बारह अक्टूबर 2020 को जब बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपनी पहली वर्चुअल रैली की, तो उनकी पार्टी ने दावा किया कि उनकी इस रैली को राज्य में 25 लाख से अधिक लोगों ने देखा. लेकिन जेडीयू (जनता दल यूनाइटेड) के इस दावे को सिवाय उसके किसी और ने नहीं स्वीकारा. सबसे पहले उसके इस दावे को विरोध विपक्षी गठबंधन के मुखिया तेजस्वी यादव ने खारिज किया. इसके बाद तमाम दूसरी पार्टियों ने भी एक एक करके इस दावे पर नाक भौंह सिकोड़े. हालांकि भाजपा ने जेडीयू के इस दावे को खारिज नहीं किया, लेकिन उसने बढ़ चढ़कर इसका बचाव भी नहीं किया, जिस आक्रामक तरीके से वह अपने दावों का करती है. मतलब साफ है कि भाजपा भी जेडीयू के इस दावे से असहमत हैं.

लेकिन कोई सहमत हो या असहमत, बिहार विधानसभा के मौजूदा चुनाव इसी तरह के दावों प्रतिदावों से दो चार रहेंगे. चूंकि फिलहाल भाजपा को छोड़कर बाकी राजनीतिक पार्टियां इन डिजिटल गतिविधियों में बहुत सिद्धहस्त भी नहीं हैं, इसलिए वे आपस में एक दूसरे के दावों की आराम से पोल भी खोलती रहेंगी. लेकिन चाहे पोल खोल जाए या चोरी पकड़ी जाए राजनीतिक पार्टियों के पास कोविड-19 के साये में चुनाव लड़ने का और कोई बेहतर तरीका नहीं है. कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोरोना जैसी महामारी का अचानक दुनिया में शिकंजा नहीं कसा होता तो भी एक न एक दिन चुनावों का डिजिटल होना तय था. लेकिन कोरोना की त्रासदी ने इन्हें तुरत फुरत डिजिटल कर दिया है. नजीतजन फिलहाल ज्यादातर राजनीतिक पार्टियांे की तमाम डिजिटल गतिविधियां नौसिखियों जैसी ही है.

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