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खुदगर्ज मां-भाग 3 : आखिर मां के एक फैसले ने कैसे बदल दी मेरी जिंदगी

माना कि मां की उम्र ज्यादा नहीं थी, फिर भी उन्हें इस का तो खयाल होना चाहिए था कि वे 2 बच्चियों की मां हैं और मायके में रह रही हैं. नानी न सही, आसपास के लोग तो जरूर कानाफूसी करते होंगे. ऐसे में उन की और भी जिम्मेदारी बनती थी कि वे मर्यादा में रहें. क्या पता नानी ने शह दी हो कि कोई दूसरा उन की जिंदगी में आए और वे दूसरी शादी कर लें. और हुआ भी वही. मां ने उस व्यक्ति से शादी की जिस के यहां वे नौकरी करती थीं. आज मेरी समझ में आ गया कि नानी ने मां के चालचलन पर कोई एतराज क्यों नहीं जताया. ठीक है, उन्होंने जो समझा, किया. मगर हम से झूठ क्यों बोला कि मां दिल्ली नौकरी करने गई हैं. हमें अंधेरे में क्यों रखा? यह सोच कर मेरा मन दुखी हो गया. पापा एकाध बार हमारे यहां आए मगर मां और नानी ने उन्हें बड़ी निर्लज्जता के साथ घर से निकाल दिया. उस के बाद वे कभी नहीं झांके. हो सकता है उन्होंने भी दूसरी शादी कर ली हो?

आहिस्ताआहिस्ता मैं और छोटी ने बिन मां के रहना सीख लिया. पहले मां का फोन आ भी जाता था मगर धीरेधीरे वह भी आना बंद हो गया. हम ने भी फोन करना बंद कर दिया. मन बना लिया कि मैं और छोटी पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होंगी.

आज हम दोनों बहनें अच्छेअच्छे ओहदों पर हैं. छोटी ने प्रेमविवाह कर लिया. मगर मैं ने नहीं. उम्र के 30वें पायदान पर आ कर भी शादी का खयाल नहीं आया. शादी से वितृष्णा हो गई थी. शादी ही तो की थी मां ने जिस के चलते हमें उन के प्यार से महरूम होना पड़ा. खून से ज्यादा अगर शादी अहमियत रखती है तो मैं ऐसी शादी को ठुकराती हूं. मेरे लिए बेटी के रूप में छोटी थी जिसे मैं ने मां सदृश पाला. आगे भी उसी की खुशी में अपनी खुशी तलाशती रहूंगी. मेरे जीवन का मकसद भी यही था कि छोटी को फलताफूलता देखूं. मां को मेरे आशय की खबर लगी तो पहले फोन किया, जब उस से सफलता नहीं मिली तो मेरी सहेली अनुराधा से खत भिजवा दिया. मैं ने अनुराधा को खूब खरीखोटी सुनाई कि क्यों लिया उन का खत? मैं उन से नफरत करती हूं. आज अचानक जिम्मेदारी का खयाल कैसे आया? हमें बेटी माना होता तो ठीक था. हमें तो लावारिस की तरह नानी के पास रख कर चली गईं गुलछर्रे उड़ाने.

‘‘तुम्हें मां के बारे में ऐसा नहीं कहना चाहिए,’’ अनुराधा ने टोका.

मुझे किंचित अफसोस हुआ, ‘‘अनुराधा, मैं किसी के चरित्र पर उंगली नहीं उठा रही हूं. मेरे कहने का आशय यही है कि उन्होंने जो किया, क्या वह ठीक था?’’

अनुराधा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्षणांश चुप्पी के बाद वह बोली, ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम एक बार अपनी मां से मिल लो.’’

‘‘मैं उन की शक्ल भी देखना नहीं चाहती.’’

‘‘तुम्हारी प्रतिक्रिया वाजिब है. तुम्हें उन के नहीं, अपने तरीके से सोचना होगा. उन की दूसरी शादी उन की तब की परिस्थिति और सोच पर निर्भर थी. जबकि तुम्हारी शादी आज की परिस्थिति पर. वे ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थीं, तुम तो हो और अच्छी तरह जानती हो कि शादी जीवन को एक लय देती है. जैसे बिना साज के आवाज अधूरी है वैसे ही बिन शादी के जीवन अधूरा. जीवनसाथी का साथ अकेलेपन को दूर करता है. फिर सारे गिलेशिकवे दूर हो जाएंगे. न मन में नफरत के भाव आएंगे और न ही व्यवहार में चिड़चिड़ापन.’’ मेरे मन पर अनुराधा की बातों का प्रभाव पड़ा. एक हद तक वह ठीक थी. औफिस से घर जाती तो मेरा अतीत मेरा पीछा नहीं छोड़ता. कब तक मां को दोष देती रहूंगी? उन्हें कोसने से मुझे अब क्या मिलने वाला है? इस से उबरने का यही तरीका था कि मैं शादी कर के एक नए नजरिए से दुनिया को देखूं.

काफी सोच कर मैं ने अपनी पसंद के एक सहकर्मी से शादी कर ली. मगर मां को नहीं बुलाया. यह मेरी चिढ़ थी या प्रतिकार. इसे जो भी कहा जाए. वे निष्ठुर हो सकती हैं तो मैं क्यों नहीं. हां, यह खबर मैं ने अनुराधा से उन तक भिजवा दी. एक बात मुझे जीवनभर सालती रहेगी कि क्या कोई मां खुदगर्ज हो सकती है.

खुदगर्ज मां -भाग 2 : आखिर मां के एक फैसले ने कैसे बदल दी मेरी जिंदगी

एकबारगी मैं असमंजस की स्थिति में आ गई. बच्चे को गोद में लेती हुई यह पूछने से अपनेआप को न रोक पाई कि मां, यह भाई कहां से आया? मां दुविधा में पड़ गईं. वे भरसक जवाब देने से बचती रहीं. बच्चे को भाई के रूप में पा कर कुछ क्षण के लिए मैं सबकुछ भूल गई. मगर इस का मतलब यह नहीं था कि मेरे मन में सवालों की कड़ी खत्म हो गई. रात में ठीक से नींद नहीं आई. करवटें बदलते कभी मां तो कभी बच्चे पर ध्यान चला जाता. तभी नानी और मां की खुसुरफुसुर मेरे कानों में पड़ी.

‘कैसा चल रहा है? पहले से दुबली हो गई हो,’ नानी पूछ रही थीं.

‘बच्चे के आने के बाद थोड़ी परेशान हूं. ठीक हो जाएगा.’

मां बोलीं, ‘दामादजी खुश हैं?’

‘बहुत खुश हैं. खासतौर से लड़के के आने के बाद.’

‘मैं तो डर रही थी कि 2-2 बेटियों का कलंक कहीं वहां भी तेरा पीछा न करे,’ नानी बोलीं.

‘मां, भयभीत तो मैं भी थी. शुक्र है कि मैं वहां बेटियों के कलंक से बच गई. यहां दोनों कैसी हैं?’

‘ठीक हैं. शुरुआत में थोड़ा परेशान जरूर करती थीं मगर अब नहीं. दोनों को घर के छोटेमोटे कामों में उलझाए रहती हूं ताकि भूली रहें.’

‘मां, अब दोनों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है. मैं अब शायद ही अपनी नई गृहस्थी से उबर पाऊं. वैसे भी लड़के के आ जाने के बाद दोनों के प्रति मोह भी कम हो गया है.’

‘ऐसा नहीं कहते,’ नानी ने टोका.

‘क्यों न कहूं? बाप नालायक. इन दोनों के बोझ से मुक्त होना क्या आसान होगा?’

‘सब अपनीअपनी नियति का पाते हैं, कुछ सोच कर नानी फिर बोलीं, ‘तुम ने दामादजी से बात की थी.’

‘किस सिलसिले में?’ मां के माथे पर बल पड़ गए.

‘दोनों को अपनी बेटियां बना कर रख लेते तो भरापूरा परिवार हो जाता.’

‘पागल हो गई हो मां. जिस की बेटियां हैं उसे ही फिक्र नहीं तो भला वे क्यों जहमत उठाएं?’ नानी क्षणांश गंभीर हो गईं. वे उबरीं, ‘तुम्हें बेटियों के बारे में भी सोचना चाहिए. तुम्हारा भाई अधिक से अधिक इन को पढ़ालिखा देगा. रही बात शादीब्याह की, उस का क्या होगा?’

‘तब की तब देखी जाएगी.’

दोनों का वार्त्तालाप मेरे कानों में पड़ा. सुन कर मेरी आंखें भर आईं. एक मां के लिए बेटी इतनी बोझ हो गई कि उसे अपनी दूसरी शादी की तो फिक्र है मगर अपनी बेटियों के भविष्य की नहीं. तब मैं ने मन बना लिया था कि आइंदा कभी भी मां को फोन नहीं करूंगी. उन्हें अपने बेटे से मोह है तो मुझे अपनेआप से. मैं अपने पैरों पर खड़ी हो कर दिखला दूंगी कि मैं किसी पर बोझ बनने वाली नहीं. एक हफ्ते रही होंगी मां हमारे साथ. उन का रहना न रहना, हमारे लिए बराबर था. उन का ज्यादातर समय अपने नवजात शिशु के लिए ही था. हम तो जैसे उन के लिए गैर हो गए थे. बहरहाल, एक दिन एक आदमी आया. जिसे मां ने पिता कह कर हम दोनों बहनों से परिचय करवाया. मुझे वह आदमी कुछ जानापहचाना लग रहा था. वह हमारा किस रिश्ते से पिता हो गया. यह मैं ने बाद में जाना. उस के साथ मां चली गईं. एक अनसुलझे सवाल का जवाब दिए बगैर मां एक रहस्यमयी व्यक्तित्व के साथ हमारी नजरों से दूर चली गईं.

इस बार मैं ने अपने आंसुओं को बहा कर जाया नहीं किया क्योंकि कुछकुछ हालात मेरी समझ में आ चुके थे. फिर भी वे हमारी मां थीं, हमें उन की जरूरत थी. जबकि मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी कि हमारी मां अब हमारी नहीं रहीं, बल्कि  उस बच्चे की मां बन चुकी थीं जो उन की गोद में था. वह जानापहचाना व्यक्ति निश्चय ही मां का पति था. जिस के साथ उन्होंने एक अलग दुनिया बसा ली थी और हमें छोड़ दिया लावारिसों की तरह नानी के घर में पलने के लिए. सोच कर मेरी आंखें आंसुओं से लबरेज हो गईं. छोटी तो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने समझाया, ‘देख, हमें मां के बगैर जीने की आदत डालनी होगी, मन को कड़ा कर ‘छोटी,’ कह कर मैं ने उसे सीने से लगा लिया.

‘दीदी, मां अब कभी नहीं आएंगी?’ छोटी के कथन पर रुलाई तो मुझे भी फूट रही थी मगर किसी तरह खुद पर नियंत्रण रखा था. मां का जब तक इंतजार रहा तब तक तसल्ली रही. अब तो स्पष्ट हो गया कि वे हमारी नहीं रहीं. शायद ही कभी वे इधर का रुख करें. करेंगी भी तो 2-4 साल में एकाध बार. उन का होना न होना, बराबर था हमारे लिए. पर पता नहीं क्यों, मन मानने के लिए तैयार न था. मेरी सगी मां जिन्होंने हमें 9 महीने गर्भ में रखा, पालापोसा, अचानक इतनी निर्मोही कैसे हो सकती हैं? क्यों उन्होंने हम से विमुख हो दूसरे व्यक्ति का दामन थामा? क्या वह व्यक्ति हम से ज्यादा अहमियत रखता था मां के लिए. खून के रिश्ते क्या इतने कमजोर होते हैं कि कोई भी ऐरागैरा तोड़ दे? कोई मां कैसे अपने अबोध बच्चों को छोड़ कर दूसरी शादी कर लेती है? छोटी रोतेरोते सो गई, वहीं मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी. घूमफिर कर सोच कभी मां तो कभी उस व्यक्ति पर चली जाती जिसे मैं ने कहीं देखा था.

आखिरकार मुझे याद आ ही गया. जब मां एक कौस्मैटिक की दुकान पर काम करती थीं तब मुझे वहां ले गई थीं. तब 13 साल की थी मैं. अंकल ने मुझे बड़े प्यार से मुझ से मेरी ख्वाहिशों के बारे में पूछा. मुझे पिज्जा खिलाया. आइसक्रीम दी. थोड़ी देर बाद मामा आए तब मैं उन के साथ मां को वहीं छोड़ कर घर लौट आई.

आज उम्र के 30वें पायदान पर आ कर सबकुछ ऐसे जेहन में तैरने लगा जैसे कल की बात हो. मां ने उसी व्यक्ति से शादी कर ली. मैं ने उसांस ली. जो भी हो, एक बात आज भी शूल की भांति चुभती है कि क्यों मां ने हम से ज्यादा उस व्यक्ति से शादी को अहमियत दी? क्या हमें पालपोस कर बड़ा करना उन के जीवन का मकसद नहीं हो सकता था? जब शादी कर के बच्चे ही पालने थे तो हम क्या बुरे थे? अगर इतना ही बेगानापन था हम से तो छोड़ देतीं हमें अपने पिता के पास. कामधाम नहीं करते तो क्या हुआ, कम से कम उन्हें अपने खून के रिश्ते का खयाल तो होता? हो सकता था हमें देख कर ही वे कुछ कामधाम करने लगते. अनायास पापा की याद आने लगी. 5 साल की थी, जब मां ने पापा का घर छोड़ा.

नानी कहतीं, ‘तेरे पिता गैरजिम्मेदार थे.’ बड़ी हुई तो नानी से पूछा, ‘नानी, मां की शादी हुई तब उन की उम्र मात्र 16 साल की थी और पापा की रही होगी 21 साल. यही न आप ने हम से बताया था. इतनी छोटी उम्र में न मां शादी लायक थीं, न ही पापा घरगृहस्थी संभालने लायक. आप ने तो अपना बोझ हटाया. मगर पापा को तो मौका दिया होता संभालने का. 25 साल के बाद ही आदमी कुछ करने की स्थिति में होता है. मगर आप को तो मां की शादी के साथ उन के कमाने की जल्दी थी. मां को क्या कहें, वे अपरिपक्व थीं, जो विवाह को मजाक समझा और चली आईं आप के साथ रहने. आप ने भी उन का सपोर्ट किया. क्या फायदा हुआ ऐसी शादी करने से जब लड़की मायके में ही आ कर रहने लगे.’

नानी को दंश लगा. ‘जब तू कुछ नहीं जानती तो मत बोला कर,’ वे थोड़ी रोंआसी हो गईं. मुझे अपराधबोध हुआ. भरे गले से कहने लगीं, ‘जब तेरे नाना मरे तब मेरी उम्र थी 35 साल. 3 लड़कियां और 2 लड़के छोड़ कर जब वे गुजरे तब मेरे ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. किसी तरह संभली तो दिनरात यही चिंता खाए जा रही थी कि कैसे 3 लड़कियों की शादी करूंगी?’

‘शादी करना क्या जरूरी था? इस शादी से मिला क्या?’

‘तो क्या घर पर बिठा कर चार लोगों के ताने सुनती.’ ‘भले ही बेटी की जिंदगी बरबाद हो जाए?’

‘मैं तुझ से बहस नहीं करना चाहती. जो उचित था, वह किया. रही बेटी की बात, मैं ऐसे आदमी के पास उसे नहीं छोड़ सकती जो दिनभर बैठ कर मुफ्त की रोटियां तोड़े. छोटीछोटी जरूरतों के लिए उसे सासससुर पर निर्भर रहना पड़ता. क्या वह इतना भी कमाने की स्थिति में नहीं था कि उस के लिए एक लिपस्टिक ला सके.’

‘इतना ही कमाने वाला दामाद चाहिए था तो पहले कामधाम देख कर शादी करतीं?’

‘देखी थी, बाप की किराने की अच्छीखासी दुकान थी.’

‘फिर शिकायत कैसी जब मां सासससुर से अपनी जरूरतों के लिए कहतीं.’

‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहती. पढ़लिख गई हो तो कुछ ज्यादा ही बुद्धि आ गई है तुम में.’

‘नानी, मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि कम उम्र में शादी कर के आप ने घोर अपरिपक्वता का परिचय दिया है. बेटियों को बोझ समझा. इस का दुष्परिणाम है जो हमें अपने मांबाप दोनों से वंचित होना पड़ा,’ कहतेकहते मेरी दोनों आंखों के कोर भीग गए. पता नहीं क्यों मुझे मां का चालढाल भी मर्यादित नहीं लगा. खासतौर से उन के पहनावे और बनावशृंगार को ले कर. तब मेरा बालपन उतना समझने में सक्षम नहीं था. परंतु उस समय की देखीसुनी चीजों का अर्थ अब समझ में आने लगा था.

किसानों की आमदनी बढ़ाने में मददगार भिंडी की लाल किस्म

महामारी कोरोना के दौर में लोगों के रहनसहन और खानपान की आदतों में न केवल बदलाव आया है, बल्कि लोग खुद की सेहत को ले कर बेहद सजग रहने लगे हैं. ऐसे में लोगों का खाने में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता वाली सागसब्जियों की तरफ ज्यादा ?ाकाव देखने को मिल रहा है.

पोषक तत्त्वों की प्रचुरता के नजरिए से भिंडी एक ऐसी सब्जी है, जिसे आम से खास लोग अपने खाने में पसंद करते हैं. भिंडी में सेहत को फायदा पहुंचाने वाले प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस के अलावा विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, थाइमिन और रिबोफ्लेविन भी पाया जाता है, इसलिए इस के खाने में उपयोग के चलते शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत में इजाफा होता है.

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अगर देश में भिंडी को खेती के नजरिए से देखा जाए तो अभी तक देश के ज्यादातर भूभाग पर भिंडी की हरे किस्म की खेती की जाती रही है. लेकिन वाराणसी के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने भिंडी की ऐसी किस्म ईजाद की है, जिस का रंग भिंडी की दूसरी किस्मों से हट कर बैगनी और लाल रंग का है.

इसे ईजाद करने वाले वैज्ञानिकों में डा. बिजेंद्र, डा. एसके सानवाल और डा. जीपी मिश्रा के साथ तकनीकी सहायक सुभाष चंद्र का नाम शामिल है. इसे ईजाद करने वाले संस्थान ने इस किस्म का नाम ‘काशी लालिमा’ रखा है.

इस भिंडी को विकसित करने के लिए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा साल 1995-96 से लगातार शोध किया जा रहा था, जिस में 24 सालों की कड़ी मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने कामयाबी पाई.

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इस किस्म को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार, भिंडी की इस किस्म के बैगनीलाल होने के कारण इस में पाया जाने वाला एंथोसायनिन तत्त्व की उपलब्धता है, जिस के चलते इस किस्म का रंग लाल होता है.

कोरोना के चलते लोगों में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता वाली सब्जियों की मांग बढ़ी है. ऐसे में भिंडी की काशी लालिमा प्रजाति की खेती कर किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि हरी भिंडी के मुकाबले लाल भिंडी में अधिक पोषक तत्त्व पाए जाते हैं, जो लोगों की सेहत को दुरुस्त रखने में सहायक माने जा रहे हैं.

भिंडी की इस किस्म में एंटीऔक्सिडैंट, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा जैसी बीमारियों के लिए कारगर है. इस के अलावा इस में विटामिन बी-9 पाया जाता है, जो जैनेस्टिक डिसऔर्डर को दूर करता है.

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विशेषज्ञों के अनुसार, भिंडी की बैगनीलाल किस्म गर्भवती महिलाओं के लिए भी फायदेमंद मानी जा रही है, क्योंकि महिलाओं के गर्भ में जो शिशु पलता है, उस के मस्तिष्क के विकास के लिए इसे बहुत उपयोगी माना जा रहा है. गर्भवती महिलाओं में यह लाल भिंडी फोलिक एसिड की कमी को दूर करती है.

विदेशों से होता था आयात

लाल भिंडी की खेती अभी तक पश्चिमी देशों में ही होती थी और वहीं से यह आयात हो कर आती थी, लेकिन देश में लाल भिंडी की किस्म विकसित हो जाने से व्यापक स्तर पर इस की खेती किए जाने की संभावनाएं जगी हैं, क्योंकि भारतीय बाजार में लाल भिंडी की भारी मांग है और यह 150 रुपए से ले कर 200 रुपए प्रति किलोग्राम तक के रेट में बिकती है. ऐसे में लाल भिंडी की खेती कर किसान भी ज्यादा मुनाफा ले सकेंगे.

खेत की तैयारी

‘काशी लालिमा’ को भिंडी की दूसरी किस्मों की तरह ही अच्छी जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाया जा सकता है. इस के बीजों को खेत में बोने के पहले खेत की 2-3 बार जुताई कर भुरभुरी कर और पाटा चला कर समतल कर लेना चाहिए.

बीज की मात्रा व बोआई का तरीका

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, गरमियों में 12-14 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और बरसात के मौसम की फसल के लिए 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की जरूरत पड़ती है.

भिंडी की इस लाल किस्म के बीज की बोआई सीधी लाइन में की जाती है. भिंडी के बीजों को बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए.

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गरमियों में बोई जाने वाली भिंडी के लिए कतार से कतार दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे के बीच की दूरी में 20 सैंटीमीटर का अंतर रखा जाता है, जबकि वर्षाकाल में कतार से कतार की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 30 सैंटीमीटर रखा जाना उचित होता है. बीज की 2 से 3 सैंटीमीटर गहरी बोआई करनी चाहिए. बोआई के पहले भिंडी के बीज उपचारित कर लेने चाहिए.

बोआई का समय

भिंडी की ‘काशी लालिमा’ प्रजाति भी सामान्य भिंडी की किस्मों की तरह बोई जा सकती है. इसे विकसित करने वाले संस्थान की वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार ग्रीष्मकालीन भिंडी की बोआई फरवरीमार्च में और वर्षाकालीन भिंडी की बोआई जूनजुलाई में की जाती है.

उर्वरक की संस्तुत मात्रा

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, ‘काशी लालिमा’ की फसल में अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद के अलावा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटैशियम की दर से मिट्टी में देना चाहिए.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के पहले भूमि में देनी चाहिए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा को 2 भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए.

सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण

फसल की बोआई के बाद पहली सिंचाई फरवरीमार्च में 10-12 दिन के अंतराल पर और  अप्रैल में 7-8 दिन के अंतराल पर करते रहें. मईजून में जब ज्यादा गरमी पड़ने लगे तो4-5 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. बरसात के सीजन में अगर अच्छी बरसात हो रही है, तो सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है.

फसल में खरपतवार न निकलने पाएं, इस का खास खयाल रखें क्योंकि इस से उत्पादन प्रभावित होता है. ऐसे में फसल में नियमित रूप से निराईगुड़ाई कर खेत से खरपतवार को नष्ट करते रहें. ज्यादा खरपतवार की दशा में खरपतवार नियंत्रक रसायनों का प्रयोग भी किया जा सकता है.

उत्पादकता और लाभ

वाराणसी में स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, भिंडी की ‘काशी लालिमा’ किस्म 130 से 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है. भिंडी की इस किस्म की लंबाई 11-14 सैंटीमीटर और व्यास 1.5 और 1.6 सैंटीमीटर होता है. किसानों के लिए भिंडी की काशी लालिमा किस्म को इसलिए फायदेमंद माना जा रहा है, क्योंकि इस में पोषक तत्त्वों की प्रचुरता के चलते इस का बाजार रेट भिंडी की आम किस्मों से ज्यादा मिलता  है.

खुदगर्ज मां -भाग 1 : आखिर मां के एक फैसले ने कैसे बदल दी मेरी जिंदगी

शादी जीवन को एक लय देती है. जैसे बिना साज के आवाज अधूरी है वैसे ही बिन शादी के जीवन अधूरा. जीवनसाथी का साथ अकेलेपन को दूर करता है.

‘‘मां, अब दोनों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है. वैसे भी लड़के के आ जाने के बाद दोनों बेटियों के प्रति मेरा मोह भी कम हो गया है,’’ मां को नानी से यह कहते जब सुना तो मेरी आंखें भर आईं. मां का खत मिला. फोन पर तो लगभग मैं ने उन से बात ही करना बंद कर दिया था. सो, मेरी सहेली अनुराधा के हाथों उन्होंने खत भिजवाया. खत में वही पुरानी गुजारिश थी, ‘‘गीता, शादी कर लो वरना मैं चैन से मर नहीं पाऊंगी.’’ मैं मन ही मन सोचती कि मां तो हम बहनों के लिए उसी दिन मर चुकी थीं जिस दिन उन्होंने हम दोनों को अकेले छोड़ कर शादी रचा ली थी. अब अचानक उन के दिल में मेरी शादी को ले कर ममता कैसे जाग गई. मेहमान भी आ कर एक बार खबर ले लेता है मगर मां तो जैसे हमें भूल ही गई थीं. साल में एकदो बार ही उन का फोन आता. मैं करती तो भी यही कहती बिलावजह फोन कर के मुझे परेशान मत करो, गीता. अब तुम बड़ी हो गई हो. तुम्हें वहां कोई कमी नहीं है. अब उन्हें कैसे समझाती कि सब से बड़ी कमी तो उन की थी हम बहनों को. क्या कोई मां की जगह ले सकता है?

खत पढ़ कर मैं तिलमिला गई. अचानक मन अतीत के पन्नों में उलझ गया. वैसे शायद ही कोई ऐसा दिन होगा जब अतीत को याद कर के मेरे आंसू न बहे हों. मगर मां जब कभी शादी का जिक्र करतीं तो अतीत का जख्म नासूर बन कर रिसने लगता. तब मैं 14 साल की थी. वहीं, मुझ से 2 साल छोटी थी मेरी बहन. उसे सभी छोटी कह कर बुलाते थे. मां ने तभी हमारा साथ छोड़ कर दूसरी शादी कर ली थी. पहले जब मैं मां के लिए रोती तो नानी यही कहतीं कि तेरी मां नौकरी के लिए दिल्ली गई है, आ जाएगी. पर मुझे क्या मालूम था कि कैसे मां और नानी ने मुझ से छल किया.

‘क्यों गई हैं?’ मेरा बालमन पूछता, ‘क्या कमी थी यहां? मामा हम सभी लोगों का खयाल रखते हैं.’ तब नानी बड़े प्यार से मुझे समझातीं, ‘बेटा, तेरे पिता कुछ करतेधरते नहीं. तभी तो तेरी मां यहां रहती है. जरा सोच, तेरे मामा भले ही कुछ नहीं कहते हों मगर तेरी मां को यह बात सालती रहती है कि वह हम पर बोझ है, इसीलिए नौकरी कर के इस बोझ को हलका करना चाहती है.’

‘वे कब आएंगी?’

‘बीचबीच में आती रहेगी. रही बात बातचीत करते रहने की, तो उस के लिए फोन है ही. तुम जब चाहो उस से बात कर सकती हो.’ सुन कर मुझे तसल्ली हुई. मैं ने आंसू पोंछे. तभी मां का फोन आया. मैं ने रोते हुए मां से शिकायत की, ‘क्यों हमें छोड़ कर चली गईं. क्या हम साथ नहीं रह सकते?’

मां ने ढांढ़स बंधाया, नानी का वास्ता दिया, ‘तुम लोगों को कोई तकलीफ नहीं होगी.’

मैं ने कहा, ‘छोटी हमेशा तुम्हारे बारे में पूछती रहती है.’

‘उसे किसी तरह संभालो. देखो, सब ठीक हो जाएगा,’ कह कर मां ने फोन काट दिया. मेरे गालों पर आंसुओं की बूंदें ढुलक आईं. बिस्तर पर पड़ कर मैं सुबकने लगी.

पूरा एक महीना हुआ मां को दिल्ली गए. ऐसे में उन को देखने की तीव्र इच्छा हो रही थी. नानी की तरफ से सिवा सांत्वना के कुछ नहीं मिलता. पूछने पर वे यही कहतीं, ‘नईनई नौकरी है, छुट्टी जल्दी नहीं मिलती. जैसे ही मिलेगी, वह तुम सब से मिलने जरूर आएगी,’ मेरे पास सिवा सुबकने के कोई हथियार नहीं था. मेरी देखादेखी छोटी भी रोने लगती. मुझ से उस की रुलाई देखी नहीं जाती थी. उसे अपनी बांहों में भर कर सहलाने का प्रयास करती ताकि उसे मां की कमी न लगे.

मां के जाने के बाद छोटी मेरे ही पास सोती. एक तरह से मैं उस की मां की भूमिका में आ गई थी. अपनी हर छोटीमोटी जरूरतों के लिए वह मेरे पास आती. एक भावनात्मक शून्यता के साथ 2 साल गुजर गए. जब भी फोन करती, मां यही कहतीं बहुत जल्द मैं तुम लोगों से मिलने बनारस आ रही हूं. मगर आती नहीं थीं. हमारा इंतजार महज भ्रम साबित हुआ. आहिस्ताआहिस्ता हम दोनों बहनें बिन मां के रहने के आदी हो गईं. मैं बीए में पहुंच गई कि एक दिन शाम को जब स्कूल से घर लौटी तो देखा मां आई हुई हैं. देख कर मेरी खुशी की सीमा न रही. मां से बिछोह की पीड़ा ने मेरे सब्र का बांध तोड़ डाला और बह निकला मेरे आंखों से आंसुओं का सैलाब जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. नानी ने संभाला.

‘अब तुम कहीं नहीं जाओगी,’ सिसकियों के बीच में मैं बोली. वे चुप रहीं. उन की चुप्पी मुझे खल गई. जहां मेरे आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे वहीं मां का तटस्थ भाव अनेक सवालों को जन्म दे रहा था. क्या यहां आ कर उन्हें अच्छा नहीं लगा? 2 साल बाद एक मां को अपने बच्चों से मिलने की जो तड़प होती है उस का मैं ने मां में अभाव देखा. शायद नानी मेरे मन में उठने वाले भावों को भांप गईं. वे मुझे बड़े प्यार से दूसरे कमरे में यह कहती हुई ले गईं कि तुम्हारी मां लंबी यात्रा कर के आई है, उसे आराम करने की जरूरत है. जो बातें करनी हों, कल कर लेना. ऐसा मैं ने पहली बार सुना. अपनी औलादों को देख कर मांबाप की सारी थकान दूर हो जाती है, यहां तो उलटा हो रहा था. मां ने न हमारा हालचाल पूछा न ही मेरी पढ़ाईलिखाई के बारे में कुछ जानने की कोशिश की.

उन्होंने एक बार यह भी नहीं कहा कि बेटे, मेरी गैरमौजूदगी में तुम लोगों को जो कष्ट हुआ उस के लिए मुझे माफ कर दो. छोटी भी लगभग उपेक्षित सी मां के पास बैठी थी. मां के व्यवहार में आए इस अप्रत्याशित परिवर्तन को ले कर मैं परेशान हो गई. बहरहाल, मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गई. वैसे भी मां के बगैर रहने की आदत हो गई थी. लेटेलेटे मन मां के ही इर्दगिर्द घूमता रहा. 2 साल बाद मिले भी तो मांबेटी अलगअलग कमरों में लेटे हुए थे. सिर्फ छोटी जिद कर के मां के पास बैठी रही.

अचानक एक छोटे से बच्चे के रोने की आवाज मेरे कानों में पड़ी. मुझे अचरज हुआ. उठ कर नानी के पास आई. ‘नानी, किस का बच्चा रो रहा है?’ नानी कुछ नहीं बोलीं. मानो वे मुझ से कुछ छिपाना चाहती हों. कोई जवाब न पा कर मैं मां के कमरे में आई. देखा, मां एक बच्चे को गोद में ले कर दूध पिला रही थीं. मेरे चेहरे पर शिकन पड़ गई.

मां के करीब आई. ‘मां, यह किस का बच्चा है?’ मां ने भी वही किया जो नानी ने. उन्होंने निगाहें चुराने की कोशिश की मगर जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो नानी ने परदाफाश किया, ‘यह तुम्हारा छोटा भाई है. तुम्हें हमेशा शिकायत रहती थी कि तुम्हारे कोई छोटा भाई नहीं है. लो, अब अपनी ख्वाहिश पूरी कर लो,’ नानी ने बच्चे को मां से ले कर मेरे हाथों में दे दिया.

बच्चों के साथ एयरपोर्ट पर दिखें करण जौहर , फैंस ने पूछा कहा कि तैयारी

सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद लोगों ने  नेपोटिज्म पर जमकर सवाल खड़े किए. कई लोगों ने ग्रुपबाजी करनी भी शुरू कर दी थी .  जिसके शिकार  बॉलीवुड के प्रॉड्यूसर करण जौहर भी हुए थे. करण जौहर पर नेपोटिज्म के आरोप लगे थें. उन्हें कई तरह के गंभीर सवालों का सामना करना पड़ा था. इन सभी हरकतों से परेशान होकर करण जौहर ने अपने सोशल साइट का कमेंट सेक्सन बंद कर दिया था.

इसी बीच करण जौहर को मुंबई एयरपोर्ट पर अपनी फैमली के साथ देखा गया . करण जौहर अपनी मां और दोनों बच्चों के साथ एयरपोर्ट पर नजर आएं. सूत्रों से खबर आ रही है कि करण जौहर कुछ दिनों तक अपनी फैमली के साथ गोवा में समय बीताएंगे. करण जौहर की फिल्म सिम्बा में काम करने वाली एक्ट्रेस सारा अली खान भी इन दिनों गोवा में हैं. बता दें कि रिया चक्रवर्ती ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से पूछताछ के दौरान सारा अली खान का नाम भी लिया था कि सारा और नकुल प्रीत सिंह के साथ ड्रग्स का सेवन कर चुकी हैं.

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पिछले साल करण जौहर के घर हुई पार्टी पर भी अब सवाल खड़े होने लगे हैं जिस पार्टी में वरुण धवन, मलाइका अरोड़ा, अर्जुन कपूर समेत कई सितारे शामिल थे. इस वीडियो के आधार पर करण जौहर के खिलाफ कई तरह के रिपोर्ट दर्ज कराए जा चुके हैं.

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वर्कफ्रंट की बात करें तो जल्द ही करण जौहर अपनी फिल्म तख्त को कास्ट करने वाले हैं. जिसमें बहुत सारे सितारे एक साथ नजर आने वाले हैं. . इसके अलावा करण जौहर के लिस्ट में दोस्ताना 2 और सूर्यवंशी जैसी कई हिट फिल्में शामिल है.

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रिया के मीडिया ट्रायल पर भड़के Bollywood के ये सितारे, 2500 से ज्यादा लोगों ने लिखा लेटर

रिया चक्रवर्ती के मीडिया ट्रायल को लेकर अभी तक 2500से ज्यादा लोग सवाल खड़े कर चुके हैं. साथ ही 60 आर्गेनाइजेशन ने ओपन लेटर साइन किया है. फेमिनिस्ट वॉयस नाम के प्लेटफर्म पर इस लेटर को साइन किया गया है. जिसमें बॉलीवुड की मशहूर अदाकाराओं का नाम भी शामिल है. सोनम कपूर, शिवानी दांडेकर, जोया अख्तर, गौरी शिंदे , अनुराग कश्यप जैसे और भी कई सितारे शामिल है.

लेटर की शुरुआत में पूछा गया है कि हमें चिंता हो रही है कि आप ठीक हैं? आगे लिखा गया है कि जब हम आपके द्वारा विच हंट को देखा तो हमने सोचा कि आपने पत्रकारिता के पेशेवर नैतिकता को क्यों छोड़ दिया. अपने सिंद्धात को भूलते हुए आपने एक युवा कैमरा मैन के साथ मिलकर एक महिला को फिजिकल असॉल्ट को चुना. उसकी निचता का हनन करते हुए आपने रिया को फंसाओ ड्रामा पर ओवरटाइम काम किया.

 

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Still struggling to face my emotions.. an irreparable numbness in my heart . You are the one who made me believe in love, the power of it . You taught me how a simple mathematical equation can decipher the meaning of life and I promise you that I learnt from you every day. I will never come to terms with you not being here anymore. I know you’re in a much more peaceful place now. The moon, the stars, the galaxies would’ve welcomed “the greatest physicist “with open arms . Full of empathy and joy, you could lighten up a shooting star – now, you are one . I will wait for you my shooting star and make a wish to bring you back to me. You were everything a beautiful person could be, the greatest wonder that the world has seen . My words are incapable of expressing the love we have and I guess you truly meant it when you said it is beyond both of us. You loved everything with an open heart, and now you’ve shown me that our love is indeed exponential. Be in peace Sushi. 30 days of losing you but a lifetime of loving you…. Eternally connected To infinity and beyond

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आगे लेटर में लिखा गया कि आपको सिर्फ इस बात का जुनून सवार हो गया है कि एक युवा महिला जो अपने फैसले खुद लेती है अपने प्रेमी के साथ रहती है अपने हर एक परेशानी का हल खुद निकालती है उसके चरित्र पर सवाल उठाते हैं और उसे अपराधी बताते हैं. बिना जांच के बिना किसी कानूनी प्रक्रिया को आप उसे अपराधी कैसे बता सकते हैं. उसका सम्मान कीजिए.

 

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I really miss shooting ! Ok bye ? #rheality

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लेटर में बातों को आगे बढ़ाते हुए लिखा गया है कि हम जानते हैं आप गलत हो सकते हैं आपने इसी दुनिया में सलमान खान , संजय दत्त के सपोर्ट में  बोलते देखा गया है उनके करियर और परिवार के बारे में सोचते हुए देखा गया है.

 

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??? ??????? ? #rheality

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लेकिन जब एक लड़की की बात आई और उसका अपराध सही साबित नहीं हुआ तो आपने उसके ऊपर ऑनलाइन भीड़ बुलाकर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए. ऐसे समाज में एक लड़की ने इस दुनिया के सामने जीने की हिम्मत दिखाई है. ये मत भूलिए की लड़के सुसाइड करते हैं, उससे ज्यादा लड़किया भी सुसाइड करती हैं. लेटर के आखिरी में बेटी बचाओ अभियान को बढ़ावा देते हुए लिखा गया है कि हम सरकार से पूछते है कि क्या रिया किसी की बेटी है. जिसे महिला होने का सम्मान मिलना चाहिए. हम न्यूज मीडिया से रिक्वेस्ट करते है कि रिया के खिलाफ विच हंट बंद करें. जिम्मेदारी भरी बातें करें. आपका काम खबर ढूंढना है महिला ढूंढना नहीं है.

प्यार की चाह में -भाग 1:निशा को पार्टी सर्किल के लोग किस नाम से बुलाते थे?

सोशल सर्किल, बड़े लोगों से संपर्क बनाए रखने और किटी पार्टियों में मशगूल निशा के पास पति और बेटे के लिए समय बचता ही कहां था. मां के प्यार और सान्निध्य के लिए रोहन तरस कर रह जाता. इसी प्यार की प्यास ने उसे कहां से कहां पहुंचा दिया.

झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं खा कर आई हूं,’’ पर्स पलंग पर फेंक कर निशा बाथरूम में घुस गई.

‘इतना भी नहीं कि एक फोन ही कर दे. 1-1 बजे तक बैठे रहो इंतजार में,’ मन ही मन भुनभुनाते हुए रामआसरे ने टेबल पर रखा सामान हटाया, किचन साफ किया और पिछवाड़े अपने क्वार्टर में चला गया.

मरिअम्मा अपने कमरे में ऊंघ रही थी. रोहन का कमरा नाइटलैंप के नीले प्रकाश में नहाया था. दबेपांव जा कर निशा ने बड़ा सा चमकीला गुलाबी गिफ्टपैक रोहन की स्टडी टेबल पर रख दिया, फिर उस के ऊपर जन्मदिन का कार्ड भी लगा दिया, रोहन के बिस्तर के ठीक सामने.

‘उठते ही सामने उपहार देख कर वह कितना खुश होगा,’ उस ने सोचा.

एक बार तो निशा के दिल में आया कि सोते बेटे को सहलाए, पुचकारे, पर फिर कुछ सोच कर वह ठिठक गई. जाग गया, तो साथ सुलाने की जिद करेगा. साथ सोया तो सुबह मुझे भी उस के साथ जल्दी उठना पड़ेगा. नहीं, नहीं, कल रात तो पार्टी है. अभी नींद पूरी न की तो सिर भारी और चेहरा रूखारूखा सा लगेगा. देररात गए से ले कर सुबह सूरज उगने तक चलने वाली ये हाईफाई पार्टियां तो वैसे भी अघोषित सौंदर्र्य प्रतियोगिताओं सी होती हैं. निशा भला अकारण ही किसी से उन्नीस लगने का जोखिम क्यों उठाती. धीरे से बेटे के कमरे का दरवाजा बंद करती वह अपने कमरे में चली गई.

निशा थकान से चूर थी. पहले जागरूक महिला मंडल की मीटिंग, फिर क्लब में किटी, ऊपर से घरघर जा कर कार्ड बांटने का झमेला, सुबह से मुसकरातेमुसकराते उस के जबड़े दर्द करने लगे थे.

‘दरजी ने ब्लाउज आज भी नहीं दिया. कल बैंक से जड़ाऊ सैट भी निकालना था, ओह,’ तनाव से उस का सिर फटा जा रहा था. करवटें बदलतेबदलते वह उठ बैठी और एक सिगरेट सुलगा ली. फिर सोचने लगी.

‘यह रोहन भी दिनोंदिन कैसा घुन्ना होता जा रहा है. बिलकुल अपने बाप पर गया है, कार में स्कूल नहीं जाना, जिद कर के स्कूलबस लगवा ली है. खेलेगा तो कालोनी के बच्चों के साथ, साथ में मरिअम्मा को भी नहीं ले जाना. अब जन्मदिन पर भी न दोस्तों को बुलाना है न टीचरों को. कितना कहा, सब को एकएक कार्ड पकड़ा दो. अच्छीभली दावत, साथ में रिटर्न गिफ्ट्स भी. आने वाले तो उपकृत हो कर ही जाते. पर कहां, नहीं बुलाना तो नहीं बुलाया. किसी बात की ज्यादा जिद करो, तो बस, रोना शुरू.’

निशा ने सिगरेट का गहरा कश ले कर ढेर सारा धुआं उगला.

‘इस बार रवि पर भी नजर रखनी होगी. पीने की आदत नहीं, तो 2 पैग पी कर ही बहकने लगते हैं महाशय. पिछली बार कैसा तमाशा खड़ा किया था, उस के हाथ की सुलगी सिगरेट खींच कर बोला कि डार्लिंग, तुम्हारी गोलगोल बिंदी और लाल गुलाब जैसी साड़ी के साथ यह सिगरेट तो जरा भी मैच नहीं करती. हूं, मैच नहीं करती… मेहमानों के जाते ही मैं ने भी उस की वह खबर ली कि सारा नशा काफूर कर दिया. पर भरी सभा में उस की बेइज्जती को याद कर निशा आज भी तिलमिला जाती है. अंतिम लंबे कश के साथ उस ने अप्रिय यादों और तनावों को झटकने का प्रयास किया. सिगरेट को जोर से दबा कर बुझाया. नींद की गोली ली और चली सोने.

‘‘हैप्पी बर्थडे, सनी,’’ मरिअम्मा का स्वर सुनाई पड़ा. साथ ही ‘कुक्कू’ क्लाक के मधुर अलार्म का स्वर भी.

आंखें खुलते ही रोहन की नजर गिफ्टपैक पर रखे कार्ड पर पड़ी. नजरभर देखे बिना ही वह अलसा कर फिर से ऊंघने लगा.

‘‘उठो बाबा, उठो, स्कूल को देरी होगा,’’ आवाजें लगाती मरिअम्मा उस के कपड़े निकाल रही थी.

बाथरूम से निकल कर रोहन ने मां के कमरे में झांका ही था कि मरिअम्मा ने घेर लिया. दबी आवाज में समझाती बोली, ‘‘शशश, चलो बाबा, चलो, मम्मी जाग गया तो बहुत गुस्सा होगा. रात कितनी देर से सोया है. चलोचलो, तैयार हो, बस निकल जाएगा,’’ वह उस का हाथ पकड़ वापस अपने कमरे में ले आई.

कपड़े देख कर रोहन अड़ गया, ‘‘मैं ये नए कपड़े नहीं, स्कूल की यूनिफौर्म ही पहनूंगा.’’

‘‘क्यों बाबा, आज तो तुम्हारा हैप्पी बर्थडे है. स्कूल में भी नया कपड़ा पहन सकता है. मेमसाब बोला है. हम को भी 2 जोड़ा नया कपड़ा लाया है. एक, स्कूल में पहनने के वास्ते और दूसरा, रात की पार्टी के वास्ते,’’ प्यार से पुचकारती मरिअम्मा उसे मनाने लगी.

‘‘नहीं, नहीं, नहीं. बोला नहीं पहनूंगा. तो नहीं पहनूंगा,’’ नए कपड़ों को एक ओर पटक कर अलमारी से स्कूल की ड्रैस निकाल रोहन बाथरूम में घुस गया.

अब वह मरिअम्मा को कैसे समझाए कि नए कपड़े पहन कर स्कूल जाने से उस के सारे दोस्त समझ जाएंगे कि आज उस का बर्थडे है.

 

अच्छा नहीं है कूल्हों का भारीपन

कोरोना महामारी ने बीते छह माह से दुनिया की गतिशीलता पर विराम लगा रखा है. भागदौड़ बंद है. सारे काम घर बैठे हो रहे हैं. वर्क फ्रॉम होम करने वाली ज़्यादातर महिलाओं को शिकायत है कि इन छह महीनों में उनका वज़न छह से दस किलो तक बढ़ गया है. दरअसल घर में रहने के दौरान वे उस तरह भागदौड़ नहीं कर रही हैं जैसा ऑफिस जाने के दौरान किया करती थीं.

कोरोना काल से पहले तक उनकी दिनचर्या में सुबह जल्दी उठ कर घर भर का नाश्ता तैयार करना, लंच बनाना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, पति को ऑफिस के लिए रेडी होने में सहयोग देना, फिर खुद तैयार होकर मेट्रो स्टेशन पहुंचना, मेट्रो में भी खड़े – खड़े जाना और ऑफिस पहुंच कर भी चकरघिन्नी बने रहना, जैसी बातें शामिल थीं. ये सारे दिन की ज़बरदस्त एक्सरसाइज़ बॉडी पर चर्बी चढ़ने ही नहीं देती थी, मगर कोरोना की वजह से हुए लॉकडाऊन में पूरी तरह बंद हो गयी. नतीज़ा महिलायें बढ़ते वज़न से परेशान हो रही हैं.  औरतों के शरीर में चर्बी का जमाव सबसे ज़्यादा पेट, कूल्हे और जाँघों पर होता है. मोटापा बढ़ने का पता इन्ही जगहों से चलता है. कोरोना में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद सोसाइटीज के पार्कों में अब सुबह सुबह व्यायाम करने और वॉक करने वाली महिलाओं की तादात पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा नज़र आ रही है.

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पहले जो कामकाजी महिलायें कभी मॉर्निंग वॉक या व्यायाम के लिए पार्कों में नहीं आती थीं, वे भी अपने बढ़ते वज़न से चिंतित होकर सुबह सुबह सड़कों पर जॉगिंग करते या पार्कों में व्यायाम करती दिखाई दे रही हैं. अर्चना मधुसूदन के कूल्हों पर इन छह महीनों में काफी भारीपन दिख रहा है. वहीँ निशा मेहता के सारे सूट उनकी कमर और पेट पर तंग हो गए हैं. दोनों महिलायें सुबह एक से डेढ़ घंटे तक पार्क में वाकिंग और एक्सरसाइज़ करती हैं. अर्चना का कहना है कि कूल्हों और थाई पर फैट जमा होने से उनके पैरों में बहुत दर्द रहने लगा है. कभी कभी टखने भी सूज जाते हैं. कूल्हों के भारीपन ने घर की सीढ़ियां चढ़ना भी मुश्किल कर दिया है. अर्चना मधुसूदन जो छह महीने पहले तक ऑफिस जाने के दौरान मेट्रो स्टेशन और ऑफिस की सीढिया खटाखट चढ़ जाती थीं, अब अपने घर की सीढिया चढ़ने में हांफ जाती हैं.

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पांच छह सीढ़ियों के बाद ही पैर ऐसे भारी हो जाते हैं मानों सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ आयी हों. घुटनों और टखनों में लगातार दर्द बना रहता है. ज़ाहिर है शरीर का पूरा वज़न पैर ही उठाते हैं. जब वज़न बढ़ेगा तो पैरों को सबसे पहले तकलीफ सहनी होगी. वहीँ निशा मेहता का कहना है कि रात में बिस्तर पर लेटते समय उनको शरीर के किसी खास हिस्‍से में खिंचाव और तनाव महसूस होता है. खासकर ज्‍वाइंट्स और हिप बोन में. असल में यह हिप एरिया की मांसपेि‍शियों और बोन्‍स पर जरूरत से ज्‍यादा दबाव डाल देने के कारण होता है. इनमें लॉन्‍ग वर्किंग आवर और एक ही पोजीशन में ज्‍यादा देर तक बैठे रहना सबसे बड़ी वजह है.   कूल्हे या हिप्स में दर्द महिलाओं और पुरुष दोनों को हो सकता है, लेकिन आमतौर पर यह समस्या महिलाओं को अधिक होती है. लगातार ज्‍यादा देर तक एक ही पोजीशन में बैठे रहने का यह दुष्प्रभाव शरीर पर पड़ता है. अकसर गलत तरीके से उठने-बैठने या असंतुलित जीवन शैली की वजह से जोडों में दर्द हो सकता है. पर अगर यह दर्द हिप्‍स में है तो इसे हल्‍के में न लें. हमारे आधे से ज्‍यादा शरीर का भार हिप्‍स पर ही होता है. एक्टिव लाइफ के लिए इनका भी हेल्‍दी होना जरूरी है. हिप्‍स पेन कई गंभीर बीमारियों की दस्‍तक हो सकता है. दर्द शरीर के किसी भी हिस्से में क्यों ने लेकिन रुटिन की जिदंगी को काफी प्रभावित कर देती हैं. जब हमारे कमर, गर्दन, कलाई , पैर में दर्द हो तो हम दवाई लगा कर काम पर लग जाते है,

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उन्हें अपनी तेजी से चलती हुई जिदंगी का हिस्सा मान लेते है. लेकिन कूल्हे के दर्द को कभी जिदंगी का हिस्सा नही बनाना चाहिए. यह हमारे रोज के काम के साथ साथ हमारे शरीर को भी काफी प्रभावित कर सकता हैं.  हिप बोन की हेल्‍थ के लिए व्यायाम बहुत ज़रूरी है. इसके अलावा तीस मिनट तेज़ रफ़्तार में चलना और अपनी डाइट में कुछ चीज़ों की मात्रा बढ़ा देने से भी कूल्हे के दर्द से राहत मिल सकती है. अगर आपके भी कूल्हे और पैरों में भारीपन है और लगातार दर्द बना हुआ है तो खाने में शामिल करें ये खास फूड

1.एप्‍पल साइडर विनेगर 

एक गिलास पानी में एप्पल साइडर विनेगर मिलाकर पीने से कूल्हे के दर्द में काफी आराम मिलता है. इसके अलावा ब्रोकली खाने से भी न सिर्फ कूल्हे का दर्द सही होता है, बल्कि पूरे शरीर के दर्द में भी आराम मिलता है. ब्रोकली में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो जोड़ों की सेहत लंबे समय तक बरकरार रखते हैं. पपीता खाएं  पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है. विटामिन सी न केवल इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है, बल्कि ये कूल्हे के दर्द के लिए भी काफी फायदेमंद है. इसके अलावा सही साइज के जूते पहनकर, एक्सरसाइज करके और मोटापे को नियंत्रित रखकर भी आप हिप पेन से राहत पा सकते हैं.

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2.विटामिन ई

हिप्स के दर्द से छुटकारा दिलाने के लिए विटामिन ई युक्त चीजें बहुत फायदेमंद होती हैं. खासतौर पर बादाम में पाया जाने वाला ओमेगा 3 फैटी एसिड सूजन और गठिया के लक्षणों को कम करने में मददगार होता है. बादाम के अलावा मछली और मूंगफली में भी पर्याप्त मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड पाया जाता है.

3.लहसुन खाएं

कूल्हे के दर्द में लहसुन का सेवन अधिक से अधिक करें इससे काफी आराम मिलता है. विशेषज्ञ भी मानते हैं कि प्याज और लहसुन में कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कूल्हे के दर्द में तुरंत आराम पहुंचाते हैं. इनके नियमित सेवन से कूल्हे के दर्द की शिकायत होने का खतरा काफी कम हो जाता है. दर्द महसूस हो तो अपनाएं ये उपाय  बर्फ का सेक  कूल्हों में यदि बहुत ज्‍यादा दर्द हो तो, तुरंत रिलीफ के लिए बर्फ रगड़ी जा सकती है. पर ध्‍यान रहे बर्फ को सीधे अप्‍लाई करने की बजाए, इसे कपड़े में लपेट कर दर्द वाले स्‍थान पर लगाएं. 10 से 15 मिनट तक 4 से 5 बर्फ के टुकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है. इसके अलावा बर्फ को प्लॉस्टिक के बैग में रखकर भी आप हिप्‍स की मसाज कर सकते हैं. एक्‍सरसाइज करें  एक्‍सरसाइज से भी हिप पेन में राहत मिलती है. स्ट्रैचिंग या हल्‍के-फुल्‍के व्यायाम इस में मदद कर सकते हैं. स्विमिंग बहुत अच्छी कसरत है. यह हड्डियों पर ज्यादा दबाव नहीं डालती.

देशी बैगन वासुकी

लेखक- केदार सैनी

यह बैगन की एक परंपरागत, बहुवर्षीय देशी प्रजाति है, जो अपने बेहतरीन उत्पादन, ज्यादा मजबूत पौधे, सर्पाकार बैगन की लंबाई और बैगनीसफेद मिश्रित धारियों के फलों के रंग के चलते जानी जाती है.

देशी बैगन की इस प्रजाति के पौधे की एक साल में 6 से 8 फुट तक ऊंचाई हो जाती है. इस के तने और पत्तों पर कांटे पाए जाते हैं. इस के फलों के वजन की बात करें, तो एक फल का औसत वजन 400 ग्राम से ले कर 500 ग्राम तक होता है. एक साल में एक ही पौधे से तकरीबन 20 से 25 किलोग्राम तक बैगन का उत्पादन लिया जा सकता है.

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इस बैगन की सब खास बात यह है कि यह अपने फलों के आकार में बदलाव करता है. सर्दी के मौसम में लगने वाले फलों की लंबाई 40 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर और गरमी, बरसात में लगने वाले फलों की लंबाई 30 सैंटीमीटर से ले कर 35 सैंटीमीटर तक होती है. इस बैगन का उपयोग सब्जी, भरता और अचार बनाने में किया जा सकता है.

देशी बैगन की यह प्रजाति मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात क्षेत्र में खूब फलतीफूलती है. गरमी और बरसात के मौसम में लगने वाले इस बैगन के फल कुछकुछ बैगन की एक और देशी प्रजाति निरंजन से मिलतीजुलती दिखाई देते है.

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पहले बैगन की इस प्रजाति का कोई नाम नहीं था, पर हम ने इस के लंबे और सर्पाकार फल होने के कारण इसे वासुकी नाम दिया है.

इस बैगन का एक पौधा हमें पिछले साल इंदौर जिले के वन्य ग्रामीण क्षेत्र से लोकेश परमार द्वारा प्राप्त हुआ था, जो हम ने हमारे समृद्धि देशी बीज बैंक, रूठियाई के लिए बीज संवर्धन के लिए अपनी लघु वाटिका में पिछले साल जुलाई महीने में रोपित किया था. आज इस पौधे की उम्र एक साल हो चुकी है. इस में गाय के गोबर की सड़ी हुई खाद और पानी के अलावा किसी तरह की रासायनिक खाद या कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया गया है.

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इस पौधे की ऊंचाई 6 फुट है. हम ने इस बैगन के पौधे से सारे फलों की तुड़ाई की, जिन का वजन तकरीबन 5 किलोग्राम है यानी

55 दिनों में हमें बैगन के एक ही पौधे से एक ही बार में 5 किलोग्राम बैगन मिले.

अब इस बैगन से बीज निकाल कर भारत के अलगअलग राज्यों के खेती करने वाले जरूरतमंद किसानों को बीज संवर्धन और उत्पादन परीक्षण के लिए वितरित किया जाएगा.

मजाक: एयरपोर्ट के भीतर

लेखक-आनिल हासान

दुनिया में 2 तरह के लोग होते हैं. एक, जो हमेशा ही शालीनता से पेश आते हैं. दूसरे, जो एयरपोर्ट पर जा कर शालीन बन जाते हैं. एयरपोर्ट का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है कि आप न चाह कर भी सभ्य बन जाते हैं. हम अपने स्वाभाविक व्यवहार पर अतिरिक्त विनम्रता का आवरण ओढ़ लेते हैं.

एक मातापिता अपने बच्चे को एयरपोर्ट पर खुल कर डांट नहीं सकते. घर पर वही बच्चा शरारत करने पर पिताजी के मुंह से जो अमृत वचन सुनता है, वो ही कमबख्त एयरपोर्ट पर बदमाशी कर के साफ बच निकलता है. बहुत हुआ तो पिताजी धीरे से अंगरेजी में ‘नो… नो‘ ही बोल पाएंगे, पर घर में देसी भाषा में तूतड़ाक सुनने वाले बच्चे को भला इस से क्या फर्क पड़ने वाला है. बच्चा अपनी मस्ती में मशगूल है.

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ऐसे ही अकसर गुस्से में रहने वाले एक सज्जन एयरपोर्ट पंहुचे. कैब से उतरते ही ड्राइवर से भिड़ गए. गाड़ी मे बैठने से पहले जितना उन का अनुमानित बिल बता रहा था, एयरपोर्ट आने पर वह 10 रुपए बढ़ गया. बात 10 रुपए की भी नहीं, उसूलों की थी, इसलिए साहब ने ड्राइवर को खूब खरीखोटी सुना कर बिल का भुगतान किया.

एयरपोर्ट पर घुसने से पहले उन्होंने अपना मूड ठीक किया और भीतर जाते ही सब से मुसकरा कर बातें करने लगे. कोई कह ही नहीं सकता था कि ये वही सज्जन हैं, जो अभी 5 मिनट पहले कैब ड्राइवर के पूरे खानदान को भलाबुरा बोल रहे थे. व्यवहार में इस प्रकार के क्रांतिकारी बदलाव एयरपोर्ट पर एक सामान्य घटना है.

एयरपोर्ट पर आप अन्य यत्रियो से यों ही किसी भी विषय पर मुंह उठा कर चर्चा नहीं कर सकते. पान की दुकान की तरह यहां मौसम का हाल बता कर भी वार्तालाप प्रारंभ नहीं होता. यहां पर आप सिर्फ बुद्धिजीवियों वाले विषयों पर ही बातें कर सकते हैं. मसलन, यदि आप घरेलू विमान के यात्री हैं तो भारत की आर्थिक चुनौतियों पर चर्चा कर सकते हैं. वहीं यदि आप अंतर्राष्ट्रीय यात्रा कर रहे हैं तो वैश्विक चुनौतियों पर आंसू बहा सकते हैं.

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यह शोध का विषय हो सकता है कि एयरपोर्ट पर खानेपीने की सामग्री के भाव इतने बढ़े हुए क्यों होते हैं. खाद्य पदार्थों के दाम सुन कर आप खुद को गरीबी रेखा के नीचे महसूस करते हैं. यदि आप एयरपोर्ट पर खाद्य पदार्थ खरीद पा रहे हैं अथवा चाय भी पी रहे हैं, तो आप को नैतिकता के आधार पर निश्चित ही एलपीजी सब्सिडी छोड़ देनी चाहिए. वास्तव में एयरपोर्ट ही एक ऐसी जगह है, जहां एक मिडिल क्लास वाला भी गरीबी का अनुभव कर सकता है.

एयरपोर्ट और विमान यात्रा के दौरान केवल एक समय ऐसा आता है, जब हम सारा दिखावटी आवरण त्याग कर अपने स्वाभाविक व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं. जब विमान रनवे पर उतरता है और सीट बेल्ट खोलने का संकेत होता है, सभी यात्री अपनेअपने बैग उठा कर पोजीशन ले लेते हैं. सब जानते हैं कि अभी विमान के द्वार खुलने में वक्त है, पर फिर भी कोई भी विमान के भीतर अपने 2 मिनट भी खराब नहीं करना चाहता. भले ही बाहर निकल कर बैगेज के लिए 10 मिनट रुकना पड़े.

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विमान से निकलने की यही अधीरता हमारी अनेकता में एकता को दर्शाती है. यह नजारा कुछ ऐसा होता है कि हमारा शरीर भले ही विमान में हो, पर दिल हमारा अब भी राज्य परिवहन निगम की बस में होता है.

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