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मोहमोह के धागे
एक के बाद एक रेवती के साथ जो घटता गया, वह उस के दुखों को और बढ़ाता गया. जिस मानसिक यंत्रणा से वह गुजर रही थी, देख कर लगता था जैसे जिंदगी उस की परीक्षा ले रही थी कि वह कितने दुख झेल सकती है.
भाग - 1
घर में गहरी उदासी छाई थी. रणवीर की मां को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि उस का लाड़ला दुनिया से विदा हो चुका है. वे रो नहीं रही थीं बल्कि विस्फारित आंखों से देख रही थीं.
भाग - 2
साधु महाराज ने उसे हिदायत दी, ‘‘देवी, ध्यान रखना यह बात हमेशा गुप्त रखना वरना मेरी ज्ञानध्यानशक्ति कमजोर पड़ जाएगी. मैं फिर तुम्हारे लिए कुछ न कर पाऊंगा. जाओ, अब घर जाओ.’’
भाग - 3
रेवती, नीता की इस घोषणा से सतर्क हो गई. उस के दिमाग में साधु ने जो बातें भरी थीं वे घर बना चुकी थीं. रातरातभर वह गहरी सोच में डूबी रहती.
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