मैं तो प्रतिकार करूंगा. मैं लड़ता रहूंगा. मैं खंदक की लड़ाई लड़ूगा. मैं हार नहीं मानूंगा. जी हां! कुछ लोग ऐसे होते हैं, उन्हीं में एक आपका यह दास दासानुदास रोहरानंद भी शुमार किया जा सकता है. देश में कैसी भी हवाएं बहें, मुझे मंजूर नहीं, मैं सदैव खिलाफत करूंगा. क्योंकि मेरा जन्म ही विरोध के लिए, प्रतिकार के लिए हुआ है.
चाहे देश में कोई भी प्रधानमंत्री हो, चाहे देश में किसी की भी सरकार हो, मैं तो विरोध करूंगा. पड़ोसी कहेगा- सुबह जल्दी उठना स्वास्थ के लिए हितकर है, हर एक को, सुबह कम से कम पांच बजे उठे. मै इस सलाह का विरोध करूंगा. मैं कहूंगा- नहीं ! सुबह जल्दी उठ जाने से ठंड लगती है, इसलिए हम तो आराम से उठेंगे. पड़ोसन कहेगी- स्वच्छता अभियान चलेगा, हर शख्स स्वच्छता में योगदान करें. मैं कहूंगा- नहीं ! यह तो गलत बात है पड़ोसन! पहले तुम , अपने बंगले की साफ-सफाई पर ध्यान क्यों नहीं देती. झाड़ू पकड़कर दिखावा करती हो, यह नहीं चलेगा, मैं प्रतिकार करता हूं.
दरअसल, मेरा स्वभाव ही कुछ ऐसा है. मैं हर शै में विरोध ढूंढता हूं. अब सबसे बड़ा मसला देशभक्ति का लीजिए.
सरकार का, संविधान का घोषित संदेश है, हर देशवासी को, देश के प्रति भक्ति भाव से पगा होना चाहिए. आस पड़ोसियों से मोहब्बत होनी चाहिए, मैं कहता हूं भई! देश भक्ति है क्या ! हमे तो आजादी चाहिए!!फिर हम तो अपने खास संबधियो से भी, मन ही मन नफ़रत रखना चाहते हैं हम उनसे बेपनाह ईर्ष्या और द्वेष का भाव रखते हैं.