दिल्ली के भीड़भाड़ वाले इलाके लाजपतनगर के एक संयुक्त परिवार में रहने वाले अंजू और ताहिर अपनी निजता को बनाए रखना चाहते हैं. ये दोनों पतिपत्नी दुविधा में जी रहे हैं. कारण है जन्म के समय बच्चे का लिंग निर्धारित न होना. बच्चे के जन्म के समय इन्हें बताया गया कि बच्चे का लिंग स्पष्ट नहीं है. इन्हें 6 माह इंतजार करने को कहा गया. चिकित्सकों ने कहा कि उस के बाद ही इस का लिंग निर्धारित किया जाएगा.

6 माह तक वे सभी को इस नवजात शिशु को लड़की बताते रहे. इस दौरान मस्तिष्क में कई सवाल उठते रहे, जैसे क्या होगा अगर यह लड़का हुआ, हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ, यह सामान्य क्यों नहीं जन्मा आदि. जन्म के समय बच्चा स्वस्थ 3.2 किलोग्राम का प्यारा और ध्यान आकर्षित करने वाला था. 6 माह होने पर शिशु के परिजनों ने दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल से अपने सवाल का जवाब मांगा. 4 घंटे की जांचपड़ताल के बाद जानीमानी बाल रोग विशेषज्ञ व सर्जन डा. मीरा लूथरा ने परिजनों के आगे प्रस्ताव रखा कि उन्हें लड़का चाहिए या लड़की?

परिजन यह सुन कर भौचक्के रह गए कि बच्चे में दोनों लिंगों के लक्षण मौजूद हैं. विभिन्न टैस्टों व गुणसूत्र टैस्ट में पाया गया कि उस का कार्योटाइप 4634 था, जिस से यह निश्चित होता था कि शिशु जन्म से लड़का है. लेकिन उस में छोटी योनि व गर्भाशय होने के कारण लड़की के लक्षण भी मौजूद हैं. कुल मिला कर शिशु मध्यलिंगी था.

डा. लूथरा का कहना है कि इस प्रकार के शिशु को सर्जरी द्वारा पुरुष या महिला के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है लेकिन वयस्क होने पर इस बच्चे की प्रजनन क्षमता नहीं होगी, क्योंकि इस शिशु में न तो अंडाशय है और न ही टैस्टोस्टेरौन का स्तर उच्च है.

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