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#coronavirus: सोशल डिस्टेंसिंग ने बूस्टर शॉट दिया

कोरोना की महामारी से दहशत का माहौल है. इस खतरनाक वायरस से निपटने के लिए दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी अपने घरों में कैद हो चुकी है.अभी तक इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं मिल पाया है. मगर इस बीच नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल लेविट की एक भविष्यवाणी लोगों को कुछ राहत दे सकती है.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के बायोफिजिसिस्ट और नोबेल पुरस्कार विजेता माइकल लेविट ने कहा है कि सोशल डिस्टेंसिंग ने दुनिया को एक बूस्टर शॉट दिया है जो इस समय महामारी से लड़ने के लिए जरूरी है.इसलिए कोविड-19 का कहर जल्द ही खत्म हो जाएगा.मरने वालों की संख्या में वृद्धि की दर अगले सप्ताह और भी धीमी हो जाएगी.

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रसायन विज्ञान में 2013 का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले लेविट ने इससे पहले चीन में महामारी के बारे में भविष्यवाणी की थी.उन्होंने कहा था कि चीन में यह महामारी विनाशकारी प्रकोप लेकर आएगी.माइकल ने कई अन्य विशेषज्ञों से पहले ही इसकी भविष्यवाणी की थी.माइकल लेविट वही हैं, जिन्होंने भविष्यावाणी की थी कि चीन में कोरोना से सवा तीन हजार लोग मरेंगे.

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माइकल लेविट ने ‘द लॉस एंजिल्स टाइम्स’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि हमें कोरोना के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए जो करना चाहिए, वो हम कर रहे हैं। हम सब ठीक होने जा रहे हैं. अब परिस्थिति उतनी भयावह नहीं है, जितना कि चेताया जा रहा है.भले ही कोरोना के बढ़ते मामलों की संख्या परेशान करने वाली है, मगर धीमी वृद्धि से इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के कारण इस वायरस को बढ़ने और फैलने का रास्ता नहीं मिल रहा है. गौरतलब है कि कोरोना वायरस से दुनियाभर में अब तक साढ़े चार लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और करीब 17 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

नीलाम होते गांव: भाग 3

लेखक-श्री धरण सिंह

एक शाम जब विश्वासनाथ आरामकुरसी में सुस्ता रहे थे, तभी पास बैठी सौदामिनी बोल उठी, ‘देखिए जी, अब मकान बन गया है. दोनों बच्चों की शादी भी हो गई है. नरेन कहता है कि वह अभी ब्याह नहीं करेगा. वह व्यापार करना चाहता है.’

‘व्यापार? माने किस चीज का व्यापार?’ विश्वास दा ने पूछा.

‘वह ड्राइविंग सीख रहा है न. उसे सैलानियों को घुमाने के लिए टूरिस्ट गाड़ी चाहिए. वह कहता है कि 5 लाख रुपए तो चाहिए ही होंगे.’

‘हूं,’ उन्होंने सिर हिलाया.

‘तो क्यों न बचे हुए रुपए हम बच्चों में बांट दें. इतने रुपयों का हम क्या करेंगे. पता नहीं, कब ऊपर से बुलावा आ जाए,’ उस ने एक लंबी सांस खींची. तभी खांसी का एक दौरा उठा जो उसे निढाल कर गया.

‘ऐसे नहीं बोलो सौदामिनी, चलो, भीतर जा कर लेट जाओ,’ विश्वास दा ने कहा. तभी बहू ने मांजी की अलमारी से ‘इन्हेलर’ मशीन ला कर दी जो सौदामिनी के शहर के एक डाक्टर ने दी थी. थोड़ी दवा लेने के बाद वह अब पलंग पर लेट गई थी.

अगले सप्ताह पत्नी के कहने पर हीरेन, नरेन के अकाउंट खुलवा कर विश्वासनाथ ने 30 लाख रुपए हर एक के खाते में डलवा दिए. दामाद को भी 30 लाख रुपए नकदी देने का फैसला किया गया.

बड़े बेटे की बहू चूंकि शहर की थी, उस ने धीरेधीरे हीरेन को शहर जाने के लिए मना लिया था. दोनों ने शहर जा कर एक नया बनाबनाया मकान ले लिया था. छोटे बेटे नरेन ने 2 टूरिस्ट गाडि़यां और्डर दे कर मंगवा ली थीं, जो देशीविदेशी टूरिस्टों को पूरे हैवलौक द्वीप में घुमाती थीं. गाडि़यों से अच्छी आय होने लगी थी. लेकिन सैलानियों को घुमातेघुमाते उस की आदतें अब कुछ बिगड़ने लगी थीं.

कुछ यारदोस्तों की संगति में उसे शराब की बुरी लत लग गई थी. कुछ विदेशी लोग भी उसे शराब की बोतलें बतौर तोहफे दे जाते थे.

इस बीच, अभिलाष को बेंगलुरु में होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई के लिए सीट मिल गई थी. कृष्णानगर में सब्जियों की पैदावार से उन्हें कोई अच्छी आय नहीं हो रही थी. उस के पिता ने उस की पढ़ाई के खर्चे के लिए विश्वासनाथ से कुछ रुपए मांगे थे. सौदामिनी के मन में भी उस लड़के के लिए जगह थी. उस ने ही तो उन्हें ये दिन दिखलाए थे. सौदामिनी की सहमति से विश्वासनाथ ने उसे 3 लाख रुपए दिए थे. अभिलाष सब का सहयोग पा कर अपनी पढ़ाई करने चला गया इस बीच, होली के एक दिन राधानगर सागरतट से नरेन अपनी मोटरसाइकिल से दोस्तों की टोलियों के साथ वापस लौट रहा था. उस की मोटरसाइकिल एक पेड़ से टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो गई. दुर्घटनास्थल पर ही नरेन की मृत्यु हो गई. दोस्त उस के शव को घर लाए. सौदामिनी ने ज्यों ही अपने मृत बेटे का शव देखा, दहाड़ मार कर रोने लगी. विश्वासनाथ का भी बुरा हाल था. शव को शाम तक घर में रखा गया. शाम तक सभी रिश्तेदार पहुंच गए थे. विजयनगर के समुद्रतट के पास उस के शव का अंतिम संस्कार किया गया.

नरेन की मृत्यु के बाद सौदामिनी की तबीयत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी. विश्वासनाथ उसे शहर के डाक्टर को दिखाने ले गए. हीरेन भी साथ था. डाक्टर ने विश्वासनाथ को अलग से बताया कि मांजी को फेफड़ों का रोग है. विश्वासनाथ के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. डाक्टर ने कुछ महंगी दवाएं दीं. दवा ले कर वे लौट आए. अब बहू अनुराधा अपनी सासू मां को ज्यादा कामकाज न करने देती थी. वह उन का खयाल रखती थी. मांजी का खानापीना, दवा, बिस्तर, सब सही ढंग से करती थी. जैसे फिर उसे यह मौका मिले, न मिले. सौदामिनी को जबतब खांसी का दौरा पड़ता रहता.

दिसंबर के उमस भरे दिन आ गए थे और रातें थीं कि कड़ाकेदार ठंडी. सौदामिनी की सेहत इन्हीं दिनों डांवांडोल होने लगी. एक रात अचानक उस को जोर की खांसी उठी. सांसें उल्टी चलने लगीं. और पलभर में उस की सांसें रुक गई थीं. उस रात सभी उस के पास थे. ‘हम को अकेला छोड़ कर चली गई रे, अब मैं कैसे जिऊंगा…’ विश्वासनाथ पत्नी को सीने में समेट कर रोने लगे. पता नहीं नियति ने वश्वासनाथ के साथ कैसी लीला रची है, पहले बेटा गया अब पत्नी. दीपशिखा और जमाई को फोन द्वारा सूचित कर दिया गया. गांव के लोग भी आ जुटे थे.

दोपहर के बाद दीपशिखा और दामाद आ गए थे. दीपशिखा के ब्याह को अभी बरसभर ही तो हुआ था, अपनी मां के शव पर वह दहाड़ मार कर रो रही थी. शाम होतेहोते उसी जगह, जहां पर 10 महीने पहले बेटे के शव को जलाया गया था, बड़े बेटे हीरेन ने अपनी मां को वहीं विदाई दी. अब किसी को भी उस गांव में अच्छा नहीं लग रहा था, जैसे कोई शापित गांव हो. 1 महीने के बाद हीरेन और बहू अनुराधा ने बाबूजी को पोर्टब्लेयर शहर आने को कहा, जहां पर उन्होंने मकान ले लिया था. दीपशिखा और जमाई ने भी उन्हें न्योता दिया था उन के साथ आ कर रहने के लिए. विश्वासनाथ ने उन से माफी मांगी और कहा, ‘बच्चो, इसी गांव में हमारी जिंदगी बदली. यहीं हम ने सबकुछ पाया और यहीं हम ने अपना सबकुछ खोया. मेरे बेटे की यादें यहीं बसी हैं. तुम्हारी मां की यादें भी इस जगह बसी हुई हैं. हम कहीं नहीं जाएंगे, बेटे,’ फिर लक्ष्मण से कहा, ‘भाई, तेरे लिए मैं कुछ नहीं कर सका.’

‘नहीं दादा, मैं कुछ नहीं चाहता. बस, आप के साथ रहना चाहता हूं,’ कहते हुए वह रोने लगा.

इतने बड़े मकान में विश्वासनाथ कैसे अकेले रह सकते थे. सो, बहूबेटे, दामाद के कहने पर उन्होंने वह मकान भी बेच दिया. किसी रिसोर्ट के मालिक ने उसे खरीद लिया जहां गोताखोरी की ट्रेनिंग का केंद्र बनाया गया. वहां से सागर तट बहुत नजदीक पड़ता था. इस से मिली रकम को बड़े बेटे और बेटी के नाम बैंक में उन्होंने डलवा दिए. लक्ष्मण को भी उस ने जेटी में एक बढि़या ढाबा खुलवा दिया. वह अब अपना जीवन सुधार ही लेगा, इस विश्वास से. हीरेन ने आखिरी बार अपने बापू को अपने साथ चलने को कहा था लेकिन उन की प्रतिज्ञा को अब कोई भी तोड़ नहीं सकता था. एक वह दिन था, एक यह दिन है. यही है वह अभिलाष जो रिसोर्ट का मैनेजर बन गया है, जिस पर विश्वासनाथ के कितने एहसान हैं. अभिलाष ही उस के एकाकी दिनों में उन का अभयदाता बना हुआ है.

फरवरी महीने का एक सुहाना दिन था. हर दिन की तरह विश्वासनाथ होटल के लौन में फूलों के पौधों को सींच रहे थे. वे अलबत्ता कुछ खांस भी रहे थे, ‘‘दादा, मैं जरा इन्हें राधानगर बीच दिखा लाऊं,’’ यह अभिलाष की आवाज थी.

दादा ने घूम कर देखा, एक युवा जोड़ा सामने खड़ा था.

‘‘बेटा, शाम तक आ जाओगे न?’’ दादा ने पूछा.

‘‘हां, हां, जल्दी आ जाऊंगा,’’ अभिलाष ने कहा.

वे अब जीप में बैठ चुके थे. वास्तव में अभिलाष ने ही उन दोनों को ‘हैवलौक’ देखने के लिए न्योता दिया था. युवक का नाम समीर था. बेंगलुरु में कालेज के दिनों में उन की दोस्ती हुई थी. साथ में उस की पत्नी नेहा थी.

शाम 6 बजे तक वे होटल लौट आए थे. तभी अभिलाष से किसी ने कहा कि विश्वासनाथ की तबीयत कुछ ठीक नहीं है. उन्हें चक्कर आए हैं और शारीरिक कमजोरी भी है. अभिलाष तुरंत उन के आउटहाउस वाले कमरे में पहुंचा. उस ने देखा, दादा एकदम निढाल पड़े हैं. उस ने सोचा कि मित्रों को ले कर वह राधानगर गया ही क्यों. पर अब क्या किया जाए, तुरंत उस ने गांव के डाक्टर को दिखाने का फैसला किया. उस ने होटल के ड्राइवर को शीघ्र बुलवाया. गाड़ी निकाली और डाक्टर को दिखला लाया. डाक्टर ने जांच कर बताया कि उन्हें बेहद कमजोरी थी, रक्तचाप भी बढ़ चुका था. डाक्टर ने उन्हें शहर ले जाने के लिए कहा, साथ ही ताकत की कुछ दवा दे दी थी. विश्वासनाथ को कुछ खाने का मन ही नहीं था. अभिलाष के कहने पर बड़ी मुश्किल से उन्होंने 2 निवाले पेट में डाले. अभिलाष ने उन्हें डाक्टर की दी हुई गोली खिलाई. उन्होंने तुरंत अभिलाष के हाथों को अपने बूढ़े हाथों में लिया. आंसू का एक गरम कतरा अभिलाष के हाथों पर गिर पड़ा.

‘‘दादा, आप फिक्र न करें. मैं हूं न. सुबह हम शहर चलेंगे. आप आराम कीजिए, ठीक है?’’ अभिलाष ने उन्हें सांत्वना दी. उस ने दादा को चादर ओढ़ा दी और कमरे से बाहर चला गया.

वह रात अभिलाष पर भारी गुजरी. अगली सुबह जागते ही वह विश्वासनाथ के कमरे की ओर बढ़ा. ज्यों ही कमरे में पहुंचा, वह अवाक् रह गया. बिस्तर पर विश्वासनाथ का सिर एक ओर लुढ़का हुआ था. उन के शरीर को हाथों से हिलाया, ‘‘दादा, दादा, उठिए, शहर नहीं जाना है क्या?’’ अभिलाष ने जोर से पुकारा, पर वे कहां उठते.

तभी उस ने बाहर जा कर होटल के एक कारिंदे को बुलाया जिस ने आ कर अपनी हथेली उन की नाक पर रखी. उन के प्राण पखेरू उड़ चुके थे. कारिंदे ने उन की पलकों को बंद किया फिर उन के शरीर को पलंग पर सीधे लिटा दिया और अभिलाष को इशारे से बताया.

अभिलाष के आंसू निकल आए. वह सिसकसिसक कर रोने लगा जैसे वह उन का सगा बेटा हो. होटल में हड़बड़ी मच गई. सभी कर्मचारी और अन्य लोग आ जुटे. समीर और नेहा भी आ गए. वे रोते हुए अभिलाष को ढाढ़स देने लगे. एक घंटे बाद विश्वासनाथ का भाई लक्ष्मण भी जेटी से आ पहुंचा. अपने भैया के सिरहाने बैठ कर वह फूटफूट कर रोने लगा. किसी तरह से सब लोगों को खबर दी गई. शाम होने से पहले शव का क्रियाकर्म किया जाना था. सभी आखिरी स्टीमर के आने तक राह देखते रहे, शायद शहर से बेटा आ जाए या दूर द्वीप से जंवाई बेटी आ जाएं. पर तब तक कोई नहीं पहुंच पाया, पता नहीं क्यों.

तब लक्ष्मण ने अभिलाष से कहा, ‘‘अब हम प्रतीक्षा नहीं कर सकते.’’

कभी करोड़पति रहे विश्वासनाथ का पूरे हैवलौक में कहां ठिकाना था. अभिलाष ने सारा इंतजाम कर लिया था. शव को राधानगर ले जाया गया. सागरतट से दूर बादाम और महुए के पेड़ों के झुरमुट में एक खाली जगह पर उन के शव को ले जाया गया. शव जलाने की लकडि़यां रखी थीं. उन का छोटा भाई लक्ष्मण के चेहरे पर अकथनीय दुख की छाया थी. अभिलाष भी लक्ष्मण की तरह धोती पहने शव के पास खड़ा था चेहरे पर कर्तव्यनिष्ठ भाव लिए. हैवलौक के पश्चिमी किनारे पर सूर्य डूब रहा था पर आज के सूर्य की 0किरणें सिंदूरी आभा लिए नहीं थीं, उन का रंग शायद खूनी लाल था. लक्ष्मण जैसा छोटा भाई शायद कहीं भी न हो, अभिलाष जैसा बेटा इस युग में ढूंढ़े से भी न मिले पर विश्वासनाथ जैसे विस्थापित जिंदगी जीने वाले और भी होंगे, शायद.

 

नीलाम होते गांव: भाग 1

लेखक-श्री धरण सिंह

उसी समय किसी ने अभिलाष को होटल के भीतर बुला लिया था. वह जाने लगा, ‘‘दादा, ये कुरसियां बरामदे में रखवा दीजिए,’’ उस ने कहा. कुरसियां रखवाने के बाद सुस्ताने के उद्देश्य से वे बरामदे के चबूतरे पर बैठ गए और अपने हाथों सनराइज होटल के लौन में वे गुलाब और गेंदे के पौधों को सींच रहे थे, तभी होटल के मैनेजर अभिलाष ने उन्हें पुकारा, ‘‘विश्वास दा, अब बस करिए. देखिए, आप से कुछ लोग मिलने आए हैं.’’ उन्होंने झट से सींचना बंद किया और बरामदे की ओर बढ़े अभिलाष के साथ एक अधेड़ विदेशी पर्यटक और एक फिल्म कैमरामैन खड़ा था. दोनों ने उन्हें देख कर ‘हैलो’ कहा. विश्वास दा ने सिर झुकाया और प्रणाम किया. तभी अभिलाष बोल उठा, ‘‘दादा, ये विदेशी पर्यटक हैं और हैवलौक द्वीप पर कोई डाक्यूमैंट्री फिल्म बनाना चाहते हैं. मैं ने आप के बारे में बताया, ये लोग आप की फोटो लेंगे, जल्दी से कपड़े बदल कर आइए. विश्वास दा फौरन होटल के पीछे वाले आउटहाउस में चले गए. मैनेजर पर्यटक और कैमरामैन से बतियाता रहा. कुछ क्षण बाद अपना हुलिया बदल कर लौट आए. उन्होंने सफेद पायजामा और कुरता पहना हुआ था.

अमलतास के पेड़ के नीचे आर्मेट की कुरसियां रखी गई थीं. विदेशी पर्यटक ने दादा को कुरसी पर बैठने को कहा. ठीक उन की ओर मुंह किए कुरसियों पर दोनों पर्यटक महाशय और अभिलाष बैठे हुए थे. कैमरामैन कैमरे को स्टैंड में लगाए उन के पार्श्व में खड़ा था.

‘‘दादा, ये आप से पूछना चाहते हैं कि आज और बीते कल के जमाने के हैवलौक में क्या फर्क है? आप ने अपना संघर्ष कैसे किया? अपनी जमीन को होटलमालिकों को बेच कर क्या आप खुश हैं?’’ अभिलाष ने दादा  को बताया.

पहले विश्वास दा ने रूमाल से पसीना पोंछा और अपने को संयत किया. पहली बार कोई उन की वीडियो शूट कर रहा था.‘‘स्टार्ट कैमरा,’’ पर्यटक ने कहा.

कैमरा चालू हो चुका था. अभिलाष ने इशारे से विश्वास दा से कहा कि वे बोलें. टूटीफूटी हिंदीबंगला मिश्रित भाषा में उन्होंने कहा, ‘‘हैवलौक और नील द्वीप सैलानियों का बहुत खूबसूरत स्थल बन जाएगा, यह तो हम ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था. विभाजन के बाद सरकार ने हम को इधर ला कर बसाया. हम ने और दूसरे विस्थापितों की टोलियों ने खूनपसीना एक कर दिया इन जंगलों को काट कर कृषियोग्य भूमि बनाने में. हमारी आजीविका कृषि थी. हमारे बच्चे भी यहीं हुए.’’ तभी पर्यटक महाशय ने अंगरेजी में कहा, ‘‘दैट्स नाइस, ओके. व्हाट अबाउट मनी यू रिसीव्ड फौर योर लैंड?’’

दादा कुछ समझ न पाए. अभिलाष ने उन्हें दुविधा से निकाला, ‘‘दादा, ये पूछ रहे हैं अपनी जमीन का आप को जो पैसा मिला उस से क्या आप संतुष्ट हैं?’’ विश्वासनाथ ने अपनी 2 उंगलियां हवा में उठा दीं और कहा, ‘‘दो कौड़ी (करोड़). मेरे परिवार के सभी लोग बहुत खुश हैं,’’ लेकिन दूसरे ही क्षण दर्द की एक रेखा उन के चेहरे पर उभरी. उन्होंने तुरंत रूमाल से मुंह से पोंछा.

‘‘ओके, कट, कट,’’ पर्यटक महाशय की आवाज आई, ‘‘थैंक्यू मिस्टर विश्वासनाथ,’’ उस ने झट से बढ़ कर दादा से हाथ मिलाया.दादा के सख्त और खुरदरे हाथ को महसूस करते ही उस ने झट अपना हाथ खींच लिया.‘‘ओह, सो स्ट्रौंग,’’ उस ने कहा और झट कुरसी से उठ खड़ा हुआ. कैमरामैन ने भी अपना कैमरा कंधे पर रख लिया था. पर्यटक महाशय और उस के साथी कुछ देर तक अभिलाष से बातें करने के बाद विदा ले कर चले गए.

को देखते हुए सोचने लगे, यही तो वे हाथ हैं जिन की सख्ती में महीनों की मेहनत का दर्द छिपा है, जंगलों को मैदान में बदलने का एहसास भी. स्मृतियों का एक रेला उन्हें 40 बरस पीछे लिए चला जा रहा था… उन दिनों जब विश्वासनाथ और उन के जैसे दूसरे लोग कलकत्ता के शरणार्थी कैंपों में अपनी जिंदगी जी रहे थे. उन में औरतें भी थीं, बच्चे भी, उम्रदराज बूढ़े भी. जमीन से उखड़ना उन की नियति बन गई थी.

वहां हर सुबहशाम पुनर्स्थापना अधिकारी आतेजाते रहते थे. सरकार की मंशा थी कि पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित इन हिंदू परिवारों को भारत की मुख्यभूमि से दूर अंडमान के अलगअलग द्वीपों में बसाया जाए. कैंपों में वर्षों से लोग रह रहे थे. ये वही लोग थे जो अपने गांव, अपनी जमीन को छोड़ कर पूर्वी पाकिस्तान से भागने को मजबूर हुए.

भारत के विभाजन के बाद दंगेफसाद के माहौल में तब रहना सुरक्षित कहां था. उन्हें कोई ठिकाना तो चाहिए था. मुसलिम बहुतायत की जगहों से हिंदू पलायन कर रहे थे. कैंपों में अंडमान भेजने की कोशिशें जोरों पर थीं. एक शाम की बात है,  पुनर्स्थापना अधिकारी विश्वासनाथ के शिविर में आ धमका.

उस ने विश्वासनाथ को बुलाया, ‘ए, इधर आ.’वे एक कोने में बैठे थे. वे तुरंत अफसर के पास चले आए. रिहैबिलिटेशन अफसर ने फौरन उन के हाथों को मजबूती से खींचा.‘ओह, स्ट्रौंग, गुड,’ अधिकारी ने कहा, ‘तुम लोगों को कल जहाज से अंडमान ले जाया जाएगा, समझे. तुम्हारी घरवाली है?’

‘हां साहब, है,’ उन्होंने कहा. उन की पत्नी सौदामिनी कैंप में ही उन के साथ थी. उन के साथ अन्य टोलियों को उस दिन छांटा गया. मनुष्य की एक कुत्सित मानसिकता के आगे, एक पागलपन के कारण छूट गए धान के वे खेत, गांव के तालाबपोखर जहां वे मछलियां पकड़ा करते थे. अपनी जमीन से उखड़ने के इसी दुख में उन के बूढ़े पिता चल बसे थे. अपने पति के विछोह में उन की मां दुनिया छोड़ गईं. बच गए थे विश्वासनाथ और उन का छोटा भाई.

अगली सुबह अपने साथियों के साथ उन्हें जहाज पर चढ़ा कर रवाना कर दिया गया था. कलकत्ता से छूटने के बाद जहाज के डैक पर खड़ेखड़े विश्वासनाथ और उन के साथी सागर के असीम विस्तार को देख कर चकित होते गए थे. 1 दिन, 2 दिन, 3 दिन…अंडमान अब भी बहुत दूर था. औरतों की हालत ठीक नहीं थी. उन्हें लगातार उल्टियां हो रही थीं. 7वें दिन उन की खुशी का ठिकाना न रहा जब उन्होंने अंडमान के छितरे हुए द्वीपों को देखा. उन सभी टोलियों को पोर्टब्लेयर के बंदरगाह में उतारा गया और अगले दिन विश्वासनाथ और उन के साथियों को एक मोटर नौका द्वारा बारीबारी से हैवलौक द्वीप पहुंचाया गया. अपनी जमीन से उखड़े ये लोग फिर बसने जा रहे थे. उखड़ना और बसना उन की नियति जो है.

चीफ कमिश्नर के आदेश के अनुसार, राजस्व विभाग ने उन के रहने के लिए अस्थायी झोंपड़ी की व्यवस्था कर दी थी. राजस्व विभाग के अधिकारी अपनी फटफटी में बैठ कर वहां आते थे. निर्वासितों का काम होता जंगलों को काट कर कृषियोग्य बनाना. अधिकारी उन्हें जंगल के भीतर ले जाते. कभी मील दो मील पैदल भी चलना पड़ता. अधिकारी उन्हें 15 बीघा या लगभग 30 बीघा (10 एकड़) जमीन नाप कर देते जाते. निशानी के तौर पर वहां लकड़ी की बनी एक खूंटी भी गड़वा देते, यही क्रम होता. आज विश्वासनाथ और सौदामिनी को भी अपनी जमीन मिल गई थी. उन के साथ उन का छोटा भाई लक्ष्मण भी था. उन के जीवन का स्वर्ण अध्याय शुरू हो चुका था. राजस्व अधिकारी के कारिंदे ने एक कुल्हाड़ी और 2 तेज धार वाली दाव विश्वासनाथ को दीं और कहा, ‘लो भई, विश्वासनाथ, शुरू हो जाओ.’ विश्वासनाथ ने कुल्हाड़ी अपनी मजबूत हाथों में ली, कमर में गमछे को कस कर बांधा और अपनी जमीन पर खड़े पहले के पेड़ों पर कुल्हाड़ी से वार करने लगे. धम…धम…कुल्हाड़ी चलने की आवाज से जंगल गूंजने लगा. विश्वासनाथ का छोटा भाई उन का साथ देने लगा. सौदामिनी झाडि़यों, बेलों को साफ करने में जुट गई.

पसीने की शक्ल में खून शरीर से बहता रहा. दिन सप्ताहों में, सप्ताह महीनों में बदलते रहे. लगभग एकतिहाई जंगल गायब हो गए थे और उन सब की जगह उभर आए थे नई मिट्टी की सुवास लिए, छोटेछोटे तालाबपोखरों, नालों को समेटे छोटेछोटे गांव. मानचित्र पर विजयनगर, श्यामनगर, राधानगर जैसे गांव उभर आए. अपने नए गांव विजयनगर में विश्वासनाथ और सौदामिनी बहुत खुशी से जिंदगी बिता रहे थे. बांस की चटाई से बनी दीवारें व टिन के छप्पर से बने उन के घर आरामदायक थे.

गरीब सांवरी की जिंदगी पर कैसे लगा लॉकडाउन?

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
सोलह साल की सांवरी, कब से दिल्ली शहर में  रह रही है , उसे खुद भी याद नहीं है,जबसे होश संभाला है अपने आपको इसी ज़ुल्मी शहर में पाया है. ज़ुल्मी इसलिए है ये शहर ,क्योंकि यहाँ कोई उससे अच्छे से नहीं बोलता और कोई भी उसकी चिंता भी नहीं करता .
अच्छे घरों की लड़कियां सुंदर साफ़ कपड़ों मे जब स्कूल जा रही होती हैं  तब सांवरी को भी अम्मा और पापा के साथ काम पर निकलना पड़ता है.
हाँ , काम पर ,
और सांवरी को काम की कभी कोई कमी नहीं होती ,उसके परिवार को ठेकेदार बराबर काम देता रहता है.
इस  शहर में  जो आसमान को चूमती हुयी इमारतें रोज़ बनती ही रहती हैं  ,उन्ही  इमारतों में काम करती है सांवरी और उसके पापा और अम्मा.
और इसीलिये उसके परिवार को घर की भी कोई ज़रूरत नहीं खलती ,जिस इमारत में काम किया वहीं सो  गए  ,फिर सुबह होने के साथ उसी इमारत मे काम करने का सिलसिला फिर शुरू .
हाँ ये अलग बात है कि जब ये इमारत बन कर तैयार हो जायेगी तब तक सांवरी और उनका परिवार कहीं और जा चुका होगा ,किसी और इमारत को बनाने के लिए .
वैसे ये बात भी सांवरी किसी को नहीं बताती कि उसकी असली उम्र सोलह साल है ,क्योंकि अगर ठेकेदार को असली उम्र बता दी न तो फिर वो सांवरी को काम से हटा देगा क्योंकि अट्ठारह साल से कम उम्र के बच्चों को ठेकेदार काम पर नहीं रखता है ,पिछली बार जो ठेकेदार था न ,तो पापा ने उसको असली उमर बता दी थे सांवरी की ,तो उसने काम से हटा दिया था सांवरी को ,और जो चार पैसे वो कमाकर लाती थी वो भी मिलने बंद हो गए थे फिर .
उस दिन के बाद सांवरी और पापा सबको अपनी उमर अट्ठारह साल ही बताते हैं .
वैसे तो इस वाली इमारत में काम करते पांच महीने हो चुके हैं पर इस ठेकेदार ने अभी तक पगार नहीं दी है ,कई बार सब मजदूरों ने मिलकर कहा भी तो बस थोड़े बहुत पैसे दे देता है और ऊपर से पैसे न आने का बहाना बना देता है .
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पर ये क्या ……आज अचानक से ये अफरा तफरी क्यों मच गयी है?
सारा काम क्यों बंद करा दिया गया है?
“चलो चलो ….आज से काम बंद हो रहा है …कोई कोरोना वायरस है …जो बीमारी फैला रहा है …इसलोये सरकार का आदेश है कि सब काम बंद रहेगा और कोई भी बाहर नहीं निकलेगा “ठेकेदार ने काम बंद करते हुए कहा
“काम बंद करें ….,पर उससे क्या होगा ? और फिर हम कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या?”
“अरे  …वो सब मुझे नहीं पता ….वो सब जाकर सरकार से पूछो….फिलहाल काम बंद करने का है…” चीख पड़ा था ठेकेदार
“ठीक है ….हमारी पगार तो दे दो”एक मज़दूर बोला
“पगार कही भागी जा रही है क्या? जब काम शुरू होगा तब मिल जायेगा पगार”ठेकेदार का रुख सख्त था.
मज़दूर समझ गए थे कि इससे बहस करना बेकार है ,भारी मन से उन्होंने काम बंद कर दिया और अधबनी इमारत में जाकर सर औंधा कर के बैठ गए.
अभी कुछ ही समय हुआ था उन सबको सुस्ताते हुए कि उन लोगों के देखा कि उनकी ही तरह एक मजदूरों का टोला ,जो कहीं और काम करता था और उनके ही गांव की तरफ का लग रहा था ,वो अपना सामान सर पर रख कर तेज़ी से चला आ रहा है
“अरे अब यहाँ मत रुको ….अब अपने घर चलो …यहाँ सब खत्म हो रहा है ….काम एंड करा दिया गया है और पुलिस शहर बंद करा रही है और सुना है कोई बीमारी फ़ैल रही है जिससे  आदमी तुरंत ही मर जा  रहा है .
उनमें से सबसे आगे चलने वाले मज़दूर ने चेताया
सांवरी और उसके साथ वाले मज़दूर भी यह सुनकर डर गए और सबने ही घर लौट चलने की बात मान ली.
भला दिहाड़ी मजदूरों के पास सामान ही कितना होता है?
जिसके पास जो भी सामान था ,उसे बोरे में बाँध बस स्टैंड की तरफ चल पड़े सभी.
परंतु तब तक देर हो चुकी थी सरकार ने संक्रमण फैलने के डर से बस और ट्रेने सभी बंद करा दी थी.
चारो तरफ अफरा तफरी का माहौल था,पुलिस हाथों में डंडे लेकर लोगों को मार रही थी और लोगों से घर से नहीं निकलने को कह रही थी पर फिर भी ज़रूरी सामान जुटाने को लोग घर से बाहर तो निकल ही रहे थे.
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“अब हम घर कैसे जाएंगे” रोने लगी थी सांवरी
“हाँ ….हम लोगों का घर तो बहुत दूर है …क्या हम सब यहीं मर जायेंगे?” एक मज़दूर बोला
“नहीं अगर मरना है …तो यहाँ परदेस मैं नहीं मरेंगे  ….अपने घर ..चलने की कोशिश तो करेंगे ही और अगर इस कोशिश में मर भी गए तो कोई बात नहीं” बिहार का एक मज़दूर हिम्मत दिखाते  हुए बोला
“हाँ …चलो चलते हैं और हो सकता है कि हमें रास्ते में ही कोई सवारी मिल जाए और हम घर के नज़दीक पहुच जाए”
“हाँ ये सही रहेगा….चलो…चलते हैं”
और इस तरह बिहार और उत्तरप्रदेश के कई अलग अलग इलाकों से आया हुआ ये मजदूरों का गुट लौट पड़ा अपने घर की तरफ ,
सारी दुनिया भी घूम लो पर फिर भी संकट आने पर हर व्यक्ति को अपना घर ही याद आता है.
और फिर शहर में भला इन मजदूरों को कौन खाना ,पानी पूछता
 सभी को अपनी राजनीति की पडी थी .
पुलिस सड़कों पर थी और चारो तरफ लॉकडॉउन कर दिया गया था अर्थात हर एक व्यक्ति को घर मे ही रहने था बाहर नहीं निकलना था और इसी तरह इस कोरोना वायरस से रोकथाम संभव थी.
सारे मज़दूर अपने परिवारों को साथ ले,अपने सामान को सर पर उठाये ,हाथों में पकडे ,बच्चों को  सुरक्षा की नज़रिए से अपने आगे पीछे चलाते हुए ,चल पड़े थे अपने गांव की तरफ ,वहां वे कब पहुचेंगे ,कैसे पहुचेंगे ,पहुचेंगे भी या नहीं ,इन सब बातों जा उन्हें कोई भी अंदाज़ा नहीं था और ना ही शायद वो इन बातों को जानना चाहते थे.
सामने कभी न खत्म होने वाला हाईवे दिखाई दे रहा था ,फिर भी सभी मजदूरों का टोला ,मन में एक आतंक लिए चला जा रहा था सिर्फ इस उम्म्मीद में कि अगर घर पहुच गए तो सब सही हो जायेगा.
“ए क्या तुम लोगों को  पता नहीं है क्या कि पूरे शहर में लॉकडाउन है और तुम लोग एक साथ ,इतना सारा सामान लिए कहाँ चले जा रहे हो “एक पुलिस वाला चिल्लाया
“जी …साहेब हम सब लोग अपने गांव की तरफ जा रहे है  ….और कोई सवारी भी नहीं मिला रही है इसलिए पैदल ही चले जा रहे हैं …कभी न कभी तो पहुच ही जायेंगे” सांवरी के पापा आगे आकर बोले
” स्साले …..तुम लोगों की जान बचाने के लिए हम लोग रात दिन ड्यूटी कर रहें हैं और तुम लोग सड़क पर घूम कर हमारी सारी मेहनत पर पानी फेर दे रहे हो……..
तुम लोग ऐसे नहीं मानोगे …चलो सब के सब मुर्गा बनो .. सालों “
और पुलिस वाले ने सारे मजदूरों को सजा के तौर पर मुर्गा बनवा दिया ,सारे मज़दूर लाठी खाने के डर  के आगे  मुर्गा बन गए ,उन मजदूरों की औरतें  और बच्चे बेबस  होकर देखते ही रहे.
डर से व्याकुल  ,भूख से परेशान  मज़दूर फिर से पैदल  चल पड़े अपने गांव की तरफ.
अब तक देश में सरकार की तरफ से इस लॉकडाऊन की हालत को सुधारने के लिए बहुत सारे प्रयास किये जा रहे थे पर मजदूरों तक तो सिर्फ पुलिस के डंडे ही आ रहे थे.
पर फिर भी उनसब ने ठान रखा था कि जब तक जान है चलते रहेंगे.
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पर मनुष्य शरीर की भी एक सीमा है आओर जब उनके शरीर की चलने की सीमा समाप्त हो गयी  और रात हो गयी तो सबने एक मति से वहीँ हाईवे के किनारे सोने की योजना बनाई और जिसके पास जो जो भी  था वहीँ किनारे पर बिछाकर सोने की तैयारी करने लगे.
कुछ देर बाद वहां पर एक पुलिस की गाड़ी आयी जिसने उन्हें कुछ  खाने  के बिस्कुट दिए
जो इतने पर्याप्त तो नहीं थे कि उनकी भूख मिटा सकें पर सच्चाई तो यह थी कि उनको खाकर उन मजदूरों की भूख और भड़क गयी थी ,पर मरता क्या न करता .
बिस्कुट खाकर पानी पीकर रात भर वे सब वहीं पड़े रहे और भोर होते ही फिर चल पड़े .
सांवरी भी अपने अम्मा और पापा के साथ चली जा रही थी  ,आगे जाकर थोड़ा थक गयी तो सड़क के किनारे सुस्ताने बैठ गयी .
“अरे तुम्हे भूख लगी है क्या?” अचानक से एक आदमी सांवरी के पास आकर बोला
सांवरी चुपचाप हँसे देखती रही
“देख अगर खाना चाहिए तो मेरे साथ चल मैं तुझे खाना देता हूँ ….वहाँ उधर रखा  हुआ है “उस आदमी ने जोर देते हुए कहा
भूख तो लगी ही थी सांवरी को सो वह उस आदमी के साथ जाने लगी ,बेचारी को ये भी नहीं ध्यान आया कि उसके माँ और पापा मजदूरों के साथ आगे बढ़ चुके है.
जब चलते हुए कुछ देर हो गयी तो तो सांवरी ने कहा
“कहाँ है खाना”
“हाँ इधर है …खाना ” झाड़ियों में कोई और आदमी छुपा हुआ बैठा था उसने लपककर सांवरी को पकड़ लिया और उसका मुंह दबा दिया और फिर दोनों आदमियों ने मिलकर सांवरी का बलात्कार किया और उसके विरोध करने पर  उसको मारा भी .
सांवरी की दुनिया लूट चुकी थी वह रो रही थी पर वहां उसका रूदन सुनने वाला कोई भी नहीं था.
रोते रोते ही सांवरी उठी और आगे जाकर एक खाई में कूदकर उसने आत्म हत्या कर ली.
मजदूरों का काफिला आगे चलता जा रहा था , किसी ने सांवरी की फ़िक्र भी नहीं करी थी
लॉकडाऊन अब भी जारी था. ऐसे दरिंदों को पुलिस भी नहीं पहचान पा रही थी ,वे अब भी खुले सड़कों पर घूम रहे हैं. मज़दूर अब भी सड़क पर पैदल ही जा रहे थे बस सांवरी की ज़िंदगी पर ही पूरा लॉकडाउनन
लग चुका था.
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नीलाम होते गांव: भाग 2

लेखक-श्री धरण सिंह

सौदामिनी यहीं पर पहली बार मां बनी थी. उस ने बेटे को जन्म दिया था. नाम रखा गया-हीरेन. वह हीरा ही तो था जिस के आने के बाद सौदामिनी का जीवन चमक उठा था. 5 एकड़ जमीन में उन के धान के खेत लहलहा उठे थे, शेष 5 एकड़ में सुपारी, केले, नारियल इत्यादि के वृक्ष खड़े थे. सब्जियों की भी क्यारियां लगा रखी थीं उन्होंने.

अगले 5 वर्षों में उन के और 2 संतानें हुईं, बेटा नरेन और बेटी दीपशिखा. खेतखलिहानों में कूदतेफांदते वे बड़े हुए थे. चूंकि गांव में ही प्राइमरी स्कूल खुल गए थे, सभी बच्चे वहीं सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे. विश्वासनाथ को मछली मारने का बहुत शौक था. उन्हें जेटी के मछुआरों की तरफ से एक छोटी लकड़ी की बनी नाव मिल गई थी जिस में बैठ कर वे विजयनगर के सागर में जा कर मछलियां पकड़ा करते थे. बड़ा बेटा हीरेन अकसर अपने बापू के साथ मछली पकड़ने जाया करता. विश्वासनाथ को यों लगा जैसे पूर्वी पाकिस्तान में खो गए सुनहरे दिन यहां विजयनगर की जमीन पर वापस लौट आए हैं, खेत से धान, मछलियों, सब्जियों की आय…एक औसत दरजे का जीवन वे जी रहे थे.

‘‘दादा, अभी तक यहां बैठे हो…’’ अचानक अभिलाष की आवाज से अतीत की यादों का वह रेला एकाएक गुम हो गया, ‘‘नाश्ता कर लीजिए,’’ उस ने कहा.

अभिलाष ही वह व्यक्ति था जिस ने विश्वासनाथ के जीवन की धारा को मोड़ने में मदद की थी. उस दिन के बाद से विश्वासनाथ और दूसरे कुछेक विस्थापितों के जीवन की परिभाषाएं बदलती जा रही थीं. पंचसितारा होटल और रेस्तरां के मालिक विजयनगर के सागर किनारे की भूमि का मोलतोल करने आ पहुंचे थे जो विस्थापितों की मिल्कियत थी. होटल के एक प्रतिनिधि के साथ अभिलाष ही इस व्यापार की सूचना देने आया था. अभिलाष वैसे कृष्णानगर के उन के एक ममेरे भाई हरिपाद सरकार का बेटा था. विश्वास दा पुन: अतीत की यादों में खो गए. उन्होंने जब यह सुना कि उन की 15 बीघे जमीन के बदले उन्हें लगभग 2 करोड़ या उस से ज्यादा रुपए मिलेंगे तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उन की आंखें कुछ क्षण के लिए अपलक बड़ी हो गईं. जब बच्चों ने यह सुना, वे भी अचंभे में पड़ गए परंतु सौदामिनी को विश्वास नहीं हो रहा था.

‘2 करोड़ रुपए तो बहुत होते हैं न. इतने पैसों का हम क्या करेंगे. यह कोई सपना तो नहीं है न,’ विश्वास दा की पत्नी ने जैसे रोंआसी हो कर कहा.

‘सौदामिनी, तुम फिक्र न करो. हमारे दिन फिर गए हैं. सब ठीक हो जाएगा. मैं शहर जा रहा हूं इन लोगों के साथ.’

विश्वास दा ने पत्नी को जैसे सांत्वना दी. और अगले दिन ही स्टीमर द्वारा वे पोर्टब्लेयर चले गए जहां पर सारी कागजी कार्यवाही होनी थी. तीसरे दिन स्टीमर द्वारा अभिलाष लौट आए थे. विजयनगर के अन्य 5-6 व्यक्तियों को भी शहर बुलाया गया था. उन की भी जमीनों की पेशगी लाखों रुपयों के रूप में उन्हें मिल गई थी. विश्वासनाथ के हाथों में एक बड़ी अटैची थी. जब बच्चों के सामने उन्होंने अटैची को खोला तो सब के मुंह से चीखें निकल गईं. अभिलाष ने उन्हें बताया, ‘ये पेशगी के तौर पर 20 लाख रुपए हैं, बाकी के रुपए डिमांड ड्राफ्ट के तौर पर जल्दी ही मिल जाएंगे.’

सबकुछ समझा कर अभिलाष चला गया था. वह रात उन सबों पर बहुत भारी गुजरी थी. विश्वासनाथ और सौदामिनी को नींद नहीं आ रही थी. बगल के कमरे में बेटे हीरेन और नरेन अपनी स्कीमों पर चर्चा करते रहे. किसी तरह से सुबह हुई. रातोंरात विश्वासनाथ का परिवार करोड़पति बन गया था. दिन, महीने गुजरते गए. अगले 2 बरसों में विश्वासनाथ का परिवार बहुत खुशहाल परिवार कहलाने लगा. जमीन की बकाया राशि में से उन्हें अब 90 लाख रुपए मिल गए थे. पूर्वी किनारे की 15 बीघे (5 एकड़) जमीन का सौदा हो चुका था. रेस्तरां मालिक विश्वासनाथ की पश्चिमी छोर की भूमि की भी मांग कर बैठे, तभी बाकी रकम की अदाएगी करेंगे. विश्वासनाथ ने वह जमीन अपने परिवारों की जरूरत के लिए रख छोड़ी थी.

आखिर काफी सोचविचार के बाद उस में से आधी जमीन फिर बेच दी. 50 लाख रुपए में उन की डील हुई थी. इसी जमीन में ही उन के नारियल, केले एवं सब्जियों के बागान थे. खैर, आधी बची जमीन में उन्होंने एक पक्का मकान बनाने को सोची. अगले एक महीने के भीतर विश्वास दा को पिछली बकाया राशि के 20 लाख और नई जमीन के सौदे के 10 लाख रुपए पेशगी मिले. ये रकम उन के बैंक खाते में आ गई थी. घरपरिवार का बोझ उठातेउठाते अब सौदामिनी भी कमजोर हो चुकी थी. वह भी चाहती थी कि उस के काम में कोई हाथ बंटाए. उसे बीच में खांसी के दौरे भी पड़ते रहते. उस की उम्र भी अब 60 बरस होने को आई थी. एक बहू लाने की चाह थी उसे. हालांकि खेतों में काम करने वह अब न जाती थी, देवर ने उसे सख्त मनाही कर दी थी. एक आज्ञाकारी भाई की तरह लक्ष्मण सरकार विश्वास दा का सदा ही हाथ बंटाता.

एक दिन लक्ष्मण ने अपने भाई से कहा था, ‘दादा, अब इतने पैसे मिल गए हैं, भाभी भी अब पहले जैसा कामकाज नहीं संभाल सकतीं…’

‘हां, सो तो है,’ विश्वासनाथ ने सिर हिलाया, ‘तुम कहना क्या चाहते थे?’

‘दादा, घरपरिवार तो अब बढ़ेगा ही. हीरेन की भी शादी करानी है. एक आलीशान मकान बन जाए तो अच्छा है न, रुपए का क्या भरोसा?’

‘हां लक्ष्मण, तुम ने मुंह की बात छीन ली. मुझे यह काम जल्दी करना होगा,’ और उन्हें थोड़ी खांसी सी आई, मुंह में रखी अधजली बीड़ी उन्होंने दूर फेंक दी.

अगले 6 महीनों के भीतर उन के जीवन का कायापलट हो चुका था. पश्चिमी किनारे की बची जमीन पर एक आलीशान पक्का मकान बन कर तैयार हो चुका था. अब मांबापू ने मई महीने में बड़े हीरेन और दीपशिखा के ब्याह की बात चलाई क्योंकि छोटा नरेन अभी ब्याह नहीं करना चाहता था. ‘लिटिल’ अंडमान द्वीप का एक इंजीनियर वर दीपशिखा को देखने आया. दीपशिखा को देखते ही वह उसे पसंद कर बैठा. गोरी, छरहरी देह की दीपशिखा भला किसे न भाती.

गांव के कुछ दूसरे लोगों ने विश्वासनाथ को समझाया था कि अभी समय अच्छा है, दीपशिखा को अच्छा वर मिल रहा है, जहां तक पढ़ाई की बात है वह शादी के बाद भी पढ़ सकेगी. हीरेन की बात दूसरी थी, वह अब पढ़ना नहीं चाहता था. उसे अब बिजनैस की सूझी थी. मांजी के कारण वह भी शादी के लिए राजी हो चुका था. मई महीने में दोनों का ब्याह होना तय हो चुका था. यही फैसला किया गया कि पहले बहू घर आएगी, अगले महीने बेटी की विदाई होगी. ऐसा हुआ भी.

विश्वास दा का नया आलीशान मकान रोशनी से जगमगा रहा था. मकान से लगे पंडाल और शामियाने पड़ोसी गांव के मेहमानों और बरातियों से भरे हुए थे. खानेपीने का प्रबंध एकदम शहर के ढर्रे पर किया गया था. पैसा पानी की तरह बह रहा था. सुंदर एवं सुशील बहू को पा कर सौदामिनी फूली न समाई. चूल्हे में लड़कियां फूंकफूंक कर जलाते हुए उसे 35 बरस होने को आए हैं. अब उसे अकसर खांसी की शिकायत रहती. डाक्टरों को भी दिखाया पर आराम कहां. बीचबीच में उसे खांसी के दौरे पड़ने लगे थे. नई बहू अनुराधा पढ़ीलिखी थी. उस ने आते ही सबकुछ बढि़या संभाल लिया था. अगले महीने दीपशिखा की विदाई धूमधाम से हो गई. बेटी ही से घर भरापूरा होता है. दीपशिखा के जाने के बाद घर जैसे खालीखाली हो गया, यह एहसास विश्वासनाथ और उस की पत्नी को तब हुआ. सबकुछ ठीक चल रहा था. ऐसे सुंदर दिन जीवन में आएंगे, दोनों पतिपत्नी ने भला कब सोचा था.

coronavirus : नेता बजा रहे हारमोनियम, किसानों के बह रहे आंसू

यूपी के चंदौली के रहने वाले रामसेवक किसान हैं। फोन पर बात करते हुए रो पङे,”का बताई हम. एक त ई कोरोना ऊपर से ई बारिश, सब कुछ सत्यानाश हो गईल. अब हम अपने बेटी क बियाह कैसे करब? एकरे पहले नोटबंदी कमर तोङले रहल, अब कोरोना से पूरा बाजार बंद हो गईल बा मोदी सरकार से का भरोसा करीं?”
उधर देश के एक अन्य जगह बिहार के दरभंगा में ललितेश्वर मंडल भी किसान हैं. फोन पर बात करते हुए बताया,”की कही यो बड हालत खराब भो गेल यै टमाटर नीक भेल रहै ई बेर. सोचले रही ई बेर टमाटर बेच कं जे पाय भेटतिहे ओकरा सं मकान बनैतों सच कही, सरकार तै हवाहवाई बात करै छै।.किसानं कं दर्द के सुनता? हम तं बरबाद भ गेल छी.आब लागै यै टमाटर सैङ जाएत क्योंकि ट्रांसपोर्ट भी बंद छै.”
इन किसानों से बातचीत के बाद लगा कि वाकई पहले नोटबंदी फिर जीएसटी और अब कोरोना को ले कर सरकारी लापरवाही से देश के किसानों की हालत पतली है और इन का दर्द सुनने वाला कोई नहीं.

किसानों की चिंता

इस साल फरवरीमार्च के अप्रत्याशित मौसम की मार से यों ही किसान परेशान हैं. मौजूदा समय में उन की सरसों, आलू, मटर और चना की फसलें या तो खेत में हैं या खलिहान में. गेहूं की फसल भी तैयार होने को है. ऐसे में किसानों को ये चिंता थी कि लौकडाउन की स्थिति में हम अपनी उपज को कैसे घर सुरक्षित पहुंचाएं.चिंता उन किसानों को भी थी जो इस समय खाली हुए या होने वाले खेत में खरीफ के पूर्व कम समय में होने वाली उड़द, मूंग और पशुओं के लिए हरे चारे की बोआई करते हैं. पर कोरोना और फिर बेमौसम बारिश ने इन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। ट्रांसपोर्ट बंद हैं, सङकों पर गाङियां नहीं चल रहीं.ऐसे में उन की फसल मंडियों तक पहुंचेगी नहीं.

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मुश्किल दौर में फलों का राजा आम

यों कोरोना के खौफ का आलम यह है कि फलों का राजा कहे जाने वाले आम की फसल पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं. भारतीय आमों का खाङी देशों से ले कर, अमेरिका और यूरोप में बङी मांग है मगर कोरोना वायरस की वजह से इस की आपूर्ति बाधित हो रही है.

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गाजीपुर मंडी में एक व्यापारी ने बताया,”विदेशों में भारतीय आम अलफांसो की बङी मांग है पर लौकडाऊन होने की वजह से इस के निर्यात को ले कर संशय का माहौल है. हवाईजहाज की उड़ानें बंद हैं और देश के प्रमुख बंदरगाहों पर आवाजाही नहीं हो रही। ऐसे में आम की फसल का पूरी तरह बरबाद होने का खतरा है. सरकार ने इस के बारे में कोई रोडमैप नहीं बनाया है.सरकार के मंत्री और सांसदों को भी इस की सुध नहीं. उन्हें किसानों के दुखदर्द से ज्यादा घर में बैठ कर हारमोनियम बजाने में आनंद आ रहा है.”

मंदी और दिवालिया होने का खतरा

अनुमान है कि सरकारी उदासीनता से देश मंदी में फंस सकता है और कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं.साथ ही कोरोना के मार की भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ने की आशंका है.रिसर्च एजेंसी डन ऐंड ब्रैडस्ट्रीट की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए किए गए 21 दिनों के लौकडाउन से कई सैक्टरों के कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है. इन में विनिर्माण, वित्त एवं बैंकिंग और पेट्रोलियम समेत कई अन्य क्षेत्र शामिल हैं.

विकास दर में गिरावट का अनुमान

एजेंसी के ताजा आर्थिक अनुमान के मुताबिक देश के मंदी में फंसने और कई कंपनियों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गई है. पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर मंदी का खतरा मंडरा रहा है और इस से भारत भी नहीं बच सकता है.चीन के साथ ही दुनियाभर के कई और मैन्यूफैक्चरिंग केंद्र भी लौकडाउन से गुजर रहे हैं. इसलिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला खराब होने और वैश्विक विकास दर घटने का खतरा ज्यादा बढ़ गया है.
इस से भारत की विकास दर में और गिरावट आ सकती है। वित्त वर्ष 2019-20 में यह 5 फीसदी के अनुमान से भी नीचे गिर सकती है.

Lockdown: ‘फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्प्लाइज’ ने लगाई अमिताभ बच्चन से मदद की गुहार

कोरोना वायरस ने बौलीवुड में कार्यरत डेली वेजेस वर्कर/दिहाड़ी मजदूरों की समस्याएं विकराल कर दी हैं. पहले 17 मार्च से 31 मार्च तक ही फिल्म और टीवी सीरियल की शूटिंग बंद करने का ऐलान किया गया था, तभी से सभी परेशान थे. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 14 अप्रैल तक लॉकडाउन के एलान के साथ ही अब फिल्म व टीवी सीरियल की शूटिंग भी 14 अप्रैल तक के लिए बंद कर दी गयी है.

इसके चलते हालात काफी भयावह हो गए हैं. बौलीवुड से जुड़े डेली वेज वर्कर,स्पॉट ब्वॉय, ज्यूनियर आर्टिस्टों के घर की हालत काफी खराब है. किसी के घर में दाल है,तो किसी के घर मे सिर्फ सिर्फ चावल.

अमिताभ से मांगी थी मदद…

परिणामतः ‘‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलॉइज’’ के अध्यक्ष बी एन तिवारी ने 25 मार्च को अमिताभ बच्चन को एक ईमेल भेजकर उनसे मदद की गुहार लगायी थी. यूं तो अब तक अमिताभ बच्चन ने इस ईमेल का कोई जवाब नही दिया है. उन्होंने अब तक बौलीवुड के डेली वेज वर्करों की मदद करने में कोई रूचि नहीं दिखायी है, मगर ‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलॉइज’ के अध्यक्ष बी एन तिवारी को यकीन है कि अमिताभ बच्चन जरुर मदद करेगे.

इस संबंध में ‘‘फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इम्पलॉइज’’ के अध्यक्ष बी एन तिवारी कहते हैं- ‘‘15 मार्च को हर तरह की शूटिंग स्थगित  किए जाने के बाद हम सभी निर्माताओं ने मिलकर ऐसे कर्मचारियों की मदद करने का निर्णय लिया था. हम सभी निर्माता अपनी तरफ से कुछ रकम जमाकर ऐसा करने जा रहे थे.

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मगर जैसे ही लॉकडाउन 14 अप्रैल तक के लिए बढ़ा, तो हमे लगा कि हमारे पास उतना धन नहीं है. तब हमने काफी सोचा और हमें अहसास हुआ कि यदि कलाकार मदद के लिए आगे आ जाएं, तो बहुत कुछ आसान हो सकता है. इसलिए हमने सबसे पहले 25 मार्च को हमारे महान अभिनेता अमिताभ बच्चन को मदद के लिए गुहार लगाते हुए ईमेल भेजा था.

इसके पीछे हमारी सोच यह रही कि जैसे ही अमिताभ बच्चन मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाएंगे, वैसे ही अन्य कलाकार भी साथ में आ जाएंगे. हमें यकीन है कि अमिताभ बच्चन जी मदद करेंगे. उनकी तरफ से मदद मिलते ही हम दूसरे कलाकारों और अन्य लोगों से संपर्क करेंगे. फिर हम मदद की राशि डेली वेज वर्करों के बैंक खाते में धन राशि ट्रांसफर करेंगें.

यूं तो हमने वर्करों के बीच वितरण के लिए 25 लाख रूपए का राशन खरीदा है, जो कि न्यू मुंबई /वाशी के एक गोडाउन में है, लॉक डाउन खत्म होने के बाद ही हम यह राशन वहां से लाकर वितरित करेंगे.’’

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उधर अमिताभ बच्चन लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं. बुधवार की देर रात अमिताभ बच्चन ने एक वीडियो संदेश जारी कर लोगों से कहा था कि वह खुले में शौच के लिए जाने की बजाय बंद दरवाजे वाले शौचालयों में ही जाएं, क्योंकि शौच/मल पर बैठी हुई मक्खी से भी कोरोना तेजी से फैलता है.

अमिताभ बच्चन के इस ट्वीट को बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी री-ट्वीट कर दिया. मगर गुरूवार/26 मार्च की शाम केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अमिताभ बच्चन के इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए ऐलान किया कि मक्खी से कोरोना नहीं फैलता.

LOCKDOWN के दौरान ‘रामायण’ से जनता को भटकाने की कोशिश

लेखक- रोहित

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रामायण के प्रसारण को ले कर 27 मार्च को ट्वीट किया कि “जनता की मांग पर 28 मार्च से ‘रामायण’ का प्रसारण दोबारा दूरदर्शन चैनल पर शुरू होगा. पहला एपिसोड सुबह 9 बजे और दूसरा एपिसोड रात 9 बजे प्रसारित किया जाएगा.”

उन्होंने अपने इस ट्वीट में “जनता की मांग” का जिक्र किया. लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया की उन्होंने जनता के बीच इस तरह का सर्वे कब कराया. बेहतर होता कि वह इस सर्वे के आकड़ों की एक कॉपी अपने ट्वीट के साथ संलग्न कर देते.

यह ट्वीट ऐसे वक़्त में किया गया जब देश में लगातार कोरोना से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ रही है. यह संख्या इस समय 700 पार हो चुकी है वहीँ मरने वालों का आकड़ा 20 पहुंच चुका है. साथ ही भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में लगे कर्मियों के पास मूलभूत सुविधाओं की कमी है. आज पूरी दुनिया सब इस बात को ले कर चिंता में है कि इस खतरनाक बिमारी का अभी तक कोई वैक्सिनैसन तैयार नहीं हो पाया है जिसके लिए भारत समेत पूरी दुनिया के वैज्ञानिक और डाक्टर दिन रात लगे हुए हैं.

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ऐसे में हमारी सरकार द्वारा ऐसी कार्यवाही उन तमाम डाक्टर, नर्सों और कर्मचारियों के दिलों को दुखाने के लिए काफी है जो जीजान लगा कर अपनी सेवाएं दे रहें है.

अभी कुछ दिन पहले की बात है जब देश के प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू के दिन शाम 5 बजे, 5 मिनट के लिए इन्ही सेवाकर्मियों के मनोबल के लिए थाली, ताली और घंटियां बजवाई थी. यह साफ़ दिखा रहा था की इस मुश्किल समय में यही सेवाकर्मी है जो इस विपदा से हमें बचा सकते हैं.

सही मायनो में यह बात सत्य भी है, अगर धरती पर कोई है जो इस संक्रमण से सब से आगे खड़े हो मुकाबला कर रहे है वो यही सेवाकर्मी हैं. देश के लोगों ने इस बात को महसूस भी किया और उन का मनोबल बढाने के लिए पूरा सहयोग भी दिया. किन्तु ऐसे समय में इस तरह की धार्मिक घोषणाएं सरकार की खोखली चिंताएं दिखा रहीं हैं.

आज पूरे विश्व में एक साथ पहली बार ऐसा मोका आया है जब लोग तार्किक और वैज्ञानिक सरीके की सोच को बढ़ावा दे रहे हैं. लोग मंदिरमस्जिद की बहस छोड़ अपनेअपने देशों के स्वास्थय विभाग की रिपोर्ट्स को खंगाल रहे हैं. उन्हें अपने असली देश से अवगत होने का मौका मिल रहा है.

लोग यह महसूस कर रहें है कि इस मुश्किल समय में उन के लिए ज्यादा अस्पतालों का होना जरुरी है न की मंदिर-मस्जिद और उनमें कैद भगवानों का. लोग अपनी आम जरूरतों को ले कर बात करने लगे हैं. समाज में फैले अमीरी गरीबी की बढती खाई को समझ रहे हैं. साथ ही उन गरीब मजदूरों के बारे में सोचने लगे हैं जो इस संकट में मरने जैसी स्थिति में पहुंच गए हैं.

आज लोग यहां तक राय रखने लगे है कि मंदिर मस्जिदों में पड़े अरबों के धन का इस्तेमाल मानवजाति को बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाए.

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जाहिर सी बात है यह सोच भारत देश में भी तीव्र होती दिखाई दे रही है, लोग मंदिरमस्जिद में दान करने की बजाए अस्पतालों में दान करने को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं. यही बात इस समय हमारी सरकार को खाए जा रही है. उन्हें चिंता है कि लोग अपने भौतिक जरूरतों पर सोचने लगे है और देश की खराब हालत पर बात कर रहे हैं जिसे छुपाने की सरकार भरसक प्रयास करती रही है.

ऐसे समय में यह भलीभांति समझा जा सकता है कि सरकार इस बात को लेकर घबराई है कि लोग विज्ञान की तरफ उम्मीद लगाए हुए हैं. भगवान के जो प्रतिबिम्ब वह महसूस कर रहे है वह डाक्टरों और वैक्सीन की खोज कर रहे वैज्ञानिकों को ले कर है. लोग देश के अस्पतालों में बेड्स की संख्या, डाक्टरोंनर्सों की कमी इत्यादि के प्रति चिंतित दिखाई दे रहे हैं. लोग आधुनिकता की बात कर रहे हैं. यही कारण है कि लोगों की यह आधुनिक विचारविमर्श सरकार के लिए चिंता का विषय बना है.

सरकार लोगों के दिमाग में अंधविश्वास, दकियानूसीपन, कर्मकांड बनाए रखना चाहती है. इसलिए वह इस समय तमाम तरीके अपना भी रही है. यही कारण है कि 24 तारीख को देशव्यापी लाकडाउन की घोषणा के बावजूद सीएम योगीआदित्यनाथ ने उस घोषणा को धता कर भारी संख्या में समूह के साथ राममंदिर के दर्शन किए.

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जाहिर सी बात है रामायण के प्रसारण से न तो स्तिथि काबू में होगी, न दवाई की खोज होगी और न ही हमारे देश के स्वास्थय क्षेत्र में बेहतर बदलाव होंगे. हां इस से जो हो सकता है वह यह कि विज्ञान और आधुनिकता को आम लोगों से दूर रखा जा सकता है. उन्हें उनकी धार्मिक खोलों में वापस धकेला जा सकता है.

देश के एक बहुत बड़े हिस्से को भगवान के चमत्कार का पाठ पढाया जा सकता है और देश में होने वाली मौतों को उनके कर्म का हिस्सा बताया जा सकता है.

यह फैसला हमारी आधुनिकता और वैज्ञानिक होती सोच पर खतरा है. आज लोग आगे बढ़ना चाह रहे है और सरकार उन्हें पीछे की तरफ खींच रही है.

बेहतर होता कि ऐसे समय में हमारी सरकार के मंत्री देश के लोगों को तालाबंदी में कैसे खानापानी मिल पाए उस के बारे में सोचती. साथ ही स्वास्थय सेवाओं को कैसे दुरुस्त किया जाए उस दिशा में ठोस कदम उठाती.

coronavirus: पीड़ितों की मदद के लिए खाली हैं बॉलीवुड कलाकारों की जेबें

जब से लाइलाज /महामारी ‘‘कोरोना वायरस’’की चपेट में भारत आया है,तब से सबसे बड़ा खामियाजा आम जनता के साथ ही फिल्म इंडस्ट्ी में कार्यरत लाखो मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है .तमाम ज्यूनियर आर्टिस्टों, स्पाॅट ब्वाॅय,आदि के घर पर खाने के लिए कुछ नही है,पहली बात तो यह इनकी पिछली बकाया धनराषि का भुगतान इन्हे नही हुआ. जबकि 17 मार्च से ष्ूाटिंग वगैरह सारे काम बंद होने के कारण यह सभी बेरोजगार होकर अपने अपने घरों में कैद हैं और अब तो ‘लाॅक डाउन’एवम् कफ्र्यू ने भी इनकी हालत खराब कर दी है.

मगर अफसोस बौलीवुड में एक फिल्म के लिए दस करोड़ रूपए से लेकर 108 करोड़ रूपए मेहनताना लेने वाले बौलीवुड के कलाकारांे की जेबंे खाली हैं.अब तक किसी भी कलाकार ने ‘कोरोना वायरस’ के चलते घर मंे कैद आम जनता तो छोड़िए अपनी ही बिरादरी और अपनी ही इंडस्ट्ी में कार्यरत लोगों की मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया है.माना कि अभिनेता सनी देओल ने पचास लाख रूपए दिए हैं,मगर उन्होने बतौर संासद यह राषि अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों के लिए दिए हैं.

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जबकि दक्षिण भारतीय कलाकार ‘कोरोना वायरस’को लेकर वीडियो जारी करने की बनिस्बत आगे बढ़कर कम से कम अपनी बिरादरी और अपनी इंडस्ट्ी से जुड़े ेलोगों की मदद के लिए खुलकर सामने आ रहे हैं.सबसे पहले दक्षिण भारतीय सुपर स्टार रजनीकांत ने अपनी तरफ से ‘‘दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्ी के डेली वेजेस कर्मचारियों के लिए’’पचास लाख रूपए का अनुदान देने की घोषणा की.उसके बाद सूर्या, कार्थी,षिवकुमार,विजय सेतुपथी ने भी दस दस लाख रूपए दान किए.जबकि अभिनेता प्रकाष राज और पार्र्थीन ने 25 किलो वजन वाली चावल की कई बोंिरयां दी हैं.वहीं अभिनेता पवन कल्याण ने पचास लाख रूपए ‘तेलंगाना मुख्यमंत्री राहत कोष’और पचास लाख रूपए ‘आंध्र प्रदेष मुख्यमंत्री राहत कोष’में दिए हैं.इतना ही नही पवन कल्याण ने एक करोड़ रूपए ‘प्रधानमंत्री राहत कोष’में दिए हैं.

रजनीकांत द्वारा पचास लाख रूपए देने के ऐलान के बाद बौलीवुड फिल्मकार अनुभव सिन्हा ने जरुरतमंदों को राषन बांटने का ऐलान किया,जिसमें अभिनेता करणबीर वोहरा और रोनित रौय ने भी मदद करने का ऐलान किया,पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.वैसे अनुभव सिन्हा भी सोषल मीडिया पर षेर बनकर महज सरकार व पुलिस की गल्तियां गिनाने में लगे हुए हैं.

ष्षूटिंग वगैरह बंद होते ही ‘आल इंडिया फिल्म इंम्प्लाइज फेडरेषन’ने जरुरतमंदों को राषन बांटने की घोषणा की थी और इसके लिए 22 मार्च का दिन तय किया गया था.मगर अब तक कुछ नहीं हुआ.अब फेडरेषन की तरफ से कहा जा रहा है कि,‘कर्फ्यू के चलते हम खुद परेशान हैं कि लोगों की मदद कैसे की जाए.हमारे राषन के चार हजार पैकेट बने हुए हैं.’जबकि सर्वविदित है कि सरकार ने राषन वगैरह बांटने पर रोक नहीं लगायी है.इतना ही नही कई दूसरी समाज सेवी संस्थाएं समाज के अन्य तबके के बीच इस तरह का काम हर दिन कर रही हैं.

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ज्यूनियर आर्टिस्ट के पैसे फंस गए हैं.क्योंकि सप्लायर्स को फिल्म निर्माता की तरफ से पैसे नहीं मिले,इसलिए वह ज्यूनियर आर्टिस्ट को पैसे नहीं दे पा रहा है.जबकि निर्माताओं के पास एक ही जवाब है कि आफिस बंद है,इसलिए वह मजबूर हैं.

वैसे तो ‘‘द फिल्म एंड टेलीवीजन प्रोड्यूसर्स गिल्ड’’ने भी डेली वर्कर्स और तकनीषियन के लिए फंड बनाने की बात कही थी.अब इस संस्था की तरफ से कहा जा रहा है कि फंड इकट्ठा किया जा रहा है और कफ्र्यू खत्म होने के ेबाद इसे बांटा जाएगा. कुल मिलाकर बौलीवुड से जुड़ा डेलीवर्कर बहुत ही ज्यादा परेषान हैं.कईयों के घर पर खाने का एक दाना नही है.इसके बावजूद करोड़ो रूपए कमाने वाले बौलीवुड के फिल्मी सितारे इस मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं.

मगर हर दिन बौलीवुड के कलाकार कोरोना वायरस अथवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों/ऐलान के समर्थन में कई तरह के वीडियो ट्वीटर,फेषबुक व इंस्टाग्राम जैसे सोषल मीडिया और न्यूज चैनलों पर जारी कर अपने सामाजिक कर्तव्य व उत्तर दायित्व की ‘इतिश्री’समझ रहे हैं.इनके इस कदम से आम लोग व इन कलाकारों के भोले भाले प्रषंसक यह सोचकर गदगद हो रहे हैं कि उनका कलाकार उनके लिए इतना फिक्र मंद है कि वह उनके लिए वीडियो बनाकर अपने संदेष प्रसारित कर रहा है.जबकि हकीकत यह है कि अपने अपने घरांे में कैद यह सभी बौलीवुड कलाकार महज अपने स्वार्थ यानी कि ख्ुाद को निरंतर सूर्खियों, खबरों व लोगों की नजर में बनाए रखने के लिए इस तरह के कारनामों को अंजाम दे रहे हैं.हमें यहां याद रख्ना होगा कि बौलीवुड की एक बहुत पुरानी कहावत है-‘‘जो दिखेगा, वही बिकेगा.’’इसलिए ख्ुाद को लोगों की नजरों में रखने के लिए अब बौलीवुड के यह कलाकार ख्ुाद के द्वारा अपने घर में झाड़ू लगाने,बर्तन धोने से लेकर अन्य घर काम करने के वीडियो सोाल मीिडया और न्यूज चैनलांे को जारी कर रहे हैं.मगर दूसरों की मदद करने के नाम पर इन सभी की जेबें खाली हैं.

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बहरहाल,गुरूवार की देर रात बौलीवुड में कुछ लोग जागे.कौमेडिन कपिल शर्मा ने ‘प्रधानमंत्री राहत कोष् ा में पचास लाख रूपए और रितिक रोषन ने ‘मंुबई महानगर पालिका कर्मचारियों को मास्क व सैनीटाइजर के लिए बीस लाख रूपए दिए.जबकि फिल्म‘‘ड्ीमगर्ल’’के निर्देषक राज षांडिल्य ने बीस दिन तक तीन सौ लोगों को भोजन बांटने की घोषणा की है.उधर अभिनेत्री रिचा चड्डा भी एनजीओ के साथ मिलकर जरुरतमंदो के लिए काम करना चाहती हैं.

Lockdown के दौरान बॉलीवुड सेलेब्स की इस हरकत पर फूटा फराह खान का गुस्सा, VIDEO शेयर कर दी ये धमकी

कोरोना वायरस के तेजी से फैल रहे संक्रमण ने आम इंसान से लेकर सेलेब्रिटी तक सभी को घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया है. इस खाली वक्त में सभी किसी न किसी तरीके से खुद को एंटरटेन कर रहे हैं. कुछ सेलेब्स इंस्टाग्राम पर घर के काम करते हुए अपने वीडियो बना कर शेयर कर रहे हैं, तो कुछ ऐसे हैं जो घर में रहकर भी वर्कआउट करते रहने और फिट रहने के तरीके बता रहे है.

फराह खान ने लगाई सेलेब्स की क्लास…

लेकिन फिल्म निर्माता, निर्देशक और मशहूर नृत्य निर्देशक फराह खान ने बौलीवुड की उन तमाम हस्तियों को जमकर लताड़ लगायी है, जो कि इन दिनों कोरोना के चलते हुए ‘लॉकडाउन’ के वक्त जो सोशल मीडिया पर अपने वर्कआउट वीडियो साझा कर रहे हैं.

 

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BAS KARO yeh workout videos !! ? video shot by :- #diva

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ऐसे लगाई डांट…

उन्होंने कहा कि यह अफसोस की बात है कि विपरीत परिस्थितियों में कोरोना वायरस के प्रकोप को लेकर चिंताएं जाहिर करने और लोगों से इससे बचने के उपाय बताने के इन लोगों ने वर्कआउट के वीडियो डालकर सब कुछ मजाक बनाकर रख दिया है.

अनफॉलो करने की धमकी दी…

फराह ने एक छोटी क्लिप के वीडियो में अपनी निराशा साझा करते हुए इसे ट्विटर और इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया. इसमें उन्हेोने लिखा है- “मेरा सभी फिल्मी हस्तियों और टीवी सितारों’ से विनम्र अनुरोध है कि कृपया अपने वर्कआउट वीडियो बनाना और उस पर बमबारी करना बंद करें. मैं समझ सकती हूं कि आप सभी को विशेषाधिकार प्राप्त हैं और आपके आंकड़े देखने के अलावा इस वैश्विक महामारी में कोई अन्य चिंता नहीं है. लेकिन हममें में से अधिकांश को इस संकट के दौरान बड़ी चिंताएं हैं. कृपया हम पर दया करें और अपने वर्कआउट वीडियो को रोकें. यदि आप रुक नहीं सकते हैं, तो कृपया बुरा न मानें अगर मैं आपको अनफॉलो करती हूं.’’

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इन सेलेब ने पोस्ट किए हैं वीडियो…

कैटरीना कैफ, आलिया भट्ट, जैकलीन फर्नांडीज, अनिल कपूर और रकुल प्रीत सिंह जैसे कई बॉलीवुड सितारों ने अपने ‘वर्कआउट फ्रॉम होम‘ वीडियो ऑनलाइन साझा किए हैं. क्योंकि सरकार ने आत्म-संगरोध और सामाजिक भेद को तीन सप्ताह तक रोकने के लिए एक निवारक उपाय बताया है.

 

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#WorkoutFromHome #Part2 Since we are all practicing #SocialDistancing @yasminkarachiwala and I worked out at our homes and put the workouts together for you to do at yours. Stay home stay safe ? ⁣ ⁣⁣ ♦️ #Warmup⁣⁣ 1.Squat with feet hip width apart – 2 sets x 25 reps⁣⁣ 2.Squat with feet wide parallel- 2 sets x 25 reps ⁣⁣ 3.Squat with feet wide turnout- 2 sets x 25 reps ⁣⁣ 4.Squat with feet together- 2 sets x 25 reps⁣ ⁣⁣ ♦️ #Workout:⁣⁣ ⁣⁣ 1.Forward and Backward Lunge – 2 sets x 15 reps ⁣⁣ 2.In Hover, Hip Dips – 3 sets x 20 reps 3.Curtsy Lunge to Side Kick – 3 sets x 15 reps ⁣⁣ 4.Suicide Push- 3 sets x 15 reps ⁣⁣ 5.Landis or Single Leg Squat – 3 sets x 15 reps ⁣⁣ 6.Squat Jacks – 3 sets x 25 reps ⁣⁣ ⁣⁣ @reebokindia #CommittedToFitness ⁣⁣ ? by @isakaif ?

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Season 1:Episode 4 Two Two…ChaChaCha Productivity in the time of COVID-19!? #exercise

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फैंस ने किया जमकर ट्रोल…

फराह खान के वीडियो को मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली है. कई लोगों ने अनावश्यक रूप से मशहूर फिल्मी हस्तियों को कोसने के लिए उनकी आलोचना की. जिनके वीडियो घर पर रहने वाले बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा का काम कर सकते हैं. लोग उन्हें ट्रोल भी कर रहे हैं.

बॉलीवुड से मिला ऐसा रिएक्शन…

दूसरी तरफ इंडस्ट्री के उनके सहयोगियों ने उनकी भावनाओं को साझा करने के लिए उन्हें धन्यवाद दिया. जबकि अभिनेत्री तब्बू ने लिखा, ‘‘सर्वश्रेष्ठ फराह … #notguiltyfornotworkingout‘‘

निर्देशक जोया अख्तर ने टिप्पणी की, ‘‘आप सबसे अच्छी हैं.

फिल्म निर्माता करण जौहर और सोनम कपूर सहित कई लोगों ने अपने वीडियो के तहत हंसी की इमोजी पोस्ट की.

अर्जुन कपूर ने लिखा- ‘‘मुझे लगता है कि आपको अपने भवन में बने जिम के नीचे कसरत करने की आवश्यकता है‘‘ !!! जिस पर फराह ने जवाब दिया, “चुप रहो ..। लॉकडाउन का मतलब है घर से बाहर नहीं निकलना .. ”

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