मशहूर खगोलविद, गणितज्ञ और दार्शनिक गैलीलियो पर रोमन कैथोलिक चर्च ने एक मुकदमा  दायर किया था जिस का फैसला 1633 में सुनाया गया था. गैलीलियो का दोष था कि उन्होंने ईसाइयों के पवित्र ग्रंथ में वर्णित धार्मिक मान्यता के चीथड़े न केवल उड़ा कर रख दिए थे बल्कि अपने कहे को तथ्यों से साबित भी कर दिखाया था कि सूर्य पृथ्वी के नहीं, बल्कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है. इस गलती या गुस्ताखी पर उन्हें मौत की सजा होना तय थी. लेकिन, गैलीलियो बेवक्त इसलिए नहीं मरना चाहते थे क्योंकि वे अपने वैज्ञानिक शोध जारी रखना चाहते थे.

सो, अपने एक पादरी दोस्त की सलाह पर उन्होंने धार्मिक अदालत से सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली थी. इस से वे मृत्युदंड से तो बच गए थे लेकिन उन्हें अपने ही घर में आजीवन नजरबंद रहने की सजा भुगतनी पड़ी थी. उन की सजा में यह भी शामिल था कि वे 3 वर्षों तक हर हफ्ते पश्चात्तापसूचक भजन गाएंगे.

अब से कोई 400-500 वर्षों पहले धार्मिक कट्टरपंथ, पोंगापंथ, रूढि़वादिता और हर हाल में ईश्वर व धर्मग्रंथों को मानने, पालन करने की बाध्यता एक तरह से कानूनी हुआ करती थी. जो इसे नकारता था, तर्क दे कर इन मान्यताओं को खंडित करता था, उस का हश्र धर्म के ठेकेदारों द्वारा गैलीलियो जैसा कर दिया जाता था.

उस धार्मिक दबाव और छटपटाहट की देन थी एक वैज्ञानिक क्रांति जिस के केंद्र में गैलीलियो प्रमुखता से थे. उन्होंने जो खोजें और आविष्कार किए वे आज वैज्ञानिक तथ्यों के रूप में मान्य और स्थापित हैं. दुनिया का हर छात्र प्राथमिक कक्षाओं में ही यह पढ़ लेता है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है. यह, हालांकि, वैज्ञानिक निकोलस कौपरनिकस की थ्योरी थी लेकिन इसे साबित गैलीलियो ने किया था.

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