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आपको कहीं बीमार न कर दे यह बेमतलब सूचनाओं की बारिश

इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे पास जितनी ज्यादा सूचनाएं होती हैं, हम उतने ही स्मार्ट समझे जाते हैं. लेकिन लोगों की इस कमजोर नस का फायदा उठाते हुए कंटेंट से बेहद गरीब, बड़ी तादाद में ऐसी वेबसाइटें हैं जो उत्तेजनाओं से लबरेज अपने चटपटे शीर्षकों का ऐसा प्रपंच रचती हैं कि आप इनके चंगुल में फंसकर अंत में निराशा से अपना सिर थाम लेते हैं. लोगों के कौतूहल के मनोविज्ञान का ये इस हद तक दोहन में लगी हैं कि इन्हें परवाह नहीं है कि आप इस सबसे बीमार भी हो सकते हैं. फिल्मी सितारों सहित हर क्षेत्र के सेलिब्रिटीज की किसी बहुत मामूली सी जानकारी को भी ये वेबसाइटें दर्शकों का ट्रैफिक अपनी ओर खींचने के लिए, इस कदर तोड़ मरोड़कर और सनसनी का तड़का लगाकार परोसती हैं कि हर बार इस दुष्चक्र में फंसने के बाद लोगों का मन कसैला हो जाता है. उदाहरण के लिए पिछले दिनों करीना कपूर के संबंध में तमाम वेबसाइटों ने एक ऐसी उत्तेजक खबर चलायी जिसे जानकर कोई भी अपना माथा पीट सकता है.
लेकिन खबर तक पहुंचने के पहले जरा देखिये वेबसाइटों ने इसे किस तरह के शीर्षकों से पेश किया.
Û करीना ने खोला अपनी सौतन का वह राज, जिसे सुनकर आप सन्न रह जाएंगे.

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Û सार्वजनिक रूप से करीना ने अपनी सौत का किया पर्दाफाश.
इस जैसे करीब एक दर्जन शीर्षकों को पढ़ने के बाद फिल्मी लोगों की जानकारी रखने वाले लोग शायद ही इस शीर्षक पर क्लिक करने का मोह छोड़ पाये हों. ज्यादातर लोगों को लगा कि जरूर करीना ने अपने पति की पूर्व पत्नी अमृता सिंह के बारे में कुछ ऐसा कहा है, जिसे सुनकर अमृता के प्रशंसक सन्न रह जाएंगे या उन्हें धक्का लगेगा. लेकिन इन शीर्षकों से अपनी साइट खुलवा लेने वाली वेबसाइटों तक जब लोग पहुंचते हैं तो पता चलता है कि करीना ने सिर्फ यह कहा है, ‘मैं अमृता सिंह की एक सीनियर अदाकारा के रूप में इज्जत करती हूं.’ अब भला बताइये इसमें कौन सी ऐसी बात है, जिसे सुनकर आप सन्न रह गये या कि आपको इसमें कुछ पर्दाफाश करने जैसा लगा हो.

लेकिन वेबसाइटों को आपको अपनी खबर तक लाना है तो वे किसी भी बात पर इतना नमक मिर्च लगा देंगे कि भले उसमें सच का कोई रेशा मात्र भी न रह जाए, मगर उन्हें फर्क नहीं पड़ता. उन्हें तो बस आपको अपने आर्थिक फायदे के लिए आकर्षण के चंगुल में फंसाना भर है. यह एक बहुत खतरनाक प्रवृत्ति है, जो हाल के दिनों में लगातार बढ़ती जा रही है. तमाम वेबसाइटों की ऐसी हरकतों में फंसने के बाद यहां तक पहुंचने वाले पाठक न सिर्फ खुद को ठगा सा महसूस करते हैं बल्कि उनमें इस तरह की हरकतों के लिए, मन में गुस्सा और मीडिया के लिए असम्मान का भाव पैदा होता है. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अगर आप जल्दी से संयम में रहना नहीं सीखते तो ऐसा बार बार ठगा जाना आपको बीमार कर सकता है.
इस खेल में गुमनाम वेबसाइटों का ही जलवा नहीं है बल्कि कई बहुत जाने माने टीवी चैनलों की वेबसाइटें भी दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा ही उत्तेजनाओं से लबरेज सनसनी का जाल बिछाते हैं. यूरोप में मीडिया वेबसाइटों की ऐसी हरकतें आमतौर पर तीन महीने से पांच साल तक की जेल का कारण बन सकती हैं. लेकिन हिंदुस्तान जैसे देश में इस तरह का कोई कानून नहीं है, जिस कारण भी खूब मनमानी हो रही है. एक बहुत जाना माना और बेहद गंभीर समझा जाने वाला हिंदी टीवी चैनल एनडीटीवी, फेसबुक में दिन रात बेहद सनसनीखेज वीडियो पेश करता है, जो महज 3 से 4 सेकेंड के भी हो सकते हैं. इन्हें वीडियो कहना, वीडियो की कल्पना का अपमान है. ये महज अपनी मेंबरशिप बढ़ाने के लिए फेंका गया जाल भर होते हैं.

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अब चूंकि जब तक वीडियो खोल न लो, तब तक तो यह पता नहीं चलता कि उसमें क्या है? इसलिए बाद में जब शीर्षक से मेल न खाते हुए, पांच दस सेकेंड की विजुअल फोटोग्राफी वाले उस सनसनीखेज वीडियो तक लोग पहुंचते हैं तो उन्हें बहुत गुस्सा आता है. लेकिन अब आप उस गुस्से का करेंगे क्या? क्योंकि जिसे आपको बेवकूफ बनाना था, उसका काम तो हो गया. आपने उसकी पोस्ट को भले पूरा न देखा हो, लेकिन उसे खोलने के लिए क्लिक तो कर ही दिया. इसलिए अपडेट रहने के नाम पर या हर जानकारी जानने की उत्कंठा आजकल बीमार किये जाने का साधन बन चुकी है. सिर्फ फेसबुक में या महज वीडियो के जरिये ही ऐसे उत्तेजक लालच हम तक नहीं पहुंचते बल्कि व्हट्सएप्प की बीप भी हमें दिन रात इसी कारोबार की प्रेरणा से आगाह करने की जिद में लगी रहती है. मसलन अमरीका का कोविड वैक्सीन मेडोर्ना पर लगीं जासूसों की निगाहें. हम अभी लंच का निवाला तोड़ने ही वाले होते हैं कि फेसबुक की रिंग टोन हमें नयी पोस्ट की सूचना देती है और हम निवाले को मुंह मंे लेने के पहले मोबाइल की स्क्रीन पर अपनी नजरें गड़ा देते हैं. रात में नींद बस आ ही रही होती है कि एसएमएस की बीप हमें यह जानने के लिए अलर्ट करती है कि राॅयल चैलेंजर्स बंग्लुरु सेमीफाइनल में हारकर आईपीएल टूर्नामेंट से बाहर हो गयी. अभी सुबह की लालिमा भी नहीं छंटी होती, अभी हमने सही से आंखें भी नहीं खोली होतीं कि हमारे कानों में एक के बाद एक गुडमाॅर्निंंग के मैसेजों का हथौड़ा बजने लगता है.

लब्बोलुआब यह है कि हर पल गैरजरूरी सूचनाओं की जो यह हम पर बारिश हो रही है, वह हमें हर समय सांसत में डाले रहती है. हर कोई हमें अपने बारे में सब कुछ बताने के लिए बैचेन नजर आता है. चाहे शाॅपिंग एप हों, चाहे इंश्योरेंस के प्लान हों, नयी कारों और मोबाइल के नये संस्करणों की जानकारियां हों. तमाम कंपनियां, तमाम लोग नहीं चाहते कि हम इन सबसे अंजान रहें. जानकारी, जानकारी, जानकारी. लगता है हम कुछ चीजों से अगर अंजान रहेंगे तो हम पर मानो पहाड़ टूट जायेगा. मानो हमारी इस अनदेखी से धरती फट जायेगी. हर समय बाजार हमें अपने फायदे की और हमारे मामले में ज्यादा गैरजरूरी जानकारियों की बारिश में सरोबोर किये रहता है, जैसे अगर इन गैरजरूरी सूचनाओं में हम डूबें उतराएंगे नहीं तो हमारे लिए जिंदा रहना मुश्किल हो जायेगा. लगता है ये बाजार को विज्ञापित करने वाली जानकारियां हमें सांस लेने की महंगी जरूरतें हों.

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इतिहास का यह पहला ऐसा दौर है जब हम इफरात की सूचनाओं और बिना मांगी जबरदस्ती परोसी गई जानकारियों से त्रस्त हैं. अगर जल्द ही इसमें कोई पाबंदी नहीं लगती तो यह इंसानी मनोविज्ञान के लिए महामारी बन जायेगी. आखिर हमें बाजार की हर सूचना क्यों जानना चाहिए? क्यों हमें रात में 12 बजे किसी मोबाइल फोन के लांच होने की जानकारी 12 बजे रात को ही दी जानी चाहिए. इसलिए क्योंकि इसमें बाजार को फायदा है और बाजार अपने फायदे के सामने आपकी सेहत की कोई परवाह नहीं करता. अगर आपको अपनी सेहत की परवाह है तो बाजार के विज्ञापनों की सूचनाओं के रूप में इस बारिश से अपने आपको थोड़ा दूर रखिये.

नई हुंडई i20 टेक्नोलॉजी में भी हैं शानदार 

सभी नई कारों में कुछ न कुछ नई टेक्नोलॉजी रहती है. लेकिन नई हुंडई i20 आपको वो सारी टेक्नोलॉजी देती है जिसकी आपको सच में जरुरत होती है. जैसे हुंडई की ब्लूलिंक कनेक्टेड कार इकोसिस्टम, आपको OTA अपडेट के साथ मैप्स अपडेट करने देती है. इसका मतलब है आपके पास हमेशा यह सुनशिचत करने के लिए अपडेटेड मैप होगा कि आप कहां जा रहे हैं.

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इसके साथ ही, नई i20 7 स्पीकर BOSE म्यूजिक सिस्टम के साथ आता है. जो आपकी कार को अंदर से साउंड स्टेज में बदल देता है, जिससे आप कार-पुल कॉन्सर्ट भी कर सकते हैं.
इसके साथ ही स्मार्टफोन चार्जिंग सॉकेट, क्रूज़ कंट्रोल, वायरलेस चार्जिंग, एक सनरूफ और पुश-बटन स्टार्ट नई हुंडई i20 की विशेषताएं है. जो आपकी यात्रा को आसान बनाती है. इस तरह से नई हुंडई i20 #BringsTheRevolution हैं.

‘सिंबल’ से सत्ता पर पकड़ मजबूत करती भाजपा

लेखक- रोहित और शाहनवाज

दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बोर्डर पर हम किसान आन्दोलन कवर करने गए थे. आन्दोलन में ‘जय जवान, जय किसान’ के नारों की आवाज वहां तक पहुंच रही थी जहां दूर मीडिया की गाड़ियों के खड़े होने की जगह थी. उत्सुकता बढ़ी तो तेज क़दमों से धरनास्थल पर पैर दोड़ पड़े. वहां पुलिस के लगाए 2 लेयर बैरीकेडो के बीचोंबीच जा कर हम फंस गए. हमें बैरीकेड पार कर के किसानों की तरफ बढ़ना था. लेकिन अन्दर जाने का रास्ता ब्लाक था.

रास्ता खोज ही रहे थे कि तभी एक आवाज सुनाई दी, “भाइयों, रास्ता इधर है. इस रास्ते से आ जाओ.” मुड़े तो देखा कि एक 27 वर्षीय युवा (तेजिंदर सिंह) बैरीकेड के ठीक पीछे कुर्सी पर दिल्ली के तरफ मुह कर के खड़ा था. उस के हाथ में एक सफेद रंग की तख्ती (प्लकार्ड) थी. तख्ती पर लिखा था “गोदी मीडिया गो बेक.” वहीं उस के बगल में खड़े दूसरे आन्दोलनकारी की तख्ती पर कुछ मीडिया चैनलों के नाम के साथ ‘मुर्दाबाद’ के नारे लिखे हुए थे.

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अब यह दिलचस्प था कि किसान आन्दोलन में सरकार की नीतियों के साथसाथ मुख्यधारा की मीडिया की मुखालफत देखने को मिली. हम जानने के लिए उन की तरफ बढ़े, हायहेल्लो की फोरमेलिटी छोड़ कर सीधा प्रश्न पूछ पड़े, ‘इन तख्तियों का क्या मतलब है?’

तेजिंदर ने जवाब दिया, “हम किसानों का यह संघर्ष दो मोर्चों पर है. एक, तीनों कानून वापस करवाने आए हैं. दूसरा, हमारा संघर्ष सरकार के तलवे चाटने वाली गोदी मीडिया के खिलाफ भी है. हम इन के आगे चाहे कितनी भी सफाई दे दें, जो भी सच्चाई रख दें, ये लोग वहीँ दिखाएंगे जो सरकार इन से कहेगी. आज ये दोनों मिल कर हमें खालिस्तानी कह रहे हैं कल को कुछ और भी कह सकते हैं. मीडिया एक बार भी इन कानूनों को ले कर सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं कर सकती.”

तभी दूसरा युवक भी बातों में कूद पड़ा, उस ने तपाक से कहा, “ये (मीडिया) बस आन्दोलन को किसी भी तरह से बदनाम करना चाहते हैं. जो भी आवाज सरकारी नीतियों के खिलाफ उठती है उस आवाज को सब से पहले यही मीडिया विरोध करती है. इस का किसानों पर क्या असर पड़ेगा उन्हें इस से कोई मतलब नहीं. इन्हें तो मोटी मलाई मिल ही जाती है. हम यहां खड़े ही इसीलिए हैं ताकि उन्हें उन की बिकी हुई हकीकत दिखा सकें.”

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आन्दोलन में सरकार के साथसाथ मीडिया को ले कर प्रदर्शनकारियों में असंतोष का यह पहला उदाहरण नहीं था, बल्कि वहां देखने में आया कि किसान इन बातों को ले कर इतना सचेत थे कि अपनी बात रखने से पहले वे यह अच्छी तरह टटोल लेते कि फलां कौन सा चैनल है, रात के प्राइम टाइम में क्या चलाएगा, और हमें इन से कैसे बात करनी है?

मीडिया और सरकार को ले कर किसान प्रदर्शनकारियों का विश्वास पूरी तरह ख़त्म हो चुका है. आन्दोलन के शुरू से इन दोनों के रवैये को किसान समझ चुके थे. इस का कारण यह कि भाजपाई नेता लगातार आन्दोलन पर कोई हड्डी हवा में उछालता तो यह मीडिया लपक कर उस के ऊपर दौड़ पड़ता.

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मीडिया-सत्ता का गठजोड़

जून में विवादित कृषि सम्बंधित अध्यादेश आने के बाद से ही देशभर में किसान तरहतरह से अपने स्तर पर प्रदर्शन कर रहे थे. भारत में दुनिया के सब से सख्त लौकडाउन लगने के कारण इन अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब व अन्य राज्यों में लोग अपनी घरों की छत पर इकट्ठे हो कर ही इन कानूनों का विरोध कर रहे थे. समय के साथसाथ लोगों कि छतों और आंगन में होने वाले प्रोटेस्ट सड़कों पर उतर आए. एक समय बाद किसानों ने अपनी यूनियन के साथ इकट्ठे हो कर पंजाब में ‘रेल रोको आन्दोलन’ किया. और जब किसानों की मांग को सरकार ने अनदेखा कर दिया तो किसान अपनी मांग ले कर अभी दिल्ली के बौर्डर पर तैनात हो आए हैं. ये आन्दोलन समय के साथसाथ बड़ा हुआ है और किसान अपनी बात, अपनी मांगे जनता तक पहुंचाने में एक तरह से सफल भी हुए हैं.

लेकिन किसानों के इस आन्दोलन को सरकारी नुमाईन्दों और सत्ता की गोद में बैठी मीडिया, जिसे गोदी मीडिया कहा जाता है, ने बदनाम करने का एक भी मौका हाथ से जाने नहीं दिया. भाजपाई नेता और उस की आईटी सेल जो भी आरोप आन्दोलन के खिलाफ गढ़ते, उसे मुख्यधारा की मीडिया सरकारी भोपू की तरह दिनरात बजबजाती.

भाजपाई नेता और मीडिया द्वारा खालिस्तानी, देशद्रोही, टुकड़ेटुकड़े गैंग, आतंकवादी कनेक्शन, चीन-पाक कनेक्शन इत्यादि शब्दों से आन्दोलन पर कई सवालिया निशान खड़े किए जाते रहे है, यह इसलिए ताकि आमजन को पूरा मसला समझ में आए उस से पहले ही उन्हें भ्रम की दीवार के पीछे धकेल दिया जाए. आन्दोलन के खिलाफ नकारात्मक रिपोर्ट से सनी आज की मीडिया अपना चरित्र साफ़ दिखा चुकी है, जिसे किसान भी समझ रहे हैं.

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यह मीडिया की ही सच्चाई है कि पिछले 3 महीने से लगातार चले आ रहे इस आन्दोलन में- किसानों की मांग क्या है, यह कानून क्या है, आखिर वो मजबूर क्यों हैं, इसे स्पष्ट तौर से समझाने की जगह बस सरकारी आरोपों का भोपू बजाया गया है. सरकार की दमनकारी नीति तो दूर, इस बात को भी बड़े स्मार्ट तरीके से छुपाया गया कि किसान का यह आन्दोलन अदानी-अंबानी और चंद कॉर्पोरेट घरानों के खिलाफ भी है. जिस के पेट्रोलपम्पों, नेटवर्क, माल्स को किसान बायकाट कर रहे हैं.

यह सोचने वाली बात है जब तक किसान अपने प्रदेश में, राज्य स्तर पर प्रदर्शन कर रहे थे, तब तक सरकार इन पर ध्यान देना भी जरुरी नहीं समझ रही थी. लेकिन वही किसान अब जब अपनी मांगों को ले कर दिल्ली आ गए तो उन पर तरहतरह का टैग लगा कर उन के आन्दोलन को बदनाम करने पर उतारू है.

किसानों को दिल्ली के सिंघु बौर्डर पर आए अभी 2 ही दिन हुए थे कि 30 नम्वंबर को बीजेपी के सोशल मीडिया अकाउंट, खासकर ट्विटर और फेसबुक से प्रदर्शन करने आए किसानों पर ‘खालिस्तानी’ होने का टैग लगा दिया. वैसे तो यह सब टैगिंग का काम भाजपा के अंधभक्त पहले से ही कर रहे थे, लेकिन आधिकारिक रूप से भाजपा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से ट्वीट कर किसानों के आन्दोलन को ‘खालिस्तानी’ होने कि बात कही.

सिर्फ सोशल मीडिया हैंडल ही नहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तो यह तक कह गए कि, “अगर ये लोग इंदिरा गांधी को कर सकते हैं तो ये मोदी को क्यों नहीं कर सकते.” इस के साथ ही खट्टर ने इन किसानों के ‘प्रो खालिस्तान और प्रो पाकिस्तान’ होने का भी टैग लगा दिया था.

ठीक उसी दिन उत्तराखंड भाजपा के नेता दुष्यंत कुमार गौतम ने कहा कि, “इन किसानों का इस प्रोटेस्ट से कोई लेना देना नहीं है. इसे आतंकवादियों और राष्ट्र विरोधी ताकतों द्वारा अपहरण कर लिया गया है. प्रोटेस्ट में आए कुछ लोग महंगी कारों और अच्छे कपड़ों में देखे गए, वह किसान नहीं हो सकते.” कुछ इसी तरह का बयान केन्द्रीय मंत्री वीके सिंह ने भी दिया. उन्होंने कहा कि कपड़ों से ये लोग किसान नहीं लगते हैं.

लोगों को गुमराह करने में महारत हासिल करने वाले भाजपा के सोशल मीडिया चीफ अमित मालवीय ने 2 दिसम्बर को इन्टरनेट पर वायरल हो रहे एक विडियो का अधूरा हिस्सा दिखा कर ट्वीट किया कि पुलिस वालों ने किसी किसान पर लाठियों से हमला नहीं किया. जिस के जवाब में किसी राजनैतिक पार्टी ने नहीं बल्कि ट्विटर की कंपनी ने ही उस ट्वीट को ‘मैनीप्युलेटेड मीडिया’ (मीडिया में हेर फेर) का टैग लगा दिया. भारत में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी व्यक्ति के ट्वीट को ट्विटर ने ‘मैनीप्युलेटेड मीडिया’ का टैग दिया हो.

3 दिसम्बर के दिन दिल्ली भाजपा के एमपी मनोज तिवारी ने किसान आन्दोलन को ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ द्वारा संचालित करने का आरोप लगाया. इस आन्दोलन को उन्होंने ‘सुनियोजित साजिश’ करार दिया और कहा कि ये गैंग इस प्रोटेस्ट को शाहीन बाग जैसा बनाना चाहते हैं. कहा कि ये शाहीन बाग 2.0 बनाने की पूरी तैयारी है. 6 दिसम्बर को भाजपा के जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष ने किसान आन्दोलन कर रहे किसान यूनियनों पर ‘दोगला’ होने का आरोप भी लगाया.

किसान आन्दोलन की मांगों का समर्थन कर रहे ऊंचे अवार्ड और पदकों से सम्मानित खिलाड़ियों के अवार्ड वापिस करने को ले कर मध्य प्रदेश भाजपा के नेता कमल पटेल का अजीबोंगरीब बयान भी सामने आया. जिस में उन्होंने कहा, “अवार्ड वापसी करने वाले सभी लोगों ने भारत माता को गाली दी है और देश के टुकड़े करने की कसम खाई है. अवार्ड वापसी करने वाला कोई भी देशभक्त नहीं है.”

9 दिसम्बर को केन्द्रीय मंत्री राओसाहेब दानवे ने यह दावा किया कि इस प्रोटेस्ट के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. उन के अनुसार चीन और पाकिस्तान इस प्रोटेस्ट की फंडिंग कर रहा है. यहां तक कि अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति आन्दोन में दिख जाए तो उस का ऐसा एंगल दिखाया जाता मानो वह संदिग्ध हो, उस ने वहां जाकर कोई गुनाह कर दिया हो. ऐसे में सवाल यह बनता है कि देश में क्या कोई मुस्लिम समुदाय से आने वाला व्यक्ति किसान नहीं हो सकता?

इस के बाद 11 दिसम्बर ‘ह्यूमन राइट्स डे’ के दिन सिंघु बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन (उग्रहन) के किसानों ने देश की जेलों में कैद उन लोगों को रिहा करने की मांग भी उठाई जो सरकार की तीखी आलोचना करते थे और जिन पर अभी तक कोई आरोप सिद्ध नहीं किया जा सका है. जिन में वरवरा राव, शर्जील इमाम, उमर खालिद, फादर स्टेन, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और भी कई ऐसे नाम है जिन पर सरकार द्वारा यूएपीए कानून के तहत काफी लम्बे समय से जेल में बंद हैं. और इस लिस्ट में कई नाम ऐसे भी है जो किसानों के अधिकारों को लेकर लम्बे समय से संघर्ष कर रहे थे. और बड़ी अजीब बात यह है कि सरकार इन में से किसी के खिलाफ सबूत नहीं जुटा पाई है.

अब माओवादी और देशद्रोह कनेक्शन..

इन सब आरोपों के बाद सरकार ने इन दिनों आन्दोलन को बदनाम करने के लिए कुछ और आरोपों को इन में शामिल कर दिया है. अब जाहिर सी बात है, ‘खालिस्तान’ की पीपरी, यूपी, बिहार और हरियाणा में बैठे किसान परिवार के समझ के परे था तो सरकार को ऐसे सिंबल की जरुरत थी जो उन के आरोपों को सार्थक कर सके. यही कारण था कि माओवादी, देशद्रोही, टुकड़ेटुकड़े गैंग की हवा फिर से बनाने की पूरी कवायद चल रही है. जिस के लिए सरकार ने “सरकारी सूत्रों” (केन्द्रीय ख़ुफ़िया ब्यूरो) का हवाला देते हुए यह खबर खूब जौरशौर से चलवा दी कि किसानों के इस आन्दोलन को ‘अल्ट्रा लेफ्ट’, ‘प्रो लेफ्ट विंग’, ‘एक्सट्रिमिस्ट एलिमेंट’ और ‘माओवादियों’ ने हाईजैक कर लिया है.

पंजाब के संगरूर जिले से मंजीत सिंह से जब इन आरोपों के बारे में पूछा गया तो वे कहते हैं, “ये सब झूठे आरोप लगा कर सरकार हमारे आन्दोलन को बदनाम करना चाहती है. और इस आग में घी डालने का काम गोदी मीडिया कर रहा है. इस देश को गर्त में ले जाने का काम जितना देश की सरकार ने किया है उस से कहीं बड़ा योगदान हमारी दलाल मीडिया का है. हम सीधेसाधे किसान हैं जो अपने हक मांगने सरकार के पास आए हैं.”

वे आगे कहते हैं, “सरकार इन कानूनों को वापस लेने से डरती है, क्योंकि इस से उन के चंद कॉर्पोरेट दोस्तों के हित जुड़े हुए हैं. यही कारण है कि वे हम पर बदलबदल कर आरोप लगा रहे हैं. खालिस्तानी, आतंकवादी चल नहीं पाया तो माओवादी कहना शुरू कर दिया है. सरकार बौखलाई हुई है, क्योंकि वे नैतिक दबाव में फंस चुके हैं, इस लिए हमारे आन्दोलन को अनैतिक दिखाने की कोशिश कर रही है. यही कारण है वे हम पर झूठे आरोप लगा रही है.”

इसी मसले पर सिंघु बोर्डर पर आए करमजीत ने फोन पर बात करते हुए बताया कि, “अगर सरकार को पता है कि आन्दोलन में खालिस्तानी, आतंकवादी, माओवादी, देशद्रोही वगेरावगेरा हैं तो आए उन्हें गिरफ्तार करे. चुप क्यों बैठे हैं. चुप बैठ कर तो वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ कर रहे हैं, यानी यह दिखाता है कि बस कीचड उछालना चाहती है.” करमजीत मानते हैं कि भाजपा ने इन 6 सालों में अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए कुछ तरह के नए सिंबल गढ़े हैं. या पुराने सिंबल को जौरशौर से इस्तेमाल किया है, जिस में मीडिया के बड़े हिस्से ने उन का साथ दिया है.

सिंबल के इर्दगिर्द राजनीति

किसी भी तरफ की राजनीति में ‘पहचान’, ‘टेग’ व ‘सिंबल’ एक अहम् चीज होती है. फिर चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक. इन ‘सिंबल’ को स्थापित करना किसी भी राजनेता के लिए राजनीतिक विजय के समान होता है. यह वही ‘पहचान’ होते हैं जो राजनेता को राजनीतिक फायदा व नुकसान पहुंचाते हैं, यही कारण है कि सब से पहले राजनेता इन्ही को गढ़ने की कोशिश करता है. आज भाजपा इतनी ताकतवर है कि उस ने अपने विरोधियों के खिलाफ ऐसे कई टैग गढ़ दिए हैं जिस से ने बड़े ही

2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में काबिज हो रहे थे, उस से पहले वे खुद के लिए योजनाबद्ध तरीके से हिन्दू हृदय सम्राट, साधूसंत, सन्यासी, फ़कीर, विकासपुरुष, ईमानदार जैसे शब्द स्थापित करवा चुके थे. वहीं उस समय के विपक्षी नेता उम्मीदवार राहुल गांधी के लिए शहजादा, पप्पू, नौसिखिया, मां का लाडला जैसी पहचान घरघर तक पहुंचा चुके थे. जिस से आमजन में प्रधानमंत्री के चेहरे के लिए एक स्पष्टता बनी.

यह इमेज को बनाने और बिगाड़ने का खेल राजनीति की प्रमुख पहचान है. राजनीति में यह सिंबल ना सिर्फ किसी की हस्ती को बनानेडुबाने के काम आते हैं बल्कि सत्ता में बैठे सत्ताधारियों का अपने खिलाफ उठ रहे विरोधों को कुचलने के भी काम आते हैं. मौजूदा समय की बात की जाए तो भाजपा इन सिंबल व अपने प्रचार तंत्र के सहारे कई आंदोलनों का दमन कर चुकी है.

यही कारण था, जुलाई 2015 में दलित छात्र स्कोलर रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद उठ रहे देश में विरोधों को ख़त्म करने के लिए, देश में आंदोलित छात्रों पर सब से पहले हमला किया गया, और उन्हें कथित ‘टुकड़ेटुकड़े गैंग’ सिंबल दिया गया, जो आज तक छात्र आन्दोलन के लिए नासूर बना हुआ है. इस शब्द के बड़े राजनीतिक मायने रहे हैं. इस के जरिए समाज में एक अलग तरह का डिस्कोर्स खड़ा किया गया. देशभक्त बनाम देशद्रोह की बहस छेड़ी गई. बाजार में दाल चावल की बढ़ी कीमतों से परेशान आम व्यक्ति के लिए भी फलाने यूनिवर्सिटी में कुछ नौसिखियों छात्रों द्वारा चली बहस प्राथमिकता बन गई. और पूरा मामला भाजपा के लिए अंधभक्ति फैलाने के नजरिए से मील का पत्थर बन गया.

ठीक इसी तरह की ‘सिंबल’ की राजनीति मोदी सरकार के खिलाफ उठे उन तमाम विरोधों, आपत्तियों और असहमतियों के विरुद्ध भाजपाइयों द्वारा की गई, जहां बुद्धिजीवियों को ‘अर्बन नक्सल’, असहमति में अवार्ड लौटाने वालों को ‘अवार्ड वापसी गैंग’ इत्यादि टेग दिए गए.

इसी कड़ी में सीएए-एनआरसी आन्दोलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने झारखंड के दुमका से आगजनी करने वालों को कपड़ों से पहचानने की सलाह दे दी. वैसे तो यह तय है कि तमाम मीडिया और सरकारी तंत्र ने आज अल्पसंख्यक समुदाय को संदिग्ध की केटेगरी में डाल ही दिया है, फिर चाहे वह ‘मोब लिंचिंग’ के समय से हो, या सीएए-एनआरसी के समय हो, इस समझने के लिए कोरोना काल में तबलीगी जमात से वाले प्रकरण को लिया जा सकता है. लेकिन इस के साथ जो भी सरकार की आंख में किरकिरी पैदा करता है उसे यह सरकार सिंबल के माध्यम से बदनाम करवाती है, जैसे लौकडाउन के समय मजदूरों को कहा जा रहा था कि वे कोरोना वाहक हैं.

आज किसानों के आन्दोलन में भी यही देखने को मिला है, जहां कानूनों पर चर्चा से ज्यादा सरकार और मीडिया नए सिंबल गढ़ने का या तो प्रयास कर रही है, या पुराने सिम्बलों के जरिए आन्दोलन को कटघरे में खड़ा कर रही है. बस इस बीच जो नहीं हो पा रहा वह किसानों को इन कानूनों से होने वाली समस्या और कानूनों के फायदे नुकसान पर सिलसिलेवार चर्चा है.

एकता कपूर ने शेयर किया अपने खास दोस्त के साथ तस्वीर, क्या सच में शादी करने जा रही हैं?

टीवी सीरियल निर्माता एकता कपूर ने हाल ही में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक तस्वीर शेयर की है जिसे शेयर करते हुए एकता कपूर ने कहा है कि हम आपको जल्द बताएंगे.

एकता कपूर ने अपने खास दोस्त के साथ कैंडिड फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि हम बहुत जल्द बताएंगे. जिसे देखते ही फैंस ने अपने ब्रेसब्री को तोड़ते हुए उन्हें बधाई दिया. इस तस्वीर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है.

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आपको भी इस तस्वीर को देखने के बाद जानना चाहेंगे कि आखिर कौन है ये बंदा. हम बता दें कि यह कोई ऐसा लड़का नहीं है यह एकता कपूर के खास दोस्त तनवीर बुकवाला है. लोग इस तस्वीर को देखने के बाद कयास लगा रहे है कि क्या ये कपल जल्द शादी करने वाले हैं.

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तनवीर ने फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा है कि अब वक्त आ गया है दोस्ती रिश्तेदारी में बदलने का. तनवीर बुकवाला ने कई सारी कैंडिड फोटो अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया है.

 

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इस तस्वीर में एकता कपूर की मां के साथ मनीश मल्होत्रा भी नजरआ रहे हैं. बता दें कि एकता कपूर जितेन्द्र कि बेटी है. हालांकि अभी तक एकता कपूर ने खुलकर ये नहीं कहा है कि हम शादी करने जा रहे हैं.

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एकता कपूर टीवी जगत की क्वीन है. आए दिन नए-नए सीरियल करती रहती हैं. जिसे दर्शक बहुत ज्यादा पसंद करते हैं.

बिग बॉस 14 के घर से बाहर जाते ही विकास गुप्ता ने शेयर किया इमोशनल पोस्ट

बीते हफ्ते बिग बॉस 14 के घर में कई पुराने कंटेस्टेंट की एंट्री हुई थी. मनु पंजाबी, विकास गुप्ता, राखी सावंत , राहुल महाजन, अर्शी खान और कश्मीरा शाह. इसी बीच विकास गुप्ता और अर्शी खान के साथ जमकर लड़ाई हो रही थी . लड़ाई के दौरान विकास गुप्ता फिजीकल हो गए थे. जिसके बाद उन्हें बिग बॉस के घर से बेघर होना पड़ा.

विकास गुप्ता बिग बॉस के घर से बाहर निकलते ही अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर किया है. वीडियो शेयर करते हुए विकास गुप्ता ने कहा है कि मैंने खुद को कमरे में बंद कर लिया है अब मैं विचार कर रहा हूं कि मेरे साथ ऐसा क्यूं हुआ है. कई बार हमारी लाइफ सही नहीं चलती हैं लेकिन इन सभी के बावजूद हमें आगे बढ़ना पड़ता है.

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विकास एक वीडियो में आगे कहते हैं आप सभी को हेल्लो मैं आप अपने आप को एक सुरक्षित जगह पर कैद कर लिया है. जहां हमें देखना है कि आगे मुझे क्या करना है. मेरे साथ जो हुआ बहुत ज्यादा गलत हुआ. आप सभी ने हमें इतना प्यार दिया उसके लिए धन्यवाद .समय बहुत बहुत कुछ कहता है हमें दुख अपनों से ही मिलता है इसलिए हमें अपने आप को मजबूत बनाकर रखना चाहिए.

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हालांकि जब विकास गुप्ता घर में एंट्री कर रहे थे तो शो के होस्ट सलमान खान ने उनसे पूछा कि वह किस कारण शो को कर रहे तो विकास ने कहा मुझे पैसे की जरुरत है.

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अब देखना है कि शो के आखिरी तक क्या होता है. कौन बनेगा शो का विनर.

“मैं ने आरएसएस क्यों छोड़ा?”

‘कहते हैं, उम्र ही वो तजुर्बा होती है जो जीने का सही मकसद सिखा देती है. सही और गलत के बीच का फर्क बता देती है. गर एक बार सहीगलत का फर्क समझ आ जाए तो रास्ता चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, खतरनाक ही क्यों न हो, मौत की आगोश में लेटते समय चेहरे पर शर्मिंदगी की जगह फक्र का तेज बह रहा होता है और सीने में बोझ की जगह जीवन के सही निर्णय लिए जाने की संतुष्टि प्राप्त हो रही होती है.’

ठीक ऐसी ही चमक महावीर सिंह के चेहरे पर देखने को मिली. दिल्ली के नीलवाल गांव में रहने वाले 70 वर्षीय बुजुर्ग महावीर सिंह पेशे से किसान हैं. वे हर रोज टिकरी बोर्डर पर अपना किसानी फर्ज निभाते हुए आन्दोलनकारी किसानों की ‘साइड’ खड़े मिल जाते हैं. ‘साइड’ कहने का आशय यह कि एक तरफ मौजूदा सरकार है जिस ने भयंकर आर्थिक मंदी के दौर में भी हजारों करोड़ की नई संसद की दीवारों को पहले से मोटा और ऊंचा करवाने की ठान ली है ताकि गरीबों की चीखतीबिलखती आवाज संसद के भीतर बैठे नेताओं के कान तक ना पहुंच पाए. वहीँ दूसरी तरफ वे किसान हैं जो देश का पेट भरतेभरते, आज इन 3 कृषि कानूनों से खुद की रोटी छिनने के डर से सहमे हुए हैं.

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3 कृषि कानूनों के विरोध में शामिल हुए महावीर, सिर पर विवेकानंद अंदाज में लपेटी पगड़ी, कांधे पर झोला और हाथ में कुछ पर्चे बांटते नजर आए. ‘मैं ने आरएसएस क्यों छोड़ा’ शीर्षक वाले पर्चे से वे अपने व्यक्तिगत अनुभव वहां दूरदराज से आए आन्दोलनकारियों के बीच साझा कर रहे थे. मेरे लिए दिलचस्प बात यह थी कि एक बुजुर्ग जिन के कमजोर पैर अब जवाब देने लगे हैं, किसी जमाने में मजबूत रहा शरीर अब झुकने लगा है, वह चाहे तो घर में रह कर बाकी बचे जीवन को आराम से जी सकते हैं, फिर क्यों इस ठिठुरती ठंड में नैतिक जिम्मेदारी का बौझा लिए हर रोज घर से बाहर निकल पड़ते हैं.

उन से जब इस की वजह पूछी तो वे बताते हैं, कि “आरएसएस एक सोफ्ट पोइजन की तरह देश में काम कर रही है. वह कॉर्पोरेट के फंड से उन के हितों के साथसाथ अपने हित साधने में लगी है. मौजूदा पारित कृषि कानून उन्ही हितों का रूप है. आरएसएस सामाजिक संस्था नहीं, वह पूरी तरह से राजनीतिक संस्था है, जिस का मकसद लोगों को जाति, धर्म और वर्ग के नाम पर आपस में बांटे रखना है. मैं अपने स्तर पर इस संस्था की सच्चाई लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं.”

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बकौल महावीर, आपातकाल के दौरान वे दिल्ली विश्वविद्यालय के वेंकटेश्वर कालेज में पढ़ रहे थे. उस दौरान उन की रूचि आरएसएस संगठन में जगनी शुरू हुई थी. वे युवा थे तो आपातकाल के खिलाफ आन्दोलन में शामिल होना चाहते थे. उस समय जय प्रकाश नारायण के भाषण सुनते थे. किन्तु, इस के साथ वे संघ की किताबें पढ़ने लगे थे. उन्हें दिलचस्पी हुई कि संघ के बारे में भीतर से जाना जाए.

वे कहते हैं, “1977 में मैं अपने मामा के यहां शाहपुरा जट में रहने लगा. वे जनता पार्टी में मेंबर थे. साथ ही वे हौज खास में आरएसएस की शाखा चलाया करते थे, उन के कहने पर मैं शाखा जाने लगा. वहां हमें हर रोज वंदना करना, व्यायाम करना, श्री राम के उद्घोष और लाठियां भांजना सिखाया जाता था. वहां कहा जाता था की आरएसएस समाज के लिए काम करता है हमारा राजनीतिक पार्टियों से कोई लेनादेना नहीं. इसलिए समाजसेवा के लोभ में मेरी तरह बाकि युवा भी उन से आकर्षित होते रहे.

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“कुछ महीने बाद कुरुक्षेत्र में आरएसएस का ओटीसी (ऑफिसियल ट्रेनिंग कोर्स) केम्प लगा, तो मेरा भी वहां जाना हुआ. मैं उस दौरान आरएसएस का एक्टिव सदस्य बन चुका था, छोटेबड़े नेता से जानपहचान होने लगी थी. हमें वहां बताया गया कि गांधी वध जरुरी था, सभी वामपंथी शत्रु हैं, संघ का शासन चलेगा तो हिन्दू राष्ट्र आएगा, हिन्दू धर्म के आधार पर ही देश इकठ्ठा रह सकता है, यह देश हिंदुओं का है और हिन्दुओ को ही रहने का अधिकार होना चाहिए. मजदूरों-किसानों को आन्दोलन नहीं करना चाहिए. वहां हमें समझाया जाता था कि आप को संघ के बारे में क्या कहना है, क्या प्रचार करना है.

“लेकिन उस दौरान मेरे मन में तमाम सवाल तैर रहे थे. धर्म की किताबों में कहीं भी हिन्दू शब्द नहीं है तो हिन्दू राष्ट्र कैसा? धर्म के आधार पर कोई देश इकठ्ठा रहता तो नेपाल हम से अलग क्यों है? इस्लामिक देश पाकिस्तान के टुकड़े क्यों हुए? मध्य पूर्वी देश अलगअलग क्यों बंटे हैं? यूरोप और अमेरिका के इसाई देशों में सीमाएं क्यों हैं?

“अगर हमारा राजनीति से मतलब नहीं तो जनसंघ क्यों बनाया गया है? आज तो जनसंघ की जगह भाजपा ने ले ली है. वे (आरएसएस) उन्हें खुला समर्थन देती है, बल्कि कानून तो संघ कार्यालय से ही बन कर चलते हैं. उन के हर फैसलें के पीछे आरएसएस खड़ी दिखती है. अगर राजनीति से दूरी की बात सही होती तो आज भाजपा और देश की सत्ता में सभी बड़े पदों पर आरएसएस के नेता क्यों बैठे हैं? क्या उन्हें गद्दी का लोभ है? क्या वे पद के नशे में मदमस्त को चुके हैं? यह दिखाता है कि इस का मकसद समाजसेवा नहीं बल्कि उस की आड़ में देश पर शासन करना है. यह अपनी काली टोपी के पीछे काली करतूतें छिपाते हैं.

“अगर मजदूर-किसान को कोई समस्या है तो वे अपने आन्दोलन क्यों नहीं कर सकते, क्या उन्हें हक़ नहीं? अगर अपने हक़ की आवाज नहीं उठाएंगे फिर तो वे दबे के दबे रह जाएंगे. वे कहते थे कि सरसंघ चालक पूजनीय होते हैं उन के आदेश का हर हाल में पालन करना चाहिए, लेकिन क्यों? वे गलत भी तो हो सकते हैं. अगर वे सही हैं तो गुप्त दान क्यों लेते हैं. ये धन्ना सेठों के हक़ में कानून क्यों बनाना चाहते हैं? आज उन का एक किसान संगठन (भारतीय किसान संघ) भी है, फिर किसानों के पक्ष में बयान देने के बावजूद वह हमारे आन्दोलन के साथ मुखर क्यों नहीं हो पा रहा? क्योंकि पीछे से मना किया गया है.

“शाखा में हमें व्यायाम के दौरान ट्रेनिंग दी जाती थी. वे लेफ्ट, राईट, सावधान, विश्राम, उठाना बैठना करवाती थी. मार्च करवाती थी. लेकिन ऐसा क्यों? ताकि हम बस आदेश फोलो करने वाले बनें, वे बाएं मुड़ने को कहें तो बाएं मुड़ जाएं, दाएं कहें तो दाएं. हमारा खुद का दिमाग बस उन के आदेशों के नियंत्रण में रहता था.”

महावीर सिंह आगे कहते हैं, “उस दौरान कई ऐसे सवाल मेरे दिमाग में चल रहे थे, जिस का जवाब वे गोलमोल घुमा कर देते थे. मैं ने कुछ दिन जाना छोड़ा तो वे घर में मुझे बुलाने आया करते थे. वे हमेशा स्वदेशीस्वदेशी कहते रहते थे लेकिन आज इन की पार्टी खुद बाहर जा जा कर कम्पनियां के आगे हाथ जोड़ रही है.”

महावीर सिंह का मानना था कि भारत में अधिकतर मुस्लिम हिन्दूओं में दलित व पिछड़े समुदाय से कन्वर्ट हुए हैं. देश में धर्म के चुनाव की आजादी कानूनन है. अब वे (मुस्लिम) चाहे तो हिन्दू बनना चाहे इस पर कोई रोक नहीं, और गर हिन्दू नहीं भी बनना चाहे तो उस पर भी कोई जबरन नहीं. अब इस कारण उन्हें यह नहीं कहा जा सकता है कि वे बाहरी हैं और उन्हें देश से निकल जाना चाहिए. जितना यह देश हिंदुओं का है उतना ही मुस्लिमों का. नफरत से कुछ नहीं होने वाला.

वे कहते हैं, “मुझे इन से सब से ज्यादा दिक्कत तब हुई, जब पता चला कि जनसंघ इन्ही की पार्टी है. जिस कारण मैं ने संघ छोड़ दिया. पहले तो ये खुद को राजनीति से दूर बताते हैं, किन्तु पीछे से सारा काम राजनीति का करते हैं. यहां तक कि ये शाखा के माध्यम से हर बात पर जीहुजूरी वाली फौज खड़ा कर रहे हैं. जो इन के लिए फ्री में प्रचारप्रसार और मेहनत करे. ये सिर्फ झूठ का प्रचार कर रहे हैं. जो विनाश की तरफ ले कर जाएगा.”

नए कानूनों को ले कर महावीर का साफ़ मानना है कि यह सिर्फ कंपनियों के लिए बनाया गया कानून है. कुछ बाहरी पूंजीपति और कुछ यहीं के पूंजीपति को इन कानूनों फायदा पहुंचेगा. ये जिस नीति पर चल रहे हैं, ऐसी नीतियों से देश गढ्ढे में जा रहा है.

वे कहते हैं, “मोदीजी ने कहा यह तीनों कानून गंगाजल की तरह पवित्र हैं, जबकि यह सफेद झूठ है. लेकिन आज कह रहे हैं संशोधन के लिए तैयार हैं, अरे जब गंगाजल की तरह पवित्र थे तो संशोधन की जरुरत क्यों पड़ी, यानी उन के मन में कुछ तो खोट था.”

अपनी बात बताते हुए महावीर वहीँ मंच के सामने बिछी दरी पर जा बैठे और मंच से वक्ताओं को ध्यान से सुनने लगे, वे एकएक बात पर गौर कर रहे थे. मंच से किसान एकता जिंदाबाद का नारा लगा, जिस के जवाब में महावीर ने भी जोर से ‘जिंदाबाद’ लगा दिया.

सरसों के तेल के हैं अनेक फायदें,जानें यहां

जाती हुई सर्दी और गर्मियों की दस्तक के साथ ही एक बहुत सामान्य सी समस्या हमारे स्किन की रहती है.. इस समय की तेज हवाएं स्किन को और बेज़ान बना देता है और कई कई बार माश्चराइजर लगाने के बाद भी डेड स्किन पपड़ी बनकर निकलने लगती है जिससे नहाने के बाद खुजली भी होने लगती है l केवल माश्चराइजर लगाने से इस समस्या का हल नहीं मिलता.

इस समस्या से जल्दी छुटकारा पाने और त्वचा को नर्म और चमकदार बनाने के लिए बहुत बेहतर उपाय है – “सरसों के तेल से मसाज”सरसों के तेल से मसाज करने से ज़मी डेड स्किन बाहर आती है और रूखी त्वचा भी नर्म हो जाती है. मगर हम तेल इसलिए नहीं इस्तेमाल करना चाहते हैं क्यू कि इसमें चिपचिपाट ज्यादा होती है, इसलिए इसको नहाने से पहले लगाना बेहतर रहता है.

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सरसों के तेल को पूरे शरीर पर अच्छे से मल ले और आधे घंटे बाद फिर अपनी जरूरत और पसंद के हिसाब गुनगुने या ठंडे पानी से नहा ले..वैसे तो केवल पानी से नहाकर साफ तौलिये या मुलायम कॉटन के कपड़े से रगड़ कर पोछना बेहतर रहता है.. इससे डेड स्किन भी हट जाती है और स्किन मुलायम और चमकदार दिखती है..

लेकिन आप सोप से नहाना चाहते हो तो भी कोई दिक्कत नहीं है.. आप सोप इस्तेमाल कर सकते हैं.. बस ध्यान रखे कि मसाज करने के आधे घंटे बाद ही नहाए ताकि तेल स्किन अच्छे से आब्जर्व कर ले.
ऐसा हफ्ते में दो से तीन बार करने से महीने भर के अंदर ही इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा. ये खासकर सूखी त्वचा के लिए तो बहुत ही बेहतर उपाय है..

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संभव हो तो हाथ और पैरों में रोज ही नहाने से 10 मिनट पहले हल्का सा तेल लेकर भी मसाज कर सकती हैं क्यू कि खुले अंगों पर ज्यादा सूखापन दिखता है. मगर तेल सरसों का ही होना चाहिए.. अगर घर का शुद्ध तेल है तो बहुत अच्छा नहीं तो बाजार से खरीद कर भी इस्तेमाल करना ठीक रहेगा.

वैसे मसाज हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है.. इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है.. स्किन स्वस्थ्य रहती है.. कोई भी मौसम हो.. महीने में एक बार मसाज करना आपकी स्किन के लिए अच्छा रहेगा.. इससे स्किन भी टाइट रहती है.. नेचुरल टोनर का काम करता है..सरसों के तेल में विटामिन ई भरपूर मात्रा में होता है जो त्वचा को पोषित करता है और भरपूर नमी भी देता है. इसके इस्तेमाल से शरीर और जोड़ों का दर्द भी जाता रहेगा क्यू कि इसमें दर्द नाशक गुण भी है.एक बार जरूर आजमाये.

लंच में बनाएं ब्रेड बिरयानी

ब्रेड बिरयानी एक बहुत ही बेहतरीन डिश है. यह चावल से तैयार की जाती है. और इसे बनाना भी बेहद आसान है. आप अपने परिवार के साथ इस डिश का जरूर आनंद लें.

सामग्री

बादाम- 4-5 (भीगे हुए)

काली मिर्च- आधा छोटा चम्मच

जीरा पाउडर- आधा छोटा चम्मच

इलायची- 2 (हरी वाली)

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लौंग- 1

दालचीनी- 1

अदरक का पेस्ट- आधा चम्मच

लहसुन का पेस्ट- आधा चम्मच

बासमती चावल- 1 कप

नारियल का दूध- डेढ़ कप

मटर- एक चौथाई कप

मूली- एक चौथाई कप (घिसी हुई)

गाजर- एक चौथाई कप (घिसा हुआ)

नारियल- एक चौथाई कप (घिसा हुआ)

प्याज- 2 (बारिक कटे)

ब्रेड स्लाइस- 4

काजू- 4-5

बादाम- 4-5 (भीगे हुए)

काली मिर्च- आधा छोटा चम्मच

जीरा पाउडर- आधा छोटा चम्मच

इलायची- 2 (हरी वाली)

लौंग- 1

दालचीनी- 1

अदरक का पेस्ट- आधा चम्मच

लहसुन का पेस्ट- आधा चम्मच

घी- 3 चम्मच

करी पत्ता- 5-6

धनिया पत्ता- बारीक कटा हुआ

नमक स्वादानुसार

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बनाने की  विधि

इलायची, लौंग और दालचीनी को हल्का सा भूनकर अच्छी तरह से पीसकर सूखा पाउडर बना लें. एक पैन में घी गर्म करें और उसमें बासमती चावल को करीब 45 सेकंड तक अच्छी तरह से भून लें.

अब इसी पैन में थोड़ा और घी डालकर ब्रेड के टुकड़ों को भी क्रिस्प होने तक भून कर अलग रख लें. बादाम, काजू और नारियल को पीसकर स्मूथ पेस्ट बना लें.

अब एक प्रेशर कूकर में घी गर्म करें. इसमें इलायची-लौंग-दालचीनी का पाउडर, अदरक-लहसुन का पेस्ट, प्याज, नमक और करी पत्ता डालकर अच्छी तरह से मिलाएं.

2-3 मिनट तक अच्छी तरह से पकाएं. अब इसमें गाजर, मूली, हरी मटर और नारियल का पेस्ट मिलाएं. अच्छी तरह से मिलाने के बाद इसमें नारियल का दूध डाल दें.

जब एक उबाल आ जाए तो इसमें बासमती चावल डालकर कूकर का ढक्कन बंद कर दें और 2 सीटी आने तक पकाएं.

जब बिरयानी बन जाए तो उसमें जीरा पाउडर, काली मिर्च पाउडर, ब्रेड के टुकड़े और हरी धनिया डालकर गर्मा गर्म सर्व करें.

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Crime Story: हम बेवफा न थे

सौजन्य- सत्यकथा

31जनवरी, 2020 की बात है. नैनीताल जिले के थाना रामनगर में किसी अज्ञात

व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि गांव बैलपोखरा के एक खेत में किसी महिला की झुलसी हुई लाश पड़ी है.

हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी दिनेश नाथ महंत घटनास्थल पर जाने के लिए तैयार हो गए. जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को सूचना देने के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ उस जगह पहुंच गए, जहां लाश पड़ी होने की सूचना थी.

वहां पर आसपास के गांवों के कई लोग जमा थे. थानाप्रभारी ने लाश का मुआयना किया, वह इस हद तक जल चुकी थी कि उसे पहचानना मुश्किल था. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने युवती की हत्या कर लाश पर जला हुआ मोबिल औयल डाल कर जलाया है, क्योंकि वहां आसपास काले मोबिल औयल के छींटे पड़े थे. हत्यारे ने यह सब लाश की पहचान मिटाने के लिए किया था.

थानाप्रभारी लाश के बारे में वहां मौजूद लोगों से पूछताछ कर ही रहे थे कि एसएसपी सुनील कुमार मीणा, एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव और सीओ साहब भी पहुंच गए. सभी अधिकारियों ने लाश और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. लेकिन वहां ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से लाश की शिनाख्त कराने में आसानी होती.

घटनास्थल के आसपास पुलिस को किसी कार के टायरों के निशान दिखाई दिए. इस से आशंका जताई गई कि संभव है मृतका रामनगर थानाक्षेत्र के बजाए कहीं दूसरे जिले की भी हो सकती है. यह स्पष्ट था कि लाश को ठिकाने लगाने में किसी कार का उपयोग किया गया है. वरिष्ठ अधिकारियों के दिशानिर्देश मिलने के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल से जरूरी सबूत इकट्ठे कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

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एसएसपी सुनील कुमार मीणा ने इस केस को खोलने के लिए थानाप्रभारी दिनेशनाथ महंत के नेतृत्व में तेजतर्रार पुलिसकर्मियों की एक टीम बनाई. टीम के सामने समस्या यही थी इस केस की जांच कहां से शुरू की जाए, क्योंकि पुलिस को कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था.

घटनास्थल के पास टायरों के निशानों से किसी कार के वहां आने की संभावना थी. कार किस की थी, यह पता लगाना आसान नहीं था.

अगले दिन थानाप्रभारी को मृतका की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में बताया गया कि महिला की हत्या रस्सी जैसी किसी चीज से गला घोंट कर की गई थी.

 

थानाप्रभारी ने सब से पहले नैनीताल जिले के सभी थानों से यह जानकारी हासिल की कि किसी थानाक्षेत्र की महिला की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन किसी थाने से किसी महिला की गुमशुदगी की कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद पुलिस टीम ने जिले के अलगअलग थानों के आपराधिक प्रवृत्ति के 30 लोगों को पूछताछ के लिए उठाया. उन सभी से कई दिनों तक अलगअलग तरीके से पूछताछ की गई लेकिन उन से कोई भी ऐसी जानकारी नहीं मिली, जिस से मरने वाली की पहचान हो सकती.

पुलिस की एक टीम इस बात की जांच करने में जुट गई कि घटनास्थल तक किनकिन रास्तों से हो कर जाया जा सकता है. इस के बाद इसी टीम ने पता लगाना शुरू किया कि उन रास्तों पर सीसीटीवी कैमरे कहांकहां लगे हैं. इस से पुलिस यह पता लगाना चाहती थी कि घटनास्थल पर जो कार आई थी, उस का नंबर क्या था. इस कवायद में पुलिस ने 110 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज एकत्र कर लीं. ये कैमरे चूनाखान और कमोला धमोला मार्ग पर लगे थे.

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इस के बाद पुलिस टीम बड़े गौर से एकएक फुटेज को देखने लगी. एक फुटेज में 30-31 जनवरी की रात को तड़के के समय एक कार घटनास्थल बैलपोखरा गांव की तरफ आती दिखी. इस के 20 मिनट के बाद वही कार वहां से जाती दिखी. यह कार शक के दायरे में आ गई. लेकिन उस फुटेज में कार का नंबर स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था.

अब सीसीटीवी फुटेज देखने वाली पुलिस टीम उस कार का पता लगाने में जी जान से जुट गई. कई फुटेज में उस कार का मूवमेंट दिखाई दिया. इसी दौरान एक कैमरे की फुटेज में उस कार की स्पष्ट फोटो दिखाई दी, जिस से पुलिस को कार का नंबर मिल गया. कार का पता लग जाने के बाद पुलिस टीम को सफलता की किरण नजर आने लगी.

 

कार के नंबर से यह पता लगाना आसान था कि कार का मालिक कौन है. कार के नंबर के आधार पर पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि कार नैनीताल जिले के ही चकलुआ गांव के रहने वाले रमनजीत सिंह की थी.

यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी दिनेश नाथ महंत के नेतृत्व में पुलिस टीम चकलुआ गांव में रमनजीत सिंह के पास पहुंच गई. रमनजीत घर पर ही था.

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पूछताछ करने पर उस ने बताया कि 30 जनवरी को उस की कार उस का बहनोई कुलदीप सिंह (निवासी धर्मपुर चूनाखान) मांग कर ले गया था. पुलिस ने 31 जनवरी, 2020 को लाश बरामद की थी और कुलदीप 30 जनवरी को कार मांग कर ले गया था. इस से यह पुष्टि हो गई कि महिला की लाश ठिकाने लगाने में रमनजीत सिंह की कार का ही इस्तेमाल किया गया था.

 

थानाप्रभारी को जांच सही दिशा में जाती दिखाई दी, क्योंकि जांच में कडि़यां जुड़ने लगी थीं. देर किए बिना पुलिस धर्मपुर चूनाखान में कुलदीप सिंह के यहां पहुंच गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. चूंकि कुलदीप से पूछताछ करनी जरूरी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने उस की तलाश के लिए मुखबिर लगा दिए.

कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिर 11 फरवरी, 2020 को पुलिस ने गडेरी नदी के पुल के पास से कुलदीप सिंह को हिरासत में ले लिया.

थाने ला कर जब कुलदीप से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह लाश दिल्ली में रहने वाले उस के दोस्त रविंद्र आहूजा की पत्नी अनीता की थी. उस ने और रविंद्र ने योजना बना कर उसे गला घोंट कर मारा था, फिर आग लगा कर लाश जलाने की कोशिश की थी.

कुलदीप से पूछताछ के बाद न सिर्फ मृतका की पहचान हुई, बल्कि हत्यारोपियों का भी पता लग गया. यानी पूरा केस खुल चुका था. पुलिस को अब रविंद्र आहूजा को गिरफ्तार करना बाकी था. इस के लिए पुलिस ने कुलदीप से ही रविंद्र आहूजा को फोन कराया. पुलिस के निर्देश पर उस ने किसी बहाने से हरिद्वार के नजदीक मिलने को कहा.

पुलिस कस्टडी में ही कुलदीप ने रविंद्र को फोन कर कहा, ‘‘अरे भाई रविंद्र, हमारा काम बड़ी आसानी से निपट गया है. अब क्यों न हम हरिद्वार जा कर गंगा में डुबकी लगा लें. कम से कम हमारे हाथों हुआ पाप तो धुल जाएगा.’’

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‘‘ठीक कह रहे हो कुलदीप भाई, बताओ कब चलना है हरिद्वार?’’ रविंद्र आहूजा ने पूछा.

‘‘कब क्या भाई, ऐसा करो आज ही आ जाओ. ऐसा करना हरिद्वार के पास जो मोतीचूर रेलवे स्टेशन है, तुम वहीं उतर जाना, मैं वहीं मिलूंगा. वहां से हम किसी तरह हरिद्वार चले चलेंगे.’’ कुलदीप बोला.

‘‘मैं घर से अभी निकलता हूं, मुझे जो भी ट्रेन मिलेगी, बता दूंगा. मगर तुम तब तक स्टेशन पहुंच जरूर जाना.’’ रविंद्र ने कहा.

‘‘चिंता मत करो, मैं वहीं मिलूंगा.’’ कह कर कुलदीप ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

 

दोस्त से बात करने के बाद रविंद्र हरिद्वार जाने के लिए घर से निकल गया. इस के बाद वह दिल्ली से हरिद्वार की तरफ जाने वाली ट्रेन में बैठ गया. यह जानकारी उस ने कुलदीप को भी फोन कर के दे दी.

यह योजना रामनगर पुलिस की थी, लिहाजा पुलिस टीम कुलदीप को साथ ले कर मोतीचूर रेलवे स्टेशन पहुंच गई. रविंद्र आहूजा तो समझे बैठा था कि जितनी होशियारी से उस ने पत्नी की हत्या कर लाश ठिकाने लगाई है, उस से सारे सबूत नष्ट हो चुके होंगे. पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन यह उस की बड़ी भूल थी.

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बहरहाल, जैसे ही रविंद्र आहूजा ट्रेन से मोतीचूर रेलवे स्टेशन पर उतरा तो पुलिस ने कुलदीप की शिनाख्त पर उसे हिरासत में ले लिया. पुलिस गिरफ्त में आते ही रविंद्र समझ गया कि वह फंस चुका है.

 

थाने में पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने उस से उस की पत्नी अनीता के बारे में पूछताछ की तो रविंद्र ने बताया कि उस की पत्नी फिल्मों और नाटकों में अभिनय करती है, इसलिए वह 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मुंबई गई हुई है.

चूंकि पुलिस को कुलदीप से सच्चाई पता लग चुकी थी, इसलिए पुलिस समझ गई कि रविंद्र झूठ बोल कर घुमाने की कोशिश कर रहा है. लिहाजा पुलिस ने उस से दूसरे तरीके से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि 30 जनवरी की रात को पत्नी अनीता की गला घोंट कर हत्या करने के बाद उस की लाश गांव बैलपोखरा के एक खेत में आग के हवाले कर दी थी.

रविंद्र ने अनीता की हत्या की जो कहानी बताई, वह दिल दहला देने वाली थी—

रविंद्रपाल सिंह आहूजा मूलरूप से पंजाब के फिरोजपुर शहर का रहने वाला था. वह कई साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था. यहीं पर उस की नौकरी एक निजी कंपनी में ऋण वसूली एजेंट के रूप में लग गई. नौकरी मिल जाने के बाद उस ने दक्षिणपूर्वी दिल्ली के बदरपुर इलाके में रहना शुरू कर दिया. इसी दौरान उस की शादी अनीता से हो गई.

अनीता की 4 बहनें और थीं. उन में अनीता दूसरे नंबर की थी. 2 बहनों की शादी हो गई थी और 3 बहनें शादी के लिए बाकी थीं. अनीता खुले विचारों वाली युवती थी. इस के अलावा उस की दिली इच्छा फिल्मी दुनिया के रुपहले परदे पर पहुंचने की थी. इस के लिए अनीता अपने स्तर पर प्रयास करती रही.

 

इसी दौरान अनीता एक ऐसी एजेंसी के संपर्क में आई, जो बौलीवुड फिल्मों और सीरियलों के लिए जूनियर आर्टिस्ट उपलब्ध कराती थी. उसी एजेंसी की वजह से अनीता को एकदो फिल्मों और सीरियलों में भीड़ का हिस्सा बनने का मौका मिला. इस से अनीता बहुत खुश हुई. इस के बाद वह एजेंसी के माध्यम से खुद भी जूनियर आर्टिस्ट उपलब्ध कराने का धंधा करने लगी, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाती थी.

अनीता को आमदनी तो होने लगी लेकिन वह एक बात से दुखी रहती थी कि शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी वह मां नहीं बन सकी थी.

 

रविंद्रपाल पत्नी की इस पीड़ा को अच्छी तरह महसूस करता था. तब दोनों ने सहमति से एक बच्चे को गोद ले लिया. इस से परिवार में खुशी आ गई. लेकिन यह खुशी भी बहुत लंबे समय तक कायम नहीं रह सकी. वजह यह थी कि अनीता का व्यवहार पति के प्रति काफी बदल गया था. वह फोन पर पता नहीं किसकिस से बातें करती रहती थी.

रविंद्र जब कभी स से पूछता तो वह कह देती कि अपने कैरियर के लिए फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों से बात करती हूं. रविंद्र को हर समय फोन पर बात करना पसंद नहीं था,

इसलिए उस ने कह दिया कि वह इस काम को छोड़ कर आराम से अपनी घरगृहस्थी पर ध्यान दे. लेकिन अनीता ने साफ कह दिया कि वह ऐसा नहीं कर करेगी. पत्नी की इस जिद पर रविंद्र को गुस्सा आ गया.

पत्नी की बातों और व्यवहार से रविंद्र को शक था कि जरूर उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. वह इस शक की पुष्टि करने के बारे में सोचने लगा, पर यह नहीं समझ पा रहा था कि कैसे पता लगाए.

एक दिन उस के हाथ अनीता का फोन लग गया. सब से पहले रविंद्र ने वाट्सऐप मैसेज देखे. तभी उसे एक नंबर ऐसा मिल गया, जो कश्मीर के एक युवक का था. उस युवक से जो अश्लील मैसेज आदानप्रदान हुए थे, उन्हें देख कर वह चौंक गया. दोनों ने अपने कई तरह के फोटो भी शेयर किए थे.

इस से रविंद्र के मन में जो शक था, वह सच में बदल गया. उस ने तय कर लिया कि ऐसी बेवफा पत्नी को वह अपने साथ नहीं रख सकता, उसे इस की सजा जरूर देगा. रविंद्र ने एकदो बार उसे मारने का प्लान भी बनाया, लेकिन किसी वजह से सफल नहीं हो सका.

 

रविंद्र आहूजा का एक दोस्त था कुलदीप सिंह, जो उत्तराखंड के रामनगर कस्बे में रहता था. रविंद्र और कुलदीप की दोस्ती एक कौमन दोस्त उमेश के माध्यम से हुई थी. रविंद्र ने कुलदीप से अपनी पत्नी की बेवफाई की बातें बताते हुए उसे ठिकाने लगाने में सहयोग की मांग की.

दोस्ती की खातिर कुलदीप उस का साथ देने को तैयार हो गया. कुलदीप ने उसे सलाह दी कि वह किसी तरह पत्नी को रामनगर ले आए. फिर यहीं उस का काम तमाम कर देंगे.

दोनों ने योजना बनाई कि हत्या के बाद उस की लाश पर काला तेल (प्रयोग किया हुआ मोबिल औयल) डाल कर आग लगा देंगे तो लाश पूरी तरह जल जाएगी.

24 जनवरी, 2020 को रविंद्र ने कुलदीप से कहा कि वह रस्सी, एक कार और 5-6 लीटर काले तेल का इंतजाम कर ले. इस के लिए उस ने कुलदीप की पत्नी के खाते में 2 हजार रुपए भी जमा करा दिए.

पति का दोस्त होने के नाते अनीता भी कुलदीप को अच्छी तरह से जानती थी. रविंद्र ने एक दिन पत्नी को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘अनीता, कुलदीप की एक करीबी महिला मुंबई में कलाकारों को ट्रेनिंग देती है.

उस की कई हीरो और प्रोड्यूसरों से अच्छी जानपहचान है. ऐसा करते हैं, कुलदीप के पास चल कर उस महिला से तुम्हारी मुलाकात करा देते हैं. क्या पता उस के जरिए तुम्हारी किस्मत

चमक जाए.’’

पति की यह बात सुन कर अनीता बहुत खुश हुई. वह जल्द से जल्द कुलदीप के पास पहुंचने के लिए कहने लगी. योजना के अनुसार, रविंद्र 30 जनवरी, 2020 को पत्नी को दिल्ली से बस द्वारा रामनगर ले गया. वहां पहुंचने के बाद रोडवेज बस अड्डे पर ही उस ने पत्नी को चाय पिलाई.

 

चाय में उस ने पहले से ही अपने पास रखा नींद की गोलियों का पाउडर मिला दिया. कुछ देर में कुलदीप अपने साले रमनजीत सिंह की कार ले रविंद्र के पास पहुंच गया.

रविंद्र पत्नी के साथ उस कार में बैठ गया. कुलदीप कार ले कर रामनगर से कालाडूंगी की तरफ चल दिया. उधर अनीता पर नींद की गोलियों का असर हो चुका था, जिस से वह कार की पिछली सीट पर लुढ़क गई. यह बात रात डेढ़ बजे की है. तभी चूनाखान के पास कार रोक कर कुलदीप ने कार की डिक्की से रस्सी निकाली और उस से अनीता का गला घोंट दिया.

इस के बाद उस की लाश भी ठिकाने लगानी थी. कार को वह बैलपोखरा गांव की तरफ ले गया. वहां एक खेत में ले जा कर लाश डाल दी और उस पर जरीकेन में रखा 5 लीटर काला तेल उड़ेल दिया, फिर आग लगा दी. रस्सी और खाली जरीकेन उन्होंने सड़क किनारे की झाडि़यों में छिपा दी थीं. पत्नी की लाश ठिकाने लगाने के बाद रविंद्र आहूजा अगले दिन दिल्ली लौट आया था.

रविंद्र की 2 सालियां उस के घर पर ही रहती थीं. जब सालियों ने बड़ी बहन के बारे में पूछा तो रविंद्र ने कह दिया कि रामनगर में हम जिस महिला के पास गए थे, उस ने वहीं से उसे 6 महीने की ट्रेनिंग के लिए मुंबई भेज दिया है. अब उस की किस्मत चमक जाएगी. यह सुन कर दोनों बहनें बहुत खुश हुईं.

 

रविंद्र पत्नी को ठिकाने लगाने के बाद उस का मोबाइल फोन अपने साथ ले आया था, जिसे उस ने म्यूट कर के अपने पास रख लिया था. अनीता से बात करने के लिए जब उस की बहनें काल करतीं तो वह काल रिसीव तो नहीं करता, लेकिन वाट्सऐप पर अनीता की तरफ से जवाब दे देता था. बहनें यही समझती थीं कि उन की दीदी की ट्रेनिंग ठीक चल रही है.

 

11 फरवरी को रविंद्र सालियों से हरिद्वार गंगा स्नान करने की बात कह कर गया था. जब वह घर नहीं लौटा तो एक साली ने रविंद्र के मोबाइल पर फोन कर घर लौटने के बारे में पूछना चाहा तो वह काल रामनगर थाने के एक पुलिसकर्मी ने रिसीव किया. उसी ने रविंद्र को पत्नी की हत्या के आरोप में गिरफ्तार करने की जानकारी दी.

बहन अनीता की हत्या की बात सुन कर दोनों बहनें दहाड़ें मार कर रोने लगीं. इस के बाद अन्य लोगों को सच्चाई

पता चली.

हत्या के दोनों आरोपियों कुलदीप सिंह और रविंद्रपाल सिंह आहूजा की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, काले तेल की जरीकेन और हत्या के समय पहने हुए उन के कपड़े भी बरामद कर लिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल

भेज दिया.      द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारितम

 नकदी फसल है गन्ना

यदि पूरे देश में गन्ने की खेती में उत्तर भारत की हिस्सेदारी देखी जाए, तो यह कुल क्षेत्रफल का 55 फीसदी है. उत्तर प्रदेश की बात की जाए, तो वहां 40 से 45 दिनों में गन्ने की खेती होती है. तकरीबन 40,00,000 किसान सीधेतौर पर गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं.

गन्ने के साथ लें अंत:फसल

शरदकालीन में फसली खेती के लिए गेहूं, मटर, आलू, लाही, राई, प्याज, मसूर, धनिया, लहसुन, मूली, गोभी, शलजम, चुकंदर की खेती आज भी की जा सकती है. अब स्थिति ऐसी आ गई है कि नई किस्मों से उपज दक्षिण भारत की तरह और चीनी की रिकवरी महाराष्ट्र की तरह हो रही है. किसानों को बेहतर ट्रेनिंग देने के साथसाथ बेहतर किस्म के बीज के उपयोग से गन्ने की पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती. इस के लिए कुछ और बातों का भी

ध्यान रखना पड़ता है, जैसे उस की बोआई कैसे की जाए, पौधों से पौधों की दूरी कितनी होनी चाहिए, खादपानी, निराईगुड़ाई, खरपतवार नियंत्रण, गन्ने की बधाई वगैरह की जानकारी होना भी बेहद जरूरी है. इस के लिए जिला एवं कृषि विज्ञान केंद्रों के कृषि वैज्ञानिकों की मदद से किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है. किसानों को ट्रेनिंग देने के साथसाथ उन की देखरेख में कृषि विश्वविद्यालय भी काम कर रहा है.

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गन्ने के साथ सहफसल खेती के लिए कम समय में पकने वाली फसलों को चुना जाना चाहिए, जो इलाके की जलवायु, मिट्टी की उपजाऊ कूवत और स्थानीय मौसम भीअनुकूल हो, जिन में बढ़वार प्रतिस्पर्धा न हो और जिस की छाया से गन्न्ना फसल पर उलटा असर न पड़े.

बसंतकालीन गन्ने की खेती के साथ सहफसल खेती करनी है, तो उस के साथ उड़द, मूंग, भिंडी, लोबिया व हरी खाद वाली फसलों को लिया जा सकता है.

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नर्सरी में तैयार गन्ने से बढ़ेगी कमाई

गन्ने की एक आंख की गोटी काट लें. गन्न्ना बीज को शोधित करने के लिए थायो सीनेट मिथाइल अथवा विश टीन की निर्धारित मात्रा के घोल में गन्ने के इन टुकड़ों को बरतनों में डुबो दिया जाता है. आधे घंटे तक डुबोने के बाद इन गन्ने के टुकड़ों को बाहर निकाल लिया जाता है. 18 से 20 वर्गमीटर समतल जमीन पर उर्वरक की बोरियां या प्लास्टिक शीट बिछा कर गोबर की सड़ी खाद एक से डेढ़ सैंटीमीटर मोटी बिछा दें. इस मिट्टी के ऊपर गन्ने के टुकड़ों को सीधी कतार में रख कर कम मात्रा में मिट्टी उन के ऊपर डाल दें.

जरूरत पड़ने पर पानी का छिड़काव कर दें. 20 से 30 दिन में पौधे निकलने शुरू हो जाएंगे. इन पौधों को सीधे खेत में लगाया जा सकेगा. इस से खेत में पौधों की तादाद समान रूप से होगी, जिस से उत्पादन भी  अच्छा मिलेगा.

दक्षिण भारत के किसान गन्ने की प्रति हेक्टेयर 80 से 85 टन पैदावार करते हैं, जबकि उत्तर भारत के किसानों की प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार महज 70 टन ही होती है. यही नहीं, गन्ने से चीनी की रिकवरी में उत्तर भारत के किसान महाराष्ट्र के किसानों से पिछड़ जाते हैं. महाराष्ट्र में उपज करने की चीनी की रिकवरी जहां12 से 13 फीसदी है, वहीं उत्तर भारत में काफी कम थी, लेकिन प्रजाति 238 आने के बाद यहां की रिकवरी भी तकरीबन 13 फीसदी के करीब पहुंच गई है. इस प्रजाति ने किसानों के बीच गन्ने की खेती को और अधिक करने की ओर आकर्षित किया है.

लेकिन अब उत्तर भारत के किसानों के हालात में सुधार आने वाला है, क्योंकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने ऐसे उन्नत बीजों का विकास किया है, जो न केवल भरपूर फसल देने में सक्षम है, बल्कि इस से चीनी की रिकवरी भी पहले की तुलना में ज्यादा हो सकेगी.

इन बीजों की उपलब्धता सभी किसानों को मुहैया कराने व खेती की तकनीकी और तरीकों से किसानों को अवगत कराने के लिए कृषि विश्वविद्यालय के टिशू कल्चर लैब के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को ट्रेंड किया जा रहा है.

डाक्टर आरएस सेंगर की अगुआई में उत्तर भारत के लिए विशेष रूप से विकसित कुछ किस्मों में सुधार का काम लगातार चल रहा है. सालों के अनुसंधान के बाद ऐसी किस्में तैयार की गई हैं, जिस से न केवल बेहतर उत्पादन मिल सकेगा, बल्कि इस में चीनी की रिकवरी भी काफी अच्छी हो सकेगी.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रजाति 238 से अधिक पैदावार लेने के लिए सब से पहले नर्सरी तैयार की जा रही है.

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गन्ने की खेती में ध्यान रखने योग्य बातें

* जहां पानी रुकता हो, वहां पानी के निकलने का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए.

* खाली जगहोंमें पहले से अंकुरित गन्ने के पेड़ों से गैस फिलिंग करनी चाहिए.

* अंत:फसल काटने के बाद जल्दी ही गन्ने में सिंचाई व नाइट्रोजन की टौप ड्रैसिंग कर के गुड़ाई कर देनी चाहिए.

* अंत:फसल के लिए अलग से संस्तुत की गई मात्रा के मुताबिक उर्वरकों को दिया जाना चाहिए.

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