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क्या सोते वक़्त भी टाइट अंडरगार्मेंट्स पहनते हैं?

बचपन में माँ अपने हाथों से सुन्दर सुन्दर फूलों वाले चुन्नटदार फूले-फूले जांघिये सी कर हमें पहनाती थीं. इनमें कमर और जाँघों वाले हिस्से में पतली इलास्टिक लगी होती थी, जो हमारी कोमल त्वचा को नुक्सान नहीं पहुँचाती थी. कपड़ा सूती होता था तो ना ये शरीर को चुभता था, ना उसको पहनने पर खुजली होती थी और ना ही उसमे गर्मी लगती थी. सभी ने ऐसे जांघिये अपने बचपन में पहने हैं. कितने कम्फर्टेबल थे वो. उन्हें पहन कर दिन भर धूप और गर्मी में खेलते थे पर मजाल है कभी खुजली हो जाए. वहीँ दादा जी और पिताजी के लिए नीली-हरी धारियों वाले सूती कपड़े के जांघिये घर पर ही सिले जाते थे. उसी के साथ पतले सूती कपड़े की जेब वाली बंडी पहनते थे. वो तो आज भी उन्ही कपड़ों में खुद को कम्फर्टेबल महसूस करते हैं. मगर हम जैसे जैसे बड़े हुए टीवी और पत्र-पत्रिकाओ में छपने वाले अंडरगार्मेंट के विज्ञापनों ने हमें आकर्षित किया. विभिन्न देसी-विदेशी कंपनियों के सुन्दर, प्रिंटेड, ट्रांसपेरेंट, जालीदार, रेशमी लेसेज़ वाले, चिकने, सेक्सी, मुलायम अंडरगार्मेंट्स देख कर हमारा दिल मचलने लगा और हमने माँ के प्यार से सिले सूती छींट वाले जांघिये अलमारी से निकाल फेंके और उनकी जगह हज़ारों रूपए मूल्य के रेडीमेड अंडरगार्मेंट्स अलमारी में भर लिए. सालों से हमारा शरीर इनकी जकड़ में है. ये छोटे-छोटे, प्लास्टिकनुमा, शरीर से चिपके कपड़े आईने में हमारी फिगर तो बड़ी सेक्सी दिखाते हैं, मगर खुजली, रैशेज़, फुंसी और यहाँ तक कि स्किन और ब्रेस्ट कैंसर तक सौगात में दे देते हैं.

हमारी त्वचा पर करोड़ों रोम छिद्र हैं जो हर वक़्त सांस लेते हैं. इन रोमछिद्रों से शरीर की गन्दगी भी पसीने के रूप में बाहर निकलती है. लेकिन जब त्वचा पर कोई प्लास्टिकनुमा टाइट कपड़ा हर वक़्त चढ़ा रहेगा तो ना तो वहाँ की त्वचा ठीक से सांस ले पाएगी और ना ही शरीर से निकला पसीना और गंदगी हटेंगे. वो टाइट अंडरगार्मेंट के नीचे वहीँ के वहीँ चिपके रहेंगे और रोमछिद्रों को बंद कर देंगे. रोमछिद्र बंद होने का मतलब है खुजली और फोड़े-फुंसी की शुरुआत. लाल चकत्ते या रैशेज़. पुरुषों में स्पर्म काउंट कम होने की एक वजह उनके टाइट अंडरवियर ही हैं. टाइट अंडरवियर के कारण टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के स्राव में कमी आती है. इससे इंफर्टिलिटी की संभावना बढ़ जाती है. गुप्तांगों से निकलने वाला सफ़ेद द्रव, यूरिन आदि भी टाइट अंडरगार्मेंट्स के कारण शरीर से तब तक चिपका रहता है जब तक हम नहाते नहीं हैं. यह दिक्कतें मर्द और औरत दोनों के साथ पेश आती हैं. टाइट अंडरगार्मेंट्स के कारण गुप्तांगों में हर वक़्त खुजली सी महसूस होती है.

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कुछ महिलाएं और पुरुष रात में भी बेहद टाइट अंडरगार्मेंट्स पहनकर सोते हैं, लेकिन क्या आपकी यह आदत आपकी सेहत के लिए सही है? रात में अंडरगार्मेंट्स पहनकर सोने के सभी के अलग-अलग तर्क हो सकते हैं. कुछ महिलायें टाइट ब्रा इसलिए पहन कर सोती हैं कि कहीं लूज़ छोड़ने पर उनकी शेप ना बिगड़ जाए. किसी को पैंटी, ब्रा पहनकर सोने में कंफर्टेबल महसूस होता है, तो कोई सबकुछ उतार कर सोने में आनंद महसूस करता है. डॉक्टर्स की माने तो रात में सोते समय आपको ढीले-ढाले कपड़े ही पहनकर सोना चाहिए. कुछ विशेषज्ञों का तो यह भी कहना है कि रात में कपड़े पहनकर सोना ही नहीं चाहिए. विदेशों में तो बहुतेरी महिलायें और पुरुष बिना कपड़ों के रज़ाइयों में दुबके होते हैं. रात में कपड़े उतारकर सोने से कई फायदे होते हैं. जब आप टाइट कपड़े या अंडरवियर पहनकर सोते हैं, तो आपकी त्वचा खुलकर सांस नहीं ले पाती है. यदि आप चाहते हैं कि आपके प्राइवेट पार्ट्स को भी आराम मिले, तो बेहतर है कि आप पैंटी, अंडरवियर, ब्रा जैसे शरीर से चिपके कपड़े सोते वक़्त ना पहनें.

आमतौर पर हम दिन में एक बार ही नहाते हैं और एक बार ही अपने अंडरगार्मेंट्स चेंज करते हैं. महिलायें सारा दिन ब्रा, पैंटी पहने रहती हैं. दिन में कई बार टॉयलेट जाती हैं. इससे वेजाइना के आसपास गीलापन, बदबू, यूरीन, व्हाइट डिस्चार्ज आपके अंडरवियर पर भी लगता रहता है, जिससे बैक्टीरिया पनप सकते हैं. इससे महिलाओं में वेजाइनल इंफेक्शन, खुजली, सूजन, चकत्ते जैसी समस्या हो सकती है. इसी तरह पुरुषों में भी यूरिन और डिस्चार्ज उनके अंडरवियर में सारा दिन लगता और सूखता रहता है जो गुप्तांग की त्वचा पर बैक्टीरिया पैदा करता है और त्वचा संबधी व्याधियां पैदा होती हैं. यदि आप इन समस्याओं से बचना चाहते हैं तो सोते वक़्त अपने टाइट कपड़ों को शरीर से हटा दीजिये. बिस्तर पर जाने से पहले अपने गुप्तांगों को साबुन और पानी से भली प्रकार साफ़ करें और सूती तौलिये से त्वचा को सुखाएं और बिना अंडरगार्मेंट्स के सोएं. इससे आपकी त्वचा राहत महसूस करेगी और आप ज़्यादा आराम से सोएंगे.

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रात में अंडरवियर ना पहनकर सोने के फायदे

 

  1. अंडरवियर या किसी भी कपड़े के बिना सोना ज्यादा हेल्दी माना गया है, लेकिन इसमें हर कोई सहज महसूस नहीं करता है. बेहतर है कि आप ढीला-ढाला टीशर्ट, पजामा या, नाइटी पहनकर सोएं. इससे प्राइवेट पार्ट्स में ब्लड सर्कुलेशन ठीक से होगा. सभी अंग खुलकर सांस ले पाएंगे. वेजाइना की स्किन को थोड़ा लूज भी छोड़ना चाहिए, क्योंकि यह सारा दिन पैंटी के अंदर बंद रहती है.

 

  1. रात में वेजाइना के पीएच लेवल को सही रखना जरूरी है. इससे इंफेक्शन कम होती है. ऐसे में बेहतर यही है कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही बिना अंडरवियर के सोना चाहिए. वेजाइना हमेशा भीगा रहता है. इससे फंगस होने की संभावना रहती है. प्राइवेट पार्ट्स को ड्राई रखें, ताकि फंगस या बैक्टीरिया ना पनपने पाए.

 

  1. रात को बिना अंडरगार्मेंट्स के सोने से बैक्टीरियल इंफेक्शन होने का खतरा कम हो जाता है. सारा दिन प्राइवेट पार्ट्स से तरल पदार्थ डिस्चार्ज होता रहता है, जो पैंटी पर लगता रहता है. रात में इसे पहनकर सोने से खुजली, जलन हो सकती है. बेहतर है कि पजामा, शॉर्ट्स पहन लें, ताकि पेनिस और वेजाइना के पार्ट में नमी नहीं रहेगी. इससे आप बैक्टीरियल और फंगल इंफेक्शन से बचे रह सकते हैं.

 

  1. पुरुष यदि बिना अंडरवियर के सोते हैं, तो उनमें स्पर्म काउंट और उसकी क्वालिटी बढ़ने के साथ ही बेहतर होती है. इससे अंडकोष यानी टेस्टिकल्स को भी आराम पहुंचता है. सारा दिन अंडरवियर पहने रहने से अंडकोष से गर्मी बाहर नहीं निकल पाती है, जो स्पर्म काउंट पर नकारात्मक असर डालता है. तो बेहतर है कि पुरुष बिना अंडरवियर ही सोएं, ताकि स्पर्म काउंट में इजाफा हो सके.

ध्यान देने योग्य बातें

हमेशा कॉटन के ही अंडरगार्मेंट्स पहनें. इससे पसीना अधिक नहीं आता.

अंडरगारमेंट्स थोड़े ढीले ही पहने.

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अंडरगार्मेंट्स को अच्छी तरह से साफ करें.

एक दिन जो अंडरगार्मेंट्स आपने पहना है, उसे दूसरे दिन भी ना पहनें.

सोते वक़्त अंडरगारमेंट्स उतार दें और त्वचा को खुल कर सांस लेने दें.

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महिलायें घर में रहें तो कोशिश करें कि ब्रा-पैंटी कुछ वक़्त के लिए ही पहने. हर वक़्त शरीर को उसमें जकड़े ना रहें. इससे आप ब्रेस्ट कैंसर की संभावनाओं से भी दूर रहेंगी.

पलटवार -भाग 3: आखिर स्वरा के भरोसे में किसने सेंध मारी

‘‘गुड न्यूज है. तुम्हें भी सुन कर खुशी होगी. अरे भई, श्रेया का विवाह निश्चित हो गया है. बड़ा ही अच्छा लड़का मिल गया है. अब श्रेया को नौकरी छोड़नी पड़ेगी क्योंकि लड़का कनाडा में सैटल्ड है. वह तो अचानक ही आ गया, घर भी आया था. हम उसे पहले से जानते हैं. विशेष नाम है उस का. स्वरा के साथ ही तो पढ़ता था.’’

अब यह कौन सा मित्र है स्वरा का जो अचानक ही आ गया और जिस का नाम भी विशेष ही है, और जो श्रेया से विवाह करने को भी राजी हो गया, अमित सोचने पर विवश हो गया. ‘‘अच्छा, बड़ी खुशी हुई. वैसे स्वरा का एक कोई और भी मित्र है विशेष, जो यहां आया हुआ है और पूरे दिन से स्वरा उसी के साथ है, अभी तक घर नहीं लौटी,’’ अमित का स्वर व्यंग्यात्मक था लेकिन उधर से फोन पर टूंटूं की आवाज आ रही थी. शायद नैटवर्क चला गया था.

आने दो स्वरा को, आज फैसला करना ही होगा. आखिर वह चाहती क्या है. अरे जब उसी के साथ रंगरेलियां मनानी थीं तो मुझ से विवाह क्यों किया. मेरे प्यार में उसे क्या कमी नजर आई, जो वह दूसरे के साथ समय बिता रही है. मैं चुप हूं, इस का मतलब यह तो नहीं कि मुझे कुछ बुरा नहीं लग रहा है. और ये विशेष, बड़ा चालाक लगता है, इधर स्वरा से संबंध बनाए हुए है और उधर श्रेया से विवाह करने को भी तैयार है. मतलब यह कि अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहता है. आखिर यह क्या रहस्य है, कहीं वो दोनों को तो मूर्ख नहीं बना रहा है.

डोरबैल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. दरवाजा खोल वह कमरे में आ कर चुपचाप लेट गया. स्वरा ने अंदर आ कर देखा, कमरे में अंधेरा है और अमित लेटा हुआ है. ‘‘अरे, अंधेरे में क्यों पड़े हो, लाइट तो जला लेते.’’ उस ने स्विच औन करते हुए कहा.

‘‘रहने दो स्वरा, अंधेरा अच्छा लग रहा है. हो सकता है रोशनी में तुम मुझ से आंखें न मिला सको’’, उस के स्वर में तड़प थी.

‘‘क्यों, ऐसा क्या हो गया है जो मैं तुम से आंखे न मिला सकूंगी,’’ स्वरा ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो, क्या हुआ है और क्या हो रहा है. मैं बात बढ़ाना नहीं चाहता. मुझे नींद आ रही है, लाइट बंद कर दो, सोना चाहता हूं,’’ कह कर उस ने करवट बदल लिया.

स्वरा मन ही मन मुसकरा उठी, ‘तो तीर निशाने पर लगा है, जनाब बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं.’ उस ने भी तकिया उठा लिया और सोने की कोशिश करने लगी.

सुबह उठ कर उस ने अपनी दिनचर्या के अनुसार सारे काम किए. अमित तथा श्रेया को बैड टी दी. डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगा दिया और नहाने के लिए जाने को हुई तभी उस का मोबाइल बज उठा. अमित जल्दी से फोन उठाने के लिए लपका, तभी स्वरा ने उठा लिया. स्क्रीन पर नाम देख कर मुसकराने लगी. ‘हैलो, हांहां, पूरा प्रोग्राम वही है, कोई भी फेरबदल नहीं है. मैं भी बस तैयार हो कर तुम्हारे पास ही आ रही हूं.’ फोन रख कर उस ने बड़े ही आत्मविश्वास से अमित की ओर मुसकरा कर देखा.

अमित की आंतें जलभुन गईं. आज फिर कहां जा रही है, लगता है पर निकल आए हैं, कतरने होंगे, घर के प्रति पूरी तरह समर्पित, भीरू प्रवृत्ति की स्त्री इतनी मुखर कैसे हो गई, क्या इसे मेरी तनिक भी चिंता नहीं है. इस तरह तो यह मुझे धोखा दे रही है. क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष से श्रेया की शादी फिक्स हो गई है तो फिर यह क्या है? इसी ऊहापोह में फंसा हुआ वह अपने कमरे में जा कर धड़ाम से बैड पर गिर गया. आज फिर औफिस की छुट्टी हो गई, लेकिन कब तक? आखिर कब तक? वह इसी प्रकार छुट्टी लेता रहेगा. बस, अब कुछ न कुछ फैसला तो करना ही है. वह सोचने पर विवश था.

तभी, श्रेया ने धीरे से परदा हटा कर झांका, ‘‘जीजू, आज शाम की फ्लाइट से मैं मांपापा के पास पुणे वापस जा रही हूं. मैं ने अपना त्यागपत्र कंपनी को भेज दिया है. अब जब अगले माह मेरी शादी हो रही है और मुझे कनाडा चले जाना है तो जौब कैसे करूंगी.’’

अमित मौन था. उस ने श्रेया को यह भी नहीं बताया कि उस के पापा का फोन आया था और वह इन सब बातों से अवगत है. श्रेया अपने कमरे में चली गई पैकिंग करने. अमित बैड पर करवटें बदल रहा था मानो अंगारों पर लोट रहा हो.

दरवाजे की घंटी की आवाज पर अमित ने दरवाजा खोला. स्वरा ही थी. ‘‘आ गईं आप? अमित के स्वर में व्यंग्य था, ‘‘बड़ी जल्दी आ गईं, अभी तो रात के 10 ही बजे हैं. इतनी भी क्या जल्दी थी, थोड़ी देर और एंजौय कर लेतीं.’’

‘‘शायद, तुम ठीक कह रहे हो’’, स्वरा ने मुसकरा कर अंदर आते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों की फिक्र लगी थी, भूख लगी होगी, अब खाना क्या बनाऊंगी, कहो तो चीजसैंडविच बना दूं. चाय के साथ खा लेना.’’

‘‘बड़ी मेहरबानी आप की. इतनी भी जहमत उठाने की क्या जरूरत है. श्रेया शाम की फ्लाइट से पुणे वापस चली गई है. तुम्हारे पापा का फोन आया था. मैं ने भी खाना बाहर से और्डर कर के मंगा लिया था. तुम टैंशन न लो. जाओ, सो जाओ,’’ अमित ने कुढ़ते हुए कहा और सोने लगा.

स्वरा मन ही मन हंस रही थी. कैसी मिर्च लगी है जनाब को, कितने दिनों से मैं जो उपेक्षा की शरशय्या पर लोट रही थी, उस का क्या. न तो मैं मूर्ख हूं, न ही अंधी, जो इन दोनों की बढ़ती नजदीकियों को समझ नहीं पा रही थी या देख नहीं पा रही थी.

अरे, अमित तो पुरुष है भंवरे की प्रवृत्ति वाला, जहां कहीं भी सौंदर्य दिखा, मंडराने लगा. यद्यपि ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि पिछले 2 वर्षों में उस ने कभी भी अपनी बेवफाई का कोई भी परिचय दिया हो, लेकिन श्रेया, वह तो मेरी सगी बहन है, मेरी ही मांजायी. क्या उसे मेरा ही घर मिला था सेंध लगाने को. अमित से निकटता बढ़ाने से पूर्व क्या उसे एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया. किसी ने सच ही कहा है, ‘आग और फूस एक साथ रहेंगे तो लपटें तो उठेंगी हीं,’ जिन्हें वह स्पष्ट देख रही थी. उस ने मन ही मन निश्चय ले लिया था कि यह बात अब और आगे नहीं बढ़ने देगी.

सुबह वह थोड़ा निश्चिंत हो कर उठी. नहाधो कर नाश्ता लगाया.

‘‘अमित, श्रेया इतनी जल्दी क्यों चली गई. आज भी तो जा सकती थी,’’ उस ने सामान्य लहजे में कहा.

‘‘तो तुम्हें क्या, तुम अपनी लाइफ एंजौय करो. तुम्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि श्रेया की शादी विशेष के साथ तय हो गई है. जो अगले माह में होगी. तुम्हारे पापा का ही फोन आया था. अरे हां, यह विशेष कहीं वही तो नहीं जिस के साथ तुम घूमफिर रही हो,’’ अमित ने चुभने वाले लहजे में कहा.

अब स्वरा चुप न रह सकी, ‘‘हां,  वही है. बताया तो था हम लोग क्लासमेट थे. तुम मिलना चाहो तो लंच पर बुला लेते हैं. और उस ने फोन लगा दिया. अमित हैरान था. इस के पापा ने तो बताया था कि विशेष वहां आया हुआ है तो फिर ये किस के साथ 2 दिनों से घूमफिर रही थी.’’

स्वरा ने बड़ा ही शानदार लंच बनाया था. सभी कुछ अमित की पसंद का था. पालक पनीर, भरवां करेले, मटर पुलाव, फू्रट सलाद, पाइनऐप्पल रायता और केसरिया खीर. 2 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. अमित ने दरवाजा खोला, सामने उस के मामा की बेटी निधि खड़ी मुसकरा रही थी. वह स्वरा की भी खास सहेली बन गई थी.

‘‘हाय दादा, भाभी कहां हैं?’’

‘‘वह तो किचन में है. उस का कोई दोस्त लंच पर आने वाला है. बस, उसी की तैयारी कर रही है,’’ अमित हड़बड़ा गया था.

‘‘अच्छा, तो भाभी से कहिए उन का दोस्त आ गया है,’’ निधि मुसकरा रही थी.

‘‘क्या? कहां है?’’ अमित का माथा चकरा रहा था.

‘‘आप के सामने ही तो है.’’

‘‘तुम?’’

‘‘सच, भाभी बहुत मजेदार हैं. 2 दिनों से जो मजे वे कर रही थीं, वर्षों से नहीं किए थे.’’

‘पूरे दिनदिन भर साथ रहना, रात में देर से आना,’ अमित उलझन में था. तभी पीछे से हंसती हुई स्वरा ने आ कर अमित के गले में अपनी बांहें डाल दीं, ‘‘हां अमित, ये हम दोनों की मिलीभगत थी,’’ स्वरा के स्वर में मृदु हास्य का पुट था.

‘‘दादा, और श्रेया कहां है, भाभी कह रही थीं आजकल आप उस के साथ घूमफिर व खूब मौजमस्ती कर रहे हैं,’’  निधि के स्वर में तल्खी थी.

‘‘अरे भई, इन्हीं की बहन की आवभगत में लगा था ताकि श्रेया को यह न लगे कि मैं उस की अवहेलना कर रहा हूं. आखिर वह मेरी इकलौती साली है और फिर सौंदर्य किसे आकर्षित नहीं करता. फिर, हमारे बीच दोस्ती ही तो थी,’’ अमित ने सफाई पेश की ताकि वह असल बात को छिपा सके.

‘‘अच्छा, वाह दादा, दोस्ती क्या ऐसी थी कि रात में देरदेर से आते थे. अकसर बाहर ही खापी लेते थे.’’

अब अमित खामोश था. उस की कुछ भी कहनेसुनने की अब हालत नहीं थी. सच ही तो है, जब 2 दिनों से स्वरा उस के बगैर ही एंजौय करती रही, तब वह भी तो जलभुन रहा था और वह तो इतने दिनों से मेरी उपेक्षा की शिकार हो रही थी. जबकि उस के समर्पण में कोई भी कमी न थी. तो स्वरा ने गलत क्या किया?

अकस्मात उस ने स्वरा को अपनी बाहों में उठा लिया और गोलगोल चक्कर काटते हुए हंसतेहंसते बोला, ‘‘भई वाह, तुम्हें तो राजनीति में होना चाहिए था. मेरी ओर से तुम्हारा गोल्ड मैडल पक्का.’’

स्वरा भी उस के गले में बाहें डाले झूल रही थी. उस का सिर अमित के सीने पर टिका था. निधि ने दोनों का प्यार देख कर वहां से चली जाना ही उचित समझा. उसे लगा कि दोनों के बीच कुछ था जो अब नहीं है. अब उस के वहां होने का कोई औचित्य भी नहीं था. उस ने राहत की सांस ली और गेट से बाहर आ गई.

पलटवार -भाग 2: आखिर स्वरा के भरोसे में किसने सेंध मारी

‘‘अब चाय क्या पिएंगे, सीधे खाना ही खिला देना, क्यों जीजू.’’

‘‘हां, और क्या, वैसे भी बहुत थक गया हूं. जल्दी ही सोना चाहूंगा,’’ अमित उबासी लेने लगता.

इधर सुबह दोनों जल्दी ही उठ कर कंपनीबाग सैर करने जाते थे. कभी भी स्वरा से चलने के लिए नहीं कहते थे. स्वरा मन ही मन कुढ़ती थी और समस्या के निराकरण का उपाय भी सोचती थी जो उसे जल्दी ही मिल गया. वह भी अकेली ही सैर पर निकल पड़ी और जौगिंग करते हुए अमित तथा श्रेया की बगल से हाय करते हुए मुसकरा कर आगे बढ़ गई. दोनों भौचक्के से उस की ओर देखने लगे. स्वरा को ट्रैक सूट में देख कर अमित अपनी आंखें मलने लगा, यह स्वरा का कौन सा अनोखा रूप था जिस से वह अपरिचित था.

घर आ कर स्वरा ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया और उन दोनों का इंतजार किए बिना स्वयं नाश्ता करने लगी. तभी अमित भी आ गया, ‘‘यह क्या मैडम, आज मेरा इंतजार नहीं किया, अकेले ही नाश्ता करने बैठ गई.’’

‘‘तो क्या करती? जौगिंग कर के आई हूं. भूख भी कस कर लग आई है, फिर खाने के लिए किस का इंतजार करना.’’ स्वरा ने टोस्ट में औमलेट रख कर खाते हुए कहा. अमित तथा श्रेया दोनों ने ही स्वरा में आए इस बदलाव को महसूस किया. दोनों ने अपनाअपना नाश्ता खत्म किया और तैयार होने कमरे में चले गए.

‘‘स्वरा, मेरा टिफिन लगा दिया?’’ अमित ने हांक लगाई.

‘‘नहीं तो, रोज ही तो खाना वापस आता है. मैं ने सोचा क्यों बरबाद किया जाए और श्रेया तो यों भी फिगर कौंशस है. वह तो दोपहर में जूस आदि ही लेती है. ऐसे में खाना बनाने का फायदा ही क्या?’’ स्वरा ने तनिक कटाक्ष के साथ कहा, ‘‘और हां अमित, घर की डुप्लीकेट चाबी लेते जाना क्योंकि आज शाम को मैं घर पर नहीं मिलूंगी. मेरा कहीं और अपौइंटमैंट है.’’

‘‘कहां?’’ अमित को आश्चर्य हुआ. उन के विवाह को 2 वर्ष बीत चले थे. कभी भी ऐसा नहीं हुआ था कि अमित आया हो और स्वरा घर पर न मिली हो.

‘‘अरे, मैं तुम्हें बताना भूल गई थी, विशेष आया हुआ है,’’ स्वरा के स्वर में चंचलता थी.

‘‘कौन विशेष? क्या मैं उसे जानता हूं?’’ अमित ने तनिक तीखे स्वर में पूछा.

‘‘नहीं, तुम कैसे जानोगे. कालेज में हम दोनों साथ थे. मेरा बैस्ट फ्रैंड है. जब भी कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम कालेज में होता था, हम दोनों का ही साथ होता था. क्यों श्रेया, तू तो जानती है न उसे,’’ स्वरा श्रेया से मुखातिब हुई. श्रेया का चेहरा बेरंग हो रहा था, धीमे से बोली, ‘‘हां जीजू, मैं उसे जानती हूं. वह घर भी आता था. आप की शादी के समय वह कनाडा में था.’’

‘‘अरे, स्वरा ने तो कभी अपने किसी ऐसे दोस्त का जिक्र भी नहीं किया,’’ अमित के स्वर में रोष झलक रहा था.

‘‘यों ही नहीं बताया. अब भला अतीत के परदों को क्या उठाना. जो बीत गया, सो बीत गया,’’ स्वरा ने बात समाप्त की और तैयार होने के लिए चली गई. अमित तथा श्रेया भौचक एकदूसरे को देख रहे थे.

‘यह कौन सा नया रंग उस की पत्नी उसे दिखा रही थी.’ अमित हैरान था, सोचता रह गया. वह तो यही समझता था कि स्वरा पूरी तरह उसी के प्रति समर्पित है. उसे तो इस का गुमान तक न था कि स्वरा के दिल के दरवाजे पर उस से पूर्व कोई और भी दस्तक दे चुका था और वह बंद कपाट अकस्मात ही खुल गया.

‘‘जीजू चलें?’’ श्रेया तैयार खड़ी थी.

‘‘आज मैं औफिस नहीं जाऊंगा, तुम अकेली ही चली जाओ,’’ अमित ने अनमने स्वर में कहा और अपने कमरे में चला गया. भड़ाक, दरवाजा बंद होने की आवाज से श्रेया चिहुंक उठी. ‘तो क्या जीजू को ईर्ष्या हो रही है विशेष से,’ वह सोचने को विवश हो गई.

इधर अमित बेचैन हो रहा था. वह सोचने लगा, ‘मैं पसीनेपसीने क्यों हो रहा हूं. आखिर क्यों मैं सहज नहीं हो पा रहा हूं. हो सकता है दोनों मात्र दोस्त ही रहे हों. तो फिर, मन क्यों गलत दिशा की ओर भाग रहा है. मैं क्यों ईर्ष्या से जल रहा हूं और फिर पिछले 2 वर्षों में कभी भी स्वरा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जिस से मेरा मन सशंकित हो. वह पूरी निष्ठा से मेरा साथ निभा रही है, मेरी सारी जरूरतों का ध्यान रख रही है. मेरा परिवार भी उस के गुणों और निष्ठा का कायल हो चुका है. तो फिर, ऐसा क्यों हो रहा है.

‘क्या तू ने उस के प्रति पूरी निष्ठा रखी?’ उस के मन से आवाज आई, ‘क्या श्रेया को देख कर तेरा मन डांवाडोल नहीं हो उठा, क्या तू ने श्रेया के संग ज्यादा अंतरंगता नहीं दिखाई? कितने दिनों से तू ने स्वरा को अपने निकट आने भी नहीं दिया, क्यों? आखिर क्यों? क्या तेरे प्यार में बेवफाई नहीं है?’

‘नहींनहीं, मेरे प्यार में कोई भी बेवफाई नहीं’, वह बड़बड़ा उठा, ‘श्रेया हमारी मेहमान है. उस का पूरी तरह खयाल रखना भी तो हमारा फर्ज है, इसीलिए स्वरा को श्रेया के साथ, उसी के कमरे में सोने के लिए कहा ताकि उसे अकेलापन न लगे. मेरा ऐसा कोई बड़ा अपराध भी नहीं है.’ अमित ने स्वयं को आश्वस्त किया लेकिन शंका का नाग फन काढ़े जबतब खड़ा हो जाता था.

शाम के 7 बज गए. ‘कहां होगी, अभी तक आई नहीं, अमित कल्पनाओं के जाल में उलझता जा रहा था. क्या कर रहे होंगे दोनों, शायद फिल्म देखने गए होंगे. फिल्म, नहींनहीं, आजकल कैसीकैसी फिल्में बन रही हैं, पता नहीं दोनों स्वयं पर काबू रख पा रहे होंगे भी, या नहीं. अमित का मन उद्वेलित हो रहा था, जी में आ रहा था कि अभी उठे और दोनों को घसीटते हुए घर ले आए. शादी मुझ से, प्यार किसी और से. अरे, जब उसी का साथ निभाना था तो मना कर देती शादी के लिए,’ अमित का पारा सातवें आसमान पर चढ़ता जा रहा था.

‘अब तो सिनेमा भी खत्म हो गया होगा, फिर कहां होंगे दोनों, क्या पता किसी होटल में गुलछर्रे उड़ा रहे हों. आखिर विशेष होटल में ही तो ठहरा होगा. हो सकता है दोनों एक भी हो गए हों,’ उस का माथा भन्ना रहा था. तभी मोबाइल बज उठा, ‘अरे, यह तो स्वरा का फोन है. अच्छा तो जानबूझ कर छोड़ गई है ताकि मैं उसे कौल भी न कर सकूं. देखूं, किस का फोन है.’ उस ने फोन उठाया. स्वरा के पापा का फोन था. ‘‘हैलो’’ उस का स्वर धीमा किंतु चुभता हुआ था.

‘‘अरे बेटा अमित, मैं बोल रहा हूं, स्वरा का पापा. कैसे हो बेटा? स्वरा कहां है? जरा उसे फोन देना.’’

‘‘स्वरा अपने किसी दोस्त के साथ बाहर गई है. मैं घर पर ही हूं. बताइए, क्या बात है?’’ अमित के स्वर में खीझ स्पष्ट थी.

फेस्टिवल स्पेशल : स्नैक टाइम के लिए घर पर ही बनाएं सूजी के कुरकुरे नमकीन चटपटे काजू

जब भी शाम का टाइम होता है हल्का फुल्का कुछ नकुछ खाने का मन जरूर करता है. ऐसे में आजकल बाजार की चीजों को खाने का कोई मतलब नहीं है. संक्रमण ज्यादा फैल रहे हैं. इसलिए अगर घर का कुछ खाने को मिल जाए तो सबसे बेहतर है.

सामग्री−

एक कप सूजी

नमक

बेकिंग सोडा

काली मिर्च पाउडर

पुदीने का पाउडर

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तेल

विधि 

सबसे पहले एक मिक्सर जार में सूजी डालकर हल्का सा पीस लें. अब इस सूजी को एक बड़े बाउल में डाल लें। इसके बाद आप इसमें नमक, बेकिंग सोडा, काली मिर्च पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स करें.इसके बाद इसमें पुदीना पाउडर और थोड़ा सा तेल डालकर हाथों की मदद से अच्छी तरह मिक्स करें. कुकरी एक्सपर्ट बताते हैं कि वैसे तो यह स्नैक्स बनाते समय कसूरी मेथी, जीरा व अजवायन डाला जाता है, लेकिन आप समर्स में एक डिफरेंट रेसिपी बनाना चाहते हैं तो इसकी जगह पुदीना पाउडर इस्तेमाल करें. इसका टेस्ट बेहद ही लाजवाब आता है.

अब इसमें एक गुनगुना पानी लें और इसका एक नरम आटा गूंथे। कुकरी एक्सपर्ट के अनुसार, गुनगुने पानी का इस्तेमाल करने सूजी बेहद अच्छी तरह फूलती और नरम हो जाती है, जिससे स्नैक्स का टेस्ट भी काफी अच्छा आता है। आटा लगाने के बाद आप इसे ढककर करीबन आधे घंटे के लिए ऐसे ही छोड़ दें ताकि आटा अच्छी तरह रेडी हो जाए.

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अब आटे को एक बार फिर से मल लें. इसके बाद आटे को आप दो भागों में बांट लें और बॉल बना लें. इसके बाद आप इसे एक बोर्ड या फिर काउंटर टॉप पर रखें और बेलन की मदद से बेलें. ध्यान रखें कि आप बहुत मोटा भी ना बेलें और बहुत पतला भी ना बेलें. जब यह अच्छी तरह बेल लें तो फिर आप इसे मनपसंद शेप में काट लें. आप बोतल की कैप की मदद से काजू की शेप दें. शेप देने में आपको थोड़ा समय तो लगेगा, लेकिन यह देखने में काफी अच्छा लगता है.

इसी तरह आप दूसरी बॉल को भी बेलकर काजू की शेप दें. अब आप कड़ाही में तेल गर्म करें. जब तेल अच्छी तरह गर्म हो जाए तो आप इसे लो फ्लेम पर ब्राउन होने पर सेकें. इसी तरह सारे काजू तलकर तैयार कर लें.

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आपके काजू तैयार है. अब बारी इसमें मसाला डालने की. इसके लिए आप एक बाउल में चाट मसाला, नमक, काली मिर्च पाउडर व पुदीना पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब इस मिक्स मसाले को सूजी के स्नैक्स के ऊपर डालें. कुकरी एक्सपर्ट कहते हैं कि आप मसाले को गरमा−गरम काजू के ऊपर ही डालें ताकि यह अच्छी तरह कोट हो जाएं.

पलटवार -भाग 1: आखिर स्वरा के भरोसे में किसने सेंध मारी

‘‘दीदी.’’ स्वरा चौंक उठी, अरे, यह तो श्रेया की आवाज है. वह उल्लसित मन से छोटी बहन की ओर लपकी, ‘‘अरे तू, आने की सूचना भी नहीं दी, अचानक  कैसे आना हुआ?’’

‘‘कुछ न पूछो दीदी, कंपनी का एक सर्वे है, उसी के लिए मुझे 2 माह तक यहीं रहना है. बस, मैं तो बहुत ही खुश हुई, आखिर इतने दिन मुझे अपनी बहन के साथ रहने को मिलेगा,’’ कह कर श्रेया अपनी दीदी स्वरा के गले में झूल गई. स्वरा को भी खूब खुशी हो रही थी, आखिर श्रेया उस की दुलारी बहन जो थी.

‘‘स्वरा, एक कप चाय देना,’’ अमित ने गुहार लगाई.

जी, अभी लाई, कह कर स्वरा चाय ले जाने को तत्पर हो गई.

‘‘लाओ दीदी, मैं जीजू को चाय दे आती हूं,’’ कह कर श्रेया ने बहन के हाथ से चाय की ट्रे ले ली और अमित के कमरे की ओर बढ़ी. कमरा खुला था, परदे पड़े थे. उस ने झांक कर देखा, अमित की पीठ दरवाजे की ओर थी. वह अपना कोई प्रोजैक्ट तैयार कर रहा था. श्रेया ने चाय साइड टेबल पर रख दी और अमित की आंखों को अपने हाथों से बंद कर दिया. अमित हड़बड़ा गया, ‘‘क्या है स्वरा, आज बड़ा प्यार आ रहा है. क्या दिल रंगीन हो रहा है. अरे भई, दरवाजा तो बंद कर लो.’’ अमित ने श्रेया को स्वरा समझ कर अपनी ओर खींच लिया, श्रेया भरभरा कर अमित की गोद में आ गिरी.

‘‘हाय, जीजू क्या करते हैं, मैं आप की पत्नी नहीं, बल्कि श्रेया हूं, आप की इकलौती साली. क्यों, चौंक गए न,’’ श्रेया संभलती हुई बोली.

‘‘हां, चौंक तो गया ही, चलो कोई बात नहीं, आखिर साली भी तो आधी घरवाली होती है,’’ अमित ने ठहाका लगाया.

‘‘क्या बात है, बड़े खुश हो रहे हो,’’ स्वरा भी वहीं आ गई.

‘‘हां भई, खुशी तो होगी ही. अब इतनी सुंदर साली को पा कर मन पर काबू कैसे रखा जा सकता है. दिल ही तो है, मचल गया,’’ अमित ने शोखी से कहा.

‘‘हुं, ज्यादा न मचलें, थोड़ा काबू रखो. मेरी बहन कोई सेंतमेत की नहीं है, जो किसी का भी दिल मचल जाए,’’ स्वरा ने अमित को छेड़ा और दोनों बहनें हंसती हुई कमरे से बाहर आ गईं.

दिन के साढ़े 10 बजे रहे थे. श्रेया को सर्वे के लिए निकलना था. वह तैयार होने चली गई. अमित भी औफिस के लिए तैयार होने चला गया. दोनों साथ ही निकले. श्रेया आटो के लिए सड़क की ओर बढ़ने लगी कि तभी अमित ने पीछे से आवाज दी, ‘‘रुको साली साहिबा, तुम्हारी प्रोजैक्ट साइट मेरे औफिस के रास्ते में ही है, मैं तुम्हें ड्रौप कर दूंगा.’’ स्वरा ने भी हां में हां मिलाई और श्रेया लपक कर अमित की बगल वाली सीट पर बैठ गई.

अमित ने कहा, ‘‘बैल्ट लगा लो श्रेया, यहां ट्रैफिक रूल्स बहुत सख्त हैं.’’

श्रेया ने बैल्ट लगाने की कोशिश की लेकिन वह लग नहीं रही थी. शायद कहीं फंसी हुई थी. उस ने बेबसी से अमित की ओर देखा. अमित समझ गया और थोड़ा झुक कर बैल्ट को खींचने लगा कि अचानक बैल्ट खुल गई. श्रेया झटका खा कर अमित की ओर लुढ़क गई. ‘‘सौरी,’’ उस ने धीरे से कहा. ‘‘ओके, जरा ध्यान रखा करो.’’ अमित ने गाड़ी बढ़ाते हुए कहा.

अब यह प्रतिदिन का नियम बन गया था. अमित श्रेया को उस की साइट पर छोड़ता और शाम को लौटते हुए उसे साथ में ले भी लेता था. वैसे तो यह एक सामान्य बात थी. जब दोनों का समय और रास्ता भी एक ही था तो साथ आनेजाने में कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन यह प्रतिदिन का जो साथ था, वह बिना किसी रिश्ते के एक अनजाने रिश्ते की ओर बढ़ रहा था.

अमित युवा था और उस का दिल सदैव उन्मत्त रहता था. रूपसी पत्नी के साहचर्य ने उसे और भी अधिक शोख बना दिया था. सुंदर स्त्रियों के साथ उसे आनंद आता था. अब हर समय उसे स्वरा का साथ तो उपलब्ध नहीं होता था तो वह अकस्मात ही अन्य स्त्रियों की ओर आकर्षित होने लगता था. वह सोचता भी था कि यह गलत है, किंतु आंखें? उन का क्या, उन्हें बंद तो नहीं किया जा सकता था. उन्हें देखने से कोई कैसे रोक सकता था.

श्रेया भी युवा थी, अपरिमित सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का हृदय जबतब मचलता रहता था. पुरुषों की सौंदर्यलोलुप दृष्टि का वह आनंद उठाती थी. पुरुष साहचर्य की कामना भी करती थी परंतु अपनी मर्यादाओं को समझते हुए. एक बार उस की किसी नवविवाहिता सहेली ने उसे बताया था, ‘पुरुष का प्रथम स्पर्श बहुत ही मधुर होता है.’ यह सुन कर वह रोमांचित हो उठी थी.

उसे अमित का साथ अच्छा लगने लगा था. यद्यपि कि उसे अपने पर शर्म भी आती थी कि वह जो कुछ भी कर रही है, वह गलत है. अमित उस की ही बहन का सुहाग है. जिस की ओर देखना भी उचित नहीं है, किंतु मन, उस का क्या, उस पर तो किसी का वश नहीं चलता है.

श्रेया यौवन के नशे में चूर थी और पुरुष साहचर्य की कामना करती रहती थी जो विवाह से पूर्व संभव न था. लेकिन अमित के साथ सट कर बैठना, उस के साथ घूमनाफिरना सब बहुत लुभावना लगता था.

उसे अपनी बहन की आंखों में देखते हुए भय लगता था क्योंकि उन आंखों में अनेक संशयभरे प्रश्न होते थे जिन का उस के पास कोईर् जवाब नहीं होता था. वह कभी भी अपनी दीदी से आंख मिला कर बात नहीं कर पाती थी.

स्वरा सब देख, समझ रही थी. उसे आश्चर्य भी होता था और दुख भी. आश्चर्य अमित के रवैए पर था, वह पत्नी को कम से कम समय देता, खानेपीने में अरुचि दिखाता, उस के व्यवहार में आए इस परिवर्तन से स्वरा अनभिज्ञ नहीं थी. दुख इस बात का था कि उस की प्यारी छोटी बहन उसे ही धोखा दे रही थी.

दिनप्रतिदिन श्रेया और अमित की नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थी. अब उन्हें इस बात की कोई भी चिंता नहीं होती थी कि स्वरा शाम की चाय पर उन की प्रतीक्षा कर रही होगी. वे दोनों तो घूमतेफिरते रात्रि के 8 बजे से पूर्व कभी भी घर नहीं पहुंचते थे. स्वरा जब भी अमित से देरी का कारण पूछती तो उत्तर श्रेया देती, ‘‘हां दीदी, जीजू तो समय पर लेने के लिए आ गए थे किंतु मेरा मन कुल्फी खाने का कर रहा था और मार्केट वहां से दूर भी बहुत है. अब समय तो लगता ही है न.’’ और कभी कौफी का बहाना, कभी ट्रैफिक का बहाना. स्वरा इन सब बातों का मतलब समझती थी. ‘‘और चाय,’’ वह धीमे से पूछती.

खेती को बनाएं फायदेमंद

लेखक- श्रीराम सिंह,

कृषि विज्ञान केंद्र, बरकछा, मीरजापुर वर्तमान समय में पूरी दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में है. इस वजह से देश में सभी कारोबार ठप हैं. सभी के कामधंधों पर भी खासा असर पड़ रहा है, परंतु खेतीबारी का काम ऐसा है, जो समय से नहीं हुआ तो फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ेगा. साथ ही, देश की माली हालत भी खराब हो जाएगी. ऐसे समय में आज हम लोग कृषि उत्पादन में आए ठहराव को दूर करने और कम लागत में टिकाऊ खेती के लिए जरूरी बातों पर चर्चा करेंगे, जिस से किसानों को अपनी फसल से बेहतर उपज मिल सके. गरमी में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए. ऐसा करने से खेत की पानी सोखने की कूवत बढ़ेगी,साथ ही नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का सफाया होगा और फायदेमंद कीटों को पनपने का मौका मिलेगा.

इस से कीटनाशकों पर होने वाले गैरजरूरी खर्च में कमी आएगी.

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* बरसात के पानी को सहेजने का इंतजाम करना चाहिए. खेत की उपजाऊ मिट्टी को बह कर जाने से रोकने के लिए मजबूत व ऊंची मेंड़ बनानी चाहिए. पानी रोकने के उपाय करने चाहिए. पहली बरसात का पानी खेत में जरूर रोकें.

* जिस फसल की बोआई करनी हो, उस की क्षेत्र के लिए स्वीकृत प्रजातियों के आधार पर या प्रमाणित बीज की ही बोआई करें. * हमेशा खेत की मिट्टी की जांच के आधार पर खेत में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल करें.

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* धान और गेहूं फसल चक्र में हरी खाद का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए.

* मृदा स्वास्थ्य सुधार के लिए कार्बनिक खादों, जैविक खाद/जैविक उर्वरक, दलहनी फसलों का इस्तेमाल जरूर करें.

* फसलों की सिंचाई पलेवा या पारंपरिक तरीके से न करें. आधुनिक व सूक्ष्म सिंचाई के तरीकों जैसे टपक सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, रेन गन सिंचाई वगैरह का प्रयोग करें. इस से समय, मेहनत और पानी की बचत होगी और फसल से अच्छा उत्पादन मिलेगा.

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* खेती से ज्यादा आमदनी लेने के लिए फसल उत्पादन के साथ ही साथ पशुपालन, बागबानी, सब्जी उत्पादन, फलफूल, मत्स्यपालन, कुक्कुटपालन, मौनपालन वगैरह कामों को भीकरें.

* कम समय में तैयार होने वाली नकदी फसलें, जैसे तोरिया, आलू, प्याज, उड़द, मूंग, लोबिया, ग्वार, मशरूम उत्पादन जरूर करें.

* कम लागत में टिकाऊ व ज्यादा उत्पादन के लिए समेकित पोषक तत्त्व प्रबंधन, समेकित कीट व रोग प्रबंधन अपनाएं.

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* खेतों में कभी भी धान का पुआल, गेहूं के डंठल, भूसा वगैरह न जलाएं, उन्हें मिट्टी में ही मिला दें. इन बातों को अपनाने से खेती फायदेमंद, टिकाऊ होगी, मिट्टी और खेत का स्वास्थ्य ठीक होगा, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण व समुचित उपयोग होगा और खेत की मिट्टी की पानी सोखने की कूवत बढ़ेगी. फसल में कीट व बीमारियां कम लगेगीं. साथ ही, फसल पैदावार में बढ़ोतरी होगी. ऐसा होने से निश्चित रूप से गांव, जिला, प्रदेश व देश की तरक्की होगी, इसलिए किसानों से अनुरोध है कि इन बातों पर जरूर ध्यान दें और अपने खेतों में इन का इस्तेमाल करें.

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पैसिव सेफ्टी फीचर्स के अलावा हुंडई क्रेटा में और भी बहुत से एक्टिव सेफ्टी फीचर्स हैं जैसे कि व्हीकल स्टेबिलिटी मैनेजमेंट और इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल. ये दोनों सिस्टम इस बात का ख्याल रखते हैं कि आपकी कार हमेशा कंट्रोल में रहे चाहे जैसी भी सिचुएशन हो.

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नई हुंडई क्रेटा में पहाड़ों की सैर पर जाने के लिए भी खास फीचर दिया गया है, जिसके तहत आप पहाड़ी इलाकों को आसानी से नेविगेट कर सकते हैं. इस फीचर के जरिए आप अपने ट्रैवल का लुत्फ बिना किसी परेशानी के उठा सकते हैं. इसीलिए तो हम कहते हैं #RechargeWithCreta.

दलितों से इतना खार क्यों खाता है सवर्ण समाज

भारत के इतिहास में दलितों के विरूद्ध सवर्णों के विरूद्ध हिंसा की क्रूर घटनाएं तो भरी पड़ी ही हैं. हैरानी की बात यह है कि आजादी के बाद और एक बेहद संवेदनशील संविधान के बावजूद भी दलितों के खिलाफ सवर्णों की क्रूरता में जरा भी कमी नहीं आ रही. इस बात की गवाही साल दर साल रिकाॅर्ड किये जानेवाले आपराधिक आंकड़ें दे रहे हैं. देश के उस राज्य उत्तर प्रदेश में जहां चार चार बार दलित मुख्यमंत्री का शासन रहा है, वहां भी दलितों के विरूद्ध उत्पीड़न में किसी भी किस्म की जरा भी कमी नहीं आ रही, उल्टे यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो आॅफ इंडिया की साल 2018 की रिपोर्ट (अभी तक इसके बाद की नहीं आयी) के मुताबिक तो उत्तर प्रदेश में देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले दलितों के विरूद्ध सवर्णों के द्वारा की जाने वाली आपराधिक घटनाएं लगातार बढ़ रही है, कम से कम आंकड़े तो यही गवाही दे रहे हैं.

जहां तक दलितांे के विरूद्ध सवर्णों द्वारा पूरे देश में की जाने वाली आपराधिक घटनाओं का सवाल है तो साल 2016 में अनुसूचित जातियों के विरूद्ध अपराध की 10,426 घटनाएं हुई थीं, 2017 में ये बढ़कर 11,444 हो गईं और 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 11,924 हो गई. जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है तो यहां एससी/एसटी एक्ट आईपीसी सहित अपराध की दर 22.6 फीसदी सालाना है, वहीं राष्ट्रीय दर केवल 19 फीसदी है. इसी तरह दलित महिलाओं के विरूद्ध जहां अपराध की राष्ट्रीय दर 0.5 फीसदी है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह दर 1.3 फीसदी है. वयस्क दलित महिलाओं पर लज्जा भंग के इरादे से किये गये हमलों की दर भी जहां पूरे देश में 1.4 फीसदी सालाना है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह दर 1.6 फीसदी सालाना है. दलित बच्चियों के विरूद्ध जहां अपराध का राष्ट्रीय औसत 1.5 फीसदी है, वहीं उत्तर प्रदेश में यह दर 1.7 है.

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लेकिन दलितों के विरूद्ध सवर्णों की यह तमाम हिंसा अकेले उत्तर प्रदेश का किस्सा नहीं है. जून 2018 में अहमदाबाद से 110 किमी के फासले पर बेचारजी कस्बे में एक 13-वर्षीय दलित लड़के को सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि वह मोजरी पहने हुए था. कशीदाकारी की हुई परम्परागत जूतियों को मोजरी कहते हैं. इस साल 27 मई 2020 को 38-वर्षीय मिल वर्कर शिवन राजा मदुरै (तमिलनाडु) के निकट चेक्कानूरानी गांव के बस शेल्टर, जो स्थानीय बाजार के पास है, में आराम कर रहा था, तभी सवर्ण जाति के चार व्यक्ति अपनी मोटरसाइकिलों पर सवार वहां से गुजरे. राजा के कजिन ने उन्हें पहचान लिया और जल्दी से उनके सम्मान में खड़ा हो गया, लेकिन बेध्यानी में राजा ऐसा न कर सका और यही उसका कसूर बन गया. चारों व्यक्तियों ने अपनी मोटरसाइकिलों को मोड़ा और बस शेल्टर पर आकर इस गुस्ताखी की वजह मालूम की. राजा ने माफी मांगी जो पर्याप्त नहीं थी, इसलिए वह अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागा.

समूह ने उसका पीछा किया, उस पर पत्थर बरसाए, उसे व उसकी जाति को गालियां दीं . राजा का सिर फट गया, खून बहने लगा और वह बेहोश हो गया. चारों व्यक्ति वहां से चले गये. अगर राजा को समय पर मेडिकल ऐड नहीं मिलती तो वह मर गया होता. इस साल जुलाई में कर्नाटक के विजयपुरा जिले में एक दलित ने भूलवश एक सवर्ण जाति के व्यक्ति की मोटरसाइकिल को स्पर्श कर दिया था. इस ‘अपराध’ के लिए उसे व उसके परिवार को नंगा करके पीटा गया. पिछले माह यानी अगस्त में ढेंकनाल जिले (ओडिशा) के गांव कतेनी में 40 दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार किया गया क्योंकि एक 15-वर्षीय दलित लड़की ने एक सवर्ण परिवार के किचन गार्डन से फूल तोड़ लिया था. मामूली व नजरंदाज करने योग्य बातें- मोटरसाइकिल को क्यों छुआ, फूल क्यों तोड़ा, सम्मान में खड़े क्यों नहीं हुए, मूंछें ऊपर को क्यों कीं, मोजरी क्यों पहनीं, बरात घोड़ी पर क्यों निकाली, सनग्लास क्यों लगाये- दलितों पर हमला करने की वजह बन जाती हैं.

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अब तो सड़कों का यह गुस्सा सोशल मीडिया पर भी निकाला जा रहा है. गुजरात के ढोलका कस्बे के एक दलित युवक ने अपने फेसबुक पेज पर अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द जोड़ लिया था, जिसे क्षत्रिय अपनी परम्परागत बपौती समझते हैं. फिर क्या था, दलितों व सवर्णों में ‘भयंकर वर्चुअल युद्ध’ हुआ. आखिर दलितों के विरूद्ध सवर्णों की इस गुस्से की वजह क्या है? दलितों की छोटी छोटी सफलताएं और किसी भी दूसरे इंसान की तरह दलितों द्वारा भी महत्वाकांक्षाएं पालना. सवर्णों को लगता है कि वह दलितों से पिछड़ते जा रहे हैं और यह सब आरक्षण व्यवस्था के कारण हो रहा है. दलित लेखक व एक्टिविस्ट चंद्रभान प्रसाद का कहना है, “युवा दलित महिला व पुरुष अधिक से अधिक की महत्वाकांक्षा कर रहे हैं. पहले हम देखते थे कि दुल्हन अपनी सुसराल नंगे पांव आती थी. आज दलित परिवार पर्याप्त बचत कर रहे हैं कि एसयूवी पर खर्च करके दुल्हन को गर्व के साथ घर पर लायें. लेकिन यह बात सवर्ण स्वीकार नहीं कर पा रहे. इसलिए जहां भी मौका मिलता है, वे दलितों पर बड़ी क्रूरता से पिल पड़ते हैं.”

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सोशल मीडिया के दौर में दलितों के विरुद्ध हिंसा में जबरदस्त इजाफा हुआ है. एनजीओ एविडेंस तमिलनाडु में दलित समुदाय पर होने वाले हमलों को ट्रैक करती है. इसके प्रमुख विंसेंट राज उर्फ कथीर का कहना है कि तमिलनाडु में दलितों पर आमतौर से सालाना 1200 हमले रिकॉर्ड किये जाते हैं जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत (यानी 120) घातक व गंभीर होते हैं, लेकिन पिछले पांच माह में 150 घातक हमले सामने आये हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि एससी/एसटी एक्ट के प्रावधान इतने सख्त हैं कि अगर इन्हें ईमानदारी से लागू किया जाये तो दलितों पर हो रहे अत्यचारों को नियंत्रित करना संभव हो सकता है. इस कानून के तहत हर राज्य में मोनिटरिंग कमेटी के गठन का प्रावधान है,लेकिन अधिकतर राज्यों में यह समिति है ही नहीं और जिनमें है वह कुछ काम नहीं करतीं. पुलिस भी उचित प्रावधानों का प्रयोग करने की इच्छुक प्रतीत नहीं होती. जांचें चलती रहती हैं, शिकायतें वापस लेने का दबाव बनाया जाता है …और दलितों पर अत्याचार जारी रहते हैं. पुलिस और प्रशासन की दलितांे के लिए बने कानूनों के प्रति उदासीनता इस बढ़ती हिंसा का सबसे बड़ा कारण है.

बिहार विधानसभा चुनाव-2020 वर्चुअल रैलियां: मनमानी दावे

बारह अक्टूबर 2020 को जब बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपनी पहली वर्चुअल रैली की, तो उनकी पार्टी ने दावा किया कि उनकी इस रैली को राज्य में 25 लाख से अधिक लोगों ने देखा. लेकिन जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) के इस दावे को सिवाय उसके किसी और ने नहीं स्वीकारा. सबसे पहले उसके इस दावे को विरोध विपक्षी गठबंधन के मुखिया तेजस्वी यादव ने खारिज किया. इसके बाद तमाम दूसरी पार्टियों ने भी एक एक करके इस दावे पर नाक भौंह सिकोड़े. हालांकि भाजपा ने जेडीयू के इस दावे को खारिज नहीं किया, लेकिन उसने बढ़ चढ़कर इसका बचाव भी नहीं किया, जिस आक्रामक तरीके से वह अपने दावों का करती है. मतलब साफ है कि भाजपा भी जेडीयू के इस दावे से असहमत हैं.

लेकिन कोई सहमत हो या असहमत, बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनाव इसी तरह के दावों प्रतिदावों से दो चार रहेंगे. चूंकि फिलहाल भाजपा को छोड़कर बाकी राजनीतिक पार्टियां इन डिजिटल गतिविधियों में बहुत सिद्धहस्त भी नहीं हैं, इसलिए वे आपस में एक दूसरे के दावों की आराम से पोल भी खोलती रहेंगी. लेकिन चाहे पोल खोल जाए या चोरी पकड़ी जाए राजनीतिक पार्टियों के पास कोविड-19 के साये में चुनाव लड़ने का और कोई बेहतर तरीका नहीं है. कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोरोना जैसी महामारी का अचानक दुनिया में शिकंजा नहीं कसा होता तो भी एक न एक दिन चुनावों का डिजिटल होना तय था. लेकिन कोरोना की त्रासदी ने इन्हें तुरत फुरत डिजिटल कर दिया है. नजीतजन फिलहाल ज्यादातर राजनीतिक पार्टियांे की तमाम डिजिटल गतिविधियां नौसिखियों जैसी ही है.

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भले इस त्रासदी ने राजनेताओं को व्यवहारिक तरीके से तुरत फुरत में वर्चुअल रैलियां करना सिखा दिया हो, लेकिन यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि देश ही नहीं अभी ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां भी वर्चुअल राजनीति का वर्णमाला ही सीख रही हैं. अगर केंद्र में भाजपा को छोड़ दें और राज्य में तमिलानाडु में डीएमके को, तो देश की ज्यादातर पार्टियां अभी भी अपनी डिजिटल उपस्थिति और डिजिटल रंगढंग में बेढब लगती हैं. अभी भाजपा को छोड़कर ज्यादातर पार्टियां डगडगमाते हुए ही इस जमीन में अपनी जगह बना रही हैं. निश्चित रूप से बिहार देश में राजनीतिक डिजिटलीकरण की शुरुआत को बहुत बड़ा केंद्र बन गया है. हालांकि बिहार विधानसभा की मौजूदा गहमागहमी में वर्चुअल रैलियों का जो सिलसिला शुरु हुआ है, वह पहली बार नहीं हुआ बल्कि इसके पहले भी सैकड़ों वर्चुअल रैलियां सम्पन्न हो चुकी हैं.

लेकिन बिहार के पहले की तमाम वर्चुअल रैलियों में हारने, जीतने का दांव नहीं लगा था. जबकि मौजूदा बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे अपनी वर्चुअल कवायद पर बहुत हद तक निर्भर रहेंगे. शायद भाजपा ही इस बात को महीनों पहले से जानती रही है. इसलिए उसने बिहार विधानसभा चुनाव को पूरी तरह से डिजिटल जंग में तब्दील कर दिया है. भाजपा ने 9,500 से ज्यादा आईटी सेल के प्रमुख सिर्फ बिहार चुनाव के लिए नियुक्त किये हैं, जबकि 72000 व्हाट्एप ग्रुप तैयार किये हैं. जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही है, तब तक भाजपा बिहार में 80 से ज्यादा वर्चुअल रैलियां कर चुकी हैं, जिसमें करीब 60 रैलियां उसने बिहार चुनाव की घोषणा के पहले ही कर ली थी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कितनी तैयारी के साथ डिजिटल राजनीति कर रही है.

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वैसे तो यहां दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी डिजिटल हथियार के साथ जंग में उतरी हैं, लेकिन भाजपा के जैसा न तो उनके पास डिजिटल गोलाबारूद है और न ही इतनी कमिटेड सैनिक, जो डिजिटल जंग में माहिर हों. बिहार में भाजपा के बाद जेडीयू के पास करीब 5000 लोगों का डिजिटल चुनावी अमला है और आरजेडी के पास इससे थोड़ा बड़ा करीब 7000 लोगों का डिजिटल स्टाफ है, जो इस जंग में के वार रूम में तैनात हैं. कांग्रेस हालांकि राष्ट्रीय पार्टी है लेकिन बिहार में आधुनिक तरीके से यानी डिजिटल तरीके से चुनाव लड़ने के लिए उसके पास न तो मैनपावर है और न ही संसाधन. हालांकि इसके बाद भी वह पूरे जोश खरोस के साथ करीब 1000 डिजिटल कार्यकर्ताओं के साथ चुनाव मैदान में है.

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इस बार बिहार में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं, सबकी सब अपनी डिजिटल गतिविधियों पर ही ज्यादा से ज्यादा निर्भर हैं. क्योंकि पारंपरिक रैलियों से लेकर चुनाव प्रचार तक के लिए इतनी लंबी चैड़ी गाइडलाइन है कि न तो उसका पालन करना आसान है और न ही लोग अभी तक पहले की तरह की रैलियों का हिस्सा होने के लिए तैयार हैं. सभी पार्टियां इन चुनाव में डिजिटल हथियारों से लैस हैं, लेकिन हम इस बात को भलीभांति जानते हैं कि जंग सिर्फ हथियार नहीं जिताते बल्कि हथियारों का बेहतर इस्तेमाल जंग जिताता है. इस नजर से देखें तो भाजपा के मुकाबले दूसरे सभी राजनीतिक पार्टियां राजनीति के डिजिटल अखाड़े में बहुत पिछड़ी हुई हैं. शायद यही वजह है कि जब जेडीयू ने दावा किया कि नितीश कुमार की रैली को 25 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा है, तो विरोधी इस दावे का मजाक उड़ाने लगे और जेडीयू में वह सलाहियत नहीं थी कि वे अपने आपका बचाव कर सकती. जो विभिन्न आंकड़े आये हैं, उनके हिसाब से बिहार में नितीश कुमार की पहली वर्चुअल रैली काफी हद तक हिट रही है, बावजूद इसके इसे सिर्फ 10 लाख लोगों ने ही इसे देखा है, जो विभिन्न तथ्यों से साबित हो जाता है.

दुलहन और दिलरुबा -भाग 3: इज्जत और हत्या की एक अनोखी कहानी

‘‘लगभग एक हफ्ता पहले की बात है.’’

‘‘उस ने यह तो बताया होगा कि दूल्हा कौन था, बारात कहां से आई थी, दुलहन कौन थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘बारात रहीमपुर वापस जा रही थी.’’

बाकी दुलहन वगैरह के बारे में उस ने मुझे कुछ नहीं बताया. मेरे लिए इतना ही काफी था. मुझे दूल्हे के गांव का पता चल गया था. मैं ने दिलरुबा से कुरेदकुरेद कर बहुत सारी बातें पूछीं, लेकिन और कोई काम की बात पता नहीं लग सकी. मैं ने कहा कि उस के शाहजी के हत्यारे बहुत जल्द पकड़े जाएंगे.

मैं ने एक महिला मुखबिर को बुलाया, जिस का नाम जकिया था. वह बहुत चालाक औरत थी. घर के पूरे भेद निकाल लाती थी. मैं ने उसे पूरी बात समझा कर रहीमपुर गांव भेज दिया. उस ने मुझे जो नई बात बताई, उस में मुझे दम नजर आया.

उस ने बताया था कि रहीमपुर गांव के खिजर की शादी भलवाल गांव की सलमा से हुई थी. रहीमपुर से गांव भलवाल अधिक दूर नहीं था, गरमियों के दिन थे, इसलिए लड़की वालों ने लड़की को शाम को विदा किया था. दुलहन के साथ लगभग 15-16 आदमी थे. उन दिनों दुलहनें डोली में जाया करती थीं.

4 कहार उस डोली को उठाते थे. सलमा भी डोली में विदा हुई थी. डोली के आगे खिजर घोड़ी पर सवार हो कर चल रहा था. जब सभी रहीमपुर के निकट पहुंचे तो दूल्हा यह कह कर घोड़ी दौड़ा कर रहीमपुर चला गया कि वह दुलहन के स्वागत के लिए सब को इकट्ठा करने जा रहा है.

दुलहन की डोली जब धुर्रे शाह के इलाके में पहुंची तो उस ने डोली रोक ली. उस समय उस के हाथ में लाठी थी. बारात के लोग उसे देख कर डर गए. बाराती यह सोच रहे थे कि यह सब की जेबें खाली करा लेगा, लेकिन उस ने दुलहन को ले जाने का इरादा किया. उन्होंने धुर्रे शाह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने दुलहन को डोली से बाहर निकाल लिया.

दुलहन सलमा बहुत समझदार और हिम्मत वाली लड़की थी. उस ने धुर्रे शाह से कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम सैयद हो और मैं भी सैयद हूं. तुम्हें एक सैयदजादी की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए और दोनों परिवारों का मानसम्मान करना चाहिए. इस के बाद भी अगर तुम ताकत के नशे में चूर हो तो मेरी एक शर्त है.’’

‘‘क्या शर्त है बताओ? अगर मानने लायक हुई तो जरूर मान लूंगा.’’ धुर्रे शाह ने कहा.

‘‘ऐसा है, मुझे हाथ भी न लगाना और इस समय मुझे घर जाने दो. घर जा कर मैं अपने पति को यह घटना सुनाऊंगी. अगर उस के अंदर जरा भी हिम्मत और ताकत हुई तो वह आ कर तुम से निपट लेगा और अगर उस में हिम्मत नहीं हुई तो मैं उसे छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. फिर तुम मुझ से निकाह कर लेना.’’ सलमा ने कहा.

धुर्रे शाह ने उस का यह चैलेंज स्वीकार कर लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 सप्ताह का समय देता हूं. अगर इस बीच तेरे पति ने आ कर मेरी हत्या नहीं की तो मैं तेरे घर आ कर उस की हत्या कर के तुझे उठा लाऊंगा और बिना निकाह के घर में पत्नी बना कर रखूंगा.’’

इस के बाद सलमा की डोली घर आ गई. सलमा ने पति खिजर से पूरी बात बता दी. उस के पति ने कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं धुर्रे शाह से निपट लूंगा और तुम्हारी इज्जत की पूरी रक्षा करूंगा.’’

उस के बाद खिजर ने मौके पर मौजूद गवाह रिश्तेदारों से यह बात कह दी, साथ ही यह भी कहा कि यह बात किसी को भी न बताएं. लेकिन सलमा पेट की हल्की थी, उस ने अपनी सहेली से सब बता दिया. उसी सहेली के द्वारा यह बात पुलिस की मुखबिर जकिया तक पहुंच गई थी.

जकिया ने मेरा काम आसान कर दिया. मुझे पूरा यकीन था कि धुर्रे शाह की हत्या खिजर ने ही की थी. मैं ने पुलिस टीम खिजर को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी. पर वह घर पर नहीं मिला. घर वालों से पूछा गया तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जाहिर की. तब मैं ने एक मुखबिर की ड्यूटी उस के घर पर लगा दी. 3 दिनों बाद मुझे उस मुखबिर ने सूचना दी तो मैं रात 11 बजे एएसआई और 4 सिपाहियों को ले कर खिजर के घर पहुंच गया.

मैं ने खिजर के घर दस्तक दी तो कुछ देर बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाजा खोला. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. वह उस का बाप था. मैं ने उस से खिजर के बारे में पूछा तो उस ने मेरी ओर बेबसी से देखा और अंदर गया और एक जवान आदमी को ले कर बाहर आया. मुखबिर ने कहा कि यही खिजर है.

खिजर ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से धुर्रे की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस की हत्या की थी. इस के बाद अपने घर से वह कुल्हाड़ी भी ले आया, जिस से उस ने धुर्रे की हत्या की थी.

थाने में खिजर से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘जब सलमा ने मुझे पूरी बात बताई तो मेरा खून खौल उठा. मैं ने उसी समय धुर्रे शाह की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन धुर्रे शाह इतना बड़ा बदमाश था कि उस की आसानी से हत्या नहीं की जा सकती थी. इसलिए मैं मौके की तलाश में था. मुझे पता था कि अगर मैं ने धुर्रे शाह की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर के सलमा को उठा ले जाएगा. मैं ने बहुत ही अच्छी कुल्हाड़ी बनवा रखी थी और उसे हमेशा अपने साथ रखता था.’’

घटना वाले दिन रात 8-9 बजे वह अपने घर जा रहा था. अंधेरे में अचानक उसे गंदे नाले के पास धुर्रे शाह दिखाई दिया. वह गाना गा रहा था और नशे के कारण डगमगा कर चल रहा था. उस ने इस मौके को उचित समझा और उस के पास जा कर कुल्हाड़ी का एक जोरदार वार उस की गरदन पर कर दिया.

धुर्रे शाह के मुंह से हाय की आवाज निकली और वह गिर पड़ा. खिजर ने 2 वार और किए, ढलान होने के कारण वह नाले में गिर गया. उस ने इधरउधर देखा कोई दिखाई नहीं दिया. घर आया और कुल्हाड़ी धो कर घर में दीवार पर टांग दी. उस ने अपनी पत्नी और पिता को सब कुछ बता दिया.

जो मारा गया था, वह समाज के लिए एक तकलीफ देने वाले फोड़े की तरह था. उस ने शरीफ लोगों का जीना हराम कर रखा था. मुझे खिजर पर दया आ रही थी, उस की अभीअभी शादी हुई थी. मैं नहीं चाहता था कि वह किसी मुसीबत में फंसे. मैं ने जो केस तैयार किया, उस में 2 कमियां छोड़ दीं, जो खिजर को मुकदमे में मदद कर सकती थीं.

मुकदमा चला, खिजर का वकील कमजोर था, मेरी छोड़ी हुई 2 कमियों का वह लाभ नहीं उठा सका. उसे जज ने 7 साल की सजा सुनाई. मैं ने खिजर के बाप को समझाया कि वह सेशन में अपील करे और कोई दूसरा समझदार वकील करे. उस ने यही किया. सेशन कोर्ट में मुकदमा चला तो उस काबिल वकील ने मेरी छोड़ी हुई कमियों का पूरा फायदा उठाया, जिस के बाद कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया.

 

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