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प्यार की चाह में -भाग 2 :निशा को पार्टी सर्किल के लोग किस नाम से बुलाते थे?

‘मैं ने तो उन्हें इनवाइट भी नहीं किया,’ रोहन ने सोचा.

पिछले साल की पार्टी की गड़बड़ रोहन को आज भी याद थी. पापा को नशा कुछ ज्यादा हो गया था. उन्होंने मम्मी के हाथ की सिगरेट छीनी तो रोहन का दिल धक से रह गया. ‘अब होगा झगड़ा,’ उस ने सोचा. लेकिन मम्मी मधु आंटी से बातें करती रही थीं. पर, पार्टी के बाद की वह जोरदार लड़ाई उफ…’

मां का सिगरेट पीना रोहन को भी असमंजस में डाल देता है.

वह सोचने लगता है, ‘विक्की की मम्मी तो सिगरेट नहीं पीतीं, रेनू की मां भी नहीं, शाहिद की अम्मी भी नहीं, फिर मम्मी ही क्यों. पापा मना करें तो लो, हो गया झगड़ा.’

‘आज तो मेरी बस निकल ही जाती, यह तो रेनू की मम्मी ने दूर से ही मुझे देख लिया और ड्राइवर को रोके रखा. आंटी कितनी अच्छी हैं, रोज रेनू का बैग उठा कर उसे बसस्टौप पर छोड़ने, फिर लेने भी आती हैं. कीर्ति के साथ उस के दादा आते हैं और निधि के साथ उस के पापा. लेकिन ये सब तो छोटे हैं. मैं, मैं तो कितना बड़ा हो गया हूं, फिर भी मम्मी मरिअम्मा को साथ भेज देती हैं.’

पहले तो रोहन का भी मन करता था कि मम्मी उस के साथ आएं बसस्टौप तक. बस, एक दिन के लिए ही सही. पर कहां? मम्मी को तो कितने काम होते हैं, कितनी सोशल सर्विस करनी पड़ती है. रेनू, छवि, पवन उन सब की मम्मियां तो सिर्फ हाउसवाइफ हैं, बस, घर का काम करो और आराम से रहो. सोशल क्लब जौइन करना पड़े तो पता चले. मम्मी ने ही सब समझाया था.

फिर भी रोहन सोचता, ‘काश, उस की मम्मी भी केवल हाउसवाइफ ही होतीं. या फिर उस के दादादादी ही उस के साथ रहते, जैसे कीर्ति और विक्की के रहते हैं. फिर तो मजा ही मजा होता. वे उस के साथ बाग में खेलते, बातें करते, बसस्टौप तक छोड़ने आते. पर दादादादी का आना मम्मी को जरा भी नहीं भाता. फिर वे हर समय गुस्से में रहती हैं. पापा से भी झगड़ती हैं, मुझे भी डांटती हैं.’

दादी तो उसे अपने साथ ही सुलाती थीं. सितारों और परियों की कहानियां भी सुनाती थीं, पर मम्मी कहती हैं, ‘बच्चों को अलग कमरे में सोना चाहिए. हर समय मां का आंचल पकड़े रहने वाले बच्चे कमजोर और दब्बू बन जाते हैं, जैसे तुम्हारे पापा हैं.’

रोहन को पापा का उदाहरण अखरता है, ‘पापा तो कितने स्मार्ट, कितने हैंडसम हैं, पर क्या वे सचमुच मम्मी से डरते हैं? क्या वे सच में दब्बू हैं?’

हर तरह की सोच से परे उस का मन फिर भी मचलता ही रहता है, मम्मीपापा के साथ उन के बीच सोने को. तकिया फेंकफेंक कर उन के साथ खेलने को, पर नहीं, अब तो वह कितना बड़ा हो गया है, पूरे 11 साल का. अब तो वह मम्मीपापा के साथ सोने की जिद भी नहीं करेगा, कभी नहीं.

रोहन स्कूल से लौटा तो लौन में शामियाना लग चुका था. पेड़पौधों पर बिजली के रंगबिरंगे छोटेछोटे बल्बों की कतारें झूल रही थीं. बरामदा और हौल रंगबिंरगे गुब्बारों व चमकतीदमकती झालरों से सजेधजे थे. रोहन ने दौड़ कर मम्मीपापा के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मरिअम्मा, पापा कहां हैं?’’

‘‘उन का फ्लाइट लेट है बाबा, अब वह तुम को सीधा पार्टी में ही मिलेगा,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘और मम्मी?’’ कहता हुआ रोहन रोने को हो उठा.

‘‘वह तो टेलर के पास गया है. वहां से फिर ब्यूटीपार्लर जाने का, देर से लौटेगा. अब तुम हाथमुंह धो कर खाना खाने का, फिर आराम कर के जल्दीजल्दी होमवर्क फिनिश करने का. फिर तुम्हारा हैप्पी बर्थडे होगा. बड़ाबड़ा केक कटेगा.’’

‘‘नहीं खाना मुझे खाना, नहीं करना होमवर्क,’’ मरिअम्मा को धकेलता रोहन धड़ाम से पलंग पर जा पड़ा. यह देख मरिअम्मा हैरान रह गई.

‘‘गुस्साता काहे रे. अरे, तू ने तो अपना गिफ्ट भी खोल कर नहीं देखा, खोलोखोलो. देखोदेखो, मम्मी रात तुम्हारे वास्ते क्या ले कर आया. अभी पापा भी अच्छाअच्छा खिलौना लाएगा,’’ मरिअम्मा ने राहुल को समझाया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे खिलौने. मैं अब बड़ा हो गया हूं,’’ मरिअम्मा के हाथ से गिफ्टपैक छीन कर रोहन ने बाथरूम के दरवाजे पर दे मारा और सुबकने लगा.

डरी हुई मरिअम्मा पलभर तो शांत रही, फिर धीरेधीरे उस का सिर सहलाती उसे पुचकारनेमनाने लगी, ‘‘मेरा अच्छा बाबा. मेरा राजा बेटा. अब तो तू बड़ा हो गया रे, रोते नहीं. रोते नहीं बाबा. अपने जन्मदिन पर कोई रोता है क्या?’’ उसे समझातेमनाते मरिअम्मा की आवाज भी भर्रा गई, ‘‘उठ, उठ जा मुन्ना. मेरा अच्छा बच्चा, चल, खाना खाएं होमवर्क करें. देरी हुआ तो मेमसाब मेरे को गुस्सा करेगा कि हम तेरा ध्यान नहीं रखता.’’

रोहन का सुबकना थम गया. आंखें चुराता, मुंह छिपाता वह बाथरूम में चला गया.

एक मरिअम्मा ही है जो उसे प्यार करती है, उस का इतना ध्यान रखती है. फिर भी मम्मी उसे डांटती ही रहती हैं. पहले वाली वह रोजी, उफ, कितनी गंदी थी, चुपकेचुपके उसे चिकोटी काटती, उस का चौकलेट खा जाती. उस का दूध पी जाती और बसस्टौप पर रोज उस का बौयफ्रैंड भी उस से मिलने आता. मम्मी से शिकायत की, पापा को पता चला तो घर में कितना हंगामा हुआ था. पापा ने तो यहां तक कह दिया था, ‘तुम से एक बच्चा तो संभलता नहीं, करती हो समाजसेवा. रोहन को आज से तुम ही देखोगी, रोजी की छुट्टी है.’

मम्मी का क्लब, किटी आदि सब बंद हो गया. वे हर समय गुस्सातीझल्लाती रहतीं. घर में रोज लड़ाई होती. फिर एक दिन मरिअम्मा आ गईं.

मरिअम्मा सच में अच्छी हैं. उसे कहानियां सुनाती हैं, उस के साथ खेलती हैं, उसे प्यार भी करती हैं.

खाना खा कर रोहन लेटा तो जरूर, पर उस की सभी इंद्रियां मम्मीपापा के इंतजार में सचेत थीं.

‘पापा अभी तक नहीं आए. मम्मी अभी और कितनी देर लगाएंगी? मम्मीपापा हमेशा इतने बिजी क्यों रहते हैं?’

अचानक ही रोहन को बैग में रखी ‘जादू की पुडि़या’ की याद आई. उस दिन बस में 12वीं कक्षा के किशोर के दोस्तों की सभा जमी थी. झुरमुट में फुसफुसाते वे जोरजोर से ठहाके लगा रहे थे, ‘अरे, जादू है जादू, जबान पर रख लो तो मन की सभी मुरादें पूरी.’

‘एक पुडि़या मुझे भी दो न,’ बस में चढ़ते रोहन ने फुसफुसाते हुए फरमाइश की.

‘तू क्या करेगा रे, अभी तू मुन्ना है, मुन्ना, थोड़ा बड़ा हो ले, फिर मौज मारना,’ कह कर किशोर के दोस्तों ने ठहाका लगाया था.

‘अरे, दे दे न मुन्ना को, अपना क्या जाता है,’ राकेश ने आंख दबा कर रोहन की सिफारिश करते हुए कहा था.

‘चल, निकाल 25 रुपए, औरों के लिए 50-100 से कम नहीं, पर तू

तो अभी बच्चा है न, बिलकुल नयानवेला, नन्हामुन्ना. बच्चू, मजा न आए तो कहना.’

लेकिन रोहन न ही इतना नन्हामुन्ना था और न ही पूरा बेवकूफ.

किशोर उस के स्कूल का दादा था. उस ने किशोर और उस के साथियों को दरवाजे के पास खड़े आइसक्रीम वाले से बहुत सारी पुडि़याएं खरीदते देखा था. सफेद पाउडरभरी उन पुडि़याओं में कैसा जादू था, वह खूब जानता था. फिर भी उस ने वह पुडि़या खरीद ली. खरीदने के बाद लगा, वह उसे फेंक दे, पर नहीं फेंकी. संभाल कर बैग के अंदर वाली जिप में रख ली.

रोहन मम्मीपापा के बारे में सोच ही रहा था पर तभी उसे उस पुडि़या का ध्यान आया. उस ने उठ कर बैग खोल कर देखा. पुडि़या ज्यों की त्यों रखी थी. पुडि़या निकाल कर रोहन कुछ पल

उसे घूरता रहा, फिर उसे बैग में रख कर लेट गया.

‘‘बाबा, ओ बाबा, उठो. देखो शाम हो रही है,’’ मरिअम्मा ने रोहन को पुकारा.

रोहन ने आलस में आंखें खोलीं तो मरिअम्मा प्यार से मुसकरा उठी.

‘‘उठो बाबा, होमवर्क करना है. तैयार होना है. फिर मेहमान आना शुरू हो जाएगा.’’

रोहन तुरंत एक झटके में ही उठ बैठा और पूछा, ‘‘मम्मी आ गईं, मरिअम्मा?’’

‘‘आ गया, बाबा. वह तो सब से पहले तुम्हारे पास ही आया, पर तुम सोता था,’’ मरिअम्मा ने जवाब दिया.

रोहन ने दौड़ कर मां के कमरे में झांक कर कहा, ‘‘मम्मी तो नहीं हैं, मरिअम्मा.’’

‘‘वह नहाता होगा बाबा, पार्टी के लिए सजना है न. अब तुम भी जल्दी करो, देरी हुआ तो मेमसाब नाराज होगा.’’

होमवर्क खत्म कर रोहन फिर से मां के कमरे की ओर भागा, पर दरवाजा तो अंदर से बंद था. रोहन समझ गया मम्मी अब मेकअप कर रही होंगी और मेकअप करते समय कोई डिस्टर्ब करे, यह उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं. हारे कदमों से रोहन वापस आ गया.

‘‘अरे, रोहन बाबा, तुम अभी इधर ही बैठा है, चलोचलो, नहा लो, तैयार हो जाओ. देखो, तुम्हारा नया कपड़ा भी निकाल दिया,’’ मरिअम्मा ने कहा.

‘‘पापा अभी तक नहीं आए, मरिअम्मा?’’

‘‘आते ही होंगे बाबा,’’ मरिअम्मा ने बिलकुल सफेद रूमाल रोहन की जेब में रखते हुए कहा.

‘‘चलो बाबा, अब पार्टी का टाइम हो गया. मेमसाब वहीं मिलेगा.’’

‘‘तुम जाओ मरिअम्मा, मैं आ जाऊंगा.’’

‘‘देखो, देरी नहीं करना, जल्दी से पहुंच जाना,’’ जातेजाते मरिअम्मा ने एक बार फिर रोहन के बाल संवारे और उसे प्यारभरी नजरों से देखती बाहर चली गई.

शाम होते ही बंगला रंगारंग रोशनी में नहा उठा. रात गहराते ही रौनक बढ़

गई. मेहमान आने शुरू हो गए. चहकतेमहकते, मुसकराते, सजेधजे मेहमान, आंखों ही आंखों में एकदूसरे को आंकते मेहमान, बातों ही बातों में एकदूसरे को नापते मेहमान.

‘‘रवि आज भी नदारद है, निशा,’’ हरीश ने कहा.

‘‘उस के वही बिजनैस ट्रिप्स, फिर हमारी यह बेटाइम चलने वाली एअरलाइंस, बस, आता ही होगा,’’ मनमोहनी मुसकान के साथ निशा ने सफाई दी.

‘‘रोजरोज के ये बिजनैस ट्रिप्स. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं, निशा?’’ हरीश ने आंख दबा कर शिगूफा छोड़ा तो वातावरण में हंसी की फुलझडि़यां फूट गईं. निशा भी पूरी तरह मुसकरा उठी.

‘‘बर्थडे बौय कहां है भाई?’’ माला ने बड़ी नजाकत से हाथ में पकड़े उपहार के डब्बे को साथ वाली कुरसी पर रखते हुए कहा.

‘‘अब साहबजादे को भी बुलाइए जरा,’’ रमेश ने अपने हाथ में पकड़ा गिफ्टपैक राधिका को देते हुए कहा.

‘‘रोहन, रोहन, माई सन,’’ निशा की धीमी मीठी आवाज गूंज उठी.

‘‘रोहन, सनी?’’ निशा ने इधरउधर देखा, ‘‘रोहन कहां है मरिअम्मा?’’

‘‘इधर ही था मेमसाब, बाथरूम में होगा, अभी देखता,’’ कह कर वह उसे ढूंढ़ने लगी.

घर पर आसानी से ऐसे बनाएं वेज बर्गर

कम समय अगर आपको कुछ बनाना है तो आप तो वेज बर्गर से बेहतर ऑप्शन कुछ नहीं हो सकता है. आइए जानते हैं इसे बनाने की विधि.

– पाव (04)

– मैदा (01 कप)

– ब्रेड का चूरा (01 कप)

– आलू 03 उबले हुए)

– टमाटर (पतली स्लाइस कटी हुई)

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– खीरा (पतला कटा हुआ)

– प्याज (पतली स्लाइस कटी हुई)

– पत्तागोभी (01 कप बारीक कटी हुई)

– हरी मिर्च (बारीक कटी हुई)

– अदरक (01 चम्मच कद्दूकस किया हुआ)

– मक्खन (आवश्यकतानुसार)

– तेल (आवश्यकतानुसार)

– नमक (स्वादानुसार)

बर्गर बनाने की विधि :

– सबसे पहले एक बर्तन में पानी डालकर उसमें पत्तागोभी को उबाल लें.

– उबलने के बाद का इसका पानी निकाल दें और अलग रख दें.

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– अब उबले आलू और पत्ता गोभी को मैश कर लें.

– मिश्रण में हरी मिर्च, अदरक और नमक डालें और अच्छी तरह मिला लें.

– तैयार मिश्रण को 4 भागों में बांट लें और हथेली की मदद से इसकी गोल टिक्की बना लें.

– साथ ही मैदा को छान कर पानी की मदद से उसका गाढ़ा घोल तैयार कर लें.

– अब कड़ाही में तेल गर्म करें.

– जब तक तेल गर्म हो रहा है, आलू की टिक्कियों को मैदे के घोल में डुबोकर ब्रेड के चूरे में लपेट लें.

– तेल गर्म होने पर और टिक्कियों को तेल में डालें औरम मीडियम आंच पर ब्राउन होने तक तल लें, उसके   बाद गैस बंद कर दें.

– अब चाकू की मदद से पाव/बन को बीच से काटकर दो भाग कर लें.

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– दोनों टुकड़ें पर अंदर की ओर मक्खन लगा लें.

– फिर नीचे वाले टुकडे के ऊपर टोमैटो सौस की एक पर्त लगायें.

– उसके ऊपर आलू की एक टिक्की रख दें।

– टिक्की के ऊपर 1 टमाटर की स्लाइस, 2 खीरे की स्लाइस और 2 प्याज की स्लाइस रखें.

– उसके ऊपर थोड़ा सा टोमैटो सौस डालें और फिर ऊपर से पाव/बन का दूसरा हिस्सा रख दें.

– इसी तरह से सारे बर्गर तैयार कर लें.

– लीजिये बर्गर बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– अब आपका स्वादिष्ट वेगी बर्गर  तैयार है.

– इसे सर्विंग प्लेट में निकालें और टोमैटो सौस या चिली सौस के साथ टेस्ट करें.

जानें क्यों है हुंडई क्रेटा सबसे अलग

जब हम एसयूवी  की बात करते हैं तो हमारे दिमाग में एक ही गाड़ी का नाम आता है- द हुंडई क्रेटा . बता दें द हुंडई क्रेटा कि तुलना किसी भी कार से आप नहीं कर सकते हैं. हुंडई क्रेटा अपने आप में एक अलग पहचान बना चुकी है. सबसे ज्यादा सड़कों पर अगर कोई कार नजर आ रही है तो वह है हुंडई क्रेटा .

यह बाहर से जितना दिखने में खूबसूरत है अंदर से उतना ही आरामदायक भी है. अभी तक हुंडई क्रेटा 5 लाख से ज्यादा सेल हो चुकी है. इसमें कोई शक नहीं है कि हुंडई क्रेटा के बेहद शानदार कार है  #RechargeWithCreta

सुशांत सिंह की याद में बहन श्वेता कीर्ति सिंह ने शेयर किया इमोशनल गाना, फैंस भी हो गए भावुक

सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून 2020 को मुंबई के बांद्रा फ्लैट में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. आज उनके मौत के पूरे तीन महीने पूरे हो गए हैं. इस दिन उनकी बहन श्वेता कीर्ति सिंह ने बेहद ही इमोशनल गाना सोशल मीडिया पर पोस्ट किया है. जिसमें उन्होंने अपने भाई को याद किया है.

आज भी सुशांत सिंह राजपूत के मौत की गुत्थी उलझी हुई है. लोगों को आज भी पता नहीं चल पाया है कि आखिर सुशांत सिंह राजपूत ने फांसी क्यों लगाई थी. लोगों के सामने 90 दिनों में सच्चाई सामने नहीं आ पाई है. मीडिया और फैंस आज भी इस राज का पता नहीं लगा पाएं हैं.

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वहीं सीबीआई सुशांत केस की जांच कर रही है. ऐसा माना जा रहा है कि सच्चाई जल्दी सामने आएगी. वहीं ड्रग्स मामले में रिया चक्रवर्ती सलाखों के पीछे जा चुकी हैं. साथ ही उनके भाई शौविक चक्रवर्ती भी इन दिनों सलाखों के पीछे हैं.

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श्वेता कीर्ति सिंह ने एक गाना शेयर करते हुए लिखा है कि तुम्हें 90 दिन गए हुए हो गए भाई ये गाना तुम्हारे सम्मान में बनया है. इस गाने के माध्यम से ऐसा लग रहा है कि तुम आज भी हमारे बीच हो.

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सुशांत सिंह राजपूचत की फैमली ने रिया चक्रवर्ती पर पैसों के हेर फेर का आरोप लगाया था. रिया चक्रवर्ती के परिवार वालों पर भी सुशांत के मारने के आरोप लगाएं. यहीं नहीं रिया चक्रवर्ती ने सुशांत सिंह राजपूत को ड्रग्स देती थी जिससे उनकी मानसिक संतुलन खो जाए इसके भी आरोप सुशांत के परिवार वालों के तरफ से लगाएं गए थें.

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बता दें सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद उनकी आखिरा फिल्म दिल बेचारा रिलीज हुई . जिसमें सुशांत सिंह राजपूत को लोगों ने खूब पसंद किया था. सुशांत सिंह का यह अंदाज लोगों को खूब पसंद आय़ा है.

 

धूमधाम से हुआ पूजा बनर्जी का बेबी शॉवर, फोटोज हुईं वायरल

सीरियल देवो के देव महादेव से अपनी खास पहचान बनाने वाली पूजा बनर्जी को उनकी दोस्तों ने बेहद ही  शानदार सरप्राइज दिया है. जिससे पूजा का दिन खास बन गया.

पूजा बनर्जी को सरप्राइज बेबी शॉवर का पार्टी दिया गया जिसे देखकर पूजा का चेहरा खुशी से खिल उठा. वहीं उनकी दोस्तों ने उन्हें गुब्बारे की मदद से बेबी  बम्प प्लांट करते हुए पोज दिया .

दोस्तों ने पूजा बनर्जी पर खूब प्यार बरसाया है. पूजा ने भी अपनी सहेलियों के साथ अलग-अलग अंदाज में पोज देते हुए फोटो क्लिक करवाया है.

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अपनी सहेलियों के साथ बेबी शॉवर के दौरान पूजा बनर्जी ने खूब क्वालिटी टाइम  बिताया है. दोस्तों के तरफ से यह प्यार पाकर पूजा बनर्जी के खुशी का ठिकाना नहीं था. वह बेहद ही ज्यादा खुश औऱ खूबसूरत लग रही थी.

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Puja Banerjee and Kunal Verma

बता दें कि बेबी शॉवर के लिए कुणाल वर्मा थीम केक लेकर आएं थें. जो पार्टी के रौनक को और भी बढ़ा दिया.बेबी शॉवर के दौरान पूजा बनर्जी ने कुणाल वर्मा की कान खींचती नजर आई. जिसमें दोनों की एक खास बॉडिंग देखने को मिली. दोनों का प्यार देखकर बाकी लोग भी बहुत ज्यादा खुश हो गए.

बता दें कि कुणाल और पूजा दोनों एक- दूसरे को लंबे समय से जानते हैं. दोनों ने लॉकडाउन में ही शादी की थी. दोनों ने कोर्ट मैरिज की थी.

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हालांकि पूजा बनर्जी शादी से पहले ही प्रेग्नेंट हो गई थी. दोनों की यह जोड़ी को देखकर फैंस बहुत ज्यादा खुश रहते हैं. कुणाल वर्मा और पूजा बनर्जी भी एक –दूसरे के साथ खुशी महसूस करते हैं. दोनों ने कहा था कि वह लॉकडाउन के बाद धूमधाम से शादी करेंगे  तब तक इस दुनिया में उनका बच्चा भी आ चुका होगा.

दोनों की इस जोड़ी को फैंस खूब सराहते हैं. दोनों जल्द ही बच्चे के माता- पिता बनने वाले हैं.

अब प्लेटलेट्स पर कोरोना की मार

डॉक्टर्स और रिसर्चकर्ता कोरोना के सटीक लक्षणों को समझ पाने में लगातार धोखा खा रहे हैं. कोरोना अपने लक्षणों में दिन-ब-दिन नए नए पैंतरे दिखा रहा है. कहीं वह नाड़ियों में खून के थक्के जमा रहा है, कहीं किडनी और हार्ट पर अटैक कर रहा है तो कभी श्वसन की कार्यप्रणाली को नष्ट कर इंसान की जान ले रहा है. कभी कभी तो वह बिना लक्षणों के ही प्रकट हो रहा है. अब लखनऊ में पीजीआई में डॉक्टरों ने पाया है कि कोरोना डेंगू बुखार की तरह लक्षण प्रकट कर रहा है और सीधे प्लेटलेट्स पर हमलावार है.

आम तौर पर डेंगू बुखार में प्लेटलेट्स काउंट कम होते थे, लेकिन अब कोरोना भी डेंगू के वेश में मरीजों पर वार कर रहा है. इसमें अचानक मरीज की प्लेटलेट्स काउंट गिरकर 20 हजार से भी नीचे आ जा रही है. जबकि खून की जांच में डेंगू नहीं निकल रहा है. ऐसे मरीज ज्यादातर कोरोना की गंभीर अवस्था में पहुंचने के बाद मिल रहे हैं. पीजीआई में डॉक्टरों ने इस पर शोध शुरू किया है.

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पीजीआई के प्रफेसर अनुपम वर्मा कहते हैं कि अचानक मरीजों में प्लेटलेट्स काउंट गिरने से मैनेज करना मुश्किल हो रहा है. पीजीआई में एडमिट लोकबंधु अस्पताल के डॉक्टर की प्लेटलेट्स भर्ती होने के दूसरे दिन ही दस हजार पहुंच गई. प्राथमिक तौर पर यह सामने आ रहा है कि कोरोना मरीज के इम्यून कॉम्प्लेक्स को प्रभावित करता है, जिसमें मोनोसाइड और मैकरोफेज सेल पर अटैक होता. इससे बॉडी में प्लेटलेट्स की खपत बढ़ जाती है. जबकि उनका उत्पादन पहले के मुकाबले कम रहता है. यही कारण है कि प्लेटलेट्स काउंट अचानक से गिर जाता है. ऐसे मरीज ज्यादातर गंभीर अवस्था के होते हैं.

पीजीआई में ऐसे लक्षण दिखाने वाले मरीजों को डेंगू के इलाज की तरह ही प्लेटलेट्स चढ़ाया जा रहा है और जरूरत पड़ने पर प्लाज्मा थेरेपी भी दी जा रही है.

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 बोन मैरो पर हमला

डॉ़ अनुपम कहते हैं कि इन दिनों कोरोना के लक्षणों को लेकर एक और बदलाव देखने में आया है कि कोरोना मरीजों को थॉम्बोसिस हो रहा था. यानी जिसमें नाड़ियों में खून के थक्के जम जाते हैं. इन थक्कों को हटाने के लिए टीपीए इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे क्लॉट घुल जाते हैं. लेकिन कुछ मरीजों को टीपीए देने पर उनकी नसें फट गयीं, जिससे अंदरूनी रक्त रिसाव हो गया. इसे सीवियर थोंबोसाइटोपीनिया कहते हैं. इसमें देखने में आया है कि कोरोना वायरस मरीज के बोन मैरो को इंफेक्ट कर रहा है, जिससे यह दिक्कत सामने आ रही है.

 डेंगू की जांच भी जरूरी

डॉ़क्टर अनुपम कहते हैं कि आज के हालात में कोरोना मरीजों की डेंगू की जांच बहुत जरूरी है. खासकर ऐसे मरीज जिनका प्लेटलेट्स काउंट गिर रहा हो. इससे पता चल सकेगा कि इसका कारण कोरोना है या डेंगू. इस पर शोध भी किया जा रहा है.   दिल्ली में भी कोविड-19 और डेंगू का अटैक एकसाथ देखने को मिल रहा है. दिल्ली में एक ऐसा मरीज सामने आया है, जो कोविड और डेंगू, दोनों से संक्रमित पाया गया. डॉक्टरों का कहना है कि दोनों वायरस का कॉकटेल काफी खतरनाक हो सकता है क्योंकि एक साथ बॉडी में दो वायरस एक्टिव हो जाते हैं और दोनों अलग अलग अटैक करते हैं.

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डेंगू की वजह से ब्लड में प्लेटलेट्स कम होने लगती हैं, जबकि कोविड ब्लड में थक्का बनने की क्षमता को प्रभावित कर देता है. इससे ब्लड संबंधित बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. इससे यह भी खतरा है कि कहीं पर बॉडी के अंदर ब्लड फ्लो के दौरान थक्का ना बन जाए. इसलिए इस मौसम में फीवर से पीड़ित मरीज को कोविड के साथ-साथ डेंगू की भी जांच कराना जरूरी है, ताकि समय पर सही इलाज किया जा सके. यह समय दिल्ली में डेंगू का भी है, इसलिए अब फीवर वाले मरीज में दोनों वायरस की जांच करना जरूरी है, क्योंकि दोनों वायरस का तय इलाज नहीं है और न ही वैक्सीन है.

जानें अलसी के फायदे

अलसी के बीज ब्लड प्रैशर और ब्लड शुगर कंट्रोल करने में बहुत ज्यादा फायदेमंद होते हैं. इस के अलावा अलसी में विटामिन बी कौंप्लैक्स, मैग्नीशियम, मैगनीज जैसे तत्त्वों की भरपूरता होती है, जो बैड कोलैस्ट्रौल को कम करते हैं.

इन बीजों में पाए जाने वाला अल्फा लिनोलेनिक एसिड जोड़ों की बीमारी अर्थराइटिस और सभी तरह के जोड़ों के दर्द में बहुत फायदेमंद है.

अलसी के बीज में आयरन, जिंक पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, विटामिन सी, विटामिन ई और कैरोटीन जैसे तत्त्व पाए जाते हैं.

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अलसी के बीज से स्वस्थ त्वचा और मजबूत नाखून तो मिलते ही हैं, साथ ही बालों का टूटना, त्वचा की बीमारियां जैसे एग्जिमा व सोराइसिस के उपचार में भी यह कारगर माना जाता है.

अलसी के बीज में पौली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होता है, जो खासतौर पर ब्रैस्ट, प्रोस्टैट और कोलन कैंसर से बचाव करता है.

अलसी का बीज ओमेगा 3 फैटी एसिड का बहुत अच्छा स्रोत माना जाता है. इस का बीज फाइबर से भरपूर होता है. यह वजन घटाने में भी बहुत कारगर है.

अलसी के बीज एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल होते हैं. इन का उपयोग शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

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कैसे और कितना खाएं

अलसी के साबुत बीज कई बार हमारे शरीर में बिना पचे ही बाहर निकल जाते हैं, इसलिए इन्हें पीस कर ही इस्तेमाल करना चाहिए. एक चम्मच अलसी पाउडर को सुबह खाली पेट हलके गरम पानी के साथ लेना अच्छा रहता है. इसे फल या सब्जियों के ताजा जूस में भी मिला सकते हैं. अपने भोजन में ऊपर से बुरक कर भी खा सकते हैं. दिनभर में 2 चम्मच से ज्यादा अलसी पाउडर का प्रयोग न करें.

इस के अलावा अलसी के लड्डू, पिन्नी, नमकीन बना कर भी इस का इस्तेमाल कर सकते हैं. बनाने की

विधि

साफ की हुई अलसी को गरम कड़ाही में डालें. अलसी को चम्मच की मदद से चलाते रहें. जब इस में से हलकी चटचट की आवाज आने लगे और हलकी सी फूल जाए, तो इसे प्लेट में निकाल कर ठंडा कर लें, फिर मिक्सी या सिलबट्टे की मदद से दरदरा पीस लें.

कड़ाही में एक चम्मच घी डालें और आटे को लगातार चलाते हुए हलका भूरा होने तक भून लीजिए.

इस के बाद आटे को थाली में निकाल लें.

कड़ाही में बचा हुआ घी डाल कर गरम करें. थोड़ाथोड़ा गोंद डाल कर इसे चलाते हुए फूलने तक धीमी आंच पर भून लीजिए.

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मूंगफली दाना, अखरोट, बादाम, किशमिश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें.

इलायची को पीस लें व खरबूजे के दानों को गरम कड़ाही में हलका सा रोस्ट कर लें. भुनी गोंद को बेलन की मदद से दबा कर महीन कर लें.

गोंद के तलने के बाद जो थोड़ा सा घी बचा है उस में अलसी पाउडर डाल कर 2 से 3 मिनट तक हलकी आंच पर भून कर प्लेट में निकाल लें.

चाशनी तैयार करें

कड़ाही में चीनी और आधा कप पानी डालें. चीनी घुलने तक चमचे से चलाएं और एक तार की चाशनी तैयार कर लें. इस के गैस बंद कर दें.

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चाशनी में भुना आटा, भुनी अलसी, कटे हुए मेवे, गोंद और

इलायची पाउडर डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. हलका गरम रहने पर हाथ में थोड़ा सा घी लगा कर लड्डू बना लें.

इस बात का ध्यान रखें कि गरम रहते ही लड्डू बना लें, वरना मिश्रण बिखरने लगेगा.

इंतजार- भाग 3 : सोमा अपनी पहली शादी से क्यों परेशान थी?

साड़ी तो तू सच में बड़ी सुंदर लाया है. लेकिन इसे भला पहनूंगी कहां, बता?’

‘हम दोनों इतवार को पिक्चर देखने चलेंगे, तब पहनना.’ वह शरमा गई थी.

दोनों के बीच पतिपत्नी का रिश्ता नहीं था, लेकिन दोनों साथसाथ एक ही घर में रहते थे.

वह कमरे में सोती तो महेंद्र बाहर बरामदे में. उस के अपने घर की खबर मिलते ही सूरज जाने कहां से प्रकट हो गया और पूरी कालोनी में महेंद्र की रखैल कह कर गालीगलौज करते हुए पति का हक जमाने लगा.

महेंद्र को बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी. सोमा अकेले ही सूरज का सामना करने के लिए काफी थी. उस की गालियों के सामने उस की एक नहीं चली थी और हार कर वह लौट गया था.

कई बार रात के अंधेरे में वह करवटें बदलती रह जाती थी. समाज की ऊलजलूल बातें और लालची मर्दों की कामुक निगाहें, मानो वह कोई ऐसी मिठाई है, जिस का जो चाहे रसास्वादन कर सकता है.

महेंद्र के साथ रहने से वह अपने को सुरक्षित महसूस करती थी. बैंक में अकाउंट हो या कोई भी फौर्म, पति के नाम के कौलम को देखते ही उस के गले में कुछ अटकने लगता था.

वह महेंद्र की पहल का मन ही मन इंतजार करती रहती थी.

महेंद्र अपनी बात का पक्का निकला था, उस ने भी सोमा का मान रखा था.

दोनों साथ रहते, खाना खाते, घूमने जाते लेकिन आपस में एक दूरी बनी  हुई थी.

‘सोमा, कल काम की छुट्टी कर लेना.’

‘क्यों?’

‘कल आर्य कन्या स्कूल में आधार कार्ड के लिए फोटो खिंचवाने चलना है. फोटो खींची जाएगी, अच्छे से तैयार हो कर चलना.’

वह मुसकरा उठी थी.

अगले दिन उस ने महेंद्र की लाई हुई साड़ी पहनी, कानों में ?ामके पहने थे. उस ने माथे पर बिंदिया लगाई. फिर आज उस के हाथ मांग में सिंदूर सजाने को मचल रहे थे.

हां, नहीं, हां, नहीं, सोचते हुए उस ने अपनी मांग में सिंदूर सजा लिया था. हाथों में खनकती हुई लाल चूडि़यां, आज वह नवविवाहिता की तरह सज कर तैयार हुई थी. आईने में अपना अक्स देख वह खुद शरमा गई थी.

महेंद्र उस को देख कर अपनी पलकें ?ापकाना ही भूल गया था. वह बोला, ‘क्या सूरज की याद आ गई तुम्हें?

वह इतरा कर बोली, ‘चलो, फोटो निकलवाने चलना है कि नहीं?’

सोमा को इतना सजाधजा देख महेंद्र उस का मंतव्य नहीं सम?ा पा रहा था.

वह चुपचाप उस के साथ चल दिया था. वहां फौर्म भरते समय जब क्लर्क ने पति का नाम पूछा तो एक क्षण को  वह शरमाई, फिर मुसकराती हुई  तिरछी निगाहों से महेंद्र को देखते  हुए उस का हाथ पकड़ कर बोली  थी, ‘महेंद्र’.

महेंद्र के कानों में मानो घंटियां बज उठी थीं. इन्हीं शब्दों का तो वह कब से इंतजार कर रहा था. वह अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सोमा ने उसे आज अपना पति कहा है.

रात में वह रोज की तरह अपने कमरे में जा कर लेट गया था. आज खुशी से उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. लेकिन वह आज भी अपनी खुशी का इंतजार कर रहा था.

आज नवविवाहिता के वेश में सजधज कर अपनी मधुयामिनी के लिए सोमा आ कर अपने प्रेमी की बांहों में सिमट गई थी.

अब उस के मन में समाज का कोई भय नहीं था कि महेंद्र जाट है और वह वाल्मीकि. अब वे केवल पतिपत्नी हैं. वह मुसकरा उठी थी.

महेंद्र की आवाज से वह वर्तमान में लौटी थी, ‘‘सोमा, दरवाजा तो खोलो, मैं कब से इंतजार कर रहा हूं.

इंतजार- भाग 2 : सोमा अपनी पहली शादी से क्यों परेशान थी?

आलसी तो वह हद दर्जे का था. पानमसाला हर समय उस के मुंह में भरा ही रहता.

जुआ खेलना, शराब पीना उस के शौक थे. यहांवहां हाथ मार कर चोरी करता और जुआ खेलता.

उस का भाई भी रात में दारू पी कर आता और गालीगलौज करता.

कुछ पैसे अम्मा ने दिए थे. कुछ उस के अपने थे. वह अपने बक्से में रखे हुए थी. सूरज उन पैसों को चुरा कर ले गया था. एक दिन उस ने अपनी पायल उतार कर साफ करने के लिए रखी थी. वह उस को यहांवहां घंटों ढूंढ़ती रही थी. लेकिन जब पायल हो, तब तो मिले. वह तो उस के जुए की भेंट चढ़ गई थी. यहां तक कि वह उस की शादी की सलमासितारे जड़ी हुई साड़ी ले गया और जुए में हार गया.

अस्तव्यस्त बक्से की हालत देख वह साड़ी के गायब होने के बारे में जान चुकी थी. वह खूब रोई. जा कर अम्माजी से कहा, तो वे बोली थीं, ‘साड़ी ही तो ले गया, तु?ो तो नहीं ले गया. मैं उसे डांट लगाऊंगी.’

उस की शादी को अभी साल भी नहीं पूरा हुआ था, लेकिन उस ने मन ही मन सूरज को छोड़ कर जाने का निश्चय कर लिया था. वह नशे में कई बार उस की पिटाई भी कर के उस के अहं को भी चोट पहुंचा चुका था.

वह बहुत दुखी थी, साथ ही, क्रोधित भी थी. सूरज नशा कर के देररात आया. आज कुछ ज्यादा ही नशे में था. बदबू के भभके से उस का जी मिचला उठा था. फिर उस के शरीर को अपनी संपत्ति सम?ाते हुए अपने पास उसे खींचने लगा. पहले तो उस ने धीरेधीरे मना किया, पर वह जब नहीं माना, तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया. वह संभल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया. कोने में रखे संदूक का कोना उस के माथे पर चुभ गया और खून का फौआरा निकल पड़ा.

फिर तो उस दिन आधीरात को जो हंगामा हुआ कि पौ फटते ही उसे उस के घर के लिए बस में बैठा कर भेज दिया गया.

बाबूअम्मा ने उसे देख अपना सिर पीट लिया था. अम्मा बारबार उसे ससुराल भेजने का जतन करती, लेकिन वह अपने निर्णय पर अडिग रही.

उसे अब किसी काम की तलाश थी क्योंकि अब वह अम्मा पर बो?ा बन कर घर में नहीं बैठना चाहती थी.

सब उसे सम?ाते, आदमी ने पिटाई की तो क्या हुआ? तुम ने क्यों उस पर हाथ उठाया आदि.

अम्मा ने अमिता बहनजी से उस की नौकरी के लिए कहा तो उन्होंने उसे अपने कारखाने में नौकरी पर रख लिया. अंधे को क्या चाहिए दो आंखें. वहां शर्ट सिली जाती थी. उसे बटन लगा कर तह करना होता था. इस काम में कई औरतेंआदमी लगे हुए थे.

सुपरवाइजर बहुत कड़क था. वह एक मिनट भी चैन की सांस नहीं लेने देता. किसी को भी आपस में बात करते या हंसीमजाक करते देखता, तो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दिया करता.

कारखाने का बड़ा उबाऊ वातावरण था. औसत दरजे का कमरा, उस में  10-12 औरतआदमी, चारों और कमीजों का ढेर और धीमाधीमा चलता पंखा. नए कपड़ों की गरमी में लगातार काम में जुटे रह कर वह थक जाती और ऊब भी जाती.

थकीमांदी जब वह घर लौटती तो एक कोठरी में बाबू की गालीगलौज और नशे में अम्मा के साथ लड़ाई व मारपीट से दोचार होना पड़ता. लड़ाई?ागड़े के बाद उसे सोता सम?ा दोनों अपने शरीर की भूख मिटाते. उसे घिन आती और वह आंखों में ही रात काट देती.

सवेरे पड़ोस का रमेश उसे लाइन मारते हुए कहता, ‘अरे सोमा, एक मौका तो दे मु?ो, तु?ो रानी बना कर रखूंगा.’

वह आंखें तरेर कर उस की ओर देखती और नाली पर थूक देती.

विमला काकी व्यंग्य से मुसकरा कर कहती, ‘कल तुम्हारे बाबू बहुत चिल्ला रहे थे, क्या अम्मा ने रोटी नहीं बनाईर् थी?’

वह इस नाटकीय जीवन से छुटकारा चाहती थी. उस ने नौकरी के साथसाथ बीए की प्राइवेट परीक्षा पास कर ली थी.

जब वह बीए पास हो गई तो उस की तरक्की हो गई. आंखों ही आंखों में वहां काम करने वाले महेंद्र से उस की दोस्ती हो गई. वह अम्मा से छिपा कर उस के लिए टिफिन में रोटी ले आती. दोनों साथसाथ चाय पीते, लंच भी साथ खाते. कारखाने के सुपरवाइजर दिलीप ने बहुत हाथपैर पटके कि तुम्हें निकलवा दूंगा, यहां काम करने आती हो या इश्क फरमाने. लेकिन, जब आपस में मन मिल जाए तो फिर क्या?

‘महेंद्र एक बात सम?ा लो, तुम से दोस्ती जरूर की है लेकिन मु?ा से दूरी बना कर रहना. मु?ा पर अपना हक मत सम?ाना, नहीं तो एक पल में मेरीतेरी दोस्ती टूट जाएगी.’

‘देख सोमा, तेरी साफगोई ही तो मु?ो बहुत पसंद है. जरा देर नहीं लगी और सूरज को हमेशा के लिए छोड़ कर आ गई.’

इस तरह आपस में बातें करतेकरते दोनों अपने दुख बांटने लगे.

‘महेंद्र, तुम शादी क्यों नहीं कर लेते?’

‘जब से लक्ष्मी मु?ो छोड़ कर चली गई, मेरी बदनामी हो गई. मेरे जैसे आदमी को भला कौन अपनी लड़की देगा.’

‘वह छोड़ कर क्यों चली गई?’

‘उस का शादी से पहले किसी के साथ चक्कर था. अपनी अम्मा की जबरदस्ती के चलते उस ने मु?ा से शादी तो कर ली लेकिन महीनेभर में ही सबकुछ लेदे कर भाग गई. उस का अपना अतीत उस की आंखों के सामने घूम गया था.

अब महेंद्र के प्रति उस का लगाव अधिक हो गया था.

एक दिन उस को बुखार था, इसलिए वह काम पर नहीं गई थी. वह घर में अकेली थी. तभी गंगाराम (बाबू के दोस्त) ने कुंडी खटखटाई, ‘एक कटोरी चीनी दे दो बिटिया.’

वह चीनी लेने के लिए पीछे मुड़ी ही थी कि उस ने उस को अपनी बांहों में जकड़ लिया था. लेकिन वह घबराई नहीं, बल्कि उस की बांहों में अपने दांत गड़ा दिए. वह बिलबिला पड़ा था. उस ने जोर की लात मारी और पकड़ ढीली पड़ते ही वह बाहर निकल कर चिल्लाने लगी. शोर सुनते ही लोग इकट्ठे होने लगे.

लेकिन उस बेशर्म गंगाराम ने जब कहा कि तेरे बाबू ने मु?ा से पैसे ले कर तु?ो मेरे हाथ बेच दिया है. अब तु?ो मेरे साथ चलना होगा.

‘थू है ऐसे बाप पर, हट जा यहां से, नहीं तो इतना मारूंगी कि तेरा नशा काफूर हो जाएगा,’ वह क्रोध में तमतमा कर बोली, ‘मैं आज से यहां नहीं रहूंगी.’

आसपास जमा भीड़ बाबू के नाम पर थूक रही थी. लड़ाई की खबर मिलते ही अम्मा भी भागती हुई आ गई थी. वह उसे सम?ाने की कोशिश करती रही लेकिन उस ने तो कसम खा ली थी कि वह इस कोठरी के अंदर पैर कभी नहीं रखेगी.

उसी समय महेंद्र उस का हालचाल पूछने आ गया था. सारी बातें सुन कर बोला, ‘तुम मेरी कोठरी में रहने लगो, मैं अपने दोस्त के साथ रहने लगूंगा.’

अम्मा की गालियों की बौछार के साथसाथ रोनाचिल्लाना, इन सब के बीच वह उस नर्क को छोड़ कर महेंद्र की कोठरी में आ कर रहने लगी थी. अम्मा ने चीखचीख कर उस दिन उस से रिश्ता तोड़ लिया था.

महेंद्र के साथ जाता देख अम्मा उग्र हो कर बोल रही थी, ‘जा रह, उस के साथ, देखना महीनापंद्रह दिन में तु?ा से मन भर जाएगा. बस, तु?ो घर से बाहर कर देगा.’

महेंद्र को सोमा काफी दिनों से जानती थी. उस ने उस की आंखों में अपने लिए सच्चा प्यार देखा था. उस की निगाहों में, बातों में वासना की ?ालक नहीं थी.

कारखाने में वह अब सुपरवाइजर बन गई थी. उस के मालिक उस के काम से बहुत खुश थे.

महेंद्र पढ़ालिखा तो था ही, वह अब पूरे एरिया का इंस्पैक्टर बन गया था.

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक घर के लिए सोमा का नाम निकल आया था. उस के लिए

एक लाख रुपए जमा करने थे. नाम उस का निकला था पैसे भी उसी के नाम पर जमा होने थे. लेकिन महेंद्र ने निसंकोच पलभर में पैसे उस के नाम पर दे दिए. अब उस का अपना मकान हो गया था.

मकान मिलते ही वे दोनों बस्ती से दूर इस कालोनी में आ कर रहने लगे थे.

सोमा को अपने जीवन में सूनापन लगता. जब उस से सब अपने पति या बच्चों की बात करतीं, तो उस के दिल में कसक सी उठती थी कि काश, उस का भी पति होता, परिवार और बच्चे हों. लेकिन महेंद्र ने उस से दूरी बना कर रखी थी. उस ने लालची निगाहों से कभी उस की ओर देखा भी नहीं था.

जबकि सोमा के सजनेसंवरने के शौक को देखते हुए महेंद्र बालों की क्लिप, नेलपौलिश, लिपस्टिक आदि लाता रहता था. कभी सूट तो कभी साड़ी भी ले आता था. एक दिन लाल साड़ी ले कर आया था, बोला, ‘सोमा, यह साड़ी पहन, तेरे पर लाल साड़ी खूब फबेगी.’

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