‘बैंक में औडिट के कारण मैं चाह कर भी छुट्टी न ले सका, इसलिए दिन में मैं औफिस और रोहन स्कूल चले जाते थे. इस बीच शालू और मेरे मित्र सुमन को बातचीत का अच्छा अवसर मिलता. दोनों के ही विचार मिलते थे. सुमन भी सरकारी अफसर था तथा अपने पद का लाभ उठा तनख्वाह के अतिरिक्त ऊपरी कमाई का हिमायती था. दोनों ने साथ रहने का निर्णय ले लिया.
‘मैं सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था. उस दिन मैं रोहन के पास बैठ कर न्यूजपेपर देख रहा था. रोहन अपना होमवर्क कर रहा था. सुमन आधे घंटे में लौटने को कह कर बाहर गया था. तभी शालू ने बिना प्रस्तावनाउपसंहार के कहा, मुझे आप से तलाक चाहिए.
‘अचानक पड़े प्रहार से मैं अचकचा सा गया, फिर भी खुद को संभालते हुए कहा, थोड़ा समझो शालू, मेरी जैसी या मेरे से कम तनख्वाह पाने वाले मेरे सहकर्मी, सभी तो शांतिपूर्वक जीवन जी रहे हैं.
‘चिकने घड़े की तरह शालू पर कोई प्रभाव न पड़ा. वह प्रतिउत्तर में बोली, और लोग कर लेते होंगे इतनी तनख्वाह में गुजर, मुझ से नहीं होती. मैं रोज की खींचतान से परेशान हो गई हूं.
‘मैं ने फिर कोशिश करते हुए कहा, शालू, जरा रोहन के विषय में तो सोचो, इस कच्ची उम्र में उसे मातापिता दोनों का स्नेह व संरक्षण चाहिए.
‘शालू तो निर्णय ले चुकी थी. इसलिए पूर्ववत ही बोली, तुम उसे मांपिता दोनों का स्नेहसंरक्षण देना. मैं तुम दोनों को छोड़ कर जा रही हूं. मुझे तुम्हारी कोई निशानी नहीं चाहिए. मैं नए सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहती हूं.
‘मैं भी अपना आपा खो बैठा, चीखते हुए कहा, अरे निर्लज्ज, कम से कम सुमन के जाने का तो इंतजार कर लेती, वर्षों बाद तो मैं अपने जिगरी यार से मिला हूं. चार दिन तो खुशी से जी लेने देती. वह तो अच्छा है कि वह अभी यहां नहीं है वरना मेरी पारिवारिक स्थिति देख वह कितना दुखी होता.
‘शालू ने कटाक्ष करते हुए कहा, मैं उन्हीं के साथ जा रही हूं. वे मेरे लिए उपयुक्त जीवनसाथी हैं, न आमदनी की चिंता और न ही खर्चे का हिसाब. जैसे चाहो कमाओ और जीभर कर उड़ाओ. हम दोनों के विचार पूरी तरह समान हैं.
‘शालू की बातें सुन मैं अवाक् रह गया. सारी बातें समझ में आने लगीं. मेरा जिगरी यार मेरे साथ समय गुजारने के लिए नहीं रुका था बल्कि अपने मित्र की असंतुष्ट पत्नी को अपने जाल में फांसने के लिए रुका था. सुमन की पत्नी का 6 माह पूर्व एक ऐक्सिडैंट में देहांत हो चुका था. असंतुष्ट शालू को उस ने भांप लिया और दो के झगड़े में तीसरे का लाभ वाली कहावत चरितार्थ कर बैठा. मैं इन सब बातों से अनभिज्ञ अपनों के हाथों ठगा गया. बस, उस समय से शालू गई तो गई, बाद में हमारा कानूनी तलाक भी हो गया.’
खाना बन चुका था, लंच का समय भी हो चला था किंतु रामेश्वरजी की जीवनगाथा सुन, अजीब सी उदासीनता पसर गई थी. हम सभी चुप थे. रामेश्वरजी ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘क्या भाभीजी, खाना नहीं खिलाइएगा?’
मैं ने उठते हुए कहा, ‘जरूरजरूर, अभी लगाती हूं.’
रामेश्वरजी ने धीरे से कहा, ‘मेरा तलाक हुए 12 वर्ष हो चुके हैं, अब तो इस दर्द के साथ जीने की आदत सी हो गई है.’
खाना खाने के बाद हम तीनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गए. राजेश ने पूछा, ‘रामेश्वरजी, आज आप ने अपनी पत्नी के बारे में बताया, किंतु मेरे मन में एक और प्रश्न है. मैं, आप के और रोहन के रिश्ते के बारे में जानना चाहता हूं. वह आप के प्रति बहुत रूखा व सख्त है जो उचित नहीं. कुछ तो बताइए, शायद हम कुछ मदद कर सकें.’
रामेश्वरजी ने कहा, ‘सच कहूं तो मुझे इस हेतु मदद की आवश्यकता है भी किंतु मैं किसी से कहने से झिझकता हूं कि भला मेरी व्यक्तिगत समस्या में क्यों कोई दिलचस्पी ले कर मदद करेगा. आप ने पूछा है, मैं आभारी हूं और आप को अवश्य बताता हूं.
‘शालू मुझे छोड़ कर चली गई. कच्ची उम्र का नन्हा रोहन देखसुन तो सब रहा था किंतु समझ कम रहा था. शालू के जाने के बाद उसे शालू से तो नफरत हो गई किंतु प्यार वह मुझ से भी नहीं कर सका. उसी ने बैडरूम में लगी हमारी तसवीर कूड़ेदान में डालते हुए धमकी भरे लहजे में कहा, दोबारा मत लगाइएगा.
‘मुझे ऐसा महसूस होता है कि रोहन मुझे एक कमजोर इंसान मानने लगा है, जो अपनी पत्नी को न संभाल सका, भला वह क्या कर सकेगा? मातापिता की रोज की किचकिच ने उस का बचपन बरबाद कर दिया. इन झगड़ों से शायद खुद को असुरक्षित महसूस कर वह सख्त व रूखा बन बैठा है.’
मैं ने कहा, ‘आप ने ठीक कहा, भाईसाहब…मांपिता के झगड़ों से चिढ़ कर उस ने आप के साथ सख्त व रूखा व्यवहार अपना लिया है. वह आप को अपमानित कर संतुष्ट होता है.’
राजेश ने कहा, ‘मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है. वह आप को बेइज्जत करने का मौका ढूंढ़ता रहता है किंतु एक अच्छी बात है कि वह अपने हमउम्र के साथ अच्छा व्यवहार करता है. तभी तो उस के इतने दोस्त हैं. हमें उस के मन से इस गलत धारणा को निकालना होगा कि उस के पापा एक कमजोर इंसान हैं, हमें प्रयास कर उसे समझाना होगा कि उस के पापा एक मजबूत इंसान हैं जिन्होंने अपना जीवन उस की परवरिश हेतु न्योछावर कर दिया. वे भी तो दूसरा विवाह कर सकते थे, तब उस का क्या होता? उन्होंने स्वयं से ज्यादा रोहन पर ध्यान दिया. हम तीनों के प्रयास से मुझे पूरा विश्वास है कि रोहन का पूरा मैल धुल जाएगा तथा एक निर्मल, कोमल रोहन विकसित हो सकेगा.’
‘आप लोगों के सहयोग से यदि रोहन बदल जाता है, मेरा जीवन धन्य हो उठेगा, मैं आप लोगों का एहसान कभी नहीं भूलूंगा,’ रामेश्वरजी भावविह्वल हो बोले.
मैं तुरंत बोल पड़ी, ‘कर दी न, भाईसाहब, परायों वाली बात? अरे, अपनों के बीच एहसान कहां से आ गया?’
राजेश बोले, ‘देखिए रामेश्वरजी, हम ने अपने बेटे राजीव को प्यार से पालापोसा, पढ़ायालिखाया. आज वह विदेश में जा बैठा है तथा परायों सा व्यवहार कर रहा है. वह खुश है, यह सोच हम भी खुश हो लेते हैं. अब अपनी आंखों के सामने रोहन को भटकते देख रहे हैं. हम सब उसे सही रास्ते पर लाने का प्रयास करते हैं, अवश्य लाभ होगा.’
हम तीनों ने मिल कर तय किया कि औफिस के काम के बहाने रामेश्वरजी 4-6 दिनों के लिए शहर से बाहर जाएं जिस से हम रोहन के नजदीक आ सकें. रामेश्वरजी ने तय कार्यक्रम के अनुसार रोहन को बाहर जाने का कार्यक्रम बता दिया. उस ने उन की बातों का कोई जवाब नहीं दिया. रामेश्वरजी अपना सामान ले कर जा रहे थे, वह बेपरवा औंधेमुंह लेटा रहा.