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कपिल शर्मा के घर आई नन्ही परी, गिन्नी ने दिया बेटी को जन्म

कौमेडियन कपिल शर्मा के फैंस के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है. जी हां, कपिल शर्मा पापा बन गए हैं. उनके घर खुशियों नें दस्तक दी है. कपिल शर्मा के घर नन्ही परी आई है. पत्नी गिन्नी ने बेटी को जन्म दिया है. बता दें, आज ही कपिल शर्मा की पत्नी ने बेटी को जन्म दिया है.

इसकी जानकारी कपिल शर्मा ने खुद सोशल मीडिया पर अपने फैंस के साथ शेयर किया है.  ट्विटर पर उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा- ‘हमारे घर में बेटी ने जन्म लिया है. आपके आशीर्वाद की बहुत जरूरत है. सबको मेरा बहुत प्यार…

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कपिल शर्मा के इस ट्विट पर उनके फैंस का बहुत सारा प्यार देखने को मिल रहा है.  लगातार उनको बधाई देने की होड़ दिखाई दे रही है. आपको बता दें, गुरु रंधावा और भुवन बाम ने सबसे पहले नंबर लगाते हुए कपिल शर्मा को ‘पापा’ बनने पर बधाई दी है. गुरु रंधावा ने बधाई देते हुए ट्वीट पर लिखा- ‘बहुत बहुत बधाई हो पा जी, अब मैं औफिशियली चाचा बन गया’.

साल 2018 में कपिल शर्मा ने गिन्नी चतरथ से धूमधाम से शादी की थी. इनकी शादी की खबरें काफी चर्चा में रही थी. आपको बता दें, कपिल शर्मा और उनके परिवार वालों को जैसे ही इस बात की खबर लगी कि घर में नया मेहमान आने वाला है उन्होंने ने तैयारियांशुरू कर दी थी.  तो उधर कपिल शर्मा ने परिवार और दोस्तों के लिए बेबी शावर पार्टी का भी आयोजन किया था. इस पार्टी में कई टीवी सेलेब्स भी शामिल हुए थे. इसके अलावा कपिल अपनी पत्नी के साथ बेबी मून मनाने के लिए कनाडा भी गए थे.

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जैनियों में बंदिशों से घट रही आबादी

जैन समुदाय में अब शादियों से पहले होने बाले प्री वेडिंग शूट और महिला संगीत में कोरियोग्राफी प्रतिबंधित रहेगी. भोपाल के जैन समाज ने यह फैसला अपने मुनियों शैल सागर , निकलंक सागर और प्रसाद सागर के आदेश पर लिया है. जैन पंचायत कमेटी के अध्यक्ष प्रमोद हिमांशु के मुताबिक इन मुनियों ने कहा है कि जो इन निर्देशों को न माने उसे समाज में तबज्जो न दी जाये यानि समाज से बहिष्कृत कर दिया जाये.

इस तुगलकी फैसले के बाबत परंपरावादियों के अपने घिसे पिटे तर्क भी हैं कि यह एक नए किस्म की फिजूलखर्ची है और एक नए प्रकार का प्रदूषण भी है. प्री वेडिंग शूट के लिए लड़का लड़की को सगाई के बाद अकेले अपने ही शहर में या फिर किसी पर्यटन स्थल पर जाकर फोटो खिंचाने की इजाजत या छूट दे दी जाती है, वहां इन लोगों के साथ कोई भी अप्रिय घटना हो सकती है. दूसरे समाज के बुजुर्ग उस वक्त नाराजगी जताते हैं जब ये फोटो शादी वाले दिन स्क्रीन पर दिखाये जाते हैं.

बेशक इन दलीलों में कोई दम नहीं है जो युवाओं की इच्छाओ और आजादी पर धर्म और संस्कृति की आड़ में अंकुश लगाने दी जा रही हैं. दरअसल में चूंकि मुनिगण ऐसा नहीं चाहते इसलिए यह सब थोपा जा रहा है, जिसके नतीजे भी जैन समाज को भुगतना होंगे. यह वही जैन समाज है, जो अपनी घटती आबादी को लेकर इतना चिंतित है कि नए जोड़ों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील भी वक्त वक्त पर करता रहता है. इसी जैन समाज में हजारों युवा दीन दुनिया से विरक्त होकर सन्यास ले लेते हैं जिसका खूब धूम धड़ाका किया जाता है.

क्या कोई समाज युवाओं की व्यक्तिगत आजादी छीनकर उनसे धर्म के सिद्धान्त मनवा सकता है. इस सवाल का सीधा जवाब है. हरगिज नहीं, उल्टे होता यह है कि कई युवा थोपे गए इस तरह के फरमानों से असहमत होकर अपनी मर्जी से जिंदगी जीने लगते हैं. मुनियों को क्यों प्री वेडिंग शूट और कोरियोग्राफी पर एतराज है यह तो वही जानें लेकिन युवाओं के नजरिए से देखें तो यह ज्यादती है. भोपाल के ही नूतन कालेज में पढ़ रही एक 20 वर्षीय छात्रा का कहना है आजकल प्री वेडिंग शूट और समारोहपूर्वक नाच गाना यानि महिला संगीत शादी की खुशियों में चार चांद लगा देते हैं. हम से बहिष्कार की शर्त और धौंस से यह सब छीना नहीं जाना चाहिए.

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इस छात्रा के मुताबिक हम जैनियों में शादियों में दिखाबे के नाम पर जमकर फिजूलखर्ची होती है और दहेज का चलन भी ज्यादा है फिर फिजूलखर्ची का हवाला उन्हीं कामों पर क्यों जिन्हें हम प्राथमिकता में रखते हैं. किसी को यह हक नहीं होना चाहिए कि वह तरह तरह के नए रस्मों रिवाज हम पर थोपे ये तो आजकल की मांग हैं और जरूरत भी हैं. क्या हमारी इच्छाओं और शौक की कोई कीमत नहीं. हम मुनियों और धर्म का यथासंभव पर्याप्त सम्मान करते हैं अब वे ही यह भाव हमसे छीन रहे हैं तो कोई क्या कर लेगा.

इस युवती और ऐसे युवाओं की मनोदशा पर बारीकी से गौर करें तो एक पूरी पीढ़ी इस असमंजस में है कि धार्मिक निर्देश आदेश अहम हैं या फिर उनकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता जो आमतौर पर धर्म का उल्लंघन नहीं करती और करे भी तो बात हर्ज की नहीं क्योंकि धर्म कोई भी हो, उसकी पहली कोशिश लोगों की आजादी छीनने की ही होती है जिससे वे धर्म गुरुओं की गुलामी ढोते उनकी जयजयकार करते रहें .

फिर घटती आबादी पर हाय हाय क्यों

इसी साल मार्च के महीने में इंदौर में दिगंबर जैन महासमिति ने एक आयोजन में जैन दंपत्तियों से दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने अपील की थी. जैनियों की इस सर्वोच्च संस्था के अध्यक्ष अशोक बड़जात्या ने कहा था कि ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से कपल्स एक से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. वित्तीय समस्या इनमें से एक है . एक समुदाय के रूप में हम इसकी जिम्मेदारी ले सकते हैं ताकि वे ज्यादा बच्चे पैदा कर सकें. समुदाय के सदस्य इस मुद्दे पर योजना तैयार करने के लिए जल्द ही साथ आएंगे और धन जमा करेंगे .

आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2011 की जनगणना में जैनियों की आबादी महज 44 लाख थी यह बढ़ोत्री 2001 के मुकाबले काफी मामूली है तब जैनियों की तादाद 42 लाख थी. हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि जैन महिलाओं में प्रजनन दर यानि मां बनाने की औसत उम्र 1.2 फीसदी है जो हिंदुओं और मुसलमानों के मुकाबले आधे से भी कम है.

अब जैन समुदाय अपनी आबादी बढ़ाने हम दो और हमारे तीन का नारा दे रहा है तो उसे सोचना यह चाहिए कि घटती जनसंख्या की एक अहम वजह युवाओं पर थोपे जा रहे धार्मिक फैसले भी हैं और कम आबादी कोई पाप नहीं बल्कि जागरूकता की प्रतीक है जिसमें शिक्षा का रोल अहम है. जैन समुदाय की युवतियां भी अब केरियर को प्राथमिकता देने लगीं हैं शादी और बच्चा उनके लिए बाद की बातें हो चली हैं .

ऐसे में शादियों में जरूरत से ज्यादा गैरजरूरी प्रतिबंध जो युवाओं की खुशियां और अरमान छीनने वाले हों उन्हें या तो बगाबत के लिए उकसाएंगे या फिर विरक्ति की तरफ ले जाएंगे लेकिन अगर जीवन यापन धर्म गुरुओं के दिशा निर्देशों पर ही करने की वाध्यता जैनियों ने नहीं छोड़ी तो उनकी हालत भी पारसियों सरीखी हो सकती है जो खत्म से हो चले हैं.

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चार सुनहरे दिन : भाग 2

रेखा के पिता ने चाय पी कर जम्हाई ली और भीतर चले गए. प्रदीप वहीं बैठा रहा. उस ने चाय पीतेपीते कहा, ‘‘चाय तो पीता ही रहता हूं, लेकिन सच कहूं रेखाजी, ऐसी चाय कभी नहीं पी मैं ने. आप ने ही बनाई होगी?’’

‘‘जी,’’ रेखा लजा गई, ‘‘आप को पसंद आई?’’

‘‘अजी, क्या कहती हैं, आप,’’ प्रदीप उत्साह से बोला, ‘‘काश, ऐसी चाय रोज मिल सकती.’’

रेखा ने साहस कर कहा, ‘‘तो रोज आ कर पी जाया करें. मैं रात को साढ़े 9 बजे लौटती हूं.’’

प्रदीप बोला, ‘‘मौका मिलेगा तो जरूर आऊंगा, मिस रेखा. आप जितनी भली हैं, उतनी ही…मेरा मतलब है कि उतना ही आकर्षण है आप में.’’

रेखा का चेहरा लाल हो गया. किसी ने आज तक उस से ऐसी बात नहीं कही थी, और यह सुंदर युवक.

‘‘आप जरूर आया करें. मैं इंतजार करूंगी.’’

तब से प्रदीप अकसर उस के घर आने लगा. रेखा के बूढ़े पिता और छोटी बहन शोभा से उस ने अच्छी घनिष्ठता बना ली. वह खुशमिजाज और बातचीत में चतुर था. शाम को आता तो साथ में कुछ नमकीन या मीठा लेता आता. 16 साल की शोभा उस के लिए चाय बनाती और वह रेखा के आने तक रुका रहता. रेखा के पिता इस मिलनसार, शरीफ युवक से बहुत खुश थे. रेखा जब आती तो फिर से चाय बनाती थी.

रविवार को रेखा की छुट्टी होती थी. उस दिन मैनेजर जगतियानी खुद रामलाल के साथ जा कर रुपए बैंक में जमा कराता था. रविवार को प्रदीप रेखा को मोटरसाइकिल से घुमाने ले जाता. कभी सिनेमा तो कभी किसी रैस्तरां में भी ले जाता.

प्रदीप रेखा की हर बात की बड़ी तारीफ करता था. कहता, ‘‘रेखा, तुम जैसी सम झदार और अच्छी लड़की मैं ने कहीं नहीं देखी.’’

31वें वर्ष में कदम रख रही रेखा को अपने लिए लड़की शब्द सुन कर गुदगुदी सी होती थी. कहती, ‘‘तुम तो मु झे बना रहे हो.’’

‘‘सच कहता हूं,’’ प्रदीप गंभीर हो जाता, ‘‘तुम हीरा हो. जो तुम्हारा हाथ थामेगा, वह बहुत खुशनसीब होगा.’’

अब तक पुरुषों की प्रशंसात्मक दृष्टि या रोमांस से अपरिचित और उस के लिए तरसती रही रेखा प्रदीप की इन बातों में भूल जाती कि वह बहुत असुंदर है, 30 साल पार चुकी है और प्रदीप उस से उम्र में छोटा और स्मार्ट युवक है. वह उस की बातों पर विश्वास कर लेना चाहती थी. वह और प्रशंसा सुनने के लिए कहती, ‘‘मैं तो इतनी बदसूरत.’’

प्रदीप हंसता, ‘‘खूबसूरती और गोरी चमड़ी को देखने वाले बेवकूफ होते हैं. स्त्री का असली सौंदर्य तो उस के भीतर छिपा रहता है, रेखा. तुम देखने में भले ही बहुत सुंदर न हो लेकिन तुम में एक जबरदस्त आकर्षण और सम्मोहन है. उसे तुम क्या जानो.’’

और, रेखा के ऊपर जैसे नशा छा जाता. घर लौट कर वह आईने में खुद को निहारती रहती. क्या सच में वह आकर्षक है? आईना तो उस का वही पुराना अक्स दिखाता है. किंतु उसे लगता, वह आकर्षक हो गई है.

प्रदीप पिछले रविवार को उसे शहर के बाहर  झील के किनारे बने रैस्तरां ले गया था. वहां  झील के पास  झाड़ीनुमा पेड़ों के बीच बैठने के लिए अलगथलग मेजें लगी हुई थीं. बैरे सामने के होटल से सामान ला कर परोसते. लोग आजादी के मजे लेते हुए खातेपीते, प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते.

प्रदीप ने डोसे, चिप्स और कौफी का और्डर दिया.

‘‘यहां कितना अच्छा लग रहा है,’’ रेखा विभोर थी, ‘‘सच प्रदीप, मैं पहले कभी यहां नहीं आई, बल्कि मैं तो कहीं किसी होटल या रैस्तरां में भी नहीं जाती. अकेली…’’

‘‘छोड़ो, अब तुम अकेली नहीं हो, रेखा,’’ प्रदीप ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘मैं तुम्हारा दोस्त हूं, अब.’’

‘‘मेरी दोस्ती से तुम्हें क्या मिलने वाला है?’’ रेखा ने उसे टटोलना चाहा.

प्रदीप हंसा, ‘‘मु झे तुम्हारा साथ ताजगी से भर देता है. सच मानो, जिंदगी में बहुत सी सुंदर लड़कियां मिलीं, लेकिन किसी से इतना प्रभावित न हुआ जितना तुम से.’’

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‘‘ झूठे…’’ रेखा व्याकुलता से उसे देखने लगी.

‘‘सच, तुम मेरे लिए संसार की सब से सुंदर और योग्य लड़की हो.’’

‘लड़की’ शब्द से रेखा रोमांचित हो उठी. प्रदीप के मुंह से वह बारबार लड़की शब्द सुनना चाहती थी. बोली, ‘‘मैं और लड़की. लड़की तो शोभा है.’’

‘‘शोभा?’’ प्रदीप हंसा, ‘‘वह बच्ची है. उस में वह सुंदर नारीत्व कहां है? छोड़ो रेखा, मैं आज तुम्हारे सिवा और किसी का नाम नहीं लेना चाहता बीच में.’’

‘‘क्या, सच?’’ रेखा कुछ आगे  झुकी, ‘‘सो, क्यों भला?’’

‘‘क्योंकि…बुरा न मानो, तो सच कहूं…’’ प्रदीप ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

रेखा के कान सनसना उठे. कुछ देर तो जैसे उसे होश ही न रहा. प्रदीप ने उस के हाथों को दबा कर सचेत किया, ‘‘बैरा आ रहा है.’’

बैरा आया, क्या रख गया, रेखा को कुछ होश ही नहीं था. वह तो प्रदीप की बात के नशे में मस्त थी. प्रदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘खाओ…’’

उस दिन का नाश्ता रेखा को अपने जीवन का सब से स्वादिष्ठ नाश्ता लगा. वह तरंगों में  झूल रही थी. उस ने सोचा भी न था कि उस के जीवन में कभी कोई ऐसा मौका आएगा, जब कोई सुंदर युवक उसे कहेगा, ‘तुम बड़ी सुंदर हो, मैं तुम्हें प्यार करता हूं,’ वही आज अचानक हो गया है.

लौटते समय प्रदीप ने कहा, ‘‘आज तुम मेरे घर चलो तो कैसा रहे?’’

रेखा बोली, ‘‘तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे?’’

‘‘आज तो घर पर सिर्फ मेरे पिताजी हैं. मां और भाईबहन एक नातेदारी में शादी में गए हुए हैं. तुम्हें अपने पिताजी से मिलाऊं.’’

उस ने रेखा के जवाब का इंतजार किए बिना ही मोटरसाइकिल मोड़ दी. शहर के दूसरे किनारे बसे एक छोटे से साधारण दोमंजिला घर के आगे मोटरसाइकिल खड़ी की, ‘‘मेरा गरीबखाना.’’

रेखा के साथ बरामदे में आ कर उस ने घंटी बजाई. कई बार बटन दबाया, किंतु दरवाजा नहीं खुला. बोला, ‘‘पिताजी जरूर घूमने निकले हैं. 9 बजे रात तक लौटते हैं. खैर, कोई बात नहीं, मेरे पास भी चाबी है.’’

अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर वह रेखा को भीतर लाया. साधारण सी बैठक. सोफा, टीवी, दीवान आदि से सजा हुआ. एक तरफ भीतर जाने का दरवाजा.

प्रदीप भीतर देख आया. बोला, ‘‘जरूर वे बाहर हैं. खैर, उन के आने तक बैठते हैं. तुम्हें जल्दी तो नहीं है?’’

रेखा ने कहा कि उसे कोई जल्दी नहीं है.

‘‘तो आज मेरी ही बनाई चाय पियो,’’ प्रदीप हंसा, ‘‘तुम्हारे जैसी तो क्या बनेगी, किंतु…’’

वह भीतर चला गया. रेखा की आंखों के आगे रंगीन सपने तैरते रहे. प्रदीप उसे प्यार करता है? अपने पिता से मिलाने लाया तो है. अगर शादी हुई तो वह इसी घर में आएगी.

प्रदीप चाय ले आया. रेखा को वह मामूली चाय भी अमृत जैसी लगी प्रदीप ने बनाई थी इसलिए. प्रदीप ने उस का हाथ अपनी हथेली में दबा कर कहा, ‘‘रेखा, तुम मु झ से प्यार करती हो?’’

रेखा शरमा गई. उस की आंखें जैसे शराब के नशे में थीं. प्रदीप बोला, ‘‘तुम्हारी आंखें सच बता रही हैं. हम दोनों जल्द शादी करेंगे.’’

‘‘सच?’’ रेखा ने ऐसे कहा जैसे बच्चे को मिठाई देने का वादा किया गया हो और वह उस पर विश्वास नहीं कर पा रहा हो.

प्रदीप बोला, ‘‘बिलकुल सच. मेरे घर वाले मेरी बात नहीं टालेंगे. हां, तुम्हारे पिताजी की राय.’’

‘‘वह तो तुम्हें बहुत अच्छा लड़का सम झते हैं. खुशी से राजी हो जाएंगे. लेकिन प्रदीप, क्या सच कहते हो या यह सब सपना है?’’

‘‘सपना?’’ प्रदीप उस के नजदीक आ गया. उसे आलिंगन में कस कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. चाय पीने के बाद ही से रेखा पर अजीब सी मदहोशी छाने लगी थी. बदन में कामोत्तेजना सनसनाने लगी थी. चाहती थी, प्रदीप उसे आलिंगन में ले कर पीस डाले. 31 साल के एकाकी, शुष्क और पुरुषस्पर्श से वंचित उस के नारीत्व में बाढ़ सी आ गई. वह प्रदीप से लिपट गई. वह कब उसे भीतर के कमरे में ले गया, उसे पता ही न चला.

प्रदीप उसे रात 8 बजे घर पहुंचा गया था. उस समय तक प्रदीप के पिता घूम कर वापस नहीं लौटे थे, इसलिए उन से भेंट न हुई. प्रदीप ने रेखा के पिता के चाय पीने का अनुरोध नम्रतापूर्वक अस्वीकार करते कहा कि आज घूमतेफिरते कई बार चाय पी चुके हैं, सो माफ करें. रेखा ने रात को खाना नहीं खाया. शोभा से कह दिया कि उस ने भारी नाश्ता कर लिया है. असल में उस की आत्मा ऐसी तृप्त हो गई थी कि सिर्फ सो जाने का मन हो रहा था.

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रातभर रेखा के बदन में मीठी टूटनभरी खुमारी छाई रही. पहली बार का यह पुरुष संसर्ग उसे एक ऐसे अद्भुत लोक में ले गया, जहां वसंत के सिवा कुछ नहीं होता. रातभर मीठे सपने आते रहे.

सुबह जागी तो बदन में मीठे दर्द के साथ ताजगी भी थी. नहाधो कर वह कार्यालय पहुंची. दिनभर उस का मन घबराता रहा और सोचती रही कि शायद अब प्रदीप न मिले.

लेकिन प्रदीप मिला. वह रोज की तरह रामलाल के साथ रुपए जमा करा कर साढ़े 9 बजे आई, तो वह चौराहे पर ही खड़ा था.

‘‘रेखा…’’

रेखा चौंक पड़ी. उस का मन खिल उठा. सामने प्रदीप था. वह धीरेधीरे उस के पास आई, तो वह बोला, ‘‘कैसी हो?’’

रेखा उस से आंखें मिलाने में शरमा रही थी. प्रदीप बोला, ‘‘आओ, मोटरसाइकिल पर बैठो.’’

‘‘घर सामने ही तो है,’’ रेखा बोली.

वह धीरे से बोला, ‘‘तुम्हारा असल घर तो वह है जहां हम अभी चलेंगे, रेखा रानी. आओ, बैठो.’’

रेखा रोमांचित हो उठी. मंत्रगुग्ध सी मोटरसाइकिल के पीछे आ बैठी. प्रदीप अपने घर की तरफ चल पड़ा. रेखा का बदन बारबार सिहर रहा था. प्रदीप उसे भीतर के कमरे की ओर ले चला, तो बोली, ‘‘तुम्हारे पिताजी?’’

‘‘आज वे भी शादी में चले गए हैं. सभी लोग 15-20 दिनों बाद लौटेंगे. मेरठ में हैं. हमें बिलकुल आजादी है.’’

रेखा के अंतर्मन में कुछ खटक रहा था. लेकिन वह भी अपने भीतर की प्यास बु झाने का लोभ रोक नहीं पाई. उस दिन भी दोनों पिछले दिन की तरह ही आनंद में डूबते चले गए.

तब से जैसे रोज का यह नियम बन गया. प्रदीप का घर ऐसी जगह पर था जहां आतेजाते पड़ोसियों की नजर नहीं पड़ती थी. रेखा भी अब पुरुष संसर्ग की आदी हो गई थी. वह बहुत संतुष्ट और प्रसन्न थी. एक दिन उस ने कहा, ‘‘प्रदीप, मान लो, कुछ गड़बड़ी हुई तो?’’

प्रदीप ने उसी दिन उसे घर पहुंचाते वक्त दवा की दुकान से गोलियों का एक पैकेट खरीद दिया, और बताया, ‘‘इस में से एक गोली रोज लेनी है, फिर तो निश्चिंत…’’

एक दिन रेखा औफिस जा रही थी कि प्रदीप अपनी मोटरसाइकिल पर तेजी से जाता हुआ दिखा. वह ठिठक गई. प्रदीप के पीछे एक गोरी, सुंदर सी लड़की बैठी हंसहंस कर उस से बातें करती जा रही थी. प्रदीप ने उसे नहीं देखा. मोटरसाइकिल तेजी से आगे बढ़ गई.

उस दिन रेखा से अपने काम में कई बार भूल हुई. मैनेजर जगतियानी ने  झल्ला कर कह दिया, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है तो घर जा कर आराम करो.’’

रेखा ने यही उचित सम झा. वह घर आ गई. उस दिन वह जैसे अंगारों पर लोटती रही. शाम को वह चौराहे पर गई जहां बस रुकती थी और जहां उसे प्रदीप मिलता था. आज वह नहीं मिला. रेखा की वह रात जागते बीती. ईर्ष्या से वह जली जा रही थी. प्रदीप उसे धोखा दे रहा है क्या? यह तो रेखा से सच्चे प्रेम की बात कहता है और वह लड़की. कहां वह स्मार्ट, खूबसूरत यौवन से छलकती हुई नवयौवना, और कहां खुद रेखा. सपाट से बदन वाली असुंदर, अधेड़ कुमारी.

अगला दिन भी उसी तरह कांटों पर लोटते बीता. रात में वह घर के पास बस से उतरी, तो प्रदीप खड़ा मिला. रेखा ने तुरंत पूछा, ‘‘कल सवेरे तुम्हारे साथ वह कौन लड़की थी, प्रदीप?’’

‘‘लड़की?’’ प्रदीप ने पलभर सिर खुजलाया. हंस कर बोला, ‘‘ओह…याद आया…ललिता. हां, वह मेरी अपनी चचेरी बहन है, ललिता. मैं ने तुम्हें बताया तो था कि मेरे छोटे चाचाजी का घर यहीं है. कल ललिता का जन्मदिन था. उस ने मु झे भी निमंत्रण दे रखा था. सवेरे ही मेरे घर आई थी और मु झे कुछ खरीदारी के लिए अपने साथ बाजार ले गई थी. वहीं तुम ने देखा होगा. कल शाम को वहीं फंसा रहा था, तभी तो तुम से नहीं मिल पाया. क्या हुआ?’’

‘‘ओह.’’

प्रदीप मुसकराया, ‘‘तुम्हें कुछ गलतफहमी हो गई है क्या?’’

‘‘नहीं तो,’’ रेखा लज्जित हो कर बोली, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.

प्रदीप हंस पड़ा. बोला, ‘‘रेखा, तुम निश्ंचत रहो. तुम्हारे सिवा मेरे जीवन में और कोई स्त्री न है, न रहेगी.’’

और वह उसे अपने घर ले गया. रेखा अब पुरुष संसर्ग की आदी हो चली थी. अकसर वह पूछती, ‘‘हम शादी कब करेंगे, प्रदीप? बहुत देर हो रही है…’’

प्रदीप कहता, ‘‘डार्लिंग, पिताजी ने पहले एक जगह मेरी शादी की बात चलाई थी. असल में, मेरी बड़ी बहन की शादी के लिए उन्होंने कर्ज लिया था और कर्ज पटाने के लिए उन लोगों की लड़की से मेरी शादी की बात तय कर दी थी. इस तरह वे लोग अपना रुपया छोड़ देते, अलग से दहेज भी दे रहे थे. लेकिन वह लड़की मु झे बिलकुल पसंद नहीं है. मैं ने इनकार कर दिया.’’

अनजाना बोझ : भाग 2

‘क्यों, अपनी बहन की इतनी चिंता हो रही है. अपनी सगी बहन के अलावा दूसरी हर लड़की तुम लड़कों को अपनी इच्छापूर्ति का साधन लगती है और तुम उन्हें छेड़ना शुरू कर देते हो. कितनी गंदी मानसिकता है तुम्हारी. तुम्हारे जैसे आवारा कुछ नहीं कर सकते अपनी जिंदगी में. मैं अभी थाने जा रही हूं तुम्हारी रिपोर्ट करने. तुम्हें तो मैं कहीं का नहीं छोड़ूंगी.’

आंटी के क्रोध से वे बुरी तरह घबरा गए. और जब वे कुछ शांत हुईं तो धीरे से अपना बचाव करते हुए वे बोले, ‘आंटी, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं, आप जो चाहे सजा दे लें. आप ही बताइए 2 वर्षों से मैं उसे पढ़ा रहा हूं, कभी ऐसा नहीं हुआ. दरअसल, आज उस ने कुछ अलग, अजीब से कपड़े पहने थे, सो, मैं डिस्ट्रैक्ट हो गया था.’

‘क्या कहा? कपड़े ऐसे पहने थे? तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? अब क्या लड़कियां अपनी मरजी के कपड़े भी नहीं पहन सकतीं, क्योंकि उन्हें देख कर लड़के अपनेआप पर काबू नहीं रख पाते. खुद को काबू नहीं कर सकते तो सड़क पर नजरें नीचे कर के चला करो या घर में बैठो. पर मेरी बेटी वही पहनेगी जो उस का दिल करेगा. क्या तुम्हारी बहन तुम से पूछ कर कपड़े पहनती है? क्या अपनी बेटी को भविष्य में तुम ऊपर से नीचे तक तन ढकने वाले कपड़े पहनाओगे?’

आंटी की तर्कयुक्त बातों के आगे उन की तो बोलती ही बंद हो गई. वे दबी आवाज में बोले, ‘नहीं आंटी, ऐसी बात नहीं है. मैं अपनी गलती मानता हूं. मैं बहक गया था. पर मेरा यकीन मानिए मैं ने ऐसावैसा कुछ नहीं किया.’

इतना सुनते ही आंटी फिर भड़क गईं और दहाड़ते हुए बोलीं, ‘और क्या करना चाहते थे मेरी बेटी के साथ? मन तो कर रहा है तुम्हें अभी ही पुलिस के हवाले कर दूं. जेल की सलाखों के पीछे सड़ोगे, तभी सम झ आएगा. मु झे शर्म आती है तुम्हारे मातापिता के संस्कारों पर. यदि उन्हें पता चल जाए तो अपनी परवरिश पर ही शर्म आने लगेगी उन्हें. तुम जानते हो तुम्हारे जैसे सैकड़ों, हजारों युवक बेरोजगार सड़कों पर क्यों घूम रहे हैं, क्योंकि उन के अंदर आत्मबल, आत्मविश्वास और आत्मनियंत्रण ही नहीं है. जिस दिन इन पर विजय पा लोगे, जिंदगी में कुछ बन जाओगे.’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया.

वे बदहवास से मोबाइल को ही घूरने लगे. उन्हें काटो तो खून नहीं. आंटी ने कुछ ही मिनटों में उन्हें जमीन पर ला पटका था. सच पूछो तो वे घबरा कर रोने लगे थे. ‘क्या करूं, क्या जवाब दूंगा मातापिता को. मु झे क्या हो गया. मेरी एक बेवकूफी ने आज मेरे चरित्र को ही बरबाद कर दिया. यह मैं ने क्या कर दिया,’ सब सोचतेसोचते उन का सिर दर्द करने लगा. तभी बहन ने आवाज लगाई और वे नीचे आ गए.

बहन ने उन के सामने भोजन की थाली लगा दी थी. उन के हलक में तो थूक तक निगलने की गुंजाइश नहीं थी तो खाना कहां नीचे उतरता. सो, ‘भूख नहीं है बाद में खा लूंगा’ कह कर बहन से थाली उठाने को कह दिया. उसी समय उन के फोन की घंटी फिर बजी. फोन आंटी का ही था.

‘तुम्हारी बदतमीजी का फल तुम्हें खुद मिलेगा. मैं क्यों तुम्हारा वह जीवन खराब करूं जिस की अभी शुरुआत ही नहीं हुई है. जाओ, मैं ने तुम्हें अभयदान दिया. पर ध्यान रखना, अपने जीवन में सभी लड़कियों और महिलाओं की उतनी ही इज्जत करना जितनी अपनी मांबहन की करते हो. जीवन में यदि कुछ बन सकोगे तो समाज में इज्जत की दो रोटी खा पाओगे. वरना ऐसे ही सड़क पर चप्पलें चटकाते और लड़कियों को छेड़ते रहोगे,’ यह कह कर आंटी ने फोन काट दिया था.

उस के बाद की कई रातों तक ठीक से सो ही नहीं पाए वे. बारबार आंटी की बातें कानों में गूंजतीं. पर वह घटना उन के जीवन की टर्निंग पौइंट बन गई. उस के बाद के 2 साल तक उन्होंने जम कर मेहनत की. उसी मेहनत के परिणामस्वरूप अपने पहले ही प्रयास में उन्होंने आईपीएस की परीक्षा पास की और एसपी बने. 8 वर्ष पुरानी उस घटना को सोचतेसोचते उन का सिर दर्द से फटने लगा. मन एक बार फिर आत्मग्लानि से भर उठा.

तभी अचानक सृष्टि की आवाज उन के कानों में गूंज उठी.

‘‘क्या हुआ एसपी साहब, आज बड़ी जल्दी घर आ गए. तबीयत तो ठीक है न,’’ कह कर सृष्टि ने उन के माथे पर हाथ रख दिया और घबरा कर बोली, ‘‘अरे, तुम्हें तो तेज बुखार है. क्या हुआ, सुबह तो एकदम ठीक थे. अभी मैं डाक्टर को बुलाती हूं.’’ कह कर वह मोबाइल में नंबर खोजने लगी तो अमित ने उस का हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘कोई जरूरत नहीं है. चाय पिला कर, बस दवाई दे दो, ठीक हो जाऊंगा.’’

सृष्टि चाय बनाने किचन में चली गई, तो वे फिर बेचैन हो उठे. तभी सृष्टि ने हाथ में चायनाश्ते की ट्रे के साथ कमरे में प्रवेश किया. चाय का कप हाथ में पकड़ाते हुए वह उन के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, कुछ बेचैन और परेशान से लग रहे हो. औफिस की कोई परेशानी है क्या. मु झे बताओ, शायद मैं कोई हल निकाल सकूं.’’

‘‘नहींनहीं, कुछ नहीं. बस, ऐसे ही मन कुछ उदास था. गोलू सो गई क्या? लाओ, उसे मेरे पास सुला दो.’’ कह कर अमित ने बात के रुख को बदलना चाहा. कुछ ही देर में सृष्टि गोलू को अमित की बगल में सुला कर चली गई. जैसे ही उन्होंने बगल में लेटी गोलू की तरफ देखा, तो सोचने लगे, ‘यदि कोई लड़का कभी मेरी गोलू के साथ ऐसी हरकत करेगा तो…तो मैं उसे जान से मार दूंगा. तो क्या मु झे भी उसी समय जान से मार दिया जाना चाहिए था?’ सोचतेसोचते कब आंख लग गई उन्हें भी नहीं पता.

सुबह जब सृष्टि ने उन्हें  झक झोरा, तो उन की आंख खुली. चाय पीतेपीते सृष्टि बोली, ‘‘अमित, तुम कल से कुछ परेशान हो, बताओ तो हुआ क्या है? रात में भी तुम बड़बड़ा रहे थे. ‘नहीं, मु झे माफ कर दो. मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं. आंटी, मु झे माफ कर दो.’ प्लीज, मु झे बताओ इस तरह अकेले मत घुटो, हुआ क्या है. मैं साइकोलौजी की प्रोफैसर हूं, अवश्य तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊंगी.’’

अमित की आंखें भर आईं और वे दुखी स्वर में बोले, ‘‘सृष्टि मेरे जीवन की एक घटना है जिस ने मेरा जीवन तो बना दिया परंतु वह मेरे अब तक के सफल जीवन का एक काला धब्बा भी है. कल कुछ ऐसा हुआ कि मैं स्वयं की ही नजरों में गिरता जा रहा हूं. पहले तुम मु झ से वादा करो कि तुम मु झे गलत नहीं सम झोगी और मु झे इस  झं झावात से निकलने का कोई उपाय बताओगी.’’

‘‘हां भई, पक्का वादा. अब 3 साल में तुम मु झ पर इतना भरोसा तो कर ही सकते हो न,’’ सृष्टि ने अमित का हाथ अपने हाथ में ले कर उस की आंखों में  झांकते हुए कहा.

सृष्टि की आंखों में अपने लिए विश्वास देख कर अमित ने रुंधे गले से 8 वर्ष पूर्व का पूरा घटनाक्रम जस का तस सृष्टि को सुना दिया. ‘‘इस दौरान मैं उस घटना को भूल सा गया था पर आज स्कूल में उस बच्ची के एक प्रश्न ने मु झे फिर मेरी ही नजरों के कठघरे में ला खड़ा किया है,’’ कहते हुए अमित शांत हो कर सृष्टि के चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयास करने लगे.

‘‘अमित, तुम्हें पता है हमारे समाज में हो रहे अपराधों का सब से बड़ा कारण आज के युवा की बेरोजगारी है. घर और मातापिता की जिम्मेदारियों के बीच में जब एक युवाओं अथक प्रयास के बाद भी नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता या आर्थिक जिम्मेदारियों को उठाने के लायक नहीं हो जाता, तो वह स्वयं को असहाय सा महसूस करने लगता है. और जब यह काफी समय तक होता है तो वह युवा अवसाद से घिरने लग जाता है और उस की यह फ्रस्टे्रशन ही उसे गलत दिशा में मोड़ देती है.

‘‘मैं तुम्हारे इस व्यवहार को सही तो नहीं कह सकती क्योंकि आप कितने ही परेशान क्यों न हो, गलत मार्ग को अपना कर स्वयं पर से नियंत्रण खो देना तो सरासर गलत ही है. पर हां, अपनी गलती की स्वीकारोक्ति ही व्यक्ति की सब से बड़ी सजा होती है. वह तुम्हारा सैल्फरियलाइजेशन ही था जिस के परिणामस्वरूप तुम आज एक आला दर्जे के अधिकारी बन पाए हो. हां, तुम्हें जो आत्मग्लानि है उस से निकलने का एकमात्र रास्ता है कि तुम जा कर उन आंटी से मिल कर माफी मांग लो और उन्हें बताओ कि उस दिन उन के द्वारा तुम्हें दिया गया अभयदान बेकार नहीं गया.’’

‘‘हां, तुम सही कह रही हो. मैं जब तक उन से मिलूंगा नहीं, चैन से सो नहीं पाऊंगा,’’ कह कर अमित अपनी पुरानी डायरी में आंटी का मोबाइल ढूंढ़ने लगे. उज्जैन से भोपाल की दूरी ही कितनी थी, सो, रविवार के दिन वे भोपाल की अरेरा कालोनी में थे.

‘न जाने वे मु झे माफ करेंगी भी, या नहीं. क्या प्रतिक्रिया होगी उन की मु झे देख कर? पता नहीं उन्हें मैं याद भी होऊंगा या नहीं. परंतु जब तक मैं उन से मिल कर अपने दिल का हाल कह कर माफी नहीं मांग लेता, मेरा प्रायश्चित्त ही नहीं हो पाएगा और मैं ताउम्र तिलतिल कर मरता रहूंगा. एक बार मिलना तो होगा ही. शायद वे मु झे माफ कर सकें,’ सोचतेसोचते वे कब अरेरा कालोनी के ई 7 के कामायनी परिसर में एक एचआईजी मकान के सामने आ कर खड़े हो गए, उन्हें पता ही न चला.

उन्होंने धड़कते दिल से घंटी बजाई. दरवाजा आंटी ने ही खोला. अमित ने  झुक कर उन के पैर छू लिए. वे बोलीं, ‘‘अरे, कौन हो भाई? मैं पहचान नहीं पा रही हूं.’’

‘‘आंटी, मैं, अमित.’’

‘‘ओहो अमित, कुछ बन पाए या आज भी…’’ आंटी अपनी याददाश्त पर कुछ जोर डालते हुए बोलीं.

‘‘आंटी, मैं आईपीएस हो गया हूं. पर यकीन मानिए कि आज मैं जो कुछ भी हूं आप के कारण हूं. पर 8 वर्ष पुरानी उस घटना के लिए मैं आज भी क्षमाप्रार्थी हूं. आप ने उस दिन क्रोध में मु झे मेरी असलियत, कर्तव्य और जीवन के मूल्य सम झाए थे. पर आज आप प्यारभरा आशीष मु झे दीजिए तो मैं सम झूंगा कि आप ने सच्चे मानो में मु झे माफ कर दिया है.’’

‘‘वैल डन, वैल डन. उस दिन तुम्हारी आत्मग्लानि देख कर मु झे सम झ आ गया था कि तुम बहक गए हो. तुम्हें माफ कर के मैं ने तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दिया था कि यदि तुम्हें अपने ऊपर वास्तव में पछतावा होगा तो अवश्य जीवन में कुछ बन सकोगे. दरअसल, कभीकभी सजा से अधिक माफ करना आवश्यक होता है क्योंकि हर अपराधी को सजा से नहीं सुधारा जा सकता और न ही हरेक को माफी से. उस समय मैं ने वही किया जो मु झे ठीक लगा.

‘‘मेरा आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है. खूब उन्नति करो. पर महिलाओं का सम्मान करना कभी मत छोड़ना,’’ कह कर आंटी ने खुश हो कर उन के ऊपर अपना वरदहस्त रख दिया.

आंटी का प्यारभरा आशीष पा कर अपनी आंखों की कोरों में आए आंसुओं को सिटी एसपी अमित ने धीरे से पोंछ लिया और एक अनजाने बो झ से मुक्त हो कर खुशीखुशी अपने कर्तव्यस्थल की ओर चल दिए.

अक्षम्य अपराध : भाग 2

नीतू ने जुर्म कबूला तो एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह व सीओ इंद्रप्रभा ने थाना रसूलपुर में संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस की. पुलिस ने हत्यारोपी नीतू यादव को मीडिया के समक्ष पेश कर मासूम बच्चे लौकिक उर्फ कृष्णा की हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि नीतू ने लौकिक की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय ने भादंवि की धारा 363, 302, 201 के तहत नीतू यादव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस जांच में विवेकशून्य ताई के अक्षम्य अपराध की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना रसूलपुर के क्षेत्र में एक गांव है बड़ा लालपुर. यादव बाहुल्य इस गांव में महेश कुमार, सत्येंद्र कुमार तथा कुलदीप 3 भाई रहते थे.

भाइयों में सब से बड़ा महेश था. पढ़लिख कर जब वह जवान हुआ तो उस ने घर की माली हालत सुधारने के लिए प्रयास तेज कर दिए. वह तेज दिमाग का था. वह कोई ऐसा धंधा करना चाहता था, जिस में आमदनी अच्छी हो. उस ने इस बारे अपने मित्रों से सलाहमशविरा किया तो उन्होंने शराब ठेका चलाने की सलाह दी.

पर शराब का ठेका मिलना आसान नहीं था. ठेका बोली में अच्छीखासी पूंजी भी लगानी थी. लेकिन महेश ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने ठान लिया कि वह ठेका हासिल कर के ही दम लेगा.

महेश ने एक ओर पूंजी जुटाई तो दूसरी ओर आबकारी विभाग के अधिकारियों से संपर्क बनाया. पूरी गोटियां बिछाने के बाद आखिर नीलामी में उसे शराब का ठेका मिल ही गया.

महेश ने अपने गांव से कुछ दूरी पर जमालपुर में शराब बिक्री का काम शुरू किया. गांव में देशी शराब की बिक्री खूब होती है, अत: महेश के ठेके पर भी खूब बिक्री होने लगी. महेश ने अपने भाई सत्येंद्र व कुलदीप को भी ठेके के काम पर लगा लिया था. सत्येंद्र ठेके पर सेल्समैन के रूप में काम करता था. कुलदीप कभी काउंटर पर बैठता था तो कभी अन्य व्यवस्थाएं देखता था.

शराब ठेके से महेश की आमदनी बढ़ी तो वह ठाठबाट से रहने लगा. उस का विवाह नीतू से हुआ था. शादी के बाद महेश ने दुर्गामाता मंदिर के पास 2 मंजिला मकान बनवा लिया था, जबकि सत्येंद्र व कुलदीप पुराने वाले मकान में रहते थे.

कालांतर में नीतू 2 बेटियों रीतू, गार्गी की मां बनी. नीतू के दोनों बच्चे खूबसूरत थे. महेश व नीतू उन्हें भरपूर प्यार करते थे और किसी भी चीज की कमी का अहसास नहीं होने देते थे.

महेश से छोटा सत्येंद्र था. सत्येंद्र का विवाह शशि के साथ हुआ था. शशि अपनी जेठानी नीतू से भी ज्यादा खूबसूरत थी. वह व्यवहारकुशल तथा घरेलू काम में भी निपुण थी. शादी के 3 साल बाद शशि ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने कन्हैया रखा.

कन्हैया के जन्म से सत्येंद्र के घर में खुशियों की बहार आ गई. कन्हैया के जन्म के 2 साल बाद शशि ने एक और बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने लौकिक रखा. प्यार से लौकिक को वह कृष्णा कह कर बुलाती थी. कृष्णा और कन्हैया दोनों ही नटखट और मनमोहक बालक थे.

कृष्णा-कन्हैया का ताऊ महेश भी दोनों को खूब प्यार करता था. महेश भले ही निर्मल मन का था, लेकिन उस की पत्नी नीतू के मन में मैल था. वह दिखावे के तौर पर कृष्णा-कन्हैया से प्यार करती थी, पर अंदर ही अंदर जलती थी. दरअसल, उस के मन में सदैव इस बात की टीस रहती थी कि उस की देवरानी शशि के 2 बेटे हैं, जबकि उस की केवल 2 बेटियां हैं.

नीतू को इस बात का भी मलाल था कि परिवार की बुजुर्ग महिलाएं देवरानी शशि की खूबसूरती और अच्छे बर्ताव का बखान करती हैं, जबकि उसे देख कर मुंह फेर लेती हैं.

नीतू और शशि की आर्थिक स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. नीतू का पति महेश शराब ठेकेदार था. उस की आमदनी अच्छी थी. जबकि शशि का पति सत्येंद्र उस के ठेके पर सेल्समैन था. उसे सीमित पैसा मिलता था. शशि सीमित आमदनी में भी खुश रहती थी, जबकि उस की जेठानी नीतू अच्छी आमदनी के बावजूद परेशान रहती थी.

हालांकि नीतू पैसे के घमंड में शशि पर रौब गांठती रहती थी और यह अहसास दिलाती रहती थी कि उस के पति के रहमोकरम पर ही उस के परिवार का भरणपोषण होता है. नीतू शशि को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाती थी.

शशि का बड़ा बेटा कन्हैया अब तक 4 साल का तथा छोटा लौकिक उर्फ कृष्णा 2 साल का हो गया था. कृष्णा तेज कदमों से दौड़ने लगा था. बातें भी करने लगा था. अब वह अपनी ताई नीतू के घर भी पहुंचने लगा था.

नीतू की बड़ी बेटी रितु तो हरिद्वार में पढ़ती थी किंतु छोटी बेटी 10 वर्षीय गार्गी कृष्णा को बहुत प्यार करती थी. वह उस से खूब हंसतीबतियाती थी.

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लेकिन 3 सितंबर, 2019 को गार्गी से कृष्णा का साथ सदा के लिए छूट गया. हुआ यह कि गार्गी सुबह 10 बजे घर से कुछ दूर गोबर लेने गई थी. वहां उस की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी. शायद उसे किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया था. गार्गी की मौत से घर में कोहराम मच गया.

गार्गी की मौत को अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि कृष्णा का जन्मदिन आ गया. 10 सितंबर को कृष्णा का जन्मदिन था. शशि हर साल बच्चों का जन्मदिन धूमधाम से मनाती थी.

10 सितंबर को वह कृष्णा का बर्थडे भी धूमधाम से मनाना चाहती थी. इस की जानकारी शशि की जेठानी नीतू को हुई तो उस ने इस बारे में शशि से बात कर के कहा कि इस साल धूमधाम से कृष्णा का जन्मदिन न मनाए. लेकिन शशि नहीं मानी और ताना मारा, ‘‘कोई मरे या जिए, हमें इस से कोई वास्ता नहीं. हम तो अपने कृष्णा का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाएंगे.’’

शशि ने जैसा कहा था, उस ने वैसा ही किया. 10 सितंबर को उस ने कृष्णा का जन्मदिन खूब धूमधाम से मनाया. उस ने घरपरिवार के लोगों को खाना खिलाया. लेकिन नीतू कृष्णा के जन्मदिन की खुशी में शामिल नहीं हुई. वह देवरानी शशि के तानों से विचलित हो उठी.

आखिर उस ने निश्चय किया कि वह शशि को ऐसा जख्म देगी, जिस से वह खून के आंसू रोएगी और उस का जख्म जिंदगी भर नहीं भरेगा. शशि को जख्म देने के लिए उस ने जो रास्ता चुना, वह कलेजे को चीर देने वाला था. यह रास्ता था कृष्णा की मौत.

नीतू का पति महेश अपने व्यवसाय में व्यस्त रहता था. इसलिए उसे पता ही नहीं चला कि उस की पत्नी के मन में क्या चल रहा है. वह क्या षडयंत्र रचने वाली है, नीतू ने स्वयं भी पति को अंधेरे में रखा और कुछ नहीं बताया.

16 सितंबर, 2019 की शाम 5 बजे लौकिक उर्फ कृष्णा अपने घर के बाहर खेल रहा था, तभी नीतू की निगाह कृष्णा पर पड़ी.

उस ने इशारे से कृष्णा को बुलाया और फिर घर के अंदर ले गई. इस के बाद नीतू ने मुख्य दरवाजा बंद किया और कृष्णा को दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में ले गई.

वहां उस ने कृष्णा को पटक कर दोनों हाथों से गला दबा कर उसे मार डाला. हत्या के बाद कमरे में ही शव पर पत्थर रख कर दबा दिया और ऊपर से कपड़ा डाल कर ढक दिया. फिर कमरे में ताला लगा कर भूतल पर आ गई.

इधर शशि घरेलू काम में व्यस्त थी. उसे जब फुरसत मिली तो उसे कृष्णा की याद आई. उस ने कृष्णा को घर में खोजा तो वह दिखाई नहीं पड़ा.

इस के बाद शशि ने कृष्णा की तलाश पासपड़ोस में की, लेकिन वह कहीं नहीं दिखा. सभी जगह खोजने के बाद भी जब वह नहीं मिला तो उस ने पति को सूचना दी.

उधर नीतू अपने घर में 2 दिन तक मासूम कृष्णा के शव को दबाए रही. जब शव से बदबू आने लगी तो पकडे़ जाने के डर से उस ने 18 सितंबर की रात 10 बजे कृष्णा के शव को खिड़की से नीचे फेंक दिया.

उस के बाद घर के पिछवाड़े आ कर शव को मिट्टी से ढक दिया. कमरे में फैली दुर्गंध को उस ने खिड़की खोल कर निकालने का प्रयास किया, लेकिन इस काम में वह पूरी तरह से सफल न हो सकी. आखिर पुलिस की खोजी कुतिया ने हत्या का सुराग दे दिया.

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पुलिस ने नीतू से पूछताछ के बाद 20 सितंबर, 2019 को उसे फिरोजाबाद कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया. नीतू के इस जघन्य कृत्य से उस का पति महेश बेहद शर्मिंदा है.

आशा का दीप : भाग 2

दोनों जानते थे कि ऐसे हालात में खामोशी ही ठीक है. थोड़ी देर बाद वैभवी ने चप्पू थामे और नाव को किनारे की तरफ धकेलना शुरू कर दिया.

किनारे पर किश्ती लगी. वैभवी उतरी. उस ने एक नजर अपने मंगेतर की तरफ डाली और फिर मुड़ कर स्थिर कदमों से बाहर चली गई.

विनोद उस को जाता देखता रहा. वह थोड़ा हकबकाया सा, थोड़ा लुटालुटा सा था. इस बदले हालात की वह क्या समीक्षा करे, क्या बोले.

यदि वैभवी ने कोई अन्य कारण बता कर शादी से मना कर दिया होता, रिश्ता तोड़ने की बात कही होती तब वह इस आघात को सहजता से  झेल लेता, मगर ऐसी स्थिति…

मात्र 10 दिन विवाह को बचे थे. भावी दुलहन में जानलेवा कैंसर की बीमारी के लक्षण उभर आए थे.

धीमे कदमों से चलता विनोद अपनी कार में बैठा. घर चला आया. अपने मम्मीपापा को क्या बताए? बताए या न बताए?

‘‘विनोद, ज्वैलर का फोन आया था. सारे जेवरात तैयार हैं. थोड़ी देर में उन का आदमी ले कर आने वाला है,’’ सोफे पर चुपचाप बैठे विनोद से उस की मम्मी ने कहा.

ऐसे हालात में विनोद क्या कहे? कैसे कहे? वैभवी उस को अपनी असाध्य सम झी जाने वाली अकस्मात उभरी बीमारी का कारण बता रिश्ता तोड़ने का इशारा कर चुकी है.

खुशी के मौके को सैलिब्रेट करने के लिए दोनों पक्षों से जुड़ी सभी सैरेमनी समयसमय पर की जा रही थीं. पहले रोका सैरेमनी, फिर रिंग सैरेमनी. अब समय था बधाई सैरेमनी और साथ ही लेडीज संगीत सैरेमनी का जो कि विवाह से मात्र 2 दिन पहले तय थी और संयुक्त समारोह था.

ऐसे आघात, जो कि कुदरती था, का आभास न वैभवी को था न विनोद को. वैभवी के परिवार वाले तो आ पड़ी इस आसन्न विपत्ति से आगाह थे मगर विनोद के परिवार वाले अनजान थे.

विनोद का परिवार पूरे उत्साह से शादी की तैयारियों में मग्न था. मगर वैभवी का परिवार असमजंस  में था. क्या करें? क्या न करें?

‘‘विनोद को बताया?’’ मम्मी ने वैभवी से पूछा.

‘‘हां, मैडिकल रिपोर्ट उस को दिखा कर सब बता दिया,’’ ठंडे, स्थिर स्वर में वैभवी ने कहा.

‘‘उस ने क्या कहा?’’

‘‘फिलहाल कुछ नहीं. मामला ही ऐसा है, कोई भी एकदम क्या जवाब दे सकता है.’’

अगले दिन औफिस में सब व्यवस्थित था, सुचारु था. कंपनी के मामलों में मार्केटिंग मैनेजर और सेल्समेन में सामान्य तौर पर डिस्कशन हुआ. भविष्य की योजनाएं बनाई गईं.

शाम को विनोद घर लौटा. उस की मम्मी ने उस को पानी का गिलास थमाते कहा, ‘‘आज हमारी सोसाइटी में रहने वाले 2 परिवारों के सदस्यों के  साथ दुर्घटनाएं हुई हैं.’’

‘‘किस के साथ?’’

‘‘साथ वाले अपार्टमैंट में रहने वाले अमन सीढि़यों से फिसल कर गिरने पर रीढ़ की हड्डी तुड़वा बैठे हैं. जबकि सामने वाले बैरागीजी की पत्नी बस की चपेट में आ कर कुचल गई हैं. दोनों सीरियस हैं.’’

विनोद सोच में पड़ गया. क्या कभी उस ने इस बात पर गौर किया था. उस का अड़ोसीपड़ोसी कौन था?

महानगरीय सभ्यता का अनुकरण करते अब बड़े शहर या मध्यम श्रेणी के महानगर भी अपरिचय की सभ्यता या संस्कृति का अनुकरण कर रहे थे. क्या उस ने कभी अपने साथ वाले फ्लोर में रहने वाले अड़ोसीपड़ोसी से परिचय किया? हालचाल पूछा? क्या उन्होंने भी ऐसा किया?

अगले 2 दिनों में दोनों दुर्घटनाग्रस्त पड़ोसी चल बसे. उन की अंतिम विदाई में विनोद भी शामिल हुआ.

जिस से जानपहचान थी उन से विनोद को पता चला कि हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाले कई पड़ोसी तरहतरह की बीमारियों से ग्रस्त थे. मगर अपनी असाध्य बीमारियों को सहजता से अपनी नियति सम झ वे अपना जीवन जी रहे थे.

रिटायर्ड प्रिंसिपल मिस्टर अस्थाना 80 वर्ष के थे. पिछले 50 साल से, कैंसरग्रस्त थे. मगर परहेजभरा जीवन अपना कर सहजता से जी रहे थे.

उन की रिटायर्ड पत्नी भी असाध्य बीमारी से ग्रस्त थी, मगर बीमारी को अपने जीवन का अंग मान कर 70 बरस पार कर अपना जीवन सहजता से जी रही थी.

एक परिवार का बच्चा 5 बरस का था. एक टांग पोलियोग्रस्त थी, मगर वह कृत्रिम टांग से खेलताकूदता था. मग्न रहता था.

एक 12 साल का बच्चा खुद ही मधुमेह के इंजैक्शन लगाता था.

मनुष्य का दिमाग सुख की अवस्था में इतना चैतन्य नहीं होता जितना दुखपरेशानी या विपत्ति पड़ने पर.

अपनी भावी पत्नी पर आ पड़ी आसन्न विपत्ति ने विनोद का मस्तिष्क चैतन्य कर दिया. आसपड़ोस, अनेक मित्रों, संबंधियों पर गौर फरमाने से उस को आभास हुआ, संसार में पूर्ण सुखी कोई नहीं था.

‘‘वैभ,’’ आईपौड की नईर् शैली के सैलफोन पर विनोद का फोन नंबर उभरा.

‘‘कहिए?’’

‘‘शाम को ओपन रैस्टौरैंट में आना है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हारी मैडिकल रिपोर्ट का जवाब देना है.’’

‘‘ओके, विनोद, शाम 7 बजे.’’

‘‘विनोद नहीं, विक्की. जरा नई शैली की कोई अट्रैक्टिव ड्रैस डालना,’’ और खट से फोन कट गया.

अनबू झी पहेली के समान हाथ में पकड़े सैलफोन को देखती वैभवी कुछ न सम झ सकी.

‘‘दीदी, जीजाजी से मिलने जा रही हो?’’ बड़ी बहन को ड्रैसिंग टेबल के सामने बैठा देख छोटी बहन अनुष्का ने पूछा.

वैभवी खामोश रही. असाध्य बीमारी का छोटी बहन को पता नहीं था. मम्मी खामोश थीं. वरपक्ष क्या पता कब रिश्ता तोड़ने के लिए फोन कर दे या पर्सनल मैसेज भेज दे.

वही ओपन रैस्टोरैंट, मध्यम रोशनी से आभासित गोल मेज व कुरसियां.

‘‘क्या पियोगी?’’ वैभवी की आंखों में प्यार से  झांकते विनोद ने पूछा.

‘‘प्लीज कम टू द पौइंट,’’ वैभवी ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अरे भई, ठंडागरम तो पी लो. जब कोई समस्या होती है तब समाधान भी होता है.’’

‘‘मेरी बीमारी लाइलाज है. साधारण समस्या नहीं है.’’

‘‘ठीक है, फर्ज करो, यही ट्रबल मु झे हो जाता तो?’’

‘‘वह सब बाद की बात है. आप क्या कहना चाहते हैं?’’

‘‘कैंसर आजकल के जमाने में लाइलाज नहीं है. धैर्य रख कर इलाज करवाने से कैंसर ठीक हो जाता है,’’ विनोद ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘विनोद, बी प्रैक्टिकल. आप सर्वगुण संपन्न हैं. आप को अनेक रिश्ते मिल जाएंगे.’’

‘‘कल का क्या भरोसा है? किसी और लड़की से शादी करने पर भविष्य में वह भी किसी गंभीर बीमारी की शिकार हो सकती है.’’

‘‘वह सब बाद की बात है.’’

‘‘कैंसर के लक्षण अभी न उभर कर शादी के बाद उभरते तो?’’

इस सवाल पर वैभवी खामोश रही. विनोद उठ कर उस के समीप आया, ‘‘वैभ, प्लीज मेरे पास आओ,’’ उस के कंधों पर हाथ रखते उस ने कहा. स्नेहस्निग्ध, प्रेमभरे स्पर्श से वैभवी की आंखें भर आईं. वह उठ कर अपने मंगेतर के सीने से लग गई. धीमेधीमे सुबकने लगी.

विनोद ने वैभवी को बाहुपाश में भर लिया. वैभवी की आंखों से गिरते आसुंओं से उस की शर्ट भीग गई. भावनाओं का ज्वार मंद पड़ा.

वैभवी ने अपनी पसंद के डिनर का और्डर दिया. एक ही प्लेट में दोनों ने एकदूसरे को खिलाया. वैभवी के साथ विनोद को आया देख वैभवी की मां चौंकी. दोनों के चेहरे से वे सम झ गईं कि रिश्ता टूटने के बजाय और ज्यादा पक्का हो गया लगता है.

अगले दिन विनोद और वैभवी ने अपने औफिस से छुट्टी ले ली. विनोद वैभवी को नगर के बड़े मल्टीस्पैशलिटी अस्पताल में ले गया.

बहुत बड़ा अस्पताल था. सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त था. पूरे देश में इस की कई शाखाएं थीं. इस का संचालन एक बड़ा व्यापारी घराना करता था. चिकित्सा व्यवस्था भी अब बड़े कौर्पाेरेट घराने अपना चुके थे.

एक अस्पताल में मैडिक्लेम के आधार पर भी चिकित्सा प्रदान की जाती थी.

फीस और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद चिकित्सा दल ने सिलसिलेवार वैभवी के कई टैस्ट किए.

‘‘देखिए सर, कैंसर की कई किस्में होती हैं. पहले जमाने में अधिकांश कैंसर लाइलाज थे, मगर मैडिकल सांइस में तरक्की होने से अब अधिकांश कैंसर का इलाज संभव है,’’ वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ डा अभिनव बनर्जी ने स्थिर स्वर में कहा.

वैभवी और विनोद को आशा का संचार महसूस हुआ.

‘‘बाई द वे, ये आप की क्या हैं?’’ डा. साहब ने पूछा.

‘‘जी, मेरी मंगेतर हैं. हमारी अगले सप्ताह शादी है. बाईचांस वक्षस्थल में तीव्र दर्द उठने से यह स्थिति सामने आ गई,’’ विनोद ने डा. साहब का आशय सम झते कहा.

‘‘मंगेतर…और अगले सप्ताह शादी,’’ डा. साहब ने गौर से सामने बैठे जोड़े की तरफ देखा. दोनों पतिपत्नी होते तो स्थिति सहज थी. मगर मंगेतर…

विनोद और वैभवी डाक्टर साहब के चेहरे के भाव सम झ कर हलके से मुसकराए. डा. साहब के चेहरे पर भी मृदु मुसकान उभर आई. उन्होंने प्रशनात्मक नजरों से विनोद बतरा की तरफ देखा.

विनोद सुंदर, सजीला नौजवान था. सर्वगुण संपन्न था. आम युवक भावी पत्नी के कैंसरयुक्त होने का पता चलने पर तत्काल रिश्ता तोड़ देता.

‘‘मिस्टर, आई विश यू औल द बैस्ट.’’

‘‘आप की भावी पत्नी का इलाज हो जाएगा. थोड़ा धैर्य और हौसला रखना पडे़गा,’’ डा. साहब ने तसल्लीभरे स्वर में कहा.

‘‘कितना खर्चा पड़ सकता है?’’ वैभवी ने पूछा.

‘‘खर्च तो काफी होगा मगर आप पूर्णतया रोगमुक्त हो जाएंगी.’’

‘‘अंदाजन?’’

‘‘देखिए, नई तकनीक की लेजर एवं बर्न सर्जरी द्वारा पहले कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करना पड़ेगा. फिर दोबारा कैंसर की कोशिकाएं न पनपें, इस के लिए रेडिएशन तकनीक द्वारा तमाम वक्षस्थल की विशेष सर्जरी करनी पड़गी. फिर आप का एक वक्ष निकालना पड़ेगा.’’

‘‘एक वक्ष?’’

‘‘जी हां, कैंसर आप के बाएं वक्ष में है. दूसरा वक्ष निरापद है. निकाले गए वक्ष के स्थान पर स्पैशल पौलिमर और प्लास्टिक सर्जरी द्वारा कृत्रिम वक्ष का निर्माण कर स्थायी तौर पर लगा दिया जाएगा. कृत्रिम वक्ष बिलकुल कुदरती महसूस होगा. बस, आप स्तनपान नहीं करवा सकेंगी. आप का दायां वक्ष पूरी तरह सक्षम है. उस से आप भावी संतान को सहजता से स्तनपान करवा सकेंगी.’’

‘‘अस्पताल में कितना समय लग सकता है?’’

‘‘औपरेशन में 4 से 6 घंटे और रिकवर होने में लगभग 3-4 सप्ताह. रेडिएशन थेरैपी से आप के शरीर के बाल अस्थायी तौर पर  झड़ सकते हैं. दोबारा उगने में कोई दिक्कत नहीं होगी.’’

‘‘और सारा खर्च?’’

‘‘लगभग 20 लाख रुपए.’’

‘‘जी,’’ वैभवी का चेहरा बु झ गया.

‘‘डियर, हैव पेशेंस,’’ विनोद ने आश्वासन देते वैभवी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘डा. साहब, मैडिक्लेम इंश्योरैंस पौलिसी के आधार पर भी इस इलाज का खर्चा क्लेम हो सकता है?’’ विनोद ने पूछा.

‘‘जी हां, हमारे यहां यह सुविधा भी है. क्या आप के पास मैडिक्लेम बीमा पौलिसी है?’’

‘‘आजकल मल्टीपरपज बीमा पौलिसी का जमाना है. मेरे पास और इन के पास मल्टीपरपज बीमा पौलिसी है. हम दोनों का 30 साल का 50-50 लाख रुपए का बीमा है.’’

‘‘फिर कोई दिक्कत नहीं है,’’ डा. साहब ने हर्षभरे स्वर में कहा. तभी कमरे का दरवाजा खोल कर एक लेडी डाक्टर दाखिल हुईं. उन के गौरवर्ण चेहरे और ललाट पर गहन बुद्धिमता की छाप थी. उन्होंने हलके नीले रंग की साड़ी और मैच करता ब्लाउज पहन रखा था. उन के ऊपर डाक्टरों वाला लंबा सफेद कोट था और दोनों कंधों पर  झूलता स्टैथस्कोप.

‘‘मीट माई वाइफ डा. आभा बनर्जी,’’ लेडी डाक्टर के समीप आ कर साथ रखी खाली कुरसी पर बैठने के बाद डा. साहब ने परिचय कराते कहा, ‘‘ ये हैं मिस्टर विनोद ऐंड मिस वैभवी.’’ और आभा ने बारीबारी से हाथ मिलाया.

‘‘शी इज औल्सो मेलाइन सारकोमा ट्रीटमैंट सर्जरी स्पैशलिस्ट ऐंड मिडीलिशन थेरैपी विशेषज्ञ,’’ डा. साहब ने कहा, फिर अपनी पत्नी से बंगाली भाषा में कुछ कहा.

डा. आभा के चेहरे पर मृदु मुसकान उभरी. उन्होंने विनोद की तरफ प्रशंसात्मक नजरों से देखते कहा, ‘‘विनोद, आई ऐप्रिशिएट यौर जनरस ऐंड काइंड स्पिरिट. नेचर विल शौवर औल ब्लैसिंग्स औन बोथ औफ यू.’’

विनोद बतरा ने मूक अभिवादन की मुद्रा में सिर हिलाया.

डा. साहब ने अपने लैटरहैड पर कुछ दवाएं लिखीं और बताया, ‘‘हर मरीज को औपरेशन से पहले शरीर को औपरेशन के लिए तैयार करने की बाबत कुछ दिन जरूरी दवाएं लेनी पड़ती हैं.’’

डा. दंपती ने स्नेह से भावी कपल की तरफ देखा और गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

विवाह पूरे धूमधाम से हुआ. दोनों हनीमून के लिए चले गए.

दोनों ने एक महीने की छुट्टी ले ली. डाक्टर ने वैभवी का औपरेशन दूसरी शाखा के अस्पताल में किया.

औपरेशन सफल रहा. काटे गए वक्ष की जगह नया कृत्रिम वक्ष भी लग गया. बीमा कंपनी ने सहृदयता दिखाते सारे खर्च का भुगतान किया.

विनोद के मातापिता अपने सुपुत्रकी विशाल सहृदता पर अभिभूत थे. वहीं, वैभवी के मातापिता भी ऐसा दामाद पा कर हर्षमग्न थे.

सालभर बाद वैभवी ने चांद सी सुंदर बच्ची को जन्म दिया, जो अपनी माता के समान सुंदर थी और स्वस्थ भी.

लिपस्टिक लगाते समय रखें इन 4 बातों का ध्यान

लिपस्टिक  महिलाओं की खूबसूरती पर चार चांद लगाने का काम करती है. लेकिन अगर आप गलत तरीके से  लिपस्टिक इस्तेमाल करती हैं तो ये आपके  खूबसूरती को  बिगाड़ भी सकती है.इसलिए लिपस्टिक लगाते समय आपको कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है.  तो चलिए जानते हैं, लिपस्टिक लगाते समय आपको किन बातों का ख्याल रखना चाहिए.

  1. लिपस्टिक लगाने से पहले ये जांच लें कि आपके होंठ रूखे या फटे न हों वरना दरारों के बीच स्किन कलर आपकी खूबसूरती बिगाड़ देगा. ऐसे में रूखे होंठों पर पहले लिप बाम या ग्ल‍िसरीन जरूर लगाएं, उसके बाद ही लिपस्टिक इस्तेमाल करें.

2. लिपस्‍टिक लगाने से पहले लिप पेंसिल से गहरे रंग का आउटलाइन या शेड बना लें. इससे होंठों का आकार उभरकर आएगा और फिर आपकी लिपस्टिक ज्यादा आकर्षक दिखेगी.

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3. लिपस्ट‍िक का केवल एक ही कोट लगाएंगे तो वह जल्दी हल्की पड़ जाएगी. लिपस्ट‍िक के कम से कम दो-तीन कोट तो जरूर लगाएं. दूसरा, लिपस्टिक का इस्तेमाल अपनी स्किल के कलर को ध्यान में रखकर करना भी जरूरी है.

4. लिपस्ट‍िक का एक कोट लगाने के बाद होंठों पर उंगलियों से हल्का सा पाउडर लगाएं, ऐसा करने से लिपस्ट‍िक पूरी तरह सेट हो जाएगी. इसके बाद अगर आपको लग रहा हो कि लिपस्ट‍िक हल्की लग गई है, तो एक कोट और लगा सकती हैं.

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#bethebetterguy: यातायात के नियमों का पालन करना है बहुत जरूरी

जिंदगी बहुत छोटी होती है ये कब कहां खतम हो जाए हम नहीं जानते लेकिन खुद से अगर आप सुरक्षित रहना चाहते हैं तो यातायात के नियमों का पालन अवश्य करें. अक्सर लोग सड़क पर वाहन चलाते समय जल्दी के कारण यातायात के नियमों का पालन नहीं करते हैं और परिणाम ये होता है कि सड़क दुर्घटना में मारे जाते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें यातायात के नियमों की कोई परवाह ही नहीं होती है या फिर वो जान कर भी अंजान बनते हैं.

वैसे तो उन्हें सब पता होता है फिर भी वो नियमों का पालन नहीं करते हैं. ऐसा नहीं है कि ये यातायात नियम ऐसे ही बने हैं या इससे सरकार और ट्रैफिक पुलिस वालों का कोई फायदा है. ये आपकी सेफ्टी के लिए ही बनाए गए हैं ताकि आप सुरक्षित रहें. हमेशा गाड़ी को एक सामान्य गति में चलाना चाहिए क्योंकि आंकड़े बताते हैं की सबसे ज्यादातर सड़क दुर्घटना तेज रफ्तार गाड़ी चलाने आ अनियंत्रित होने की वजह से ही होते हैं.

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गाड़ी को हमेशा सही रूट पर ही चलाएं कभी भी गलत रास्ते पर उल्टा ना चलाए. अगर रेड सिग्नल है तो गाड़ी को वहीं रोक दें सिग्नल ग्रीन होने पर ही जाएं. यदि आप चार पहिया वाहन चला रहें हैं तो आपके लिए ये जरूरी है कि आप सीट बेल्ट अवश्य लगाएं. कभी भी बड़ी गाड़ियों को ओवरटेक ना करें क्योंकि ऐसे में भी दुर्घटना होने की संभावना होती है.

जब भी ब्रेकर दिखे तो गाड़ी की रफ्तार धीमी करें. जब भी कोई मोड़ आए सड़क पर तो वहां पर भी गाड़ी की रफ्तार को धीमा करके हार्न देने के बाद ही गाड़ी को मोड़े. वरना अक्सर ऐसा होता की है दूसरे साइड से कोई गाड़ी आ रही होती है और अचानक गाड़ी मोड़ने पर दोनों ही गाड़ियों में टक्कर हो जाती है. इसलिए इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है. बाइक चलाते वक्त हेलमेट भी जरूर पहने ताकि यदि कोई दुर्घटना होती है हेलमेट आपको सर पर गंभीर चोट लगने से बचाएगा.

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ये सभी नियम आपको सुरक्षित रखेंगे और साथ ही साथ दूसरों को भी.


Hyundai रखता है आपकी सभी जरूरतों का ख्याल और करता है आपकी सुरक्षित यात्रा के लिए हर प्रयास. आप भी करें हर ट्रैफिक नियम का पालन और रखें अपना और अपने चाहने वालों का ध्यान.

‘शुभारंभ’: जानें कैसे हैं राजा-रानी और क्यों अलग है इनकी कहानी

जब दो अलग स्वभाव और मिज़ाज के लोग एक साथ आते हैं और एक दूसरे की खूबियों को पहचान लेते हैं तो सफलता उनके कदम चूमती है. अगर किस्मत ऐसे ही दो लोगों को करीब लाती है तो वे मिलकर एक और एक दो नहीं पूरे ग्यारह हो जाते हैं. इसीलिए कलर्स लेकर आ रहा है, राजा और रानी की ऐसी ही साझेदारी की अनोखी कहानी, ‘शुभारंभ’. तो चलिए जानते हैं कि कौन हैं ये राजा-रानी और कैसी है इनकी दुनिया, इनका स्वभाव और इनके सपने.

रानी- हकीकत से लड़ती एक लड़की

रानी, वृंदा और छगन की तीसरी बेटी है. रानी ने बचपन से ही काफी संघर्ष किया है. गरीबी और हालात से लड़ते हुए रानी कम उम्र में ही काफी सशक्त हो गई है और किसी भी परेशानी का समाधान करने में माहिर भी है.

  1. खुद पर निर्भर रहने वाली लड़की है रानी

कम उम्र में ही रानी खुद पर निर्भर रहने वाली लड़की है क्योंकि, उसके पिता तो काम नहीं करते सिर्फ माँ ही अकेले घर चला रही है इसलिए रानी खुद हर काम में माहिर हो गई है.

2. भावुक

भले ही रानी आत्मनिर्भर और सशक्त हो लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि उसे किसी बात से फर्क नहीं पड़ता. रानी काफी भावुक है इसलिए जब भी जिंदगी में कोई दिक्कत होती है तो उसे अपनी माँ और भाई के सहारे की जरूरत होती है.

3. मेहनत करने से पीछे नहीं हटती रानी

जब भी रानी की जिंदगी में कुछ गड़बड़ होती है या वो गुस्सा होती है तो सीधे भगवान से झगड़ा करती है और अपनी भड़ास निकालती है. लेकिन ये गुस्सा उसे बुरा नहीं बल्कि मेहनती बनाता है और वो कड़ी मेहनत करके अपनी जिंदगी बदलना चाहती है.

4. परिवार है सब कुछ

रानी के लिए उसका परिवार ही सब कुछ है वो अपने परिवार से बहुत प्यार करती है. अपने परिवार के लिए वो कुछ भी कर सकती है.

5. प्यार मतलब बराबरी का रिश्ता

प्यार को लेकर रानी की अलग ही सोच है क्योंकि उसने बचपन से अपनी माँ को पति के होते हुए भी अकेले ही हर चीज़ के लिए काम करते देखा है. रानी प्यार में यकीन तो करती है लेकिन उसके लिए प्यार परियों की कहानी नहीं बल्कि बराबरी का रिश्ता है.

राजा- अपने सपनों का राजकुमार

राजा सूरत की मशहूर दुकान ‘राजा सूटिंग और सर्टिंग’ को चलाने वाले परिवार का बेटा है. 7 साल की उम्र में ही राजा के सिर से पिता का साया उठ गया था तब उसकी माँ ने उसे कहा था कि अब उसे अपने पिता की ज़िम्मेदारियाँ उठानी होगी और वो हर काम करना होगा जो उसके ताऊ और ताई जी कहेंगे. इसलिए घर और दुकान का मालिक होते हुए भी राजा सिर्फ एक सहायक बनकर रह गया है हालांकि, उसे खुद इस बात का अहसास नहीं है.

  1. मासूम और साफ दिल

राजा बहुत ही साफ दिल, भोला और मासूम लड़का है. राजा के मन में किसी के लिए कोई शिकायत या नफरत नहीं है. राजा को दुनियादारी की कड़वाहट का कोई अहसास नहीं है.

2. दूसरों को बचाने वाला

अगर राजा के परिवार पर कभी कोई मुसीबत आती है तो वो उसे खुद पर ले लेता है. परिवार के आगे उसके लिए उसका आत्मसम्मान भी कुछ नहीं है. हर किसी के साथ उसका दिल का रिश्ता है. अब कोई इसकी कदर करे या न करे.

3. शर्मीला

राजा हर मामले में बहुत सीधा है. उसकी भोली और अच्छी सूरत की वजह से कई लड़कियां उस पर फिदा है लेकिन राजा, ये सब बातें समझ नहीं पाता और अगर कोई लड़की साफ साफ अपने दिल की बात कह भी दे तो उसका चेहरा शरम से लाल हो जाता है.

4. प्यार- परियों की कहानी

राजा प्यार पर पूरा भरोसा करता है. वो बचपन से ही अपने ताऊ और ताई का एक-दूसरे के लिए प्यार और देखभाल देखता आया है. उसकी प्यार की दुनिया बिल्कुल फिल्मी है परियों की कहानी की तरह. राजा का प्यार जिंदगी की कड़वी सच्चाई से बिल्कुल दूर है.

5. भगवान का भक्त

राजा को भगवान पर पूरा भरोसा है वो हर रोज भगवान को धन्यवाद कहता है और जो भी उसे मिला है उसके लिए भगवान का शुक्रगुजार है.

तो कैसी होगी राजा-रानी की कहानी, जानने के लिए देखिए ‘शुभारंभ’, हर सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे सिर्फ कलर्स पर.

दोमुखी निर्णय

देश को पौराणिक युग में पहुंचाने और पौराणिक परंपराओं के अनुसार चलाने की जिद लिए एक बहुत बड़े वर्ग की इच्छाओं व अंधआस्थाओं का आदर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में अयोध्या की बाबरी मसजिद को नष्ट करने को गैरकानूनी कहने के बावजूद वह जगह उस को नष्ट करने वालों को मंदिर बनाने के लिए दिए जाने का दोमुखी निर्णय सुनाया है. अयोध्या प्रकरण का तो अंत हो गया पर देश की मानसिक बीमारी के कीटाणुओं की बढ़ोतरी का एक नया चैप्टर शुरू हो गया है.

सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या के मामले में निर्णय से साफ है कि एक भीड़ को हक है कि अपनी अंधआस्था को पूरा करने के लिए वह किसी भी कानून, किसी की संपत्ति, किसी दूसरे की अंधआस्था को कुचल दे और यदि सरकार उस का साथ दे, तो उसे सभी संस्थाएं सहयोग देंगी जैसे आपातकाल में 1975 से 1977 के दौरान हुआ था.

बाबरी मसजिद अयोध्या में मुसलमानों की कभी निजामुद्दीन या अजमेर शरीफ की तरह की आस्था नहीं थी. यह किसी भी तरह हिंदुओं पर विजय का प्रतीक नहीं रही थी. फिर भी उसे बलि का बकरा बना कर हिंदू कट्टरवादियों ने पिछले 100-150 सालों से एक हिंदू अस्मिता का निशान बना लिया था मानो भारत का अस्तित्व उसी बाबरी मसजिद में कैद है. 1992 में उसे तोड़ कर देश को जैसे मुक्त कराया गया था और 9 नवंबर, 2019 में उस पर अदालती मुहर लगी है.

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यह मामला राजनीति से ओतप्रोत रहा है क्योंकि इस मंदिर की मांग हिंदू साधुसाध्वियां या भक्त नहीं, बल्कि राजनीति में सक्रिय भारतीय जनता पार्टी करती रही है जो अपने को हिंदूवादी पार्टी कहती रही है. वह पौराणिक परंपराओं को ही सर्वाेपरि मानती है.

इस विवाद को अदालतों को सौंप कर एक आसान तरीका अपनाया गया था और जब यह निर्णय आया तो पहले से ही यह स्पष्ट था कि कौन सा पक्ष भारी रहेगा. सरकार ने कोर्ट के इस निर्णय के सुनाए जाने से पहले अदालतों से न उल झने का निर्णय ले लिया था ताकि अदालतों की निष्पक्षता की छवि बनी रहे.

सुप्रीम कोर्ट ने 1,000 से ज्यादा पृष्ठों के एकमत के निर्णय में आखिरकार आस्था, जिसे अंधआस्था कहना गलत न होगा, को ही न्यायिक धरातल माना और उसी आधार पर अपना निर्णय सुनाया कि हिंदुओं की मांग कि राम का जन्मस्थान अयोध्या में वहीं ही है जहां मसजिद के 3 गुंबद बने हुए थे, सही है. हालांकि अदालत यह नहीं बता पाई कि क्या वास्तव में ऐसे सुबूत थे कि किसी मंदिर को तोड़ कर मसजिद बनाई गई, लेकिन फिर भी उस ने सरकार द्वारा मनमाने लोगों को शामिल कर गठित किए जाने वाले ट्रस्ट को मसजिद की भूमि सौंपने का फैसला सुना दिया. यानी, सुबूतों को दरकिनार कर आस्था को विजयी बनादिया.

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पर क्या यह जीत उस कलंक को धो पाएगी कि इस देश पर बाहर से आए अहिंदू राजाओं और आक्रांताओं ने मुट्ठीभर सैनिकों के बल पर सदियों राज किया है. क्या सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद हम भूल पाए हैं कि, किंवदंतियों के अनुसार, भारत पर 17 बार हमला करने वाले अफगानी शासक महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को तोड़ा था, लूटा था? क्या लालकिले की प्राचीर पर हर 15 अगस्त को भाषण दे कर प्रधानमंत्री यह भुला पाते हैं कि इसी लालकिले से फरगना वादी से आए मुगलों ने राज किया था?

कोर्ट के फैसले से हिंदू कट्टरवाद की जीत हुई है पर हिंदू की नहीं. यहां हिंदू का अर्थ दक्षिण एशिया का वह इलाका है जो सांस्कृतिक तौर पर एक रहा है यूरोप की तरह, जिस में अलग जातियों, वर्णों, रंगों, भाषाओं, धर्मों के लोग रहते आए हैं. भारत की कल्पना से उन्हें सुरक्षा का एहसास होता था.

एक ऐसा क्षेत्र जहां सभी बिना रोकटोक आजा सकते थे, जहां चाहे बस सकते थे और कहीं भी अपनी मरजी से रह सकते थे. उस क्षेत्र पर एक बार नहीं, कई बार उन लोगों ने आक्रमण किया जो सिर्फ लूटने की इच्छा से आए थे, जो इस क्षेत्र का कल्याण नहीं चाहते थे, इस में रचबस जाने की इच्छा नहीं रखते थे. जिस की जड़ें टूट गईं. वे यहीं के बन कर रह गए और अब उस सोच और उस प्रवाह के साक्षी हो गए हैं जैसे कि एक विशाल समुद्र में छोटीबड़ी नदियां आ कर अपना वजूद खो बैठती हैं.

अब उस समुद्र को एक छोटी  झील में संकुलित कर दिया गया है, इस के चारों ओर की दीवारें ऊंची कर दी गई हैं, उस में आ कर बहने वाली साफ पानी की नदियों को दूसरी ओर मोड़ कर मायेम  झील को सूखने को मजबूर कर दिया गया है. हालांकि, यह  झील अभी भी विशाल है, लोगों को अचंभित करने वाली है पर है जोहड़ के समान, जिस में वर्षा का साफ पानी गंदे नालों के पानी के साथ मिल कर दूषित होता जा रहा है. सर्वोच्च न्यायालय ने इसी पर न्यायिक हस्ताक्षर किए हैं, विशाल  झील की दीवारों को और ऊंचा करने की इच्छा को अनुमति दी है.

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वहां जल्दी ही भव्य मंदिर बन जाएगा, वैसे ही जैसे देश के अनेक क्षेत्रों में बने हुए हैं. आजकल हर गलीमहल्ले में बनने वाले मंदिर भव्य, संगमरमर से चमचमाते ही बन रहे हैं. नया मंदिर तीर्थयात्राओं का एक नया केंद्र बन जाएगा. उस जगह उद्योग नहीं लगेंगे, नौकरियां नहीं उगेंगी. वहां तो अगले जनम का हिसाब होगा, मन्नते मांगी जाएंगी, पंडों का व्यापार चमकेगा. यह कुछ भारत के भविष्य की छवि होगी. वहां नारे होंगे, जयजयकार होगी. धन और वोटों की वर्षा होगी.

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