बौस के गुस्से के गरम तवे पर जब नेहा अपने हुस्न और अदाओं के छींटे मारती है तो उन का गुस्सा छन्न से धुएं में उड़ कर पलभर में काफूर हो जाता है. अपने एक पल्लू से बौस को तो दूसरे से क्लाइंट को बांधे गुमशुदा नेहा को आखिर हर कोई क्यों तलाश रहा है?

औफिस पहुंचते ही बौस वह लैटर ढूंढ़ने लगे जो उन्होंने नेहा को टाइप करने के लिए दिया था. जब लैटर नहीं मिला तो उन्होंने चपरासी से कहा, ‘‘जरा नेहा को भेजना.’’

‘‘साहब, वे तो अभी आई नहीं हैं,’’ चपरासी ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, जैसे ही आएं, फौरन मेरे केबिन में भेज देना,’’ इस बार बौस की आवाज में थोड़ी तुर्शी थी, ‘‘हद होती है लापरवाही की,’’ बौस झुंझलाए.

तभी सीढि़यों से आती हाई हील सैंडल की तेज आवाज और परफ्यूम के तेज झोंके ने यह चेतावनी दी कि आखिरकार ‘उन का’ आगमन हो ही गया है. लगता है कि राखी सावंत ने लटकेझटके दिखाने और अंगप्रदर्शन की ट्रेनिंग इन्हीं से ली होगी. ‘मैं किसी से नहीं डरती’ की तर्ज पर हमेशा ये निशाना साधे खड़ी रहती हैं. किसी ने कुछ कहा नहीं कि दाग दी विषाक्त शब्दों की गोली, कमर पर हाथ रख मोरचा लेने को तैयार.

नेहा मैडम के दस्तक देते ही चपरासी ने सूचना दी, ‘‘साहब आप को बुला रहे हैं.’’

‘‘मिल लेती हूं, जरा सांस तो ले लूं. बस में आज इतनी भीड़ थी कि मेकअप तक खराब हो गया. अभी ठीक कर के आती हूं. हां, जरा चाय के लिए बोल देना,’’ कहतेकहते वे वाशरूम में घुस गईं.

‘‘गुड मौर्निंग सर,’’ नेहा मैडम की आवाज में मानो मिसरी घुली हुई थी.

‘‘गुड मौर्निंग तो ठीक है पर वह मैटर कहां है जो मैं ने तुम्हें कल टाइप करने को दिया था?’’

‘‘सर, शाम को तो टाइम ही नहीं मिला, अभी 10 मिनट में टाइप कर देती हूं,’’ अपने साड़ी के पल्लू से खेलते हुए वे बोलीं. उन की आंखों में अजीब सी शरारत तैर रही थी.

‘‘ठीक है, ठीक है,’’ बौस थोड़ा पिघले. उन की इन्हीं अदाओं के सामने ही तो बौस की बोलती बंद हो जाती है. आखिर वे नेहा मैडम हैं, जिन्हें पता है कि बौस को कैसे पटाया जाता है. कभी हंस कर तो कभी हमदर्दी बटोर कर, बौस से अपनी बात मनवा लो. इठलाती हुई वे केबिन से बाहर निकल आईं.

हया का चोला तो कभी पहना ही नहीं इन्होंने. डिमांड भी कहां है इस की, यही तर्क देती हैं वे अकसर. कोई बेशर्म होता है तो उसे उन्हीं की तरह अदा से हंसते हुए झेल जाता है, वरना शरीफ बंदा तो दोबारा उन से उलझने की हिम्मत ही नहीं करता है. औफिस रोज आती हैं पर फिर भी उन का जायजा लेने के लिए रोज ही एक बार ऊपर से नीचे तक उन्हें देखना जरूरी होता है. हर दिन नया रूप. फिल्मी फैशन को जिस ने फौलो नहीं किया उस की जिंदगी बिलकुल बेरंग होती है.

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आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर उन में ऐसी क्या खासीयत है कि उन के इतने गुणगान किए जा रहे हैं. खासीयत तो है, यह बात अलग है कि कुछ लोगों के गुणगान उन की काबिलीयत व कार्यकुशलता की वजह से किए जाते हैं और कुछ के उन की अदा व लटकेझटकों के लिए.

नेहा मैडम को तैयार होने में कम से कम 1 घंटा तो लगता ही होगा. आखिर शरीर के सौष्ठव का प्रदर्शन करने के लिए विभिन्न माध्यमों को ईजाद करना भी सब के बूते की बात नहीं है. सुना है, अंतरंग वस्त्रों में कुछ पैडिंग भी करती हैं. फिटिंग और उभार जरूरी हैं कि नहीं. ऊपर से नीचे तक सब मैचिंग.

खैर, एक वैंप स्टाइल में अपने बालों को लहराते हुए उन्होंने कमरे में प्रवेश किया और अपनी ‘खास’ को हाथ से हाय उछालते हुए अपनी सीट पर जा बैठीं. फटाफट लैटर टाइप किया. इतने में एक सहयोगी वर्मा सीट के पास आ कर खड़ा हो गया. दोनों में अच्छी पटती थी.

‘‘क्या हाल हैं?’’ होंठों को गोलगोल घुमाते हुए वर्मा बोला.

‘‘बढि़या हैं. कल जो तुम ने परफ्यूम दिया था न, वही लगा कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा लगा न?’’

‘‘ठीक है, पर अगली बार थोड़ा और महंगा देना,’’ लैटर को प्रिंटर से निकालने के लिए मैडम थोड़ा झुकीं तो वर्मा की आंखें चौड़ी हो गईं.

‘‘जो हुक्म सरकार, अगली बार तुम ही साथ चल कर खरीद लेना.’’

उस के बाद बौस के केबिन में जा कर हलके से अपनी मुद्रा को कटावदार बनाते और झुकते हुए बोलीं, ‘‘सर, लैटर टाइप हो गया है.’’

अब तक बौस का मूड भी शायद ठीक हो गया था, इसलिए उन की मुद्रा देख बौस का दिल तो जैसे बल्लियों उछल गया. तुरंत डस्टबिन के अंदर ‘पिच्च’ से थूक उगला और तंबाकू से रोशन पीले दांतों की आकारहीन पंक्ति को बाहर कर बोले, ‘‘लैटर तो ठीक है पर आज देर से औफिस पहुंचीं, सब ठीक तो है न?’’

बौस के बकरीनुमा चेहरे पर टिकी आंखों में ऐसे भाव उभरे मानो नेहा के सौंदर्य को पी लेना चाहती हों. निगाहें डीपनेक ब्लाउज पर से सरकती हुई उभारों पर जा टिकीं. होंठों पर जीभ फेरते हुए थूक को इस बार निगल लिया. मानो थूक के साथ मजा भी गटक लिया हो.

‘‘सौरी सर, कल रातभर सो नहीं पाई, इसलिए सुबह उठा ही नहीं जा रहा था. देखिए न, कैसे तो शरीर में बल पड़ रहे हैं. हलकीहलकी टीसें भी उठ रही हैं, पर काम था, इसीलिए औफिस चली आई. आज क्लाइंट के साथ भी तो मीटिंग है.’’

‘‘देखो, पार्टी हाथ से निकलने न पाए. कैसे भी कर के संभाल लेना.’’

‘‘डू नौट वरी, सर. सब हैंडल कर लूंगी,’’ कहतेकहते नेहा मैडम ने अपने पूरे शरीर को नागिन की तरह झुलाते हुए कुछ इस तरह फुंकार मारी कि बेचारे बौस के लिए अपने को संभालना मुश्किल हो गया.

‘‘ओह हो, क्या कर रही हो? मैं तो आउट औफ कंट्रोल हो रहा हूं. थकी होने पर भी बिजलियां गिरा रही हो. क्यों शुभ्रा मैडम, सही कह रहा हूं न?’’ अपनी बात की पुष्टि करने के लिए बौस ने शुभ्रा मैडम को पुकारा.

शुभ्रा मैडम, यानी नेहा मैडम की खास सहेली. वह तो इंतजार में बैठी ही थी कि कब बौस बुलाएं और कुछ चुहलबाजी हो. काम का क्या है, वह तो होता ही रहेगा. बौस काम को ले कर न तो खुद परेशान रहते हैं न ही अपने खास लोगों को करते हैं. सीमा मैडम हैं न, सब संभाल लेती हैं. वह क्या जाने इस हासपरिहास का आनंद क्या है.

नेहा मैडम को देख कर सब से ज्यादा खुशी उन्हें ही होती है. आखिर दोनों ने एकदूसरे को मोहरा जो बना रखा है. कहती हैं कि हम तो एक नाव हैं, बिलकुल संतुलित वाली नाव. एक अदाओं का पिटारा तो दूसरी ऐसी घुन्नी कि उस के एक हाथ को पता नहीं चलता कि दूसरा क्या कर रहा है.

नेहा मैडम बौस का दायां हाथ हैं तो वह बायां हाथ, मिस दायां हाथ, यानी नेहाजी हमेशा झुकने को तैयार रहती हैं. केक काटना हो, फाइलें बौस को थमानी हों, सदैव झुक कर ही करती हैं. मिस बायां हाथ इस मामले में मजबूर हैं.

बौस के केबिन में अभी हंसीठिठोली चल ही रही थी कि सीमा मैडम आ गईं. फिर तो महफिल बर्खास्त करनी ही पड़ी. उन की गंभीरता बड़ी भारी पड़ती है इन पर. बौस जानते हैं कि इन के बगैर काम नहीं चल सकता इसलिए उन के सामने तो घिघियाने लगते हैं.

मिस बायां हाथ और मिस दायां हाथ, दोनों अपनीअपनी सीटों पर खिसक लीं, पर बडे़ बेमन से. कितनी तो बातें थीं अभी करने की. शुभ्रा मैडम को अपनी सास के जुल्मों का बखान करना था और नेहा मैडम को अपने तीसरे पति के साथ बीत रहे दिनों की चटखारेदार बातें सुनानी थीं.

सीट पर बैठ नेहाजी ने कंप्यूटर खोला, फाइलें मेज पर रखीं और बाथरूम में जा कर लिपस्टिक की परत पर एक और पोंछा मार कर लौटीं. कुछ देर किसी से बहुत ही मंद स्वर में फोन पर बात की. फोन औफिस संबंधी काम के लिए नहीं था, पर्सनल था.

अभी 1 बजने ही वाला था कि वे उठीं और बौस के केबिन में पहुंचीं, ‘‘सर, बड़ी भूख लग रही है. मैं तो जल्दीजल्दी में कुछ ला ही नहीं सकी.’’

‘‘तुम मेरा लंच ले लो. यहीं बैठ जाओ. लंच टाइम होने में तो समय है,’’ बिना खाए ही लार टपकने लगी थी उन की. वे एक भी मौका नहीं छोड़ना चाहते थे. नैनसुख का मजा ही सही.

तभी शुभ्रा मैडम भी वहां आ कर विराजमान हो गईं और घर से आए गरमगरम खाने का स्वाद लेने और बौस को देने लगीं.

नेहा मैडम का बारबार खिसकता सिंथेटिक साड़ी का पल्लू संभाले नहीं संभल रहा था. बेचारे बौस का पेट तो यों ही भर गया. 2 बजे तक का समय तीनों का बहुत सुख से कटा.

सवा 2 बजे क्लाइंट महाशय आ गए तो नेहा मैडम उन्हें संभालने रिसैप्शन पर पहुंच गईं. क्लाइंट तो आज तक उन्हीं की वजह से और्डर देता आ रहा था. आज तो वह उन के लिए एक घड़ी भी लाया था.

‘‘मेरा छोटा सा तोहफा कुबूल करें,’’ क्लाइंट ने अपनी आंखों को उन के उभारों पर टिकाते हुए कहा.

‘‘आप की इन्हीं बातों पर तो मरती हूं मैं. कितना ध्यान रखते हैं आप मेरा. माल को ले कर एकदम निश्ंिचत हो जाएं. हर बार की तरह इस बार भी छूट दिला दूंगी,’’ वे इठलाईं.

‘‘तो आज शाम डिनर पर चलें?’’ क्लाइंट के यह कहते ही घड़ी के डब्बे को हाथ में थामते हुए वे बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? मिलते हैं फिर शाम को.’’

ढाई बजे नेहाजी को महसूस हुआ कि उन का गला बुरी तरह सूख रहा है और जी मिचलाने लगा. ‘लगता है इस सियार ने कल रात का खाना खिलाया है. इस की गंवार बीवी 2 दिन का खाना बना लेती है ताकि बचत हो. भिंडी तो सड़ ही गई थीं शायद,’ मन ही मन बौस के डब्बे के खाने को कोसा और बड़ी सी डकार मार कर उन के केबिन के आगे जा खड़ी हुईं. अपनी आवाज में शहद जैसी मिठास घोलते और अपनी डकार को रोकते हुए बोलीं, ‘‘बड़ी प्यास लगी है, जरा बाहर जा कर कोल्ड ड्रिंक पी कर आती हूं सर.’’

जवाब सुनने की जहमत वे नहीं उठातीं. उन के साथ मिस बायां हाथ भी हो लीं. आज लंच टाइम में गप नहीं हो पाई थी.

10 मिनट बाद लौटीं तो फर्राटे से चलते हुए इस तरह सीट पर बैठीं मानो सारी फाइलें आज ही निबटा देंगी.

नेहा मैडम कंप्यूटर पर कुछ एंट्री कर ही रही थीं कि सीमा मैडम ने कुछ फाइलें उन्हें देते हुए कहा, ‘‘इन सब को आज जवाब देना है.’’

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खा जाने वाली निगाहों से नेहा ने उन्हें घूरा. उन का बस चले तो उन्हें वे चक्की के पाट के अंदर रख कर चक्की चला दें. खुद तो दिन भर लगी रहती है, दूसरों को भी कोल्हू का बैल बनाना चाहती है.

‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कल करूंगी. जल्दी है तो किसी और से करा लो,’’ हाथ नचाते हुए ढिठाई से उन्होंने कहा. बौस मुट्ठी में हो तो क्यों दबें.

इधर ये नामुराद उबासियां कैसे उन के मुंह को जबरन खुलवाए जा रही हैं. बहुत संभाला पर सिर मुआ टेबल पर जा ही टिका. थोड़ी देर बाद उन्होंने टेबल से सिर उठाया और ऊंघते हुए बगल में बैठे सुधीर से पूछा, ‘‘सैलरी बैंक में क्रैडिट हो गई कि नहीं?’’

‘‘वह तो सुबह ही हो गई थी.’’

कुछ चौकन्नी हुईं वे तो चाय की तलब जाग उठी. वैसे भी 3 बज गए थे. लौबी में जा कर चाय का कप भर लाईं. औफिस में चायकौफी की मशीन लगी हो तो वारेन्यारे हो जाते हैं.

साढ़े 3 बजे बौस चक्कर लगाते हुए उन की सीट पर पहुंचे. उन की नींद से बोझिल आंखों को देख सांत्वना देने की खातिर उन की पीठ पर हाथ रखा. मैडम की आंखों के बल्ब जले और बौस उन में खाक होने लगे.

‘‘ओह हो, क्यों अपने को इतना टौर्चर कर रही हैं, जाइए घर. आप तो खिलीखिली ही अच्छी लगती हैं. कितना मुरझा गई हैं.’’

बौस तो सचमुच आउट औफ कंट्रोल हो रहे थे. वैसे भी उन्हें छूने भर से करंट तो लग गया था. उन की भूखी नजरें और अतृप्त इच्छाएं औफिस में ही करतब दिखाने को व्याकुल हो उठी थीं.

सामान उठातेधरते और शुभ्रा के साथ बातें करतेकरते करते 4 बज गए. ‘बाय सर’ कहते हुए अपने मैचिंग पर्स को झुलाते हुए सैंडल खटखटाते यों निकलीं जैसे औफिस का काम करतेकरते उन के शरीर में न जाने कितने बल पड़ गए हों.

नेहा मैडम का यह सिलसिला मजे से चल रहा था. बौस, क्लाइंट और वर्मा तीनों को लग रहा था वे पट गई हैं. लेकिन नेहा मैडम को तो सिर्फ इस बात से मतलब था कि किस से क्या गिफ्ट मिल रहा है या क्या फायदा हो रहा है, कौन उसे सुबहशाम लिफ्ट दे रहा है.

क्लाइंट से तो वे और भी तरह के फेवर लेती रहती थीं. बहन की नौकरी लगवानी थी तो उसी से मदद ली थी. नेहा मैडम ने बौस से 50 हजार, क्लाइंट से 15 हजार और वर्मा से 5 हजार रुपए भी उधार लिए हुए थे. नैनसुख और नेहा मैडम की अदाओं का आनंद लेने के चक्कर में तीनों बेवकूफ बन रहे हैं, यह बात तो वे समझ ही नहीं पा रहे थे. एक दिन वे औफिस पहुंचीं तो सीधे लीव एप्लीकेशन बौस को थमा दी.

‘‘सर, मेरे फादर बहुत बीमार हैं, कल ही भोपाल के लिए निकलना है.’’

‘‘जाओ भई और कोई टैंशन मत लेना.’’ हालांकि उन्हें इस बात की तकलीफ थी कि वे अब किस के साथ फुलझडि़यां छोड़ेंगे.

‘‘सर, आई विल मिस यू.’’

केबिन से बाहर आईं तो वर्मा के सामने भी उन्होंने यही बात दोहरा दी.

इस बात को 3 महीने हो गए पर नेहा मैडम का कहीं अतापता नहीं. बौस, वर्मा और क्लाइंट तीनों उन्हें ढूंढ़ रहे हैं. पैसे तो गए, वे तीनों उन चीजों का हिसाब भी लगा रहे हैं जो गिफ्ट में उन्होंने नेहा मैडम को दी थीं.

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