इन दिनों देश के किसानों , पशुपालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा. खासकर जो लोग दूध के कारोबार से जुड़े हैं, उनके सामने तो भारी समस्या है ,क्योंकि दूध की खपत कम हो गई है. दूध सप्लाई करने वाले , डेयरी वाले कम दूध उठा रहे हैं. कुछ लोग कम दामों पर दूध बेचने पर मजबूर हैं , जबकि पशुओं के चारपानी पर पहले से कहीं अधिक खर्च हो रहा है. बाजार की दिक्कतें सो अलग.
दूध की खपत ज्यादातर मावा पनीर बनाने में , हलवाइयों की दुकानों पर , शादीब्याह , पार्टियों आदि मैं होती थी, जो अब काफी कम हो गई है.
दिल्ली में खारी बावली मावापनीर की बड़ी मंडी है ,जहाँ दिल्ली के आसपास के इलाकों से टनों मावा टेम्पोट्रकों में भर कर था, जो अब नहीं आ रहा है. देश के दूध उत्पादन करने वाले अनेक पशुपालकों से बात हुई , ज्यादातर लोगों का कहना है कि दूध व्यापारी हम से कम दामों पर दूध ले रहे हैं. सारा दूध भी नहीं लेते, कम मात्रा में ही दूध के जाते हैं. हम दूध को फ़ैंक नही नहीं सकते , हमें उस दूध को पशुओं के चारे में ही मिलाना पड़ रहा है.
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हरियाणा में अर्थ डेयरी वाले का कहना है कि दूध की खपत आधी हो गई है. पशुपालक रमाकांत तिवारी का कहना है कि दूध की ज्यादातर खपत ढाबे और रेस्टोरेंट में होती थी जो अब बंद है.
*अनेक डेयरियों ने घटाए दाम :
दूध की खपत काम होने के कारण देश की अनेक डेरियों ने दूध के दाम भी घटा दिए हैं .उत्तर प्रदेश की बड़ी डेरियों में शुमार पराग ने दूध के दाम 2 रुपए प्रति लीटर तक कम किये हैं ,और गरीब तबके को ध्यान में रखते हुए 7 रुपए में 200 ग्राम का पाउच निकाला है.
*उत्तराखंड* की पारस और परम डेयरी ने भी दूध के दामों में कमी की है. परम डेयरी ने अपने दूध के हर ब्रांड में 4 रुपए तक कि कमी की है , और 200 ग्राम पनीर खरीदने पर 10 रुपए वाला दही फ्री मिलेगा.
*राजस्थान* की सरस डेयरी ने भी 1 अप्रैल से अपने दूध के दामों में 2 रुपए से 4 रुपए प्रति लीटर तक कम किए हैं. 200 मिली वाले पाउच की कीमत में कोई बदलाव नही किया.
मदर डेयरी घरघर दूध पहुँचाने के लिए ऑनलाइन सर्विस पर काम कर रही है.अब सब से बड़ी समस्या उन पशुपालकों की है , उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं दिख रहा. पिछले दिनों मेरा पराग डेयरी , मेरठ जाना हुआ था, तो वहां के अधिकारियों ने बताया कि जब हमारे पास दूध अधिक मात्रा में आता है तो उस दूध से हम पाउडर बनाते हैं, और जब दूध की सप्लाई , जैसे गरमी के मौसम में कम होती है उस समय उस पाउडर दूध का इस्तेमाल किया जाता है.
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ऐसे समय में ऐसा ही कुछ काम देश की डेयरियां करें तो पशुपालक का नुकसान न हो. हालांकि कुछ प्रगतिशील लोग अपने दूध को प्रोसेसिंग कर घी आदि बना भी रहे हैं, जिसकी आसपास के लोग भी अच्छी कीमत देते हैं.
एक पशुपालक ने बताया कि जब भी हमारे पास दूध बचता है तो उस से हम घी बनाते हैं .और वह घी 1 हजार रु. किलो के हिसाब से बिकता है. जरूरत पड़ने पर लोगों की डिमांड होने पर मावा भी बनाते हैं जो 5 सौ रु. किलो बेचते हैं.इसलिए इस तरह से कुछ काम किया जाए तो काफी हद तक समस्या से निदान पाया जा सकता है.