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लेखक: डा. चमन टी. माहेश्वरी

आधी रात को गांधीनगर जिला आरोग्य अधिकारी का फोन आया, ‘‘डा. माहेश्वरी, तुम्हें कल सुबह जितना जल्दी हो सके स्वास्थ्य टीम के साथ सूरत के लिए निकलना है. वहां बाढ़ से हालात बद से बदतर हो रहे हैं,’’ कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया.

प्रतिनियुक्ति की बात सुन कर दूसरे सरकारी अधिकारियों की तरह मेरा दिमाग भी खराब हो गया. अपना घर व अस्पताल छोड़ कर अनजान शहर में जा कर चिकित्सा का कार्य करना. कई सरकारी चिकित्सकों ने प्रतिनियुक्ति की बारंबारता से हैरान हो कर सरकारी नौकरी ही छोड़ दी. पर नौकरी तो नौकरी ही होती है, भले ही चिकित्सक की सम्मानित नौकरी ही क्यों न हो.

अचानक सूरत जाने की बात सुन कर पत्नी उदास हो गई. बच्ची बहुत ही छोटी थी. शुक्र था कि मां मेरे यहां ही थीं. आधी रात को ही बैग तैयार कर दिया.

‘‘खाने का सूखा नाश्ता ले लो. पता नहीं, इस हालत में सूरत में कुछ मिलेगा भी कि नहीं?’’ पत्नी ने सलाह दी. हालांकि, जौहरियों का शहर अपने खानपान के लिए मशहूर था.

‘‘इतना बड़ा शहर है, कुछ न कुछ तो खाने को मिलेगा ही.’’

मेरे मना करने के बाद भी उस ने नमकीन व मूंगफली के पैकेट मेरे बैग में डाल दिए.

हम सरकारी एंबुलैंस वाहन से पूरी टीम के साथ सूरत के लिए निकल गए. हमारे साथ दूसरी गाडि़यां भी थीं जिन में आसपास के सरकारी चिकित्सकों की टीमें थीं. गांधीनगर में भी बरसात चालू थी और बादलों से पूरा आकाश भरा पड़ा था.

जैसे ही हम बड़ौदा से आगे निकले, टै्रफिक बढ़ता ही जा रहा था. गाडि़यां धीरेधीरे चल पा रही थीं. बड़ौदा से सूरत का 3 घंटे का रास्ता 6 घंटे से भी ज्यादा हो गया था. ऊपर से सड़क पर बड़ेबड़े गड्ढे.

करीब 5 बजे हम सूरत पहुंचे. सूरत शहर के अंदर पहुंचते ही भयावह स्थिति का अंदाजा लगा. शहर के किनारे पर ही एक फुट तक पानी था जो बढ़ ही रहा था. हमें ऐसे लग रहा था कि हम जैसे आस्ट्रिया की राजधानी वियना में प्रवेश कर रहे हैं, जहां पूरा शहर पानी के अंदर बसा हुआ है, सड़कें पानी की बनी हुई हैं और दोनों ओर खूबसूरत इमारतें हैं. हमें कंट्रोल रूम जा कर रिपोर्टिंग करनी थी जो शहर के बीचोंबीच था. यह जानकारी हमारा ड्राइवर पान की दुकान से लाया था.

सूरत शहर भव्य व हजारों साल पुराना है. हजारों वर्षों से यहां से गुजराती व्यापारी जलमार्ग से पूरी दुनिया में व्यापार करते थे. यहीं पर पुर्तगालियों ने अपनी पहली कोठी स्थापित की थी जिस की अनुमति मुगल सम्राट जहांगीर ने दी थी.

यह शहर उस समय पूरी दुनिया के सामने आया जब 90 के दशक में प्लेग ने पूरे शहर को जकड़ लिया था. पूरी दुनिया भारत आने से डर गई थी, उसी शहर से जहां पूरी दुनिया ने भारत में आधित्पय जमाने की कोशिश की थी.

यह शहर सच में बहुत ही खूबसूरत व भव्य था. बड़ी इमारतें, चौड़े रास्ते व खूबसूरत चौराहे. यह शहर अभी भी टैक्सटाइल व हीरेजवाहरात के लिए पूरी दुनिया में महत्त्वपूर्ण शहर है. कच्चे हीरे यहां लाए जाते हैं और तराश कर पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं.

अब हम 2-3 फुट पानी में रेंग रहे थे. हम कंट्रोल रूम रात के 7 बजे पहुंचे. कंट्रोल रूम में भी 2-3 फुट पानी था. औफिस प्रथम मंजिल पर था. हम ने वहां प्रतिनियुक्ति पत्र दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उन्होंने हमारा बेमन से स्वागत किया, शायद वे भी प्रतिनियुक्ति पर आए हुए थे.

‘‘तुम्हारा कार्यक्षेत्र उधना स्वाथ्य केंद्र में है और वहीं से वे तुम्हें जहां का आदेश दें वहां जाना है. और तुम्हारा कैंप स्थल पब्लिक स्कूल में है, वहीं तुम्हें रुकना है,’’ उन्होंने एक लिखित आदेश दिया जिस में पूरा पता था.

हम पब्लिक स्कूल की ओर चले. चाय की जोरदार तलब हो रही थी, हालांकि हम ने रास्ते में 3-4 बार चाय पी थी.

लंबा व उबाऊ रास्ता होने के कारण थकान व चिड़चिड़ाहट हो रही थी. दुकानें बंद थीं और चाय के ठेले नदारद थे. 3 किलोमीटर की दूरी एक घंटे में तय करने के बाद हमारा अस्थायी आशियाना एक पब्लिक स्कूल दिखा. यह पब्लिक स्कूल भी महानगर के प्राइवेट स्कूल जैसा दिखा. कैंपस छोटा, पर ऊंचा था. ड्राइवर ने गली में ही गाड़ी पार्क की और हम ने सामान उतार कर स्कूल में प्रवेश किया.

टेबल पर एक वृद्ध सज्जन बैठे थे. वे स्कूल के ट्रस्टी थे. पास में ही खाना बन रहा था, जो शायद हमारे जैसे प्रतिनियुक्ति वालों के लिए था. हमें ऊपर दूसरी मंजिल पर रुकवाया गया था जहां फर्श पर ही बिस्तर लगे हुए थे. मैं ने दूसरी मंजिल पर जाने से पहले उन सज्जन से पूछा, ‘‘क्या चाय मिल सकती है?’’ हालांकि सब की इच्छा थी पर कोईर् भी संकोच के कारण कह नहीं रहा था.

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