जयपुर के सांगानेर इलाके में रहने वाली महिला राजवती ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा, 'हमारे पास खाने का एक भी दाना नहीं है, जिसकी वजह से बिना खाए ही रहना पड़ रहा है. अभी तक पानी आता था लेकिन अब पानी भी नहीं मिल रहा है. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई कि हमें या तो हमारे गांव भिजवाया जाए या फिर हमें साधन मुहैया कराया जाए.
  कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए सरकार की ओर से लगातार जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं. इसी के मद्देनजर देशभर में 21 दिन का लॉकडाउन किया गया है.लोगों से लगातार अपील की जा रही है कि वो अपने घरों से नहीं निकलें. हालांकि लॉकडाउन की वजह से लाखों दिहाड़ी मजदूर, रिक्शा चालक, गरीबों की जिंदगी मुश्किलों से घिर गई है. सरकार की ओर से इनकी मुश्किलों का हल खोजने की हर कोशिश की जा रही है.लेकिन कई लोग ऐसे हैं जिन्हें खाने-पीने की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.जयपुर राजस्थान में दिहाड़ी मजदूरी का काम करने वाली कुछ महिलाओं ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन में कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
खाने का एक भी दाना नहीं, भूखे रहने को हैं मजबूर :
 जयपुर के सांगानेर इलाके में रहने वाली महिला राजवती ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा, 'हमारे पास खाने का एक भी दाना नहीं है, जिसकी वजह से बिना खाए ही रहना पड़ रहा है. अभी तक पानी आता था लेकिन अब पानी भी नहीं मिल रहा है.इसके अलावा मकान मालिक भी उनसे किराए की मांग कर रहा है, बिजली का बिल भी देना पड़ता है.' राजवती ने कहा कि हमारी परेशानी बढ़ गई है, उन्होंने सरकार से गुहार लगाई कि हमें या तो हमारे गांव भिजवाया जाए या फिर हमें साधन मुहैया कराया जाए.राजवती ने आगे कहा कि भूखे मरने से अच्छा है कि हम इस बीमारी से ही मर जाएं.राजवती ने बताया कि वो दिहाड़ी मजदूरी का काम करती हैं. उनका नाम सांगानेर की वोटर लिस्ट में भी है. हालांकि उन्हें लॉकडाउन के बाद काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.उन्होंने सरकार से मदद के साथ-साथ उनके घर भेजने की गुहार भी लगाई है.
सहायता नहीं दे सकते तो हमें गांव भेज दें :
 बिहार की शमीमा भी सांगानेर में ही रहती हैं. उन्होंने बताया कि हमारे बच्चे बिना खाए-पीए पिछले दो दिनों से हैं. वो बस पानी पीकर ही गुजारा कर रहे हैं.वो जिस घर में रह रहे हैं उसके मकान मालिक उनसे लगातार किराए की मांग कर रहे हैं. शमीमा ने सरकारे से मदद की गुहार लगाई है, साथ ही कहा कि अगर सरकार कोई सहायता नहीं दे सकती है तो उन्हें उनके गांव भेज दे.
'हमरो आंसू नईखे रुकत', लॉकडाउन में फंसे बिहारियों का दर्द
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की खातिर किए गए लॉकडाउन से गरीब तबका बुरी तरह प्रभावित हुआ है. सबसे ज्‍यादा परेशान वो लोग हैं जो दूसरे राज्‍य में जा कर मजदूरी कर रहे थे. इन लोगों में बड़ी संख्‍या बिहार के दिहाड़ी मजदूरों की है.कई जगहों से रिपोर्ट्स हैं कि ये लोग पैदल ही अपने घरों की ओर निकल पड़े हैं.कुछ वीडियोज भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिन में परेशान हो कर लोग रो पड़ते हैं.
 बिहार की पूर्व मुख्‍यमंत्री राबड़ी देवी ने केंद्र और राज्‍य सरकार से हाथ जोड़कर अपील की है कि वे  बाहर फंस गए बिहार के लोगों के रहने और खाने का इंतजाम करें.उन्‍होंने ट्विटर पर कहा कि 'इन गरीबों के आंसू देखकर मेरे आंसू भी रुक नहीं रहे हैं.' उन्होंने स्थानीय भाषा में कहा कि हम केन्द्र और राज्य सरकार से निहोरा कर रहल बानि की भगवान के ख़ातिर जे भी हमार बिहारी भाई, बहिन, बच्चा और गरीब-गुरबा लोग बाहर फँस गईल बा ऊ लोगन के रहे और खाए के इंतज़ाम करीं.गरीब-गुरबा के आँसू देख के हमरो आँसु नईखे रुकत.
ये दोहरापन क्यों
 अमीर हो या गरीब... हर किसी का अपनी मिट्टी से जुडाव होता है.. लगाव होता है ... परदेश हमेशा पराया होता है.. अपना  गाँव/देश अपना ही होता है.. अपनी मिट्टी की हक ही अलग होती है... भले ही आदमी दो पैसे कमाने परदेश चला जाये पर अंत में वह मरना अपने देश में ही चाहेगा ... अपनी मिट्टी में ही विलीन होना चाहेगा.यही वजह है सेंकड़ों पुरूषों/महिलाओं के जथ्थे .. सर पर सामान की गठरी गोद में बच्चे लिये... सेंकड़ों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं... ना कुछ खाने को है... सुरत से राजस्थान के लिये... दिल्ली से बिहार/झारखण्ड के लिये... भूखे प्यासे बस दिन रात चलना ही चलना है। कोरोना का डर नहीं है.. डर है तो पेट की भूख का... माननीय प्रधानमंत्री जब आप... आज रात 12 बजे से ... कोई भी चीज लागू क़र देते हैं तो क्या आपको इन लोगों का जरा भी ख्याल नहीं आता कि ये रात 12 बजे से पहले कैसे अपने गाँव/घर पहुँचेंगे ? आप तो कहते हैँ मैं एक गरीब माँ का बेटा हूँ... क्या इनको पर्याप्त समय नहीं दे सकते थे अपने गाँव तक पहुँचने का ?
 विदेशों में जो भारतीय फंसे हैं उनको एयरलिफ्ट किया जा रहा है ... क्यों ? क्योंकि वो अमीर हैं... इंडियन एम्बेसी से सीधे सम्पर्क करते हैं... उनको वापिस ना लाया जाये तो विदेशों में हमारी छवि खराब होती है... उनको  वापिस इंडिया लाना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है.. उनकी नागरिकता प्रथम श्रेणी की है... जबकि वही रिच क्लास इस महामारी को इंडिया में लाने के लिये ज़िम्मेदार है.
जब विदेश से भारतीय नागरिक को एयरलिफ्ट करके इंडिया लाना सरकार की ज़िम्मेदारी है तो देश के किसी दूसरे हिस्से में रह रहे भारतीय को उसके गाँव/घर पहुँचाना सरकार की नैतिकता जिम्मेदारी क्यों नहीं है ? जबकी संक्रमण का खतरा विदेश से आने वाले नागरिक से ज्यादा... अमीर और गरीब के लिये अलग अलग कानून क्यों ? कोई भी फरमान जारी करने से पहले नागरिकों को उचित वक्त दिया जाना सरकार का कर्तव्य है ताकि वो उस फरमान के लिये अपने आपको तैयार करले... एक लाखों सत्तर हजार करोड़ के पेकेज में क्या कहीं कोई प्रावधान नहीं हैं कि रात दिन पैदल पलायान कर रहे इन लोगों को इनके घर पहुँचा दिया जाये.
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