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CrimeStory: फेसबुक का अंतहीन अंधेरा

देश के लिए रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनी में काम करने वाले विकास को इस बात का पता तक नहीं था कि वह एक विदेशी युवती के चक्कर में फंस कर हनीट्रैप का शिकार हो रहा है. सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले तमाम भारतीयों की तरह विकास भी खाली समय में फेसबुक पर एक्टिव हो जाता था.

एक दिन फेसबुक पर उसे एक पाकिस्तानी युवती सना और एक कश्मीरी युवती की फ्रैंड रिक्वेस्ट मिली. अधिकांश युवक लड़कियों से दोस्ती करना पसंद करते हैं. विकास को भी लड़कियों से दोस्ती करना अच्छा लगता था, इसलिए उस ने दोनों की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. उन युवतियों के विकास के अलावा भारत में अन्य दोस्त भी थे. दोनों लड़कियां अपने उन दोस्तों के बारे में भी विकास से बातें किया करती थीं. धीरेधीरे उन के बीच आपस में निजी बातें होने लगीं. दोस्ती, लाइफस्टाइल और एकदूसरे की हौबीज से शुरू हुई बातचीत में कभीकभी काम के बारे में ज्यादा बात हो जाती थी.

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विदेशी युवतियां बातचीत में इतनी माहिर थीं कि उन की हकीकत का पता ही नहीं चला. वह अकसर रात में ही बात करती थीं. ज्यादातर बातें आपसी पसंदनापसंद की होती थीं. विकास को यह पता भी नहीं था कि इस के पीछे कोई वजह हो सकती है. कुछ दिन की बातचीत से विकास को यह अनुभव हो रहा था कि उस की महिला दोस्त उस के कामकाज के बारे में ज्यादा बात करती हैं. एक बार पाकिस्तानी महिला दोस्त सना ने उस से पूछा, ‘‘विकास, तुम अपने औफिस में क्याक्या करते हो?’’

‘‘मैं औफिस में डिजाइन वर्क देखता हूं. यह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इस में मैं कई लोगों को सहयोग भी करता हूं.’’ विकास ने उसे बताया.

‘‘अच्छा, कभी हमें भी अपने डिजाइन दिखाओ. हम भी देखें कि तुम कैसे डिजाइन करते हो?’’ सना ने कहा.

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‘‘नहीं भाई, यह बहुत ही कौन्फीडेंशियल होता है. हर किसी को नहीं दिखाया जा सकता.’’ कह कर विकास ने बात टाल दी.

कुछ दिन शांत रह कर सना ने इधरउधर की बातें कीं और फिर एक दिन वह घूमफिर कर डिजाइन और उस के काम की चर्चा करने लगी. विकास यह तो समझ रहा था कि इस तरह की जानकारी किसी को नहीं देनी चाहिए, पर वह सना की बातों में फंस जाता था. सना को वह इतना पसंद करता था कि वह उस से बातचीत किए बिना अधूराअधूरा महसूस करता था.

उन के बीच वीडियो कौलिंग भी होने लगी थी. सना की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह फर्राटेदार अंगरेजी बोलती थी. इस के अलावा जब वह विकास से बात करती तो उस की बातों में अपनत्व झलकता था. वह उसे अपने फोटो भी भेजती थी. अलगअलग रोमांटिक अंदाज में खींचे गए उस के फोटो विकास के दिल में हलचल पैदा कर देते थे.

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विकास को उस पर किसी तरह की शंका न हो, इस के लिए सना अपने घरपरिवार के बारे में भी विकास को बताती थी. उस ने खुद को अविवाहित बताया था. विकास से वह भारत की बहुत तारीफ करती थी. कई बार वह विकास को यह भी बता चुकी थी कि इस बार वह ईद के मौके पर भारत घूमने आएगी. तब दोनों खूब घूमेंगे और मस्ती करेंगे. सना की यह बात सुन कर विकास मानो आसमान में उड़ने लगा था. उस ने उसी समय तय कर लिया था कि वह सना को घुमाने कहांकहां ले कर जाएगा.

विकास ने उस से कहा, ‘‘सना, वैसे तो हमें लंबी छुट्टी नहीं मिलती, क्योंकि आजकल हम लोग बहुत ही खास मिशन पर काम कर रहे हैं. लेकिन जब तुम भारत आओगी तो हम तुम्हारे साथ घूमने जरूर चलेंगे. मेरे लिए तुम्हारे साथ घूमना सपने जैसा है.’’

‘‘विकास, तुम चिंता मत करो, मैं जब भारत आऊंगी तो दोनों खूब ऐश करेंगे. तुम्हें तो पता ही है कि भारत पाकिस्तान में रहने वालों की बात छोड़ दी जाए तो बाकी देशों के लोग कितना घूमते हैं. केवल हम लोगों के ही पास घूमने और मजे करने का समय नहीं होता.

‘‘तुम चिंता मत करो, बस अपनी बातें मुझ से शेयर करते रहो. इस तरह बातचीत करते रहने से हमारी दोस्ती मजबूत होती रहेगी.’’ सना ने विकास को समझाने की पूरी कोशिश की.

विकास को अब सना की बातों में सच्चाई नजर आने लगी थी. वह उस के और करीब जाने लगा. अब वह अपने औफिस की बातें भी सना से शेयर करने लगा. बीचबीच में वह अपने काम के फोटो भी सना से शेयर करता था.

सना भी विकास की पर्सनल बातों से अधिक औफिस के कामों में रुचि लेने लगी थी. सना के साथ ही साथ एक और लड़की से भी उस की दोस्ती हो गई, जिस का नाम निक्की था. निक्की खुद को कश्मीरी बताती थी.

निक्की की बातों का फोकस कश्मीर को ले कर चल रही भारत की गतिविधियों पर था. वह उसे अपने बहुत ही ग्लैमरस फोटो भेजा करती थी. कई बार तो विकास अपनी तरफ से डिमांड कर देता था कि इस तरह की फोटो भेजो. निक्की उसे उसी तरह के फोटो भेज देती थी.

निक्की हर दिन नए अंदाज में फोटो भेजने में माहिर थी. ऐसे में विकास जल्दी ही उस के जाल में फंस गया. वह यह पूछा करती थी कि कश्मीर में युद्ध कैसे होता है. वहां के लिए कैसी तैयारी होती है. इन सवालों से विकास को यह समझ आ गया कि वह किसी जाल में फंसता जा रहा है, इसलिए उस ने निक्की से दूरी बनानी शुरू कर दी.

खुफिया विभाग को इस बात की जानकारी मिल रही थी कि कुछ विदेशी ताकतें भारत की महत्त्वपूर्ण जानकारियां हासिल करने के लिए हनीट्रैप का सहारा ले रही हैं. इस के बाद खुफिया विभाग ने डेढ़ सौ से अधिक फेसबुक खातों को निशाने पर लिया. इस से कई ऐसे खाते मिले जो संदिग्ध लग रहे थे.

उत्तर प्रदेश एटीएस और मिलिट्री इंटेलीजेंस ने जासूसी के आरोप में 8 अक्तूबर, 2018 को डीआरडीओ के सीनियर इंजीनियर निशांत को गिरफ्तार किया. आरोप है कि उस ने ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट से अहम तकनीकी जानकारियां चोरी कर के अमेरिका और पाकिस्तान में हैंडलर्स तक पहुंचाईं. यह इंजीनियर अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एक महिला एजेंट के जाल में फंसा था.

आरोपी के लैपटौप को चैक किया गया तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मौजूद थीं. जांच में इस बात की भी पुष्टि हुई कि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति के साथ फेसबुक पर चैटिंग करता था.

आरोपी निशांत अग्रवाल डीआरडीओ के ब्रह्मोस एयरोस्पेस में 4 साल से सीनियर सिस्टम इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. वह हाइड्रोलिक न्यूमेटिक्स और वारहेड इंटीग्रेशन प्रोडक्शन डिपार्टमेंट के 40 लोगों की टीम को लीड करता था.

निशांत ब्रह्मोस की सीएसआर और आर ऐंड डी ग्रुप का सदस्य भी था. फिलहाल वह ब्रह्मोस के नागपुर और पिलानी साइट्स के प्रोजेक्ट का कामकाज देख रहा था.

पिछले साल यूनिट की ओर से उसे युवा वैज्ञानिक का पुरस्कार मिला था. वह बहुत प्रतिभाशाली था. निशांत पर आरोप लगा कि वह सोशल मीडिया से खुफिया एजेंसियों को जानकारी भेजता था.

निशांत दिल्ली में मौजूद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की एजेंट के करीब था. उस की बातचीत पाकिस्तान के हैंडलर से भी होती थी. वह मिसाइल तकनीक की जानकारियां भेजने के लिए सोशल मीडिया के एनक्रिप्टेड कोडवर्ड और गेम के चैट जोन का इस्तेमाल कर रहा था.

मामला प्रकाश में आने पर सेना के वरिष्ठ अधिकारी भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं. जांच एजेंसी यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि आरोपी ने मिसाइल से जुड़ी कौनकौन सी सूचनाएं लीक की हैं. इस से पहले पुलिस ने कानपुर से एक महिला को भी गिरफ्तार किया था.

आईजी (एटीएस) असीम अरुण की अगुआई में कुछ समय पहले एटीएस ने बीएसएफ की एक महिला सिपाही को गिरफ्तार किया था, जिसे फेसबुक से फंसाया गया था. जांच के दौरान 2 फेसबुक की आईडी मिली थीं, जिन के आधार पर एटीएस ने जांच करते हुए गुजरात में निशांत की डिटेल चैक की तो उस के लैपटौप में कई संवेदनशील जानकारियां मिलीं.

निशांत रुढ़की का रहने वाला है. उस के पास अतिगोपनीय दस्तावेज थे. उस ने कितने दस्तावेज किसी और को दिए, इस पर जांच चल रही है. उस से फेसबुक के द्वारा संपर्क साधा गया था. वहां से जौब औफर करने के बाद उसे फंसाया गया.

उस के पास 2 लड़कियों की फेसबुक आईडी थीं, जो फरजी पाई गईं. इन का आईपी एड्रेस पाकिस्तान का पाया गया. लड़कियों की आईडी के जरिए वह लोगों को अपने जाल में फांसता था. लड़कियों की इन आईडी से किनकिन लोगों से संपर्क किया गया था, पुलिस जांच करने लगी.

सेना के जंगी बेड़े में शामिल ब्रह्मोस मिसाइल परमाणु हथियारों के साथ हमला करने में सक्षम है. यह 3700 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से 290 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखती है. कम ऊंचाई पर उड़ान भरने के कारण यह राडार की पकड़ में भी नहीं आती. इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है.

ब्रह्मोस मिसाइल को ले कर विदेशियों में एक डर बना हुआ है. ऐसे में वह इस बात की फिराक में रहते हैं कि भारत की रक्षा संबंधी ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल हो सके. आज के दौर में जासूसी करना सरल हो गया है. क्योंकि अब सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए जासूसी होने लगी है.

फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए लोगों को हनीट्रैप में फंसाना सरल हो गया है. ऐसे में जरूरी है कि कुछ ऐसे उपाय हों, जिस से हमारे खास लोगों को न फंसाया जा सके.

-कहानी में कुछ पात्रों के नाम परिवर्तित हैं

ऐसे बढ़ाएं अपने फ़ूड आइटम्स की लाइफ

रसोई में प्रयोग होने वाली खाद्य सामग्री अक्सर हमारी लापरवाही या नादानी के चलते खराब हो जाती है. अधिकतर फ़ूड आइटम्स को प्रयोग करते समय यदि थोड़ी सी सावधानी बरती जाए तो हम उनकी लाइफ को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं जिससे पैसे और समय की आसानी से  बचत की जा सकती है. तो आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ टिप्स जिनका प्रयोग करके आप अपने फ़ूड आइटम्स की लाइफ को बढ़ा सकतीं हैं-

-फल
विभिन्न फलों के पकने का समय अलग अलग होता है अतः यदि आप सभी फलों को एक साथ रखेंगी तो कुछ जल्दी पककर सड़ने लगेंगे और फिर ये दूसरे फलों को भी खराब करना प्रारम्भ कर देंगे. इसलिए सभी फलों को अलग अलग प्लास्टिक बैग में डालकर रखें.
-एक्सपर्ट्स के अनुसार केले, सेब और नाशपाती जैसे फल इथाइलीन गैस छोड़ते हैं जो फलों को बहुत जल्दी खराब कर देती है इसलिए इन्हें कभी दूसरे फलों के साथ न रखें.
-फलों को सदैव धो पोंछकर रखें ताकि खराब फल को हटाकर आप अधिक पके फल को जल्दी प्रयोग कर सकें.

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-मक्खन

-मक्खन किसी भी प्रकार की खुशबू को बहुत जल्दी ग्रहण कर लेता है इसलिए आप इसे किसी ढक्कनदार डिब्बे में रखकर फ्रिज में रखें. – यदि आप अधिक मात्रा में मक्खन लाते हैं तो इसे तेज धार वाले चाकू से 1 इंच के चौकोर टुकड़ों में काटकर डिब्बे में रखें इससे आपको प्रयोग करने में काफी आसानी रहेगी.

-आलू प्याज

आलू प्याज को एकसाथ रखने से आलू में अंकुरण की प्रक्रिया तेजी से होती है इसलिए इन्हें अलग अलग खुली और हवादार जगह पर जालीदार डलिया में रखना चाहिए.
-प्याज को रखते समय इसकी अतिरिक्त ऊपरी परत को हाथ से हटा दें और आलू को धोकर रखें.

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-हरी सब्जियां

जिन थैलियों में आप सब्जियां लेकर आतीं हैं यदि उन्हीं में रख देंगी तो वे बहुत जल्दी खराब हो जाएंगी क्योकि उनमें निहित सड़े पार्ट्स शेष सब्जी को भी खराब कर देते हैं इसलिए सभी  सब्जियों को साफ करके धोकर, पेपर पर फैलाकर सुखाएं और फिर पेपर टॉवल में बांधकर डिब्बे में बंद करके रखें.

-टमाटर

टमाटर को फ्रिज में रखने से उनके पकने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है इसलिए इन्हें धोकर किचन काउंटर पर जाली वाली बास्केट में रखें.

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-बचा हुआ खाना

बचे हुए खाने को किसी बड़े कंटेनर में न रखकर छोटे छोटे ढक्क्न वाले डिब्बों में रखें. बड़े कंटेनर एक तो फ्रिज में ज्यादा जगह घेरेंगे दूसरे फ्रिज से  बाहर निकालने पर कमरे के तापमान में आने में भी समय लेंगे.

केचअप और सॉसेज

इन्हें फ्रिज में रखने की आवश्यकता नहीं होती , हां प्रयोग करने के बाद अच्छी तरह ढक्क्न लगाकर रखें ताकि इनकी बोतल के अंदर चींटी आदि प्रवेश न कर सके.

-चटनियां

धनिया पुदीने की चटनियों को एक चम्मच तेल डालकर ढक्कनदार शीशी में भरकर रखें, निकालने के लिए शीशी के आकार की चम्मच भी इसी में डाल दें ताकि प्रयोग करने में आसानी रहे. इमली की चटनी को भी अच्छी तरह पकाकर एयरटाइट जार में भरकर रखें.

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-पेस्ट

हरी मिर्च, लहसुन और अदरक के पेस्ट को पीसते समय पानी के स्थान पर एक टेबलस्पून तेल का प्रयोग करें. तैयार पेस्ट को कांच के जार में भरकर रखें.

-प्यूरीज

टमाटर, इमली और कच्चे आम की प्यूरी बनाकर फ्रिज की ट्रे में जमा दें फिर जमे हुए क्यूब्स को ट्रे में से  निकालकर जिप बैग्स में डालकर फ्रीजर में रखकर आवश्यकतानुसार प्रयोग करें. आप इसी प्रकार पालक, बथुआ,  चुकन्दर की प्यूरी और नींबू के रस को भी क्यूब्स में जमाकर रख सकतीं हैं.

गड़बड़झाला : पौधारोपण में अफसरों ने की जबरदस्त लूट

पूरी दुनिया में पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है. इस बात को ले कर लोग चिंतित भी हैं और पर्यावरण को सहीसलामत रखने  के लिए कोशिशें भी कर रहे हैं.

बरसात के शुरू होते ही भारत के सभी राज्यों में भी पर्यावरण को हराभरा बनाए रखने के लिए किसानों द्वारा भी अपने खेतखलिहानों में पौधारोपण किया जाता है.

फल और छायादार पौधे हमें छांव देने के साथसाथ फल और जरूरत के लिए लकड़ियां भी देते हैं. सरकारी योजनाओं के तहत भी पौधारोपण अभियान चल रहे हैं, लेकिन नेता और अफसर इस अभियान में भी भ्रष्टाचार कर जबरदस्त लूट कर रहे हैं.

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बाढ़, ओलावृष्टि, भूकंप, कोरोना जैसी आपदाओं और महामारी से भले ही गरीब मजदूरकिसान की रोजीरोटी पर संकट आ जाता हो, लेकिन अफसर और नेता इस में भी लूटखसोट करने का मौका जाने नहीं देते.

मध्य प्रदेश में भी पौधारोपण के नाम पर हुए एक बड़े घोटाले का खुलासा हाल ही में किया गया है. साल 2016 में उज्जैन के तब के डीएफओ पीएन मिश्रा ने सिंहस्थ मेले के खत्म होने के बाद साढ़े 3 करोड़ रुपए से भी ज्यादा के पौधे सिर्फ 2 महीने में ही लगा डाले.

इस अजीबोगरीब कारनामे को अंजाम देने वाले वन विभाग के अफसरों ने सरकार द्वारा 3 सालों के लिए दी गई पौधारोपण की रकम को महज 2 महीने में ही खर्च कर दिया.

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मामले का खुलासा होते ही अब वन विभाग के अफसर पौधों की खोज में जुट गए हैं. जांच होने पर यह पाया गया कि पौधारोपण किस एजेंसी से कराया गया, मजदूरों को कितना भुगतान हुआ, इस का कोई लेखाजोखा भी नहीं रखा गया है.

नियमकायदों के मुताबिक पौधारोपण करने वाले मजदूरों को उन के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान करना था, पर डीएफओ और रेंजर ने 1-1 दिन में 10-10 लाख रुपए का नकद भुगतान कर दिया. जब घोटाले की जांच वन विभाग के बड़े लैवल के अफसर से कराई गई तो इस में करोड़ों रुपए के घोटाले के सुबूत मिले.

इस घोटाले में दिलचस्प बात यह है कि पहले हरेभरे पेड़ों को काटा गया, फिर उन के एवज में पौधे रोपने के लिए करोड़ों रुपए का बजट वन विभाग को दे गया.

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दरअसल, 12 साल में एक बार उज्जैन में कुंभ मेला भरता है, जिसे ‘सिंहस्थ मेला’ कहा जाता है. मेले के इंतजाम के दौरान पूरे उज्जैन शहर में सीवेज लाइन, पानी की पाइप लाइन समेत दूसरे कामों के चलते पेड़ काटे गए थे. इस की भरपाई के लिए वन विभाग को वहां पौधारोपण के लिए ‘अमृत योजना’ में 4 करोड़ रुपए दिए गए थे.

इस योजना के तहत 3 सालों में पौधे लगाने का काम किया जाना था, मगर महकमे के भ्रष्ट अफसरों की नजर रुपयों पर ऐसी गड़ी कि 2 महीने में कागजों पर ही तकरीबन 4 करोड़ रुपए के पौधे लगा दिए गए.

और भी हैं घोटाले

मध्य प्रदेश में पौधारोपण के नाम पर होने वाला यह गड़बड़झाला कोई एकलौता मामला नहीं है. सरकारी अफसर, विधायक, मंत्री हर साल पौधे लगाते हैं. ट्री गार्ड और पौधे खरीदने पर भारी रकम खर्च की जाती है और 4 महीने बाद पौधे सूख जाते हैं.

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खंडवा जिले के वन मंडल अधिकारी ने तो खालवा वन क्षेत्र में लौकडाउन के दौरान ही पिछले साल किए गए पौधारोपण के काम की जांच खुद ही करा ली. बाकायदा इस के लिए 11 लाख रुपए खर्च किए, जबकि नियम के मुताबिक, यह काम किसी तीसरी पार्टी से कराना था. अब बड़ा सवाल यह है कि अगर वन विभाग ने खुद ही जांच कर ली तो 11 लाख रुपए कैसे खर्च हो गए?

इसी तरह मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में  पौधारोपण करने वाले मजदूरों के भुगतान के नाम पर 8 लाख रुपए का गबन हुआ है. वन विभाग के एकाउंटेंट और रेंजर ने मिल कर 8 लाख रुपए के पेड़ जमीन पर नहीं कागजों पर लगा दिए और अपने सगेसंबंधियों को मजदूर बता कर मेहनताना उन के बैंक खाते में डाल दिया.

इसी तरह सीधी जिले में फोरैस्ट औफिस के एक कंप्यूटर औपरेटर ने 9 लाख रुपए अपने रिश्तेदार के नाम से ट्रांसफर कर दिए. यह रकम गड्ढे खोदने और पौधारोपण के लिए मजदूरों के खाते में ट्रांसफर करना थी.

भाजपा सरकार का वर्ल्ड रिकौर्ड 

पौधारोपण के नाम पर होने वाले घोटाले कोई न‌ई बात नहीं हैं. हर साल बरसात के दिनों में करोड़ों रुपए खर्च कर पौधारोपण का दिखावा किया जाता है और चीखचीख कर पर्यावरण बचाने के भाषण दिए जाते हैं. नेताओं और सरकारी अफसरों द्वारा लगाए गए पौधों की सुरक्षा के लिए कोई प्लानिंग न होने की वजह से कुछ ही समय बाद ये पौधों सूख जाते हैं.

2 जुलाई, 2017 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ही दिन में 6 करोड़ पौधे लगाने का वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया था और इस अभियान पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, पर इन पौधों में से कितने पौधे जीवित बचे हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शिवराज सरकार के इस पौधारोपण पर जब ‘कंप्यूटर बाबा’ ने सवाल उठाए, तो उन्हें मंत्री बना दिया गया था.

दिसंबर, 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भाजपा सरकार के इस पौधारोपण अभियान पर फिर से सवाल उठाए गए थे. कांग्रेस सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार द्वारा आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) को चिट्ठी लिख कर  जांच की मांग की गई थी. उन्होंने इस मामले में आरोप लगाया था कि नर्मदा नदी के किनारे 6 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने के लिए 20 रुपए कीमत के पौधों को 200 रुपए से ज्यादा कीमत पर खरीदा गया. अब फिर से भाजपा की सरकार प्रदेश में बन गई है, तो यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

कुलमिला कर हालत यही है कि जनता के दुखतकलीफों से मुंह मोड़ कर धार्मिक आडंबरों और पर्यावरण बचाने के नाम पर भी सरकारी रकम की लूट में  अफसर लगे हुए हैं और नेता भी उन का साथ दे रहे हैं. हकीकत तो यह है कि केवल जुमलों के दम पर न तो पर्यावरण साफ हो  सकता है और न ही जनता की परेशानियां दूर हो सकती हैं.

 समाज का बड़ा रोल 

सरकारी रकम से पौधों को रोपने वाले अफसरों से ज्यादा मेहनत तो बिना किसी सरकारी मदद से किसान, मजदूरों और छोटीछोटी समाजसेवी संस्थाओं द्वारा की जा रही है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में पौधारोपण के क्षेत्र में स्वयंसेवी संस्थाओं ने पर्यावरण को हराभरा बनाने में अनूठी भूमिका निभाई है. तेंदूखेड़ा तहसील की योगदान सेवा समिति, गाडरवारा की कदम संस्था, सालीचौका रोड की वृक्ष मित्र और सांईंखेड़ा तहसील की कल्पतरु संस्था ने पिछले 10 साल में बिना किसी सरकारी मदद के लाखों पौधे लगाए हैं, जो आज पेड़ की शक्ल ले चुके हैं.

उल्लेखनीय बात यह है कि इन संस्थाओं से जुड़े लोग अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे खुशी के मौके पर अपने खर्च पर पौधे तो लगाते ही हैं, सालभर उन पौधों की निगरानी भी करते हैं.

सांईंखेड़ा तहसील के गांव बंधा के एक किसान साहब सिंह लोधी ने तो 15 अगस्त, 2019 से इस साल के 15 अगस्त तक हर दिन एक पेड़ लगाने का फैसला किया और उन का यह काम लौकडाउन में जारी रहा. गांवकसबे के लोग साहब सिंह के इस जुनून की तारीफ भी करते हैं और उन्हें पौधे दे कर उन के काम में सहयोग भी करते हैं.

स्वयंसिद्धा : दादी ने कौन सी राह चुनी जो उन्हें स्वयंसिद्धा की तरफ ले गई

रात 1 बजे नीलू के फोन की घंटी घनघना उठी. दिल अनजान आशंकाओं से घिर गया. बेटा विदेश में है. बेटी पुणे के एक होस्टल में रहती है. किस का फोन होगा, मैं सोच ही रही थी कि पति ने तेज कदमों से जा कर फोन उठा लिया. पापा का देहरादून से फोन था, मेरी दादी नहीं रही थीं. यह सुनते ही मैं रो पड़ी. इन्होंने मुझे चुप कराते हुए कहा, ‘‘देखो मधु, दादी अपनी उम्र के 84 साल जी चुकी थीं, आखिर एक न एक दिन तो यह होना ही था. तुम जानती ही हो कि जन्म और मृत्यु जीवन के 2 अकाट्य सत्य हैं.’’

उन्होंने मुझे पानी पिला कर कुछ देर सोने की हिदायत दी और कहा, ‘‘सवेरे 4 बजे निकलना होगा, तभी अंतिमयात्रा में शामिल हो पाएंगे.’’

मैं लेट गई पर मेरी अश्रुपूरित आंखों के सामने अतीत के पन्ने उलटने लगे…

मेरी दादी शांति 16 वर्ष की आयु में ही विधवा हो गई थीं. 2 महीने का बेटा गोद में दे कर उन का सुहाग घुड़सवारी करते समय अचानक दुर्घटनाग्रस्त हो कर इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गया.

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वैधव्य की काली घटाओं ने उन की खुशियों के सूरज को पूर्णतया ढक दिया. गोद में कुलदीपक होने के बावजूद उन पर मनहूस का लेबल लगा उन्हें ससुरालनिकाला दे दिया गया.

ससुराल से निर्वासित हो कर दादी ने मायके का दरवाजा खटखटाया. मायके के दरवाजे तो उन के लिए खुल गए पर सासससुर की लाचारी का फायदा उठा कर उन की भाभी ने उन्हें एक अवैतनिक नौकरानी से ज्यादा का दर्जा न दिया.

मायके में दिनरात सेवा कर उन्होंने अपने बेटे के 10 साल के होते ही मायके को भी अलविदा कह दिया.

देहरादून में बरसों पहले ब्याही बचपन की सहेली का पता उन के पास था. बस, सहेली के आसरे ही वे देहरादून आ पहुंचीं.

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सहेली तो मिली ही, साथ ही वहां एक कमरे का आश्रय भी मिल गया. सहेली और उस के पति दोनों उदार व दयालु थे. उन्होंने उन के बेटे यानी हमारे पापा का दाखिला भी एक नजदीकी स्कूल में करवा दिया.

दादी स्वेटर बुनने और क्रोशिए व धागे से विभिन्न तरह की चीजें बनाने में सिद्धहस्त थीं. स्वेटर पर ऐसे सुंदर नमूने डालतीं कि राह चलने वाला एक बार तो गौर से अवश्य देखता. उन के  बुने स्वेटरों और क्रोशिए के काम की धूम पूरे महल्ले में फैल गई. देखते ही देखते उन्हें खूब काम मिलने लगा. दिनरात मेहनत कर के वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गईं. उन्होंने सहेली को तहेदिल से धन्यवाद दिया और उसी के घर के पास 2 कमरों का मकान ले कर रहने लगीं, पर सहेली का उपकार कभी नहीं भूलीं.

पापा भी 16-17 वर्ष के हो चुके थे. उन्हें भी किसी जानकार की दुकान पर काम सीखने भेजने लगीं. पापा होनहार थे, बड़ी मेहनत और लगन से वे काम सीखने लगे. मायका छोड़ते समय भाभी की नजर से बचा उन की मां ने एक गहने की छोटी सी पोटली उन्हें थमा दी थी. उन्होंने उसे लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया था पर उन की मां ने अपनी कसम दे दी थी. अपनी मां की बेबसी और डबडबाई आंखें देख उन्हें वह पोटली लेनी पड़ी. दादी अपनी मां की निशानी बड़ी जतन से संभाल कर रखती आई थीं. कठिनतम परिस्थितियों में भी कभी उसे नहीं छुआ पर आज अपने होनहार बेटे का कारोबार जमाने की खातिर उस निशानी का भी मोलभाव कर दिया.

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आज मैं स्वयं को और इस नई पीढ़ी को देखती हूं तो चारों और असहिष्णुता व आक्रोश फैला देखती हूं. छोटीछोटी बातों में गुस्सा, तुनकमिजाजी देखने को मिलती है. सारी सुखसुविधाएं होते हुए भी असंतुष्टता दिखाई देती है, पर दादी के जीवन में तो 16 वर्ष के बाद ही पतझड़ ने स्थायी डेरा जमा लिया था. जीवन में कदमकदम पर अपमान, अभाव व धोखे खाए थे पर इन सब ने उन में गजब की सहनशीलता भर दी थी. हम ने कभी घर में उन्हें गुस्सा करते, चिल्लाते नहीं देखा. अपनी मौन मुसकान से ही वे सब के दिलों पर राज करती थीं. मम्मीपापा को उन से कोई शिकायत न थी. वे उन को मां बन कर सीख भी देतीं और दोस्त बना कर हंसीमजाक भी करतीं. दादीजी के बारे में सोचतेसोचते कब सवेरा हो गया, पता ही नहीं चला. पति टैक्सी वाले को फोन करने लगे. मैं ने जल्दी से 2 कप चाय बना ली. हम चल दिए दादी की अंतिमयात्रा में शामिल होने.

टैक्सी में बैठते ही मैं ने आंखें मूंद लीं. दादी की यादों के चलचित्र की अगली रील चलने लगी…

दादी स्वयं पुराने जमाने की थीं लेकिन पासपड़ोस और महल्ले की औरतों की आजादी के लिए उन्होंने ही शंखनाद किया. ससुराल में घूंघट से त्रस्त कई महिलाओं को उन्होंने घूंघट से आजादी दिलवाई. घरों के बड़ेबुजुर्गों को समझाया कि सिर पर ओढ़नी, आंखों और दिल में बुजुर्गों के लिए आदरसेवा यही सबकुछ है. हाथभर का घूंघट निकाल कर बड़ेबूढ़ों का अपमान करना, उन की मजबूरी और लाचारी

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में उन्हें कोसना गलत है. घूंघटों से बेजार महिलाओं को जीवन में बड़ी राहत मिल गई थी. दादी की बातें लोगों के दिलोजेहन में ऐसे उतरतीं जैसे धूप व प्यास से खुश्क गलों में मीठा शरबत उतरता.

दादी स्वयं पढ़ीलिखी न थीं. पर उन्होंने मम्मी के बीए की अधूरी पढ़ाई को पूरा करवाने का बीड़ा उठाया. घरपरिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले कर मम्मी को कालेज भेजा. मुख्य विषय संगीत था, इसलिए हारमोनियम मंगवाया. शाम के समय मां सुर लगातीं तो दादी मंत्रमुग्ध हो कर आंखें बंद कर बैठ जातीं और 2-3 गाने सुने बिना न उठती थीं.

हमारे भाई का जन्मदिन भी वे बड़े निराले तरीके से मनवातीं. न तो पार्टी न डांस, बस, मां का बनाया मिल्ककेक काटा जाता. दोपहर को बड़ेबड़े कड़ाहों और पतीलों में जाएकेदार कढ़ीचावल और शुद्ध देशी घी में हलवा बनवाया जाता. विशेष मेहमान होते अनाथाश्रम के प्यारेप्यारे बच्चे जो अपने आश्रय का सुरीला बैंड बजाते हुए पंक्तिबद्ध हो कर आते और बड़े ही चाव से कढ़ीचावल व हलवे के भोजन से तृप्त होते थे.

साथ ही, रिटर्नगिफ्ट के रूप में एकएक जोड़ी कपड़े ले कर जाते थे. उस के बाद होता था महल्ले के सभी लोगों का महाभोज. एक बड़े से दालान में बच्चेबड़े सभी भोजन करते थे. हम सब घर वाले तब तक पंगत से नहीं उठते थे जब तक सब तृप्त न हो जाते. हलकेफुलके हंसी के माहौल में भोज होता मानो एक विशाल पिकनिक चल रही हो.

मैं तब 10वीं कक्षा में थी. स्कूल से घर आई तो देखा दीदी रो रही हैं और मम्मी पास ही में रोंआसी सी खड़ी हैं. दीदी ने आगे पढ़ने के लिए जो विषय लिया था, उस के लिए उन्हें सहशिक्षा कालेज में दाखिला लेना था. पर पापा आज्ञा नहीं दे रहे थे. दादी उन दिनों हरिद्वार गई हुई थीं. दीदी ने चुपके से उन्हें फोन कर दिया.

दादी ने आते ही एक बार में ही पापा से हां करवा ली. उन्होंने पापा को सिर्फ एक बात कही, मीरा को हम सब ने मिल कर संस्कार दिए हैं. उन में क्या कुछ कमी रह गई है जो मीरा को उस कालेज में जाने से तू रोक रहा है. हमें अपनी मीरा पर पूरा भरोसा है. वह वहां पर लगन से पढ़ कर अच्छे अंक लाएगी और हमारा सिर ऊंचा करेगी. परोक्षरूप से उन्होंने मीरा दीदी को भी हिदायत दे दी थी और वास्तव में दीदी ने प्रथम रैंक ला कर घरपरिवार का नाम रोशन कर दिया. इसी क्षण टैक्सी के हौर्न की आवाज ने हमें यादों के झरोखों से बाहर निकाला.

टैक्सी रफ्तार पकड़े हुए थी. शीघ्र  ही हम देहरादून पहुंच गए. घर में  प्रवेश करते ही दादी के पार्थिव शरीर को देखते ही यत्न से दबाई हुई हिचकी तेज रुदन में बदल गई. सभी पहुंच चुके थे. बस, मेरा इंतजार हो रहा था. पापा ने मेरी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मधु बेटी, इस प्रकार रो कर तुम अपनी दादी को दुखी कर रही हो. वे तो संसार के मायाजाल से मुक्त हुई हैं. एक 16 साल की विधवा का, साथ में एक दूधमुंहे बच्चे के साथ, इस संसाररूपी सागर को पार करना बहुत ही कठिन था. मुझे अपनी मां पर गर्व है. उन्होंने अपने आत्मसम्मान व इज्जत को गिरवी रखे बिना इस सागर को पार किया. वे तो स्वयंसिद्धा थीं. उन्होंने समाज की खोखली रूढि़यों, पाखंडों से दूर रह कर अपने रास्ते खुद बनाए. जो उन्हें अच्छा और सही लगा उसे ग्रहण किया और व्यर्थ की मान्यताओं को उन्होंने अपने मार्ग से हटा दिया. उन के मुक्तिपर्व को शोक में मत बदलो.’’

कुछ देर बाद दादी की अंतिमयात्रा आरंभ हो गई. बहुत बड़ी संख्या में लोग साथ थे. दादी की मृत्यु प्रक्रिया उन की इच्छानुसार की गई. न तो ब्राह्मण भोज हुआ न पुजारीपंडों को दान दिया गया. लगभग 200 गरीबों को भरपेट भोजन कराया गया और 1-1 कंबल उन्हें दानस्वरूप दिए गए. पापा ने दादी की इच्छानुसार अनाथाश्रम, महिला कल्याण घर और अस्पताल में 2-2 कमरे बनवा दिए.

देखतेदेखते दादी हम से बहुत दूर चली गईं. वे अपने पीछे छोड़ गईं संघर्षों का ऐसा अनमोल खजाना जो सभी नारियों के लिए एक सबक है कि कैसे कठिन से कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने मानसम्मान व इज्जत को बचाते हुए आगे बढ़ें. वे इस युग की ऐसी महिला थीं जिस ने अपनी मृतप्राय जीवनबगिया को नवीन विचारों, दृढ़संकल्पों, कर्मठता व मेहनत के बलबूते फिर से हरीभरी बना दिया. वास्तव में वे स्वयंसिद्धा थीं.

‘‘गिन्नी वेड्स सनी’’के संगीत अलबम से शादी के गीतों की हुई वापसी

लंबे समय से नए और मजेदार शादी के गीतों से जुड़ा ंसंगीत अलबम का श्रोताओं को बेसब्री से इंतजार था,जिसे ‘सोनी म्यूजिक इंडिया’ ने फिल्म‘‘गिन्नी वेड्स सनी’’के संगीत अलबम को बाजार में लाकर पूरा कर दिया.इस एलबम की खास बात यह है कि इसका वेडिंग पार्टी एंथम साॅंग ‘सावन में लग गई आग..’’ का ऑडियो और वीडियो जारी होते ही छा गया.

फिल्म ‘‘गिन्नी वेड्स सनी’’ का संगीत अलबम की धूम मची हुई है,जिसमें शादी के रिसेप्शन से लेकर शादी की रश्मों से जुड़े मजेदार गाने हैं.इस फिल्म का वेडिंग पार्टी एंथम को मीका सिंह व पायल देव संगीत से संवारा है.जबकि मीका सिंह, नेहा कक्कड़ और रैपर बादशाह ने इस गाने को अपनी आवाज दी है.इसे मीका सिंह, पायल देव, बादशाह और मोहसिन शेख ने मिलकर लिखा है.इस एलबम का एक गाना ‘एल ओ एल’’पहले से ही लोगों के बीच अपनी जगह बना चुका है.कुणाल वर्मा लिखित इस गीत को पायल देव के संगीत निर्देशन में पायल देव और देव नेगी ने स्वरबद्ध किया है.

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तो वहीं गौरव चैटर्जी द्वारा संगीतबद्ध,संदीप गौर लिखित गीत ‘फूंक- फूंक’को  नीति मोहन,जतिंदर सिंह और हरजीत के. ढिल्लन ने गाया है.दर्द भरे गीत ‘रूबरू’को जां निसार लोन के संगीत निर्देषन मेें कमाल खान ने स्वरबद्ध किया है.इसके लेखक पीर जहूर हैं.  जुबिन नौटियाल द्वारा गाए गए रूहानी ट्रैक फिर चला को पायल देव ने संगीतबद्ध और कुनाल वर्मा ने लिखा है.

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‘‘सोनी म्यूजिक इंडिया’’के वरिष्ठ मार्केटिंग निदेषक सानुजीत भुजबल कहते हैं-‘‘हम चाहते थे कि शादी से जुड़े गीतों की वापसी हो.‘गिन्नी वेड्स सनी’के संगीत एलबम में ज्यादातर शादी के गीत शामिल हैं,जिन्हें प्रतिभाशाली और निपुण संगीतकारों ने तैयार किया है.यह गाने बहुत ही मजेदार हैं,जिसे शादी के सेलिब्रेशन में एन्जॉय किया जाएगा.जब शादी व्याह के मौके पर यह गाने पृष्ठभूमि में बजेंगें,तो कोई भी व्यक्ति दर्शक बन कर खड़ा नहीं रह सकता.हम श्रोताओं के लिए यह गाने रिलीज करके बेहद खुश हैं.इसके गीत लोगो को ख्ुाद ब ख्ुाद थिरकने पर मजबूर करेंगें.’’

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संगीतकार पायल देव कहती हैं-‘‘फिल्म गिन्नी वेड्स सनी’ने मुझे शानदार कलाकारों के साथ काम करने का अवसर दिया.उनके साथ अच्छा संगीतमय तालमेल रहा और उनके साथ काम करने अनुभव बहुत ही अद्भुत था.मैं म्यूजिक एल्बम की रिलीज को लेकर बेहद उत्साहित हूं. मैं चाहती हूं कि श्रोता इन गानों को सुने और एन्जॉय करें.‘‘

रणबीर कपूर के बर्थ डे पर गर्लफ्रेंड आलिया ने ऐसे किया विश

बॉलीवुड स्टार रणबीर कपूर का आज 38वां जन्मदिन है. इस खास मौके पर फैंस रणबीर को बधाई दे रहे हैं. दिवंगत अभिनेता ऋषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर को फिल्मी हस्तियां भी जन्मदिन की ढ़ेर सारी बधाईयां दे रही हैं.

वहीं फैंस को सबसे ज्यादा इंतजार आलिया भट्ट के विश करने का था. आलिया ने सुबह से सोशल मीडिया पर रणबीर को जन्मदिन की कोई बधाई नहीं दी थी लेकिन शाम होते –होते उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल ही दिया. जन्मदिन की बधाई देते हुए आलिया भट्ट ने ‘सड़क 2’ फिल्म की एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है ‘हैप्पी बर्थडे 8’  इस तस्वीर में रणबीर कपूर 2 केक के बीच में मुस्कुराते नजर आ रहे हैं.

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आलिया भट्ट ने जैसे ही इस तस्वीर को शेयर किया मानो सोशल मीडिया पर भूचाल आ गया. सिर्फ कुछ ही मिनटों में इस तस्वीर को 5 लाख से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं. तो वहीं रिद्धिमा कपूर ने भी आलिया भट्ट की शेयर की हुई तस्वीर पर रेड कलर का हर्ट बनाकर इमोशी शेयर किया है.

 

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बता दें कि लॉकडाउन के समय से आलिया भट्ट और रणबीर कपूर एक साथ ही रह रहे हैं. अभी भी दोनों साथ में रहते हैं. अक्सर ये कपल एक साथ आते जाते स्पॉट किए जाते हैं. वहीं रणबीर कपूर की मां  नीतू कपूर अपनी बेटी रिद्धिमा साहनी के साथ स्पॉट कि जाती हैं.

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वैसे इनकी शादी को लेकर काफी ज्यादा चर्चा थी कहा जा रहा था कि यह कपल इसी साल शादी करने वाले हैं. हालांकि कोरोना वायरस को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि कपल अगले साल शादी के बंधन में बंधेंगे.

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फैंस को रणबीर और आलिया की जोड़ी खूब पसंद आती है. दोनों ही सबसे ज्यादा क्यूट कपल में गिने जाते हैं. अब देखना है कि कब दोनों सात फेरे लेते नजर आएंगे.

केबीसी -12: शो के पहले दिन सुशांत को यादकर भावुक हुए अमिताभ बच्चन

बीते सोमवार को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ शो के नए सीजन का आगाज हो चुका है. कोरोना वायरस पैंडमिक के चलते इस शो को एक लंबे गैप के बाद शुरू किया जा रहा है. फैंस ने शो के पहले दिन धमाकेदार अंदाज नें बिग बी का स्वागत किया.

शौ के दौरान बिग बी ने दिंवगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को याद किया. कौन बनेगा करोड़पति शो के दौरान जिस तरह बिग बी ने सुशांत सिंह को याद किया फैंस की आंखे नम हो गई.

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दरअसल हुआ कुछ ऐसा कि अमिताभ बच्चन की शो की पहली कंटेस्टेंट आरती जगपात से सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’  से जुड़ा हुआ सवाल पूछा गया. कंटेस्टेंट से पूछा गया कि इस फिल्म के साथ किस एक्ट्रेस ने डेब्यू किया है? इसके  बाद बिग बी ने सुशांत को याद करते हुए एक लंबी सांस ली और सुशांत के मौत को दर्दनाक बताया.

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अब फैंस अमिताभ बच्चन का शुक्रिया अदा कर रहे हैं कि जिस तरह से उन्होंने सुशांत को याद किया है. काश पहले कुछ बोले होते . गौरतलब है जब बिग बी ने सुशांत के नाम के आगे स्वर्गीय लगाया तो वह समय बेहद ही इमोशनल था. सभी की आंखे नम हो गई थीं.

वहीं एक यूजर ने लिखा कि जब अमिताभ सर ने सुशांत के नाम के आगे स्वर्गीय लगाया तो वह समय बेहद ही ज्यादा भावुक करने वाला था.

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सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से बॉलीवुड के कुछ लोग चुप थे जिसमें से एक नाम अमिताभ बच्चन का भी आता है. वह भी लोगों के गुस्से के शिकार थें.

लोगों को इस बात की उम्मीद थी की अगर अमिताभ बच्चन इस घटना पर कुछ कहते तो लोगों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता.

अजाबे जिंदगी -भाग 4 : क्या एक औरत होना ही कुसूर था नईमा का

जमात से निकाल दिए जाने की धमकी ने करामत को सहमा दिया. करामत नईमा को तलाक दिए जाने के फैसले पर बौखला गया. एक बार फिर वह गरजता, बरसता कमरे में घुसा और धड़ाम से दरवाजा अंदर से बंद कर लिया. डरीसहमी नईमा के बाल पकड़ कर खींचते हुए पलंग पर पटक दिया, ‘‘सुन, तलाक तो मुकीम भाई का गमगीन चेहरा देख कर दे रहा हूं मगर याद रख, जब भी मेरी ख्वाहिश का अजगर फन उठाएगा तो उस की खुराक पूरी करनी होगी, समझी. वरना तुझे समूचा का समूचा निगल कर तेरी हड्डीपसलियां तोड़ कर पचा जाने की भी ताकत रखता है यह करामत.’’नईमा कंपकंपा गई यह सुन कर. वह रात काली थी मगर जितनी शिद्दत से उस कालिमा को महसूस कर रही थी नईमा, उतनी शायद किसी ने भी नहीं की होगी. उजले बदन पर नाखूनों और दांतों के नीले निशान लिए नईमा अब्बा के घर लौटी. आखिर किस मिट्टी की बनी है यह औरत, जो मर्दों के हर जुल्म को बरदाश्त कर लेती है.

‘‘अम्मी, करामत से तलाक के बाद अब तो मेरा निकाह बच्चों के अब्बू से दोबारा हो जाएगा न,’’ अंदर से घबराई, डरीडरी सी नईमा ने अपनी अम्मी से पूछा.

‘‘मेरे खयाल से अब कोई दिक्कत तो नहीं आनी चाहिए,’’ अम्मा ने उसे तसल्ली दी.

‘‘बस, अम्मी, इद्दत के 3 महीने 13 दिनों के बाद के दिन निकाह की तारीख तय करवा लेना अब्बा से कह कर. बस, थोड़े दिनों की बात और है अम्मी, मेरा और बच्चों का बहुत बोझ पड़ गया है आप दोनों के बूढ़े कंधों पर. लेकिन अम्मा, फिक्र मत करो, मैं दिन में बीड़ी और रात को कपड़ों में बटन टांक कर पाईपाई जमा करूंगी और रफीक मुकद्दम का सारा कर्जा, सूद समेत चुका दूंगी,’’ आशाओं की हजार किरणें उतर आईं नईमा की आंखों में. अम्मी की बूढ़ी पलकें बेटी की शबनमी हमदर्दी से भीग गईं.इद्दत के दिनों में ही नईमा ने घर सजाने की कई छोटीबड़ी चीजें खरीद लीं. जिंदगी को नए सिरे से जीने की ललक ने मीठामीठा एहसास जगा दिया नईमा के दिल में. पुराने दिनों की तमाम तल्खियों को भूल कर हर पल खुशहाल जिंदगी जीने के सपने फिर से पनीली आंखों में तैरने लगे.

मौका मिलते ही वह बच्चों को समझाने से न चूकती, ‘‘बेटा, ऐसी गलत हरकत मत करो. अब्बू देखेंगे तो नाराज होंगे. कहेंगे, कैसे नकारा हो गए हैं बच्चे.’’

मां के मानसिक द्वंद्व और उथलपुथल से बेखबर बच्चे कभी पतंग उड़ाते तो कभी आम की कैरियां तोड़ने में व्यस्त रहते.

‘‘अम्मी, तुम तो बोल रही थीं कि अपने पुराने वाले घर चलेंगे. कब चलेंगे अम्मी?’’ छोटी बेटी मुबीना ने नईमा के कंधों पर झूलते हुए पूछा था.

‘‘कल ही चलेंगे, बेटी,’’ कहते हुए नईमा के चेहरे पर खुशियों के अनगिनत दीप जल गए. उसी दिन शाम को मुकीम दालान में बैठ कर नईमा के अब्बा से बातें कर रहा था. झेंपा हुआ चेहरा, आवाज में दुनियाभर की नरमी समेटे वह नईमा के साथ अपने दूसरे निकाह की योजना बना रहा था. एकदो बार नईमा ने टाट का परदा हटा कर देखा भी, मगर मुकीम ने नजर नहीं मिलाईं. ‘अपने किए पर पछतावा हो रहा होगा.’ यही सोच कर तसल्ली कर ली थी नईमा ने.

इद्दत पूरी होने के दूसरे दिन असर की नमाज के बाद 8-10 जमाती पेशइमाम साहब के मिट्टी से लीपे आंगन में जमा हो गए. नईमा की रजामंदी से मुकीम के साथ दूसरा निकाह अंजाम पा गया और कसबे के इतिहास में एक नया पृष्ठ मिसाल की तरह जुड़ गया. नईमा और बच्चों ने घर में कदम रखा. पहले से ही झोंपड़नुमा मकान अपनी टपकती छत और जर्जर दीवारों की दास्तान सुना रहा था. चूल्हे में मुंहतक भरी राख, जहांतहां फैले कपड़े, औंधे कालिख में सने बरतन मुकीम की लापरवाही को बयां कर रहे थे. 2 दिन और 3 रातें नईमा घर को संवारने में उलझी रही. मुकीम पहले से ज्यादा गंभीर और बुझाबुझा सा रहने लगा. रात को आटो ले कर घर लौटता तो नईमा के कंधों का सहारा ले कर लड़खड़ाते हुए चारपाई तक पहुंचाया जाता.

पूरे 2 महीनों में मुकीम ने एक या दो बार ही बात की होगी नईमा से, वह भी बच्चों के मारफत. नईमा यही समझती रही कि मुकीम अपनी कारगुजारियों और बीवीबच्चों के प्रति किए गए अन्याय के लिए शर्मिंदा है, इसीलिए गुमसुम रहता है.

जिंदगी एक तयशुदा ढर्रे से चल रही थी कि एक सुनसान दोपहर को करामत, नईमा की चौखट पर कुटिल मुसकान लिए आ खड़ा हुआ. नईमा टाट के परदे लगे कच्चे बाथरूम में नहा रही थी. करामत परदे के छोटेछोटे छेदों में अपनी गिद्ध सी आंखें चिपकाए, अंदर का नजारा लेता रहा. बाथरूम से बाहर निकलते ही नईमा को अपनी मजबूत बांहों में कस कर दबोच लिया. नईमा की छटपटाहट भरी घुटीघुटी चीख को करामत ने हथेलियों से दबा दिया. नईमा ने उस के सीने पर अपने दांत गड़ा दिए मगर वह पसीने से लथपथ अपनी दहकन बुझाता रहा. बच्चों की आहट सुन कर जल्दी से बीड़ी मुंह में दबाए बाहर निकल कर तेजतेज कदमों से चल पड़ा जीवनशाह चौराहे की तरफ, बेखौफ सा.

नईमा अपनी बेबसी पर फफकफफक कर रोती रही. महल्ले की औरतें मुंह में तंबाकू वाला पान दबाए दबीदबी हंसी के साथ आपस में कानाफूसी करती रहीं. नशे में धुत मुकीम रात को घर लौटा तो महल्ले के ही मनचलों ने फिकरा कसा, ‘‘क्या करेगी बेचारी नईमा भाभी, आदमी शराबी होगा तो औरत अपनी भूख मिटाने के लिए जंगली कुत्तों का शिकार बनेगी ही न.’’ सुनते ही मुकीम का नशा हिरन हो गया. लड़खड़ाते कदमों से, गाली बकते हुए मुकीम ने दोनों हाथों से चौखट थाम ली. नईमा और बच्चे जमीन पर ही लेटे थे. ढिबरी की रोशनी में बड़े बेटे का चेहरा झिलमिलाया. अब्बू की आवाज सुन कर उठ बैठा था, ‘‘अब्बू, आज शाम को चूल्हा नहीं जला. दोपहर को करामत चाचा आए थे, तब से अम्मी औंधी लेटी, रोए चली जा रही हैं. अब्बू, बहुत भूख लगी है, पैसे दो न, चौराहे से डबलरोटी ले आता हूं, बहुत भूख लगी है. मुबीना, अफजल और पप्पू तो भूखे ही सो गए अब्बू.’’

सुनते ही मुकीम लेटी हुई नईमा को, बाल पकड़ कर घसीटते हुए गली में ले आया था. गंदीगंदी गाली देते हुए उस पर लातघूसों की बौछार करने लगा. गली के लोग अपनेअपने घरों के चबूतरों पर बैठे हुए दांत में फंसे खाने के रेशों को अगरबत्ती की सींकों से निकालते हुए चुपचाप तमाशा देखते रहे. मुकीम के अंदरूनी हैवान ने अपनी गलतियों पर गौर किए बिना ही नईमा को बदकारा करार दे दिया. सहमे हुए बच्चे मुंह ढंक कर सो गए. मुकीम भनभनाता हुए आटो ले कर जाने कहां चला गया. मगर नईमा अपनी बेबसी पर जारोकतार रोती हुई गली में ही पड़ी रही. हमेशा की तरह लोगों ने अपने घरों के दरवाजेखिड़कियां बंद कर लिए और गुदडि़यों में दब कर सो गए. नईमा आधी बेहोशी और आधे होश के आलम में खुद को कोसती रही. एक अदद छत, एक सामाजिक दरवाजा, दो रोटी, बच्चों का भविष्य, इन्हीं की आस ने उसे जलालत के हर मकाम तय करवा दिए. फिर भी… क्या मिला?

नहीं, अब और नहीं, बिलकुल नहीं. बूढ़े मांबाप का एहसास भी अब कमजोर नहीं बना सकता. तो क्या, खुदकुशी करेगी? नहीं, यह गलत है और मैं बुजदिल नहीं. फिर…बच्चों का माथा चूम कर, सिर पर हाथ फेर कर सुबकती नईमा उस रात के अंधेरे में कहां चली गई, महीनों गुजर गए, कहां खो गई, कोई नहीं जान पाया आज तक. जिंदा है भी कि नहीं.

 

अजाबे जिंदगी -भाग 3 : क्या एक औरत होना ही कुसूर था नईमा का

शौहर अंधा हो, बहरा हो, लूलालंगड़ा हो, पर है तो घर का दरवाजा न. लेकिन घर की चौखट निकली नहीं कि, समझो, जमानेभर की बदबूदार और लूलपटभरी हवाएं बेलौस घर में घुसने की कोशिश करने लगती हैं.

रात को अम्मी ने फुसफुसा कर नईमा को समझाया था, ‘‘मुकीम के पास वापस जाने के लिए सारे रास्तों पर तो जैसे ताले लग गए हैं. शायद एक यही, करामत अली, टेढ़ीमेढ़ी पगडंडी की तरह तुम्हारे काम आ सके. दो कदम ही तो साथ चलना है. हौसला रख, निकाह के बाद दूसरे दिन तलाक देने की शर्त मान ले तो समझो, तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जाएगी. कोई गैर तो है नहीं, है तो मुकीम का ही खून.’’ सुलगते हुए रेगिस्तान के मुसाफिर के आबले पड़े पैरों पर कोई ठंडी झील का पानी डाल दे, ऐसा एहसास नईमा को खुशी की हलकी सी किरण दिखला गया.अब एक ही रास्ता है बिखरी जिंदगी को फिर से संवार लेने का. किसी से दूसरा निकाह यानी हलाला फिर तलाक ले कर मुकीम से निकाह. लेकिन सारे रिश्तेदारों ने तो इनकार कर दिया. शायद बदनाम करामत अली मेरी घरवापसी के लिए सीढि़यां बन जाए.

आखिरकार नईमा ने करामत अली से निकाह कर के, फिर तलाक ले कर मुकीम के साथ हलाला निकाह करने का फैसला कर ही लिया. नईमा के अब्बू अपनी जिम्मेदारी उठातेउठाते थक कर चूर हो गए थे. धन का अभाव आदमी को तोड़ देता है. इसलिए उन्होंने नईमा के फैसले पर मौन स्वीकृति दे दी. वह रात कयामत की रात थी. नईमा करामत अली की ज्यादतियां बरदाश्त करती रही. एक अदद घर और बच्चों की बेहतरीन जिंदगी की ख्वाहिश जीतेजी नईमा के लिए अजाबे कब्र बन गई. समाज, मजहब, मुल्लामौलवी सब कानों में रुई ठूंसे, आंखों पर पट्टी बांधे, नईमा की दर्दीली चीखें सुनते रहे. फजां खामोश, हवा खामोश, सुलग रही थी तो बस एक हाड़मांस की औरत.

दूसरे दिन दोपहर की नमाज के बाद नईमा के अब्बा जमातियों को ले कर करामत अली के घर पहुंचे थे तलाक के लिए. मगर करामत व्यंग्य से हंसता उन की तरफ तवज्जुह दिए बिना, पान की पीक थूकते हुए चल पड़ा था शराबखाने की ओर. जमाती अपना सा मुंह लिए लौट आए थे.पूरे 8 दिन और 7 रातें नईमा, कुम्हार की मिट्टी की तरह रौंदी, मसली, कुचली जाती रही करामत के द्वारा. नईमा के पिता की गुहार भले ही कसबे के लोगों के लिए बहुत अहमियत न रखती हो मगर समाज का जिम्मेदार इंसान, मजहब की पैरवी करने वाले पेशइमाम की गुहार ने कट्टरपंथी मुसलमानों को विचलित कर दिया.

अजाबे जिंदगी -भाग 2 : क्या एक औरत होना ही कुसूर था नईमा का

‘‘मुकीम नईमा और बच्चों को घर ले जाने के लिए कह रहा है,’’ वजू के लिए पानी बरतन में डालते हुए नईमा की अम्मी ने अब्बू को बतलाया. उन के मिसवाक करते हाथ एकदम से थम गए.

‘‘ठीक है, आज हाफिज साहब से बात करूंगा, कोई न कोई रास्ता तो कलामे पाक में लिखा होगा. लेकिन याद रखना, मुकीम को मेरी गैरहाजरी में घर में कदम मत रखने देना. तलाक के बाद बीवी शौहर के लिए हराम होती है.’’ हाफिज साहब ने मुकीम के पछतावे और नईमा के बिखरते परिवार के तिनके फिर से जोड़ने की पुरजोर कोशिश पर गौर करते हुए ‘हलाला’ की हिदायत दी. ‘हलाला’, बीड़ी वाले सेठ की पढ़ीलिखी बीवी ने यह सुना तो आश्चर्य और शर्म से मुंह पर हाथ रख लिया. छी, इस से ज्यादा जलालत एक औरत की पुरुष समाज में और क्या हो सकती है? अपने शौहर के जुल्मों को माफ कर के, उस के हाथों बेइज्जत हो कर, फिर उसी के साथ दोबारा जिंदगी गुजारने के लिए गैरमर्द को अपना जिस्म सौंपना पड़े. छी, गलती मर्द करे, लेकिन सजा औरत भुगते. ये बंदिशें, ये सख्तियां सिर्फ औरत को ही क्यों सहनी पड़ती हैं? मर्द इस इम्तिहान से क्यों नहीं गुजारे जाते. क्या यही हैं इसलाम में मर्द और औरत को बराबरी का दरजा देने की दलीलें? सुन कर उन की कौन्वैंट में पढ़ी बेटी बोल पड़ी, ‘‘सब झूठ, सब बकवास. हदीसों में औरत के मकाम को बहुत बेहतर बताया गया है लेकिन 21वीं सदी में भी मुसलमान औरतों के इख्तियारों को मर्द जात अपनी सहूलियत के मुताबिक तोड़मरोड़ कर अपनी मर्दानगी का सिक्का जमाने का मौका नहीं चूकती है.’’

नईमा ने घर की वापसी की यह तजवीज सुनी तो हक्काबक्का रह गई. उस ने सोचा, आग के दरिया से गुजरना होगा? कई दिन चुपचाप बीड़ी के पत्तों की पोंगली बना कर उस में तंबाकू भरती, फिर उसे कोंच कर बंद करती और धागे से लपेट कर सील बंद कर देती. औरत की स्थिति मुसलिम समाज में बीड़ी की तरह ही तो है जो हर तरफ से कोंचकोंच कर बंद किए जाने पर भी जलाई जाने पर धुंआ और जोर से कश लेने पर खांसी का दौरा उठा देती है. कशमकश भरे लमहों की काली भयानक रातों में दूर कहीं एक चिराग टिमटिमाता सा नजर आया नईमा को. मगर किसी गैर को जिस्म सौंपने से पहले किस पुल से गुजरना होगा, इस की दहशत से ही नईमा टूटटूट कर बिखर रही थी, फिर पता नहीं क्या सोच कर सालों से बिना धुला काला नकाब ओढ़ कर अपनी बचपन की दांतकाटी रोटी जैसी सहेली और मौसेरी बहन आमना की चौखट पर पहुंच गई.

‘‘आमना, अपने मियां से मेरी तरफ से गुजारिश करो कि वे मुझ से निकाह कर के दूसरे दिन तलाक दे दें ताकि मैं बिट्टू के अब्बू से दोबारा निकाह कर सकूं.’’ नईमा की आवाज की थरथराहट में आंसुओं का खारापन मौजूद था. शादी के 10 साल के बाद भी आमना के घर सोहर गीत नहीं गाए जा सके थे. रिश्तेदार, गली, महल्ले वाले उसे बांझ कहने में न चूकते थे. बच्चों की पैदाइश और सालगिरह पर आमना की मौजूदगी बदशगुनी समझी जाती. इसी गम ने आमना के चेहरे पर झांइयां पैदा कर जिस्म को सूखा कर ठटरी सा बना दिया था. आमना के विवेक ने उस को खुद को झकझोरा था, ‘अगर मेरा शौहर हमदर्दी के नाते नईमा से निकाह कर ले तो? फलतीफूलती बेल है. कहीं उसी रात हमल ठहर जाए कमबख्त को, तो मेरी लाखों की जायदाद का कानूनन वारिस पैदा होने में 9 महीने से ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. अपना सिंहासन डोलता सा नजर आने लगा आमना को. झट किसी चालाक सियासतबाज की तरह नईमा का हाथ अपने हाथों में ले कर वह बड़े प्यार से बोली, ‘‘नम्मो, बहन मैं तेरे दर्द में बराबर की शरीक हूं. बहन, जिस दिन मुझे पता चला कि तेरा तलाक हो गया, उस दिन, दिनभर मेरे हलक से खाना नीचे नहीं उतरा. लेकिन, सच्ची बात कहूं बहन, इन्होंने आधी उम्र में अगर तुम से निकाह कर लिया तो आने वाली सात पीढि़यों के मुंह पर कालिख पुत जाएगी. महल्ले के लोग मजाक उड़ाएंगे, रास्ता चलना मुहाल कर देंगे? देख, बुरा मत मानना. इन्हें छोड़ दे, बहन.’’ जिल्लत का जहर पी कर थकेथके कदमों से नईमा अम्मी के घर लौट आई. दूसरे दिन वह चल पड़ी थी नूरी साइकिल वाले अपने मामूजात भाई के घर, अपने घर के टूटे टुकड़ों का जोड़ने की कोशिश करने के लिए.

नईमा का गदराया बदन, उजली रंगत और हंसमुख चेहरे ने, भाभी के मन में अनजाना सा खौफ पैदा कर दिया. ‘कहीं ऐसा न हो कि मेरी कंकाल सी काया को छोड़ कर मेरा शौहर इस चमकचांदनी सी औरत के आगोश में डूब जाए, और निकाह करने के बाद तलाक देने से इनकार ही कर दे. तो मेरा क्या हाल होगा? न बाबा, न, ऐसी भलाई से क्या फायदा कि अपना ही घर जल कर राख हो जाए.’ भाभी ने झट पैंतरा बदल कर नईमा के कान के पास मुंह ले जा कर फुसफुसा कर कहा, ‘‘अरे, मेरे सामने कहा तो कहा, अपने भाईजान के सामने मत कहना. ये तो मर्दों के 2 निकाह करने के सख्त खिलाफ हैं. कम से कम आप तो बुढ़ापे में इन की सफेद दाढ़ी पर तोहमत लगाने का काम न करें.’’ नईमा खून का घूंट पी कर रह गई.

हर तरफ से नाउम्मीदी और कशमकशभरे दिनों से गुजरती नईमा कैंची से बीड़ी के पत्ते काट रही थी कि एक जानीपहचानी सी खुरदुरी दबंग आवाज ने चौंकाया, ‘‘भाभीजान, अस्सलाम अलैकुम.’’ ‘इस चंडाल सजायाफ्ता, तड़ीपार को किस दुश्मन ने खबर दे दी कि मैं अम्मी के घर पर हूं,’ यह सोचती नईमा बदहवास सी दुपट्टे को सीने पर ठीक से फैला कर सिर को ढांकते हुए जर्जर दरवाजे पर लगे साड़ी के परदे को थोड़ा सा सरका कर बोली, ‘‘भाईजान आप?’’

‘‘हां भाभीजान, मैं? आप का मामूजात देवर करामत अली. आप को शौहर की परवा तो है नहीं, जो आप से देवर की फिक्र की उम्मीद की जा सके. सुना है मुकीम भाईजान ने आप को तलाक दे दिया. बड़े अजीब हैं. सच भाभीजान, मुझे बड़ा अफसोस हुआ यह सुन कर. मैं ने सोचा कि आप और बच्चे परेशान होंगे, इसलिए खैरियत मालूम करने चला आया. मेरे लायक कोई खिदमत हो तो बेहिचक हुक्म कीजिए, बंदा हर वक्त हाजिर है. नईमा शादी के बाद से ही करामत अली की बुरी नजर का शिकार थी. रिश्तेदारी की शादीब्याह में देवर, भाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर करामत अली नईमा के गालों पर अकसर हलदीउबटन मल देता. कभी चाय का कप या पानी का गिलास पकड़ाते हुए वह नईमा की उंगली दबा कर बेशर्मी से आंख मार देता.

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