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#lockdown: बिजली विभाग के सामने 9 मिनिट अंधेरे की बड़ी चुनौती

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से रविवार रात नौ बजे नौ मिनट के लिए अपने घरों की लाइट बंद करने की अपील की है.पीएम मोदी ने कहा कि पांच अप्रैल को रात नौ बजे सभी देशवासी अपने-अपने घरों की लाइट बंद करके, घर के दरवाजे पर मोमबत्ती, दिया या फ्लैश लाइट जलाएं. उन्होंने कहा कि इस रविवार को हमें संदेश देना है कि हम सभी एक हैं. पीएम की इस अपील से कोरोना वायरस पर क्या असर होगा, क्या वह अँधेरे से डर कर भाग जाएगा या अँधेरे का इस जानलेवा संक्रमण की रोकथाम में क्या भूमिका होगी ये तो कोई नहीं जानता, मगर पीएम की  इस अपील ने बिजली कंपनियों के सामने एक बड़ा संकट ज़रूर खड़ा कर दिया है.

मिनिस्ट्री ऑफ़ पावर के एजीएम (एनपीएमसी) जयदीप सक्सेना कहते हैं कि अगर 130 करोड़ देशवासी एक साथ बिजली बंद कर देते हैं और नौ मिनट बाद एक साथ चालू करते हैं तो देश में ब्लैकआउट होने का खतरा पैदा हो सकता है.नौ मिनट के लिए एक साथ देश भर की लाइट्स बंद होने से पूरी ग्रिड ओवर फ्रीक्वेंसी पर आ जाएगी, मतलब 50 हर्ट्स से ज्यादा, जो कि जनरेटिंग स्टेशनस पर लगे जेनरेटर को ट्रिप कर सकती है. जुलाई 2011 में एक बार ऐसा हो चुका है जब पूरे भारत में ग्रिड फेल हो गई थी. पश्चिमी ग्रिड को छोड़कर, ज़्यादातर जगहों पर अंधेरा हो गया था और 3 दिन की लगातार मशक्कत के बाद ये ठीक हुआ था.

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उल्लेखनीय है कि ग्रिड फ्रीक्वेंसी पूरे भारत में 50 हर्ट्स है. न्यूनतम 48.5 हर्ट्स और अधिकतम 51.5 हर्ट्स तक के वेरिएशन को ग्रिड रीस्टोर कर लेता है परन्तु इसके बाहर नहीं. ऐसे में पूरे देश में बिजली बंद करने से अगर 51.5 हर्ट्स से ज़्यादा इलेक्ट्रिसिटी फ्लो हुआ तो ग्रिड फेल होने का ख़तरा है.
फ्रीक्वेंसी में उतार-चढ़ाव को इस तरह समझा जा सकता है.मान लीजिये आप अपने एक दोस्त को साइकिल पर बिठाकर एक निश्चित चाल से सड़क पर जा रहे हैं. आपके मित्र का भार बहुत ज्यादा है और अगर वो अचानक रस्ते में चलती साइकिल से उतर जाए तो आपकी स्पीड अपने आप बढ़ जाएगी. इसे फ्रीक्वेंसी बढ़ना कहते हैं. अगर आपसे साइकिल की स्पीड कंट्रोल नहीं हुई तो साइकिल गिर जाएगी.
इसी तरह अगर आप अकेले जा रहे थे और अचानक आपकी साइकिल पर कोई भारी व्यक्ति आकर बैठ जाए तो आपकी साइकिल की स्पीड अचानक कम हो जाएगी, इसे  फ्रीक्वेंसी का घटना कहते हैं.इसके कारण भी आपकी साइकिल लड़खड़ा सकती है. कुछ ऐसा ही होगा रविवार की रात नौ बजे हमारी पावर ग्रिड में, जब पूरा देश अचानक सारी लाइट्स ऑफ कर देगा.

उस हालत में बिजली का फ्लो यानी फ्रीक्वेंसी बहुत बढ़ जाएगी.भारत में इस समय सभी पॉवर प्लांट अपनी पूरी क्षमता से 77% कम क्षमता पर काम कर रहे हैं, क्योंकि इस टाइम ज़्यादातर ऑफिस, फैक्ट्रीज सब कुछ बंद है सिर्फ घरेलू लोड है। जब ये लोड भी ख़तम हुआ तो ग्रिड से बहुत ज़्यादा बिजली का फ्लो होगा.

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हालांकि, बिजली कंपनियों ने पीएम मोदी के नौ मिनट के चैलेंज के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं.मगर जानकारों का कहना है कि कल नौ बजे अपने घर की लाइट्स ऑफ करने से पहले घर का टीवी और पंखा ज़रूर ऑन कर दें ताकि ग्रिड में बिजली की बढ़ती फ्रीक्वेंसी को कंट्रोल में रखा जा सके.

LOCKDOWN टिट बिट्स- भाग 3

वेंकैया का काव्य

लोग न जाने कैसे कैसे फुर्सत का यह वक्त जो काट खाने को दौड़ रहा है काट रहे हैं शुरुआती  2-3 दिन तो कागज पत्तर जमाने और एलबम के पुराने फोटो देखने जैसे मध्यमवर्गीय टोटकों में गुजर गए लेकिन अब क्या करें , यह सवाल वेताल के सवालों जैसा मुंह बाए खड़ा है . देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कवितायें लिखते वक्त काट रहे हैं . उन्होने अपनी लिखी कुछ कवितायें ट्वीट भी की हैं जो बाबा ब्लेक शी ….. और ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार….. से उन्नीस नहीं कहीं जा सकतीं . इन्हें अगले सत्र से नर्सरी राइम्स में शामिल करने प्रकाश जावडेकर को विचार करना चाहिए .

वेंकैया नायडू जब उपराष्ट्रपति नहीं बने थे यानि भाजपा की दूसरी पंक्ति ( पहली का तो आदि मध्य और अंत सब नरेंद्र मोदी हैं ) के नेताओं में शुमार किए जाते थे तब कई लोग यह तय नहीं कर पाते थे कि वे बोल रहे हैं या डांट रहे हैं .  दरअसल में उनका लहजा कुदरती तौर पर सख्त शुरू से ही है जिसे उनके नजदीक के लोग ज्यादा अच्छे से जानते समझते हैं इसलिए कभी वे उन्हें अन्यथा या गंभीरता से नहीं लेते थे.

अब लाक डाउन के इस भीषण दौर में कविताएं लिखकर वेंकैया नायडू ने यह जताने की कोशिश की है कि उनके भीतर भी एक नरमों नाजुक आदमी है जो तुकबंदी करने में भी माहिर है. कविता लिखने , कविता के आवश्यक तत्वो को जानना जरूरी नहीं होता बल्कि हृदय से जो भाव शब्द बनकर प्रवाहित होने लगें उन्हें ही कविता करार दिया जाता है. अब यह और बात है कि हिन्दी अच्छे से न जानने बाले वेंकैया के दिल में कवित्व के भाव अँग्रेजी में आए.

एक कविता लिखकर ही उन्होने देशवासियों को संदेशा दे दिया है कि सब कविताए लिखो यह दुनिया का सबसे आसान काम है .  इससे आप दिनकर भले ही न बन पाओ लेकिन बीबी बच्चों की निगाह में जरूर चढ़ जाओगे . वे जब भी ऊब कर चें चें पें पें करें तो आप उन्हें अपनी कविताएं सुनाना शुरू कर दो सब भाग जाएँगे और कोई आपके सृजन और सुकून में खलल डालने की जुर्रत नहीं करेगा . आप भी गौर फरमाये वेंकैया जी के काव्य पर और अपने लाक डाउनी समय को सार्थक बनाएँ –

ईस्ट आर बेस्ट होम इस द बेस्ट , टेक सम रेस्ट , डोंट काल एनी गेस्ट …

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और नवीन बाबू का मशवरा –

कायदे से तो कविता ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लिखनी चाहिए .  कम ही लोग जानते हैं कि वे एक अच्छे लेखक और सिद्धहस्त चित्रकार भी हैं लेकिन एक मजबूरी उन्हें राजनीति में ले आई थी और तभी से यानि 20 साल से वे मुख्यमंत्री हैं  . 74 वर्षीय नवीन पटनायक ने अज्ञात कारणों से शादी नहीं की इसके अलावा और भी कई वजहें हैं जो उनमें दिलचस्पी पैदा करती हैं .  बहरहाल इस अविवाहित मुख्यमंत्री को महिलाओं की फिक्र लाक डाउन के दौरान दूसरे और शादीशुदा नेताओं से कहीं ज्यादा है .

बक़ौल नवीन पटनायक पुरुष लाक डाउन का आनंद छुट्टियों की तरह न लें और महिलाओं से बार बार खाना बनबाकर उन पर बोझ न बने . बात सच भी है क्योंकि घर घर में पुरुष महिलाओं से विभिन्न डिशों की फरमाइशें कर उन्हें आराम के इन दिनों में थका ही रहे हैं . नवीन बाबू के बयान से एक बात तो साबित होती है कि महिलाओं की परेशानियाँ समझने अविवाहित रहना आड़े नहीं आता बल्कि समझने में सुविधा ही देता है .

इस बयान से परे भी नवीन महिलालों की हिमायत के लिए जाने जाते हैं . पिछले चुनाव में उन्होने महिलाओं को अपनी पार्टी बीजू जनता दल से 33 फीसदी टिकिट देने का प्रयोग किया था जिस पर ओड़ीशा की जनता ने सहमति की मुहर भी लगाई थी. सफलता का एक रास्ता महिलाओं से होकर भी जाता है यह बात राहुल गांधी नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार और योगी आदित्य नाथ जैसे नेताओं को भी अपने अपने ढंग से समझनी चाहिए .

घरेलू हिंसा बढ़ाता लाक डाउन

नवीन पटनायक तो बनाने खाने तक ही सिमट कर रह गए लेकिन हकीकत में लाक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले पहले यानि आम दिनों से कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं जिससे जाहिर होता है कि पुरुष खाली वक्त का इस्तेमाल मर्दांनगी दिखाने में भी कर रहे हैं . राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयर पर्सन रेखा शर्मा की माने तो लाक डाउन के पहले हफ्ते में ही आयोग को 250 के लगभग शिकायतें मिलीं थीं जिनमें से 69 घरेलू हिंसा की थीं.

बक़ौल रेखा शर्मा मामले और ज्यादा होंगे लेकिन कई महिलाएं शिकायत ही नहीं कर पा रहीं  होंगी क्योंकि उस दौरान मारपीट करने बाला उनके सामने ही होगा और कई महिलाएं तो इसलिए भी शिकायत नहीं कर पा रही कि पुलिस उनके पति को ले गई तो सास ससुर उनका जीना मुहाल कर देंगे.

तो क्या लाक डाउन महिला प्रताड़ना और घरों को तोड़ने बाला साबित हो रहा है? मुमकिन है आने बाले दिनों में इस पर शोध हो लेकिन वाकई में यह वक्त महिलाओं पर ज्यादा आफत बनकर टूटा है.  खासतौर से उन महिलाओं पर जिनकी पति या ससुराल बालों से पटरी नहीं बैठती है . बाहर सन्नाटा है ऐसे में पीड़िताए घर में रहकर पिटना ही बेहतर समझ रहीं हो तो बात कतई हैरानी की नहीं . अभी तक होता यह था कि पति पत्नी दोनों या दोनों में से कोई एक कमाने बाहर चला जाता था इसलिए गुस्सा और भड़ास दबे रहते थे पर अब फूट रहे हैं तो कोरोना भगे न भगे कुछ के घर जरूर टूट रहे हैं.

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दुग्ध दान का गणित

इन दिनों हर किसी का खासतौर से नेताओं का जी सहायता के नाम पर दान दक्षिणा के लिए मचला जा रहा है . गरीबों को बिस्कुट अनाज बगैरह देने के बाद अपने कर्ण होने का प्रचार प्रसार मोक्ष सी फीलिंग दे रहा है . अधिकतर लोगों की कोशिश यह है कि सस्ती से सस्ती चीज दान कर पुण्य कमा लिया जाये तो अच्छा होगा .  इसीलिए कोई भूमि मकान या स्वर्ण दान नहीं कर रहा है वैसी भी जिन्हें दान दिया जा रहा है वे सब पैदाइशी गरीब गुरबे हैं जो इन आइटमों को हजम ही नहीं कर पाएंगे और उनकी प्राथमिकता पीढ़ियों से पेट भरने की है , पंडे पुजारियों की तरह घर भरने की नहीं लिहाजा ये शहरी गरीब तो दुआ कर रहे हैं कि लाक डाउन हमेशा बना रहे जिससे उन्हें मुफ्त का खाना पीना मिलता रहे.

पूरे देश की तरह दूध कर्नाटक में भी इन दिनो फालतू फिक रहा है क्योंकि मिठाइयाँ और दूसरे मिल्क प्रोडक्ट नहीं बन रहे नतीजतन देश में घी दूध की नदियां तो नहीं पर नाले जरूर बहते दिखाई दे रहे हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस येदियुरप्पा इन दिनो गरीब बस्तियों और झुग्गी झोपड़ियों में दूध बाँटते घूम रहे हैं. कर्नाटक में प्रतिदिन 69 लाख लीटर दुग्धोत्पादन होता है जिसमें से लाक डाउन के चलते 42 लाख लीटर बिक नहीं पा रहा है सो दरियादिल येदि गरीबों को दूध का स्वाद चखाकर उन्हें एक नई फीलिंग करा रहे हैं.

अब यह और बात है कि येदि सलीके से फोटो खिंच जाने तक यानि घंटे दो घंटे में जितना दूध नहीं बाँट पाते उससे ज्यादा पैसा उनके लाव लश्कर पर खर्च हो रहा है क्योंकि उनके साथ आधा दर्जन मंत्री और एक दर्जन अधिकारियों की फौज चलती है.

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Lockdown की वजह से पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाई शाहरुख खान की ऑनसक्रीन बेटी

बॉलीवुड एक्ट्रेस सना सईद के जीवन में बेहद ही दुखद घटना हो गई है. हाल ही में खबर आई है कि सना के पिता का निधन 22 मार्च को यानि जनता कर्फ्यू के दिन हुआ. सना के लिए अफसोस की बात यह है कि सना अपने पिता के साथ आखिरी समय में भी साथ नहीं थीं.

दरअसल, सना सईद किसी इवेंट के लिए लॉस एंजेलिस पहुंची हुई थीं. लॉकडाउन की वजह से सना वहीं फंसी रह गई. एक इंटरव्यू के दौरान सना ने बताया कि उनके पिता को डाइबटीज था. जिस वजह से वह हमेशा बीमार रहते थें.

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उनके सारे ऑर्गन फेल हो गए थें. आगे सना ने कहा यह मेरा दिल ही जानता है कि मेरे पिता कितने बीमार रहते थें. वह बहुत तकलीफ में थें. उन्होंने आगे यह भी कहा था कि वह अब बहुत अच्छी जगह पर हैं.

 

 

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Promise Yourself To be so strong that nothing can disturb your peace of mind. To talk health, happiness, and prosperity to every person you meet. To think only the best, to work only for the best, and to expect only the best. To be just as enthusiastic about the success of others as you are about your own. To give so much time to the improvement of yourself that you have no time to criticize others. To be too large for worry, too noble for anger, too strong for fear, and too happy to permit the presence of trouble. To think well of yourself and to proclaim this fact to the world, not in loud words but great deeds. To live in faith that the whole world is on your side so long as you are true to the best that is in you ♥️♥️♥️ #christianlarson Have an AMAZING THURSDAY!! I send you love and wish you health and abundance where ever in the world you are ♥️♥️♥️

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सना ने कहा उनके परिवार वालों ने फैसला लिया है कि उनके अंतिम संस्कार में ज्यादा लोग नहीं आएंगे. पुलिस कुछ देर के लिए उनके बॉडी को रोक लिया था लेकिन चेक करने के तुरंत उन्हें छोड़ दिया.

सना कि बहन फोन पर उन्हें हर एक मिनट की अपडेट दे रही हैं. सना को जब इस बात की खबर मिली की उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे उस वक्त वह अपने बहनों और पिता को गले लगाने के लिए बहुत तरसी उन्हें इस बात का मलाल हमेशा रहेगा.

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सना ने फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत कि थी. इस फिल्म में वह शाहरुख खान और रानी मुखर्जी के बेटी के रोल में नजर आई थीं.

आखिरी दफा सना को फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ दी ईयर’ में देखा गया था. फिलहाल बॉलीवुड के सभी सितारे सना के पिता के आत्मा के शांति के लिए प्रार्थना कर रहा है. लॉकडाउनखत्म होते ही सना अपने परिवार के पास वापस आएंगी.

कोरोनावायरस और कट्टरवाद: पूरे कुंए में ही भांग है

एक विचार- वर्तमान संकट के बाद शीर्षक से व्हाट्सएप पर तेजी से वायरल होती एक पोस्ट के आदि और अंत पर आप भी गौर फर्माए–

आदि – जब हम लोग सामान्य जीवन में वापस जाएंगे तो उस समुदाय से किनारा कर लेंगे जो आजकल देश पर थूक रहा है —–

अंत – इस कौम के प्रति अपनी घृणा को स्थायी बना लीजिए राम जी ने धनुष तोड़ा था,

आप इनका आर्थिक साम्राज्य  ….. जय श्रीमन्नारायन .

इस पूरी पोस्ट के बीच में इस्लाम और मुसलमानों के प्रति नफरत दर्शाने में कोई लिहाज,  परहेज या कंजूसी नहीं बरती गई है बल्कि यथासंभव उदारता दिखाई गई है. एक नहीं ऐसी दर्जनो पोस्टें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं हैं जिन्हें शुभ संकेत लोकतन्त्र, संविधान (अगर इन शब्दों की कोई प्रासंगिकता किसी को लगती हो तो) और देश के लिहाज से नहीं मानी जा सकतीं. इस पोस्ट का खासतौर से जिक्र इसलिए कि यह किसी बुद्धिजीवी लेखक द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है जिसमें यह भी कहा गया है कि– कोरोना , संकट लेकर तो आया है लेकिन ये आपको विराधु बनाकर जाएगा. यहाँ भारतीय अर्थव्यवस्था की मृत्यु होने नहीं जा रही किन्तु जमाती अर्थव्यवस्था के अंतिम दिन चल रहे हैं दरगाह जाने बालों का सामाजिक बहिष्कार आपके हाथ में होगा.

जाने एक आयातित खलनायक को

मुमकिन है यहां विराधु शब्द के माने आप भी दूसरे कई लोगों की तरह न समझ पाएं हों तो समझ लीजिये कि यहाँ विराधु शब्द हिन्दू धर्म ग्रन्थों से नहीं उड़ाया गया है. विराधु दरअसल में एक कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु है जिसका पूरा नाम अशीन विराधु है उसकी उम्र 52 साल है. म्यामर में भगवान की तरह पूजे जाने बाले विराधु ने 14 साल की उम्र में ही भिक्षु जीवन अपना लिया था. साल 2012 में जब राखिने प्रांत में रोहिङ्ग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की थी तब विराधु के मुस्लिम विरोधी भाषण बड़े चाव से सुने जाते थे.

इस शख्स की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 2013 में इसे टाइम मेगज़ीन ने अपने कवर पेज पर छापा था और शीर्षक दिया था – द फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर यानि बौद्ध आतंक का चेहरा.

विराधु का वर्णन और चरित्र हरि अनंत हरि कथा अनंता सरीखा है जिसके बारे में यह कहते बात खत्म की जाना बेहतर होगा कि सितंबर 2017 में उसके भड़काऊ भाषणों और हिंसा के चलते कोई 3 लाख रोहिङ्ग्या मुसलमान म्यामर से खदेड़े गए थे, जिनमे से कुछ ने भारत में भी पनाह ली थी. इसका दर्शन और मकसद इसके एक वाक्य से ही समझा जा सकता है कि आप कितने ही दयालु और प्यार करने बाले हों लेकिन पागल कुत्ते के साथ नहीं सो सकते.

अब हमारे देश में उक्त पोस्ट के जरिये घर घर से विराधु निकलेगा जैसी बात कोरोना के कहर और लाक डाउन के चलते ही क्यों की जा रही है इसे समझना बेहद जरूरी है नहीं तो सांप्रदायिक हिंसा का जो तांडव म्यामर में देखने में आया था उसका दोहराव हमारे यहाँ भी हो जाने का अंदेशा और खतरा है जो 2024 तक तक हमें विश्व गुरु तो नहीं बना पाएगा लेकिन हमारी धर्मनिरपेक्षता को जरूर खत्म कर जाएगा.

कोरोना के कहर के चलते कई जमाती देश में आए और देश भर की मस्जिदों में फ़ेल गए इनमें से कई कोरोना संक्रमित थे. वजहें कुछ भी हों इन्हें जब तक पहचाना गया तब तक काफी देर हो चुकी थी. बात यहीं खत्म हो जाती तो और बात थी लेकिन हद तब हो गई जब इन जमातियों ने जगह अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों सहित पुलिसकर्मियों पर थूका और उनके साथ बेहूदी हरकतें और बदतमीजिया कीं.

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क्या है और कैसा है खतरा

मीडिया और खासतौर से सोशल मीडिया पर इसका खूब हल्ला मचा जिसके तले देश भर से मजदूरों के पलायन और पलायन के दौरान हुईं उनकी मौतों की बाद दब गई फिर कोई दयनीय हो गई अर्थव्यवस्था की बात कोई करेगा यह सोचना ही बेमानी है. न्यूज़ चेनल्स पर बहस करने बालों में सब्जी मंडी जैसा शोर मच गया कि मुसलमान देशद्रोही हैं . बहसों में मुस्लिम धर्मगुरुओ ने माना कि जमातियों ने गलत किया लेकिन कुछ चंद लोगों की गलती या अपराध के लिए पूरे मुसलमानो के बारे में गलत राय कायम न की जाये.

यह हल्ला अभी थमा नहीं है सोशल मीडिया पर जो बातें हो रहीं हैं उनका तो जिक्र तक यहाँ करना एक गलत मानसिकता को शह देने बाली बात होगी इस सबसे बड़े प्लेटफार्म पर सार रूप में कहा जा रहा है कि मुसलमानो को देश से खदेड़ो वे गद्दार हैं.

खदेड़ने के हुकम के अलावा उनके आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार की भी बातें की जा रहीं हैं जिन्हें ऊपर बताई पोस्ट में भी कहा गया है.  लेकिन चिंता की एक और बड़ी बात विराधु का जानबूझ कर किया उल्लेख है जिसका मकसद हिन्दुओ को और भड़काना है कि जब अहिसा का राग दिन रात अलापते रहने बाले बुद्ध के अनुयायी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा कर सकते हैं तो हम और तुम तो राम और कृष्ण के वंशज हैं जिनकी पूरी ज़िंदगी हिंसा और लड़ाइयाँ करने और करबाने में गुजरी तो फिर हिचकिचाहट क्यों.

असल हिचकिचाहट यह है कि जो लोग इस आग को हवा दे रहे हैं 130 करोड़ की आबादी बाले इस देश में उनकी तादाद 15 करोड़ भी नहीं है यानि मुसलमानों के बराबर ही है . बाकी लोग दलित आदिवासी ईसाई और वे पिछड़े हैं जिन्हें एक शब्द बेकबर्ड में पिरोकर देखा जा सकता है . ये बेकबर्ड कहने भर को हिन्दू हैं जिन्हें पेट भरने के लाले पड़े रहते हैं. ये लोग हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से कोई इत्तफाक नहीं रखते इनकी पीढ़ियों से लड़ाई भूख, जातिगत शोषण, छूआछूत और भेदभाव से है जिसके सामने ये लाक डाउन के बाद हथियार डाल चुके हैं. भाजपा और आरएसएस के हिन्दुत्व बाले एजेंडे में आरक्षण खत्म करने भी एक स्टेप है जो सबसे आखिर में उठाई जा सकती है.

इसी डर के चलते वंचित कहे जाने बाले इन तिरिस्कृत वर्गों ने सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर मुसलमानों का साथ शाहीनबाग से लेकर गली कूचों तक दिया था जिससे हिंदूवादियों के अरमानों पर पानी फिर गया था जो चाहते यह थे कि बेकबर्ड क्लास के लोग मुसलमानों से लड़ें और हम अपने घरों में बैठे हिन्दू राष्ट्र का नागपुरी सपना साकार होते देखते रहें.

अफसोस और झटके की बात इन आर्यों यानि तथाकथित हिन्दुओ के लिए यह रही कि कोई बेकबर्ड विराधु बनने के लिए तैयार नहीं और इन खुराफाती सनातनियों में कभी सीधे लड़ाई लड़ने की हिम्मत नहीं रही. हां सोशल मीडिया पर जरूर ये लोग भड़काऊ पोस्टें आगे बढ़ाने शूर वीरता दिखाते रहते हैं जिसके लेखक और पाठक भी यही 8 -10 करोड़ हिन्दू रहते हैं.

अब बात भगोड़े मजदूरों की जो बेचारे न तो विराधु को जानते न हिन्दुत्व को उनका धर्म तो  रोटी है जिसके लिए वे हाड़तोड़ मेहनत करते हैं फिर भी कभी पेट नहीं भरता. इधर 8 – 10 करोड़ हिंदुओं की दलील यह है कि इन्हें तो अनाप शनाप मिल रहा है लाक डाउन के दौरान इनके घर सरकारी इमदाद के चलते राशन से लबालब भर गए हैं और ये निकम्मे हो चले हैं क्योंकि इनके मुंह मुफ्त की चीजों और इमदाद की लत लग गई है.

शायद ही ये बुद्धिजीवी हिन्दू बता पाएँ कि इन्हें अगर सब कुछ बैठे बिठाये वाकई में मिल रहा होता तो ये 24 मार्च की लाक डाउन की घोषणा के बाद लाखों की तादाद में भागे क्यों जबकि हिंदुओं के मुताबिक सरकार इनके घरों में गेंहू, चावल, शकर, तेल नमक बगैरह भर रही थी. तो क्या ये सैर सपाटे या ख़ुदकुशी के लिए निकले थे. जब पैसे बाले सवर्ण कोरोना के डर से घरों में दुबके थे तब इन्हें क्या विराधु बाले पागल कुत्ते ने काटा था जो ये अपनी जान जोखिम में डालते.

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इस समीकरण और जमातियों पर भगवा सोशल मीडिया गेंग के  हल्ले का इकलौता मकसद सरकार की उजागर हो रही नाकामियों और वेंटिलेटर पर पड़ी अर्थव्यवस्था पर से लोगों का ध्यान हटाने और भटकाने का है और इसके लिए वे जमातियों जैसी ही मानसिकता  प्रदर्शित कर रहे हैं तो कौन ज्यादा कट्टर है यह तय कर पाना मुश्किल नहीं कि दोनों ही एक जैसे हैं.

फर्क सिर्फ इतना है कि सालों बाद सनातनी हिन्दू भारी पड़ते देश पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं जो जल्द ही फुस्स हो जाना है क्योंकि अब इनमें से अधिकांश को अपना नुकसान भी दिखने लगा है जो 9 बजे रोशनी करने से तो दूर होने से रहा हाँ कथित हिन्दुओ की छद्म एकता बनाए रखने की यह कोशिश थोड़ी तो कारगर होगी फिर मुमकिन है किस्मत या दूसरी कोशिशों से कोई नया बहाना मिल जाये.

लड़ाई अब कोरोना की नहीं बल्कि धर्म की है, हिन्दू राष्ट्र की है, असफलताएं ढकने की है, नफरत की नुमाइश और कट्टरता के मुजरे की है तो आइये तनाव के इन लम्हों में इसका ही लुत्फ उठाया जाये.

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सिद्धार्थ शुक्ला के लिए देवोलीना ने कही ऐसी बात, ‘SidNaaz’ के फैंस ने कर दिया ट्रोल

बिग बॉस 13 में नजर आ चुकी देवोलीना भट्टाचार्या ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान सिद्धार्थ   शुक्ला के साथ म्यूजिक वीडियो में काम करने की इच्छा जताई है. उन्होंने कहा अगर भविष्य में मुझे मौका मिला तो मैं सिद्धार्थ के साथ काम जरूर करूंगी.

जिसके बाद ‘sidnaaz’  के फैंस उन्हें लगातार ट्रोल करना शुरू कर दिए है. सोशल मीडिया पर दोवोलीना के बारे में कई गलत-गलत अफवाहें उड़ाना शुरू कर दिए है. वहीं सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें देवोलीना कहती नजर आ रही है कि ‘sidnaaz’  की जोड़ी सबसे बेकार लगती है.

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वहीं sidnaaz’  के एक यूजर ने देवोलीना को टारगेट करते हुए लिखा देवोलीना जी यह आपकी इच्छा है कि आप सिद्धार्थ के साथ काम करना चाहती हैं लेकिन क्या आपको पता है कि सिद्धार्थ आपके साथ काम करना चाहते भी है या नहीं.

 

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वहीं दूसरे यूजर्स ने लिखा सिदार्थ के साथ काम करने के बारे में सोचना भी पाप है. आप कभी शहनाज की जगह नहीं ले सकती हैं.

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भले ही लोग आज देवोलीना को इतना ज्यादा ट्रोल कर रहे हैं लेकिन एक समय ऐसा भी था जब सिद्धार्थ और देवोलीना की कैमेस्ट्री को लोग खूब पसंद करते थें. देवोलीना की दोस्ती सिद्धार्थ के साथ बिग बॉस में चर्चा का विषय बना हुआ था.

देवोलीना कोरोना टाइम में अपने फैमली के साथ समय बीता रही हैं. उन्होंने यूजर्स का अभी तक कुछ रिप्लाई नहीं किया है. इससे यहीं मालूम होता है कि देवोलीना को इन सभी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वह आगे बढ़ने के बारे में सोचती रहती हैं.

यही सच है: भाग 2

‘‘चलिए, आप का खाना लगा देती हूं,’’ कह कर वह नीचे आ गई. लाइट आ चुकी थी. अजय चुपचाप बैठ कर खाना खाने लगा. इस दौरान अजय ने कोई बात नहीं की. कविता ने स्वयं को सामान्य दर्शाते हुए पूछा, ‘‘भाभी और अपूर्व कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हैं,’’ बस इतना ही कहा अजय ने.

‘‘अच्छा भैया, अब मैं सोने जा रही हूं. अनन्या सो रही है आप के कमरे में,’’ कविता अपने रूम में आई. कोई आहट पा कर जैसे ही मुड़ी, पीछे अजय दरवाजा बंद कर रहा था. कविता चौंक पड़ी, गुस्से से बोली, ‘‘भैया, यह क्या है? आप यहां से फौरन चले जाइए.’’

अजय ने कुछ नहीं कहा और उस की तरफ हाथ बढ़ा कर उसे अपनी ओर खींच लिया. फिर बैड पर जबरदस्ती लिटा दिया. कविता ने अजय की गिरफ्त से छूटने की भरपूर कोशिश की लेकिन कविता की नाजुक देह ज्यादा देर तक अजय की बलिष्ठ देह का विरोध नहीं कर पाई. कविता छटपटाती रह गई. तनमन छलनीछलनी हो गया. इस कुकर्म के बाद अजय कमरे से निकल गया. कविता व्यथित, परेशान, भीतरबाहर जैसे एक आग में झुलसतीसुलगती रही. उसे लग रहा था जैसे कमरे की छत, दीवारें आदि सब भरभरा कर ऊपर आ गिरेंगी. एक भयानक भूकंप, सर्वस्व उजाड़ देने वाला भूकंप सबकुछ तहसनहस कर जैसे उस के ऊपर से गुजर गया था. मन हुआ इसी समय विनय को फोन कर के उस के बड़े भाई की चरित्रहीनता के बारे में बताए. कविता ने अपने कपड़े व्यवस्थित किए, मुंह पर पानी के छींटे मारे तब जा कर उसे थोड़ा होश आया. सारी रात क्रोध व घृणा में उठतीबैठती रही.

सुबह हुई तो रात की घटना दुस्वप्न की तरह दिल में चुभ रही थी. नहाने गई तो देर तक नहाती रही. वह अपने शरीर से रात की सारी कालिख धो डालना चाहती थी. जब नहा कर निकली तो शरीर के साथ ही उस का मन भी काफीकुछ धुल चुका था.कविता ने अपनेआप को संभाला. उस ने सोचा एक भयानक दुर्घटना, जिस में उस का कोई दोष नहीं है, के चलते अपनी बसीबसाई गृहस्थी में आग लगा देना समझदारी नहीं होगी. विनय के दिल में अपने भाई के लिए बहुत ही प्यार व आदर है. रिश्तों में दरारें पैदा हो जाएंगी, परिवार की बदनामी होगी, रेखा भाभी को कितनी तकलीफ पहुंचेगी, मां को कितनी शर्मिंदगी होगी, अनुमान लगाना मुश्किल न था. इसलिए उस ने सोचा कि इस बात को यहीं भुला देना ही ठीक रहेगा.

कमरे से बाहर आई तो देखा अजय अनन्या को ले कर हौस्पिटल जा चुका था. सोचा, अच्छा ही हुआ इस समय अजय भैया यहां नहीं हैं. ‘भैया’ शब्द सोचते ही मन कसैला हो गया. उसे सारे रिश्ते एकदम झूठे से लगे. इतने में विनय का फोन आ गया. कविता उस की आवाज सुनते ही फूटफूट कर रो पड़ी. विनय परेशान हो गया. उसे यही लगा कि वह उस के बिना उदास है. विनय ने कहा, ‘‘कविता, मैं ने बहुत कोशिश की लेकिन कुछ जरूरी काम है, मैं नहीं आ पाऊंगा. जैसे ही भाभी घर आएं, तुम आ जाना. मैं मां से बात कर लूंगा.’’

कविता फोन रखने के बाद भी बहुत देर तक सिसकती रही.अब वह यहां एक दिन भी रुकना नहीं चाहती थी और अजय का तो चेहरा भी देखना नहीं चाहती थी. महरी आई तो उस ने सब साफसफाई करवाई, घर के काम बुझे मन से निबटाए. अजय लंच के समय आया तो वह खाना रख कर अपने कमरे में चली गई. जब अजय ने दरवाजा नौक किया तो वह चौंक गई. उसे इस की उम्मीद नहीं थी. कविता ने दरवाजा नहीं खोला तो अजय ने बाहर से ही कहा, ‘‘कविता, कुछ कहना है एक बार सुन लो.’’

कविता ने दरवाजा खोला तो अजय सिर झुकाए खड़ा था. नजरें नीची किए बोला, ‘‘जो कुछ हुआ उस के लिए मैं शर्मिंदा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर देना. सौरी,’’ कह कर अजय चला गया.कविता को बहुत गुस्सा आया. घर में आई छोेटे भाई की पत्नी की इज्जत से खेल कर बाद में माफी मांग लेना पुरुष के लिए कितना आसान है, सोच कर उसे घिन सी हुई. अजय जा चुका था. उसी दिन रेखा डिस्चार्ज हो गई तो कविता की जान में जान आई. उस का उतरा मुंह देख कर कावेरी और रेखा चौंक गईं. रेखा ने उसे गले से लगाया तो कविता की आंखें भर आईं. बस, उस ने तबीयत ढीली होने का बहाना बना दिया.अगले दिन ही विनय ने फोन पर कविता के बिना होने वाली खानेपीने की परेशानियों का जिक्र किया तो कावेरी ने ही कहा, ‘‘अब कोई परेशानी नहीं है. मैं कविता को वापस भेज देती हूं.’’

2 दिन बाद ही कावेरी ने अजय से कविता का टिकट बुक करने के लिए कह दिया और कविता मुंबई आ गई. विनय की बांहों में सिमटते ही कविता फिर रो पड़ी. विनय ने इसे अपने से दूर रहने का कारण समझा. कविता ने विनय को कुछ नहीं बताया. इस का एक बड़ा कारण यह भी था कि अगर दोनों भाइयों का रिश्ता बिगड़ जाता तो कावेरी को बहुत दुख होता और अनाथ कविता को कावेरी में हमेशा एक ममतामयी मां दिखाई दी थी और वह उन्हें दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी. लगभग 2 महीने बाद कविता के जीवन में वह दिन आया जिस का उसे सालों से इंतजार था. डाक्टर ने उसे बताया कि वह मां बनने वाली है, तो वह खुशी से झूम उठी. घर पहुंचते ही उस ने विनय को सरप्राइज देने की सोची. पूरा घर अच्छी तरह सजाया. बढि़या डिनर तैयार किया. खूब सजसंवर कर विनय के आने की प्रतीक्षा करने लगी. विनय आया तो कविता और घर को देख कर चौंक गया. जब कविता ने विनय को खुशखबरी सुनाई तो जैसे तूफान आ गया. विनय के सिर पर जैसे खून सवार हो गया. उस ने टेबल पर रखा सारा सामान उठा कर फेंक दिया.

विनय चिल्लाने लगा, ‘‘तुम धोखेबाज हो, चरित्रहीन हो.’’

कविता को कुछ समझ नहीं आ रहा था, ‘‘विनय, तुम यह कैसा व्यवहार कर रहे हो? यह सब क्या है?’’

‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है कविता, तुम चरित्रहीन हो.’’

‘‘यह झूठ है. मैं ने तुम्हें कभी कोई धोखा नहीं दिया. ऐसा कैसे सोच सकते हो तुम? कितने सालों बाद आज हमें यह खुशी मिली है, क्या हो गया है तुम्हें?’’

विनय चिल्लाया, ‘‘यह मेरा बच्चा नहीं है.’’

कविता को भी गुस्सा आ गया, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो?’’

‘‘यह बकवास नहीं है, जब हमारे टैस्ट हुए थे, कमी मुझ में थी, तुम में नहीं.’’

कविता पर जैसे कोई बम फट पड़ा हो, बोली, ‘‘तुम ने इतना बड़ा झूठ बोला कि मैं मां नहीं बन सकती.’’

‘‘एक तो यह मेरा पुरुषोचित अहं था कि मैं अपनी कमजोरी स्वीकार नहीं कर सका और दूसरे, मैं डरता था कि कहीं संतान की इच्छा में तुम मुझे छोड़ न दो,’’ विनय का स्वर पिघलने लगा था, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं कविता, मैं तुम्हारी इस भूल को भी माफ कर दूंगा लेकिन इस बच्चे को स्वीकार नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘कोई भूल नहीं की है मैं ने, मेरे मन में आप के सिवा कोई नहीं था, मैं तो एक हादसे का शिकार हो गई थी. आप को इसलिए नहीं बताया कि मैं उस बुरे सपने को खुद ही भूल जाना चाहती थी लेकिन दोनों ही पुरुषों ने मेरे साथ छल किया है. आप ने संतान न होने का दोष मेरे सिर मढ़ दिया, खुद महान बन बैठे और मैं यह सोच कर अपराधबोध में ग्रस्त रही और इसी दुख में जीती रही कि मैं आप को संतान नहीं दे सकती. और दूसरे पुरुष ने अपनी हवस पूरी करने के लिए…’’ कविता ने कहतेकहते अपने गालों पर बहते आंसू पोंछे. फिर दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘लेकिन मैं अपने साथ और छल नहीं होने दूंगी. यह मेरा बच्चा है, इस की मां भी मैं हूं और बाप भी,’’ कविता की आवाज फिर भर्रा गई. कमरे में मरघट का सा सन्नाटा फैला हुआ था. फर्श पर पड़े बरतनों का खाना, कांच के टूटे टुकड़े जैसे अभी कुछ देर पहले एक तूफान आया था जिस ने कविता के संपूर्ण अस्तित्व को ही नहीं बल्कि उस की आस्था, विश्वास को भी छलनी कर दिया था.

थैंक्यू Lockdown, मैं रोबोट से संवेदनशील इंसान बन गया

शहर में लाॅक डाउन की घोषणा होते ही इक्कीस दिन के लिए पहली बार न चाहते हुए भी मुझे अपनी दुकान बंद करनी पड़ी. खुद की नहीं, पर अपने मातहतों की चिंता थी मुझे. उन्हें तुरंत ही घर जाने को कहा.
देश में फ़ैल रही महामारी से मैं बहुत चिंतित था, पर अपनी मृत्यु को लेकर नहीं, क्योंकि मैं तो जीवित होकर भी मृतप्राय जैसा था.
घर में मेरी पत्नी की भौंहें हमेशा तनी रहतीं, बच्चों से भी महिनों बातें नहीं होती, होती भी तो, उनकी फरमाइशों पर. क्या करुं ? इस मंहगाई के दौर में यदि मैं मेहनत न करुं तो सबकी जरुरतें कैसे पूरी हों.
रात को बारह बजे दुकान बंद कर जब मैं घर पहुंचता था, थक कर चकनाचूर हो चुका होता था. दिनभर ग्राहकों की चिक-चिक के कारण किसी से बात करने की इच्छा ही नहीं होती थी. खाना खाने के बाद नींद की आगोश में चला जाता था. सुबह सात बजे उठकर नित्यकर्म से निपटकर, नाश्ता कर फिर दुकान के लिए निकल जाता था.
सभी इसीलिए मुझसे नाराज़ रहते थे क्योंकि मैं उन्हें समय ही नहीं दे पाता था. कभी कभी मुझे लगता है कि मैं जीता जागता रोबोट हूं. जिसमें कोई इच्छाएं न कोई संवेदनाएं है,बस दूसरों की खातिर काम किये जा रहा हूं.
आज चारों ओर दहशत और सन्नाटा पसरा है, पर यह सन्नाटा मुझे प्रभावित नहीं कर रहा, क्योंकि मेरे अंदर तो वर्षो से सन्नाटा है. या यूं कहें इस सन्नाटे का मैं आदी हो चुका था ही.
आज जैसे ही मैं दुकान बंद कर आठ बजे घर पहुंचा, पत्नी ने ऐसे घूर कर देखा जैसे अजायबघर से कोई प्राणी आया हो. मैं बाहर से तो शांत पर अंदर से अशांत था. मन में कई बातें घुमड़ रहीं थीं. इन दिनों में कुछ नया करना चाह रहा था. ताकि घर के माहौल में बदलाव आ सके. मैंने फोन उठाया और दो पिज्जा आर्डर किये. पत्नी को खाना बनाने से मना किया तो आश्चर्य से मेरा चेहरा देखते हुए पूछ बैठी “तबियत तो ठीक है न.”
तभी पिज्जा भी आ गया पत्नी के चेहरे की सिलवटें कुछ कम हुई. बच्चों को भी आवाज देकर डायनिंग टेबल पर बुलाया. पिज्जा देखते ही दोनों के चेहरे खिल उठे. सबने मुस्कुराते, बातें करते पिज्जा का आनंद लिया घर में फैली धुंध भी कम हो रही थी. मेरे अंदर भी खुशी अंकुरित हो रही थी.
परिवार के साथ बैठकर मैंने पहली बार पूरी फिल्म देखी मुझे तो याद भी नहीं इसके पहले मैंने कब फिल्म देखी थी मैं तो अब तक आटे-दाल में ही उलझा रहा कभी फुर्सत ही नहीं मिली.
अब मुझे लाॅक डाउन इतना भी बुरा नहीं लग रहा था इसी की वजह से तो मुझे परिवार के साथ समय बिताने का अवसर मिला. सुबह उठने पर मुझे हल्कापन लग रहा था मन भी शांत था रोज की तरह भाग- दौड़ जो नहीं थी. मैं सोच रहा था कि रोज रोज परांठे सब्जी का नाश्ता करते ऊब गया आज कुछ और खाया जाए. तभी पत्नी ने नाश्ते के लिए आवाज दी. नाश्ते में उसने बच्चों की पसंद का पास्ता बनाया था.
पास्ता तो मैंने कभी नहीं खाया था और खाने का मन भी नहीं था.
“अरे! पापा खाकर तो देखिए, बहुत अच्छा लगता है.”
 मैं बच्चों का अनुरोध टाल न सका खाने पर मुझे नया स्वाद अच्छा लगा. अभी तक तो मैं नाश्ता और खाना पेट भरने के लिए खाता था, स्वाद लेने का समय ही कहां था मेरे पास.
इन इक्कीस दिनों में  मैंने खाने की विविधता और स्वाद का भरपूर आनंद लिया. घर मुझे घर जैसा लग रहा था. पत्नी के चेहरे की सिलवटें खत्म हो गईं थीं, मुझे वह फिर से जवान लगने लगी थी. घर की धुंध भी छट चुकी थी खुशियों का उजाला फैला हुआ था. मैं भी रोबोट से संवेदनशील इंसान बन गया था.

यही सच है: भाग 1

शाम का समय था. कविता पार्क में एक बैंच पर बैठी थी. बैंच पर उस के बराबर में एक बच्चा खेलतेखेलते थक कर बैठा तो कविता का मन हुआ बच्चे के मासूम चेहरे पर बहते पसीने को अपने दुपट्टे से पोंछ दे लेकिन कुछ ही दूरी पर टहलते उस के मातापिता कहीं अन्यथा न लें, यह सोच कर वह अपनी इच्छा मन में दबाए चुपचाप बच्चे को देखती रही. बच्चे ने उसे अपनी तरफ देखते पाया तो सकुचा कर अपने मम्मीपापा की ओर दौड़ पड़ा. उस महिला ने बांहें फैलाईं और बच्चा मां की गोद में चढ़ गया और यह दृश्य देख कर कविता का मन ममता से भीग गया. उस की आंखें भर आईं. क्या कभी उस की बांहों में कोई ऐसे ही दौड़ कर नहीं आएगा? क्या वह ऐसे ही जीती रहेगी?

सबकुछ है उस के जीवन में, एक बेहद प्यार करने वाला पति, सारी भौतिक सुखसुविधाएं लेकिन जीवन की इस कमी का क्या करें. कितना कुछ हुआ इन 7 सालों में, कितने सपने देखे, कुछ पूरे हुए कुछ टूट कर बिखर गए. वह कभी हंसती, कभी रोती रही लेकिन जीवन का सफर यथावत चलता रहा. समय को तो गुजरना ही है. उस में किसी के सुखदुख के लिए ठहराव की गुंजाइश ही कहां है.कितने टैस्ट हुए थे, उसे याद आया, विनय ने सारी रिपोर्ट्स आने के बाद जब उसे बताया था कि वह कभी मां नहीं बन सकती तो कविता इस मानसिक आघात से कितनी विचलित हुई थी और विनय ने ही कैसे प्यार से उसे समझाया था.

आंखों से बहते आंसुओं का गीलापन जब गालों को छूने लगा तो एहसास हुआ कि वह पार्क में बैठी है. अंधेरा होने लगा था. घड़ी देखी, विनय के औफिस से आने का समय हो चुका था. घर चलना चाहिए, सोच कर पार्क में खेलते बच्चों पर एक नजर डाल कर वह उदास मन से लौट आई और विनय के आते ही उस का मूड एकदम बदल गया. विनय की प्यारभरी बातों ने उस के चेहरे की उदासी को हमेशा की तरह हंसी में बदल दिया. चाय बनातेबनाते उसे कभी कहीं पढ़े हुए इमर्सन के एक निबंध ‘फिलौसफी औफ कम्पैन्सेशंस’ की पंक्तियां याद आ गईं. निबंध के अनुसार, ‘प्रकृति और जीवन मनुष्य की हर त्रुटि, हर हानि, हर अभाव का कोई न कोई मुआवजा, किसी न किसी रूप में अदा कर देते हैं. जीवन के मुआवजे सदा ही प्रदर्शनात्मक नहीं होते. जीवन ऊपरऊपर से बहुत कुछ हर कर कोई ऐसी आंतरिक निधि दे सकता है कि उस से बड़ेबड़े धनाधिपतियों को ईर्ष्या हो.’

कविता को लगा सच ही तो है. इतना प्यार करने वाला पति है जो उस के हर सुखदुख को बिना कहे समझ लेता है, वह क्यों एक ही बात सोचसोच कर बारबार उदास हो जाती है. दोनों चाय पी ही रहे थे कि लखनऊ से विनय के बड़े भाई अजय का फोन आया. अजय की पत्नी रेखा गर्भवती थी और अब डिलीवरी के समय उन्हें कविता की सहायता चाहिए थी. विनय के पिता का देहांत हो चुका था. विनय की मम्मी कावेरी कभी लखनऊ में अजय के पास रहती थीं, कभी विनय और कविता के पास मुंबई आ जाती थीं. आजकल रेखा गर्भवती थी तो वे काफी समय से लखनऊ में ही थीं. विनय के बिना जाने का कविता का मन तो नहीं था लेकिन वह अपने कर्तव्य से पीछे हटना भी नहीं चाहती थी. रेखा के मातापिता इस समय विदेश में अपने बेटे के पास थे और डिलीवरी के समय कावेरी अकेली सारा काम संभाल नहीं सकतीं थीं, कविता को ही जाना था. कविता को उदास देख कर विनय ने वादा किया कि वह भी छुट्टी ले कर बीच में लखनऊ का चक्कर लगाएगा. विनय ने कविता का फ्लाइट का टिकट बुक करा दिया. दूसरे ही दिन वह रेखा के पास पहुंच गई.

सब उसे देख कर खुश हो गए. रेखा किसी भी समय बच्चे को जन्म दे सकती थी. रेखा की एक बेटी अनन्या 4 साल की थी. वह चाचीचाची कह कर कविता की गोद में चढ़ी रहती. वह कविता से बहुत घुलमिल गई थी. रेखा ने भी चैन की सांस ली कि अब उस के हौस्पिटल में रहने पर अनन्या परेशान नहीं होगी, कविता उसे संभाल लेगी.

कुछ समस्या होने पर डिलीवरी के लिए रेखा का औपरेशन करना पड़ा और उस ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. बेटे का नाम अपूर्व रखा गया. कावेरी हौस्पिटल में रहती. कविता कुछ देर हौस्पिटल और फिर घर आ कर अनन्या को और बाकी काम संभाल लेती. नन्हे अपूर्व को जब कविता अपने हाथों में लेती तो उसे वह सुख दुनिया का सब से बड़ा सुख लगता. अपूर्व के छोटेछोटे हाथपैरों की छोटीछोटी उंगलियों और उस के बालों को छूती तो किसी और ही दुनिया में पहुंच जाती. उसे लगता मातृत्व एक भावना है जो कोख से नहीं बल्कि हृदय से बहती है. मातृत्व एक छोटा सा शब्द है जो अपनेआप में पूरा संसार समेटे है. यह एक ऐसा सुखद एहसास है जो कई जिंदगियों को बदल देता है. कावेरी और रेखा दोनों ही उस की मनोदशा समझती थीं. सब उस से बहुत ही प्यार से पेश आते थे.

एक दिन उस ने कावेरी और रेखा के लिए टिफिन तैयार कर के अजय को दिया. अजय ने कहा, ‘‘मेरा खाना टेबल पर रख देना. मेरे पास चाबी है, तुम अनन्या के साथ सो जाना, मुझे शायद थोड़ी देर हो जाएगी.’’

‘‘ठीक है, भैया,’’ कह कर कविता ने गेट बंद किया. अनन्या के कमरे में उस के साथ लेट कर उसे सुलाने लगी. उस की आंख भी लग गई. अचानक लाइट गई तो कविता की आंख खुली, देखा अजय भैया अभी तक नहीं आए थे. उमस और गरमी से परेशान हो कर वह छत पर चली गई. छत पर चांदनी फैली हुई थी. उसे विनय की याद आ गई. हवा के झोंके उस की उदासी को थपकने लगे लेकिन इन थपकियों ने उस के दिल को और उदास कर दिया. कविता पसीना सुखाने के लिए बाल खोल कर उंगलियों से कंघी सी करने लगी. हवा ने जल्दी ही गरमी से उसे छुटकारा दिला दिया.

बाल लहरा रहे थे और अचानक अजय उस के सामने आ कर खड़ा हो गया. बेहद करीब. उसे देख कर कविता ऐसी अचकचाई कि आंखें फाड़े उसे देखती रह गई. अचानक वह कुछ घबराई और उस का दिल जोर से धड़कने लगा. चांद की रोशनी में भी अजय की आंखों की चमक में कुछ ऐसा था जो कविता को पलभर के लिए कुछ खटका.

कविता ने ही उस अजीब से पल का मौन तोड़ा, ‘‘भैया, आप कब आए? आप ने खाना खाया?’’

अजय ने न में गरदन हिलाई.

यही सच है: भाग 3

विनय भी सिर झुकाए चुपचाप बैठ गया था. कविता ने ही फिर कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने पतिव्रत धर्म का हमेशा पूरे मन से पालन किया है. कभी परपुरुष के बारे में नहीं सोचा लेकिन मैं अपने नारीत्व के साथ छल नहीं करूंगी. मातृत्व मेरा अधिकार है और मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी.’’

‘‘नहीं कविता, मैं इस बच्चे को स्वीकार नहीं करूंगा. तुम एबौर्शन करवा लो. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. हम दोनों नई शुरुआत करेंगे.’’

‘‘नहीं, मैं इस बच्चे को नहीं मारूंगी. तुम्हें यह स्वीकार नहीं है तो मैं ही घर छोड़ कर चली जाऊंगी.’’

काफी देर तक दोनों में बहस हुई. फिर कविता ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं चली जाती हूं. जो भी कुछ हुआ उस में इस नन्ही जान का क्या कुसूर है?’’ कविता ने चुपचाप खड़े हो कर पलभर सोचा, फिर अपना सामान बैग में भरने लगी. उसे जाता देख विनय सिसक उठा, ‘‘रुक जाओ कविता, मुझे माफ कर दो, यह तुम्हारा घर है, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा.’’

‘‘मैं भी नहीं जाना चाहती लेकिन मेरा बच्चा इस दुनिया में जरूर आएगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है जैसा तुम चाहो.’’‘‘अच्छी तरह सोच लो विनय, यह सारी उम्र की बात है.’’

विनय ने कविता का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं पलभर को स्वार्थी हो गयाथा. क्रोध में आ कर पता नहीं क्याक्या तुम्हें कह बैठा. तुम मेरी हो. तुम्हारा अंश भी मेरा है. मैं उस का पालनपोषण करूंगा तो वह मेरा ही होगा न. मैं ने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है. मुझे माफ कर सकोगी न?’’

‘‘लेकिन क्या आप उस के बाप के बारे में जानना चाहेंगे?’’ पूछतेपूछते कविता का स्वर कांप गया.

‘‘बस, तुम इस की मां हो. मैं इस का पिता. तुम मेरी हो और यह हमारा है. यही सच है,’’ कहतेकहते विनय ने कविता को अपने सीने से लगा लिया.

कविता की आंखें भर आईं. जीवन में आए इस परिवर्तन के लिए दोनों ने अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार किया. धीरेधीरे उन्होंने बदली परिस्थितियों में खुद को ढाल लिया. जीवन अब सामान्य गति से चलने लगा था. पहले शिशु के जन्म का स्वाभाविक उत्साह तो विनय के स्वभाव में ज्यादा स्पष्ट नहीं था लेकिन कविता के शारीरिक परिवर्तनों पर वह सामान्य रूप से बात करता. कविता की भविष्य की योजनाओं में रुचि दिखाता. कविता के चेहरे पर रहने वाली चमक उसे अच्छी लगती. कविता उस की मनोदशा समझती थी. स्वयं को भरसक सामान्य रखती. उधर लखनऊ में रेखा भाभी यह खुशखबरी सुन कर बहुत प्रसन्न हुई थी. उसे कविता हमेशा अपनी छोटी बहन जैसी लगती थी. देवरानीजेठानी के रिश्ते को अनदेखा कर दोनों ने हमेशा एकदूसरे को सगी बहनों जैसा प्यार व सम्मान दिया था.

कुल मिला कर देखने में सब सामान्य था. फिर वह दिन भी आ गया जब कविता ने एक स्वस्थ व सुंदर बेटे को जन्म दिया. लखनऊ से कावेरी और रेखा भी बच्चों के साथ आ गई थीं. अजय नहीं आया था. कविता को मन ही मन यह ठीक लगा था. वह अजय का सामना करना भी नहीं चाहती थी. कावेरी घर पर रह कर घर के काम और बच्चों को देख लेती और रेखा कविता के पास हौस्पिटल में रहती. एक दिन कविता ने रेखा से कहा, ‘‘दीदी, आप ही रखना इस का नाम.’’

रेखा हंस पड़ी, ‘‘ठीक है, दिव्यांशु कैसा रहेगा?’’

‘‘बहुत अच्छा है. बस, यही है इस का नाम.’’

रेखा रातदिन कविता और दिव्यांशु का ध्यान रखती. कविता हौस्पिटल से घर आ गई तो उसे लगा कि कावेरी कुछ गंभीर है, उस ने पूछा भी, ‘‘मां, क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

कावेरी ने जबरदस्ती मुसकराते हुए कहा, ‘‘नहीं, नहीं, मैं बिलकुल ठीक हूं, तुम्हें ऐसे ही लगा होगा.’’

विनय ने जब बच्चे को गोद में लिया तो उसे शुरू में तो बहुत अजीब लगा लेकिन धीरेधीरे वह उस नन्हे से अस्तित्व के आकर्षण में बंधता चला गया. अतीत में जो कुछ हुआ था, उस ने अपने दिमाग से निकाल फेंका था. अनन्या का स्कूल था, उस की और ज्यादा छुट्टियां नहीं करवाई जा सकती थीं, सो, रेखा बच्चों के साथ चली गई और कावेरी कविता और दिव्यांशु की देखभाल के लिए रुक गई. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा. अब दिव्यांशु 7 साल का हो गया था. इस बीच कावेरी कभी लखनऊ, कभी मुंबई आतीजाती रहती थी. कविता तो उस घटना के बाद कभी लखनऊ नहीं गई थी. रेखा छुट्टियों में बच्चों के साथ मुंबई आ जाती थी और अजय कभी मुंबई नहीं आया था. इतने सालों में अजय और कविता का फिर आमनासामना नहीं हुआ था. एकदो बार विनय अकेला ही लखनऊ गया था. कविता ने कुछ न कुछ बहाना बना दिया था और दिव्यांशु के साथ मुंबई में ही रही. रेखा जब भी आती, दिव्यांशु के लिए ढेर सारे उपहार लाती और दिव्यांशु, वह तो रेखा को देखते ही उस से चिपक जाता और बड़ी मम्मी, बड़ी मम्मी कहते न थकता. दिव्यांशु ने सब को एकदूसरे के और करीब कर दिया था.

एक दिन अनहोनी हो गई. कविता का फ्लैट थर्ड फ्लोर पर था. एक दिन सीढि़यों पर ही दिव्यांशु अपने दोस्तों के साथ रेलिंग की तरफ खड़ा था. रेलिंग कमर तक थी. ऊपर से ग्रिल नहीं थी. सब बच्चे मस्ती कर रहे थे कि अचानक एक बच्चे ने दिव्यांशु को जोर से धक्का दिया तो उस का संतुलन बिगड़ गया और वह नीचे जमीन पर जा कर गिरा. खून की धारा बह निकली. भगदड़ मच गई. गार्ड ने तुरंत इंटरकौम से कविता को दुर्घटना की खबर दी तो कविता के होश उड़ गए. बिल्डिंग के लोग इकट्ठा हो गए. कुछ पड़ोसी मिल कर बेहोश दिव्यांशु को तुरंत हौस्पिटल ले कर भागे. किसी ने विनय को भी फोन कर दिया. खून से लथपथ दिव्यांशु को गोद में लिए हुए कविता की हालत देख कर सब की आंखें नम हो गई थीं. दिव्यांशु को ऐडमिट कर दिया गया. हाथ और पैर की हड्डी टूट गई थी. सिर में बहुत चोट थी. वह अभी बेहोश था. विनय हौस्पिटल पहुंच चुका था. वह कविता को बहुत तसल्ली दे रहा था.

उस का दिल भी कांप रहा था. कविता को संभालना बहुत मुश्किल हो रहा था. उस ने इस दुर्घटना की खबर लखनऊ में भी दे दी. उसी दिन शाम तक फ्लाइट से सब पहुंच गए. कावेरी और रेखा ने कविता को बहुत समझासमझा कर संभाला. अजय चुपचाप बच्चों के साथ दुखी हो कर खड़ा रहा. तभी डाक्टर ने कहा, ‘‘बहुत खून निकल गया है, हमें तुरंत ब्लड चाहिए.’’

विनय ने तुरंत कहा, ‘‘चलिए, मैं चलता हूं, आप चैक कर लीजिए.’’ लेकिन उस का ब्लडग्रुप दिव्यांशु से मैच नहीं हुआ. विनय का मुंह लटक गया. इतने में रेखा अजय को एक तरफ ले जा कर बोली, ‘‘आप जाइए, आप का ब्लडग्रुप दिव्यांशु के ब्लडग्रुप से जरूर मैच होगा.’’

अजय ने उस की ओर असमंजस भरी नजरों से देखा तो रेखा बोली, ‘‘देख क्या रहे हैं? जाइए न, एक पिता का ब्लडग्रुप अपने बेटे के ब्लडग्रुप से जरूर मैच करेगा.’’

अजय पर जैसे बिजली गिरी. वह अपनी जगह खड़ाखड़ा हिल गया. कांपते स्वर में पूछा, ‘‘मतलब, तुम जानती हो? कैसे? और इतने दिन…?’’

‘‘हम ये सब बातें बाद में कर लेंगे, अभी आप डाक्टर के साथ जाइए.’’

और फिर अजय का ब्लडग्रुप दिव्यांशु से मैच हो गया. सब की जान में जान आई. अब दिव्यांशु खतरे से बाहर था लेकिन उसे अभी होश नहीं आया था. सब की पूरी रात आंखों में कटी थी. अगले दिन दिव्यांशु को होश आया तो सब ने चैन की सांस ली. उसे आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया. उस के हाथपैर का प्लास्टर और सिर पर बंधी पट्टियां देख कर सब का कलेजा मुंह को आ रहा था. बाहर अजय चुपचाप नीची गरदन किए अपनी सोच में गुम चेयर पर अकेला बैठा था. रेखा ने उस के बराबर वाली चेयर पर बैठ कर उस के हाथ पर हाथ रखा तो वह चौंका, रेखा से नजरें नहीं मिला पाया. रेखा ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘क्या सोच रहे हैं?’’

अजय उस की ओर देखे बिना ही बोला, ‘‘तुम जानती थीं, कैसे? रेखा, मुझ से बहुत बड़ा गुनाह…’’

रेखा ने उस की बात पूरी नहीं होने दी, बोली, ‘‘तुम्हें अपमानित और शर्मिंदा नहीं करना चाहती थी. जब मैं अपूर्व के जन्म के बाद हौस्पिटल से लौटी थी तो कविता को बहुत उदास व दुखी पाया था. बारबार पूछने पर भी उस ने कुछ नहीं बताया था और मैं ने तुम्हें और उसे एक बार भी फिर एकदूसरे के सामने नहीं देखा जबकि हौस्पिटल जाने से पहले ऐसा नहीं था. मुझे कुछ खटका हुआ था लेकिन मैं किसी से कुछ कह नहीं पाई. कविता उस समय मुंबई चली आई थी. और उस के बाद कभी लखनऊ नहीं आई. और तुम ने मेरे साथ यहां आने का नाम भी कभी नहीं लिया. मुझे हमेशा अकेला भेजा, मुझे बड़ा अजीब सा लगता रहा और जब कविता ने अपने मां बनने की खबर हमें फोन पर सुनाई तो मैं सचमुच बहुत खुश हुई थी लेकिन मांजी और आप के चेहरे का रंग उड़ गया था. उसी रात मैं ने मांजी और आप की बातें सुन ली थीं. उसी दिन मुझे पता चला था कि विनय पिता नहीं बन सकता था. यह आप दोनों जानते थे. मेरे लिए यह बात चौंका देने वाली थी और आप दोनों की बातों से मुझे पता चल गया था कि क्या हुआ था. आप रोरो कर मांजी से माफी मांग रहे थे और अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा थे. मांजी आप को खूब डांट रही थीं, मैं ने यह उसी समय महसूस कर लिया था कि आप अपनी इस गलती पर बहुत पछता रहे हैं और बहुत शर्मिंदा हैं.

‘‘मैं ने उस समय अपने को ठगा सा महसूस किया था. अपनेआप को कैसे संभाला, यह नहीं बता पाऊंगी. आप का पछतावा और शर्मिंदगी देख कर आप को माफ करने की ठान ली और अगर यह दुर्घटना न हुई होती तो इस बात को मैं भी मन में ही रखती. अब यह बात आप भी भूलने की कोशिश कीजिए,’’ कह कर रेखा ने अजय के कंधे पर हाथ रखा तो उस के दिल पर सालों पुराना रखा बोझ हट गया. यह सच था कि अजय अपनेआप को आज तक माफ नहीं कर पाया था. उसे लगा, रेखा ने सच के उस विष को पी लिया था और उसे पछतावे के भंवर से उबार लिया था. दोनों ने एकदूसरे के चेहरे पर छाए प्यार और विश्वास के संबल को अपनी मुट्ठी में बांध लिया था. अचानक रेखा को कुछ याद आया, बोली, ‘‘और हां, विनय के सामने हमेशा स्वयं को सामान्य रखना. उस ने अपने को पता नहीं कैसे संभाला होगा. आज विनय और कविता पूरी तरह एकदूसरे को समर्पित हैं. उन के रिश्ते में कोई दरार नहीं आनी चाहिए. और दिव्यांशु, उसे तो आप ने पहली बार देखा है, वह भी इस दुर्घटना का शिकार होने पर. बस, अब तक जैसा चल रहा था वैसा चलते रहना चाहिए.’’

अजय ने ‘ठीक है’ कह कर हामी भरी.

रेखा ने कहा, ‘‘अब चलें, हमें इस समय सब के पास होना चाहिए.’’

वह अजय का हाथ पकड़ कर दिव्यांशु के वार्ड की ओर बढ़ गई. और अजय मन ही मन अपनी पत्नी के बड़प्पन के आगे नतमस्तक हो गया.

#coronavirus: परेशान होते पशुपालक ,घट रहे दूध के दाम

इन दिनों देश के  किसानों , पशुपालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा. खासकर जो लोग दूध के कारोबार से जुड़े हैं, उनके सामने तो भारी समस्या है ,क्योंकि दूध की खपत कम हो गई है. दूध सप्लाई करने वाले , डेयरी वाले कम दूध उठा रहे हैं. कुछ लोग कम दामों पर दूध बेचने पर मजबूर हैं , जबकि पशुओं के चारपानी पर पहले से कहीं अधिक खर्च हो रहा है. बाजार की दिक्कतें सो अलग.

दूध की खपत ज्यादातर मावा पनीर बनाने में , हलवाइयों की दुकानों पर , शादीब्याह , पार्टियों आदि मैं होती थी, जो अब काफी कम हो गई है.

 

दिल्ली में खारी बावली मावापनीर की बड़ी मंडी है ,जहाँ दिल्ली के आसपास के इलाकों से टनों मावा टेम्पोट्रकों में भर कर था, जो अब नहीं आ रहा है. देश के दूध उत्पादन करने वाले अनेक पशुपालकों से बात हुई , ज्यादातर लोगों का कहना है कि दूध व्यापारी हम से कम दामों पर दूध ले रहे हैं. सारा दूध भी नहीं लेते, कम मात्रा में ही दूध के जाते हैं. हम दूध को फ़ैंक नही नहीं सकते , हमें उस दूध को पशुओं के चारे में ही मिलाना पड़ रहा है.

 

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हरियाणा में अर्थ डेयरी वाले का कहना है कि दूध की खपत आधी हो गई है. पशुपालक रमाकांत तिवारी का कहना है कि दूध की ज्यादातर  खपत ढाबे और रेस्टोरेंट में होती थी जो अब बंद है.

 

*अनेक डेयरियों ने घटाए दाम :

दूध की खपत काम होने के कारण देश की अनेक डेरियों ने  दूध के दाम भी घटा दिए हैं .उत्तर प्रदेश की  बड़ी डेरियों में शुमार पराग ने  दूध के दाम 2 रुपए प्रति लीटर तक कम किये हैं ,और गरीब तबके को ध्यान में रखते हुए 7 रुपए  में 200 ग्राम का पाउच निकाला है.

 

*उत्तराखंड* की पारस और परम डेयरी ने भी दूध के दामों में कमी की है. परम डेयरी ने अपने दूध  के हर ब्रांड में 4 रुपए तक कि कमी की है , और 200 ग्राम पनीर खरीदने पर 10 रुपए वाला दही फ्री मिलेगा.

*राजस्थान* की सरस डेयरी ने भी 1 अप्रैल से अपने दूध के दामों में 2 रुपए से 4 रुपए प्रति लीटर तक कम किए हैं. 200 मिली वाले पाउच की कीमत में कोई बदलाव नही किया.

 

मदर डेयरी घरघर दूध पहुँचाने के लिए ऑनलाइन सर्विस पर काम कर रही है.अब सब से बड़ी समस्या उन पशुपालकों की है , उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं दिख रहा. पिछले दिनों मेरा पराग डेयरी , मेरठ जाना हुआ था, तो वहां के अधिकारियों ने बताया कि जब हमारे पास दूध अधिक मात्रा में आता है तो उस दूध से हम पाउडर बनाते हैं, और जब दूध की सप्लाई , जैसे गरमी के मौसम में कम होती है उस समय उस पाउडर दूध का इस्तेमाल किया जाता है.

 

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ऐसे समय में ऐसा ही कुछ काम देश की डेयरियां करें तो पशुपालक का नुकसान न हो. हालांकि कुछ प्रगतिशील लोग अपने दूध को प्रोसेसिंग कर घी आदि बना भी रहे हैं, जिसकी आसपास के लोग भी अच्छी कीमत देते हैं.

 

एक पशुपालक ने बताया कि जब भी हमारे पास दूध बचता है तो उस से हम घी बनाते हैं .और वह घी 1 हजार रु. किलो के हिसाब से बिकता है. जरूरत पड़ने पर लोगों की डिमांड होने पर मावा भी बनाते हैं जो 5 सौ रु. किलो बेचते हैं.इसलिए इस तरह से कुछ काम किया जाए तो काफी हद तक समस्या से निदान पाया जा सकता है.

 

 

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