मैं ठीक 10 बजे पूर्व निर्धारित स्थान पर पहुंच गया था. वह दूर से आती हुई दिखी. मैं ने मन ही मन में कहा ‘जुगाड़’ आ गई. हम ने फिर साथ में रिकशा लिया. इस बार मैं पहले की अपेक्षा अधिक चिपक कर बैठा शायद उसे आजमाना चाहता था.

मैंने फर्राटे से दौड़ते, हौर्न का शोर मचाते वाहनों के बीच दबे कदमों से चौराहा पार किया.

बीच चौराहे पर अंबेडकर की प्रतिमा जैसे हाथ खड़ी कर सब को स्टेशन की ओर जाने का संकेत कर रही हो. कैसरबाग, अमीनाबाद एक सवारी की रट लगाते वाहनचालक. दिन के 10 बजे लखनऊ के चारबाग चौराहे की हालत ऐसी ही होती है. भीड़ का एक हजूम, भागतेदौड़ते लोग, न जाने कितनी जल्दी है उन्हें मंजिल तक पहुंचने की.

मैं ने रिकशावाले से पूछा, ‘‘लाटूश रोड के कितने लोगे?’’

‘‘कहां जाना है लाटूश रोड में?’’ उस ने प्रश्न किया.

मैं ने कहा, ‘अमीनाबाद चौक से दोचार कदम आगे.’

‘एक सवारी के 8 रुपए और एक और बैठा लूं, तो 5 रुपए लगेंगे?’

मैं ने कहा, ‘अगर कोई मिलता है तो बैठा लो.’

अभी रिकशावाले ने पैडल पर पांव डाले ही थे कि आसमानी शमीज और सफेद सलवार धारण किए एक लड़की ने पूछा, ‘भैया, अमीनाबाद का क्या लोगे?’

‘5 रुपए,’ उस ने उत्तर दिया और वह लड़की आ कर मेरे साथ रिकशे पर बैठ गई.

गर मैं कहूं कि उस के मेरे साथ बैठने से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ा तो शायद यह  झूठ होगा. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति. मैं भी इस से अछूता नहीं था. कई बार हम अपनी पत्नी या फिर प्रेमिका से कहते हैं, ‘मैं तुम्हारे सिवा किसी और को नहीं देखता. जबकि, हमें पता है कि हम  झूठ बोल रहे हैं उस से जिस से वास्तव में हम बेहद प्रेम करते हैं. हर इंसान को खुद से प्यार करने वाले का संपूर्ण समर्पण बेहद सुकून देता है चाहे वह स्त्री का पुरुष के प्रति हो या पुरुष का स्त्री के प्रति.

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