‘‘अरे तेरी बहू अब तक सो रही है और तू रसोई में नाश्ता बना रही है. क्या सरोज, तू ने तो अपने को घर की मालकिन से नौकरानी बना लिया,’’ सरोज की पड़ोसिन सुबहसुबह चीनी लेने आई और सरोज को काम करता देख सहानुभूति दिखा कर चली गई. उस के जाने के बाद सरोज फिर से अपने काम में लग गई पर मन में कही पड़ोसिन की बात खटकने लगी. वह सोचने लगी कि पिछले 30 साल से यही तो कर रही है. सुबह का नाश्ता, दोपहर को क्या बनना है, बाजार से क्या लाना है, बच्चों को क्या पसंद है, इसी में सारा दिन निकल जाता है. घर के बाकी कामों के लिए तो बाई आती ही है. बस, बच्चों को अपने हाथ का खाना खिलाने का मजा ही कुछ और है. इतने में सोच में डूबी सरोज के हाथ से प्लेट गिर गई तो पति अशोक ने रसोई में आ कर कहा, ‘‘सरोज, जरा ध्यान से, बच्चे सो रहे हैं.’’

‘‘हांहां, गलती से गिर गई,’’ सरोज ने प्लेट उठा कर ऊपर रख दी. आज से पहले भी छुट्टी वाले दिन सुबह नाश्ता बनाते हुए कभी कोई बरतन गिरता तो अशोक यही कहते कि बच्चे सो रहे हैं. बस, फर्क इतना था तब मेरा बेटा और बेटी सो रहे होते थे और आज बेटा और बहू. आज रविवार था, इसलिए बच्चे इतनी देर तक सो रहे हैं. वरना रोज तो 8 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं.

‘‘तुम इतनी सुबहसुबह रसोई में कर क्या रही हो?’’ इन्होंने रसोई में मेरे पास आ कर पूछा.

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