इन दिनों देश के हर शहर में एक शाहीन बाग आकार ले रहा है भोपाल का इकवाल मैदान भी उनमें से एक है जहां कोई 5 हजार लोग जिनमें महिलाएं ज्यादा हैं सीएए और एनआरसी के विरोध में डेरा डाले जमे हैं. 30 जनवरी को जेएनयू छात्र संघ की नेता आइशी घोष यहां लगभग गुपचुप तरीके से आ पहुंचीं तो इकवाल मैदान में डटे प्रदर्शनकारियों का जोश दोगुना हो गया क्योंकि आइशी के साथ और भी नामी समाज सेवी उनके समर्थन में आए थे.

झारखंड के धनबाद के एक मध्यमवर्गीय बंगाली कायस्थ परिवार की आइशी के सांवले चेहरे पर दुनियाभर की मासूमियत और भोलापन देख लगता नहीं कि उनके दिल में एक ज्वालामुखी धधक रहा है. 4 जनवरी को जेएनयू की हिंसा में घायल हुई इस युवती के सर का जख्म तो भर चला है लेकिन उनकी बातें सुन लगता है कि दिल अब और ज्यादा छलनी हो गया है और ये जख्म अब बिना बदलाव के भरने वाले नहीं.

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पहली बार किसी बड़ी पब्लिक मीटिंग को संबोधित कर रही आइशी ने बेहद असरदार लफ्जों और लहजे में अपने राजनीति में आने का इशारा करते हुये कहा, यहां भोपाल से जो चिंगारी जली है मैं उसे जेएनयू ले जाने आई हूं क्योंकि हमें इससे बहुत ताकत मिलती है. दमनकारी सरकार के खिलाफ देशभर में विरोध और आंदोलन जरूरी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बिना किसी लिहाज के इस उभरती छात्र नेत्री ने हमला करते हुये कहा, हिटलर और मोदी की विचारों की समानता समझना जरूरी है. अंग्रेजों ने समझ लिया था कि हिन्दू मुसलमान को अलग करके ही राज किया जा सकता है. मोदी के बाद पूरी भगवा गेंग को लपेटे में लेते आइशी ने उसकी दुखती नब्ज पर भी हाथ यह कहते रखा कि तब भी कुछ लोग अंग्रेजों की चाटुकारिता कर रहे थे और उसी वक्त भगत सिंह और रामप्रसाद बिस्मिल सरीखे क्रांतिकारी भी थे जो अंग्रेजों की आखो में आंख डाल कर कहते थे कि हम चाटुकारिता करने नहीं आए हैं.

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