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Best Hindi Story : अपनी जमीं और अपना आसमां – खुली हवा में सांस लेती मांबेटी

Best Hindi Story : रश्मि आज फिर अपनी बेटी पाहुनी के साथ परेशान सी घर आई थी. रश्मि के विवाह को 12 वर्ष हो गए थे, मगर सत्यकांत के व्यवहार में जरा भी बदलाव नहीं आया था. वह पैसे को पानी की तरह बहाता था. आज फिर रश्मि को कहीं से पता चला कि उस ने अपना पैसा अपने दोस्त विराज की पत्नी, जिस का नाम पूजा है, के साथ औनलाइन बिजनैस में लगा रहा है.

रश्मि ने पूजा को पहले भी देख रखा था. गहरे मेकअप की परतें और भड़कीले कपड़ों में पूजा एक आइटम गर्ल अधिक, पढ़ीलिखी सभ्य महिला कम लगती थी.

रश्मि को अच्छे से पता था कि पूजा वो सारे हथकंडे अपनाती थी, जिस से वह सत्यकांत जैसे बेवकूफ पुरुष को काबू में रख सके. रातदिन ‘सत्यजी, सत्यजी’ कह कर वह सत्य की झूठी तारीफ करती थी. सत्य बेवकूफ की तरह पूजा की थीसिस भी लिख रहा था और अपने निजी फायदे के लिए पूजा का पति विराज मुंह में दही जमा कर बैठा हुआ था.

आज रश्मि के सिर के ऊपर से पानी गुजर गया था. इसलिए वह सलाह लेने अपने घर आ गई थी. छोटी बहन अंशु बोली, “आप पढ़ीलिखी हो, खुद कमाती हो, क्यों उस गलीच इनसान के साथ अपनी और पाहुनी की जिंदगी बरबाद कर रही हो?”

भैया बोले, “अरे, तेरा कमरा अभी भी खाली पड़ा है.”

वहीं भाभी बोलीं, “डाइवोर्स का केस फाइल करना बच्चू पर और जब एलमनी देनी पड़ेगी, दिन में तारे नजर आ जाएंगे.”

रश्मि ने पाहुनी के मुरझाए हुए चेहरे की तरफ देखा. पाहुनी सुबकते हुए कह रही थी, “पापा उतने भी बुरे नहीं हैं, जैसा आप सब बोल रहे हो.”

तभी रश्मि की मम्मी सुधा बोलीं, “बेटा, तेरे पापा ने तो हमारी बेटी की जिंदगी बरबाद कर दी है. 38 साल की उम्र में ही बूढ़ी लगने लगी है. मेरी बेटी महीने में लाख रुपए कमाती है. क्यों वह किसी आवारा के पीछे जिंदगी खराब करे?”

रश्मि ने घर आ कर बहुत देर तक घर छोड़ने के फैसले के बारे में सोचा. उसे लगा कि अगर आज वह पाहुनी के आंसू से पिघल जाएगी, तो कभी भी इस दलदल से बाहर नहीं निकल पाएगी. सत्यकांत रातदिन झूठ बोलता था. वह इतना झूठ बोलता था कि उसे खुद याद नहीं रहता था.

रात को सत्यकांत 11 बजे आया था. रश्मि ने सत्यकांत को अपने फैसले से अवगत करा दिया था. सत्यकांत ने बस इतना ही कहा, “सोचसमझ कर फैसला लेना. ऐसा ना हो कि कुएं से खाई में गिर जाओ. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे पैसों के कारण रातदिन मेरे खिलाफ कान भरते हैं, मगर एक बात याद रखना कि ये केवल तुम्हारी गलतफहमी है कि मेरे और पूजा के बीच कुछ है.

रश्मि सत्यकांत के इन झूठे वादों से तंग आ चुकी थी. उस ने अपना और पाहुनी का सामान पैक कर लिया था. उसे लग रहा था कि कम से कम अपने घर वह तनावमुक्त तो रह पाएगी.

जब रश्मि पाहुनी के साथ अपने घर पहुंची, तो सब लोगों ने उस का खुले दिल से स्वागत किया. अपनी छोटी बहन अंशु और भाभी मंशा की मदद से वह अपने कपड़े और छोटेमोटे सामान कमरे में जमाने लगी.

रश्मि ने देखा कि उस के कमरे में एक अलमारी पुरानी चादरों से अटी पड़ी है. ठंडी सांस भरते हुए रश्मि ने सोचा कि अभी भी घर का वो ही हाल है. सब कुछ अस्तव्यस्त. मंशा भाभी भी घर के रंग में ही रंग गई थीं. मंशा भाभी बोलीं, “अरे दीदी, आप इस के ऊपर अपने महंगे कभीकभार पहनने वाले कपड़े रख दो. जल्द ही मैं ये सामान हटवा दूंगी.” तभी अंशु बोली, “अरे, मेरे कमरे में एक अलमारी पूरी खाली है. आप के कपड़े वहां रख देते हैं.”

रश्मि के सारे महंगे सूट और साड़ी अंशु अपने कमरे में ले गई थी. रश्मि पाहुनी के साथ उस कमरे को अपना घर बनाने की कोशिश कर रही थी कि तभी रश्मि को बाहर शोर सुनाई दिया. जब रश्मि बाहर निकली तो देखा कि अंशु उस की कांजीवरम सिल्क की साड़ी पहन कर मौडलिंग कर रही है.

रश्मि को देख कर अंशु बोली, “दीदी, इस बार औफिस में ट्रेडिशनल डे पर ये ही पहनूंगी.” तभी भैया के छोटे बेटे भव्य से उस साड़ी के ऊपर पानी गिर गया. रश्मि को ऐसा लगा मानो साड़ी पर उकेरे हुए मोर को किसी ने जबरदस्ती नहला दिया हो.

अंशु बोली, “सौरी दीदी, मैं इसे ड्राईक्लीन करवा दूंगी.” तभी रश्मि की मम्मी बोलीं, “अरे, मैं घर पर ही धो दूंगी.”

रश्मि को अंदर ही अंदर झुंझलाहट तो हुई, मगर वह चुप लगा गई थी. रात में जब रश्मि और पाहुनी डिनर के लिए बाहर आए, तो डायनिंग टेबल पर सजी क्रौकरी देख कर रश्मि की भूख ही मर गई थी. क्रौकरी का रंग पीला पड़ गया था और खाना भी बेहद बदमाजा बना हुआ था.

रश्मि ने देखा कि पाहुनी बस खाने से खेल रही थी. रात में रश्मि पाहुनी से बहुत देर तक बात करती रही थी. फिर तकरीबन 10 बजे रश्मि उठ कर रसोई में गई. वह पाहुनी को दूध देना चाहती थी. फ्रिज खोल कर देखा, तो बस एक गिलास ही दूध था. मम्मी रश्मि से बोलीं, “अरे रश्मि, तेरा भाई तो अकेला कमाने वाला है. अब तू आ गई है, तो थोड़ा उसे भी चैन मिल जाएगा.”

रश्मि मम्मी की बात सुन कर थोड़ी अचकचा गई थी, ‘क्या सत्यवान वास्तव में उस के परिवार के बारे में सही बोल रहा था?”

अगले दिन रश्मि सवेरे 5 बजे उठ कर नहा ली थी और अपने कपड़े भी धो कर डाल दिए थे. अब समस्या थी पाहुनी की, वह बिना दूध के आंख नहीं खोलती है.

रश्मि ने फिर खुद अपने पैसों से 4 लिटर दूध खरीद लिया. पाहुनी को दूध देने के बाद जब वह तैयार होने लगी, तो मम्मी बोलीं, “रश्मि आज बहुत बरसों बाद गाढ़ी दूध की चाय नसीब होगी.”

रश्मि जब नाश्ता ले कर अंदर आई तो पाहुनी अभी भी रात के कपड़ों में ही बैठी थी. रश्मि ने गुस्से में कहा, “तुम अब तक नहाई क्यों नहीं हो?”

पाहुनी रोआंसी सी बोली, “कोई बाथरूम खाली नहीं है.”

रश्मि ने प्यार से पाहुनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, “चलो, फिर छुट्टी कर लेते हैं.”

पाहुनी बिदकते हुए बोली, “नहीं, बिलकुल नहीं.” फिर पाहुनी बस मुंहहाथ धो कर ही स्कूल के लिए तैयार हो गई थी. टिफिन में भी रश्मि बस ब्रेडजेम ही रख पाई थी.

दफ्तर में रश्मि दिनभर सोचती रही थी कि वह क्या करे? पाहुनी को वह ऐसे नहीं देख सकती थी.

वापसी में रश्मि ने पाहुनी की पसंद के स्नैक्स, ड्राईफ्रूट्स और भी ना जाने कितना सामान ले लिया था. मगर जब रश्मि घर पहुंची, तो शर्म के कारण उस ने पूरा सामान मम्मी के हाथों में पकड़ा दिया था. मम्मी गर्व से बोलीं, “ऐसी बेटी क्या कभी मायके पर बोझ होती है?”

भैया और भाभी के लिए रश्मि अब एक कमाई का जरीया थी. मम्मी संकेत में बहुत बार रश्मि को ये समझा चुकी थी कि छोटी बहन अंशु की शादी उस की और भैया की संयुक्त जिम्मेदारी है.

आज जैसे ही रश्मि औफिस से आई, तो उस ने देखा कि अंशु उस का सिल्क का सूट लथेड़ते हुए आ रही है.

रश्मि एकाएक चिल्ला कर बोली, “अंशु किस से पूछ कर तुम ये सूट पहन कर गई थी?”

अंशु खिसियाते हुए बोली, “दीदी आज औफिस में पार्टी थी. मैं ड्राईक्लीन करवा दूंगी.” तभी मम्मी तपाक से बोलीं, “अरे, जब 38 साल की उम्र में तुम्हें ही इतना शौक है तो वह तो बस अभी 24 साल की है. इस घर में मेरा और तेरा नहीं होता. ये हमारा घर है रश्मि. अब इस घर की जिम्मेदारी भी तेरी है.”

इसी तरह मन को समझाते हुए, समझौते करते हुए और घर की जिम्मेदारी उठाते हुए एक माह बीत गया था.

रश्मि ने एकाध बार सत्यकांत से बात करने की कोशिश भी की, मगर सत्यकांत को शायद ये अरेंजमेंट पसंद आ गया था.

जब रश्मि अपने बड़े भाई सुशांत के साथ वकील के यहां गई, तो वकील ने कहा कि तुम्हारे पति के खिलाफ डोमेस्टिक वायलेंस का केस कर सकते हैं, क्योंकि पैसे न कमाना, बाहर गर्लफ्रेंड होना, ऐसी बातों से कुछ नहीं होगा.

रश्मि बोली, “वकील साहब, शादी को 12 साल हो गए हैं. अब भी डोमेस्टिक वायलेंस का केस बन सकता है.”

वकील बोला, “क्यों नहीं. एक ऐसा रामबाण है मेरे पास, जो कभी खाली नहीं जाता है. बस तुम्हें थोड़ी हिम्मत रखनी पड़ेगी.”

फिर वकील ने जो बताया, उसे सुन कर रश्मि की रूह सिहर गई. वकील के अनुसार, रश्मि, पाहुनी के साथ वापस अपने घर जाए और जब सत्यकांत घर आए, उस की उपस्थिति में ही खुद को नुकसान पहुंचाए. तभी डोमेस्टिक वायलेंस का पक्का केस बनेगा. पूरा एक हफ्ता एलिमोनी की रकम तय करने में निकल गया था. मम्मी को एक करोड़ की रकम भी कम लग रही थी, तो अंशु और मंशा भाभी 60 लाख रुपए में समझौता करना चाहते थे.

रश्मि थोड़ा झिझकते हुए बोली, “भैया, क्या सत्यकांत से ऐसे पैसे लेना ठीक रहेगा?”

मम्मी तपाक से बोलीं, “हमें उस बात से कोई मतलब नहीं है. तेरी जिंदगी बरबाद कर दी है उस ने. उन पैसों को तेरे भैया के बिजनैस में लगा देंगे, अंशु की शादी भी थोड़ी ठीक से हो जाएगी.

रश्मि रोज इसी उधेड़बुन में लगी रहती थी. क्या हिंदू शादी में सिंदूर की कीमत वाकई इतनी महंगी है? क्या अपने घर आ कर उसे कोई चैन मिला था? यहां पर भी सब को उस के बस पैसों से मतलब था. एक हफ्ता इसी कशमकश में बीत गया.

पाहुनी रोज अपने मामा, मामी और बाकी घर वालों के मुंह से सत्यकांत को फंसाने के नएनए आइडिया सुनती थी और अपने ही आप में सिमट जाती थी. रात में कभी भी उठ कर पाहुनी डर के कारण चिल्लाने लगी थी.

पाहुनी अब रश्मि से खिंचीखिंची सी रहती थी. एक रात जब रश्मि ने पूछा, तो पाहुनी गुस्से में बोली, “मम्मी, तुम गंदी हो.”

रश्मि फिर उस रात के बाद से पाहुनी से नजर नहीं मिला पाई. फिर 15 दिन बाद सुशांत ही बोला, “रश्मि, पाहुनी को ले कर कब अपने घर जा रही हो. वकील साहब कह रहे हैं, जितना देर करोगी उतनी ही दिक्कत होगी.”

रश्मि ने कहा, “भैया कोई और उपाय नहीं है. पाहुनी बहुत डरी हुई है.”

मंशा भाभी आंखें तरेरते हुए बोलीं, “और कोई उपाय होता तो आप के भैया थोड़े ही ना आप से कहते और फिर ये पैसे हम सब के, आप के और पाहुनी के ही काम आएंगे.”

रश्मि धीमे स्वर में बोली, “भाभी आप ठीक कह रही हैं, मगर फिर भी मेरा मन नहीं मान रहा है.”

मम्मी रुखाई से बोलीं, “तुम्हारे मन के कारण ही तुम आज यहां खड़ी हो.”

उस रात बहुत देर तक रश्मि अपने कमरे में बिना लाइट जलाए बैठी रही, तभी मम्मी के मोबाइल की घंटी से रश्मि की तंद्रा टूटी. मम्मी किसी को अपने घुटने के औपरेशन का खर्चा बता रही थीं, “अरे, पूरे 6 लाख का खर्च है. अगर सत्यकांत ने 15 लाख भी दिए तो भी मैं करा लूंगी.

“रश्मि को धीरेधीरे सुशांत लौटा देगा, फिर कौन अपनी शादीशुदा बेटी को ऐसे सपोर्ट करता है जैसे हम कर रहे हैं. अंशु के लिए रिश्ता भी देख रहे हैं. अब तो रश्मि और सुशांत मिल कर सब देख लेंगे.

“अब देखो, रश्मि के पास पाहुनी है. उस की दूसरी शादी तो कैसे हो सकती है, हम लोगों के साथ रहेगी तो उस की जिंदगी भी कट जाएगी.”

रश्मि को लगा जैसे पहले सत्यकांत उस के साथ छल कर रहा था और अब उस के खुद के घर वाले, उस के टूटे रिश्ते पर अपनी जरूरतों को पूरा कर रहे हैं.

रात में जब रश्मि ने अपनी मम्मी को खिचड़ी दी तो संयत स्वर में कहा, “मम्मी, अगले हफ्ते तक मैं और पाहुनी अपने घर चले जाएंगे.”

मम्मी ने खिले स्वर में कहा, “ये हुई ना मेरी बेटी वाली बात.”

शनिवार की शाम को रश्मि ने अपना सामान फिर पैक कर लिया था. सुशांत बोला कि चल, मैं तुझे छोड़ आता हूं.”

रश्मि बोली, “भैया, ये सफर मेरा है. तो रास्ता भी मुझे तय करने दीजिए.”

रश्मि का आटो जब एक छोटे से मकान के आगे रुका, तो पाहुनी बोली, “मम्मी, ये किस का घर है?”

रश्मि बोली, “ये हमारा घर है. जहां की हर ईंट में बस प्यार और अपनापन होगा. घर क्या था एक छोटी सी बरसाती थी, साथ में अटैच्ड टायलेट और रसोई भी थी. नीचे रश्मि की दोस्त निधि भी रहती थी और उस की बेटी ऊर्जा, पाहुनी की हमउम्र थी.

निधि ने रश्मि की समस्या सुन कर उसे बहुत कम किराए पर ये बरसाती दिलवा दी थी. सुरक्षा की दृष्टि से, हवा धूप के हिसाब से ये काफी अच्छा औप्शन था.

रश्मि ने वकील को फोन लगाया और कहा, “वकील साहब, मुझे बिना किसी झूठ के अपना केस लड़ना है. क्या आप लड़ पाएंगे?”

वकील बोला, “क्यों नहीं, मगर समय लगेगा. और बस वाजिब रकम ही मिल पाएगी.”

रश्मि हंसते हुए बोली, “बस वाजिब ही चाहिए.”

नीचे से पाहुनी की खुल कर हंसने की आवाज आ रही थी. रश्मि को ऐसा लगा, जैसे बहुत दिन बाद उस ने खुल कर हवा में सांस लिया हो, जहां पर थोड़ी सी जमीं उस की है और थोड़ा सा आसमां भी उस का ही है. वह अपनी जमीं पर पांव रख कर अपने सपनों को अपने ही आसमां में बुनने के लिए तैयार है. नई जिंदगी के लिए अब शायद रश्मि तैयार थी.

Emotional Story : बचपना – पति की चिट्ठी पाकर भी क्यों खुश नहीं थी सुधा?

Emotional Story : आज फिर वही चिट्ठी मनीआर्डर के साथ देखी, तो सुधा मन ही मन कसमसा कर रह गई. अपने पिया की चिट्ठी देख उसे जरा भी खुशी नहीं हुई. सुधा ने दुखी मन से फार्म पर दस्तखत कर के डाकिए से रुपए ले लिए और अपनी सास के पास चली आई और बोली ‘‘यह लीजिए अम्मां पैसा.’’

‘‘मुझे क्या करना है. अंदर रख दे जा कर,’’ कहते हुए सासू मां दरवाजे की चौखट से टिक कर खड़ी हो गईं. देखते ही देखते उन के चेहरे की उदासी गहरी होती चली गई.

सुधा उन के दिल का हाल अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि उस से कहीं ज्यादा दुख अम्मां को है. उस का तो सिर्फ पति ही उस से दूर है, पर अम्मां का तो बेटा दूर होने के साथसाथ उन की प्यारी बहू का पति भी उस से दूर है. यह पहला मौका है, जब सुधा का पति सालभर से घर नहीं आया. इस से पहले 4 नहीं, तो 6 महीने में एक बार तो वह जरूर चला आता था. इस बार आखिर क्या बात हो गई, जो उस ने इतने दिनों तक खबर नहीं ली?

अम्मां के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. कभी वे सोचतीं कि किसी लड़की के चक्कर में तो नहीं फंस गया वह? पर उन्हें भरोसा नहीं होता था.

हो न हो, पिछली बार की बहू की हरकत पर वह नाराज हो गया होगा. है भी तो नासमझ. अपने सिवा किसी और का लाड़ उस से देखा ही नहीं जाता. नालायक यह नहीं समझता, बहू भी तो उस के ही सहारे इस घर में आई है. उस बेचारी का कौन है यहां? सोचतेसोचते उन्हें वह सीन याद आ गया, जब बहू उन के प्यार पर अपना हक जता कर सूरज को चिढ़ा रही थी और वह मुंह फुलाए बैठा था  अगली बार डाकिए की आवाज सुन कर सुधा कमरे में से ही कहने लगी, ‘‘अम्मां, डाकिया आया है. पैसे और फार्म ले कर अंदर आ जाइए, दस्तखत कर दूंगी.’’ सुधा की बात सुन कर अम्मां चौंक पड़ीं. पहली बार ऐसा हुआ था कि डाकिए की आवाज सुन कर सुधा दौड़ीदौड़ी दरवाजे तक नहीं गई… तो क्या इतनी दुखी हो गई उन की बहू?

अम्मां डाकिए के पास गईं. इस बार उस ने चिट्ठी भी नहीं लिखी थी. पैसा बहू की तरफ बढ़ा कर अम्मां रोंआसी आवाज में कहने लगीं, ‘‘ले बहू, पैसा अंदर रख दे जा कर.’’

अम्मां की आवाज कानों में पड़ते ही सुधा बेचैन निगाहों से उन के हाथों को देखने लगी. वह अम्मां से चिट्ठी मांगने को हुई कि अम्मां कहने लगीं, ‘‘क्या देख रही है? अब की बार चिट्ठी भी नहीं डाली है उस ने.’’ सुधा मन ही मन तिलमिला कर रह गई. अगले ही पल उस ने मर जाने के लिए हिम्मत जुटा ली, पर पिया से मिलने की एक ख्वाहिश ने आज फिर उस के अरमानों पर पानी फेर दिया. अगले महीने भी सिर्फ मनीआर्डर आया, तो सुधा की रहीसही उम्मीद भी टूट गई. उसे अब न तो चिट्ठी आने का भरोसा रहा और न ही इंतजार. एक दिन अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. पहली बार तो सुधा को लगा, जैसे वह सपना देख रही हो, पर जब दोबारा किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो वह दरवाजा खोलने चल दी.

दरवाजा खुलते ही जो खुशी मिली, उस ने सुधा को दीवाना बना दिया. वह चुपचाप खड़ी हो कर अपने साजन को ऐसे ताकती रह गई, मानो सपना समझ कर हमेशा के लिए उसे अपनी निगाहों में कैद कर लेना चाहती हो. सूरज घर के अंदर चला आया और सुधा आने वाले दिनों के लिए ढेर सारी खुशियां सहेजने को संभल भी न पाई थी कि अम्मां की चीखों ने उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा दी. अम्मां गुस्सा होते हुए अपने बेटे पर चिल्लाए जा रही थीं, ‘‘क्यों आया है? तेरे बिना हम मर नहीं जाते.’’ ‘‘क्या बात है अम्मां?’’ सुधा को अपने पिया की आवाज सुनाई दी.

‘‘पैसा भेज कर एहसान कर रहा था हम पर? क्या हम पैसों के भूखे हैं?’’ अम्मां की आवाज में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था.

‘‘क्या बात हो गई?’’ आखिर सूरज गंभीर हो कर पूछ ही बैठा.

‘‘बहू, तेरा पति पूछ रहा है कि बात क्या हो गई. 2 महीने से बराबर खाली पैसा भेजता रहता है, अपनी खैरखबर की छोटी सी एक चिट्ठी भी लिखना इस के लिए सिर का बोझ बन गया और पूछता है कि क्या बात हो गई?’’

सूरज बिगड़ कर कहने लगा, ‘‘नहीं भेजी चिट्ठी तो कौन सी आफत आ गई? तुम्हारी लाड़ली तो तुम्हारे पास है, फिर मेरी फिक्र करने की क्या जरूरत पड़ी?’’ सुधा अपने पति के ये शब्द सुन कर चौंक गई. शब्द नए नहीं थे, नई थी उन के सहारे उस पर बरस पड़ी नफरत. वह नफरत, जिस के बारे में उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. सुधा अच्छी तरह समझ गई कि यह सब उन अठखेलियों का ही नतीजा है, जिन में वह इन्हें अम्मां के प्यार पर अपना ज्यादा हक जता कर चिढ़ाती रही है, अपने पिया को सताती रही है.

इस में कुसूर सिर्फ सुधा का ही नहीं है, अम्मां का भी तो है, जिन्होंने उसे इतना प्यार किया. जब वे जानती थीं अपने बेटे को, तो क्यों किया उस से इतना प्यार? क्यों उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर की बेटी नहीं बहू है? अम्मां सुधा का पक्ष ले रही हैं, यह भी गनीमत ही है, वरना वे भी उस का साथ न दें, तो वह क्या कर लेगी. इस समय तो अम्मां का साथ देना ही बहुत जरूरी है. अम्मां अभी भी अपने बेटे से लड़े जा रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो गया है.’’ अम्मां की बात का जवाब सूरज की जबान पर आया ही था कि सुधा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘यह सब अच्छा लगता है क्या आप को? अम्मां के मुंह लगे चले जा रहे हैं. बड़े अच्छे लग रहे हैं न?’’

‘‘चुप, यह सब तेरा ही कियाधरा है. तुझे तो चैन मिल गया होगा, यह सब देख कर. न जाने कितने कान भर दिए कि अम्मां आते ही मुझ पर बरस पड़ीं,’’ थोड़ी देर रुक कर सूरज ने खुद पर काबू करना चाहा, फिर कहने लगा, ‘‘यह किसी ने पूछा कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? इस की फिक्र किसे है? अम्मां पर तो बस तेरा ही जादू चढ़ा है.’’ ‘‘हां, मेरा जादू चढ़ा तो है, पर मैं क्या करूं? मुझे मार डालो, तब ठीक रहेगा. मुझ से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा और मुझे तुम्हारे बिना जीने से.’’

अब जा कर अम्मां का माथा ठनका. आज उन के बच्चों की लड़ाई बच्चों का खेल नहीं थी. आज तो उन के बच्चों के बीच नफरत की बुनियाद पड़ती नजर आ रही थी. बहू का इस तरह बीच में बोल पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा. वे अपनी बहू की सोच पर चौंकी थीं. वे तो सोच रही थीं कि उन के बेटे की सूरत देख कर बहू सारे गिलेशिकवे भूल गई होगी.

अम्मां की आवाज से गुस्सा अचानक काफूर गया. वे सूरज को बच्चे की तरह समझाने लगीं, ‘‘इस को पागल कुत्ते ने काटा है, जो तेरी खुशियां छीनेगी? तेरी हर खुशी पर तो तुझ से पहले खुश होने का हक इस का है. फिर क्यों करेगी वह ऐसा, बता? रही बात मेरी, तो बता कौन सा ऐसा दिन गुजरा, जब मैं ने तुझे लाड़ नहीं किया?’’ ‘‘आज ही देखो न, यह तो किसी ने पूछा नहीं कि हालचाल कैसा है? इतना कमजोर कैसे हो गया तू? तुम को इस की फिक्र ही कहां है. फिक्र तो इस बात की है कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं डाली?’’ सूरज बोला.

अम्मां पर मानो आसमान फट पड़ा. आज उन की सारी ममता अपराधी बन कर उन के सामने खड़ी हो गई. आज यह हुआ क्या? उन की समझ में कुछ न आया. अम्मां चुपचाप सूरज का चेहरा निहारने लगीं, कुछ कह ही न सकीं, पर सुधा चुप न रही. उस ने दौड़ कर अपने सूरज का हाथ पकड़ लिया और पूछने लगी, ‘‘बोलो न, क्या हुआ? तुम बताते क्यों नहीं हो?’’ ‘‘मैं 2 महीने से बीमार था. लोगों से कह कर जैसेतैसे मनीआर्डर तो करा दिया, पर चिट्ठी नहीं भेज सका. बस, यही एक गुनाह हो गया.’’ सुधा की आंखों से निकले आंसू होंठों तक आ गए और मन में पागलपन का फुतूर भर उठा, ‘‘देखो अम्मां, सुना कैसे रहे हैं? इन से तो अच्छा दुश्मन भी होगा, मैं बच्ची नहीं हूं, अच्छी तरह जानती हूं कि भेजना चाहते, तो एक नहीं 10 चिट्ठियां भेज सकते थे. ‘‘नहीं भेजते तो किसी से बीमारी की खबर ही करा देते, पर क्यों करते ऐसा? तुम कितना ही पीछा छुड़ाओ, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

अम्मां चौंक कर अपनी बहू की बौखलाहट देखती रह गईं, फिर बोलीं, ‘‘क्या पागल हो गई है बहू?’’ ‘‘पागल ही हो जाऊं अम्मां, तब भी तो ठीक है,’’ कहते हुए बिलख कर रो पड़ी सुधा और फिर कहने लगी, ‘‘पागल हो कर तो इन्हें अपने प्यार का एहसास कराना आसान होगा. किसी तरह से रो कर, गा कर और नाचनाच कर इन्हें अपने जाल में फंसा ही लूंगी. कम से कम मेरा समझदार होना तो आड़े नहीं आएगा,’’ कहतेकहते सुधा का गला भर आया. सूरज आज अपनी बीवी का नया रूप देख रहा था. अब गिलेशिकवे मिटाने की फुरसत किसे थी? सुधा पति के आने की खुशियां मनाने में जुट गई. अम्मां भी अपना सारा दर्द समेट कर फिर अपने बच्चों से प्यार करने के सपने संजोने लगी थीं.

Box Office : इतिहास का कारोबार – फिल्म ‘छावा’ का बज रहा डंका

Box Office : सिनेमा हौल में पीरियड फिल्म ‘छावा’ खूब चल रही है. फिल्म में दर्शाए दृश्य दर्शकों को उकसा और भ्रमित कर रहे हैं.

फरवरी माह का दूसरा सप्ताह बौलीवुड के लिए खुशियां ही खुशियां ले कर आया. फरवरी माह के दूसरे सप्ताह यानी 14 फरवरी को दिनेश विजन निर्मित और लक्ष्मण उतेकर निर्देशित फिल्म ‘छावा’ रिलीज हुई. जिसे बौक्स औफिस पर ठीकठाक सफलता मिली. फिल्म ‘छावा’ छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज की बायोपिक फिल्म है. जिन्हें मराठा साम्राज्य का दूसरा छत्रपति माना जाता है.

पूरे महाराष्ट्र और मराठा समुदाय में तो संभाजी की भगवान की तरह पूजा की जाती है. अब तक छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज पर मराठी भाषा में कुछ फिल्में व कुछ टीवी सीरियल प्रसारित हो चुके हैं. लेकिन मराठी भाषियों के लिए यह गर्व की बात रही कि उन के भगवान की कहानी को बौलीवुड ने हिंदी में फिल्म बना कर पूरे देश तक पहुंचा दिया. इस फिल्म को प्रचारित करने में महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, एम पी अमाले कोल्हे, मनसे नेता राज ठाकरे सहित कई नेताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. जो इतिहास के पुनर्लेखन के सिलसिले का हिस्सा है.

लक्ष्मण उतेकर ने ‘छावा’ में कई गलतियां की, आधाअधूरा इतिहास परोसा, मगर मुगल शासक औरंगजेब ने छल से संभाजी को गिरफ्तार कर 40 दिन तक जिस तरह से दुखदाई यातनाएं दी थीं, फिल्म के निर्देशक ने सिर्फ इसी हिस्से को बहुत विभत्स तरीके से 40 मिनट तक फिल्माकर लोगों के अंदर इस भावना को जगाने में कामयाब रहे कि मुगलों ने किस तरह उन के राजा, उन के भगवान को यातना दी थी लेकिन कोई आठ सौ सालों बाद सच और झूठ को भी पूरे दावे से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता.

इसी वजह से इस फिल्म ने निर्माताओं के अनुसार 7 दिन में 242 करोड़ रूपए बौक्स आफिस पर एकत्र कर लिए हैं. 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के निमित्त पूरे महाराष्ट्र में सार्वजनिक छुट्टी के साथ ही शिवाजी जयंती पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. जिस के चलते केवल 19 फरवरी को ‘छावा’ ने बौक्स औफिस पर 36 करोड़ रूपए एकत्र किए, ऐसा दावा निर्माता की तरफ से किया गया.

उधर देवेंद्र फड़नवीस ने विक्कीपीडिया को नोटिस भेज कर संभाजी पर दी गई गलत जानकारी को हटाने के लिए कहा है. वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने ‘छावा ’को टैक्स फ्री कर दिया है.

जिन फिल्म आलोचकों ने ‘छावा’ की समीक्षा करते हुए सही तथ्य देते हुए फिल्म को घटिया बताया था, उन्हें ट्रोल आर्मी ने कई तरह की धमकियां दी. उन्हें औरंगजेब की छठी या सातवीं औलाद की भी संज्ञा दी. संभाजी पर किताबें व उपन्यास लिख चुके इतिहासकार इस फिल्म को ले कर प्रतिक्रिया देने की बजाय मौन साधे हुए हैं. उन की खामोशी एक तरह से सामने आक्रामक तेवर लिए खड़ी भगवा गैंग के सामने एक मजबूरी सी लगती है.

संभाजी वीर थे. इस में कोई शक नहीं. उन्हें मुगल शासक औरंगजेब ने कठिन यातना दी और उन पर धर्म बदलने का भी दबाव बनाया, मुमकन है ऐसा न भी हो क्योंकि इस के कोई उपलब्ध एतिहासिक प्रमाण नहीं लेकिन कल्पनाओं को प्रमाणों की तरह परोसना भी एक फिल्मकार की खूबी होती है जिस से वे सच लगने लगती हैं. ठीक वैसे ही जैसे इन दिनों हर पौराणिक किस्सा पूरे अधिकार और आत्मविश्वास से सच और वास्तविक कहकर प्रकाशित प्रसारित किया जा रहा है.

फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर ने जिस तरह से ‘छावा’ में कथा बयां की है, उस पर यदि हर दर्शक बिना इमोशनल हुए सोचेगा तो शायद उसे एहसास हो कि लक्ष्मण उतेकर ने संभाजी महाराज का कितना सम्मान या कितना अपमान किया है. हम उम्मीद करते हैं कि संभाजी की वीरता के कथित इतिहास को सामने लाने का प्रयास दूसरे फिल्मकार भी करेंगे. लेकिन उपलब्ध सभी एतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों का उपयोग करेंगे.

Women Safety : घर में ही सब से ज्यादा असुरक्षित हैं औरतें

Women Safety : संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से बताती है कि महिलाओं के लिए घर ही सब से असुरक्षित स्थान बन चुका है. इस असुरक्षा का समाधान समाज और सरकार की ओर से समग्र दृष्टिकोण अपनाने से ही संभव हो सकता है.

6 अगस्त, 2024 को नोएडा के सैक्टर 39 की पुलिस ने 16 वर्ष की एक किशोरी से बलात्कार कर उसे गर्भवती बनाने वाले उस के मामा को गिरफ्तार कर जेल भेजा. मामा ने अपनी ही भांजी का अपहरण कर उस के साथ बलात्कार किया था. पुलिस ने लड़की को बरामद कर जब उस का मैडिकल कराया तो पता चला कि वह गर्भवती है. लड़की 30 जून से लापता थी जिस की गुमशुदगी की एफआईआर उस के मातापिता ने थाने में दर्ज करवाई थी.

28 अगस्त, 2024 की खबर है कि सहारनपुर में मामा अपनी भांजी को नौकरी दिलाने के नाम पर अपने साथ ले गया. इस के बाद युवती से दुष्कर्म करता रहा. इस बात का पता युवती के गर्भवती होने पर चला. अदालत के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया. एफटीसी कोर्ट ने कसबा नानौता क्षेत्र के गांव छछरौली निवासी इंतजार उर्फ बाबू को 10 साल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते हुए अदालत ने 50 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया है.

11 नवंबर, 2024 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक नाबालिग भाई ने अपनी छोटी बहन की इसलिए हत्या कर डाली क्योंकि उस ने बहन को पड़ोसी लड़के के साथ बात करते हुए देख लिया था. आरोपी अपनी 14 वर्षीया बहन से इस कदर नाराज हुआ कि उस ने पास में ही पड़े त्रिशूल से अपनी बहन पर कई बार हमला कर डाला. उसे बुरी तरह से घायल कर खून से लथपथ हालत में छोड़ कर वह जंगल की ओर फरार हो गया. पड़ोस में रहने वाले लोग लड़की को ठेले में लिटा कर अस्पताल पहुंचे, जहां से उसे मैडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. लेकिन इलाज के दौरान ही लड़की ने दम तोड़ दिया.

18 नवंबर, 2022 को दिल्ली से आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रैस वे पर सड़क के किनारे एक लाल रंग का ट्रौली बैग पड़ा था. पुलिस ने आ कर जब बैग खोला तो अंदर एक युवती की लाश थी. युवती की उम्र 21 साल थी. बाद में पता चला कि उस का नाम आयुषी था. छानबीन में केस औनर किलिंग का निकला. आयुषी की हत्या उस के ही पिता ने की थी क्योंकि आयुषी ने अपनी मरजी से शादी कर ली थी, जो घर वालों को मंजूर न थी.

ये महज कुछ बानगियां हैं. इस तरह की खबरों से अखबारों के पन्ने हर दिन रंगे रहते हैं. घर की चारदीवारी में अपने ही लोगों के हाथों मौत, बलात्कार, हिंसा, प्रताड़ना का दंश औरत को सदियों से दिया जा रहा है. औरत को अपने घर में अपने करीबी लोगों से जान और इज्जत का जितना खतरा है, उतना घर से बाहर नहीं है. देवियों का देश कहलाने वाले भारत में देवियां सदियों से मां, बाप और करीबी रिश्तेदारों के हाथों कहीं मौत के मुंह में धकेली जा रही हैं तो कहीं उन की इज्जत लूटी जा रही है.

सदियों से होता आया है अत्याचार

औरत के साथ जानवरों जैसा व्यवहार कोई आज का नहीं है, यह अत्याचार सदियों पुराना है. पहले 7-8 साल की अल्पायु में उस का जबरन विवाह कर उसे बलात्कार की आग में झोंक दिया जाता था. किशोरावस्था तक आतेआते वह एकदो बच्चों की मां बन जाती थी. फिर लगातार बच्चे पैदा होते थे और उस की सेहत तेजी से गिरती जाती थी. वह अपनी पूरी जवानी भी नहीं देख पाती थी और अनेक रोगों से ग्रस्त हो प्राण त्याग देती थी.

सतीप्रथा के जरिए औरत को जबरन मौत के घाट उतार दिया जाता था. पति की मौत के बाद उस के ससुराल वाले जबरन उस का शृंगार कर के, भांग या मदिरा के नशे में मदहोश कर के और हाथपैर बांध कर उस को पति की जलती चिता में झोंक देते थे और उस के बाद सती के नाम से उस हृदयविदारक अपराध का महिमामंडन किया जाता था.

आज हर रोज भारत में 17 से 20 औरतें दहेज के कारण मौत के घाट उतार दी जाती हैं. कितने ही मामले रजिस्टर्ड भी नहीं होते, औरतें घर के भीतर ही दफना दी जाती हैं.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया में 5 हजार लड़कियां औनर किलिंग का शिकार होती हैं और इन 5 हजार में से एक हजार लड़कियां भारतीय होती हैं. यानी औनर किलिंग का शिकार होने वाली हर 5 में से 1 लड़की भारत की होती है.

आंकड़े कभी झूठ नहीं कहते. वे तो हमें आईना दिखाते हैं. देशदुनिया में जो घट रहा है उस की वे बानगी बयां करते हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की 2 एजेंसियों यूएन वूमन और यूएन औफिस औफ ड्रग्स एंड क्राइम द्वारा जारी रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए उन का घर सब से घातक स्थान है, वह चाहे उन का मायका हो या ससुराल. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष प्रतिदिन औसतन 140 महिलाओं एवं लड़कियों की हत्या उन के घरों में ही उन के पति, अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई.

यह रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 के दौरान लगभग 51,100 महिलाओं और लड़कियों की मौत के लिए उन के अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य जिम्मेदार रहे.

2022 में यह आंकड़ा अनुमानित तौर पर 48,800 था. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि हत्याओं में बढ़ोतरी के कारण नहीं बल्कि मुख्य रूप से विभिन्न देशों से अधिक आंकड़े उपलब्ध होने के कारण है. दोनों एजेंसियों ने इस बात पर जोर दिया कि हर जगह महिलाएं और लड़कियां लिंग आधारित हिंसा के इस चरम रूप से प्रभावित हो रही हैं और कोई भी क्षेत्र इस से अछूता नहीं है. घर महिलाओं और लड़कियों के लिए सब से खतरनाक जगह है.

बढ़ता आंकड़ा

रिपोर्ट के अनुसार अंतरंग साथी और परिवार के सदस्यों द्वारा की गई हत्याओं के सब से अधिक मामले अफ्रीका में थे, जहां 2023 में लगभग 21,700 महिलाएं मारी गईं. अपनी आबादी के लिहाज से भी पीडि़तों की संख्या में अफ्रीका सब से आगे रहा. यहां प्रति एक लाख लोगों पर 2.9 पीडि़त थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष अमेरिका में यह दर काफी अधिक थी, जहां प्रति एक लाख में 1.6 महिलाएं पीडि़त थीं जबकि ओशिनिया में यह दर प्रति एक लाख पर 1.5 थी. एशिया में यह दर काफी कम थी. यहां प्रति एक लाख पर 0.8 पीडि़त थीं जबकि यूरोप में यह दर प्रति एक लाख में 0.6 रही.

रिपोर्ट के अनुसार यूरोप और अमेरिका में महिलाओं की हत्या मुख्यतया उन के अंतरंग साथियों (पति, बौयफ्रैंड या लिवइन पार्टनर) द्वारा की जाती है. इस के विपरीत पुरुषों की हत्या की अधिकांश घटनाएं घरपरिवार से बाहर होती हैं.

भारत में महिलाओं को हिंसा और मौत से बचाने के लिए कई बार कानूनों में फेरबदल हुए मगर हालात आज भी जस के तस हैं. आज भी हर दिन करीब 86 रेप की घटनाएं रिपोर्ट होती हैं. इस से दोगुनी घटनाएं रिपोर्ट तक नहीं होतीं. भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में एक.

रेप के मामलों में 96 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं. रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा मिल पाती है, बाकी बरी हो जाते हैं.

केंद्र सरकार की एजेंसी नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सालभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख से ज्यादा अपराध दर्ज किए जाते हैं. इन अपराधों में सिर्फ रेप ही नहीं, बल्कि छेड़छाड़, दहेज हत्या, किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग, एसिड अटैक जैसे अपराध भी शामिल हैं.

एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज 345 लड़कियां गायब हो जाती हैं. इन में 170 लड़कियां किडनैप की जाती हैं, 172 लड़कियां लापता होती हैं और लगभग 3 लड़कियों की तस्करी कर दी जाती है. इन में से कुछ लड़कियां तो मिल जाती हैं लेकिन बड़ी संख्या में लापता, किडनैप और तस्करी की गई लड़कियों का पता नहीं चलता.

जुलाई 2023 में भारतीय गृह मंत्रालय की ओर से संसद में पेश की गई रिपोर्ट में लापता लड़कियों और महिलाओं का जो आंकड़ा दिया गया उस ने पूरे देश को चौंका दिया. रिपोर्ट में कहा गया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हो गईं. सरकार ने ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा प्राप्त किए. इस रिपोर्ट के अनुसार, गायब हुई महिलाओं और लड़कियों में 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां शामिल हैं.

राज्यों के अनुसार बात करें तो गायब होने वाली सब से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां मध्य प्रदेश की हैं. यहां 2019 से 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हो गईं. वहीं दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है. वहां 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां गायब हो गईं. जबकि, तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र है. वहां 2019 से 2021 के बीच 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हो गईं. इन तमाम लड़कियों को देह के धंधे में बेच दिया जाता है.

इस साल 62,946 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज किए गए हैं. इन लड़कियों में से कई को बचा लिया गया. हालांकि बड़ी संख्या ऐसी लड़कियों की है जिन के बारे में आज तक पता नहीं चला.

भारत सहित दुनियाभर में औरतें जुल्म का शिकार इसलिए होती हैं क्योंकि धर्म की आड़ ले कर पुरुष ने उन्हें सदियों से घर की चारदीवारी में कैद रखा हुआ है.

शारीरिक रूप से मजबूत बनाएं

जन्म लेने के बाद से ही लड़कियों को उन के कोमल होने का एहसास घुट्टी की तरह पिलाया जाता है. वह नाजुक है, कोमल है, सुंदर है, खुद को दुनिया की नजरों से छिपा कर रखना चाहिए, धीमेधीमे बात करनी चाहिए, तेज आवाज में हंसना नहीं चाहिए, धीमेधीमे सधे हुए कदमों से चलना चाहिए, मृदु स्वभाव रखना चाहिए, ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए, हमेशा दूसरों की सेवा करनी चाहिए आदिआदि बातें बचपन से ही इस तरह बताईसिखाई जाती हैं कि वे मानसिक रूप से खुद को बहुत कमजोर और बेबस मानने लगती हैं.

अपने घर में वे पुरुष यानी बाप, भाई, दादा और अन्य पुरुष सदस्यों के ऊपर हर प्रकार से निर्भर हो जाती हैं और यही लोग उन के दिमाग को अपने काबू में कर के उन का शोषण करते हैं, अपने इशारे पर चलाते हैं, उन के साथ हिंसा और बलात्कार करते हैं और उन की मरजी को जाने बिना उन्हें किसी अन्य मर्द की चाकरी करने के लिए ब्याह देते हैं.

यदि जन्म लेने के बाद लड़कियों को उसी तरह मजबूत बनाने का प्रयास होता जैसे कि लड़कों के लिए होता है तो आज वे पुरुष के हाथों हिंसा और मौत का शिकार न होतीं. अगर लड़की बचपन से तेज आवाज में बात करती, अपनी इच्छा जाहिर करती, तेज कदमों से चलती, घर से बाहर निकल कर उसी तरह सारे काम करती जैसे कोई लड़का करता है, अपने शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए अच्छा भोजन और व्यायाम करती तो उस की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत किसी की न होती.

मगर एक साजिश के जरिए धर्म को हथियार बना कर पुरुष ने औरत को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए औरत के जरिए औरत का विनाश किया है. आज भी यदि मांएं चेत जाएं और बेटों से ज्यादा बेटियों के शारीरिक, मानसिक व आर्थिक सुदृढ़ता की ओर ध्यान देने लगें, उन में बचपन से ही गलत के खिलाफ विद्रोह करने की ताकत भरें, उन्हें आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित करें तो कोई लड़की हिंसा, बलात्कार या मौत का शिकार न होगी.

मजबूत बनने की जरूरत

लड़कियों को सिखाना होगा कि उन्हें सुंदर नहीं, शक्तिशाली होना है. उन्हें पैसे के लिए बाप, भाई या पति के आगे हाथ नहीं फैलाना बल्कि खुद कमाना है, अपनी पसंद की वस्तुओं को पाने के लिए खुद प्रयास करने हैं, अपनी इच्छा से विवाह का फैसला लेना है और अपनी इच्छा से बच्चे पैदा करने हैं.

जिस प्रकार से दुनियाभर में औरतों के प्रति अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है, लड़कियों का घर से बाहर निकलना अब अतिआवश्यक है. वे घर से बाहर निकल कर ही सुरक्षित होंगी, आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, मुखर होंगी, साहसी व दबंग बनेंगी. दुनिया में ऐसा कोई भी काम नहीं है जो औरत न कर सके. औरत मानसिक रूप से पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मजबूत होती है. उस की सहनशक्ति भी पुरुषों के मुकाबले दोगुनी होती है. यदि वह शारीरिक रूप से भी मजबूत हो जाए तो उस के खिलाफ अपराध के ग्राफ में कमी आएगी.

यदि हम भारतीय समाज पर नजर डालें तो यहां निम्नवर्ग की महिलाएं, जो पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर खेतखलिहानों में हाड़तोड़ मेहनत करती है, हिंसा, बलात्कार या हत्या का शिकार बहुत कम होती हैं. इस की वजह यही है कि वे घर से बाहर निकल कर मर्द के समान मेहनत करती हैं, मर्द के समान पैसा कमाती हैं, शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं, मर्द अगर लड़ पड़े तो बराबर की टक्कर देती हैं.

मर्दों से मुकाबले के मामले में निम्नवर्ग में औरतों की हालत मध्य या उच्च वर्ग की औरतों से कहीं ज्यादा बेहतर है. मध्य या उच्च वर्ग की औरतें जो आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं, जेवरों, कपड़ों में ढकी घर की चारदीवारी में कैद रहती हैं और वे ही हिंसा, बलात्कार, दहेज हत्या, औनर किलिंग या हत्या की शिकार ज्यादा होती हैं.

वजह यह कि उन्हें कोमलांगी कह कर मानसिक रूप से ऐसा दिव्यांग बना दिया जाता है कि अपने खिलाफ होने वाली हिंसक गतिविधियों को वे औरत का धर्म सम झ कर सहती रहती हैं. वे उस का विरोध नहीं कर पातीं. किसी से अपनी व्यथा भी वे शेयर नहीं कर पातीं और एक दिन मौत की नींद सुला दी जाती हैं.

Surrogacy : औरत और कोख के बीच क्यों आए सरकार

Surrogacy : संतानहीन दंपतियों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में सरोगेसी प्रक्रिया बेहतर विकल्प है. लेकिन देश का सरोगेसी कानून कोख पर पहरा जैसा है. इस के कई बिंदुओं में सुधार किए जाने की बात देश का सर्वोत्तम न्यायालय भी कह रहा है.

समाज में अपनी कोख की संतान का बहुत महत्त्व होता है. जिन औरतों की कोख से संतान नहीं होती उन को समाज ‘बांझ’ कहता है. कुरीतियां तो यहां तक हैं कि सुबहसुबह बांझ औरत का मुंह देखना भी अशुभ माना जाता है. पितृसत्तात्मक समाज में ‘बांझ’ औरत को केवल ‘अधूरी औरत’ ही नहीं कहा जाता बल्कि तमाम शुभ और सामाजिक माने जाने वाले कामों से उस को दूर भी रखा जाता है.

ऊपरी तौर पर आज इस में सुधार दिखता है. जैसे ‘बांझ’ की जगह पर अब ‘नि:संतान’ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है. इस के बाद भी बांझ औरत के प्रति सामाजिक भेदभाव बना हुआ है. समाज ही नहीं, पति की नजरों में भी बांझ पत्नी के प्रति बदलाव आ जाता है. कई बार पति और उस का परिवार संतान न होने पर डाक्टर से इलाज कराने की जगह पर दूसरी शादी करना सही समझते हैं. असल में पौराणिक कहानियों में कई ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं जहां एक राजा की संतान न होने पर वह दूसरीतीसरी शादियां कर लेता था.

महाभारत और रामायण में इस तरह की कथाएं भरी पड़ी हैं. रामायण और महाभारत के दौर में सरोगेसी जैसे उपाय नहीं थे. अपनी संतान के लिए दूसरे तमाम उपाय किए जाते थे. अपनी संतान के प्रति मातापिता का अलग ही मोह होता है. कानून की बात करें तो वही संतान असल माने में उत्तराधिकारी होती है जो अपनी हो. किसी दूसरे की संतान या गोद लिए बच्चे को तभी उत्तराधिकारी माना जा सकता है जब उसे कानूनी रूप से उत्तराधिकारी घोषित किया जाए.

रामायण में राम का जन्म इसी तरह हुआ था. राजा दशरथ को पुत्र प्राप्त नहीं हो रहे थे. पुत्र के लिए उन्होंने 3 शादियां की थीं. इस के बाद भी तीनों रानियों में से किसी से संतान नहीं हुई. इस से दशरथ परेशान थे. उन्होंने अपनी परेशानी महर्षि वशिष्ठ को बताई. वशिष्ठ ने उन्हें श्रृंगी ऋषि के पास जाने को कहा. श्रृंगी ऋषि अपने यज्ञ और तपोबल के जरिए संतान भी दिला सकते थे. दशरथ उन से मिलने सिंहावा के महेंद्रगिरि पर्वत गए. वहां पहुंच कर उन्होंने उन्हें अपने आने के बारे में बताया. तब श्रृंगी ऋषि ने उन से पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराने को कहा.

दशरथ ने श्रृंगी ऋषि की बात मान कर उन से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की प्रार्थना की. दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या आए जहां उन्होंने पुत्रकामेष्टि यज्ञ संपन्न किया. श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ के बाद प्रसाद के रूप में खीर देते दशरथ से कहा, ‘यह खीर अपनी तीनों रानियों को खिला दीजिए.’ दशरथ ने वैसा ही किया. इस के बाद उन की तीनों रानियों ने राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया.

मनुस्मृति में है नियोग विधि का जिक्र

महाभारत में संतान प्राप्त करने के लिए नियोग विधि बताई गई है. उस समय नियोग विधि संतानप्राप्ति का एक तरीका था. हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य की पत्नियां अंबिका और अंबालिका थीं. उन से संतान नहीं हो रही थी. ऐसे में विचित्रवीर्य को पता चला कि नियोग विधि से उन की पत्नियों से संतान हो सकती है. विचित्रवीर्य के भाई वेदव्यास थे. वे नियोग विधि जानते थे. उन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों पत्नियों अंबिका, अंबालिका और उन की दासी के साथ नियोग क्रिया की. अंबिका ने नियोग के समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी और अंबालिका ने अपने पेट पर पीली मिट्टी का लेप लगा लिया था. उन की दासी ने कुछ नहीं किया था. आंखों पर पट्टी बांधने के कारण अंबिका से पैदा पुत्र धृतराष्ट्र जन्म से अंधे रहे. पेट पर पीली मिट्टी का लेप लगाने के कारण अंबालिका के पेट से पैदा पाण्डु जन्म से बीमार रहे. दासी से पैदा हुए विदुर हर तरह से सेहतमंद थे. ऋषि वेद व्यास इन के नियोग पिता थे.

मनुस्मृति में नियोग विधि से संतान प्राप्त करने का जिक्र है. इस के अनुसार, पति अगर संतान पैदा करने में असमर्थ होता था तो उस की पत्नी पति की इच्छा से किसी दूसरे योग्य पुरुष से नियोग द्वारा संतान पैदा कर सकती थी. अगर पति की असमय मृत्यु हो गई है तब भी उस की पत्नी संतान पैदा करने के लिए नियोग का सहारा ले सकती थी.

नियोग का पहला नियम यह था कि कोई भी महिला इस का पालन केवल संतान पैदा करने के लिए करेगी. इस का प्रयोग आनंद के लिए मना था. नियोग विधि में शरीर पर घी का लेप लगाया जाता था. जिस से पत्नी और नियोग करने वाले पुरुष के मन में सैक्स की इच्छा जाग्रत न हो. पुरुष अपने जीवनकाल में केवल 3 बार नियोग कर सकता था. पुरुष का उददेश्य केवल उस महिला को संतानप्राप्ति में सहयोग करने का होता था.

नियोगप्रथा से पैदा हुई संतान वैध मानी जाती थी. वह संतान कानूनी रूप से पतिपत्नी की मानी जाती थी, न कि नियोग करने वाले पुरुष की. नियोग करने वाला पुरुष उस संतान के पिता होने का अधिकार नहीं मांग सकता था. उस को आगे भविष्य में भी बच्चे से कोई रिश्ता रखने का अधिकार नहीं होता था. पौराणिक दौर में सरोगेसी प्रक्रिया नहीं थी. नियोग हो या यज्ञ, इन से मिली संतानें किस तरह से पैदा होती थीं, इस का कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है. लेकिन आज सरोगेसी में प्रामाणिक तथ्य है.

इस कानून को सरकार ने जिस तरह से बनाया है उस में खामियों को ले कर मसला सुप्रीम कोर्ट तक गया है. चेन्नई के डाक्टर अरुण मुथवेल और 14 दूसरे याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल की गईं सरोगेसी विनियमन अधिनियम और सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) अधिनियम 2021 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने केंद्र सरकार से लिखित जवाब दाखिल करने को कहा है.

सरोगेसी कानून पर सरकार का पहरा

भारत का सरोगेसी कानून नरेंद्र मोदी की सरकार के दौर में बना. यह सरकार पुराणों और पौराणिक कथाओं के बताए रास्ते पर चलती है. यह सरोगेसी कानून परोपकार की भावना पर आधारित है. इस में फल की इच्छा करने की मनाही है. गीता में यही कहा गया है.

पौराणिक कथाओं पर चलने वाली सरकार ने सरोगेसी कानून को परोपकार की भावना पर बना दिया है. परोपकार की यह भावना ही इस कानून को सीमित कर देती है. सरोगेसी का संबंध गर्भधारण करने वाली औरत, बच्चा चाहने वाली औरत या दंपती की कोख और डाक्टर के बीच का होता है. इस में सरकार को घुसने की जरूरत नहीं है.

सरकार यह क्यों बताए कि किस उम्र की महिलाएं सरोगेट मां बन सकती हैं. वह यह भी क्यों बता रही है कि सरोगेट मां करीबी जानपहचान की हो. वह यह भी क्यों बताए कि सरोगेट मां सिंगल या विधवा नहीं हो सकती? सरकार को यह तय करने का अधिकार क्यों है कि सरोगेट मां पैसे ले या नहीं? सरोगेसी में एक महिला कितनी बार मां बने, यह तय करने का अधिकार भी सरकार को क्यों होना चाहिए?

बच्चे को पैदा करने वाली कोख महिला की है. उसे ही यह अधिकार होना चाहिए कि वह कितने बच्चों की सरोगेट मां बनेगी. अगर कोई गरीब महिला इस काम के बदले पैसे लेती है तो सरकार बीच में क्यों आ रही है? इस के बारे में फैसला डाक्टर की सलाह पर मां को लेने का अधिकार होना चाहिए. यह औरत का निजी मामला और हक है कि वह क्या फैसला ले. इस कानून के जरिए सरकार ने औरतों की कोख पर पहरा बैठा दिया है. कोख को सरकार अपनी जागीर क्यों समझ रही है?

कोख पर नियंत्रण केवल महिला का होना चाहिए, चाहे बात बच्चे पैदा करने की हो या सरोगेट मां बनने की या फिर गर्भपात कराने की. इस में कानून का ही नहीं, घरपरिवार के किसी सदस्य का भी कोई दखल नहीं होना चाहिए. अगर कोई महिला सरोगेट मां बनने का फैसला लेती है तो उसे अपने पति, मातापिता या ससुराल वालों से पूछने की जरूरत नहीं होनी चाहिए. वहीं, उसे बच्चा नहीं चाहिए और वह गर्भपात कराना चाहती है तो किसी दूसरे की सहमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

सरकार को ऐसे घरेलू मामलों में नहीं पड़ना चाहिए. असल में मौजूदा सरकार को निजी जीवन में घुसने की आदत है. वह यह तय करती है कि आप का मकान किस तरह का होगा. उस में कितने कमरे होंगे, वह कितना ऊंचा होगा. इस के बाद उस ने तमाम ऐसे कानून बना दिए जो घर के अंदर तो छोडि़ए, बैडरूम के अंदर भी पहुंच गए हैं. वे यह तय करने लगे हैं कि बच्चे 3 अच्छे होते हैं या हम दो हमारे दो होने चाहिए या बच्चा एक ही अच्छा होना चाहिए. इस तरह के कानून बनाने वाले कई देशों में जनसंख्या कम होने लगी है. ऐेसे में वहां की सरकारें अपने देशवासियों से अब ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रही हैं. सरकार की मांग पर औरत कम या ज्यादा बच्चे क्यों पैदा करे?

सरोगेसी कानून में हो बदलाव

सरोगेसी कानून संतान प्राप्त करने के वैज्ञानिक रास्ते को आसान करने के बजाय कठिन करने वाला है. यह कानून औरत की कोख पर पहरा बैठाने वाला है. इस कानून में बदलाव होना चाहिए. सरोगेसी में सभी फैसले लेने का हक केवल महिला को होना चाहिए. उस में सरकारी दखल बंद होना चाहिए, जिस से समाज में पितृसत्तात्मक को खत्म किया जा सके. इस के लिए सरोगेसी को समझना होगा तब पता चलेगा कि सरकार ने कानून बना कर अपनी किस तरह की सोच को आगे बढ़ाने का कदम उठाया है.

आज के समय में 20 से 25 प्रतिशत दंपतियों को नि:संतानता की परेशानी से गुजरना पड़ रहा है. सरोगेसी कराने वाले बहुत सारे दंपती उलझन से दूर ही रहना चाहते हैं. यही नहीं, वे गोपनीयता भी चाहते हैं. इस वजह से वे अपने नजदीकी संबंधों वाली महिला को सरोगेट मां नहीं बनाना चाहते.

यहां कानून दंपतियों को मजबूर कर रहा है कि वे सरोगेट मां उसी को बनाएं जो नजदीकी रिश्तों वाली हो. ऐसे में सरोगेट विधि से संतान प्राप्त करना कठिन हो जाता है. कानून कहता है कि सरोगेट मां परोपकार करे. उसे कोई दूसरी आर्थिक मदद न दी जाए. सरोगेसी कानून का यह बिंदु गोपनीयता की चाहत के खिलाफ है.

बात केवल सरोगेसी कानून की ही नहीं है. गर्भधारण और गर्भपात जैसे मसलों में भी औरत की जगह उस के परिवार की सलाह ली जाती है. अगर कोई बालिग लड़की गर्भपात कराने के लिए किसी अस्पताल में जाती है तो उस के मातापिता, बहनभाई या परिवार के सदस्य की सहमति के बिना गर्भपात नहीं किया जाता. शादी के बाद महिला नसबंदी कराना चाहे तो पति की सहमति ली जाती है. इस में भी सरकार की साजिश है.

गर्भपात और सरोगेसी करने वाले के लिए अस्पताल का नियम है कि वे अपना रजिस्ट्रेशन कराएं. अगर बिना किसी रजिस्ट्रेशन कोई अस्पताल ऐसा करता है तो जिले के सीएमओ यानी मुख्य चिकित्सा अधिकारी को यह अधिकार है कि वे अस्पताल को सील कर दें.

कोख पर पहरा है कानून

सरोगेसी बिल 2019 में तैयार किया गया. इस को 2021 में लागू किया गया. इस कानून को सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के नाम से जाना जाता है. इस कानून में नैशनल सरोगेसी बोर्ड, स्टेट सरोगेसी बोर्ड का गठन भी किया गया. सरोगेसी की निगरानी करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति भी की गई. सरोगेसी कराने के लिए संतान चाहने वाले को इस बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती है.

यह कानून सिर्फ संतानहीन विवाहित दंपतियों को ही सरोगसी कराने का अधिकार देता है. जब कोई औरत किसी गंभीर बीमारी से गुजर रही हो, जिस की वजह से गर्भधारण करना मुश्किल हो रहा हो तो उस को ही सरोगेसी की इजाजत मिलती है. इस के लिए सरकारी बाबुओं के चक्कर लगाने पड़ेंगे. स्वास्थ्य विभाग का बाबू यह जांच करेगा कि सरोगेसी कराने में कपल्स का इस से कोई स्वार्थ न जुड़ा हो, बच्चों को बेचने, देह व्यापार या अन्य प्रकार के शोषण के लिए सरोगेसी न की जा रही हो.

जो महिला सरोगेट मदर बनने के लिए तैयार होगी उस की सेहत और सुरक्षा का ध्यान सरोगेसी की सुविधा लेने वाले को रखना होगा. इस में सरोगेसी में गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा में खर्चे और बीमा कवरेज के अलावा सरोगेट मां को किसी तरह का पैसा या मुआवजा नहीं दिया जाता. सरोगेट बनने वाली महिला के लिए भी कानून है जो यह तय करता है कि किस तरह की महिला सरोगेट मां बन सकती है.

सरोगेट बनने वाली मां की उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए. वह शादीशुदा होनी चाहिए और उस के पास अपने खुद के बच्चे भी होने चाहिए. इन सब के साथ उस महिला को एक मनोचिकित्सक से सर्टिफिकेट प्राप्त करना होगा, जिस में उसे मानसिक रूप से फिट होने के लिए प्रमाणित किया गया हो. कानून यह भी कहता है कि सरोगेट माता और दंपती को अपने आधार कार्ड को लिंक करना होगा. यह व्यवस्था में शामिल व्यक्तियों के बायोमैट्रिक्स का पता लगाने में मदद करेगा, जिस से धोखाधड़ी की गुंजाइश कम हो जाएगी.

सरोगेसी कानून गे कपल्स, सिंगल और समलैंगिक जोड़ों को बच्चे पैदा करने के लिए सरोगेसी का अधिकार नहीं देता. सरोगेट मां एक बार कौन्ट्रैक्ट करने के बाद गर्भावस्था से प्रसव तक की अवधि तक इस से इनकार नहीं कर सकती. उसे अपनी मरजी से गर्भ को खत्म करने का भी कानूनी अधिकार नहीं है. सरोगेट बच्चे का जन्म होने के बाद मातापिता बच्चे को लेने से मना नहीं कर सकते.

कानून कहता है कि सरोगेसी प्रोसैस में भ्रूण से मांबाप का रिश्ता होना जरूरी है. या तो पिता से हो, मां से या फिर दोनों से. इस का मतलब यह हुआ कि भ्रूण किसी और के होने की अनुमति नहीं है. अगर भारतीय जोड़ा देश के बाहर सरोगेट की सेवाओं का उपयोग करता है तो इस से पैदा होने वाले बच्चे को भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता नहीं दी जाएगी. सरोगेसी से जन्मे बच्चे 18 वर्ष के होने पर यह जानने के अधिकार का दावा कर सकते हैं कि वे सरोगेसी से पैदा हुए हैं. वे सरोगेट मां की पहचान का पता लगाने का भी अधिकार रखते हैं.

बौंबे हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सरोगेसी से होने वाले बच्चे पर फर्टिलाइज्ड एग डोनर का कानूनी अधिकार नहीं होता है. सरोगेसी या आईवीएफ ट्रीटमैंट से पैदा हुए बच्चे के पेरैंटल अधिकारों का दावा एग डोनर नहीं कर सकता. पहले यह मसला ठाणे की ट्रायल कोर्ट में गया था. वहां यह आदेश हो गया था कि डोनर बच्चे पर कानूनी अधिकार रखता है. बौंबे हाईकोर्ट ने ठाणे की अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया. उस में याचिकाकर्ता महिला को उस के जुड़वां बच्चों से मिलने से मना कर दिया गया था, क्योंकि वह उन की बायोलौजिकल मदर नहीं थी.

हाईकोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा एग या स्पर्म डोनेट करने से उसे सरोगेसी या इनविट्रो फर्टिलाइजेशन ट्रीटमैंट से पैदा हुए बच्चों पर मातापिता का अधिकार नहीं मिल सकता. हाईकोर्ट ने कहा कि सरोगेसी एक्ट के तहत जन्मे बच्चे के कानूनी मातापिता की पहचान पहले से निर्धारित होती है और डोनर का अधिकार केवल बायोलौजिकल आधार पर सीमित होता है.

अदालत ने फैसले में यह भी कहा कि सरोगेसी के मामले में कानूनी अधिकारों की रक्षा और स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए कानूनों का पालन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. यह फैसला सरोगेसी के कानूनी पहलुओं को समझने में एक अहम कदम है और इसे ले कर आने वाली कानूनी प्रक्रियाओं पर भी इस का प्रभाव पड़ेगा.

कानून में है खामियां

सरोगेसी अधिनियम की धारा 2 (1) कहती है कि सरोगेट मां बनने वाली महिला की उम्र 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए. कानून के मुताबिक मां बनने की चाहत रखने वाली महिला की उम्र 23 से 50 वर्ष और पिता बनने की चाहत रखने वाले पुरुष की आयु 26 से 55 वर्ष की होनी चाहिए. चेन्नई के डाक्टर अरुण मुथवेल ने यह बात सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी, तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा. इस की वजह यह है कि आयुसीमा के बाहर की महिलाओं को उन के अधिकार से रोका जा रहा है. जब शादी करने की उम्र लड़की के लिए 18 और लड़के के लिए 21 साल है तो सरोगेट मां और संतान चाहने वाली मां की उम्र बढ़ा कर क्यों रखी गई है. यह अधिकार स्वास्थ्य विभाग के बाबू को क्यों दिया गया है?

कोई भी बालिग, मां बनने योग्य महिला सरोगेट मां बन सकती है. कानून इस अधिकार को छीन नहीं सकता. मां बनने का फैसला महिला और डाक्टर का होना चाहिए. इसी तरह से सरोगेट मां बनने के लिए विवाह की शर्त भी ठीक नहीं है.

44 साल एक विदेशी कंपनी में काम करने वाली महिला ने याचिका में कहा कि सरोगेसी कानून सही नहीं है,. इस कानून के मुताबिक, सिर्फ 35 से 45 साल की विधवा या तलाकशुदा महिला ही सरोगेसी से मां बन सकती है. अविवाहित महिलाओं को यह अधिकार नहीं दिया गया है.

उक्त महिला ने कानून को गलत बताते हुए कहा कि यह भेदभावपूर्ण है. इस का कोई तर्कसंगत आधार नहीं है. ये पाबंदियां न केवल याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं बल्कि व्यक्ति के परिवार बनाने के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं. यह जीने के अधिकार के खिलाफ भी है.

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ए जौर्ज मसीह की बैंच ने कहा कि भारत में अकेली महिला का शादी के बाहर बच्चा पैदा करना आम नहीं है. इसलिए सरोगेसी कानून के तहत यह इजाजत नहीं दी जा सकती. देश में शादी की संस्था को बचाना जरूरी है. हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं जहां शादी के बाहर बच्चे पैदा होना आम है. आप हमें पुराने खयालों वाले कह सकते हैं, लेकिन देश में शादी की संस्था को बचाना जरूरी है. बच्चे की भलाई को देखते हुए हम इस बारे में सोच रहे हैं. यानी, सुप्रीम कोर्ट को भी संस्कृति की फिक्र है, औरतों के मौलिक अधिकारों की नहीं.

कोर्ट ने यह भी कहा कि शादी को नकारा नहीं जा सकता. 44 साल की उम्र में सरोगेट बच्चा पालना मुश्किल है. आप जिंदगी में सबकुछ नहीं पा सकते. हमें समाज और शादी की संस्था की भी चिंता है. हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं जहां कई बच्चे अपने मातापिता को नहीं जानते. हम नहीं चाहते कि हमारे देश में बच्चे बिना मातापिता के भटकें. विज्ञान भले ही बहुत तरक्की कर गया है लेकिन समाज के नियम नहीं बदले हैं. कुछ खास कारणों से ऐसा होना भी जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट की यह राय न तो नैतिक है न व्यावहारिक. जब विज्ञान एक सुविधा दे रहा है तो उसे अपनाया जाना चाहिए, जैसे एरोप्लेन को अपनाया जा रहा है.

विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं को भी सरोगेट मां बनने का अधिकार होना चाहिए. इस कानून में इन को मां बनने का अधिकार नहीं दिया गया है. सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए अविवाहित महिलाओं, एकल पुरुषों, लिवइन पार्टनर्स और समान लिंग वाले युग्मों को बाहर रखा गया है. यह सही नहीं है. यह वैवाहिक स्थिति, लिंग एवं यौन रुझान के आधार पर भेदभाव है और उन्हें अपनी इच्छा का परिवार बनाने के अधिकार से वंचित करता है.

सरोगेसी कानून अकेली महिला (विधवा या तलाकशुदा) को सरोगेसी के लिए खुद के डिंब अंडाणु का उपयोग करने के लिए मजबूर करता है. कई मामलों में महिला की उम्र अधिक होती है. इस स्थिति में उस के खुद के युग्मों का उपयोग चिकित्सकीय रूप से अनुचित है. ऐसे में उसे यह अधिकार होना चाहिए कि वह दूसरी फीमेल युग्मों के लिए किसी डोनर की सहायता ले सके.

सरोगेसी कानून में गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज के अतिरिक्त सरोगेट मां के लिए किसी आर्थिक मुआवजे को शामिल नहीं किया गया है. यह सही नहीं है. सरोगेट मां को लाभ मिलना ही चाहिए. वह अपनी कोख में 9 माह बच्चे को पालती है, तमाम तरह के कष्ट सहती है, बच्चे से दूर होने का मानसिक कष्ट भी होता है. ऐसे में किसी तरह का लाभ न मिलना उचित नहीं है.

इस मसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने तर्क रखे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरोगेट बनने वाली मां के हितों की रक्षा भी जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर पाबंदी होने के बावजूद सरोगेट मां का शोषण न हो, इस के लिए मजबूत सिस्टम बनाने की जरूरत है. इस के लिए एक डाटाबेस होना चाहिए जिस से सरोगेट मां के बारे में जानकारी रहे. इस का गलत इस्तेमाल न हो. कोर्ट ने कहा कि सरोगेट मां को मुआवजा देने के लिए वैकल्पिक तरीके भी हो सकते हैं. एक विशेष जिम्मेदार अधिकारी द्वारा भुगतान के सिस्टम को कंट्रोल किया जाए.

जब कानून देह के धंधे को मना नहीं करता तो सरोगेट मां पर यह प्रतिबंध ठीक नहीं कि वह सरोगेट बनने के एवज में लाभ न ले. औरत का शरीर उस का अपना है. इस पर उस को अधिकार होना चाहिए. पितृसत्तात्मकता के चलते महिलाओं को उन के कार्य का कोई आर्थिक मूल्य नहीं मिलता. यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन के लिए महिलाओं के मौलिक अधिकारों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है. एक व्यक्ति बुद्धि और तार्किक शक्ति को अपने क्लाइंट को ‘बेचता’ है और सुप्रीम कोर्ट में बहस के पैसे लेता है. उसी तरह एक औरत अपनी कोख को दूसरे के बच्चों के लिए इस्तेमाल करे और पैसे ले तो क्या आफत आ जाएगी?

भारत का सरोगेसी कानून कहता है कि मां का आनुवंशिक रूप से बच्चे की तलाश करने वाले पतिपत्नी के साथ कोई संबंध या जानपहचान होनी चाहिए. यह भी ठीक नहीं है. जानपहचान के अलावा भी सरोगेट मां बनने का अधिकार औरत को होना चाहिए. परोपकारी सरोगेसी इच्छुक दंपती के लिए सरोगेट मां चुनने के विकल्प को भी सीमित कर देती है क्योंकि बहुत ही सीमित रिश्तेदार इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए तैयार होंगे.

परोपकारी सरोगेसी में सरोगेट मां के रूप में कोई दोस्त अथवा रिश्तेदार न केवल भावी मातापिता के लिए बल्कि सरोगेट बच्चे के लिए भी भावनात्मक परेशानियां खड़ी कर सकता है क्योंकि सरोगेसी की अवधि और जन्म के बाद बच्चे से उन के रिश्ते को ले कर समस्याएं हो सकती हैं. ऐसे में इस को शुद्ध रूप से व्यावसायिक रखना चाहिए, परोपकारी कानून उचित नहीं है.

परोपकारी सरोगेसी कानून में किसी तीसरे पक्ष की भागीदारी नहीं होती. जबकि तीसरे पक्ष की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि इच्छित युगल सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान चिकित्सा और अन्य विविध खर्चों को वहन करेगा तथा उस का समर्थन करेगा. तीसरा पक्ष इच्छित युगल और सरोगेट मां दोनों को जटिल प्रक्रिया से गुजरने में मदद करता है, जो परोपकारी सरोगेसी के मामले में संभव नहीं. सरोगेसी में आईवीएफ का अपना योगदान होता है. इस के जरिए ही सरोगेसी को किया जाता है.

आगे का अंश बौक्‍स के बाद 

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सरोगेसी कानून में खामियां

1. सिंगल पेरैंट्स, लिवइन में रहने वाले जोड़ों या समलैंगिक लोगों को सरोगेसी कराने की अनुमति नहीं है.

2. तलाकशुदा या विधवा महिलाओं को अपने अंडाणु के इस्तेमाल का अधिकार नहीं है.

3.सरोगेट मां को आर्थिक लाभ देने या किराए पर गर्भधारण करने की अनुमति नहीं है.

4. सरोगेट मां को कम से कम एक बार गर्भधारण और प्रसव होना चाहिए, कानून की यह शर्त गलत है.

5. सरोगेट मां को मनोचिकित्सक से सर्टिफिकेट लेना होता है, जो निरर्थक है.

6. सरोगेट मां को केवल मैडिकल खर्च और बीमा की रकम ही दी जाए. यह काफी कम है.

7. सरोगेट मां को एकतरफा गर्भावस्था को समाप्त करने का अधिकार है. यह अनुबंध के खिलाफ है और दंपती के लिए भी भावनात्मक भय पैदा करता है.

8. सरोगेसी करने वाले अस्पताल को भी अपना रजिस्ट्रेशन कराना होता है. इस रजिस्ट्रेशन के नाम पर सरकार अस्पतालों में पैदा होने वाले बच्चों पर बाबूशाही की नजर बना लेती है.
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क्या है आईवीएफ

आईवीएफ को बांझपन दूर करने का सब से कारगर इलाज माना जाता है. 1978 में आईवीएफ तकनीक का आविष्कार ब्लौक ट्यूब में गर्भधारण करवाने के लिए किया गया था. समय के साथ इस में नएनए आविष्कार होते गए. अब यह तकनीक नि:संतानता संबंधी समस्याओं को दूर करने का सब से कारगर उपाय है. आईवीएफ को ‘इनविट्रो फर्टिलाइजेशन’ कहते हैं. आम बोलचाल में टैस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं. यह प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में विफल दंपतियों के लिए गर्भधारण का सफल माध्यम बन गया है.

आईवीएफ में महिला के शरीर में होने वाली निषेचन की प्रक्रिया यानी महिला के अंडे व पुरुष के शुक्राणु का मिलन औरत के शरीर के बाहर लैब में किया जाता है. लैब में बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है. इस में टैस्ट ट्यूब का प्रयोग होता है. इस कारण ही यह टैस्ट ट्यूब बेबी कहलाता है. प्राकृतिक रूप से महिला की ओवरी में हर महीने अंडे तो ज्यादा बनते हैं लेकिन हर महीने एक ही अंडा बड़ा होता है जबकि आईवीएफ प्रोसीजर में सभी अंडे बड़े करने के लिए महिला को दवाइयां और इंजैक्शन दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान अंडों के विकास को देखने के लिए अल्ट्रासाउंड के माध्यम से महिला की जांच की जाती है. आईवीएफ प्रक्रिया में सामान्य से ज्यादा अंडे इसलिए बनाए जाते हैं ताकि उन से ज्यादा भ्रूण बनाए जा सकें.

अंडे बनने और परिपक्व होने के बाद अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सूई की मदद से अंडे टैस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जिन्हें लैब में रख दिया जाता है. अंडे निकालने के कुछ घंटों बाद महिला अपने घर जा सकती है. महिला के अंडे निषेचित करवाने के लिए मेल पार्टनर के सीमन का सैंपल ले कर अच्छे शुक्राणु अलग किए जाते हैं. लैब में महिला के अंडों के सामने पुरुष के शुक्राणुओं को छोड़ा जाता है. शुक्राणु अंडे में प्रवेश कर जाता है और फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है.

आईवीएफ में महिला की ट्यूब में होने वाले काम को लैब में किया जाता है. आईवीएफ महिला निसंतानता की समस्याओं में लाभदायक होने के साथसाथ पुरुष, जिन के शुक्राणुओं की मात्रा 5 से 10 मिलियन प्रति एमएल है, के लिए भी फायदेमंद है. डाक्टर एम्ब्रियोलौजिस्ट इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं. 2-3 दिनों बाद यह अंडा 6 से 8 सेल के भ्रूण में बदल जाता है. एम्ब्रियोलौजिस्ट इन भ्रूणों में से अच्छे 1-2 भ्रूणों को महिला की ओवरी में डालने के लिए रख लेते हैं. कई मरीजों में भ्रूणों को 5-6 दिन लैब में विकसित कर के ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है, उस के बाद उस को ओवरी में डाला जाता है. इस में सफलता की संभावना ज्यादा होती है.

आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से बने भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1-2 अच्छे भ्रूण का एम्ब्रियोलौजिस्ट चयन करते हैं और उन्हें भ्रूण ट्रांसफर कैथेटर में लेते हैं. डाक्टर एक पतली नली के जरिए भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में डालते हैं. भ्रूण स्थानांतरण की प्रक्रिया में दर्द नहीं होता. महिला को बैडरैस्ट की जरूरत नहीं होती. भ्रूण ट्रांसफर के बाद सारी प्रक्रिया प्राकृतिक गर्भधारण के समान ही होती है. भ्रूण जन्म तक मां के गर्भ में ही बड़ा होता है.

सरोगेसी में पतिपत्नी के भ्रूण को एक दूसरी महिला की कोख में डाल देते हैं. कई बार पत्नी की कोख इस तरह की होती है जिस से वह 9 माह तक पेट में बच्चे को पालने में सक्षम नहीं होती. ऐसे में वह दूसरी कोख में पलता है. यह जिस महिला की कोख में पलता है उसे ही सरोगेट मदर कहते हैं. इस को ले कर ही सरकार ने जो सरोगेट कानून बनाया उस में तमाम खामियां हैं. यह कानून कोख पर पहरा बैठाने वाला है.

क्या होती है आईयूआई

संतानहीनता को दूर करने में आईयूआई प्रक्रिया से भी उपचार किया जाता है. आईयूआई का मतलब इंट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन है. यह एक ऐसी टैकनीक है जिस से निसंतान दंपती को संतानप्राप्ति कराई जाती है. इस में एक पतली नली की सहायता से धुले हुए शुक्राणुओं को बच्चेदानी के मुंह द्वारा बच्चेदानी के अंदर डाला जाता है. इलाज के पहले कुछ जांचें की जाती हैं. पहली जांच टीवीसी या ट्रांस वैजाइनल सोनोग्राफी की होती है. इस में अंडेदानी के अंदर अंडों की संख्या, क्वालिटी और ग्रोथ देखते हैं.

इस में एंडोमेट्रियम मतलब बच्चेदानी की परत को देखते हैं. इस से पता चलता है कि उस में ग्रोथ पैटर्न या रक्त का बहाव कैसा है. बच्चेदानी की नली, जिसे फैलोपियन ट्यूब कहते हैं, को देखा जाता है. हर महिला में 2 फैलोपियन ट्यूबें होती हैं. अगर एक फैलोपियन भी काम कर रही है तो इलाज हो जाता है. दूसरा टैस्ट ह्यस्टेरो सालपिंगोग्राम नामक होता है. इस में बच्चेदानी में देखा जाता है कि ट्यूबें खुली हैं या नहीं. इस को सामान्यतया माहवारी के 8-10 दिन के दौरान किया जाता है. तीसरा, शुक्राणु की जांच का होता है. इस में शुक्राणु की संख्या और गतिशीलता देखी जाती है.

आईयूआई में इलाज के लिए जब महिला को बुलाया जाता है तो पुरुषों से 3 से 7 दिन का परहेज होना चाहिए. इस का मतलब यह होता है कि महिला को सैक्स संबंध नहीं बनाने हैं. क्लीनिक में यह सैंपल एक स्टेरायल बोतल में लिया जाता है. सैंपल को तैयार होने में करीब 1 घंटे 30 मिनट लगते हैं. वाश किए हुए शुक्राणु 24-82 घंटे तक जीवित रहते हैं. लेकिन उन की निषेचन की क्षमता 12-24 घंटे बाद खत्म हो जाती है. अंडा औव्युलेशन के बाद करीब 24 घंटे तक जीवित रहता है.

आईयूआई के कारण सामान्यतया ब्लीडिंग नहीं होती लेकिन औव्युलेशन की वजह से थोड़ी ब्लीडिंग हो सकती है. यह एक दर्दरहित प्रक्रिया है लेकिन औव्युलेशन के कारण थोड़ा पेट में मरोड़ हो सकता है. औव्युलेशन के 6-12 दिन बाद भ्रूण आ कर बच्चेदानी में चिपकता है. अगर दवा खा कर आईयूआई करा रहे हैं तो 1-2 बार इस को कर सकते हैं. उस के बाद 3-4 बार इंजैक्शन ले कर आईयूआई करा सकते हैं. जिन दंपतियों में शुक्राणुओं की संख्या बिलकुल नहीं होती उन में यह नहीं हो सकता है. उन में डोनर के सहारे बच्चा मिल सकता है. जिन महिलाओं की दोनों फैलोपियन ट्यूबें खराब होती हैं और जिन में एकदम अंडे नहीं बनते हैं वे भी इस विधि से बच्चे हासिल नहीं कर पाते हैं. तब उन को सरोगेसी की तरफ जाना होता है. सरोगेसी संतानप्राप्ति का सब से अच्छा विकल्प है.

संतान प्राप्त करने में बच्चा गोद लेने की भी अपनी एक प्रक्रिया है. इस में दूसरे का बच्चा गोद लेना होता है. ऐसे में इस के साथ भावनात्मक लगाव अपनी कोख से पैदा हुई संतान जैसा नहीं होता. इस के अलावा अपनी पसंद का और देख कर बच्चा नहीं मिलता. बच्चा गोद लेने की लंबी प्रक्रिया होती है. इस में बहुत अड़ंगे होते हैं. इस को संतानहीनता के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाता है. बच्चा गोद लेते समय उस की एक तय उम्र होती है, जिस से कई बार उस के स्वभाव में बदलाव नहीं होता है.

सरोगेसी संतान प्राप्त करने का सब से आसान जरिया है. इस में कानून के पेंच कम से कम होने चाहिए जिस से 20 से 25 प्रतिशत की जनता जो संतानहीनता के दौर से गुजर रही है उसे लाभ मिल सके. वह अपना बच्चा, अपनी कोख से पैदा हुए बच्चे का सुख हासिल कर सके.

 

Bollywood : मुफ्त में मनोरंजन अफीम की लत या सिनेमा की फजीहत

Bollywood की अधिकतर फिल्में बौक्सऔफिस पर लगातार असफल हो रही हैं. ऐसा क्यों हो रहा है, इस पर विचार करने की जगह यह इंडस्ट्री चुनावी नेताओं की तरह बीचबीच में फ्रीबीज की घोषणा कर देती है. इस से हालात क्या सुधर सकते हैं?

पिछले दोतीन वर्षों के अंतराल में बौलीवुड यानी कि हिंदी भाषा की एक भी फिल्म अपनी लागत या यों कहें कि अपनी लागत का 50 प्रतिशत भी बौक्सऔफिस पर नहीं जुटा पाई. पिछले 2 वर्षों के अंतराल में प्रदर्शित 80 प्रतिशत फिल्में अपनी लागत का 2 प्रतिशत भी बौक्सऔफिस से एकत्र नहीं कर पाईं. मजेदार आंकड़ा यह भी है कि केवल 2024 में तथाकथित राष्ट्रवादी सिनेमामेकरों ने 155 फिल्में बनाईं, इन में से एक भी फिल्म ऐसी नहीं रही जिस ने बौक्सऔफिस पर अपनी लागत का 2 प्रतिशत भी एकत्र किया हो. यानी कि पूरा नुकसान. इस के बावजूद इन फिल्ममेकरों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. ये गदगद हैं कि इन्होंने राष्ट्रभक्ति की, राष्ट्रवाद और हिंदू सनातन धर्म का परचम लहराया.

मतलब यह है कि हिंदी की फिल्म देखने के लिए दर्शक सिनेमाघर जाना ही नहीं चाहता. दर्शक को अच्छी कहानी व अच्छा मनोरंजन चाहिए. तभी तो तेलुगू व कन्नड़ भाषा की फिल्में हिंदी में डब हो कर अनापशनाप धन कमा रही हैं. फिर चाहे वह ‘केजीएफ 2’ हो या ‘कंतारा’ या ‘पुष्पा 2 : द रूल’ ही क्यों न हों.

लुभावनी स्कीम्स

पिछले 2 वर्षों में दशकों को सिनेमाघर के अंदर खींचने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते रहे हैं. दर्शकों को सिनेमाघर तक लाने के लिए ‘सिनेमा लवर्स डे’ के नाम पर एक दिन रखा गया, जिस दिन सभी मल्टीप्लैक्स में टिकट दर केवल 99 रुपए होती है. पहले साल में सिर्फ एक दिन के लिए तय किया गया था पर 2024 में तो दोतीन बार ‘सिनेमा लवर्स डे’ मनाया गया. लेकिन 99 रुपए के टिकट पर भी लोग खराब फिल्में देखने सिनेमाघर नहीं पहुंचे.

2024 में तथाकथित राष्ट्रवादी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेने वाले अभिनेता अक्षय कुमार देशभक्ति व राष्ट्रवाद की बात करने तथा पिछली कांग्रेस सरकार को गलत साबित करने वाली फिल्म ‘सरफिरा’ ले कर आए थे. इस फिल्म को सुपरहिट बनाने के लिए पीवीआर की तरफ से गिफ्ट दिया गया तो वहीं कुछ मल्टीप्लैक्स ने हर टिकट पर पानी की बौटल व चाय मुफ्त में बांटी. इस के बावजूद, 150 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘सरफिरा’ बौक्सऔफिस पर महज 25 करोड़ रुपए ही एकत्रित कर पाई थी.

इसी तरह से छिटपुट घटनाएं 2024 में होती रहीं जबकि 5 दिसंबर, 2024 को हिंदी में डब हो कर रिलीज हुई तेलुगू फिल्म ‘पुष्पा 2 : द रूल’ देखने के लिए दर्शकों के बीच मारामारी हो गई. टिकट ब्लैक में बिके. यह तब हुआ जब ‘पुष्पा 2 : द रूल’ के निर्माताओं ने अपनी फिल्म के टिकट की दरें 3 से 5 गुना बढ़ा दी थीं.

वहीं 25 दिसंबर को वरुण धवन की फिल्म ‘बेबी जौन’ रिलीज हुई. 180 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘बेबी जौन’ बौक्सऔफिस पर 40 करोड़ रुपए भी एकत्रित नहीं कर सकी. हम यहां याद दिला दें कि फिल्म की लागत तब वसूल होती है जब फिल्म बौक्सऔफिस पर अपनी लागत का 3 गुना रकम एकत्र करे क्योंकि बौक्सऔफिस पर जो रकम एकत्रित होती है उस का मोटामोटा तीसरा हिस्सा ही निर्माता की जेब में आता है.

लेकिन 2025 की शुरुआत से राष्ट्रवादी फिल्मकारों ने कमर कस ली है कि वे सिनेमा को हमेशा के लिए खत्म कर के ही रहेंगे. इसी के चलते अब इन फिल्मकारों ने दर्शकों को अफीम की लत लगाना शुरू कर दिया है. यानी अब मुफ्त में मनोरंजन परोसा जा रहा है.

जबरन हिट कराने का फार्मूला

2025 में 3 जनवरी को कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई. 10 जनवरी को तेलुगू की हिंदी में डब हो कर रामचरण की फिल्म ‘गेम चेंजर’ रिलीज हुई, जिसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया. 10 जनवरी को ही देशभक्त व खुद को महान परोपकारी बताने वाले अभिनेता सोनू सूद की बतौर लेखक, निर्माता, निर्देशक व अभिनेता फिल्म ‘फतेह’ रिलीज हुई. सोनू सूद ने ऐलान किया था कि इस फिल्म से होने वाली कमाई को वे चैरिटी में देंगे. लेकिन पहले दिन यानी कि 10 जनवरी के दिन सोनू सूद की तरफ से टिकट दर 99 रुपए किए जाने का ऐेलान करते ही दर्शक उन की नीयत भांप गए.

अब दर्शक जागरूक हो गए हैं. उन्हें पता है कि सिनेमाघर मालिक अपना नुकसान नहीं करते. वे अपना पैसा तो निर्माता से पूरा वसूलेंगे. ऐसे में 99 रुपए के टिकट में से निर्माता की जेब में एक भी पैसा नहीं जाने वाला तो फिर उस की कमाई कैसे होगी और वह चैरिटी कैसे करेगा. मतलब सोनू सूद दर्शकों को मूर्ख समझ कर उन्हें टोपी पहनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं.

पहले दिन इस फिल्म ने बामुश्किल एक करोड़ रुपए ही बौक्सऔफिस पर एकत्रित किए तब सोनू सूद ने ऐलान किया कि अब हर दिन उन की फिल्म के टिकट की दर सिर्फ 99 रुपए ही रहेगी और हर टिकट खरीदने पर एक टिकट मुफ्त में मिलेगी. मतलब, एक टिकट का दाम हुआ 50 रुपए. फिर भी दर्शक ‘फतेह’ देखने नहीं गए. निर्माता के अनुसार 60 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘फतेह’ ने 21 दिन में बौक्सऔफिस पर महज 13 करोड़ रुपए एकत्रित किए.

17 जनवरी को एकसाथ 2 फिल्में रिलीज हुईं. एक भाजपा समर्थक देशभक्त अजय देवगन की फिल्म ‘आजाद’ तथा भाजपा सांसद कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजैंसी’. इस बार ‘सिनेमा लवर्स डे’ 17 जनवरी को ही मनाने का ऐलान कर टिकट की दरें केवल 99 रुपए कर दी गई. इस के बावजूद अजय देवगन की 150 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘आजाद’ बौक्सऔफिस पर 15 दिन में केवल 7 करोड़ रुपए ही एकत्रित कर पाई तो वहीं 80 करोड़ की लागत वाली कंगना रनौत की फिल्म ‘इमरजैंसी’ 15 दिनों में 17 करोड़ रुपए ही एकत्रित कर सकी.

मीडिया में कंगना पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने टिकट खरीदे, कौर्पोरेट बुकिंग की. वैसे जिन लोगों ने भी ‘इमरजैंसी’ देखी उन के लिए फायदे का सौदा यह रहा कि वे 3 घंटे एसी में शान से बैठ कर कोल्डड्रिंक पीते हुए पौपकौर्न खाते रहे. कंगना की तरफ से पीवीआर मल्टीप्लैक्स में ‘इमरजैंसी’ के हर टिकट के साथ एक कूपन दिया जा रहा था. इस कूपन पर दर्शक चाहे जितना पौपकौर्न और चाहे जितना कोल्डड्रिंक मुफ्त में ले सकता था.

पिछली बार ‘सरफिरा’ के समय मुफ्त में चीजें बंटवा चुके कथित राष्ट्रवादी अक्षय कुमार ने इस बार गणतंत्र दिवस के अवसर पर 24 जनवरी को रिलीज ‘स्काई फोर्स’ फिल्म के साथ जो कुछ किया उसे सिनेमा का हित चाहने वाले मान रहे हैं कि एक तरह से मरणासन्न भारतीय सिनेमा पर कील ठोंकने का ही काम किया गया है.

फिल्म ‘स्काई फोर्स’ का निर्माण तथाकथित राष्ट्रवादी मुकेश अंबानी की कंपनी जियो स्टूडियो और भाजपा समर्थक दिनेश विजन की कंपनी मैडोक फिल्म्स ने किया है. फिल्म में अक्षय कुमार और वीर पहाडि़या की मुख्य भूमिकाएं हैं. वीर पहाडि़या और मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी दो जान एक जिस्म हैं. वीर पहाडि़या के नाना महाराष्ट्र राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे हैं. वीर की मां फिल्म निर्माता और वीर के पिता मशहूर उद्योगपति संजय पहाडि़या हैं.

फ्लौप कलाकारों को ट्रैक पर लाने की कोशिश फिल्म ‘स्काई फोर्स’ 24 जनवरी को रिलीज होनी थी पर 22 जनवरी को एडवांस बुकिंग खुलने पर एक भी टिकट नहीं बिकी. तब 23 जनवरी को निर्माताओं की तरफ से विज्ञापन दे दिया गया कि सभी दर्शकों को सिनेमा का टिकट खरीदने पर 250 रुपए से 400 रुपए की छूट दी जाएगी. परिणामतया 400 रुपए तक की दर वाले टिकट हर दर्शक को मुफ्त में मिले. फिर भी सिर्फ 20 प्रतिशत दर्शक ही सिनेमाघर पहुंचे. इस के बाद निर्माताओं व फिल्म के कलाकारों ने खुद टिकटें खरीद कर घरघर बंटवाईं. इतना सब करने के बाद भी फिल्म ‘स्काई फोर्स’ बौक्सऔफिस पर केवल 86 करोड़ रुपए ही एकत्रित कर सकी.

बहरहाल, निर्माताओं द्वारा खुद की जेब से खरीदे गए 60 करोड़ रुपए के टिकटों को मिला कर पूरे 7 दिन में ‘स्काई फोर्स’ केवल 86 करोड़ रुपए ही बौक्सऔफिस पर एकत्रित कर सकी. इस में से हम 60 करोड़ निकाल दें तो बचेंगे 26 करोड़ रुपए. जबकि विकीपीडिया के अनुसार, फिल्म का बजट 160 करोड़ रुपए है, वहीं, अन्य सूत्र दावा कर रहे हैं कि फिल्म का बजट 380 करोड़ रुपए है, जिस में से अक्षय कुमार की फीस 90 करोड़ रुपए है.

कुछ लोग मानते हैं कि कोविड के दौरान दर्शक सिनेमाघरों से मजबूरन दूर हो गए थे. उस के बाद से दर्शकों में सिनेमाघर के अंदर आने की लत नहीं लगी है. दर्शकों में इसी लत को लगाने यानी कि अफीम की आदत डालने के लिए हर फिल्मकार व कलाकार मुफ्त में अपनी फिल्म देखने के लिए दर्शकों को बुलाने में लगा हुआ है.

कुछ लोग कहते हैं कि इस प्रयास की तारीफ की जानी चाहिए. कुछ लोग तो ‘फतेह’, ‘इमरजैंसी’, ‘स्काई फोर्स’ के निर्माताओं व कलाकारों द्वारा फिल्म के टिकट बांटने के लिए प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं. जबकि हमें तो 2013 में एक इंटरव्यू के दौरान फिल्म निर्देशक राज कुमार संतोषी की कही हुई बात याद आती है. उन्होंने फिल्म के कंटैंट व कलाकारों की अभिनय प्रतिभा की चर्चा करते हुए कहा था- ‘एक दिन वह आएगा जब हर कलाकार अपनी फिल्म के टिकट घरघर जा कर बांटेगा.’

क्या सिनेमा पतन की ओर राजकुमार संतोषी तो शायद भूल भी गए होंगे कि 11 साल पहले उन्होंने इस तरह की बात कहते हुए सिनेमा के पतन का इशारा किया था.

तमाम लोग उन फिल्मकारों व कलाकारों की तारीफ के पुल बांध रहे हैं जो कि लोगों को अपनी फिल्म मुफ्त में दिखा कर अफीम की आदत डाल रहे हैं. मगर ये लोग सिनेमा की सही सम?ा नहीं रखते या पूरे परिदृश्य को सम?ा नहीं पा रहे हैं क्योंकि इस कवायद के बहुत बुरे दूरगामी परिणाम होने वाले हैं. शायद इस तरह की प्रशंसा करने में लिप्त बुद्धिजीवी वर्ग उस संकट का आकलन नहीं कर पा रहा है जो कि किसी खास विचारधारा से जुड़े संगठन की तरफ से करवाया जा रहा है. हम इस पर बाद में आते हैं.

पहले आइए, हम इस पर बात कर लें कि आम इंसान के अंदर मुफ्त में सिनेमा देखने की लत के क्याक्या परिणाम सामने आने वाले हैं. सब से पहले हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि लोगों को मुफ्त में सिनेमा दिखाने या दर्शकों के हाथ में मुफ्त में फिल्म का टिकट देने वाले फिल्मकार व कलाकार कौन हैं?

ये सभी तथाकथित राष्ट्रवादी या भाजपा समर्थक या सीधे तौर पर भाजपा से जुड़े लोग हैं. इन का मकसद महज लोगों में फिल्म या सिनेमा देखने की अफीम की तरह लत लगाना नहीं है बल्कि ये फिल्मकार एक खास तरह का संदेश, खास तरह की सोच हर आम इंसान के अंदर पिरोना चाहते हैं. वे जिस बात को लोगों के दिलों में घर कराना चाहते हैं, उस के लिए ही वे एक खास तरह का सिनेमा बना कर उसे लोगों तक मुफ्त में पहुंचाने में व्यस्त हैं. हम यह कैसे नजरअंदाज कर जाते हैं कि हर देश का सिनेमा उस देश का सांस्कृतिक वाहक होता है.

मुफ्त में फिल्म के टिकट बांटने वाले बड़ेबड़े कौर्पोरेट घराने हैं जिन की सेहत पर असर नहीं हो रहा है. वैसे भी मुकेश अंबानी की कंपनी जियो स्टूडियो अब तक 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठा चुकी है पर वह अपना पैर पसारती जा रही है. अब तो जियो स्टूडियो खुद फिल्में बना कर दूसरे प्लेटफौर्म पर भी रिलीज कर रहा है.

धनाढ्य मुकेश अंबानी की कार्यशैली को सम?ाना हर इंसान के वश की बात नहीं है. मगर यह याद रखें कि एक व्यापारी अपना नुकसान कभी नहीं करता. वह एक हाथ से देता है तो दूसरे हाथ से लेना जानता है. दिनेश विजन की कंपनी मैडोक फिल्म्स में भी जियो स्टूडियो का धन लगा हुआ है. दूसरी बात, ये कंपनियां शेयर बाजार में लिस्टेड हैं तो आम जनता का पैसा फूंका जा रहा है. अक्षय कुमार हो या कंगना रनौत हो, ये बड़े लोग हैं. इन्हें कुछ करोड़ रुपए के टिकट मुफ्त में बांट देने से फर्क नहीं पड़ता पर इस के परिणाम तो आम जनता को ही आज नहीं तो कल भोगने पड़ सकते हैं.

सिनेमा की बरबादी का रास्ता

‘स्काई फोर्स’ की टिकट दर में 250 रुपए से 400 रुपए की जो छूट दर्शकों को मिली, वह निर्माता ने अपनी जेब से सिनेमाघर मालिकों को चुकाई है. कंगना ने अपनी फिल्म के लिए मुफ्त में बांटे गए पौपकौर्न और कोल्डड्रिंक का पैसा सिनेमाघर मालिक को चुकाया है. मगर बौलीवुड में कौर्पोरेट घराने जितनी फिल्में बना रहे हैं, उस से कई गुना ज्यादा छोटा व मं?ाला फिल्म निर्माता बना रहा है. अब मुकेश अंबानी या अक्षय कुमार या कंगना रनौत तो दर्शकों को मुफ्त में सिनेमा देखने की अफीम वाली आदत डाल रहे हैं. जब दर्शकों को मुफ्त में फिल्म देखने की लत लग जाएगी तो भला वे छोटे व मं?ाले फिल्मकारों व कलाकारों की फिल्मों को पैसा दे कर देखने क्यों जाएंगे. परिणामतया, भारतीय सिनेमा ही मरेगा.

इस का असर कहां तक जाएगा, इस पर विचार किया जाना चाहिए. यह देश की जीडीपी पर भी असर डालेगा. हमारी सरकार ने वैसे भी देश की 80 करोड़ जनता को मुफ्त का राशन दे कर उन्हें काहिल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है. अब सरकार इस तरह के कार्य को अनदेखा कर सिनेमा को बरबाद ही कर रही है.

दर्शक सिनेमाघर क्यों नहीं जा रहे

मुफ्त में फिल्मों के टिकट बांटने वालों का असली मकसद अगर दर्शकों को फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर तक खींचना होता तो वे इस की मूल जड़ में जा कर इस बात पर गौर करते कि दर्शक फिल्म देखने सिनेमाघर क्यों नहीं जा रहे पर इस दिशा में वे नहीं सोचना चाहते.

दर्शक फिल्म देखने नहीं जा रहे क्योंकि इन दिनों फिल्म में अच्छी कहानी, अच्छे कंटैंट व अच्छे मनोरंजन का घोर अभाव है. फिल्मकार व कलाकार इस पर मेहनत नहीं करना चाहते. दूसरे, सिनेमाघर के टिकटों के दाम बहुत ज्यादा हैं. मल्टीप्लैक्स के नाम पर दर्शकों की जेब में डाका डाला जा रहा है. 5 रुपए के पौपकौर्न को 150 रुपए और 10 रुपए की चाय को 200 रुपए में मल्टीप्लैक्स में बेचा जा रहा है. इन की कीमतें कम की जानी चाहिए. इतने दाम तो फाइवस्टार होटलों में होते हैं.

माना कि मल्टीप्लैक्स में साफसुथरी कुरसियां और टौयलेट वगैरह हैं पर इस आधार पर टिकट के दाम बेहिसाब बढ़ाना अनुचित है. अब तो सिंगल थिएटर, जहां पर 100 रुपए या उस से कम दाम पर फिल्म देखी जा सकती है, में भी गंदगी के बजाय काफी अच्छी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं.

यदि फिल्मकार, कलाकार व सरकार को सिनेमा की चिंता है, यदि ये वास्तव में चाहते हैं कि दर्शक सिनेमाघर में जा कर फिल्में देखें तो इन्हें सिनेमाघर के टिकटों के दाम व पौपकौर्न आदि के दाम कम करवाने पड़ेंगे. जो समोसा रेलवे प्लेटफौर्म पर 10 रुपए में बिकता है, वही समोसा मल्टीप्लैक्स में 150 रुपए में बिकता है, इसे तो डकैती ही कहेंगे.

दूसरी बात, हर फिल्मकार व कलाकार को ईमानादरी से बेहतरीन कंटैंट वाली फिल्में बनाने की दिशा में पहल करनी होगी. मुफ्त में फिल्म देखने की अफीम की आदत डाल कर वे अपना, आम जनता व सिनेमा का नुकसान ही कर रहे हैं.

Hindi Story : बेघर – मानसी ने ऐसा क्या देख लिया था

Hindi Story : रुचि बड़ी खुशीखुशी मानसी बूआ के साथ पढ़ाई के लिए उन के घर रहने आ गई थी. इधर मानसी भी संतुष्ट थी कि उस की व्यस्तता में रुचि ने पढ़ाई के साथ घर भी संभाल लिया. लेकिन मानसी अनजान थी कि उस की पीठ पीछे रुचि यह गुल खिलाएगी.

भाभी ने आखिर मेरी बात मान ही ली. जब से मैं उन के पास आई थी यही एक रट लगा रखी थी, ‘भाभी, आप रुचि को मेरे साथ भेज दो न. अर्पिता के होस्टल चले जाने के बाद मु झे अकेलापन बुरी तरह सताने लगा है और फिर रुचि का भी मन वहीं से एमबीए करने का है, यहां तो उसे प्रवेश मिला नहीं है.’

‘‘देखो, मानसी,’’ भाभी ने गंभीर हो कर कहा था, ‘‘वैसे रुचि को साथ ले जाने में कोई हर्ज नहीं है पर याद रखना यह अपनी बड़ी बहन शुचि की तरह सीधी, शांत नहीं है. रुचि की अभी चंचल प्रकृति बनी हुई है, महाविद्यालय में लड़कों के साथ पढ़ना…’’

मानसी ने उन की बात बीच में ही काट कर कहा, ‘‘ओफो, भाभी, तुम भी किस जमाने की बातें ले कर बैठ गईं. अरे, लड़कियां पढ़ेंगी, आगे बढ़ेंगी तभी तो सब के साथ मिल कर काम करेंगी. अब मैं नहीं इतने सालों से बैंक में काम कर रही हूं.’’

भाभी निरुत्तर हो गई थीं और रुचि सुनते ही चहक पड़ी थी, ‘‘बूआ, मु झे अपने साथ ले चलो न. वहां मु झे आसानी से कालेज में प्रवेश मिल जाएगा और फिर आप के यहां मेरी पढ़ाई भी ढंग से हो जाएगी.’’

रुचि ने उसी दिन अपना सामान बांध लिया था और हम लोग दूसरे दिन चल दिए थे.

मेरे पति हर्ष को भी रुचि का आना अच्छा लगा था.

‘‘चलो मनु,’’ वे बोले थे, ‘‘अब तुम्हें अकेलापन नहीं खलेगा.’’

‘‘आजकल मेरे बैंक का काम काफी बढ़ गया है.’’ मैं अभी इतना ही कह पाई थी कि हर्ष बात को बीच में काट कर बोले थे, ‘‘और कुछ काम तुम ने जानबू झ कर ओढ़ लिए हैं. पैसा जोड़ना है, मकान जो बन रहा है.’’

मैं कुछ और कहती कि तभी रुचि आ गई और बोली, ‘‘बूआ, मैं ने टैलीफोन पर सब पता कर लिया है. बस, कल कालेज जा कर फौर्म भरना है. कोई दिक्कत नहीं आएगी एडमिशन में. फूफाजी आप चलेंगे न मेरे साथ कालेज, बूआ तो 9 बजे ही बैंक चली जाती हैं.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. चलो, अब इसी खुशी में चाय पिलाओ,’’ हर्ष ने उस की पीठ ठोकते हुए कहा था.

रुचि दूसरे ही क्षण उछलती हुई किचन में दौड़ गई थी.

‘‘इतनी बड़ी हो गई पर बच्ची की तरह कूदती रहती हो,’’ मु झे भी हंसी आ गई थी.

चाय के साथ बड़े करीने से रुचि बिस्कुट, नमकीन और मठरी की प्लेटें सजा कर लाई थी. उस की सुघड़ता से मैं और हर्ष दोनों ही प्रभावित हुए थे.

‘‘वाह, मजा आ गया,’’ चाय का पहला घूंट लेते ही हर्ष ने कहा, ‘‘चलो रुचि, तुम पहली परीक्षा में तो पास हो गईं.’’

दूसरे दिन हर्ष के साथ स्कूटर पर जा कर रुचि अपना प्रवेश फौर्म भर आई थी. मैं सोच रही थी कि शुरू में यहां रुचि को अकेलापन लगेगा. कालेज से आ कर दिनभर घर में अकेली रहेगी. मैं और हर्ष दोनों ही देर से घर लौट पाते हैं. पर रुचि ने अपनी जिंदादिली और दोस्ताना लहजे से आसपास कई घरों में दोस्ती कर ली थी.

‘‘बूआ, आप तो जानती ही नहीं कि आप के साथ वाली कल्पना आंटी कितनी अच्छी हैं. आज मु झे बुला कर उन्होंने डोसे खिलाए. मैं डोसे बनाना सीख भी आई हूं.’’

फिर एक दिन रुचि ने कहा, ‘‘बूआ, आज तो मजा आ गया. पीछे वाली लेन में मु झे अपने कालेज के 2 दोस्त मिल गए, रंजना और उस का कोई रितेश. कल से मैं भी उन के साथ पास के क्लब में बैडमिंटन खेलने जाया करूंगी.’’

 

हर्ष को अजीब लगा था. वे बोले थे, ‘‘देखो, पराई लड़की है और तुम इस की जिम्मेदारी ले कर आई हो. ठीक से पता करो कि किस से दोस्ती कर रही है.’’

हर्ष की इस संकीर्ण मानसिकता पर मु झे रोष आ गया था.

‘‘तुम भी कभीकभी पता नहीं किस सदी की बातें करने लगते हो. अरे, इतनी बड़ी लड़की है, अपना भलाबुरा तो सम झती ही होगी. अब हर समय तो हम उस की चौकसी नहीं कर सकते.’’

हर्ष चुप रह गए थे.

आजकल हर्ष के औफिस में भी काम बढ़ गया था. मैं बैंक से सीधे घर न आ कर वहां चली जाती थी जहां मकान बन रहा था. ठेकेदार को निर्देश देना, काम देखना फिर घर आतेआते काफी देर हो जाती थी. मैं सोच रही थी कि मकान पूरा होते ही गृहप्रवेश कर लेंगे. बेटी भी छुट्टियों में आने वाली थी, फिर भैया, भाभी भी इस मौके पर आ जाएंगे पर मकान का काम ही ऐसा था कि जल्दी खत्म होने के बजाय और बढ़ता ही जा रहा था.

रुचि ने घर का काम संभाल रखा था, इसलिए मु झे कुछ सुविधा हो गई थी. हर्ष के लिए चायनाश्ता बनाना, लंच तैयार करना सब आजकल रुचि के ही जिम्मे था. वैसे नौकरानी मदद के लिए थी फिर भी काम तो बढ़ ही गया था. घर आते ही रुचि मेरे लिए चायनाश्ता ले आती. घर भी साफसुथरा व्यवस्थित दिखता तो मु झे और खुशी होती.

‘‘बेटे, यहां आ कर तुम्हारा काम तो बढ़ गया है पर ध्यान रखना कि पढ़ाई में रुकावट न आने पाए.’’

‘‘कैसी बातें करती हो बूआ, कालेज से आ कर खूब समय मिल जाता है पढ़ाई के लिए, फिर लीलाबाई तो दिनभर रहती ही है, उस से काम कराती रहती हूं,’’ रुचि उत्साह से बताती.

 

इस बार कई सप्ताह की भागदौड़ के बाद मु झे इतवार की छुट्टी मिली थी. मैं मन ही मन सोच रही थी कि इस इतवार को दिनभर सब के साथ गपशप करूंगी, खूब आराम करूंगी पर रुचि ने तो सुबहसुबह ही घोषणा कर दी थी, ‘‘बूआ, आज हम सब लोग फिल्म देखने चलेंगे. मैं एडवांस टिकट के लिए बोल दूं.’’

‘‘फिल्म, न बाबा, आज इतने दिनों बाद तो घर पर रहने को मिला है और आज भी कहीं चल दें.’’

‘‘बूआ, आप भी हद करती हैं. इतने दिन हो गए मैं ने आज तक इस शहर में कुछ भी नहीं देखा.’’

‘‘हां, यह भी ठीक है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारे इतने दोस्त हैं, जिन के बारे में तुम बताया करती हो, उन के साथ जा कर फिल्म देख आओ.’’

मेरे इस प्रस्ताव पर रुचि चिढ़ गई थी, इसलिए उस का मन रखने के लिए मैं ने हर्ष से कहा, ‘‘देखो, आप इसे कहीं घुमा लाओ, मैं तो आज घर पर ही रह कर आराम करूंगी.’’

‘‘अच्छा, तो मैं अब इस के साथ फिल्म देखने जाऊं.’’

‘‘अरे बाबा, फिल्म न सही और कहीं घूम आना, अर्पिता के साथ भी तो तुम जाते थे न.’’

हर्ष और रुचि के जाने के बाद मैं ने घर थोड़ा ठीकठाक किया, फिर देर तक नहाती रही. खाना तो नौकरानी आज सुबह ही बना कर रख गई थी. सोचा, बाहर का लौन संभाल दूं पर बाहर आते ही रंजना दिख गई थी.

‘‘आंटी, रुचि आजकल कालेज नहीं आ रही है,’’ मु झे देखते ही उस ने पूछा था.

सुनते ही मेरा माथा ठनका. फिर भी मैं ने कहा, ‘‘कालेज तो वह रोज जाती है.’’

‘‘नहीं आंटी, परसों टैस्ट था, वह भी नहीं दिया उस ने.’’

मैं कुछ सम झ नहीं पाई थी. अंदर आ कर मु झे खुद पर ही झुं झलाहट हुई कि मैं भी कैसी पागल हूं. लड़की को यहां पढ़ाने लाई थी और उसे घर के कामों में लगा दिया. अब इस से घर का काम नहीं करवाना है और कल ही इस के कालेज जा कर इस की पढ़ाई के बारे में पता करूंगी.

‘‘मैम साहब, कपड़े.’’

‘‘धोबी की आवाज पर मेरा ध्यान टूटा. कपड़े देने लगी तो ध्यान आया कि जेबें देख लूं. कई बार हर्ष का पर्स जेब में ही रह जाता है. कमीज उठाई तो रुचि की जींस हाथ में आ गई. कुछ खरखराहट सी हुई. अरे, ये तो दवाई की गोलियां हैं पर रुचि को क्या हुआ?’’

रैपर देखते ही मेरे हाथ से पैकेट छूट गया था, गर्भ निरोधक गोलियां, रुचि की जेब में.

मेरा तो दिमाग ही चकरा गया था. जैसेतैसे कपड़े दिए, फिर आ कर पलंग पर पसर गई थी.

कालेज के अपने सहपाठियों के किस्से तो बड़े चाव से सुनाती रहती थी और मैं व हर्ष हंसहंस कर उन की बातों का मजा लेते थे पर यह सब, मु झे पहले ही चैक करना था. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो भैयाभाभी को मैं क्या मुंह दिखाऊंगी.

मन में उठते तूफान को शांत करने के लिए मैं ने फैसला लिया कि कल ही इस के कालेज जा कर पता करूंगी कि इस की दोस्ती किन लोगों से है. हर्ष से भी बात करनी होगी कि लड़की को थोड़े अनुशासन में रखना है, यह अर्पिता की तरह सीधीसादी नहीं है.

हर्ष और रुचि देर से लौटे थे. दोनों सुनाते रहे कि कहांकहां घूमे, वहां क्याक्या खाया.

‘‘ठीक है, अब सो जाओ, रात काफी हो गई है.’’

मैं ने सोचा कि रुचि को बिना बताए ही कल इस के कालेज जाऊंगी और हर्ष को औफिस से ही साथ ले लूंगी, तभी बात होगी.

सुबह रोज की तरह 8 बजे ही निकलना था पर आज औफिस में जरा भी मन नहीं लगा. लंच के बाद हर्ष को औफिस से ले कर रुचि के कालेज जाऊंगी, यही विचार था पर बाद में ध्यान आया कि पर्स तो घर पर ही रह गया है और आज ठेकेदार को कुछ पेमेंट भी करनी है. ठीक है, पहले घर ही चलती हूं.

घर पहुंची तो कोई आहट नहीं, सोचा, क्या रुचि कालेज से नहीं आई पर अपना बैडरूम अंदर से बंद देख कर मेरे दिमाग में हजारों कीड़े एकसाथ कुलबुलाने लगे. फिर खिड़की की ओर से जो कुछ देखा उसे देख कर तो मैं गश खातेखाते बची थी.

हर्ष और रुचि को पलंग पर उस मुद्रा में देख कर एक बार तो मन हुआ कि जोर से चीख पड़ूं पर पता नहीं वह कौन सी शक्ति थी जिस ने मु झे रोक दिया था. मन में सोचा, नहीं, पहले मु झे इस लड़की को ही संभालना होगा. इसे वापस इस के घर भेजना होगा. मैं इसे अब और यहां नहीं सह पाऊंगी.

मैं लड़खड़ाते कदमों से पास के टैलीफोन बूथ पर पहुंची. फोन लगाया तो भाभी ने फोन उठाया था.

बिना किसी भूमिका के मैं ने कहा, ‘‘भाभी, रुचि का पढ़ाई में मन नहीं लग रहा है. और तो और, बुरी सोहबत में भी पड़ गई है.’’

‘‘देखो मनु, मैं ने तो पहले ही कहा था कि लड़की का ध्यान पढ़ाई में नहीं है, तुम्हारी ही जिद थी. अब ऐसा करो उसे वापस भेज दो. तुम तो वैसे ही व्यस्त रहती हो, कहां ध्यान दे पाओगी और इस का मन होगा तो यहीं कोई कोर्स कर लेगी.’’

भाभी कुछ और भी कहना चाह रही थीं पर मैं ने ही फोन रख दिया. देर तक पास के एक रैस्तरां में वैसे ही बैठी रही.

हर्ष यह सब करेंगे, मेरे विश्वास से परे था. पर सबकुछ मेरी आंखों ने देखा था. ठीक है, पिछले कई दिनों से मैं घर पर ध्यान नहीं दे पाई, अपनी नौकरी और मकान के चक्कर में उल झी रही, रात को इतना थक जाती थी कि नींद के अलावा और कुछ सू झता ही नहीं था पर इस का यह दुष्परिणाम सामने आएगा, इस की तो सपने में भी मैं ने कल्पना नहीं की थी.

कुछ भी हो रुचि को तो वापस भेजना ही होगा. घंटेभर के बाद मैं घर पहुंची तो हर्ष जा चुके थे. रुचि टैलीविजन देख रही थी. मु झे देखते ही चौंकी.

‘‘बूआ, आप इस समय, क्या तबीयत खराब है? पानी लाऊं?’’

मन तो हुआ कि खींच कर एक थप्पड़ मारूं पर किसी तरह अपने को शांत रखा.

‘‘रुचि, औफिस में भैया का फोन आया था, भाभी सीढि़यों से गिर गई

हैं, चोट काफी आई है, तुम्हें इसी

समय बुलाया है, मैं भी दोचार दिनों

बाद जाऊंगी.’’

‘‘क्या हुआ मम्मी को?’’ रुचि घबरा गई थी.

‘‘वह तो तुम्हें वहां जा कर ही पता लगेगा पर अभी चलो, डीलक्स बस मिल जाएगी. मैं तुम्हें छोड़ देती हूं, थोड़ाबहुत सामान ले लो.’’

आधे घंटे के अंदर मैं ने पास के बस स्टैंड से रुचि को बस में बैठा दिया था.

भाभी को फोन किया कि रुचि जा रही है. हो सके तो मु झे माफ कर देना क्योंकि मैं ने उस से आप की बीमारी का झूठा बहाना बनाया है.

‘‘कैसी बातें कर रही हो, मानसी. ठीक है, अब मैं सब संभाल लूंगी, तू चिंता मत कर. और हां, नए फ्लैट का क्या हुआ? कब है गृहप्रवेश?’’ भाभी पूछ रही थीं और मैं चुप थी.

क्या कहती उन से, कौन सा घर, कैसा गृहप्रवेश. यहां तो मेरा बरसों का बसाया नीड़ ही मेरे सामने उजड़ गया था. तिनके इधरउधर उड़ रहे थे और मैं बेबस अपने ही घर से ‘बेघर’ होती जा रही थी.

Social Crime : मसाज पार्लर में चल रहा था ठगी का करोबार, नेकेड फोटो का डर दिखा कर करते थे ब्‍लैकमेल

Social Crime : दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

Life : जीवन सरिता – जिंदगी अभी बाकी है

Life : जीवन का सफर हर मोड़ पर नए अनुभव और सीखने का मौका देता है. पार्टनर का साथ नहीं रहा, बढ़ती उम्र है, लेकिन जिंदगी खत्म तो नहीं हुई न. इस दौर में भी हर दिन एक नई उमंग और आनंद से जीने की संभावनाएं हैं.

जीवनसाथी के न रहने के बाद अकेले रहना कठिन और भावनात्मक रूप से चुनौतीपूर्ण अनुभव हो सकता है, विशेषकर जब आप 60 वर्ष के पार होते हैं. यह उम्र जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जिस में आप अपनेआप को फिर से पहचानने और नए तरीके से जीवन जीने का अवसर पा सकते हैं. अगर आप इसे एक अवसर के रूप में देखेंगे तो आप अपने जीवन को न केवल खुशहाल बना सकते हैं, बल्कि इसे रोमांचक और आनंदमयी भी बना सकते हैं. यहां कुछ सु?ाव दिए जा रहे हैं जिन से आप अपनी उम्र के इस दौर को सकारात्मक और मजेदार बना सकते हैं:

नई रुचियां और शौक अपनाना: उम्र के इस पड़ाव पर अपने पुराने शौक और रुचियों को फिर से जीने का समय है. हो सकता है आप ने जीवनसाथी के साथ बहुत सी गतिविधियों में हिस्सा लिया हो, लेकिन अब आप अकेले हैं तो अपनी पसंद की चीजों को नए सिरे से देख सकते हैं. किताबें पढ़ना, संगीत सुनना, चित्रकला, बागबानी, खाना पकाना या फिर डांस करने जैसी गतिविधियां न केवल मन को शांति देती हैं, बल्कि ये मानसिक स्थिति को बेहतर भी रखती हैं. आप औनलाइन क्लासेस ले कर नई चीजें सीख सकते हैं, जैसे कि पेंटिंग, फोटोग्राफी या किसी विदेशी भाषा का अध्ययन करना.

स्वास्थ्य पर ध्यान देना: शारीरिक और मानसिक स्थिति को बेहतर बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम बेहद जरूरी है. टहलने जाना या फिर हलका व्यायाम करना आप के शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकता है. अच्छे स्वास्थ्य से न केवल आप की ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, बल्कि आप मानसिक रूप से भी खुद में? ताजगी महसूस करते हैं. इस के अलावा, स्वस्थ आहार लेना और पर्याप्त पानी पीना भी महत्त्वपूर्ण है.

सामाजिक संपर्क बनाए रखना: अकेलापन महसूस करना स्वाभाविक है. ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ संपर्क बनाए रखें. नियमित रूप से किसी दोस्त से फोन पर बात करना या फिर सप्ताहांत पर परिवार से मिलना आप के अकेलेपन को कम कर सकता है. आप नए दोस्त बनाने के लिए सामाजिक गतिविधियों में भी हिस्सा ले सकते हैं. विभिन्न क्लब, समुदाय और सामाजिक संगठनों में शामिल हो कर आप नए रिश्ते बना सकते हैं.

यात्राएं और घूमनाफिरना: यात्रा एक अद्भुत तरीका है जिस से आप अपने जीवन में रोमांच और नयापन ला सकते हैं. अपनी उम्र को ध्यान में रखते हुए आप हलकीफुलकी ट्रिप्स की योजना बना सकते हैं. ऐतिहासिक स्थल या फिर प्रकृति की गोदी में समय बिताने से न केवल आप मानसिक शांति पा सकते हैं, बल्कि एक नई ऊर्जा का एहसास भी कर सकते हैं. यदि आप अकेले यात्रा करना चाहें तो गाइडेड टूर का चुनाव कर सकते हैं, जिस से आप को न केवल जानकारी मिलती है, बल्कि नए लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है.

स्वयंसेवी कार्यों में भाग लेना: आप के पास अनुभव, ज्ञान और सम?ा का खजाना है. अगर आप इसे दूसरों के साथ बांटना चाहते हैं तो आप स्वयंसेवी कार्यों में भाग ले सकते हैं. वृद्धाश्रम, अनाथालय या फिर शिक्षा के क्षेत्र में आप अपनी सेवाएं दे सकते हैं. इस से न केवल आप को मानसिक संतोष मिलता है, बल्कि आप के जीवन में एक उद्देश्य और दिशा भी मिलती है. जब आप किसी अन्य व्यक्ति की मदद करते हैं तो यह आप के मन को प्रसन्नता और सुकून प्रदान करता है.

सकारात्मक मानसिकता अपनाना: एक सकारात्मक मानसिकता जीवन को नई दिशा दे सकती है. यदि आप अपनी परिस्थितियों को केवल दुख और अकेलेपन के रूप में देखते हैं तो यह आप के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. इस के बजाय यह सम?ाने की कोशिश करें कि जीवन अभी भी बहुतकुछ देने के लिए तैयार है. आप को सिर्फ नई संभावनाओं और अवसरों को पहचानने की जरूरत है.

औनलाइन या दूरस्थ कार्य: अब इंटरनैट के माध्यम से आप घर से काम करने के तरीके ढूंढ़ सकते हैं. आप अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में औनलाइन शिक्षा दे सकते हैं या फिर किसी औनलाइन नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं. ऐसा करने से न केवल आप की व्यस्तता बनी रहती है, बल्कि आप को एक नया उद्देश्य और आत्मसंतुष्टि भी मिलती है.

अपने आसपास को सुंदर बनाना: घर को सुंदर और आरामदायक बनाना एक सरल और प्रभावी तरीका हो सकता है जिस से आप अपने जीवन को खुशनुमा बना सकते हैं. आप अपने घर में रंगीन पौधे रख सकते हैं, पुरानी चीजों को बदल सकते हैं या फिर कुछ नया सजावट का सामान ले सकते हैं. एक साफसुथरा और खुशहाल माहौल मानसिक स्थिति को भी सकारात्मक बनाए रखता है.

अपने अनुभवों को साझा करना: आप के पास जीवन के अनुभवों का खजाना है, जिन्हें दूसरों से साझा करने का समय आ चुका है. आप ब्लौग लिख सकते हैं, अपनी जीवनयात्रा को एक किताब में ढाल सकते हैं या फिर अपने जीवन के अनुभवों पर आधारित कहानियां सुनाने का प्रयास कर सकते हैं. यह न केवल दूसरों को प्रेरित करेगा, बल्कि इस से आप को भी संतुष्टि और खुशी का एहसास होगा.

खुद के साथ समय बिताना: अकेले समय बिताना यह सम?ाने का अवसर होता है कि आप अपनी कंपनी में कितने खुश रह सकते हैं. यदि आप ने पहले कभी अपनेआप के साथ पर्याप्त समय नहीं बिताया तो अब ऐसा करना एक शानदार तरीका हो सकता है. अकेले समय बिताने से आप को खुद के बारे में जाननेसमझने और अपने भीतर की आवाज को सुनने का अवसर मिलता है.

टैक्नोलौजी का उपयोग: आजकल तकनीकी युग में आप को दुनिया से जुड़ने के कई नए तरीके मिलते हैं. आप सोशल मीडिया पर अपने पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों से संपर्क कर सकते हैं, औनलाइन शौपिंग कर सकते हैं, फिल्में और सीरीज देख सकते हैं या फिर वर्चुअल मीटिंग्स और चर्चाओं में भाग ले सकते हैं. यह आप को मानसिक तौर पर सक्रिय बनाए रखता है और नकारात्मकता से बचाता है.

शौक और रचनात्मकता: कला और रचनात्मकता मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फायदेमंद होते हैं. आप पेंटिंग, मूर्तिकला, कविता लिखना, संगीत सीखना या फिर किसी नए शौक को अपना कर अपने जीवन में मजा ला सकते हैं. शौक केवल मनोरंजन का साधन नहीं होते, बल्कि वे आत्मव्यक्तित्व का भी एक माध्यम होते हैं, जिस से आत्मसंस्कार और आत्मप्रकाशन हो सकता है.

अकेले रहने का मतलब यह नहीं कि आप का जीवन खत्म हो गया है. यह एक अवसर है, जो आप को खुद के साथ समय बिताने, नए शौक अपनाने, समाज में योगदान देने व मानसिक शांति पाने का मौका देता है. 60 वर्ष के पार आप की उम्र एक नई शुरुआत की तरह हो सकती है, जहां आप अपने जीवन को अपनी शर्तों पर जी सकते हैं.

Family Story : अंश – आखिर किसका अंश था राहुल

Family Story : कालेज प्राचार्य डाक्टर वशिष्ठ आज राउंड पर थे. वैसे उन को समय ही नहीं मिल पाता था. कभी अध्यापकों की समस्या, कभी छात्रों की समस्या, और कुछ नहीं तो पब्लिक की कोई न कोई समस्या. आज समय मिला तब वे राउंड पर निकल पड़े.

उन के औफिस से निकलते ही सब से पहले थर्ड ईयर की कक्षा थी. बीए थर्ड ईयर की क्लास में डाक्टर प्रताप थे. हमेशा की तरह उन की क्लास शांतिपूर्वक चल रही थी. अगली क्लास मैडम सुनीता की थी. वे हंसीमजाक करती हुई अपनी क्लास में बच्चों को पढ़ाती थीं.

अब वे अगली कक्षा की ओर बढ़े. बीए प्रथम वर्ष की कक्षा थी, जिस में चिल्लपों ज्यादा रहती. इस बात को सब समझते थे कि यह स्कूल से कालेज में आए विद्यार्थियों की क्लास थी. ये विद्यार्थी अपनेआप को स्कूल के सख्त अनुशासन से आजाद मानते हैं. स्कूल में आने और जाने में कोई ढील नहीं मिलती थी लेकिन यहां कभी भी आने और जाने की आजादी थी. लेकिन आज क्लास शांत थी. केवल अध्यापक की आवाज गूंज रही थी. आवाज सुन कर प्राचार्यजी चौंके, क्योंकि आवाज डाक्टर प्रताप की थी. बस, अंतर यही था थर्ड ईयर की कक्षा में जहां राजनीति पर चर्चा चल रही थी तो प्रथम वर्ष की कक्षा में इतिहास पढ़ाया जा रहा था.

प्राचार्यजी ने सोचा- एक ही व्यक्ति 2 जगह कैसे हो सकता है? प्राचार्य वापस थर्ड ईयर की क्लास की ओर गए तो देखा कि प्रताप वहां पढ़ा रहे थे. वे वापस आए और देखा कि क्लास का ही एक विद्यार्थी अध्यापक बना हुआ था और पूरी क्लास शांतिपूर्वक पढ़ रही थी. अध्यापक बना हुआ विद्यार्थी राहुल था.

प्राचार्य थोड़ी देर तक चुपचाप देखते रहे और फिर डाक्टर प्रताप को बुला लाए. दोनों राहुल की कक्षा का निरीक्षण करते रहे और जब क्लास खत्म हुई तब ताली बजाते हुए क्लास में प्रवेश कर गए. उन को देख कर सभी खड़े हो गए और राहुल प्राचार्य के पास पहुंच कर बोला, ‘‘सौरी सर.’’

प्राचार्य और प्रताप सर ने उस के सिर पर हाथ फेरा. प्राचार्य ने कहा, ‘‘बेटा, इस में माफी मांगने वाली बात कहां से आ गई. तुम तो अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हो. हमारे लिए तो गर्व की बात है कि हमारे कालेज में इतना होनहार विद्यार्थी है. इस साल के ऐनुअल फंक्शन में तुम्हारा शो रखेंगे.’’ प्राचार्य की बात सुन कर ललिता उठी और बोली, ‘‘सर, यह सभी सरों की मिमिक्री करता है. प्रताप सर की मिमिक्री तो इतनी अच्छी करता है कि जैसे यह प्रताप सर का ही अंश हो.’’

बात छोटी सी थी लेकिन उन का इंपैक्ट इतना बड़ा होगा? यह बाद में पता चलेगा.

राहुल की ममेरी बहन है सुषमा. वह घर गई और स्कूल में घटी घटना को अपनी मम्मी कविता को बता दिया. ललिता ने जो कहा उसे भी अपनी मम्मी को बताया और बोली, ‘‘मम्मी, अपने राहुल में प्रताप सर की छवि दिखती है.’’

सुषमा की बात सुन कर कविता बोली, ‘‘तू ने पहले तो यह नहीं बताया, जबकि तुम दोनों को 3 महीने हो गए कालेज गए हुए.’’

सुषमा ने कहा, ‘‘पहले मैं ने इस बात पर गौर नहीं किया था लेकिन क्लास में यह चर्चा होती रही है.’’

रात को कविता ने अपने पति अनिल को बताया और संभावना व्यक्त की कि कहीं डाक्टर प्रताप ही राहुल के जैविक पिता तो नहीं?’’

अनिल ने कहा, ‘‘हो सकता है. मैं प्रताप सर से बात करूंगा.’’ इस से पहले मैं इनफर्टिलिटी सैंटर से बात करूंगा, जहां राहुल का जन्म हुआ. अगर वे सच में राहुल के पापा हुए तो मेरे लिए यह सब से अच्छा दिन होगा. अपनी छोटी बहन को विधवा के रूप में देखा नहीं जाता.’’

राहुल की मम्मी सुनीता जब 11 वर्ष की रही होंगी, उस के भाई की शादी हुई थी. उस के एक साल बाद एक सड़क दुघर्टना में उन के मम्मीपापा का देहांत हो गया. अनिल और कविता ने उस का अपनी बेटी जैसा खयाल रखा. सुनीता को एहसास भी नहीं होने दिया कि उस के मम्मीपापा नहीं हैं. इस दौरान सुनीता के भाई के घर में बेटे का जन्म हुआ. बूआ व भतीजा दोनों में पटरी अच्छी बैठ गई.

सुनीता को पढ़ाया और उस की शादी की. 20-21 साल की उम्र में ही सुनीता की शादी कर दी गई. लड़का अच्छा मिल गया, इसलिए सुनीता की शादी जल्दी कर दी. राजेश एक अच्छा पति साबित हुआ. उस ने सुनीता को हर खुशी देने की कोशिश की लेकिन सब से बड़ी खुशी वह नहीं दे पाए. सुनीता मां नहीं बन सकी.

दोनों ने लगभग 10 वर्ष बिना संतान के बिता दिए और अपनी नियति मान कर चुपचाप बैठ गए. जब शहर में इनफर्टिलिटी सैंटर खुला तो दोनों सैंटर गए. जांच में कमी राजेश में पाई गई.

चूंकि राजेश इलाज से भी पिता बनने के काबिल नहीं थे, इसलिए शुक्राणुओं की व्यवस्था शुक्राणु बैंक से हो गई. राहुल का जन्म हुआ. इस के साथसाथ कविता ने एक बच्ची को जन्म दिया. यही सुषमा है. राजेश ने राहुल और सुनीता दोनों को भरपूर प्यार दिया. जीवन अच्छा चल रहा था.परंतु राजेश की अचानक मौत ने सुनीता को तोड़ दिया. सुनीता से ज्यादा अनिल को तोड़ दिया. जिस बहन को उन्होंने अपनी बच्ची की तरह पाला, उस को विधवा के रूप में देख कर वे अपनेआप को संभाल नहीं पा रहे थे. बहरहाल, धीरेधीरे सब सामान्य होने लगा. राहुल और सुषमा दोनों कालेज पहुंच गए.

इधर प्रताप भी परेशान थे. आज जो हुआ, उस से भी परेशान थे. उस ने उन के मन में संदेह पैदा कर दिया था. अब तक वे लोगोें की चर्चाओं को भाव नहीं दे रहे थे. लोग इसलिए भी चुप रहते क्योंकि लोगों को प्रताप सर का व्यवहार से ऐसा नहीं लगता था कि वे किसी लड़की को प्रभावित कर सकें. उन के मन में भी यही था कि कहीं वे वही तो नहीं? प्राचार्य वशिष्ठ ने प्रताप सर को बुलाया क्योंकि उन्होंने भी प्रताप सर के व्यवहार को भांप लिया था.

प्रताप सर के आने पर बात प्राचार्यजी ने ही बात शुरू की. ‘‘आप तभी से परेशान हैं जब से राहुल ने आप की नकल की?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी बात नहीं. मैं कालेज में चल रही चर्चाओं से परेशान हूं और आज की घटना ने और क्लास की एक छात्रा के कमैंट ने चर्चा को और सशक्त बनाया है. मेरे सामने यह बात भी आई है कि राहुल मेरी अवैध संतान है जबकि ऐसा नहीं है. हां, राहुल मेरा बेटा हो सकता है,’’ डाक्टर प्रताप बोले.

यह सुन कर प्राचार्य चौंके और बोले, ‘‘राहुल आप का बेटा कैसे हो सकता है?’’

‘‘मेरा कोई अफेयर नहीं है. पता नहीं कैसे तब मैं ने अपने शुक्राणु दान कर दिए? मैं ने शुक्राणु बैंक को अपने शुक्राणु दान किए थे. तब मुझे यह पता नहीं कि यह सब इस रूप में मेरे सामने आएगा.’’

‘‘तब तो आप का और राहुल का डीएनए टैस्ट करा लेते है,’’ प्राचार्य बोले.

‘‘लेकिन राहुल को इस के लिए कैसे राजी करें?’’

वह मुझ पर छोड़ दो, प्राचार्य बोले. लेकिन उन को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि राहुल के मामा ने आ कर सारी समस्या हल कर दी.

उस घटना को एक सप्ताह से अधिक हो गया था. राहुल कालेज से वापस लौटा तब उस की मम्मी ने उसे टोका, ‘‘क्यों रे, तू अपने टीचरों की नकल करता है?’’

‘‘नकल नहीं मम्मी, मिमिक्री करता हूं. आप को किस ने बताया? जरूर यह सुषमा ही होगी. वह तो यह भी कह रही होगी कि मुझ में प्रताप सर की छवि दिखाई देती है.’’

‘‘हां,’’ सुनीता बोली, ‘‘पर बेटा, तू अपने अध्यापकों की कमियों को नहीं बल्कि उन की विशेषताओं को उजागर कर. वे तेरे गुरुजी हैं और उन का सम्मान करो.’’

राहुल कुछ बोलता, तभी उस की भाभी आ गई और राहुल से बोली, ‘‘तू जा, अपनी पढ़ाई कर. मुझे तेरी मम्मी से कुछ बातें करनी हैं. कविता अब सुनीता से बोली, ‘‘डाक्टर प्रताप डीएनए जांच के लिए राजी हो गए हैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, मैं राजेश को नहीं भुला पाऊंगी,’’ सुनीता बोली, ‘‘और खुद उन का भी परिवार होगा?’’

‘‘नहीं. उन का कोई परिवार नहीं है,’’ कविता बोली, ‘‘प्रताप सैल्फमेड व्यक्ति हैं. वे अनाथाश्रम में पले हैं. वे कौन सी जाति के हैं, कौन से धर्म के हैं, कौन जानता है.

‘‘परिवार क्या होता है? वे नहीं जानते. उन का परिवार अनाथाश्रम के लोग ही हैं. पढ़ने के जनून ने उन को यहां तक पहुंचाया है. हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए. कुछ बनने के जनून में खुद की शादी और परिवार के बारे में नहीं सोचा. हां, इतना जरूर किया कि शुक्राणु बैंक में अपने शुक्राणु दान कर दिए. और उन्हीं का तू ने उपयोग किया और फिर राहुल का जन्म हुआ.’’

सुनीता सुन रही थी परंतु कुछ बोल नहीं रही थी. कविता आगे बोली, ‘‘तू कुछ बोल नहीं रही है. प्रताप और राहुल के डीएनए अगर मैच कर गए तो हम सब के लिए खुशी की बात होगी. वे तेरे बेटे के जैविक पिता तो हैं ही, कोई गैर नहीं. समय को भी शायद यही मंजूर होगा, तभी तो उस ने ये हालात पैदा किए हैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, कभीकभी मैं प्रताप की और राजेश की तुलना करने लगी और उन को बुरा लगा तो?’’

‘‘तू राहुल की सोच. अपनी और प्रताप की नहीं. उसे अपने जैविक पिता को पिता कहने का मौका तो दे. हम सब चाहते हैं कि तुम सब एक सुखद जीवन जियो. और हां, राजेश होता तो भी उसे गम क्यों होता, वह जानता तो था कि राहुल उन की संतान नहीं. राजेश की आदतें तो तू जानती ही है. उस का आशीर्वाद भी मिलेगा.’’

सुनीता बोली, ‘‘पर भाभी, इस उम्र में शादी क्या शोभा देगी?’’

‘‘पागल, तू अभी 50 की हुई और इस उम्र में शादी तन की नहीं, मन की जरूरत होती है. इस उम्र में ही पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे की ज्यादा जरूरत होती है. बच्चे अपने परिवार के साथ व्यस्त रहेंगे. उन को उन के परिवार के साथ जीवन जीने दे. और जहां तक राहुल की बात है, तो तेरे भाई ने उस से बातचीत कर उस की सोच की थाह ले ली है. वह तो खुश है और डीएनए जांच के लिए भी राजी है. तू प्रताप के बारे में भी सोच, उस ने कभी कोई सुख नहीं देखा. जन्म के तुरंत बाद मांबाप मर गए. वह अनाथाश्रम में आ गया. अनाथाश्रम में पलने वाला बच्चा इस मुकाम तक पहुंचा है तो उस में काबिलीयत तो होगी. उसे तू ही खुशी दे सकती है. अगर तू ने मना कर दिया तो वह कहीं टूट न जाए.’’

सुनीता राजी हो गई. इधर प्रताप और राहुल के डीएनए मैच कर गए. और साथ ही, राहुल व सुनीता बंधन में बंध गए.

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