रोजमर्रा की भाग दौड़ भरी  जिन्दगी मे हम अपनी सेहत का ध्यान नही रख पाते. ऐसे मे जब हमें यह समचार विधित हो की हमारा शरीर किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त  हो गया है तो हम बोखला से जाते है, लेकिन वह वक़्त घबराने का नही बल्कि उस बीमारी से समय रहते निजाद पाने का है. ऐसी ही एक बीमारी के बारे मे हम आपको जानकारी दे रहे है जो अति गंभीर है लेकिन समय रहते इससे निजात  पाया जा सकता है.

हमारे देश मे सबसे ज्यादा  महिलओं मे होता है -स्तन कैंसर और फिर गर्भासिया कैंसर.  पहले स्तन कैंसर दुसरे नंबर पर था लेकिन अब यह तथ्य  सामने आया है की स्तन कैंसर पहले स्थान पर पहुच गया है . कैंसर  यानि शरीर की कोशिकाओं   की अनियंत्रित वृद्धि कैंसर मे शरीर की कोशिकाओं पर डीएनए मे उपस्थित जींस  का नियंत्रण समाप्त हो जाता है. इन कोशिकाओं  की  शरीर के  अन्य भाग मे फैलने की आशंका भी रहती है और अगर यह शरीर मे फैल जाये तो ठीक होने की सम्भावना न के बराबर ही होती है  यह जरूरी है की इसका इलाज प्रारम्भिक दौर मे ही  हो जाये .

ब्रेस्ट कैंसर या स्तन कैंसर महिलओं मे होने वाली एक भयावय बीमारी है. हलाकि  यह एक ब्रहम है की ब्रेस्ट कैंसर सिर्फ महिलाओं को होता है. आज पुरूषों मे भी इस बीमारी की संख्या बढ़ रही है. यह एक आश्चर्य  की बात है कि हम पहले यही सोचते थे, कि स्तन कैंसर सिर्फ महिलाओं  को ही होता है . लेकिन अब पता चला है की यह पुरूषों मे भी हो रहा है. रचनात्मक दृष्टि से पुरूषों  की छाती मे निष्क्रिय  स्तन के टिशु  होते है. ये निप्पल के नीचे होते हैं ,जब इन टिशु की अनियत्रित वृद्धि होने लगती है तब स्त्रियो के भांति   पुरूषों  में भी स्तन कैंसर होने लगता है .

कैंसर से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है जागरूकता. अक्टूबर महीने को विश्व स्वस्थ्य संगठन ने इस बीमारी के प्रति जागरूकता वाला माह माना  है . भारत मे महिलाऐं आज भी अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक नही हैं.  और यही  कारण है कि इस बीमारी से पीडि़त  मरीजो की संख्या में  दिनोदिन इजाफा हो रहा है. महिलाओं और पुरूषों  मे होने वाले इस कैंसर के वस्त्विक कारणों का पता नही चल पा रहा है लेकिन वैज्ञानिको  का अनुमान है की यह हार्मोनल या अनुवांशिक कारणों से होता है .

महिलाओ मे स्तन कैंसर का कारण

अगर परिवार मे कोई कैंसर से  बीमारी से पीडि़त रहा हो तो 40 की उम्र के बाद साल मे एक बार जांच अवश्य करवाएं क्योकि यह एक जेनेटिक  बीमारी का रूप भी ले सकता है. अगर धुम्रपान या मादक पदार्थ का सेवन करते है तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है.

* स्तन कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन 40 वर्ष की उम्र के बाद इसकी सम्भावना बढ़ जाती है .

* 12 वर्ष से कम आयु मे मासिक धर्म आरम्भ होना.

* 50 वर्ष की आयु के बाद रजोनवृत्ति.

* संतानहीनता    .

एक शोध मे पाया गया है की हार्मोन संबंधी समस्याओ से निजात पाने के लिये रजौनिवृत्ति के पहले और बाद मे  हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरपी एच आर टी के बाद स्तन कैंसर पनपने का खतरा ज्यादा होता है .

पुरूषों  मे स्तन कैंसर का कारण 

* एस्ट्रोजेन के स्तर  में  बढ़ोतरी .

* लीवर  की तीव्र गति (सिरोसिस .

* मोटापा .

* क्लिंफेल्टर  का रोग  .

* विकिरण का प्रभाव .

* स्त्री के स्तन का पारिवारिक व्रतान्त.

 

महिलाऐं इन लक्षणों पर दे  ध्यान 

*  स्तन में  पिंड

*  अन्दर को धंसी स्तनाग्र

*  स्तनाग्र से स्राव

*  स्तनाग्र का सूजना

* स्तनो  का बढऩा व सिकुडऩा

* स्तनो का सख्त होना

* हड्डी में  दर्द होना

* पीठ में दर्द होना

पुरूषों इन लक्षणों पर दे ध्यान

* निप्पल के नीचे   की ओर वेदना विहीन ,स्थिर गाठं  होना .

*उपरी चमड़ी मे परिवर्तन होना जैसे चमड़ी में  अल्सर ,चमड़ी अन्दर की ओर खीचना निप्पल का लाल होना .

* निप्पल से किसी प्रकार का द्रव आना या रक्त आना  आन्तरिक कैंसर का सूचक है.

* आग्रीमावस्था  मे सार्वदेहिक  लक्षण जैसे मतली कमजोरी  और  भार  मे कमी होने लगती है .

डॉक्टरी जाँच है जरूरी

स्तन की दर्द रहित गांठ को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिये और अगर वह गांठ स्तन कैंसर का रूप ले चुकी है तो समय रहते ही उसकी जाँच कैंसर विशेषज्ञ से ही कराये .

प्रमुख  टेस्ट

सोनोग्राफी या मेमोग्राफी -एफएनएसी – गांठ की कोशिकओं को महीन सुई की सहायता से निकल कर प्रयोगशाला में जाँच कराया जाता है.

बायोप्सी – छोटे  ऑपरेशन से गांठ का एक छोटा  भाग लेकर प्रयोगशाला में कैंसर की जाँच के लिए भेजा जाता है, बायोप्सी से पता चलता है कि आपमें स्तन कैंसर है या नही. कैंसर के फेह्लाव की सही सीमा स्पष्ट   हो जाएगी और यह भी पता चल जायेगा की ट्यूमर  कोशिकाएं एस्ट्रोजन    रिसेप्ट  पोजिटिव हैं या नेगेटिव.  यह भी की कैंसर कोशिकाओं में एचईआर -2 जें की अनेक कॉपी मौजूद हैं. आगे किये जाने वाले उपचार में इन जानकारियों से काफी सहयता मिल सकती है और इलाज भी सही तरीके से किया जा सकता है.

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