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दुलहन और दिलरुबा -भाग 2: इज्जत और हत्या की एक अनोखी कहानी

मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था.  मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’

‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.

मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’

रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.

‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’

पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.

मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’

रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’

‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’

रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’

मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’

मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’

‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.

कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.

मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’

उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’

वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.

दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’

सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’

‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.

धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’

‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’

इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’

‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.

मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’

‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’

मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था.  मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’

‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.

मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’

रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.

‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’

पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.

मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’

रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’

‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.

‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’

रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’

मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’

मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’

‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.

कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.

मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’

उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’

मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’

वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.

दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’

सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’

‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.

धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’

‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’

इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’

‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.

मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’

‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’

यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’

इन फसलों की ऐसे करें देखभाल

गरमी के मौसम में बहुत से किसान बड़े पैमाने पर कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती करते हैं जैसे तोरई, कद्दू, खीरा, लौकी, करेला, खरबूजा, तरबूज आदि की उचित देखभाल के लिए कुछ जरूरी सु?ाव इस तरह हैं :

फल मक्खी कीट नियंत्रण

ये कीट फलों में दाग और सड़न पैदा कर फलों को बरबाद कर देते हैं.

जैविक नियंत्रण : फ्रूट फ्लाई ट्रैप 10 से 15 प्रति एकड़ लगाएं और 15-15 दिन के बाद ल्योर बदलते रहें. अगर फ्रूट फ्लाई ट्रैप नहीं मिल पा रहा हो, तो केले के छिलके में मैलाथियान या डाईक्लोरोवास की कुछ बूंदें डाल कर खेत में 20-25 जगह बिखेर दें.

रासायनिक नियंत्रण : इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

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रासायनिक नियंत्रण : इमिडाक्लोप्रिड 17.8 फीसदी 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी या मैलाथियान 50 फीसदी ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

रस चूसक कीट या सूक्ष्म कीट

जैविक नियंत्रण : पीला चिपचिपा ट्रैप यानी पाश 20 से 25 प्रति एकड़ लगाएं. घर पर पीला चिपचिपा पाश तैयार करने के लिए टिन या कनस्तर के डब्बों को 4 भाग में काट लें और हर भाग पर पीले पेंट से पुताई कर लें. सूखने के बाद उस में ग्रीस लगा कर खेतों में 20-25 जगह टांग दें और 5 दिन बाद ग्रीस लगाते रहें.

भिंडी की फसल सुरक्षा तना गलन रोग

जैविक नियंत्रण : ट्राइकोडर्मा और स्यूडोमोनास 5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से जड़ों के पास इस्तेमाल करें.

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रासायनिक नियंत्रण : कौपर- औक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लिटर के हिसाब से जड़ों के पास इस्तेमाल करें.

फल बेधक कीट

जैविक नियंत्रण : * फैरोमौन ट्रैप लगाएं.

नीम का तेल 4 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से डिटर्जेंट मिला कर छिड़काव करते रहें.

मेटाराइजियम या बीटी 5 फीसदी गुड़ के घोल में मिला कर छिड़काव करें.

रासायनिक  नियंत्रण : इंडोक्साकार्ब 14.5 फीसदी की 0.5 मिलीलिटर दवा प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

बैगन की फसल सुरक्षा तना एवं फल बेधक कीट

इस में भिंडी की तरह ही जैविक नियंत्रण का तरीका इस्तेमाल करना चाहिए.

रासायनिक नियंत्रण : इमामेक्टिन बेंजोएट 5 ग्राम को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

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आम फसल की सुरक्षा

आम में 3 प्रमुख कीट ज्यादा प्रभावित करते हैं : फुदका

जैविक नियंत्रण : मेटाराईजियम  5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

नीम औयल 4 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से डिटर्जेंट मिला कर छिड़काव करें.

रासायनिक नियंत्रण : प्रोफेनोफास कीटनाशक 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

मिलीबग

सफेद गुझिया कीट तना और पत्तियों पर चिपक कर नुकसान पहुंचाती है.

जैविक नियंत्रण : 50 फीसदी अलकोहल का छिड़काव करें और उस के बाद मेटाराईजियम का छिड़काव करें.

रासायनिक नियंत्रण : प्रोफेनोफास कीटनाशक 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

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फल मक्खी नियंत्रण

इस का नियंत्रण ऊपर बताए गए कद्दूवर्गीय फसलों की तरह के उपाय से करें.

रोग

पत्तियों पर काला

फफूंद लगना

रस चूसक कीट अपने शरीर से मधुरस छोड़ते हैं, जिस से पत्तियों पर फफूंद लग  जाती हैं.

जैविक नियंत्रण : नीम के साबुन का घोल बना कर छिड़काव करें.

रासायनिक नियंत्रण : कार्बंडाजिम फफूंदनाशक 0.5 फीसदी का छिड़काव करें.

गन्ना अगेती तना बेधक प्रबंधन

जैविक नियंत्रण : बिवेरिया या मेटाराईजियम 5 फीसदी का छिड़काव करें.

रासायनिक नियंत्रण : कीटनाशक क्लोरांट्रानिलीप्रोल 150 मिलीलिटर प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें.

दलहन और तिलहन

मूंग, उड़द, मूंगफली और सूरजमुखी.

रस चूसक कीट

जैविक नियंत्रण : अगर फसल में  कीट नहीं आया है तो नीम तेल 1500 पीपीएम की 45 मिलीलिटर दवा और एक पाउच  शैंपू प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर 15-15 दिन के अंतराल पर इस का छिड़काव करते रहें.

रासायनिक नियंत्रण : रस चूसक कीट की रोकथाम करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें.

दुलहन और दिलरुबा -भाग 1: इज्जत और हत्या की एक अनोखी कहानी

अपने औफिस में बैठा मैं एक सबइंसपेक्टर से किसी मामले पर बात कर रहा था, तभी 2 आदमी यह सूचना ले कर आए कि गंदे नाले में एक लाश पड़ी है. सुबहसवेरे लाश की सूचना पर मैं हैरान रह गया. मैं ने एक एएसआई और 2 सिपाहियों को उन लोगों के साथ भेज दिया. कुछ देर बाद एक सिपाही हांफता हुआ मेरे पास आ कर बोला, ‘‘सर, वह लाश तो धुर्रे शाह की है.’’

‘‘तुम्हें पूरा यकीन है कि वह लाश धुर्रे शाह की ही है?’’ मैं ने उसे घूरते हुए पूछा.

धुर्रे शाह इलाके का ऐसा हिस्ट्रीशीटर बदमाश था, जिस के नाम से बड़ेबड़े गुंडेबदमाश कांपते थे.

‘‘बिलकुल सर, उस पर धारदार हथियार से वार किए गए हैं.’’ सिपाही ने कहा.

मैं भी उस स्थान पर पहुंचा, जहां धुर्रे शाह की लाश पड़ी थी. मेरे पहुंचने से पहले एएसआई गफ्फार ने लाश नाले से बाहर निकलवा ली थी. मैं ने लाश देखी तो वह सचमुच धुर्रे शाह की थी. उस ने रेशमी कुर्ता पहना हुआ था. एक गहरा घाव उस की गरदन पर था, दूसरा घाव उस की कालर बोन पर था, तीसरा घाव उस की पसलियों पर था.

उस की जेब की तलाशी ली गई तो उन में से कुछ छोटे भीगे नोट निकले. जरूरी काररवाई कर के मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मैं सोच में पड़ गया कि धुर्रे शाह जैसे हिस्ट्रीशीटर बदमाश की हत्या किस ने की होगी?

धुर्रे शाह रहीमपुर का रहने वाला था. उस का असली नाम पता नहीं था, सब उसे धुर्रे शाह कहते थे. वह मेलों में जाने का बड़ा शौकीन था. अपने लंबे बालों में वह एक पटटी बांधता था और कंधे पर रेशमी पटका रखता था. ढोल की थाप पर वह मेले तक नाचता हुआ जाता था. रात में उस के इलाके में उस का राज्य होता था. लोग डर की वजह से उस के इलाके से गुजरते नहीं थे. कोई घोड़ातांगा उधर से गुजरता तो चालक घोड़े को भगाता था. धुर्रे शाह दौड़ कर पीछे से घोड़े की बाग पकड़ लेता था, इसलिए लोग उसे घोड़े शाह भी कहते थे.

धुर्रे शाह की हत्या से लोगों ने राहत की सांस ली थी. लेकिन हमारी कोशिश उस के हत्यारों तक पहुंचने की थी. मेरा विचार था कि उसे अपराधी किस्म के लोगों ने ही मारा होगा, इसलिए मैं ने तफ्तीश ऐसे ही लोगों से शुरू की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत अधिक खून बह जाने से हुई थी.

यह भी पता चला था कि उस ने देशी शराब पी रखी थी. मौत का समय आधी रात के लगभग बताया गया था. उस का कोई वारिस नहीं आया, इसलिए उस की लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

मैं ने अपने मुखबिरों से पता कराया कि हत्या से पहले उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था. मेरा एक मुखबिर था, जो छोटामोटा अपराधी भी था, लेकिन वह जबान का पक्का था. वह अंदर तक की खबरें निकाल कर ले आता था. उस ने मुझे जो बातें बताई थीं, उस से मुझे लगा कि हत्यारा जल्द ही गिरफ्तार हो जाएगा.

उस ने बताया था कि धुर्रे शाह में बहुत सी बुराइयां भी थीं. वह देशी शराब बहुत पीता था और वेश्याओं के पास भी जाता था. उस समय एक कोठे पर नईनवेली वैश्या दिलरुबा आई थी, जो उसे बहुत पसंद थी. वह उस पर दिल खोल कर पैसे लुटाता था. वह जब भी उस के कोठे पर जाता था, किसी की हिम्मत उस के सामने ठहरने की नहीं होती थी.

अगर वहां पहले से महफिल जमी होती थी तो धुर्रे शाह के पहुंचते ही सब से माफी मांग कर महफिल खत्म कर दी जाती थी. हत्या से 10-12 दिन पहले धुर्रे शाह अपने कुछ साथियों के साथ दिलरुबा के कोठे पर गया था. उस समय एक और अपराधी रंगू वहां पहले से बैठा था.

मैं रंगू को जानता था. वह धुर्रे शाह की टक्कर का बदमाश था. लेकिन ताकत और दिलेरी में धुर्रे शाह से कम था. रंगू और धुर्रे शाह की आपस में कोल्ड वार चल रही थी. लेकिन दोनों में से कोई भी खुल कर सामने नहीं आता था, जबकि रंगू उस से दबने वाला आदमी नहीं था.

धुर्रे शाह के आने पर दिलरुबा ने महफिल खत्म होने की बात कही तो रंगू ने कहा कि वह नाचगाना जारी रखे और किसी की परवाह न करे. इस पर दिलरुबा ने बड़े अदब से कहा, ‘‘माफ कीजिए सरकार, आप फिर कभी तशरीफ लाइए, शाहजी के आने पर महफिल खत्म कर दी जाती है.’’

‘‘यह वैश्या का कोठा है, किसी शाह का डेरा नहीं.’’ रंगू ने गुस्से से कहा, ‘‘यहां कोई भी आ सकता है. हम यहां पहले से बैठे हैं, इसलिए हमारा पहला हक बनता है. आप शाहजी को फिर कभी बुला लेना.’’

रंगू की इन बातों पर धुर्रे शाह को गुस्सा आ गया. उस ने फुरती से लंबा सा चाकू निकाल कर रंगू की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘चुपचाप यहां से निकल जा, नहीं तो गरदन काट कर रख दूंगा.’’

रंगू भी डरने वाला नहीं था. लेकिन मौत को गरदन पर देख कर वह उठा और चुपचाप चला गया. साथियों के सामने रंगू की बेइज्जती हो गई थी, इसलिए उस ने उसी समय कसम खाई थी कि वह इस अपमान का बदला ले कर रहेगा.

मुखबिर के जाने के बाद मैं ने एएसआई गफ्फार को बुला कर पूरी बात बताई. उस का भी मानना था कि धुर्रे शाह की हत्या रंगू ही ने की है. मैं ने एएसआई से कह दिया कि वह 3-4 सिपाहियों को ले कर रंगू के यहां जाए और उसे थाने ले आए. करीब 2 घंटे बाद वे रंगू को थाने ले आए. आते ही उस ने झुक कर सलाम कर के कहा, ‘‘क्या हुक्म आगा साहब, सेवक को कैसे याद किया?’’

‘‘मुझे चक्कर देने की कोशिश मत करना रंगू.’’ मैं ने कहा, ‘‘जो कुछ भी पूछूं, सीधी तरह से बता देना, तभी फायदे में रहोगे.’’

‘‘आप पूछिए सरकार, गलत बोलूं तो बेशक मेरी खाल उतार कर भूसा भरवा देना.’’ रंगू ने कहा.

‘‘तुम्हें पता है कि धुर्रे शाह मारा गया है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जी सरकार, उड़तीउड़ती खबर मैं ने भी सुनी है कि उस की हत्या हो गई है.’’ रंगू ने कहा.

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारी भी तो उस से दुश्मनी थी?’’

मेरे इतना कहते ही वह एकदम घबरा गया और नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मेरी भला उस से क्या दुश्मनी हो सकती थी? उस से तो सब डरते थे, मैं भी उस से बचता था.’’

Crime Story: 2 साल बाद

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पढ़ी लिखी ज्योति ने घर वालों की मरजी के खिलाफ रोहित से अंतरजातीय विवाह किया था. रोहित सरकारी नौकरी करता था, इसलिए ज्योति उस के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद पतिपत्नी के साथ ऐसा वाकया हुआ, जिस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी

उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले का एक गांव है बृजपुरा. इसी गांव के निवासी महेश सिंह यादव पेशे से किसान थे. उन का बड़ा बेटा रोहित पशु पालन

विभाग में नौकरी करता था. 9 जुलाई, 2020 की बात है. रोहित की पत्नी ज्योति की तबियत अचानक खराब हो गई थी. बुखार के साथ उस के पेट में भी दर्द था.

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ज्योति की तबियत खराब होने से रोहित परेशान था.. शाम हो गई थी. जब घरेलू उपायों से कोई लाभ नहीं हुआ तो घर वालों ने रोहित से ज्योति को कीरतपुर के किसी डाक्टर को दिखाने को कहा. क्योंकि बृजपुरा में कोई अच्छा डाक्टर नहीं था.

घर वालों की बात मान कर रोहित ने ज्योति से कहा, ‘‘चलो डाक्टर को दिखा आते हैं. रात में ज्यादा तबियत खराब हो गई तो किसे दिखाएंगे.’’

ज्योति डाक्टर के पास जाने के लिए तैयार हो गई.

ब्रजपुरा से कीरतपुर लगभग 5 किलोमीटर दूर था. रोहित अपनी मोटरसाइकिल से ज्योति को कीरतपुर के एक डाक्टर के क्लीनिक पर ले गया. ज्योति का चैकअप करने के बाद डाक्टर ने दवा दे दी और 2 दिन बाद आने को कहा.

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डाक्टर से दवा लेने के बाद रोहित पत्नी को ले कर अपने घर जाने के लिए चल दिया. लौटते समय रात हो गई थी.

रोहित की मोटरसाइकिल जब सिंहपुर नहर पुल की हुर्रइया पुलिया के पास पहुंची, तब तक रात के सवा 8 बजे थे. सड़क पर सन्नाटा था. ज्योति रोहित को पकड़े बाइक पर बैठी थी. उस ने कहा, ‘‘अंधेरे में मुझे डर लग रहा है. तुम गाड़ी तेज चलाओ जिस से हम घर जल्दी पहुंच जाएं.’’

रोहित कुछ कह पाता, तभी वहां घात लगाए बैठे हमलावरों ने उन पर हमला कर दिया. दोनों को जिस बात का डर था वही हुआ. ऐसा लग रहा था बदमाश जैसे उन दोनों का ही इंतजार कर रहे थे. अचानक हुए हमले से दोनों घबरा गए. रोहित ने मोटरसाइकिल की स्पीड बढ़ा कर वहां से भागने का प्रयास किया.

लेकिन हमलावरों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. तभी एक गोली रोहित के पेट में लगी और दोनों बाइक सहित सड़क पर गिर गए. कई गोली लगने से ज्योति गंभीर रूप से घायल हो गई थी. हमलावर 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए थे.

रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज सुन कर आसपास के ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंच गए. गांव वालों के वहां पहुंचने से पहले ही हमलावर निकल थे. कुछ ग्रामीणों ने घायल दंपति को पहचान लिया और बृजपुरा उन के घर फोन कर घटना की जानकारी दे दी.

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घटना की जानकारी मिलते ही रोहित के घर में कोहराम मच गया. छोटा भाई मोहित, पिता महेश व अन्य घर वाले गांव वालों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. ज्योति और रोहित सड़क किनारे बिजली के खंभे के पास लहूलुहान पड़े थे. इसी बीच किसी ने मैनपुरी थाना पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी थी.

सड़क पर बाइक सवार दंपति को गोली मारने की सूचना पर थाने में हड़कंप मच गया. घटनास्थल थाने से लगभग 7-8 किलोमीटर दूर था. इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कुछ ही देर में पुलिस टीम व एंबुलेंस के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने गंभीर रूप से घायल दंपति को एंबुलेंस से उपचार के लिए जिला अस्पताल में भिजवाया.

वारदात हैरान कर देने वाली थी

दंपति पर जानलेवा हमले की वारदात से गांव वालों में रोष था. उन के रोष को भांप कर थानाप्रभारी ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे कर स्थिति से अवगत करा दिया. खबर मिलते ही एएसपी मधुबन सिंह और सीओ अभय नारायण राय घटनास्थल पर पहुंच गए. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

घटनास्थल से पुलिस को जहां 2 खोखे मिले, वहीं घटनास्थल से लगभग 150 मीटर की दूरी पर भी एक खोखा मिला. पुलिस ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटा कर मौके की जरूरी काररवाई निपटाई. सीओ साहब ने गुस्साए ग्रामीणों को भरोसा दिया कि पुलिस हमलावरों को जल्द गिरफ्तार कर लेगी. उन के आश्वासन के बाद गांव वाले शांत हुए.

पुलिस बदमाशों की तलाश में जुट गई. लेकिन रात का समय होने के कारण बदमाशों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. हमलावरों ने दंपति को घायल करने के बाद उन की बाइक, नकदी व आभूषण को नहीं लूटा था. इस से पुलिस को आशंका हुई कि बदमाशों ने हमला लूटपाट के लिए नहीं किया, बल्कि इस के पीछे जरूर कोई रंजिश रही होगी.

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घटनास्थल से अधिकारी सीधे जिला चिकित्सालय पहुंचे. उन्होंने घायलों के बारे में डाक्टरों से जानकारी ली. डाक्टरों ने बताया कि रोहित के पेट में एक गोली लगी थी, जबकि ज्योति के शरीर में 6 गोलियां लगी थीं. घायल रोहित ने अधिकारियों को हमलावरों के नाम भी बता दिए.

अस्पताल में मौजूद रोहित के छोटे भाई मोहित ने रंजिश के चलते अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा, उस के बेटे गुलशन व हिमांशु मिश्रा, बृजेश के छोटे भाई अशोक मिश्रा तथा उस के 2 बेटों राघवेंद्र उर्फ टेंटा व रघुराई पर वारदात को अंजाम देने का आरोप लगाया.

घायल दंपति का जिला अस्पताल मैनपुरी में उपचार शुरू किया गया. उपचार के दौरान दोनों की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें मैडिकल कालेज सैफई रैफर कर दिया. पुलिस व घर वाले जब एंबुलेंस से घायल दंपति को सैफई ले जा रहे थे तो ज्योति की रास्ते में मौत हो गई. जबकि रोहित का सैफई पहुंचते ही इलाज शुरू हो गया. गोली उस के पेट में लगी थी जो पार हो गई थी.

औपरेशन के बाद चिकित्सकों ने रोहित को आईसीयू में भरती कर दिया था. रोहित की सुरक्षा के लिए थानाप्रभारी ने 2 सिपाही भी तैनात कर दिए गए थे.

रोहित के भाई मोहित ने रिपोर्ट में आरोप लगाया कि करीब 2 साल पहले ज्योति मिश्रा ने उस के भाई रोहित यादव के साथ अंतरजातीय प्रेम विवाह किया था, जिस से ज्योति के घर वाले उस के भाई रोहित व भाभी ज्योति से बहुत नफरत करते थे, उन्होंने कई बार धमकियां भी दी थीं. इसी के चलते उन लोगों ने घटना को अंजाम दिया.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उन के गांव में दबिश दी. लेकिन कोई भी आरोपी घर पर नहीं मिला. पुलिस ने बृजेश मिश्रा के परिवार के कुछ लोगों के साथ ही कई संदिग्धों को हिरासत में ले लिया. उन्हें कोतवाली ला कर पूछताछ की गई.

2 गांवों के बीच प्रेम विवाह को ले कर हुई इस खूनी घटना के बाद खुफिया विभाग भी सतर्क हो गया था. पुलिस दोनों गांव की स्थिति पर नजर बनाए हुए थी. जहां रोहित के घर पर मातम पसरा हुआ था, वहीं अंगौथा में आरोपी के घरों पर कोई नहीं था. दोनों गांवों में इस घटना के बाद से सन्नाटा पसरा हुआ था.

इस सनसनीखेज हत्याकांड के एक हफ्ते बाद भी पुलिस के हाथ खाली थे. पुलिस अब तक नामजद आरोपियों में से एक भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी.

हत्यारों द्वारा ज्योति पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. उस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस के अलावा सर्विलांस टीम, स्वाट टीम को भी आरोपियों की गिरफ्तारी के काम में लगाया गया. पुलिस की मेहनत रंग लाई और हत्याकांड के 3 नामजद आरोपियों को पुलिस ने दबिश के बाद उन के गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

16 जुलाई, 2020 को पुलिस ने ज्योति हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. एसपी अजय कुमार पांडेय ने प्रैसवार्ता आयोजित कर इस हत्याकांड का खुलासा किया. पता चला कि इस हत्याकांड को सम्मान की खातिर सगे भाई और 2 चचेरे भाइयों ने अंजाम दिया था.

घटना में नामजद 5 आरोपियों में से पुलिस ने ज्योति के सगे भाई गुलशन मिश्रा तथा 2 चचेरे भाइयों राघवेंद्र मिश्रा व रघुराई मिश्रा को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से 2 तमंचे व 5 कारतूस बरामद किए. तीनों हत्यारोपियों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. इस हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह थी—

थाना मैनपुरी के बृजपुरा और अंगौथा गांव अगलबगल हैं. बृजपुरा निवासी महेश सिंह के 2 बेटे व एक बेटी थी. बड़ा बेटा 25 वर्षीय रोहित यादव पशु पालन विभाग में नौकरी करता था. जबकि छोटा बेटा मोहित अभी बीएससी फर्स्ट ईयर में पढ़ रहा था.

वहीं अंगौथा निवासी बृजेश मिश्रा खेतीकिसानी करता था. गांव में उस की आटा चक्की भी थी. उस के 4 बेटे बेटियों में गुलशन व हिमांशु के अलावा ज्योति तीसरे नंबर की थी. गुलशन पिता के साथ आटा चक्की के काम में हाथ बंटाता था जबकि दूसरे नंबर का बेटा हिमांशु पुणे में नौकरी करता था.

रोहित यादव पशुपालन विभाग में अंगौथा मझरा स्थित पशु चिकित्सालय व कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में कार्य करता था. इसी सिलसिले में उस का आसपास के गांवों में आनाजाना लगा रहता था. वह पशुओं के इलाज के सिलसिले में पड़ोसी गांव अंगौथा भी जाता था. एक दिन जिस घर के पशुओं के इलाज के लिए रोहित आया था, उसी घर में पड़ोस में रहने वाली ज्योति आई हुई थी.

रोहित की नजर उस पर पड़ी. ज्योति सुंदर लड़की थी. वह उस का अनगढ़ सौंदर्य देख ठगा सा रह गया. उस ने पहली नजर में ही उसे दिल में बसा लिया.

ज्योति को भी अहसास हो गया कि रोहित उसे चाहत की नजरों से देख रहा है. रोहित कसी हुई कदकाठी का जवान युवक था. उसे देख कर 22 वर्षीय ज्योति का दिल भी तेजी से धड़कने लगा था. रोहित जब भी ज्योति के गांव जाता उस की मुलाकात ज्योति से हो जाती. दोनों ही एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते थे. जब दो युवा मिलते हैं तो जिंदगी में नया रंग घुलने लगता है.

दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करना चाहते थे. आखिर एक दिन ज्योति को मौका मिल ही गया. भाई और पिता आटा चक्की पर थे, मां घर के कामों में व्यस्त थी.

ज्योति ने जैसे ही रोहित को देखा वह उस के पास से निकली और चुपचाप उस के पास एक पर्ची गिरा दी. रोहित ने वह पर्ची उठा कर अपने पास रख ली. काम निपटाने के बाद रोहित ने रास्ते में पर्ची खोली तो उस में एक मोबाइल नंबर लिखा था. बिना देर किए रोहित ने वह नंबर डायल किया.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘मैं ज्योति मिश्रा बोल रही हूं, आप कौन?’’इस पर उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं रोहित यादव बोल रहा हूं. आप के गांव के मवेशियों के इलाज के लिए ताजाता रहता हूं.’’

‘‘जनाब, आप इलाज जानवरों का करते हैं और घायल इंसानों को कर देते हैं,’’ कह कर ज्योति खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘आप चिंता न करें, अब मुझे आप का फोन नंबर मिल गया है. अब आप बिलकुल ठीक हो जाओगी.’’ रोहित ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया.

एकदूसरे के मोबाइल नंबर मिलने के बाद दोनों के बीच धीरेधीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा. जब भी रोहित ज्योति के गांव में आता दोनों चोरीछिपे मिल कर एकदूसरे की दिल की बात जान लेते.

दोनों ने घरपरिवार का सोचा ही नहीं

दोनों की जातियां भले ही अलगअलग थीं. लेकिन प्यार के दीवानों को इस की परवाह नहीं थी. दोनों का मानना था कि समाज और जाति सब अपनी जगह हैं, लेकिन हमारा प्यार इन सब से ऊपर है. अंतत: दोनों ने एकदूसरे का हमसफर बनने का निर्णय ले लिया था.

इश्क की खुशबू कभी छिपती नहीं है. ज्योति के घर वालों को जब दोनों के बीच चल रहे प्रेमप्रसंग का पता चला तो उन्होंने ज्योति को कड़ी चेतावनी दी और रोहित से न मिलने को कहा. लेकिन रोहित की प्रेम दीवानी ज्योति पर इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ. उस ने घर वालों से बगावत कर दी और एक दिन मौका मिलते ही ज्योति रोहित के साथ घर से भाग गई.

इस की जानकारी होने पर ज्योति के घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. उन के न मिलने पर उन्होंने रोहित के खिलाफ कोतवाली मैनपुरी में ज्योति को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

17 सितंबर, 2018 को दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना प्रयागराज में कोर्ट मैरिज कर ली. कोर्ट मैरिज के बाद रोहित और ज्योति कुछ दिन दिल्ली जा कर रहे. बाद में गांव बृजपुरा आ गए थे.

ज्योति के घर वालों ने यह जानकारी  पुलिस को दे दी. तब पुलिस ने ज्योति और रोहित को हिरासत में ले लिया. जब पुलिस ज्योति को न्यायालय में बयान दर्ज कराने के लिए ले जा रही थी, तब ज्योति के घर वालों ने उस से कहा कि कोर्ट में वह अपने घर जाने की बात कहे.

इस बात के लिए ज्योति ने हामी तो भर दी थी, लेकिन जब कोर्ट में ज्योति के बयान दर्ज हुए तो उस ने पति रोहित के साथ ही जाने की इच्छा जताई. लिहाजा ज्योति को उस के पति रोहित के साथ भेज दिया गया. बेटी के इस फैसले के बाद वृद्ध पिता ब्रजेश मिश्रा व मां चुपचाप घर चले गए. उस समय उन्होंने खुदको बहुत अपमानित महसूस किया था.

अंतरजातीय प्रेम विवाह ज्योति के घर वालों को मंजूर नहीं था. खासकर ज्योति के भाई गुलशन व चचेरे भाइयों राघवेंद्र व रघुराई को. इस वजह से वह ज्योति और रोहित से रंजिश मानने लगे थे. वे लोग दोनों की हत्या करना चाहते थे, लेकिन घर के बड़ेबुजुर्गों ने उन्हें समझाया कि हत्या करने से गई हुई इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. यदि तुम लोग हत्या करोगे तो पुलिस का शक तुम्हीं लोगों पर जाएगा और पकड़े जाओगे.

उस समय तो वे लोग खून का घूंट पी कर रह गए थे. लगभग 2 साल बीतने के बाद घर वाले भी यह मान बैठे थे कि अब ये लड़के ऐसावैसा कुछ नहीं करेंगे.

ज्योति के गैर जाति में शादी कर लेने की वजह से गांव में भी लोग आए दिन घर वालों पर छींटाकशी करते रहते थे. इस के साथ ही अविवाहित चचेरे भाई राघवेंद्र की शादी के लिए रिश्ते तो आते थे, लेकिन जब उन्हें इस बात की जानकारी होती, तो वे शादी से इनकार कर देते थे. चचेरी बहन के यादव जाति में शादी कर लेने से राघवेंद्र की शादी भी नहीं हो पा रही थी.

इस से राघवेंद्र परेशान रहने लगा था. एक बार राघवेंद्र अकेला ज्योति की ससुराल जा पहुंचा और उस ने ज्योति पर घर चलने के लिए दवाब डाला. लेकिन ज्योति ने साफ मना कर दिया. इस पर राघवेंद्र मुंह लटका कर घर लौट आया.

यह बात गुलशन व रघुराई को नागवार लगी. इस घटना के बाद एक बार उन्होंने 50 हजार में भाड़े के एक शूटर से ज्योति व रोहित की हत्या कराने की योजना भी बनाई, लेकिन वे सफल नहीं हुए थे. समय बीतने के साथ ही तीनों आरोपियों के मन में ज्योति के प्रति नफरत बढ़ती गई. इन्हें डर था कि कहीं ज्योति मां बन गई तो इस रिश्ते की डोर और भी मजबूत हो जाएगी.

तैयार की हत्या की योजना

सब तरफ से हताश होने के बाद गुलशन और उस के चचेरे भाइयों ने दोनों की हत्या करने की प्लानिंग की. वे पिछले एक महीने से इस की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने तय कर लिया था कि ज्योति और रोहित जिस दिन एक साथ मिलेंगे, उन की हत्या कर देंगे. इसी वजह से इन लोगों ने घर वालों को अंधेरे में रख कर हत्या की योजना बनाई थी.

इन भाइयों ने असलहों का इंतजाम भी कर लिया था. फिर तीनों ने ज्योति और रोहित की रेकी करने का काम शुरू कर दिया.

7 जुलाई, 2020 को उन्हें मौका मिल गया. उस दिन राघवेंद्र ने शाम के समय रोहित और ज्योति को मोटरसाइकिल पर जाते देख लिया था. उस ने गुलशन और रघुराई को बताया कि आज दोनों को निपटा देने का अच्छा मौका है.

इन लोगों ने उसी समय योजना को अंजाम देने की ठान ली थी. तीनों ने तमंचों व कारतूसों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. वे मोटरसाइकिलों से सिंहपुर नहर पुल के बंबे के पास जा कर दोनों क ा इंतजार करने लगे. रात सवा 8 बजे जैसे ही उन्हें रोहित की मोटरसाइकिल आती दिखी, दोनों पर घात लगा कर ताबड़तोड़ फायरिंग  कर दी.

घटना के दौरान गुलशन मार्ग से आनेजाने वाले लोगों पर नजर रख रहा था, जबकि ज्योति को 6 गोलियां राघवेंद्र व रघुराई ने मारीं थीं, जिस से उस के बचने की कोई गुंजाइश न रहे. इन की योजना थी कि रोहित के घुटने में गोली मार कर उसे जिंदगी भर के लिए अपाहिज कर देंगे, ताकि वह सारी जिंदगी अपने किए पर पछताता रहे. इसीलिए उन्होंने रोहित को एक गोली मारी. लेकिन हड़बड़ी में गोली रोहित के घुटने के बजाय पेट में जा लगी.

अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने के बाद सारे आरोपी घटनास्थल से फरार हो गए थे.

रिपोर्ट 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई थी. इन में 3 नामजदों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था. जबकि पिता बृजेश मिश्रा के खिलाफ जांच में कोई सबूत नहीं मिला था. इसी तरह पांचवें आरोपी की लोकेशन घटना के समय पुलिस को पुणे में मिली थी.

आरोपियों ने हत्या के लिए 2 तमंचे व 10 कारतूसों का इंतजाम किया था. कारतूस व तमंचा कहां से जुटाए गए थे, पुलिस इस की भी जांच की, ताकि दोषियों के विरुद्ध काररवाई की जा सके.

इस हत्याकांड के खुलासे में एएसपी मधुबन सिंह, सीओ अभय नारायण राय, इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह, सर्विलांस सेल प्रभारी जोगिंदर सिंह, स्वाट टीम प्रभारी रामनरेश यादव का विशेष सहयोग रहा.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों को 18 जुलाई, 2020 को ही न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. मामले की जांच इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह कर रहे थे.

बथुआ एक, फायदे अनेक

जाड़े के मौसम में बाज़ार में साग सब्जियों की भरमार लग जाती है, लेकिन इन सबमें सबसे अधिक फायदेमंद बथुआ साग है. इसे अमूमन सभी घरों में किसी न किसी रूप में पकाया और खाया जाता है. इसे कई बिमारियों को दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है. एशिया समेत यह अमेरिका, यूरोप और औस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है. इसके बारें में डायटीशियन जसलीन कौर कहती हैं कि असल में बथुआ एक ऐसा साग है जिसमें आयरन, मैग्नेसियम, फाइबर, विटामिन ए,सी और बी काम्प्लेक्स आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसलिए इसका सेवन जाड़े में अच्छा होता है. इसके फायदे निम्न है,

– इसमें पानी की मात्रा और फाइबर भी सबसे अधिक होता है. यही वजह है कि पाइल्स और कब्ज को भी       क्योर करती है.

– अधिकतर कैल्शियम के लिए हम दूध का सेवन करते है, जबकि बथुआ में 309 मिलीग्राम कैल्शियम     होता है.

– बथुए में अमीनों एसिड की मात्रा अधिक होने की वजह से यह नई कोशिकाओं को बनाने और उसे   रिपेयर  करने में मदद करती है.

– बथुए में कम मात्रा में कैलोरी होने की वजह से ये किसी के लिए भी फायदेमंद होता है. 100 ग्राम बथुए   में  सिर्फ 45 ग्राम कैलोरी होती है,

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– बथुआ के पत्ते मुंह के छाले को कम करती है.

– बथुए को पानी में उबालकर उसके पानी से सर धोने पर केशों में मोयास्चराइजर बढ़ती है और जू से भी   बालों को मुक्ति मिलती है.

– बथुआ दांत के कई प्रकार की समस्याओं से भी निजात दिलाती है, मसलन दांत दर्द, मुंह में दुर्गन्ध,   मसूड़ों की बीमारियां आदि.

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– जिन महिलाओं की मासिक धर्म के चक्र में समस्या आती है, उन्हें बथुआ के बीज का पाउडर, अदरक के   रस में मिलाकर लेने से फायदा मिलता है.

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– जिन्हें यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन या आर्थराइटिस की शिकायत है उनके लिए बथुआ के पत्ते का रस काफी   लाभकारी होता है.

इसके अलावा इस मौसम में बथुए को अपने भोजन में शामिल करना अत्यंत आवश्यक है, मसलन बथुआ की रोटी जो खाने में स्वादिष्ट और न्यूट्रिशस होती है. बथुए का रायता, जिसमें बथुए को उबालकर पीस ले और दही में मिला लें. बथुए का साग, जो आम साग की तरह ही बनता है. बथुए का पराठा, बथुआ का रस आदि बहुत सारी विधियों से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

बुआजी : क्या बुआजी पैसे से खुशियां, शांति या औलाद खरीद पाईं

जगजीत सिंह, चित्रा सिंह की गजल टेप पर चल रही थी ‘…अपनी सूरत लगी पराई सी, जब कभी हम ने आईना देखा…’ मैं ने जैसे ही ड्राइंगरूम का दरवाजा खोला तो देखा कि सामने बूआजी टेबल पर छोटा शीशा लिए बैठी हैं. शायद वे अपने सिर के तीनचौथाई सफेद बालों को देख रही थीं या फिर शीशे पर जमी वर्षों की परत को हटा कर अपनी जवानी में झांकना चाह रही थीं. तभी गली में से फल वाले की आवाज पर वे अतीत से वर्तमान में आती हुई बोलीं, ‘‘अरे फल वाले, जरा रुकना. पपीता है क्या?’’ फल वाला शायद रोज ही आता होगा. वह तुरंत बोला, ‘‘बूआजी, आज पपीता छोटा नहीं है. सब बड़े साइज के हैं और आप बड़ा लेंगी नहीं,’’ कहता हुआ वह जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही चलता रहा.

यह सुन कर बूआजी अपनेआप से ही कहने लगीं, ‘अरे भई, क्या करूं, एक समय था कि घर में टोकरों के हिसाब से फल आया करते थे. अब न खाने वाले हैं और न ही वह वक्त रहा.’ मैं सफदरजंग कालोनी, दिल्ली में बूआजी के फ्लैट के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी. मैं ने फल वाले को रोका और नीचे उतर आई. मैं जब भी किसी काम से नीचे उतरती तो अकसर बूआजी से बोल लेती थी, क्योंकि दिल्ली जैसे महानगर में किसी से थोड़ी सी आत्मीयता व ममतामयी संरक्षण का मिल पाना अपनेआप में बहुत बड़ी बात थी. पहली बार बूआजी की और मेरी मुलाकात इसी फल वाले की रेहड़ी पर हुई थी. एक बार जब मैं अपने मायके से लौटी तो देखा कि आज यह कोई नया चेहरा दिखाई पड़ रहा है. चेहरे पर अनुभवी परछाईं के साथसाथ कष्टों के चक्रव्यूह में आत्मविश्वास भी नजर आ रहा था. संपन्नता की छाप भी स्पष्ट नजर आ रही थी, क्योंकि घर आधुनिक सुखसुविधाओं व विदेशी सामान से सुसज्जित था. बस, घर में कमी थी तो केवल इंसानों व बच्चों की किलकारियों की. उम्र 60-65 के बीच थी. तब इन्होंने पूछा था, ‘बेटी, क्या आप लोग यहां नए आए हो?’

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इस पर मैं ने कहा था, ‘नमस्ते बूआजी, मैं तो यहां पर कई दिनों से रह रही हूं. कुछ दिनों के लिए मायके गई थी. कल ही मायके से आई हूं.’ मायके में 15 दिन मैं ने अपनी बूआजी के साथ गुजारे थे. इन की शक्लसूरत मेरी बूआ से मिलती थी, इसीलिए तो मेरे मुंह से अनायास ‘बूआजी’ निकल गया था. इस के बाद तो ये सब्जी वाले, फल वाले, नौकर, आसपास के फ्लैट वालों सभी के लिए जगत कुमारी से बूआजी बन गईं. बहुत जल्द ही उन के साथ हम सभी के घनिष्ठ संबंध स्थापित हो गए. मेरे पति व दोनों बच्चे भी उन्हें बूआजी कहने लगे. स्कूल से आतेजाते बच्चों से बूआजी बड़े प्यार से बतियाती थीं. उन से मिलना मेरी भी दिनचर्या में शामिल हो गया था. मेरे पति भी आतेजाते फूफाजी को देख आते थे और कामकाज के लिए भी पूछ आते थे. बूआजी बड़ी व्यवहारकुशल व खुले दिमाग की औरत थीं. बूआजी में आत्मविश्वास को बनाए रखने की प्रबल इच्छाशक्ति थी. परंतु फिर भी दिल के एक कोने में अकेलेपन का एहसास व आंसुओं का सागर उमड़ ही आता था. इसी अकेलेपन के एहसास के कारण वे अपने भविष्य को इतना असुरक्षित पाती थीं. फूफाजी को भी असुरक्षित भविष्य की भयावह कल्पना ने ही इतना मानसिक तनाव से ग्रसित कर दिया था कि वे पिछले 2 साल से पक्षाघात का शिकार बन, अपनी जिंदगी का बोझ ढो रहे थे. बूआजी भी कहां स्वस्थ थीं. वे भी दमे की मरीज थीं, दिन में दोचार बार ‘पफ’ लेती थीं. उन का रक्तचाप भी कम ही रहता था.

वह कभीकभी दोपहर की चाय के लिए मुझे अपने पास बुला लिया करती थीं. मैं उस समय सभी कामों से निवृत्त होती थी. सो, साथसाथ बैठ कर चाय पी लेती थी. एक दिन मैं ने उन से कहा, ‘बूआजी, आप 24 घंटे का एक नौकर रख लीजिए न.’ मेरी बात सुन बूआजी बोलीं, ‘अरे बेटा, ये जो काम करने वाली हैं न, इन से मेरा काम तो चल ही जाता है. और रही बात तेरे फूफाजी की, तो उन की देखभाल के लिए स्वास्थ्य केंद्र से 90 रुपए रोज पर श्याम आता ही है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक यह फूफाजी का सारा काम देखता है. सुबह का नाश्ता, खाना, नहलाना, कसरत, दवा आदि सभी तो कराता है. रही बात रात की, तो रात को मैं स्वयं देख लेती हूं. हमें श्याम का डर नहीं क्योंकि स्वास्थ्य केंद्र में इस का नामपता सब दर्ज है. बेटी, आजकल वैसे भी नौकर रखना इतना आसान नहीं है. आएदिन घरेलू नौकरों द्वारा की गई चोरीडकैती की घटनाएं सुनने को मिलती रहती हैं. दिल्ली में वैसे भी ऐसी वारदातें होती रहती हैं. अरे भई, ऐसे ही कट जाएगी जिंदगी, पता नहीं, कब हम दो में से एक रह जाएं.’

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बातें करतेकरते अकसर उन का गला भर आता व आंखों में आंसू आ जाते. पर पलकों की जैसे इन आंसुओं को सोखने की आदत सी हो गई हो. तभी फोन की घंटी बज उठी. बूआजी के बात करने से लगता था जैसे पुरानी मित्रता हो. वे बोलीं, ‘‘इन का क्या ठीक होना, वही हाल है,’’ फिर रुक कर बोलीं, ‘‘अरे, क्या करना है, अभी तो यहां भी 2 कमरे तो बंद ही रहते हैं, कोई आ जाए तो खुल जाते हैं,’’ कहतेकहते उन का गला भर आया. फोन पर बातचीत चालू थी. बूआजी बोलीं, ‘‘अरे अपने लिए तो वही डिफैंस कालोनी है जहां दो आदमियों की शक्ल नजर आ जाए, कोई दो घड़ी बोल ले. फल, सब्जी, डाक्टर, टैक्सी सब यहां फोन पर उपलब्ध हैं. मुझे उस कोठी को छोड़ कर इस फ्लैट में आने का कोई गम नहीं है. मुझे यहां बड़ा आराम है.’’ फिर मेरी तरफ देख कर हंसते हुए बोलीं, ‘‘और मुझे यहां एक अपनी बेटी, प्यारेप्यारे बच्चे और बेटे जैसे दामाद का सहारा जो मिल गया है.’’ लगता था आज उन की बातें लंबी चलेंगी, सो मैं उन्हें फिर आने का इशारा करते हुए उठ कर चली गई. मैं घर आ कर सोचने लगी कि शायद बूआजी डिफैंस कालोनी में कोठी बेच कर इस छोटे से फ्लैट में आई हैं. मगर फिर भी कितनी खुश नजर आती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि ‘पैसा जवानी की जरूरत और बुढ़ापे की ताकत होता है.’ उन के आत्मविश्वास के पीछे यह ताकत तो थी ही, पर क्या वे पैसे की ताकत से खुशियां, शांति या औलाद का प्यार खरीद पाईं? हम जैसे गैरों से अगर वे चुटकी भर खुशी का एहसास कर पाईं तो वह केवल अपनी व्यवहारकुशलता से. तभी अचानक बेटी के जाग जाने से मेरे विचारों के क्रम में बदलाव आ गया. मैं उसे प्यार से सहलाते हुए दूध गरम करने के लिए उठ गई.

रात को खाना खाते समय सोमेश (पति) ने पूछा, ‘‘फूफाजी की तबीयत कैसी है? 3-4 दिन से मेरी उन से बात नहीं हो पाई है.’’ इस पर मैं बोली, ‘‘फूफाजी की तबीयत का क्या ठीक, क्या खराब. कोई खास फर्क नहीं…वैसे बूआजी ने इमरजैंसी के लिए कोर्डलैस घंटी तो लगा ही रखी है.’’ वैसे तो इस महानगर के कोलाहल में हर आवाज दब कर रह जाती है, पर बूआजी से कुछ लगाव होने की वजह से हम उन की आवाजों का ध्यान भी रखते थे. वे बारबार श्याम को आवाजें लगाती थीं, ‘श्याम, फूफाजी को मंजन करा दो… श्याम, फूफाजी को चाय पिला दो… फूफाजी को कसरत करानी है…अब फूफाजी को दवा दे दो, अब उन्हें सुला कर खाना खा आओ,’ उन के इन संवादों से हमें फूफाजी की उपस्थिति का भान होता रहता था. तभी लंबी घंटी ने हमें चौंका दिया. मेरे पति जल्दीजल्दी दोदो सीढि़यां एकसाथ उतर कर नीचे पहुंचे. मैं भी घर बंद कर के नीचे पहुंची. घड़ी पर नजर पड़ी, तो देखा, साढ़े 8 बज रहे थे. श्याम भी जा चुका था. हम ने बूआजी का इतना घबराया चेहरा पहली बार देखा, उन की सांस फूल रही थी. हमारे पूछने पर वे बोलीं, ‘‘बेटी, आज मुझे इन की हालत कुछ ठीक नहीं लग रही है. मैं ने डाक्टर को भी फोन कर दिया है. मन में अजीब सा डर लग रहा है, इसीलिए तुम लोगों को बुला लिया.’’

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इस पर हम दोनों बोले, ‘‘यह क्या कह रही हैं आप. यदि हमें नहीं बुलाएंगी तो और किसे बुलाएंगी?’’ तभी घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा सामने डाक्टर साहब खड़े थे. उन्होंने फूफाजी को देखा व बोले, ‘‘श्रीमती जगत, मैं आज भी वही कहूंगा जो हर बार कहता आया हूं. इस बीमारी का कोई भी इलाज नहीं, न ही मरीज की गिरती व सुधरती हालत पर कोई टिप्पणी की जा सकती है. निकल जाए तो 6 महीने, न निकले तो 6 घंटे भी नहीं. आप हिम्मत रखो, मैं आप का दर्द समझता हूं,’’ कह कर डाक्टर चले गए. डाक्टर के जाने के बाद मैं ने कहा, ‘‘बूआजी, यदि आप कहें तो मैं आप के साथ नीचे ही सो जाऊं?’’ इस पर उन की आंखें फिर भर आईं और बोलीं, ‘‘हां बेटी, आज तुम नीचे ही सो जाओ. न जाने आज क्यों मेरा दिल घबरा रहा है.’’ मैं अपने पति को बच्चों के पास भेज कर स्वयं बूआजी के साथ फूफाजी के कमरे में ही लेट गई. वे बड़े प्यार से फूफाजी के सिर पर हाथ फेर कर उन्हें सहलाती रहीं. फूफाजी देखने में आज भी आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे. डाक्टर फूफाजी को नींद की दवा भी दे गए थे. फूफाजी साफ नहीं बोलते थे, बस ‘अऽऽ’ कर के चिल्लाते थे और रात की शांति में तो उन की आवाज बहुत तेज सुनाई पड़ती थी. थोड़ी देर बाद जब फूफाजी की आंख लग गई तो बूआजी आ कर मेरे पास जमीन पर लेट गईं, पर नींद उन की आंखों से कोसों दूर थी. छत के पंखे से टकटकी लगाए जैसे अपने अतीत के एकएक पल को अपने में समेट लेना चाहती थीं.

मुझे लगने लगा कि आज बूआजी अपनी जिंदगी के बीते एकएक पल को मेरे साथ बांटना चाहती हैं. तभी वे बोलीं, ‘‘बेटी, मैं शुरू से इस तरह अकेली नहीं थी. शादी हुई तो तेरे फूफाजी जैसे सुंदर तन व मन वाले व्यक्ति को पति के रूप में पा कर अपनेआप को धन्य समझने लगी. सासससुर के अलावा एक छोटी ननद थी. घर में संपन्नता की न आज कमी है न उस समय थी. हमारी पीतल की फैक्टरी थी जो मानो सोना उगलती थी. तेरे फूफाजी अपने पिता के इकलौते बेटे होने के कारण उन के बहुत लाड़ले थे. इन्हें घूमनेफिरने का बहुत शौक था. 2 साल में ही पूरे भारत की सैर कर ली. मैं इन के प्यार में इस कदर डूब गई थी कि मुझे कभी अपने मायके की याद नहीं आती थी. ममतामयी सासससुर ने मेरे सिर किसी भी तरह की गृहस्थी की कोई जिम्मेदारी नहीं डाली थी. घर में इतने नौकरचाकर थे कि कभी खाना खा कर थाली उठाने की भी नौबत नहीं आई. डिफैंस कालोनी में 600 गज में कोठी बनी थी. 2 साल बाद एक सुंदर सी बिटिया ने जन्म लिया. घर में उन किलकारियों का बेसब्री से इंतजार था.

‘‘तुम्हारे फूफाजी की खुशियों का तो ठिकाना ही न रहा था. हम ने बेटी का नाम मंजुला रखा. उस की दादी ने उस की देखभाल के लिए एक आया और रख दी थी. 2 साल कैसे निकले, पता ही नहीं चला कि बेटे अनुराग का पदार्पण हो गया. अब तो घर की खुशियों में चारचांद लग गए थे. दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. दादी अनुराग का 10वां जन्मदिन मना कर रात को खुशीखुशी ऐसी सोईं कि फिर वापस कभी न उठ पाईं. गृहस्थी का सारा बोझ मुझ पर आ पड़ा. सास को गए अभी 2 ही साल हुए थे कि दिल का दौरा पड़ने से ससुर भी कभी न जागने वाली नींद सो गए. अब इन पर ही फैक्टरी की पूरी जिम्मेदारी आ गई.’’ शायद बूआजी आज अपनी बातों को विराम नहीं देना चाहती थीं. मुझे भी उन की बातें सुन कर जैसे अनुभव का अनमोल खजाना मिल रहा था. वे आगे बोलीं, ‘‘दोनों बच्चे पढ़लिख कर बड़े हो गए. बेटी विवाह लायक हो गई थी. सो, मैं उसे जल्दी ही प्रणयसूत्र में बांधना चाहती थी. एक दिन घरबैठे ही बंगलौर से एक अच्छा रिश्ता आ गया व कुछ ही दिनों में हम ने उस की शादी कर दी. अनुराग का मन था कि वह आगे की शिक्षा अमेरिका से प्राप्त करे तो तुम्हारे फूफाजी ने उस का भी प्रबंध कर दिया. बेटी अपनी सुखसंपन्न गृहस्थी में लीन एक बेटे की मां बन गई और अनुराग 3 साल के लिए अमेरिका चला गया,’’ कहतेकहते बूआजी का जैसे बरसों से रुका आंसुओं का सैलाब न जाने क्यों आज ही बह जाना चाहता था. रोतेरोते उन की सिसकियां बंध गईं.

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थोड़ी देर रुक कर वे फिर भारी मन से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं व तेरे फूफाजी अनुराग के आने के दिन गिन रहे थे कि एक दिन अचानक उस का पत्र आया जिस में उस ने लिखा था कि वर्ल्ड बैंक में नौकरी लग जाने की वजह से वह सालभर और घर नहीं आ सकता. इसलिए पिताजी से कहना कि वे फैक्टरी का काम कम कर दें. समझदार को इशारा ही काफी होता है. तेरे फूफाजी ने जब अनुराग का पत्र पढ़ा तो जैसे उन्हें कोई करंट सा लगा हो. धड़ाम से पलंग पर लेट गए. उस दिन के बाद कई बार मुझे उन की बातों से लगने लगा कि जैसे ये अपने बुढ़ापे के बारे में अपनेआप को काफी असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. ‘‘हर दोचार महीने में मंजुला व दामाद आ जाया करते थे. एक दिन अनुराग का फिर पत्र आया जिस में उस ने लिखा था कि ‘मेरे साथ नैना नामक लड़की काम करती है और मैं भारत आ कर आप लोगों की आज्ञा से उस से शादी करना चाहता हूं. मैं 2 महीने की छुट्टी पर घर आ रहा हूं. नैना का भी घर लखनऊ में है.’

‘‘तुम्हारे फूफाजी को व मुझे कोई एतराज नहीं था, सोचा, चलो अच्छा हुआ कि लड़की भारतीय तो है. अब हम बड़े उत्साह से उस की शादी की तैयारियों में जुट गए थे. हम ने मंजुला को भी बुला लिया था. हम ने बड़ी धूमधाम से शादी की. तुम्हारे फूफाजी और मैं बहुत खुश थे. शादी के बाद एक महीना कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. अनुराग व नैना के वापस जाने की तारीख भी नजदीक आ रही थी. केवल 7 दिन बचे थे. फिर आखिरकार उन के जाने का दिन भी आ ही गया. हम दोनों अनुराग व नैना को विदा कर घर लौटे कि उसी दिन से घर में नीरवता छा गई. तुम्हारे फूफाजी ने खाट पकड़ ली. ‘‘मैं ने वकील के साथ मिल कर फैक्टरी बेच दी, साथ ही कोठी को भी बेच दिया और इस फ्लैट में आ गई. एक बार बेटेबहू ने कहा भी कि आप लोग अमेरिका ही आ जाओ पर मैं ने कहा कि हम वहां एअरकंडीशनर की कैद में नहीं रह सकते. तुम दोनों तो काम पर चले जाया करोगे, सो मुझ से इन की देखभाल अकेले नहीं होगी. और अपने जीतेजी मैं इन्हें किसी भी नर्सिंगहोम में नहीं छोड़ूंगी, मेरे बाद तुम्हारी जो मरजी हो सो करना. ‘‘दोनों साल में एकाध बार आ जाते हैं. उन के एक बेटी है. बहू को तो दुनियाभर का भ्रमण करना पड़ता है, श्रीलंका, जापान, जरमनी, स्वीडन वगैरावगैरा. अब तो उन्होंने अमेरिकी नागरिकता भी स्वीकार कर ली है. पूरी तरह से वहीं बस गए हैं.’’

बातों ही बातों में मैं ने घड़ी देखी तो पाया कि सुबह के 5 बज गए हैं. तभी फूफाजी ने जोर से एक हिचकी ली और शांत हो गए. बूआजी ने उठ कर देखा और हिम्मत के साथ उन की आंखें बंद कर मुंह पर कपड़ा ढक दिया और बहुत धीरे से बोलीं, ‘‘फूफाजी नहीं रहे.’’ मैं ने ऊपर से इन्हें बुलाया व सभी रिश्तेदारों को फोन से सूचना करवा दी. बूआजी मेरे पति से बोलीं, ‘‘सोमेश बेटे, 11 बजे तक इंतजार कर लो, यदि लोग पहुंच जाएं तो ठीक अन्यथा गाड़ी बुला कर विद्युत शव दाहगृह में ले जा कर अंतिम संस्कार कर आना.’’ शायद बूआजी को अपने बेटे अनुराग के पहुंच पाने की कोई उम्मीद न थी. तभी अचानक उन को कुछ याद आ गया. वे कुछ तेज कदमों से चलती हुई मेरे पति के पास पहुंचीं. फिर उन्होंने पति के कान में कुछ कहा तो वे तुरंत फोन की तरफ लपक कर कहीं फोन मिलाने लगे. उन के फोन मिलाने के थोड़ी देर बाद ही एक गाड़ी घर के दरवाजे पर आ कर रुकी. उस में से उतर कर डाक्टर साहब ने घर में प्रवेश किया. इस तरह फूफाजी के नेत्रदान की अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए मानो बूआजी की बहती अविरल अश्रुधारा कह रही हो कि ये अनुभवी, प्यार बरसाने वाले नेत्र तो जिंदा रहेंगे. दुनिया पर प्यार लुटाने वाली बूआजी का स्वयं का प्यार का स्रोत लुट चुका था. बूआजी की टेप पर चलती गजल मुझे फिर याद आ गई मानो वह उन्हीं के लिए ही गाई गई हो, ‘अपनी सूरत भी लगने लगी पराई सी, जो आईना देखा…’

हुंडई क्रेटा में दिया गया 6 एयरबैग, जिससे नहीं होगी यात्रियों को परेशानी

हुंडई क्रेटा का निर्माण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया है. इसकी पूरी बॉडी को एडवांस हाई स्ट्रेंथ स्टील से बनाया गया है. जिससे कार की मजबूती का पता चलता है.

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इसके साथ ही कार में बैठे यात्रियों के सेफ्टी का ध्यान रखते हुए 6 एयरबैग दिए गए हैं. जिससे अगर लंबी यात्रा के दौरान कोई दुर्धटना होती है तो ड्राइवर और यात्री को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. यही नहीं इमरजेंसी स्टॉप सिग्नल दिए गए हैं. और सीट बेल्ट भी दिया गया है. इसलिए इसे कहा गया है #RechargeWithCreta

Naagin 5- शरद मल्होत्रा की जगह लेंगे धीरज धूपर, सुरभि के साथ करेंगे रोमांस

अपने दर्शकों को मनोरंजन करने के लिए कोरोनाकाल में भी टीवी स्टार्स अपने दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं. ऐसे में कुछ स्टार्स ऐसे हैं जो कोरोना के चपेट में आ चुके हैं. कुछ समय पहले ही यह खबर आई थी कि नागिन 5 के स्टार्स शरद मल्होत्रा कोरोना के चपेट में आ चुके हैं.

जिसके बाद से शरद मल्होत्रा अपने घर पर ही आइसोलेट हो गए हैं. खबर आ रही है कि शरद मल्होत्रा को कोरोना के सेट पर वापसी करने में थोड़ा समय लग सकता है. इसी बीच खबर यह भी आ रही है कि शरद मल्होत्रा को नागिन 5 से रिप्लेस कर दिया गया है. अब नागिन 5 में  धीरज धूपर शरद मल्होत्रा के किरदार में नजर आएंगे. मजे की बात यह है कि शरद मल्होत्रा को कुछ दिनों के लिए नागिन के किरदार से रिप्लेस किया गया है. जैसे ही वह ठीक हो जाएंगे उनकी वापसी हो जाएगी.

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Its A WRAP for the day kinda Walk for… #veeranshusinghania #Veer ?? #naagin5 …Tonite @8pm on @colorstv ?? – Pitbull ~ #roofonfire ?

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लेकिन जब तक शरद मल्होत्रा ठीक नहीं हो जाते तब तक धीरज धूपर वीर के किरदार में नजर आएंगे. जल्द ही धीरज धूपर नागिन 5 की शूटिंग शुरू करने वाले हैं. इस खबर के बाद से नागिन 5 के फैंस काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रहे हैं.

गौरतलब है कि नागिन 5 की कहानी वीर और बानी की इर्द- गिर्द धूम रही है. शरद मल्होत्रा के कोरोना होने से मेकर्स की मुश्किलें काफी ज्यादा बढ़ गई थीं. शो के मेकर्स का मानना है कि शर्द मल्होत्रा के बिना नागिन 5 की शूटिंग नहीं हो सकती है.

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Cheeeelin wid D Buwoyzzz ??? #naagin5 @paragtyagi @utkarshgupta74 @anuragvyasofficial

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शरद मल्होत्रा के ना होने से नागिन 5 की शूटिंग पर बहुत ज्यादा बुरा असर पड़ रहा था. जिसके बाद शरद मल्होत्रा की जगह धीरज धूपर को जगह दे दिया गया है.

 

‘गुड्डन तुमसे ना हो पाएगा’ की एक्ट्रेस ने धूमधाम से मनाया जन्मदिन, मिला सरप्राइज

‘गुड्डन तुमसे ना हो पाएगा’ एक्ट्रेस कनिका मान का आज जन्मदिन है. कनिका अपने इस खास दिन को शानदार अंदाज में मना रही हैं. कनिका आज 27 साल की हो चुकी हैं सुबह से ही उन्हें बधाइयां मिल रही हैं.

वहीं कनिका की ढ़ेंर सारी फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रही है. जिसमें कनिका बेहद ही प्यारी लग रही हैं.

वहीं कनिका को अपनी मां और भाई से स्पेशल सरप्राइज मिला है. सुबह-सुबह अपने मां और भाई को एक साथ देखकर वह बहुत खुश हुई.

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Gorgeousness overload

तो वहीं कनिका की मान की मां ने उनके लिए स्पेशल केक बनाया है जिसमें डॉल बैठी हुई है. यह केक कनिका के लिए बेहद ही ज्यादा स्पेशल लग रहा था.

कनिका के घर पर सुबह ही उनके दोस्त पहुंच गए और ढ़ेर सारी फोटो क्लिक करवाई. जो लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

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कनिका मान के जन्मदिन पर उनके दोस्तों के साथ- साथ परिवार वालों ने भी ढ़ेर सारा पेम्पर किया जिसे देखकर वह बहुत ज्यादा खुश नजर आ रही थीं.

Gorgeousness overload

कनिका अपनी इस तस्वीर में फूली नहीं समा रही हैं. कनिका के परिवार वालों ने इस दिन को खास बना दिया. गुड्डन तुमसे ना हो पाएगा कि एक्ट्रेस अपने जन्मदिन पर अलग-अलग पोज देती नजर आ रही है.

कनिका खुद को इसके लिए बहुत ज्यादा खुशनसीब मानती है कि उनके पास इतने सारे लोग हैं उन्हें प्यार करने के लिए. सुबह से ही उन्हें ढ़ेंर सारी बधाइयां मिल रही हैं.

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कनिका ने केक काटने से पहले ढ़ेर सारी दुआएं मांगी. जिसके बाद से लगातार सभी लोग उन्हें बधाइयां भी दे रहे थें. इस दिन को कभी नहीं भूल सकती हैं. यह उनके लिए यादगार बन चुका है.

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वहीं कनिका मान की दोस्त दलजीत कौर ने भी उन्हें स्पेशल सरप्राइज दिया है. जिसमें उनकी ढ़ेर सारी फोटो लगी हुई है.

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