आदरणीय अंकल जी,

प्रणाम

पिछले पांच दिनों से पुणे के अपने फ्लैट में अकेले पड़े-पड़े मैंने काफी कुछ सोचा है, सोचा आपको बता दूं. उम्मीद है पत्र पूरा पढ़ने के बाद आप मुझे पागल नहीं समझेंगे. लॉक डाउन के चलते कंपनी में कामकाज ठप्प पड़ा है घर से ही प्रोजेक्ट पूरा कर रहा हूं लेकिन माहौल देखते काम में मन नहीं लग रहा है.

न जाने क्यों मुझे लग रहा है कि सब कुछ खत्म होने वाला है. अपनी 28 साल की छोटी सी ज़िंदगी में मैंने ऐसी दहशत कभी नहीं देखी. हमारे अपार्टमेंट के सभी दरवाजे बंद हैं लोग सनाके में हैं. अधिकतर फैमिली वाले हैं लेकिन कोई गाने नहीं सुन रहा, फिल्में नहीं देख रहा. कभी कभी सामने वाले मालेगांवकर अंकल के फ्लैट से टीवी की आवाज कानों में पड़ जाती है मुझे एक ही शब्द समझ आता है वह है कोरोना.

मैं मानता हूं कि पूरी दुनिया एक अजीब से संकट से घिर गई है जिससे उबरने की तमाम कोशिशें मुझे बेकार लगती हैं. यहां नौकरी जॉइन करने के बाद मैंने आपसे और दूसरे रिशतेदारों से कोई वास्ता नहीं रखा लेकिन जाने क्यों आज आप लोगों की याद बहुत आ रही है, मम्मी पापा भी खूब याद आ रहे हैं. मैं यह मानने में कतई नहीं हिचकिचा रहा कि मैं अव्वल दर्जे का खुदगर्ज आदमी हूं. मम्मी पापा की रोड एक्सीडेंट में मौत के बाद से ही मुझे लगने लगा था कि अब मुझे अकेले ही जीना है.

जी तो लिया लेकिन अब सोच रहा हूं कि क्या इसी दिन के लिए जिया था. मेरे कोई खास दोस्त भी नहीं हैं हकीकत मैं मेरा इस शब्द पर कभी भरोसा ही नहीं रहा. अब जब मेरे चारों तरफ तन्हाई है तब मुझे लग रहा है कि मुझे मर जाना चाहिए. इन डरे सहमे हुये लोगों के बीच जिंदा रहने से तो बेहतर है शांति से मर जाया जाये.

थोड़ी थोड़ी देर बाद मुझे महसूस होता है कि कोरोना ने मुझे और मेरे फ्लैट को घेर लिया है. करोड़ों की तादाद में ये वायरस मेरी तरफ बढ़ रहे हैं. कई तो वॉश बेसिन पर रखा सेनेटाइजर पीते ज़ोर ज़ोर से हंस रहे हैं. मेरा मास्क उन्होंने कुतर डाला है और बहुत से पिंडली से रेंगते हुये मेरे मुंह की तरफ बढ़ रहे हैं.

मैं उन्हें झटकता हूं फिर घबराहट में अपार्टमेंट के मेन गेट पर आकर केबिन में सिक्योरटी गार्ड के पास जाकर बैठ जाता हूं. उसका असली नाम पता नहीं लेकिन सभी उसे पांडू पांडू कहते हैं. वह भी डरा हुआ है मेरी तरफ देखता है फिर हथेली पर तंबाकू रगड़ने लगता है. मुझे लगता है इसे भी इन्फैक्शन है इसलिए वह मुझ से दूर भागता है. मुझे उस पर दया आती है कि इस बेचारे को इलाज नहीं मिला तो यह भी मर जाएगा और एक एक कर सारे लोग मर जाएंगे.

मैं फिर फ्लैट पर आ जाता हूं लेकिन लिफ्ट से नहीं बल्कि सीढ़ियों से क्योंकि लिफ्ट में वायरस मुझे गिरफ्त में ले सकते हैं. आठवे माले पर हांफते हुये चढ़ता हूं तो लगता है वायरस मेरा पीछा कर रहे हैं वे कभी भी मुझे जकड़ सकते हैं.

आपको याद है पापा एक गाना अक्सर गाते थे जीवन में तू डरना नहीं… डर डर के जीना नहीं …..

लेकिन मुझे लगता है डर से ज्यादा यह अकेलापन मुझे मार रहा है इसी डर के चलते मैं लैपटॉप और टीवी भी नहीं चला रहा क्योंकि वहां से कोरोना निकलकर घर में फैल जाएगा. खाने पीने का बहुत सा सामान रखा है जो बाजू बाली सिंह आंटी दे गईं थीं लेकिन दूर से मानों मैं संक्रमित होऊ. वे हालांकि एक अच्छी महिला हैं लेकिन सनकी सी भी हैं. पड़ोसी होने के नाते उनका फर्ज बनता है कि वे मेरी खबर लेती रहें पर वे भी स्वार्थी हैं, सब स्वार्थी हैं, आप भी स्वार्थी हैं.

कोरोना ने मुझे सिखाया है कि इस दुनिया में कोई किसी का सगा नहीं है सारे रिश्ते नाते यारी दोस्ती खुदगरजी पर टिकी है जिसका इम्तिहान अब हो रहा है और नतीजे भी सामने आ रहे हैं. सब के सब सभी के होते हुये अकेले हैं जो कोरोना और डर दोनों से मरेंगे. मैं भी.

चारों तरफ सन्नाटा है कोई हलचल नहीं है. सब बुज़दिलों की तरह घरों में दुबके आहिस्ता आहिस्ता आती मौत का इंतजार कर रहे हैं. वे कितने भी हाथ धोले बचेंगे नहीं. मैं तो नहा भी नहीं रहा क्या पता शावर से ही कोरोना बरसने लगे.

आप मेरी इन बातों को पागलपन समझ रहे होंगे लेकिन मेरा फलसफा समझने की कोशिश करें तो आपको लगेगा कि मैं गलत नहीं कह रहा था. मैं भगवान वगवान को नहीं मानता, मैं राजनीति के पचड़े में भी नहीं पड़ता बीटेक और एमबीए करने के बाद से मैं नौकरी कर रहा हूं, ऑफिस जाता हूं. 12 घंटे मन लगाकर काम करता हूं खाना खाता हूं फिर सो जाता हूं.

फैमिली सिस्टम में रहने वाले भी इसी तरह रहते हैं लेकिन दिखावा ज्यादा करते हैं वे बहुत शातिर और धूर्त होते हैं. ज़िंदगी भर एक दूसरे का शोषण करते हैं, एक दूसरे का इस्तेमाल करते हैं और इसकी कीमत का भी लेनदेन करते हैं. कोरोना इसकी पोल खोल रहा है अगर आज घर में वह किसी को लग जाये तो सभी संक्रमित से दूर भागेंगे जैसे कोढ़ के मरीज से भागते हैं.

आईसोलेशन के नाम पर उसे अलग पटक देंगे, छूना तो दूर की बात है उसकी तरफ देखने से भी सहमेंगे. मेरी भी हालत ऐसी ही है मैं अपने इस फ्लैट में पड़ा पड़ा यूं ही मर भी जाऊं तो मेरी लाश से उठती दुर्गंध से लोगों को पता चलेगा.

फिर लोग डरेंगे अपार्टमेंट छोड़ कर भागेंगे सरकारी अमला पूरी बिल्डिंग सेनेटाइज करेगा, टीवी वाले आएंगे सनसनी फैलाएंगे. मेरी जन्मपत्री खंगालेगे जब कुछ खास जानकारी हाथ नहीं लगेगी तो मुझे लावारिस घोषित कर किसी नई खबर की तरफ दौड़ पड़ेंगे. आप देखना ये भी मरेंगे जो नाम और पेशे के लिए जान हथेली पर लिए घूम रहे हैं बल्कि कहना चाहिए कि भटक रहे हैं.

खैर मुद्दे की बात ये कि मैं गंभीरतापूर्वक ख़ुदकुशी करने की सोच रहा हूं मुझसे पल पल की यह मौत सहन नहीं हो रही है. मुझे मालूम है आप मेरा मरा मुंह देखने या मिट्टी ठिकाने लगाने नहीं आएंगे, सच भी है कोई क्यों यह सरदर्दी मुफ्त में मोल ले.

हां मैं अगर यह वसीयत कर जाऊं कि मेरे मरने के बाद 1 करोड़ का यह फ्लैट और 20 -25 लाख की सेविंग आपकी होगी तो यकीन मानें आप सर के बल दौड़ कर आएंगे पुणे तक आने का कर्फ़्यू पास हाथों हाथ बनवा लेंगे, सरकारी अफसरों और पुलिस वालों के सामने घड़ियाली आंसू बहाएंगे कि भतीजा मर गया है आखिरी बार देखने और क्रियाकर्म करने जाने दीजिये.

आप सोच रहे होंगे बल्कि तय ही कर चुके होंगे कि मैं वाकई डिप्रेशन बर्दाश्त न कर पाने के कारण पागल हो गया हूँ तो आप गलत सोच रहे हैं. दरअसल, मेरी चिंता असहाय मानव जीवन है. आदमी खुद को ताकतवर कहते गर्व से फूला नहीं समाता लेकिन आज एक मामूली से वायरस के सामने कितना असहाय नजर आ रहा है सारी साइंस और टेक्नोलाजी महत्वहीन हो गई है कहा यह जा रहा कि सब्र रखो सब ठीक हो जाएगा रिसर्च चल रही है.

मैं कहता हूं कुछ नहीं हो रहा. आदमी न दिखने बाले इन कीड़े मकोड़ों की ताकत के सामने कुछ नहीं है. वह प्रकृति की सबसे कमजोर कृति है. एक कोरोना नाम के वायरस ने हजारो मार दिये और भी मरेंगे फिर जब कोरोना का प्रकोप खत्म हो जाएगा तो लैब से कोई दाढ़ी बाला वैज्ञानिक बाहर आएगा उसके हाथ में एक दवा कोरोना की होगी. लेकिन यह अंत नहीं होगा जल्द ही कोई नया वायरस पैदा होगा फिर हाहाकार मचेगा लाक डाउन होगा और मैं फिर कैद होकर रह जाऊंगा.

जबकि मैं काम करना चाहता हूं, जिंदा रहना चाहता हूं, खिलते हुये फूल देखना चाहता हूं, चहकते खेलते हुये बच्चे देखना चाहता हूं, खूबसूरत युवतियों का अल्हड़पन देखना चाहता हूं, खूब सी बियर पीना चाहता हूं, सिगरेट के धुंए के छल्ले बनाना चाहता हूं, व्हाइट सास के साथ पिज्जा खाना चाहता हूं, हिल स्टेशन जाकर छुट्टियां मनाना चाहता हूं, नए नए ब्रांड के आफ्टर शेव ट्राई करना चाहता हूं  और तो और मैं रेल की पटरियों के किनारे शौच करते हुये लोगों को भी देखना चाहता हूं.

मैं और भी बहुत कुछ करना चाहता हूं लेकिन यूं कैद नहीं रहना चाहता इसलिए मर जाने का यह बहादुरी भरा फैसला ले रहा हूं जिसे शातिर लोग बुज़दिली कहते हैं. कोरोना मेरे दिमाग में आ गया है.  मैं मजबूर हूं क्योंकि आधुनिकता की हकीकत मुझे समझ आ गई है.

न क्षणों में मुझे उपदेशकों और आशावादियों पर तरस आ रहा है ये लोग बहुत चालाक हैं जो चाहते हैं कि लोग जिंदा रहें दुनिया चलती रहे और ये अपना भोंथरा ज्ञान बघारते रहें. ये खुद मरने से डरते हैं इसलिए दूसरों को जिंदा रखना चाहते हैं.  मेरी ख़ुदकुशी इनके मुंह पर थप्पड़ होगी यह जरूर आप दुनिया को बताएं बाकी जिसे जो सोचना हो सोचे मुझे लग रहा है कोरोना दरवाजे के नीचे से दाखिल हो गया है और इस बार यह मन का वहम नहीं है.

चाची को प्रणाम और बच्चों को प्यार 

आपका भतीजा

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