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युवाओं ने की पहल तो खेती में मिली सफलता

देश में युवाओं के सामने रोजगार एक बड़ी समस्या है. उन का रोजगार की तलाश में घर से दूर पलायन करने का कारण स्थानीय लैवल पर रोजगार न मिलना भी है. ऐसे में युवाओं के पलायन की रोकथाम के लिए ऐसी पहल की जरूरत है, जिस से उन्हें स्थानीय लैवल पर ही रोजगार मुहैया हो पाए. इस के लिए जरूरत है स्थानीय लैवल पर रोजगार के अवसरों की तलाश.

ऐसे ही बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में काम करने वाली सामाजिक संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत ने जौन डियर इंडिया के सहयोग से कई गांवों में स्थानीय लैवल पर खेती में रोजगार के अवसरों की तलाश की और गांव से पलायन कर चुके युवाओं को फिर से गांव में वापस लाने में मदद भी की है. इस से इन युवाओं की दिशा ही बदल गई है. आज बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के गांवों के ये युवा खेती के जरीए लाखों रुपए की आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.

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मुजफ्फरपुर जिले के बंदरा प्रखंड के कई ऐसे गांव हैं, जहां किसान परिवारों के युवक कुछ साल पहले

रोजगार के चलते दूसरे शहरों को पलायन कर चुके थे. ऐसे में इन परिवारों में औरतें और बुजुर्ग ही गांवों में रह कर खेती का काम करते थे.

स्थानीय लेवल पर खेती के मसले पर काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत ने जब इन गांवों में खेती से जुड़ी जानकारियां इकट्ठा कीं, तो पता चला कि किसान परिवारों के युवक पारंपरिक तरीके से खेती में लाभ न होने के चलते शहरों में पलायन कर चुके हैं. ऐसे में इस संस्था ने इन किसान परिवारों के बड़े बुजुर्गों से गांव के युवकों को वापस बुला कर उन्नत तरीके से खेती करने की सलाह दी.

पहले तो गांव वालों ने यह कह कर मना कर दिया कि खेती से लाभ हो ही नहीं सकता है, इसलिए वे सिर्फ अपने खाने भर का ही अनाज उपजाएंगे, लेकिन जब संस्था के लोगों ने किसान परिवारों को यह विश्वास दिलाया कि अगर उन के बताए तरीके से खेती की जाए तो लाखों रुपए की आमदनी की जा सकती है.

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संस्था की यह बात किसानों को कुछ हद तक ठीक लगी और वे संस्था के बताए तरीके से खेती करने को तैयार हो गए.

मेघ रतवारा, प्यारे टोला, सुंदरपुर रतवारा सहित दर्जनों गांवों के इन किसान परिवारों ने  अपने घर के युवकों को घर वापस बुला लिया और आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व जौन डियर इंडिया की देखरेख में सब्जियों की खेती शुरू की.

संस्था द्वारा इन किसानों को खेती में काम आने वाले बीज, हरित व पौलीहाउस, बांसबल्ली आदि चीजों के साथसाथ ट्रेनिंग भी मुफ्त में मुहैया कराई गई.

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गांव के इन युवाओं ने सब से पहले गोभी, टमाटर, मटर जैसी फसलों की व्यावसायिक लैवल पर खेती शुरू की. चूंकि ये युवक संस्था के बताए अनुसार उन्नत बीज और आधुनिक तकनीक का उपयोग कर रहे थे, ऐसे में उन्हें पहली बार ही बंपर उत्पादन प्राप्त हुआ, जिस से इन युवाओं को लागत की तुलना में 3 से 4 गुना ज्यादा लाभ मिला. इस के बाद इन युवाओं का हौसला बढ़ गया और वे दोगुने उत्साह के साथ खेती में जुट गए.

गाजर व चुकंदर की खेती से मिली पहचान

मुजफ्फरपुर के बंदरा और सकरा ब्लौक के भरथीपुर, मेघ रतवारा, प्यारे टोला, सुंदरपुर जैसे ऐसे दर्जनों गांव हैं, जहां के युवक उन्नत तरीके से खेती कर रहे थे. जब ये लोग मंडियों में खुद के द्वारा उत्पादित की गई सब्जियां ले कर गए, तो वहां पता चला कि इन मंडियों में गाजर और चुकंदर की मांग की अपेक्षा आवक कम है. ऐसे में इन युवकों को लगा कि अगर अन्य सब्जियों के साथसाथ चुकंदर और गाजर की खेती की जाए तो ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है.

फिर क्या था, इन युवकों ने यह बात संस्था को बताई तो संस्था ने युवकों को उन्नत किस्म के बीज और उर्वरक मुफ्त में ही मुहैया करा दिए.

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इन युवकों ने जब पहली बार गाजर और चुकंदर की खेती की तो उन्हें अच्छाखासा लाभ हुआ. दूसरी बार इन युवकों ने और दोगुने उत्साह से गाजर और चुकंदर की फसल ली.

चूंकि संस्था लगातार अपनी देखरेख में खेती करवा रही थी, इसलिए चुकंदर का साइज बाजार में आने वाले आम चुकंदर की तुलना में 3 गुना ज्यादा बड़ा हुआ था और एक चुकंदर का औसत वजन एक किलोग्राम तक मिला.

इस बार मिले लाभ के चलते गांव वालों ने दूसरी फसलों की खेती छोड़ कर केवल गाजर और चुकंदर की खेती शुरू कर दी. इस गांव में किए जा रहे खेती से प्रभावित हो कर सैकड़ों गांव के किसान आज चुकंदर और गाजर की खेती के जरीए अपने जीवन में बदलाव लाने में कामयाब रहे हैं.

सिंचाई लागत में आई कमी

मुजफ्फरपुर के गांवों में खेती सुधार और आजीविका से जुड़ी इस परियोजना का संचालन कर रही संस्था एकेआरएसपी इंडिया के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया, ‘‘हम लोग गांवों में युवकों को खेती के जरीए रोजगार से जोड़ने का काम कर रहे हैं. संस्था के इस काम में ट्रैक्टर निर्माण से जुड़ी कंपनी जौन डियर इंडिया द्वारा वित्तीय सहयोग किया जा रहा है, जिस के तहत हम किसानों को खेती से जुड़ी तकनीकी, संसाधन और ट्रेनिंग मुफ्त में ही मुहैया कराते हैं.

‘‘बिहार में गाजर और चुकंदर की खेती के जरीए जिस गांव के युवक अपनी जिंदगी संवारने में कामयाब रहे हैं, उन की कामयाबी के पीछे का कारण सिंचाई की लागत में बेहद कमी भी रही है.

‘‘संस्था द्वारा किसानों को कम लागत पर सिंचाई सुविधा मुहैया कराए जाने के लिए गांव में ही सोलर पंप लगाए गए हैं. एक गांव में लगे सोलर पंपों की संख्या एक से ले कर 5 तक भी है, जो उस गांव के खेती के रकबे पर भी निर्भर करता है.

‘‘इन सोलर आधारित पंप की क्षमता

5 एचपी तक की है. इसे 270 फुट से 400 गहरे बोरवैल पर लगाया गया है. इस को लगाने की लागत तकरीबन 8 लाख, 88 हजार रुपए आती है और आकस्मिक स्थिति से निबटने के लिए डीजल से चलने वाला जनरेटर सैट भी लगाया गया है. इस में कुछ हिस्सा सामुदायिक अंशदान के रूप में समुदाय द्वारा लगाया गया है.’’

लाखों में है टर्नओवर

मेघ रतवारा गांव के रहने वाले संजीव कुमार ने बताया, ‘‘पहले गांव से बाहर रह कर वे नौकरी करते थे, लेकिन जब परिवार और संस्था के कहने पर उन्होंने शहर से वापस आ कर गांव में खेती करना शुरू किया तो उन्हें

शहर की नौकरी की तुलना में कई गुना ज्यादा कमाई हुई.’’

उन्होंने आगे बताया कि वे 5 एकड़ में चुकंदर की खेती करते हैं, जिस से उन्हें 5 लाख रुपए तक की आमदनी आसानी से हासिल हो जाती है. इस के अलावा वे दूसरे मौसम में टमाटर, गोभी, मटर जैसी सब्जियों की खेती कर के अतिरिक्त आमदनी प्राप्त करते हैं. उन्होंने बताया कि गांव के 90 प्रतिशत युवक खेती से जुड़े हुए हैं.

इसी गांव के गौतम प्रसाद भी गाजर, चुकंदर, टमाटर और मक्के की खेती से लाखों रुपए की आमदनी ले रहे हैं. इस गांव में सैकड़ों युवक आज की तारीख में खेती के जरीए अपनी माली हालत को सुधारने में कामयाब रहे हैं.

सुंदरपुर रतवारा गांव के शंभू और अरुण भी चुकंदर और गाजर की फसल उजपा कर उस से 2 से 3 लाख रुपए तक की सालाना आमदनी प्राप्त करते हैं.

बड़ी मंडियों में सीधे सप्लाई

एकेआरएसपी इंडिया के इस कार्यक्रम के कृषि प्रबंधक डा. वसंत कुमार ने बताया कि खेती को रोजगार का जरीया बनाने वाले युवक और किसान अपने कृषि उत्पादों का बड़ी मंडियों में सीधे सप्लाई करते हैं, जिस से उन्हें बिचौलियों के चंगुल से छुटकारा मिल गया है. चूंकि ये किसान अपने उत्पादों को सीधे मंडियों में पहुंचाते हैं, इसलिए लाभ भी ज्यादा मिलता है और मार्केटिंग की समस्या से भी नहीं जूझना पड़ता है.

सब्जियों के भंडारण के लिए स्थापित है कोल्डस्टोरेज

जिन गांवों में किसानों द्वारा सब्जियों की खेती की जा रही है, वहां के किसानों को उन के कृषि उत्पाद का उचित लाभ मिले, इस को ध्यान में रख कर एकेआरएसपी इंडिया के वित्तीय सहयोग से कोल्डस्टोरेज की स्थापना भी की गई है. इस की देखभाल के लिए संस्था ने किसानों की अगुआई में ही समिति बना रखी है, जिस में 10 महिला किसान और 5 पुरुष किसानों को शामिल किया गया है.

सुंदरपुर रतवारा गांव में स्थापित हरियाली शीतभंडार के संचालन के लिए गठित समूह के अध्यक्ष अरुण ने बताया, ‘‘हम लोग अपने कृषि उत्पादों को कोल्डस्टोरेज में लंबे समय तक संरक्षित कर के रखते हैं और जब बाजार में सब्जियों की आवक कम होती है, तो भाव चढ़ने पर अपने उत्पाद मंडियों में पहुंचाते हैं. ऐसे में हम लोगों को लागत की अपेक्षा कई गुना अधिक लाभ मिल जाता है.’’

इस समूह की कोषाध्यक्ष बेबी देवी और सदस्य सरिता और नसीमा ने बताया कि गांव में इस कोल्डस्टोरेज की स्थापना पर लगभग 15-20 लाख रुपए की लागत आई है, जिस में एकेआरएसपी द्वारा सहयोग किया गया है.

जिन गांवों में युवकों की खेती के जरीए  जिंदगी बदली जा रही है, वहां वर्मी कंपोस्ट के जरीए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिस से आने वाले दिनों में इन्हें और ज्यादा लाभ मिल पाए. इस के लिए संस्था द्वारा किसानों को वर्मी कंपोस्ट पिट निर्माण और केंचुए का सहयोग भी दिया जाता है.

इस के अलावा गांव में पेयजल, शौचालय आदि की सुविधाएं भी मुहैया कराई गई हैं, जिस से गांव वालों का जीवन स्तर ऊंचा उठ पाए.

स्नेह की डोर-भाग 2 : संजय और मेरे बीच कैसे जुड़ गए स्नेह के तार

वह जब भी आता, घंटों चुपचाप बैठा रहता. बोलता बहुत कम. पूछने पर भी सवालों का जवाब टाल जाता. बहुत आग्रह करने पर ही वह कुछ खाने को तैयार होता. बहुत ही भावुक स्वभाव का था, बातबात पर उस की आंखें भीग जातीं. मुझे लगता, वह अपने परिवार से बहुत जुड़ाव रखता होगा. तभी अनजान शहर में अपनों से दूर उसे अपनत्व महसूस होता है इसलिए यहां आ जाता है.

सारांश को तो संजय के रूप में एक बड़ा भाई, एक अच्छा दोस्त मिल गया था. हालांकि दोनों की उम्र में लगभग 10 साल का अंतर था फिर भी दोनों की खूब पटती. पढ़ाईलिखाई की या खेलकूद की, कोई भी चीज चाहिए हो वह संजय के साथ बाजार जा कर ले आता. अब उस की छोटीछोटी जरूरतों के लिए मुझे बाजार नहीं भागना पड़ता. इतना ही नहीं, संजय पढ़ाई में भी सारांश की मदद करने लगा था. सारांश भी अब पढ़ाई की समस्याएं ले कर मेरे पास नहीं आता बल्कि संजय के आने का इंतजार करता.

संजय का आना हम सब को अच्छा लगता. उस का व्यवहार, उस की शालीनता, उस का अपनापन हम सब के दिल में उतर गया था. उस एक दिन की घटना में कोई अजनबी इतना करीब आ जाएगा, सोचा न था. फिर भी उस को ले कर एक प्रश्न मन को निरंतर परेशान करता कि उस दिन मुझे घायल देख कर वह इतना परेशान क्यों था? वह मुझे इतना सम्मान क्यों देता है?

दीवाली वाले दिन भी उस ने आदर से मेरे पांव छू कर मुझे शुभकामनाएं दी थीं. अब भी वह जब मिलता है मेरे पैरों की तरफ ही बढ़ता है, वह तो मैं ही उसे हर बार रोक देती हूं. मैं ने तय कर लिया कि एक दिन इस बारे में उस से विस्तार से बात करूंगी.

जल्दी ही वह अवसर भी मिल गया. एक दिन वह घर आया तो बहुत ही उदास था. सुबह 11 बजे का समय था. निखिल औफिस जा चुके थे और सारांश भी स्कूल में था. आज तक संजय जब कभी भी आया, शाम को ही आया था. निखिल भले औफिस से नहीं लौटे होते थे लेकिन सारांश घर पर ही होता था.

उसे इतना उदास देख कर मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, तबीयत तो ठीक है न, आज कालेज नहीं गए?’’

वह कुछ नहीं बोला, बस चुपचाप अंदर आ कर बैठ गया.

‘‘नाश्ता किया है कि नहीं?’’

‘‘भूख नहीं है,’’ कहते हुए उस की आंखें भीग गईं.

‘‘घर पर सब ठीक है न? कोई दिक्कत हो तो कहो,’’ मैं सवाल पर सवाल किए जा रही थी लेकिन वह खामोश बैठा टुकुरटुकुर मुझे देख रहा था. शायद वह कुछ कहना चाहता था लेकिन शब्द नहीं जुटा पा रहा था. मुझे लगा उसे पैसों की जरूरत है जो वह कहने से झिझक रहा है. घर से पैसे आने में देर हो गई है, इसीलिए कुछ खायापिया भी नहीं है और परेशान है. उस का मुरझाया चेहरा देख कर मैं अंदर से कुछ खाने की चीजें ले कर आई. मेरे बारबार आग्रह करने पर वह रोंआसे स्वर में बोला, ‘‘आज मेरी मां की बरसी है.’’

‘‘क्या?’’ सुनते ही मैं एकदम चौंक उठी. लेकिन उस का अगला वाक्य मुझे और भी चौंका गया. वह बोला, ‘‘आप की शक्ल एकदम मेरी मां से मिलती है. उस दिन पहली बार आप को देखते ही मैं स्वयं को रोक नहीं पाया था.’’

यह सब जान कर मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. मैं एकटक उसे देखती रह गई. थोड़ी देर यों ही खामोश बैठे रहने के बाद उस ने बताया कि उस की मां को गुजरे कई साल हो गए हैं. तब वह 7वीं में पढ़ता था. उस की मां उसे बहुत प्यार करती थी. वह मां को याद कर के अकसर अकेले में रोया करता था. बड़ी बहन ने उसे मां का प्यार दिया, उस के आंसू पोंछे, कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी लेकिन 2 साल हो गए, बहन की भी शादी हो गई और वह भी ससुराल चली गई.

मेरे मन में उस बिन मां के बच्चे के लिए ममता तो बहुत उमड़ी लेकिन वह मुझे मां कह सकता है, ऐसा मैं उसे नहीं कह पाई.

संजय में अब मुझे अपना बेटा ही नजर आने लगा था. सारांश का बड़ा भाई नजर आने लगा था. घर में कुछ भी विशेष बनाती तो चाहती कि वह भी आ जाए. बाजार जाती तो सारांश के साथसाथ उस के लिए भी कुछ न कुछ खरीदने को मन चाहता. हम दोनों के बीच स्नेह के तार जुड़ गए थे. मैं सारांश की ही भांति उस के भी खाने का खयाल रखने लगी थी, उस की फिक्र करने लगी थी.

फेस्टिवल स्पेशल : 6 टिप्स- जानें क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग

यह एक ऐसा डाइट प्लान होता है , जिसमें खाने व फास्टिंग का समय तय होता है. जिसका उद्देस्य आपके ग्रोथ हार्मोन लेवल को बढ़ाना होता है. जिससे वजन को कम करने में मदद मिलती है. तो आइए इस संबंध में फरीदाबाद स्थित asian इंस्टिट्यूट की डायटीशियन विभा बाजपेई से जानते हैं.

क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग

लंबे समय तक भूखे रहकर मील स्किप करना इंटरमिटेंट फास्टिंग कहलाता है. इसमें जब भी हम खाना खाते हैं तो उसमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा कम व प्रोटीन व फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे फैट बर्न होता है, जो वजन कम करने में मदद करता है.

कैसे शुरू करें इंटीरमिटेंट फास्टिंग

अगर आप इंटीरमिटेंट फास्टिंग से लाभ पाना चाहते हैं तो सबसे पहले जानें कि ये किस किस प्रकार के होते हैं और आपका लाइफस्टाइल कैसा है कि उस पर इंटीरमिटेंट फास्टिंग का कौन सा तरीका फिट बैठेगा.

पौपुलर इंटीरमिटेंट फास्टिंग के तरीके

  1. इंटरमिटेंट फास्टिंग 16/8

इस फास्टिंग में आपका सिड्युल ऐसा होता है कि आपको 16 घंटे खाने से परहेज़ रखना होता है.  वहीं आपका ईटिंग टाइम 8 घंटे के भीतर होता है.  इसके लिए आप अपने लाइफस्टाइल के हिसाब से चूज़ करें. जैसे आप डिनर से लेकर लंच टाइम तक फ़ास्ट रख सकते हैं.  जिसका मतलब है कि आपको ब्रेकफास्ट स्किप करना होगा.

2.  इंटरमिटेंट फास्टिंग 5/2

इसमें आपको हफ्ते में 5 दिन जो आपका रूटीन है उसी के हिसाब से खाना है बाकी 2 दिन आपको अपनी डाइट को 500-600  कैलोरी के बीच ही सीमित रखना होगा. ऐसा करना आप के  लिए मुश्किल नहीं होगा. बस ध्यान रखें कि जो भी 2 दिन आप इसके लिए चुनें उसके बीच एक दिन ईटिंग डे जरूर हो.

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3.  इंटरमिटेंट फास्टिंग 20/4  warrior डाइट

ये तरीका बाकी तरीकों से थोड़ा अलग है.  इसमें आपको 20 घंटे फ़ास्ट रखना है और 4  घंटे के भीतर खाना है. लेकिन आप अपने 20 घंटे के फ़ास्ट पीरियड में फल और लीन प्रोटीन खा सकते हैं.  ध्यान रखें कि जब आप 4 घंटे के पीरियड में खाए तो उसे खासकर शाम के समय लें  और उसमें भी आप सब्ज़ियाँ , प्रोटीन और फैट ही लें और कार्बोहाइड्रेट्स तभी लें जब आपको तुरंत भूख लगी हुई हो.

4. इंटरमिटेंट फास्टिंग 24 घंटे

इसमें आपको हफ्ते में 1 – 2  बार 24 घंटे का फ़ास्ट रखना होगा. बाकि के दिनों में आप नॉर्मल डाइट ले सकते हैं.

5.  वन मील इन द डे

इस इंटरमिटेंट फास्टिंग में आपको पूरे दिन में एक बार ही खाना खाना होता है.  जैसा की अकसर हर साल रमजान के महीने में अदिकांश लोग करते हैं.

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6. 15 घंटे  का फास्ट

इस इंटरमिटेंट फास्टिंग में आप हाई प्रोटीन लंच तैयार करें,जो आपको वेट लौस प्रोग्राम में हेल्प करें. जब भी खाए इन्हें शामिल करना न भूलें

अपनी डाइट में सलाद , सूप, लेमन वाटर , जलजीरा पानी ,फ्रूट, वेजिटेबल प्यूरी , बेक्ड वेजिटेबल , दाल , स्प्राउट्स , रोस्टेड चने , सोया मिल्क , पनीर , दही , बेसन चीला आदि को शामिल करें.  और कोशिश करें कि जितना हो सके रोटी को अवायड करें.

दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर

हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था.

कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी.

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उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था.

दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं.

बात तो कहीं न कहीं की जा सकती थी, पर बात करने की खबर पूरे कस्बे में फैलते देर नहीं लगती थी. कम उम्र होने के बावजूद लड़केलड़की में इतनी समझ थी कि वे न तो अपनी और न अपने घर वालों की बदनामी होने देना चाहते थे.

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इसलिए जब भी वे मिलते तो यही कोशिश करते कि बात न की जाए. हां, कभीकभार मौका मिल जाने पर एकाध वाक्य का आदानप्रदान हो जाया करता था. बावजूद इतनी सावधानी के आखिर एक दिन उन की चोरी पकड़ी गई और उस दिन दोनों के घर में जो तूफान उठा, वह बड़ा भयानक था. दरअसल, उन के मोहल्ले के किसी आदमी ने दोनों को एक साथ देख कर उन के घर शिकायत कर दी थी.

हसनप्रीत सिंह के पिता परविंदर सिंह भारतपाक सीमा पर बसे कस्बा खेमकरण सेक्टर के वार्ड-2 में रहते थे. परविंदर सिंह के 2 बेटे थे. बड़ा बेटा अर्शदीप सिंह जो शादीशुदा था और छोटा बेटा 21 वर्षीय हसनप्रीत, जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने पिता के साथ खेतीबाड़ी करता था.

जाट परिवार से संबंधित परविंदर सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि है और उन की गिनती बड़े किसानों में होती थी. उन के पास धनदौलत, ऐश्वर्य किसी चीज की कमी नहीं थी.

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वहीं रमनदीप कौर के पिता जस्सा सिंह की गिनती भी बड़े किसानों में होती थी. उन के पास भी कई एकड़ उपजाऊ भूमि और सुखसुविधाओं का सभी सामान था. जस्सा सिंह का परिवार परविंदर के घर से कुछ दूरी पर वार्ड नंबर-2 में ही रहता था. दोनों परिवारों में अच्छा मेलमिलाप था पर वर्चस्व को ले कर कभीकभार कहासुनी हो जाती थी.

बहरहाल, हसनप्रीत अखबार सामने रखे अपने आसपास बैठे लोगों पर भी नजर रखे हुए था. यह ध्यान रखना बेहद जरूरी था कि उन लोगों में से कोई उस की जानपहचान का न हो. साथ ही इस बात का भी खयाल रखना जरूरी था कि वहां बैठे किसी आदमी को उस पर यह शक न हो जाए कि वह वहां अखबार पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि किसी और इरादे से आया है.

society

एक समस्या और भी थी. सामने के किताबों से भरी अलमारियों वाले कमरे में लाइब्रेरियन के अलावा कई लोग मौजूद थे. उस कमरे में लोगों का आनाजाना भी लगा रहता था.

हसन और रमनदीप की मुलाकात करीब 2 साल पहले एक शादी में हुई थी. 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद हसन एग्रीकल्चर का डिप्लोमा कर के पिता के साथ अपने खेतों में आधुनिक तरीके से खेती का काम करने लगा था.

रमनदीप कौर सामान्य कद की गोरी लेकिन साधारण सी लड़की थी. उस की यही साधारणता उस के आकर्षण का कारण थी, जिस पर हसनप्रीत पूरी तरह कुरबान था.

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शहर में 2 लाइब्रेरियां थीं. एक तो बहुत छोटी थी, जिस में मात्र 4-6 लोग बड़ी मुश्किल से बैठ पाते थे. वहां मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. हां, यह दूसरी लाइब्रेरी काफी बड़ी थी.

वे लोग इसी लाइब्रेरी में मिला करते थे. अब दोनों कोडवर्ड के जरिए मिलने की जगह, तारीख और समय तय कर लेते और इस तरह 10-15 दिनों में एक बार मिला करते.

इन्हीं मुलाकातों में वे भावनाओं से लबालब अपनीअपनी पर्चियां किसी न किसी तरीके से एकदूसरे को पकड़ा दिया करते थे. उस दिन उन का मिलना भी इसी तरह एक चिट्ठी के जरिए तय हुआ था.

हसनप्रीत की नजरें बारबार अपनी कलाई घड़ी से टकरातीं. तय वक्त से पूरे 7 मिनट ऊपर हो चुके थे. वह मायूस हो चुका था. उसे लगने लगा था कि अब रमन नहीं आएगी.

तभी हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़े रमन सीढि़यों पर नजर आई. बेंच पर संयोगवश हसनप्रीत के पास वाली जगह खाली थी, जहां आ कर रमन बैठ गई. आसपास इतने लोग बैठे थे कि बात करना बिलकुल असंभव लग रहा था. हसनप्रीत के दिल में तूफान सा मचल रहा था.

लाइब्रेरी में जमे तल्लीनता से अखबार पढ़ रहे लोगों के बीच पसरी चुप्पी के बावजूद बात करना कतई संभव नहीं लग रहा था. हसन ने कनखियों से रमन की ओर देखा. वह भी अखबार सामने रखे हुए उसे पढ़ने का नाटक करने लगी. इसी उधेड़बुन में कई मिनट बीत गए.

हसनप्रीत बड़ी बेचैनी सी महसूस कर रहा था. इस से पहले ऐसे कई मौके आए थे, जब वे इस तरह लाइब्रेरी में मिले थे और आपस में उन की कोई बात नहीं हो पाई थी. पर उन के लिए आज का दिन तो विशेष था.

रमन ने कोई खास बात करने के लिए हसन को बुलाया था. आखिर अपने चारों ओर देखने के बाद रमन ने चौकन्ने हो कर धीमे स्वर में कहा, ‘‘हसन, मेरे पिताजी किसी भी सूरत में हमारी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे, इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘अपने प्यार को भूलना क्या इतना आसान होता है? तुम भी पागलों जैसी बातें करती हो.’’ हसन ने रोआंसे हो कर कहा, ‘‘देखो मेरे पिता को देखो, वह मेरी खुशी की खातिर तुम्हें अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए हैं. क्या तुम्हारे पिताजी मुझे अपना दामाद स्वीकार नहीं कर सकते?’’

‘‘यही तो विडंबना है मेरे भाग्य की. तुम्हारी जुदाई शायद मेरा नसीब है.’’

‘‘तुम भी बेकार की बातें करती हो. इंसान को अपनी कोशिश तब तक जारी रखनी चाहिए जब तक उस की समस्या का समाधान नहीं हो जाता.’’ हसनप्रीत ने रमन को हौसला बंधाते हुए कहा.

‘‘तुम पुरुष हो और तुम्हारे लिए ऐसी बातें करना सहज है, लेकिन मैं लड़की हूं. मैं इस समाज का और अपने परिवार का सामना नहीं कर सकती.’’

रमन के ये वाक्य उस के टूटे हृदय की वेदना और उस की हार की निशानी थे, जिसे हसनप्रीत ने स्पष्ट महसूस किया. इसलिए उस ने ढांढस बंधाते हुए कहा, ‘‘एक काम करो, तुम सारी बातें उस वाहेगुरु पर छोड़ दो. अगर हमारा प्यार सच्चा है और इरादा पक्का है तो मुझे पूरा विश्वास है कि सच्चे पातशाह हमारी मदद जरूर करेंगे. वही कोई न कोई रास्ता निकालेंगे. बस तुम विश्वास रखना.’’

बातचीत के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए.

जस्सा सिंह और उस के भाइयों को जिस दिन से यह खबर लगी थी कि परविंदर का छोटा बेटा हसनप्रीत उन की बेटी रमनदीप में दिलचस्पी ले रहा है, उन्होंने उसी दिन से रमन पर नजर रखनी शुरू कर दी थी. यहां तक कि उसे किसी काम से अपने घर के सामने रहने वाले अपने चाचा के घर भी अकेले जाने की इजाजत नहीं थी.

ऐसे में हसन से मिलना तो बिलकुल संभव ही नहीं था, इसीलिए अपनी आखिरी मुलाकात में वह हसन को स्पष्ट कह आई थी कि शायद अब दोबारा मिलना कभी संभव न हो.

हसनप्रीत के कहने पर रमनदीप ने अपने जीवन की बागडोर वाहेगुरु के हाथों में सौंप दी थी और आने वाले समय का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगी थी. हसन ने भी अपने आप को वाहेगुरु की मरजी के हवाले कर दिया था. अब उन की मुलाकातें लगभग समाप्त हो गई थीं.

दूसरी ओर जस्सा सिंह और उन के परिवार के दिमाग में यह फितूर अभी तक बना हुआ था. उन्हें हर समय यह संदेह घेरे रहता था कि हसन अब भी उन की लड़की से मिलताजुलता है. वह किसी न किसी बहाने से हसन और उस के परिवार को सबक सिखाने के लिए उतावले रहते थे.

13 मई, 2018 की बात है. शाम के लगभग 4 बजे का समय होगा. परविंदर ने अपने बेटे हसन से कहा कि वह बाड़े में जा कर पशुओं को चारा डाल आए. परविंदर के पास कई दुधारू पशु थे. उस ने पशुओं के लिए अपने घर के बाहर एक बाड़ा बना रखा था.

वह बाड़ा जस्सा सिंह के घर की तरफ था और पशुओं को प्रतिदिन चारा डालने की जिम्मेदारी हसन की थी. 13 तारीख रविवार की शाम 4 बजे भी वह रोज की तरह पशुओं को चारा डालने बाड़े में गया.

पशुओं को चारा डाल कर हसन लगभग 2 घंटे में लौट आता था, लेकिन उस दिन देर रात गए जब वह वापस नहीं लौटा तो परविंदर को उस की चिंता हुई. उन्होंने अपने बड़े बेटे अर्शदीप के साथ जा कर बाड़े में देखा तो हैरान रह गए. पशु चारे के बिना भूख से बिलबिला रहे थे.

इस का मतलब हसन बाड़े में आया ही नहीं था. परविंदर ने मन ही मन कुढ़ते हुए अर्शदीप से कहा, ‘‘बहुत लापरवाह लड़का है, भूखे पशुओं को छोड़ कर न जाने कहां आवारागर्दी कर रहा है. आज इस की खबर लेनी पड़ेगी.’’

इस के बाद दोनों बापबेटे ने मिल कर पशुओं को चारा खिलाया और हसन की तलाश शुरू कर दी. परविंदर के भाइयों को इस बात का पता चला तो वे भी हसन की तलाश में जुट गए.

सब को इस बात का आश्चर्य था कि आज से पहले हसन ने इस तरह की हरकत कभी नहीं की थी, फिर ऐसा क्या हुआ कि जो वह बिना कुछ बताए घर से लापता हो गया था. बहरहाल, रात भर हसन की तलाश की जाती रही पर उस की कहीं कोई खोजखबर नहीं मिली.

 

अगले दिन सुबह परविंदर सिंह को उन की रिश्तेदारी में लगते भाई दया सिंह ने आ कर बताया कि उस के लड़के हसन को जस्सा सिंह का परिवार पकड़ कर अपने घर ले गया है. उसे यह खबर किसी ने बताई थी. बताने वाले ने कहा था कि जिस समय हसन पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो उस ने देखा, जस्सा सिंह और उस के भाई हसन को अपने साथ अपने घर की ओर ले जा रहे थे.

यह पता चलते ही परविंदर, उस का बेटा अर्शदीप और उन के रिश्तेदार जस्सा सिंह के घर पहुंचे पर जस्सा सिंह ने हसन के वहां होने से साफ इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने परविंदर और उन के साथ आए लोगों की बेइज्जती कर के अपने घर से भगा दिया.

जस्सा सिंह के ऐसे व्यवहार से परविंदर सिंह का शक विश्वास में बदल गया. किसी अनहोनी के डर से उन का तनमन बुरी तरह कांप उठा. वह वहीं से सभी लोगों के साथ थाना खेमकरण पहुंचे और थानाप्रभारी बलविंदर सिंह को हसनप्रीत के लापता होने की पूरी घटना बता कर जस्सा सिंह और उस के परिवार पर संदेह जताया.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने परविंदर की पूरी शिकायत सुनने के बाद उन के लिखित बयान दर्ज किए और एएसआई चरण सिंह, दर्शन सिंह, हैडकांस्टेबल दिलबाग सिंह, बलविंदर सिंह, इंदरजीत सिंह, मेजर सिंह, तरलोक सिंह और दलविंदर सिंह को साथ ले कर जस्सा सिंह के घर जा पहुंचे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह द्वारा हसन के बारे में पूछने पर जस्सा सिंह ने बताया कि उन्होंने तो कई दिनों से हसन को नहीं देखा. इस के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने रमनदीप कौर के बारे में पूछा तो जस्सा सिंह ने बताया कि वह रिश्तेदारी में गई हुई है.

कहां गई है, यह पूछने पर वह बगलें झांकने लगा. इस से थानाप्रभारी बलविंदर सिंह का संदेह गहरा गया. उन्होंने परिवार के हर सदस्य से जब अलगअलग पूछताछ की तो सब के बयान एकदूसरे से भिन्न थे.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अब वहां ठहरना उचित नहीं समझा और पूछताछ के लिए सब को हिरासत में ले कर थाने आ गए. थाने पहुंच कर जब सब से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन लोगों ने मिल कर हसनप्रीत और रमनदीप कौर की हत्या कर के उन दोनों की लाशों को छिपा दिया है.

अपराध स्वीकृति के बाद थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने एसएसपी (तरनतारन) दर्शन सिंह मान को इस हत्याकांड की सूचना दे दी. उन के निर्देश पर जस्सा सिंह, उस की पत्नी मंजीत कौर और बेटा आकाश, उस के भाई हरपाल सिंह, शेर सिंह, मनप्रीत कौर, शेर सिंह के बेटे राणा और एक रिश्तेदार धुला सिंह को गिरफ्तार कर लिया.

इन सभी के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 201, 148, 149 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर की हत्या के अपराध में पुलिस ने इन सभी को सक्षम अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ के दौरान अभियुक्तों ने बताया कि दोनों की हत्या करने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दिया है, जबकि हसन की लाश को उन्होंने जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपा दी ाि.

थानाप्रभारी बलविंदर सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर एसएसपी दर्शन सिंह मान और पट्टी के एसडीएम सुरिंदर सिंह की मौजूदगी में दोनों घरों से हसन और रमनदीप की लाशें बरामद कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद इस दिल दहला देने वाले हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 प्रेमियों को जुदा करने की क्रूरता भरी दास्तां थी.

हसनप्रीत सिंह और रमनदीप कौर दोनों एकदूसरे से बेहद प्रेम करते थे और शादी करना चाहते थे. लेकिन जस्सा सिंह को यह बात किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं थी. उस ने अपनी बेटी पर पहरा बैठा दिया था. उस का घर से बाहर तक निकलना बंद करवा दिया गया था.

पर इस के बावजूद जस्सा के मन में यह बात कहीं घर कर गई थी कि एक न एक दिन हसन उस की बेटी को भगा ले जाएगा या उस की बेटी घर वालों को धोखा दे कर हसन के साथ भाग कर शादी कर लेगी.

जस्सा को अपनी मूंछों पर बड़ा गर्व था, वह नहीं चाहता था कि बेटी को ले कर कभी उसे अपनी मूंछें नीची करनी पड़ें. इसलिए वह इस किस्से को ही जड़ से खत्म करना चाहता था.

उस का सोचना था कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी, इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. अपने भाइयों के साथ मिल कर हसन की हत्या की योजना वह बहुत पहले ही बना चुका था.

सो 13 मई की शाम जब हसन अपने पशुओं को चारा डालने बाड़े की ओर जा रहा था तो जस्सा सिंह और उस के भाई हरपाल ने उसे रास्ते में रोक लिया और कोई बात करने का बहाना बना कर अपने घर ले गए.

उन के घर पहुंचने पर घर की औरतों मंजीत कौर और मनप्रीत कौर ने घर का मुख्यद्वार बंद कर दिया और हसन से बिना कोई बात किए, बिना कोई मौका दिए ट्रैक्टर की लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर दे मारी.

अचानक हुए इस हमले से हसन चक्कर खा कर जमीन पर गिर गया. रमनदीप कौर अपने कमरे से यह सब देख रही थी. अपने प्रेमी की यह हालत देख वह उस का बचाव करने के लिए भागती हुई आई तो जस्सा सिंह ने उसी रौड का एक जोरदार वार उस के सिर पर भी कर दिया और चीखते हुए बोला, ‘‘अपने यार को बचाने आई है, अब तू भी मर.’’

इस के बाद सब ने मिल कर हसन और रमन पर रौड से तब तक प्रहार किए, जब तक उन के प्राण नहीं निकल गए.

2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद रमनदीप कौर का शव जस्सा सिंह के घर के सामने रहने वाले उस के भाई हरपाल सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में छिपाया गया और हसन की लाश को जस्सा सिंह के घर में बने शौचालय के मेनहोल में.

पुलिस रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर वह लोहे की रौड भी बरामद कर ली गई, जिस से दोनों प्रेमियों की हत्या की गई थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड से जुड़े सभी आठों अभियुक्तों को अदालत में पेश कर के जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्नेह की डोर-भाग 1 : संजय और मेरे बीच कैसे जुड़ गए स्नेह के तार

संजय  से हमारी मुलाकात बड़ी ही दर्दनाक परिस्थितियों में हुई थी. दीवाली आने वाली थी. बाजार की सजावट और खरीदारों की गहमागहमी देखते ही बनती थी. मैं भी दीवाली से संबंधित सामान खरीदने के लिए बाजार गई थी लेकिन जब होश आया तो मैं ने स्वयं को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. मेरे आसपास कई घायल बुरी तरह कराह रहे थे. चारों तरफ अफरातफरी मची थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. क्या हुआ, कैसे हुआ, मैं वहां कैसे पहुंची, कुछ भी याद नहीं आ रहा था.

मेरे शरीर पर कई जगह चोट के निशान थे लेकिन वे ज्यादा गहरी नहीं लग रही थीं. मुझे होश में आया देख कर एक नौजवान मेरे पास आया और बड़ी ही आत्मीयता से बोला, ‘‘आप कैसी हैं? शुक्र है आप को होश आ गया.’’

अजनबियों की भीड़ में एक अजनबी को अपने लिए इतना परेशान देख कर अच्छा तो लगा, हैरानी भी हुई.

‘‘मैं यहां कैसे पहुंची? क्या हुआ था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बाजार में बम फटा है, कई लोग…’’ वह बहुत कुछ बता रहा था और मैं जैसे कुछ सुन ही नहीं पा रही थी. मेरे दिलोदिमाग पर फिर, बेहोशी छाने लगी. मैं अपनी पूरी ताकत लगा कर अपने को होश में रखने की कोशिश करने लगी. घर में निखिल को खबर करने या अपने इलाज के बारे में जानने के लिए मेरा होश में आना जरूरी था.

उस युवक ने मेरे करीब आ कर कहा, ‘‘आप संभालिए अपनेआप को. आप उस धमाके वाली जगह से काफी दूर थीं. शायद धमाके की जोरदार आवाज सुन कर बेहोश हो कर गिर गई थीं. इसी से ये चोटें आई हैं.’’

शायद वह ठीक कह रहा था. मेरे साथ ऐसा ही हुआ होगा, तभी तो मैं दूसरे घायलों की तरह गंभीर रूप से जख्मी और खून से लथपथ नहीं थी.

‘‘मैं यहां कैसे पहुंची?’’

उस ने बताया कि वह पास ही रहता है. धमाके के बाद पूरे बाजार में कोहराम मच गया था. इस से पहले कि पुलिस या ऐंबुलैंस आती, लोग घायलों की मदद के लिए दौड़ पड़े थे. उसी ने मुझे अस्पताल पहुंचाया था.

‘‘मेरा नाम संजय है,’’ कहते हुए उस ने तकिए के नीचे से मेरा पर्स निकाल कर दिया और फिर बोला, ‘‘यह आप का पर्स, वहीं आप के पास ही मिला था. इस में मोबाइल देख कर मैं ने आखिरी डायल्ड कौल मिलाई तो वह चांस से आप के पति का ही नंबर था, वे आते ही होंगे.’’

उस के इतना कहते ही मैं ने सामने दरवाजे से निखिल को अंदर आते देखा. वे बहुत घबराए हुए थे. आते ही उन्होंने मेरे माथे और हाथपैरों पर लगी चोटों का जायजा लिया. मैं ने उन्हें संजय से मिलवाया. उन्होंने संजय का धन्यवाद किया जो मैं ने अब तक नहीं किया था.

इतने में डाक्टरों की टीम वहां आ पहुंची. अभी भी अस्पताल में घायलों और उन के अपनों का आनाजाना जारी था. चारों तरफ चीखपुकार, शोर, आहेंकराहें सुनाई दे रही थीं. उस माहौल को देख कर मैं ने घर जाने की इच्छा व्यक्त की. डाक्टरों ने भी देखा कि मुझे कोई ऐसी गंभीर चोटें नहीं हैं, तो उन्होंने मुझे साथ वाले वार्ड में जा कर मरहमपट्टी करवा कर घर जाने की आज्ञा दे दी.

मैं निखिल का सहारा ले कर साथ वाले वार्ड में पहुंची. संजय हमारे साथ ही था. लेकिन मुझे उस से बात करने का कोई अवसर ही नहीं मिला. मैं अपना दर्द उस के चेहरे पर साफ देख रही थी. निखिल ने वहां से लौटते हुए उस का एक बार फिर से धन्यवाद किया और उसे दीवाली के दिन घर आने का न्योता दे दिया.

दीवाली वाले दिन संजय हमारे घर आया. मिठाई के डब्बे के साथ बहुत ही सुंदर दीयों का उपहार भी था. मेरे दरवाजा खोलते ही उस ने आगे बढ़ कर मेरे पैर छुए और दीवाली की शुभकामनाएं भी दीं. मैं ठिठकी सी खड़ी रह गई, तभी वह निखिल के पैर छूने के लिए आगे बढ़ गया. उन्होंने उसे दोनों हाथों से थाम कर गले लगा लिया, ‘‘अरे यार, ऐसे नहीं, गले मिल कर दीवाली की शुभकामनाएं देते हैं. हम अभी इतने भी बुजुर्ग नहीं हुए हैं.’’

हमारा बेटा, सारांश उस से ज्यादा देर तक दूर नहीं रह पाया. दोनों में झट से दोस्ती हो गई. थोड़ी ही देर में दोनों बमपटाखों, फुलझडि़यों को चलाने में खो गए. निखिल उन दोनों का साथ देते रहे लेकिन मैं तो कभी रसोई तो कभी फोन पर शुभकामनाएं देने वालों और घरबाहर दीए जलाने में ही उलझी रही. हालांकि वह रात का खाना खा कर गया लेकिन मुझे उस से उस दिन भी बात करने का अवसर नहीं मिला.

निखिल ने मुझे बताया कि वह मथुरा का रहने वाला है और यहां रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. यहां पास ही ए ब्लौक में दोस्तों के साथ कमरा किराए पर ले कर रहता है. ऐसे में दूसरों की मदद करने के लिए इस तरह आगे आना यह बताता है कि वह जरूर अच्छे संस्कारी परिवार का बच्चा है. निखिल ने तो उसे यहां तक कह दिया था कि जब कभी किसी चीज की जरूरत हो तो वह बेझिझक हम से कह सकता है.

संजय अब अकसर हमारे घर आने लगा था. हर बार आने का वह बड़ा ही मासूम सा कारण बता देता. कभी कहता इधर से निकल रहा था, सोचा आप का हालचाल पूछता चलूं. कभी कहता, सारांश की बहुत याद आ रही थी, सोचा थोड़ी देर उस के साथ खेल कर फ्रैश हो जाऊंगा तो पढ़ूंगा. कभी कहता, सभी दोस्त घर चले गए हैं, मैं अकेला बैठा बोर हो रहा था, सोचा आप सब को मिल आता हूं.

सबक : गीता ने कौन सा कदम उठाया

‘‘देख लेना, मैं एक दिन घर छोड़ कर चली जाऊंगी, तब तुम लोगों को मेरी कीमत पता लगेगी,’’ बड़बड़ाते हुए गीता अपने घर से काम करने के लिए बाहर निकल गई.

गीता की इस चेतावनी का उस के मातापिता और भाईबहन पर कोई असर नहीं पड़ता था, क्योंकि वे जानते थे कि वह अगर घर छोड़ कर जाएगी, तो जाएगी कहां…? आना तो वापस ही पड़ेगा.

आजकल गीता यह ताना अकसर अपने मातापिता को देने लगी थी. वह ऊब गई थी उन का पेट पालतेपालते. आखिर कब तक वह ऐसी बेरस जिंदगी ढोती रहेगी. उस की अपनी भी तो जिंदगी है, जिस की किसी को चिंता ही नहीं है.

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गीता के अलावा उस की 2 बहनें और एक भाई भी था. बाप किसी फैक्टरी में मजदूरी करता था, लेकिन अपनी कमाई का सारा पैसा शराब और जुए में उड़ा देता था.

महज 10 साल की उम्र में ही गीता ने अपनी मां लक्ष्मी के साथ घरों में झाड़ूपोंछा और बरतन साफ करने के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था. वह बहुत जल्दी खाना बनाना भी सीख गई थी, क्योंकि उस ने देखा था कि इस पेशे में अच्छे पैसे मिलते हैं और उस ने घरों में खाना बनाने का काम शुरू कर दिया. धीरेधीरे गीता ब्यूटीशियन का कोर्स किए बिना ही फेसियल, मेकअप वगैरह सीख कर थोड़ी और आमदनी भी करने लगी.

बचपन से ही गीता बहुत जुझारू थी. लक्ष्मी पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन वह अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी, इसलिए वह भी जीतोड़ मेहनत कर के पैसा कमाती थी, जिस से कि उस के बच्चे पढ़ सकें.

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लक्ष्मी स्वभाव से बहुत सरल और अपने काम के प्रति समर्पित थी, इसलिए कालोनी में जिस के घर भी वह काम करती थी, वे उसे बहुत पसंद करते थे और जब भी उसे जरूरत पड़ती, उस की पैसे और सामान दे कर मदद करते थे.

समय बीतता गया. गीता ने प्राइवेट से इम्तिहान दे कर बीए की डिगरी हासिल कर ली. हैदराबाद में रहने से वहां के माहौल के चलते उस की अंगरेजी भी बहुत अच्छी हो गई थी.

लोग गीता की तारीफ करते नहीं थकते थे कि पढ़ाई के साथ वह घर का खर्चा भी चलाने में अपनी मां के काम को कमतर समझ कर उस की मदद करने में कभी कोताही नहीं बरतती थी.

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इस के उलट गीता की दोनों बहनों ने रैगुलर रह कर पढ़ाई की, लेकिन कभी अपनी मां के काम में हाथ नहीं बंटाया, क्योंकि पढ़ाई के चलते अहंकारवश उन को उस का काम छोटा लगता था, बल्कि वे तो अपने घर का काम भी नहीं करना चाहती थीं. दिनभर पढ़ना या टैलीविजन देखना ही उन की दिनचर्या थी.

गीता उन को कुछ कहती, तो वे उसे उलटा जवाब दे कर उस का मुंह बंद कर देतीं, लक्ष्मी भी उन का पक्ष लेते हुई कहती कि अभी वे छोटी हैं, उन के खेलनेकूदने के दिन हैं.

गीता के भाई राजू ने इंटर के बाद पढ़ाई छोड़ दी. उस का कभी पढ़ाई में मन लगा ही नहीं, लेकिन सपने उस के काफी बड़े थे. दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल पर घूमना और देर रात घर लौट कर अपनी बहनों पर रोब गांठना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया था.

लक्ष्मी अपने लाड़ले एकलौते बेटे की हर जिद के सामने हार जाती थी, क्योंकि वह घर छोड़ कर चला जाऊंगा की धमकी दे कर अपनी हर बात मनवाना चाहता था.

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एक बार राजू मोटरसाइकिल खरीदने की जिद पर अड़ गया, तो लक्ष्मी ने लोगों से उधार ले कर उस की इच्छा पूरी की. किसी ऊंची पोस्ट पर काम करने वाले आदमी, जिन के यहां दोनों मांबेटी काम करती थीं, से कह कर दूसरे शहर में राजू की नौकरी लगवाई कि अपने दोस्तों से दूर रहेगा, तो उस का काम में मन लगेगा. उस के लिए पैसों की जरूरत पड़ी, तो लक्ष्मी ने अपने कान के सोने के बूंदे गिरवी रख कर उस की भरपाई की.

एक दिन अचानक राजू अच्छीखासी नौकरी छोड़ कर गायब हो गया. पूरा परिवार उस की इस हरकत से बहुत परेशान हुआ.

कुछ महीने बाद पता चला कि राजू तो एक लड़की से शादी कर के उस के साथ इसी शहर में रह रहा है. वह लड़की किसी ब्यूटीपार्लर में काम करती थी.

लक्ष्मी और गीता को यह जान कर बड़ी हैरानी हुई कि उन लोगों ने उस का भविष्य बनाने के लिए क्याकुछ नहीं किया और उस ने लड़की के चक्कर में अपने कैरियर की भी परवाह नहीं की.

राजू के इसी शहर में रहने के चलते आएदिन उस की खबर इन लोगों को मिलती रहती थी. लक्ष्मी किसी तरह कोशिश कर के उस की नौकरी लगवाती, वह फिर नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाता, जरूरत पड़ने पर वह जबतब लक्ष्मी से पैसे की मांग करता, तो अपने बेटे के प्यार में सबकुछ भूल कर वह उस की मांग पूरी करती.

अब गीता को अपनी मां लक्ष्मी की राजू के प्रति हमदर्दी अखरने लगी. उस का मन बगावत करने लगा कि बचपन से उस ने दोनों बहनों और भाई की जिंदगी बनाने के लिए क्याकुछ नहीं किया, लेकिन लक्ष्मी को उसे छोड़ कर सभी की बहुत चिंता रहती थी. यहां तक कि जब गीता अपने पिता को कुछ कहती, तो लक्ष्मी उसे डांटती कि वे उस के पिता हैं, उस को उन के बारे में ऐसा नहीं बोलना चाहिए.

गीता गुस्से से बोलती, ‘‘कैसे पिता…? क्या बच्चे पैदा करने से ही कोई पिता बन जाता है? जब वे हमें पाल नहीं सकते, तो उन्हें बच्चे पैदा करने का हक ही क्या था…?’’

गीता को अपनी मां लक्ष्मी से बहुत हमदर्दी रहती थी, लेकिन जवान होतेहोते उसे समझ आने लगा था कि वह अपनी हालत के लिए खुद भी जिम्मेदार है.

सुबह की निकली जब गीता रात को 8 बजे घर पहुंचती, तो देखती कि दोनों बहनें टैलीविजन देख रही हैं, मां खाना बना रही हैं, मांजने के लिए बरतनों का ढेर लगा हुआ है, तो उस का मन गुस्से से भर उठता. लेकिन किसी को भी कुछ कहने से फायदा नहीं था और वह मन मसोस कर रह जाती थी.

गीता ने अब बीऐड भी कर लिया था और वह एक स्कूल में नौकरी करने लगी थी, लेकिन उस ने खाली समय में घरों के काम में मां का हाथ बंटाना नहीं छोड़ा था. स्कूल से जो तनख्वाह मिलती थी, वह तो पूरी अपनी मां को दे देती थी, लेकिन घरों से उसे जो आमदनी होती थी, वह अपने पास रख लेती थी.

देखते ही देखते गीता 26 साल की हो गई थी, लेकिन उस की शादी की किसी को चिंता ही नहीं थी. पर उस ने अपने भविष्य के लिए सोचना शुरू कर दिया था और मन ही मन घर छोड़ने का विचार करने लगी. ऐसा कर के वह उन सब को सबक सिखाना चाहती थी.

गीता ने अब बातबात पर कहना शुरू कर दिया था कि वह घर छोड़ कर चली जाएगी, लेकिन वे लोग उस की इस बात को कभी गंभीरता से नहीं लेते थे, क्योंकि उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि वह कभी ऐसा कदम भी उठा सकती है. पर बात यह नहीं थी.

गीता ने मन ही मन स्कूल में बने स्टाफ क्वार्टर में रहने की योजना बनाई और एक दिन वाकई अपने घर छोड़ने की खबर कागज पर लिख कर चुपचाप चली गई.

जैसे ही घर वालों को उस के जाने की खबर मिली, सभी सकते में आ गए. सब से ज्यादा मां लक्ष्मी को झटका लगा, क्योंकि गीता की कमाई के बिना घर चलाना मुश्किल था. मां के हाथपैर फूल गए थे.

एक हफ्ता बीत गया, लेकिन गीता घर नहीं आई. उस को कई बार फोन भी किया, लेकिन गीता ने फोन नहीं उठाया. हार कर लक्ष्मी अपनी बीच वाली बेटी के साथ उस के स्कूल पहुंच गई.

लक्ष्मी के कहने पर गार्ड गीता को बुलाने गया. थोड़ी देर में गीता आ गई. उस को देख कर वे दोनों रोते हुए उस से लिपटने के लिए दौड़ीं, लेकिन गीता ने हाथ से उन्हें रोक लिया.

इस से पहले कि लक्ष्मी कुछ कहती, गीता बोली, ‘‘मुझे पता है, तुम्हें मेरी नहीं, बल्कि मेरे पैसों की जरूरत है. मैं उस घर में तभी कदम रखूंगी, जब वहां मेरे पैसे की नहीं, मेरी कद्र होगी. तुम सभी के मेरे जैसे दो हाथ हैं, इसलिए मेरी तरह तुम सभी मेहनत कर के अपने खर्चे चला सकते हो. तभी तुम्हें पता चलेगा कि पैसा कितनी मेहनत से कमाया जाता है.

‘‘अब मुझ से किसी तरह की उम्मीद मत रखना. अब मैं सिर्फ अपने लिए जीऊंगी. मुझ से कभी दोबारा मिलने की कोशिश भी नहीं करना…’’ और इतना कह कर वह वहां से तुरंत लौट गई.

अपनी बेटी की दोटूक बात सुन कर मां लक्ष्मी हैरान रह गई. वह उस के इस रूप की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. उसे याद आया, जब डाक्टर ने लक्ष्मी के लिए ब्रैस्ट कैंसर का शक जाहिर किया था, तब गीता छिपछिप कर कितना रोती थी. उस के साथ डाक्टरों के चक्कर भी लगाने जाती थी और जब शक बेवजह का निकला, तो खुशी के आंसू उस की आंखों से बह निकले थे और आज वह इतनी कठोर कैसे हो गई? लक्ष्मी वहीं थोड़ी देर के लिए सिर पकड़ कर बैठ गई.

लक्ष्मी ने अपने सभी बच्चों को बचपन से ही हनत करना सिखाया होता और पैसे की अहमियत बताई होती, तो गीता को न अपना घर छोड़ना पड़ता और न लक्ष्मी के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूटता.

अपने पति और बेटे के प्रति अंधे प्यार ने उन्हें निकम्मा और नकारा बना दिया था, जिस के चलते उन्होंने कभी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश ही नहीं की. उन को मुफ्त के पैसे लेने की आदत पड़ गई थी. वे दोनों इस परिवार पर बोझ बन गए थे.

मां लक्ष्मी को गीता के जाने से अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत. लक्ष्मी को अब नए सिरे से घर का खर्च चलाना था, उस ने कुछ घरों से उधार लिया, यह कह कर कि हर महीने उस की पगार से काट लें. पहले ही खर्चा चलाना मुश्किल था, उस पर उधार चुकाना उस के लिए किसी बोझ से कम नहीं था.

पति और बेटे से तो उम्मीद लगाना ही बेकार था, लेकिन बीच वाली बेटी ने किसी दुकान में नौकरी कर ली और छोटी बेटी ने अपनी पढ़ाई के साथसाथ मां के साथ घरों के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया, लेकिन उन को अपने खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी. इस वजह से वे दोनों बहनें चिड़चिड़ी सी रहने लगी थीं.

गीता के स्वभाव और उस को अपने काम के प्रति निष्ठावान देख कर उस के एक सहयोगी ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो उस ने हामी भरने में बिलकुल भी देरी नहीं लगाई.

शादी के बाद गीता ने घर और स्कूल की जिम्मेदारी बखूबी निभा कर सब का मन मोह लिया और सुखी जिंदगी जीने लगी.

गीता ने जो कदम उठाया, उस से उस की जिंदगी में तो खुशी आई ही, बाकी सब को भी कम से कम सबक तो मिला कि मुफ्त की कमाई ज्यादा दिनों तक हजम नहीं होती. हो सकता है कि भविष्य में लक्ष्मी का परिवार एकजुट हो जाए, जिस से उन्हें गरीबी के दलदल से बाहर निकलने का रास्ता मिल जाए.

हुंडई क्रेटा के इंजन में है यह खास बात जिससे आपका सफर हो जाएगा आसान

न्यू हुंडई क्रेटा के इंजन में बीएस 6 पावर दिया गया है. इसमें 2 पेट्रोल इंजन और एक डीजल इंजन दिया गया है. पहले 1.5 लीटर का पेट्रोल इंजन दिया गया है. जो 115 hp की पॉवर और 14.7 kg-m पीक टार्क बनाता है. इसके साथ ही इसमें 6-स्पीड मैनुअल ट्रांसमिशन भी दिया गया है. जो कार को और भी ज्यादा स्ट्रांग बनाता है.

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हुंडई क्रेटा को लेते समय कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन से ट्रांसमिशन के साथ ले रहे हैं. आप क्रेटा लेते समय इस बात से निश्चित रहिए कि क्रेटा की पेट्रोल इंजन की पावर शानदार है.

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आप किसी भी  सफर  पर क्रेटा के साथ 50 लीटर पेट्रोल फुल करके आराम से जा सकते हैं. इसलिए तो कहते हैं #RechargeWithCreta.

‘कसौटी जिंदगी 2’ के फ्लॉप होने पर एरिका फर्नांडिस दिया ये बड़ा बयान

एकता कपूर का शो ‘कसौटी जिंदगी 2’ के शुरू होने से पहले लोगों के दिलों पर राज करने लगा था. इस ने शुरू होने के कुछ वक्त तक लोगों के दिलों पर राज किया था. सीरियल कसौटी जिंदगी 2 को शुरुआती दिनों में फैंस बहुत ज्यादा पसंद भी करते थें.

वहीं कुछ वक्त बाद इस सीरियल की टीआरपी में धीरे-धीरे गिरावट आने लगी जिससे शो के मेकर्स भी परेशान रहने लगे थें. वहीं कुछ लोगों को इस सीरियल से ज्यादा उम्मीद थी जहां तक यह पूरी कर नहीं पाई.


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कुछ वक्त पहले एलान हुआ था कि इस सीरियल को बंद किया जा रहा है. ऐसे में सीरियल में लीड रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस एरिका फर्नाडिस ने एक रिपोर्ट से बात चीत के दौरान एकता कपूर पर ताना मारते हुए कहा है कि यह जरूरी नहीं कि जो कंसेप्ट 20 साल पहले चला हो वो अब भी हमारे सीरियल में काम आए. ऐसे में एक्ट्रेस ने बताया है कि इस सीरियल के बंद होने के पीछे की सबसे बड़ी वजह है पुराने चीजों को रिपीट करना.

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उन्होंने आगे कहा कि पहले की आडियंस में और आज के आडियंस में बहुत ज्यादा फर्क हो गया है. लोगों की पसंद बदल चुकी है. हर कोई चाहता है कुछ नया देखना . ऐसे में हमें सबसे पहले अपने दर्शकों का ख्याल रखते हुए काम करना चाहिए. जिससे की हमें भी फायदा होगा और दर्शकों को उनके पसंद की चीज हम दिखा पाएंगे.

 

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वहीं आगे उन्होंने खुलासा किया है कि कसौटी जिंदगी 2 के खत्म होने के बाद वह अपने खास दोस्तों के साथ गोवा जाएंगी. जहां जाकर कुछ खास वक्त बिताएंगी.

हिना खान ने कसौटी जिंदगी 2 में कमोनिका का किरदार निभाया था. कुछ वक्त के बाद उन्होंने इस शो को छोड़ दिया था. हालांकि बताया गया था कि हना नए प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरू कर दी हैं.

‘इश्कबाज’ की ये एक्ट्रेस हुई कोरोना की शिकार

कोरोना वायरस का कहर कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है. ऐसे में आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी तक हर कोई इस खतरनाक बीमारी के चपेट में आ रहा है. हाल ही में टीवी जगत की मशहूर एक्ट्रेस नवीना बोले भी इस खतरनाक बीमारी की चपेट में आ गई हैं.

अदाकारा ने इस बात की जानकारी खुद सोशल मीडिया पर पोस्ट करके दिया है. नवीना ने बताया कि वह सेल्फ आइसोलेशन में हैं और धीरे-धीरे रिकवर कर रही हैं.

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नवीना ने ब्लू कलर की नाइटी में एक साथ कई तस्वीर शेयर की है. फोटो में नवीना बेहद हॉट और आकर्षक नजर आ रही हैं. फोटो में कैप्शन देते हुए नवीना ने लिखा है कि सेक्सी दिखना हर महिला का अधिकार है. मैं बताना चाहती हूं कि मैं कोरोना पॉजिटीव हूं. ठीक होने के लिए आइसोलेशन में हूं. आप सभी की दुआओं की जरुरत है.

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इसके बाद से नवीना के फैंस लगातार उन्हें ठीक होने के लिए दुआ कर कर हैं. नवीना के परिवार वाले और घर वाले सभी लोग उनके ठीक होने की सलामती कर रहे हैं.

नवीना से पहले इश्कबाज  की एक और एक्ट्रेस श्रेनु पारिख भी कोरोना पॉजिटीव पाई गई थीं.  उन्होंने अपना ट्रीटमेंट अस्पताल में करवाया था. नवीना ने अपनी कैरियर की शुरुआत “सूर्या द सुपर पावर’ से की थी. इसके बाद नवीना लगातार कई सीरियल्स में दिखाई दी थीं.

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नवीना आज टीवी जगत की जानी मानी चेहरा बन चुकी हैं. उन्हें हर कोई पसंद करता है. आज उन्हें कहीं पर अपनी पहचान बताने की जरुरत नहीं हैं. वह अपने मेहनत के बल पर आज इतनी ज्यादा आगे बढ़ चुकी हैं.

घमंडी-भाग 1 : मधुप के साथ कशिश ने ऐसा क्या किया कि वह कहीं का न रहा

‘‘यह चांद का टुकड़ा कहां से ले आई बहू?’’ दादी ने पोते को पहली बार गोद में ले कर कहा था, ‘‘जरा तो मेरे बुढ़ापे का खयाल किया होता. इस के जैसी सुंदर बहू कहां ढूंढ़ती फिरूंगी.’’ कालेज तक पहुंचतेपहुंचते दादी के ये शब्द मधुप को हजारों बार सुनने के कारण याद हो गए थे और वह अपने को रूपरंग में अद्वितीय समझने लगा था. पापा का यह कहना कि सुंदर और स्मार्ट लगने से कुछ नहीं होगा, तुम्हें पढ़ाई, खेलकूद में भी होशियारी दिखानी होगी, भी काम कर गया था और अब वह एक तरह से आलराउंडर ही बन चुका था और अपने पर मर मिटने को तैयार लड़कियों में उसे कोईर् अपने लायक ही नहीं लगती थी. इस का फायदा यह हुआ कि वह इश्कविश्क के चक्कर से बच कर पढ़ाई करता रहा. इस का परिणाम अच्छा रहा और आईआईटी और आईआईएम की डिगरियां और बढि़या नौकरी आसानी से उस की झोली में आ गिरी. लेकिन असली मुसीबत अब शुरू हुई थी. शादी पारिवारिक, सामाजिक और शारीरिक जरूरत बन गई थी, लेकिन न खुद को और न ही घर वालों को कोई लड़की पसंद आ रही थी. अचानक एक शादी में मामा ने दूर से कशिश दिखाई तो मधुप उसे अपलक देखता रह गया. तराशे हुए नैननक्श सुबह की लालिमा लिए उजला रंग और लंबा कद. बचपन से पढ़ी परी कथा की नायिका जैसी.

‘‘पसंद है तो रिश्ते की बात चलाऊं?’’ मां ने पूछा. मधुप कहना तो चाहता था कि चलवानेवलवाने का चक्कर छोड़ कर खुद ही जा कर रिश्ता मांग लोे, लेकिन हेकड़ी से बोला, ‘‘शोकेस में सजाने के लिए तो ठीक है, लेकिन मुझे तो बीवी चाहिए अपने मुकाबले की पढ़ीलिखी कैरियर गर्ल?’’

 

‘‘कशिश क्वालीफाइड है. एक मल्टीनैशनल कंपनी में सैक्रेटरी है. अब तुम उसे अपनी टक्कर के लगते हो या नहीं यह मैं नहीं कह सकता,’’ मामा ने मधुप की हेकड़ी से चिढ़ कर नहले पर दहला जड़ा. खिसियाया मधुप इतना ही पूछ सका, ‘‘आप यह सब कैसे जानते हैं?’’

‘‘अकसर मैं रविवार को इस के पापा के साथ गोल्फ खेल कर लंच लेता हूं. तभी परिवार के बारे में बातचीत हो जाती है.’’ ‘‘आप ने उन को मेरे बारे में बताया?’’

‘‘अभी तक तो नहीं, लेकिन वह यहीं है, चाहो तो मिलवा सकता हूं?’’ कहना तो चाहा कि पूछते क्यों हैं, जल्दी से मिलवाइए, पर हेकड़ी ने फिर सिर उठाया, ‘‘ठीक है, मिल लेते हैं, लेकिन शादीब्याह की बात आप अभी नहीं करेंगे.’’

 

‘‘मैं तो कभी नहीं करूंगा, परस्पर परिचय करवा कर तटस्थ हो जाऊंगा,’’ कह कर मामा ने उसे डाक्टर धरणीधर से मिलवा दिया. जैसा उस ने सोचा था, धरणीधर ने तुरंत अपनी बेटी कशिश और पत्नी कामिनी से मिलवाया और मधुप ने उन्हें अपने मम्मीपापा से. परिचय करवाने वाले मामा शादी की भीड़ में न जाने कहां खो गए. किसी ने उन्हें ढूंढ़ने की कोशिश भी नहीं की. चलने से पहले डा. धरणीधर ने उन लोगों को अगले सप्ताहांत डिनर पर बुलाया जिसे मधुप के परिवार ने सर्हष मान लिया. मधुप की बेसब्री तो इतनी बढ़ चुकी थी कि 3 रोज के बाद आने वाला सप्ताहांत भी बहुत दूर लग रहा था और धरणीधर के घर जा कर तो वह बेचैनी और भी बढ़ गई. कशिश को खाना बनाने, घर सजाने यानी जिंदगी की हर शै को जीने का शौक था.

‘‘इस का कहना है कि आप अपनी नौकरी या व्यवसाय में तभी तरक्की कर सकते हो जब आप उस से कमाए पैसे का भरपूर आनंद लो. यह आप को अपना काम बेहतर करने की ललक और प्रेरणा देता है,’’ धरणीधर ने बताया, ‘‘अब तो मैं भी इस का यह तर्क मानने लग गया हूं.’’ उस के बाद सब कुछ बहुत जल्दी हो गया यानी सगाई, शादी. मधुप को मानना पड़ा कि कशिश बगैर किसी पूर्वाग्रह के जीने की कला जानती यानी जीवन की विभिन्न विधाओं में तालमेल बैठाना. न तो उसे अपने औफिस की समस्याओं को ले कर कोई तनाव होता और न ही किसी घरेलू नौकर के बगैर बताए छुट्टी लेने पर यानी घर और औफिस सुचारु रूप से चला रही थी. मधुप को भी कभी आज नहीं, आज बहुत थक गई हूं कह कर नहीं टाला था.

 

समय पंख लगा कर उड़ रहा था. शादी की तीसरी सालगिरह पर सास और मां ने दादीनानी बनाने की फरमाइश की. कशिश भी कैरियर में उस मुकाम पर पहुंच चुकी थी जहां पर कुछ समय के लिए विराम ले सकती थी. मधुप को भी कोई एतराज नहीं था. सो दोनों ने स्वेच्छा से परिवार नियोजन को तिलांजलि दे दी. लेकिन जब साल भर तक कुछ नहीं हुआ तो कशिश ने मैडिकल परीक्षण करवाया. उस की फैलोपियन ट्यूब में कुछ विकार था, जो इलाज से ठीक हो सकता था. डा. धरणीधर शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञा डा. विशाखा से अपनी देखरेख में कशिश का उपचार करवाने लगे. प्रत्येक टैस्ट अपने सामने 2 प्रयोगशालाओं में करवाते थे.

उस रात कशिश और मधुप रात का खाना खाने ही वाले थे कि अचानक डा. धरणीधर और कामिनी आ गए. डा. धरणीधर मधुप को बांहों में भर कर बोले, ‘‘साल भर पूरा होने से पहले ही मुझे नाना बनाओ. आज की रिपोर्ट के मुताबिक कशिश अब एकदम स्वस्थ है सो गैट सैट रैडी ऐंड गो मधुप. मगर अभी तो हमारे साथ चलो, कहीं जश्न मनाते हैं.’’

‘‘आज तो घर पर ही सैलिब्रेट कर लेते हैं पापा,’’ कशिश ने शरमाते हुए कहा, ‘‘बाहर किसी जानपहचान वाले ने वजह पूछ ली तो क्या कहेंगे?’’

 

‘‘वही जो सच है. मैं तो खुद ही आगे बढ़ कर सब को बताना चाह रहा हूं. मगर तुम कहती हो तो घर पर ही सही,’’ धरणीधर ने मधुप को छेड़ा, ‘‘नाना बनने वाला हूं, उस के स्तर की खातिर करो होने वाले पापाजी.’’ डा. धरणीधर देर रात आने वाले मेहमानों के आगमन की तैयारी की बातें करते रहे. कामिनी ने याद दिलाया कि घर चलना चाहिए, सुबह सब को काम पर जाना है, वे नाना बनने वाले हैं इस खुशी में कल छुट्टी नहीं है.

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