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संपादकीय
रैना
कल तक तो कालोनी की सभी औरतें रैनारैना करते नहीं थकती थीं. लेकिन रैना के पैर भारी होने की खबर कालोनी में आग की तरह फैलते ही स्नेह की पात्र बनी रैना कुलटा कैसे बन गई?
भाग - 1
‘‘हां, वही तो. बाप रे, कैसी सतीसावित्री बनी फिरती थी और निकली ऐसी घाघ. मुझे तो बहनजी, अब डर लगने लगा है. कहीं मेरे ‘उन पर’ भी डोरे न डाल दे यह.’’
भाग - 2
आखिर एक दिन अपने बेडरूम के एकांत में कमलाजी से पूछ ही दिया उन्होंने, ‘‘मैं चरित्रहीन हूं क्या कि जब से यह रैना आई है, तुम और तुम्हारी बेटी मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी रहती हो?’’
भाग - 3
अभी वह उन के माथे से अपनी हथेली हटाती कि एक झपट्टे के साथ उस की कलाई पकड़ कर रमण बाबू बोल पड़े थे, ‘‘तू भी कमाल की है. अंदर का बुखार कहीं ऊपर से पता चलता है?’’
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