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पटाक्षेप : सुनंदा घर जाने के लिए क्यों तैयार नहीं थी

विजय ने तीसरी बार फिर पूछा था, ‘‘और सोच लो, अगर तुम्हारा पापा से मिलने का मन हो तो मैं तुम्हें भोपाल छोड़ता हुआ दिल्ली निकल जाऊंगा?’’

सुनंदा फिर भी चुप रही थी. कुछ देर बाद विजय ने कह ही दिया था, ‘‘देखो, मुझे भी पता है कि तुम मेरी वजह से कितने तनाव से गुजर रही हो. बच्चे भी अभी यहां नहीं हैं तो अकेले में और घबरा जाओगी, इसलिए चली चलो, थोड़ा मन बदल जाएगा तो तुम्हें भी अच्छा लगेगा और फिर भोपाल जाने के लिए तो तुम इतनी लालायित रहा करती थीं, फिर अब क्या हो गया है?’’

सुनंदा फिर भी एकाएक कुछ नहीं कह पाई थी.

‘‘चलो, पहले मैं आप के लिए चाय बनाती हूं, फिर कुछ सोचेंगे,’’ कहती हुई वह अपनेआप को सारे प्रश्नों से बचाती रसोई में घुस गई थी.

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यंत्रवत गैस पर चाय का भगौना चढ़ा दिया. सामने के रैक से चाय, शकर के डब्बे निकाले, टे्र में कप रखे. पर मन अभी भी बाहर कहीं घुमड़ रहा था. क्या करे, वह स्वयं कुछ समझ नहीं पा रही थी. पिछले 2 महीने से वह ही क्या, पूरा घर तनाव में था. विजय की मां की बीमारी में, उस की जो बचत थी वह सब जा चुकी थी. उधर, बिल्डर का तकाजा था, उस की किस्तें बढ़ रही थीं. बैंक में लोन बढ़ाने की दरख्वास्त दे रखी थी, उस सिलसिले में बैंक मैनेजर का कहना था कि एक बार वे खुद हैड औफिस जा कर बात कर लें.

पर पापा…पापा के बारे में वह विजय को क्या बताए क्यों नहीं जाना चाहती, क्या कहे कि वह घर भी अब उस के स्वयं का घर नहीं रहा है.

आंखें फिर भर आई थीं. ठीक है, इस बार और जा कर वह शायद पापा को ठीक से कुछ समझा पाए, कुछ सोचते हुए चाय की टे्र ले कर अंदर कमरे में आई.

‘‘मैं भी चल रही हूं, भोपाल उतर जाऊंगी,’’ विजय की तरफ चाय का कप बढ़ाते हुए उस ने कह भी दिया था.

‘‘यह हुई न ढंग की कुछ बात. देखो, तुम खुश रहोगी तभी तो मैं आगे के लिए कुछ सोच पाऊंगा,’’ विजय ने अपने चेहरे पर मुसकान लाने का प्रयास किया था.

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रात की गाड़ी से ही रवाना होना था तो सुनंदा ने अपना सामान बैग में रखना शुरू किया, विजय ने तब तक टिकट बुक करने के लिए बात कर ली थी.

गाड़ी में बैठते ही उस ने सोचा कि पापा को फोन तो कर दे कि सुबह भोपाल पहुंच रही है. 2 बार कोशिश की पर फोन कोई उठा ही नहीं रहा था. वह झुंझलाई, ‘पता नहीं कहां गए हैं, यह तो घूमने का भी टाइम नहीं है.’ उस की झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी, ‘कितनी बार कहा है कि मोबाइल रखा करें पास में, पर वह भी नहीं.’

‘‘अरे, सो गए होंगे, तुम सुबह भोपाल स्टेशन से फोन कर लेना और फोन क्या, घर जा कर उन्हें सरप्राइज देना, उन्हें भी अच्छा लगेगा, चलो अब सो जाओ, दिनभर की थकी हुई हो,’’ कहते हुए विजय ने अपने केबिन की लाइट बंद कर दी थी.

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नींद तो सुनंदा को फिर भी नहीं आई थी. अब अगर यह दरख्वास्त मंजूर नहीं हुई तो…सोच कर ही वह सिहर गई थी. बच्चे बाहर होस्टल में रह कर पढ़ रहे हैं, उन की पढ़ाई का भारी खर्च, बच्चों को बुला भी नहीं सकते, उन के कैरियर का सवाल है, घर भी अभी किराए का है, उस की स्वयं की स्कूल की छोटी सी नौकरी है, विजय तो अपने पीएफ से भी पैसा ले चुके हैं. बैंक की किस्त में ही विजय का पूरा वेतन चला जाता है. उस दिन सहेली रमा से कहा था कि कोचिंग वालों से बात कर ले, वह शाम को वहां मैथ्स पढ़ा देगी.

ओफ,… उस का सिर फिर से दर्द करने लगा था. विजय को भी नींद कहां आ पाई होगी, बस सोने का बहाना किए लेटे हैं.

उठ कर उस ने पानी पिया, घड़ी देखी, फिर से आंखें मूंद कर सोना चाहा. कुछ देर बाद शायद हलकी सी झपकी लगी होगी, तभी आहट से नींद टूटी थी.

‘‘सुनंदा, भोपाल आने वाला है, तुम घर पहुंच कर फोन कर देना मुझे और हां, तनाव बिलकुल मत लेना, जो भी होगा, ठीक होगा, समझीं.’’

‘‘और तुम भी जल्दी फोन करना, क्या फैसला रहा,’’ कहते हुए सुनंदा ने अपना बैग समेटा था. थोड़ी ही देर में ट्रेन भोपाल पहुंच गई. विजय स्टेशन के बाहर तक छोड़ने आए.

‘‘अब तुम जाओ, गाड़ी देर तक नहीं रुकती है,’’ सुनंदा ने जोर दे कर कहा था.

‘‘ठीक है, तुम टैक्सी ले लेना,’’ कहते हुए विजय ने विदा ली.

सुनंदा सोच रही थी कि एक बार फिर पापा को फोन करे, अगर सो भी रहे होंगे तो इस समय तो उठ गए होंगे. पर अब भी घंटी देर तक बजती रही थी.

हुआ क्या है, उसे अब कुछ चिंता  होने लगी थी. फिर कुछ सोच कर सुहास भैया के यहां जाने का विचार किया. भाई का घर स्टेशन के पास ही है, भैयाभाभी से मिलते हुए पापा के पास जाना ठीक रहेगा, सोचते हुए उस ने टैक्सी वाले को भाई के घर का ही पता दे दिया था. सुहास भैया उसे देखते ही चौंके थे.

‘‘अरे सुनंदा तुम, व्हाट अ सरप्राइज. अरे सुनो, सुनंदा आई है,’’ बाहर बरामदे से ही उन्होंने रचना भाभी को आवाज दी थी. भैयाभाभी अभी शायद दोनों टहल कर आए थे और भाभी अंदर चाय बनाने चली गई थीं. भाभी को भी आश्चर्य कम नहीं हुआ था.

‘‘चलो, बाहर लौन में ही बैठ कर चाय पिएंगे, पर यह तो बता, अचानक कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस भाभी, विजय को दिल्ली जाना था तो सोचा कि मैं भी आप लोगों से मिल लूं, अभी 2 दिन की स्कूल की छुट्टियां बची हैं, तो…’’

‘‘हां, चलो अच्छा किया…’’ भाभी कुछ और कहना चाह रही थीं कि उस ने ही पूछ लिया, ‘‘पापा कैसे हैं? वे फोन उठा ही नहीं रहे हैं?’’

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‘‘अरे, पापा तो लताजी के घर रहने चले गए हैं, तो वहां फोन कौन उठाएगा,’’ भैया ने अखबार पर नजर गड़ाए निर्लिप्त भाव से कहा था.

‘‘क्या?’’ सुनंदा एकदम सकते में आ गई थी, ‘‘पापा?’’

‘‘हां सुनंदा, पूरे 2 हफ्ते हो गए. आजकल वहीं हैं,’’ यह रचना भाभी की आवाज थी.

‘‘पर…पर क्यों? अपना घर छोड़ कर?’’

‘‘अब यह सब तो जब उन से मिलो तो पूछ लेना, अभी तो चाय पिओ,’’ भैया ने चाय का कप बढ़ाते हुए एक तरह से बात ही खत्म कर दी थी. सुनंदा समझ नहीं पा रही थी कि वह क्या कहे.

‘‘अभी नाश्ते के बाद मैं औफिस जाते समय तुम्हें वहां उतार दूंगी, तुम तैयार रहना,’’ कहते हुए भाभी ने चाय के बरतन समेटे और नौकर को कुछ हिदायतें देने के लिए अंदर चली गई थीं.

भैया अभी भी अखबार पढ़ने में व्यस्त थे. तैयार होने के बहाने सुनंदा अंदर आ गई.

पापा को इस उम्र में यह क्या सूझी? कुछ अंदाजा तो उसे पिछली बार ही लगा था, जब वह भोपाल आई थी, लताजी से पापा की नजदीकियां बढ़ने लगी हैं, काफी समय वे पापा के पास ही बिताने लगी थीं. कभी घर की बनी कोई खास खाने की चीज ला रही हैं, कभी अचार तो कभी पापड़.

‘सुनंदा, तुम्हारे पापा को ये सब बहुत पसंद है न. और नौकर तो बना नहीं पाता है,’ वे सहज भाव से कह देतीं. यही नहीं, उन का बेटा राहुल भी अब अकसर पापा के पास ही रहने लगा था.

‘बेटा, इस की वजह से मुझे बहुत आराम हो गया है, सारे छोटेमोटे काम कर देता है,’ पापा ने बड़े गर्व से कहा था कि एक दिन रात को अचानक तबीयत बिगड़ी थी तो उन्होंने भैया को फोन किया, भैया आए नहीं, फिर नौकर लताजी को बुला कर लाया था. उन्होंने ही एंबुलैंस बुलाई, रातभर अस्पताल में रुकी रहीं. भैयाभाभी तो सुबह देखने आए थे.

तब सुनंदा चुप रह गई थी.

‘पर पापा को एकदम लताजी के यहां ही रहने की क्या आवश्यकता आ गई,’ सोचते हुए उस के मुंह से निकल ही गया था.

‘‘पता नहीं पापा को इस उम्र में यह क्या सूझी,’’ गाड़ी में रचना भाभी तब पास ही बैठी थीं, उन्हें तो जैसे एक लंबा विषय मिला.

‘‘पापा को कम से कम यह तो सोचना था कि हम लोग भी इसी छोटे शहर में रहते हैं, यहां की मानसिकता ऐसी नहीं है और फिर कल को हमारी बेटी बड़ी होगी, उस की शादी की बात चलेगी तो तब समाज को हम क्या मुंह दिखाएंगे कि

इस के दादाजी इस उम्र में लिव इन रिलेशनशिप में, हमारी तो नाक ही कट गई है.’’

‘‘बस, भाभी बस,’’ सुनंदा से अब और कुछ सुना नहीं जा रहा था. सोच रही थी कि एक सिरदर्द से बचने के लिए वह यहां आई और आते ही दूसरा सिरदर्द शुरू हो गया.

भाभी तो उसे लताजी के घर के सामने उतार कर चली भी गई थीं. घंटी बजाते ही लताजी ने दरवाजा खोला. स्वागत तो हंस कर किया था लताजी ने पर सुनंदा को वह हंसी भी चुभती हुई लगी थी.

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‘‘कौन, सुनंदा आई है,’’ पापा की आवाज अंदर से आई थी. लताजी शायद पापा को खाना खिला रही थीं. सुनंदा को अंदर ले गईं. कुरसी पर बैठे पापा काफी कमजोर लग रहे थे. वह जा कर पास खड़ी हुई तो वे देर तक उस के सिर पर हाथ फेरते रहे पर सुनंदा कुछ बोल नहीं पा रही थी.

लताजी ने उन्हें कुरसी पर ठीक से बैठाया. फिर एक नैपकिन लगा कर धीरेधीरे चम्मच से उन्हें दलिया खिलाने लगी थीं.

सुनंदा, बस देखती रही थी.

खाना खिला कर लताजी ने नैपकिन से पापा का मुंह पोंछा, फिर एक बरतन में पानी ला कर कुल्ला करवाया.

‘‘चलो बेटा, अब बैडरूम में ही चलते हैं,’’ पापा ने कहा तो वह उन्हें सहारा देने के लिए उठ खड़ी हुई थी.

‘‘सुनंदा, तुम पापा से बातें करो, तब तक मैं तुम्हारे लिए कोई डिश बना देती हूं,’’ लताजी ने कहा तो सुनंदा ने टोक दिया.

‘‘अरे, जो बना है, खा लूंगी, आप क्यों तकलीफ कर रही हैं.’’

‘‘क्यों, इस में तकलीफ कैसी, घर ही तो है,’’ कहते हुए वे अंदर चली गई थीं.

‘‘और बेटे, कैसे आना हुआ अचानक?’’ पापा पूछ रहे थे, वे पलंग पर अधलेटे से हो गए थे. सुनंदा पास ही बैठ गई थी.

‘‘बस पापा, विजय दिल्ली जा रहे थे तो मैं ने सोचा कि आप से मिल लूं, पर आप काफी कमजोर लग रहे हैं, क्या बीमार हो गए थे? बताया नहीं.’’

‘‘अरे, वही हलका स्ट्रोक पड़ा था, तो रात में ही लता ने ही आ कर संभाला, 2 दिन तो अस्पताल में भरती रहना पड़ा. फिर उसी की जिद थी कि अब आप मेरी देखरेख में ही रहें तो यहां ले आई. सुहास और रचना तो देखने भी नहीं आए,’’ पापा का चेहरा फिर तन गया था.

‘‘पर पापा, इस तरह से यहां रहना, इस से तो अच्छा है कि आप लताजी से शादी कर लें,’’ पता नहीं कैसे सुनंदा के मुंह से निकल ही गया था, उसे स्वयं अपने शब्दों पर आश्चर्य हुआ.

‘‘हां, यही सोच रहा हूं.’’

पापा की आवाज उसे भीतर तक हिला गई, ‘क्या पापा इस उम्र में शादी करेंगे,’ उस से अब कुछ बोला भी नहीं जा रहा था.

देर तक चुप्पी रही, फिर लताजी अंदर आईं तो पापा दूसरी बातें करने लगे थे.

‘‘सुनंदा, तुम भी थकी होगी, खाना खा कर थोड़ा आराम कर लेना और हां, तुम्हारे लिए मैं ने मटरपुलाव भी बना दिया है. इन्हें मैं दवाएं दे दूं तो थोड़ा सो लेंगे,’’ लताजी कह रही थीं और सुनंदा का स्वयं का मन हो रहा था कि वहां से उठ कर कहीं भाग जाए.

अंदर कमरे में आ कर तो उसे रोना सा आ गया था. यह क्या सूझी पापा को. क्या रचना भाभी ठीक कह रही थीं कि लताजी की नजर तो पापा के मकान पर है, उन की प्रौपर्टी पर है. ओफ…पर पापा. छि:, पता नहीं किस घड़ी में उस ने पापा की मुलाकात लताजी से करा दी थी.

लताजी उस की सहेली निशा की रिश्ते की बहन थीं, तब निशा ने ही कहा था कि लताजी के पति का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया है और एक छोटा बेटा है, बहुत टैंशन में हैं. पापा, अगर उन्हें कहीं नौकरी दिला दें तो…

तब उस ने ही पिताजी से कह कर एक स्कूल में लताजी की नौकरी लगवाई थी. पापा की वहां कुछ जानपहचान थी. घर भी पास में दिलवा दिया था, तब से उन का यहां आनाजाना शुरू हुआ, पर उस सब की निष्पत्ति क्या इस प्रकार होनी थी? सुनंदा को अब स्वयं पर ही क्रोध आने लगा था.

दोपहर बाद ही विजय का फोन आ गया था कि बैंक में हैड औफिस वाले मान तो गए हैं पर फाइल दोबारा प्रोसैस करानी होगी, कुछ समय लग जाएगा, तब तक थोड़ी परेशानी तो रहेगी.

‘‘ठीक है.’’

सुनंदा ने शांत भाव से सूचना को लिया था, पर अब वह दूसरी सोच में डूब गई थी. बच्चों के स्कूल का ऐडमिशन होना है, भारी खर्चे की एक समस्या तो इसी महीने सामने आएगी ही. इस से तो अच्छा था कि पुरानी कोचिंग इंस्टिट्यूट की  नौकरी ही करती रहती, वहीं से कुछ आर्थिक सहायता मिल जाती.

शायद  उस की लंबी चुप्पी को विजय ने भी महसूस कर लिया था. तभी उस की टैलीफोन पर फिर आवाज गूंजी, ‘‘सुनंदा, धीरज रखो, सब ठीक हो जाएगा. मैं धीरेधीरे सब लोन चुका दूंगा. ऐसी दिक्कतें आती रहती हैं. मैं ने यहां भी दोएक जगह बात की है, हो सके तो भैया से बात कर लेना, वैसे मुझे किसी से पैसा मांगना अच्छा नहीं लगता है, पर इस समय परेशानी यही है कि औफिस से मैं जितना ले सकता था, ले चुका हूं. अभी कुछ महीने इसी कारण हमें आर्थिक कठिनाई रहेगी, भैया अगर मदद कर सकें तो अच्छा है, कुछ महीनों में मैं उन का सारा पैसा लौटा दूंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं बात कर के देखती हूं,’’ सुनंदा ने कह दिया था.

रात को फिर अकेले में सुनंदा ने भाई को फोन किया था. सारी बातें विस्तार से बताईं. पर अंत में सुहास ने यही कहा था, ‘‘देखो सुनंदा, अभी हम भी इस स्थिति में नहीं हैं कि कुछ सहायता कर सकें. हम ने भी एक बड़ा फ्लैट बुक करा रखा है, उस की किस्तें चल रही हैं. इधर, हम पहले जिस मकान में रह रहे थे उस का भी कोर्ट केस चल रहा है.’’

‘‘कौन सा मकान?’’

सुनंदा चौंक पड़ी थी. उधर, सुहास कहे जा रहा था, ‘‘हां, ठीक है, अभी पापा के नाम है और पापा ने बनवाया भी है, पर तुम जानती हो कि कल का भरोसा नहीं है, क्या पता उसे लता ही अपने नाम करवा ले. मैं ने कई बार कहा है कि आप को रुपयों की आवश्यकता हो तो हम से ले लें, पर मकान की रजिस्ट्री हमारे नाम करा दें, पर पापा राजी नहीं हैं.’’

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‘‘तो क्या पापा के मकान का केस चल रहा है?’’

सुनंदा समझ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा होते हुए भी भैया की नजर पापा के उस मकान पर है जिस के किराए से पापा अपना खर्चा चला रहे हैं. उन्होंने भैया से अब तक कुछ नहीं मांगा और अब जब बीमारी में भैया को पापा की देखभाल करनी थी, तब वे उन का मकान हड़पने को तैयार हैं.

उसे लगा कि भीतर तक गहरा सन्नाटा उस के अंदर उतर गया है. क्या भैया से कह दे कि मकान पर तो उस का भी हक है. वह भी पापा की बेटी है, अभी थोड़ी सी आर्थिक मदद की बात की तो भैया चुप रह गए पर यदि वह पिता का मकान उन के नाम करा दे तो रुपयों की व्यवस्था करने को तैयार हैं.

अब भैया की बातों का अर्थ उस की समझ में आ रहा था. अधिक बात न कर के उस ने फोन रख दिया था.

सुबह उस के कमरे में पापा अपने सहारे की स्टिक लिए आए थे, ठकठक की आवाज से ही उस की नींद टूटी थी.

‘‘सुनंदा, अब तक सो रही हो, बेटा. उठो, चाय ठंडी हो रही है.’’

पापा की आवाज सुन कर वह उठ गई थी. उसे लगा जैसे उस का बचपन वापस आ गया है. ऐसे ही तो बचपन में पापा उसे जगाया करते थे.

‘‘क्या बात है? इस बार तुम चुप सी हो. रात को तुम्हारी सुहास से बात हो रही थी, फिर तुम सोने चली गईं. वह क्या कह रहा था?’’

‘‘पापा, मैं दोपहर की टे्रन से जाऊंगी, टिकट वहीं मिल जाएगा.’’

‘‘पर बेटा, कल ही तो आई हो,

ऐसी जल्दी क्या है?’’ पापा फिर चौंके थे.

‘‘हां पापा, विजय भी शाम की गाड़ी से दिल्ली से लौट रहे हैं. बैंक में लोन की फाइल लगी हुई थी, वह प्रोसैस हो गई है, तो अब किस्तें चुकाने में दिक्कत नहीं आएगी, पर अभी तो घर में परेशानी ही चल रही है. विजय ने मां की बीमारी में घर में जो कुछ था, सब दांव पर लगा दिया, फिर मां चली गईं. उस झटके से हम उबर भी नहीं पाए थे कि अचानक बिल्डर का तकाजा बढ़ गया. इधर, बच्चों के स्कूल खुलने वाले हैं. तो कुछ सोच कर मैं यहां आई थी और सुहास भैया से बात की थी.’’

इसी बीच लताजी कब अंदर आ कर बैठ गई थीं, वह जान ही नहीं पाई थी. पापा भी शायद इसी बीच बाहर चले गए थे. वह उधर पीठ किए बैग में अपना सामान डाल रही थी तभी लताजी ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था, ‘‘सुनंदा, ऐसी भी जाने की क्या जल्दी है? विजय तो रात की गाड़ी से लौटेंगे न, तुम उन से बात कर लो, हम तुम्हें उसी गाड़ी में बिठा देंगे ताकि तुम लोग साथ ही जा सको.’’

लताजी ने प्यार से समझाते हुए कहा था और फिर बाहर चली गई थीं.

पर वह अभी भी अपनी सोच से बाहर नहीं आ पा रही थी. वह क्या सोच कर आई थी और क्या देख रही है. कई बार बाहर जो कुछ भी दिखता है, उसे हम अपनी ही कल्पनाओं के आधार पर देखने लग जाते हैं. मां की बीमारी में विजय जितना भी खर्च करते रहे, उस ने कभी नहीं रोका. बस, यंत्रचलित सी वही करती रही जो विजय उस से कहते रहे और यहां भैया, भाभी, इन्हें क्या हो गया जो सबकुछ होते हुए भी पापा को इतनी तकलीफ दे रहे हैं. भैया उस से कह रहे हैं कि वह पापा का मकान उन के नाम कराने में मदद करे. शायद उन्हें शक है कि कहीं बहन भी अपना अधिकार न जता दे. उसे अपनेआप पर हंसी आई, सोचा कि भैया से कह ही दे कि वह कभी भी मकान के अधिकार को ले कर अदालत में नहीं जाएगी.

तभी बाहर से पापा और लताजी की एकसाथ आवाज आई थी, ‘‘बेटे, नाश्ता लग गया है, बाहर आ जाओ.’’

मेज पर पहुंचते ही पाया कि पापा अपेक्षाकृत शांत और प्रसन्न हैं. लताजी नाश्ते की प्लेटें लगा रही थीं. उस ने सामने रखा अखबार उठाया ही था कि पापा ने एक पीला सा लिफाफा उस के हाथ में थमा दिया.

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‘‘पापा, यह क्या है?’’

‘‘बेटा, कुछ खास नहीं. बस, तुम इसे रखो, इस में तुम्हारे लिए मैं ने कुछ पोस्ट डेटेड चैक रख दिए हैं. मेरी पैंशन हर महीने बैंक में अपनेआप जमा हो जाती है और अब मेरा खर्चा भी क्या है, तुम हर महीने बैंक में लगा देना, तुम्हें दिक्कतें नहीं आएंगी. तुम्हारे अकाउंट में पैसा हर महीने पहुंचता रहेगा.’’

सुनंदा अवाक् थी, उस ने लताजी की ओर देखा, वे मुसकराईं और बोलीं, ‘‘अभी मेरी सैलरी भी आती है और मकान का किराया भी, हमारा खर्चा तो आराम से चल जाता है, तुम लोग परेशान न हो, हम यही चाहते हैं.’’

सुनंदा को ऐसा लगा जैसे उस के लड़खड़ाते कदमों को पापा और लताजी ने संभाल लिया है.

उधर, पापा कहे जा रहे थे, ‘‘बेटा, सुहास से भी कह देना कि वह मकान उसी का है, उसी का रहेगा, पर कम से कम हमें अभी तो शांति से रहने दे. जब तक हम जिंदा हैं, हम आराम से रह तो लें, लता के पास तो उस का अपना यह घर है.’’

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बिग बॉस 14 के कंटेस्टेंट पवित्रा पुनिया और एजाज खान की लव स्टोरी काफी ज्यादा चर्चा में रही हैं.  खबर है कि दोनों जल्द अपने रिश्ते को नाम देने वाले हैं.  इन दिनों बिग बॉस फिनावे वीक चल रहा है और एजाज खान बिग बॉस14 के घर में छाए हुए हैं.

अपने प्रोफेशनल कमिटमेंट्स को पूरा करने के साथ- साथ एजाज खान अपनी गर्लफ्रेंड पवित्रा पुनिया के साथ भी क्वालिटी टाइम बिता रहे हैं. हाल ही में इस कपल ने खुलासा किया है कि इस साल के अंत में दोनों कपल शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

 

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इस बात को जानकर पवित्रा पुनिया और एजाज खान के फैंस काफी ज्यादा खुश महसूस कर रहे हैं. एजाज खान ने एक इंटरव्यू में बात चीत के दौरान खुलासा किया है कि यह वक्त बहुत अच्छा है हमारे लिए क्योंकि इससे पहले हमने शादी के लिए बहुत से पापड़ बेले हैं.

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अपनी उंगलियों को क्रास करते हुए एजाज खान ने कहा कि इस साल तक सबकुछ अच्छा रहा तो साल के आखिरी में मैं पवित्रा से शादी करुंगा. बता दें कि वहीं पवित्रा पुनिया भी पहले कई बार एजाज खान के साथ शादी को लेकर इशारे कर चुकी हैं.

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इन दोनों के फैंस को इस शादी का बेसब्री से इंतजार है. बता दें कि इससे पहले एजाज खान और पवित्रा पुनिया अलग-अलग रिलेशन में रह चुके हैं लेकिन दोनों अपने- अपने रिश्ते में सफल नहीं हो पाए थें. देखते हैं इन दोनों को अब कितना प्यार मिलता है फऐंस और इनका रिशअता कब तक चल पाता है. खैर दोनों साथ में बहुत प्यारे लगते हैं.

कार्तिक को पाने के लिए सारी हदें पार करेगी रिया, जानें क्या करेगी कायरव के साथ

टीवी जगत का पसंदीदा सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में ट्विस्ट आ गया है. नायरा की मौत के बाद कार्तिक के जीवन में उथल-पुथल मची हुई है. कार्तिक को बड़ा झटका लगता है सीरत को देखने के बाद.  नायरा कि हमशक्ल को देखने के बाद वह बार-बार उसकी तरफ खींचा चला जा रहा है.

वहीं दूसरी तरफ रिया को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं कार्तिक उसके हाथ से निकल न जाए. रिया कार्तिक को पाने के लिए हर कोशिश करती नजर आ रही है. वह कार्तिक के परिवार वालों और अक्षरा के साथ नजदीकियां बढ़ाती नजर आ रही है.

अब कार्तिक के घर वालों के सामने रिया अच्छी इमेज बना ली है लेकिन सीरत की खबर सामने आते ही उसे बड़ा झटका लगने वाला है.

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है सीरियल में जल्द दिखाया जाएगा कि रिया अपना असली चेहरा दिखाती नजर आएगी. रिया गोयनका परिवार के एक- एक सदस्य के दिल में खास जगह बनाने कि कोशिश करेंगी.

वह बार-बार कार्तिक के नजदीक आने की कोशिश करेंगी लेकिन कार्तिक उसे देखते ही बौखला जाएगा. कार्तिक को रिया की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं होगी वह बार- बार उससे दूरी बनाने की कोशिश करेंगी.

लेकिन रिया कार्तिक के नजदीक जाने के लिए खतरनाक कदम उठाते दिखेगी.  रिया कार्तिक को पाने की चाह में उनके बेटे कायरव को अपना मुहरा बनाएगी. जिससे वह हर वक्त कायरव को परेशान करती नजर आएगी. कैरव को परेशआन देखकर कार्तिक भी हैरान हो जाएगा.

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, लेकिन उस की शादी हो चुकी है और उस का एक बेटा भी है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 20 साल की हूं और एक लड़के से प्यार करती हूं. लेकिन उस की शादी हो चुकी है और उस का एक बेटा भी है. मेरे घर वाले इस कारण मुझ से खुश नहीं हैं. मैं क्या करूं?

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जवाब
सब से पहले तो आप ही सोचिए क्या आप एक बेटे के बाप के चक्कर में पड़ कर ठीक कर रही हैं? आप के घर वालों की नाराजगी जायज है. दरअसल, आप का प्यार एकतरफा है. वह आदमी, जो एक बच्चे का बाप है, आप को भी मूर्ख बना रहा है व अपने घर वालों को भी.

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आप भावना में बह कर कोई ऐसा कदम न उठा बैठिएगा कि बाद में पछताना पड़े. अच्छा तो यही होगा कि आप अपने इस प्यार को यहीं समाप्त कर दें, क्योंकि यह सिर्फ आप की तरफ से एकतरफा है. वह आप का यौनशोषण करेगा और फिर छोड़ देगा. उस का तो परिवार है, आप अपना व अपने मातापिता का सम्मान भी खो बैठेंगी, साथ ही, अगर उस का आप के प्रति लगाव रहा तो उस का परिवार भी उजड़ेगा.

इधर, आप के मातापिता नाराज रहेंगे. सो, सब को बचाने की जिम्मेदारी आप की है. आंखों से एकतरफा प्यार की पट्टी उतार कर असलियत को देखिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

पानी बचाने की मुहिम में कामयाब: उमाशंकर की मेड़बंदी मुहिम

बीते कुछ दशकों में जल संकट देशभर में एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है. देशभर में पीने और सिंचाई के काम में आने वाले जल स्रोत में भारी कमी आई है. इस का नतीजा यह रहा है कि देश के कई भाग भीषण सूखे की त्रासदी से जू? रहे हैं. जल संकट से उपजे हालात के चलते पलायन और आत्महत्या करने वालों की तादाद में भी काफी इजाफा हुआ है.

अगर देखा जाए, तो देश में बुंदेलखंड के जिले जल संकट से सब से ज्यादा प्रभावित रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में एशिया की सब से बड़ी ग्रामीण जल परियोजना ‘पाठा पेयजल योजना’ के नाम से चलाई जा चुकी है. जल संकट से जू?ा रहे बुंदेलखंड में प्राकृतिक जल स्रोतों की भरमार होने के बावजूद पानी की कमी यहां के लोगों के लिए एक बड़े संकट के रूप में खड़ी रही. बुंदेलखंड क्षेत्र में छोटीबड़ी कुलमिला कर 35 नदियां हैं, जिस में यमुना, चंबल, बेतवा, केन, मंदाकिनी जैसी बड़ी नदियां भी शामिल हैं. इस के अलावा सरकारी आंकड़ों में 33,450 तालाब, 80,000 कुएं, 200 नाले, 51 बावरी और 125 छोटेबड़े बांध भी उपलब्ध हैं.

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लेकिन, बुंदेलखंड का जल संकट जस का तस बना हुआ था. इसी जल संकट के बीच सरकार के नाकाफी पड़ते उपायों के बीच जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय ने मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को समुदाय में बढ़ावा दे कर न केवल बुंदेलखंड, बल्कि देश के कई दूसरे हिस्सों में भी पानी के संकट को काफी हद तक कम कर दिया है. उन की मेंड़बंदी परंपरा ने बांदा, महोबा, चित्रकूट, ?ांसी जैसे जिलों में पानी के जलस्तर को बढ़ाने में काफी मदद की है. उन्होंने यह कामयाबी बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी मदद के समुदाय के आधार पर किसानों की सहभागिता से हासिल की है.

बांदा में बड़े पानी के स्तर को माइनर इरीगेशन डिपार्टमैंट की रिपोर्ट में भी माना गया है. इस के अनुसार, इतिहास में पहली बार मेंड़बंदी की 5 सालों की मेहनत से बांदा जनपद का भूजल स्तर 1 मीटर, 34 सैंटीमीटर ऊपर आया है. कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों के बोने का रकबा पिछले 5 सालों में बुंदेलखंड के जिलों में 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा बढ़ा है. ऐसे हुई शुरुआत मूल रूप से बांदा जनपद के जखनी गांव के बाशिंदे उमाशंकर पांडेय ने बुंदेलखंड के जल संकट को देखते हुए समाजसेवा का रास्ता चुना. उन्होंने बुंदेलखंड के जल संकट से निबटने के लिए जखनी गांव के लोगों को एकजुट कर पानी बचाने के लिए मेंड़बंदी कर वर्षा जल को बचाने की मुहिम शुरू की.

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कुछ लोगों के साथ हुए मेंड़बंदी से पानी बचाने की मुहिम के कामयाब नतीजों को देखते हुए आसपास के गांव के लोग भी आगे आए और देखते ही देखते मेंड़बंदी विधि को पूरे बुंदेलखंड में पानी बचाने के एक कामयाब तरीके के रूप में अपनाया जाने लगा, जिस का नतीजा आज सामने है. क्योंकि बांदा सहित बुंदेलखंड ही नहीं, बल्कि दूसरे क्षेत्रों में भी मेंड़बंदी परंपरा को अपना कर पानी बचाने की मुहिम में कामयाबी पाई जा चुकी है. जखनी गांव के मौडल की कामयाबी को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानों को लिखी चिट्ठी में मेंड़बंदी के जरीए जल रोकने की बात कही है.

इसी का नतीजा है कि जखनी जल संरक्षण की परंपरागत विधि बगैर प्रचारप्रसार के देश के एक लाख, 50 हजार से ज्यादा गांवों में पहुंच चुकी है, वहीं देश को 1,050 जल ग्राम देने का काम भी इसी जल ग्राम जखनी मौडल से हुआ है. बांदा समेत देश के दूसरे हिस्से में पानी बचाने की कामयाब विधि को ले कर उमाशंकर पांडेय ने बताया कि उन्होंने कुछ नया नहीं किया है, बल्कि मेंड़बंदी की पारंपरिक विधि को समुदाय के हाथों दोबारा जिंदा कर दिया.

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इस के लिए भूजल संरक्षण अभियान मेंड़बंदी के लिए किसी तरह का कोई अनुदान सरकार या दूसरे संगठनों से नहीं लिया है, बल्कि बिना किसी सरकारी इमदाद के ही खेत पर मेंड़ और मेंड़ पर पेड़ विधि से वर्षा जल संरक्षण की मुहिम को आगे बढ़ाया. उन्होंने बताया कि अपने साथियों के साथ मिल कर गांव वालों को वर्षा जल को बचाने के लिए खेतों में मेंड़बंदी के लिए बढ़ावा दिया, जो गांव के कुछ पढ़ेलिखे लोगों की बात सम?ा में आई और उन लोगों ने अपने खेत में मेंड़बंदी कर पानी बचाने की शुरुआत कर दी. गांव वालों की इस पहल का ही नतीजा है कि मेंड़बंदी अपनाने वाले जिलों के तालाबों और कुओं में गरमियों में भी लबालब पानी भरा रहता है.

Satyakatha: वासना के अंधे बने कातिल

सौजन्या-सत्यकथा

30सितंबर, 2020 की सुबह का वक्त था. होशंगाबाद जिले के थाना पथरोड़ा की थानाप्रभारी सुश्री प्रज्ञा शर्मा पुराने मामलों की फाइल पलट रही थीं. तभी डंडे का सहारा ले कर लगभग 90 वर्षीय एक बुजुर्ग धीरेधीरे उन के औफिस में दाखिल हुए. थानाप्रभारी ने बुजुर्ग को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बुजुर्ग ने अपना नाम रामदास बताते हुए कहा कि वह डोव गांव में रहता है और उस का 40 साल का बेटा सुरेश उइके गांव नानपुरा पंडरी में पत्नी ममता और 2 बच्चों के साथ रहता है. सुरेश रेलवे में वेल्डर है.

वह रोज सुबह नौकरी पर अपनी मोटरसाइकिल से भौरा स्टेशन आताजाता था. लेकिन कल रात में वह काम से वापस नहीं लौटा और उस का मोबाइल भी बंद था. वह उसे खोजने के लिए जब भौरा जा रहा था तो जंगल के रास्ते में उसे अपने बेटे की मोटरसाइकिल पड़ी दिखाई दी. जिस के पास कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे उस की लाश पड़ी है. रामदास ने बताया कि किसी ने उन के बेटे का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी है.

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थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के सामने कई ऐसे सवाल थे जिन के उत्तर रामदास दे सकता था. लेकिन पहली जरूरत मौके पर पहुंचने की थी. इसलिए उन्होंने सब से पहले एसपी होशंगाबाद संतोष सिंह गौर और एसडीपीओ महेंद्र मालवीय को घटना की जानकारी दी. फिर वह पुलिस टीम ले कर मौके पर पहुंच गई.

भौरा मार्ग से कुछ हट कर जंगल के अंदर सागौन के पेड़ के नीचे सुरेश की सिर कुचली लाश पड़ी थी. लाश के पास ही खून से सना भारी पत्थर पड़ा था, जिस से जाहिर था कि उसी पत्थर को सुरेश के सिर पर मारा गया था, जिस से उस का पूरा भेजा बाहर निकल कर चारों तरफ बिखर गया था.

सड़क पर पड़ी मोटरसाइकिल के पास भी खून के निशान थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: मोटरसाइकिल से घर लौट रहे सुरेश को हमलावरों ने पहले चलती बाइक पर हमला कर रोका होगा और फिर बाद में अंदर जंगल में ले जा कर उस की हत्या कर दी होगी.

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पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के साथ ही रामदास की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी. दूसरी तरफ मामले की गंभीरता देखते हुए एसपी संतोष सिंह गौर ने एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देशन और पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. टीम में एएसआई भोजरात  बरबडे, हेडकांस्टेबल सुरेंद्र मालवीय, अनिल ठाकुर, कांस्टेबल हेमंत, टिल्लू, विनोद, संजय आदि को शामिल  किया गया.

इस टीम ने मृतक सुरेश के बारे में गहन छानबीन की, जिस में पता चला कि सुरेश ने करीब 13 साल पहले कांदई कलां की रहने वाली ममता तोमर से प्रेम विवाह किया था. जबकि ममता के बारे में जानकारी मिली कि वह  अपने एक रिश्तेदार के घर ड्राइवर की नौकरी करने वाले सईद खां से प्यार करती थी.

मृतक सुरेश के पिता रामदास आर्डिनैंस फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी करते थे. शादी के कुछ समय बाद सुरेश को रेलवे में वेल्डर की नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह अपनी पत्नी ममता के साथ नानपुरा पंडरी में मकान बना कर रहने लगा था.

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सुरेश की ड्यूटी भौरा और कीरतगढ़ रेल सेक्शन के बीच रहती थी, इसलिए वह रोज मोटरसाइकिल से भौरा आ कर रात लगभग 8 बजे ड्यूटी खत्म कर के घर लौट जाता था. सुरेश के साथियों से भी पूछताछ की गई, लेकिन उन्होंने बताया कि सुरेश सीधासच्चा आदमी था और उस की किसी से कोई रंजिश भी नहीं थी.

कहानी में मोड़ तब आया, जब पुलिस ने मृतक के पिता रामदास से पूछताछ की. उन्होंने उस की हत्या का शक अपने बेटे की पत्नी ममता पर जाहिर किया. ससुर अपनी ही बहू पर खुद उसी के पति की हत्या करने का आरोप लगा रहा था. इसलिए उन के आरोप को हलके में नहीं लिया जा सकता था. थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने मृतक की पत्नी ममता को पूछताछ के लिए थाने बुलाने के बजाए खुद गांव जा कर उस के बयान दर्ज करने की सोची.

दरअसल इस के पीछे थानाप्रभारी का इरादा गांव में ममता के बारे में लोगों से और जानकारी हासिल करना था. इस के लिए जब वह ममता के घर पहुंचीं तो वहां पहुंचते ही यह देख कर चौंकी कि ममता के घर के मुख्य दरवाजे के अलावा घर में कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

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सुरेश रेलवे में मामूली सी नौकरी करता था. उस के पास करोड़ों की पुश्तैनी संपत्ति भी नहीं थी और न ही उस की किसी से कोई रंजिश की बात सामने आई थी. तो उस ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे क्यों लगवाए. उन्होंने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश की हत्या का संबंध उस के घर में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से जुड़ा हो.

उन का यह शक उस वक्त और भी गहरा गया, जब उन्हें पता चला कि सुरेश ने ये कैमरे 10-12 दिन पहले ही लगवाए थे. इसलिए ममता के बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने टीम के कुछ सदस्यों को गांव में ममता के बारे में जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी दे दी. पता चला कि ममता के मायके में रहने वाला सईद अक्सर उस समय ममता के घर आता था, जब सुरेश घर पर नहीं होता था.

पुलिस को यह जानकारी भी मिली कि सुरेश के घर में कैमरे लगने के बाद से सईद को गांव में नहीं देखा गया. दूसरी जो सब से बड़ी बात सुनने में आई, वह यह कि कोई 4 महीने पहले ममता अचानक घर से लापता हो गई थी. वह करीब एक महीने बाद घर लौटी थी, जिस के कुछ दिन बाद सुरेश ने अपने घर में कैमरे लगवाए थे. सुनने में आया था कि लापता रहने के दौरान ममता सईद खान के साथ सिवनी मालवा में रही थी.

इस जानकारी के बाद ममता के साथ सईद भी शक के घेरे में आ गया, जो ममता के मायके का रहने वाला था. पुलिस टीम ने कांदई कलां में सईद की तलाश की तो वह गांव से गायब मिला.

जब सईद के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली गई तो पता चला कि मृतक सुरेश की पत्नी ममता के साथ उस की लगातार लंबी बातें होती थीं. जिस दिन सुरेश की हत्या हुई उस दिन भी उस ने कई बार ममता से बात की थी. दूसरी सब से बड़ी बात जो उस की काल डिटेल्स में निकल कर सामने आई, वह यह कि जिस समय सुरेश का कत्ल हुआ उस समय तक सईद का मोबाइल उसी लोकेशन पर था, जहां सुरेश की लाश मिली थी. इस से थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा के सामने पूरी कहानी साफ हो गई.

सईद की काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि घटना के पहले कुछ दिनों तक सईद ने लगातार नया बस स्टैंड नंदूबाड़ा रोड सिवनी मालवा निवासी आशू उर्फ हसरत और अरबाज के साथ न केवल कई बार फोन पर बात की थी, बल्कि घटना के समय इन दोनों के मोबाइल भी सईद के साथ घटनास्थल पर ही मौजूद थे. इसलिए एसडीपीओ महेंद्र मालवीय के निर्देश पर पुलिस टीम ने इन तीनों की तलाश शुरू कर दी.

जिस से जल्द ही सईद को बैतूल के चिचोली थाना इलाके के मउपानी से और अरबाज आशू को सिवनी मालवा से हिरासत में ले लिया. पुलिस ने इन तीनों से सख्ती से पूछताछ की. पूछताछ में तीनों ने न केवल सुरेश की हत्या की बात स्वीकार की बल्कि इस में उस की पत्नी ममता के भी शामिल होने की बात बताई.

पुलिस ने उन की निशानदेही पर घटना के समय पहने तीनों के रक्तरंजित कपड़े तथा उपयोग में लाई गई कुदाल, गला घोंटने में प्रयुक्त तार आदि भी बरामद कर सुरेश की पत्नी ममता को भी उस के गांव से गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद प्रेमी और पति को एक साथ खुश रखने वाली ममता द्वारा सुरेश की हत्या करवा देने की कहानी इस प्रकार सामने आई—

कांदई कला में रहने वाली ममता बचपन से ही अपने चंचल स्वभाव के लिए जानी जाती थी. बताते हैं कि मिडिल में पढ़ते समय ही उस का रंगरूप कुछ ऐसा निखार आया था कि देखने वाले उसे देख रीझ जाते थे. ममता के साथ स्कूल में गांव का रहने वाला सईद भी पढ़ता था. सईद ममता का दीवाना था. वह उस से दोस्ती कर उसे पाने के सपने देखता था.

फिर नादान उम्र में ही ममता सईद के साथ प्रेम और देह के पाठ पढ़ने लगी थी. स्कूली पढ़ाई के बाद ममता ने आगे की पढ़ाई बंद कर दी. वह घर पर ही रहने लगी. उसी दौरान सुरेश उइके से उस के प्रेम संबंध हो गए. यह जानकारी जब सईद को हुई तो उसे झटका लगा.

ममता के पिता गांव के बडे़ किसान थे. गांव में रहने वाले ममता के रिश्ते के एक भाई ने खेतीकिसानी के काम के लिए सईद को बतौर टै्रक्टर ड्राइवर नौकरी पर रख लिया था. इस से सईद को ममता के आसपास रहने का मौका मिलने लगा.

सईद बहुत शातिर था. उस का मकसद नौकरी के बहाने ममता से नजदीकियां बढ़ाना था, क्योंकि ममता उन दिनों सुरेश उइके से प्रेम की पींगें बढ़ा रही थी. सईद ने तिकड़म से जल्द ही ममता के पूरे परिवार का दिल जीत लिया. जिस से उस का उस के घर में बेरोकटोक आनाजाना शुरू हो गया.

जब ममता को पता चला कि सईद उस की दीवानगी के चलते ही ड्राइवर की नौकरी करने आया है तो उस ने सईद की दीवानगी को भी हवा देनी शुरू कर दी.वह पहले से ही प्यार के मामले में काफी अनुभवी थी. उस ने सईद को पूरी तरह से अपना दीवाना बना लिया.

ममता एक ही समय में 2 प्रेमियों सईद और सुरेश को अपनी बांहों में प्रेम का झूला झुलाने लगी. इतना ही नहीं, उस ने सईद के संग निकाह और सुरेश के संग शादी करने का वादा भी कर रखा था जबकि वह जानती थी कि ये दोनों काम एक साथ नहीं हो सकते.

बहरहाल, सईद के साथ उस का निकाह होना सुरेश के साथ शादी होने से ज्यादा मुश्किल था. इसलिए उस ने सईद को छोड़ कर सुरेश के साथ लवमैरिज कर ली.

संयोग से शादी के ठीक बाद सुरेश को रेलवे में नौकरी मिल गई, जिस के बाद वह नानपुर पंडरी में मकान बना कर अपनी पत्नी के साथ रहने लगा. बाद में ममता 2 बेटियों की मां बनी.

उस की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. सुरेश की ड्यूटी भौंरा और कीरतगढ़ के बीच थी, इसलिए वह गांव से रोज सुबह मोटरसाइकिल से आ कर शाम को वापस घर लौट आता था.

दिन भर ममता घर में अकेली रहती थी. उस ने अपने इस खाली समय का उपयोग पुराने प्रेमी सईद को खुश करने के लिए करना शुरू कर दिया.

वह पति के काम पर चले जाने के बाद सईद को अपने घर बुलाने लगी, जहां दोनों दिन भर वासना का खेल खेलते. शाम को सुरेश के आने से पहले सईद अपने घर चला जाता. इस दौरान सईद ममता से किसी न किसी बहाने पैसा भी लेता रहता था.

ममता को सईद का आना अच्छा लगता था, इसलिए सईद के आते ही वह घर का दरवाजा बंद कर उस के साथ कमरे में कैद हो जाती थी. जल्द ही इस बात की चर्चा गांव में होने से बात सुरेश तक भी पहुंच गई.

सुरेश ने एकाध बार इशारे में ममता से  इस बारे में बात की, जिस से ममता समझ गई कि अब सईद को घर बुलाने में खतरा है. इसलिए जब उस ने इस बारे में सईद से बात की तो उस ने उसे साथ भाग चलने को कहा. ममता सईद के साथ भागने को तैयार हो गई.

फिर 8 अगस्त, 2020 के दिन ममता को ले कर सईद सिवनी मालवा आ गया, जहां उस के दोस्त और रिश्तेदार अरबाज तथा आशू ने दोनों के रहने की व्यवस्था पहले से ही कर दी थी.

ममता के भाग जाने से सुरेश पागल सा हो गया. उसे जरा भी भरोसा नहीं था कि उस के साथ प्रेम विवाह करने वाली ममता उसे और बच्चों को इस तरह से धोखा देगी. इस से सुरेश का दिल टूट गया. इधर एक महीने तक ममता द्वारा घर से लाए गए पैसों पर ऐश करने के बाद सईद ने उसे वापस सुरेश के पास भेज दिया.

एक महीने बाद घर लौटी पत्नी को सुरेश अपनाना तो नहीं चाहता था, लेकिन बच्चों की खातिर उस ने ममता को माफ कर दिया. आगे ऐसा न हो, इसलिए सुरेश ने घर में कई सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. वह ड्यूटी पर रहते हुए मोबाइल के माध्यम से घर पर नजर रखने लगा.

इस से सईद और ममता समझ गए कि अब उन का वासना का खेल खत्म हो गया है. इसलिए उन्होंने फोन पर चर्चा कर सुरेश का ही खेल खत्म करने की योजना बना ली, जिस में सईद ने अपने दोनों दोस्त अरबाज और आशू को भी शामिल कर लिया.

फिर तीनों ने मिल कर 30 सितंबर, 2020 की रात ड्यूटी से लौट रहे सुरेश को रोक लिया और साथ लाए तार से गला घोंट दिया. फिर भारी पत्थर से उस का सिर कुचल दिया.

सईद और उस की प्रेमिका ममता का सोचना था कि मामला शांत हो जाने के बाद वे दोनों फिर पहले की तरह अय्याशी कर सकेंगे. लेकिन पथरोड़ा थानाप्रभारी प्रज्ञा शर्मा ने 4 दिन में ही सभी आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

 

मन की आंखें: अपार्टमेंट में शिफ्ट होते ही उसे परेशानी क्यों होने लगी

सुबह 11 बजे सो कर उठा तो  काफी झल्लाया हुआ था रमेश. बगल के फ्लैट से रोज की तरह जोरजोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. आज संडे की वजह से अभी वह और सोना चाहता था.

‘सरकार ने एक दिन छुट्टी का बनाया है ताकि बंदा अपनी सारी थकान, आराम कर के उतार सके. पर इन बूढ़ेबुढि़या को कौन समझाए. देर रात तक जागना और मुंहअंधेरे उठ कर बकबक शुरू कर देना, पता नहीं दोनों को एकदूसरे से क्या बैर है. कभी शांति से, धीमी आवाज में बात नहीं करते आपस में, जब भी करेंगे ऊंची आवाज में चिल्ला कर ही करेंगे. बहरे हैं क्या.’ यही सब सोचता हुआ वह बाथरूम में घुस गया. नींद का तो दोनों ने सत्यानाश कर ही दिया था. चाह कर भी उसे दोबारा नींद नहीं आई.

नहाधो कर निकला तो अपने लिए चाय बनाई और पेपर ले कर पढ़ने बैठ गया. 12 बजे से इंडिया और पाकिस्तान का मैच शुरू होने वाला था. आज तो वह किसी भी हाल में घर से हिलने वाला नहीं. ऐसे में आज पूरा दिन उसे उन दोनों की बकवास सुननी पड़ेगी. यह सोच कर ही उसे घबराहट हुई.

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जब उस ने इस अपार्टमैंट में फ्लैट लिया था, उसे जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह 3 महीने में ही इतनी बुरी तरह से परेशान हो जाएगा. अपना खुद का फ्लैट खरीद कर कितना खुश हुआ था वह. पर उसे क्या पता था कि उस के बगल वाले फ्लैट में जो बुजुर्ग दंपती रहते हैं उन्हें दिनरात चिल्ला कर बोलने की ‘लाइलाज बीमारी’ है. बाहर की तरफ खुलने वाली खिड़की वह हमेशा बंद कर के रखता था. पर उन की आवाजें थीं कि दीवार तोड़ कर उस के कानों से टकराती थीं. दोनों कानों में रुई डाल लेता पर सब बेकार.

मैच शुरू हो चुका था. अभी 5 मिनट भी नहीं हुए थे कि बगल वाले फ्लैट से भी मैच की आवाजें आनी शुरू हो गईं, जो इतनी तेज और साफ सुनाई दे रही थीं कि उस ने अपने टीवी के वौल्यूम को एकदम धीमा कर दिया.

‘यार, यह क्या मुसीबत है. मैच देखो अपने टीवी पर और कमैंट्री सुनो दूसरे के टीवी से,’ वह बुरी तरह अपसैट हुआ.

कभीकभी तो उस का मन करता, जा कर उन्हें इतनी खरीखरी सुनाए कि दोबारा वे दोनों तेज आवाज में बातें करनी छोड़ दें पर ऐसा कर नहीं सका. दिन की शुरुआत होती तो वह सोचता कि आज जा कर खबर लेता हूं. औफिस से रातगए थकाहारा लौटता तो उस की यह ख्वाहिश दम तोड़ चुकी होती.

पता नहीं बाकी के फ्लैट वालों को उन से क्यों कोई एतराज नहीं था. उस ने कभी किसी को उन के दरवाजे पर आते नहीं देखा और न ही दोनों को कहीं बाहर जाते. लगता था जैसे उन दोनों की दुनिया तो बस चारदीवारी के अंदर ही कैद थी.

3 महीने में उस ने कभी उन के फ्लैट का दरवाजा खुला नहीं देखा था. ‘पता नहीं, अपनी रोजमर्रा की जरूरतें दोनों कैसे पूरी करते होंगे? दूध, अंडे, सब्जी, गैस वगैरह.

पर उसे क्या, वह क्यों इतना उन के बारे में सोच रहा है, वह कौन सा दिनभर घर में बैठा उन की निगरानी करता रहता है? वह सिर झटक कर मैच देखने लगा.

‘‘अरे, इतनी तेज आवाज में मैच क्यों देख रहे हो? तुम बहरे हो, इस का यह मतलब नहीं कि बिल्ंिडग वाले सभी बहरे हैं,’’ बोल कर बुढि़या जोर से खांसने लगी.

‘‘सिर पर क्यों खड़ी है मेरे, जा कर अपना काम देख. मैच भी शांति से नहीं देखने देती,’’ बूढ़े ने भी जोर से हांफते हुए कहा, ‘‘कम्बख्त मरती भी नहीं कि मुझे चैन मिले.’’

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‘‘क्या कहा, मेरे मरने की दुआएं

मांग रहे हो? याद रखो, मर कर भी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी और मैं क्यों मरूं? मरें मेरे दुश्मन,’’ बुढि़या ने बूढ़े की तरफ हाथ लहराया.

‘‘हांहां, मैं ही मर जाता हूं. ऊपर जा कर कम से कम सुकून से तो रहूंगा,’’ बूढ़े ने अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘ज्यादा खुश मत हो बूढ़े मियां, मैं वहां भी तुम्हारे पीछे चली आऊंगी. मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं,’’ बुढि़या ने आंखें नचाईं.

‘‘तू मेरे पीछे कैसे आएगी. तेरा तो टिकट कहीं और के लिए कटेगा,’’ बूढ़ा बोल कर हंसा, हंसने से ज्यादा खांसने लगा.

अब फोन की घंटी बजने की आवाज आई और उन का टीवी बंद हो गया. शायद उन के बेटे का फोन था. दोनों बात करने के लिए आपस में लड़ने लगे. इंटरवल के पहले बुढि़या ने बूढ़े की पोल खोली. इंटरवल के बाद बूढ़े की बारी आई. उस ने भी पेटभर बुढि़या के कारनामों का बखान किया पर फिल्म का क्लाइमैक्स नहीं हो सका. उधर से फोन कट हो गया था.

‘इन की फुजूल हरकतों की वजह से ही लगता है इन्हें अपने साथ ले कर नहीं गया होगा बेचारा,’ उसे बेटे की हालत पर अफसोस हुआ.

‘‘अपने बेटे की खैरियत पूछने के बजाय तू शिकायत की पोटली ले कर बैठ गई. इसलिए फोन काट दिया उस ने,’’ बूढ़े ने बुढि़या पर गुस्सा निकाला.

‘‘और तुम ने क्या किया. परसों वाली बात भी उसे बता दी कि मैं ने मलाई चुरा कर खाई थी और मेरे पेट में दर्द हो गया था,’’ बुढि़या तमतमा कर बोली.

‘‘तू ने भी तो मेरी कल वाली शिकायत लगा दी कि मैं अकेला ही सारी खीर खा गया और मुझे बदहजमी हो गई थी,’’ उस ने ताल से ताल मिला कर कहा.

उन की खट्टीमीठी शिकायतें सुनने के चक्कर में उस के जाने कितने चौकेछक्के और कैच छूट गए. उसे बहुत कोफ्त हुई.

वह रोज सुबह 8 बजे घर से निकलता और रात 8 बजे घर लौटता था. औफिस जाने में 1 घंटा लगता. नाश्ताखाना वहीं कैंटीन में ही करता. रात के लिए बाहर से कुछ ले कर आता और दोनों कानों में रुई डाल कर सो जाता. पर हर 1 घंटे पर दोनों की चिल्लाने की आवाजें आती रहती थीं.

‘चलो एक फायदा है, दोनों के जागते रहने से उन के और अगलबगल के फ्लैटों में चोरी नहीं हो सकती,’ वह सोच कर मुसकराया और सोने की कोशिश करने लगा.

सुबह उठ कर वह फ्रैश महसूस नहीं करता था. उस की नींद पर असर  पड़ने लगा था. आंखें चढ़ी हुई और लाल रहने लगी थीं. दोस्त मजाक बनाते कि रातभर जाग कर वह क्या करता है. इस से काम पर भी असर पड़ने लगा था. बौस की डांट अलग से खानी पड़ती. कुल मिला कर वह पूरी तरह ‘डिप्रैस्ड’ हो चुका था.

एक अच्छी नींद के लिए तरस रहा था. मन ही मन दोनों को बुराभला कहता, कोसता और गालियां देता. इस के अलावा कर भी क्या सकता था. किराए का फ्लैट होता तो कब का खाली कर के, कहीं और शिफ्ट हो जाता. दिन में काम और रात में ‘रतजगा’ कर के जिंदगी गुजर रही थी.

आज बहुत जरूरी फाइल उसे कंप्लीट करनी थी. फाइल घर पर ही ले कर आ गया और रात में खाने के बाद फाइल खोल कर बैठ गया.

किसी भी तरह इसे पूरा करना है. नहीं तो कल बौस की डांट पक्की खानी पड़ेगी. काम की वजह से उस का औफिस में इंप्रैशन खराब होने लगा है. उस ने यह सोचते हुए घड़ी देखी. रात के 11 बज रहे थे. वह पूरी तरह से काम में डूब गया.

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‘‘ले, यह दवा पी ले, तबीयत ठीक नहीं है तेरी,’’ बूढ़े की जोर की आवाज आई.

रमेश को लगा मानो उसे ही दवा पीने को कह रहा है कोई. वह चौंक गया.

‘‘मुझे नहीं पीनी, खुद ही पी लो,’’ टनाक से जवाब आया.

‘‘सुबह से देख रहा हूं, कुछ कमजोर लग रही है.’’

‘‘तुम्हें इस से क्या, मैं मरूं या जीऊं. तुम्हारी बला से.’’

‘‘जिद मत कर, दवा पी ले. फिर बेटे से शिकायत न करना कि दवा नहीं दी.’’

‘‘नहीं करती, जाओ. बड़े आए दवा पिलाने वाले. हुम्म,’’ बुढि़या ने कहा.

‘‘मत पी, जा मर. मैं भी नौकर नहीं तेरा, खुशामद करूं, सेवा करूं,’’ बूढ़े ने आंखें तरेरीं.

‘‘मुझे तुम से अपनी सेवा करवानी भी नहीं. ऊपर वाले ने मुझे 2 हाथ, 2 पैर दिए हैं,’’ बुढि़या बिदक कर बोली.

‘‘हां, ठीक है. ऊपर वाले ने मुझे भी लंगड़ालूला नहीं बनाया है. तू भी अब कभी मुझे दवा पिलाने मत आइयो.’’

‘‘नहीं आती, जाओ. दवा दो, मैं खुद पी लूंगी,’’ उस ने अपने झुर्री वाले कांपते हाथ लहराए.

‘‘ला, अपना हाथ बढ़ा, गिरा तो नहीं देगी. संभाल के पी.’’

‘‘2 आंखें हैं मेरे पास,’’ उस ने अपनी धंसी हुई पलकें पटपटाईं.

‘‘मालूम है मुझे. 2 आंखें हैं तेरे पास. किसी के 4 नहीं होतीं, मेरे भी 2 ही आंखें हैं,’’ वह भी अपनी गड्ढे में धंसी हुई आंखों को मटका कर बोला.

‘‘हुर्र, अब जाओ यहां से, मेरा सिर मत खाओ,’’ बुढि़या ने हांक लगाई.

‘‘फुर्र तू यहां से,’’ पोपले मुंह से हवा उड़ाई. फिर थक कर दोनों खांसने लगे और देर तक खांसते रहे.

इधर, वह सोचने लगा कि बिना वजह कितना लड़ते हैं दोनों. बुढ़ापा है ही सब मुसीबतों की जड़. रोज उन दोनों को सुनते हुए, जीते हुए और महसूस करते हुए उसे लगा कि वह भी 70-80 साल का एक जवान बूढ़ा है. सिर्फ एक जवान बुढि़या की कमी है.

उसे भी जोर की खांसी आई. अब तीनों एकसाथ इकट्ठे खांस रहे थे.

सुबह औफिस जाते हुए वह अपनी धुन में सीटी बजाता दरवाजे को लौक कर रहा था.

‘‘ठीक से बंद कर.’’

वह बुरी तरह  चौंक कर इधरउधर देखने लगा.

‘‘हां, करती हूं. सब्र नहीं तो खुद ही खिड़की बंद कर दो,’’ बुढि़या डगडग हिलती हुई बोली.

उस ने एक ठंडी सांस छोड़ी. ये बुड्ढेबुढि़या एक दिन मेरी जान ले कर रहेंगे. अचानक बढ़ी हुई धड़कनें अब कुछ शांत हुईं.

‘‘बूढ़ी बीबी, टपक गई क्या? सुनो मेरी बात जरा.’’

‘‘मरी नहीं, अभी जिंदा हूं, बूढ़े मियां, सुनाओ अपनी बात जरा,’’ बुढि़या ने अपनी लाठी को जमीन पर जोर से पटका.

‘‘मैं कह रहा था, कमरे की सब खिड़कियां बंद कर दे. आज जोरदार बारिश होने वाली है,’’ बूढ़े ने भी जवाब में अपनी लाठी जोर से पटकी.

‘‘लो, सुनो बात. आज ही बारिश नहीं होगी, अगले 2 दिनों तक होती रहेगी.’’

‘‘हां, जानता हूं, बूढ़ी बीबी. तुम्हें तो सब पता रहता है. आज शाम को गरमगरम पकौड़ी तल देगी,’’ बूढ़ा पोपले मुंह से जुगाली करता हुआ बोला.

‘‘और सुन लो बात, बारिश हुई नहीं. अभी से बूढ़े मियां की लार टपकने लगी,’’ बुढि़या खांसी मिली हुई हंसी हंसने लगी.

वह अपार्टमैंट के बाहर आया. खिली हुई धूप थी. आकाश एकदम साफ नजर आ रहा था, कहीं से भी बारिश के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे. हवा थोड़ी ठंडी बह रही थी.

ऊपर वाला भी कमाल के नमूने बना कर नीचे भेजता है, दूसरों की नींद हराम करने के लिए. खुद तो बड़े आराम से मजे ले कर लंबी तान के सो रहा होगा. उस ने मन ही मन कुढ़ते हुए बाइक स्टार्ट की. इन्हें तो सरकार की तरफ से मैडल मिलना चाहिए. घर बैठे मौसम विभाग की जानकारी दे रहे हैं.

औफिस से लौटते हुए वह पूरी तरह से बारिश में भीग चुका था. उस ने सोचा कि शायद सुबह तक बारिश रुक जाए. पर दूसरे दिन भी बारिश अपने पूरे शबाब पर थी. पता नहीं उसे क्यों थोड़ी बेचैनी महसूस होने लगी. शायद इतनी बारिश उस के बाहर जाने के खयाल से हो रही होगी. उस ने सिर झटका पर खुशी भी थी, जिस शहर जाना था वहां उस के मांबाप रहते थे. इसी बहाने उन के साथ दोचार दिन रह भी लेगा. अचानक देख कर खुश हो जाएंगे वे.

घर वाले उस पर लगातार शादी का प्रैशर बना रहे थे. पर वह बहाने से टालता जा रहा था. शादी के बाद वाइफ के साथ इस फ्लैट में कैसे रह सकेगा? नई जिंदगी की शुरुआत बगल वाले बुजुर्गों के साथ कैसे करेगा? उसे सोच कर कुछ और बेचैनी महसूस हुई पर हिम्मत कर के घर से बाहर निकल गया.

बगल वाले फ्लैट पर नजर गई, दरवाजा रोजाना की तरह बंद था. अंदर से हमेशा की तरह जोर से बोलने की आवाजें आ रही थीं. नजर नेमप्लेट पर गई. ‘मिस्टर यूसुफ किदवई ऐंड मिसेज किदवई’ नाम बुदबुदाता हुआ वह तेजी से आगे बढ़ गया. 4 घंटे का सफर था. उसे हैरत हुई कि 3 दिन तक बारिश लगातार होती रही थी. चौथे दिन जा कर मौसम साफ हुआ. खिल कर धूप निकली थी. उसी दिन वह लौटा.

अपार्टमैंट के पास आया तो फिर वही बेचैनी महसूस होने लगी. चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी. लोग बदहवासी में आजा रहे थे. दिल तेजी से धड़कने लगा. सीढि़यां चढ़ता हुआ सैकंड फ्लोर पर पहुंचा. लिफ्ट में कुछ प्रौब्लम हो गई थी. मि. यूसुफ किदवई के फ्लैट का दरवाजा आज पहली बार खुला हुआ था.

पुलिस भी आई हुई थी. बेचैनी कुछ और बढ़ गई. उस ने उन दोनों बुजुर्गों को आज तक नहीं देखा था. सिर्फ उन को सुना था. आज पहली बार उन्हें देखेगा, उन से मिलेगा, सोचता हुआ आगे बढ़ा.

तभी स्ट्रेचर पकड़े 4 लोग उन के फ्लैट से बाहर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. चादर पर खून के लाल धब्बे दिख रहे थे.

फिर 4 लोग दूसरा स्ट्रेचर ले कर निकले. खून से लथपथ लाश थी. सफेद चादर से ढकी हुई, ऊपर से नीचे तक. दोनों के हाथ आपस में जुड़े हुए थे. अकड़ी हुई, सख्ती से उंगलियां आपस में फंसी हुई थीं.

‘‘अंतिम सांस एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही ली होगी,’’ एक देखने वाले ने कहा.

‘‘अब दिल्ली अकेले रहने लायक नहीं रही बुजुर्गों के लिए,’’ दूसरे ने कहा.

‘‘बेटा कब से अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता था पर बुढ़ापे में दरबदर नहीं होना चाहते थे. चले जाते तो ऐसी मौत तो नहीं मरते,’’ तीसरे ने कहा.

‘‘अपना देश, अपनी मिट्टी का लगाव छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे बेचारे,’’ एक महिला आंसू पोंछते हुए बोली.

‘‘किसी तरह की कोई तकलीफ नहीं थी, बेटा सारे इंतजाम कर के गया था.’’

‘‘उन कसाइयों का कलेजा नहीं कांपा इन्हें मारते हुए. रुपएपैसे लूट लेते पर जान तो बख्श देते,’’ एक औरत भर्राए गले से बोली.

‘‘2 दिन पुरानी लाश है. इसलिए अकड़ गई है. हाथ छुड़ाते नहीं छूटता. वह तो आज इन का राशन वाला आया था. घंटी बजाता रहा. जब दरवाजा नहीं खुला तो उसे शक हुआ.’’

‘‘दोनों अंधे, लाचार बुजुर्गों को मारने वालों को कहीं भी जगह न मिलेगी. एकदूसरे का सहारा थे दोनों, मन की आंखों से एकदूसरे को देखते थे,’’ औरत रोंआसी हो आई.

‘‘पूरी जिंदगी साथ जिए, मरे भी साथ ही. बिल्ंिडग सूनी हो गई इन के बगैर. अपनी मिसाल खुद थे दोनों.’’

जितने मुंह उतनी बातें. एंबुलैंस धूल उड़ाती उन्हें ले कर चली गई. सब लोग भी वापस अपने माचिस के डब्बे में बंद हो गए.

पर वह अकेला नीचे खड़ा रहा. उसे तो सिर्फ यही सुनाई दे रहा था, ‘मन की आंखों से देखते थे एकदूसरे को.’

इन 6 महीनों में उस ने भी तो हमेशा यही चाहा था कि काश, कुछ ऐसा हो कि वे दोनों बूढ़ाबूढ़ी अचानक कहीं गायब हो जाएं और उस की जिंदगी पुरसुकून हो जाए.

जो चाहता था वही तो हुआ था. अचानक गायब हो गए थे दोनों.

फिर आंखों में ये आंसू बारबार क्यों आ रहे हैं? होंठों पर थरथराहट क्यों है? और सीने में गरम लावे से क्यों धधक रहे हैं? वे दोनों कौन लगते थे उस के? या वह कौन लगता था उन का? कोई भी तो नहीं. फिर ये तड़प क्योंकर हो रही है उस  को. हां, शायद एक रिश्ता उन का आपस में था, इंसानियत का.

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पूरी बिल्ंिडग यह सचाई जानती थी  कि दोनों बुजुर्ग दंपती अंधे थे. देख नहीं सकते थे. पर वह तो आंख रहते हुए भी दिल और दिमाग से अंधा था. बस, उन्हें लड़तेझगड़ते और चिल्लाते सुनता रहा. सिर्फ अपने बारे में ही सोचता रहा. कभी उन के बारे में जानने की कोशिश नहीं की. अगलबगल फ्लैट में रहते भी अनजान बना रहा. 6 महीने का साथ था उन का. दोनों कल तक थे पर आज नहीं हैं.

उस के दिल ने क्यों एक बार भी नहीं कहा कि उन के डोर की कौलबैल बजाए. कोई तो दरवाजा खोलता, कुछ बातें होतीं, एक अनाम सा रिश्ता बनता. वे दोनों उसे जानते, वह भी उन की मुश्किलों को समझता. पर उन के फ्लैट का दरवाजा तो हमेशा बंद रहता था. तो क्या हुआ? उस ने भी तो अपने मन के दरवाजे को मजबूती से बंद कर रखा था. सिर्फ उन्हें सुनता रहा, आंखों से देखने की जरूरत ही महसूस नहीं की.

बहरहाल, किसी तरह खुद को ढोता हुआ वह अपने फ्लैट में आया. बगल वाले फ्लैट के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. आवाजें अब भी आ रही थीं.

‘ओ बूढ़े मियां, ओ बूढ़ी बीबी, जरा हाथ तो बढ़ाना,’ उस ने अपने दोनों कान जोर से बंद कर लिए.

चाबी का गुच्छा : मनोरमा जी बहू को घर की चाभी क्यों नहीं देना चाहती थी

रेवती जैसी बहू पा कर मनोरमाजी निहाल हो गई थीं. रूप, गुण, व्यवहार में अव्वल रेवती ने सहर्ष घर की बागडोर थाम ली थी. लेकिन उसे अपनी अलमारी की चाबी का गुच्छा देते हुए आखिर क्यों मनोरमाजी का दिल दहल उठता और दिल में तरहतरह के विचार उठने लगते थे?

मनोरमाजी अलसाई सी उठीं. एक जोरदार अंगड़ाई ली, हालांकि उठने में काफी देर हो गई थी जबकि वे भरपूर नींद सोई थीं. बेटे की शादी हुए 2 ही दिन हुए थे. महीनों से वे तैयारी में लगी थीं और अभी भी घर अस्तव्यस्त सा ही था. सोचा, उठ कर चाय बना लें. बहू को अपने हाथों से चाय पिलाने की इच्छा से जैसे उन के अंदर चुस्ती आ गई. वे किचन की ओर बढ़ी ही थीं कि ट्रे में चाय के कप को सजाए बहू आती दिखी. साथ में प्लेट में बिस्कुट भी रखे थे.

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‘‘चलिए मम्मी, साथ बैठ कर चाय पीते हैं. कितनी थकीथकी सी लग रही हैं.’’

पलभर को तो मनोरमाजी अवाक् रह गईं. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि शादी के

2 दिन बाद बहू स्वयं रसोई में जा कर चाय बना लेगी और उन्हें साधिकार पीने को भी कहेगी. चाय पीतेपीते उन्हें याद आया कि आज तो बहू पगफेरे के लिए मायके जाएगी.

‘‘बेटा, कितने बजे आएंगे तुम्हारे भाई तुम्हें लेने?’’

‘‘मम्मी, शाम तक ही आएंगे. आप बता दीजिए कि क्या बनाना है? और मम्मी, मायके भी तो कुछ ले कर जाना होगा.’’

‘‘ठीक है, देखते हैं. तुम चिंता मत करो. मैं सब तैयारी कर दूंगी. तुम जा कर तैयार हो जाओ. अभी 2 दिन हुए हैं तुम्हारी शादी को, अभी से काम की टैंशन मत लो. आसपड़ोस की औरतें और रिश्तेदार भी आएंगे तुम्हारी मुंह दिखाई करने. कम से कम हफ्तेभर तो यह सिलसिला चलेगा,’’ मनोरमाजी ने अपनी बहू रेवती से कहा.

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थोड़ी देर बाद रेवती तैयार हो कर आ गई. ‘कितनी सुंदर लग रही है,’ मनोरमाजी ने मन ही मन सोचा. नैननक्श, गठन और स्वभाव सब नपेतुले हैं. लगता ही नहीं कि उसे 2 ही दिन हुए हैं इस घर में आए, कितनी जल्दी घुलमिल गई है सब से.

‘‘मम्मी, जरा चाबी तो देना. खाने का सामान, नई क्रौकरी वगैरह निकालनी है. मैं चाहती हूं कि भैया के आने से पहले ही सारी तैयारी कर लूं, ताकि फिर आराम से बैठ कर गपें मारी जा सकें,’’ रेवती ने बहुत ही सहजता से कहा.

सुनते ही मनोरमाजी का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया. आते ही उन के चाबी के गुच्छे पर अधिकार जमाना चाहती है पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं बोलीं. मना भी नहीं कर सकती थीं, इसलिए चाबी दे दी. जब से वे इस घर में ब्याह कर आई थीं, पहली बार उन्होंने किसी को चाबी दी थी. मन में तरहतरह के विचार आने तो स्वाभाविक थे.

‘‘अब आप निश्ंिचत हो कर बैठिए. मैं सब मैनेज कर लूंगी. शादी की वजह से कितनी थक गई हैं आप,’’ रेवती ने चाबी का गुच्छा उन से लेते हुए कहा.

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रसोई से खटरपटर की आवाजें आती रहीं. बीचबीच में रेवती पूछती भी जाती कि फलां चीज कैसे बनेगी या फलां चीजें कहां रखी हैं. वे अपने कमरे में बैठीबैठी जवाब देती रहीं, पर जब देखा कि बहू की मदद करने बेटा भी रसोई में पहुंच गया है तो उन्हें वहां जाना ही पड़ा.

बहू ने 10-12 डिश बनाने के लिए सामान निकाला हुआ था. उन के सब से कीमती क्रौकरी और कटलरी सैट टेबल पर लगे हुए थे. यहां तक कि अपने सामान से उस ने टेबल मैट्स निकाल कर भी सजा दिए थे. उन का नया कुकर, कड़ाही और करछियां भी धोपोंछ कर करीने से रखे हुए थे. किचन के स्लैब पर भी सामान बिखरा हुआ था. इतना फैलाव देख कर उन्हें पलभर को कुढ़न तो हुई पर रेवती के चेहरे पर छाई खुशी और जोश को देख कर वे कुछ बोली नहीं.

चाबी का गुच्छा बहू की कमर में लटक रहा था. उन का मन हुआ कि वे उसे मांग लें, पर हिम्मत ही नहीं हो रही थी. इतनी सारी चीजें बनातेबनाते दोपहर के 3 बज गए थे.

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‘‘मम्मी, अब आप जा कर थोड़ी देर आराम कर लीजिए और हां, ये आप की चाबियां,’’ रेवती ने जैसे ही उन्हें चाबियों का गुच्छा थमाया, उन्होंने उसे ऐसे पकड़ लिया मानो कोई बहुत कीमती चीज उन के हाथ में आ गई हो.

शाम को रेवती का भाई, भाभी, बच्चे, उस की छोटी बहन सब आए. हर थोड़ीथोड़ी देर बाद वह उन से चाबी मांगती, ‘‘मम्मी, जरा यह निकालना है, चाबी दीजिए न…फलां चीज तो निकाली ही नहीं, निकाल देती हूं. मेरी ससुराल में भैया पहली बार आए हैं, उन पर अच्छा इंप्रैशन पड़ना चाहिए.’’

वे चाबी का गुच्छा अवश्य उसे देतीं पर जब तक उन्हें वापस नहीं मिल जाता, उन का सारा ध्यान उसी पर अटका रहता.

सेवासत्कार में शाम हो चली थी. रेवती अपने भैया के साथ मायके के लिए प्रस्थान कर गई.

अगले दिन उन का बेटा नीरज रेवती को उस के मायके से ले आया. वह उन से गले लग कर ऐसे मिली मानो उन से पलभर की जुदाई बरदाश्त न हो. मनोरमाजी को रेवती का उन पर इस तरह स्नेह उड़ेलना बहुत अच्छा लग रहा था. पर भीतर से उन्हें यह बात भी तंग कर रही थी कि कहीं रेवती उन के चाबी के गुच्छे पर अधिकार कर उन की सत्ता को ही चुनौती न दे दे.

रेवती का यों खुले मन से इस घर को अपनाना उन्हें बहुत खुशी दे रहा था लेकिन एक तरफ जहां उन्हें रेवती का चुलबुलापन और उस की स्मार्टनैस अच्छी लग रही थी वहीं दूसरी ओर डरा भी रही थी. कितने ही घरों में वे ऐसा होते देख चुकी थीं कि बहू के आते ही बेटा तो पराया हो ही जाता है साथ ही, बहू सास को भी बिलकुल कठपुतली बना देती है.

मार्केट में उस दिन कांता ने भी तो उन्हें सतर्क किया था, ‘संभल कर रहना, मनोरमा, अब बहू आ गई है. आजकल की ये लड़कियां बिलकुल मीठी छुरी होती हैं, लच्छेदार बातों में फंसा कर सब हथिया लेती हैं. तुम तो वैसे ही इतनी सीधी हो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हें वह घर से ही बाहर कर दे.’

मनोरमाजी जब भी रेवती को देखतीं या उस के व्यवहार से खुश होतीं, उन का दिल यह सब मानने को तैयार नहीं होता था. रेवती उन का बहुत ध्यान रखती थी और उचित मानसम्मान देती थी.

‘‘मम्मी, आज शाम को घूमने चलेंगे,’’ सुबह ही रेवती ने उन्हें बता दिया था. उन्हें लगा कि कहीं पिक्चर वगैरह या डिनर का प्रोग्राम होगा इसलिए पिं्रटेड सिल्क की साड़ी पहन वे तैयार हो गईं.

‘‘अरे मम्मी, यह साड़ी नहीं चलेगी. हम लोग डिस्को जा रहे हैं. चलिए, मैं देखती हूं कौन सी साड़ी ठीक रहेगी.’’

‘‘लेकिन मैं डिस्को में जा कर क्या करूंगी. तुम लोग चले जाओ,’’ मनोरमाजी बोलीं.

‘‘ऐसे कैसे नहीं चलेंगी, मम्मी. एक बार चल कर तो देखिए, आप खूब ऐंजौय करेंगी.’’

‘‘हांहां, मम्मी, आप और पापा दोनों चलिए न. रेवती इतने प्यार से कह रही है तो मान लीजिए न,’’ नीरज ने भी जब कहा तो ना करने का सवाल ही नहीं उठता था.

‘‘देखिए, यह नैट वाली साड़ी ठीक रहेगी. लेकिन इस के ब्लाउज की फिटिंग तो सही नहीं लग रही है. जरा स्टोर की चाबी तो दीजिए, मैं सिलाई मशीन निकाल कर इसे ठीक कर देती हूं.’’

रेवती ने फटाफट ब्लाउज ठीक कर दिया. सचमुच फिटिंग एकदम बढि़या हो गई थी. मनोरमाजी को बहुत अच्छा लगा, पर उस ने चाबी वापस नहीं की है, यह बात उन्हें खटक गई. डिस्को में जाने का मनोरमाजी का हालांकि यह पहला अनुभव था पर उन्होंने ऐंजौय बहुत किया. बीचबीच में उन्हें यह खयाल परेशान करने लगता कि बहू के पर्स में चाबी है.

घर लौट कर भी दिमाग में इसी परेशानी को ले कर वे सोईं. सुबह का चायनाश्ता सब रेवती ने तैयार कर दिया और वह भी बिना किसी गलती या देरी के. वे लगातार यही सोचती रहीं कि आखिर चाबी का गुच्छा मांगें कैसे, पता नहीं बहू उन के बारे में क्या सोचेगी या कहीं बेटे के ही कान न भर दे. अगली सुबह उन के कमरे में आ कर रेवती उन की अलमारी खोल कर बैठ गई.

‘‘मम्मी, आप का आज वार्डरोब देखा जाए. जो बेकार साडि़यां हैं उन्हें हटा दें और जो ब्लाउज ठीक करने हैं वे भी ठीक कर के रख देती हूं.’’

मनोरमाजी उसे हैरानी से देखती रहीं. कहतीं भी तो क्या? कुछ देर खटरपटर करने के बाद वह बोली, ‘‘मम्मी, बहुत थक गई हूं, जरा चाय पिला दो.’’

चाय बना कर वे लौटीं और टे्र को कौर्नर टेबल पर रख दिया. चाबी का गुच्छा वहीं रखा हुआ था. उसे देखते ही उन की आंखों में चमक आ गई लेकिन सवाल यह था कि वे उसे उठाएं कैसे? तभी रेवती का मोबाइल बजा और वह बात करने के लिए अपने कमरे में चली गई. मनोरमाजी ने तुरंत चाबी का गुच्छा उठा लिया. अपनी अलमारी को ताला लगा दिया और निश्ंिचत हो काम में लग गईं. चाबी का गुच्छा हाथ में आते ही उन्हें लगा मानो जंग जीत ली हो.

उस के बाद से मनोरमाजी थोड़ा ज्यादा सतर्क हो गईं. रेवती चाबी मांगती तो वे चाबी देने के बजाय खुद वहां जा कर ताला खोल देतीं या उस के पीछेपीछे जा कर खड़ी हो जातीं और खुद आगे बढ़ कर ताला बंद कर देतीं. रेवती के प्यार और अपनेपन को देख मनोरमाजी का मन यह तो मानने को तैयार नहीं था कि वह उन का दिल दुखाने या अपमान करने का इरादा रखती है, इस के बावजूद जबजब वह उन से चाबी का गुच्छा मांगती, उन के अंदर एक अजीब सी बेचैनी शुरू हो जाती. फिर उसे मांगने का बहाना तलाशने लगतीं.

‘‘बेटा, स्टोर से कुछ सामान निकालना है, जरा चाबी देना.’’

रेवती झट से कहती, ‘‘मम्मी, आप क्यों तकलीफ करती हैं. बताइए, क्या निकालना है, मैं निकाल देती हूं.’’

वह इतने भोलेपन से कहती कि मनोरमाजी कुछ कह ही नहीं पातीं.

एक दिन मनोरमाजी को कुछ काम  से बाहर जाना पड़ा और जल्दीजल्दी में वे चाबी का गुच्छा अलमारी में ही लगा छोड़ आईं. सारा वक्त उन का दिल धड़कता रहा कि अब तो रेवती उसे निकाल कर अपने पास रख लेगी. जब वे घर लौटीं तो देखा अलमारी बंद थी और गुच्छा नदारद था. वे सोचने लगीं, न जाने मेरे पीछे से इस लड़की ने क्याक्या सामान निकाल लिया होगा? वैसे भी तो जबतब उन की ज्वैलरी निकाल कर वह पहन लेती थी.

‘‘मम्मी, शाम को क्या खाना बनेगा? मैं और नीरज तो आज डिनर पर जा रहे हैं. आप का और पापाजी का ही खाना बनेगा,’’ रेवती मुसकराती हुई उन के सामने खड़ी थी.

‘‘रोटी, सब्जी ही बनेगी. तुम परेशान मत हो, मैं बना लूंगी,’’ मनोरमाजी ने कहा. पर उन की आंखें चाबी के गुच्छे को ढूंढ़ रही थीं. उस की कमर पर तो नहीं लटका हुआ था. फिर कहां है? आखिरकार रख ही लिया न इस ने. उन के मन में विचारों का तांता चल रहा था. पति ने पानी मांगा तो वे रसोई में आईं. देखा, स्लैब पर चाबी का गुच्छा पड़ा हुआ है.

जैसे ही उन्होंने अलमारी खोली तो उसे देख कर वे दंग रह गईं. अलमारी पूरी तरह व्यवस्थित थी. 5-6 मौडर्न ड्रैस, 4 लेटैस्ट डिजाइन की साडि़यां व स्वरोस्की और जरदोजी वर्क के 3 सूट करीने से हैंगर पर टंगे हुए थे. उन के गहने के डब्बे लौकर में एक लाइन से रखे हुए थे. अलमारी में परफ्यूम और डियो व कौस्मेटिक्स की नई रेंज भी रखी हुई थीं. सब से नीचे की दराज खोली तो देखा 2 जोड़ी नई चप्पलें रखी हैं.

ऐसा लग रहा था कि रेवती ने अपनी महीनों की कमाई से ये सारा सामान खरीदा था और उन की अलमारी की कायापलट की थी.

मनोरमाजी वहीं बैठ कर फूटफूट कर रोने लगीं. सब लोग घबरा कर उन के पास दौड़े आए. वे रोए जा रही थीं. पर किसी को बता नहीं सकती थीं और रेवती उन से ऐसे चिपक गई, मानो उस से ही कोई भूल हो गई हो. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अलमारी ठीक कर के उस से ऐसी कौन सी भूल हो गई कि मम्मी रोए जा रही हैं.

‘‘मैं बता नहीं सकती, मैं बता नहीं सकती…’’ मनोरमाजी लगातार यही कह रही थीं और उन का चाबी का गुच्छा एक कोने में पड़ा था.

उत्तराखंड: टूटा ग्लेशियर, तबाही लाया इंसानी प्रोजेक्ट

यह तो होना ही था. साल 2013 में केदारनाथ में बादल फटने के बाद मचे हाहाकार और जानमाल के नुकसान से भी सरकारें नहीं जागी हैं. आज भी पहाड़ों पर ऐसी विवादित परियोजनाएं चल रही हैं, जो कुदरत को मानो उकसा रही हैं अपना गुस्सा दिखाने के लिए.

उत्तराखंड के चमोली जिले में हिम ग्लेशियर टूटने से जिस ऋषिगंगा पावर प्रोजैक्ट की तबाही का रोना रोया जा रहा है, वह शुरू से ही विवादों में रहा है. इस प्रोजैक्ट पर 10 साल से ज्यादा समय से काम जारी था. पर याद रहे कि यह कोई सरकारी नहीं, बल्कि प्राइवेट सैक्टर का प्रोजैक्ट था, जिसे ले कर जम कर विरोध हुआ था.

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस प्रोजैक्ट को बंद कराने के लिए अदालत का दरवाजा तक खटखटाया था, लेकिन वे नाकाम रहे थे. उन का मानना था कि इस तरह के प्रोजैक्ट हिमालय को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन का डर आज सच साबित हो गया.

उधर तमाम विवादों के बावजूद ऋषिगंगा पावर प्रोजैक्ट पर बिजली का उत्पादन शुरू हो गया था और वहां 63,520 एमडब्ल्यूएच बिजली बनाने का टारगेट रखा गया था. हालांकि अभी कितना उत्पादन हो रहा था, इस की कोई आधिकारिक जानकारी मौजूद नहीं है. शुरुआती दावों की बात करें तो यह कहा गया था कि जब यह प्रोजैक्ट अपनी पूरी क्षमता पर काम करेगा, तब यहां से बनने वाली बिजली दिल्ली, हरियाणा समेत कुछ दूसरे राज्यों में सप्लाई की जाएगी.

वैसे, ऋषिगंगा नदी पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम के साथ प्राइवेट कंपनी के भी कई पावर प्रोजैक्ट बन रहे हैं.

इस सिलसिले में भारतीय जनता पार्टी की नेता उमा भारती ने कहा कि ग्लेशियर टूटने के चलते हुई त्रासदी चिंता की बात होने के साथसाथ चेतावनी भी है. साथ ही उन्होंने कहा कि मंत्री रहते हुए वे गंगा और उस की मुख्य सहायक नदियों पर बांध बना कर पनबिजली परियोजनाएं लगाने के खिलाफ थीं.

नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली पहली राजग सरकार में उमा भारती जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री थीं. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘इस सिलसिले में मैं ने अपने मंत्रालय की तरफ से हिमालय उत्तराखंड के बांधों के बारे में जो हलफनामा दिया था, उस में यही आग्रह किया था कि हिमालय एक बहुत संवेदनशील स्थान है, इसलिए गंगा और उस की मुख्य सहायक नदियों पर पनबिजली परियोजना नहीं बननी चाहिए.’

उमा भारती की चेतावनी 7 फरवरी, 2021 की सुबह तब सच साबित हो गई, जब नंदादेवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से अलकनंदा की सहायक नदियों ऋषिगंगा और धौलीगंगा में विकराल बाढ़ आ गई.

अचानक उफनाई नदियों का बहाव देखते ही देखते इतना प्रचंड हो गया था कि जोशीमठ इलाके में ऋषिगंगा पावर प्रोजैक्ट और धौलीगंगा किनारे एनटीपीसी का प्रोजैक्ट पूरी तरह बरबाद हो गए. भारतचीन की सरहद पर आईटीबीपी की पोस्ट जोड़ने वाला पुल भी बह गया. साथ ही, तकरीबन डेढ़ सौ लोगों के लापता होने की खबरें भी आईं.

जब यह कुदरती आपदा आई उस से पहले इस इलाके के आसपास बसे गांवों में रोजाना की तरह शांति थी. रैणी गांव के लोगों ने बताया कि सुबह साढ़े 9 बजे के आसपास हिमालय के ऊपरी इलाकों से सफेद धुएं के साथ ऋषिगंगा नदी मलबे के साथ बहती दिखी. इस तेज बहाव को नदी का भयंकर शोर और भी डरावना बना रहा था.

उसी समय धौलीगंगा पर बन रहे तपोवनविष्णुगाड़ पनबिजली प्रोजैक्ट से जुड़े मजदूर काम कर रहे थे. सुबह 10 के बाद जैसे ही धौली गांव के आसपास नदी का जल स्तर बढ़ने लगा, वैसे ही गांव वालों की बैचेनी भी बढ़ने लगी.

गांव के लोगों ने प्रोजैक्ट पर काम कर रहे लोगों को आवाज दे कर और सीटियां बजा कर खतरे से आगाह भी किया, पर नदी की तेज आवाज में गांव वालों की आवाज दब कर रह गई. नतीजतन, प्रोजैक्ट का बैराज और सुरंग मलबे में दफन हो गए.

इस पानी की तबाही देखते ही देखते जंगल में लगी आग की तरह हर जगह फैल गई. इस से स्थानीय प्रशासन के बाद उत्तराखंड सरकार और बाद में केंद्र सरकार भी हरकत में आ गई. इस आपदा से ज्यादा तबाही न मचे और बाढ़ के डर को देखते हुए प्रशासन ने नीचे ऋषिकेश और हरिद्वार तक अलर्ट कर दिया. लोगों को गंगा से दूर रहने की चेतावनी दी गई. राफ्टिंग और नदी किनारे कैंपिंग पर भी रोक लगा दी गई.

इस आपदा में राहत की बात यह रही कि उस समय पहाड़ों पर बारिश नहीं हो रही थी और आगे में मौसम साफ रहने की उम्मीद थी. पर तबाही तो मची थी, लिहाजा, एनडीआरएफ और दूसरे संस्थानों के जवानों ने मुसीबत में फंसे लोगों को बचाने का बीड़ा उठा लिया. आईटीबीपी के जवानों ने एनटीपीसी के बन रहे तपोवनविष्णुगाड़ पनबिजली प्रोजैक्ट की एक सुरंग में फंसे सभी 12 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया. राहत के दूसरे काम भी जारी थे.

हताहत होने वाले ज्यादातर मजदूर और दूसरे मुलाजिम तेलुगुभाषी बताए गए हैं, जो आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एक इंजीनियर संजीवा रेड्डी के तहत प्रोजैक्ट पर काम कर रहे थे.

पर सवाल उठता है कि इस तरह की आपदाएं क्यों जन्म लेती हैं? अगर आबोहवा से जुड़े माहिर लोगों की मानें तो क्लाइमेट में हो रहे बदलाव और बढ़ती गरमी के चलते ग्लेशियर टूट रहे हैं. अगर इन समस्याओं पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो साल 2050 तक हालात और भी बदतर हो जाएंगे. जिस तरह से तरक्की के नाम में पहाड़ काटे जा रहे हैं, उस से ग्लेशियर भी सिकुड़ रहे हैं और वे अपना रास्ता भी बदलने लगे हैं.

इस के अलावा पहाड़ों पर घने और ऊंचे पेड़ देख कर मन में यह सवाल भी आता है कि जब वहां जंगलों की भरमार है, तो फिर ‘चिपको आंदोलन’ के अगुआ सुंदरलाल बहुगुणा और उन के ‘वन सैनानियों’ को कुछ पेड़ कट जाने का ऐसा क्या दर्द था, जो उन्होंने पेड़ों से चिपकचिपक कर उन्हें बचाया था? आज जब ग्लेशियर टूट रहे हैं और उस से पहाड़ों पर नदियों का कहर बरप रहा है, तो पता चलता है कि सुंदरलाल बहुगुणा जैसे लोग कुदरत को ले कर कितना आगे की सोच रहे थे.

ऐसी ही सोच को आगे बढ़ा रहे हैं नैनीताल के ओखलकांडा ब्लौक के नाई गांव के रहने वाले पर्यावरण प्रेमी चंदन सिंह नयाल जो अब तक 40,000 पौधे लगा कर अपना ही एक जंगल बना चुके हैं, जबकि अभी उन की उम्र महज 26 साल है.

चंदन नयाल

चंदन सिंह नयाल कहते हैं कि उन के इलाके में चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही थी. जमीन सूख रही थी. तब उन्होंने क्षेत्र में बांज के पौधे लगाने शुरू किए, क्योंकि ऐसा करना भूस्खलन रोकने में मदद करता है, साथ ही जल संरक्षण में भी अहम रोल निभाता है.

चंदन सिंह नयाल पर्यावरण को ले कर इतने सजग हैं कि उन्होंने हल्द्वानी मैडिकल कालेज को अपनी देह दान कर दी है, ताकि उन की मौत के बाद किसी पेड़ को न काटना पड़े.

चमोली जिले में हिम ग्लेशियर के टूटने पर चंदन सिंह नयाल ने दुखी मन से बताया, “इस तरह जाड़ों के समय ग्लेशियर का टूटना बहुत ही चिंता की बात है, क्योंकि ज्यादातर ग्लेशियर बरसात या गरमियों में ही टूटते हैं. इस साल हिमपात भी बहुत कम हुआ है, जिस वजह से ग्लेशियरों का आकार काफी कम हुआ है. यह भी इस ग्लेशियर के टूटने की एक खास वजह हो सकता है. साथ ही, इस साल मध्य हिमालय और उच्च हिमालयी इलाको में पिछले कई महीने से भीषण आग लगी हुई थी. यह गरमी भी ग्लेशियर टूटने की एक वजह हो सकती है.

“तेजी से चलता विकास का काम, लगातार कठोर चट्टानों पर ब्लास्टिंग कर के सड़क बनाना, ऊंचे पहाड़ों पर लगातार तोड़फोड़ की जा रही है, जिस से हिमालय को बहुत बड़ा नुकसान हुआ है. जिस इलाके में यह आपदा आई है, मैं वहां का दौरा कर चुका हूं. यह जोन काफी सेंसिटिव है. यह नहीं कहा जा सकता कि आफत टल गई, बल्कि आगे भी कई ग्लेशियरों के टूटने का खतरा बना हुआ है.

“ग्लेशियरों में जो दरारें होती हैं, वे बर्फबारी होने पर भर जाती हैं जिस के चलते ग्लेशियर टूटने का खतरा नहीं होता. मैं यही कहूंगा कि सतर्कता बनी रहे. सरकार को इस पर गहराई से सोचने की जरूरत है और उसे आगे भी लगातार ग्लेशियरों पर नजर बनाए रखना होगा.”

हीरा सिंह बिष्ट

जिला चमोली के गांव वाण के रहने वाले समाजसेवी हीरा सिंह बिष्ट गढ़वाली ने भी इस कुदरती कहर पर गहरी चिंता जताई. उन्होंने बताया, “कई बार बहुत ज्यादा बर्फबारी से पहाड़ी नदियां या झीलें जम जाती हैं और ग्लेशियर नदी का बहाव रोक देती है. इस वजह से भी झील बड़ा ग्लेशियर बन जाती है, जिस के टूटने या फटने का डर बना रहता है.

“मैं आप को एक जानकारी और दे दूं कि चमोली जिले का रैणी गांव जो जोशीमठ के तपोवन से आगे है और जहां यह हादसा हुआ है, वह ‘चिपको आंदोलन’ से जुड़ी गौरा देवी का ससुराल है. उन का जन्म साल 1925 में चमोली जिले के लाता नामक गांव में हुआ था. उन्होंने 5वीं जमात तक पढ़ाई की थी. सिर्फ 11-12 साल की उम्र में उन की शादी रैणी गांव के मेहरबान सिंह नाम के आदमी से हुई थी. गौरा देवी ने अपने इलाके के पेड़ों को कटने से बचाने के बहुत बड़ी मुहिम चलाई थी.

“साल 1986 में गौरा देवी को तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पहला ‘वृक्षमित्र पुरस्कार’ दिया था. वे ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत करने वाली महिलाओं में सब से आगे मानी जाती थीं.”

रतन सिंह असवाल

‘पलायन : एक चिंतन’ समूह के रतन सिंह असवाल ने बताया, “हम कुदरती आपदा को रोक तो नहीं सकते पर उस से होने वाले जान और माल के नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं. उत्तराखंड कुदरती आपदाओं से घिरा एक पर्वतीय राज्य है, लिहाजा वहां डौप्लर (वैदर राडार) सिस्टम की बेहद जरूरत है जो भूकंप आना, बादल फटना, ग्लेशियर का टूटना जैसी चेतावनियां समय रहते दे दे, जिस से नुकसान को कम से कम किया जा सके.

“हमारे यहां बड़ेबूढ़ों की कहावत है कि बांसुरी की धुन से नहीं पर इनसानी आवाज के शोर से पहाड़ों पर बर्फ दरक जाती है. पहाड़ों पर जो यह मशीनी शोर बढ़ा है, वह भी इस तरह की आपदाओं को न्योता देता है. केदारनाथ त्रासदी के बाद राज्य में डौप्लर (वैदर राडार) सिस्टम की सख्त जरूरत बताई गई थी, पर अभी भी इस सिस्टम पर ज्यादा काम नहीं हो पाया है, जो चिंता की बात है.”

बहरहाल, ग्लेशियर टूटने की यह घटना हम सब के लिए सबक है कि तरक्की के नाम पर मची इस आपाधापी में हम कुदरत को उतना ही छेड़े जिस से वह दर्द के मारे बिलबिलाए नहीं. भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में कुदरत अपना गुस्सा जाहिर करती रहती है. अभी तो वह छोटे स्तर पर चेतावनी दे रही है, पर अगर कहीं यह बड़े स्तर पर होने लगेगा तो इस धरती पर इनसान और दूसरे तमाम जीवों की हस्ती मिटते देर नहीं लगेगी.

मोहन कपूर ने अपनी मौत की खबर को बताया गलत, ट्विट कर दी जानकारी

सोशल मीडिया पर इन दिनों लगातार बॉडीगार्ड अभिनेता मोहन कपूर की मौत की खबर चल रही थी, जिसे देखते हुए मोहन कपूर ने अपने सोशल मीडिया पर ट्विट करते हुए फैंस को जानकारी दी है कि वह ठीक हैं. उन्हें कुछ भी नहीं हुआ है.

मोहन कपूर ने अपने ट्विट में लिखा है कि ‘हेलो मैं सुरक्षित और ठीक हूं’  हाल ही में मेरे नाम वाले शख्स की मौत हो गई है, मैं उनके परिवार और प्रियजनों के लिए दुआ करता हूं इस भारी नुकसान से उभरने के लिए प्रार्थना करता हूं.

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मोहन कपूर ने इस बयान को जारी कर अपनी फर्जी मौत की खबर पर सफाई दी है. बता दें कि मोहन कपूर टीवी औ फिल्मों में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. लगभग 3 दशकों से अभिनेता अपने एक्टिंग से सभी का दिल जीतने में कामयाब रहे हैं.

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खबर है कि वह जल्द हॉलीवुड में अपना कैरियर अजमाने वाले हैं. मोहन कपूर फिलहाल अमेरिका में हैं और अपनी अपकमिंग वेबसीरीज की शूटिंग में व्यस्त हैं.

मोहन कपूर , हेट स्टोरी, जॉली एलएलबी, हैप्पी न्यू ईयर जैसी कई धमाकेदार फिल्मों में काम कर अपना नाम बनाया है. इन दिनों वह वेब सीरीज में काम कर रहे हैं. जिसका इंतजार उनके फैंस काफी ज्यादा  बेसब्री से कर रहे हैं.

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इसके अलावा भी वह 90 के दशक में कई सुपरहिट फिल्मों में काम कर चुके हैं. जहां उनके अभिनय की तारीफ खूब हुई है. अब देखते हैं कि उन्हें हॉलीवुड में कितना ज्यादा पसंद किया जाएगा.

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