुल समझ गया था कि असली बात क्या है. बस यहीं से उस के मन में यह बात आ गई कि अगर कोशिश की जाए तो मौसी की नजदीकी हासिल हो सकती है.

इसलिए उस ने धीरेधीरे रश्मि की तरफ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया. कभी वह रश्मि की तारीफ करता तो कभी उस की सुंदरता की. धीरेधीरे रश्मि को भी राहुल की बातों में रस आने लगा और वह उस की तरफ झुकने लगी. इस का फायदा उठा कर एक दिन राहुल ने डरतेडरते रश्मि को गलत इरादे से छू लिया.

रश्मि शादीशुदा थी, राहुल के स्पर्श के तरीके से सब समझ गई. उस ने तुरंत तुरुप का पत्ता खेलते हुए कहा, ‘‘यूं डर कर छूने से आग और भड़कती है राहुल. इसलिए या तो पूरी हिम्मत दिखाओ या मुझ से दूर रहो.’’

राहुल के लिए इतना इशारा काफी था. उस ने आगे बढ़ कर रश्मि को अपनी बांहों में जकड़ लिया, जिस के बाद रश्मि उसे मोहब्बत की आखिरी सीमा तक ले गई. बस इस के बाद दोनों में रोज पाप का खेल खेला जाने लगा. दोनों के बीच रिश्ता ऐसा था कि कोई शक भी नहीं कर सकता था.

वैसे भी राहुल घर में ही रहता था, इसलिए दोनों बेटों के स्कूल जाते ही राहुल और रश्मि दरवाजा बंद कर पाप की दुनिया में डूब जाते थे. रश्मि अनुभवी थी, जबकि राहुल अभी कुंवारा था. रश्मि को जहां अपना अनाड़ी प्रेमी मन भा गया था, वहीं राहुल अनुभवी मौसी पर जान छिड़कने लगा था.

समय के साथ दोनों के बीच नजदीकी कुछ ऐसी बढ़ी कि रात में दोनों बच्चों के सो जाने के बाद रश्मि अपने बिस्तर से उठ कर राहुल के बिस्तर में जा कर सोने लगी. अब जब कभी रश्मि का पति इंदौर से ग्वालियर आता तो रश्मि और राहुल दोनों ही उस के वापस जाने का इंतजार करने लगते.

राहुल लंबे समय से रश्मि के घर में रह रहा था. मोहल्ले में कभी उस के खिलाफ बातें नहीं हुई थीं. लेकिन जब बच्चों के स्कूल जाने के बाद रश्मि और राहुल दरवाजा बंद कर घंटों अंदर रहने लगे तो पासपड़ोस के लोगों ने पहले तो उन के रिश्ते का लिहाज किया, लेकिन बाद में उन के बीच पक रही खिचड़ी चर्चा में आ गई.

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बाद में यह बात इंदौर में बैठे सत्यम के पिता तक भी पहुंच गई. इसलिए कुछ महीने पहले उन्होंने ग्वालियर आ कर न केवल आदित्यपुरम इलाके का मकान खाली कर दिया, बल्कि राहुल को भी अलग मकान ले कर रहने को बोल दिया.

इतना ही नहीं, उन्होंने राहुल को आगे से घर में कदम रखने से भी मना कर दिया. इंदौर वापस जाने से पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सत्यम को हिदायत दी कि अगर राहुल घर आए तो वह इस की जानकारी उन्हें दे दे.

अब राहुल और रश्मि का मिल पाना मुश्किल हो गया. क्योंकि एक तो रश्मि आदित्यपुरम छोड़ कर गोवर्धन कालोनी में रहने आ गई थी. दूसरे चौकीदार के रूप में सत्यम का डर था कि वह राहुल के घर आने की खबर पिता को दे देगा. लेकिन दोनों एकदूसरे से दूर भी नहीं रह सकते थे, इसलिए एक दिन मौका देख कर राहुल रश्मि से मिलने उस के घर जा पहुंचा.

राहुल को देखते ही रश्मि पागलों की तरह उस के गले लग गई. उसे ले कर वह सीधे बिस्तर पर लुढ़क गई. राहुल भी सब कुछ भूल कर रश्मि के साथ वासना में डूब गया. लेकिन इस से पहले कि दोनों अपनी मंजिल पर पहुंचते, अचानक घर लौटे सत्यम ने मां और मौसेरे भाई का पाप अपनी आंखों से देख लिया. सत्यम को आया देख कर राहुल और रश्मि दोनों घबरा गए.

फंसने से बचने के लिए राहुल सत्यम को चाट खिलाने ले गया, जहां बातोंबातों में उस ने सत्यम से कहा, ‘‘यार मेरे घर आने की बात पापा को मत बताना.’’

‘‘ठीक है, नहीं बताऊंगा. लेकिन इस से मुझे क्या फायदा होगा?’’ सत्यम ने शातिर अंदाज से कहा तो राहुल बोला, ‘‘जो तू कहेगा, कर दूंगा. बस तू पापा को मत बोलना.’’

राहुल को लगा कि सत्यम राजी हो जाएगा. लेकिन सत्यम तेज था, वह बोला, ‘‘ठीक है, मुझे 2 हजार रुपए दो, दोस्तों को पार्टी देनी है.’’

राहुल के पास पैसों की कमी नहीं थी. उस ने सत्यम को 2 हजार रुपए दे कर उसे बाजार घूमने के लिए भेज दिया और खुद वापस रश्मि के पास लौट आया.

सत्यम बिक गया, यह जान कर रश्मि भी खुश हुई. इस से दोनों के बीच पाप की कहानी फिर शुरू हो गई. आदित्यपुरम में रश्मि और राहुल के रिश्ते की भले ही चर्चा हुई हो, लेकिन नए मोहल्ले में पहले जैसी परेशानी नहीं थी और सत्यम भी चुप रहने के लिए राजी हो गया था.

इस बात का फायदा उठा कर जहां राहुल और रश्मि अपने पाप की दुनिया में जी रहे थे, वहीं सत्यम भी इस का पूरा फायदा उठा रहा था. वह राहुल से चुप रहने के लिए पैसे लेने लगा. लेकिन धीरेधीरे सत्यम की मांगें बढ़ने लगीं.

कुछ दिन पहले उस ने राहुल को ब्लैकमेल करते हुए उस से 20 हजार रुपए का मोबाइल खरीदवा लिया. राहुल रश्मि के नजदीक रहने के लिए सत्यम की हर मांग पूरी करता रहा. कुछ दिन पहले अचानक सत्यम ने उस से नई मोटरसाइकिल खरीद कर देने को कहा.

राहुल के पास इतना पैसा नहीं था. और था भी तो वह एक लाख रुपए रिश्वत में खर्च नहीं करना चाहता था. लेकिन सत्यम अड़ गया. उस ने कहा कि अगर वह मोटरसाइकिल नहीं दिलाएगा तो वह पापा से उस के घर आने की बात कह देगा.

इस से राहुल परेशान हो गया. इसी दौरान करीब 2-3 महीने पहले सत्यम का 3 लड़कों से झगड़ा हो गया, जिस में उन्होंने सत्यम के साथ काफी मारपीट की. यह झगड़ा भी राहुल ने ही शांत करवाया था. लेकिन इस सब से उस के दिमाग में आइडिया आ गया कि इस झगड़े की ओट में सत्यम को हमेशा के लिए अपने और रश्मि के बीच से हटाया जा सकता है.

इस के लिए उस ने अपनी बुआ के बेटे सुमित से बात की तो वह इस शर्त पर साथ देने को राजी हो गया कि काम हो जाने के बाद वह उसे रश्मि के संग एकांत में मिलने का मौका ही नहीं देगा, बल्कि रश्मि को इस के लिए राजी भी करेगा.

राहुल ने उस की शर्त मान ली तो सुमित ने उसे किसी दिन सत्यम को जौरा लाने को कहा. घटना वाले दिन राहुल रश्मि से मिलने उस के घर पहुंचा तो सत्यम वहां मौजूद था.

राहुल को इस से कोई दिक्कत नहीं थी. क्योंकि राहुल जब भी रश्मि से मिलने आता था, तब सत्यम किसी न किसी बहाने से कुछ देर के लिए वहां से हट जाता था. लेकिन उस रोज वह वहीं पर अड़ कर बैठ गया.

राहुल ने उस से बाहर जाने को कहा तो सत्यम बोला, ‘‘पहले मोटरसाइकिल दिलाओ.’’

इस पर राहुल ने उसे समझाया कि तुम बाहर चलो, मैं आधे घंटे में आता हूं. फिर तुम्हारी बाइक का इंतजाम कर दूंगा. इस पर सत्यम राहुल को अपनी मां से अकेले में मिलने का मौका देने की खातिर घर से बाहर चला गया. रश्मि के साथ कुछ समय बिताने के बाद राहुल बाहर जा कर सत्यम से मिला. उस ने सत्यम से जौरा चलने को कहा.

राहुल ने उसे बताया कि जौरा में उसे एक आदमी से उधारी का काफी पैसा लेना है. वहां से पैसा मिल जाएगा तो वह उसे बाइक दिलवा देगा.

बाइक के लालच में सत्यम राहुल के साथ जौरा चला गया, जहां बुआ के घर जा कर राहुल ने सुमित को साथ लिया और तीनों वहां से आ कर सबलगढ़ के बदेहरा गांव की पुलिया पर खड़े हो गए. राहुल ने सत्यम को बताया कि जिस से पैसा लेना है, वह यहीं आने वाला है. इस दौरान सत्यम ने मुरैना ब्रांच कैनाल में झांक कर देखा तो राहुल और सुमित ने उसे पानी में धक्का दे दिया.

सत्यम को तैरना नहीं आता था, फलस्वरूप वह गहरे पानी में डूब गया. इस के बाद सुमित और राहुल ग्वालियर आ गए. इधर सत्यम के कोचिंग से वापस न आने पर रश्मि परेशान हो गई. उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी तो राहुल सत्यम के अपहरण में उन युवकों को फंसाने की कोशिश करने लगा, जिन के साथ सत्यम का झगड़ा हुआ था.

उस का मानना था कि तीनों के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज हो जाएगा तो लाश मिलने पर उन्हें हत्यारा बनाना पुलिस की मजबूरी बन जाएगी, जिस से वह साफ बच जाएगा. लेकिन ग्वालियर पुलिस ने लाश बरामद होते ही राहुल की कहानी खत्म कर दी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)

सैन्य मामले में चीन को कम मत आंकना

जापान के लिए 1945 का साल और अगस्त का महीना ऐसा काला पन्ना है जिस की इबारत अमेरिका ने ‘लिटिल बौय’ और ‘फैट मैन’ से लिखी थी. ये 2 नाम किसी इंग्लिश फिल्म के नहीं हैं, बल्कि ये तो वे महाबम थे जिन्हें दुनिया ने परमाणु बम के नाम से जाना और समझा था.

6 अगस्त, 1945 की सुबह 8 बज कर 15 मिनट पर अमेरिकी वायु सेना के कर्नल पौल टिबेट्स ने अपने बी-29 विमान ‘एनोला गे’ से ‘लिटिल बौय’ को हिरोशिमा के ऊपर गिराया था. धरती को छूते ही ‘लिटिल बौय’ ने ऐसा कुहराम मचाया था कि चंद ही पलों में वह हिरोशिमा की कुल आबादी ढाई लाख में से 30 फीसदी यानी 80 हजार लोगों को लील गया था.

अमेरिका इतने पर ही नहीं माना. 3 दिनों बाद यानी 9 अगस्त, 1945 को उस ने जापान के एक और शहर नागासाकी पर दोपहर को अपने बी-29 बमवर्षक विमान से दूसरा बम ‘फैट मैन’ गिराया था. धमाका इतना तेज था कि 8 किलोमीटर दूर बने घरों के शीशों के परखचे उड़ गए थे. बम गिरने की जगह से एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद हर चीज उजड़ गई थी.

जापान इस तबाही को आज तक नहीं भूल पाया है, जबकि अमेरिका तो तब से आज तक पूरी धरती के मुल्कों को अपने अत्याधुनिक हथियारों का डर दिखा कर उन पर अपना दबदबा बनाए हुए है.

लेकिन तब से आज तक दुनिया में बहुत बदलाव भी आए हैं. भारत के पड़ोसी देश चीन को ही देख लें. बढ़ती आबादी और बेरोजगारी से परेशान चीन ने अब दुनिया के नक्शे पर कई मामलों में अपनी छाप छोड़ी है. पहले जनसंख्या पर नियंत्रण, उस के बाद रोजगार बढ़ाने के मामले में इस रहस्यमयी देश ने जबरदस्त कामयाबी पाई है. खेल जगत में भी इस देश ने सीधे अमेरिका को चुनौती दी है, चाहे वह ओलिंपिक के पोडियम ही क्यों न हों.

इस समय अमेरिका और चीन 2 ऐसी महाशक्तियां बन चुकी हैं जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बेधड़क आमनेसामने दिखाई देती हैं. अगर अमेरिका अपनी सेना के जोर पर कमजोरों को दबाने की चाल चलता है तो चीन अपनी कूटनीति से अमेरिका के दबदबे के नीचे आने को तैयार नहीं है.

भले ही अमेरिका अपनी सैन्य ताकत में चीन से आगे खड़ा दिखाई देता है लेकिन चीन को कम आंकने की भूल किसी को भी नहीं करनी चाहिए. 1 अक्तूबर को चीन ने अपने साम्यवादी शासन के 70 साल पूरे होने पर पेइचिंग में विशाल सैन्य परेड में अपनी आधुनिक और बहुत ताकतवर मिसाइलों का भी प्रदर्शन किया था, जिसे दुनिया के सामने शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा गया था. उस की मिसाइलें कमाल की थीं.

चीन ने जिन मिसाइलों का प्रदर्शन किया, उन में इंटर कौंटिनैंटल मिसाइलें डोंगफेंग-41 और डोंगफेंग-17 भी शामिल थीं, जो 2 हजार किलोमीटर से 15 हजार किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकती हैं. डीएफ-41 दुनिया की सब से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली मिसाइल मानी जाती है. चीन ने पहली बार इस मिसाइल को परेड में दिखाया था.

याद रहे कि चीन में हुए गृहयुद्ध के बाद 1 अक्तूबर, 1949 को माओत्से तुंग ने पीपल्स रिपब्लिक औफ चाइना की स्थापना की घोषणा की थी. इस स्थापना दिवस के 70 साल पूरे होने पर आयोजित की गई सैन्य परेड में चीन ने अपने आधुनिक और बहुत शक्तिशाली हथियारों का प्रदर्शन किया. इन हथियारों में फाइटर प्लेन, एयरक्राफ्ट कैरियर, सुपरसोनिक मिसाइल और न्यूक्लियर क्षमता से लैस पनडुब्बियों का प्रदर्शन किया गया.

खतरनाक डोंगफेंग-41

यह दुनिया की सब से ताकतवर मिसाइलों में शामिल है जिस की मारक क्षमता बहुत अधिक है. सैन्य जानकारों का कहना है कि यह मिसाइल कुछ ही मिनटों में चीन से अमेरिका तक पहुंच सकती है. इस मिसाइल को दुनिया की सब से ज्यादा लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम मिसाइल माना जा रहा है, जिस की मारक क्षमता 15 हजार किलोमीटर तक है. विश्लेषकों के मुताबिक, इस मिसाइल पर एकसाथ 10 वारहैड्स फिट किए जा सकते हैं, जो एकसाथ अलगअलग टारगेट को बरबाद करने में सक्षम हैं.

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डोंगफेंग-17 भी कम नहीं

चीन ने पहली बार किसी परेड में अपनी इस घातक डोंगफेंग-17 मिसाइल का प्रदर्शन किया. यह न्यूक्लियर क्षमता से लैस ग्लाइडर है.

विश्लेषकों का कहना है कि इस ग्लाइडर की ताकत इस की हाई स्पीड है. यह बहुत ही तेज गति की वजह से ऐंटीमिसाइल डिफैंस सिस्टम को भी भेद सकती है. यह 2 किलोमीटर तक वार कर सकती है.

हाइपरसोनिक हथियार

पिछले साल अगस्त महीने में चीन ने स्काई-2 नाम के एक हाइपरसोनिक एयरक्राफ्ट का परीक्षण किया था. इस की गति आवाज से साढ़े 5 गुना ज्यादा बताई जा रही है. यह अपने साथ हाइपरसोनिक गति से हथियार भी ले जा सकता है, जिसे किसी भी तरह रोकना मुश्किल होगा.

रणनीतिकार कहते हैं कि हाइपरसोनिक टैक्नोलौजी गेमचेंजर तकनीक है. यह मौजूदा दौर की मिसाइल डिफैंस सिस्टम से कहीं आगे है. कहा जाता है कि जब मिसाइल डिफैंस सिस्टम हरकत में आएंगे, तब तक यह मार कर चुकी होगी. बताया जाता है कि चीन ने एकसाथ 3 तरह के हाइपरसोनिक विमानों का परीक्षण किया है.

स्पेस और काउंटर स्पेस

चीन ने अंतरिक्ष से निगरानी, जासूसी और टोह लेने के लिए खूब पैसा खर्च किया है. भविष्य में वह ऐसी क्षमता भी विकसित करेगा कि अंतरिक्ष से ही धरती पर मनचाही जगह मार कर पाए. चीन साल 2014 में ऐंटीसैटेलाइट मिसाइल सिस्टम का परीक्षण कर चुका है.

परमाणु हथियार

चीन लगातार नए तरह के परमाणु हथियारों को विकसित करने में लगा है. चाइना एकेडमी औफ इंजीनियरिंग इस की डिजाइनिंग और उत्पादन में मदद करती है. यह एकेडमी हथियारों की हर तरह की रिसर्च, डिजाइन और उन के तमाम पहलुओं पर काम करती है, साथ ही, चाइना नैशनल न्यूक्लियर कौर्पौरेशन यूरेनियम संवर्धन के लिए अपने 3 प्लांट्स के जरिए काम करता है.

अंडरग्राउंड सुविधाएं

चीन की अंडरग्राउंड सुविधाएं भी शानदार हैं. वह सी4आई यानी कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशंस, कंप्यूटर्स और इंटैलिजैंस के तहत प्रतिरक्षण पर काम कर रहा है. इस में मिसाइलें भी शामिल हैं. चीन ने पिछले कुछ सालों में अंडरग्राउंड उन्नत तकनीक सुविधाएं विकसित कर ली हैं. माना तो यहां तक जा रहा है कि इस समय चीन के पास जितनी आधुनिक हथियार प्रणाली है वह दुनिया के किसी भी देश के पास नहीं है. इतना ही नहीं, चीन में लगातार सैन्य अभ्यास चलते रहते हैं. इन सैन्य अभ्यासों की संख्या 18,000 के आसपास बताई गई है.

अमेरिका से नहीं डरेगा चीन

संख्याबल के लिहाज से दुनिया की सब से बड़ी सेना वाला देश चीन अपनी सेना पर पैसा खर्च करने के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे पायदान पर है. इस के सैनिकों की संख्या तकरीबन 28 लाख है. इतना ही नहीं, सेना में भरती होने की उम्र वाले युवाओं की संख्या भी चीन में सब से ज्यादा है. चीन के पास ऐसे तकरीबन 1 करोड़, 95 लाख युवा हैं. चीन के पास साढ़े 22 लाख सक्रिय सैनिक हैं जबकि 5 से 6 लाख सैनिक दूसरी जगह औपरेशंस में सक्रिय हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस तरह की सैन्य प्रदर्शनी से दुनिया, खासकर अमेरिका, को अपनी ताकत दिखाना चाहता है. एशियाई क्षेत्र में चीन अपनी असीमित ताकत का प्रदर्शन करने के साथ ही साउथ चाइना सी और पूरे एशिया में खुद को सब से ताकतवर साबित करने की कोशिश कर रहा है.

अमेरिकी रक्षा विभाग की खुफिया एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भले ही चीन के आर्थिक विकास में कुछ गिरावट देखने को मिली है, लेकिन इस ने अपनी सेना के आधुनिकीकरण के लिए 5 वर्षीय योजना के तहत बहुत अधिक निवेश किया है. अपनी सेना को अलगअलग मोरचों पर मजबूत बनाने के लिए चीन ने कई तरह के आधुनिक हथियारों को अपने बेड़े में शामिल किया है. कुछ मामलों में तो चीन ने अच्छीखासी बढ़त पहले ही हासिल कर ली है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका की पैसिफिक कमांड के प्रमुख एडमिरल हैरी हैरिस ने अमेरिकी कांग्रेस में बताया था कि हाइपरसोनिक हथियार बनाने के मामले में अमेरिका अपने प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है. उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ऐसी संभावनाएं हैं कि जब तक अमेरिकी रडार चीनी मिसाइलों को पकड़ सकें तब तक वे अमेरिकी जहाजों और सैन्य अड्डों पर हमले न कर दें.

एडमिरल हैरी हैरिस ने कहा था, ‘‘हमें इस दिशा में बेहद तेजी से काम करने की जरूरत है और अपने खुद के हाइपरसोनिक हथियार बनाने चाहिए.’’

इस अमेरिकी अधिकारी की चिंता जायज भी है. भले ही अमेरिका के पास सब से ज्यादा परमाणु बम होंगे पर चीन दूसरे कई मामलों में उस से कहीं भी कमतर नहीं है. 1945 का जमाना गुजर गया है, तब जापान पर अमेरिका ने अपनी हेकड़ी दिखा कर उसे कमजोर कर दिया था. अब बहुत से देश किसी ‘लिटिल बौय’ या ‘फैट मैन’ से डरने वाले नहीं हैं. चीन तो कतई नहीं, जो हर लिहाज से ताकतवर देश बन चुका है.

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भारत और चीन की सैन्य शक्ति :  

किस का पलड़ा भारी

भारत के पड़ोसी देशों में चीन का दबदबा सब से ज्यादा है. भले ही यह देश भारत को अपने यहां बना चीनी माल खूब सप्लाई करता हो पर जब सरहद की सुरक्षा की बात आती है तो इन दोनों देशों की भौंहें तन जाती हैं. ऐसा हो भी क्यों न, इतिहास की बात करें तो ये दोनों देश युद्ध के मैदान में आमनेसामने भी हो चुके हैं. 1962 की लड़ाई में चीन के मुकाबले भारत का नुकसान ज्यादा हुआ था.

आज भी चीन हम से ज्यादा ताकतवर दिखता है. देशभक्ति एक अलग बात है लेकिन जब हम इन दोनों देशों की सैन्य शक्ति का आकलन करते हैं तो बहुत सी चौंकाने वाली बातें सामने आती हैं.

चीन के पास एक बेहद ताकतवर सेना है. पिछले 25 सालों में वह अपने रक्षा बजट पर तकरीबन 10 गुना खर्च बढ़ा चुका है. चीन ने साल 2017 में रक्षा क्षेत्र के लिए 151 अरब डौलर यानी 9 हजार, 815 अरब रुपए का बजट आवंटित किया था, जबकि भारत ने उसी साल 52.5 अरब डौलर यानी

3 हजार, 409 अरब रुपए का रक्षा बजट रखा था.

इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फौर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के आंकड़ों को मानें, तो भारत के पास 14 लाख सैनिक हैं. इस के अलावा भारत के पास 3,563 युद्ध टैंक, 3,100 इन्फैंट्री लड़ाकू वाहन, 336 सशस्त्र पर्सनल कैरियर्स और 9,719 तोपें हैं. इतना ही नहीं, भारत के पास 9 तरह की औपरेशनल मिसाइलें हैं, जिन में अग्नि-3 (3,000-5,000 किलोमीटर रेंज वाली) भी शामिल है. भारत के पास ब्रह्मोस भी है, जिसे पनडुब्बी, पानी के जहाज, विमान या जमीन से भी छोड़ा जा सकता है.

भारत के पास 814 कौम्बैट एयरक्राफ्ट हैं. भारत की वायु सेना का संख्या बल 1,27,200 है. अफसरों के मुताबिक, साल 2032 तक भारत के पास 22 स्क्वैड्रन्स होंगे. राफेल लड़ाकू विमान के आने से भारत की ताकत बढ़ी है.

सैनिकों की संख्या हो, लड़ाकू विमानों की संख्या हो या फिर टैंकों की संख्या हो, चीन भारत से इक्कीस है. उस के पास 6,457 कौम्बैट टैंक हैं. 2,955 लड़ाकू विमान हैं. छोटेबड़े सभी जहाज मिला कर 714 नेवल एसेट्स हैं. एक एयरक्राफ्ट कैरियर है. 35 डैस्ट्रोयार्स यानी विध्वंसक युद्धपोत हैं. 68 पनडुब्बियां हैं.

चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी एयरफोर्स दुनिया की दूसरी बड़ी वायु सेना है. चीनी वायु सेना में तकरीबन 3 लाख, 30 हजार सैनिक हैं. चीनी वायु सेना ने 192 आधुनिक लौंचर बनाए हैं. उस के पास एस-300 जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल है.

चीन और भारत के बीच बड़ेबड़े पहाड़ों की रुकावटें हैं. इस लिहाज से चीन हम से ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अपनी सेना को रख सकता है. सब जानते हैं कि पहाड़ों की लड़ाई में पैदल सेना का ज्यादा महत्त्व होता है.

अगर इन दोनों देशों के बीच कभी लड़ाई होगी तो वह पाकिस्तानी कश्मीर से लद्दाख, तिब्बत, नेपाल, सिक्किम, भूटान से होती हुई अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर और म्यांमार तक फैलेगी. ये सारे हिस्से पहाड़ों से घिरे हैं. यहां अपने दुश्मन की टोह लेना भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है.

वैसे, अगर नंबर गेम की बात की जाए तो चीन की सेना दुनिया में तीसरे नंबर पर जबकि भारत की सेना चौथे नंबर पर है. ये दोनों खुद को महाशक्ति साबित करने की चाह रखते हैं. लिहाजा, अगर ये अच्छे पड़ोसी होने का धर्म निभाएं तो पूरी दुनिया की शांति के लिए बेहतर रहेगा.

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विशाल मिश्रा निर्देशित रोमांटिक ट्रैजिडी फिल्म ‘ऐ काश के हम’ का फर्स्ट लुक पोस्टर जारी

बहुप्रतिक्षित फिल्म ‘ऐ काश के हम’ का फर्स्ट लुक पोस्टर आज जारी कर दिया गया. इस फिल्म का निर्देशन कौफी विद डी, मुरुधर एक्सप्रेस और होटल मिलान जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके निर्देशक विशाल मिश्रा ने किया है. इस फिल्म में विवान शाह और प्रिया सिंह मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे. यह प्रिया सिंह की बतौर एक्टर पहली फिल्म होगी. इस फिल्म में सोफिया सिंह भी एक बेहद अहम किरदार में दिखेंगी.

फिल्म ‘ऐ काश के हम’ एक रोमांटिक ट्रैजेडी फिल्म है. यह प्यार,  दोस्ती और नियति की कहानी है. प्यार दुनिया की सबसे पवित्र भावना है,‌ मगर आज की तेजरफ्त जिंदगी में नियति आपकी जिंदगी और प्यार को नियंत्रित करती है. आयुष (विवान शाह) और परी (प्रिया सिंह) एकदूजे से अपने प्यार का इजहार करने ही वाले होते हैं कि दोनों की जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आ जाता है कि मिलने से पहले ही दोनों एकदूसरे से दूर हो जाते हैं. जब सालों बाद दोनों की एक-दूसरे से मुलाकात होती है, तो आयुष को इस बात का आभास होता है कि यह वो परी नहीं है, जिससे वो बहुत प्यार किया करता था.

फिल्म के बारे में विवान शाह कहते हैं, “यह बेहद रोमांचक ड्रामा फिल्म है और हमारी ज़िंदगी की सबसे बुनियादी भावनाओं के बारे में बात करती है. गौरतलब है कि इस फिल्म को धर्मशाला की खूबसूरत लोकेशन पर शूट किया है, जो अपने आपमें एक बेहद अनूठा अनुभव साबित हुआ.”

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निर्देशक विशाल मिश्रा कहते हैं, “यह फिल्म तीन युवाओं के कौलेज फ्रेंडशिप और रोमांस की पृष्ठभूमि पर बनी है. मगर फिल्म का लुक और अंदाज काफी दिलचस्प है और इसे बेहद दिलचस्प और प्रामाणिक तरीके से फिल्माया गया है. आजकल जहां रोमांटिक फिल्मों की अच्छी तरह से पैकेजिंग की जाती है और इनमें दिखाये गये जज्बात प्लास्टिक नजर आते हैं, वहीं हमने अपनी फिल्म के जरिए 90 के दशक के रोमांस के दिलकश अंदाज को फिर से जिंदा करने की कोशिश की है. यह एक संगीतमय फिल्म है, जिसमें आपको छह सुमधुर गाने सुनने को मिलेंगे. इस फिल्म का संगीत काफी साफ-सुथरा है,  जिसमें न रैप है,  न ही हिंग्लिश शब्दों का इस्तेमाल है और न‌ ही इस फिल्म में कोई रीमिक्स गाना है.

उल्लेखनीय है कि इस फिल्म का लेखन विशाल मिश्रा और आभार दाधीच ने किया है. अंशुल चौबे के छायांकन ने इस फिल्म की खूबसूरती में चार चांद लगा दिये हैं जबकि इसके इसकी चुस्त संपादन की जिम्मेदारी आशीष अर्जुन गायकर ने निभाई है और असलम सुरती ने इसका रोचकता से परिपूर्ण पार्श्व संगीत दिया है. किरण के. तलसिला द्वारा निर्मित और पंकज थालोर द्वारा कोप्रोड्यूस की गयी यह फिल्म 17 जनवरी, 2020 को देशभर में रिलीज होगी.

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