प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भर होने का मतलब यह नहीं है कि देश अपनी जरूरतों को खुद पूरा करे. यह बात तो वे कई साल पहले ‘मेक इन इंडिया’ के नारे से कह चुके हैं. पर उस का अर्थ सिर्फ इतना निकला कि पार्टीभक्तों को कुछ दिन हल्ला मचाने का मौका मिला. देश लगातार विदेशी सामान खरीदने में लगा रहा.
प्रधानमंत्री के लिए बढि़या हवाई जहाज खरीदे गए हैं. सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति तक चीन से खरीदी गई है. भक्तों ने विदेशी सैमसंग, ओप्पो, आईफोन पर ‘मेक इन इंडिया’ के नारे को जम कर फौरवर्ड किया.

आत्मनिर्भर का मतलब है कि सरकार को अब कुछ करना नहीं है और जनता को अपना खयाल खुद रखना होगा. विदेशों में पढ़ रहे युवाओं की गिनती बताने के लिए काफी है कि कितनों को देश की आत्मनिर्भर शिक्षा पर कितना भरोसा है. चीन में 45 हजार युवा डाक्टरी पढ़ रहे हैं क्योंकि हमारे यहां आत्मनिर्भर बनाने वाले मैडिकल कालेज नहीं हैं. 30-31 जनवरी को वुहान, चीन से लौटने वाले 500 युवाओं ने पहले ही पोल खोल दी है कि आत्मनिर्भरता का तो पूरा ड्रामा सिर्फ सरकारी निकम्मेपन को दिखाता है.

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आत्मनिर्भर नारों से नहीं, मेहनत से बना जाता है और जो आदर हम मेहनतकश लोगों को देते हैं वह देश की सड़कों पर दिख पड़ा है. हमारी सरकार मजदूरों को उन के घरों तक वापस ले जाने से कतरा रही है. वह चाह रही है कि या तो वे बंद फैक्ट्रियों के दरवाजों पर मरखप जाएं या सड़कों पर मरें आत्मनिर्भर हो कर सरकार से बिना कुछ मांगे.

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