चिराग अपनी धुन में था, ‘‘पापा, मैं आप से कह चुका हूं, मैं नलिनी से ही विवाह करूंगा चाहे कुछ भी हो जाए,’’ चिराग ने जब यह बात दृढ़ स्वर में फिर दोहराई तो रमाकांत स्वयं पर नियंत्रण खो बैठे, चिल्लाते हुए बोले, ‘‘वह लड़की मेरे घर में बहू बन कर नहीं आएगी, यह मेरा अंतिम निर्णय है.’’
‘‘तो ठीक है, नहीं लाऊंगा इस घर में उसे, जहां धर्म के पुतले बसते हों. आप बस धर्मजाति को पूजते रहना, आप की अनर्थक जिद के कारण मैं योग्य नलिनी को नहीं छोड़ूंगा,’’ चिराग पैर पटकते हुए अपना बैग उठा कर औफिस चला गया.
माला ने फिर बापबेटे की बहस से दुखी हो कर अपना सिर पकड़ लिया. किसे समझाए वह. बापबेटे की अपनीअपनी जिद में वह बुरी तरह पिस रही है. चिराग से 5 साल छोटी दीप्ति भी मां के दुख में दुखी थी.
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माला ने पति को फिर समझाने की कोशिश की, ‘‘आखिर एक बार नलिनी से मिल तो लो, पढ़ीलिखी है. चिराग के औफिस में ही अच्छे पद पर है, सिर्फ दूसरी जाति का होना तो कोई अवगुण नहीं है.’’
रमाकांत गुर्राए, ‘‘तुम चुप रहो, तुम ने ही चिराग को शह दी है, देख लूंगा मैं उसे.’’
किसी भी तरह से रमाकांत नलिनी को अपनी बहू बनाने के लिए तैयार नहीं थे. वे अब भी चिराग के लिए लड़की देखते रहते. चिराग का मूड अकसर खराब ही रहने लगा था. माला भी स्वभाव से विनम्र, हंसमुख और होनहार बेटे की उदासी देख कर उदास ही रहती. रमाकांत सुबहशाम ताना देते, ‘‘इस घर में मेरी मरजी चलती है, यहां रहना है तो मेरे हिसाब से रहना पड़ेगा.’’ एक दिन चिराग ने कहा, ‘‘मां, मेरा दम घुटता है इस घर में, पापा की इतनी जिद, इतना घमंड सहन नहीं होता मुझ से और विवाह तो मैं नलिनी से ही करूंगा, मैं ने उस से प्रौमिस किया है. हां, विवाह में अभी टाइम है, उस के मातापिता तो हैं नहीं, वह अपने भाईभाभी के साथ रहती है. नलिनी कहती है कि वह पापा के आशीर्वाद का इंतजार करेगी. फिलहाल मैं कहीं और रहूंगा, पापा के तानों से दूर.’’
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