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आई हेट हर-भाग 2: गूंज अपनी मां से क्यों नाराज रहती थी?

कुछ दिनों के बाद वह एक दिन स्कूल से लौट कर आई तो मां उस पैंसिल बौक्स को पंडित के लड़के को दे रही थीं. यह देखते ही वह चिल्ला कर  उन के हाथ से बौक्स छीनने लगी,”यह मुझे मिला था, यह मेरा है.”

 

इतनी सी बात पर मां ने उस की गरदन पीछे से इतनी जोर से दबाई कि उस की सांसें रुकने लगीं और मुंह से गोंगों… की आवाजें निकलने लगीं… वह बहुत देर तक रोती रही थी.

 

लेकिन समय सबकुछ भुला देता है.

वह कक्षा 4 में थी. अपनी बर्थडे के दिन नई फ्रौक दिलवाने की जिद करती रही लेकिन फ्रौक की जगह उस के गाल थप्पड़ से लाल हो गए थे. वह रोतेरोते सो गई थी लेकिन शायद पापा को उस का बर्थडे याद था इसलिए वह उस के लिए टौफी ले कर आए थे. वह स्कूल यूनीफौर्म में ही अपने बैग में टौफी रख कर बेहद खुश थी. लेकिन शायद टौफी सस्ती वाली थी, इसलिए ज्यादातर बच्चों ने उसे देखते ही लेने से इनकार कर दिया था. वह मायूस हो कर रो पड़ी थी. उस ने गुस्से में सारी टौफी कूङेदान में फेंक दी थी.

लेकिन बर्थडे तो हर साल ही आ धमकता था.

 

पड़ोस में गार्गी उस की सहेली थी. उस ने आंटी को गार्गी को अपने हाथों से खीर खिलाते देखा था. उसी दिन से वह कल्पनालोक में केक काटती और मां के हाथ से खीर खाने का सपना पाल बैठी थी. पर बचपन का सपना केक काटना और मां के हाथों  से खीर खाना उस के लिए सिर्सफ एक सपना ही रह गया .

 

वह कक्षा 6 में आई तो सुबह मां उसे चीख कर जगातीं, कभी सुबहसुबह थप्पड़ भी लगा देतीं और स्वयं पत्थर की मूर्ति के सामने बैठ कर घंटी बजाबजा कर जोरजोर से भजन गाने बैठ जातीं.

 

वह अपने नन्हें हाथों से फ्रिज से दूध निकाल कर कभी पीती तो कभी ऐसे ही चली जाती. टिफिन में 2 ब्रैड या बिस्कुट देख कर उस की भूख भाग जाती. अपनी सहेलियों के टिफिन में उन की मांओं के बनाए परांठे, सैंडविच देख कर उस के मुंह में पानी आ जाता साथ ही भूख से आंखें भीग उठतीं. यही वजह थी कि वह मन ही मन मां से चिढ़ने लगी थी.

 

उस ने कई बार मां के साथ नजदीकी बढ़ाने के लिए उन के बालों को गूंथने और  हेयरस्टाइल बनाने की कोशिश भी की थी मगर मां उस के हाथ झटक देतीं.

 

मदर्सडे पर उस ने भी अपनी सहेलियों के साथ बैठ कर उन के लिए प्यारा सा कार्ड बनाया था लेकिन वे उस दिन प्रवचन सुन कर बहुत देर से आई थीं. गूंज को मां का इतना अंधविश्वासी होना बहुत अखरता था. वे घंटों पूजापाठ करतीं तो गूंज को कोफ्त होता.

 

जब मदर्सडे पर उस ने उन्हें मुस्कराते हुए कार्ड दिया तो वे बोलीं,”यह सब चोंचले किसलिए? पढोलिखो, घर का काम सीखो, आखिर पराए घर जाना है… उन्होंने कार्ड खोल कर देखा भी नहीं था और अपने फोन पर किसी से बात करने में बिजी हो गई थीं.

 

वह मन ही मन निराश और मायूस थी साथ ही गुस्से से उबल रही थी.

पापा अपने दुकान में ज्यादा बिजी रहते. देर रात घर में घुसते तो शराब के नशे में… घर में ऊधम न मचे, इसलिए मां चुपचाप दरवाजा खोल कर उन्हें सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा देतीं. वह गहरी नींद में होने का अभिनय करते हुए अपनी बंद आंखों से भी सब देख लिया करती थी.

 

रात के अंधेरे में मां के सिसकने की भी आवाजें आतीं. शायद पापा मां से उन की पत्नी होने का जजियाकर वसूलते थे. उस ने भी बहुत बार मां के चेहरे, गले और हाथों पर काले निशान देखे थे.

 

पापा को सुधारने के लिए मां ने बाबा लोगों की शरणों में जाना शुरू कर दिया था… घर में शांतिपाठ, हवन, पूजापाठ, व्रतउपवास, सत्संग, कथा आदि के आयोजन आएदिन होने लगे था. मां को यह विश्वास था कि बाबा ही पापा को नशे से दूर कर सकते हैं, इसलिए वे दिनभर पूजापाठ, हवनपूजन और उन लोगों का स्वागतसत्कार करना आवश्यक समझ कर उसी में अपनेआप को समर्पित कर चुकी थीं. वैसे भी हमेशा से ही घंटों पूजापाठ, छूतछात, कथाभागवत में जाना, बाबा लोगों के पीछे भागना उन की दिनचर्या में शामिल था.

 

अब तो घर के अंदर बाबा सत्यानंद का उन की चौकड़ी के साथ जमघट लगा रहता… कभी कीर्तन, सत्संग और कभी बेकार के उपदेश… फिर स्वाभाविक था कि उन का भोजन भी होगा…

 

पापा का बिजनैस बढ़ गया और उस महिला का तबादला हो गया था, जिस के साथ पापा का चक्कर चल रहा था. वह मेरठ चली गई थी… मां का सोचना था कि यह सब कृपा गुरूजी की वजह से ही हुई है, इसलिए अब पापा भी कंठी माला पहन कर सुबहशाम पूजा पर बैठ जाते. बाबा लोगों के ऊपर खर्च करने के लिए पापा के पास खूब पैसा रहता…

 

इन सब ढोंगढकोसलों के कारण उसे पढ़ने और अपना होमवर्क करने का समय ही नहीं मिलता. अकसर उस का होमवर्क अधूरा रहता तो वह स्कूल जाने के लिए आनाकानी करती. इस पर मां का थप्पड़ मिलता और स्कूल में भी सजा मिलती.

 

वह क्लास टेस्ट में फेल हो गई तो पेरैंट्स मीटिंग में टीचर ने उस की शिकायत की कि इस का होमवर्क पूरा नहीं रहता और क्लास में ध्यान नहीं देती, तो इस बात पर भी मां ने उस की खूब पिटाई की थी.

 

धीरेधीरे वह अपनेआप में सिमटने लगी थी. उस का आत्मविश्वास हिल चुका था. वह हर समय अपनेआप में ही उलझी रहने लगी थी. क्लास में टीचर जब समझातीं तो सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकल जाता.

 

वह हकलाने लगी थी. मां के सामने जाते ही वह कंपकंपाने लगती. पिता की अपनी दुनिया थी. वे उसे प्यार तो करते थे, पिता को देख कर गूंज खुश तो होती थी लेकिन बात नहीं कर पाती थी. वह कभीकभी प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेर देते तो  वह खुशी से निहाल हो उठती थी.

 

उधर मां की कुंठा बढती जा रही थी. वे नौकरों पर चिल्लातीं, उन्हें गालियां  देतीं और फिर गूंज की पिटाई कर के स्वयं रोने लगतीं,”गूंज, आखिर मुझे क्यों तंग करती रहती हो?‘’

आई हेट हर-भाग 1: गूंज अपनी मां से क्यों नाराज रहती थी?

सुबह के 7 बजे थे, गूंज औफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी कि मां के फोन ने उस का मूड खराब कर दिया,”गूंज बिटिया, मुझे माफ कर दो…मेरी हड्डी टूट गई है…”

“बीना को दीजिए फोन…,” गूंज परेशान सा बोली. ‘’बीना क्या हुआ मां को?”

“दीदी, मांजी बाथरूम में गिर कर बेहोश हो गई थीं. मैं ने गार्ड को बुलाया और किशोर अंकल भी आ गए थे. किसी तरह बैड पर लिटा दिया लेकिन वे बहुत जोरजोर से रो रहीं हैं. सब लोग होस्पिटल ले जाने को बोल रहे हैं. शायद फ्रैक्चर हुआ है. किशोर अंकल आप को फोन करने के लिए बोल रहे थे.”

“बीना, मैं डाक्टर को फोन कर देती हूं. वह देख कर जो बताएंगे फिर देखती हूं…’’

गूंज ने अपने फैमिली डाक्टर को फोन किया और औफिस आ गई. उसे मालूम हो गया था कि मां को हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है, इसी वजह से वे परेशान थीं. उसे अब काफी चिंता होने लगी थी.

किशोर अंकल ने ऐंबुलैंस बुला कर उन्हें नर्सिंगहोम में ऐडमिट करवा दिया था. इतनी देर से लगातार फोन से सब से बात करने से काम तो हो गया, लेकिन बीना है कि बारबार फोन कर के कह रही है कि मां बहुत रो रही हैं और एक बार आने को बोल रही हैं.

“गूंज, किस का फोन है जो तुम बारबार फोन कट कर रही हो?’’ पार्थ ने पूछा. पार्थ उस के साथ उसी के औफिस में काम करता है और अच्छा दोस्त है.

एक ही कंपनी में काम करतेकरते दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई थी. फिर दोनों कब आपस में अपने सुखदुख साझा करने लगे थे, यह पता ही नहीं लगा था.

गूंज ने अपना लैपटौप बंद किया और सामान समेटती हुई बोली, ‘’मैं रूम पर जा रही हूं.‘’पार्थ ने भी अपना लैपटौप बंद कर बौस के कैबिन में जा कर बताया और दोनों औफिस से निकल पड़े.

“गूंज, चलो न रेस्तरां में 1-1 कप कौफी पीते हैं.”गूंज रोबोट की तरह उदास कदमों के साथ रेस्तरां की ओर चल दी. वह वहां बैठी अवश्य थी पर उस की आंखों से ऐसा स्पष्ट हो रहा था कि उस का शरीर यहां है पर मन कहीं और, मानों वह अपने अंतर्मन से संघर्ष कर रही हो .

पार्थ ने उस का मोबाइल उठा लिया और काल हिस्ट्री से जान लिया था कि उस की मां की कामवाली का फोन, फिर डाक्टर…“क्या हुआ तुम्हारी मम्मी को?’’“वे गिर गईं हैं, हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है. मुझे रोरो कर बुला रही हैं.‘’“तुम्हें जाना चाहिए.‘’

“मुझे तो सबकुछ करना चाहिए, इसलिए कि उन्होंने मुझे पैदा कर के मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है…इसलिए…उन्होंने मेरे साथ क्या किया है? हमेशा मारनापीटना… प्यारदुलार के लिए मैं सदा तरसती रही…अब आएं उन के भगवान…करें उन की देखभाल….उन के गुरु  महराज… जिन के कारण वे मेरी पिटाई किया करती थीं. आई हेट हर.”

‘’देखो गूंज, तुम्हारा गुस्सा जायज है, होता है… कुछ बातें स्मृति से प्रयास करते रहने से भी नहीं मिट पातीं. लो पानी लो, अपनेआप को शांत करो.”

“पार्थ, मैं मां की सूरत तक नहीं देखना चाहती,‘’ कह कर वह सिसक उठी थी.पार्थ चाहता था कि उस के मन की कटुता आंसू के माध्यम से बाहर निकल जाएं ताकि वह सही निर्णय ले पाए.

वह छोटी सी थी. तब संयुक्त परिवार में रहती थी. घर पर ताईजी का शासन था क्योंकि वह रईस परिवार की बेटी थी. मां सीधीसादी सी समान्य परिवार से थीं.

गूंज दुबलीपतली, सांवली, पढ़ने में कमजोर, सब तरह से उपेक्षित… पापा का किसी के साथ चक्कर था… सब तरह से बेसहारा मां दिन भर घर के कामों में लगी रहतीं. उन का सपना था कि उन की बेटी पढ़लिख कर औफिसर बने पर उसे तो आइसपाइस, कैरमबोर्ड व दूसरे खेलों से ही फुरसत नहीं रहती. वह हर समय ताई के गोलू और चिंटू के पीछेपीछे उन की पूंछ की तरह घूमा करती.

घर में कभी बुआ के बच्चे, तो कभी मौसी के बच्चे तो कभी पड़ोस के साथियों की टोली का जमघट लगा रहता. बस, सब का साथ पा कर वह भी खेलने में लग जाती.

एक ओर पति की उपेक्षा, पैसे की तंगी साथ में घरेलू जिम्मेदारियां. कुछ भी तो मां के मनमाफिक नहीं था. गूंज जिद करती कि मुझे गोलू भैया जैसा ही बैग चाहिए, नाराज हो कर मां उस का कान पकड़ कर लाल कर देतीं. वह सिसक कर रह जाती. एक तरफ बैग न मिल पाने की तड़प, तो दूसरी तरफ कान खींचे जाने का दर्द भरा एहसास और सब से अधिक अपनी बेइज्जती को महसूस कर गूंज  कभी रो पड़ती तो कभी चीखनेचिल्लाने लगती. इस से फिर से उस की पिटाई होती थी. रोनाधोना और भूखे पेट सो जाना उस की नियति थी.

उस उम्र में वह नासमझ अवश्य थी पर पिटाई होने पर अपमान और बेइज्जती को बहुत ज्यादा ही महसूस करती थी.

गूंज दूसरी क्लास में थी. उस की फ्रैंड हिना का बर्थडे था. वह स्कूल में पिंक कलर की फ्रिल वाली फ्रौक पहन कर आई थी. उस ने सभी बच्चों को पैंसिल बौक्स के अंदर पैंसिल, रबर, कटर और टौफी रख कर दिया था. इतना सुंदर पैंसिल बौक्स देख कर वह खुशी से उछलतीकूदती घर आई और मां को दिखाया तो उन्होंने उस के हाथ से झपट कर ले लिया,’’कोई जरूरत नहीं है इतनी बढ़िया चीजें स्कूल ले जाने की, कोई चुरा लेगा.‘’

वह पैर पटकपटक कर रोने लगी, लेकिन मां पर कोई असर नहीं पड़ा था.

सब्जी का बीज ऐसे करें तैयार

बीज एक छोटी जीवित संरचना है, जिस में पौधा ऊतकों की कई परतों से ढका हुआ नींद में रहता है और जो सही माहौल जैसे नमी, ताप, हवा और रोशनी व मिट्टी के संपर्क से नए पौधों के रूप में विकसित हो जाता है.

भारत में किसान परिवारों की संख्या बहुत सारे पश्चिमी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है. ऐसे में किसानों को अधिक पैदावार के लिए अच्छी क्वालिटी वाले बीज सही मात्रा में सही समय पर सही कीमतों के साथ मुहैया कराना जरूरी है.

कुछ सब्जियां, जिन का इस्तेमाल किचन गार्डन के रूप में भी किया जाता है, जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, मटर, मूली, चुकंदर, लहसुन, प्याज, मेथी, चौलाई, पत्ता गोभी, फूल गोभी, भिंडी वगैरह के बीज उत्पादन की तकनीक व उन की क्वालिटी के बारे में वैज्ञानिक तरीके यहां बताए जा रहे हैं:

प्याज

प्याज में परागण कीटों द्वारा होता है. बीज के लिए यह 2 साला फसल है. प्याज की

सभी किस्मों का बीज मैदानी इलाकों में तैयार किया जा सकता है. बीज उत्पादन के लिए

सब्जी का बीज ऐसे करें तैयार

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बीज एक छोटी जीवित संरचना है, जिस में पौधा ऊतकों की कई परतों से ढका हुआ नींद में रहता है और जो सही माहौल जैसे नमी, ताप, हवा और रोशनी व मिट्टी के संपर्क से नए पौधों के रूप में विकसित हो जाता है.

भारत में किसान परिवारों की संख्या बहुत सारे पश्चिमी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है. ऐसे में किसानों को अधिक पैदावार के लिए अच्छी क्वालिटी वाले बीज सही मात्रा में सही समय पर सही कीमतों के साथ मुहैया कराना जरूरी है.

कुछ सब्जियां, जिन का इस्तेमाल किचन गार्डन के रूप में भी किया जाता है, जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, मटर, मूली, चुकंदर, लहसुन, प्याज, मेथी, चौलाई, पत्ता गोभी, फूल गोभी, भिंडी वगैरह के बीज उत्पादन की तकनीक व उन की क्वालिटी के बारे में वैज्ञानिक तरीके यहां बताए जा रहे हैं:

 

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2 विधियां हैं:

बीज से बीज : इस विधि में बल्बों का उत्पादन सामान्य तरीके से ही करते हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल उन किस्मों के लिए करते हैं, जिन का अच्छी तरह भंडारण नहीं किया जा सकता यानी बीजों का इस्तेमाल उसी साल करना होता है.

बीज की बोआई अगस्त महीने में करते हैं और प्रतिरोपण सितंबर माह में किया जाता है. बल्बों में फरवरी में फूल आ जाते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज के लिए बल्बों का चुनाव नहीं करते हैं. इसी कारण बीज प्रचुर मात्रा में होता है, परंतु क्वालिटी अच्छी नहीं होती है.

बल्ब से बीज : इस विधि में पिछले मौसम में हासिल बल्बों को खेत में लगाते हैं. बीज के लिए स्वस्थ, चमकदार, मध्यम आकार के बल्बों का चुनाव करते हैं. 7-9 सैंटीमीटर व्यास और 50-60 ग्राम औसत वजन वाले बल्बों को 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. स्वस्थ व औसत वजन वाले बल्ब लगाने से उपज में बढ़वार होती है. बल्बों को लगाते समय लाइन से लाइन व पौधों से पौधों की दूरी 45×30 सैंटीमीटर रखते हैं.

बल्बों को 45 सैंटीमीटर चौड़ी मेंड़ बना कर बोआई करना सही होता है. बोआई के

3 महीने बाद फूल आ जाते हैं और 6 हफ्ते बाद बीज पक कर तैयार हो जाते हैं. फूल एकसाथ पक कर तैयार नहीं होते हैं. पके बीज फूल से छिटक कर जमीन पर गिर जाते हैं. इसलिए तैयार बीज छिटकने से पहले फूल को काट लेते हैं.

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इस तरह की कटाई 4 बार की कटाई के बाद खत्म हो पाती है. पके पुष्प गुच्छ को बीज छत्रक भी कहते हैं. बीज छत्रकों को कटाई के बाद हवादार व छायादार जगह पर सुखा लेते हैं. अच्छी तरह सूख जाने के बाद छत्रकों से बीज अलग कर देते हैं. बीजों को साफ कर के अच्छी तरह सुखा लेते हैं.

टमाटर

बीज के लिए टमाटर की खेती उसी तरह से होती है, जिस तरह सब्जी के लिए करते हैं. टमाटर स्वपरागित पौधा होते हुए भी इस में

30-40 फीसदी तक परपरागण पाया जाता है. इस कारण बीज तैयार करते समय 2 किस्मों के बीजों की दूरी 50 से 100 मीटर रखते हैं. बीज के लिए स्वस्थ पौधे का चुनाव करते हैं और पूरी तरह से पक जाने के बाद बीज के लिए फल को तोड़ते हैं. फल तोड़ने के बाद 2 तरीकों से बीज को अलग करते हैं:

किण्वन विधि : इस विधि का इस्तेमाल छोटेछोटे फलों, जिन में ज्यादा बीज होते हैं, के लिए किया जाता है. इस में टमाटर के गुच्छे को मिट्टी या लकड़ी के बरतन में 1-2 दिनों के लिए रख देते हैं.

इस के बाद उस बरतन में पानी भर देते हैं, जिस में पके टमाटर के गुच्छे रखे होते हैं. इस में टमाटर का गूदा और छिलका तैरने लगता है और बीज नीचे तली में बैठ जाते हैं. इन्हें छान कर अलग कर लिया जाता है. इस काम में टमाटर का कोई भी भाग खाने के काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इस विधि से मिले बीजों में अंकुरण अच्छा होता है.

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अम्लोपचार विधि : बड़े स्तर पर बीज हासिल करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल होता है. इस में टमाटर का गूदा खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के लिए 14 किलोग्राम पके टमाटर के फल में 100 मिलीलिटर हाइड्रोक्लोरिक एसिड गूदे के साथ अच्छी तरह मिला कर 30 मिनट तक रख देते हैं.

इस तरह बीज व गूदा लसलसे पदार्थ से अलग हो जाता है. उस के बाद बीज व गूदे को साफ पानी से अच्छी तरह साफ कर लेते हैं और बीज को सुखा लेते हैं. इस विधि से मिले बीजों में अंकुरण की समस्या देखी गई है.

बैगन

बैगन में स्वपरागण होता है, परंतु कुछ हद तक कीटों द्वारा परपरागण भी होता है. इसलिए जब बीज के लिए बैगन की खेती की जा रही हो तो बैगन की 2 किस्मों के बीच कम से कम 200 मीटर की दूरी रखी जानी जरूरी होती है.

फूल आने के पहले, फूल आते समय और फूलों के तैयार होते समय पौधों की जांच करते रहें. अच्छे स्वस्थ पौधों पर लगे फूलों को बीज के लिए छोड़ते हैं. बीमार पौधों को पहली जांच में ही हटा देना चाहिए.

बीज के लिए छोड़े गए फल जब पक कर पीले पड़ जाते हैं तब उन्हें तोड़ लेना चाहिए. फल का छिलका हटा दें और फल के चाकू से पतलेपतले टुकड़े कर के बीज को गूदे से निकाल कर पानी में डुबो देते हैं.

इस के बाद बीज को धूप में सुखा लेते हैं, नहीं तो बीज के फूटने का डर बना रहेगा. बीज की औसत प्राप्ति 125-200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

मटर

मटर स्वपरागित फल है, लेकिन कुछ किस्मों में कम मात्रा में परपरागण भी होता है. बीज के लिए मटर की खेती उसी तरह की जाती है जैसे सब्जी फसल के लिए की जाती है. बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए आधार बीज के लिए 2 किस्मों की खेती में 20 मीटर और प्रमाणित बीज के लिए 10 मीटर का अंतर रखना चाहिए.

इस के बाद भी फूलों के आने पर जांच के दौरान अगर और किस्म का पौधा दिखाई पड़ता है तो उसे उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए. जांच के दौरान बीमारी व कीट वाले पौधों को भी उखाड़ कर खत्म कर देना चाहिए.

पकी हुई फलियों को तोड़ कर दानों को छिलकों से अलग कर लें. बीज से टूटेफूटे दानों को अलग कर देना चाहिए. मटर बीज की औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

मूली

मूली में भी परंपरागत परागण होता है. परपरागण मुख्य रूप से मधुमक्खियों द्वारा होता है. मूली की एशियाई किस्मों से मैदानी और पहाड़ी इलाकों में बीज तैयार हो सकता है, परंतु यूरोपियन किस्मों के बीज केवल पहाड़ी इलाकों में ही होते हैं. जापानी व्हाइट किस्म का बीज मैदानी इलाकों में भी तैयार किया जा सकता है.

प्रमाणित बीज के लिए मैदानों में मूली की 2 किस्मों के बीच 1,000 मीटर की दूरी रखते हैं, जबकि आधार बीज में यह दूरी 1,600 मीटर की होनी चाहिए. जब तापमान 33 डिगरी सैंटीग्रेड से ज्यादा हो जाता है, तो स्त्रीकेसर सूख जाती है और पराग का अंकुरण रुक जाता है.

मूली के बीज तैयार करने के 2 तरीके

बीज से बीज : इस विधि में मूली को खेत में ही छोड़ देते हैं. जड़ पकने के बाद फूल आते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज अधिक बनते हैं, परंतु बीज की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है, क्योंकि इस विधि में बीज पौधों का चुनाव संभव नहीं हो पाता है.

जड़ से बीज : इस विधि में मूली की स्वस्थ और पूरी तरह तैयार जड़ों को नवंबरदिसंबर महीने में, जब मूली खाने के लिए तैयार हो जाती है, तो उखाड़ लिया जाता है. आधे से तीनचौथाई भाग जड़ का और एकतिहाई हिस्सा पत्तियों का काट दिया जाता है. पत्ती सहित कटी हुई जड़ों को तैयार खेत में 75×30 सैंटीमीटर की दूरी पर फिर से लगाते हैं. इन्हें लगाने का सही समय मध्य नवंबर से दिसंबर मध्य तक का होता है. देरी से लगाने के कारण बहुत सी जड़ें सड़ जाती हैं. इन में से कुछ ही जड़ें फूटती हैं जिस के कारण कम बीज मिलता है.

नवंबरदिसंबर माह में लगाई जड़ों में मार्चअप्रैल में फलियां तैयार हो जाती हैं. फलियों को कुछ समय तक छाया

में सुखा लेते हैं. इस विधि से उन्नत बीज हासिल किया जा सकता है. किस्मों के अनुसार बीज की औसत उपज 600 से 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होती है. मूली की तरह ही गाजर और शलजम के भी बीज तैयार कर सकते हैं.

भिंडी

यह स्वपरागित फसल होती है, परंतु इस में परपरागण की भी संभावना बनी रहती है. इसलिए बीज के लिए की जा रही खेती के लिए 2 किस्मों के बीच कम से कम 400 मीटर की दूरी रखनी चाहिए.

बीज वाले खेत से बीमार पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें. बीज के लिए स्वस्थ फल को पकने के लिए छोड़ देते हैं. अगर भिंडी को

2-3 बार तोड़ने के बाद बीज के लिए पकने के लिए छोड़ा जाता है तो बीज की मात्रा और क्वालिटी में कमी आ जाती है. भिंडी की बोआई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 45×15 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

शिमला मिर्च

यह फसल भी स्वपरागित है, परंतु परपरागण की संभावना के चलते 2 किस्मों के बीजों की बोआई करते समय 400 मीटर की दूरी रखें. बीज के लिए अच्छे, स्वस्थ पौधों को चुना जाता है. चुने हुए पौधों के फलों को पकने के लिए छोड़ना चाहिए.

अन्य मिर्च के फलों को तोड़ लेना चाहिए. पकने के लिए छोडे़ गए फलों को पूरी तरह पकने के बाद जब वे सिकुड़ने लगें, तब तोड़ लेते हैं. इस तरह औसत बीज की प्राप्ति 50 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

चुकंदर

इस का बीज पहाड़ी इलाकों में ही तैयार किया जा सकता है. यह परपरागित फसल है और परपरागण हवा द्वारा होता है. प्रमाणित बीज में 1,000 मीटर, आधार बीज में 1,600  मीटर और नाभकीय बीज में 3,000 मीटर की दूरी पर अन्य किस्मों को उगाना चाहिए.

लहसुन

लहसुन की बोआई बीज से नहीं होती है. बोआई के लिए इस के जवों का इस्तेमाल करते हैं और बीज के लिए कोई खास तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. सब्जी या मसालों के लिए उपजाई गई फसल में से स्वस्थ, अच्छे

और बड़े कंदों को बीज के लिए रखते हैं.

बीज वाली फसल के लिए लाइन से लाइन की दूरी 40 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी

10-12 सैंटीमीटर रखते हैं.

सभी फसलों के बीज के लिए खेती करते समय खेती के वैज्ञानिक तरीकों को ही अपनाना चाहिए. खाद व पानी का भी इस्तेमाल इलाकेवार वैज्ञानिकों द्वारा तय मात्राओं के मुताबिक ही करना चाहिए. बीज उत्पादन के लिए केवल संबंधित फसल के लिए संस्तुत की गई दूरियों पर खास ध्यान देना चाहिए. इन तरीकों को अपना कर किसान अपनी जरूरतों के लिए बीज तैयार कर सकते हैं.            ठ्ठ

बीज से बीज : इस विधि में बल्बों का उत्पादन सामान्य तरीके से ही करते हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल उन किस्मों के लिए करते हैं, जिन का अच्छी तरह भंडारण नहीं किया जा सकता यानी बीजों का इस्तेमाल उसी साल करना होता है.

बीज की बोआई अगस्त महीने में करते हैं और प्रतिरोपण सितंबर माह में किया जाता है. बल्बों में फरवरी में फूल आ जाते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज के लिए बल्बों का चुनाव नहीं करते हैं. इसी कारण बीज प्रचुर मात्रा में होता है, परंतु क्वालिटी अच्छी नहीं होती है.

बल्ब से बीज : इस विधि में पिछले मौसम में हासिल बल्बों को खेत में लगाते हैं. बीज के लिए स्वस्थ, चमकदार, मध्यम आकार के बल्बों का चुनाव करते हैं. 7-9 सैंटीमीटर व्यास और 50-60 ग्राम औसत वजन वाले बल्बों को 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. स्वस्थ व औसत वजन वाले बल्ब लगाने से उपज में बढ़वार होती है. बल्बों को लगाते समय लाइन से लाइन व पौधों से पौधों की दूरी 45×30 सैंटीमीटर रखते हैं.

बल्बों को 45 सैंटीमीटर चौड़ी मेंड़ बना कर बोआई करना सही होता है. बोआई के

3 महीने बाद फूल आ जाते हैं और 6 हफ्ते बाद बीज पक कर तैयार हो जाते हैं. फूल एकसाथ पक कर तैयार नहीं होते हैं. पके बीज फूल से छिटक कर जमीन पर गिर जाते हैं. इसलिए तैयार बीज छिटकने से पहले फूल को काट लेते हैं.

इस तरह की कटाई 4 बार की कटाई के बाद खत्म हो पाती है. पके पुष्प गुच्छ को बीज छत्रक भी कहते हैं. बीज छत्रकों को कटाई के बाद हवादार व छायादार जगह पर सुखा लेते हैं. अच्छी तरह सूख जाने के बाद छत्रकों से बीज अलग कर देते हैं. बीजों को साफ कर के अच्छी तरह सुखा लेते हैं.

10-12 सैंटीमीटर रखते हैं.

सभी फसलों के बीज के लिए खेती करते समय खेती के वैज्ञानिक तरीकों को ही अपनाना चाहिए. खाद व पानी का भी इस्तेमाल इलाकेवार वैज्ञानिकों द्वारा तय मात्राओं के मुताबिक ही करना चाहिए. बीज उत्पादन के लिए केवल संबंधित फसल के लिए संस्तुत की गई दूरियों पर खास ध्यान देना चाहिए. इन तरीकों को अपना कर किसान अपनी जरूरतों के लिए बीज तैयार कर सकते हैं.

ढलती उम्र में पूरा करें मां बनने का सपना

लाइफस्टाइल में बदलाव, पढ़ाई और करियर में लगने वाला लंबा समय, तीस-पैंतीस साल के बाद शादी और नौकरी की झंझटों के बीच कई औरतों का माँ बनने का सपना अधूरा रह जाता है. अधिक उम्र हो जाने पर जल्दी कंसीव भी नहीं कर पातीं और कंसीव हो जाए तो मिसकैरिज का ख़तरा बना रहता है. बहुतेरी महिलायें सही पार्टनर ना मिलने के कारण सिंगल ही रह जाती हैं लेकिन माँ बनने का सपना तो उनकी आँखों में भी तैरता है. आजकल बहुतेरी महिलायें सिंगल मदर बनने की चाह रखती हैं. ढलती उम्र के साथ ये सपना और जवान होने लगता है. दिल चाहता है कि कोई तो अपना हो जो बुढ़ापे में उंगली थामे, रोटी खिलाये और बीमार पड़ने पर डॉक्टर के पास ले जाए.

फोर्टिस अस्पताल दिल्ली में कार्यरत डॉ. नीना बहल कहती हैं, ‘मेरे पास ऐसी बहुत सी युवतियां आती हैं जो अभी बहुत अच्छी जॉब में हैं, जिनके पास तरक्की के और विदेश जाने के चान्सेस हैं, तो ऐसी स्थिति में वे फिलहाल माँ बनकर अपने करियर को नुक्सान में नहीं डालना चाहती हैं. वे पांच से दस साल काम करने और अच्छी सेविंग्स करने के बाद फैमिली को बढ़ाना चाहती हैं. लेकिन उनको डर है कि उम्र बढ़ने पर उनके अण्डों की क्वालिटी और संख्या घटती जाएगी और कहीं इस वजह से वो बाद में माँ ना बन पाएं तो जीवन अधूरा रह जाएगा. वो मुझसे इसका सलूशन चाहती हैं, वहीँ मेरे पास चालीस से पैंतालीस साल की भी कई महिलायें आती हैं जो इस उम्र में बच्चा चाहती हैं. मैं करियर के प्रति गंभीर महिलाओं को यही सलाह दूंगी कि अगर वो जल्दी बच्चा नहीं चाहती तो पच्चीस से तीस साल की उम्र के बीच कम से कम अपने हेल्दी अण्डों को फ्रीज़ करवा लें, करियर की ढलान पर या जब वो अपनी फैमिली बढ़ाना चाहें तब वो अपने ही फ्रीज़ अण्डों से बच्चा पा सकती हैं. महिलाओं द्वारा बढ़ती उम्र में कंसीव करने का सपना सच करने में फर्टिलिटी प्रिजर्वेशन तकनीक ‘सोशल एग फ्रीजिंग’ कारगर साबित हो रही है. ये तकनीक अब बहुत कॉमन हो चुकी है और इसमें झिझकने या शर्माने जैसा कुछ नहीं है.’

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डॉ. नीना बहल बताती हैं कि हमारे समाज में लोगों की आधुनिक होती सोच की वजह से इस तकनीक को तेजी से अपनाया जा रहा है. मेट्रो सिटीज के अलावा छोटे शहरों में भी एग फ्रीजिंग का ट्रेंड चल रहा है. महिलाओं में बढ़ती उम्र में फर्टिलिटी प्रॉब्लम को रोकने में ये तकनीक काफी इफेक्टिव है. कई महिलाएं मां बनने की सही उम्र होने पर भी परिवार में बढ़ते तनाव या अन्य परेशानियों के चलते मां नहीं बन पाती हैं. इन महिलाओं के लिए भी उम्र बढ़ जाने पर कंसीव करना एग फ्रीजिंग जैसी तकनीक के सहारे ही संभव हो सका है.

सोशल एग फ्रीजिंग तकनीक के तहत महिला के अंडाशय से परिपक्व अंडे निकाले जाते हैं. फिर इन्हें फ्रीज करके भविष्य में उपयोग के लिए रख दिया जाता है. इस प्रकार फ्रीज हुए अंडो को जरूरत पड़ने पर प्रयोगशाला में शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है. निषेचन की प्रक्रिया के बाद इसको महिला ये यूटेरस में प्लांट कर दिया जाता है. ये तकनीक महिलाओं के लिए उस समय कारगर हो जाती है जब उम्र अधिक होने पर एक महिला अपने पार्टनर से खुद की संतान चाहती है. कई बार स्पर्म डोनर के साथ भी इन अंडों को इस्तेमाल में लाया जाता है.

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कई बार जब महिलाएं 40 की उम्र के बाद मां बनना चाहती हैं या बदकिस्मती से उनकी संतान का देहांत हो गया हो, तो यही स्टोरिंग एग मां बनने के सपने को पूरा करने में उनकी मदद करते हैं. वहीँ कैंसर पेशेंट के लिए भी ये स्टोरिंग एग उनके माँ बनने के सपने को पूरा करते हैं. कैंसर के मरीज़ को कीमोथेरेपी दी जाती है जिसके चलते उनका शरीर काफी कमजोर हो जाता है. ऐसे में शरीर में बनने वाले अण्डों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. ऐसे में जो कैंसर पेशेंट बाद में माँ बनना चाहती हैं उनको कीमोथेरपी से पहले ही एग स्टोर करवाने की सलाह दी जाती है.

गौरतलब है कि महिलाओं की फर्टिलिटी को बनाए रखने में जितना महत्व अंडों की निश्चित संख्या का है, उतना ही उनकी गुणवत्ता का भी है. उम्र बढ़ने पर अण्डों की गुणवत्ता कम होती जाती है. अधिक उम्र के अंडे से उत्पन्न संतान में कोई ना कोई व्याधि या अपरिपक्वता हो सकती है. इसलिए जो महिलायें जल्दी माँ नहीं बनना चाहती हैं उनको कम से कम जवान रहते ही अपने अण्डों को फ्रीज़ करवा लेना चाहिए.

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केनेडियन फर्टिलिटी और एंड्रोलॉजी सोसायटी ने भी एग फ्रीजिंग को अधिक उम्र में मां बनने का सपना पूरा करने का कारगर तरीका बताया है. ये महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. फर्टिलिटी एंग्जाइटी को कम करने का यह तरीका उन महिलाओं को सबसे अधिक प्रभावित करता है जो 30-40 की उम्र कार्पोरेट कल्चर में ऊंचाईयां पाने में बिताती हैं. चालीस के बाद संतान की चाहत को पूरा करने में यह तकनीक उनके लिए विज्ञान का बहुत उम्दा गिफ्ट है.

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एग फ्रीज करवाने की सही उम्र

आमतौर पर महिलाओं को 25 से 36 साल की उम्र के बीच अपने एग फ्रीज करवाना चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं कर पाती तो 40 की उम्र तक भी अपने एग फ्रीज करवा सकती हैं. इस तकनीक की मदद से एक या दो साइकिल में अंडों की ज्यादा तादाद फ्रीज हो जाती है. एक आईवीएफ लैब में ये अंडे कम से कम पांच साल तक सुरक्षित रह सकते हैं. फिर जब भी आप अपना परिवार बढ़ाना चाहें किसी भी आईवीएफ सेंटर में आपके पार्टनर के शुक्राणुओं से निषेचन क्रिया के पश्चात् उन अण्डों को आपके गर्भ में रोपित किया जा सकता है.

कानपुर का विकास दुबे 8 पुलिसकर्मियो का हत्यारा

कानपुर के विकास दुबे की कहानी पूरी तरह से अपराधिक फिल्म की तरह है. जिसमें अपराधी पुलिस की साजिष से पैसा और पाॅवर हासिल करता है. राजनीति के जरीये इसको बचाने का काम करता है. उसके अपराध की एक छोटी लेकिन मजबूत दुनिया होती है. एक दिन वह उसी पुलिस से टकरा जाता है जिसने उसे इस मुकाम तक पहुुचाया होता है. कानपुर विकास का भले ही खात्मा हो जाये पर जब तक पुलिस और नेता अपराधियों  को संरक्षण देते रहेगे विकास जैसे अपराधी फलते फूलते रहेगे. कानपुर देहात में रहने वाला अपराधी विकास दुबे चर्चा में तब आया जब 03 जुलाई की सुबह 3 बजे के करीब विकास दुबे और उसके साथियों ने पुलिस टीम पर हमला करके 8 पुलिसकर्मियो को गोली मार कर षहीद कर दिया. राहुल तिवारी नाम के एक शख्स ने विकास दुबे पर हत्या का केस दर्ज कराया था. जिसके बाद पुलिस की टीम विकास दुबे को पकडने उसके गांव जा रही थी. मामले की सूचना पाकर विकास दुबे और उसके लोगों ने पुलिस की टीम पर हमला बोल दिया.

पुलिस टीम के 7 लोग घायल है. षहीद पुलिसकर्मियों में सीओ देवेन्द्र मिश्रा, इंसपेक्टर महेष यादव, अनूप कुमार, नेबूलाल, सिपाही सुल्तान सिह, राहुल, जितेन्द्र और बबलू षामिल है. घटना में पुलिस ने अपराधी पक्ष के दो लोगों को मार गिराया. उत्तर प्रदेष के पुलिस प्रमुख हितेष चन्द्र अवस्थी और बडी संख्या में पुलिस बल मौके पर है. पुलिस ने चारो तरफ से घेराबंदी कर रखी है. उत्तर प्रदेष के इतिहास की यह सबसे बडी घटना है जहां एक सामान्य अपराधी के द्वारा पुलिस को इतनी बडी क्षति पहंुचाई गई है. घटना में पुलिस की लापरवाही और खामी दोनो साफतौर पर देखी जा सकती है. यह पुलिस के खामी ही है कि उम्रकैद का अपराधी लगातार अपराध करके आगे बढता रहा. पुलिस को अब उसका ख्याल आया जब वह पुलिस के लिये ही भ्रष्मासुर बन गया.

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पैसे और पहुंच का प्रभाव:   

हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे का वैसे तो कोई राजनीतिक इतिहास नहीं है लेकिन बसपा का समर्थन जरूर प्राप्त रहा है. बसपा शासन काल में विकास को खुला समर्थन मिला हुआ था. 2002 में बसपा सरकार के दौरान इसका सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चैबेपुर के साथ ही कानपुर नगर में खौफ था. इस दौरान विकास दुबे ने जमीनों पर कई अवैध कब्जे किए. इसके अलावा जेल में रहते हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने शिवराजपुर से नगर पंचयात भी लड़ा था और जीता भी था. इतना ही नहीं बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में विकास की दहशत कायम है. जिसके चलते आलम यह रहा कि विकास जिसे समर्थन देते गांववाले उसे ही वोट देते थे. इसी वजह से इन गांवों में वोट पाने के लिए चुनाव के समय सपा, बसपा और भाजपा के भी कुछ नेता उससे संपर्क में रहते थे. दहशत के चलते विकास ने 15 वर्ष जिला पंचायत सदस्य पद पर कब्जा कर रखा है. पहले विकास खुद जिला पंचायत सदस्य रहे, फिर चचेरे भाई अनुराग दुबे को बनवाया और मौजूदा समय में विकास की पत्नी ऋचा घिमऊ से जिला पंचायत सदस्य हैं. कांशीराम नवादा, डिब्बा नेवादा नेवादा, कंजती, देवकली भीठी समेत दस गांवों में विकास के ही इशारे पर प्रधान चुने जाते थे. इन गांवों में कई बार प्रधान निर्विरोध निर्वाचित हुए, वहीं बिकरू में 15 वर्ष निर्विरोध ग्राम प्रधान चुना जाता रहा है.

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दंबगई और फिरौती का कारोबार:

विकास दुबे बहुजन समाज पार्टी में सक्रिय रहा और प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य के रूप में काम कर चुका है. विकास दुबे के अपराध और कारोबार उत्तर प्रदेश में कानपुर देहात से लेकर इलाहाबाद व गोरखपुर तक फैला है. वह कोरोबारियो तथा व्यापारी से जबरन वसूली के लिए कुख्यात है. विकास दुबे हिस्ट्रीशीटर है इसके खिलाफ 60 में से 50 से अधिक केस हत्या के प्रयास के चल रहे हैं. इस पर 25 हजार रुपया का ईनाम भी घोषित है. अपराध की वारदातों को अंजाम देने के दौरान विकास कई बार गिरफ्तार हुआ. एक बार तो लखनऊ में एसटीएफ ने उसे दबोचा था. कानपुर में एक रिटायर्ड प्रिंसिपल सिद्धेश्वर पांडेय हत्याकांड में इसको उम्र कैद हुई थी. वह जमानत पर बाहर आ गया था. कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र में ही 2000 में रामबाबू यादव की हत्याकांड में जेल के भीतर रह कर साजिश रचने का आरोप है. इसके अलावा 2004 में हुई केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या में भी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे आरोपी है.विकास दुबे ने 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला बोला था. उसने जेल में रहकर पूरी साजिश रची थी. जेल रहकर ही चचेरे भाई की हत्या करा दी. इसके बाद अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराया था.

पंचायत और निकाय चुनावों में इसने कई नेताओं के लिए काम किया और उसके संबंध प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों से हो गए. राजनेताओं के सरंक्षण से राजनीति में एंट्री की और नगर पंचायत चुनाव जीत गया था. वर्ष 2001 में प्रदेश की भाजपा सरकार में संतोष शुक्ला को दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री बनाया गया था. संतोष शुक्ला से विकास की पुरानी रंजिश चली आ रही थी तो कुछ भाजपा नेताओं ने उनके बीच समझौता कराने का प्रयास किया था. कानुपर की चैबेपुर विधानसभा क्षेत्र से हरिकृष्ण श्रीवास्तव व संतोष शुक्ला 1996 में चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव विजयी घोषित हुए थे. विजय जुलूस निकाले जाने के दौरान दोनों प्रत्याशियों के बीच गंभीर विवाद हो गया था. जिसमें विकास दुबे का नाम भी आया था. उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था. यहीं से विकास की भाजपा नेता संतोष शुक्ला से रंजिश हो गई थी. इसी रंजिश के चलते 11 नवंबर 2001 को विकास ने कानपुर के थाना शिवली के बाहर संतोष शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

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बचपन से ही अपराधी प्रवृत्ति:

विकास दुबे बचपन से ही वह अपराध की दुनिया में अपना नाम बनाना चाहता था. उसने गैंग बनाया और लूट, डकैती, हत्याएं करने लगा. कानपुर देहात के चैबेपुर थाना क्षेत्र के विकरू गांव का निवासी विकास दुबे ने युवाओं की फौज तैयार कर रखी है. विकास दुबे ने कम उम्र में ही जरायम की दुनिया में कदम रख दिया था. कई युवा साथियों को साथ लेकर चलने वाला विकास कानपुर नगर और देहात का वांछित अपराधी बन गया. चुनावों में अपने आतंक व दहशत के जोर पर जीत दिलाना पेशा बन गया. शिवली थाने के बाहर राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या में आरोपित रहे विकास दुबे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. अदालत में हत्या का मुकदमा विचाराधीन था.

इस दौरान विकास द्वारा वादी और गवाहों के धमाकाए जाने की शिकायतें पुलिस तक पहुंच रही थीं. बताया गया है कि अदालत में काफी लंबा ट्रायल हुआ लेकिन साक्ष्यों के अभाव और गवाहों के मुकर जाने से विकास दुबे पर आरोप सिद्ध नहीं हो सके और उसे बरी कर दिया गया था. इनामी बदमाश विकास दुबे को एसटीएम ने लखनऊ से गिरफ्तार करके स्प्रिंग फील्ड रायफल, 15 कारतूस व मोबाइल फोन बरामद किये थे. कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र में वर्ष 2000 में रामबाबू यादव की हत्या के मामले में विकास की जेल के भीतर रहकर साजिश रचने का आरोप लगा था. वर्ष 2004 में केबिल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या के मामले में भी विकास के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था. वर्ष 2013 में विकास को कानपुर पुलिस ने पकड़ा था, तब उस पर 50 हजार का इनाम था.

क्या सुशांत की मौत से पहले ही अपडेट हो गया था विकिपीडिया का पेज? जाने पूरा सच

सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने सभी को हिला कर रख दिया. यहां तक उनके फैंस आज भी सदमें से बाहर नहीं आ पाएं हैं. वहीं अगर परिवार वालों की बात करें तो उनके घर वाले अभी भी परेशान है उनका कहना है कि वह ऐसा नहीं कर सकते हैं.

सुशांत के फैंस लगातार सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. उन्हें अभी भी लग रहा है कि सुशांत की मौत नहीं हुई है. उन्हें मारा गया है. सुशांत के निधन को लेकर लोगों के मन में कई तरह के सवाल चल रहे हैं.

ताजा रिपोर्ट की माने तो अभिनेता के विकिपीडिया पेज पर उनकी मौज 8.59 पर बताया जा रहा है तो वहीं मुंबई पुलिस के अनुसार सुशांत अपने कमरे से 9 बजे जूस पीने निकले थें, और 10 बजे वापस अपने कमरे में गए थें.

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ट्विटर पर कई ट्विट में दावा किया गया है कि विकिपीडिया ने अपने पेज पर सुशांत की मौत को 8.59 बजे बताया है तो वहीं मुंबई पुलिस सुशांत के घर 12.30 बजे पहुंची हैं. इसे लेकर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं.

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एक यूजर  ने सवाल उठाया है कि सुशांत कि मौत का समय विकिपीडिया इतने पहले बता रहा है यह कैसे हो सकता है. क्या उसे सभी चीजें पहले से पता थी. इस बात पर लगातार कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं.

इस खबर ने मुबंई पुलिस की होश उड़ा दी है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है लोचा क्या है. वहीं विकिपीडिया ने अपनी सफाई में कहा है कि हम यूटीसी टाइम फॉर्मेट को यूज करते हैं. जिससे टाइम में कुछ ऊपर नीचे हो सकता है.

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बता दें कि सुशांत सिंह के गले में लगी फांसी को देखकर यूजर्स का कहना है कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं कि है उसे मारा गया है. इस बात पर लोग कई तरह के सवाल कर रहे हैं.

71 साल की उम्र में हुआ सरोज खान का निधन

बौलिवुड की सफल कोरियोग्राफर सरोज खान का 3 जुलाई, 2020 को निधन हो गया. वे 71 साल की थीं. उन को दिल की बीमारी के अलावा डायबिटीज भी थी.

पिछले कुछ दिनों से सरोज खान को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, इसी के चलते उन्हें 17 जून को गुरु नानक अस्पताल में भरती कराया गया था. कार्डियक अरेस्ट आने के चलते उन्होंने 3 जुलाई की रात तकरीबन 2 बजे अंतिम सांस ली.

अस्पताल में भरती होने से पहले उन का कोविड टेस्ट किया गया, जो निगेटिव आया था. अस्पताल में उन की सेहत धीरेधीरे बेहतर हो रही थी. लेकिन अचानक ही 3 जुलाई की रात 2 बजे से पहले उन की तबीयत बिगड़ी और उन्हें बचाया नहीं जा सका.

 

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#RIP SarojJi ?

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बौलीवुड में ‘मास्टरजी‘ के नाम से मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान ने कइयों के फिल्मी कैरियर को संवारा. 3 बार नेशनल अवार्ड भी उन की झोली में आया. फिल्म ‘कलंक’ के गीत ‘तबाह हो गए…’ और कंगना रनौत की फिल्म ‘मणिकर्णिकाः द क्वीन औफ झांसी‘ के एक गीत में उन की कोरियोग्राफी को आखिरी बार लोगों द्वारा सराहा गया.

बौलीवुड की कई बड़ी हीरोइनों जैसे माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय, श्रीदेवी और करीना कपूर के कैरियर को संवारने में सरोज खान की कोरियोग्राफी का बड़ा हाथ माना जाता है.

कोरियोग्राफर सरोज खान का जन्म मुंबई में साल 22 नवंबर, 1948 को हुआ था. उन का असली नाम निर्मला नागपाल था. उन्होंने महज 3 साल की उम्र से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट बैकग्राउंड डांसर फिल्म ‘नजराना’ में अपना कैरियर शुरू किया था. उन्होंने कोरियोग्राफर बी. सोहनलाल से डांस सीखा और 1974 में फिल्म ‘गीता मेरा नाम’ से बतौर कोरियोग्राफर फिल्म इंडस्ट्री में पहली बार ब्रेक मिला था.

अपने 40 साल के कैरियर में सरोज खान ने 2000 से ज्यादा गीतों को कोरियोग्राफ किया. साथ ही, उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर राइटर भी काम किया. टीवी के डांस प्रोग्राम ‘नच बलिए’ और ‘उस्तादों के उस्ताद’ में भी बतौर जज उन की भूमिका को हमेशा ही याद किया जाएगा.
…………….
बौक्स
कोरियोग्राफर सरोज खान के ये गीत हमेशा लोगों की जबान पर रहेंगे…

 

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? Rest In Peace Saroj mam..

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फिल्म ‘जब वी मेट’ के गीत ‘ये इश्क हाय…‘ को दर्शकों ने सिरआंखों लिया और नैशनल अवार्ड भी मिला.

फिल्म ‘देवदास’ के गीत ‘डोला रे डोला…‘ को भी दर्शकों का काफी प्यार मिला और नैशनल अवार्ड हासिल किया, वहीं इसी फिल्म का गीत ‘मार डाला…’ को भी सरोज खान ने ही कोरियोग्राफ किया था.

साल 1988 में आई फिल्म ‘तेजाब’ में माधुरी दीक्षित के गाने ‘एक दो तीन…‘ को हमेशा याद किया जाएगा. वहीं साल 1992 में आई फिल्म ‘बेटा’ में माधुरी दीक्षित का गीत ‘धकधक करने लगा…‘ को भी सरोज खान ने ही कोरियोग्राफ किया था.

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साल 1990 में फिल्म ‘थानेदार’ में माधुरी दीक्षित और संजय दत्त का गाना ‘तम्मा तम्मा लोगे तम्मा…‘ तो आज भी मशहूर है.

साल 1989 में फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में श्रीदेवी का गाना ‘हवाहवाई…‘ को कोरियोग्राफ किया और यह गाना काफी लोकप्रिय हुआ. वहीं उसी साल फिल्म ‘चांदनी’ में गीत ‘मेरे हाथों में नौनौ चूड़ियां हैं…’ को उन्होंने कोरियोग्राफ किया था और इस गीत ने भी महिलाओं के दिलों में अपनी खास जगह बनाई.

ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया फिल्म ‘गुरु‘ का आइकौनिक गीत ‘बरसो रे मेघा…‘ काफी मशहूर हुआ.

फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ का ‘मेंहदी लगा के रखना‘ और जरा सा झूम लूं मैं…’ में सरोज

खान ने कोरियोग्राफ किया था.

फिल्म ‘नगीना’ का गाना ‘मैं तेरी दुश्मन…’ में सरोज खान ने ही कोरियोग्राफी की थी.

इधरउधर-भाग 1 : तनु को अपने सपनों का राजकुमार कैसा चाहिए था?

“देखो तनु, शादीब्याह की एक उम्र होती है.  कब तक यों टालमटोल करती रहोगी. यह घूमनाफिरना, मस्तीमटरगश्ती एक हद तक ही ठीक रहती है. उस के आगे ज़िंदगी की सचाइयां रास्ता देख रही होती हैं. सभी को उस रास्ते पर जाना होता है,”  जयनाथ अपनी बेटी को रोज की तरह समझाने का प्रयास कर रहे थे.

“ठीक है पापा.  बस, यह आख़िरी बार, कालेज का ग्रुप है, अगले महीने से तो कक्षाएं ख़त्म  हो जाएंगी, फिर इम्तिहान और बाद में आगे की पढाई…”

जयनाथ ने बेटी तनु की बात को सुन कर अनसुना कर दिया. वे हर रोज़ अपना काफी वक़्त तनु के लिए रिश्ता ढूंढने में बिताते. जिस गति से जयनाथ रिश्ते ढूंढढूंढ कर लाते, उस से दुगनी रफ़्तार से तनु रिश्ते ठुकरा देती.

“ये 2 लिफ़ाफ़े हैं, इन में 2 लड़कों के फोटो और बायोडाटा हैं, देख लेना.  और हां, दोनों ही तुम से मिलने इस इतवार को आ रहे हैं. मैं ने तुम से बिना पूछे ही दोनों को घर बुला लिया है. पहला लड़का अम्बर दिन में 11 बजे और दूसरा आकाश शाम को 4 बजे.” जयनाथ ने लिफ़ाफ़े टेबल पर रखते हुए कहा, ”इन दोनों में से तुम्हें एक को चुनना है.”

तनु ने अनमने ढंग से लिफ़ाफ़े खोले और एक नज़र डाल कर लिफ़ाफ़े वहीं पटक दिए. सामने देखा, भाभी खड़ी थीं. तनु बोली,  “लगता है भाभी,  इन दोनों में से एक के चक्कर में पड़ना ही पड़ेगा. आप लोगों ने बड़ा जाल बिछाया है. अब और टालना मुश्किल सा लग रहा है.”

“बिलकुल सही सोच रही हो तनु. हमें बहुत जल्दी है तुम्हें यहां से भगाने की. ये दोनों रिश्ते बहुत ही अच्छे हैं.  अब तुम्हें फैसला करना है, अम्बर या आकाश. पापामम्मी ने पूरी तहकीकात कर के ही तुम तक ये रिश्ते पहुंचाए हैं. आख़िरी फैसला तुम्हारा ही होगा.”

“अगर दोनों ही पसंद आगए तो?” तनु ने हंसते हुए कहा तो भाभी मुसकराए बगैर नहीं रह पाईं, बोलीं,  “तो कर लेना दोनों से.”

तनु सैरसपाटे और मौजमस्ती करने में विश्वास रखती थी. मगर साथ ही, वह पढ़ाईलिखाई और अन्य गतिविधियों में  भी अव्वल थी. कई संजीदा मसलों पर उस ने डिबेट के जरिए अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाई थी. घर में भी देशविदेश के कई चर्चित विषयों पर अपने भैया और जयनाथ से बहस करती व अपनी बात मनवा के ही दम लेती . यह भी एक कारण था कि उस ने कई रिश्ते नामंजूर कर दिए थे.

उसे लगता था कि उस के सपनों का राजकुमार किसी फिल्म के नायक से कम नहीं होना चाहिए. हैंडसम, डैशिंग, व्यक्तित्व ऐसा कि चलती हवा भी उस के दीदार के लिए रुक जाए. ऐसी ही छवि लिए वह हर रात को सोती.  उसे यकीन था कि उस के सपनों का राजकुमार एक दिन ज़रूर उस के सामने होगा.

रविवार को भाभी ने जबरदस्ती उठा कर उसे 11 बजे तक तैयार कर दिया. लाख कहने के बावजूद, उस ने न कोई मेकअप किया न कोई ख़ास कपडे पहने. तय समय पर ड्राइंगरूम में बैठ कर सभी मेहमानों का इंतज़ार करने लगे. करीब आधे घंटे के इंतज़ार के एक गाडी आ कर रुकी और उस में से एक बुज़ुर्ग दंपती उतरे.

तनु ने फ़ौरन सवाल दाग दिया, “आप लोग अकेले ही आए हैं, अम्बर कहां है?” तनु के इस सवाल ने जयनाथ व अन्य को सकते में डाल दिया. इस के पहले कि कोई कुछ जवाब देता, एक आवाज़ उभरी, “मैं यहां हूं, मोटरसाइकिल यहीं लगा दूं?”

तनु ने देखा, तो उसे अपलक  देखते रह गई.  इतना  खूबसूरत बांका नौजवान बिलकुल उस के सपने से मिलताजुलता. उसे लगा, कहीं वह ख्वाब तो नहीं देख रही. इतना बड़ा सुखद आश्चर्य और वह भी इतना ज़ल्दी… तनु की तंद्रा तब भंग हुई जब युवक मोटरसाइकिल पार्क करने की इज़ाज़त मांग रहा था.”

“हां बेटा, जहां इच्छा हो, लगा दो,” जयनाथ ने कहा.

अम्बर ने मोटरसाइकिल लगाई और सभी घर के अंदर दाखिल हो गए. इधरउधर की औपचारिक वार्त्तालाप के बाद तनु बोल पडी, “अगर आप लोग इज़ाज़त दें तो मैं और अम्बर थोड़ा बाहर घूम आएं?”

“गाडी में चलना चाहेंगी या…” अम्बर ने पूछना चाहा, तनु फ़ौरन बोल पड़ी, “मोटरसाइकिल पर, मेरी फेवरेट सवारी है.”

थोड़ी ही देर में अम्बर की मोटरसाइकिल हवा से बातें कर रही थी. समंदर के किनारे फर्राटे से दौड़ती मोटरसाइकिल में बैठ कर तनु खुद को किसी अन्य दुनिया में महसूस कर रही थी. “नारियल पानी पीना है,”  तनु ने जोर से कहा. “पूछ रही हैं या कह रही हैं?”

“कह रही हूं, तुम्हें पीना हो तो पी सकते हो.”

अम्बर ने फ़ौरन मोटरसाइकिल घुमा दी. विपरीत दिशा से आती गाड़ियों के बीच मोटरसाइकिल को कुशलता से निकालते हुए दोनों नारियल पानी वाले के पास पहुंच गए. अम्बर ने एक सांस में ही नारियल पानी ख़त्म कर दिया और नारियल वाले को उछल कर जेब से पर्स निकाल कर पैसे दे दिए, “मैं ने अपने नारियल के पैसे दे दिए, आप अपने दे दीजिए.

तनु अवाक हो कर अम्बर को ताकने लगी.

“बुरा मत मानिएगा तनु जी, आप का मेरा अभी कोई रिश्ता नहीं है, मैं क्यों आप पर खर्च करूं?”

तनु हार मानने वालों में से नहीं थी, “और जो आप के मातापिता हमारे घर पर काजू, किशमिश और चायकौफी उड़ा रहें हैं, उस का क्या?”

“बात तो सही है. हम दिल्ली वाले हैं, मुफ्त के माल पर हाथ साफ़ करना हमें खूब आता है,” अम्बर ने हंसते हुए कहा, “चिंता न करें, मैं दोनों के पैसे दे चुका हूं, नारियल वाला छुट्टा करवाने गया है.“ अम्बर की इस बात पर तनु हंसे बगैर नहीं रह पाई.

अम्बर के जूते मिटटी में सन गए थे. उस ने पौलिश वाले बच्चे से जूते पौलिश करवाए. तब तक नारियल वाला आ चुका था.

“आप ने देशविदेश में कहां की सैर की है?” तनु ने पूछा तो मानो अम्बर के पास जवाब हाज़िर थे, “यह पूछिए कहां नहीं गया.  नौकरी ही ऐसी है, पूरा एशिया और यूरोप का कुछ हिस्सा मेरे पास है. आनाजाना लगा रहता है.”

“क्या फर्क लगता है आप को अपने देश में और परदेस में?

Crime Story: षडयंत्रकारी साली

कहानी सौजन्य- सत्यकथा

राजस्थान के बूंदी जिले का रहने वाला 30 वर्षीय अभिषेक शर्मा राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. उस की पोस्टिंग बूंदी की पुलिस लाइन में थी. 28 अगस्त, 2019 की शाम वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर गया था कि ड्यूटी पर जा रहा है.

अगले दिन जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता भगवती प्रसाद ने उस के मोबाइल पर फोन किया लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. परेशान हो कर जब उन्होंने पुलिस लाइन में ही तैनात उस के दोस्त इरशाद को फोन कर के अभिषेक के बारे में पूछा तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर सब परेशान हो उठे. इरशाद ने बताया कि अभिषेक ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.

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किसी को बिना कुछ बताए अभिषेक कहां चला गया? उस का मोबाइल क्यों बंद है? यह सोच कर घर में सभी परेशान थे. एक सप्ताह तक परिवार के लोग अपने स्तर पर अभिषेक का पता लगाने की कोशिश करते रहे लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो 5 सितंबर को भगवती प्रसाद ने बूंदी कोतवाली पहुंच कर कोतवाल घनश्याम मीणा को बेटे अभिषेक शर्मा के गायब होने की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने शक जताया कि अभिषेक को गायब कराने में उस की पत्नी दिव्या पाठक और साली श्यामा शर्मा का हाथ हो सकता है.

चूंकि मामला विभाग के ही कांस्टेबल के गायब होने का था, इसलिए उन्होंने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. कांस्टेबल अभिषेक शर्मा का पता लगाने के लिए एएसपी सतनाम सिंह ने एक स्पैशल पुलिस टीम गठित की, जिस में सीओ मनोज शर्मा, कोतवाल घनश्याम मीणा, साइबर सेल के हैडकांस्टेबल मुकेंद्र पाल सिंह, अशोक कुमार, कांस्टेबल राकेश बैंसला आदि को शामिल किया गया.

कोतवाल घनश्याम मीणा ने गुमशुदा कांस्टेबल के पिता भगवती प्रसाद को एक बार फिर थाने में बुला कर उस के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अभिषेक के उस की पत्नी दिव्या पाठक के साथ संबंध ठीक नहीं थे. इस की वजह यह थी कि अभिषेक के प्रेम संबंध दिव्या की फुफेरी बहन श्यामा से हो गए थे.

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इस की जानकारी दिव्या को हुई तो उस ने अभिषेक का विरोध किया. लेकिन जब अभिषेक नहीं माना तो दिव्या नाराज हो कर अपने मायके जटवाड़ा चली गई. उस समय वह अपनी डेढ़ साल की बेटी के साथ मायके में ही थी. श्यामा शर्मा बौंली कस्बे में अपने मातापिता के साथ रहती है.

मामला प्रेम प्रसंग का नजर आ रहा था, इसलिए कोतवाल घनश्याम मीणा ने अभिषेक, दिव्या और श्यामा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने जब इन की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल कराई तो पता चला कि घटना वाली रात को साढ़े 12 बजे तक अभिषेक का मोबाइल फोन एक्टिव था. इस के बाद उस का फोन विजयगढ़ किले में जा कर स्विच्ड औफ हो गया था.

विजयगढ़ किले में अभिषेक की अंतिम लोकेशन मिलने के बाद कोतवाल घनश्याम मीणा ने उस के घर वालों को इस के बारे में बताया और अभिषेक के संभावित जगहों पर जाने के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया कि इस जगह से उस की पत्नी दिव्या का मायका जटवाड़ा नजदीक है. शायद वह उस से मिलने वहां गया हो.

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इस के बाद पुलिस ने इस मामले को आपसी कलह के ऐंगल से भी देखना शुरू किया, लेकिन जब पुलिस टीम दिव्या पाठक से मिलने उस के गांव पहुंची तो उस ने बताया कि अभिषेक उस से मिलने नहीं आया था. अभिषेक के घर वालों ने अपना शक उस की साली श्यामा पर भी जाहिर किया था, इसलिए पुलिस का ध्यान अब श्यामा पर केंद्रित हो गया.

 

पुलिस की जांच बड़ी धीमी रफ्तार से बढ़ रही थी. उधर गुमशुदा अभिषेक शर्मा के घर वालों के सब्र का बांध टूटता नजर आ रहा था. वे दिनरात अपने बेटे की सलामती जानने के लिए बूंदी कोतवाली का चक्कर लगा रहे थे. अभिषेक की साली श्यामा शर्मा के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चला कि श्यामा की अभिषेक शर्मा के गायब होने तक रोज उस की लंबीलंबी बातें होती थीं.

लेकिन श्यामा की काल डिटेल्स में एक और भी नंबर शक के दायरे में आया. उस नंबर पर भी श्यामा बात करती थी. इस संदिग्ध फोन नंबर की काल डिटेल्स निकालने के बाद पता चला कि यह नंबर नावेद रंगरेज नामक युवक का है जो श्यामा के गांव बौंली का ही निवासी था.

वह जयपुर में फाइनैंस का काम करता था. इस से कोतवाल मीणा का शक और पुख्ता हो गया और उन्होंने श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों को पूछताछ के लिए कोतवाली बुला लिया.

जब श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों कोतवाली पहुंचे तो कोतवाल घनश्याम मीणा ने उन दोनों से अभिषेक शर्मा के गायब होने के बारे में पूछा. लेकिन दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की भरपूर कोशिश की. उन दोनों के सामने जब अभिषेक और उन दोनों की काल डिटेल्स और लोकेशन दिखा कर मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वे टूट गए. उन्होंने स्वीकार किया कि 28 अगस्त की रात उन्होंने कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की हत्या कर उस की लाश गायब कर दी थी.

पुलिस की तहकीकात और मृतक कांस्टेबल अभिषेक शर्मा के घर वालों से पूछताछ के बाद इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

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कांस्टेबल अभिषेक शर्मा अपने मातापिता के साथ राजस्थान के बूंदी शहर स्थित बीबनवा रोड पर रहता था. करीब 11 साल पहले उस की नौकरी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर लगी थी. बाद में उस ने कमांडो की ट्रेनिंग भी ली थी. इन दिनों वह बूंदी की पुलिस लाइन में तैनात था.

अभिषेक की शादी सवाई माधोपुर जिले के जरवाड़ा गांव की दिव्या पाठक से हुई थी. अभिषेक औसत कदकाठी का हैंडसम युवक था. दिव्या उसे अपने पति के रूप में पा कर खुश थी.

ससुराल में पति के अतिरिक्त सासससुर, ननद सभी थे. वहां दिव्या को किसी चीज की कमी नहीं थी. वह खुद को दुनिया की सब से भाग्यशाली औरत समझती थी. शादी के कुछ साल बाद जब उस ने एक लड़की को जन्म दिया तो उस की किलकारियों से घर का वातावरण सुहाना हो गया.

दिव्या की एक फुफेरी बहन थी श्यामा. श्यामा सांवलीसलोनी जरूर थी, लेकिन वह आकर्षक और सैक्सी दिखती थी. वह खुले दिल की युवती थी. उसे टिकटौक पर अपने गाने व वीडियो डालने का शौक था. चूंकि वह किशोर उम्र से वीडियो बना रही थी, इसलिए अब तक वह 300 से अधिक वीडियो अपलोड कर चुकी थी. सवाई माधोपुर में तो वह टिकटौक गर्ल के नाम से मशहूर थी. दिव्या और श्यामा की आपस में बातचीत होती रहती थी.

इस के अलावा श्यामा पढ़ने में भी तेज थी. 12वीं कक्षा में उस ने 75 प्रतिशत अंक हासिल किए थे. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां आंगनवाड़ी में काम करती थी.

एक बार श्यामा दिव्या से मिलने उस की ससुराल बूंदी पहुंची तो उस की मुलाकात जीजा अभिषेक से हुई. चुलबुली और बला की खूबसूरत साली को देख कर अभिषेक की नीयत डोल गई. वहां कुछ दिनों रहने के बाद उस की अभिषेक से नजदीकियां बढ़ गईं और दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

 

दिव्या ने पहले तो इसे महज जीजासाली का प्यार समझा, लेकिन बाद में उस ने अभिषेक और श्यामा को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद घर के हालात बदलते देर नहीं लगी. श्यामा को ले कर अभिषेक के साथ उस का झगड़ा हुआ. आननफानन में दिव्या ने श्यामा के भाई को बुला कर श्यामा को उस के साथ उस के घर भेज दिया.

श्यामा के चले जाने के बाद भी अभिषेक और श्यामा के संबंधों में कमी नहीं आई. दोनों फोन पर देर तक लंबीलंबी बातें करते थे. बाद में अभिषेक उस से मिलने उस के गांव भी जाने लगा, जहां वह श्यामा के साथ अपने मन की मुराद पूरी कर लेता था. वहां कई दिन रुकने के बाद वह बूंदी लौट आता था. दिव्या और अभिषेक के बीच इस बात को ले कर रोजरोज दूरियां बढ़ने लगीं तो नौबत मारपीट तक जा पहुंची.

आखिरकार दिव्या ने पति की हरकतों से तंग आ कर बूंदी थाने में पति के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज करा दिया और अपने मायके जरवाड़ा चली गई. अभिषेक ने भी दिव्या के खिलाफ गहने चोरी करने का मामला दर्ज करा दिया और कोर्ट में उस से तलाक की अरजी डाल दी. अब वह श्यामा के साथ शादी कर के उसी के साथ जिंदगी गुजारना चाहता था. वह उस पर शादी करने का दबाव डालने लगा.

 

उधर श्यामा ने जब अपनी ममेरी बहन का घर उजड़ते देखा तो उसे होश आया. दूसरे अभिषेक उस से उम्र में 10-12 साल बड़ा था. वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करना चाहती थी. इसलिए उस ने अभिषेक से कहा कि वह उस से शादी नहीं करेगी, क्योंकि इस से उस की बहन का घर उजड़ जाएगा. लेकिन अभिषेक किसी भी हाल में उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. वह श्यामा पर शादी करने का दबाव बनाने लगा. अभिषेक की इन हरकतों से श्यामा तंग आ गई और अभिषेक से पीछा छुड़ाने के बारे में वह सोचने लगी.

श्यामा का एक और प्रेमी था नावेद. नावेद उस के गांव का ही लड़का था, जिस के साथ पिछले 4-5 सालों से उस के गहरे संबंध थे. अभिषेक की हत्या से 15 दिन पहले श्यामा ने नावेद की मदद से अभिषेक से पीछा छुड़ाने की योजना तैयार की. नावेद भी चाहता था कि श्यामा के संबंध उस के सिवा किसी और लड़के से न हों.

 

28 अगस्त, 2019 को योजनानुसार श्यामा ने अभिषेक के मोबाइल पर फोन कर उसे मिलने के लिए अपने गांव बौंली बुलाया. साथ ही कहा कि आज उस का बर्थडे है. वह उस के लिए खाना बना कर लाएगी और दोनों कहीं एकांत जगह पर चलेंगे. वहीं जा कर हम दोनों साथसाथ खाना खाएंगे. फिर वहीं रात भर मौजमस्ती करेंगे.

यह सुन कर अभिषेक उस से मिलने के लिए तैयार हो गया. उस दिन शाम 7 बजे वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर निकला कि वह ड्यूटी पर जा रहा है. लेकिन वह पुलिस लाइन में ड्यूटी पर न जा कर बूंदी से करीब 136 किलोमीटर दूर साली के गांव बौंली पहुंच गया.

उस के बौंली पहुंचने के बाद श्यामा ने अपने प्रेमी नावेद को फोन कर के विजयगढ़ किले के धीरावती महल में पहुंचने के लिए कहा और खुद अभिषेक की मोटरसाइकिल पर बैठ कर किले की तरफ रवाना हो गई.

 

वहां पहुंच कर श्यामा अभिषेक को अपने हाथों से खाना खिलाने लगी. उस खंडहर में जाने पर अभिषेक को भी कुछ शक हो रहा था. लेकिन कमांडो ट्रेनिंग कर चुका अभिषेक बहुत सतर्क था. वह बारबार इधरउधर देख रहा था.

आड़ में छिपा नावेद अभिषेक पर हमला करने का मौका देख रहा था, लेकिन उस पर हमला करने से उसे भी डर लग रहा था. उस के हाथ इसलिए कांप रहे थे कि यदि उस का निशाना सही नहीं पड़ा तो अभिषेक उस पर भारी पड़ सकता है.

आखिर हिम्मत जुटा कर नावेद दबेपांव अभिषेक के पीछे पहुंचा और अभिषेक के सिर पर लोहे की पाइप से भरपूर प्रहार कर दिया. सिर पर वार होते ही अभिषेक वहीं लुढ़क गया.

इस के बाद श्यामा और नावेद दोनों ने मिल कर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को नंगा कर पहले से खोदे गए धीरावती महल के गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी और कांटेदार झाडि़यां डाल दीं.

अभिषेक की लाश दफनाने के बाद नावेद श्यामा को उस की मोटरसाइकिल पर बिठा कर लौट आया. उस ने श्यामा को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. फिर मोटरसाइकिल काफी दूर ले जा कर एक सुनसान कुएं में डाल दी. इस के बाद वह घर चला गया. मामला शांत हो जाने के बाद वह श्यामा से शादी कर अपनी दुनिया बसाना चाहता था.

अभिषेक की हत्या को 4 महीने हो चुके थे. श्यामा और नावेद समझ रहे थे कि पुलिस उन दोनों तक नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन एएसपी हरनाम सिंह के निर्देशन में बूंदी थाने की पुलिस कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए मामले की तह तक पहुंच गई और 18 दिसंबर, 2019 को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

 

आरोपी श्यामा और उस के प्रेमी नावेद से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. इस दौरान पुलिस उन की निशानदेही पर कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की लाश तक पहुंची, जो कंकाल में बदल चुकी थी. पुलिस ने अभिषेक का कंकाल विजयगढ़ किले के खंडहर हो चुके धीरावती महल से बरामद कर लिया. जबकि उस की मोटरसाइकिल वहां से कुछ दूरी पर एक वीरान कुएं में मिली.

नावेद की निशानदेही पर अभिषेक शर्मा के रक्तरंजित कपड़े एक तालाब से बरामद किए गए. घटना के बाद उस के कपड़े नावेद ने एक पौलीथिन में भर कर फेंक दिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद कोर्ट के आदेश पर अभिषेक शर्मा हत्याकांड की आरोपी श्यामा शर्मा को नारी सुधारगृह और नावेद को जेल भेज दिया गया. जिस समय अभिषेक की हत्या हुई थी, उस समय श्यामा के 18 साल पूरे होने में केवल 6 दिन बाकी थे, इसलिए कोर्ट ने उसे नाबालिग माना. हालांकि 18 दिसंबर को जब उसे गिरफ्तार किया गया तो वह बालिग हो चुकी थी. बहरहाल, कुछ भी हो, कत्ल करने का दाग उस के दामन पर लग ही गया है.

अमरूद के पुराने बागों का सुधार और तोड़ाई के बाद के कामडा

नई तकनीक के   द्वारा पुराने घने व बेकार हो चुके पेड़ों को दोबारा उत्पादक बनाया जा सकता   है. इस नई जीणर्ोेद्धार तकनीक से कैनोपी प्रबंधन द्वारा अधिक से  पौधों की अधिक फल देने वाली शाखाओं में बढ़ोतरी की जाती   है, जिस के फलस्वरूप पुराने बागों से फिर से अच्छी उपज मिलती   है. पुराने घने व आर्थिक लिहाज से बेकार पेड़ों को जमीन से 1.0 से 1.5 मीटर की ऊंचाई पर कटा जाता   है.

आमतौर पर बरसात के बाद ही ज्यादातर पेड़ों में ऊपर से पत्तियां पीली होने लगती   हैं व धीरेधीरे शाखाएं एक के बाद एक सूखने लगती हैं, जिस से जीणर्ोेद्धार करना जरूरी हो जाता   है. दिसंबर से फरवरी के बीच जीणर्ोेद्धार करने के बाद सही मात्रा में नए कल्ले बनते हैं और उन कल्लों का मईजून में प्रबंधन किया जाता   है, जिस से जाड़े में अच्छी फसल होती   है. इसी प्रकार मई में जीणर्ोेद्धार किए पौधे से निकलने वाले कल्लों का प्रबंधन अक्तूबर में किया जाता   है, जिस से बरसात में फसल आती   है.

प्रबंधन में कल्लों की लंबाई के आधे भाग को काटा जाता   है. कटे हुए भाग से दोबारा ज्यादा संख्या में नए कल्ले निकलते   हैं, जिन पर फूल और फल आते हैं. इस के बाद हर साल मई में पेड़ों की कांटछांट करते   हैं, जिस से जाड़े में अधिक फल मिल जाते   हैं और साथ ही पौधों के फैलाव और आकार पर भी नियंत्रण बना रहता है. फलों को उगा कर और अधिक उत्पादन ले कर ही बागबानी का काम खत्म नहीं हो जाता. फलों की समय से तोड़ाई कर के मांग के मुताबिक उन्हें बाजार में भेज कर सही दाम हासिल करना भी जरूरी   है.

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फलों को चाहे जिस भी तरीके से तोड़ा जाए, लेकिन मकसद यही होना चाहिए कि उन पर किसी प्रकार की चोट या खरोंच न लगे. फलों पर खरोंच या चोट लगने से उन पर कवक का आक्रमण होता   है, नतीजतन ऐसे फल ग्राहक तक पहुंचने पर खराब हो जाते हैं और खाने लायक नहीं रह जाते   हैं. लिहाजा फलों को किसी डंडे से पीट कर नहीं तोड़ना चाहिए और पेड़ की डालियों को जोर से हिला कर भी फलों को नीचे नहीं गिराना चाहिए. हमेशा फलों की तोड़ाई के लिए ऊंचे स्टूलों व हलकी सीढि़यों का इस्तेमाल करना चाहिए. फलों को हाथ से तोड़ते समय उन को रखने के लिए थैले का इस्तेमाल करना चाहिए. अमरूद की तोड़ाई भी सीढ़ी या स्टूल की सहायता से की जाती   है. सभी फलों को थोड़े डंठल सहित कैंची से काटना चाहिए. स्थानीय बाजार के लिए अगर डंठल में कुछ हरी पत्तियां लगी हों, तो ज्यादा सुंदर लगता   है. इस से फलों में सुंदरता के साथसाथ ताजगी भी बनी रहती   है. यदि फलों को शीतगृहों में रखना हो, तो उन को पत्तियों सहित नहीं तोड़ना चाहिए. नीबूवर्गीय फलों की तोड़ाई खींच कर या मरोड़ कर करने से फल हाथ से दब कर खराब हो जाते   हैं. लिहाजा उन को कैंची की मदद से डंठल के बहुत पास से काटना चाहिए.

फलों की तोड़ाई के बाद इस्तेमाल की जाने वाली चीजें : फलों व सब्जियों को तोड़ाई के बाद जूट से बने थैलों, अरहर की टोकरी, क्रेट या गत्ते वगैरह में भर कर किसी छायादार जगह में पालीथीन सीट या जूट के बोरे के ऊपर फैला कर रखना चाहिए. फलों को ऊपर से गिरा कर बहुत बड़े ढेर में नहीं रखना चाहिए, वरना फल चोटग्रस्त हो जाते   हैं और उन पर कवक का हमला हो जाता   है. खुरदरी सतह वाली टोकरियों से   भी फलों पर खरोंच व घाव आ जाते   हैं, लिहाजा चिकनी सतह वाली टोकरी का इस्तेमाल करना चाहिए. टोकरियों को कीटनाशकों का इस्तेमाल कर के कीटों व बीमारियों से मुक्त कर लेना चाहिए. हमेशा फलों को चोटग्रस्त होने से से बचाएं और मिट्टी के संपर्क में न आने दें.

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अमरूद एक नाजुक फल है, जो तोड़ाई के बाद जल्दी खराब हो जाता   है, लिहाजा ऐसे फलों को साधारण तापमान पर 2-4 दिनों तक ही अच्छी अवस्था में भंडारित किया जा सकता   है. फलों को ज्यादा समय तक स्वस्थ अवस्था में भंडारित करने और सही मूल्य हासिल करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक तकनीकों का सहारा लिया जाता   है. अमरूद के उत्पादन का सही मूल्य तभी मिल सकता   है, जब अमरूद के फल रंगरूप और आकार में समान, आकर्षक व स्वाद से भरपूर हों. अच्छी फसल हासिल करने के लिए पौध तैयार करने से ले कर फलों की बढ़ोतरी तक कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे स्थानीय व निर्यात संबंधी प्रजातियों का चयन व प्रसंस्करण के लिहाज से मुनासिब प्रजाति का चयन. अमरूदों की तोड़ाई से पहले 2 फीसदी कैल्शियम क्लोराइड घोल का 10 दिनों के अंतराल पर 3 बार छिड़काव करने व फलों की थैलाबंदी करने से फलों की गुणवत्ता व भंडारण कूवत में इजाफा होता है.

फलों की थैलाबंदी की तकनीक उन के आकार व गुणवत्ता में इजाफा करने व खासतौर से सर्दी के मौसम में उन को जल्दी पकाने में फायदेमंद होती   है. इस सरल तकनीक से कच्चे फलों को तोड़ने से 1 महीने पहले पुराने अखबार के थैलों में बंद कर देते   हैं. ऐसे फलों का तापमान, आकार व वजन बिना थैलाबंदी वाले फलों के मुकाबले बढ़ जाता है व फल जल्दी पकते   हैं. फलों पर आकर्षक पीला रंग उभर कर आता   है और फल धब्बे रहित, चमकदार, स्वादिष्ठ व पौष्टिकता से भरपूर होते   हैं. इस के अलावा थैलाबंदी से फलों को चिडि़या, गिलहरी, तोता, फलमक्खी व फफूंद से बचाया जा सकता   है. अमरूद में मुख्यतया 2 बार फूल आते   हैं. पहली बार फरवरी में, जिसे अंबे बहार कहते   हैं. इस के फल जून से सितंबर तक पकते   हैं. दूसरी बार फूल जून में आते   हैं, इसे मृग बहार कहते हैं. ये फल अक्तूबर से फरवरी तक पकते   हैं. अमरूद के फल एकसाथ नहीं पकते, इसलिए फलों को हफ्ते में 2 बार तोड़ना चाहिए. फलों को हलका सा घुमा कर थोड़ा दबाव के साथ तोड़ना चाहिए या सिकेटियर से 1 सेंटीमीटर डंडी सहित काटना चाहिए.

यदि फल के साथ एकाध पत्तियां लगी हों, तो फल ज्यादा समय तक ताजे व आकर्षक बने रहते   हैं और उन की भंडारण कूवत में भी इजाफा होता   है. तोड़ने के बाद फलों को अखबार लगी हुई टोकरियों में   ठंडी व छायादार जगह पर रखना चाहिए.

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छंटाई व श्रेणीकरण

* चोट खाए हुए फलों को अलग करना : स्वस्थ फलों से कटेफटे खरोंच व रगड़ खाए या चिडि़यों के   द्वारा चोट पहुंचाए हुए फलों को अलग कर देना चाहिए, ताकि अच्छे फल उन के संपर्क में आने पर खराब न हों.

* आकार के आधार पर : फलों को आकार के आधार पर (बड़े, मध्यम व छोटे) अलगअलग कर लेना चाहिए.

* रंग के आधार पर : रंग के आधार पर पके हरे व पीले चमकदार फलों की   छंटाई अलगअलग करनी चाहिए. फलों को अखबार के   टुकड़ों में लपेट कर लाना चाहिए.

* प्रजाति के आधार पर : प्रजाति के आधार पर फलों की छंटाई अलगअलग करनी चाहिए.

फलों की पैकिंग

पैकिंग करने से फलों को बाजार में पहुंचाने में सुविधा होती   है और फल ग्राहक तक सुरक्षित पहुंच पाते   हैं. इस से उन की कीमत बाजार में अच्छी मिलती   है. पैकिंग से फलों की गुणवत्ता में सुधार नहीं किया जा सकता, मगर काफी समय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता   है. आकर्षक पैकिंग द्वारा फलों की कीमत में बढ़ोतरी होती है, साथ ही उन के इस्तेमाल का समय भी बढ़ जाता   है.

पेटीबंदी

फलों के   भंडारण, परिवहन व व्यापार के लिए पेटीबंदी जरूरी है. आमतौर पर फल जूट के बोरों, बांस की टोकरियों व लकड़ी की पेटियों में पैक किए जाते   हैं. इस प्रकार पैक किए फल आपसी रगड़ द्वारा खराब हो जाते   हैं.

लकड़ी की पेटी में फलों को रखने से पहले यदि पेटी में अखबार की तह लगा दी जाए तो फलों को रगड़ से बचाया जा सकता   है. लकड़ी की कमी होने के कारण फलों की पेटीबंदी के लिए गत्ते की पेटियां सही रहती हैं. हवा आनेजाने के लिए उन में 0.5 फीसदी छेद होते   हैं. हर फल को अखबारी कागज में लपेट कर भी पेटीबंद की जा सकती   है, इस से फल एकदूसरे में रगड़ नहीं खाते. नए शोधों से पता चला है कि 2 फीसदी छेद वाली पालीथीन की पैकिंग में रख कर भी अमरूदों की भंडारण कूवत बढ़ाई जा सकती   है. यह विधि साधारण तापमान के मुकाबले कम तापमान पर ज्यादा फायदेमंद साबित हुई है.

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भंडारण : अमरूद जल्दी खराब होने वाला फल है. इसे सीमित समय तक ही कमरे के तापमान पर भंडारित किया जा सकता   है. फलों को 3-6 दिनों तक और बारिश के मौसम के फलों को 1-2 दिनों तक किस्मों के अनुसार साधारण तापमान पर भंडारित किया जा सकता है. सर्दी वाले फलों को 2 फीसदी छेद वाले पालीथीन के थैलों में रखने पर उन की सामान्य तापमान पर भंडारण कूवत 8 दिनों तक हो सकती है.

शीत भंडारण द्वारा फलों की भंडारण कूवत बढ़ाई जा सकती   है. अमरूद के फलों को 2 फीसदी छेद वाले पालीथीन थैलों में 5-6 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान और 85-90 फीसदी आपेक्षित आर्द्रता पर 4 हफ्ते तक भंडारित किया जा सकता   है. शीत भंडारण के लिए ऐसे फलों को चुनना चाहिए, जो हलके हरे होने शुरू हो गए हों.

अमरूद का पल्प (गूदा) : मौसम में फल के गूदे को संरक्षित किया जा सकता   है, ताकि इसे टाफी,   स्लैब, नेक्टर व पेय वगैरह बनाने में काम लाया जा सके. नेक्टर या पेय बनाने के मकसद से संरक्षित गूदे को निकालने के लिए फल को पानी के साथ पकाया नहीं जाता, क्योंकि इस से गूदे में ताजगी का गुण कम हो जाता है. फलों को   धोकाट कर पल्पर से गूदा निकालें, ताकि बीज व छिलके निकल जाएं. गूदे के संरक्षण के लिए प्रति किलोग्राम के लिए 1 ग्राम साइट्रिक एसिड और 2 ग्राम पोटेशियम मेटाबाईसल्फाइड थोड़े पानी में घोल कर भलीभांति मिलाएं. फिर इसे अच्छी तरह साफ की गई शीशे या पालीथीन के जारों में भर कर मुंह को रुई और ढक्कन से बंद करें और मोम से अच्छी तरह सील करें. इसे   ठंडे स्थान पर भंडारित करें.

अमरूद का रस : अमरूद का रस निकालना कठिन होता   है. संस्थान में साफ व पारदर्शक रस निकालने की विधि खोजी गई है. पहले कम से कम पानी इस्तेमाल करते हुए अमरूद का गूदा निकालें. गूदे को तोल लें और भार का 0.1 फीसदी पेक्टिक इंजाइम भलीभांति गूदे में मिला दें. अब इसे सामान्य तापमान पर 18-20 घंटे के लिए रख दें. इस के बाद एक मोटे कपड़े से   छानें और बोतलों में भर कर रखें. इस से गूदा नीचे बैठ जाता   है. सावधानी से रस निकाल लें या साइफन कर लें. रस को बोतलों में भर कर 82-85 डिगरी सेंटीगे्रड तक गरम करें और गरमगरम सूखी, सट्रालाइज की हुई बोतलों में   भर कर क्राउन कार्क लगा दें. इन बोतलों को एक पतीले में मोटी कपड़े की गद्दी के   ऊपर रख कर 80 डिगरी सेंटीग्रेड पर पानी में तकरीबन 30 मिनट गरम करें. आंच से उतार कर ठंडी हो जाने पर इन को सूखे व ठंडे स्थान पर रखें.

अमरूद का पेय : इसे बनाने के लिए ऊपर बताई विधि से प्राप्त गूदे को छोटेछोटे छेदों वाली स्टेनलेस स्टील या अल्यूमिनियम की छलनी से छान कर गूदे को एकरस कर लें और तोल लें. 12-13 फीसदी शक्कर का शरबत बनाएं. इस में 0.3 फीसदी साइट्रिक एसिड और 10 फीसदी अमरूद का गूदा मिलाएं. इसे गरमगरम ही 200 मिलीलीटर की बोतलों में भर कर क्राउन कार्क लगा कर बंद कर दें. अब इन को 15-20 मिनट तक उबलते पानी में एक पतीले में मोटी गद्दी पर रख कर गरम करें. फिर आंच से उतार कर ठंडा होने दें.

अमरूद का नेक्टर   : यह भी अमरूद के गूदेसे बनाया जाता है. गूदा निकाल कर इस के लिए 15 फीसदी चीनी का घोल बनाएं. घोल में 0.25-0.35 फीसदी साइट्रिक एसिड मिलाएं. इस में 20-25 फीसदी गूदा मिलाएं. गरमगरम ही 200 मिलीलीटर की बोतलों में भर कर क्राउन कार्क लगा कर बंद कर दें. अब इन को 15-20 मिनट उबलते पानी में एक पतीले में मोटी गद्दी पर रख कर गरम करें. आंच से उतार कर ठंडा होने दें.

अमरूद का पाउडर : पहले अमरूद का गूदा निकाल कर तोल लें. इस के वजन के मुताबिक 20 फीसदी चीनी और 0.2 फीसदी पोटेशियम मेटाबाई सल्फाइट अच्छी तरह मिला दें. इसे 1 पौलीथीन की शीट पर फैला कर अल्यूमिनियम या स्टेनलेस स्टील की   ट्रे में रखें और धूप में या डीहाइडे्रटर में सुखा लें. पल्प के शीट के रूप में सूख जाने पर उसे छोटेछोटे टुकड़ों में तोड़ लें. इन टुकड़ों को   थोड़ा और सुखाएं और एक ग्राइंडर की सहायता से पाउडर बनाएं. इस पाउडर को पौलीथीन की थैलियों में भर कर रखा जा सकता   है. यह पाउडर कार्बोहाइड्रेट्स व मिनरल्स का सही जरीया होने के कारण बालाहार बनाने में इस्तेमाल किया जाता है.

अमरूद की जेली

जरूरी सामान : 1 किलोग्राम अमरूद, डेढ़ लीटर पानी, 750 ग्राम चीनी, 3 ग्राम सिट्रिक एसिड या खट्टा नीबू.

बनाने की विधि : अमरूदों को पानी से अच्छी तरह धो कर गोलगोल आकार में कई   टुकड़ों में काटिए और डेढ़ लीटर पानी में 20-25 मिनट तक धीमी आंच पर पकाइए. उबालते समय टुकड़ों को चम्मच से कुचलते भी जाइए, जिस से रस अच्छी तरह निकल आए. उबालने के बाद मारकीन के कपड़े से छानिए. रस को अपनेआप छनने दीजिए. इस के लिए कपड़े को साफ जगह पर लटका दें ताकि रस बरतन में आसानी से इकट्ठा हो जाए.

छने हुए जूस से 1 लीटर जूस ले कर रस में 750 ग्राम चीनी मिला कर आंच पर रख कर अच्छी तरह घोलें. घुल जाने पर रस को फिर से छानिए, जिस से चीनी की गंदगी निकल जाए. अब रस को देगची सहित मध्यम आंच पर रख कर पकने दें. कुछ मिनट बाद सिट्रिक एसिड या नीबू का छना रस मिला दीजिए. कुछ देर बाद आप देखेंगे कि पकतेपकते बुलबुले उठना शुरू हो जाते   हैं. उस समय चम्मच से जूस को ले कर ठंडा कर के गिराएं. जब आप देखें कि चम्मच के दोनों छोरों पर तार बन कर लटक रहे   हैं, तो समझ लें कि जेली तैयार हो गई है. अब इसे बोतल में भर लें. बोतल की ऊपरी सतह पर सफेद पदार्थ आ जाए तो उसे छोटे चम्मच से धीरे से हटा दें. फिर जेली को   ठंडी होने के लिए रख दें. 4-5 घंटे बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकते   हैं.

अमरूद की चीज या टौफी

जरूरी सामान : 1 किलोग्राम अमरूद का गूदा, 1 किलोग्राम चीनी, 50 ग्राम मक्खन, आधा चम्मच नमक, सिट्रिक एसिड, जरूरत के मुतबिक नारंगी रंग. बनाने की विधि : देगची की तली में थोड़ा सा मक्खन लगाएं. फिर थोड़ीथोड़ी मात्रा में गूदे को बर्तन में डालें.

इसी तरह चीनी की मात्रा का इस्तेमाल करें. थोड़ा मक्खन डालें और रंग, सिट्रिक एसिड व नमक मिलाएं. 30-40 मिनट के अंदर चीज तैयार हो जाएगी. तैयार होने की पहचान यह   है कि वह तली छोड़ने लगेगी. ट्रे या थाली में मक्खन लगा कर गूदे को पलट कर ऊपर मक्खन द्वारा चिकना कर के कुछ समय के लिए छोड़ दें. जम जाने पर छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर बटर पेपर में लपेट कर टौफी का रूप दे दें. यह अमरूद टौफी या चीज पाचन के लिए बहुत फायदेमंद होती   है.

डा. बालाजी विक्रम व पूर्णिमा सिंह सिकरवार

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