लेखक-कमल कुमार

‘‘आप का हैंडबैग टैक्सी में ही रह गया था. उसे ले कर आया हूं. उस दिन आप का घर देख कुछ भी हो, समय हमेशा गुजर ही जाता है. वह उठ कर आया था, वहां खिचपिच में आप कहां बैठेंगी, जाइए, अब आप अपनी सीट पर आराम से बैठिए. उस ने अपने लिए फिल्म लगा ली थी. समय गुजारने के लिए यही अच्छा था.

चायनाश्ते और खाने में समय गुजर जाता है, उस के बाद भी समय रहता है. इस बार वह अपनी पसंद की किताब पढ़ने के लिए लाना भूल गया था. मन में खलबली सी मची थी. बहुत से सवाल उठ रहे थे. शांति के बिना घर में जाने का कोई उत्साह नहीं था. पर अब दूसरा भी तो कोई विकल्प नहीं रहा. पहले जो धुंधली सी आशा की किरण थी कि दोचार महीने संजय के पास बिताए जा सकते हैं, वह यथार्थ के अंधेरे में खो गई थी. फ्लाइट शैड्यूल टाइम से लगभग डेढ़ घंटा लेट थी. वहां से चली ही लेट थी. घड़ी में समय मिलाया था, भारतीय समय के हिसाब से 10 बजे थे.

उस ने आग्रह कर के आराधना का हैंडबैग ले लिया था. सामानपट्टी से सामान लेने के लिए शरद ने उस के लिए भी एक ट्रौली ला दी थी. सामान भी जल्दी ही आ गया था. वह बाहर जाने के लिए आगे बढ़े थे. ग्रीन चैनल से एग्जिट में पहले वह रुका था. ‘‘प्रीपेड टैक्सी लेनी होगी, आप को शायद कोई लेने आएगा?’’

आराधना के कदम थम गए थे. चेहरा लटक गया था. देखा, वह रो रही थी. कहीं गिर ही न जाए. उस ने उसे रोका था. कुछ दूर पड़ी कुरसियों तक ले आया था. उस की ट्रौली से सूटकेस उठा कर अपनी ट्रौली में रख लिया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...