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अनोखा रिश्ता: भाग 2

‘बैंक में औडिट के कारण मैं चाह कर भी छुट्टी न ले सका, इसलिए दिन में मैं औफिस और रोहन स्कूल चले जाते थे. इस बीच शालू और मेरे मित्र सुमन को बातचीत का अच्छा अवसर मिलता. दोनों के ही विचार मिलते थे. सुमन भी सरकारी अफसर था तथा अपने पद का लाभ उठा तनख्वाह के अतिरिक्त ऊपरी कमाई का हिमायती था. दोनों ने साथ रहने का निर्णय ले लिया.

‘मैं सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था. उस दिन मैं रोहन के पास बैठ कर न्यूजपेपर देख रहा था. रोहन अपना होमवर्क कर रहा था. सुमन आधे घंटे में लौटने को कह कर बाहर गया था. तभी शालू ने बिना प्रस्तावनाउपसंहार के कहा, मुझे आप से तलाक चाहिए.

‘अचानक पड़े प्रहार से मैं अचकचा सा गया, फिर भी खुद को संभालते हुए कहा, थोड़ा समझो शालू, मेरी जैसी या मेरे से कम तनख्वाह पाने वाले मेरे सहकर्मी, सभी तो शांतिपूर्वक जीवन जी रहे हैं.

‘चिकने घड़े की तरह शालू पर कोई प्रभाव न पड़ा. वह प्रतिउत्तर में बोली, और लोग कर लेते होंगे इतनी तनख्वाह में गुजर, मुझ से नहीं होती. मैं रोज की खींचतान से परेशान हो गई हूं.

‘मैं ने फिर कोशिश करते हुए कहा, शालू, जरा रोहन के विषय में तो सोचो, इस कच्ची उम्र में उसे मातापिता दोनों का स्नेह व संरक्षण चाहिए.

‘शालू तो निर्णय ले चुकी थी. इसलिए पूर्ववत ही बोली, तुम उसे मांपिता दोनों का स्नेहसंरक्षण देना. मैं तुम दोनों को छोड़ कर जा रही हूं. मुझे तुम्हारी कोई निशानी नहीं चाहिए. मैं नए सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहती हूं.

‘मैं भी अपना आपा खो बैठा, चीखते हुए कहा, अरे निर्लज्ज, कम से कम सुमन के जाने का तो इंतजार कर लेती, वर्षों बाद तो मैं अपने जिगरी यार से मिला हूं. चार दिन तो खुशी से जी लेने देती. वह तो अच्छा है कि वह अभी यहां नहीं है वरना मेरी पारिवारिक स्थिति देख वह कितना दुखी होता.

‘शालू ने कटाक्ष करते हुए कहा, मैं उन्हीं के साथ जा रही हूं. वे मेरे लिए उपयुक्त जीवनसाथी हैं, न आमदनी की चिंता और न ही खर्चे का हिसाब. जैसे चाहो कमाओ और जीभर कर उड़ाओ. हम दोनों के विचार पूरी तरह समान हैं.

‘शालू की बातें सुन मैं अवाक् रह गया. सारी बातें समझ में आने लगीं. मेरा जिगरी यार मेरे साथ समय गुजारने के लिए नहीं रुका था बल्कि अपने मित्र की असंतुष्ट पत्नी को अपने जाल में फांसने के लिए रुका था. सुमन की पत्नी का 6 माह पूर्व एक ऐक्सिडैंट में देहांत हो चुका था. असंतुष्ट शालू को उस ने भांप लिया और दो के झगड़े में तीसरे का लाभ वाली कहावत चरितार्थ कर बैठा. मैं इन सब बातों से अनभिज्ञ अपनों के हाथों ठगा गया. बस, उस समय से शालू गई तो गई, बाद में हमारा कानूनी तलाक भी हो गया.’

खाना बन चुका था, लंच का समय भी हो चला था किंतु रामेश्वरजी की जीवनगाथा सुन, अजीब सी उदासीनता पसर गई थी. हम सभी चुप थे. रामेश्वरजी ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘क्या भाभीजी, खाना नहीं खिलाइएगा?’

मैं ने उठते हुए कहा, ‘जरूरजरूर, अभी लगाती हूं.’

रामेश्वरजी ने धीरे से कहा, ‘मेरा तलाक हुए 12 वर्ष हो चुके हैं, अब तो इस दर्द के साथ जीने की आदत सी हो गई है.’

खाना खाने के बाद हम तीनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गए. राजेश ने पूछा, ‘रामेश्वरजी, आज आप ने अपनी पत्नी के बारे में बताया, किंतु मेरे मन में एक और प्रश्न है. मैं, आप के और रोहन के रिश्ते के बारे में जानना चाहता हूं. वह आप के प्रति बहुत रूखा व सख्त है जो उचित नहीं. कुछ तो बताइए, शायद हम कुछ मदद कर सकें.’

रामेश्वरजी ने कहा, ‘सच कहूं तो मुझे इस हेतु मदद की आवश्यकता है भी किंतु मैं किसी से कहने से झिझकता हूं कि भला मेरी व्यक्तिगत समस्या में क्यों कोई दिलचस्पी ले कर मदद करेगा. आप ने पूछा है, मैं आभारी हूं और आप को अवश्य बताता हूं.

‘शालू मुझे छोड़ कर चली गई. कच्ची उम्र का नन्हा रोहन देखसुन तो सब रहा था किंतु समझ कम रहा था. शालू के जाने के बाद उसे शालू से तो नफरत हो गई किंतु प्यार वह मुझ से भी नहीं कर सका. उसी ने बैडरूम में लगी हमारी तसवीर कूड़ेदान में डालते हुए धमकी भरे लहजे में कहा, दोबारा मत लगाइएगा.

‘मुझे ऐसा महसूस होता है कि रोहन मुझे एक कमजोर इंसान मानने लगा है, जो अपनी पत्नी को न संभाल सका, भला वह क्या कर सकेगा? मातापिता की रोज की किचकिच ने उस का बचपन बरबाद कर दिया. इन झगड़ों से शायद खुद को असुरक्षित महसूस कर वह सख्त व रूखा बन बैठा है.’

मैं ने कहा, ‘आप ने ठीक कहा, भाईसाहब…मांपिता के झगड़ों से चिढ़ कर उस ने आप के साथ सख्त व रूखा व्यवहार अपना लिया है. वह आप को अपमानित कर संतुष्ट होता है.’

राजेश ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है. वह आप को बेइज्जत करने का मौका ढूंढ़ता रहता है किंतु एक अच्छी बात है कि वह अपने हमउम्र के साथ अच्छा व्यवहार करता है. तभी तो उस के इतने दोस्त हैं. हमें उस के मन से इस गलत धारणा को निकालना होगा कि उस के पापा एक कमजोर इंसान हैं, हमें प्रयास कर उसे समझाना होगा कि उस के पापा एक मजबूत इंसान हैं जिन्होंने अपना जीवन उस की परवरिश हेतु न्योछावर कर दिया. वे भी तो दूसरा विवाह कर सकते थे, तब उस का क्या होता? उन्होंने स्वयं से ज्यादा रोहन पर ध्यान दिया. हम तीनों के प्रयास से मुझे पूरा विश्वास है कि रोहन का पूरा मैल धुल जाएगा तथा एक निर्मल, कोमल रोहन विकसित हो सकेगा.’

‘आप लोगों के सहयोग से यदि रोहन बदल जाता है, मेरा जीवन धन्य हो उठेगा, मैं आप लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगा,’ रामेश्वरजी भावविह्वल हो बोले.

मैं तुरंत बोल पड़ी, ‘कर दी न, भाईसाहब, परायों वाली बात? अरे, अपनों के बीच एहसान कहां से आ गया?’

राजेश बोले, ‘देखिए रामेश्वरजी, हम ने अपने बेटे राजीव को प्यार से पालापोसा, पढ़ायालिखाया. आज वह विदेश में जा बैठा है तथा परायों सा व्यवहार कर रहा है. वह खुश है, यह सोच हम भी खुश हो लेते हैं. अब अपनी आंखों के सामने रोहन को भटकते देख रहे हैं. हम सब उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं, अवश्य लाभ होगा.’

हम तीनों ने मिल कर तय किया कि औफिस के काम के बहाने रामेश्वरजी 4-6 दिनों के लिए शहर से बाहर जाएं जिस से हम रोहन के नजदीक आ सकें. रामेश्वरजी ने तय कार्यक्रम के अनुसार रोहन को बाहर जाने का कार्यक्रम बता दिया. उस ने उन की बातों का कोई जवाब नहीं दिया. रामेश्वरजी अपना सामान ले कर जा रहे थे, वह बेपरवा औंधेमुंह लेटा रहा.

#lockdown: लॉक डाउन में पत्नी के बदलते स्वर

रामी परेशान थी, देश में कोरोना के कारण 21 दिन का लॉक डाउन था. बच्चे और पति राज घर पर ही थे. हर वक़्त बच्चों के साथसाथ ये भी कुछ न कुछ फरमाइश करते रहते.

रामी को इस का कोई तोड़ नजर नही आ रहा था, तभी घर का काम करते हुए 3 अप्रैल की सुबह मोदी के 9 मिनट के भाषण की आवाज उस के कानों में सुनाई पड़ी :
5 अप्रैल, रात 9 बजे, 9 दीए… रामी  बस इतना ही सुन सकी, तभी छोटे बच्चे ने कार्टून का चैनल लगा दिया इसलिए पूरी स्पीच न सुन सकी.

पति राज छत से टहल कर नीचे आए और एक चाय की मांग कर डाली. उन्हें  नहीं पता था मोदी के इस भाषण के बारे में.

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पति राज कुछ समझ पाता, पत्नी रामी ने थैला थमाते हुए कहा कि पहले कहीं से 9 दीए का इंतजाम करो.

“क्यों…? क्या हुआ…? इन दीए का क्या करोगी…?” राज ने पूछने की गुस्ताखी की, “क्या लॉक डाउन में भी…”

“जी हां, पहले जो कहा है, वो करो,” रामी ने गुस्सा दिखाते हुए कहा.

“अच्छा, जो तुम कहोगी, वही होगा, पर पहले नहा तो लेने दो,” राज ने अपना पक्ष रखा.

राज कुछ सोचता हुआ नहाने बाथरूम की ओर चला गया.

राज जब नहा कर आया, तो उस  ने मुस्कान बिखेरते हुए रामी से एक कप चाय की फरमाइश कर दी.

चाय का नाम सुनते ही रामी
का पारा चढ़ गया,” पहले जो कहा है, उसे पूरा करो.”

नरम पड़ते हुए राज ने रामी से कहा,”क्या हुआ आज जो इतनी गुस्से में हो?”

“मैं गुस्से में नहीं हूं…” रामी ने नाराजगी छिपाते हुए कहा.

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“जब मैं आज घर का नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी एक अच्छी स्पीच आ रही थी, जिस में कहा गया कि रविवार की रात 9 बजे 9 मिनट अंधेरा करें, फिर 9 दीए जला कर बालकनी में रखें.” रामी ने इतना ही कहा.

“तुम भी बेवजह हंगामा करती हो,” राज ने छोटे बेटे के हाथ से मोबाइल छीन न्यूज वाला चैंनल लगा दिया.

न्यूज़ सुन कर राज ने अपना सिर पीट लिया और बोला, “हंसी आती है ऐसी बातों पर. क्या इस से कोरोना अपनी चाल बदल लेगा? क्या यही है वायरस को मारने का अचूक फॉर्मूला? पहले अंधेरा कर दो. फिर कुछ देर तक तेज दिए या मोबाइल की फ्लैश चला दो. रोशनी से आंखें फेल जाएंगी. वायरस दिखेगा नहीं और चला जाएगा, कहानी समाप्त.”

“यह तुम क्या बोले जा रहे हो? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा,” रामी राज के अजीब चेहरे को देख कर बोली.

“तुम बस अपने घर पर ध्यान दो. इधरउधर की बातों में कम,” राज अजीब नजरों से रामी को देखता हुआ खुद ही चाय बनाने लगा.

राज को चाय बनाते देख रामी खुद ही असल बात पर आते हुए बोली, “मैं इन दोनों बच्चों से काफी तंग आ चुकी हूं, सारा दिन काम करतेकरते मैं भी थक जाती हूं. कमबख्त, ये लॉक डाउन नहीं हुआ, दिमाग का दही हो गया.”

राज ने रामी के गले मे हाथ डालते हुए कहा, “क्यों इतना नाराज़ हो?”

हाथ छिटकते हुए रामी बोली, “रहने दो आप भी. मैं ने भी अब तय कर लिया है कि आज रात 9 बजे इन बच्चों से बात करूंगी,” कहते हुए वह वहां से चली गई.

पूरे दिन खुटका रहा, रामी न जाने क्याक्या बच्चों से बोलेगी.

रात 9 बजे हम सब के लिए फर्श पर दरी बिछा दी गई.

ठीक रात के 9 बजते ही रामी ने 9 मिनट तकअंधेरा कर दिया, उस के बाद मोबाइल की फ्लैश जलाते हुए दरी पर बैठ गई.

यह हरकत देख बच्चे हैरानी से मां की ओर देखने लगे.

कुछ देर बाद राज ने लाइट जलाई और बच्चों के पास ही आ कर बैठ गए.

बच्चों की ओर देख कर रामी बोली, “मेरे प्यारो, पापा के दुलारो, आप सब का काम करतेकरते मैं थक गई हूं. लॉक डाउन के चलते सब ही घर में बैठे हैं और सिर्फ खाए जा रहे हैं, सो रहे हैं बस.”

“पूरे दिन मोबाइल पर गेम या व्हाट्सएप पर चैटिंग के अलावा टीवी के तमाम प्रोग्राम देखते रहते हैं.

“और, मैं पूरे दिन चकरघिन्नी की तरह इधर से उधर तुम सब की फरमाइश पूरी करने के लिए दौड़ती रहती हूं, इसलिए मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह फैसला लिया है कि आज रात 12 बजे…” कहते हुए रामी ने थोड़ा पोज बदला, ध्यान से सुनिए, “आज रात 12 बजे…”

फिर रामी बच्चों की ओर देखने लगी… बच्चों के साथसाथ राज की भी सांस ऊपरनीचे हो रही थी. पता नहीं, क्या कहेगी. फिर मेरी ओर देख कर वह बोली, “आज रात 12 बजे से अब इस घर में मेरा लॉक डाउन रहेगा. आज से सब अपनाअपना काम खुद ही करेंगे, अगर आप चाहते हैं कि सबकुछ ठीकठाक चलता रहे तो आप को मेरे द्वारा बनाए नियम मानने होंगे.

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“सब से पहला नियम तो यह कि किचन अब इमर्जेंसी में ही खुलेगा, वह भी मेरी मरजी से. मतलब, सिर्फ ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर और वह भी लिमिट में.

“इस के अलावा शाम 4 बजे का स्नैक वाला प्रोग्राम नहीं होगा,चाय हो या कॉफी, सिर्फ सुबह और शाम ही मिलेगी. दिनभर किसी को चाय या कॉफी नहीं मिलेगी.

“दूसरा नियम यह कि खाने के स्वाद, मात्रा और क्वालिटी पर किसी को कुछ भी कहने का हक नहीं होगा.

“आप सभी को मेरे बनाए नियम मानने होंगे. यह नियम आज रात 12 बजे से ही लागू माने जाएंगे.”

फिर बच्चों की ओर उंगली दिखाते हुए रामी बोली,”अगर घर में ठीक ढंग से रहना है तो मेरे इन नियमों को मानना होगा, अन्यथा बाहर सड़क पर पुलिस वालों से मार खाने के लिए तैयार रहना.”

रामी की बात में सचाई थी, इसलिए सभी चुप थे. पति राज ने बच्चों की आंखों में देखा और एक मत से रामी के लिखे नियम पर दस्तखत कर दिए.

ऐसा देख रामी अपनी जीत पर इतराते हुए मुसकराई और बेडरूम की ओर विजयी मुद्रा में सोने चल दी.

टूटा जाल शिकारी का : भाग 3

परिजन व पुलिस उसे मुर्दा मान लेंगे, तो कोई उस की तलाश नहीं करेगा. प्रीति को ले कर वह कहीं दूर चला जाएगा और आगे का उस के संग जीवन गुजारेगा.

प्रीति भी चंद्रमोहन की इस योजना से सहमत हो गई. आपसी विचारविमर्श के बाद 30 अप्रैल, 2014 को योजना को अंतिम रूप दे दिया गया और अगले दिन यानी 1 मई की रात को उसे क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया. योजना को अंजाम देने के लिए चंद्रमोहन ने तुगलपुर स्थित पैट्रोल पंप से एक डिब्बे में 3 लीटर पैट्रोल भरवा कर कार में रख लिया.

1 मई की रात को 11 बजे सविता का भाई विदेश अंसल प्लाजा के आसपास घूमने वाले पागल युवक को बहलाफुसला कर मोटरसाइकिल पर बैठा लाया. चंद्रमोहन अपनी कार में बैठा पहले से उस का इंतजार कर रहा था.

चंद्रमोहन ने एक सुनसान जगह पर कार रोकी और विक्षिप्त युवक को पिछली सीट पर बैठा कर अपनी बेल्ट से उस का गला घोंट कर मार डाला.

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इस के बाद चंद्रमोहन ने अपने कपडे़ उतार कर विदेश को दिए, जिन्हें विदेश ने पागल के पहने कपड़े उतार कर उसे चंद्रमोहन के कपड़े पहना दिए. अपना फोन व पर्स भी चंद्रमोहन ने उस की जेब में रख दिया.

चंद्रमोहन ने पहले से ही अपने लिए एक जोड़ी कपड़े गाड़ी में रख रखे थे, जो उस ने खुद पहन लिए. इस के बाद चंद्रमोहन और विदेश ने मृत पड़े विक्षिप्त युवक का शरीर उठा कर गाड़ी की पिछली सीट पर रखा और कार को ड्राइव करते हुए अंसल प्लाजा के निकट होंडा कंपनी के सामने वाली जेपी ग्रीन वाली रोड पर ले गए.

पागल युवक के मृत शरीर को उन्होंने पिछली सीट से हटा कर ड्राइविंग सीट पर बैठाया गया और फिर सीट बेल्ट से उसे कस दिया, ताकि वह जीवित भी हो तो कार से उतर कर भाग ना सके. तब तक आधी रात का वक्त हो चला था. चंद्रमोहन और विदेश ने प्लास्टिक की कैन में भरा पैट्रोल कार पर चारों तरफ और भीतर की सीटों के साथ विक्षिप्त युवक पर अच्छी तरह से छिड़का. इस के बाद उन्होंने कार में आग लगा दी.

चंद पलों में ही कार धूधू कर के जलने लगी. कार को धूधू जलता देख दोनों मोटरसाइकिल से फरार हो गए. आधी रात का वक्त था. वहां से गुजरती कुछ गाडि़यों ने जब कार जलती देखी तो रुक गए. लेकिन तब तक कार इतनी बुरी तरह जल चुकी थी कि उसे बुझाने की हिम्मत किसी की नहीं हुई. किसी ने फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया.

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सूचना मिलने के 15-20 मिनट बाद दमकल की गाड़ी भी मौके पर पहुंच गई. कुछ देर में आग पर काबू तो पा लिया गया. लेकिन तब तक कार जल कर कोयला हो चुकी थी. दमकलकर्मियों ने देखा कि कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे एक व्यक्ति की भी जलने से मौत हो गई थी.

मौके से फरार होने के बाद विदेश तो अपने घर चला गया, जबकि चंद्रमोहन ने ट्रेन से बंगलुरु की राह पकड़ ली. बंगलुरु पहुंच कर चंद्रमोहन ने सब से पहले अपने सिर के बाल और मूंछ मुंडवाई. फिर अपने शातिरदिमाग का इस्तेमाल कर जोड़तोड़ से उस ने नितिन शर्मा के नाम की एक आईडी बनवा ली.

नई आईडी बनवाते समय उस ने अपना पता नलवा, हिसार, हरियाणा दर्ज कराया. उस के बाद चंद्रमोहन ने अपनी पहचान से जुड़े दूसरे नकली दस्तावेज भी तैयार करवा लिए. इतना सब होने के बाद चंद्रमोहन ने अगले 4 दिनों में इन तमाम दस्तावेजों के बल पर होंडा टू व्हीलर कंपनी में नौकरी भी पा ली.

बंगलुरु में अज्ञातवास के दौरान चंद्रमोहन सेलफोन के माध्यम से प्रीति के साथ निरंतर संपर्क में रहा. आईडी बन जाने के बाद 7 जून को चंद्रमोहन प्रीति को ले जाने के लिए दिल्ली आया.

फोन के माध्यम से योजना पहले ही बन चुकी थी. योजना के तहत 7 जून की रात 8 बजे प्रीति अपने घर से इस तरह का नाटक कर के लापता हुई ताकि सब को लगे उस का अपहरण हो गया है.

प्रीति अपने लापता होने की घटना को अपहरण का रंग देना चाहती थी, इसलिए घर से बाहर निकलते ही उस ने हलक से हल्की सी चीख भी निकाली. किस्मत ने भी उस वक्त उस का साथ दिया और बिजली गुल हो गई.

घर से कुछ दूर पर ही प्रीति को एक आटोरिक्शा मिल गया, जिसे पकड़ कर वह दिल्ली पहुंच गई, जहां तय स्थान पर वह चंद्रमोहन से मिली. चंद्रमोहन ने पहले ही नई दिल्ली से बंगलुरु जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस में 2 बर्थ आरक्षित करा रखी थीं.

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दोनों सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा कर ट्रेन में सवार हो गए और अगले दिन बंगलुरु पहुंच गए. बंगलुरु पहुंचने के बाद चंद्रमोहन ने नकली आईडी से 2 सिम कार्ड खरीदे. वे जिन नंबरों को इस्तेमाल करते थे, वे नंबर दोनों ने किसी को नहीं दिए थे.

रिमांड अवधि में जब पुलिस ने चंद्रमोहन से संतराम को फोन करने का कारण पूछा, तो चंद्रमोहन ने बताया कि वह पुलिस को गुमराह करना चाहता था, इसीलिए उस ने पीसीओ पर जा कर संतराम को फोन कर के कहा था कि उन की बेटी उस के पास है.

लेकिन उस वक्त चंद्रमोहन ने यह कल्पना तक नहीं की थी कि उस की यही गलती उस की गिरफ्तारी का आधार बन जाएगी. क्योंकि इसी एक फोन काल का पीछा करतेकरते पुलिस प्रीति की तलाश में बंगलुरु पहुंच गई बंगलुरु में पुलिस जब प्रीति तक पहुंची तो पुलिस के हाथ चंद्रमोहन की गरदन तक पहुंच गए.

पुलिस रिमांड में हुई पूछताछ के दौरान इस मामले के जांच अधिकारी कासना थानाप्रभारी समरजीत सिंह ने 31 अगस्त, 2014 को चंद्रमोहन की निशानदेही पर जेपी ग्रीन की दीवार से 200 मीटर की दूरी पर फेंकी गई वह प्लास्टिक की कैन भी बरामद कर ली, जिस में पैट्रोल ला कर चंद्रमोहन ने पागल व्यक्ति के ऊपर डाल कर आग लगाई थी.

पुलिस ने अदालत में बतौर गवाह पैट्रोल पंप के उस सेल्समैन को भी पेश किया, जिस से चंद्रमोहन ने कैन में पैट्रोल खरीद कर भरवाया था.

पुलिस ने इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश को भी हत्या में सहयोग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों आरोपियों को आवश्यक पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

जांच अधिकारी समरजीत सिंह ने 23 नवंबर, 2014 को एक विक्षिप्त युवक को कार में जला कर हत्या करने के आरोप में और खुद की पहचान छिपा कर दूसरे राज्य में छिपने के मुकदमे में हत्या की धारा 302 के साथ भादंसं की धारा 201, 202, 120बी, 420, 467, 468 व 471 की धारा भी जोड़ दी और आरोपपत्र अदालत में पेश कर दिया.

आरोपपत्र पर सुनवाई के दौरान ही बचावपक्ष की दलीलों के आधार पर अभियुक्ता प्रीति और विदेश के खिलाफ लगाए गए कुछ आरोपों को अदालत ने खारिज कर दिया था. बाद में मार्च, 2016 में यह वाद सुनवाई के लिए सत्र न्यायालय में भेज दिया गया.

इस मामले की जांच के दौरान पुलिस ने अदालत में चंद्रमोहन द्वारा कालोर की होंडा कंपनी में नौकरी पाने के लिए दी गई नकली आईडी व दूसरे दस्तावेज साक्ष्य के तौर पर पेश किए, जिस से उस के खिलाफ अपनी पहचान छिपाने के लिए जालसाजी करने और नकली दस्तावेज तैयार करने के आरोप सही पाए गए.

सरकारी वकील जिला सहायक शासकीय अधिवक्ता हरीश सिसोदिया ने अभियोजन की तरफ से ठोस सबूत दिए, लेकिन अभियोजन पक्ष इस बात को साबित नहीं कर पाया कि इस मामले में चंद्रमोहन के साले विदेश की कोई भूमिका थी. इसलिए अदालत ने उसे दोषी न पा कर बरी कर दिया.

अभियोजन की तरफ से चंद्रमोहन और प्रीति की दादरी के आर्यसमाज मंदिर में हुई शादी के प्रमाण भी अदालत में पेश किए गए. इतना ही नहीं, अभियोजन पक्ष की तरफ से ऐसे कई ठोस साक्ष्य और गवाह अदालत में पेश गए, जिस से ये साबित हो गया कि चंद्रमोहन ने एक साजिश के तहत अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए अपनी मृत्यु का झूठा नाटक रचा.

खुद को मरा साबित करने के लिए चंद्रमोहन ने एक विक्षिप्त व्यक्ति की हत्या कर उस के शव को अपनी कार में डाल कर कार समेत जला दिया. चूंकि प्रीति को चंद्रमोहन के अपराध की जानकारी थी और उस ने ये जानकारी छिपाई, इसलिए उसे 6 माह के कारावास की सजा मिली.

प्रीति जेल से जमानत मिलने के पूर्व पहले ही न्यायालय की तरफ से मिली सजा काट चुकी थी, इसलिए उसे जेल नहीं जाना पड़ा. जबकि विदेश को इस मामले में अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया.

—कथा पुलिस की जांच व न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के तथ्यों पर आधारित है

अनोखा रिश्ता: भाग 1

राजीव उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका गया था लेकिन वहीं का हो कर रह गया. अच्छी पढ़ाई के फलस्वरूप उसे वहां बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई. नौकरी के 4 महीने के अंदर ही उस ने अपनी अमेरिकी सहकर्मी से शादी भी कर ली.

मैं मन ही मन सोचती, ‘सच में, आज की दुनिया बहुत ही तीव्रगति से भाग रही है. कुछ समय पहले तक मेरा राजीव खानेपहनने तक में मेरी सलाह लेता था, अब वह शादी जैसे अहम विषय पर भी खुद ही निर्णय लेने लगा.’

राजीव के व्यवहार से हम पतिपत्नी बहुत उदास थे. राजेश गंभीर स्वभाव के हैं, इसलिए प्रकट नहीं करते थे लेकिन मुझ से अपनी उदासी छिपाई नहीं जाती थी. राजेश मुझे समझाते, ‘सविता, उदास होने से कोई फायदा नहीं है, बेटा तरक्की कर रहा है, खुश है, यह सोच कर खुश रहो, ज्यादा उम्मीद न लगाओ.’ मैं उदासीनता से कहती, ‘राजीव की तरक्की से तो मैं बहुत खुश हूं लेकिन हमारे बारे में सोचना भी तो उस का कर्तव्य है. इसे वह कैसे भूल बैठा. अपने देश में नौकरी करता, यहां की लड़की से शादी करता, हमें भी अपनी खुशी में भागीदार बनाता. वह तो वहीं का हो कर रह गया.’

राजेश मुझे समझाते हुए कहते, ‘आज के युग में यह बहुत ज्यादा हो रहा है. हमारे देश के युवा विदेश की चकाचौंध से आकर्षित हो कर वहीं रचबस जाते हैं. हमारे कई परिचितों के बच्चों ने भी ऐसा किया है.’

‘मुझे बहुत आश्चर्य होता है, बच्चों के ऐसे व्यवहार पर,’ मैं ने कहा तो राजेश ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘देखो सविता, राजीव के व्यवहार से स्पष्ट है कि वह लौट कर हमारे पास नहीं आ रहा है. अब तो उस के फोन भी बहुत कम आते हैं, आते भी हैं तो चंद सैकंड के लिए, मात्र औपचारिकता. वह अपनी दुनिया में मस्त है.’

कुछ पल बाद उन्होंने फिर कहना शुरू किया, ‘हम ने बड़े प्यार व शौक से यह दोमंजिला मकान बनवाया था क्योंकि हैदराबाद में राजीव को नौकरी मिल जाने की पूरी उम्मीद थी. वह भी हमेशा ऐसा ही कहा करता था. वह तो अमेरिका जाने के बाद अपनी कहीसुनी सारी बातें ही भूल बैठा. खैर, उस समय तो हम ने यही सोचा था कि राजीव यहीं नौकरी करेगा और शादी के बाद भी वह हमारे साथ ही रहेगा. यदि हम सब का तालमेल ठीक बैठा तब सब एक ही मकान में रहेंगे. यदि एकदूसरे से असुविधा महसूस हुई तब अलगअलग ऊपर व नीचे रह लेंगे. इस तरह से साथसाथ या पासपास रह सकेंगे.’

मैं ने उदासीनता से कहा, ‘अब तो न साथसाथ न ही पासपास रहना हो सकेगा.’ राजेश ने कहा कि ऊपर का हिस्सा किराए पर दे देंगे. मैं ने सहमति देते हुए कहा कि यही सही रहेगा. इस से कोई तो बात करने के लिए मिलेगा. पैसा तो हमारे पास ठीकठाक है. दोनों की पैंशन गुजरबसर के लिए काफी है. ऊपरी मंजिल किराए पर देने से सूनापन व अकेलापन जाता रहेगा.

इस विचार से हम ने घर के बाहर ‘टूलेट’ का बोर्ड लगा दिया.अगले ही दिन रामेश्वर दयाल बातचीत के लिए आ पहुंचे. उन्होंने बताया कि वे बैंक मैनेजर हैं. उन का बैंक हमारी ही कालोनी में है. उन के बेटे का इंजीनियरिंग कालेज हमारी कालोनी के नजदीक है. इसलिए वे हमारा मकान किराए पर लेने के इच्छुक हैं. हम दोनों को वे बेहद शालीन व सभ्य मालूम हुए. हम ने उन्हें मकान किराए पर दे दिया.

रविवार के दिन वे लोग हमारे घर में शिफ्ट हो गए. राजेश ने उन से आग्रह किया, ‘रामेश्वरजी, आज आप को सामान व्यवस्थित करना है, इसलिए आप लोग लंच हमारे साथ कीजिए.’ हंसमुख रामेश्वरजी ने कहा, ‘चलिए यही ठीक रहेगा. एक दिन तो अपने हाथ के खाने से छुटकारा मिलेगा,’ और वे ठहाका लगा कर हंस पड़े.

रामेश्वरजी अपने इकलौते बेटे रोहन के साथ लगभग 1 बजे खाना खाने आ गए. रोहन को देख मुझे बारबार राजीव की याद आ जाती, ठीक वही रंगरूप, कदकाठी, उठनेबैठने, बातें करने का तरीका भी बहुत मिलताजुलता. रोहन से बात करने, उसे खिलाने में मुझे विशेष आनंद महसूस हो रहा था.

रामेश्वरजी और रोहन के आ जाने से हमें स्वत: ही घर में चहलपहल सी महसूस होने लगी. अगले दिन सुबह रोहन की तेज आवाज सुनाई दी, ‘नहीं, मैं नहीं पीऊंगा बौर्नविटा, मुझे कौफी ही पीनी है.’

रामेश्वरजी मनुहार करते हुए बोले, ‘आज पी लो, बना दिया है. कल से कौफी ही बना दूंगा.’ रोहन, बालकनी से चिल्लाते हुए बोला, ‘मैं ने कह दिया न, नहीं पीऊंगा तो बस नहीं पीऊंगा, मेरे पीछे मत लगिए,’ और वह तेजी से सीढ़ी उतर गेट के बाहर निकल गया.

रामेश्वरजी यह कहते हुए उस के पीछे दौड़े, ‘थोड़ा रुको, मैं तुरंत कौफी बना देता हूं, प्लीज, पी कर जाओ.’रोहन तो गेट से बाहर निकल चुका था, रामेश्वरजी के पहुंचतेपहुंचते वह तो मोटरसाइकिल स्टार्ट कर नौ दो ग्यारह हो चुका था.

हम पतिपत्नी बागबानी में लगे हुए थे. हम दोनों ने पितापुत्र की सारी बातें सुनी थीं, किंतु अनसुने से बने अपने काम में लगे हुए थे. रामेश्वरजी ऊपर जाने के पहले एक मिनट के लिए ठिठके, बोले, ‘आप का बगीचा काफी सुंदर है. आप दोनों का ही बागबानी में मन लगता है. आप ने अपने किचन गार्डन में भी काफी कुछ लगा रखा है.’

राजेश ने हाथ धोते हुए कहा, ‘काफी कुछ तो नहीं, हां कुछकुछ लगा दिया है. रामेश्वरजी, क्या बताऊं ताजीताजी मूली, भिंडी, टमाटर, पालक का स्वाद ही कुछ अलग होता है.’

राजेश ने उन से चाय का आग्रह किया किंतु वे असहज महसूस कर रहे थे इसलिए व्यस्तता का बहाना बना ऊपर लौट गए. अगले दिन फिर रोहन के चीखने की आवाज सुनाई दी, ‘आप ने क्यों कौफी बनाई, मुझे कौफी नहीं पीनी, मैं बौर्नविटा पीऊंगा.’

रामेश्वरजी ने आहत स्वर में कहा, ‘तुम तो हद करते हो, आज कौफी बना दी तो तुम्हें बौर्नविटा चाहिए.’रोहन बदतमीजी से बोला, ‘आप यह सब क्यों करते हैं? मैं कोई बच्चा नहीं हूं, खुद बना लूंगा.’

रामेश्वरजी ने प्यार से कहा, ‘मुझे तुम्हारे लिए करना अच्छा लगता है.’

रोहन ने सख्त लहजे में कहा, ‘मुझे बुरा लगता है.’

रोहन यह आया, वह गया की तर्ज पर तेजी से मोटरसाइकिल से चलता बना. बेचारे रामेश्वरजी दौड़ कर भी उसे रोक न पाए.

हम पतिपत्नी बागबानी के बाद चाय का प्याला ले कर बगीचे में ही बैठे थे. राजेश ने आज फिर रामेश्वरजी से चाय का आग्रह किया. रामेश्वरजी मान गए. साथ चाय पीना, कुछ हलकीफुलकी बातें करना हम तीनों को ही अच्छा लगा.

आज रविवार का दिन था. पितापुत्र में बहस हो रही थी. तेज आवाज रोहन की ही थी. हम दोनों सोच ही रहे थे कि ऊपर जा कर देखते हैं कि माजरा क्या है. तभी रोहन बंदूक से छूटी गोली की तेजी जैसे दनदनाता हुआ निकला, गेट के बाहर सुमो गाड़ी में 8-10 लड़केलड़कियां लदे हुए थे तथा होहल्ला कर रहे थे. रोहन भी उस में सवार हो, होहल्ले में शामिल हो चलता बना सब के साथ. रामेश्वरजी पूछते ही रह गए, ‘कब तक लौटोगे, यह तो बताते जाओ?’ लेकिन रोहन को उन्हें सुनने व जवाब देने की सुध हो तब न.

हमें देख रामेश्वरजी हमारे साथ ही आ बैठे. हमारे आग्रह पर उन्होंने चायनाश्ता हमारे साथ ही किया.

घंटे डेढ़ घंटे बाद रामेश्वरजी ऊपर जाने का उपक्रम करने लगे. मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, रोहन भी बाहर गया हुआ है. आप हमारे साथ ही लंच कीजिए.’

पहले तो वे कुछ सकुचाए किंतु बारबार आग्रह करने पर राजी हो गए.

खाना तो हम तीनों ने मिल कर बनाया. राजेश तो रोज ही मेरी कुकिंग में मदद करते थे. रामेश्वरजी भी यह कह कर साथ हो लिए, ‘चलिए, मैं तो रोज ही खाना पकाता हूं, थोड़ी मदद किए देता हूं.’

साथसाथ काम करते हुए काफी औपचारिकताएं खत्म हो गईं, इसलिए हम खुल कर बातें करने लगे. मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, बुरा न मानें तो एक बात जानना चाहूंगी, वैसे इच्छा न हो तो ना कर दीजिएगा.’

रामेश्वरजी अचंभित से बोले, ‘कैसी बातें करती हैं, भाभीजी. जो पूछना हो पूछ लीजिए.’

मैं ने कहा, ‘भाईसाहब, मुझे यह बात दुविधा में डालती है कि आप ने अपने घर में अपनी पत्नी की एक भी तसवीर नहीं लगाई है?’

रामेश्वरजी धीरे से बोले, ‘भाभीजी, अब जब नाता ही नहीं रहा तब तसवीर लगाने का क्या मतलब?’

मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘नाता नहीं रहा, मतलब वे जीवित हैं?’

रामेश्वरजी ने फीकी मुसकान के साथ कहा, ‘हां, वह जीवित है, उस ने मुझे छोड़ दिया.’

मैं ने आश्चर्य से कहा, ‘यह सब ऐसे कैसे हो गया?’

रामेश्वरजी बोले, ‘मैं एक बैंक कर्मचारी हूं. बैंक इतना पैसा तो देता है कि ढंग से जीवन बसर हो जाए किंतु उसे बहुत ही हाईफाई जिंदगी पसंद थी. उस के पापा उच्च सरकारी अफसर थे, जिन्हें तनख्वाह के अलावा रिश्वत व उपहारों की भी आमदनी होती थी. वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है इसलिए बेहिसाब पैसा खर्च करने की नहीं बल्कि बरबाद करने की भी उसे पूरी छूट थी.

‘मेरे पास उस के मायके जैसी आमदनी न थी. मैं अपनी पूरी तनख्वाह उस के हाथ में सौंप देता, किंतु मेरी तनख्वाह तो उस के लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान साबित होती. ‘पैसे को ले कर वह मुझ से झगड़ती. वह भी पढ़ीलिखी थी. मैं ने उस से कहा, तुम भी नौकरी कर लो, आमदनी बढ़ने से मनमरजी खर्च कर सकोगी.

‘वह कहती, मेरे मातापिता को यह पसंद नहीं कि उन की राजकुमारी नौकरी करे.

‘मैं कहता, आजकल तो बड़ेबड़े घर की लड़कियां भी नौकरी कर रही हैं. इसीलिए झगड़ने से अच्छा है आमदनी बढ़ाई जाए. ‘वह कहती, हमारी कालोनी में मेरी मां की एक सहेली हैं, उन के पति भी बैंक मैनेजर हैं. वे तो अच्छा कमा लेते हैं. वे लोग तो बड़े ठाट से रहते हैं. उन्हें देख कर ही मैं ने तुम से शादी के लिए हां की थी.

‘मैं ने उसे समझाया, देखो शालू, मैं रिश्वत लेना और देना दोनों ही गलत मानता हूं. तुम नौकरी नहीं करना चाहतीं, मत करो. मेरी तनख्वाह में शांति से रहो.‘शालू को तो ऊपरी कमाई का नशा चढ़ा हुआ था. उस ने बचपन से ऊपरी कमाई का आनंद उठाया था. वह मायके से पैसा लाना चाहती जिस के लिए मैं ने उसे साफ कह दिया था कि यदि वह वहां से पैसा लाएगी तो मैं जान दे दूंगा.

‘शालू ने मितव्ययिता से रहना सीखा ही न था. इसलिए पैसे के लिए नित्य झगड़ना ही उस का काम बन गया था. रोहन का तकाजा देने से भी वह नहीं रुकती थी.’

मैं ने कहा, ‘अमीर मायका होने के कारण समझौता न कर पाईं और मायके जा बैठीं.’

रामेश्वरजी ने कहा, ‘मायके जा बैठतीं तो इतना दुख न होता किंतु वह तो…’ इतना कहते हुए उन की आंखों से आंसू टपक गए. हम सभी शांत हो गए. उन्होंने फिर कहना आरंभ किया, ‘उस दौरान मेरा एक कालेज का दोस्त औफिस के काम से आया तथा मेरे घर पर मिलने भी आया. वह आया तो 2 दिनों के लिए था किंतु यह कहते हुए हफ्तेभर के लिए रुक गया कि यार, अब आया हूं तो रुक जाता हूं, बारबार आना तो होता नहीं, इसी बहाने अपने यार से जीभर कर बातें भी हो जाएंगी. मैं भी खुश हो गया कि चलो अच्छा है, इस बहाने पुरानी यादें ताजा होंगी और शालू के झगड़ों से अवकाश भी मिल जाएगा.

 गोएबल्स मेरे गुरूवर

मैंने राजनीति से एक पते की बात सीखी है. आप कहेंगे क्या सीखा है ?

मैं कहूंगा -जीवन का सच.

आप कहेंगे- हम समझे नहीं ?

मैं कहूंगा- समझ जाएंगे, समझ जाएंगे. जरा धैर्य से मेरी बात सुनो .

आप कहेंगे- धैर्य ? राजनीति से सीख और धैर्य! भाई, यह तो स्वभाविक जिज्ञासा  पैदा करने वाली बात है,शीघ्र बताइए न !

मैं कहता हूँ – यूं तो राजनीति से बहुत कुछ सीखा जा सकता है, मगर मैंने एक चीज सीखी है और सीखी ही नहीं जीवन में धारणा की है.

आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे. कहेंगे- अच्छा ? जरा हमें भी सुनाइए तो सही .

मैं कहता हूँ -तो सुनिए .मैंने एक ही चीज  सीखी है .अपनों पर कोई कैसा भी फुहड अरोप लगाया जाए  उसे सुनों  और नकार दो . राजनीतिक विरोधियों पर जरा सा दाग लगे, तो तालियां बजाओ और हो हो कर सड़क के आदमी की तरह अट्टाहास लगाओ और ऐसा व्यवहार प्रदर्शित करो मानो किला फतह हो गया हो. आशा है, आप मेरे ज्ञान की बात समझ चुके होंगे .मैं देख रहा हूं, आपका चेहरा विचित्र हाव-भाव के साथ मेरी ओर है.आपकी आंख मेरे चेहरे पर लगी हुई है. चेहरे पर जो हाव-भाव आ जा रहे हैं. मैं उन्हें पढ़ सकता हूं.

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आप कहेंगे – यार, रोहरानंद! यह क्या बात हुई .यह भी कभी शोभा देता है.

मैं कहता हूँ – दोस्त, यही शोभा देता है. राजनीति में समानधर्मा होना पड़ता है, अगर घाघ और बेशर्म का मेल नहीं हुआ तो राजनीतिक न घर के रहेंगे, न घाट के. राजनीति में मोटी चमड़ी का होना निहायत निरापद है. अगर आरोप से घबरा गए, तो एक क्षण भी सत्ता में नहीं रह सकते. ऐसे ऐसे झूठे आरोप लगाए जाते हैं की आप का इस्तीफा अवश्यंभावी है. अतः बुद्धिमानी इसी में है की कोई सौ फीसदी सही आरोप भी लगाए, तो शब्दों का संजाल खड़ा  कर दो . हिटलर के सलाहकार गोयबल्स को अपना गुरु मानो और  नकारो. गोयबल्स का मंत्र था सौ बार झूठ कहने से, वह  सत्य हो जाता है. सो, सौ क्या, हजार बार अपने हित की बात को कहो. जनता कंफ्यूज हो जाएगी और फिर पतली गली से निकल लो.मित्रों ! यह रोहरानंद आपको लाख रुपए की बात बता रहा है, गांठ बांध लो,जीवन सफल हो जाएगा. सुनो! कभी भी चेहरे पर शिकन मत आने देना. कोई रंगे हाथ पकड़ ले, तब भी चेहरे पर मुस्कुराहट या गंभीर भाव रखना और अपने हित की बात कहना .उदाहरणार्थ राजनीति में भ्रष्टाचार करते रंगे हाथ पकड़े जाओ, तब क्या करोगे ? सुनो -चेहरे पर आत्मविश्वास का भाव लेकर आना.आप कहेंगे- यार रोहरानंद! क्यों हमें मूर्ख बना रहे हो ऐसा कहां संभव है. भ्रष्टाचार करते पकड़े जाने पर आधी हिम्मत तो यूं ही टूट जाती है .फिर साहस करके अपनी बात कैसे कहूंगा.

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मैं कहता हूं- सुनो! यह समझना, मैं अभिनय कर रहा हूं. सामने वाले सभी साधारण लोग हैं, मैं असाधारण व्यक्ति हूं. सेलीब्रिटी हूं .मुझ पर देश की नजर है, मै पकड़ा गया तो देश का क्या होगा ? मैं देशवासियों का आदर्श हूं. संपूर्ण देश- मुझे सम्मान से देखता है, अब अगर रंगे हाथ पकड़े जाने पर भ्रष्टाचार स्वीकार कर लूं तो इस देश का क्या होगा ? देश तो टूट ही जाएगा. सो, मैं कभी भी यह स्वीकार नहीं करूंगा कि हां, मैंने भ्रष्टाचार किया है, मैं कहूंगा, यह हमारी छवि खराब करने का षड्यंत्र है. जब बात बिगड़ी तो चार-छ: बड़े लोगों का स्टेटमेंट जारी करवा दूंगा कि मैं भला क्यों और कैसे भ्रष्टाचार कर सकता हूं. और ज्यादा बात बिगड़ी तो मैं जांच करवाने की बात कहूंगा. और बढी तो पूरे धमक के साथ कहूंगा अगर आरोप सत्य सिद्ध हुए तो राजनीति छोड़ दूंगा. मैं संन्यास ले लूंगा. मगर असल मे मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा. सत्ता मिलना कितना दुष्कर है, मैं क्या इतनी आसानी से हार मान जाऊंगा ? तो मित्रों ! आप भी मेरे अर्जित ज्ञान का लाभ उठा सकते हैं, अगर मेरे पद चिन्हों पर चले तो रोहरानंद को गर्व होगा.

#Lockdown: दिल ढूंढता है फिर वही….. 

Dr Geetanjali Choudhary
दौड़ती भागती जिंदगी से आजादी कौन नहीं चाहता है? और उसमें भी तब जब आप को ऐसा लगे जिंदगी बहते पानी समान गुजर रही है. वक्त की मसरूफियत का तक़ाज़ा ऐसा मानो सुबह होती शाम होती है, जिंदगी यूँ ही तमाम होती है. सपनों की दुनिया में जीने वाली मुग्धा हमेशा अपने लिए क्वालिटी टाइम की कल्पना करती रहती थी.

वो हमेशा अपनी ही धुन में मगन रहती थी. पति के साथ खुबसूरत लम्हों की आकांक्षा, थोड़ा रोमांस, थोड़ी छेड़छाड़ की कल्पना मात्र से हृदय प्रेम से उन्मत्त हो जाता, तो वहीं मनन का देर से आफिस से घर आना, देर तक सोना और फिर तैयार होकर आफिस चले जाना उसके मन को कसैला कर देता था.

यंत्रवत जिंदगी से मानों एक उब, एक खीज सी पैदा हो गई थी. मुग्धा अपने एकाकीपन में मनन के साथ बैठ कर अपने बगीचे में फूलों की खुशबू को महसूस करना चाहती थी, तो कभी मिट्टी की सौंधी गंध को महसूस करना चाहती थी. कभी फूलों पर परिंदों और तितलियों की अठखेलियों को जीना चाहती थी.पर मनन को फुरसत कहाँ थी? शायद इसलिए जब भी वो तन्हाइयों में अपने आप से साक्षात्कार करती तो हमेशा वक्त के कुछ पलों के रुकने और थम जाने की कल्पना में खो जाती और फिर एक दिन उसके अरमानों को पंख लग गए.
वक्त थम गया. 21 दिनों के लॉकडाउन की सरकार द्वारा घोषणा ने मानो उस के मन की मुराद पूरी कर दी. 21 दिन के दिनचर्या का वृतचित्र चलचित्र की तरह आँखों के सामने तैर गया. पहला दिन छुट्टी की खुमार में बीत गया, घर के काम ऐसे लग रहे थे मानों टाइम पास का साधन हो.पर जैसे जैसे वक्त गुजरता गया सारी रोमानियत हवाओं में मौजूद वाइरस की तरह खतरनाक नजर आने लगी. जिस मनन के यह कहने पर कि” तुम्हारे हाथों में जादू है “.
एक प्लेट के बदले दो प्लेट पकौड़े तल देने वाली मुग्धा को लग रहा था, मानों उसे रसोई में ही बंद कर दिया गया है.घर का सारा काम करते शरीर थकान की सारी सीमाओं का उल्लंघन कर रहा था.
जैसे हिन्दूस्तान की तमाम जनता मित्रों के उद्घोष मात्र से घबराकर लाइन में लग जाती है (चाहे वो बैंक की लाइन हो या किराना दुकान की) , वैसे ही मुग्धा मनन के सुनती हो सुनकर गैस पर कुछ न कुछ चढ़ा आती. मिनटों में फरमाइशों की फेहरिस्त को पका पका कर मुग्धा खुद पक गयी थी.
अब तक जिस एकाकी से परेशान थी. उन्हीं लम्हों को फिर से जीने की उत्कंठा जाग गई थी. वो कहते हैं न दिल ढ़ूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के……

#lockdown: बिजली विभाग के सामने 9 मिनिट अंधेरे की बड़ी चुनौती

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से रविवार रात नौ बजे नौ मिनट के लिए अपने घरों की लाइट बंद करने की अपील की है.पीएम मोदी ने कहा कि पांच अप्रैल को रात नौ बजे सभी देशवासी अपने-अपने घरों की लाइट बंद करके, घर के दरवाजे पर मोमबत्ती, दिया या फ्लैश लाइट जलाएं. उन्होंने कहा कि इस रविवार को हमें संदेश देना है कि हम सभी एक हैं. पीएम की इस अपील से कोरोना वायरस पर क्या असर होगा, क्या वह अँधेरे से डर कर भाग जाएगा या अँधेरे का इस जानलेवा संक्रमण की रोकथाम में क्या भूमिका होगी ये तो कोई नहीं जानता, मगर पीएम की  इस अपील ने बिजली कंपनियों के सामने एक बड़ा संकट ज़रूर खड़ा कर दिया है.

मिनिस्ट्री ऑफ़ पावर के एजीएम (एनपीएमसी) जयदीप सक्सेना कहते हैं कि अगर 130 करोड़ देशवासी एक साथ बिजली बंद कर देते हैं और नौ मिनट बाद एक साथ चालू करते हैं तो देश में ब्लैकआउट होने का खतरा पैदा हो सकता है.नौ मिनट के लिए एक साथ देश भर की लाइट्स बंद होने से पूरी ग्रिड ओवर फ्रीक्वेंसी पर आ जाएगी, मतलब 50 हर्ट्स से ज्यादा, जो कि जनरेटिंग स्टेशनस पर लगे जेनरेटर को ट्रिप कर सकती है. जुलाई 2011 में एक बार ऐसा हो चुका है जब पूरे भारत में ग्रिड फेल हो गई थी. पश्चिमी ग्रिड को छोड़कर, ज़्यादातर जगहों पर अंधेरा हो गया था और 3 दिन की लगातार मशक्कत के बाद ये ठीक हुआ था.

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उल्लेखनीय है कि ग्रिड फ्रीक्वेंसी पूरे भारत में 50 हर्ट्स है. न्यूनतम 48.5 हर्ट्स और अधिकतम 51.5 हर्ट्स तक के वेरिएशन को ग्रिड रीस्टोर कर लेता है परन्तु इसके बाहर नहीं. ऐसे में पूरे देश में बिजली बंद करने से अगर 51.5 हर्ट्स से ज़्यादा इलेक्ट्रिसिटी फ्लो हुआ तो ग्रिड फेल होने का ख़तरा है.
फ्रीक्वेंसी में उतार-चढ़ाव को इस तरह समझा जा सकता है.मान लीजिये आप अपने एक दोस्त को साइकिल पर बिठाकर एक निश्चित चाल से सड़क पर जा रहे हैं. आपके मित्र का भार बहुत ज्यादा है और अगर वो अचानक रस्ते में चलती साइकिल से उतर जाए तो आपकी स्पीड अपने आप बढ़ जाएगी. इसे फ्रीक्वेंसी बढ़ना कहते हैं. अगर आपसे साइकिल की स्पीड कंट्रोल नहीं हुई तो साइकिल गिर जाएगी.
इसी तरह अगर आप अकेले जा रहे थे और अचानक आपकी साइकिल पर कोई भारी व्यक्ति आकर बैठ जाए तो आपकी साइकिल की स्पीड अचानक कम हो जाएगी, इसे  फ्रीक्वेंसी का घटना कहते हैं.इसके कारण भी आपकी साइकिल लड़खड़ा सकती है. कुछ ऐसा ही होगा रविवार की रात नौ बजे हमारी पावर ग्रिड में, जब पूरा देश अचानक सारी लाइट्स ऑफ कर देगा.

उस हालत में बिजली का फ्लो यानी फ्रीक्वेंसी बहुत बढ़ जाएगी.भारत में इस समय सभी पॉवर प्लांट अपनी पूरी क्षमता से 77% कम क्षमता पर काम कर रहे हैं, क्योंकि इस टाइम ज़्यादातर ऑफिस, फैक्ट्रीज सब कुछ बंद है सिर्फ घरेलू लोड है। जब ये लोड भी ख़तम हुआ तो ग्रिड से बहुत ज़्यादा बिजली का फ्लो होगा.

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हालांकि, बिजली कंपनियों ने पीएम मोदी के नौ मिनट के चैलेंज के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं.मगर जानकारों का कहना है कि कल नौ बजे अपने घर की लाइट्स ऑफ करने से पहले घर का टीवी और पंखा ज़रूर ऑन कर दें ताकि ग्रिड में बिजली की बढ़ती फ्रीक्वेंसी को कंट्रोल में रखा जा सके.

LOCKDOWN टिट बिट्स- भाग 3

वेंकैया का काव्य

लोग न जाने कैसे कैसे फुर्सत का यह वक्त जो काट खाने को दौड़ रहा है काट रहे हैं शुरुआती  2-3 दिन तो कागज पत्तर जमाने और एलबम के पुराने फोटो देखने जैसे मध्यमवर्गीय टोटकों में गुजर गए लेकिन अब क्या करें , यह सवाल वेताल के सवालों जैसा मुंह बाए खड़ा है . देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कवितायें लिखते वक्त काट रहे हैं . उन्होने अपनी लिखी कुछ कवितायें ट्वीट भी की हैं जो बाबा ब्लेक शी ….. और ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार….. से उन्नीस नहीं कहीं जा सकतीं . इन्हें अगले सत्र से नर्सरी राइम्स में शामिल करने प्रकाश जावडेकर को विचार करना चाहिए .

वेंकैया नायडू जब उपराष्ट्रपति नहीं बने थे यानि भाजपा की दूसरी पंक्ति ( पहली का तो आदि मध्य और अंत सब नरेंद्र मोदी हैं ) के नेताओं में शुमार किए जाते थे तब कई लोग यह तय नहीं कर पाते थे कि वे बोल रहे हैं या डांट रहे हैं .  दरअसल में उनका लहजा कुदरती तौर पर सख्त शुरू से ही है जिसे उनके नजदीक के लोग ज्यादा अच्छे से जानते समझते हैं इसलिए कभी वे उन्हें अन्यथा या गंभीरता से नहीं लेते थे.

अब लाक डाउन के इस भीषण दौर में कविताएं लिखकर वेंकैया नायडू ने यह जताने की कोशिश की है कि उनके भीतर भी एक नरमों नाजुक आदमी है जो तुकबंदी करने में भी माहिर है. कविता लिखने , कविता के आवश्यक तत्वो को जानना जरूरी नहीं होता बल्कि हृदय से जो भाव शब्द बनकर प्रवाहित होने लगें उन्हें ही कविता करार दिया जाता है. अब यह और बात है कि हिन्दी अच्छे से न जानने बाले वेंकैया के दिल में कवित्व के भाव अँग्रेजी में आए.

एक कविता लिखकर ही उन्होने देशवासियों को संदेशा दे दिया है कि सब कविताए लिखो यह दुनिया का सबसे आसान काम है .  इससे आप दिनकर भले ही न बन पाओ लेकिन बीबी बच्चों की निगाह में जरूर चढ़ जाओगे . वे जब भी ऊब कर चें चें पें पें करें तो आप उन्हें अपनी कविताएं सुनाना शुरू कर दो सब भाग जाएँगे और कोई आपके सृजन और सुकून में खलल डालने की जुर्रत नहीं करेगा . आप भी गौर फरमाये वेंकैया जी के काव्य पर और अपने लाक डाउनी समय को सार्थक बनाएँ –

ईस्ट आर बेस्ट होम इस द बेस्ट , टेक सम रेस्ट , डोंट काल एनी गेस्ट …

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और नवीन बाबू का मशवरा –

कायदे से तो कविता ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लिखनी चाहिए .  कम ही लोग जानते हैं कि वे एक अच्छे लेखक और सिद्धहस्त चित्रकार भी हैं लेकिन एक मजबूरी उन्हें राजनीति में ले आई थी और तभी से यानि 20 साल से वे मुख्यमंत्री हैं  . 74 वर्षीय नवीन पटनायक ने अज्ञात कारणों से शादी नहीं की इसके अलावा और भी कई वजहें हैं जो उनमें दिलचस्पी पैदा करती हैं .  बहरहाल इस अविवाहित मुख्यमंत्री को महिलाओं की फिक्र लाक डाउन के दौरान दूसरे और शादीशुदा नेताओं से कहीं ज्यादा है .

बक़ौल नवीन पटनायक पुरुष लाक डाउन का आनंद छुट्टियों की तरह न लें और महिलाओं से बार बार खाना बनबाकर उन पर बोझ न बने . बात सच भी है क्योंकि घर घर में पुरुष महिलाओं से विभिन्न डिशों की फरमाइशें कर उन्हें आराम के इन दिनों में थका ही रहे हैं . नवीन बाबू के बयान से एक बात तो साबित होती है कि महिलाओं की परेशानियाँ समझने अविवाहित रहना आड़े नहीं आता बल्कि समझने में सुविधा ही देता है .

इस बयान से परे भी नवीन महिलालों की हिमायत के लिए जाने जाते हैं . पिछले चुनाव में उन्होने महिलाओं को अपनी पार्टी बीजू जनता दल से 33 फीसदी टिकिट देने का प्रयोग किया था जिस पर ओड़ीशा की जनता ने सहमति की मुहर भी लगाई थी. सफलता का एक रास्ता महिलाओं से होकर भी जाता है यह बात राहुल गांधी नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार और योगी आदित्य नाथ जैसे नेताओं को भी अपने अपने ढंग से समझनी चाहिए .

घरेलू हिंसा बढ़ाता लाक डाउन

नवीन पटनायक तो बनाने खाने तक ही सिमट कर रह गए लेकिन हकीकत में लाक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले पहले यानि आम दिनों से कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं जिससे जाहिर होता है कि पुरुष खाली वक्त का इस्तेमाल मर्दांनगी दिखाने में भी कर रहे हैं . राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयर पर्सन रेखा शर्मा की माने तो लाक डाउन के पहले हफ्ते में ही आयोग को 250 के लगभग शिकायतें मिलीं थीं जिनमें से 69 घरेलू हिंसा की थीं.

बक़ौल रेखा शर्मा मामले और ज्यादा होंगे लेकिन कई महिलाएं शिकायत ही नहीं कर पा रहीं  होंगी क्योंकि उस दौरान मारपीट करने बाला उनके सामने ही होगा और कई महिलाएं तो इसलिए भी शिकायत नहीं कर पा रही कि पुलिस उनके पति को ले गई तो सास ससुर उनका जीना मुहाल कर देंगे.

तो क्या लाक डाउन महिला प्रताड़ना और घरों को तोड़ने बाला साबित हो रहा है? मुमकिन है आने बाले दिनों में इस पर शोध हो लेकिन वाकई में यह वक्त महिलाओं पर ज्यादा आफत बनकर टूटा है.  खासतौर से उन महिलाओं पर जिनकी पति या ससुराल बालों से पटरी नहीं बैठती है . बाहर सन्नाटा है ऐसे में पीड़िताए घर में रहकर पिटना ही बेहतर समझ रहीं हो तो बात कतई हैरानी की नहीं . अभी तक होता यह था कि पति पत्नी दोनों या दोनों में से कोई एक कमाने बाहर चला जाता था इसलिए गुस्सा और भड़ास दबे रहते थे पर अब फूट रहे हैं तो कोरोना भगे न भगे कुछ के घर जरूर टूट रहे हैं.

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दुग्ध दान का गणित

इन दिनों हर किसी का खासतौर से नेताओं का जी सहायता के नाम पर दान दक्षिणा के लिए मचला जा रहा है . गरीबों को बिस्कुट अनाज बगैरह देने के बाद अपने कर्ण होने का प्रचार प्रसार मोक्ष सी फीलिंग दे रहा है . अधिकतर लोगों की कोशिश यह है कि सस्ती से सस्ती चीज दान कर पुण्य कमा लिया जाये तो अच्छा होगा .  इसीलिए कोई भूमि मकान या स्वर्ण दान नहीं कर रहा है वैसी भी जिन्हें दान दिया जा रहा है वे सब पैदाइशी गरीब गुरबे हैं जो इन आइटमों को हजम ही नहीं कर पाएंगे और उनकी प्राथमिकता पीढ़ियों से पेट भरने की है , पंडे पुजारियों की तरह घर भरने की नहीं लिहाजा ये शहरी गरीब तो दुआ कर रहे हैं कि लाक डाउन हमेशा बना रहे जिससे उन्हें मुफ्त का खाना पीना मिलता रहे.

पूरे देश की तरह दूध कर्नाटक में भी इन दिनो फालतू फिक रहा है क्योंकि मिठाइयाँ और दूसरे मिल्क प्रोडक्ट नहीं बन रहे नतीजतन देश में घी दूध की नदियां तो नहीं पर नाले जरूर बहते दिखाई दे रहे हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस येदियुरप्पा इन दिनो गरीब बस्तियों और झुग्गी झोपड़ियों में दूध बाँटते घूम रहे हैं. कर्नाटक में प्रतिदिन 69 लाख लीटर दुग्धोत्पादन होता है जिसमें से लाक डाउन के चलते 42 लाख लीटर बिक नहीं पा रहा है सो दरियादिल येदि गरीबों को दूध का स्वाद चखाकर उन्हें एक नई फीलिंग करा रहे हैं.

अब यह और बात है कि येदि सलीके से फोटो खिंच जाने तक यानि घंटे दो घंटे में जितना दूध नहीं बाँट पाते उससे ज्यादा पैसा उनके लाव लश्कर पर खर्च हो रहा है क्योंकि उनके साथ आधा दर्जन मंत्री और एक दर्जन अधिकारियों की फौज चलती है.

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Lockdown की वजह से पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाई शाहरुख खान की ऑनसक्रीन बेटी

बॉलीवुड एक्ट्रेस सना सईद के जीवन में बेहद ही दुखद घटना हो गई है. हाल ही में खबर आई है कि सना के पिता का निधन 22 मार्च को यानि जनता कर्फ्यू के दिन हुआ. सना के लिए अफसोस की बात यह है कि सना अपने पिता के साथ आखिरी समय में भी साथ नहीं थीं.

दरअसल, सना सईद किसी इवेंट के लिए लॉस एंजेलिस पहुंची हुई थीं. लॉकडाउन की वजह से सना वहीं फंसी रह गई. एक इंटरव्यू के दौरान सना ने बताया कि उनके पिता को डाइबटीज था. जिस वजह से वह हमेशा बीमार रहते थें.

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उनके सारे ऑर्गन फेल हो गए थें. आगे सना ने कहा यह मेरा दिल ही जानता है कि मेरे पिता कितने बीमार रहते थें. वह बहुत तकलीफ में थें. उन्होंने आगे यह भी कहा था कि वह अब बहुत अच्छी जगह पर हैं.

 

 

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Promise Yourself To be so strong that nothing can disturb your peace of mind. To talk health, happiness, and prosperity to every person you meet. To think only the best, to work only for the best, and to expect only the best. To be just as enthusiastic about the success of others as you are about your own. To give so much time to the improvement of yourself that you have no time to criticize others. To be too large for worry, too noble for anger, too strong for fear, and too happy to permit the presence of trouble. To think well of yourself and to proclaim this fact to the world, not in loud words but great deeds. To live in faith that the whole world is on your side so long as you are true to the best that is in you ♥️♥️♥️ #christianlarson Have an AMAZING THURSDAY!! I send you love and wish you health and abundance where ever in the world you are ♥️♥️♥️

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सना ने कहा उनके परिवार वालों ने फैसला लिया है कि उनके अंतिम संस्कार में ज्यादा लोग नहीं आएंगे. पुलिस कुछ देर के लिए उनके बॉडी को रोक लिया था लेकिन चेक करने के तुरंत उन्हें छोड़ दिया.

सना कि बहन फोन पर उन्हें हर एक मिनट की अपडेट दे रही हैं. सना को जब इस बात की खबर मिली की उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे उस वक्त वह अपने बहनों और पिता को गले लगाने के लिए बहुत तरसी उन्हें इस बात का मलाल हमेशा रहेगा.

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सना ने फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत कि थी. इस फिल्म में वह शाहरुख खान और रानी मुखर्जी के बेटी के रोल में नजर आई थीं.

आखिरी दफा सना को फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ दी ईयर’ में देखा गया था. फिलहाल बॉलीवुड के सभी सितारे सना के पिता के आत्मा के शांति के लिए प्रार्थना कर रहा है. लॉकडाउनखत्म होते ही सना अपने परिवार के पास वापस आएंगी.

कोरोनावायरस और कट्टरवाद: पूरे कुंए में ही भांग है

एक विचार- वर्तमान संकट के बाद शीर्षक से व्हाट्सएप पर तेजी से वायरल होती एक पोस्ट के आदि और अंत पर आप भी गौर फर्माए–

आदि – जब हम लोग सामान्य जीवन में वापस जाएंगे तो उस समुदाय से किनारा कर लेंगे जो आजकल देश पर थूक रहा है —–

अंत – इस कौम के प्रति अपनी घृणा को स्थायी बना लीजिए राम जी ने धनुष तोड़ा था,

आप इनका आर्थिक साम्राज्य  ….. जय श्रीमन्नारायन .

इस पूरी पोस्ट के बीच में इस्लाम और मुसलमानों के प्रति नफरत दर्शाने में कोई लिहाज,  परहेज या कंजूसी नहीं बरती गई है बल्कि यथासंभव उदारता दिखाई गई है. एक नहीं ऐसी दर्जनो पोस्टें सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं हैं जिन्हें शुभ संकेत लोकतन्त्र, संविधान (अगर इन शब्दों की कोई प्रासंगिकता किसी को लगती हो तो) और देश के लिहाज से नहीं मानी जा सकतीं. इस पोस्ट का खासतौर से जिक्र इसलिए कि यह किसी बुद्धिजीवी लेखक द्वारा लिखी गई प्रतीत होती है जिसमें यह भी कहा गया है कि– कोरोना , संकट लेकर तो आया है लेकिन ये आपको विराधु बनाकर जाएगा. यहाँ भारतीय अर्थव्यवस्था की मृत्यु होने नहीं जा रही किन्तु जमाती अर्थव्यवस्था के अंतिम दिन चल रहे हैं दरगाह जाने बालों का सामाजिक बहिष्कार आपके हाथ में होगा.

जाने एक आयातित खलनायक को

मुमकिन है यहां विराधु शब्द के माने आप भी दूसरे कई लोगों की तरह न समझ पाएं हों तो समझ लीजिये कि यहाँ विराधु शब्द हिन्दू धर्म ग्रन्थों से नहीं उड़ाया गया है. विराधु दरअसल में एक कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु है जिसका पूरा नाम अशीन विराधु है उसकी उम्र 52 साल है. म्यामर में भगवान की तरह पूजे जाने बाले विराधु ने 14 साल की उम्र में ही भिक्षु जीवन अपना लिया था. साल 2012 में जब राखिने प्रांत में रोहिङ्ग्या मुसलमानों और बौद्धों के बीच हिंसा भड़की थी तब विराधु के मुस्लिम विरोधी भाषण बड़े चाव से सुने जाते थे.

इस शख्स की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि साल 2013 में इसे टाइम मेगज़ीन ने अपने कवर पेज पर छापा था और शीर्षक दिया था – द फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर यानि बौद्ध आतंक का चेहरा.

विराधु का वर्णन और चरित्र हरि अनंत हरि कथा अनंता सरीखा है जिसके बारे में यह कहते बात खत्म की जाना बेहतर होगा कि सितंबर 2017 में उसके भड़काऊ भाषणों और हिंसा के चलते कोई 3 लाख रोहिङ्ग्या मुसलमान म्यामर से खदेड़े गए थे, जिनमे से कुछ ने भारत में भी पनाह ली थी. इसका दर्शन और मकसद इसके एक वाक्य से ही समझा जा सकता है कि आप कितने ही दयालु और प्यार करने बाले हों लेकिन पागल कुत्ते के साथ नहीं सो सकते.

अब हमारे देश में उक्त पोस्ट के जरिये घर घर से विराधु निकलेगा जैसी बात कोरोना के कहर और लाक डाउन के चलते ही क्यों की जा रही है इसे समझना बेहद जरूरी है नहीं तो सांप्रदायिक हिंसा का जो तांडव म्यामर में देखने में आया था उसका दोहराव हमारे यहाँ भी हो जाने का अंदेशा और खतरा है जो 2024 तक तक हमें विश्व गुरु तो नहीं बना पाएगा लेकिन हमारी धर्मनिरपेक्षता को जरूर खत्म कर जाएगा.

कोरोना के कहर के चलते कई जमाती देश में आए और देश भर की मस्जिदों में फ़ेल गए इनमें से कई कोरोना संक्रमित थे. वजहें कुछ भी हों इन्हें जब तक पहचाना गया तब तक काफी देर हो चुकी थी. बात यहीं खत्म हो जाती तो और बात थी लेकिन हद तब हो गई जब इन जमातियों ने जगह अस्पतालों में डाक्टरों और नर्सों सहित पुलिसकर्मियों पर थूका और उनके साथ बेहूदी हरकतें और बदतमीजिया कीं.

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क्या है और कैसा है खतरा

मीडिया और खासतौर से सोशल मीडिया पर इसका खूब हल्ला मचा जिसके तले देश भर से मजदूरों के पलायन और पलायन के दौरान हुईं उनकी मौतों की बाद दब गई फिर कोई दयनीय हो गई अर्थव्यवस्था की बात कोई करेगा यह सोचना ही बेमानी है. न्यूज़ चेनल्स पर बहस करने बालों में सब्जी मंडी जैसा शोर मच गया कि मुसलमान देशद्रोही हैं . बहसों में मुस्लिम धर्मगुरुओ ने माना कि जमातियों ने गलत किया लेकिन कुछ चंद लोगों की गलती या अपराध के लिए पूरे मुसलमानो के बारे में गलत राय कायम न की जाये.

यह हल्ला अभी थमा नहीं है सोशल मीडिया पर जो बातें हो रहीं हैं उनका तो जिक्र तक यहाँ करना एक गलत मानसिकता को शह देने बाली बात होगी इस सबसे बड़े प्लेटफार्म पर सार रूप में कहा जा रहा है कि मुसलमानो को देश से खदेड़ो वे गद्दार हैं.

खदेड़ने के हुकम के अलावा उनके आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार की भी बातें की जा रहीं हैं जिन्हें ऊपर बताई पोस्ट में भी कहा गया है.  लेकिन चिंता की एक और बड़ी बात विराधु का जानबूझ कर किया उल्लेख है जिसका मकसद हिन्दुओ को और भड़काना है कि जब अहिसा का राग दिन रात अलापते रहने बाले बुद्ध के अनुयायी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा कर सकते हैं तो हम और तुम तो राम और कृष्ण के वंशज हैं जिनकी पूरी ज़िंदगी हिंसा और लड़ाइयाँ करने और करबाने में गुजरी तो फिर हिचकिचाहट क्यों.

असल हिचकिचाहट यह है कि जो लोग इस आग को हवा दे रहे हैं 130 करोड़ की आबादी बाले इस देश में उनकी तादाद 15 करोड़ भी नहीं है यानि मुसलमानों के बराबर ही है . बाकी लोग दलित आदिवासी ईसाई और वे पिछड़े हैं जिन्हें एक शब्द बेकबर्ड में पिरोकर देखा जा सकता है . ये बेकबर्ड कहने भर को हिन्दू हैं जिन्हें पेट भरने के लाले पड़े रहते हैं. ये लोग हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से कोई इत्तफाक नहीं रखते इनकी पीढ़ियों से लड़ाई भूख, जातिगत शोषण, छूआछूत और भेदभाव से है जिसके सामने ये लाक डाउन के बाद हथियार डाल चुके हैं. भाजपा और आरएसएस के हिन्दुत्व बाले एजेंडे में आरक्षण खत्म करने भी एक स्टेप है जो सबसे आखिर में उठाई जा सकती है.

इसी डर के चलते वंचित कहे जाने बाले इन तिरिस्कृत वर्गों ने सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर मुसलमानों का साथ शाहीनबाग से लेकर गली कूचों तक दिया था जिससे हिंदूवादियों के अरमानों पर पानी फिर गया था जो चाहते यह थे कि बेकबर्ड क्लास के लोग मुसलमानों से लड़ें और हम अपने घरों में बैठे हिन्दू राष्ट्र का नागपुरी सपना साकार होते देखते रहें.

अफसोस और झटके की बात इन आर्यों यानि तथाकथित हिन्दुओ के लिए यह रही कि कोई बेकबर्ड विराधु बनने के लिए तैयार नहीं और इन खुराफाती सनातनियों में कभी सीधे लड़ाई लड़ने की हिम्मत नहीं रही. हां सोशल मीडिया पर जरूर ये लोग भड़काऊ पोस्टें आगे बढ़ाने शूर वीरता दिखाते रहते हैं जिसके लेखक और पाठक भी यही 8 -10 करोड़ हिन्दू रहते हैं.

अब बात भगोड़े मजदूरों की जो बेचारे न तो विराधु को जानते न हिन्दुत्व को उनका धर्म तो  रोटी है जिसके लिए वे हाड़तोड़ मेहनत करते हैं फिर भी कभी पेट नहीं भरता. इधर 8 – 10 करोड़ हिंदुओं की दलील यह है कि इन्हें तो अनाप शनाप मिल रहा है लाक डाउन के दौरान इनके घर सरकारी इमदाद के चलते राशन से लबालब भर गए हैं और ये निकम्मे हो चले हैं क्योंकि इनके मुंह मुफ्त की चीजों और इमदाद की लत लग गई है.

शायद ही ये बुद्धिजीवी हिन्दू बता पाएँ कि इन्हें अगर सब कुछ बैठे बिठाये वाकई में मिल रहा होता तो ये 24 मार्च की लाक डाउन की घोषणा के बाद लाखों की तादाद में भागे क्यों जबकि हिंदुओं के मुताबिक सरकार इनके घरों में गेंहू, चावल, शकर, तेल नमक बगैरह भर रही थी. तो क्या ये सैर सपाटे या ख़ुदकुशी के लिए निकले थे. जब पैसे बाले सवर्ण कोरोना के डर से घरों में दुबके थे तब इन्हें क्या विराधु बाले पागल कुत्ते ने काटा था जो ये अपनी जान जोखिम में डालते.

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इस समीकरण और जमातियों पर भगवा सोशल मीडिया गेंग के  हल्ले का इकलौता मकसद सरकार की उजागर हो रही नाकामियों और वेंटिलेटर पर पड़ी अर्थव्यवस्था पर से लोगों का ध्यान हटाने और भटकाने का है और इसके लिए वे जमातियों जैसी ही मानसिकता  प्रदर्शित कर रहे हैं तो कौन ज्यादा कट्टर है यह तय कर पाना मुश्किल नहीं कि दोनों ही एक जैसे हैं.

फर्क सिर्फ इतना है कि सालों बाद सनातनी हिन्दू भारी पड़ते देश पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं जो जल्द ही फुस्स हो जाना है क्योंकि अब इनमें से अधिकांश को अपना नुकसान भी दिखने लगा है जो 9 बजे रोशनी करने से तो दूर होने से रहा हाँ कथित हिन्दुओ की छद्म एकता बनाए रखने की यह कोशिश थोड़ी तो कारगर होगी फिर मुमकिन है किस्मत या दूसरी कोशिशों से कोई नया बहाना मिल जाये.

लड़ाई अब कोरोना की नहीं बल्कि धर्म की है, हिन्दू राष्ट्र की है, असफलताएं ढकने की है, नफरत की नुमाइश और कट्टरता के मुजरे की है तो आइये तनाव के इन लम्हों में इसका ही लुत्फ उठाया जाये.

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