नागरिकता कानून के विरोध से बिगड़े माहौल से शौपिंग और पार्टीज का उल्लास क्रिसमस पर नजर नही आया. अब नये साल का उल्लास और विंटर शौपिंग भी खतरे में नजर आ रही है. क्रिसमस से नये साल के बीच चलने वाला विंटर फेस्टिवल सीजन भी बिजनेस के लिए अच्छा नहीं दिख रहा है. मौल्स से लेकर दुकान तक सब खाली है. होटल और लाउंज नाममात्र की पार्टी कर रहे है. जिनको लेकर लोगों में उल्लास नहीं दिख रहा है.

नागरिकता कानून के विरोध के आन्दोलन की छाया क्रिसमस के बाद अब नए साल के उल्लास को भी फीका करेगी. उत्तर प्रदेश में 19 दिसम्बर के बाद 27 दिसम्बर तक केवल कुछ ही घंटों के लिये इंटरनेट की सुविधा बहाल की गई है. ऐसे में क्रिसमस की तमाम पार्टी और आयोजन प्रभावित हुये. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 80 फीसदी से अधिक कार्यक्रम स्थगित हो गये. जो कार्यक्रम आयोजित हुये उनमें भी लोगों की उपस्थित बेहद कम रही. 25 दिसबर से इंटरनेट बहाल हुआ तो लोगों को लगा कि अब हालात सामान्य हो जायेंगे जिससे वह नया साल उल्लास पूर्वक मना पायेंगे. 26 दिसम्बर से ही फिर से इंटरनेट बंद हो गया जिसकी वजह से लोगों में दहशत का माहौल कायम हो गया है. अब लोग मान रहे हैं कि नये साल पर भी सुरक्षा का हवाला देकर इंटरनेट सेवायें बाधित होती रहेगी. इसका असर केवल आपसी बातचीत पर ही नहीं पड़ता लोगों में मानसिक रूप से प्रभाव पड़ता है.

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नये साल पर पार्टियों का आयोजन करने वाले लोग डरे हुये है कि लोग रात में पार्टी में हिस्सा लेने आयेगे भी या नहीं. ऐसे में बड़े होटल और लाउंज में नये साल को लेकर कोई बड़े आयोजन का प्लान नहीं बन रहा है. आमतौर पर क्रिसमस से लेकर नये साल के बीच एक उल्लास का महौल बन जाता था. जिसमें कई आयोजन होते रहते थे. बड़े होटलों की पार्टियों में फिल्म स्टार से लेकर बड़े बड़े सेलेब्रेटी हिस्सा लेने आते थे. इसका प्रबंध पहले से शुरू हो जाता था. आज के दौर में होटल बड़े आयोजन की जगह पर केवल हल्काफुल्का सेलीब्रेशन ही प्लान कर रहे है. आयोजक कहते हैं कि हमें यह नहीं पता कि नये साल के समय कैसा माहौल रहेगा ? दूसरे जनता के मन में डर है. क्रिसमस के आयोजन केवल खानापूर्ति भर रहे. वैसे ही नये साल पर भी आयोजन के नाम पर खाना पूर्ति ही होगी.

असल में दशहरा से दीवाली तक के फेस्टिवल सीजन के बाद क्रिसमस से नये साल के बीच दूसरा फेस्टिवल सीजन आता है. कारोबारियों को भी उम्मीद होती है कि लोग इसमें उल्लास पूर्वक रहेंगे. जिसमें बाजार में खरीददारी बढ़ेगी. विंटर सीजन की सेल से लोगों को मुनाफा हो जाता था. नागरिकता कानून के विरोध में जब आन्दोलन शुरू हुये और उसको दबाने के लिये सरकार ने जिस तरह से धरपकड, जुर्माना वसूली और पुलिस के साथ मारपीट का जो माहौल बना उससे लोग दहशत में आ गये हैं.

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उसके उपर इंटरनेट की बंदी ने डर को हवा दे दी है. ऐसे में मौल्स और दुकानों में लोगों के जाने वालों की संख्या घट गई है. क्रिसमस में यह माहौल बना रहा. अब नये साल के रंग में भी भंग पड़ रहा है. बाजार के लोग मान रहे हैं कि क्रिसमस की ही तरह नये साल का उल्लास भी नागरिकता कानून की भेंट चढ़ जायेगा.

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