बीते कुछ दशकों में जल संकट देशभर में एक बड़ी समस्या के रूप में उभर कर सामने आया है. देशभर में पीने और सिंचाई के काम में आने वाले जल स्रोत में भारी कमी आई है. इस का नतीजा यह रहा है कि देश के कई भाग भीषण सूखे की त्रासदी से जू? रहे हैं. जल संकट से उपजे हालात के चलते पलायन और आत्महत्या करने वालों की तादाद में भी काफी इजाफा हुआ है.

अगर देखा जाए, तो देश में बुंदेलखंड के जिले जल संकट से सब से ज्यादा प्रभावित रहे हैं, जबकि इस क्षेत्र में एशिया की सब से बड़ी ग्रामीण जल परियोजना ‘पाठा पेयजल योजना’ के नाम से चलाई जा चुकी है. जल संकट से जू?ा रहे बुंदेलखंड में प्राकृतिक जल स्रोतों की भरमार होने के बावजूद पानी की कमी यहां के लोगों के लिए एक बड़े संकट के रूप में खड़ी रही. बुंदेलखंड क्षेत्र में छोटीबड़ी कुलमिला कर 35 नदियां हैं, जिस में यमुना, चंबल, बेतवा, केन, मंदाकिनी जैसी बड़ी नदियां भी शामिल हैं. इस के अलावा सरकारी आंकड़ों में 33,450 तालाब, 80,000 कुएं, 200 नाले, 51 बावरी और 125 छोटेबड़े बांध भी उपलब्ध हैं.

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लेकिन, बुंदेलखंड का जल संकट जस का तस बना हुआ था. इसी जल संकट के बीच सरकार के नाकाफी पड़ते उपायों के बीच जलयोद्धा उमाशंकर पांडेय ने मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को समुदाय में बढ़ावा दे कर न केवल बुंदेलखंड, बल्कि देश के कई दूसरे हिस्सों में भी पानी के संकट को काफी हद तक कम कर दिया है. उन की मेंड़बंदी परंपरा ने बांदा, महोबा, चित्रकूट, ?ांसी जैसे जिलों में पानी के जलस्तर को बढ़ाने में काफी मदद की है. उन्होंने यह कामयाबी बिना किसी सरकारी या गैरसरकारी मदद के समुदाय के आधार पर किसानों की सहभागिता से हासिल की है.

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