आज के कलियुग की महाभारत जीतनी है तो पार्थ, चापलूसी योग कर और फिलौसफी यानी दर्शन झाड़ना है तो अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता का फलसफा अपना. फिर देख बिना कर्म के कितना मीठा फल प्राप्त करता है तू. जय कलियुगे, जय चापलूसै शक्ति.

हे पार्थ, तू निष्काम भाव से कर्म करता किस युग में जी रहा है? न यह सतयुग है, न त्रेता, न द्वापर. यह कलियुग है पार्थ, कलियुग. निष्काम कर्म से तू आज कुरुक्षेत्र तो छोड़, मीट मार्केट के प्रधान का चुनाव भी नहीं जीत पाएगा.

पार्थ, यह युग बिना काम के फल की इच्छा रखने का युग है. जो दिनभर हाथ पर हाथ धरे लंबी तान के सोया रहता है, आज फल उसी के कदमों को चूमता है. शेष जो काम करने वाले हैं वे तो सारी उम्र पसीना बहातेबहाते ही मर जाते हैं. सामने देख, जो जीवन में पढ़े नहीं वे विश्वविद्यालयों में प्रोफैसर बन रहे हैं और जो दिनरात ईमानदारी से पढ़ते रहे वे लंचरपंचर रेहडि़यों में लालटेन की जगह अपनी उपाधियां टांगे मूंगफलियां, समोसे बेच रहे हैं.

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पार्थ, यह युग कर्म की पूजा करने का नहीं, व्यक्तिक पूजा का युग है. देख तो, जिन्होंने व्यक्ति की पूजा की, और जो सारे कामकाज छोड़ व्यक्ति की पूजा करने हेतु दिनरात रोटीपानी की चिंता छोड़ चापलूसी में डटे हैं, वे कहां से कहां पहुंच गए? और एक तू है कि मेरी ओर टकटकी लगाए लोकसभा चुनाव के लिए मुझ से निष्काम कर्म का चुनावी संदेश सुनने को सारी चुनावी सामग्री एक ओर छोड़ आतुर बैठा है.

आज योगों में योग चापलूसी योग है, तो दर्शनों में दर्शन चापलूसी दर्शन. जिस के दर्शन में चापलूसी नहीं उस का जीवनदर्शन, दर्शन नहीं. धन्य हैं वे लोग जो अपने मन में चापलूसी को स्थिर कर सदा निष्ठापूर्वक और परम श्रद्धा से जहाज के डूबते होने के हर पल संदेश मिलने के बाद भी डूबते जहाज में हुए छेदों को बंद करने की सोचने के बदले डूबते जहाज के सर्वेसर्वा की चापलूसी में लगे रहते हैं.

हे पार्थ, जो चापलूस लोकलाज छोड़ बस चापलूसी के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान स्थापित करते हैं और चापलूसी में एकदूसरे को पछाड़ने के लिए सिर पर कफन बांधे होते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते आए हैं. अगर यह देखने के लिए तेरे पास दिव्य चक्षु नहीं तो ले, मैं तुझे अपने चक्षु देता हूं.

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देख, वे अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए चापलूसी की सारी हदें, सरहदें पार करते क्याक्या नहीं कर, कह रहे? मैं साक्षी नहीं पर मीडिया साक्षी है. उन्हें इस बात की कतई परवा नहीं कि दूसरे क्या कह रहे हैं. उन्हें तो बस उन का अतिशयोक्तिपूर्ण गुणगान करना है वीरगाथा काल के चारणों की तरह. बल्कि ये चारण तो वीरगाथा काल के चारणों से भी दो कदम आगे के चारण हैं.

हे पार्थ, चापलूसी विद्या सीखना तेरी धनुर्विद्या सीखने से भी कहीं अधिक जटिल है. यह निरंतर कड़े अभ्यास से ही आती है. इस विद्या को प्राप्त करने के लिए सोएसोए भी जागे रहना पड़ता है. इसलिए नए कुरुक्षेत्र के लिए उत्तराधुनिक हो रण शस्त्रों से नहीं, चापलूसी से जीतने का अभ्यास कर. वे चापलूसी में क्याक्या कह रहे हैं? उन की चापलूसी की अनूठी, अमर गाथाओं का अवलोकन कर, गहन अध्ययन कर, उन पर चिंतनमनन कर. अगर तू सिद्ध चापलूस हो गया तो तुझे किसी को जीतने के लिए शस्त्र उठाने की कतई जरूरत नहीं. तू मजे से लेटेलेटे ही जीवन का हर युद्ध जीतता रहेगा.

इसलिए, मेरा तुझे आज की डेट में बस यही संदेश है, पार्थ, कि मेरी ओर टुकुरटुकुर देखना छोड़, न खुद शर्मिंदा हो, न मुझे असहाय कर. अपने मन को निर्विकार हो चापलूसी में लगा. अपने तनमन को चापलूसी से लबालब कर दे. क्योंकि, सच यहां कोई न जानना चाहता है न सुनना. देख, सभी हर जगह अपना सबकुछ लुटने के बाद भी अपनी जयजयकार सुनने के लिए कितने उग्र हैं, व्यग्र हैं? और वे हैं कि दे दनादन गला फाड़ उन की जयजयकार करने में जुटे हैं.

मुझे इस में कोई संशय नहीं कि ऐसाकरने से तू मेरे बिना ही हर सिद्धिको प्राप्त कर लेगा. तेरे चापलूस होते ही राजा से ले कर रंक तक सब तुझ पर प्राण न्यौछावर करने को तैयार रहेंगे. और तुझे चाहिए भी क्या? इसलिए मेरा संदेश तुझे बस यही है कि तू जो भी बोल, बस, बिन सोचेसमझे, जहां जरूरत दिखे आंखें मूंद उस की प्रशंसा में बोल, जी खोल कर बोल. तेरा ऐसा करने में जाता भी क्या है? यह निर्विवाद सत्य है कि कर्म करने वाला कर्म करने के बाद कुछ पाएगा या नहीं, संशय ही बना रहता है पर चापलूसी करने वाला हर हाल में पाता ही पाता है. वहां संशय की संभावना नैग्लिजिबल है. वर्तमान गवाह है. इसलिए जा, निष्काम कर्मयोग से मुक्त हो चापलूसी योग शुरू कर. आने वाला कल तेरा होगा.

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