खुशियों से भरे दिन थे वे. उत्साह से भरे दिन. सजसंवर कर  रहने के दिन. प्रियजनों से मिलनेमिलाने के दिन. मुझ से 4 बरस छोटे मेरे भाई तनुज का विवाह था उस सप्ताह.

यों तो यह उस का दूसरा विवाह था पर उस के पहले विवाह को याद ही कौन कर रहा था. कुछ वर्ष पूर्व जब तनुज एक कोर्स करने के लिए इंगलैंड गया तो वहीं अपनी एक सहपाठिन से विवाह भी कर लिया. मम्मीपापा को यह विवाह मन मार कर स्वीकार करना पड़ा क्योंकि और कोई विकल्प ही नहीं था परंतु अपने एकमात्र बेटे का धूमधाम से विवाह करने की उन की तमन्ना अधूरी रह गई.

मात्र 1 वर्ष ही चला वह विवाह. कोर्स पूरा कर लौटते समय उस युवती ने भारत आ कर बसने के लिए एकदम इनकार कर दिया जबकि तनुज के अनुसार, उस ने विवाह से पूर्व ही स्पष्ट कर दिया था कि उसे भारत लौटना है. शायद उस लड़की को यह विश्वास था कि वह किसी तरह तनुज को वहीं बस जाने के लिए मना लेगी. तनुज को वहीं पर नौकरी मिल रही थी और फिर अनेक भारतीयों को उस ने ऐसा करते देखा भी था. या फिर कौन जाने तनुज ने यह बात पहले स्पष्ट की भी थी या नहीं.

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बहरहाल, विवाह और तलाक की बात बता देने के बावजूद उस के लिए वधू ढूंढ़ने में जरा भी दिक्कत नहीं आई. मां ने इस बार अपने सब अरमान पूरे कर डाले. सगाई, मेहंदी, विवाह, रिसैप्शन सबकुछ. सप्ताहभर चलते रहे कार्यक्रम. मैं भी अपने अति व्यस्त जीवन से 10 दिन की छुट्टी ले कर आ गई थी. पति अनमोल को 4 दिन की छुट्टी मिल पाई तो हम उसी में खुश थे. बच्चों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था. मौजमस्ती के अलावा उन्हें दिनभर के लिए मम्मीपापा का साथ भी मिल रहा था.

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